पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

नया विधान : Naya Vidhan ( New Testament )

कलोसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र ( Colossians )

अध्याय 1

1) कलोस्सै- निवासी सन्तो, मसीह में विश्वास करने वाले भाइयों के नाम पौलुस, जो ईश्वर द्वारा ईसा मसीह का प्रेरित नियुक्त हुआ है, और भाई तिमथी का पत्र।
2) हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें!
3) (३-४) हमने ईसा मसीह में आप लोगों के विश्वास और सभी विश्वासियों के प्रति आपके भ्रातृप्रेम के विषय में सुना है। इसलिए हम आप लोगों के कारण अपने प्रभु ईसा के पिता को निरन्तर धन्यवाद देते और अपनी प्रार्थनाओं में आपका स्मरण करते रहते हैं।
5) आपका विश्वास और भ्रातृप्रेम उस आशा पर आधारित है, जो स्वर्ग में आपके लिए सुरक्षित है और जिसके विषय में आपने तब सुना, जब सच्चे सुसमाचार का सन्देश
6) आपके पास पहुँचा। यह समस्त संसार में फैलता और बढ़ता जा रहा है। आप लोगों के यहाँ यह उस दिन से फैलता और बढ़ता रहा है, जिस दिन आपने ईश्वर के अनुग्रह के विषय में सुना और उसका मर्म समझा।
7) आप को हमारे प्रिय सहयोगी एपाफ्रास से इसकी शिक्षा मिली है। एपाफ्रास हमारे प्रतिनिधि के रूप में मसीह के विश्वासी सेवक है।
8) उन्होंने हमें बताया है कि आत्मा ने आप लोगों में कितना प्रेम उत्पन्न किया है।
9) जिस दिन से हमने यह सुना, हम निरंतर आप लोगों के लिए प्रार्थना करते रहे हैं। हम ईश्वर से यह निवेदन करते हैं कि वह आप को समस्त प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि प्रदान करे, जिससे आप उसकी इच्छा पूर्ण रूप से समझ सकें।
10) इस प्रकार आप प्रभु के योग्य जीवन बिता कर सब बातों में उसे प्रसन्न करेंगे, हर प्रकार के भले कार्य करते रहेंगे और ईश्वर के ज्ञान में बढ़ते जायेंगे।
11) आप ईश्वर की महिमामय शक्ति से बल पा कर सदा दृढ़ बने रहेंगे,
12) सब कुछ आनन्द के साथ सह सकेंगे और पिता को धन्यवाद देंगे, जिसने आप को इस योग्य बनाया है कि आप ज्योति के राज्य में रहने वाले सन्तों के सहभागी बनें।
13) ईश्वर हमें अन्धकार की अधीनता से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आया।
14) उस पुत्र के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, अर्थात् हमें पापों की क्षमा मिली है।
15) ईसा मसीह अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टि के पहलौठे हैं;
16) क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। सब कुछ - चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, और स्वर्गदूतों की श्रेणियां भी - सब कुछ उनके द्वारा और उनके लिए सृष्ट किया गया है।
17) वह समस्त सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं और समस्त सृष्टि उन में ही टिकी हुई है।
18) वही शरीर अर्थात् कलीसिया के शीर्ष हैं। वही मूल कारण हैं और मृतकों में से प्रथम जी उठने वाले भी, इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेष्ठ हैं।
19) ईश्वर ने चाहा कि उन में सब प्रकार की परिपूर्णता हो।
20) मसीह ने क्रूस पर जो रक्त बहाया, उसके द्वारा ईश्वर ने शान्ति की स्थापना की। इस तरह ईश्वर ने उन्हीं के द्वारा सब कुछ का, चाहे वह पृथ्वी पर हो या स्वर्ग में, अपने से मेल कराया।
21) आप लोग भी अपने कुकर्मों के कारण ईश्वर से दूर हो गये थे और आपके मन में ईश्वर की शत्रुता भर गयी थी।
22) किन्तु अब मसीह ने अपने मरणशील शरीर की मृत्यु द्वारा ईश्वर से आपका मेल कराया है, जिससे वह आप को पवित्र, निर्दोष और अनिन्द्य बना कर ईश्वर के सामने प्रस्तुत कर सकें।
23) किन्तु आप को विश्वास में दृढ़ और अटल बना रहना चाहिए, जो आप को सुसमाचार द्वारा दिलायी गयी। वह सुसमाचार द्वारा दिलायी गयी। वह सुसमाचार आकाश के नीचे की समस्त सृष्टि को सुनाया गया है और मैं, पौलुुस, उसका सेवक हूँ।
24) इस समय मैं आप लोगों के लिए जो कष्ट पाता हूँ, उसके कारण प्रसन्न हूँ। मसीह ने अपने शरीर अर्थात् कलीसिया के लिए जो दुःख भोगा है, उस में जो कमी रह गयी है, मैं उसे अपने शरीर में पूरा करता हूँ।
25) मैं ईश्वर के विधान के अनुसार कलीसिया का सेवक बन गया हूँ, जिससे मैं आप लोगों को ईश्वर का वह सन्देश,
26) वह रहस्य सुनाऊँ, जो युगों तथा पीढ़ियों तक गुप्त रहा और अब उसके सन्तों के लिए प्रकट किया गया है।
27) ईश्वर ने उन्हें दिखलाना चाहा कि गैर-यहूदियों में इस रहस्य की कितनी महिमामय समृद्धि है। वह रहस्य यह है कि मसीह आप लोगों के बीच हैं और उन में आप लोगों की महिमा की आशा है।
28) हम उन्हीं मसीह का प्रचार करते हैं, प्रत्येक मनुष्य को उपदेश देते और प्रत्येक मनुष्य को पूर्ण ज्ञान की शिक्षा देते हैं, जिससे हम प्रत्येक मनुष्य को मसीह में पूर्णता तक पहुँचा सकें।
29) इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं उनके सामर्थ्य से, जो मुझ में प्रबल रूप से क्रियाशील है, प्रेरित हो कर कठिन परिश्रम करते हुए संघर्ष में लगा रहता हूँ।

