1) प्रभु के सेवक मूसा की मृत्यु के बाद प्रभु ने मूसा के सहायक नून के पुत्र योषुआ से कहा, |
2) ''मेरे सेवक मूसा की मृत्यु हो चुकी है अब तुम सब लोगों के साथ वहाँ से रवाना हो कर यर्दन पार करो और उस देष में प्रवेष करो जिस मै इस्राएलियों को दे रहा हँू। |
3) जिन जिन स्थानो पर तुम पैर रखोगे मैं उन्हें तुम्हें देता जाऊँगा जैसी कि मैने मूसा से प्रतिज्ञा की। |
4) उजाड़खण्ड़ और लेबानोन से ले कर महानदी फरात तक हितियों तक फैला हुआ है तुम्हारा देष होगा। |
5) जब तक तुम जीवित रहोगे कोई भी तुम्हारे सामने नहीं टिक पायेगा। जैसे मैं मूसा के साथ रहा वैसे ही तुम्हारे साथ भी रहँूगा। मैं तुम्हारी सहायता करता रहँूगा। तुम्हारा त्याग नहीं करूँगा। |
6) दृढ़ बने रहो और ढारस रखो; क्योंकि तुम उस देष पर इन लोगो का अधिकार कराओगे जिसे मैंने इनके पूर्वजो को देने की शपथ खायी थी। |
7) दृढ़ बने रहो और ढारस रखो। जो संहिता मेरे सेवक मूसा ने तुम को दी है उसका सावधानी से पूरा-पूरा पालन करो। उस से तुम न बायें भटको और न दाहिने। इस से तुम्हारा सर्वत्र कल्याण होगा। |
8) संहिता के इस ग्रन्थ की चरचा करते रहो। दिन-रात उसका मनन करो, जिससे उस में जो कुछ लिखा है तुम उसका सावधानी से पालन करो। इस तरह तुम उन्नति करते रहोगे और अपने सब कार्यों में सफलता प्राप्त करोगे। |
9) क्या मैनें तुम से यह नहीं कहा दृढ़ बनें रहो और ढारस रखो? तुम न डरोगे और न घबराओगे क्योंकि तुम जहाँ कहीं भी जाओगे प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे साथ होगा।'' |
10) तब योषुआ ने लोगों के अधिकारियों को यह आदेष दिया, |
11) षिविर में चारों ओर घूम कर लोगो से कहो कि वे रसद का प्रबन्ध करें, क्योंकि उन्हें तीन दिन के अन्दर उस देष को अपने अधिकार में करने के लिए यर्दन पार करना होगा जिसे प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हें विरासत के रूप में देने वाला है।'' |
12) रूबेन और गाद वंष तथा मनस्से के आधे वंष के लोगो से योषुआ ने यह कहा, |
13) ''प्रभु के सेवक मूसा द्वारा अपने को दिया हुआ यह आदेष याद रखो कि प्रभु तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें विश्राम करने के लिए यह देष दिया है। |
14) तुम्हारी पत्नियाँ, तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे पषु इस देष में ही रहें जिसे मूसा ने तुम्हें यर्दन के इस पार दिया है। किन्तु तुम्हारे सब योद्धा अस्त्र-षस्त्र के साथ तुम्हारे अन्य भाइयों के आगे-आगे पार चले और तब तक उनकी सहायता करते रहें, |
15) जब तक प्रभु उन्हें विश्राम करने का स्थान न दे जैसा कि उसने तुम्हारे लिए किया है और जब तक वे भी उस देष पर अधिकार न करें जिसे प्रभु उन्हें देने वाला है। इसके बाद तुम लौट कर अपने देष में रहो जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने तुम्हें यर्दन के पूर्व में दिया है।'' |
16) तब उन्होंने योषुआ को उत्तर दिया, ''आपने जो कुछ हम से कहा हम उसे पूरा करेंगे और आप जहाँ भी हमें भेजेंगे हम वहाँ जायेंगे। |
17) हम आपकी बात उसी प्रकार मानेंगे जिस प्रकार हमने मूसा की सारी बातें मानी है। प्रभु आपका ईष्वर आपके साथ वैसे ही बना रहे जैसे वह मूसा के साथ रहा। |
18) जो आपके विरुद्ध विद्रोह करेगा और आपके किसी भी आदेष का पालन नहीं करेगा उसे मृत्युदण्ड़ दिया जायेगा। आप दृढ़ बने रहे और ढारस रखें।'' |
1) नून के पुत्र योषुआ ने षिट्टीम से दो पुरुषों को गुप्तचर के रूप में भेजा और उन से कहा, ''जाओ और उस देष के विषय में विषेष कर येरीख़ो के विषय में जानकारी प्राप्त करो। वे चल पड़े। वे राहाब नामक एक वेष्या के घर पहँुचे और वहीं ठहरे। |
2) लोगो ने येरीख़ो के राजा से कहा, ''इस्राएलियों के कुछ पुरुष आज रात देष का भेद लेने यहाँ आये हैं''। |
3) इस पर येरीख़ो के राजा ने राहाब के पास कहला भेजा, ''उन पुरुषों को बाहर कर दो जो तुम्हारे यहाँ आ कर ठहरे है क्योंकि वे सारे देष का भेद लेने के लिए आये हैं''। |
4) परन्तु उस स्त्री ने दोनों पुरुषों को छिपा दिया और उत्तर भेजा, ''हाँ सच ही कई पुरुष मेरे यहाँ आये थे पर मैं नही जानती थी कि वे कहाँ से आये थे। |
5) अँधेरा होने पर जब नगर का फाटक बंद होने को था, उस समय वे चले गये। मैं नहीं कह सकती कि वे कहाँ चले गये। यदि आप शीघ्र ही उनका पीछा करेंगे, तो आप उन्हें पकड़ सकते हैं। |
6) उसने उन पुरुषो को छत पर ले जा कर अलसी के डंठलों में छिपा दिया, जिन्हें उसने छत पर रखा था। |
7) इस पर उन पुरुषों का पीछा यर्दन के घाट तक किया गया उनका पीछा करने वालो के जाते ही नगर का फाटक बंद कर दिया गया। |
8) वे पुरुष अभी सो भी न पाये थे कि राहाब उनके पास छत पर आयी और |
9) उन से बोली, ''मैं जानती हँू कि प्रभु ने तुम्हें यह देष दिया है। हम पर तुम लोगो का भय छा गया है और इस देष के सारे निवासी तुम्हारे कारण आतंकित है। |
10) हमने यह सुना है कि जब तुम लोग मिस्र से निकल आये थे तो प्रभु ने तुम्हारे लिए लाल समुद्र का जल सुखा दिया था और यह भी कि तुमने यर्दन के उस पार के अमोरियों के दोनों राजाओं, सीहोन और ओग, के साथ क्या किया। तुमने उनका पूर्ण संहार कर डाला। |
11) यह सुन कर हमारा कलेजा दहल उठा और तुम्हारे कारण सब का साहस टूट गया क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर ऊपर स्वर्ग और नीचे पृथ्वी सब का ईष्वर है। |
12) अब तुम मुझ से प्रभु की शपथ खा कर कहो कि जिस प्रकार मैंने तुम पर कृपा की है उसी प्रकार तुम भी मेरे पिता के परिवार पर कृपा करोंगे। इस से मुझे विष्वास होगा। |
13) कि तुम मेरे माता-पिता मेरे भाई-बहनों और उनके सारे संबंधियों को बचाओंगे और मृत्यु से हम लोगों की रक्षा करोगे।'' |
14) इस पर उन पुरुषों ने उसे उत्तर दिया, ''हमारे प्राण तुम्हारे प्राणों की रक्षा के जिम्मेवार होंगे, बषर्ते तुम हमारी बात प्रकट नहीं करो। जब प्रभु ने हमें यह देष दिया होगा, तो हम ईमानदारी से तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे। |
15) तब उसे उन्हें एक रस्सी के सहारे खिड़की से नीचे उतार दिया क्योंकि उसका घर नगर की चारदीवारी में बना हुआ था। |
16) उसने उन से कहा तुम लोग पहाड़ियों में जा छिपो जिससे पीछा करने वाले तुम्हें पकड़ नहीं पायें और जब तक पीछा करने वाले न लौटें तब तक तीन दिन वहीं छिपे रहो इसके बाद तुम आगे बढ़ सकते हो।'' |
17) उन पुरुषों ने उस से कहा, ''तुमने हमें जो शपथ खिलायी उसे हम इसी तरह पूरा करेंगे। |
18) जब हम इस देष में प्रवेष करेंगे तब तुम यह लाल रस्सी इस खिड़की पर लटका दोगी जिस से तुम हमें नीचे उतारने जा रही हो फिर तुम अपने माता-पिता अपने भाइयों ओर अपने पिता के परिवार के सब संबंधियों को अपने घर में एकत्रित कर लोगी। |
19) यदि कोई तुम्हारे घर के दरवाजों से बाहर निकलेगा तो वह स्वयं अपनी मृत्यु का जिम्मेवार होगा और हम निर्दोष होंगे। हाँ यदि कोई तुम्हारे साथ तुम्हारे घर में रहने वाले किसी व्यक्ति पर हाथ उठायेगा, तो उसकी मृत्यु का उत्तरदायित्व हम पर होगा। |
20) किन्तु यदि तुम हमारी यह बात प्रकट करोगी तो हम तुम से की गयी अपनी शपथ से मुक्त हो जायेंगे।'' |
21) उसने उत्तर दिया, ''जैसा तुम लोगों ने कहा है वैसा ही होगा''। इसके बाद उसने उन्हें विदा किया और वे चल पडे+ उसने वह लाल रस्सी खिड़की में बाँध दी। |
22) वे वहाँ से चल कर पहाड़ियों में पहुँचे। जब तक पीछा करने वाले वापस नहीं आये वे तीन दिन तक वहीं रूके रहें। पीछा करने वालों ने उन्हें सारे मार्ग के आसपास ढँूढा, परन्तु उन्हें नहीं पाया। |
23) इसके बाद वे दोनों व्यक्ति पहाड़ियों पर से उतर कर और नदी पार कर नून के पुत्र योषुआ के पास पहँुचे। उन्होंने उसे वहाँ का सारा हाल सुनाया। |
24) उन्होनें योषुआ से कहा, ''प्रभु सचमुच सारा देष हमारे हाथ दे रहा है उस देष के सब निवासी हम से भयभीत हो कर साहस खो चुके हैं''। |
1) योषुआ ने बडे+ सबेरे सब इस्राएलियों के साथ षिट्टीम से प्रस्थान कर दिया। वे यर्दन के पास आये और पार करने के पूर्व वहीं पडाव डाला। |
2) सचिवों ने तीसरे दिन सारे षिविर में घूमकर |
3) लोगों को यह आदेष दिया, ''जब तुम प्रभु अपने ईष्वर के विधान की मंजूषा को लेवीवंषी याजकों द्वारा ढोये जाते देखो तब अपना-अपना स्थान छोड़ कर उसके पीछे हो लो जिससे तुम्हें यह मालूम हो सके कि तुम्हें किस रास्ते पर चलना है क्योंकि तुम इस रास्ते पर पहले कभी नहीं आये। |
4) लेकिन तुम्हारे और उसके बीच दो हजार हाथ की दूरी होनी चाहिए। तुम उसके निकट नहीं जाओगे।'' |
5) योषुआ ने लोगो से कहा, ''अपने को पवित्र बनाये रखो क्योंकि कल प्रभु तुम्हारी आँखों के सामने चमत्कार करेगा''। |
6) योषुआ ने याजको से कहा, ''विधान की मंजूषा उठाकर लोगों के आगे-आगे चलो''। तब उन्होंने विधान की मंजूषा उठायी और वे लागों के आगे-आगे चल पडे+। |
7) प्रभु ने योषुआ से यह कहा, ''मैं आज से इस बात का ध्यान रखूँगा कि सभी इस्राएली तुम्हारा महत्व समझें और यह जान जायें कि जिस तरह मैं मूसा के साथ रहा उसी तरह तुम्हारे साथ भी रहूँगा। |
8) तुम विधान की मंजूषा ढोने वाले याजको को यह आदेष दोगे, 'जब तुम लोग यर्दन नदी के तट पर पहुँचो, तो नदी में ही खडे+ हो जाओ'।'' |
9) इसके बाद योषुआ ने इस्राएलियों से कहा, ''यहाँ आओ और अपने प्रभु ईष्वर का आदेष सुनों।'' |
10) योषुआ ने कहा, ''अब तुम जान जाओगे कि जीवन्त ईष्वर तुम्हारे बीच है और तुम लोगों के सामने से कनानियों को निष्चय ही भगा देगा। |
11) समस्त पृथ्वी के प्रभु के विधान की मंजूषा तुम लोगों से पहले यर्दन पार करेगी। |
12) बारह व्यक्तियों को चुन लो हर एक वंष से एक व्यक्ति को। |
13) ज्यों ही समस्त पृथ्वी के प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक यर्दन नदी के पानी में पैर रखेंगे त्यों ही ऊपर से बहने वाला पानी थम जायेगा और ठोस पुंज जैसा हो जायेगा।'' |
14) जब इस्राएली अपने तम्बू उखाड़ कर यर्दन पार करने निकले तो विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक उनके आगे-आगे चलें। |
15) ज्यों ही मंजूषा ढोने वाले याजकों ने यर्दन के पास जा कर पानी में पैर रखा- कटने के समय यर्दन का पानी उमड़ कर तट पर फैल जाता है - |
16) त्यों ही ऊपर से बहने वाला पानी थम गया और सारतान के निकटवर्ती आदाम नगर तक ठोस पुंज- जैसा बन गया। अराबा के समुद्र अर्थात लवण समुद्र की ओर उतरने वाला पानी बह निकला और इस प्रकार इस्राएली येरीख़ो के सामने पार उतरे। |
17) जब इस्राएली सूखे पाँव उस पार जा रहे थे तो प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक यर्दन के बीच के सूखे तल पर तब तक खडे+ रहे, जब तक सभी लोग यर्दन के उस पार नहीं पहुँचे। |
1) जब सारा जनसमूह यर्दन पार कर चुका, तब प्रभु ने योषुआ से कहा, |
2) ''लोगों में से बारह पुरुष चुन लो -प्रत्येक वंष से एक |
3) और उन्हें यह आज्ञा दो : यर्दन के मध्य से जहाँ याजकों के पाँव थे बारह पत्थर उठा कर अपने साथ ले जाओ और उन्हें उस स्थान पर रख दो जहाँ तुम आज रात ठहरोगे''। |
4) इस पर योषुआ ने उन बारह पुरुषों को बुला भेजा जिन्हें उसने इस्राएलियों के प्रत्येक वंष से चुना था। |
5) योषुआ ने उन से कहा, ''प्रभु अपने ईष्वर की मंजूषा के सामने यर्दन के बीच चले जाओ और इस्राएलियों के वंषो की संख्या के अनुसार तुम में से प्रत्येक एक-एक पत्थर अपने कन्धे पर उठा लाये। |
6) वह तुम्हारे लिए एक स्मारक बन जायेगा। जब कभी भविष्य में तुम्हारी सन्तान तुम से पूछेगी कि इन पत्थरों का अर्थ क्या है, |
7) तो तुम यह उत्तर दोगे 'जब प्रभु के विधान की मंजूषा यर्दन में उतरी तो यर्दन की जलधारा उसके सामने थम गयी - ये पत्थर इस्राएलियों के लिए इस घटना के चिरस्थायी स्मारक है।'' |
8) इस्राएलियों ने योषुआ की आज्ञा का पालन किया। जैसा कि प्रभु ने योषुआ को आदेष दिया उन्होंने इस्राएल के वंषो की संख्या के अनुसार यर्दन के बीच से बारह पत्थर उठाये। उन्होंने उन को अपने साथ षिविर ले जा कर वहीं रख दिया। |
9) और जिस स्थान पर विधान की मंजूषा ढोने वाले याजको ने पाँव रखे थे योषुआ ने वहाँ यर्दन के बीच में बारह पत्थर स्थापित किये। वे आज तक वहाँ विद्यमान है। |
10) जब तक वह सब कुछ पूरा नहीं हो पाया था जिसका प्रभु ने योषुआ द्वारा लोगों को आदेष दिया था और जो मूसा ने योषुआ से कहा था तब तक मंजूषा ढोने वाले याजक यर्दन के बीच खडे+ रहे। लोग जल्दी-जल्दी नदी पार करते गये। |
11) जब सब लोग पार कर चुके, तब दूसरे तट पर खडे+ लोगों के देखते याजकों ने मंजूषा के साथ नदी पार किया। |
12) जैसी मूसा ने उन्हें आज्ञा दी थी रूबेन, गाद और मनस्से के आधे कुल के सषस्त्र योद्धा इस्राएलियों के आगे-आगे चलते हुए पार उतरे। |
13) लगभग चालीस हजार सषस्त्र योद्धा प्रभु के सामने युद्ध के लिए येरीखो के मैदान की ओर आगे बढे+। |
14) उस दिन प्रभु ने योषुआ को समस्त इस्राएल की दृष्टि में इतना महान बनाया कि वे उसके जीवन भर उस पर इस प्रकार श्रद्धा रखते थे जिस प्रकार उन्होंने मूसा पर श्रद्धा रखी थी। |
