पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ ( Judges )

अध्याय 1

1) योषुआ की मृत्यु के बाद इस्राएलियों ने प्रभु से पूछा, ÷÷हम में से कौन सब से पहले कनानियों से युद्ध करने जाएगा?''
2) प्रभु ने उत्तर दिया, ÷÷यूदा को जाना चाहिए, क्योंकि मैं देष उसके हाथ दूँगा÷÷।
3) यूदा ने अपने भाई सिमओन से कहा, ÷÷मेरे साथ उस भूभाग में चलो, जो मुझे चिट्ठी द्वारा प्राप्त हुआ है। हम कनानियों से युद्ध करें। इसके बाद मैं भी तुम्हारे साथ उस भूभाग में चलूँगा, जो चिट्ठी द्वारा तुम को मिला है।''
4) इस पर सिमओन उसके साथ चला गया। यूदा ने चढ़ाई की और प्रभु ने कनानियों और परिज्+जि+यों को उनके हाथ दे दिया। उन्होंने उनके दस हज+ार सैनिकों को बेजे+क के पास पराजित किया।
5) वे बेजे+क के पास अदोनी-बेज+ेक से मिले और उन्होंने उस से लड़ कर कनानियों और परिज्+जि+यों को पराजित किया।
6) जब अदोनी-बेजे+क भाग गया, तो उन्होंने उसका पीछा कर उसे पकड़ लिया और उसके हाथ-पाँव के अँगूठे काट डाले।
7) इस पर अदोनी-बेजे+क ने कहा, ÷÷सत्तर राजा, जिनके हाथ-पाँव के अँगूठे कट गये थे, मेरी मेज+ के नीचे की जूठन खाते थे। जैसा मैंने किया, ईष्वर मेरे साथ उसके बदले वैसा ही कर रहा है''। वह येरुसालेम लाया गया, वहाँ उसकी मृत्यु हो गयी।
8) यूदावंषियों ने येरुसालेम पर भी आक्रमण कर उसे अधिकार में कर लिया, उसके निवासियों को तलवार के घाट उतारा और नगर को जलाया।
9) इसके बाद यूदावंषी पहाड़ी प्रदेष में, नेगेब और निचले प्रदेष में रहने वाले कनानियों से युद्ध करने गये।
10) उन्होंने हेब्रोन में रहने वाले कनानियों से युद्ध किया। (पहले हेब्रोन का नाम किर्यत-अरबा था। और उन्होंने शेषय, अहीमान और तलमय को पराजित किया।
11) वहाँ से आग बढ़ कर उन्होंने दबीर के निवासियों पर आक्रमण किया (दबीर का नाम पहले किर्यत-सेफ़ेर था)।
12) कालेब ने कहा, ÷÷जो किर्यत-सेफ़ेर को पराजित कर अधिकार में ले लेगा, मैं उसके साथ अपनी पुत्री अक्सा का विवाह कर दूँगा''।
13) कालेब के छोटे भाई केनज+ के पुत्र ओतनीएल ने उस पर अधिकार कर लिया, इसलिए उसने अपनी पुत्री अक्सा का विवाह उसके साथ कर दिया।
14) वह उसके पास आयी और उसने उस से अनुरोध किया कि वह अपने पिता से एक खेत माँगे। जैसे ही वह अपने गधे पर से उतरी, कालेब ने उससे पूछा, ÷÷तुम्हें क्या चाहिए?''
15) उसने उसे उत्तर दिया, ÷÷मेरा एक विषेष उपकार कीजिए। आपने मुझे नेगेब में एक खेत दिया, तो मुझे झरने भी दीजिए।'' इस पर कालेब ने उसे ऊपरी और निचले झरने दे दिये।
16) मूसा का ससुर केनी जातीय था। उसके वंषज यूदावंषियों के साथ खजूर के नगर से यूदा के उजाड़खण्ड गये, जो आराद के निकट नेगेब में स्थित है और वहाँ उन लोगों के साथ रहने लगे।
17) यूदा ने अपने भाई सिमओन के साथ सफ़त में रहने वाले कनानियों को पराजित कर उनका संहार कर दिया; इसलिए उस नगर का नाम होरमा पड़ा।
18) यूदा ने गाज+ा और उसकी निकटवर्ती भूमि, अषकलोन और उसकी निकटवर्ती भूमि तथा एक्रोन और उसकी निकटवर्ती भूमि को अधिकार में कर लिया।
19) प्रभु ने यूदा का साथ दिया, इसलिए वह पहाड़ी प्रदेष को अधिकार में कर सका; परन्तु वह मैदान के निवासियों को नहीं भगा सका, क्योंकि उनके पास लोहे के रथ थे।
20) जैसी मूसा ने आज्ञा दी थी, कालेब को हेब्रोन दिया गया। उसने वहाँ से अनाक के तीनों पुत्रों को भगा दिया।
21) बेनयामीन-वंषी येरुसालेम के निवासी यबूसियों को नहीं भगा सके। इसलिए आज तक यबूसी लोग बेनयामीन के लोगों के साथ येरुसालेम में ही रहते आ रहे हैं।
22) यूसुफ़वंषियों ने भी बेतेल पर चढ़ाई की। प्रभु उनके साथ था।
23) यूसुफवंषियों ने बेतेल का भेद लेने के लिए वहाँ आदमियों को भेजा। (पहले उस नगर का नाम लूज+ था।)
24) गुप्तचरों ने एक आदमी को नगर से निकल कर आते देखा और उस से कहा, ÷÷हमें नगर में घुसने का रास्ता बताओ। इसके बदले हम तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।''
25) इस पर उसने उन्हें नगर में पहुँचने का रास्ता बता दिया। उन्होंने नगर अधिकार में किया और उसके निवासियों को तलवार के घाट उतारा, किन्तु उस आदमी और उसके सारे परिवार को छोड़ दिया।
26) उस आदमी ने हित्तियों के देष में जा कर एक नगर बसाया और उसका नाम लूज+ रखा। आज तक उसका यही नाम है।
27) मनस्से बेत-शान और उसके गाँवों के निवासियों, तानाक और उसके गाँवों के निवासियों, दोर ओर उसके गाँवों के निवासियों, यिबलआम और उसके गाँवों के निवासियों तथा मगिद्दो और उसके गाँवों के निवासियों को नहीं भगा सका। कनानी लोग उस प्रान्त में रह गये।
28) जैसे-जैसे इस्राएल की शक्ति बढ़ती गयी, वैसे-वैसे वे कनानियों से बेगार लेने लगे, पर उन्हें एकदम भगा सकने में असमर्थ रहे।
29) एफ्रईम गेसेर में रहने वाले कनानियों को नहीं भगा सका, इसलिए कनानी लोग गेसेर में उनके बीच रह गये।
30) ज+बुलोन किट्रोन और नहलोन के निवासियों को नहीं भगा सका। कनानी लोग उनके बीच रह गये, परन्तु इस्राएली उन्हें बेगार में लगाते थे।
31) आषेरवंषी अक्को, सीदोन, अहलाब, अगज+ीव, हेल्वा, अफ़ीक और रहोब के निवासियों को नहीं भगा सके, इसलिए
32) आषेरवंषी वहाँ रहने वाले कनानियों के बीच बस गये।
33) नफ्+ताली बेत-शेमेष और बेत-अनात के निवासियों को नहीं भगा सका। वे वहाँ रहने वाले कनानियों के बीच बस गये। परन्तु वे बेत-शेमेष और बेत-अनात के निवासियों को बेगार में लगाते थे।
34) अमोरियों ने दानवंषियों को पहाड़ी प्रदेष में भगा दिया और उन्हें निचले मैदान में नहीं रहने दिया।
35) अमोरी हर-हेरेस, अय्यालोन ओर शअलबीम में रह गये, पर यूसुफ़वंषी प्रबल हो गये और उन्हें बेगार में लगाते थे।
36) अमोरियों का देश अक्रब्बीम की घाटी से सेला और उसके आगे तक फैला था।

अध्याय 2

1) प्रभु का दूत गिलगाल से बोकीम गया और उसने कहा, '' मैं ही तुम लोगों को मिस्र से निकाल कर इस देष में ले आया, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने की षपथ ली थी। मैंने कहा था, ''मै तुम्हारे लिए निर्धारित विधान कभी नहीं भंग करूँगा।
2) और तुम इस देष के निवासियों के साथ कभी समझौता नहीं करोगे, बल्कि तुम उनकी वेदियाँ तोड़ डालोगे÷। लेकिन तुम लोगों ने मेरी आज्ञा नहीं मानी। यह तुमने क्या किया है?
3) अब मैं यह कहता हूँ कि मैं उन लोगों को तुम्हारे सामने से नहीं भगाऊँगा, बल्कि वे तुम्हारे विरोधी हो जायेंगे और उनके देवता तुम्हें अपने जाल में फँसायेंगे।''
4) जब प्रभु के दूत ने इस्राएलियों से यह कहा, तो लोग ऊँचे स्वर से रोने लगे।
5) इसलिए उस स्थान का नाम बोकीम पड़ गया। वहाँ उन्होंने प्रभु को बलिदान चढ़ाया।
6) जब योषुआ ने लोगों को विदा कर दिया था, इस्राएली अपने-अपने दायभाग की भूमि अधिकार में करने चले गये।
7) योषुआ और उसके बाद जीवित रहने वाले उन नेताओं के जीवनकाल तक, जो इस्राएल के लिए प्रभु द्वारा किये हुए समस्त कार्य जानते थे, इस्राएली प्रभु की सेवा करते रहे।
8) प्रभु के सेवक, नून के पुत्र योषुआ का एक सौ दस वर्ष की उमर में देहान्त हुआ।
9) वह गाष पर्वत के उत्तर में, एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेष पर स्थित तिमनत-हेरेस में अपने दायभाग की भूमि में दफ़ना दिया गया।
10) जब वह सारी पीढ़ी अपने पूर्वजों से जा मिली, तो एक ऐसी पीढ़ी आयी, जो प्रभु को और उसके द्वारा इस्राएलियों के लिये किये गये कार्य नहीं जानती थी।
11) तब इस्राएलियों ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और वे बाल-देवताओं की पूजा करने लगे।
12) उन्होंने प्रभु को, अपने पूर्वजों के ईष्वर को, जो उन्हें मिस्र से निकाल लाया था, त्याग दिया। वे अपने आसपास रहने वाले लोगों के देवताओं के अनुयायी बन कर उनकी पूजा करने लगे। उन्होंने प्रभु को अप्रसन्न कर दिया।
13) वे प्रभु को त्याग कर बाल और अष्तारता-देवियों की पूजा करने लगे।
14) तब प्रभु का कोप इस्राएलियों के विरुद्ध भड़क उठा। उसने उन्हें छापामारों के हवाले कर दिया, जो उन्हें लूटने लगे। उसने उन्हें उनके षत्रुओं के हाथ बेच दिया और वे उनका सामना करने में असमर्थ रहे।
15) जब वे युद्ध करने निकलते, तो पराजित हो जाते थे; क्योंकि प्रभु उनके विरुद्ध था, जैसी कि उसने षपथ खा कर उन्हें चेतावनी दी थी।
16) जब इस्राएलियों की दुर्गति बहुत अधिक बढ़ जाती थी, तो प्रभु न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया करता था, जो उन्हें लूटने वालों के हाथ से बचाया करते थे।
17) किन्तु वे न्यायकर्ताओं की बात नहीं मानते और पथभ्रष्ट हो कर पराये देवताओं की पूजा और उपासना करते थे। वे प्रभु की आज्ञा पर चलने वाले अपने पूर्वजों का मार्ग षीघ्र ही छोड़ देते थे। वे अपने पूर्वजों का अनुकरण नहीं करते थे।
18) जब प्रभु उनके लिए कोई न्यायकर्ता नियुक्त करता था, तो प्रभु उसका साथ देता और जब तक न्यायकर्ता जीता रहता था, तब तक प्रभु इस्राएलियों को उनके षत्रुओं के हाथ से बचाया करता था; क्योंकि जब वे अपने अत्याचारियों के दुर्व्यवहार से पीड़ित हो कर कराहते थे, तो प्रभु को उन पर तरस आता था।
19) परन्तु जब वह न्यायकर्ता मर जाता था, तो वे षीघ्र ही अपने पूर्वजों से भी अधिक घोर पाप करते थे। वे पराये देवताओं के अनुयायी बन कर उनकी पूजा और उपासना करते थे। उन्होंने अपनी पुरानी आदतें और हठीला व्यवहार कभी नहीं छोड़ा।
20) इस से प्रभु का कोप इस्राएलियों के विरुद्ध भड़क उठा और उसने कहा, ''चूँकि ये लोग अपने पूर्वजों के लिए निर्धारित विधान का पालन नहीं करते और मेरी बात नहीं मानते,
21) इसलिए मैं उन सब राष्ट्रों को उनके सामने से नहीं भगाऊँॅगा, जो योषुआ की मृत्यु के बाद बच गये थे।
22) मैं उनके द्वारा इस्राएलियों की परीक्षा ले कर देखॅूँगा कि वे अपने पूर्वजो की तरह प्रभु के मार्ग पर चलेंगे या नहीं।÷÷
23) इसीलिए प्रभु ने उन राष्ट्रों को वहाँ रहने दिया। उसने उन्हें तुरन्त योषुआ के हाथ दे कर वहाँ से नहीं भगाया।

अध्याय 3

1) यही वे राष्ट्र हैं, जिन्हें प्रभु ने इस्राएलियों की परीक्षा लेने के लिए वहॉँ रहने दिया। इस से उसका आषय यह था कि इनके द्वारा उन इस्राएलियों की परीक्षा ली जाये, जो कनान देष के युद्ध में सम्मिलित नहीं हुए थे और
2) इस प्रकार उन इस्राएली पीढ़ियों को प्रषिक्षित किया जाये, जिन्हें युद्ध का अनुभव नहीं था :
3) फिलिस्तियों के पाँॅच षासक, सभी कनानी, सीदोनी और बाल-हेरमोन पर्वत से ले कर हमात के प्रवेष-मार्ग तक लेबानोन की पर्वत-श्रेणी में रहने वाले हिव्वी।
4) ये इसलिए रह पाये थे कि इनके द्वारा इस्राएलियों की इस बात की परीक्षा हो कि प्रभु ने जो आज्ञाएॅँ मूसा द्वारा उनके पूर्वजों को दिलायी थीं, वे उन्हें मानेंगे या नहीं।
5) इस प्रकार इस्राएली लोग कनानी, हित्ती, अमोरी, परिज्+ज+ी, हिव्वी और यबूसी लोगों के साथ ही रहते थे।
6) उन्होंने उनकी कन्याओं से विवाह किया और अपनी कन्याएॅँ उनके पुत्रों को दीं। उन्होंने उनके देवताओं की भी पूजा की।
7) इस्राएलियों ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। अपने प्रभु-ईश्वर को भूल कर उन्होंने बाल-देवताओं और अषेरा-देवियों की पूजा की।
8) इसलिए प्रभु का कोप इस्राएलियों के विरुद्ध प्रज्वलित हो उठा और उसने उन्हें मेसोपोतामिया के राजा कूषनरिषआतईम के हाथ बेच दिया और इस्राएलियों को आठ वर्ष तक कूषन-रिषआतईम की सेवा करनी पड़ी।
9) फिर इस्राएलियों ने प्रभु से सहायता के लिए प्रार्थना की और प्रभु ने उनके लिए एक उद्धारक, अर्थात् कालेब के छोटे भाई केनज+ के पुत्र ओतनीएल को नियुक्त किया, जिसने उन्हें मुक्त किया।
10) वह प्रभु से प्रेरणा प्राप्त कर इस्राएलियों का न्यायकर्ता बन गया। वह युद्ध करने निकला और प्रभु ने मेसोपोतामिया के राजा कूषन-रिषआतईम को उसके हवाले कर दिया। कूषन-रिषआतईम पर उसे विजय प्राप्त हुई।
11) इसके बाद देष में चालीस वर्ष तक षान्ति रही।
12) केनज+ के पुत्र ओतनीएल की मृत्यु के पष्चात् जब इस्राएलियों ने फिर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है, तो इसके कारण प्रभु ने इस्राएलियों को मोआब के राजा एगलोन के हाथ दे दिया।
13) उसने अम्मोनियों और अमालेकियों के साथ इस्राएलियों को पराजित किया और खजूर नगर पर अधिकार कर लिया।
14) इसके बाद इस्राएली अठारह वर्ष तक मोआब के राजा एगलोन के अधीन रहे।
15) फिर इस्राएलियों ने सहायता के लिए प्रभु से प्रार्थना की और प्रभु ने गेरा के पुत्र बेनयामीन के वंषज एहूद को उनका उद्धारक नियुक्त किया। वह खब्बा था। इस्राएलियों ने उसके द्वारा मोआब के राजा एगलोन के पास कर भेजा।
16) एहूद ने अपने लिए एक हाथ लम्बी दुधारी कटार बनवायी थी और उसे अपने वस्त्रों के नीचे अपनी दाहिनी जॉँघ पर बाँॅध लिया।
17) इसके बाद उसने मोआब के राजा एगलोन को कर भेंट किया।
18) एगलोन बहुत मोटा था। एहूद ने कर भेंट करने के बाद उन लोगों को विदा किया, जो कर ले आये थे।
19) गिलगाल की मूर्तियों के पास आ कर एहूद अकेला ही वापस चला गया और उसने कहा, ÷÷राजा! मैं आपके लिए एक गुप्त सन्देष लाया हूँ''। राजा ने अपने सब दरबारियों को जाने का आदेष दिया और वे चले गये।
20) तब एहूद उसके पास गया। उस समय राजा अपने छत वाले हवादार कमरे में अकेला बैठा था। एहूद ने उस से कहा, ÷÷मै आपके लिए ईष्वर का सन्देष लाया हूॅंँ''। वह ज्यों ही अपने आसन से उठा,
21) एदूद ने अपने बायें हाथ से अपनी दाहिनी जॉँघ की कटार निकाल कर उसकी तोंद में भोंक दी।
22) कटार के साथ उसकी मूठ भी अन्दर चली गयी और चरबी ने उसे ढक लिया, क्योंकि एहूद ने उसके पेट से कटार नहीं निकाली।
23) एहूद ने कमरे के दरवाज+े बन्द कर सिटकिनी लगा दी और वह खिड़की से चला गया।
24) उसके चले जाने के बाद नौकरों ने आ कर देखा कि उस छतवाले कमरे के दरवाज+े बंद हैं। उन्होंने सोचा कि राजा हवादार कमरे के षौचालय में गया होगा।
25) जब वे प्रतीक्षा करते-करते थक गये और उन्होंने यह देखा कि अभी तक उसने छत वाले कमरे के किवाड़ नहीं खोले हैं, तो उन्होंने किवाड़ खोले और देखा कि उनका स्वामी फर्ष पर मरा पड़ा है।
26) इस बीच एहूद भाग निकला और उन मूर्तियों के पास से होता हुआ वह सईरा पहुॅँच गया।
27) वहाँ पहँुॅचते ही उसने एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष में नरसिंगा बजाया और इस्राएली उसके साथ पहाड़ी प्रदेष से नीचे उतर पड़े। एहूद उनके आगे-आगे चलता रहा।
28) उसने उन्हें आज्ञा दी, ''मेरे पीछे आओ। प्रभु ने तुम्हारे षत्रुओं, मोआबियों को तुम्हारे हाथ दे दिया है।÷÷ तब वे उसके पीछे-पीछे उतरे और यर्दन के घाटों पर अपना अधिकार कर किसी भी मोआबी को पार नहीं होने दिया।
29) उसी समय उन्होंने मोआबियों के लगभग दस हज+ार बलिष्ठ और वीर पुरुषों को मार डाला। उन में एक भी जीवित नहीं रहा।
30) मोआबी उस दिन इस्राएलियों के अधीन हो गये। इसके बाद अस्सी वर्ष तक देष में षान्ति रही।
31) इसके बाद अनात का पुत्र षमगर आया। उसने फ़िलिस्तियों के छः सौ पुरुषों को पैने से मार डाला। उसने भी इस्राएलियों का उद्धार किया।