अध्याय 2

1) मैं चाहता हूँ कि आप यह जानें कि मैं आप लोगों के लिए, लौदीकिया के विश्वासियों और उन सबों के लिए, जिन्होंने मुझे कभी नहीं देखा, कितना कठोर परिश्रम करता रहता हूँ,
2) जिससे वे हिम्मत न हारें, पे्रेम की एकता में बंधे रहें, ज्ञान की परिपूर्णता प्राप्त करें और इस प्रकार ईश्वर के रहस्य के मर्म तक पहुँच जायें।
3) वह रहस्य है मसीह, जिन में प्रज्ञा तथा ज्ञान की सम्पूर्ण निधि निहित है।
4) मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि कोई भ्रामक तर्कों द्वारा आप लोगों को नहीं बहकाये।
5) मैं शरीर से दूर होते हुए भी मन से आप लोगों के साथ हूँ और मुझे यह देख कर आनन्द होता है कि आपका जीवन सुव्यवस्थित और मसीह में आपका विश्वास सुदृढ़ है।
6) आपने ईसा मसीह को प्रभु के रूप में स्वीकार किया है;
7) इसलिए उन्हीं से संयुक्त हो कर जीवन बितायें। उन्हीं से संयुक्त हो कर जीवन बितायें। उन्हीं में आपकी जड़ें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो। आप को जिस विश्वास की शिक्षा प्राप्त हुई है, उसी में दृढ़ बने रहें और आपके हृदयों में धन्यवाद की प्रार्थना उमड़ती रहे।
8) सावधान रहें। कहीं ऐसा न हो कि कोई आप लोगों को ऐसे खोखले और भ्रामक दर्शन-शास्त्र द्वारा बहकाये, जो मनुष्यों की परम्परागत शिक्षा के अनुसार है और मसीह पर नहीं, बल्कि संसार के तत्वों पर आधारित हैं।
9) क्योंकि मसीह में ईश्वरीय तत्व की परिपूर्णता अवतरित हो कर निवास करती है
10) और उन में आप इस परिपूर्णता के सहभागी है। मसीह विश्व के सभी आधिपत्यों और अधिकारों के शीर्ष हैं- सभी मसीह के अधीन हैं।
11) उन्हीं में आप लोगों का ख़तना भी हुआ है। वह ख़तना हाथ से नहीं किया जाता, वह ख़तना मसीह का अर्थात् बपतिस्मा है, जिसके द्वारा पापमय शरीर को उतार कर फेंक दिया जाता है।
12) आप लोग बपतिस्मा के समय मसीह के साथ दफ़नाये गये और उन्हीं के साथ पुनर्जीवित भी किये गये हैं, क्योंकि आप लोगों ने ईश्वर के सामर्थ्य में विश्वास किया, जिसने उन्हें मृतकों में से पुनर्जीवित किया।
13) आप लोग पापों के कारण और अपने स्वभाव के ख़तने के अभाव के कारण मर गये थे। ईश्वर ने आप लोगों को मसीह के साथ पुनर्जीवित किया है और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया है।
14) उसने नियमों का वह बन्धपत्र, जो हमारे विरुद्ध था, रद्द कर दिया और उसे क्रूस पर ठोंक कर उठा दिया है।
15) उसने विश्व के प्रत्येक आधिपत्य और अधिकर को अपदस्थ किया, संसार की दृष्टि में उन को नीचा दिखाया और क्रूस के द्वारा उन्हें पराजित कर दिया है।
16) इसलिए किसी को यह अधिकार नहीं कि वह खान-पान, पर्व, अमावस्या या विश्राम-दिवस के विषय में आप लोगों पर दोष लगाये।
17) यह सब आने वाली बातों की छाया मात्र है; ठोस वास्तविकता मसीह की हैं।
18) आप अपने को ऐसे लोगों द्वारा अपने पुरस्कार से वंचित न होने दें, जो तपस्या, स्वर्गदूतों की पूजा और अपने तथा-कथित दिव्य दृश्यों को अनुचित महत्व देते हैं।
19) वे लोग अपनी सांसारिक बुद्धि के कारण घमण्ड से फूल जाते हैं और इस प्रकार शीर्ष अर्थात् मसीह से संयुक्त नहीं रह पाते। मसीह वह शीर्ष है, जो समस्त शरीर को पोषित करता है और इस प्रकार शरीर, सन्धियों और स्नायुओं द्वारा संगठित हो कर ईश्वर की इच्छानुसार बढ़ता है।
20) यदि आप लोग मसीह के साथ मर कर संसार के तत्वों से मुक्त हो गये हैं, तो आप उसके आदेशों का पालन क्यों करें, मानो आपका जीवन अब तक संसार के अधीन हो?
21) ''उस से परहेज करना, यह मत चखना, वह मत छूना'' -
22) ये सब मनुष्यों के आदेश हैं, मानवीय सिद्धान्तों पर आधारित हैं और ऐसी वस्तुओं से सम्बन्ध रखते हैं, जो उपयोग में आने पर नष्ट हो जाती है।
23) मनमानी व्यक्तिगत साधना, दैन्य और कठोर तपस्या द्वारा ज्ञान का दिखावा तो होता है, किन्तु ये शरीर की वासनाओं का दमन करने में असमर्थ है।