15) (१५-१६) प्रभु ने योषुआ से कहा, ''विधान की मंजूषा ढोने वाले याजकों की आज्ञा दो कि वे यर्दन बाहर आयें''। |
17) इसलिए योषुआ ने याजकों को आज्ञा दी, ''यर्दन से बाहर आओ''। |
18) जैसे ही प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले याजक यर्दन के बीच से निकल कर बाहर आये और याजको के पाँव के तलवे तट पर पडे+ वैसे ही यर्दन का पानी फिर अपने स्थान पर आ गया और पहले की तरह सर्वत्र अपने तट के ऊपर तक बहने लगा। |
19) पहले महीने के दसवें दिन लोगों ने यर्दन से चलकर गिलगाल में पडाव डाला जो येरीख़ो की पूर्वी सीमा पर है। |
20) योषुआ ने गिलगाल में वे बारह पत्थर स्थापित किये जिन्हें वे यर्दन से निकाल कर ले गये थे। |
21) उसने इस्राएल के लोगों से कहा, ''जब कभी भविष्य मे तुम्हारी सन्तान अपने पिताओं से पूछेगी कि इन पत्थरों का क्या अर्थ है, |
22) तो अपने पुत्रो को इस प्रकार समझाओगे, 'इस्राएल ने यहीं सूखे पाँव यर्दन पार किया है। |
23) जब तक तुमने उसे पार नहीं किया तब तक प्रभु तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हारे लिए इस प्रकार यर्दन को सुखा दिया जिस प्रकार उसने लाल समुद्र को तब तक हमारे लिए सुखाया था जब तक हमने उसे पार नहीं किया था। |
24) उसने यह इसलिए किया कि पृथ्वी के समस्त राष्ट्र जान जाए कि प्रभु का सामर्थ्य कितना महान है और तुम सदा प्रभु अपने ईष्वर पर श्रद्धा रखो'।'' |
1) यर्दन के उस पार पष्चिम में रहने वाले अमोरियों के सब राजाओं और समुद्र के तट पर रहने वाले कनानियों ने सुना कि प्रभु ने इस्राएलियों के लिए तब तक यर्दन का जल सुखा दिया था जब तक उन्होंने यर्दन पार नहीं किया था। यह सुन कर उनका हृदय बैठ गया और उनमें इस्राएल का सामना करने का साहस नहीं गया। |
2) उस समय प्रभु ने योषुआ से कहा, ''चकमक पत्थरों के चाकू बनाओ और एक बार फिर इस्राएलियों का खतना करो''। |
3) तब योषुआ ने चकमक पत्थरों के चाकू बनाकर गिबआत हाअरालोत में इस्राएलियों का खतना किया। |
4) योषुआ द्वारा लोगों का खतना किये जाना का कारण यह था कि सैनिक सेवा के योग्य सब पुरुष, जो मिस्र से बाहर आये थे, निर्गमन के बाद उजाडखंड के मार्ग में मर गये थे। |
5) उन सब पुरुष का, जो मिस्र से बाहर आये थे; खतना हो चुका था किन्तु उन सबका खतना नहीं हुआ था, जो मिस्र से बाहर आने के बाद उजाडखंड के मार्ग में पैदा हुए थे। |
6) इस्राएली चालीस वर्ष तक उजाड़खंड में भटकते रहे और इस बीच उन सब पुरूषों की मृत्यु हो गई थी जो मिस्र से बाहर आते समय सैनिक सेवा के योग्य थे क्योंकि उन्होंने प्रभु के आदेष का पालन नहीं किया था। प्रभु ने शपथ खायी थी कि वह उन्हें वह देष देखने नहीं देगा, जिसके विषय में प्रभु ने उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया था कि वह उसे हमें दे देगा- एक जैसा देष जिसमें दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं। |
7) प्रभु ने उनके स्थान पर उनके पुत्रों को तैयार किया और योषुआ ने उनका खतना किया। वे बेख़तना थे क्योंकि उजाड़खंड के मार्ग में उनका खतना नहीं हुआ था |
8) जब लोगों का खतना हो गया तो वे अच्छे होने तक षिविर में ही पडे+ रहे। |
9) प्रभु ने योषुआ से कहा आज मैंने तुम लोगों पर से मिस्र का कलंक दूर किया इसलिए उस स्थान का नाम आज तक गिलगाल है। |
10) इस्राएलियों ने गिलगाल में पडाव डाला और वहाँ येरीखो के मैदान में, महीने के चौदहवें दिन शाम को पास्का पर्व मनाया। |
11) पास्का के दूसरे दिन ही उन्होंने उस देष की उपज की बेख़मीर और अनाज की भुनी हुई बालें खायीं। |
12) जिस दिन उन्होंने देष की उपज का अन्न पहले पहल खाया उसी दिन से मन्ना का गिरना बंद हो गया। मन्ना नहीं मिलने कारण इस्राएली उस समय से कनान देष की उपज का अन्न खाने लगे। |
13) जब योषुआ येरीखो के पास आया, उसने आँखे उठायीं और देखा की एक व्यक्ति हाथ में नगीं तलवार लिये सामने खड़ा है योषुआ ने उसके पास जाकर उससे पूछा तुम हमारे पक्ष के हो या शत्रु पक्ष के?'' |
14) उसने उत्तर दिया, ''नहीं, मैं प्रभु की सेना का सैनापति हँू। मैं अभी-अभी आया हूँ।'' यह सुनकर योषुआ ने मुँह के बल उसे दण्डवत किया और उससे पूछा, ''मेरे प्रभु की अपने सेवक के लिए क्या आज्ञा है?'' |
15) प्रभु की सेना के सेनापति ने योषुआ को उत्तर दिया, ''अपने पैरों से अपने जूते उतार लो क्योंकि तुम जिस स्थान पर खडे+ वह पवित्र है''। योषुआ ने ऐसा ही किया। |
1) इस्राएलियों के कारण येरीख़ो के फाटक मजबूती से बंद कर दिये गये थे। न कोई बाहर निकल सकता और न कोई भीतर आ सकता था। |
2) तब प्रभु ने योषुआ से कहा, ''देखो मैंने येरीख़ो उसके राजा और उसके योद्धाओं को तुम्हारे हाथ दे दिया है। |
3) तुम सब योद्धाओं के साथ एक बार नगर की परिक्रमा करोगे; तुम छः दिन ऐसा ही करोगे। |
4) सात याजक मंजूषा के आगे मेढे+ के सींग की सात तुरहियाँ लिये चलेंगे। सातवें दिन तुम सात बार नगर की परिक्रमा करोगे और उस समय याजक तुरहियाँ बजाते रहेंगे। |
5) जैसे ही मेढ़ों के सींगे लगातार बजाये जायें, जैसे ही तुरहियों की ज+ोरों की आवाज सुनाई दे वैसे ही सब लोग बड़े ज+ोरो से ललकारे। इस पर नगर की चारदिवारियाँ गिर पड़ेगी और लोग अपने अपने स्थान से सीधे ऊपर चढ़ कर नगर में प्रवेष करेंगे।'' |
6) इसलिए नून के पुत्र योषुआ ने याजकों को बुलाकर कहा, ''विधान की मंजूषा उठाओ और सात याजक प्रभु को मंजूषा के सामने मेढे+ के सींग की सात तुरहियाँ लेकर चलें''। |
7) उसने लोगों से कहा, ''आगे बढो+ और नगर की परिक्रमा करो।'' |
8) जैसा योषुआ ने लोगों से कहा, सात याजक प्रभु के सामने मेढ़े के सींग की सात तुरहियाँ लेकर तुरहियाँ बजाते हुए आगे बढे+। उनके पीछे प्रभु के विधान की मंजूषा आती थी। |
9) हरावल तुरहियाँ बजाने वाले याजकों के आगे चल रहा था और चंदावल मंजूषा के पीछे आ रहा था। उस समय तुरहियाँ लगातार बजाई जा रही थीं। |
10) योशुआ ने लोगों को आज्ञा दी, ''तुम तब तक नहीं ललकारो, तुम्हारी आवाज+ जरा भी सुनाई न दे, तुम्हारे मुँह से एक शब्द भी न निकले, जब तक मैं ललकारने का आदेष न दँू। तभी ललकारोगे।'' |
11) उसने प्रभु की मंजूषा की परिक्रमा एक बार नगर के चारों ओर कराई। इसके बाद लोग षिविर में लौट आये और उन्होंने वहाँ रात बिताई। |
12) योषुआ बडे+ सबेरे जागा और याजकों ने प्रभु की मंजूषा उठायी। |
13) वे सात याजक लगातार तुरहियाँ बजाते रहे जो प्रभु की मंजूषा के आगे मेढ़े की सींग की तुरहियाँ लिये चलते थे। हरावल उनके आगे चलता था। चंदावल मंजूषा के पीछे आता था। उस समय तुरहियाँ लगातार बजायी जा रही थी। |
14) इस प्रकार उन्होंने दूसरे दिन फिर एक बार नगर की परिक्रमा की। इसके बाद वे षिविर में लौट आये। उन्होंने छः दिन तक ऐसा ही किया। |
15) वे सातवें दिन पौ फटते ही जागे और उन्होंने जैसा अब तक किया था, वैसा ही सात बार नगर की परिक्रमा की। किन्तु उन्होंने उसी दिन नगर की सात बार परिक्रमा की। |
16) जब याजकों ने सातवीं बार तुरहियाँ बजायी तो योषुआ ने लोगों से कहा, ''ललकारो, प्रभु ने तुमको यह नगर दे दिया है! |
17) प्रभु के नाम पर यह नगर और जो कुछ इसमें है सब नष्ट कर दिये जाये। केवल वेष्या राहाब और उसके साथ वे जो उसके घर में है इसलिए जीवित छोड़ दिये जायें कि उसने हमारे द्वारा भेजे हुए गुप्तचरों को छिपा रखा था। |
18) जिन चीज+ों का नाष करना है उनमें तुम कुछ नहीं लोगे। कहीं ऐसा न हो कि यहाँ यह करने पर तुम इस्राएल के षिविर को विनाष और विपत्ति का षिकार बनाओ। |
19) चाँदी, सोना तथा काँसे और लोहे के सब समान प्रभु को अर्पित है। उन्हें प्रभु के भण्डार में रख दिया जायेगा।'' |
20) तब लोगों ने ललकारा और तुरहियाँ बजायी जाने लगी। जैसे ही लोगो ने तुरहियों की आवाज+ सुनी, वे ज+ोर से ललकारने लगे और दीवार गिर पड़ी। इस पर लोग जहाँ-जहाँ थे, वहाँ से सीधे आगे बढ़कर नगर के अंदर घुस गये। इस प्रकार उन्होंने नगर पर विजय पायी। |
21) उन्होंने प्रभु के नाम पर नगर के साथ सब प्राणियों को- पुरुषों, स्त्रियों, बूढ़ां,े गाय-बैलों, भेड़ों और गधों को - तलवार के घाट उतारा। |
22) योषुआ ने देष का भेद लेने वाले उन दोनों पुरुषों को आज्ञा दी, ''वेष्या के घर जाओ और जैसा तुमने उसे शपथपूर्वक वचन दिया था वहाँ से उस स्त्री और उसके सब स्वजनों को वहाँ से ले आओ।'' |
23) इस पर वे गुप्तचर जाकर राहाब, उसके माता-पिता और उसके भाइयों और उसके स्वजनों को बाहर ले आये। वे उसके सब संबंधियों को ले आये। उन्होंने उनके इस्राएल के षिविर के बाहर रहने को स्थान दिया। |
24) नगर और जो कुछ उसमें था, वह सब जला दिया गया। केवल चाँदी, सोना, काँसे और लोहे के सामान प्रभु के भण्डार में रख दिये गये। |
25) योषुआ ने वेष्या राहाब, उसके पिता के परिवार और उसके सब संबंधियों को जीवित छोड़ दिया। वे आज भी इस्राएल में निवास करते हैं, क्योंकि राहाब ने योषुआ द्वारा भेजे हुए येरीख़ो का भेद लेने वाले गुप्तचरो को छुपा रखा था। |
26) उस समय योषुआ ने यह शपथ खायी। उसने कहा, ''जो इस येरीख़ो नगर का पुनर्निर्माण करने का साहस करेगा, वह प्रभु की दृष्टि में अभिषप्त होगा। वह अपने पहलौठे के जीवन की कीमत पर उसकी नींव डालेगा और अपने कनिष्ठ पुत्र के जीवन की कीमत पर उस में फाटक लगाएगा। |
27) प्रभु योषुआ के साथ था। उसकी कीर्ति देष भर में फैलती गयी। |
1) इस्राएलियों ने प्रभु को अर्पित वस्तुओं के विषय में पाप किया। यूदावंषी आकान ने, जिसके पुरखे करमी जब्दी और जेरह थे, उन वस्तुओं में से अपने लिए कुछ ले लिया। इसलिए प्रभु की क्रोधाग्नि इस्राएलियों के विरुद्ध भड़क उठी। |
2) योषुआ ने येरीखो से कई पुरुषों को बेत आवेन के निकट अय जो बेतेल के पूर्व में स्थित है, यह कहते हुए भेजा कि वहाँ जा कर उस प्रान्त का भेद लो। तब उन पुरुषों जाकर अय का भेद लिया। |
3) योषुआ के पास लौट कर उन्होंने उस से कहा, ''वहाँ सारी सेना भेजने की जरूरत नहीं है। दो या तीन हजार आदमी जायें और अय पर आक्रमण करेंंंंंंं। उन लोगो की संख्या अधिक नहीं है इसलिए वहाँ सब लोगों को जाने का कष्ट न दें।'' |
4) अतः लोगों में लगभग तीन हजार पुरुष वहाँ गये, परन्तु अय के लोगों के सामने उन्हें पीठ दिखानी पड़ी। |
5) अय के लोगों ने उन में लगभग छत्तीस को मार डाला और नगर के फाटक के सामने से शबारीम तक उनका पीछा किया और ढलान पर उन्हें मार डाला। लोगों का हृदय दहल उठा और उनका साहस टूट गया। |
6) योषुआ ने अपने वस्त्र फाड़े और वह तथा इस्राएल के नेता शाम तक प्रभु की मंजूषा के सामने मुँह के बल पड़े रहे। उन्होंने अपने-अपने सिर पर राख डाली। |
7) योषुआ ने प्रार्थना की, ''हाय! प्रभु! मेरे स्वामी! तूने क्यों इस प्रजा को यर्दन पार करने दिया? क्या तू हमें अमोरियों के हवाले कर हमारा सर्वनाष करना चाहता है? इस से तो यही अच्छा होता कि हम यर्दन के उस पार ही रह गये होते। |
8) स्वामी! मैं अब क्या कहूँ? इस्राएल ने अपने शत्रुओं को पीठ दिखायी। |
9) कनानी और इस देष के सब निवासी यह सुन कर हम पर टूट पड़ेगे और पृथ्वी पर से हमारा नाम मिटा देंगे। तब तू अपने महान नाम के लिए क्या करेगा?'' |
10) प्रभु ने योषुआ से कहा, ''उठो तुम मुँह के बल क्यों पड़े हुए हो? |
11) इस्राएल ने पाप किया है। उसने मुझे अर्पित वस्तुएँ ले कर अपने को दी हुई मेरी आज्ञा भंग की। उसने चोरी की और चोरी का माल अपने सामान में छिपा लिया। |
12) इस्राएली अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर कर पायेंगे। उन्हें अपने शत्रुओं के सामने से इसीलिए भागना पड़ेगा कि वे स्वयं नष्ट हो जायेंगे। मैं तुम लोगों के साथ तब तक नहीं रहूँगा जब तक तुम अपने बीच से मुझे अर्पित वस्तुएँ नष्ट नहीं करोगे। |
13) उठो लोगो को पवित्र हो जाने का आदेष दो और उन से कहो, 'कल के लिए अपने को पवित्र करो; क्योंकि प्रभु इस्राएल का ईष्वर यह कहता है -इसाएल! मुझे अर्पित वस्तुएँ तुम्हारे पास है। जब तक तुम उन्हें नहीं हटा दोगे तब तक अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे। |
14) इसलिए कल सबेरे अपने-अपने वंष के क्रम के अनुसार उपस्थित हो जाओ। प्रभु द्वारा निर्दिष्ट वंष अपने कुलों के क्रम से सामने आयेगा; प्रभु द्वारा निर्दिष्ट घराने के पुरुष एक-एक कर सामने आयेंगे। |
15) जिसके पास प्रभु को अर्पित वस्तुएँ मिलेंगी, उसे और उसका सब कुछ आग में जलाया जायेगा; क्योंकि उसने प्रभु की आज्ञा भंग कर इस्राएल में अषोभनीय कार्य किया है'।'' |
16) दूसरे दिन बड़े सबेरे योषुआ ने इस्राएलियों को वंषो के क्रम से अपने पास बुलाया। यूदा वंष का निर्देष किया गया। |
17) इसके बाद उसने यूदा के कुलों को पास बुलाया, तो जेरह कुल का निर्देष किया गया। फिर उसने जेरह कुल के घरानों को एक-एक कर अपने पास बुलाया और जब्दी का निर्देष किया गया। |
18) फिर उसने उस घराने के पुरुषों को एक-एक कर अपने पास बुलाया और आकान का निर्देष किया गया। उसके पुरूखे यूदा वंष के करमी जब्दी और जेरह थे। |
19) तब योषुआ ने आकान से कहा, ''बेटा! प्रभु इस्राएल के ईष्वर की महिमा और स्तुतिगान करो। मुझ से सच-सच कहो कि तुमने क्या किया है। मुझ से कुछ नहीं छिपाओ।'' |