अध्याय 4

1) एहूद की मृत्यु के बाद इस्राएलियों ने फिर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
2) तब प्रभु ने उन्हें हासोंर में षासन करने वाले कनान के राजा याबीन के हाथ बेच दिया, जिसका सेनाध्यक्ष सीसरा हरोषेत-हग्गोयीम में रहता था।
3) तब इस्राएलियों ने सहायता के लिए प्रभु से प्रार्थना की; क्योंकि उसके पास लोहे के नौ सौ रथ थे और उसने बीस वर्ष तक इस्राएलियों पर घोर अत्याचार किया था।
4) उस समय लप्पीदोत की पत्नी दबोरा नामक नबियानी इस्राएलियों के बीच न्यायाधिकारिणी का काम करती थी।
5) वह एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष में रामा और बेतेल के बीच दबोरा के खजूर के नीचे बैठती थी और इस्राएली उसके पास अपने विवाह सुलझाने के लिए आया करते थे।
6) उसने अबीनोअम के पुत्र बाराक को नफ्+ताली के केदेष से बुलवाया और उस से कहा, ''प्रभु, इस्राएल का ईष्वर तुम को यह आदेष देता है : ताबोर पर्वत पर जाओ और अपने साथ नफ्+ताली और ज+बुलोनवंषियों में से दस हज+ार आदमियों को ले जाओ।
7) मैं याबीन के सेनापति सीसरा को, उसके रथों और उसकी सेना-सहित, कीषोन नदी तक तुम्हारे सामने ले आऊॅँगा और उसे तुम्हारे हाथ दे दँूॅंगा।÷÷
8) बाराक ने उसे उत्तर दिया, ''यदि तुम मेरे साथ चलोगी, तो मैं जाऊँॅगा। यदि तुम मेरे साथ नहीं चलोगी, तो मैं नहीं जाऊँॅंगा।÷÷
9) उसने उत्तर दिया, ''मैं तुम्हारे साथ अवष्य चलूॅंँगी, परन्तु तब उस कार्य का श्रेय तुम्हें नहीं मिलेगा, क्योंकि प्रभु सीसरा को किसी स्त्री के हाथ दे देगा''।
10) दबोरा बाराक के साथ चल कर केदेष पहँुॅची। तब बाराक ने ज+बुलोन और नफ्+तालीवंषियों को केदेष में बुलाया। दस हजार आदमी उसके साथ हो लिये और दबोरा भी उसके साथ गयी।
11) केनी जाति के हेबेर ने मूसा के ससुर होबाब के वंषजों से अलग हो कर केदेष के समीप सानन्नीम के पास वाले बलूत वृक्ष के निकट अपना तम्बू लगाया था।
12) सीसरा को समाचार मिला कि अबी-नोअम का पुत्र बाराक ताबोर पर्वत पर आ गया है।
13) इस पर सीसरा ने लोहे के अपने नौ सौ रथ अपने साथ ले लिये और हरोषेत-हग्गोयीम से ले कर कीषोन नदी तक अपने अधीनस्थ सब लोगों को अपने पास बुलाया।
14) तब दबोरा ने बाराक से कहा, ''उठो, आज ही वह दिन है, जब प्रभु सीसरा को तुम्हारे हाथ देगा। प्रभु स्वयं तुम्हारे आगे-आगे चलेगा।'' तब बाराक ताबोर पर्वत से नीचे उतरा। दस हज+ार सैनिक उसके पीछे हो लिये।
15) प्रभु ने तलवार से बाराक के सामने सीसरा, उसके सब रथों और उसकी सम्पूर्ण सेना को पराजित किया। सीसरा अपने रथ से उतर कर पैदल भाग चला।
16) बाराक ने हरोषेत-हग्गोयीम तक रथों और सेना का पीछा किया। सीसरा की सारी सेना तलवार के घाट उतार दी गयी। एक भी आदमी जीवित नहीं रहा।
17) सीसरा पैदल भागते-भागते केनी जाति के हेबेर की पत्नी याएल के डेरे पर आया- हासोर के राजा याबीन और केनी हेबेर के कुल के बीच सन्धि थी।
18) याएल सीसरा से मिलने निकली और उस से बोली, ''महोदय! मेरे यहॉँ आइए, मेरे घर आइए। डरिए नहीं।÷÷ इस पर वह उसके यहाँॅ तम्बू में चला गया और उसने उसे एक दरी से ढक दिया।
19) तब उसने उस से कहा, ''थोड़ा पानी पिलाओ। मुझे प्यास लगी है।÷÷ याएल ने दूध का कुप्पा खोल कर उसे पिलाया और उसे ढक दिया।
20) सीसरा ने उस से यह भी कहा, ''तम्बू के द्वार पर चली जाओ और यदि कोई आये और तुम से पूछे कि कोई अन्दर है, तो कहना कि कोई नहीं है÷÷।
21) लेकिन हेबेर की पत्नी याएल हाथ में तम्बू की खूॅँटी और हथौड़ा ले कर धीरे-धीरे उसके पास गयी और खूॅंँटी को उसकी कनपटी पर रख कर ऐसे मारा कि वह धरती तक धँॅस गयी। थकावट के मारे सीसरा गहरी नींद में पड़ा था और उसकी मृत्यु हो गयी।
22) जब सीसरा का पीछा करता हुआ बाराक वहाँॅ पहुॅचा, तब याएल बाहर निकल कर उस से मिली और बोली, ''आइए, मैं आप को वह आदमी दिखलाती हूॅंँ, जिसे आप ढूॅँढ़ रहे हैं''। वह उसके तम्बू में घुसा और उसने सीसरा को मरा पाया, जिसकी कनपटी में खँॅूटी ठोंकी गयी थी।
23) इस प्रकार उस दिन प्रभु ने कनान के राजा याबीन को इस्राएलियों के सामने पराजित कर दिया।
24) इस्राएली कनान के राजा याबीन से प्रबल होते जा रहे थे और अन्त में उन्होंने उसका सर्वनाष कर दिया।

अध्याय 5

1) उस दिन दबोरा ने अबीनोअम के पुत्र बाराक के साथ यह गीत गाया :
2) जब इस्राएल युद्ध की तैयारी करता है और लोग स्वेच्छा से भरती हो जाते हैं, तो प्रभु का स्तुतिगान करो।
3) राजाओ! सुनो। षासको! कान दो। मैं प्रभु का स्तुतिगान करूॅंँगी, मैं प्रभु, इस्राएल के ईष्वर के लिए भजन सुनाऊँॅंगी।
4) प्रभु! जब तू सेईर से चला, जब तू एदोम के मैदान से आगे बढ़ा, तो पृथ्वी काँॅप उठी, आकाष लड़खड़ाने लगा, बादल बरसने लगे।
5) और पर्वत सीनई के प्रभु के सामने, प्रभु, इस्राएल के ईष्वर के सामने कॉँपने लगे।
6) अनात के पुत्र, षमगर के दिनों में, याएल के दिनों में राजमार्ग जनषून्य हो गये थे, यात्री घुमावदार पगडण्डियों से आते-जाते थे।
7) इस्राएल में एक भी नेता नहीं रहा, जब तक तुम, ओ दबोरा! उठ खड़ी नहीं हुई, जब तक तुम इस्राएल में माता के रूप में उठ खड़ी नहीं हुई।
8) लोगों ने अपने लिए नये देवता चुने। नगरों के फाटकों पर युद्ध आ गया, इस्राएल के चालीस हज+ार योद्धाओं के लिए न तो कोई ढाल मिली और न कोई भाला।
9) मेरा हृदय इस्राएली नेताओं पर मुग्ध है, उन लोगों पर, जो स्वेच्छा से भरती होते हैं। प्रभु का स्तुतिगान करो।
10) तुम, जो सफ़ेद गदहियों पर सवारी करते हो, तुम, जो कीमती कालीनों पर बैठे हो, तुम, जो रास्तों पर चलते हो,
11) जल-स्थानों पर गाने वालों की वाणी पर ध्यान दो- वे प्रभु की विजयों पर बखान करते हैं, वे इस्राएली योद्धाओं की विजयों का बखान करते हैं। उस समय प्रभु की प्रजा नगर के फाटकों पर इकट्ठी हो गयी।
12) ओ दबोरा! जागो, जागो। जागो, जागो और गीत सुनाओ। ओ बाराक! उठ कर खड़े हो जाओ। अबीनोअम के पुत्र! अपने बन्दियों को ले आओ।
13) तब इस्राएल नगर के फाटकों पर आया- प्रभु की प्रजा अपने षूरवीरों के साथ।
14) एफ्र+ईम के नेता मैदान में आये, बेनयामीन भी तुम्हारे अनुयायियों के साथ आया। माकी से सेना-नायक और ज+बुलोन से षासक आये।
15) इस्साकार के नेता दबोरा के साथ थे; उनके पीछे बाराक मैदान में कूद पड़ा। रूबेनवंषियों में बड़ा मतभेद था।
16) तुम क्यों बाड़ों के बीच बैठ कर, भेड़ों के पास बाँॅसुरी सुनते रहे? रूबेनवंषी सोच-विचार करते रहे।
17) गिलआद यर्दन के उस पार रह गया। दान अपनी नावों पर क्यों बैठा रहता? आषेर समुद्रतट पर निवास करता और अपने बन्दरगाह नहीं छोड़ता।
18) ज+बुलोन ने अपने प्राण संकट में डाले और पहाड़ों पर रहने वाले नफ्+ताली ने भी।
19) तानाक में, मगिद्दों के जलाषय के पास, राजा आ धमके और लड़ने लगे, कनान के राजा लड़ने आये, किन्तु चाँॅदी की लूट उनके हाथ नहीं लगी।
20) आकाष के तारों ने युद्ध में भाग लिया, उन्होंने अपने कक्षों में सीसरा का विरोध किया;
21) नदी कीषोन, प्राचीन कीषोन, कीषोन की प्रचण्ड धारा ने उन्हें बहा दिया। मेरी आत्मा! साहस के साथ आगे बढ़ो।
22) सरपट दौड़ने वाले जंगी घोड़ों की टाप ज+मीन पर बज उठी।
23) प्रभु के दूत ने कहा, ''मेरोज+ को षाप दो! उसके नागरिकों को षाप दो, षाप दो! वे प्रभु की सहायता करने नहीं आये, प्रभु और उसके षूरवीरों की सहायता करने नहीं आये।÷÷
24) केनीय हेबेर की पत्नी, याएल स्त्रियों में धन्य है! तम्बुओं में रहने वाली स्त्रियों में याएल सर्वाधिक धन्य है!
25) उसने पानी माँॅंगा और उसने उसे दूध दिया, वह बहुमूल्य पात्र में उसके लिए मलाई लायी।
26) उसके बायें हाथ ने तम्बू की खॅूंँटी ले ली और उसके दाहिने हाथ ने बढ़ई का हथौड़ा। उसने सीरा को मार कर उसका सिर कुचल दिया। उसने उसकी कनपटी को फोड़ कर आरपार छेद दिया।
27) वह उसके चरणों पर ढेर हो गया, वह गिर कर पड़ा रहा; वह उसके चरणों पर ढेर हो गया; जहॉँ गिरा, वहॉँ निष्प्राण पड़ा रहा।
28) सीसरा की माँ खिड़की से झाँकती रही, वह जाली के पीछे विलाप करती रही - ÷÷उसके रथ के आने में इतनी देर क्यों? उसके रथों की आवाज+ क्यों नहीं सुनाई पड़ती?
29) उसकी सखियों में सर्वाधिक बुद्धिमती यह कहते हुए उत्तर देती है,
30) ''वे लूट बाँंट रहे होंगे- प्रत्येक योद्धा के लिए एक कन्या, दो कन्याएँ; सीसरा के लिए रंग-बिरंगे वस्त्रों की लूट, गले में पहनने के बेलबूटेदार एक वस्त्र, दो वस्त्र।''
31) प्रभु! तेरे सभी षत्रु इसी तरह नष्ट हो जायें। तेरे भक्त उदीयमान सूर्य की तरह षक्तिषाली हों। इसके बाद चालीस वर्ष तक देष में षांति रही।