अध्याय 3

1) यदि आप लोग मसीह के साथ ही जी उठे हैं- जो ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं- तो ऊपर की चीजें खोजते रहें।
2) आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीजों की चिन्ता किया करें।
3) आप तो मर चुके हैं, आपका जीवन मसीह के साथ ईश्वर में छिपा हुआ है।
4) मसीह ही आपका जीवन हैं। जब मसीह प्रकट होंगे, तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे।
5) इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों का दमन करें, जो पृथ्वी की हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ का, जो मूर्तिपूजा के सदृश है।
6) इन बातों के कारण ईश्वर का कोप आ पड़ता है।
7) जब आप इस प्रकार का पापमय जीवन बिताते थे, तो आप भी पहले यह सब कर चुके हैं।
8) अब तो आप लोगों को क्रोध, उत्तेजना, द्वेष, परनिन्दा और अश्लील बातचीत-यह सब एकदम छोड़ देना चाहिए।
9) कभी एक दूसरे से झूठ नहीं बोलें। आप लोगों ने अपना पुराना स्वभाव और उसके कर्मों को उतार कर
10) एक नया स्वभाव धारण किया है। वह स्वभाव अपने सृष्टिकर्ता का प्रतिरूप बन कर नवीन होता रहता और सत्य के ज्ञान की ओर आगे बढ़ता है, जहाँ पहुँच कर कोई भेद नहीं रहता,
11) जहाँ न यूनानी है या यहूदी, न ख़तना है या ख़तने का अभाव, न बर्बर है, न स्कूती, न दास और न स्वतन्त्र। वहाँ केवल मसीह हैं, जो सब कुछ और सब में हैं।
12) आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।
13) आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।
14) इसके अतिरिक्त, आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।
15) मसीह की शान्ति आपके हृदय में राज्य करे। इसी शान्ति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें।
16) मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करें। आप बड़ी समझदारी से एक दूसरे को शिक्षा और उपदेश दिया करें। आप कृतज्ञ हृदय से ईश्वर के आदर में भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाया करें।
17) आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।
18) जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिए उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें।
19) पति अपनी पत्नियों को प्यार करें और उनके साथ कठोर व्यवहार नहीं करें।
20) बच्चे सभी बातों में अपने माता पिता की आज्ञा मानें, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है
21) पिता अपने बच्चों को खिझाया नहीं करें। कहीं ऐसा न हो कि उनका दिल टूट जाये।
22) दासों से मेरा अनुरोध यह है कि आप सब बातों में उन लोगों की आज्ञा मानें, जो इस पृथ्वी पर आपके स्वामी हैं। आप मनुष्यों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से दिखावे मात्र के लिए नहीं, बल्कि निष्कपट हृदय से तथा प्रभु पर श्रद्धा रख कर ऐसा करें।
23) आप लोग जो भी काम करें, मन लगा कर करें, मानों मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि प्रभु के लिए काम कर रहे हों;
24) क्योंकि आप जानते हैं कि प्रभु पुरस्कार के रूप में आप को विरासत प्रदान करेगा। आप लोग प्रभु के दास हैं।
25) जो अन्याय करता है, उसे अन्याय का बदला मिलेगा- किसी के साथ पक्षपात नहीं होगा।