20) आकान ने योषुआ को उत्तर दिया, ''मैंने सचमुच प्रभु, इस्राएल के ईष्वर के विरुद्ध अपराध किया है। मैंने यह किया था : |
21) मैंने लूट के माल में षिनआर देष का एक सुन्दर वस्त्र, दो सौ चाँदी शेकेल और पचास शेकेल की सोने की ईंट देखी। मेरे मन में लालच उत्पन्न हुआ और मैंने उन्हें रख लिया। वे मेरे तम्बू के भीतर जमीन में गड़े है। चाँदी सब से नीचे है।'' |
22) इस पर योषुआ ने दूतों को भेजा। वे दौड़ते हुए तम्बू पहुँचे और वे वस्तुएँ सचमुच तम्बू के नीचे गड़ी पायी गयी। |
23) चाँदी सब के नीचे थी। उन्होनें उन वस्तुओं को तम्बू से निकाल कर योषुआ और सभी इस्राएलियों के पास ला कर प्रभु के सामने रख दिया। |
24) इसके बाद योषुआ सभी इस्राएलियों के साथ जे+रह के पुत्र आकान को लेकर और चाँदी, वस्त्र और सोने की इर्ंट, उसके पुत्र, पुत्रियाँ, उसकी गायें, गधे, भेड़ें, उसका तम्बू और उसका अन्य सब कुछ लेकर आकोर की घाटी में पहुँचा। |
25) योषुआ ने कहा, ''तुमने हमें विपत्ति का षिकार क्यों बनाया? प्रभु आज तुम पर विपत्ति डाले।'' तब सब इस्राएलियों ने पत्थर फेंक-फेंक कर उन्हें मार डाला। पत्थरों से मार डालने के बाद उन्होंने उन को आग में जला दिया। |
26) फिर उसके ऊपर उन्होंने पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया, जो आज तक वहाँ पड़ा है। तब प्रभु का महाकोप शान्त हुआ। इसलिए आज तक वह स्थान आकोर की घाटी कहलाता है। |
1) इसके बाद प्रभु ने योषुआ से कहा ''तुम मत डरो और नहीं घबराओं। सब योद्धाओं को साथ लेकर अय पर आक्रमण करो। देखो, मैंने अय के राजा को, उसकी प्रजा उसके नगर और उसके देष को तुम्हारे हाथ दिया है। |
2) अय और उसके राजा के साथ वैसा ही व्यवहार करो, जैसा तुमने येरीख़ो और उसके राजा के साथ किया। हाँ, तुम वहाँ की लूट का माल और वहाँ के पशु अपने लिए ले सकते हो। तुम नगर के पीछे घात लगाओ।'' |
3) योषुआ उठा और उसने सब सैनिकों को साथ ले कर अय की ओर कूच किया। योषुआ ने तीस हजार वीर योद्धाओं को चुना और उन्हें रात में वहाँ भेज दिया। |
4) उसने उन्हें यह आदेष दिया, ''ध्यान से सुनो। तुम नगर के पीछे घात लगा कर बैठो। नगर से बहुत दूर नहीं रहो। तैयार रहो। |
5) इधर मैं और मेरे साथ के सब लोग नगर की ओर प्रस्थान करेंगे। जब वे लोग पहले की तरह हम पर टूट पड़ेगे तो हम उनके सामने से पीछे हटने लगेंगे। |
6) इस पर वे हमारा पीछा करेंगे। हम उन्हें नगर के बाहर दूर तक खींच ले आयेंगे। जब हम उनके सामने से पीछे हट जायेंगे तो वे सोचने लगेंगे कि हम पहले की ही तरह उनके सामने से भाग रहे हैं। |
7) तब तुम अपने छिपने के स्थान से निकल कर नगर पर अधिकार कर लोगे क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर उसे तुम्हारे हाथ दे देगा। |
8) तुम नगर को अपने अधिकार में कर लेने के बाद उस में आग लगा दोगे, जैसी की प्रभु ने आज्ञा दी है। यह तुम्हारे लिए मेरा आदेष है।'' |
9) यह कह कर योषुआ ने उन्हें भेज दिया। वे घात लगा कर अय के पष्चिम में बेतेल और अय के बीच छिप गये। योषुआ रात में लोगों के साथ रहा। |
10) योषुआ बड़े सबेरे उठा। उसने सैनिकों का निरीक्षण किया और इस्राएल के नेताओं के साथ उनके आगे चलते हुए अय की ओर प्रस्थान किया। |
11) वह सब योद्धाओं के साथ नगर के पास पहुँचा और अय के उत्तर में पड़ाव डाला। उनके और अय के बीच खड्ड था। |
12) उसने लगभग पाँच हजार आदमियों को बेतेल और अय के बीच नगर की पष्चिमी दिषा में घात में बैठा दिया। |
13) उन्होंने सेना को इस प्रकार सज्जित किया : मुख्य सेना नगर के उत्तर में थी और सेना का शेष भाग नगर के पष्चिम में : परन्तु योषुआ ने वह रात घाटी में ही बितायी। |
14) अय के राजा ने जब यह देखा, तब वह उसके सब सैनिको और नगर के लोग शीघ्र ही इस्राएल के विरुद्ध लड़ने को अराबा की ओर उतार तक बढ़ आये; क्योंकि उसे पता नहीं था कि उसके विरुद्ध नगर के पीछे से घात लगायी गयी है। |
15) योषुआ और सब इस्राएली उनके सामने से हट गये और उजाड़खण्ड़ की ओर भाग निकले। |
16) तब नगर में मौजूद सब लोगों से उनका पीछा करने को कहा गया। वे योषुआ का पीछा करते-करते नगर से दूर निकल आये। |
17) अय या बेतेल में कोई ऐसा आदमी नहीं रहा जो इस्राएलियों का पीछा करने न गया हों। वे नगर को अरक्षित छोड़ कर इस्राएलियों का पीछा करते गये। |
18) तब प्रभु ने योषुआ से कहा, ''अपने हाथ का भाला अय की ओर करो। मैं अय को तुम्हारे हाथ कर दूँगा।'' योषुआ ने अपने हाथ का भाला नगर की ओर किया। |
19) योषुआ ने ज्यों ही अपना हाथ उठाया घात में बैठे हुए लोग अपने स्थान से निकल पड़े और दौड़ते हुए आगे बढ़े। उन्होंने उस में प्रवेष कर उसे अपने अधिकार में ले लिया और शीघ्र ही उस में आग लगा दी। |
20) अय के योद्धाओं ने पीछे की ओर दृष्टि की, तो क्या देखते हैं कि नगर से धुआँ आकाष तक ऊँचा उठ रहा है। अब वे न इधर भाग सकते थे न उधर; क्योंकि उजाड़खण्ड़ की ओर भागने वाली इस्राएलियों की सेना मुड़ कर अपना पीछा करने वालों का सामना करने लगी; |
21) क्योंकि जब योषुआ और सब इस्राएलियों ने देखा कि घात में बैठने वालों ने नगर पर अधिकार कर लिया है और नगर से धुआँ निकल रहा है तो वे मुड़े और उन्होंने अय के लोगो पर आक्रमण किया। |
22) उधर भी नगर से बाहर आकर दूसरे सैनिक उन से लड़ने आये। इस प्रकार वे दोनों ओर से इस्राएलियों से घिर गये। इस्राएलियों ने सब को मार डाला, न कोई जीवित रहा और न कोई भाग सका। |
23) पर उन्होंने अय के राजा को जीवित पकड़ लिया और उसे योषुआ के पास ले गये। |
24) जब इस्राएलियों ने निर्जन स्थान के खुले मैदान में जहाँ उन्होंने उनका पीछा किया था, अय के सब योद्धाओं को मार डाला और जब सभी उनकी तलवार की भेंट चढ़ गये, तब सब इस्राएली अय में घुसे और उसके सब निवासियों को तलवार के घाट उतार दिया। |
25) उस दिन बारह हजार पुरुष और स्त्री अय के सब निवासी मार डाले गये। |
26) जब तक अय के निवासियों का पूर्ण संहार नहीं हो गया तब तक योषुआ ने अपने हाथ में उठाया हुआ भाला नहीं झुकाया। |
27) इस्राएलियों ने प्रभु द्वारा योषुआ को दी गयी आज्ञा के अनुसार केवल पशुओं और उस नगर की लूट अपने पास रख ली। |
28) योषुआ ने अय को जला कर सदा के लिए खँडहरों का ढेर बना दिया। वह आज तक वैसी स्थिति में है। |
29) अय का राजा शाम तक वृक्ष पर लटका दिया गया। सूर्यास्त के बाद योषुआ ने आदेष दिया कि उसका शव वृक्ष से उतारा और नगर के फाटक के पास फेंक दिया जाये। लोगों ने उसके ऊपर पत्थरों का बड़ा ढेर लगा दिया, जो आज तक वहाँ विद्यमान है। |
30) इसके बाद योषुआ ने एबाल पर्वत पर प्रभु, इस्राएल के ईष्वर के लिए एक वेदी बनायी। |
31) ऐसा करने की आज्ञा प्रभु के सेवक मूसा ने इस्राएलियों को दी थी। जैसा मूसा कि संहिता के ग्रन्थ में लिखा है, उन्होंने ऐसे पत्थरों से, जिन पर छेनी नहीं चलायी गयी थी, एक वेदी बनायी और उस पर प्रभु को होम-बलियाँ तथा शान्ति-बलियाँ चढ़ायीं। |
32) इसके बाद उसने वहाँ के पत्थरो पर इस्राएलियों के सामने मूसा द्वारा लिखित संहिता की प्रतिलिपि अंकित की। |
33) सारा इस्राएल- प्रवासी, स्वेदषी, नेता, सचिव और न्यायाधीष - प्रभु के विधान की मंजूषा के दोनों ओर और मंजूषा ढोने वाले लेवीवंषी याजकों के सामने खड़े थे। लोगों का आधा भाग गरिज्+ज+ीम पर्वत के सामने था और आधा भाग एबाल पर्वत के सामने, ठीक वैसे ही, जैसी प्रभु के सेवक मूसा ने इस्राएलियों को पहले आषीर्वाद देने की विधि बतायी थी। |
34) इसके बाद उसने संपूर्ण संहिता के शब्द-आषीर्वाद और अभिषाप - ठीक उसी रूप में पढ़ सुनायी जिस रूप में वे संहिता के ग्रन्थ में लिख हुए हैं |
35) मूसा द्वारा बतायी गयी सब बातों में एक भी बात ऐसी नहीं थी जिसे योषुआ ने सारे इस्राएली समुदाय स्त्रियों बच्चों और उनके साथ रहने वाले प्रवासियों के सामने न पढ़ा हो। |
1) यर्दन के इस पार पहाड़ी प्रान्त में और लेबानोन तक महासमुद्र से पूरे तट पर निचले प्रदेष में रहने वाले सब राजाओं ने जो हित्ती, अमोरी, कनानी, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी थे, इस्राएलियों की विजय के विषय में सुना |
2) और वे योषुआ और इस्राएल से युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए। |
3) जब गिबओन के निवासियों ने वह सब सुना जो योषुआ ने येरीख़ो और अय के साथ किया था, |
4) तो उन्होंने छल-कपट करने का निष्चय किया। उन्होंने कुछ प्रतिनिधियों को भेजा जिनके गधो पर भोजन के पुराने बोरे और अंगूरी की मरम्मत की हुई मषकें लदी थी। |
5) उन्होंने अपने पैरो में पैबन्द लगे जूते और शरीर पर फटे पुराने कपडे+ पहन लिये। उनके रसद की रोटियाँ सूखी और फफूँददार थीं। |
6) वे इस देष में गिलगाल के षिविर में योषुआ के पास आये। वे उस से और इस्राएली लोगों से कहने लगे, ''हम दूर देष से आ रहे हैं इसलिए हमारे साथ सन्धि कीजिए''। |
7) लेकिन इस्राएलियों ने उन हिव्वियों को उत्तर दिया, ''सम्भव है तुम्हारा निवास स्थान हमारे आसपास ही कहीं हो, तो हम तुम्हारे साथ कैसे सन्धि कर सकते हैं?'' |
8) किन्तु जब उन्होंने योषुआ से कहा, ''हम आपके दास है'' तो योषुआ ने उन से पूछा, ''सच बताओ तुम कौन हो और कहाँ से आये हो।'' |
9) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ''हम आपके दास प्रभु, आपके ईष्वर का नाम सुन कर एक सुदूर देष से आये हैैं। हमने उसके विषय में और मिस्र में उसके किये सब कार्यो के विषय में सुना है। |
10) हमने यह भी सुना है कि उसने हेषबाने के राजा सीहोन और अष्तारोत में रहने वाले बाषान के राजा ओग, यर्दन के उस पार रहने वाले उन दोनों अमोरी राजाओं के साथ क्या किया है। |
11) यह सुन कर हमारे नेताओं और हमारे देष के सब निवासियों ने हमसे कहा, 'रास्ते के लिए रसद तैयार कर उन से मिलने जाओ और उन से कहो कि हम आप लोगों के दास है। आप लोग हमारे साथ सन्धि कर लें।' |
12) ये हैं हमारी रोटियाँ। जब हम अपने रास्ते के लिए अपने घरों से इन्हें ले कर आप से मिलने निकले थे तब ये गर्म थी और अब देखिए ये कितनी सूखी और फफूँददार हो गयी हैं। |
13) ये हैं हमारी अंगूरी की मषकें जब हमने इन्हें भरा था तब ये नयी थी और अब देखिए ये फट गयी है और ये हैं ंहमारे जूते और वस्त्र जो लम्बा मार्ग तय करने के कारण एकदम जर्जर हो गये हैं।'' |
14) इस पर लोगों ने उनके रसद की रोटियाँ चखी और प्रभु से पूछे बिना ही |
15) योषुआ ने उन से संधि कर ली। समझौता हुआ कि उन्हें जीवित रहने दिया जाये। समुदाय के नेताओं ने इस बात को शपथ खा कर स्वीकार किया। |
16) उनके साथ की हुई संधि के तीन दिन बाद इस्राएलियों को मालूम हुआ कि वे उनके पड़ोसी हैं। बिलकुल पास के रहने वाले। |
17) इस पर इस्राएली प्रस्थान कर तीसरे दिन उनके नगरों में पहुँचे। गिबओन कफीरा बएरोत और किर्यत-यआरीम उनके नगर थे। |
18) परन्तु इस्राएलियों ने उन पर इसलिए आक्रमण नहीं किया कि समुदाय के नेताओं ने प्रभु इस्राएल के ईष्वर के नाम की शपथ खायी थी। सारा समुदाय नेताओं के विरुद्ध भुनभुनाने लगा। |
19) इस पर सब नेताओं ने उत्तर दिया, ''हमने प्रभु इस्राएल के ईष्वर के नाम पर उन्हें शपथपूर्वक वचन दिया हैं। इसलिए हम उन पर आक्रमण नहीं कर सकते। |
20) अब हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करें : हम उन्हें जीवित रहने दें। कहीं ऐसा न हो कि अपनी शपथ भंग करने के कारण हमें दण्ड दिया जाए।'' |
21) नेताओं ने उनसे कहा, ''उन्हें जीवित रहने दो। वे सारे समुदाय के लिए लकडी काटें और पानी भरें।'' समुदाय ने नेताओं की बात मान ली। |
22) योषुआ ने उन्हें बुलाकर उनसे कहा, ''तुमने हमें यह कह कर धोखा क्यों दिया कि तुम हमसे बहुत दूर के निवासी हो जबकि तुम हमारे पास के ही रहने वाले हो? |
23) इसलिए तुमको अभिषाप! तुम सदा दास के रूप में प्रभु के घर में लकड़ी काटने और पानी भरने का काम करोगे।'' |
24) उन्होंने योषुआ को उत्तर दिया, ''हम, आपके दासों को ठीक ठीक बताया गया था कि प्रभु आपके ईष्वर ने अपने सेवक मूसा से कहा कि वह आप लोगों को यह सारा देष दे देगा और वह आपके कारण इस देष के सब निवासियों का विनाष करेगा। इसलिए हमने आप लाोगों के डर से अपने प्राणों रक्षा के लिए ऐसा किया। |
25) देखिए, हम अब आपके हाथों में ही है। आप जैसा ठीक और उचित समझें, हमारे साथ वैसा ही करें।'' |
26) योषुआ ने उन्हें इस्राएलियों के हाथों से बचाया जिससे कि वे उन्हें मार न डालें। |
27) उसी दिन योषुआ ने उन्हें समुदाय और प्रभु की वेदी की सेवा में, उस स्थान पर लकडी काटने और पानी भरने के लिए नियुक्त किया, जिसे प्रभु चुनने वाला था। वे आज तक यही काम करते हैं। |
1) येरुसालेम के राजा अदोनी-सेदेक ने सुना कि योषुआ ने अय को अधिकृत कर उसका पूर्ण विनाष कर दिया है। उसने जैसा व्यवहार येरीखो ओर उसके राजा के साथ किया वैसा ही अय ओर उसके राजा के साथ भी किया है। उसने यह भी सुना कि गिबओन कि निवासियों ने इस्राएलियों के साथ संधि है और अब वे उनके साथ रहते हैं। |
2) यह सुनकर वह बडा भयभीत हुआ क्योंकि गिबओन राजधानी के समान एक बडा नगर था। वह अय से भी बड़ा था और उसके सब पुरुष वीर योध्दा थे। |