अध्याय 6

1) इस्राएलियों ने फिर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। इसलिए प्रभु ने उन्हे सात वर्ष के लिए मिदयानियों के हाथ दे दिया।
2) मिदयानी इस्राएलियों पर अत्यधिक अत्याचार करते थे। इस्रााएलियों ने मिदयानियों के डर से पर्वतों में अपने लिए दरारें, गुफाएँ और गढ़ तैयार किये।
3) जब-जब इस्राएली बीज बोते, तब-तब मिदयानी, अमालेकी और पूर्व के लोग आकर उन पर आक्रमण करते।
4) वे देष में अपने खेमे डाल देते और गाज+ा के निकट तक की उपज नष्ट कर देते। वे इस्राएलियों के लिए न अन्न छोड़ते, न भेडें+, न बैल और न गधे।
5) वे अपने ढोरों और खेमों-सहित आया करते। संख्या में वे टिड्डियों की तरह उतरते। वे और उनके ऊँट असंख्य थे। इस प्रकार जब वे देष में आ जाते, तो उसे उजाड़ डालते थे।
6) मिदयानियों द्वारा इस्राएलियों की इतनी दुर्गति की गयी कि वे सहायता के लिए प्रभु से प्रार्थना करने लगे।
7) इस्राएलियों ने मिदयानियों के भय से प्रभु की सहायता के लिए उसकी दुहाई की
8) और प्रभु ने इस्राएलियों के लिए एक नबी भेजा, जिसने उन से कहा, ''प्रभ,ु इस्राएलियों के ईष्वर का कहना है- मैं ही तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाया और मैंने ही दासता के गृह के बन्धनों से तुम्हारा उद्धार किया।
9) मैंने ही मिस्रियों के हाथों से और तुम्हारे सब अत्याचारियों के हाथों से तुम्हें मुक्ति दिलायी। मैंने उन्हें तुम्हारे सामने भगा कर तुम्हें उनका देष दिया।
10) मैंने तुम से कहा- मैं ही प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँ। तुम जिन अमोरियों के देष में निवास करते हो, तुम्हें उनके देवताओं की सेवा नहीं करनी चाहिए। लेकिन तुम लोगों ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया।''
11) प्रभु का दूत आया और ओफ्र+ा के बलूत वृक्ष के नीचे बैठ गया। यह वृक्ष अबीएजे+र-वंषी योआष का था। योआष का पुत्र गिदओन इसलिए अंगूर पेरने के कोल्हू में गेहूँ दाँव रहा था कि वह उसे मिदयानियों से छिपा कर रखे।
12) प्रभु का दूत उसे दिखाई दिया और बोला, ''वीर योद्धा! प्रभु तुम्हारे साथ है''।
13) गिदओन ने उत्तर दिया, ÷÷क्षमा करें, महोदय! यदि प्रभु हमारे साथ हैं, तो यह सब हम पर क्यों बीती? वे सब चमत्कार कहाँ गये, जिनका वर्णन हमारे पूर्वज यह कहते हुए करते थे- ÷प्रभु ने हमें मिस्र से निकाल लसश्स'? अब तो प्रभु ने हमें छोड़ कर मिदयानियों के हवाले कर दिया।''
14) प्रभु ने उसे सम्बोधित करते हुए कहा, ÷÷तुम मिदयानियों से युद्ध करने जाओ। तुम अपनी शक्ति के बल पर इस्राएल को उनके हाथ से बचा सकते हो। मैं ही तुम को भेज रहा हूँ।''
15) गिदओन ने उत्तर दिया, ÷÷क्षमा करें, महोदय! मैं इस्राएल को कैसे बचा सकता हूँ? मेरा कुल मनस्से में सब से दरिद्र है और मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूँ।''
16) किन्तु प्रभु ने कहा, ÷÷मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम मिदयानियों को पराजित करोगे, मानो वे एक ही आदमी हों।÷÷
17) गिदओन ने निवेदन किया, ''यदि मुझ पर आपकी कृपादृष्टि हो, तो मुझे एक ऐसा चिन्ह दीजिए, जिससे मैं जान सकूँ कि
18) आप ही मुझ से बोल रहे हैं। आप कृपया यहाँ से तब तक न जायें, जब तक मैं आपके पास न लौट आऊँ। मैं अपना चढ़ावा ले कर आऊँगा और आपके सामने रखूँगा।'' उसने उत्तर दिया, ''मैं तुम्हारे लौटने तक यहाँ रहूँगा''।
19) गिदओन ने जा कर बकरी का एक बच्चा पकाया और आधा मन मैदे की बे-ख़मीर रोटियाँ बनायी। उसने एक टोकरी में मांस रखा और एक पात्र में षोरबा उँड़ेला। फिर उसने इन्हें ले जा कर बलूत के नीचे स्वर्गदूत के सामने रख दिया।
20) प्रभु के दूत ने उस से कहा, ''मांस और रोटियाँ वहाँ चट्टान पर रखो और उन पर षोरबा उँड़ेल दो''। उसने यही किया।
21) तब प्रभु के दूत ने अपने हाथ का डण्डा बढ़ा कर उसके सिरे से मांस और बेख़मीर रोटियों को स्पर्ष किया। इस पर चट्टान से आग निकली, जिसने मांस और बेख़मीर रोटियों को भस्म कर दिया और प्रभु का दूत गिदओन की आँख से ओझल हो गया।
22) तब गिदओन समझ गया कि वह प्रभु का दूत था और उसने कहा, ''हाय! प्रभु-ईष्वर! मैंने प्रभु के दूत को आमने-सामने देखा है।''
23) किन्तु प्रभु ने उसे आष्वासन दिया, ''तुम्हें षान्ति मिले! मत डरो। तुम नहीं मरोगे।÷÷
24) गिदओन ने वहाँ प्रभु के लिए एक वेदी बनायी और उसका नाम ÷प्रभु-षांति' रखा। वह अबीएज+ेर के वंषजों के ओफ्र+ा में आज तक विद्यमान है।
25) उसी रात प्रभु ने उसे आदेष दिया, ÷÷अपने पिता का बछड़ा और सात साल का एक साँड़ ले लो। अपने पिता की बाल-देव की वेदी गिरा दो तथा उसके पास का (अषेरा-देवी का) खूँट काट डालो।
26) तब इस गढ़ वाले ऊँचे स्थान पर पत्थरों को ठीक तौर से जोड़ कर प्रभु, अपने ईष्वर के लिए एक वेदी बनाओ। फिर उस दूसरे साँड़ को ला कर काटी हुई आषेरा की लकड़ी पर उसकी होम-बलि चढ़ाओं।''
27) तब गिदओन ने अपने नौकरों में से दस को ले कर प्रभु द्वारा दिये हुए आदेष का पालन किया। अपने कुटुम्ब और नगर के लोगों के डर से उसने दिन में ऐसा नहीं किया। उसने यह काम रात में किया।
28) दूसरे दिन सबेरे जब नगर के लोग उठे, तो उन्होंने देखा कि बाल-देव की वेदी गिरा दी गयी है, उसके पास का (अषेरा-देवी का) खूँट काट दिया गया है और नयी बनायी हुई वेदी पर दूसरे साँड़ की बलि की गयी है।
29) वे एक दूसरे से कहने लगे, ÷÷किसने यह काम किया?'' पूछताछ करने पर उन्हें मालूम हुआ कि योआष के पुत्र गिदओन ने यह किया था।
30) नगर के लोगों ने योआष से कहा, ÷÷अपने बेटे को हमारे हवाले कर दो। बालदेव की वेदी ढहाने और उसके पास का (अषेरा-देवी का) खूँट काटने के कारण उसका वध किया जायेगा।''
31) परन्तु योआष ने अपने सामने खडे+ लोगों से कहा, ''क्या तुम बाल-देव का पक्ष लेने आये? क्या तुम बाल-देव की रक्षा करने आये? (जो उसका पक्ष लेता है, वह सुबह होने तक मार डाला जायेगा।) यदि बाल सचमुच देवता है, तो वह अपने पक्ष में बोले, क्योंकि गिदओन ने उसकी वेदी गिरा दी है।''
32) इसलिए उस दिन से गिदआन का नाम यरूबबाल पड़ गया। इसका अर्थ है, ''बाल ही उसके विरुद्ध लड़े+', क्योंकि उसने उसकी वेदी तोड़ डाली थी।
33) सब मिदयानी, अमालेकी और पूर्व के लोग एकत्रित हुए और उन्होंने यर्दन पार कर यिज्र+एल के मैदान में पड़ाव डाला।
34) प्रभु की प्रेरणा से गिदओन ने नरसिंगा बजाया और अबीएज+ेर वंषियों को अपना साथ देने के लिए बुलाया।
35) उसने सारे मनस्से प्रान्त में दूत भेज कर उन्हें भी अपना साथ देने के लिए कहला भेजा। फिर उसने आषेर, ज+बुलोन और नफ्ताली के लोगों को बुलवाया। वे भी आ कर उन से मिले।
36) गिदओन ने ईष्वर से यह प्रार्थना की, ''क्या तू सचमुच अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे द्वारा इस््रााएलियों का उद्धार करायेगा?
37) देख, मैं यह ऊनी खाल खलिहान में रख देता हूँ। यदि केवल इस खाल पर ओस पडे+गी और आसपास की भूमि सूखी रहेगी, तो मुझे विष्वास हो जायेगा कि तू अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे द्वारा इस्राएलियों को मुक्ति दिलायेगा।''
38) ऐसा ही हुआ। प्रातःकाल आ कर उसने उस खाल को निचोड़ कर उस से एक पात्र-भर पानी निकाला।
39) फिर गिदओन ने ईष्वर से यह प्रार्थना की, ÷÷मुझ पर क्रोध न कर। मैं फिर एक बार तुझ से निवेदन कर रहा हूँ, मुझे फिर से एक बार इस खाल के द्वारा परख करने दे। इस बार केवल खाल सूखी रहे और आसपास की भूमि पर सर्वत्र ओस पडे+।''
40) उस रात ईष्वर ने ऐसा ही किया। केवल खाल सूखी रह गयी, किन्तु भूमि पर सर्वत्र ओस पड़ गयी थी।

अध्याय 7

1) बडे+ सबेरे यरूबबाल (अर्थात् गिदओन) और उसके साथ के सब लोगों ने हरोद के जलस्रोत के पास अपना पड़ाव डाला। मिदयानियों का षिविर उनके उत्तर में, मोरे की पहाड़ी के पास की घाटी में था।
2) प्रभु ने गिदओन से कहा, ''तुम्हारे पास लोगों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए मैं मिदयानियों को उनके हाथ नहीं दूँगा, क्योंकि इस से इस्राएली डींग मारेंगे कि हमने अपने बाहुबल से अपना उद्धार किया है।
3) इसलिए लोगों में यह घोषणा करो कि जो भय से काँप रहा हो, वह घर लौट जाये।'' इस पर लोगों में से बाईस हज+ार लौट गये। केवल दस हज+ार रह गये।
4) प्रभु ने गिदओन से कहा, ''लोगों की संख्या अब भी अधिक है। उन्हें जल के पास ले जाओ। वहाँ मैं उन्हें तुम्हारे लिए छाँट दूँगा। मैं जिसके विषय में तुम से कहूँगा कि वह तुम्हारे साथ जाये, वह तुम्हारे साथ जायेगा और जिसके विषय में मैं तुम से कहूँगा कि वह नहीं जाये, वह नहीं जायेगा।''
5) गिदओन लोगों को जल के पास ले गया। तब प्रभु ने गिदओन से कहा, ''ऐसे हर व्यक्ति को एक ओर कर दो, जो कुत्ते की तरह चपड़-चपड़ करते हुए जीभ से पानी पियेगा और ऐसे हर व्यक्ति को दूसरी ओर कर दो, जो पानी पीने के लिए घुटने के बल बैठता हो''।
6) जीभ से पानी पीने वालों की संख्या तीन सौ थी। षेष सब लोगों ने घुटनों के बल बैठ कर पानी पिया।
7) तब प्रभु ने गिदओन से कहा, ''जीभ से पानी पीने वाले इन तीन सौ लोगों के द्वारा ही मैं तुम लोगों का उद्धार करूँगा और मिदयानियों को तुम्हारे हाथ दे दूँगा। षेष सब लोग अपने-अपने निवास स्थान लौट जाये।''
8) उन तीन सौ लोगों ने दूसरों के घड़े और नरसिंगे ले लिये। इसके बाद गिदओन ने सब इस्राएलियों को अपने -अपने घर भेजा। उसने केवल उन तीन सौ लोगों को अपने साथ रखा। मिदयानियों का षिविर उसके नीचे की घाटी में था।
9) उसी रात प्रभु ने गिदओन से कहा, ÷÷उठो और षिविर की ओर आगे बढ़ो। मैं उसे तुम्हारे हाथ दे दूँगा।
10) यदि तुम अकेले जाने से डरते हो, तो अपने सेवक पूराह को साथ ले लो और षिविर में उतरो।
11) वहाँ जाने पर वे जो कहते रहेंगे, उसे सुनो और इस से तुम में इतना साहस पैदा होगा कि तुम षिविर पर आक्रमण कर सकोगे।÷÷ इसलिए वह अपने सेवक पूराह को साथ ले कर षिविर के पहरेदारों के बिलकुल पास चला गया।
12) मिदयानी, अमालेकी और पूर्व के सारे लोग घाटी में असंख्य टिड्डियों की तरह पड़ाव डाले हुए पडे+ थे। उनके ऊँट समुद्र के रेतकणों की तरह असंख्य थे।
13) जब गिदओन वहाँ पहुँचा, उस समय एक व्यक्ति अपने साथी को अपना स्वप्न सुना रहा था। वह कह रहा था, ''मेरा स्वप्न सुनो : एकाएक जौ की एक रोटी मिदयानियों के पड़ाव में लुढ़कती-लुढ़कती आयी। वह एक तम्बू से टकरा गयी और वह गिर पडा; फिर वह उलट गया और मटियामेट हो गया।''
14) उसके साथी ने उत्तर दिया, ÷÷हाँ, इसका अर्थ यह है कि रोटी योआष के पुत्र इस्राएली गिदओन की तलवार है। ईष्वर ने मिदयान और सारे पड़ाव को उसके हाथ दे दिया है।÷÷
15) जैसे ही गिदओन ने स्वप्न और उसकी व्याख्या सुनी, उसने झुक कर प्रभु को दण्डवत् किया। इसके बाद इस्राएली षिविर में लौट कर उसने इस प्रकार कहा,''उठो प्रभु ने मिदयानियों की सेना को तुम्हारे हाथ दे दिया है÷÷।
16) उसने उन तीन सौ लोगों को तीन दलों में विभाजित किया और सब के हाथों में नरसिंगे और ख़ाली घड़े दे दिये। उन घड़ों में मषालें थीं।
17) उसने उन से कहा, ''मुझे जैसा करते देखोगे, तुम भी वैसा करोगे। मैं षिविर के निकट पहुँच कर जैसा करूँगा, तुम भी वैसा ही करोगे।
18) जब मैं और मेरे साथ के सब लोग नरसिंगे बजायेंगे, तब तुम भी षिविर के चारों ओर खड़े हो कर नरसिंगे बजाओगे और ललकारोगे - प्रभु के लिए! गिदओन के लिए!''
19) रात के दूसरे प्रहर के प्रारम्भ में, जब नये पहरेदार अभी-अभी तैनात हुए थे, गिदओन और उसके साथ के स+ौ लोग षिविर के निकट पहुँचे। उन्होंने नरसिंगे बजाये और अपने हाथों में रखे घड़े फोड़ डाले।
20) तीनो दलों के लोगों ने नरसिंगे बजाये और घड़े फोड़ डाले। उन्होंने बायें हाथ में मषालें और दाहिने हाथ में बजाने लिए नरसिंघे लिये और ललकारने लगे : ''प्रभु के लिए, गिदओन के लिए तलवार। ''
21) प्रत्येक व्यक्ति षिविर के चारों ओर वहीं खड़ा रहा, जहाँ वह था। पड़ाव में सब लोग इधर-उधर दौड़ने, चिल्लाने और भागने लगे।
22) जब ये तीन सौ नरसिंगे बजाये गये, तब प्रभु की प्रेरणा से षिविर के सब मिदयानी एक दूसरे पर तलवार चलाने लगे। सेना सरेरा की ओर बेत-षिट्टा तक, टब्बात के पास के आबेल-महोला की सीमा तक, भाग खड़ी हुई।
23) मिदयानियों का पीछा करने के लिए नफ्+ताली, आषेर और समस्त मनस्से वंष के इस्राएलियों को बुलाया गया।
24) गिदओन ने सारे एफ्र+ईम के पहाड़ी भाग में दूत भेज कर तक यह सन्देष पहुँचाया, ''मिदयानियों से पहले बेत-बारा और यर्दन के घाट अपने अधिकार में कर लो''। इस प्रकार एफ्र+ईम के सब लोग बुलाये गये और उन्होंने बेत-बारा तक यर्दन के घाट अपने अधिकार में कर लिये।
25) उन्होंने मिदयानियों के दो षासक ओरेब और ज+एब को पकड़ लिया। उन्होंने आरेब को ओरेब की चट्टान पर और ज+एब को ज+एब के दाखरस-कुण्ड पर मार डाला। वे मिदयानियों का पीछा करते रहे और ओरेब तथा ज+एब के सिर यर्दन के उस पार गिदओन के पास ले गये।

अध्याय 8

1) इसके बाद एफ्र+ईम के लोगों ने गिदओन से कहा, ''आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? आपने मिदयानियों से लड़ने जाते समय हमें क्यों नहीं बुलाया?'' और वे उसकी कटु आलोचना करने लगे।
2) उसने उन्हें उत्तर दिया, ''मैंने तुम से अधिक किया ही क्या है? क्या अबीएज+ेर की अंगूर की सारी फ़सल की अपेक्षा एफ्र+ईम के बीने हुए अंगूर कहीं अधिक अच्छे नहीं हैं?
3) ईष्वर ने तो तुम्हारे हाथ मिदयानियों के षासक ओरेब और ज+एब को दे दिया है। मैंने तुम से अधिक किया ही क्या है?'' यह सुन कर उस पर उनका क्रोध षान्त हो गया।
4) गिदओन यर्दन के तट पर आया और उसने अपने तीन सौ साथियों-सहित उसे पार किया। थके-माँदे होने पर भी वे षत्रुओं का पीछा करते रहे।
5) उसने सुक्कोत के निवासियों से कहा, ''तुम कृपा कर मेरे इन साथियों को रोटियाँ दो, क्योंकि ये लोग एकदम थके-माँदे हैं और मैं मिदयानियों के राजा ज+बह और सलमुन्ना का पीछा कर रहा हूँ''।
6) परन्तु सुक्कोत के अधिकारियों ने उसे उत्तर दिया, ''क्या ज+बह और सलमुन्ना तुम्हारे अधिकार में आये हैं, जो हम तुम्हारी सेना को रोटियाँ दें?''
7) गिदओन ने उत्तर दिया, ''अच्छा, यदि प्रभु ने ज+बह और सलमुन्ना को मेरे हाथ दे दिया, तो मैं जगंली काँटों और कँटीली झाड़ियों से तुम्हारी ख्+ाबर लूँगा''।
8) वह वहाँ से चल कर पनूएल गया और उसने वहाँ के निवासियों से फिर वैसा ही निवेदन किया, परन्तु पनूएल के निवासियों ने भी वही उत्तर दिया, जो सुक्कोत के निवासियों ने दिया था।
9) इस पर उसने पनूएल के निवासियों को यह धमकी दी, ''यदि मैं सकुषल लौटा, तो इस बुजर्+ को ढाह दूँगा÷÷।
10) ज+बह और सलमुन्ना लगभग पन्द्रह हज+ार सैनिकों के साथ करकोर में पड़े थे। ये वे थे, जो पूर्व के लोगों की सारी सेना में से बच गये थे। जो मार डाले गये थे, वे संख्या में एक लाख बीस हज+ार सषस्त्र सैनिक थे।
11) गिदओन ने नोहब और योगबहा के पूर्व कारवाँ के रास्ते से होते हुए सेना पर आक्रमण किया। वे लोग अपने को सुरक्षित समझते थे।
12) ज+बह और सलमुन्ना भाग निकले। उसने उनका पीछा किया और सारी सेना तितर-बितर करने के बाद मिदयानियों के दोनों राजा ज+बह और सलमुन्ना को पकड़ लिया।
13) योआष के पुत्र गिदओन ने हेरेस की घाटी के युद्ध से लौट कर
14) सुक्कोत के एक नवयुवक को पकड़ा और उस से पूछताछ की। नवयुवक ने उसके लिए सुक्कोत के सतहत्तर अधिकारियों और नेताओं के नाम लिखे।
15) गिदओन ने सुक्कोत के लोगों के पास आ कर कहा, ''देखो, यही हैं ज+बह और सलमुन्ना, जिसके विषय में तुमने यह कहते हुए मेरा उपहास किया था कि क्या ज+बह और सलमुन्ना तुम्हारे अधिकार में आये हैं, जो हम तुम्हारे थके-माँदे सैनिकों को रोटियाँ दें''।
16) फिर उसने नगर के नेताओं को पकड़ा और जंगली कँाटों तथा कँटीली झाड़ियों से सुक्कोत के निवासियों की ख़बर ली।
17) उसने पनूएल का गढ़ गिरा दिया और उस नगर के निवासियों का वध किया।
18) इसके बाद उसने ज+बह और सलमुन्ना से कहा, ''वे आदमी, जिन्हें तुमने ताबोर पर्वत पर मारा था, वे कैसे थे?÷÷ उन्होंने उत्तर दिया, ''वे आपके समान थे। उन में प्रत्येक राजकुमार-जैसा था।''
19) उसने कहा, ''वे मेरे भाई थे, मेरी माता के पुत्र थे। प्रभु की षपथ! यदि तुमनें उन्हें जीवित रहने दिया होता, तो मैं तुम्हारा वध न करता।''
20) तब उसने अपने जेठे पुत्र येतेर से कहा, ''उनका वध करों÷÷। लेकिन उस लड़के ने तलवार नहीं खींची। वह डर रहा था, क्योंकि वह अभी किषोर था।
21) ज+बह और सलमुन्ना ने कहा, ''तुम स्वयं हमारा वध करो। आदमी जैसा होता है, उस में वैसी ही षक्ति होती है।÷÷ इस पर गिदओन ने उठ कर ज+बह और सलमुन्ना का वध किया और उनके ऊँटों की गर्दनों के चन्द्रहार ले लिये।
22) इस्राएलियों ने गिदओन से कहा, ''आप हमारे षासक बन जाइए। आप, आपका पुत्र और आपका पौत्र भी, क्योंकि आपने ही हमें मिदयानियों के हाथों से मुक्ति दिलायी है।÷÷
23) गिदओन ने उत्तर दिया, ''मैं तुम्हारा षासक नहीं बनूँगा और न मेरा पुत्र ही तुम्हारा षासक होगा। प्रभु ही तुम्हारा शासक होगा।''
24) गिदओन ने उन से कहा, ''तुम लोगों से मेरा निवेदन यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी लूट से कानों की बालियाँ मुझे दे दे''। (षत्रुओं के कान की बालियाँ सोने की थीं, क्योंकि वे इसमाएली थे।)
25) उन्होंने उत्तर दिया, ''हम आप को इन्हें सहर्ष देते हैं÷÷। तब उन्होंने एक चादर फैला दी और प्रत्येक व्यक्ति ने उस पर अपनी लूट की बालियाँ डाल दीं।
26) सोने की उन बालियों का वज+न, जिन्हें उसने मांँग लिया था, सत्रह सौ षेकेल था। इसके अतिरिक्त -चन्द्रहार, कर्णफूल, मिदयान के राजाओं के लाल वस्त्र और उनके ऊँटों के गले की जंजीरें।
27) इस से गिदओन ने एक एफ़ोद बनवाया और उसे अपने नगर ओफ्र+ा में रखा। वहाँ सब इस्राएली उसकी पूजा करने लगे। इस प्रकार वह एफ़ोद गिदओन और उसके परिवार के लिए फन्दा बना।
28) मिदयानी इस्राएलियों के अधीन हो गये और फिर सिर नहीं उठा पाये। गिदओन के चालीस वर्ष के जीवनकाल में देष-भर में शान्ति छायी रही।
29) योआष का पुत्र यरूबबाल अपने घर जा कर वहाँ रहने लगा।
30) गिदओन के सत्तर पुत्र थे, क्योंकि उसके अनेक पत्नियॉँ थीं।
31) सिखेम में रहने वाली किसी उपपत्नी से उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने उसका नाम अबीमेलक रखा।
32) योआष के पुत्र गिदओन का अच्छी पक्की उम्र में देहान्त हुआ और वह अबीएजेरवंषियों के ओफ्र+ा के पास, अपने पिता योआष की क़ब्र में दफ़नाया गया।
33) गिदओन की मृत्यु के बाद इस्राएली फिर से बाल-देवताओं की पूजा करने लगे और उन्होंने बाल-बरीत को अपना ईष्वर बनाया।
34) इस्राएली अपने उस प्रभु-ईष्वर का स्मरण नहीं करते थे, जिसने उन्हें अपने चारों ओर से षत्रुओं के हाथों से बचाया था
35) और उन्होंने यरूबबाल, अर्थात, गिदओन के वंषजों के प्रति भी अच्छा व्यवहार नहीं किया, यद्यपि उसने इस्राएलियों का बहुत अधिक उपकार किया था।

