पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

विधि-विवरण ग्रन्थ ( Deuteronomy )

अध्याय 1

1) मूसा ने यर्दन के उस पार के उजाड़खण्ड अर्थात् अराबा में सूफ़ के सामने पारान, तोफ़ेल, लाबान हसेरोत और दीजाहाब के बीच सब इस्राएलियों को सम्बोधित करते हुए यह कहा।
2) (पहाडी प्रदेष सेईर के मार्ग से, होरेब से कादेष-बरनेअ तक की यात्रा ग्यारह दिन की है)
3) चालीसवें वर्ष के ग्यारहवें महीने के पहले दिन मूसा ने इस्राएलियों को वे ही बातें सुनायीं जिनका आदेष प्रभु ने उसे दिया था।
4) इसके पूर्व वह अमोरियों के राजा सीहोन को जिसका दरबार हेषबोन में था और बाषान के राजा ओग को, जिसका दरबार अष्तारोत और एद्रेई में था पराजित कर चुका था।
5) यर्दन के उस पार मोआब के प्रदेष में मूसा ने यह कहते हुए संहिता प्रस्तुत कीः
6) ''प्रभु हमारे ईष्वर ने होरेब के पास हम से कहा था, ÷तुम लोग इस पर्वत के पास काफ़ी समय तक ठहर चुके हो।
7) अब चल कर अमोरियों के पहाड़ी प्रदेष की ओर प्रस्थान करो और उनके साथ पड़ोसियों की ओर, जो अराबा पहाड़ी प्रदेष और तराई नैगेब में, समुद्र तट पर, कनानियों के देष, लेबनोन में और महानदी फ़रात तक निवास करते हैं।
8) देखो यह देष तुम्हारे सामने है। तुम उधर जाओ और इस देष को अपने अधिकार में ले लो। इसके बारे में प्रभु ने शपथपूर्वक वचन दिया था कि वह इसे तुम्हारे पूर्वजों को, इब्राहीम, इसहाक, याकूब और उनके बाद उनके वषंजों को दे देगा।
9) उस समय मैंने तुम लोगों से यह भी कहा था कि मैं अकेला तुम्हें सँभालने में असमर्थ हँू।
10) प्रभु तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हारी संख्या बढ़ाई है; इसलिए आज तुम आकाष के तारों की तरह असंख्य हो
11) तुम्हारे पूर्वजों का ईष्वर, प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारी संख्या हज+ार गुना बढ़ाये और तुम्हे आषीर्वाद दे।
12) किन्तु मैं अकेले तुम्हारी समस्याएँ, भार और झगडे+ कहाँ तक ढोता रहूँगा।
13) इसलिए तुम अपने-अपने वंष के बीच बु+द्धिमान्, योग्य और अनुभवी व्यक्तियों को+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चुनो जिससे मैं उन्हें तुम लोगों पर नियुक्त करूँ।
14) इस पर तुमने मुझे उत्तर दिया 'आपका कहना उचित है'।
15) इसलिए मैंने तुम्हारे वषंजों के नेताओं को, बुद्धिमान् और अनुभवी व्यक्तियों को चुना और उन्हें हज+ार-हज+ार, सौ-सौ, पचास-पचास और दस-दस मनुष्यों की टोली पर शासक और वंष के सचिव के रूप मे नियुक्त किया।
16) उस समय मैंने तुम्हारे न्यायाधीषों को आदेष दिया कि वे तुम्हारे भाइयों के दोनों पक्षों की बातें सुनकर उनका न्यायपूर्वक निर्णय करें। चाहे मामला दो इस्राएलियों का हो, चाहे एक स्वदेषी हो और दूसरा विदेषी।
17) न्याय करते समय किसी का पक्ष मत लो। छोटे-बडे+ सब के मामले समान भाव से सुनो। किसी से नहीं डरो। क्योंकि न्याय ईष्वर का है। यदि तुम्हें कोई मामला कठिन मालूम पडे+, तो उसे मेरे सामने रखो, जिससे मैं उस पर विचार कर सकूँ।