अध्याय 4

1) स्वामियो! आप लोग यह जान कर अपने दासों के साथ न्यायपूर्ण और उचित व्यवहार करें कि स्वर्ग में आपका भी एक स्वामी है।
2) आप लोग सजग हो कर प्रार्थना और धन्यवाद में लगे रहें।
3) आप हमारे लिए भी प्रार्थना करें, जिससे ईश्वर हमें सुसमाचार सुनाने का तथा मसीह का रहस्य, जिसके लिए मैं अभी बेड़ियों से जकड़ा हुआ हूँ, घोषित करने का सुअवसर प्रदान करे।
4) आप प्रार्थना करें, जिससे मैं वह रहस्य प्रकट कर सकूँ, जैसा कि मेरा कर्तव्य है।
5) आप लोग बाहर वालों के साथ बुद्धिमानी से व्यवहार करें। वर्तमान समय से पूरा-पूरा लाभ उठायें।
6) आपकी बातचीत सदा मनोहर और सुरूचिपूर्ण हो और आप लोग प्रत्येक को समुचित उत्तर देना सीखें।
7) मेरे ईमानदार सहयोगी और मसीह की सेवा में मेरे साथी, हमारे प्रिय भाई तुखिकुस आप लोगों को मेरे विषय में बतायेंगे।
8) मैं उन्हें आप लोगों के पास इसलिए भेज रहा हूँ कि आप मेरे विषय में पूरा समाचार जानें और इसलिए भी कि वह आप को ढारस बँधायें।
9) इनके साथ आपके देशवासी, हमारे ईमानदार और प्रिय भाई ओनेसिमुस भी जा रहे हैं। ये दोनों आप लोगों को यहाँ का पूरा हाल बतायेंगे।
10) आरिस्तार्खुस, जो मेरे साथ कैदी हैं, और बरनाबस के चचेरे भाई मारकुस आप लोगों को नमस्कार कहते हैं। मारकुस के विषय में आप को अनुदेश मिल चुके हैं। यदि वह आप लोगों के यहाँ आयें, तो उनका स्वागत करें।
11) येसुस युस्तुस भी आप लोगों को नमस्कार करते हैं। यहूदियों में ये तीन ही ईश्वर के राज्य के विस्तार के लिए मेरे साथ काम करत रहें हैं। इनसे मुझे बड़ी सांत्वना मिली है।
12) आपके देशवासी एपाफ्रास आप लोगों को नमस्कार कहते हैं। ईसा मसीह के यह सेवक बड़े मनोयोग से निरन्तर आप लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं, जिससे आप लोग सब बातों में ईश्वर की इच्छा पूर्ण रूप से पूरी करने में सुदृढ़ बने रहें।
13) मैं इनके विषय में यह साक्ष्य दे सकता हूँ कि यह आप लोगों के लिए और लौदीकिया तथा हियेरापोलिस के निवासियों के लिए बहुत कष्ट उठा रहे हैं।
14) प्रिय वैद्य लूकस और देमास आप लोगों को नमस्कार कहते हैं।
15) लौदीकिया के भाइयों को नुम्फा और उनके घर में एकत्र होने वाली कलीसिया को नमस्कार।
16) जब यह पत्र आप लोगों के यहाँ पढ़ कर सुनाया जा चुकेगा, तो आप ऐसा प्रबन्ध करें कि यह लौदीकिया में भी पढ़ कर सुनाया जाये और लौदीकिया के नाम लिखा हुआ पत्र आप लोग भी पढ़ें।
17) आप लोग अरख़िप्पुस से यह कहें, ÷÷आप को प्रभु के नाम पर जो धर्मसेवा सौंपी गयी है, उसे अच्छी तरह पूरा करने का ध्यान रखें''।
18) यह नमस्कार पौलुस का है- यह मेरे अपने हाथ का लिखा हुआ है। मेरी बेड़ियाँ याद रखें। आप लोगों पर कृपा बनी रहे!