1) हमारा विषय वह शब्द है, जो आदि से विद्यमान था। हमने उसे ुसुना है। हमने उसे अपनी आंखों से देखा है। हमने उसका अवलोकन किया और अपने हाथों से उसका स्पर्श किया है। वह शब्द जीवन है |
2) और यह जीवन प्रकट किया गया है। यह शाश्वत जीवन, जो पिता के यहाँ था और हम पर प्रकट किया गया है- हमने इसे देखा है, हम इसके विषय में साक्ष्य देते ओर तुम्हें इसका सन्देश सुनाते हैं। |
3) हमने जो देखा और सुना है, वही हम तुम लोगों को भी बताते हैं, जिससे तुम हमारे साथ पिता और उस के पुत्र ईसा मसीह के जीवन के सहभागी बनो। |
4) हम तुम्हें यह लिख रहे हैं, जिससे हम सबों का आनन्द परिपूर्ण हो जाये। |
5) हमने जो सन्देश उन से सुना और तुम को भी सुनाते हैं, वह यह है- ईश्वर ज्योति है और उस में कोई अन्धकार नहीं! |
6) यदि हम कहते हैं कि हम उसके जीवन के सहभागी हैं, किन्तु अन्धकार में चल रहे हैं, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य के अनुसार आचरण नहीं करते। |
7) परन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं- जिस तरह वह स्वयं ज्योति में हैं- तो हम एक दूसरे के जीवन के सहभागी हैं और उसके पुत्र ईसा का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है। |
8) यदि हम कहते हैं कि हम निष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है। |
9) यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो वह हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अधर्म से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा सत्यप्रतिज्ञ है। |
10) यदि हम कहते हैं कि हमने पाप नहीं किया है, तो हम उसे झूठा सिद्ध करते हैं और उसका सत्य हम में नहीं है। |
1) बच्चो! मैं तुम लोगों को यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करता, तो पिता के पास हमारे एक सहायक विद्यमान हैं, अर्थात् धर्मात्मा ईसा मसीह। |
2) उन्होंने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी। |
3) यदि हम उनकी आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो उस से हमें पता चलेगा कि हम उन्हें जानते हैं। |
4) जो कहता है कि मैं उन्हें जानता हूँ, किन्तु उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता वह झूठा है और उस में सच्चाई नहीं है। |
5) परन्तु जो उनकी आज्ञाओं का पालन करता है, उस में ईश्वर का प्रेम परिपूर्णता तक पहुँचता है। |
6) जो कहता है कि मैं उन में निवास करता हूँ, उसे वैसा ही आचरण करना चाहिए, जैसा आचरण मसीह ने किया। |
7) प्रिय भाइयो! मैं तुम्हें कोई नयी आज्ञा नहीं लिख रहा हूँ। यह वही पुरानी आज्ञा है, जो प्रारम्भ से ही तुम्हें प्राप्त है। यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम सुन चुके हो। |
8) फिर भी मैं तुम्हें जो आज्ञा लिख रहा हूँ, वह नयी है। वह नयी इसीलिए है कि वह उन में चरितार्थ हुई और तुम में भी चरितार्थ हो रही है; क्योंकि अन्धकार हट रहा है और सत्य की ज्योति अब चमकने लगी है। |
9) जो कहता है कि मैं ज्योति में हूँ और अपने भाई से बैर करता है, वह अब तक अन्धकार में है। |
10) जो अपने भाई को प्यार करता है, वह ज्योति में निवास करता है और कोई कारण नहीं कि उसे ठोकर लगे। |
11) परन्तु जो अपने भाई से बैर करता है, वह अन्धकार में है और अन्धकार में चलता है। वह यह नहीं जानता कि वह कहाँ जा रहा है; क्योंकि अन्धकार ने उसे अन्धा बना दिया है। |
12) बच्चो! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि उनके नाम के कारण तुम्हारे पाप क्षमा किये गये हैं। |
13) पिताओ! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उसे जानते हो, जो आदिकाल से विद्यमान है। युवको! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुमने दुष्ट पर विजय पायी है। |
14) बच्चो! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पिता को जानते हो। पिताओं! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उसे जानते हो, जो आदि काल से विद्यमान है।युवको! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम शक्तिशाली हो। तुम में ईश्वर का वचन निवास करता है और तुमने दुष्ट पर विजय पायी है। |