18) उस समय मैंने आदेष दिया कि तुम्हें क्या-क्या करना चाहिए।
19) जैसा हमें प्रभु, अपने ईष्वर से आदेष मिला था, हमने होरेब से चलकर अमोरियों के पहाड़ी प्रदेष की ओर जाते हुए बडे+ और भीषण उजाड़खण्ड को पार किया, जिसे तुम स्वयंं देख चुके हो और हम कादेष-बरनेआ आये।
20) वहाँ मैंने तुम लोगों से कहा था, 'अब तुम अमोरियों के पहाडी प्रदेष तक आ चुके हो, जिसे प्रभु, हमारा ईष्वर हमें देने वाला है।
21) देखो, प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें ये देष दिया है। उधर जाओ, उसे अपने अधिकार में ले लो, जैसा प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईष्वर ने तुम्हें आदेष दिया है। तुम न तो डरो और न हताष हो।
22) तब तुम सब ने मेरे पास आ कर कहा, 'हम अपने आगे अपने आदमियों को भेजें। वे हमारे लिए उस देष का निरीक्षण करें और हमें उस मार्ग के विषय में बतायें जिस से होकर हमें वहाँ जाना होगा और उन नगरों के विषय में भी, जो हमारे मार्ग में पडेंगे।
23) यह प्रस्ताव मुझे उचित लगा। इसलिए मैंने तुम लोगों में से बारह पुरुषों को, प्रत्येक कुल से एक पुरुष को, चुना।
24) वे चले गए और पहाड़ी प्रदेष पार कर एषकोंल घाटी मे पहुँचे और उन्होंने उसका भेद लिया।
25) उन्होंने उस देष के फल लाकर हमें दिये और हमें बतलाया कि वह देष रमणीय है, जिसे प्रभु हमें देने वाला है।
26) परन्तु तुमने उधर जाना अस्वीकार कर प्रभु अपने ईष्वर के आदेश के विरुद्ध विद्रोह किया।
27) तुम लोग अपने-अपने तम्बुओं में यह कहते हुए भुनभनाते थे ÷ईश्वर हम से बैर करता है। यही कारण है कि उसने हमें मिस्र देष से निकाल कर अमोरियों के हाथ दे दिया, जिससे हमारा विनाष हों।
28) अब हम कहाँ जायें? हमारे बन्धुओं ने ही यह कहते हुए हमें निरूत्साहित किया कि वहाँ के लोग हम से अधिक बलवान् और हमसे अधिक लम्बे हैं। उनके नगर बड़े हैं और उनके परकोटे आकाष छूते हैं और हमने वहाँ अनाक के वंषजों को भी देखा।
29) यह सुन कर मैंने तुम्हें समझाया ÷उनसे मत डरो और भयभीत मत हो।
30) प्रभु, तुम्हारा ईष्वर आगे-आगे चलेगा और तुम्हारे लिए ठीक उसी तरह लडे+गा, जिस तरह उसने मिस्र में तुम्हारी आँखों के सामने किया था।
31) तुम उस उजाड़खण्ड़ में देख चुके हो कि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उस पूरे मार्ग पर, जिस पर तुम यहाँ तक आये हो, तुम्हें इस प्रकार गोद में उठाकर ले आया, जैसे कोई पिता अपने पुत्र को उठाकर ले आता है।'
32) यह होते हुए भी तुम प्रभु, अपने ईष्वर पर विष्वास नहीं करते थे,
33) यद्यपि वह रास्ते में तुम्हारे आगे-आगे चलता हुआ तुम्हारे लिए पड़ाव चुना करता था और रात में अग्नि के रूप में तथा दिन मे मेघखण्ड के रूप में तुम्हें मार्ग दिखाता था।
34) ''तुम्हारा यह कथन सुनकर प्रभु क्रुद्ध हो गया। उसने यह शपथ खायी,
35) 'इस दुष्ट पीढ़ी में से कोई भी उस रमणीय देष को नहीं देख पायेगा, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने का शपथ पूर्वक वचन दिया था।