3) इसलिए येरुसालेम के राजा आदोनी-सेदेक ने हेब्रोन के राजा होहाम, यर्मूत के राजा पिराम, लाकीष के राजा याफीआ और एगलोन के राजा दबीर के पास यह संदेष भेजा कि |
4) आप मेरी सहयता के लिए आयें, जिससे हम गिबओन को पराजित करें, क्योंकि उसने योषुआ और इस्राएलियों के साथ संधि कर ली है। |
5) इसलिए यह पाँच अमोरी राजा अर्थात येरुसालेम का राजा, हेब्रोन का राजा, यर्मूत का राजा, लाकीष का राजा और एगलोन का राजा मिलकर अपनी सेनाओं के साथ आये और उन्होंने गिबओन को घेर कर उस पर आक्रमण कर दिया। |
6) तब गिबओन के निवासियों ने गिलगाल के पास पडाव डाले योषुआ को यह संदेष भेजा, ''आप अपने दासों का त्याग न करें! आप हमारी रक्षा और सहायता के लिए जल्द ही हमारे पास आयें, क्योंकि पहाडी प्रांत में रहने वाले सब अमोरी राजा हमारे विरुद्ध एकत्रित हो गये हैं।'' |
7) तब योषुआ ने गिलगाल से अपनी समस्त सेना और सबसे वीर योध्दाओं के साथ प्रस्थान किया। |
8) प्रभु ने योषुआ से कहा, ''उन से नहीं डरो। मैं उन्हें तुम्हारे हाथ दे दूँगा। उनमें कोई भी तुम्हारे सामने नहीं टिक पायेगा।'' |
9) योषुआ उन लोगों पर अचानक टूट पडा क्योंकि उसने गिलगाल से सारी रात यात्रा की थी। |
10) प्रभु ने उन्हें इस्राएलियों के सामने से भगा दिया। इस्राएलियों ने उन्हें गिबओन के पास बुरी तरह पराजित किया। इस्राएलियों ने बेत-होरोन के पहाड़ी मार्ग पर, अजे+का और मक्केदा तक उनका पीछा किया। |
11) जब वे इसा्रएलियों के सामने से भागते हुए बेत-होरोन की ओर उतर रहे थे तब प्रभु ने अजेका तक उन पर आकाष से ओले के बडे+-बडे+ पत्थरों की वर्षा की और ओलो की वर्षा से मरे हुए लोगों की संख्या इस्राएलियों की तलवार से मारे गये लोगो से अधिक थी। |
12) जिस दिन प्रभु ने अमोरियों को इस्राएलियों के हवाले कर दिया उस दिन योषुआ ने इस्राएलियों के सामने प्रभु से यह कहा, ''सूर्य! तुम गिबओन के उपर ठहरो, चन्द्रमा! तुम अय्यालोन की घाटी पर!'' |
13) जब तक राष्ट्र अपने शत्रुओं से बदला नहीं लिया तब तक सूर्य ठहरा और चन्द्रमा रूका रहा, जैसा कि याशर के ग्रंथ में लिखा है सूर्य आकाष के मध्य में ठहर गया और लगभग एक पूरे दिन तक अस्त नहीं हुआ। |
14) न तो पहले और न कभी बाद ऐसा दिन आया जब प्रभु ने मनुष्य की प्रार्थना इस प्रकार सुनी हो। निष्चिय ही प्रभु इस्राएल के लिए युध्द कर रहा था। |
15) इसके बाद योषुआ सब इस्राएलियों के साथ षिविर में लौट आया। |
16) पाँचों राजा भाग कर मक्केदा की गुफा में छिप गये थे। |
17) योषुआ को यह सूचना मिली की पाँचों राजा मक्केदा की गुफा में छिपे हैं। |
18) योषुआ ने कहा, ''उस गुफा के मुँह पर बडे+-बड़े पत्थर लगा दो और आदमियों को बुलाकर उन पर पहरा बैठाओ। |
19) लेकिन तुम लोग मत रूको, अपने शत्रुओं का पीछा करो, पिछड़ने वालों को मार डालो और शेष योद्धाओं को अपने नगर में पहुँचने नहीं दो। प्रभु तुम्हारे ईष्वर ने उन्हें तुम्हारे हाथ दे दिया है।'' |
20) योषुआ और इस्राएलियों ने उनको बुरी तरह हराया, किन्तु कुछ योध्दा भाग कर अपने किलाबंद नगरों में पहुँच गये। |
21) इस्राएल की समस्त सेना मक्केदा के षिविर में योषुआ के पास सुरक्षित लौट आयी इसके बाद किसी को इस्राएलियों के विरुद्ध कुछ कहने का साहस नहीं हुआ। |
22) तब योषुआ ने कहा गुफा का मुँह खोल कर पाँचो राजाओं को उससे निकाल कर मेरे पास ले आओं। |
23) उन्होंने ऐसा ही किया। ये पाँचों राजा गुफा से निकाल कर लाये गये। येरुसालेम का राजा, हेब्रोन का राजा, लाकीष का राजा और एगलोन का राजा। |
24) जब ये राजा योषुआ के पास लाये गये तब योषुआ ने सब इस्राएलियों को बुलाकर अपने साथ आये सेनापतियों से कहा, ''पास आ कर इन राजाओं की गर्दन पर अपने पैर रख दो।'' इस पर उन्होंने पास आ कर अपने-अपने पैर उनकी गर्दन पर रख दिये। |
25) इसके बाद योषुआ ने उनसे कहा, ''न डरो और न घबराओ। दृढ़ बने रहों और ढारस रखों; क्योंकि ऐसा ही व्यवहार प्रभु सब शत्रुओं से करता रहेगा, जिनके साथ तुम्हें लडना होगा।'' |
26) इसके बाद योषुआ ने उन्हें मरवा दिया और पाँच वृक्षो पर लटका दिया वे शाम तक वृक्षों पर लटके रहे। |
27) वे सूर्यास्त के समय योषुआ की आज्ञा से वृक्षों से उतारे गये और उस गुफा में फेंक दिये जिसमें वे छिपे थे। गुफा के मुँह पर बडे+-बडे+ पत्थर रख दिये गये। वे आज तक वहाँ विद्यमान है। |
28) उसी दिन योषुआ ने मक्केदा को अपने अधिकार में कर लिया। उसके नगर और उसके राजा को तलवार के घाट उतारा। उसने सब का संहार किया और एक को भी नहीं छोडा। उसने येरीख़ो के राजा के साथ जैसा किया था, मक्केदा के राजा के साथ वैसा ही किया। |
29) इसके बाद योषुआ सारे इस्राएल को साथ लेकर मक्केदा से लिबना की ओर बढा और लिबना पर आक्रमण किया। |
30) प्रभु ने उसके राजा सहित उसे भी इस्राएलियों के हाथ दे दिया। उसने उसे और उसमें रहने वाले सब प्राणियों को तलवार के घाट उतारा। उसने एक को भी नहीं छोड़ा। जैसा उसने येरीख़ो के राजा के साथ किया था वैसा उसने उसके राजा के साथ किया। |
31) इसके बाद योषुआ सारे इस्राएल के साथ लिबना से चलकर लाकीष की ओर बढा। उसने उसे घेरा और उस पर आक्रमण किया। |
32) प्रभु ने लाकीष को इस्राएलियों के हाथ दे दिया। योषुआ ने दूसरे दिन उस पर अपना अधिकार कर लिया। उसमें रहने वाले सब प्राणियों को उसी प्रकार तलवार के घाट उतारा जैसा उसने लिबना के साथ किया था। |
33) इसी समय गेज+ेर का राजा होराम लाकीष की सहायता आ पहुँचा। परन्तु योषुआ ने उसे भी उसके लोगों सहित इस तरह पराजित किया कि कोई जीवित नहीं रहा। |
34) तब योषुआ तथा सारा इस्राएल लाकीष से एगलोन की ओर आगे बढ़ा। उन्होंने उसे घेरा और उस पर आक्रमण किया। |
35) उन्होंने उसी दिन उसे अधिकार में किया। उसने नगर, उसके सब प्राणियों को तलवार के घाट उतारा, जैसा उसने लाकीष के साथ किया था। |
36) इसके बाद योषुआ और उसके साथ इस्राएलियों ने एगलोन, हेब्रोन की ओर बढकर उस पर आक्रमण किया। |
37) उन्होंने उसे अधिकार में कर लिया और उसके राजा उसके सब गाँव और उसके सब प्राणियों को तलवार के घाट उतारा। उसने एक भी जीवित नहीं छोड़ा। उन्होंने उसका और उसके सब निवासियों का संहार किया, जैसा उन्होंने एगलोन में किया था। |
38) फिर योष्ुाआ और उसके साथ के सब इस्राएली दबीर की और मुडे+ और उन्होंने उस पर आक्रमण किया। |
39) उन्होंने उसके राजा और उसके गाँवों को अधिकार में किया और उन्हें तलवार के घाट उतारा। उन्होंने उसके सब निवासियों का संहार किया। योषुआ ने एक भी जीवित नहीं छोड़ा। जैसा उसने हेब्रोन और लिबना और उसके राजा के साथ किया था, वैसा उसने दबीर और उसके राजा के साथ भी किया। |
40) इस प्रकार योषुआ ने पूरा देष अधिकार में कर लिया। पहाड़ी प्रदेष नेगेब, निचला प्रदेष और पहाड की ढलानें, उसने सब राजाओ का वध किया उसने। एक को भी जीवित नहीं छोड़ा। इस्राएल के प्रभु ईष्वर ने जैसी आज्ञा दी थी, उसने वैसा ही सब प्राणियों का संहार किया। |
41) योषुआ ने कादेष-बरनेअ से गाजा तक और गोसेन से गिबओन तक समस्त देष को पराजित किया। |
42) योषुआ ने एक ही अभियान में उन सब राजाओं और उनके देषों को अधिकार मंें किया क्योंकि प्रभु इस्राएल का ईष्वर इस्राएलियों की ओर से युद्ध करता था। |
43) इसके बाद योषुआ सब इस्राएलियों के साथ गिलगाल के षिविर लौट आया। |
1) जब हासोर के राजा याबीन ने यह सुना, तब उसने मादोन के राजा योबाब, षिम्रोन के राजा, अक्षाफ़ के राजा |
2) और उत्तरी पहाड़ी प्रदेष में, किन्नेरोत के दक्षिण अराबा में, निचले प्रदेष में, पष्चिमी दिषा के दोर के आसपास रहने वाले राजाओं, |
3) पूर्व और पष्चिम में रहने वाले कनानियों, अमोरियों, हित्तियों, परिज्+जि+यों पहाडी प्रदेष में रहने वाले यबूसियों और मिस्पा प्रदेष में हेरमोन की तलहटी में रहने वाले हिव्वियों को बुला भेजा। |
4) वे अपनी सारी सेनाएँ लेकर चल पडे+। समुद्र तट के रेत कणों के समान एक बड़ी सेना एकत्रित हो गई और उनके साथ बडी संख्या में घोडे+ और रथ भी। |
5) उन सब राजाओं ने अपनी सेनाएँ सम्मिलित कर कूच किया और इस्राएलियों के विरुद्ध लड़ने मेरोन के जलाषय के पास पड़ाव डाला। |
6) प्रभु ने योषुआ से कहा, ''उनसे नहीं डरो। मैं कल इस समय तक उन सबों को इस्राएलियों के हवाले करूँगा और वे मारे जायेंगे। तुम उनके घोड़ों की नस काट कर उन्हें पंगु बना दोगे और उनके रथ जला दोगे।'' |
7) योषुआ अपनी सारी सेना के साथ मेरोम के जलाषय की ओर बढ़ा और अचानक उन पर आक्रमण कर बैठा। |
8) प्रभु ने उन्हें इस्राएलियों के हाथ दे दिया। उन्होंने उन्हें पराजित कर उनका पीछा महा-सीदोन, मिस्रफ़ोत-मईम और पूर्व दिषा के मिस्पा की घाटी तक किया। उन्होंने उनको इस प्रकार हरा दिया कि कोई भी जीवित नहीं रहा। |
9) प्रभु ने योषुआ को जैसी आज्ञा दी थी उसने वैसा ही किया। उसने उनके घोड़ों को पंगु कर दिया और उनके रथ जला डाले। |
10) तब योषुआ पीछे मुड़ा और उसने हासोर को अधिकार में कर लिया और उसने राजा को तलवार से मार डाला। पहले हासोर उन सब राज्यों का केन्द्र था। |
11) उन्होंने वहाँ रहने वाले सब प्राणियों का संहार किया और उन्हें तलवार के घाट उतार दिया। कोई भी प्राणी शेष न रहा। बाद में उसने हासोर को जला कर भस्म कर दिया। |
12) योषुआ ने उन राजाओं के सब नगरों और उनके सारे राजाओं को अपने अधीन कर लिया और जैसी प्रभु के सेवक मूसा की आज्ञा थी उसने सबों को तलवार के घाट उतारा और उन नगरों का पूरा संहार किया। |
13) हासोर के अतिरिक्त जिसे योषुआ ने जलाया था इस्राएल ने टीलों पर बसे हुए अन्य नगरों में से किसी को नहीं जलाया |
14) इस्राएलियों ने उन नगरों का सारा माल और उनके सारे पषु लूट लिये और सब निवासियों को तलवार के घाट उतारा। उन्होंने किसी भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ा। |
15) प्रभु ने अपने सेवक मूसा को जैसा आदेष दिया था, मूसा ने योषुआ को वैसा ही आदेष दिया और योषुआ ने उसका पालन किया। प्रभु ने मूसा को जो आदेष दिये थे योषुआ ने सब का पालन किया। |
16) इस प्रकार योषुआ ने सारे देष को अधिकार में कर लिया : पहाडी प्रांत, सारा नेगेब, गोसेन का सारा प्रांत, निचला प्रदेष, अराब इस्राएल का पहाडी भाग और उसकी ढलानें |
17) सेईर की चढ़ायी की ओर के हालाक पर्वत से लेकर हेरमोन पर्वत श्रेणी की तलछटी पर लेबालोन की तराई में स्थित बाल-गाद तक उसने उसके सब राजाओं को बंदी बनवा कर उनका वध किया। |
18) इन सब राजाओं से योषुआ को युध्द करना पड़ा। |
19) गिबओन में रहने वाले हिव्वियों के अतिरिक्त और कोई नगर ऐसा नहीं था जिसने इस्राएलियों के साथ संधि की हो। उन्होंने सब से युद्ध कर उनको पराजित किया। |
20) क्योंकि प्रभु ने उनके हृदय को कठोर बना दिया था, जिससे वे इस्राएलियों के विरुद्ध लडे+ और उनका दया किये बिना पूर्ण रूप से संहार कर दिया जाये। जैसा प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था। |
21) उस समय योषुआ ने प्रस्थान किया और पहाडी प्रदेष, हेब्रोन, दबीर, अनाब तथा यूदा के सारे पहाडी प्रांत और इस्राएल के सारे पहाड़ी प्रांत में अनाकियों का विनाष किया। योषुआ ने उनका और उनके नगरों का संहार किया। |
22) इस्राएली प्रदेष में कोई अनाकी जीवित नहीं रहा केवल गाज+ा, गत और अषदोद में से कुछ जीवित रह गये। |
23) प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था उसके अनुसार योषुआ ने सारा देष अधिकार में कर लिया और उसे विभाजित कर इस्राएली वंषो को विरासत के रूप में दे दिया। इसके बाद युद्ध समाप्त हुआ और देष को शांति मिली। |
1) इस्राएलियों ने यर्दन के पूर्व में अरनोन नदी से लेकर हेरमोन पर्वत तक का प्रांत और अराबा के पूर्व का पूरा प्रदेष अधिकार में कर लिया। उनके राजाओं के नाम इस प्रकार है। |
2) अमोरियों का राजा सीहोन, जो हेषबोन में निवास करता था। वह अरनोन की घाटी के किनारे पर स्थित अरोएब से और घाटी की मध्य रेखा से अमोरियों की सीमा, यब्बोक नदी तक, अर्थात आधे गिलआद पर राज्य करता था। |
3) वह यर्दन की घाटी के पूर्व में किन्नरोत के समुद्र से, अराबा के समुद्र (अर्थात् मतृ सागर) तक, पूर्व की ओर वे यषिमोत, और दक्षिण की ओर पिसगा पर्वत की ढलान तक राज्य करता था। |
4) फिर अष्तारोत और एद्रेई में निवास करने वाला बाषन का राजा ओग, जो रफाइयों का अंतिम वंषज था। |
5) वह हेरमोन पर्वत, सलका गषूरियों और मकातियों की सीमा तक सारे बाषान पर और हेषबोन के राजा सीहोन के देष की सीमा तक गिलआद के आधे भाग पर राज्य करता था। |
6) प्रभु के सेवक मूसा ने इस्राएलियों के साथ उन्हें पराजित किया था। तब प्रभु के सेवक मूसा ने उनका देष रूबेन और गाद के वंषों को और मनस्से के आधे वंष को विरासत के रूप में दिया था। |
7) पष्चिम दिषा में यर्दन के इस पार नेबानोन की तराई से लेकर सेईर की चढाई की ओर हालाक पर्वत तक, योषुआ और इस्राएलियों ने निम्नलिखित राजाओं को पराजित किया और योषुआ ने उनका देष विरासत के रूप में इस्राएलियों वंषों को दे दिया। |
8) पहाड़ी प्रांत, निचला प्रदेष अराबा, पहाड़ी की ढलानें, हित्तियों, अमोरियो, कन्नानियों और परिज्+जि+यों, हिव्वियों , और यबूसियों के देष। |