15) तुम न तो संसार को प्यार करो और न संसार की वस्तुओं को। जो संसार को प्यार करता है, उस में पिता का प्रेम नहीं। |
16) संसार में जो शरीर की वासना, आंखों का लोभ और धन-सम्पत्ति का घमण्ड है वह सब पिता से नहीं बल्कि संसार से आता है। |
17) संसार और उसकी वासना समाप्त हो रही है; किन्तु जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वह युग-युगों तक बना रहता है। |
18) बच्चो! यह अन्तिम समय है। तुम लोगों ने सुना होगा कि एक मसीह-विरोधी का आना अनिवार्य है। अब तक अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हुए हैं। इस से हम जानते हैं कि अन्तिम समय आ गया है। |
19) वे मसीह-विरोधी हमारा साथ छोड़कर चले गये, किन्तु वे हमारे अपने नहीं थे। यदि वे हमारे अपने होते, तो वे हमारे ही साथ रहते। वे चले गये, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि उन में कोई भी हमारा अपना नहीं था। |
20) तुम लोगों को तो मसीह की ओर से पवित्र आत्मा मिला है और तुम सभी लोग सत्य जानते हो। |
21) मैं तुम लोगों को इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम सत्य नहीं जानते, बल्कि इसलिए कि तुम सत्य जानते हो और यह भी जानते हो कि हर झूठ सत्य का विरोधी है। |
22) झूठा कौन है? वह, जो ईसा को मसीह नहीं मानता। वही मसीह-विरोधी है। वह पिता और पुत्र, दोनों को अस्वीकार करता है। |
23) जो पुत्र को अस्वीकार करता है, उस में पिता का निवास नहीं है। जो पुत्र को स्वीकार करता है, उस में पिता का निवास है। |
24) जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, वह तुम में बनी रहे। जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, यदि वह तुम में बनी रहेगी, तो तुम भी पुत्र तथा पिता में बने रहोगे। |
25) मसीह ने हम से जो प्रतिज्ञा की, वह है- अनन्त जीवन। |
26) मैंने ये बातें तुम को उन लोगों के विषय में लिखीं हैं, जो तुम्हें भटकाना चाहते हैं। |
27) तुम लोगों को मसीह से जो पवित्र आत्मा मिला, वह तुम में विद्यमान रहता है; इसलिए तुम को किसी अन्य गुरु की आवश्यकता नहीं। वह तुम्हें सब कुछ सिखलाता है। उसकी शिक्षा सत्य है, असत्य नहीं। तुम उस शिक्षा के अनुसार मसीह में बने रहो। |
28) बच्चो! अब तुम उन में बने रहो, जिससे जब वह प्रकट हों, तो हमें पूरा भरोसा हो और उनके आगमन पर उन से अलग होने की निराशा न हो। |
29) यदि तुम जानते हो कि वह निष्पाप हैं, तो यह भी समझ लो कि जो धर्माचरण करता है, वह ईश्वर की सन्तान है। |
1) पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है। |
2) प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है। |
3) जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है। |
4) जो पाप करता है, वह ईश्वर की आज्ञा भंग करता है; क्योंकि पाप तो आज्ञा का उल्लंघन है। |
5) तुम जानते हो कि मसीह पाप हरने के लिए प्रकट हुए। उन में कोई पाप नहीं है। |
6) जो उन में निवास करता है, वह पाप नहीं करता। जो पाप करता है, उसने उन्हें नहीं देखा है और वह उन्ेहें नहीं जानता। |
7) बच्चो! कोई तुम्हें बहकाये नहीं। जो धर्माचरण करता है, वह उनकी तरह निष्पाप है। |
8) जो पाप करता है, वह शैतान की सन्तान है; क्योंकि शैतान प्रारम्भ से पाप करता आया है। ईश्वर का पुत्र इसलिए प्रकट हुआ कि वह शैतान के कार्य समाप्त कर दे। |
9) जो ईश्वर की सन्तान है, वह पाप नहीं करता; क्योंकि ईश्वर का जीवन-तत्व उस में क्रियाशील है। वह पाप नहीं कर सकता, क्योंकि वह ईश्वर से उत्पन्न हुआ है। |
10) ईश्वर की सन्तान और शैतान की सन्तान की पहचान यह है- जो धर्माचरण नहीं करता, वह इ्रश्वर की सन्तान नहीं है और वह भी नहीं, जो अपने भाई को प्यार नहीं करता। |
11) क्योंकि तुमने जो सन्देश प्रारम्भ से सुना है, वह यह है कि हमें एक दूसरे को प्यार करना चाहिए। |
12) हम काइन की तरह नहीं बनें। वह दुष्ट की सन्तान था और उसने अपने भाई की हत्या की। उसने उसकी हत्या क्यों की? क्योंकि उसके अपने कर्म बुरे थे और उसके भाई के कर्म अच्छे। |
13) भाइयो! यदि संसार तुम से बैर करे, तो इस पर आश्चर्य मत करो। |