36) केवल यफुन्ने का पुत्र कालेब उसे देख पायेगा। उसे और उसकी सन्तानों को यह देष दूँगा, जिस में उसने अपने पैर रखे थे, क्योंकि उसने प्रभु की आज्ञा का पूर्णतः पालन किया।'
37) तुम्हारे कारण प्रभु मुुझ पर भी यह कहते हुए क्रुद्ध हुआ था, 'तुम भी वहाँ नहीं जा सकोगे।
38) केवल नून का पुत्र योषुआ, जो तुम्हारा सहायक है, वहाँ पहुँच सकेगा। उसे प्रोत्साहित करो, क्योंकि वही देष को इस्राएलियों में बाँटेगा।
39) परन्तु तुम्हारे छोटे-छोटे बच्चे वहाँ पहँुचेगे, जिनके विषय में तुमने कहा था कि शत्रु उन्हें लूट लेंगे और तुम्हारे वे बालक, जिन्हें आज भले-बुरे की पहचान नहीं है। मैं उसे उन्हें दूँगा और वे उसे अपने अधिकार में करेंगे।
40) परन्तु तुम लोग लौटो और लाल समुद्र के मार्ग से उजाड़खण्ड़ की ओर प्रस्थान करो।
41) ''इस पर तुम लोगों ने मुझे यह उत्तर दिया, ÷हमने प्रभु के विरुद्ध अपराध किया है। हम उधर जायेंगे और युद्ध करेंगे, जैसा प्रभु, हमारे ईष्वर ने हमें आदेष दिया है।' तब तुम में से प्रत्येक ने अपने-अपने शस्त्र बाँध लिये थे और सोचा था कि पहाडी प्रदेष में ऊपर चढ़ना आसान है।
42) परन्तु प्रभु ने मुझ से कहा था, 'उन्हें मना करो। वे न उधर जायें और न युद्ध करें। नहीं तो वे अपने शत्रुओं से परास्त हो जायेंगे, क्योंकि मैं उनका साथ नहीं दूँगा।'
43) मैंने तुम लोगों से यह कहा, किन्तु तुमने मेरी बातें नहीं मानीं। तुमने प्रभु के विरुद्ध विद्रोह किया और पहाड़ी प्रदेष पर चढ़ने का दुस्साहस किया।
44) उस पहाड़ी प्रदेष के अमोरियों ने तुम्हारा सामना किया और मधुमक्खियों की तरह तुम्हारा पीछा करते हुए सेईर प्रान्त में होरमा तक तुम्हें खदेड़ दिया।
45) लौटने पर तुमने प्रभु के सामने विलाप किया परन्तु प्रभु ने तुम्हारे विलाप पर न तो ध्यान दिया और न उसकी परवाह की।
46) इसलिए तुम लोगों को बहुत दिनों तक कादेष में रहना पड़ा।

अध्याय 2

1) ''हमने प्रभु के आदेष के अनुसार वहाँ से आगे चलकर लाल समुद्र के मार्ग से उजाड़खण्ड़ की ओर प्रस्थान किया और बहुत समय तक सेईर के पहाड़ी प्रदेष के चारों ओर चक्कर काटते रहे।
2) इसके बाद प्रभु ने मुझसे कहा,
3) 'तुम लोग काफ़ी समय तक इस पहाड़ी प्रदेष के आस पास चक्कर काट चुके हो। अब उत्तर की ओर मुड़ो।
4) लोगों से कहो कि जब तुम अपने भाइयों, अर्थात् सेईर के निवासी एसाव के वंषजों के देष से होकर जाओगे, तो वे तुमसे डर जायेंगे। इसलिए सावधान रहो।
5) तुम उनसे छेड़-छाड़ मत करो, क्योंकि मैं उनके देष में पैर रखने तक की भूमि भी तुम्हें नहीं दूँगा। मैं एसाब को सेईर का पहाड़ी प्रदेष उसके अधिकार मे दे चुका हूँ।
6) तुम उन्हें कीमत देकर भोजन और पीने का पानी खरीदो।
7) प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुमको तुम्हारे प्रत्येक काम में बहुत आषीर्वाद दिया है। उसने विषाल उजाड़खण्ड की यात्रा में तुम्हारी रक्षा की है और प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने पिछले चालीस वर्षों से तुम्हरा साथ दिया है और तुम्हें किसी प्रकार की कमी नहीं हुई।