9) येरीखो का राजा बेतेल के पास स्थित अय का राजा, |
10) येरुसालेम का राजा, हेब्रोन का राजा, |
11) यर्मूत का राजा, लाकीष का राजा, |
12) एगलोन का राजा, गेसेर का राजा |
13) दबीर का राजा, गेदेर का राजा, |
14) होरमा का राजा, अराद का राजा, |
15) लिबना का राजा, अदुल्लाम का राजा, |
16) मक्केद का राजा, बेतेल का राजा, |
17) तप्पूअह का राजा, हेफेर का राजा, |
18) अफेक का राजा, लषारोन का राजा, |
19) मादोन का राजा, हासोर का राजा, |
20) सिम्रोन-मरोन का राजा, अक्षाफ़ का राजा, |
21) तानाक का राजा, मगिद्धो का राजा, |
22) केदेष का राजा, करमेल पर स्थित योकनआम का राजा, |
23) नाफ़त-दोर में स्थित दोर का राजा, गलीलियों के गोयीम का राजा |
24) और तिर्सा का राज कुल मिला कर इकतीस राजा। |
1) जब योशुआ वृद्ध हो गया और उसकी अवस्था बहुत अधिक को गयी, तो प्रभु ने उस से कहा, ''तुम्हारी अवस्था बहुत अधिक हो गयी है और देश के अनेक बड़े भाग अब तक तुम्हारे अधिकार में नहीं आये। |
2) वे इस प्रकार हैं : फिलिस्तियों के सब प्रदेश; गशूूरियों का सारा देश, |
3) मिस के पूर्व शीहोर से लेकर उत्तर दिशा के एक्रोन की सीमा तक, जो कनानी देश समझा जाता है (इस में फिलिस्तियों के पाँच शासक हैं : गाजा, अशदोद, अशकलोन, गत और एक्रोन के); अव्वियों के प्रान्त; |
4) दक्षिण में कनानियों का सम्पूर्ण प्रदेश; सीदोनियों की गुफा से ले कर अफे+क तक अमोरियों का प्रदेश; |
5) फिर गिबलियों का देश और सारा लेबानोन : पूर्व में हेरमोन की तलहटी पर स्थित बाल-गाद से ले कर उस स्थान तक, जहाँ से हमात का मार्ग शुरू होता है। |
6) लेबानोन के पहाड़ी प्रान्त से मिस्रफोतमईम तक के सब निवासियों को, अर्थात सब सीदोनियों को मैं स्वयं इस्राएल के लोगों के सामने से भगा दूँगा। मैंने तुम को जैसा आदेश दिया है, तुम वैसा ही चिट्टी डाल कर उसे इस्राएलियों को विरासत के रूप में दोगे |
7) और उसे नौ वंशों और मनस्से के आधे वंश में विरासत के रूप में बाँट दोगे।'' |
8) मनस्से के आधे वंश, रूबेन और गाद के वंशों ने अपना दायभाग प्राप्त किया था, जिसे मूसा ने उन्हें यर्दन के पूर्व में दिया था, अर्थात्- |
9) अरनोन की घाटी के किनारे पर स्थित अरोएर से और घाटी के बीच के नगर से दीबोन तक मेदेबा की सारी पठार भूमि |
10) और अम्मोनियों की सीमा तक हेशबोन में निवास करने वाले अमोरियों के राजा सीहोन के सब नगर। |
11) फिर गिलआद और गशूरियों तथा माकातियों का प्रान्त, सारी हेरमोन पर्वतश्रेणी और सलका तक का सारा बाशान, |
12) अर्थात बाशान में ओग का सारा राज्य। ओग अश्तारोत और एद्रेई में निवास करता था और रफ़ाइयों का अन्तिम वंशज था। मूसा ने उन को पराजित कर भगा दिया था। |
13) परन्तु इस्राएली न तो गशूरियों को भगा पाये थे और न माकातियों को। इसलिए गशूरी और माकाती अपने-अपने निवासस्थानों में आज तक इस्राएलियों के बीच रहते हैं। |
14) केवल लेवी वंश को दायभाग नहीं मिला था। प्रभु इस्राएल के ईश्वर की अर्पित होम बलियाँ ही उसे दायभाग में मिली थीं, जैसा कि उसने उस से कहा था। |
15) मूसा ने रूबेन वंश के विभिन्न कुलों को दायभाग के रूप में यह दिया था : |
16) अरनोन की घाटी के किनारे स्थित अरोएर से आगे वह नगर, जो घाटी के बीच में है, फिर मेदेबा के पास की सारी पठार भूमि, |
17) हेशबोन और पठार भूमि पर स्थित उसके सब नगर, दीबोन, बामोत-बाल, बेत-बाल-मेओन, |
18) यहसा, केदेमोत और मेफ़ात, |
19) किर्याताईम, सिबमा और घाटी की पहाड़ी पर सेरेत-शहर, |
20) फिर बेत-पओर, पिसगा की तराइयाँ और बेत-यशिमोत, |
21) अर्थात पठार के सब नगर, हेशबोन में रहने वाले अमोरियों के राजा सीहोन का सारा राज्य, जिसे मूसा ने मिदयान के नेताओं के साथ पराजित किया था, अर्थात एवी, रेकेम, सूर, हूर और रेबा को, जो सीहोन प्रदेश में रहने वाले क्षेत्रपति थे। |
22) इस्राएलियों ने युद्ध में मारे हुए लोगों के अतिरिक्त शकुन विचारने वाले बओर के पुत्र बिलआम को भी तलवार के घाट उतार दिया था। |
23) रूबेन वंशियों की सीमा यर्दन थी। यह प्रदेश उसके नगरों और उनके गाँवों के साथ रूबेन वंशी कुलों को विरासत के रूप में मिला था। |
24) मूसा ने गादवंशियों के विभिन्न कुलों को यह प्रदेश दिया था : |
25) यजेर और गिलआद के सब नगर, रब्बा के सामने स्थित अरोएर तक अम्मनियों का आधा देश, |
26) हेशबोन के रामत-मिस्पे और बटोनीम तक और महनयीम से दबीर के प्रान्त तक, |
27) तराई में बेत-हराम, बेत-निम्रा, सुक्कोत और साफ़ोन, अर्थात हेशबोन के राजा सीहोन का शेष राज्य, यर्दन और यर्दन के उस पार पूर्व में किन्नेरेत समुद्र तक का देश। |
28) यही उनके नगरों और गाँवों के साथ गादवंशी कुलों को विरासत के रूप में मिला था। |
29) मूसा ने मनस्से के आधे वंश के विभिन्न कुलों को यह प्रदेश दिया था : |
30) महनयीम से ले कर सारा बशान, बाशान के राजा ओग का सारा राज्य और बाशान में याईर के सब नगर, कुल मिला कर साठ नगर। |
31) फिर बाशान में ओग की राजधानियाँ अश्तारोत और एद्रेई के साथ गिलआद का आधा भाग। यह मनस्से के पुत्र माकीर के वंशजों अर्थात् आधे माकीरियों के विभिन्न कुलों को मिला था। |
32) ये वे भाग हैं, जिन्हें मूसा ने यर्दन के उस पार, येरीखों के पूर्व मोआब के मैदानों में दायभाग के रूप में विभाजित किया था। |
33) लेकिन मूसा ने लेवी वंश को दायभाग के रूप में कुछ नहीं दिया था। प्रभु इस्राएल का ईश्वर उसका दायभाग है, जैसा उसने उन से कहा था। |
1) याजक एलआज+ार, नून का पुत्र योशुआ और इस्राएली वंशों के नेताओं ने कनान देश के ये भाग इस्राएलियों को विरासत के रूप में दे दिये। |
2) प्रभु ने मूसा द्वारा जैसी आज्ञा दी थी, उसके अनुसार उन्होंने चिट्ठी डाल कर शेष वंशों की विरासत निर्धारित की। |
3) मूसा ने यर्दन के उस पार ढाई वंशों को दायभाग दे दिया था, परन्तु लेवियों को उनके साथ कुछ दायभाग नहीं दिया था। |
4) यूसुफ़ के वंशजों के दो वंश थे, एक मनस्से का और एक एफ्रईम का। लेवियों को भूमि का कोई भाग नहीं मिला था। उन्हें केवल रहने के लिए नगर और उनके ढोरों आदि के लिए उनके आसपास के चरागाह मिले थे। |
5) प्रभु ने मूसा को जैसी आज्ञा दी थी, इस्राएलियों ने देश के विभाजन के समय वैसा ही किया। |
6) उस समय यूदा के वंशज गिलगाल में योशुआ के पास आये और यफुन्ने के पुत्र कनिज्जी कालेब ने उस से कहा, ''आप को मालूम हो कि प्रभु ने कादेश बरनेअ में मेरे और आपके विषय में ईश्वर-भक्त मूसा को क्या आज्ञा दी थी। |
7) उस समय मैं चालीस वर्ष का था, जब प्रभु के सेवक मूसा ने मुझे कादेश बरनेअ से देश का भेद लेने भेजा था और मैंने उन्हें सही जानकारी दी थी। |
8) जो भाई मेरे साथ थे, उन्होंने लोगों को हतोत्साह कर दिया था, किन्तु मैं प्रभु अपने ईश्वर का सच्चा अनुयायी बना रहा। |
9) उस दिन मूसा ने यह शपथ खायी थी, जिस भूमि पर तुमने पैर रखा, वह सदा के लिए तुम्हारा तथा तुम्हारे पुत्रों का दायभाग हो जायेगी, क्योंकि तुम प्रभु मेरे ईश्वर के सच्चे अनुयायी बने रहे'। |
10) देखिए, जैसा प्रभु ने कहा था, उसने उस समय से आज तक मेरे जीवन की रक्षा की है। पैंतालीस वर्ष हुए जब सब इस्राएली उजाड़खण्ड में रहते थे और प्रभु ने मूसा से यह कहा था और अब मैं पचासी वर्ष का हूँ। |
11) मैं आज भी उतना ही बलबान हूूँ, जितना उस समय था, जब मूसा ने मुझे भेजा था। अब भी मुझ में युद्ध में भाग लेने की उतनी ही शक्ति है, जितनी उस समय थी। |
12) इसलिए अब मुझे वह पहाड़ी प्रदेश दीजिए, जिसके विषय में प्रभु ने उस समय प्रतिज्ञा की। उस दिन आपने स्वयं भी सुना था कि वहाँ अनाकी लोग रहते हैं और वहाँ बड़े सुदृढ़ नगर हैं। सम्भव है, प्रभु मेरा साथ दे और मैं, प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार उन्हें भगा सकूँ।'' |
13) इस पर योशुआ ने उसे आशीर्वाद दिया और यफुन्ने के पुत्र कनिज्ज+ी कालेब को हेब्रोन दायभाग के रूप में दे दिया। |
14) इसलिए हेबोन आज तक यफुन्ने के पुत्र कनिज्ज+ी कालेब का दायभाग है, क्योंकि वह प्रभु, इस्राएलियों के ईश्वर का सच्चा अनुयायी था। |
15) पहले हेब्रोन का नाम अरबा नगर था। वह अरबा अनाकियों में सब से महान् पुरुष था। इसके बाद युद्ध समाप्त हुआ और देश को शान्ति मिली। |
1) यूदावंशियों के विभिन्न कुलों को जो भाग मिला, उसका विस्तार दक्षिण की ओर एदोम की सीमा तक, सिन के उजाड़खण्ड तक था। |
2) उसकी दक्षिणी सीमा लवण सागर की दक्षिणी खाड़ी से आरम्भ हो कर |
3) अक्रब्बीम की घाटी के दक्षिण से हो कर सिन तक पहुँचती थी। फिर वह कादेश बरनेअ के दक्षिण में हेस्रोन के पास से निकलती हुई अद्दार तक जाती थी और करका की ओर मुड़ती हुई |
4) असमोन तक जा कर मिस्री नाले से मिल कर समुद्र तक पहुँचती थी। ''यही तुम्हारी दक्षिण सीमा होगी''। |
5) पूर्व में यर्दन के मुहाने तक लवण सागर उसकी सीमा था। उत्तरी सीमा यर्दन के मुहाने के पास की खाड़ी से आरम्भ होती थी। |
6) वहाँ से यह सीमा बेत-होगला तथा बेत-अराबा के उत्तर से होती हुई रूबेन के पुत्र बोहन की शिला तक जाती थी। |
7) वहाँ से यह आकोर की घाटी से दबीर की ओर जा कर गिलगाल की दिशा में उत्तर की ओर मुड़ती थी, जो नदी के दक्षिण में अदुम्मीम की घाटी के सामने है। वहाँ से यह सीमा एनशेमेश के जलाशय से हो कर एन-रोगेल तक पहुँचती थी। |
8) फिर यह सीमा बेन हिन्नोम घाटी के पास से हो कर यबूसियों के दक्षिणीय पर्वत की ढाल अर्थात येरुसालेम से होती हुई उस पर्वत के शिखर तक पहुँचती थी, जो हिन्नम घाटी के सामने पश्चिम में, रफ़ाईम की घाटी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। |
9) यह सीमा पर्वत के शिखर से नेफतोआ के जलाशय के स्रोत के पास से एफ्रोन पर्वतश्रेणी के नगरों तक जाती थी। फिर यह सीमा अबला, अर्थात किर्यत-यआरीम की ओर मुड़ती थी। |
10) यह सीमा बअला के पश्चिम में मुड़ कर सेईर पर्वत तक जाती थी फिर यआरीम पर्वत, अर्थात कसालोन की उत्तरी ढाल से होती हुई बेत-शेमेश तक उतरती और तिमना तक पहुँचती थी। |
11) फिर यह सीमा एक्रोन के उत्तर में पर्वत की ढाल से होती हुई शिक्रोन की ओर मुड़ती और बअला के पर्वत के पास से हो कर यबनेएल तक जाती थी। फिर यह सीमा समुद्र तक पहुँच कर समाप्त हो जाती थी। |
12) महासमुद्र का तटीय भाग पश्चिमी सीमा था। यूदावंशियों के विभिन्न कुलों को जो भाग प्राप्त हुआ, उसके चारों ओर की सीमा इसी प्रकार थी। |
13) प्रभु से प्राप्त आदेश के अनुसार योशुआ ने यफुन्ने के पुत्र कालेब को यूदा का एक भाग, अर्थात अनाक के पिता अरबा का नगर हेब्रोन दे दिया। |
14) वहाँ से कालेब ने अनाक के वंशजों को अर्थात अनाक के तीनों पुत्र शेशय, अहीमान और तलयम को भगा दिया। |
15) वहाँ से उसने दबीर के निवासियों पर आक्रमण किया। (दबीर पहले किर्यतसेफेर कहलाता था।) |
16) कालेब ने कहा, ''जो किर्यत सेफेर को पराजित कर अधिकार में लेगा, मैं उसके साथ अपनी पुत्री अक्सा का विवाह कर दूँगा''। |
17) कालेब के भाई केनज+ के पुत्र ओतनीएल ने उसे अधिकार में कर लिया, इसलिए कालेब ने अपनी पुत्री अक्सा का विवाह उसके साथ कर दिया। |
18) ओतनीएल ने किसी दिन उसके पास आ कर अपने पिता से एक खेत माँगने का आग्रह किया। जैसे ही वह अपने गधे पर से उतरी, कालेब ने उस से पूछा, ''तुम्हें क्या चाहिए? |
19) उसने उसे उत्तर दिया, ''मेरा एक विशेष उपकार कीजिए। आपने मुझे नेगेब में एक खेत दिया, तो मुझे झरने भी दीजिए।'' इस पर कालेब ने उसे ऊपरी और निचले झरने दे दिये। |
20) यूदा वंश के विभिन्न कुलों का दायभाग यह था। |
21) नेगेब में एदोम की सीमा की ओर यूदावंशियों के दक्षिणी नगर ये थे, कबसएल, एदेर, यागूर, |
22) कीना, दीमोना, अदआदा, |
23) केदेश, हासोर, यितनान, |
24) जीफ़, टेलेम, बआलोत, |
25) हासोर-हदत्ता, करिय्योत हेस्रोन अर्थात हासोर, |
26) अमाम, शमा, मोलादा, |
27) हसरगद्दा, हेशमोन, बेत-पेलेट, |
28) हसर-शूआल, बएर-शेबा, बि+ज्योत्या, |
29) बाला, इय्यीम, एसेम, |
30) एलतोलत, कसील, होरमा, |
31) सिकलग, मदमन्ना, सनसन्ना, |
32) लबाओत, शिलहीम, अयीन और रिम्मोन कुल उनतीस नगर और साथ के गाँव भी। |
33) पश्चिमी निचले प्रदेश में : एश्ताओल, सोरआ, अशना, |
34) जानोअह, एन-गन्नीम, तप्पूअह, एनाम, |
35) यर्मूत, अदुल्लाम, सोको, अजेका, |
36) शआरईम, अदीतईम और गदेरा (या गदेरोताईम) कुल चौदह नगर और साथ के गाँव भी। |
37) सनान, हदाशा, मिगदल-गाद, |
38) दिलआन, मिस्पे, योकतेएल, |
39) लाकीश, बोसकत, एगलोन, |
40) कब्बोन, लहमास, कितलीश, |
41) गदेरोत, बेत-दागोन, नामा और मक्केदा कुल सोलह नगर और साथ के गाँव भी। |
42) लिबना, एतेर, आशान, |
43) यिफ्ताह, अशना, नसीब, |
44) कईला, अकज+ीब और मारेश - कुल नौ नगर और साथ के गाँव भी। |
45) एक्रोन और उसके साथ के नगर और गाँव भी; |
46) एक्रोन से समुद्र तक के सारे नगर, जो अशदोद के पार्श्व में हैं और साथ के गाँव भी। |
47) अशदोद और उसके नगर और गाँव, गाज+ा और मिस्र के नाले तक उसके नगर और गाँव, और महासमुद्र तक का तटीय प्रान्त भी। |
48) पहाड़ी प्रदेश में : शामीर, यत्तरी, सोको, |