अध्याय 9

1) यरूबबाल का पुत्र अबीमेलेक अपनी माता के भाई-बन्धुओं के पास सिखेम गया और उन से तथा अपनी माता के कुल वालों से बोला,
2) ÷÷सिखेम के सब नागरिकों से यह पूछो : तुम्हारे लिए क्या बेहतर है- तुम पर यरूबबाल के सत्तर पुत्र षासन करें या केवल एक व्यक्ति षासन करे? तुम्हें यह भी सोचना चाहिए कि मैं तुम्हारा रक्त-सम्बन्धी हूॅँ।''
3) इस पर उसकी माता के बन्धुओं ने सिखेम के नागरिकों को ये सारी बातें अच्छी तरह समझायीं। इस पर उनका मन अबीमेलेक की ओर आकर्षित होने लगा, क्योंकि वे कहते थे कि वह हमारा भाई है।
4) उन्होंने उसे बाल-बरीत के मन्दिर से चाँदी के सत्तर षेकेल दिये, जिससे अबीमेलेक ने कई साहसिकों को भाड़े पर रखा, जो उसके पिछलग्गू बने।
5) उसने ओफ्र+ा में अपने पिता के घर में घुस कर यरूबबाल के पुत्रों, अपने सत्तर भाइयों को एक ही पत्थर पर मार डाला। यरूबबाल का सब से छोटा पुत्र योताम बच गया, क्योंकि उसने अपने को छिपा लिया था।
6) इसके बाद सिखेम और बेत-मिल्लों के सब नागरिक सिखेम के बड़े पत्थर के निकट, बलूत वृक्ष के पास एकत्र हो गये और उन्होंने अबीमेलेक को राजा घोषित किया।
7) जब योताम को इसकी सूचना मिली, तो वह जा कर गरिज्+ज+ीम पर्वत के षिखर पर खड़ा हो गया। उसने ऊँचे स्वर से लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, ''सिखेम के नागरिको! मेरी बात सुनो, जिससे प्रभु तुम लोगों की बात सुने।
8) वृक्ष किसी दिन अपने राजा का अभिषेक करने निकले। वे जैतून के पेड़ से बोले, ÷आप हमारे राजा बन जाइए'।
9) किन्तु जैतून वृक्ष ने उन्हें यह उत्तर दिया, 'यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना यह तेल क्यों छोड़ दूँ, जिसके द्वारा देवताओं और मनुष्यों का सम्मान किया जाता है?
10) तब वृक्ष अंजीर के पेड़ से बोले, 'आप हमारे राजा बन जाइए'।
11) किन्तु अंजीर वृक्ष ने उन्हें यह उत्तर दिया, ÷यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना बढ़िया मधुर फल क्यों छोड़ दूँ?'
12) इसके बाद वृक्ष अंगूर के पेड़ से बोले, 'आप हमारे राजा बन जाइए'
13) और अंगूर के पेड़ ने उन्हें यह उत्तर दिया, 'यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना यह रस क्यों छोड़ दूँ, जो देवताओं और मनुष्यों का आनन्दित करता है?-
14) ''तब सब वृक्ष कँटीले झाड़ से बोले, 'आप हमारे राजा बन जाइए'।
15) कँटीले झाड़ ने वृक्षों को यह उत्तर दिया, 'यदि तुम लोग सचमुच अपने राजा के रूप में मेरा अभिषेक करना चाहते हो, तो मेरी छाया की षरण लेने आओ। नहीं तो, कँटीले झाड़ से आग निकलेगी और लेबानोन के देवदार वृक्षों को भी भस्म कर देगी।'
16) ''अच्छा, यदि तुमने अबीमेलेक को सच्चाई और ईमानदारी से अपना राजा बनाया है, यदि तुमने यरूबबाल और उसके घर के साथ अच्छा व्यवहार किया है और यदि तुमने उनके कार्यों के अनुसार उनके साथ व्यवहार किया है-
17) मेरे पिता तो तुम्हारे लिए लड़े और तुम्हें मिदयानियों के हाथों से बचाने के लिए उन्होंने हथेली पर जान रखी,
18) जबकि तुम लोग आज मेरे पिता के विरुद्ध खड़े हो; तुमने उनके सत्तर पुत्रों को एक ही पत्थर पर मरवा डाला है और उनकी दासी के पुत्र अबीमेलेक को इसलिए सिखेम का राजा बनाया है कि वह तुम्हारा भाई है-
19) हाँ, यदि तुमने यरूबबाल और उनके घर के साथ सच्चाई और ईमानदारी का व्यवहार किया है, तो तुम अबीमेलेक से प्रसन्न रहो और वह भी तुमसे प्रसन्न रहे।
20) यदि तुमने ऐसा न किया हो, तो अबीमेलेक से अग्नि निकले, जो सिखेम के निवासियों और बेत-मिल्लों को भस्म कर दे और सिखेम के निवासियों तथा बेत-मिल्लो से अग्नि निकले, जो अबीमेलेक को भस्म कर दे।÷÷
21) इस पर योताम भाग खड़ा हुआ। वह बएर आया और अपने भाई अबीमेलेक के डर से वहीं रहने लगा।
22) अबीमेलेक ने इस्राएल पर तीन वर्ष तक षासन किया।
23) ईष्वर ने अबीमेलेक और सिखेम के नागरिकों के बीच फूट डाल दी, जिससे वे अबीमेलेक के साथ विष्वासघात करने लगे।
24) इस प्रकार यरूबबाल के सत्तर पुत्रों के प्रति किये गये कुकर्म और उनके रक्तपात का बदला उनके भाई और सिखेम के नागरिकों से चुकाया गया। उन्होंने अबीमेलेक को अपने भाइयों की हत्या के लिए उकसाया था।
25) सिखेम के नागरिकों ने अबीमेलेक के विरोध में पर्वतों के षिखरों पर आदमियों को घात में बिठा दिया, जो उस मार्ग से जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को लूटते थे। अबीमेलेक को इसकी सूचना मिली।
26) तब एबेद का पुत्र गाल अपने भाई-बन्धुओं के साथ सिखेम आया और सिखेम के नागरिक उसका विष्वास करने लगे।
27) उन्होंने खेतों में जा कर अपनी दाखबारियों के फल तोड़े, उनका रस निकाला और पर्व मनाया। इसके बाद वे अपने देवता के मन्दिर में जा कर खाने-पीने और अबीमेलेक की निन्दा करने लगे।
28) एबेद के पुत्र गाल ने कहा, ''क्या सिखेम-जैसे नगर को अबीमेलेक-जैसे व्यक्ति के अधीन रहना चाहिए? क्या यरूबबाल का पुत्र और उसका प्रतिनिधि ज+बुल सिखेम के पिता हमोर के अधीन नहीं थे? तो हम उनके अधीन क्यों रहें?
29) यदि यहाँ के निवासी मेरा अधिकार स्वीकार करते, तो मैं अबीमेलेक को भगा देता। मैं अबीमेलेक से कहता, ÷अपनी समस्त सेना के साथ युद्ध करने आओ'।''
30) जब नगर के राज्यपाल ज+बुल ने एबेद के पुत्र गाल की बात सुनी तो वह आगबबूला हो उठा।
31) उसने अरूमा में अबीमेलेक के पास दूतों द्वारा यह कहला भेजा, ''एबेद का पुत्र गाल और उसके भाई-बन्धु सिखेम आये हैं और तुम्हारे विरुद्ध नगर को उकसा रहे हैं।
32) इसलिए रात को अपने सैनिकों के साथ आ कर खेतों में घात लगा कर बैठ जाओ।
33) सबेरे, सूर्योदय होते ही नगर पर धावा बोल दो। वह निष्चय ही अपने लोगों को ले कर तुम्हारा सामना करने निकलेगा। तब तुम जो ठीक समझो, वही करो।''
34) अबीमेलेक ने अपने सब सैनिकों के साथ रात को प्रस्थान किया और सिखेम के पास उन को चार दलों में विभाजित कर घात में बैठाया।
35) जब एबेद का पुत्र गाल बाहर निकला और नगर के फाटक के पास खड़ा हुआ तब अबीमेलेक और उसके साथी छिपे स्थानों से निकल पड़े।
36) गाल ने उन को देखते ही जबुल से कहा, ''देखो, लोग पर्वतों के षिखरों पर नीचे चले आ रहे हैं'। ज+बुल ने उसे उत्तर दिया, ''यह पर्वतों की छाया है, जो तुम्हें मनुष्य-जैसी दिखती है''।
37) गाल ने फिर कहा, ''देखो तो सही, पहाड़ के षिखर की बग़ल से लोग उतर रहे हैं और एक दल मओननीम बलूत की ओर से भी आ रहा है''।
38) इस पर ज+बुल ने उस से कहा, ''तुमने किस मुँह से यह कहा था कि अबीमेलेक कौन है, जो हम उसके अधीन रहें? ये वे लोग हैं, जिनकी तुम निन्दा कर रह थे। अब जा कर उन से लड़ो।''
39) तब सिखेम के नागरिकों का नेता बनकर गाल अबीमेलेक से लड़ने निकल पड़ा।
40) लेकिन अबीमेलेक ने उसे भगा दिया। फाटक के पास तक बहुत-से लोग घायल पडे+ थे।
41) अबीमेलेक अरूमा लौटा। ज+बुल ने गाल और उसके भाई-बन्धुओं को भगा दिया, उन्हें सिखेम में नहीं रहने दिया।
42) सिखेम के लोग दूसरे दिन अपने खेत जाने लगे। अबीमेलेक को इसकी सूचना मिली
43) और उसने अपने सैनिकों को तीन दलों में विभाजित किया और खेतों में घात लगा कर बैठ गया। जब उसने लोगों को नगर से निकलते देखा, तो उन पर टूट पडा और उन्हें पराजित कर दिया।
44) अबीमेलेक ने अपने दल के साथ नगर के फाटक पर अधिकार किया। इतने में षेष दो दल उन लोगों पर टूट पड़े, जो खेतों में थे और उन्हें मार डाला।
45) अबीमेलेक ने दिन भर लड़ने के बाद नगर को अपने अधिकार में कर लिया और उसके निवासियों को मार डाला। इसके बाद उसने नगर का विध्वंस किया और उसकी भूमि पर नमक छिड़कवाया।
46) जब मिगदल-सिखेम के नागरिकों ने यह सुना, तो वे एल-बेरीत मन्दिर के तहख़ाने में छिप गये।
47) जब अबीमेलेक को यह सूचना मिली कि मिगदल-सिखेम के सब नागरिक वहाँ एकत्रित हैं,
48) तो वह अपने सब सैनिकों के साथ सलमोन पर्वत पर गया। अबीमेलेक ने हाथ में कुल्हाड़ी ली और झाड़ियों को काटने लगा। फिर उसने उन को उठाकर अपने कन्धों पर रख लिया और अपने आदमियों से कहा, ''तुमने मुझे जैसा करते देखा है, तुम भी तुरन्त वैसा करो''।
49) इस पर सब ने झाड़ियाँ काटीं और उन को अबीमेलेक के पीछे-पीछे ले जा कर तहख़ाने के आसपास रख दिया। इसके बाद उन्होंने तहख़ाने में आग लगायी। इस प्रकार मिगदल-सिखेम के सभी लोग लगभग एक हज+ार स्त्री-पुरुष मर गये।
50) इसके बाद अबीमेलेक तेबेस गया। उसने तेबेस पर चढ़ाई कर उसे अपने अधिकार में ले लिया।
51) नगर के बीच एक मज+बूत मीनार थी। क्या स्त्री, क्या पुरुष- नगर के सब निवासी वहॉँ से भाग गये और उसे अन्दर से बन्द कर उस मीनार की छत पर चढ़ गये।
52) अबीमेलेक ने मीनार के पास आ कर उस पर आक्रमण किया।
53) जब वह उस में आग लगाने के लिए मीनार के फाटक के पास आया, तब किसी स्त्री ने अबीमेलेक के सिर पर चक्की का ऊपरी पाट फेंक कर उसका सिर फोड़ दिया।
54) उसने तुरन्त अपने षस्त्रवाहक सेवक को बुला कर आज्ञा दी कि तुम अपनी तलवार निकाल कर मुझे मार डालो, जिससे कोई मेरे विषय में यह न कह पाये कि उसकी हत्या किसी स्त्री ने की। इस पर उसके सेवक ने उसके षरीर में तलवार भोंक दी और वह मर गया।
55) जब इस्राएलियों ने यह देखा कि अबीमेलेक की मृत्यु हो गयी है, तो सब अपने-अपने घर लौट गये।
56) इस प्रकार ईष्वर ने अबीमेलेक को अपने पिता के प्रति किये गये उस अपराध का दण्ड दिया, जो उसने अपने सत्तर भाइयों का वध कर किया था।
57) ईष्वर ने सिखेम- निवासियों को भी उनके सब अपराधों का दण्ड दिया और उन्हें यरूबबाल के पुत्र योताम का अभिषाप लगा।

अध्याय 10

1) अबीमेलेक के बाद इस्राएल का उद्धार करने के लिए इस्साकार के वंष में पूआ के पुत्र और दोदो के पौत्र तोला का उदय हुआ। वह एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष के षामीर में रहता था।
2) उसने तेईस वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया। उसकी मृत्यु हो जाने पर वह षामीर में दफनाया गया।
3) इसके बाद गिलआदवासी याईर ने बाईस वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।
4) उसके तीस पुत्र थे, जो तीस गधों पर सवार हुआ करते थे और गिलआद में उनके तीस नगर थे, जो आज तक हव्वोत-याईर कहे जाते हैं।
5) उसकी मृत्यु हो जाने पर वह कामोन में दफ़नाया गया।
6) इस्राएलियों ने फिर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। वे बाल-देवताओं और अष्तारता-देवियों तथा अराम, सीदोन, मोआब, अम्मोनियों और फ़िलिस्तयों के देवताओं की पूजा करने लगे। उन्होंने प्रभु को त्याग दिया और वे उसकी आराधना नहीं करते।
7) इसलिए प्रभु का कोप इस्राएल के विरुद्ध भड़क उठा। उसने उन्हें फ़िलिस्तियों और अम्मोनियों के हाथ दे दिया।
8) उन्होंने उस वर्ष भर इस्राएलियों को कष्ट दिया और वे उन पर अत्याचार करते रहे। वे अठारह वर्ष तक यर्दन के उस पार गिलआद देष के अमोरियों के प्रान्त में रहने वाले सब इस्राएलियों पर अत्याचार करते रहे।
9) अम्मोनियों ने यूदा, बेनयामीन और एफ्र+ईम से युद्ध करने के लिए यर्दन पार किया। इस से इस्राएलियों की दुर्गति हो गयी।
10) तब इस्राएलियों ने प्रभु से सहायता के लिए यह प्रार्थना की, ''अपने ईष्वर को त्याग कर और बाल-देवताओं की पूजा कर हमने तेरे प्रति अपराध किया है÷÷।
11) (११-१२) प्रभु ने इस्राएलियों से कहा, ''जब मिस्रियों, अमोरियों, अम्मोनियों, फ़िलिस्तियों, सीदोनियों, अमालेकियों और माओनियों ने तुम पर अत्याचार किया और तुमने मेरी दुहाई दी, तो क्या मैंने उनके हाथों तुम्हारा उद्धार नहीं किया?
13) किन्तु तुमने मुझे त्याग दिया और तुम पराये देवताओं के अनुगामी बन गये। इसलिए अब मैं तुम्हारा उद्धार नहीं करूँगा।
14) अब जाओ, उन देवताओं से प्रार्थना करो, जिन्हें तुमने अपने लिए चुना है। वे ही तुम्हारी विपत्ति से तुम्हारा उद्धार करेंगे।''
15) तब इस्राएलियों ने प्रभु से कहा, ''हमने अपराध किया। अब तू जो उचित समझे, वही कर। लेकिन इस बार हमारा उद्धार करने की कृपा कर।÷÷
16) इसलिए उन्होंने अपने पास से पराये देवताओं को हटा दिया और वे प्रभु की सेवा करने लगे। तब प्रभु से इस्राएल की दुर्गति नहीं देखी गयी।
17) अम्मोनियों ने युद्ध के लिए एकत्रित हो कर गिलआद में पड़ाव डाला। इस्राएलियों ने भी एकत्रित हो कर मिस्पा में पड़ाव डाला।
18) तब गिलआद के नेतागण आपस में कहने लगे, ''ऐसा आदमी कौन है, जो अम्मोनियों पर प्रथम प्रहार करेगा? क्योंकि वही गिलआद के सब निवासियों का प्रधान बनाया जायेगा।÷÷