8) ''इसलिए हम एसाब के वंषजों, सेईर निवासियों के देष से आगे चल कर, अराबा के मार्ग छोड़ कर, एलत और एस्योन - गेबेर के पास मोआब के मैदानों की ओर चल पडे+।'
9) वहाँ प्रभु ने मुझे यह आज्ञा दी थी, 'मोआबियों को मत सताओ और उनसे युद्ध मत करो। मैं तुम्हारे अधिकार में उनके देष का कोई अंष नहीं दूँगा; क्योंकि मैंने आर प्रदेष लोट के वंषजों के अधिकार में दे दिया है।'
10) (इनके पहले उस देष में एमी लोग रहा करते थे, जो अनाकियों के समान बलवान्, बहुसंख्यक और ऊँचे क़द के थे।
11) वे अनाकियों की तरह रफाई माने जाते थे; किन्तु मोआबी उन्हें एमी कहते हैं।
12) सेईर प्रदेष में पहले होरी लोग रहते थे परन्तु एसाव के वंषजों ने उनका विनाष किया और उनका देष अपने अधिकार में ले लिया। इस्राएलियों ने भी ऐसा ही उस देष में किया जिसे प्रभु ने उनके अधिकार में दिया था।)
13) प्रभु ने कहा, 'अब उठ कर जे+रेद पार करो'। ''इस पर हमने जे+रेद पार किया।
14) जब हमने कादेष-बरनेअ से लेकर ज+ेरेद नाला पार किया, तब तक चालीस वर्ष बीत गये। तब तक षिविर के योद्धाओं की पूरी पीढ़ी की मृत्यु हो चुकी थी, जैसा प्रभु ने शपथ खाकर उनसे कहा था।
15) सच पूछो तो जब तक उनका षिविर से लोप नहीं हो गया, तब तक प्रभु का हाथ उन्हें दण्डित करता रहा।
16) ''जब समुदाय के सब योद्धाओं की मृत्यु हो गई,
17) तब प्रभु ने मुझसे कहा,
18) 'आज तुम आर के पास मोआब की सीमा पार करने वाले हो।
19) अम्मोनियों के पास पहुँच कर उनको नहीं सताओ और न उनके विरुद्ध युद्ध करो, क्योंकि मैं अम्मानियों के देष का कोई भी भाग तुम्हारे अधिकार में नहीं दूँगा। मैं उसे लोट के वंषजो के अधिकार में दे चुका हूँ।
20) (यह देष रफाइयों का देष भी कहा जाता है। इसमें पहले रफाई लोग रहा करते थे। अम्मोनी लोग इन्हें जम-जुमी कहते हैं।
21) वे अनाकियों के समान बलवान् बहुसंख्यक और ऊँचे कद के हैं। पर प्रभु ने उन्हें अम्मोनियों के आने पर भगा दिया, इसलिए इन्होंने उनके देष को अधिकार में ले लिया और वहाँ बस गये।
22) प्रभु ने सेईर के निवासियों, एसाव के वंषजों के लिए वैसा ही किया। उनके आने पर उसने होरियों को भगा दिया था, जिससे वे उनका देष अपने अधिकार में ले और उनके स्थान पर वहाँ बस जायें। वे आज तक वहाँ बसे हुए है।
23) कफ्तोर से आए कफ्तोरी लोगों ने भी अव्वियों को, जो गाजा तक गाँव में रहते थे, भगा दिया था और उनके स्थान पर वहाँ बस गए थे।)
24) अब आगे बढ़ो और अरनोन नाले को पार करो। मैं हेषबोन के अमोरी राजा सीहोन और उसके देष को तुम्हारे हाथ देता हूँा उस देष को आपने अधिकार में लेने का उपक्रम करो और उन पर आक्रमण करो।
25) मैं आज से सारे संसार के लोगों में तुम्हारे प्रति आतंक और भय उत्पन्न करूँगा। जो लोग तुम्हारे विषय मे सुनेंगे वे तुम्हारे सामने थरथरा कर काँपने लगेंगे।'
26) ''इसलिए मैने कदेमोत के उज+ाड़खण्ड से हेषबोन के राजा सीहोन के पास दूतों द्वारा यह शांति-संदेष भेजा,
27) 'मैं आपका देष पार करना चाहता हूँ। मैं सीधे मार्ग से निकल जाऊँगा। मैं न दाहिनी ओर मुडूँगा और न बायीं ओर।