49) दन्ना, किर्यात-सन्ना, अर्थात दबीर, |
50) अनाब, एश्तमो, आनीम, |
51) गोशेन, होलोन और गिलो - कुल ग्यारह नगर और साथ के गाँव भी। |
52) अराब, दूमा, एशआन, |
53) यानूम, बेत-तप्पूअह, अफे+का, |
54) हुम्टा, किर्यत-अरबा, अर्थात हेब्रोन और सीओर - कुल नौ नगर और साथ के गाँव भी। |
55) माओन, करमेल, ज+ीफ़ यूट्टा, |
56) यिज्रएल, योकदआम, ज+ानोअह, |
57) कयिन, गिबआ और तिमना - कुल दस नगर और आसपास के गाँव भी। |
58) हलहूल, बेत-सूर, गादोर, |
59) मारात, बेत अनोत और एलतेकोन कुल छः नगर और साथ के गाँव भी। |
60) किर्यत-बाल, अर्थात किर्यत-यआरीम और रब्बा - कुल दो नगर और साथ के गाँव भी। |
61) उजाड़खण्ड में, बेत-अराबा, मिद्दीन, सकाका, |
62) निबशान, ईस्मेलह और एनगेदी - कुल छः नगर और आसपास के गाँव भी। |
63) लेकिन यूदा के वंशज येरुसालेम में रहने वाले यबूसियों को भगा नहीं पाये। इसलिए यबूसी लोग आज तक यूदा के वंशजों के साथ येरुसालेम में रहते आ रहे हैं। |
1) यूसुफ के वंशजों को चिट्ठियाँ डाल कर जो भाग प्राप्त हुआ, वह येरीख़ो के पास की यर्दन नदी से, येरीख़ों के जलाशय के पूर्व की ओर से, उजाड़खण्ड होकर बेतेल के पहाड़ी प्रदेश तक |
2) और फिर बेतेल से लूज+ तक, वहाँ से अटारोत तक, जो अरकियों के देश में है |
3) और पश्चिम की ओर यफलेटियों के देश तक तथा मैदान के बेत-होरोन तक और आगे समुद्र के पास गेसेर तक जा कर समाप्त होता था। |
4) यूसुफ़ के पुत्र मन्नसे और एफ्रईम को अपने-अपने दायभाग मिले। |
5) एफ्रईमवंशियों के कुलों का दायभाग यह था। पूर्व में उनके दायभाग की सीमा ऊपरी बेत-होरोन तक अटारोत अद्दार थी। |
6) वहाँ से वह समुद्र तक जाती थी। वह उत्तर में मिकमतात से पूर्व की ओर तानत-शिलो और उस से आगे पूर्व की ओर यानोहा तक जाती थी। |
7) वह यानोहा से अटारोत और नारा तक पहुँचती थी और येरीखों के पास से हो कर यर्दन के तट पर समाप्त हो जाती थी। |
8) सीमा तप्पूअह से पश्चिम की ओर काना नाले तक जा कर समुद्रतट पर समाप्त होती थी। एफ्रईमवंशियों के विभिन्न कुलों का यही दायभाग था। |
9) इसके साथ वे नगर भी थे, जो मनस्से के वंशजों के दायभाग में से एफ्रईम के वंशजों की दिये गये थे। इन सब नगरों के साथ उनके आसपास के गाँव भी थे। |
10) लेकिन वे गेसेर में रहने वाले कनानियों को भगा नहीं पाये; इसलिये कनानी आज तक एफ्रईमियों के साथ रहते हैं, परन्तु वे बेगार में लगाये जाते हैं। |
1) यूसुफ़ के जेठे पुत्र मनस्से के कुल को चिट्ठी डाल कर यह भाग प्राप्त हुआ। गिलआद के पिता माकीर को, जो मनस्से का पहलौठा पुत्र था, गिलआद और बाशान प्राप्त हुए, क्योंकि वह वीर योद्धा था। |
2) मनस्से के शेष पुत्रों के विभिन्न कुलों को, अर्थात अबीएज+ेर, हेकेल, अन्नीएल, शेकेम, हेफ़ेर और शमीदा को चिट्ठी डाल कर ये भाग मिले थे। |
3) हेफ़ेर गिलआद का पुत्र, माकीर का पौत्र और मनस्से का पौत्र था। उसके पुत्र सेलोफ़हाद के कोई बेटा न था, केवल पुत्रियाँ थीं। उसकी पुत्रियों के नाम ये थें, महला, नोआ, होगला, मिल्का और तिर्सा। |
4) वे याजक एलआज+ार, नून के पुत्र योशुआ और नेताओं के सामने उपस्थित हो कर कहने लगीं, ''प्रभु ने हमें अपने भाई बन्धुओं के साथ ही दायभाग देने की आज्ञा मूसा का दी थी''। इस पर प्रभु के आदेश के अनुसार उन्हें अपने पिता के भाइयों के साथ दायभाग दिया गया। |
5) इसलिए मनस्से को यर्दन के उस पार के गिलआद और बाशान प्रान्तों के अतिरिक्त दस भाग मिले; |
6) क्योंकि मनस्से के पुत्रों के साथ उसकी पुत्रियों को भी दायभाग मिले। मनस्से के शेष वंशजों को गिलआद का प्रान्त मिला। |
7) मनस्से को जो भाग मिला था, उसकी सीमा आशेर से सिखेम के सामने के मिकमतात तक थी। वहाँ से वह सीमा दक्षिण की ओर जाती थी, जिससे एन-तप्पूअह के निवासी उस भाग में सम्मिलित थे। |
8) तप्पूअह प्रदेश मनस्से को मिला, परन्तु तप्पूअह नगर, जो मनस्से के भाग की सीमा पर है, एफ्र+ईमियों को मिला। |
9) सीमा वहाँ से काना नाले तक जाती थी। नाले के दक्षिण के नगर, जो मनस्से के भाग में थें, एफ्रईमियों को मिले। फिर मनस्से के भाग की सीमा नाले के उत्तर में जा कर समुद्रतट पर समाप्त हो जाती थी। |
10) दक्षिण का भाग एफ्रईम का था और उत्तर का भाग मनस्से का। समुद्र उसकी सीमा था- उत्तर में आशेर और पूर्व में इस्साकार तक। |
11) मनस्से के प्रान्त में इस्साकार और आशेर को ये भाग मिले : बेत-शान, यिबलआम, दोर, एन्दोर, तानाक और मगिद्दों; उन सबों के निवासी और उनके आसपास के गाँव। इसके अतिरिक्त पर्वत के तीन श्रृंग। |
12) मनस्सेवंशी इन नगरों को अधिकार में नहीं कर पाये, इसलिए कनानी उन्हीं क्षेत्रों में निवास करते रहे। |
13) परन्तु जब इस्राएली शक्तिशाली हो गये, तब उन्होंने कनानियों को बेगार में लगाया, हलाँकि वे उन को नहीं भगा पाये। |
14) यूसुफ के वंशजों ने योशुआ से पूछा, ''आपने हमें केवल एक चिट्ठी निकालने दी। इसलिए हमें दायभाग के रूप में एक ही भाग मिला, जबकि प्रभु की कृपा से हमारी संख्या बहुत अधिक है।'' |
15) योशुआ ने उन्हें उत्तर दिया, ''तुम बहुसंख्यक हो और यदि एफ्रईम का पहाड़ी क्षेत्र तुम्हारे लिए छोटा पड़ता है, तो जंगल में जा कर परिज्+जि+यों और रफ़ाइयों के देश में अपने लिए खेत बना लो''। |
16) यूसुफ के वंशजों ने कहा, ''हमारे लिए पहाड़ी क्षेत्र पर्याप्त नहीं है, और सब कनानियों के पास लोहे के रथ हैं - चाहे वे मैदान में रहते हो, चाहे बेत-शान और उसके गाँवों में या वे यिज्रएल के मैदान में निवास करते हों''। |
17) तब योशुआ ने यूसुफवंशियों, एफ्रईम और मनस्से से कहा, तुम बहुसंख्यक और बडे+ शक्तिशाली हो। तुम्हें केवल एक भाग नहीं मिला। |
18) जो पहाड़ी क्षेत्र तुम्हें मिला, उस में जंगल भी है। उसे काट कर कृषि योग्य बनाओ और उसके सीमान्त भी अधिकार में करो। यद्यपि कनानियों के पास लोहे के रथ हैं और वे शक्तिशाली हैं, फिर भी तुम उन्हें भगा सकोगे।'' |
1) इस्राएलियों का समस्त समुदाय शिलो में एकत्रित हुआ और वहाँ दर्शन-कक्ष की स्थापना की। उस समय सारा देश उनके अधीन था। |
2) अब इस्राएलियों के सात वंश ऐसे रह गये, जिन्हें दायभाग नहीं मिला था। |
3) योशुआ ने इस्राएलियों से कहा, ''तुम कब तक उस देश पर अधिकार करने में विलम्ब करोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर ने तुम्हें दिया है? |
4) तुम प्रत्येक वंश से तीन-तीन व्यक्ति चुनो। मैं उन्हें भेजूँगा। वे देश का भ्रमण करेंगे और उसका सर्वेक्षण करने के बाद निर्णय करेंगे कि किस-किस को कौन-कौन सा भाग मिलेगा। तब वे मेरे पास लौटेंगे। |
5) तुम देश को सात भागों में विभाजित करोगे। दक्षिण में यूदा वंश अपने क्षेत्र में बना रहेगा और उत्तर में यूसुफ़ के वंशज अपने क्षेत्र में। |
6) देश के सात भागों का वर्णन लिखने के बाद उन्हें मेरे पास ले आओगे और तब मैं यहाँ प्रभु, तुम्हारे ईश्वर के सामने तुम्हारे लिए चिट्ठियाँ डालूँगा। |
7) लेवियों को तुम्हारे साथ कोई भाग नहीं मिलेगा, क्योंकि प्रभु का याजकीय पद ही उनका दायभाग है। गाद, रूबेन तथा मनस्से के आधे कुल को यर्दन के उस पार पूर्व में दायभाग मिल चुका है, जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने उन्हें दिया था।'' |
8) जब वे देश का सर्वेक्षण करने निकले, तो योशुआ ने उन से कहा, ''तुम देश को सर्वेक्षण करने जाओ, उसका वर्णन लिखो और मेरे पास लौटो। मैं यहाँ शिलो में प्रभु के सामने तुम्हारे लिए चिट्ठियाँ डालूँगा।'' |
9) वे लोग चले गये और उन्होंने देश का भ्रमण कर उसका वर्णन लिखा और उसके नगरों को सात भागों में बाँटा। जब वे शिलो के शिविर में योशुआ के पास लौट आये, |
10) तो योशुआ ने शिलो में प्रभु के सामने उनके लिए चिट्ठियाँ डाली। इस प्रकार योशुआ ने इस्राएलियों के लिए वहाँ के देश को विभाजित कर प्रत्येक के लिए उसका भाग निश्चित कर दिया। |
11) बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के लिए इस प्रकार चिट्ठी निकली। उनका भाग यूदा और युसूफ़वंशियों के बीच में पड़ा। |
12) उत्तर में उनकी सीमा यर्दन से प्रारम्भ होती थी। वहाँ से वह येरीख़ो की उत्तरी ढलान होकर पश्चिम की ओर मुड़ती थी और पहाड़ी प्रदेश पार कर बेत-आवेन के उजाड़खण्ड में समाप्त होती थी। |
13) वहाँ से वह सीमा लूज+ की, जो बेतेल भी कहलाता है, दक्षिणी ढालन पर अटारोत-अद्दार तक उस पर्वत पर पहुँचती थी, जो निचले बेत-होरोन के सामने के दक्षिणी में है। |
14) फिर वह सीमा बेत-होरोन के सामने के दक्षिण पर्वत से प्रारम्भ हो कर दक्षिण की ओर आती थी और किर्यत-बाल, अर्थात किर्यत-यआरीम पर समाप्त होती थी। वह नगर यूदावंशियों का था। यही उसकी पश्चिमी सीमा थी। |
15) दक्षिणी सीमा किर्यत-यआरीम के पास से प्रारम्भ होती थी। यहाँ से वह पश्चिम की ओर मुड़ कर नेफ़तोआ के जलस्रोत तक जाती थी। |
16) फिर वह सीमा उस पर्वत के किनारे तक जाती थी जो बेन-हिन्नोम की घाटी के सामने है और जो रफ़ाईम की घाटी के उत्तरी सिरे पर स्थित है। फिर वह यबूसी पर्वत की ढाल के दक्षिण हिन्नोम घाटी में उतर कर एन-रोगेल तक जाती थी। |
17) वह वहाँ से उत्तर की ओर मुड़ कर और एन-शेमेश के पास से हो कर अदुम्मीम की घाटी के सामने गलीलोत तक जाती थी और रूबेन के पुत्र बोहन की शिला तक पहुँचती थी। |
18) वह उत्तर दिशा में बेत-अराबा के पर्वत की ढाल से उतर कर नीचे की ओर अराबा तक जाती थी। |
19) वहाँ से वह सीमा बेत-होगला के उत्तर के पर्वत की ढाल से निकल कर लवण सागर की उत्तरी खाड़ी में, यर्दन के दक्षिण्ी सिरे पर समाप्त होती थी। यह दक्षिणी सीमा थी। |
20) यर्दन पूर्व की ओर सीमा का निर्धारण करती थी। यही बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के दायभाग थे तथा यही उनके चारों ओर की सीमाएँ थी। |
21) बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के नगर ये है : येरीख़ो, बेत-होगला, एमेक-कसीस, |
22) बेत-अराबा, समारईम, बेतेल, |
23) अव्वीम, पारा, ओफ्रा, |
24) कफ़र-अम्मोनी, ओफ़नी और गेबा - ये बारह नगर और इनके साथ के गाँव। |
25) गिबओन, रामा, बएरोत, |
26) मिस्पे, कफ़ीरा, मोसा, |
27) रेकेम, यिर्पएल, तरअला, |
28) सेला, एलेफ़, यबूसियों का नगर अर्थात येरुसालेम, गिबअत और किर्यत-यआरीम ये चौदह नगर और इनके आसपास के गाँव। यही बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के दायभाग थे। |
1) सिमओन, अर्थात सिमओर वंश के विभिन्न कुलों के लिए दूसरी चिट्ठी निकली। उनका दायभाग यूदा वंश के दायभाग में ही था। |
2) उन को दायभाग में यह मिला : बएर-शेबा, या शेबा, मोलादा, |
3) हसर शुआल, बाला, एसेम, |
4) एलतोलद, बतूल, होरमा, |
5) सिकलग, बेत-मरकाबोत, हसर-सूसा, |
6) बेत-लबाओत और शारूहेन - ये तेरह नगर और इनके आसपास के गाँव। |
7) फिर अयीन, रिम्मोन, एतेर ओर आशान ये चार नगर और इनके आसपास के गाँव। |
8) बालात-बेअर, अर्थात दक्षिणी रामा तक के सब गाँव। यही सिमओर वंश के विभिन्न कुलों का दायभाग था। |
9) सिमओन वंश का दायभाग यूदा वंश के भाग से लिया गया। चूँकि यूदा वंश का भाग उनके लिए अधिक बड़ा था, इसलिए सिमओन वंश को उनके दायभाग का एक हिस्सा मिला। |
10) जबुलोन वंश के विभिन्न कुलों के लिए तीसरी चिट्ठी निकली। |
11) उनके दायभाग की सीमा सारीद तक थी। वह सीमा पश्चिम की ओर मरअला तक और दब्बाशेत को छूती हुई योकनआम के पूर्व के नाले तक जाती थी। |
12) वह सारीद से, विपरीत दिशा में, पूर्व की ओर, अर्थात सूर्योदय की ओर, किसलोत ताबोर की सीमा तक जाती, फिर दाबरत की तरफ जाकर याफ़ीआ पहुँचती थी। |
13) वह वहाँ से पूर्व की ओर गात-हेफेर और एत-कासीन तक और फिर रिम्मोन तक पहुँचती थी। तब वह नेआ की ओर मुड़ जाती थी। |
14) फिर वह उत्तर की ओर मुड़ कर हन्नातोन तक जाती और यिफ्+तह-एल की घाटी में समाप्त होती थी। |
15) फिर कट्टात, नहलाल, शिम्रोन, यिदअला और बेथलेहेम। कुल मिला कर ये बारह नगर थे और इनके आसपास के गाँव। |
16) यही जबुलोन वंश के विभिन्न कुलों का दायभाग था, अर्थात ये नगर और इनके आसपास के गाँव। |
17) इस्साकार, अर्थात इस्साकार वंश के विभिन्न कुलों के लिए चौथी चिट्ठी निकली। |
18) उनके भाग में ये सम्मिलित थे : यिज्रएल, कसुल्लोत, शुनेम, |
19) हफ़ारईम, शीओन, अनाहरात, |
20) रब्बीत, किशयोन, एबेस |
21) रेमेत, एन-गन्नीम, एन-हद्दा और बेन-पस्सेस। |
22) उसकी सीमा ताबोर, शहसीमा और बेत-शेमेश को स्पर्श करती हुई यर्दन तट पर समाप्त हो जाती थी। ये सोलह नगर थे और इनके आसपास के गाँव। |
23) यही इस्साकार वंश के विभिन्न कुलों का दायभाग था, अर्थात ये नगर और इनके आसपास के गाँव। |
24) आशेर वंश के विभिन्न कुलों के लिए पाँचवी चिट्ठी निकली। |
25) इनके भाग में हेलकत, हली, बेटेन, अक्षाफ़, |
26) अल्लम-मेलेक, अमआत और मिशआल सम्मिलित थे। पश्चिम में इसकी सीमा करमेल पर्वत और लिबनात नदी तक जाती थी। |
27) फिर यह पूर्व की ओर मुड़ कर और बेत-दागोन तक जा कर तथा उत्तर में जबुलोन और यिफ्तह-एल की घाटी को स्पर्श करती हुई बेत-एमेक और नईएल की ओर जा कर उत्तर दिशा की ओर बढ़ती हुई उत्तर में काबूल तक पहुँचती थी। |