14) हम जानते हैं कि हमने मृत्यु से निकल कर जीवन में प्रवेश किया है; क्योंकि हम अपने भाइयों को प्यार करते हैं। जो प्यार नहीं करता, वह मृत्यु में निवास करता है। |
15) जो अपने भाई से बैर करता है, वह हत्यारा है और तुम जानते हो कि किसी भी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं होता। |
16) हम प्रेम का मर्म इस से पहचान गये कि ईसा ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया और हमें भी अपने भाइयों के लिए अपना जीवन अर्पित करना चाहिए। |
17) किसी के पास दुनिया की धन-दौलत हो और वह अपने भाई को तंगहाली में देखकर उसपर दया न करे, तो उस में ईश्वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है? |
18) बच्चो! हम वचन से नहीं, कर्म से, मुख से नहीं, हृदय के एक दूसरे को प्प्यार करें। |
19) इसी से हम जान जायेंगे कि हम सत्य की सन्तान हैं और जब कभी हमारा अन्तः करण हम पर दोष लगायेगा, तो हम ईश्वर के सामने अपने को आश्वासन दे सकेंगे; |
20) क्योंकि ईश्वर हमारे अन्तःकरण से बड़ा हौ और वह सब कुछ जानता है। |
21) प्यारे भाइयो! यदि हमारा अन्तः करण हम पर दोष नहीं लगाता है, तो हम ईश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। |
22) हम उस से जो कुछ माँगेंगे, वह हमें वहीं प्रदान करेगा; क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को पालन करते हैं और वही करते हैं, जो उसे अच्छा लगता है। |
23) और उसकी आाज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र ईसा मसीह के नाम में विश्वास करें और एक दूसरे को प्यार करें, जैसा कि मसीह ने हमें आदेश दिया। |
24) जो ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में और हम जानते हैं कि वह हम में निवास करता है; क्योंकि उसने हम को आपना आत्मा प्रदान किया है। |
1) प्रिय भाइयो! प्रत्येक आत्मा पर विश्वास मत करो। आत्माओं की परीक्षा कर देखो कि वे ईश्वर के हैं या नहीं; क्योंकि बहुत-से झूठे नबी संसार में आये हैं। |
2) ईश्वर के आत्मा की पहचान इस में हैः प्रत्येक आत्मा जो यह स्वीकार करता है कि ईसा मसीह सचमुच मनुष्य बन गये हैं, ईश्वर का है |
3) और प्रत्येक आत्मा, जो इस प्रकार ईसा को स्वीकार नहीं करता; ईश्वर का नहीं है और वह ईश्वर-विरोधी है। तुमने सुना है कि वह संसार में आने वाला है और अब तो वह संसार में आ चुका है। |
4) बच्चो! तुम ईश्वर के हो और तुमने उन लोगों पर विजय पायी है; क्योंकि जो तुम में हैं, वह उस से महान् हैं, जो संसार में है। |
5) वे संसार के हैं और इसलिए वे संसार की बातें करते हैं और संसार उनकी सुनता है। |
6) किन्तु हम ईश्वर के हैं और जो ईश्वर को पहचानता है, वह हमारी सुनता है। जो ईश्वर का नहीं है, वह हमारी बात सुनना नहीं चाहता। हम इसके द्वारा सत्य के आत्मा और भ्रान्ति की आत्मा की पहचान कर सकते हैं। |
7) प्रिय भाइयो! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है। |
8) जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता; क्योेंकि ईश्वर प्रेम है। |
9) ईश्वर हम को प्यार करता है। यह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें। |
10) ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा। |
11) प्रयि भाइयो! यदि ईश्वर ने हम को इतना प्यार किया, तो हम को भी एक दूसरे को प्यार करना चाहिए। |
12) ईश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है। |
13) यदि वह इस प्रकार हमें अपना आत्मा प्रदान करता है, तो हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है। |
14) पिता ने अपने पुत्र को संसार के मुक्तिदाता के रूप में भेजा। हमने यह देखा है और हम इसका साक्ष्य देते हैं। |
15) जो यह स्वीकार करता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं, ईश्वर उस में निवास करता है और वह ईश्वर में। |
16) इस प्रकार हम अपने प्रति ईश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। ईश्वर प्रेम है और जो प्रेम में दृढ़ रहता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में। |