अध्याय 11

1) गिलआदी यिफ्+तह वीर योद्धा था। वह एक वेष्या का पुत्र था।
2) गिलआद यिफ्+तह का पिता था। गिलआद को अपनी पत्नी से भी पुत्र पैदा हुए थे। जब पत्नी के पुत्र बडे+ हुए, तो उन्होंने यिफ्+तह को यह कह कर भगा दिया कि तुम्हें हमारे घर में कोई विरासत नहीं मिलेगी, क्योंकि तुम्हारा जन्म किसी दूसरी स्त्री से हुआ है।
3) इसलिए यिफ्+तह अपने भाइयों के पास से भाग कर टोब देष में रहने लगा। तब यिफ्+तह के पास निकम्मे लोगों की मण्डली इकट्ठी हो गयी और वे उसके साथ लूटपाट करते थे।
4) कुछ समय बाद अम्मोनियों ने इस्राएल से लड़ाई छेड़ दी।
5) जब अम्मोनियों का इस्राएलियों से युद्ध छिड़ा, तब गिलआद के नेता टोब प्रदेष से यिफ्+तह को लाने गये।
6) उन्होंने यिफ्+तह से कहा, ''आओ, हमारे नेता बनो, जिससे हम अम्मोनियों से लड़ सकें÷÷।
7) यिफ्+तह ने गिलआद के नेताओं को उत्तर दिया, ''तुम लोगों ने तो घृणा के कारण मुझे अपने पिता के घर से भगा दिया था। अब, जब तुम पर विपत्ति पड़ी है, तो तुम मेरे पास आये हो।''
8) गिलआद के नेताओं ने यिफ्+तह को उत्तर दिया, ''फिर भी हम तुम्हारे पास आये हैं। तुम हमारे साथ अम्मोनियों से लड़ने चलो और तुम गिलआद के सब निवासियों के षासक बनो।''
9) इस पर यिफ्+तह ने गिलआद के नेताओं से पूछा, ''यदि तुम लोग मुझे अम्मोनियों से लड़ने के लिऐ वापस बुलाते हो और प्रभु उन्हें मेरे हाथ सौंप देगा, तब क्या मैं सचमुच तुम लोगों का षासक बन जाऊँगा?''
10) गिलआद के नेताओं ने यिफ्+तह से कहा, ''प्रभु हमारी इस बात का साक्षी है कि हम ठीक वैसा ही करेंगे, जैसा तुम कह रहे हो''।
11) इस पर यिफ्+तह गिलआद के नेताओं के साथ गया। लोगों ने उसे अपना षासक और नेता बनाया। यिफ्+तह ने ये सब बातें मिस्पा में प्रभु के सामने दोहरायीं।
12) यिफ्+तह ने अम्मोनियों के राजा के पास दूतों से कहला भेजा, ''मुझ से आपका क्या, जो आप मेरे देष पर चढ़ आये हैं?
13) अम्मोनियों के राजा ने यिफ्+तह के दूतों को उत्तर दिया, ''जब इस्राएली मिस्र से आये थे, तब उन्होंने अरनोन से यब्बोक और यर्दन तक मेरा देष छीन लिया था। इसलिए अब उसे स्वेच्छा से वापस कर दो।''
14) तब यिफ्+तह ने दूसरी बार अम्मोनियों के राजा के पास दूत भेज कर उस से कहलाया,
15) ÷÷यिफ्+तह का यह कहना है कि इस्राएल ने मोआब का देष और अम्मोनियों का देष नहीं छीना है,
16) बल्कि इस्राएल मिस्र से आ कर उजाड़खण्ड से होता हुआ लाल समुद्र के पास और फिर कादेष आया।
17) वहाँ इस्राएल ने एदोम के राजा के पास दूतों द्वारा यह निवेदन भेजा था कि हमें अपने देष से हो कर जाने दीजिए; लेकिन एदोम के राजा ने उसकी एक भी नहीं सुनी। उसने मोआब के राजा के पास भी कहलाया था लेकिन उसने भी नहीं मानी। इसलिए इस्राएल कादेष में ही रह गया था।
18) इसके बाद वह उजाड़खण्ड में चलते हुए एदोम देष और मोआब देष का चक्कर लगाते हुए मोआब के पूर्वी भाग में आ पहुँचा और उसने अरनोन के उस पार पड़ाव डाला। उसने मोआब देष में प्रवेष नहीं किया, क्योंकि अरनोन नदी मोआब की सीमा थी।
19) फिर इस्राएल ने होषबोन में रहने वाले अमोरियों के राजा सीहोन के पास दूत भेजे। इस्राएल ने उस से निवेदन किया कि हम आपके देष से हो कर अपने निर्दिष्ट स्थान पर जाना चाहते हैं, आप हमें जाने दीजिए।
20) लेकिन सीहोन ने इस्राएल को अपने देष हो कर जाने की अनुमति नहीं दी; बल्कि सीहोन ने अपने सब लोगों को एकत्रित कर यहसा के पास पड़ाव डाला और वह इस्राएल से लड़ने लगा।
21) परन्तु प्रभु, इस्राएल के ईष्वर ने सीहोन और उसके सारे लोगों को इस्राएल के हाथ दे दिया। इस प्रकार इस्राएल ने उन्हें पराजित कर उस देष को अधिकार में कर लिया, जिसमें अमोरी बसे हुए थे।
22) उसने अरनोन से यब्बोक तक और उजाड़खण्ड से यर्दन तक अमोरियों का सारा देष अपने अधिकार में लिया।
23) अब यदि प्रभु, इस्राएल के ईष्वर ने अमोरियों को अपनी प्रजा इस्राएल के आने पर भगा दिया, तो क्या आप अब उसे फिर अपने अधिकार में लेना चाहते हैं?
24) यदि आपका देवता कमोष किसी को भगा देता, तो क्या आप उसका देष अधिकार में नहीं कर लेते? ठीक इसी प्रकार हम उसका सारा देष अधिकार में कर लेते हैं, जिसे प्रभु, हमारा ईष्वर हमारे सामने से भगा देता है।
25) अब क्या आप मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से श्रेष्ठ हैं? क्या उसने इस्राएल से कभी झगड़ा या युद्ध किया था?
26) जब इस्राएल हेषबोन और उसके गाँँवों, अरोएर और उसके गाँवों तथा अरनोन के सब तटवर्ती नगरों में इन तीन सौ वर्षों तक निवास करता रहा, तो आप लोगों ने उन्हें इतने समय में अधिकार में क्यों नहीं कर लिया?
27) मैंने तो आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा, फिर भी आप मुझ से युद्ध कर मेरा अहित करने पर उतारू हैं। प्रभु न्यायाधीष हैं। वही आज इस्राएल और अम्मोन के लोगों के बीच न्याय करेगा।''
28) इस पर भी अम्मोनियों के राजा ने यिफ्+तह द्वारा उसके पास भेजे गये सन्देष पर ध्यान नहीं दिया।
29) उस समय प्रभु के आत्मा ने यिफ्+तह को प्रेरित किया। यिफ्+तह गिलआद और मनस्से को पार कर गिलआद के मिस्पा नामक स्थान पहुँचा और वहाँं से अम्मोनियों के यहाँ आया।
30) यिफ्+तह ने यह कहते हुए प्रभु के सामने यह मन्नत मानी, ''यदि तू अम्मोनियों को मेरे हवाले कर देगा और मैं सकुषल लौटँूगा,
31) तो जो पहला व्यक्ति मेरी अगवानी करने मेरे घर से निकलेगा, वह प्रभु का होगा और मैं उसकी होम-बलि चढ़ाऊँगा।''
32) यिफ्+तह अम्मोनियों के विरुद्ध युद्ध करने निकला और प्रभु ने उन को उसके हवाले कर दिया।
33) यिफ्+तह ने अरोएर से मिन्नीत के आसपास तक बीस नगरों को जीता और आबेल-करामीम तक अम्मोनियों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इस प्रकार अम्मोनी लोग इस्राएलियों के अधीन हो गये।
34) जब यिफ्+तह मिस्पा में अपने यहाँ लौटा, तो उसकी पुत्री द्वार से निकल कर डफली बजाते और नाचते हुए उसकी अगवानी करने आयी। वह उसकी अकेली सन्तान थी। उसके सिवा यिफ्+तह के न तो कोई पुत्र था और न कोई पुत्री।
35) यिफ्+तह ने उसे देखते ही अपने वस्त्र फाड़ कर कहा, ÷÷हाय! बेटी! तुमने मुझे मारा है! तुमने मुझे महान संकट में डाल दिया है। मैं प्रभु को वचन दे चुका हूँ। मैं उसे वापस नहीं ले सकता।''
36) उसने उत्तर दिया, ''पिता जी! आप प्रभु को वचन दे चुके हैं। आप मेरे विषय में अपनी मन्नत पूरी कीजिए, क्योंकि प्रभु ने आप को अपने षत्रुओं से, अम्मोनियों से, बदला चुकाने का वरदान दिया है।÷÷
37) इसके बाद उसने अपने पिता से कहा, ''एक निवेदन है। मुझे दो महीने का समय दीजिए, जिससे मैं पहाड़ पर जा कर अपनी सखियों के साथ अपने कुँवारेपन का षोक मनाऊँ।''
38) उसने उत्तर दिया, ''जाओ÷÷ और उसे दो महीनों के लिए जाने दिया। वह अपनी सखियों के साथ चली गयी और उसने पहाड़ पर अपने कुँवारेपन का षोक मनाया।
39) वह दो महीने के बाद अपने पिता के यहाँ लौटी और उसने उसके विषय में अपनी मन्नत पूरी कर दी। उसका कभी किसी पुरुष के साथ संसर्ग नहीं हुआ। इस प्रकार इस्राएल में इस प्रथा का प्रचलन हुआ
40) कि कन्याएँ प्रति वर्ष चार दिन तक गिलआदी यिफ्+तह की पुत्री का स्मरणोत्सव मनाती हैं।

अध्याय 12

1) एफ्र+ईमवंषी इकट्ठे हुए और उन्होंने साफ़ोन जा कर यिफ्+तह से यह कहा, ''तुम अम्मोनियों के विरुद्ध लड़ने क्यों गये और हमें अपने साथ चलने को क्यों नहीं बुलाया? हम तुम्हारे साथ तुम्हारा घर जला डालेंगे।''
2) यिफ्+तह ने उन्हें उत्तर दिया, ''मेरे और मेरे लोगों का अम्मोनियों से बड़ा संघर्ष चल रहा था। जब मैंने तुम्हें बुलाया था, तब तुम मुझे उनके हाथों से बचाने नहीं आये।
3) यह देख कर कि तुम लोग मेरी सहायता नहीं करोगे, मैं प्राण हथेली पर लिये स्वयं अम्मोनियों पर चढ़ाई करने आगे बढ़ा। प्रभु ने उन्हें मेरे हाथ दे दिया। अब तुम मुझ से क्यों झगड़ते हो?''
4) यिफ्+तह ने गिलआद के सब लोगों को एकत्रित कर एफ्र+ईमवंषियों से युद्ध किया। गिलआदियों ने एफ्र+ईम वंषियों को पराजित किया; क्योंकि उन्होंने कहा था, ÷÷गिलआदियो! एफ्र+ईम और मनस्से क बीच रहने वालो! तुम एफ्र+ईम के भगोड़े हो''।
5) गिलआदियों ने एफ्र+ईम देश जाने वाले यर्दन के घाटों को अपने अधिकार में कर लिया। जब एफ्र+ईम का कोई भगोड़ा आ कर निवेदन कर करता कि मुझे पार जाने दो, तब गिलआदी उस से पूछते, ÷÷कहीं तुम एफ्र+ईम तो नहीं हो?'' यदि वह उत्तर देता, ÷÷नहीं'',
6) तो वे उस से कहते, ''तो बोलो-षिब्बोलेत।÷÷ तब यदि वह षुद्ध उच्चारण नहीं कर सकता और ÷सिब्बोलेत' बोलता, तो वे उसे पकड़ कर वहीं यर्दन के घाटों पर मार देते। इस प्रकार उस समय बयालीस हज+ार एफ्र+ईमियों का वध किया गया।
7) यिफ्+तह ने छह वर्ष इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया। गिलआदी यिफ्+तह की मृत्यु हो जाने पर वह गिलआद के अपने नगर में दफ़नाया गया।
8) उसके बाद बेथलेहेमवासी इबसान ने इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।
9) उसके तीस पुत्र और तीस पुत्रियाँ थीं। उसने अपनी तीस पुत्रियों का विवाह दूसरे गोत्रों में किया और अपने पुत्रों के लिए भी वह दूसरे गोत्रों की तीस बहुएँ ले आया। उसने सात वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।
10) इबसान की मृत्यु हो जाने पर वह बेथलेहेम में दफ़नाया गया।
11) उसके बाद ज+बुलोनी एलोन ने इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया। उसने दस वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।
12) ज+बुलोनी एलोन की मृत्यु हो जाने पर वह ज+बुलोन प्रान्त के अय्यालोन में दफ़नाया गया।
13) उसके बाद पिरआतोनवासी हिल्लेल के पुत्र अबदोन ने इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।
14) उसके चालीस पुत्र और तीस पौत्र थे, जो सत्तर गधों पर सवार हुआ करते थे। उसने आठ वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।
15) पिरआतोनवासी हिल्लेल के पुत्र अबदोन की मृत्यु हो जाने पर वह एफ्र+ईम प्रान्त के पिरआतोन में अमालेकियों की पहाड़ी प्रदेष में, दफ़नाया गया।

अध्याय 13

1) इस्राएलियों ने फिर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। इसलिए प्रभु ने उन्हें चालीस वर्ष के लिए फ़िलिस्तियों के हाथ दे दिया।
2) सोरआ में दान वंष का मानोअह नामक मनुष्य रहता था। उसकी पत्नी बाँझ थी। उसके कभी सन्तान नहीं हुई थी।
3) प्रभु का दूत उसे दिखाई दिया और उस से यह बोला, ''आप बाँझ हैं। आपके कभी सन्तान नहीं हुई। किन्तु अब आप गर्भवती होंगी और पुत्र प्रसव करेंगी।
4) आप सावधान रहें आप न तो अंगूरी या मदिरा पियें और न कोई अपवित्र वस्तु खायें;
5) क्योंकि आप गर्भवती होंगी और पुत्र प्रसव करेंगी। बालक के सिर पर उस्तरा नहीं चलाया जायेगा, क्योंकि वह अपनी माता के गर्भ से ईष्वर को समर्पित होगा। फ़िलिस्तियों के हाथों से इस्राएल का उद्धार उसी से प्रारम्भ होगा।''
6) वह स्त्री अपने पति को यह बात बताते गयी। उसने कहा, ''ईष्वर की ओर से एक पुरुष मेरे पास आया। उसका रूप स्वर्गदूत की तरह अत्यन्त प्रभावषाली था। मुझे उस से यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप कहाँ से आ रहे हैं और उसने मुझे अपना नाम नहीं बताया।
7) उसने मुझ से यह कहा, 'आप गर्भवती होंगी और पुत्र प्रसव करेंगी। आप अब से न तो अंगूरी या मदिरा पियें और न कोई अपवित्र वस्तु खायें। बालक अपनी माता के गर्भ से अपनी मृत्यु के दिन तक ईष्वर को समर्पित होगा।÷÷
8) इस पर मानोअह ने प्रभु से यह प्रार्थना की, ''प्रभु! जिस मनुष्य को तूने हमारे पास भेजा, वह फिर हमारे पास आये और हमें बताये कि होने वाले बच्चे के लिए हमें क्या करना पडे+गा''।
9) ईष्वर ने मानोअह की प्रार्थना स्वीकार की। स्वर्ग-दूत दूसरी बार उस स्त्री के पास आया, जब वह खेत में थी और जब उसका पति उसके पास नहीं था।
10) वह स्त्री अपने पति को ख़बर देने के लिए दौड़ी। उसने उस से कहा, ''वह पुरुष मुझे फिर दिखाई दिया, जो उस बार मेरे सामने आया था''।
11) मानोअह उठ कर अपनी पत्नी के साथ चल पड़ा। उस मनुष्य के पास पहुँच कर उसने उस से पूछा, ÷÷क्या आप वही हैं, जिन्होंने इस स्त्री से पहले बातें की थीं?'' उसने कहा, ÷÷हाँ, मैं ही हँॅू''।
12) मानोअह ने कहा, ''जब आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो जायेगी, तो उस बच्चे को किन नियमों का पालन करना चाहिए और हमें उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?''
13) प्रभु के दूत ने मानोअह को उत्तर दिया, ''मैंने आपकी पत्नी से जो कुछ कहा, उन्हें उसका पालन करना है।
14) वह दाखलता से प्राप्त होने वाली कोई भी वस्तु न खायें। वह न अंगूरी पियें, न अन्य कोई मादक पेय और न कोई अपवित्र वस्तु खायें। मैंने उन्हें जो-जो आदेष दिये, वह उनका पालन करें।''
15) मानोअह ने प्रभु के दूत से कहा, ''ठहरियें, हम आपके लिए बकरी का बच्चा पकाना चाहते हैं÷÷।
16) लेकिन प्रभु के दूत ने मानोअह से कहा, ''यदि आप मुझे रोकेंगे, तो भी मैं आपके भोजन का कुछ नहीं खाऊँगा। हाँ, यदि आप एक होम-बलि तैयार करना चाहते हों, तो उसे प्रभु को चढ़ाइए।÷÷
17) मानोअह का मालूम नहीं था कि वह प्रभु का दूत है; इसलिए मानोअह ने प्रभु के दूत से पूछा, ''आपका नाम क्या है, जिससे आपका वचन पूरा हो जाने पर हम आपके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें?''
18) लेकिन प्रभु के दूत ने उसे उत्तर दिया, ''आप मेरा नाम क्यों पूछते हैं? वह रहस्यमय है।÷÷
19) तब मानोअह ने बकरी का बच्चा और अन्न-बलि ले कर चट्टान पर उस प्रभु को चढ़ाया, जिसका कार्य रहस्यमय है।
20) वेदी से ज्वाला आकाष की ओर ऊपर उठी और मानोअह और उसकी पत्नी के देखते-देखते प्रभु का दूत वेदी की उस ज्वाला के साथ ऊपर चढ़ गया। मानोअह और उसकी पत्नी यह देख कर मुँह के बल भूमि पर गिर पड़े।
21) जब प्रभु के उस दूत से मानोअह और उसकी पत्नी को फिर दर्षन नहीं दिये, तब मानोअह जान गया कि वह प्रभु का दूत था।
22) इसलिए मानोअह ने अपनी पत्नी से कहा, ''अब निष्चय ही हमारी मृत्यु हो जायेगी, क्योंकि हमने ईष्वर के दर्षन किये हैं''।
23) लेकिन उसकी पत्नी ने उस से कहा, ''यदि प्रभु की इच्छा हमें मार डालने की होती, तो वह न तो हमारे हाथों से होम-बलि और अन्न-बलि ग्रहण करता और न हमें यह सब दिखाता और सुनाता''।
24) उस स्त्री ने पुत्र प्रसव किया और उसका नाम समसोन रखा। बालक बढ़ता गया और उसे प्रभु का आषीर्वाद मिलता रहा।
25) बाद में, सोरआ और एष्ताओल के बीच के महने-दान में प्रभु का आत्मा उसे प्रेरित करने लगा।