28) इस में एब्रोन, रहोब, हम्मोन, काना और महा-सीदोन सम्मिलित थे। |
29) फिर यह सीमा रामा की ओर मुड़ कर किलाबन्द तीरूस नगर तक जाती थी। |
30) इस में उमा, अफेक और रहोब सम्मिलित थे। कुल मिला कर ये बाईस नगर थे और इनके आसपास के गाँव। |
31) यही आशेर वंश के विभिन्न कुलों का दायभाग था, अर्थात ये नगर और इनके आसपास के गाँव। |
32) नफ्+ताली वंश के विभिन्न कुलों के लिए छठी चिट्ठी निकली। |
33) उनकी सीमा हेलेफ से सानन्नीम के बलूत वृक्ष से अदामी-नेकेब और यबनेएल हो कर और लक्कूम तक जा कर यर्दन पर समाप्त हो जाती थी। |
34) फिर वह पश्चिम की ओर मुड़ कर अज्+नोत-ताबोर से होती हुई वहाँ से हुक्कोम पहँुचती थी। वह दक्षिण में जबुलोन और पश्चिम में आशेर और पूर्व में यर्दन के किनारे पर यूदा को स्पर्ष करती थी। |
35) किलाबन्द नगर ये थे : सिद्दीम, सेर, हम्मत, रक्कत, किन्नेरेत, |
36) आदामा, रामा, हासोर, |
37) केदेष, एद्रेई, एन-हासोर, |
38) यिरओन, मिगदल-एल, होरेम, बेत-अनात और बेत-शेमेल। ये उन्नीस नगर थे और इनके आसपास के गाँव। |
39) यही नफ्+ताली वंष के विभिन्न कुलों का दायभाग था- यही नगर और इनके आसपास के गाँव। |
40) दान वंष के विभिन्न कुलों के लिए सातवी चिट्ठी निकली। |
41) उसके दायभाग की भूमि में ये सम्मिलित थे : सोरआ, एषताओल, ईरषेमेष, |
42) शअलब्बीन, अय्यालोन, यितला, |
43) एलोन, तिमना, एक्रोन, |
44) एलतके, गिब्बतोन, बालात, |
45) यहुद, बेनेबरक, गत रिम्मोन, |
46) मे-यरकोन, रक्कोन और याफ़ो के सामने की भूमि। |
47) जब दानवंषियों का भाग उनके हाथ से निकल गया, तब उन्होंने लेषेम पर चढ़ाई की, उसे अधिकार में कर लिया, उसका विनाष किया और उसे बसाया। उन्होंने अपने वंष के आदिपुरुष दान के नाम पर लेषेम का नाम दान रखा। |
48) यही दान वंष के विभिन्न कुलों का दायभाग था- यही नगर और इनके आसपास के गाँव। |
49) देष के विभिन्न भागों को दायभाग के रूप में बाँट लेने के बाद इस्राएलियों ने नून के पुत्र योषुआ को भी अपने बीच दायभाग दिया। |
50) उन्होंने प्रभु की आज्ञा के अनुसार उसे वह नगर दिया, जिसे वह चाहता था, अर्थात एफ्रईम के पहाड़ी प्रान्त का तिमनत-सेरह। उसने उस नगर का पुनर्निर्माण करवाया और वहाँ बस गया। |
51) ये वे दायभाग हैं, जिन्हें याजक एलआजार, नून के पुत्र योषुआ और इस्राएली वंषों के कुलों के मुखिया लोगों ने षिलों में, दर्षन कक्ष के द्वार पर, प्रभु के सामने चिट्ठियाँ डाल कर बाँटा। इस प्रकार देष का विभाजन समाप्त हुआ। |
1) प्रभु ने योषुआ से यह कहा, |
2) ''इस्राएली लोगों से कहो कि वे अपने लिये उन शरण नगरों का निर्धारण करें जिनके विषय में मैंने मूसा द्वारा तुम लोगों से कहा था। |
3) वहाँ से व्यक्ति को रक्त के प्रतिषोधी से शरण मिलेगी, जिसने अनजाने संयोग से किसी की हत्या की है। |
4) वह उन नगरों में से किसी में भी भाग कर नगर के द्वार के पास उस नगर के नेताओं के सामने अपना मामला प्रस्तुत करेगा। वे उसे नगर के भीतर ले जा कर वहाँ शरण दें। तब वह उनके साथ रहेगा। |
5) यदि रक्त का प्रतिषोधी उसका पीछा करे, तो वे उस व्यक्ति को उसके हवाले नहीं करें, जिस पर हत्या का अभियोग लगाया है, क्योंकि उसने बैर से नहीं, बल्कि संयोग से अपने पड़ोसी का वध किया। |
6) वह उस नगर में तब तक रह सकता है, जब तक समुदाय के न्यायालय में उस पर मुकदमा न चलाया गया हो और तत्कालीन प्रधानयाजक की मृत्यु न हुई हो। इसके बाद वह अपने नगर और अपने घर लौट सकेगा, जहाँ से वह भाग कर आया था। |
7) इसलिए उन्होंने नफ्+ताली के गलीलिया के पहाड़ी प्रदेष में केदेष को, एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेष में किर्यत-अरबा, अर्थात हेब्रोन को निष्चित किया। |
8) यर्दन के उस पर येरीख़ो के पूर्व रूबेन वंष के पठार पर उजाड़खण्ड के बेसेर को, गाद वंष में गिलआद के रामोत को और मनस्से वंष के बाषान में गोलान को निष्चित किया। |
9) ये वे निर्धारित नगर थे, जहाँ हर एक इस्राएली या उनके बीच रहने वाला परदेषी, जिसने संयोग से किसी का वध किया था, शरण ले सकता था और समुदाय के न्यायालय में उपस्थित होने तक रक्त के प्रतिषोधी द्वारा नहीं मारा जा सकता था। |
1) तब लेवियों के घरानों के मुखिया और इस्राएली वंषों के नेताओं के पास आ कर |
2) कनान देष के षिलों में उन से कहने लगे, ''प्रभु ने मूसा द्वारा यह आदेष दिया था कि हमारे रहने के लिए हमें नगर और हमारे पशुओं के लिए चरागाह दिये जाये।'' |
3) इस पर प्रभु के आदेष के अनुसार इस्राएलियों ने अपने दायभाग में से लेवियों को निम्नलिखित नगर और चरागाह दिये। |
4) कहात के कुलों के लिए पहली चिट्ठी निकली। यूदा, सिमओन और बेनयामीन के वंषों से याजक हारून के वंषज लेवियों को तेरह नगर मिले। |
5) कहात के अन्य वंषजों को एफ्रईम, दान और आधे मनस्से के वंषों के कुलों से दस नगर मिले। |
6) गेरषोन के वंषजों को इस्साकार, आषेर, नफ्ताली और आधे मनस्से के वंषों के कुलों से बाषान में तेरह नगर मिले। |
7) मरारी के वंषजों के विभिन्न कुलों को रूबेन, गाद और ज+बुलों के वंषों से बारह नगर मिले। |
8) जैसी प्रभु द्वारा आज्ञा दी थी, इस्राएलियों ने चिट्ठी डाल कर लेवियों को चरागाहों के साथ ये नगर दे दिये। |
9) उन्होंने यूदा और सिमओन वंष को ये नगर दे दिये। |
10) ये हारून के वंषजों को लेवीवंषी कहाती कुलों को मिले, क्योंकि पहली चिट्ठी उनके नाम निकली थी। |
11) उन्होंने उन को आसपास के चरागाहों के साथ यूदा के पहाड़ी प्रदेष का किर्यत-अरबा, अर्थात हेब्रोन दिया (अरबा अनाक का पिता था)। |
12) परन्तु उन्होंने उस नगर के खेत और उसके आसपास के गाँव यफुन्ने के पुत्र कालेब के अधिकार में दिये। |
13) याजक हारून के वंषजों को उन्होंने ये नगर और इनके आसपास के चरागाह दिये : हेब्रोन (हत्या करने वालों का शरण नगर), लिबना, |
14) यत्तीर, एष्तमोआ, |
15) होलोन, दबीर |
16) ऐन, युट्टा और बेत-शेमेष, अर्थात यूदा और सिमओन वंष के भाग से नौ नगर। |
17) बेनयामीन वंष से उन्होंने ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह दिये : गिबओन, गेबा, |
18) अनातोत और अलमोन। |
19) याजक हारून के वंषजों के नगरों की कुल संख्या तेरह थी; उनके साथ उनके आसपास के चरागाह। |
20) लेवी वंषी के शेष कहाती कुलों को एफ्रईम वंष से नगर मिले। |
21) एफ्रईम के पहाड़ी क्षेत्र में उन्हें ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह मिले : मिखेम (हत्या करने वालों का शरण नगर), गेसेर, |
22) किबसईम और बेत-होरोन। |
23) फिर दान वंष से उन्हें ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह मिले : एलतके, गिब्बतोन, |
24) अय्यालोन और गत-रिम्मोन। |
25) आधे मनस्से के वंष से उन्हें ये दो नगर और इनके आसपास के चरागाह मिले : तानाक और गत-रिम्मोन। |
26) शेष कहाती कुलों को ये दस नगर और इनके आसपास के चरागाह मिले। |
27) लेवीवंषी गेरषोनियों को ये नगर मिले : आधे मनस्से वंष से दो नगर और उनके आसपास के चरागाह, अर्थात बाषान का गोलान (हत्या करने वालों का शरण नगर) और बएष्तरा। |
28) इस्साकार वंष से ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह, किषयोन, दाबरत, |
29) यर्मूत और एन-गन्नीम। |
30) आषेर वंष से ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह : मिषआल, अबदोन, |
31) हेलकत और रहोब। |
32) नफ्ताली वंष से ये तीन नगर और इनके आसपास ये चरागाह : गलीलिया का केदेष (हत्या करने वालों का शरण नगर), हम्मोत-दोर और कर्तान। |
33) गेरशोनी कुलों को कुल मिला कर तेरह नगर और उनके आसपास के चरागाह मिले। |
34) शेष लेवीवंषी मरारी कुलों को ये नगर मिले। जबुलोन वंष से ये चार नगर और इनके आसपास चरागाह : योकनआम, कर्ता, |
35) दिमना और नहलाल। |
36) रूबेन वंष से ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह, बेसेर, यहस |
37) केदेमोत ओर मेफाअत। |
38) (३८-३९) गाद वंष से ये चार नगर और इनके आसपास के चरागाह, गिलआद का रामोत (हत्या करने वालों का शरण नगर), महनयीम, हेषबोन और यजेर। |
40) इस प्रकार लेवीवंषी मरारी कुलों को कुल मिला कर बारह नगर मिले। |
41) इस्राएलियों की विरासत में लेवियों के नगरों की कुल संख्या, उनके चरागाहों सहित, अड़तालीस थी। |
42) सब नगरों के आसपास चरागाह थे। |
43) इस प्रकार प्रभु ने इस्राएलियों को वह सारा देष दे दिया, जिसे देने का उसने उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया था वे उसे अधिकार में कर उस में बस गये। |
44) प्रभु ने उनके समस्त देष में शान्ति स्थापित की, जैसा कि उसने उनके उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया था। उनके सब शत्रुओं में एक भी उनके सामने नहीं टिक सका। प्रभु ने उनके सब शत्रुओं को उनके हाथ दे दिया था। |
45) प्रभु ने इस्राएल के घराने को जो जो आषीर्वाद दिये थे, उने में से एक भी व्यर्थ नहीं हुआ, सब के सब चरितार्थ हुए। |
1) इसके बाद योषुआ ने रूबेन, गाद ओर आधे मनस्से के वंषों को बुला भेजा |
2) और उन से कहा, ''तुम लोगों ने उन सब आदेषों का पालन किया है, जिन्हें प्रभु के सेवक ने तुम्हें दिया और तुमने सब बातों में मेरी बात मानी। |
3) तुम लोग बहुत समय से आज तक अपने भाइयों की सहायता करते आ रहे हो। इस प्रकार प्रभु ने तुम्हें जो कार्य सौंपा, तुमने उसे पूरा किया। |
4) अब प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे भाइयों को शान्ति दी है। इसलिए अब तुम यहाँ से लौट कर उस देष के अपने घर चले जाओ जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने यर्दन के उस पार तुम्हें दायभाग के रूप में दिया। |
5) तुम सावधान हो कर उन आदेषों और संहिता का पालन करो, जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने तुम्हें दिया : प्रभु अपने ईष्वर को प्यार करो, उसके मार्गों पर चलते रहो, उसके आदेषों का पालन करो, उस से संयुक्त रहो और सारे हृदय और सारी आत्मा से उसकी सेवा करो। |
6) तब योषुआ ने उन्हें आषीर्वाद दे कर विदा किया और वे अपने-अपने घर लौट गये। |
7) मूसा ने मनस्से के आधे कुल को बाषान में भूमि दी थी और योषुआ ने मनस्से के दूसरे आधे कुल को यर्दन के पष्चिम में उनके भाइयों के बीच भूमि दी थी। योषुआ ने उन्हें अपने घर भेजा और आषीर्वाद देते हुए |
8) कहा, ''तुम अपनी भारी सम्पति - अपार पशुधन, चाँदी, सोना, काँसा, लोहा और बहुत से कपड़े ले कर अपने अपने घर लौट जाओ। अपने शत्रुओं से लूटी सम्पति को अपने भाइयों में बाँट दो।'' |
9) इस पर रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंष कनान के षिलों में इस्राएलियों से विदा लेकर अपने देष गिलआद लौटे, जिसे मूसा ने प्रभु के आदेष के अनुसार उन्हें दिया था। |
10) जब वे कनान देष के उस भाग में पहुँचे, जो यर्दन के पास है, तो रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंषियों ने वहाँ यर्दन के तट पर एक विषाल वेदी बनायी। |
11) इस्राएलियों को यह पता चला कि रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंषियों ने कनान देष की सीमा पर यर्दन के पास, जो इस्राएलियों की भूमि है, एक विषाल वेदी बनायी है। |
12) जब इस्राएलियों ने यह सुना, तब सारा इस्राएली समुदाय उन पर आक्रमण करने के लिए षिलों में एकत्रित हो गया। |
13) इस्राएलियों ने एलआजार के पुत्र याजक पीनहास को |
14) रूबेन, गाद ओर आधे मनस्से के वंषियों के पास गिलआद देष भेजा। पीनहास के साथ उन्होंने दस नेताओं को भेजा - इस्राएल के हर एक वंष से एक, जो इस्राएली कुलों के घरानों के मुखिया थे। |
15) गिलआद देष में रूबेन, गाद ओर आधे मनस्सेवंषियों के पास पहुँच कर उन्होंने उन से कहा, |
16) ''प्रभु का सारा समुदाय यह कहता है, तुम लोगों ने इस्राएल के ईष्वर के साथ ऐसा विष्वासघात क्यों किया? अपने लिए वेदी बना कर और प्रभु से विद्रोह कर तुम लोग आज प्रभु से विमुख क्यों हुए? |
17) क्या हमारे लिए पओर के पास किया गया अपना वही अपराध पर्याप्त नहीं था? उस अपराध के कारण प्रभु के समुदाय पर महामारी आ पड़ी; फिर भी हम आज तक उस अपराध के दोष से मुक्त नहीं हुए। |
18) अब तुम प्रभु से विमुख क्यों होना चाहते हो? आज तुम प्रभु से विद्रोह करोगे और कल इस्राएलियों के सारे समुदाय पर उसका क्रोध भड़क उठेगा। |
19) यदि अपने उस की भूमि तुम्हें दूषित मालूम पड़ती हो, तो वह देष आ जाओ, जो प्रभु की भूमि है तथा जहाँ प्रभु का निवासस्थान है और हमारे बीच बस जाओ। लेकिन प्रभु और हमसे विद्रोह मत करो और प्रभु हमारे ईष्वर की वेदी के अतिरिक्त अपने लिए एक और वेदी मत बनाओ। |
20) देखो, जब जेरह के पुत्र अकान ने प्रभु को अर्पित वस्तुओं में से अपने लिए कुछ लिया था, तो क्या इस्राएल के सारे समुदाय पर क्रोध नहीं भड़का था? उस एक के अपराध के कारण केवल उसी की तो मृत्यु नहीं हुई थी?'' |
21) इस पर रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंषियों ने इस्राएली कुलों के मुखियाओं को यह कहते हुए उत्तर दिया, |
22) ''ईष्वर! ईष्वर! सर्वेष्वर प्रभु! वह जानता है और इस्राएल यह जान ले! यदि यह प्रभु का विद्रोह और विष्वासघात हो, तो वह आज हमारी रक्षा न करें |