28) आप कीमत लेकर मुझे भोजन और पीने का पानी दीजिए। मुझे केवल पार करने दीजिए।
29) सेईर में रहने वाले एसाव के वंषजों ने भी मेरे लिए ऐसा ही किया था और आर-निवासी मोआबी लोगों ने भी। मैं यर्दन पार कर केवल उस देष में पहँुच जाना चाहता हँू, जो प्रभु, हमारा ईष्वर हमें देने वाला है।'
30) ''परन्तु हेषबोन के राजा सीहोन ने हमें अपने देष से होकर नहीं जाने दिया। प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने उसका मन हठी और उसका हृदय कठोर बना दिया था, जिससे वह उसे हमारे हवाले कर दे, जैसा कि बाद में हुआ।
31) तब प्रभु ने मुझ से कहा था, ''मैं सीहोन और उसका देष तुमको देने वाला हूँं। तुम उसे जीतने का उपक्रम करो और उसे अपने अधिकार में कर लो।'
32) सीहोन अपनी सारी सेना के साथ यहज में हमारा सामना करने आया,
33) किन्तु प्रभु, हमारे ईष्वर ने उसे हमारे हाथ दे दिया। हमने उसे, उसके पुत्रों और उसकी सारी सेना को परास्त किया।
34) हमने उस समय उसके सब नगरों पर अधिकार कर लिया और उनके निवासियों का-पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों सब का सर्वनाष किया।
35) हम उनके पषुओं को और विजित नगरों की लूट अपने साथ ले गये।
36) अरनोन के तट पर स्थित अरोऐर और घाटी में स्थित नगर से लेकर गिलआद तक कोई नगर ऐसा नहीं था जो हमारा सामना कर सके। प्रभु, हमारे ईष्वर ने उन सबको हमारे हाथ दे दिया था।
37) तुमने अम्मोनियों का देष, यब्बोक नदी के किनारे का समस्त भू भाग और पहाड़ी प्रान्त के नगरों को अधिकृत नहीं किया, जैसा कि प्रभु, हमारे ईष्वर ने तुम्हें आदेष दिया था।

अध्याय 3

1) ''इसके बाद हम बाषान की ओर बढ़ने लगे। तब बाषान का राजा ओग अपनी सारी सेना के साथ एर्द्रेई के पास हमारा सामना करने आया।
2) पर प्रभु ने मुझसे कहा, 'उससे मत डरो ,क्योंकि मैने उसकी सारी सेना और उसका देष तुम्हारे हाथ दे दिया है। और जैसा तुमने हेषबोन के अमोरियों के राजा सीहोन के साथ किया, तुम वैसा ही उसके साथ करो।'
3) इस प्रकार प्रभु, हमारे ईष्वर ने बाशान के राजा ओग को भी उसकी सारी सेना के साथ हमारे हाथ दिया। हमने उन्हें इतनी बुरी तरह परास्त किया कि उनमें एक भी जीवित नहीं रहा।
4) उस समय हमने उसके सब नगरों को भी अपने अधिकार में कर लिया। ऐसा एक भी नगर नहीं था, जिसे हमने उस से छीना न हो, अर्थात् साठ नगर, अरगोब का सारा प्रांत, बाषान में ओग का राज्य।
5) ये सभी ऐसे नगर थे, जिन में बडे+-बड़े परकोटे, फाटक और अरगलाएँ थीं और इनके अतिरिक्त ऐसे बहुत-से गाँव भी, जिन मे परकोटे नहीं थे।
6) हमने उनका उसी प्रकार संहार किया, जिस प्रकार हमने हेषबोन के राजा सीहोन का संहार किया था। हमने किसी भी नगर मे पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों में एक को भी नहीं छोड़ा।
7) लेकिन हम उनके सब पषुओं को और उनके नगरों की लूट अपने साथ ले गए।
8) इस प्रकार हमने उस समय यर्दन के उस पार के दोनों अमोरी राजाओं के देषों को, अरनोन नदी से हेरमोन तक अपने अधिकार में ले लिया।