अध्याय 14

1) एक दिन समसोन तिमना गया। उसने तिमना में फ़िलिस्तियों की एक कन्या देखी।
2) उसने घर लौट कर अपने माता-पिता से कहा, ''मैंने तिमना में फिलिस्तियों की एक कन्या देखी है। उसके साथ मेरा विवाह कर दीजिए।''
3) उसके माता-पिता ने उसे उत्तर दिया, ''क्या तुम्हारे भाई-बन्धुओं या मेरे अपने लोगों में कन्याएँ नहीं हैं, जो तुम उन बेख़तना फ़िलिस्तियों की एक कन्या से विवाह करना चाहते हो?'' समसोन ने अपने पिता से कहा, ''मुझे उस को दीजिए, जो मुझे सब से अधिक प्रिय है÷÷।
4) उसके माता-पिता को यह मालूम नहीं था कि यह प्रभु की लीला है, जो फ़िलिस्तियों का सामना करने का मौक़ा ढूँढ़ रहा था। उस समय फ़िलिस्ती इस्राएलियों पर षासन कर रहे थे।
5) समसोन अपने माता-पिता के साथ तिमना गया। जब वह तिमना की दाखबारियों में था, तब अचानक एक सिंहषावक उस पर गरजता हुआ आ पहुँचा।
6) समसोन को प्रभु की प्रेरणा प्राप्त हुई। यद्यपि उसके हाथ में कुछ नहीं था, उसने उसे ऐसे चीर डाला, जैसे कोई किसी बकरी के बच्चे को चीर देता है। उसने इसके विषय में अपने माता-पिता से कुछ नहीं कहा।
7) वहाँ पहुँच कर समसोन ने उस कन्या से बातचीत की और वह उसे बड़ी प्रिय लगी। कुछ समय बाद वह उसे अपने घर ले जाने के लिए आया।
8) वह मार्ग से कुछ हट कर उस मृत सिंह को देखने गया, तो देखता क्या है कि उस सिंह के कंकार में मधुमक्खियों का झुण्ड लगा हुआ है और उसमें मधु भरा पड़ा है।
9) वह मधु हाथ से निकाल कर चल पड़ा और उसे चाटते हुए आगे बढ़ा। वह अपने माता-पिता के पास आया और उसने उन्हें भी थोड़ा दिया। उन्होंने भी खाया। उसने उन्हें यह नहीं बताया कि वह उसे सिंह के कंकाल से निकाल कर लाया है।
10) इसके बाद उसका पिता कन्या के यहाँ गया और जैसा कि वर किया करते थे, समसोन ने वहाँ एक भोज दिया।
11) जब लोगों ने उसे देखा, तो उन्होंने उसे तीस साथी दिये।
12) समसोन ने उन से कहा, ''मैं आपके सामने एक पहेली रखता हूँ। यदि आप भोज के सात दिन के अन्दर इसका उत्तर देंगे, तो मैं आप का तीस कुरते और उत्सव के तीस वस्त्र दूँगा।
13) और यदि आप मुझे उसका उत्तर नहीं दे सकेंगे, तो आप को मुझे तीस कुरते और उत्सव के तीस वस्त्र देने पडें+गे।'' उन्होंने उस से कहा, ''अपनी पहेली बुझाओ, हम ज+रा सुनें तो''।
14) तब उसने उन से कहा : ''भक्षक से भक्ष्य निकला और बलवान् से मिठास÷÷। वे लोग तीन दिन में पहेली का उत्तर न दे सके।
15) चौथे दिन उन्होंने समसोन की पत्नी से कहा, ÷÷अपने पति को फुसलाओ, जिससे वह हमारे लिए पहेली का अर्थ बताये, नहीं तो हम तुम्हारे पिता के घर-सहित तुम को भी जला देंगे। क्या तुमने हमें लूटने के लिए निमन्त्रित किया?''
16) समसोन की पत्नी ने उसके सामने रोते हुए कहा, ''निष्चय ही तुम मुझ से घृणा करते हो और मुझे प्यार नहीं करते। तुमने मेरे नगरवासियों से यह पहेली बुझायी, लेकिन तुमने उसका उत्तर मुझे भी नहीं बताया।'' उसने उस से कहा, ''देखो, जब मैंने इसे अपने माता-पिता तक को नहीं बताया है, तो तुम्हें कैसे बताऊँ?''
17) इस प्रकार सात दिन तक, जब तक उनका भोज चलता रहा, वह उसके सामने रोती रही। तब सातवें दिन उसके बहुत अधिक आग्रह करने पर उसने उसे बता दिया। फिर उसने उस पहेली का उत्तर अपने नगरवासियों को बता दिया।
18) इस पर सातवें दिन सूर्यास्त के पहले ही नगर के आदमियों ने उस से कहा, ''मधु से मधुर क्या? सिंह से भी बलवान् क्या?'' और उसने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷यदि तुमने मेरी कलोर को हल में नहीं जोता होता, तो तुम मेरी पहेली का उत्तर नहीं दे पाते÷÷।
19) तब उसे प्रभु की प्रेरणा प्राप्त हुई। अषकलोन जा कर उसने वहाँ तीस नि+वासियों को मार डाला। उसने उनके वस्त्र छीन कर उनके वस्त्रों को पहली का उत्तर देने वालों को दे दिया। फिर वह बड़े क्रोध में अपने पिता के घर लौट गया।
20) समसोन की पत्नी को उसके उस साथी को दे दिया गया, जो उसका विषिष्ट मित्र था।

अध्याय 15

1) कुछ समय बाद, गेहूँ की फ़सल के समय, समसोन बकरी का एक बच्चा ले कर अपनी पत्नी को देखते आया। उसने कहा, ''मैं कमरे के भीतर अपनी पत्नी के पास जाऊँगा''। लेकिन पत्नी के पिता ने उसे अन्दर नहीं जाने दिया।
2) पत्नी के पिता ने कहा, ''मैंने सोचा कि तुम उसे बिलकुल नहीं चाहते, इसलिए मैंने उसे तुम्हारे एक साथी को दे दिया है। उसकी छोटी बहन उस से कहीं अधिक सुन्दर है। तुम उसकी जगह इसे ले लो।''
3) समसोन ने उस से कहा, ÷÷यदि इस बार मैं फ़िलिस्तियों की कुछ बुराई करूँ, तो मुझे दोष मत देना''।
4) तब समसोन ने तीने सौ लोमड़ियाँ पकड़ीं और मषालें लीं। फिर उसने दो-दो लोमड़ियों की पूछें एक साथ बाँध कर उन में एक-एक मषाल बाँध दी।
5) फिर मषालें जला कर उन्हें फ़िलिस्तियों की खड़ी फ़सलों में छोड़ दिया। इस प्रकार उसने फूलों के लगाये गये ढेरों, खड़ी फ़सलों और जैतून वृक्षों को भी जला दिया।
6) फ़िलिस्तयों ने जब पूछा कि किसने ऐसा किया, तो उत्तर मिला कि तिमनावासी के दामाद समसोन ने ऐसा इसलिए किया है उसकी पत्नी को उसके किसी साथी को दे दिया गया है। तब फ़िलिस्तियों ने आ कर उस स्त्री और उसके पिता, दोनों को जला डाला।
7) समसोन ने उन से कहा, ''तुम लोगों ने यह काम किया। है! मैं तुम से इसका बदला चुकाने के बाद ही साँस लूँगा।''
8) इस पर उसने उनकी भरपूर पिटाई की और उन में बहुतों का वध किया। इसके बाद वह एताम की एक चट्टानी गुफा में रहने लगा।
9) इसके बाद फ़िलिस्तियों ने यूदा जा कर अपने पड़ाव डाले और लही नामक नगर पर छापा मारा।
10) यूदा के लोगों ने पूछा, ''तुम हम पर क्यों छापा मारने आये हो?'' उन्होंने उत्तर दिया, ''हम समसोन को पकड़ने आये हैं। हम उसके साथ वैसा ही करेंगे, जैसा उसने हमारे साथ किया है।÷÷
11) इसके बाद यूदा के तीन हज+ार लोग एताम की चट्टानी गुफा के पास गये और समसोन से बोले, ''क्या तुम यह नहीं जानते हो कि फ़िलिस्ती हमारे षासक हैं? तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?'' उसने उन्हें उत्तर दिया, ''उन्होंने मेरे साथ जैसा किया, मैंने भी उनके साथ वैसा ही किया''।
12) वे उस से बोले, ''हम तुम्हें बाँध कर फ़िलिस्तियाँ के हाथ देने के लिए यहाँ आये हैं''। इस पर समसोन ने उन से कहा, ''मुझ से षपथ खा कर कहो कि तुम स्वयं मेरा वध नहीं करोगे''।
13) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ''नहीं हम तुम्हें केवल उनके हाथ देने के लिए बाँधेंगे। हम तुम्हारा वध नहीं करेंगे।'' तब वे उसे दो नयी रस्सियों से बाँध कर चट्टान की गुफा से ले गये।
14) जब वह लही पहुँचा, तो फ़िलिस्तिी ज+ोरों का जयघोष कर उस से मिलने दौड़े। तब उसे प्रभु की प्रेरणा प्राप्त हुई और उसके हाथों में बंधी रस्सियाँ आग में झुलसे हुए सन के रेषों के समान हो गयीं और उसके हाथों के बन्धन मानो गल कर टूट गये।
15) उसे गधे के जबड़े की एक नयी हड्डी मिली, जिसे उसने उठा लिया और उस से एक हज+ार आदमियों को मार डाला।
16) समसोन ने कहा : ''गधे के जबड़े की एक हड्ड+ी से मैंने ढेर के ढेर लगा दिये; गधे के जबडे+ की एक हड्डी से मैंने एक हज+ार को मार गिराया''।
17) उसने यह कह कर जबडे+ की हड्डी दूर फेंक दी। इससे उस स्थान का नाम रामतलही पड़ गया।
18) जब उसे ज+ोरों की प्यास लगी, तो उसने प्रभु से प्रार्थना की, ''तूने अपने सेवक को इतनी बड़ी विजय दिलायी और अब क्या मैं प्यास से मर कर इन बेख़तना लोगों के हाथ पडूँ?''
19) तब ईष्वर ने लही की एक निचली भूमि को फोड़ दिया और उस से पानी निकल पड़ा। उसका पानी पीने के बाद उसे जैसे फिर प्राण और नवजीवन प्राप्त हो गया। इसलिए उसका नाम एनहक्कोरे पड़ा। वह आज तक लही में विद्यमान है।
20) फ़िलिस्तियों के षासन-काल में समसोन ने बीस वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया।

अध्याय 16

1) किसी दिन समसोन गाज+ा गया। वहाँ एक वेष्या को देखकर वह उसके यहाँ चला गया।
2) जब गाज+ा वालों को ख़बर मिली कि समसोन यहाँ है, तब वे उस स्थान को घेर कर सारी रात नगर के फाटक के पास जमे रहे। सारी रात तो वे यह सोच कर चुपचाप बैठे रहे कि भोर होने पर हम उसे मार डालेंगे।
3) इधर समसोन ने आधी रात तक आराम किय। आधी रात उठ कर उसने किवाड़ों और दोनों खम्भों-सहित नगर के फाटक को उखाड़ डाला और अरगल के स+ाथ सब को अपने कन्धों पर रख कर उसी पहाड़ी की चोटी पर चला गया, जो हेब्रोन के सामने है।
4) कुछ समय बाद वह सोरेक घाटी में रहने वाली एक स्त्री से प्रेम करने लगा। उसका नाम दलीला था।
5) फ़िलिस्तियों के षासक उस स्त्री के पास आ कर बोले, ''उस को फुसला कर पूछो कि उसकी महाषक्ति का भेद क्या है, जिससे हम उसे अपने वष में करें और उसे बाँध कर अपन अधीन कर लें। इसके लिए हम में से प्रत्येक व्यक्ति तुम्हें चाँदी के ग्यारह सौ षेकेल देगा।''
6) दलीला ने समसोन से कहा, ''मुझे बताओ कि तुम्हारी महाषक्ति का भेद क्या है और तुम कैसे बाँधे जा कर अधीन किये जा सकते हो।''
7) समसोन ने उस से कहा, ''यदि मैं सात ताँतों से, जो अब तक सुखायी नहीं गयी हों, बाँध दिया जाऊँ, तो मैं सामान्य लोगों की ही तरह निर्बल हो जाऊगाँ÷÷।
8) तब फ़िलिस्तियों के षासकों ने सात नयी ताँतें, जो अब तक सुखायी नहीं गयी थीं, लाकर दलीला को दीं। उसी ने उन से समसोन को बाँधा।
9) अपनी भीतरी कोठरी में उसने लोगों को घात में बिठा रखा था। तब वह उस से बोली, ''समसोन, फ़िलिस्ती तुम पर टूटने ही वाले हैं÷÷। परन्तु उसने उन ताँतों को ऐसे तोड़ डाला, जैसे आँच लगने पर कोई सन का रेषा और उसकी षक्ति का भेद न खुल पाया।
10) तब दलीला ने समसोन से कहा, ''तुमने झूठ बोल कर मुझे धोखा दिया। अब मुझे बताओ कि तुम कैसे बाँधे जा सकते हो।''
11) इस पर उसने उसे उत्तर दिया,÷÷यदि मैं नयी-नयी रस्सियों से जो अब तक किसी काम में न आयी हों, बाँध दिया जाऊँ, तो मैं सामान्य लोगों की ही तरह निर्बल हो जाऊँगा÷÷।
12) तब दलीला ने नयी-नयी रस्सियाँ ले कर उसे बाँध दिया और उस से कहा, ''समसोन, फ़िलिस्ती तुम पर टूटने ही वाले है÷÷। उस समय लोग घात में भीतरी कोठरी में बैठे थे, परन्तु उसने उन रस्सियों को अपने हाथों से सूत के रेषों की तरह निकाल फेंका।
13) तब दलीला ने समसोन से कहा, ''अभी तक तुम मुझ से झूठ बोल कर मुझे धोखा ही देते आ रहे हो। अब फिर मुझे बताओं कि तुम कैसे बाँॅधे जा सकते हो।÷÷ उसने उसे उत्तर दिया, ''यदि तुम मेरे सिर की सातों लटों को ताने के साथ बुन दो और उन्हें खूंँटी से गाड़ दो, तो मैं सामान्य लोगों की ही तरह निर्बल हो जाऊँगा÷÷।
14) जब वह सो गया, तब उसने उसके सिर की सातों लटों को ताने के साथ बुनकर खूँटी से गाड़ दिया। फिर उसने उस से कहा, ''समसोन, फ़िलिस्ती तुम पर टूटने ही वाले है÷÷। नींद से जाग कर उसने खॅूँटी, करघा और ताना, सब को उखाड़ डाला।
15) फिर स्त्री ने उस से कहा, ''तुम यह कैसे कह सकते हो कि मैं तुम्हे प्यार करता हूँ, जब कि तुम्हारे हृदय में मेरे लिए स्थान नहीं है? तुम तीन बार मुझे धोखा दे चुके और मुझे यह नहीं बताया कि तुम्हारी महाषक्ति का भेद क्या है।÷÷
16) वह उस से प्रतिदिन ऐसा करते हुए हठ करती रही।
17) अन्त में ऊब कर उसने अपने मन का भेद प्रकट करते हुए उस से कहा, ''अब तक मेरे सिर पर उस्तरा नहीं लगाया गया है, क्योंकि जन्म से ही मैं प्रभु-समर्पित नाज+ीर हॅूँ। यदि मेरा मुण्डन हो जाये, तो मेरी षक्ति जाती रहेगी और मैं सामान्य लोगों की ही तरह निर्बल हो जाऊँँगा।÷÷
18) अब दलीला समझ गयी कि उसने उसे सारा भेद बता दिया है। उसने फ़िलिस्ती षासकों को यह कहते हुए बुलवा भेजा कि इस बार आप को आना चाहिए, क्योंकि उसने मुझे सारा भेद बता दिया है। तब फ़िलिस्ती षासक पैसे ले कर उसके पास आये।
19) उसने समसोन को अपनी गोद में सुला दिया और एक आदमी को बुलाकर उसके सिर के सातों लटों को मँुँड़वा डाला। तब उसकी षक्ति जाती रही और वह दुर्बल बन गया।
20) फिर स्त्री ने कहा, ''समसोन, फ़िलिस्ती तुम पर टूटने ही वाले हैं÷÷। नींद से जाग कर उसने सोचा कि मैं पहले की तरह ही झटक कर बच जाऊँगा, क्योंकि उसे मालूम नहीं था कि प्रभु ने उसे त्याग दिया है।
21) फ़िलिस्तियों ने उसे पकड़ कर उसकी आँखें फोड़ डालीं और वे उसे गाज+ा ले गये। उन्होंने उसे काँसे की बेड़ियाँँ पहना दीं और उसे बन्दीगृह में चक्की पीसनी पड़ी।
22) उसके सिर के बाल ,जो मूँडे+ गये थे, फिर बढ़ने लगे।
23) अपने देव दागोन के लिए एक महाबलि चढ़ाने और उत्सव मनाने के लिए फ़िलिस्ती षासक एकत्रित हुए। उन्होंने कहा : ''हमारे देवता ने हमारे षत्रु समसोन को हमारे हाथ दे दिया है''।
24) लोगों ने समसोन को देखा और यह कहते हुए अपने देवता की स्तुति करने लगे : ÷÷हमारे देवता ने हमारे उस षत्रु को हमारे हाथ दे दिया है, जिसने हमारा देष उजाड़ा और हम में से बहुतों का वध किया''।
25) लोगों का हृदय उल्लास से इतरा रहा था। उन्होंने कहा, ''समसोन को बुलाओ, वह हमारा मनोरंजन करे÷÷। उन्होंने समसोन को बन्दीगृह से बुलवाया और उसने उनका मनोरंजन किया। बाद में उन्होंने उसे खम्भों के बीच खड़ा कर दिया था।
26) समसोन ने उस लड़के से, जो उसका हाथ पकड़े हुए था, कहा, ÷÷मुझे ले चलो और जिन खम्भों पर मंदिर आधारित है, उनका स्पर्ष करने दो, जिससे मैं उनके सहारे खड़ा रहूँ'।
27) भवन पुरुषों और स्त्रियों से भरा था। फ़िलिस्तियों के सब प्रषासक भी वहाँॅ उपस्थित थे। छत पर लगभग तीन हज+ार स्त्री-पुरुष इकट्ठे थे, जो समसोन का खेल देख रहे थे।
28) तब समसोन ने प्रभु से प्रार्थना की, ''प्रभु-ईष्वर! मुझे याद कर। ईष्वर! मुझे मात्र इस बार बल प्रदान कर, जिससे मैं फ़िलिस्तियों से अपनी दोनों आँखों का बदला ले सकूँ।÷÷
29) तब समसोन ने बीच वाले उन दो खम्भों को पकड़ा, जिन पर मंदिर आधारित था- एक को दाहिने हाथ से और एक को बायें हाथ से।
30) समसोन ने यह कहते हुए, ''मैं फ़िलिस्तियों के साथ मर जाऊँ÷÷, पूरी षक्ति लगा कर धक्का दिया और वह भवन षासकों और अन्दर वाले सब लोगों पर गिर गया। इस प्रकार उन लोगों की संख्या, जिन्हें उसने मरते-मरते मारा, उन से अधिक थी, जिन्हें उसने अपने जीवन में मारा था।
31) उसके भाइयों और सभी सम्बन्धियों ने आ कर और उसे ले जाकर सोरआ और एष्ताओल के बीच उसके पिता मानोअह की समाधि में दफ़नाया। उसने बीस वर्ष तक इस्राएल में न्यायकर्ता का कार्य किया था।