23) और यदि हमने यह वेदी प्रभु से विद्रोह करने के लिए बनायी हो अथवा उस पर होम, अन्न या शान्ति बलियाँ चढ़ाने के लिए बनायी हो, तो प्रभु इसका बदला हमसे चुकाये। |
24) वास्तव में हमने केवल इस डर से ऐसा किया कि कहीं भविष्य में तुम्हारी सन्तानें हमारी सन्तानों से यह न कहने लगें : 'प्रभु इस्राएल के ईष्वर से तुम्हारा क्या लेना देना? |
25) प्रभु ने तो हमारे और तुम्हारे बीच यर्दन को सीमा निर्धारित किया है। रूबेन ओैर गादवंषियों! प्रभु में तुम्हारी कोई भागीदारी नहीं! इस प्रकार तुम्हारी सन्तानें हमारी सन्तानों के हृदय से प्रभु की श्रद्वा को दूर कर सकती हैं। |
26) इसलिए हमने सोचा कि हम स्वयं एक वेदी बनायें, परन्तु वह होम बलि या अन्य बलि चढ़ाने के लिए न हो, |
27) बल्कि वह हमारे और तुम्हारे तथा हम दोनों के वंषजों के लिए एक साक्षी हो कि हम होम अन्न और शान्ति बलियाँ चढ़ा कर प्रभु के पवित्र स्थान में उसकी पूजा करेंगे। तब भविष्य में तुम्हारी सन्तानें हमारी सन्तानों से यह नहीं कह सकेंगी कि प्रभु में तुम्हारी कोई भागीदारी नहीं। |
28) हमने यह सोचा कि यदि वे कभी हम से या हमारे वंषजों से ऐसा कहेंगी, तो हम यह उत्तर देंगे : प्रभु की वेदी की यह प्रतिकृति देखो। हमारे पूर्वजों ने इसे होम, अन्न और शान्ति बलियाँ चढ़ाने नहीं, बल्कि इसलिए बनाया कि यह हमारे और तुम्हारे बीच साक्षी हो। |
29) प्रभु अपने ईष्वर के निवासस्थान के सामने जो वेदी है, उसके सिवा होम, अन्न और शान्ति बलियाँ चढ़ाने के लिए कोई अन्य वेदी बना कर आज प्रभु से विद्रोह करना और उस से विमुख होना - ऐसा विचार हमसे कोसों दूर है।'' |
30) जब याजक पीनहास और उसके साथ आये हुए समुदाय के नेताओं ने, अर्थात इस्राएली कुलों के मुख्यिाओं ने रूबेन, गाद और मनस्सेवंषियों का यह उत्तर सुना, तो वे इस से संतुष्ट हो गये। |
31) एलआजार के पुत्र याजक पीनहास ने रूबेन, गाद और मनस्सेवंषियों से कहा, ''आज हम जान गये कि प्रभु हमारे बीच है, क्योंकि तुमने प्रभु के प्रति विष्वासघात नहीं किया है। तुमने इस्राएल के लोगों को प्रभु के हाथों नष्ट होने से बचा लिया है।'' |
32) इसके बाद एलआजार के पुत्र याजक पीनहास ने नेताओं के साथ गिलआद में रूबेन ओर गादवंषियों के पास से कनान में इस्राएलियों के पास लौट कर उन्हें यह हाल सुनाया। |
33) यह हाल सुन कर इस्राएली सन्तुष्ट हो गये। इस्राएलियों ने प्रभु की स्तुति की और उनके विरुद्व युद्व करने तथा रूबेन और गादवंषियों का देष उजाड़ने का विचार छोड़ दिया। |
34) रूबेन और गादवंषियों ने उस वेदी का नाम साक्ष्य वेदी रखा, क्योंकि उनका कहना था कि यह हमारे बीच इस बात का साक्ष्य देती है कि प्रभु ही ईष्वर है। |
1) जब इस्राएलियों को अपने आसपास के सारे शत्रुओं से शान्ति मिली और बहुत समय बीत गया- योषुआ बूढ़ा हो गया और उसकी अवस्था बहुत अधिक हो गयी- |
2) तब योषुआ ने सारे इस्राएल को, उसके नेताओं, मुखियाओं, न्यायाधीषों और अधिकारियों को बुला कर उनसे कहा, ''अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और मेरी उम्र बहुत अधिक हो गयी है। |
3) प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हारे कल्याण के लिए इन सब राष्ट्रों के साथ जो कुछ भी किया है, तुमने वह सब अपनी आँखों से देखा है, क्योंकि स्वयं प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारी ओर से लड़ता था। |
4) देखो, यर्दन से ले कर पष्चिम के महासमुद्र तक मैंने चिट्ठियों द्वारा उन राष्ट्रों की भूमि को तुम्हारे वंषों को दायभाग के रूप में दे दिया, जो अब तक वहाँ रहते हैं या जिन को मैं नष्ट कर चुका हूँ। |
5) प्रभु तुम्हारा ईष्वर स्वयं उन्हें तुम्हारे सामने से हटा देगा। वह उन्हें तुम्हारे सामने से भगा देगा, जिससे तुम उनका देष अधिकार में कर सको, जैसा कि प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें वचन दिया। |
6) तुम मूसा की संहिता के ग्रन्थ में लिखी हुई सारी बातों का सावधानी से पालन करने का दृढ़ संकल्प करो और उस से तुम न बायें भटको और न दाहिने। |
7) तुम उन राष्ट्रों के साथ संबंध नहीं रखोगे, जो तुम्हारे बीच रहते हैं। तुम उनके देवताओं का नाम ले कर न तो प्रार्थना करोगे और न शपथ खाओंगे। तुम उन देवताओं की पूजा या आराधना नहीं करोगे। |
8) तुम्हें अपने प्रभु ईष्वर से संयुक्त रहना है, जैसा तुमने आज तक किया है। |
9) प्रभु ने तुम से बड़े और शक्तिषाली राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से भगा दिया है और आज तक तुम्हारे सामने कोई नहीं टिक सका है। |
10) तुम में से एक योद्धा हजार योद्धाओं को भगा सकता है, क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारी ओर से लड़ता है। |
11) इसलिए सावधान रहो : तुम प्रभु, अपने ईष्वर को प्यार करते रहो। |
12) ''जब तुम उस से विमुख हो जाओगे और अपने बीच रहने वाले राष्ट्रों से सन्धि करोगे, उनके साथ विवाह संबंध करोगे और उन से मिलते जुलते रहोगे, |
13) तो यह निष्चय जानो कि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर फिर उन राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से नहीं भगायेगा, बल्कि वे तब तक तुम्हारे फन्दा और जाल बनेंगे, वे तुम्हारी पसलियों के लिए कोड़ों जैसे और तुम्हारी आँखों के लिए काँटों जैसे बनेंगे, जब तक तुम इस रमणीय देष से लुप्त नहीं होगे, जिसे प्रभु तुम्हारे ईष्वर ने तुम को दिया है। |
14) ''देखो, मैं अब उस रास्ते से जाने वाला हूँ, जिस से सब को जाना है। तुम अच्छी तरह जानते हो कि प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम से जो मंगलमय प्रतिज्ञाएँ की हैं, उन में से एक भी व्यर्थ नहीं हुई। हर एक प्रतिज्ञा पूरी हो गयी है; एक भी व्यर्थ नहीं हुई। |
15) किन्तु जैसे प्रभु, तुम्हारे ईष्वर द्वारा तुम्हें दी गयी प्रत्येक मंगलमय प्रतिज्ञा पूरी हुई है, वैसे ही प्रभु ने जिन-जिन विपत्तियों की धमकी दी है, वह उन्हें तुम पर ढाहेगा और उस रमणीय देष से तुम्हारा विनाष करेगा, जिसे उसने तुम को दिया है। |
16) ''यदि तुम उस विधान को भंग करोगे, जिसका पालन करने का प्रभु ने तुम्हें आदेष दिया है, यदि तुम अन्य देवताओं की सेवा और आराधना करने लगोगे, तो प्रभु का क्रोध तुम पर भड़क उठेगा और तुम शीघ्र ही उस रमणीय देष से लुप्त हो जाओगे, जिसे उसने तुम को दिया है।'' |
1) योषुआ ने सिखेम में सब इस्राएली वंषों को इकट्टा कर लिया। इसके बाद उसने इस्राएल के वयोवृद्ध नेताओ, न्यायकर्ताओं और शास्त्रियों को बुला भेजा और वे सब ईष्वर के सामने उपस्थित हो गये। | ||
2) तब योषुआ ने समस्त लोगों से कहा, इस्राएल का प्रभु ईष्वर यह कहता है प्राचीन काल में तुम लोगों के पूर्वज, इब्राहीम और नाहोर का पिता तेरह, फरात नदी के उस पार निवास करते थे। वे अन्य देवताओं की उपासना करते थे। | ||
3) मैंने तुम्हारे पिता इब्राहीम को नदी के उस पार से बुलाया और सारा कनान देष घुमाया। मैंने उसके वंषजों की संख्या बढ़ायी मैंने उसे इसहाक को दिया | ||
4) और इसहाक को मैंने याकूब और एसाव को प्रदान किया। मैंने एसाव को सेईर का पहाड़ी देष दे दिया, किन्तु याकूब और उसके पुत्र मिस्र चले गये। | ||
5) मैंने मूसा और हारून को भेजा और चमत्कार दिखा कर मिस्रियों को पीड़ित किया। इसके बाद मैं तुम लोगों को निकाल लाया। | ||
6) मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया और तुम लाल समुद्र तक पहुँचे। तब मिस्रियों ने रथों और घोड़ों पर सवार हो कर समुद्र तक तुम्हारे पूर्वजों का पीछा किया। | ||
7) जब तुम्हारे पूर्वजों ने प्रभु की दुहाई दी, तो उसने तुम्हारे और मिस्रियों के बीच एक घना कुहरा फैला दिया और मिस्रियों पर समुद्र बहा दिया, जिससे वे डूब गये। तुमने अपनी ही आँखों से देखा कि मैंने मिस्र में तुम्हारे लिए क्या-क्या किया। इसके बाद तुम लोग बहुत समय तक मरुभूमि में निवास करते रहे। | ||
8) तब मैं तुम को यर्दन के उस पार रहने वाले अमोरियों के देष ले गया। उन्होंने तुम पर आक्रमण किया और मैंने उन्हें तुम लोगों के हवाले कर दिया। तुमने उनका देष अपने अधिकार में कर लिया और मैंने तुम्हारे लिए उनका विनाष किया। | ||
9) तब मोआब का राजा, सिप्पोर का पुत्र बालाक, इस्राएल के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगा। उसने तुम्हें अभिषाप देने के लिए बओर के पुत्र बिलआम को बुला भेजा। | ||
10) किन्तु मैंने बिलआम की बात नहीं मानी और उसे तुम लोगों को आषीर्वाद देना पड़ा। इस प्रकार मैंने तुम को बालाक के हाथ से बचाया। | ||
11) इसके बाद तुम लोग यर्दन पार कर येरीखो आये। येरीखो के नागरिकों अमोरियों, परिज्जि+यों, कनानियों, हित्तियों, गिरगाषियों, हिव्वियों और यबूसियों ने तुम्हारा सामना किया, किन्तु मैंने उन्हें तुम लोगों के हवाले कर दिया। | ||
12) मैंने तुम लोगों के आगे आतंक फैला दिया और इस कारण - तुम्हारी तलवार और तुम्हारे धनुष के कारण नहीं - अमोरियों के दोनों राजा तुम्हारे सामने से भाग गये। | ||
13) मैंने तुम्हें एक ऐसा देष दे दिया, जिसके लिए तुमने परिश्रम नहीं किया, निवास के लिए ऐसे नगर दे दिये, जिन्हें तुमने नहीं बनाया और जीवन निर्वाह के लिए ऐसी दाखबारियों और जैतून के पेड़, जिन्हें तुमने नहीं लगाया। | ||
14) प्रभु पर श्रद्धा रखो और ईमारदारी तथा सच्चाई से उसकी उपासना करो। उन देवताओं का बहिष्कार करो, जिनकी उपासना तुम्हारे पूर्वज फरात नदी के उस पार और मिस्र में किया करते थे। तुम प्रभु की उपासना करो। | ||
15) यदि तुम ईष्वर की उपासना नहीं करना चाहते, तो आज ही यह कर लो कि तुम किसकी उपासना करना चाहते हो- उन देवताओं की, जिनकी उपासना तुम्हारे पूर्वज नदी के उस पार करते थे अथवा अमोरियों के देवताओं की, जिनके देष में तुम रहते हो। मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की उपासना करना चाहते हैं। | ||
16) लोगों ने उत्तर दिया, ''प्रभु के छोड़ कर अन्य देवताओं की उपासना करने का विचार हम से कोसों दूर है। | ||
17) हमारे प्रभु-ईष्वर ने हमें और हमारे पूर्वजों को दासता के घर से, मिस्र देष से निकाल लिया है। उसी ने हमारे सामने महान् चमत्कार दिखाये हैं। हम बहुत लम्बा रास्ता तय कर चुके हैं, बहुत से राष्ट्रों से हो कर यहाँ तक आये हैं और सर्वत्र उसी ने हमारी रक्षा की है। | ||
18) हम भी प्रभु की उपासना करना चाहते हैं, क्योंकि वही हमारा ईष्वर है। | ||
19) तब योषुआ ने लोगों से कहा, ''तुम प्रभु की उपासना नहीं कर सकोगे, क्योंकि वह पवित्र ईष्वर है, असहनषील ईष्वर है। वह तुम्हारे अपराध और पाप नहीं क्षमा करेगा। | ||
20) यदि प्रभु को त्याग कर अन्य देवताओं की उपासना करोगे, तो यद्यपि वह तुम्हारी भलाई करता रहा, फिर भी वह तुम्हारी बुराई करेगा और तुम्हें नष्ट कर देगा।'' | ||
21) लोगों ने योषुआ से कहा, ''नहीं! हम प्रभु की उपासना करेंगे।'' | ||
22) तब योषुआ ने लोगों से कहा, ''तुम लोग अपने विरुद्ध साक्षी हो कि तुमने प्रभु को चुन लिया ओर उसी की उपासना करोगे''। उन्होंने उत्तर दिया, ''हम साक्षी हैं।'' | ||
23) इस पर योषुआ ने कहा, ''तब तो अपने पास के पराये देवताओं का बहिष्कार करो और अपना मन ईष्वर में, इस्राएल के प्रभु में लगाओ''। | ||
24) लोगों ने योषुआ को यह उत्तर दिया, ''हम प्रभु अपने ईष्वर की उपासना करेंगे और उसी की बात मानेंगे''। | ||
25) योषुआ ने उसी दिन लोगों के साथ समझौता कर लिया। उसने सिखेम में उनके लिए संविधान और अध्यादेष बनाया। | ||
26) इसके बाद उसने उन बातों को प्रभु की संहिता के ग्रन्थ में लिख दिया। उसने बलूत के नीचे, प्रभु के मंदिर में एक बड़ा पत्थर खड़ा कर दिया | ||
27) और सब लोगों से कहा, यह पत्थर हमारे विरुद्ध साक्ष्य देगा, क्योंकि इसने उन सब बातों को सुना, जिन्हें प्रभु ने हमें बताया। इसलिए यह तुम्हारे विरुद्व साक्ष्य देगा, जिससे तुम अपने ईष्वर को अस्वीकार नहीं करो।'' | ||
28) इसके बाद योषुआ ने लोगों को अपनी अपनी भूमि में भेज दिया। | ||
29) इन घटनाओं के बाद प्रभु के सेवक, नून के पुत्र योषुआ का, एक सौ दस वर्ष की उम्र में देहान्त हुआ। | ||
30) वह गाष पर्वत के उत्तर में, एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेष के तिमनत सेरह में, अपने निजी दायभाग की मिट्टी में दफनाया गया। | ||
31) योषुआ और उसके बाद जीवित रहने वाले उन नेताओं के जीवनकाल तक, जो इस्राएल के लिए प्रभु द्वारा किये हुए समस्त कार्य जानते थे, इस्राएली प्रभु की सेवा करते रहे। | ||
32) यूसुफ़ की अस्थियाँ, जिन्हें इस्राएली मिस्र से ले आये थे, सिखेम के उस भूभाग में गाड़ दी गयी जिसे याकूब ने सिखेम के पिता हमोर के पुत्रों से चाँदी के सौ सिक्कों में खरीदा था और जो यूसुफ़ के वंषजों को दायभाग के रूप में प्राप्त हुआ था। | ||
33) हारून के पुत्र एलआजार की मृत्यु हो गयी। वह अपने पुत्र पीनहास के नगर गिबआ में, जो उसे एफ्रईम के पहाड़ी प्रान्त में मिला था, दफना दिया गया। | ||
An endeavour by Bible Mitr under the patronage
of
Bhopal Archdiocese |