9) (सीदोनी लोग हेरमोन को सिर्योन और अमोरी लोग सनीर कहते हैं।)
10) हमने पठार के सब नगर, सारा गिलआद, सलका से एर्द्रेई तक सारा बाषान, जो बाषान में ओग राज्य के नगर थे, अपने अधिकार में कर लिया।
11) (बाषान का राजा ओग रफ़ाइयों का अन्तिम वंषज था। उसका पलंग लोहे का बना था। वह नौ हाथ लंबा और चार हाथ चौड़ा था। वह आज तक अम्मानियों के देष के रब्बा में सुरक्षित है।)
12) ''उस समय हमने जिन देषों को अपने अधिकार में कर लिया, उन में मैंने अरनोन नदी के तट पर स्थित एओएर से लेकर गिलआद के पहाड़ी प्रदेष का आधा भाग और उसके नगरों को रूबेन और गाद के वंषजों को दिया।
13) मैंने मनस्से के आधे वंष को गिलआद का शेष भाग और समस्त बाषान, ओग का राज्य दिया। (बाषान का समस्त प्रान्त पहले रफाइयों का देष कहलाता था।)
14) मनस्से के पुत्र याईर ने अरगोब के सारे प्रान्त को, गषूरियों और माकातियों की सीमा तक, जीत लिया था और अपने नाम पर उनका नाम हव्वोत याईर रखा था। आज तक बाषान का यही नाम है।
15) मैंने माकीर को गिलआद दिया था।
16) मैंने रूबेन और गाद के वंषजो को गिलआद से लेकर अरनोन की घाटी तक का प्रान्त दिया। उनकी सीमा घाटी का मध्य थी और इसके अतिरिक्त गिलआद से यब्बोक नदी तक का प्रदेष। यब्बोक नदी अम्मोनियों की सीमा है।
17) उसकी पष्चिमी सीमा अराबा में यर्दन नदी थी, अर्थात् किन्नेरेत से अराबा के समुद्र तक। अराबा का समुद्र लवण सागर भी कहलाता है। उसके पूर्व में पिसगा कि ढलानें हैं।
18) उस समय मैंने तुम्हें यह आदेष दिया था, 'प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने यह देष तुम्हारे अधिकार में दिया है। तुम्हारे सब योद्धाओं को इस्राएली भाइयों के आगे चलकर नदी पार करनी चाहिए।
19) केवल तुम्हारी पत्नियाँ, बच्चे और पषु - क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास बहुत पषु धन है - इन नगरों में रह जायें, जिन्हें मैंने तुम्हें दिया है।
20) जब तक प्रभु, तुम्हारे भाइयों को भी तुम्हारी तरह विश्राम करने का स्थान नहीं दे और वे उस देष को अपने अधिकार में नहीं करें, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उन्हें यर्दन के उस पार देने वाला है, तब तक तुम में कोई भी उस भूमि को नहीं लौटे, जिसे मैंने तुम्हें दिया है।'
21) मैने योषुआ को उस समय यह आदेष दिया था, 'तुमने अपनी आँखों से वह सब देखा है, जो प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने उन दो राजाओं के साथ किया है। प्रभु उन सब राज्यों के साथ वैसा ही करेगा, जिनके यहाँ तुम नदी पार कर जाओगे।
22) उन से नहीं डरो, क्योंकि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम लोगों के लिए युद्ध करेगा।'
23) मैंने प्रभु से उस समय यह प्रार्थना की,
24) 'प्रभु-ईष्वर! अब तूने अपने दास पर अपने सामर्थ और अपने भुजबल को प्रकट करना प्रारभ किया हैं। क्या स्वर्ग में अथवा पृथ्वी पर कहीं कोई ऐसा हो सकता है, जो ऐसे महान कार्य कर सके, जैसे तू करता है?