अध्याय 17

1) एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष में मीका नामक मनुष्य रहता था।
2) उसने अपनी माँँ से कहा, ''चाँदी के वे ग्यारह सौ षेकेल मेरे पास हैं, जो आप से चुराये गये थे और जिनके लिए आपने मेरे सामने अभिषाप दिया था। मैंने ही उनकी चोरी की थी''। उसकी माँ ने उत्तर दिया, ''पुत्र तुम्हें प्रभु का आषीर्वाद प्राप्त हो!÷÷
3) जब उसने वे ग्यारह सौ षेकेल अपनी माँ को लौटा दिये, तो उसकी माँ ने कहा, ÷÷मैं यह चाँदी अपने हाथ से प्रभु को अपने पुत्र के नाम अर्पित करती हूँ, जिससे मैं एक ढली-गढ़ी मूर्ति बनवा कर तुम्हें दे दूँगी÷÷।
4) उसने अपनी माँ को यह द्रव्य वापस कर दिया और उसकी माँ ने इन से चाँदी के दो सौ षेकेल उसे ले कर सुनार को दिये और उसने उसे ढाल-गढ़ कर एक मूर्ति बनायी। मीका के घर में उसकी प्रतिष्ठा हुई। मीका के घर में एक पूजा-स्तम्भ था।
5) उसने एक एफ़ोद और देवमूर्तियाँ भी बनवायीं और अपने पुत्रों में एक को पुजारी नियुक्त किया।
6) उन दिनों इस्राएल में कोई राजा नहीं था। प्रत्येक व्यक्ति मनमानी करता था।
7) उस समय यूदा के बेथलेहेम में एक यूदावंषी नवयुवक रहता था। वह लेवी था और प्रवासी की तरह वहाँ रह रहा था।
8) वह यूदा के बेथलेहेम नगर छोड़ कर कोई ऐसी जगह ढूँढ़ने लगा, जहाँ वह प्रवासी के रूप में रहे सके। चलते-चलते वह एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष में मीका के पास आया।
9) मीका ने उस से पूछा, ÷÷तुम कहाँ से आ रहे हो?'' उसने उत्तर दिया, ''मैं यूदा के बेथलेहेम का लेवी हूँ। मैं कोई ऐसी जगह ढूँढ रहा हूँ, जहाँ मैं प्रवासी के रूप में रह सकूँं।''
10) मीका ने उस से निवेदन किया, ''तुम मेरे यहाँ रह कर मेरे पिता और पुजारी बन जाओ। मैं प्रति वर्ष तुम्हें चाँदी के दस षेकेल, एक जोड़ा वस्त्र और भोजन दिया करूँगा।''
11) उस लेवी ने उस मनुष्य के साथ रहना स्वीकार कर लिया और उसने उस नवयुवक को अपने पुत्रों में से एक-जैसा माना।
12) मीका ने उस लेवी को नियुक्त किया और वह नवयुवक मीका का पुजारी बन कर उसके घर में रहने लगा।
13) मीका ने सोचा, ''अब मैं निष्चयपूर्वक यह जान गया हॅॅूँ कि प्रभु मेरा कल्याण करेगा, क्योंकि मेरा पुजारी एक लेवी है''।

अध्याय 18

1) उन दिनों इस्राएल में कोई राजा नहीं था। उस समय दानवंषी बसने के लिए कोई भूभाग ढूँढ़ रहे थे; क्योंकि उस समय उन्हें इस्राएली वंषों में कोई भूभाग नहीं मिला था।
2) दानवंषियों ने अपने वंष के पाँच योद्धाओं को सोरआ और एष्ताओल से देष का भेद लेने और उसका निरीक्षण करने भेजा। उन्होंने उन से कहा, ''देष का निरीक्षण करने जाइए''। तब वे एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष में मीका के यहाँ आये और उन्होंने वहीं रात बितायी।
3) जब उन्होंने मीका के घर में उस नवयुवक लेवी को उसकी आवाज+ से पहचान लिया, तब उन्होंने उसके पास आ कर उसे से पूछा, ''तुम्हें यहाँ कौन लाया है? तुम यहाँ क्या करते हो और यहाँ तुम्हारा व्यवसाय क्या है?''
4) उसने उन्हें उत्तर दिया, ''यह सब मीका ने किया है। उसने मुझे पुजारी के काम के लिए नियुक्त किया है''।
5) इस पर वे उस से बोले, ''तुम ईष्वर से पूछो कि हमारी यह यात्रा सफल होगी या नहीं''।
6) पुजारी ने उन से कहा, ÷÷षान्ति से जाओ। यात्रा में तुम पर प्रभु की दयादृष्टि है।''
7) तब वे पाँचों व्यक्ति आगे चल कर लइष आये। उन्होंने देखा कि वहाँ के लोग सीदोनियों की तरह षान्तिपूर्वक और भयरहित रह रहें हैं। उस देष में किसी राजा का षासन नहीं था और कोई वहाँ अधिकार जताने नहीं आता था। लइष के निवासी सीदोनियों से दूर रहते थे और किसी के अधीन नहीं थे।
8) जब वे पाँच व्यक्ति सोरआ और एष्ताओल में अपने भाई-बन्धुओं के पास लौट आये, तो उनके भाई-बन्धुओं ने उन से पूछा, ''आपका क्या विचार है?''
9) उन्होंने उत्तर दिया, ''चलिए, हम उन लोगों पर आक्रमण करें, क्योंकि हमने देखा है कि उनका देष बहुत उपजाऊ है। आप लोग क्यों चुप हैं? वहाँ जाने में विलम्ब न कीजिए और उस देश को अपने अधिकार में कीजिए।
10) वहाँ पहुँचने पर लोग आप पर सन्देह नहीं करेंगे। ईष्वर ने वह विस्तृत देष आपके हाथ दे दिया है। वहाँ पृथ्वी की किसी वस्तु की कमी नहीं है।''
11) इस पर सोरआ और एष्तओल से दान कुल के छः सौ सषस्त्र पुरुष वहाँ के लिए चल पड़े।
12) मार्ग में उन्होंने यूदा के किर्यत-यआरीम के पास पड़ाव डाला, इसलिए आज तक वह स्थान महाने-दान कहलाता है। वह किर्यत-यआरीम के पष्चिम में है।
13) वहाँ से आगे बढ़ कर वे एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष में और मीका के घर पहुँचे।
14) उन पाँचों पुरुषांें ने, जो लइष प्रान्त का भेद लेने गये थे, अपने भाई-बन्धुओं से कहा, ''क्या आप जानते हैं कि यहाँ किसी के घर में एफ़ोद, देवमूर्तियाँ और एक ढली-गढ़ी मूर्ति है? तब आप ही सोचें कि आप को क्या करना चाहिए।''
15) तब वे उस ओर मुड़ कर उस नौवजान लेवी के घर के पास आये, जो मीका के यहाँ था और उसका कुषलक्षेम पूछा।
16) छः सौ सषस्त्र दानवंषी घर के द्वार पर खड़े हो गये।
17) वे पाँचों पुरुष, जो देष का निरीक्षण करने गये थे, एफ़ोद, देवमूर्तियाँ और ढली-गढ़ी मूर्ति लेने के लिए घर में घुस गये। इस बीच वह पुजारी भी उन छः सौ सषस्त्र पुरुषों के साथ घर के द्वार पर खड़ा रहा।
18) जब वे एफ़ोद, देवमूर्तियाँ और ढली-गढ़ी मूर्ति लेने घर में घुसे, तब पुजारी ने उन से कहा, ''तुम लोग क्या कर रह हो?''
19) उन्होंने कहा, ''चुप रहो, अपने हाथ से अपना मुँह बन्द किये रहो। तुम हमारे पिता और हमारे याजक बन कर हमारे साथ चलो। क्या तुम्हारे लिए यह अच्छा नहीं है कि तुम एक आदमी के घर के पुजारी बनने की अपेक्षा इस्राएल के किसी वंष और कुल के पुजारी बन जाओ।÷÷
20) यह सुन कर उसका हृदय फूल उठा। वह एफ़ोद, देवमूर्तियाँ और ढली-गढ़ी मूर्ति ले कर उन पुरुषों के साथ चल दिया।
21) वे वहाँ से आगे बढे+। उन्होंने बच्चों, ढोरों और सामान को आगे कर लिया।
22) जब वे मीका के घर से कुछ दूर चले गये, तब मीका के आसपास रहने वाले पुरुषों ने एकत्र हो कर दानियों का पीछा किया और पास आ कर
23) उन को ललकारने लगे। दानियों ने मुड़ कर मीका से पूछा, ''यह क्या बात है कि तुम दल-बल सहित हमारा पीछा कर रहे हो?''
24) उसने कहा, ''तुम लोग मेरे द्वारा बनवायी देवमूर्तियाँ और मेरे पुजारी को लिये जा रहे हो। फिर मेरे पास बच ही क्या जाता है? इस पर भी तुम मुझे से यह क्यों पूछते हो कि बात क्या है?''
25) दानवंषियों ने उसे उत्तर दिया, ''बकबक मत करो। ऐसा न हो कि कुछ क्रोधी व्यक्ति तुम पर टूट पड़ें और तुम को एवं तुम्हारे परिवार को अपने जीवन से हाथ धोना पडे+।÷÷
26) ऐसा कह दानवंषी आगे बढ़े। मीका यह देखकर कि वे मुझ से अधिक षक्तिषाली हैं, मुड़ कर लौट आया।
27) दानवंषी मीका के बनवाये हुए सामान और उसके पुजारी को लेकर लइष पर आक्रमण करने गये, जहाँ लोग अपने को सुरक्षित समझकर षांति से निवास करते थे। दानवंषियों ने लइष के निवासियों को तलवार के घाट उतारा और उनका नगर जला दिया।
28) उसकी रक्षा करने वाला कोई नहीं था; क्योंकि वह सीदोन से बहुत दूर था और अन्य किसी दूसरे से भी उसका कोई सम्पर्क नहीं था। वह बेत-रहोब की घाटी में था। उसके बाद उन्होंने उस नगर का पुनर्निर्माण किया और वे उस में बस गये।
29) उन्होंने इस्राएल के पुत्र और अपने कुलपति दान के नाम पर उस नगर का नाम 'दान' रखा। पहले उसका नाम लइष था।
30) दानवंषियों ने उस ढली मूर्ति को अपने लिए प्रतिष्ठित किया। मूसा का पौत्र और गेरषोम का पुत्र योनातान तथा उसके पुत्र दानियों को देष से निर्वासित किये जाने के बाद तक उनके लिए पुजारी का काम करते रहे।
31) मीका द्वारा बनवायी हुई मूर्ति षिलों में तब तक प्रतिष्ठित रही, जब तक ईष्वर का निवास षिलों में बना रहा।

अध्याय 19

1) उस समय इस्राएल में कोई राजा नहीं था। एक लेवीवंषी एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष के अन्तिम छोर पर प्रवासी के रूप में रहता था। वह यूदा के बेथलेहेम से एक उपपत्नी लाया था।
2) वह अपने पति के प्रति ईमानदार नहीं रही और उसे छोड़ कर यूदा के बेथलेहेम में अपने पिता के घर चली गयी।
3) वह वहाँ लगभग चार महीने रही। फिर उसका पति उसे समझा-बुझा कर लौटाने के लिए वहाँ गया। उसके साथ एक नौकर और दो गधे थे। पत्नी उसे अपने पिता के घर के अन्दर ले गयी। उस लड़की के पिता ने उसे देख कर उसका स्वागत किया।
4) उसके सुसर, उस लड़की के पिता ने उसे रोक लिया और वह तीन दिन तक उसके यहाँ रूक गया।
5) वे चौथे दिन बड़े सबेरे उठे और लेवीवंषी चलने की तैयारी करने लगा, परन्तु लड़की के पिता ने अपने दामाद से कहा, ''चले जाने से पहले जलपान करो''।
6) वे दोनों बैठ कर साथ-साथ भोजन करने लगे। लड़की के पिता ने उस व्यक्ति से कहा, ''कृपा कर एक और रात यहाँ रूक जाओ और मनोरंजन करो÷÷।
7) जब वह व्यक्ति चलने की तैयारी करने लगा, तो उसके ससुर ने उसे रात को वहीं रूकने के लिए विवष कर दिया।
8) जब वह पाँचवें दिन बडे+ तड़के चलने को तैयार हुआ, तब उस लड़की के पिता ने कहा, ÷÷कुछ खा-पीकर दिन ढलने तक यहीं आराम करो÷÷। फिर वे दोनों भोजन करने लगे।
9) जब वह व्यक्ति अपनी उपपत्नी और अपने नौकर के साथ चलने लगा, तब उसके ससुर, उस लड़की के पिता ने उस से कहा, ''देखो, अब साँझ होने लगी है। रात भर यहीं ठहर जाओ; दिन ढल चुका है। रात भर यहीं ठहर कर मनोरंजन करो। कल सबेरे तड़के ही उठ कर प्रस्थान करो और अपने घर चले जाओ।÷÷
10) परन्तु उस व्यक्ति ने रात को फिर ठहरना नहीं चाहा। वह चल दिया और यबूस, अर्थात् येरुसालेम के पास तक आया। दो कसे हुए गधे और उसकी उपपत्नी उसके साथ थी।
11) यबूस के पास पहुँचते-पहुँचते दिन काफ़ी ढल चुका था; इसलिए नौकर ने अपने मालिक से कहा, ''चलिए, यबूसियों के इस नगर में ठहर कर रात यहीं काट लें÷÷।
12) उसके मालिक ने उसे उत्तर दिया, ''हम उन परदेषियों के नगर में, जो इस्राएली नहीं है न ठहरें। आगे गिबआ तक बढ़ चलें।÷÷
13) उसने अपने सेवक से यह भी कहा, ''चलो, हम गिबआ या रामा तक पहुँच कर वहाँ रात बिताये÷÷।
14) वे आगे बढ़ते गये। बेनयामीन के गिबआ के निकट पहुँचते-पहुँचते सूर्यास्त होने लगा।
15) इसलिए वे मार्ग छोड़ कर गिबआ में रात बिताने उधर मुड़ पड़े। वहाँ पहुँच कर वे नगर के चौक में ठहरे, क्योंकि उन्हें कोई ऐसा नहीं मिला, जो उन्हें रात भर के लिए अपने घर में आश्रय दे।
16) संयोग से शाम को एक बूढ़ा खेत में काम कर लौट रहा था। वह एफ्र+ाईम के पहाड़ी प्रदेष का था और प्रवासी के रूप में गिबआ में रहता था उस नगर के निवासी बेनयामीनवंषी थे।
17) उसने उधर दृष्टि दौड़ा कर देखा कि नगर के चौक में यात्री पडे+ हैं। उस बूढे+ ने पूछा, ÷÷आप को कहाँॅ जाना है और आप कहाँॅ से आ रहे हैं?''
18) उसने उस से कहॉँ, ÷÷हम यूदा के बेथलेहेम से एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेष के अन्तिम छोर पर जा रहे हैं। मैं वहीं का निवासी हॅूँ। मैं यूदा के बेथलेहेम गया था और अब फिर अपने घर लौट रहा हूूॅँ; लेकिन यहाँॅ कोई ऐसा नहीं दिखाई देता, जो मुझे अपने घर में आश्रय दे।
19) अपने गधों के लिए भूसा और चारा तो हमारे पास है। मेरे लिए तथा आपकी इस दासी और अपने दासों के इस नौकर के लिए रोटी ओर दाखरस भी है। किसी चीज+ की कमी नहीं है।''
20) उस बूढे+ ने कहा, ÷÷आपका स्वागत है। आपको जिस चीज+ की ज+रूरत है, मैं उसे आप को दूंँगा। आप किसी भी हालत में चौक पर रात न बिताइए।''
21) उसने उसे अपने घर ले जा कर गधों को खिलाया। उन्होंने अपने पाँॅव धोये और खाना-पिया।
22) वे खा-पी ही रहे थे कि नगर के कुछ आदमी, कुछ नीच व्यक्ति, उस घर को घेर कर द्वार खटखटाने लगे और घर के मालिक, उस बूढ़े से कहने लगे, ÷÷उसे पुरुष को, जो तुम्हारे यहॉँ आया है, बाहर निकालो, जिससे हम उसका भोग करें''।
23) इस पर वह आदमी, घर का वह मालिक उनके पास बाहर जा कर उनसे कहने लगा; ÷÷भाइयों! मैं तुुम लोगों से प्रार्थना करता हॅूँ कि तुम ऐसे कुकर्म न करो। वह आदमी मेरे यहाँॅ आया हुआ अतिथि है। तुम ऐसा कुकर्म मत करो,
24) देखो, मैं अपनी कुँवारी कन्या और उसकी उपपत्नी को बाहर तुम्हारे पास ला देता हँू तुम उनके साथ जैसा चाहो, जैसा कर लो लेकिन इस पुरुष के साथ ऐसा कुकर्म मत करो।''
25) जब उन आदमियों ने उसकी एक भी न सुनी, तब वह लेवीवंषी ही अपनी उपपत्नी को उनके पास बाहर ले आया। उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया और रात भर सबेरे तक उसके साथ दुर्व्यव्हार किया। पौ फटने पर ही उन्होंने उसे जाने दिया
26) जब वह स्त्री सबेरे वापस आयी, तब वह उस पुरुष के घर के द्वार पर गिर पड़ी, जहॉँ उसका स्वामी था और उजाला होने तक वहीं पड़ी रही।
27) जब उसके स्वामी ने प्रातः काल घर का किवाड़ खोला और अपना रास्ता पकड़ने के लिए बाहर निकलने लगा, तब उसने अपनी उपपत्नी को देखा, जो अपने हाथों को घर की दहली पर रखे पड़ी थी।
28) उसने उस से कहा, ÷÷उठो, हम चलें;'' परंतु उसे कोई उत्तर न मिला। उसे अपने गधे पर लाद कर वह व्यक्ति चल दिया और अपने घर का रास्ता पकड़ा।
29) घर पर पहँुॅचते ही उसने चाकू से अपनी उपपत्नी के अंग काट कर बारह टुकडे+ किये और उन्हें इस्राएलियों के सारे प्रान्तों में भेज दिया।
30) जिन-जिन लोगों ने यह देखा, वे बोले, ÷÷जब से इस्राएली मिस्र से निकल कर आये हैं, तब से आज तक ऐसी कोई घटना कभी नहीं घटी। अब विचारो परामर्ष करों और बता दो कि हम क्या करें।