17) यदि हम पूरे भरोसे के साथ न्याय के दिन की प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि हम इस संसार में मसीह के अनुरूप आचरण करते हैं, तो हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त कर चुका है। |
18) प्रेम में भय नहीं होता। पूर्ण प्रेम भय दूर कर देता है, क्योंकि भय में दण्ड की आशंका रहती है और जो डरता है, उसका प्रेम पूर्णता तक नहीं पहुँचा है। |
19) हम प्यार करते हैं, क्योंकि उसने पहले हमें प्यार किया। |
20) यदि कोई यह कहता कि मैं ईश्वर को प्यार कता हूँ और वह अपने भाई से बैर करता, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता तो वह ईश्वर को, जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता। |
21) इसलिए हमें मसीह से यह आदेश मिला है कि जो ईश्वर को प्यार करता है, उसे अपने भाई को भी प्यार करना चाहिए। |
1) जो यह विश्वास करता है कि ईसा ही मसीह हैं, वह ईश्वर की सन्तान है और जो जन्मदाता को प्यार करता है, वह उसकी सन्तान को भी प्यार करता है। | ||
2) इसलिए यदि हम ईश्वर को प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हमें ईश्वर की सन्तान को भी प्यार करना चाहिए। | ||
3) ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना- यही ईश्वर का प्रेम है। उसकी आज्ञाएं भारी नहीं, | ||
4) क्योंकि ईश्वर की हर सन्तान संसार पर विजयी होती है। वह विजय, जो संसार को पराजित करती है, हमारा विश्वास ही है। | ||
5) संसार का विजयी कौन है? केवल वही, जो यह विश्वास करता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं। | ||
6) ईसा मसीह जल और रक्त से आये - न केवल जल से, बल्कि जल और रक्त से। आत्मा इसके विषय में साक्ष्य देता है, क्योंकि आत्मा सत्य है। | ||
7) इस प्रकार ये तीन साक्ष्य देते हैं- | ||
8) आत्मा, जल और रक्त और तीनों एक ही बात कहते हैं। | ||
9) हम मनुष्यों का साक्ष्य स्वीकार करते हैं, किन्तु ईश्वर का साक्ष्य निश्चय ही कहीं अधिक प्रामाणिक है। ईश्वर ने अपने पुत्र के विषय में साक्ष्य दिया है। | ||
10) जो ईश्वर के पुत्र में विश्वास करता है, उसके हृदय में ईश्वर का वह साक्ष्य विद्यमान है। जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता, वह उसे झूठा समझता है; क्योंकि वह पुत्र के विषय में ईश्वर का साक्ष्य स्वीकार नहीं करता | ||
11) और वह साक्ष्य यह है - ईश्वर ने अपने पुत्र द्वारा हमें अनन्त जीवन प्रदान किया है। | ||
12) जिसे पुत्र प्राप्त है, उसे वह जीवन प्राप्त है और जिसे पुत्र प्राप्त नहीं है, उसे वह जीवन प्राप्त नहीं। | ||
13) तुम सभी ईश्वर के पुत्र के नाम में विश्वास करते हो। मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ, जिससे तुम यह जानो कि तुम्हें अनन्त जीवन प्राप्त है। | ||
14) हमें ईश्वर पर यह भरोसा है कि यदि हम उसकी इच्छानुसार उस से कुछ भी मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है। | ||
15) यदि हम यह जानते हैं कि हम जो भी मांगे, वह हमारी सुनता है, तो हम यह भी जानते हैं कि हमने जो कुछ मांगा है, वह हमें मिल गया है। | ||
16) यदि कोई अपने भाई को ऐसा पाप करते देखता है, जो प्राणघातक न हो, तो वह उसके लिए प्रार्थना करे और ईश्वर उसका जीवन सुरक्षित रखेगा। यह उन लोगों पर लागू है, जिनका पाप प्राणघातक नहीं है; क्योंकि एक पाप ऐसा भी होता है जो प्राणघातक है। उसके विषय में मैं नहीं कहता कि प्रार्थना करनी चाहिए। | ||
17) हर अधर्म पाप है, किन्तु हर पाप प्राणघातक नहीं है। | ||
18) हम जानते हैं कि ईश्वर की सन्तान पाप नहीं करती। ईश्वर का पुत्र उसकी रक्षा करता है और वह दुष्ट के वंश में नहीं आती। | ||
19) हम जानते हैं कि ईश्वर के हैं, जबकि समस्त संसार दुष्ट के वश में है। | ||
20) हम जानते हैं कि ईश्वर का पुत्र आया है और उसने हमें सच्चे ईश्वर को पहचानने का विवेक दिया है। हम सच्चे ईश्वर में निवास करते हैं; क्योंकि हम उसके पुत्र ईसा मसीह में निवास करते हैं। यही सच्चा ईश्वर और अनन्त जीवन है। | ||
21) बच्चो! असत्य देवताओं से अपने को बचाये रखो। | ||
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of
Bhopal Archdiocese |