अध्याय 20

1) दान से बएर-षेबा तक के और गिलआद प्रान्त के सब इस्राएली एकमत हो कर मिस्पा में प्रभु के सामने एकत्रित हुए और उन्होंने वहॉँ एक सभा की।
2) समस्त राष्ट्र के नेता और इस्राएल के सभी वंष ईष्वर की प्रजा की इस सभा में सम्मिलित हुए। कुल चार लाख सषस्त्र पैदल सैनिक थे।
3) (बेनयामीनवंषियों को मालूम हुआ कि इस्राएली मिस्पा गये हैं।) इस्राएलियों ने पूछा, ÷÷हमें बताओ, वह कुकर्म कैसे हुआ''।
4) इस पर उस लेवीवंषी, वध की हुई उस स्त्री के पति ने उत्तर देते हुए कहा, ÷÷मैं अपनी उपपत्नी के साथ रात बिताने के लिए बेनयामीन के गिबआ में गया।
5) तब गिबआ के निवासी मेरे विरुद्ध एकत्रत हुए और उन्होंने उस घर को घेर लिया, जहाँॅ मैं था। वे मुझे मार डालने पर उतारू थे और उन्होंने मेरी उपपत्नी के साथ इस प्रकार बलात्कार किया कि वह मर गई।
6) इस पर मैंने अपनी उपपत्नी के टुकडे+-टुकड़े कर दिये और उन्हें देष भर में, जहाँ-जहॉँ इस्राएलियों के दायभाग हैं, भेज दिया; क्योंकि उन्होंने इस्राएल में एक घृणित कुकर्म किया था।
7) अब, सब इस्राएलियों! तुम विचार करों कि क्या करना चाहिए।''
8) तब सब लोग एकमत होकर उठे और बोले, ÷÷हम में कोई न तो अपने तम्बू में जाये और न अपने घर लौटे।
9) गिबआ के साथ हम यह करेंगे। हम चिट्ठी डाल कर निष्चित कर लेंगे कि हम में से कौन उस पर आक्रमण करेगा
10) हम इस्राएल के सब वंषो में से प्रति सौ मनुष्यों में से दस, प्रति हज+ार में सौ और प्रति दस हज+ार में एक हज+ार चुन लेंगे, जिससे वे सेना कि रसद का प्रबन्ध करें। उनके लौट आने पर हम बेनयामीन के गिबआ से उस कुकर्म का बदला चुकायेंगे, जो उन्होंने इस्राएल में किया है।''
11) इस प्रकार सारा इस्राएल एक मत होकर उस नगर के विरुद्ध एकत्रित हुआ।
12) इसके बाद इस्राएली वंषों ने दूतों को भेजकर बेनयामीन के सारे वंष को कहला भेजा, ÷÷तुम लोगों के बीच यह कैसा कुकर्म हुआ है?
13) अब उन आदमियों को, गिबआ के उन नीच आदमियों को हमारे हवाले करो। हम उन्हें मार डालेंगे और इस प्रकार हम इस्राएल से यह बुराई दूर कर देंगे।'' परन्तु बेनयामीनवंषियों ने अपने भाई बन्धु इस्राएलियों की बात नहीं मानी।
14) बेनयामीनवंषी इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए नगर- नगर से गिबआ में एकत्रित हुए।
15) उस समय दूसरे नगरों से आये हुए युद्ध करने योग्य बेनयामीनवंषियों की गणना हुई। उनकी संख्या छब्बीस हज+ार थी। उनके सिवा के गिबआ के निवासियों में सात सौ चुने हुए युद्धा थे।
16) उन सब युद्धओं में सात सौ खब्बे थे। वे गोफन से पत्थर फेंकने में इतने निपुण थे कि बाल को भी निशाना बनाने से नहीं चुकते थे।
17) इस्राएलियों की गणना की गयी, तो बेनयामीनवंषियों को छोड़ कर सशस्त्र योद्धाओं की संख्या चार लाख थी।
18) इस्राएली लोग ईष्वर से यह पूछने के लिए बेतेल गये कि, ÷÷हम में से कौन सब से पहले बेनयामीनवंषियों पर आक्रमण करे?'' प्रभु ने उत्तर दिया, ÷÷पहले यूदा जायेगा''।
19) सबेरे होते ही इस्राएली लोगों ने चल कर गिबआ के पास पड़ाव डाला।
20) इस्राएली बेनयामीनवंषियों से लड़ने के लिए निकल पडे+ और उन्होंने गिबआ के सामने एक व्यूह-रचना की।
21) बेनयामीनवंषियों ने गिबआ से निकल कर उस दिन इस्रालियों के बाईस हजार योद्धाओं को धराशाही कर दिया।
22) लेकिन इस्राएलियों ने साहस नहीं छोड़ा। उन्होंने पहले दिन जैसी व्यूह-रचना की थी, वैसी ही उसी स्थान पर फिर से व्यूह-रचना की।
23) इस्राएली प्रभु के सामने जाकर शाम तक विलाप करते रहे। उन्होंने प्रभु से पूछा, ÷÷क्या हम फिर बेनयामीनवंषियों, अपने भाई-बंधुओं से लड़ने जायें?'' प्रभु ने कहाँ, ÷÷हाँ, उनके विरुद्व लड़ने जाओ''।
24) इसलिए इस्राएलियों ने दूसरे दिन फिर बेनयामीनवंषियों पर चढ़ाई की।
25) उस दूसरे दिन भी बेनयामीनवंषियों ने गिबआ से निकल कर इस्राएलियों के अठारह हज+ार सशस्त्र योद्धाओं को धराशाही कर दिया।
26) इसके बाद इस्राएल भर के सारे लोग, सारी सेना बेतेल जा कर विलाप करने लगी। वहॉँ वे प्रभु के सामने बैठे रहे और उस दिन सॉँझ तक उन्होंने उपवास रखा। उन्होंने प्रभु के सामने होम- और शान्ति बलियाँ चढ़ायीं।
27) इस्राएली प्रभु से परामर्ष लेना चाहते थे। उन दिनों प्रभु के विधान की मंजूषा वहीं थी
28) और हारून का पौत्र, एलआज+ार का पुत्र पीनहास उसका सेवा-कार्य करता था।' उन्होंने पूछा, ÷÷हम फिर बेनयामीनवंषियों, अपने भाई-बन्धुओं से लड़ने जायें या नहीं?'' प्रभु ने कहा, ÷÷जाओं, कल मैं उन्हें तुम्हारे हाथ दे दूॅँगा''।
29) तब इस्राएलियों ने गिबआ के चारों ओर लोगों को घात में बैठा दिया।
30) तीसरे दिन इस्राएलियों ने बेनयामीनवंषियों के विरुद्व निकल कर गिबआ के सामने व्यूह-रचना की, जैसी उन्होंने पहले की थी।
31) बेनयामीनवंषी भी उन लोगों के विरुद्व लड़ने निकल पड़े, परन्तु ये उन्हें नगर से दूर खींचते गये। जैसे उन्होंने पहले किया था, वैसे ही अब भी बेतेल जाने वाले और गिबआ जाने वाले रास्तों पर और खुले मैदानों में इस्राएलियों के लगभग तीस पुरुषों को मार डाला।
32) बेनयामीनवंषियों ने सोचा कि पहले की ही तरह वे हम से पराजित हो गये हैं। इस्राएलियों ने कहा था कि हम उनके सामने से भाग कर उन्हें नगर के रास्तों की ओर खींच ले चलें।
33) इसलिए सब इस्राएली अपने स्थान से चल कर बाल-तामार के पास युद्व-व्यूह रचने लगे। इतने में गेबा के पष्चिम की ओर से अपने-अपने स्थानों पर घात में बैठे हुए इस्राएली निकल पड़े।
34) इस्राएल भर के इन चुने हुए दस हज+ार योद्धाओं ने गिबआ पर चढ़ाई कर दी। घमासान यु+द्ध हुआ। बेनयामीनवंषी समझ नहीं पाये कि उन पर घोर आपत्ति आने वाली है।
35) प्रभु ने इस्राएल के द्वारा बेनयामीनवंषियों को पराजित कर दिया। उस दिन इस्राएलियों ने बेनयामीन के पच्चीस हज+ार एक सौ सषस्त्र पुरुषों को मार डाला।
36) तब बेनयामीनवंषियों ने अनुभव किया कि वे पराजित हो गये हैं। इस्राएली बेनयामीन से पीछे हट गये, क्योंकि गिबआ के विरुद्ध घात में बैठे हुए लोगों पर उन्हें विष्वास था।
37) घात में बैठे हुए लोगों ने निकल कर सारे नगर को तलवार के घाट उतार दिया।
38) इस्राएलियों और घात में बैठे योद्धाओं के बीच यह संकेत निष्चित हुआ था कि वे जैसे ही नगर में धूएॅँ का बादल उड़ायें,
39) इस्राएली मुड़ कर आक्रमण कर बैठें। बेनयामीनवंषी इस्राएलियों के लगभग तीस लोगों को मार कर सोचने लगे थे कि जैसा पहले युद्ध में होता रहा है, निस्सन्देह वैसा ही अब भी होगा।
40) जब नगर से धूएॅँ का बादल संकेत के रूप में उठा, तब बेनयामीनवंषियों ने मुड़ कर पीछे दृष्टि डाली और देखा कि सारे नगर से धूऑंँ आकाष तक उठ रहा है।
41) इस पर इस्राएली मुड़े और तब बेनयामीनवंषियों पर आतंक छा गया; क्योंकि वे देख रहें थे कि अब उन पर घोर विपत्ति टूटने वाली है।
42) बेनयामीनवंषी इस्राएलियों को पीठ दिखा कर उजाड़खण्ड की ओर भाग निकले, लेकिन उन्हें युद्ध करना ही पड़ा। नगर से निकलने वाले लोग उनका वध करने लगे।
43) उन्होंने बेनयामीनवंष्यिों को घेर लिया और गिबआ के पूर्व तक उनका पीछा करते हुए उन्हें मार डाला।
44) बेनयामीन के अठारह हज+ार वीर योद्धा मारे गये।
45) वे भागते-भागते उजाड़खण्ड में रिम्मोन की चट्टान तक चले गये। उन में से पॉँच हजार रास्ते में मारे गये। उनका पीछा गिदओम तक किया गया और उन में से और दो हज+ार मारे गये।
46) उस दिन बेनयामीनवंषियों के कुुल मिला कर पच्चीस हज+ार सैनिकों का वध किया गया। वे सभी सषस्त्र वीर योद्धा थे।
47) छः सौ उजाड़खण्ड की ओर रिम्मोन की चट्टान पर भाग गये और रिम्मोन की चट्टान पर ही चार महीने रहे।
48) इस्राएली बेनयामीनवंषियों की ओर लौटे और उन्होंने उनके नगरों में रहने वाले मनुष्यों, पषुओं और जो कुछ उन्हें मिला, सब का वध कर डाला। इसके अतिरिक्त जो-जो नगर उन्हें मिले, उन्होंने उन में आग लगा दी।

अध्याय 21

1) इस्राएलियों ने मिस्पा में यह शपथ ली थी कि हम में कोई भी बेनयामीनवंषियों को अपनी कन्या नहीं देगा।
2) अब लोग बेतेल आये और वहीं शाम तक प्रभु के सामने बैठे रहे। वे ऊँॅचे स्वर से यह कहते हुए विलाप करते रहे,
3) ''प्रभु, इस्राएल के ईष्वर! यह क्या हुआ कि आज इस्राएल में एक वंष कम हो गया है?''
4) दूसरे दिन बडे+ सबेरे लोगों ने उठ कर वहाँॅ एक वेदी बनायी और होम-तथा शान्ति-बलियॉँ चढ़ायीं।
5) इस्राएलियों ने पूछा, ÷÷इस्राएलियों के सभी वंषों में प्रभु की सभा में कौन नहीं आया?'' क्योंकि उन्होनें महाषपथ ली थी कि जो मिस्पा में प्रभु के सामने नहीं आयेगा, उसे अवष्य मृत्युदण्ड मिलेगा।
6) अब इस्राएलियों में अपने भाई-बन्धु बेनयामीनवंषियों के प्रति दया उत्पन्न हुई और वे कहने लग, ÷÷इस्राएल में एक वंष कम हो गया है।
7) अब हम उन को, जो शेष बचे हैं, स्त्रियाँॅ कैसे दे सकेंगे? हमने तो प्रभु की यह शपथ ले ली है कि हम उनके साथ अपनी कन्याओं का विवाह नहीं करेंगे।
8) पूछताछ करने पर कि यहॉँ कोई ऐसा इस्राएली वंष है, जो मिस्पा में प्रभु के पास नहीं आया था, मालूम हुआ कि गिलआद के याबेष से सभा में, षिविर में कोई नहीं आया था।
9) लोगों की गणना करने पर मालूम हुआ कि गिलआद के याबेषवासियों में वहॉँ कोई उपस्थित नहीं था।
10) इस पर सभा ने अपने योद्धाओं में बारह हज+ार को वहॉँ भेज कर उन्हें यह आज्ञा दी, ÷÷जाओ और गिलआद के याबेष के निवासियों को-स्त्रियों और बच्चों को भी तलवार- के घाट उतारो।
11) तुम्हें ऐसा करना पडे+गा : प्रत्येक पुरुष का और प्रत्येक स्त्री का, जो कुवाँॅरी नहीं है, वध करो। कुवाँॅरियों को जीवित छोड़ दो।'' उन्होंने ऐसा ही किया।
12) उन्हें गिलआद के याबेष के निवासियों में चार सौ कुवाँॅरी कन्याएॅँ मिलीं, जिनका किसी पुरुष के साथ संसर्ग नहीं हुआ था। वे उन्हें कनान देष के षिलो के पास षिविर में ले आये।
13) इसके बाद सारी सभा ने उन बेनयामीनवंशियों को, जो रिम्मोन की चट्टान पर पड़े थे, सन्धि का सन्देष भेजा।
14) इसलिए उस समय बेनयामीनवंषी लौट आये और उन्हें वे कन्याएॅँ दी गयीं, जिन्हें उन्होंने गिलआद के याबेष की स्त्रियों में से जीवित छोड़ दिया था। लेकिन ये उनके लिए पर्याप्त नहीं थीं।
15) लोगों ने बेनयामीनवंषीयों पर दया की, क्योंकि प्रभु ने इस्राएली वंषों में दरार पैदा कर दी थी।
16) तब समुदाय के नेताओं ने कहा, ÷÷बेनयामीन की स्त्रियों का तो संहार कर दिया गया है। हम बचे हुए लोगों को स्त्रियाँ कहाँॅं से दें?''
17) उन्होंने कहा, ÷÷बचे हुए बेनयामीनवंषियों को सन्तति चाहिए, जिससे इस्राएल का एक वंष नहीं मिटे।
18) परन्तु हम उन्हें पत्नी के रूप में अपनी कन्याएॅँ नहीं दे सकते हैं।'' इस्राएलियों ने यह शपथ ली थी, ÷÷जो बेनयामीनवंषियों को पत्नी के रूप में अपनी कन्या को दे, वह अभिषप्त हो''।
19) इसलिए उन्होंने कहा, ÷÷देखों, प्रभु का वार्षिकोत्सव उस षिलों में मनाया जाता है, जो बेतेल के उत्तर में, बेतेल से सिखेम जाने वाली सड़क के पूर्व में और लेबोना के दक्षिण में स्थित है''।
20) तब उन्होंने बेनयामीनवंषियों को यह आदेष दिया, ÷÷तुम जा कर दाखबारियों में घात में बैठ जाओ।
21) तुम जब षिलो की पुत्रियों को नाचती हुई देखो, तो दाखबारियों से निकल कर प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए षिलो की कन्याओं में से एक-एक को पकड़ ले और बेनयामीन देष चला जाये।
22) जब उनके पिता या भाई षिकायत करने के लिए हमारे पास आयेंगे, तो हम उन से कहेंगे, ÷उन पर दया कीजिए। वे युद्ध के समय प्रत्येक के लिए एक-एक पत्नी नहीं ला सके। आपने तो उन्हें अपनी कन्याओं को नहीं दिया। इसलिए आपको कोई दोष नहीं लगा।
23) बेनयामीनवंषियों ने ऐसा ही किया प्रत्येक ने नाचने वाली कन्याओं में से एक को पकड़ लिया और उसे ले जा कर अपनी पत्नी बना लिया। इसके बाद वे अपने दायभाग की भूमि लौट गये और नगरों का पुनर्निर्माण कर वहाँॅं बसने लगे।
24) इस्राएली वहाँॅ से चले गये। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने भूभाग, अपने-अपने वंष और अपने-अपने कुल लौट गया।
25) उन दिनों इस्राएल में कोई राजा नहीं था। प्रत्येक व्यक्ति मनमानी करता था।