25) मैं भी उस पार जाना चाहता हूँ और यर्दन के उस पार का रमणीय देष, वह सुन्दर पहाडी प्रदेष और लेबानोन देखना चाहता हूँ।'
26) परन्तु प्रभु तुम्हारे कारण मुझ पर क्रुद्ध था और उसने मेरी प्रार्थना अनसुनी की। प्रभु ने मुझसे कहा था, ÷बस, बहुत हो चुका; इसके विषय में फिर मुझसे कुछ न कहो।
27) तुम पिसगा पर्वत के षिखर पर चढ़ कर और पश्चिम उत्तर दक्षिण और पूर्व की ओर दृष्टि दौड़ा कर उसे अपनी आँखों से देख लो। लेकिन तुम यर्दन पार नहीं कर सकोगे।
28) योषुआ को आदेष दो, उसे प्रोत्साहित करो और ढांरस बँधाओ; क्योंकि वही इन लोगों का नेतृत्व करता हुआ उसे पार करेगा और वह देष, जिसे तुम देखोगे, उनके अधिकार में दे देगा।'
29) इसलिए हम बेत-पओर के सामने के मैदान में ही पड़े रह गये।

अध्याय 4

1) इस्राएलियों मैं जिन नियमों तथा आदेषों की षिक्षा तुम लोगों को आज दे रहा हँू, उन पर ध्यान दो और उनका पालन करो, जिससे तुम जीवित रह सको और उस देष में प्रवेष कर उसे अपने अधिकार में कर सको, जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों को ईष्वर तुम लोगों को देने वाला है।
2) मैं जो आदेष तुम लोगों को दे रहा हँू, तुम उन में न तो कुछ बढ़ाओ और न कुछ घटाओ। तुम अपने प्रभु-ईष्वर के आदेषों का पालन वैसे ही करो, जैसे मैं तुम लोगों को देता हँू।
3) तुमने तो अपनी आँखों से वह सब देखा, जो प्रभु ने बाल-पओर में किया था, अर्थात् प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने बाल-पओर में उन सब को तुम्हारे बीच से नष्ट कर दिया, जो पओर के बाल-देवता के अनुयायी बन गये थे।
4) परन्तु तुम, जो अपने प्रभु-ईष्वर के प्रति ईमानदार बने रहे, तुम सब-के-सब आज तक जीवित हो।
5) देखो, मैं अपने प्रभु-ईष्वर के आदेष के अनुसार तुम लोगों को नियमों तथा आदेषों की षिक्षा दे चुका हँू। तुम जो देष अपने अधिकार में करने जा रहे हो, वहाँ उनके अनुसार आचरण करो।
6) उनका अक्षरषः पालन करो और इस तरह तुम अन्य राष्ट्रों की दृष्टि में समझदार और बुद्धिमान समझे जाओगे। जब वे उन सब आदेषों की चर्चा सुनेंगे, तो बोल उठेंगे 'उस महान् राष्ट्र के समान समझदार तथा बुद्धिमान और कोई राष्ट्र नहीं है'।
7) क्योंकि ऐसा महान राष्ट्र कहाँ है, जिसके देवता उसके इतने निकट हैं, जितना हमारा प्रभु-ईष्वर हमारे निकट तब होता है जब-जब हम उसकी दुहाई देते हैं?
8) और ऐसा महान् राष्ट्र कहाँ है, जिसके नियम और रीतियाँ इतनी न्यायपूर्ण है, जितनी यह सम्पूर्ण संहिता, जिसे मैं आज तुुम लोगों को दे रहा हूँ?
9) ''सावधान रहो। जो कुछ तुमने अपनी आँखों से देखा है, उसे मत भुलाओ। उसे जीवन भर याद रखो और अपने पुत्र पौत्रों को सिखाओ।
10) जब तुम होरेब पर्वत के पास प्रभु, अपने ईष्वर के सामने खड़े थे और जब ईश्वर ने मुझे यह आज्ञा दी थी, ÷मेरे सामने लोगों को एकत्रित करो मैं स्वयं उन्हें संबोधित करना चाहता हँू, जिससे वे जीवन भर मुझ पर श्रद्धा रखें और अपनी सन्तति को भी ऐसी षिक्षा दें',
11) तब तुम लोग नीचे, पर्वत की तलहटी में खड़े थे, जब पर्वत पर आकाश तक अग्नि प्रज्वलित हो उठी थी और उसे काले मेघखण्ड ने घेर लिया था।
12) तब अग्नि में से प्रभु ने तुम से बात की थी। तुमने उसकी वाणी तो सुनी थी, परन्तु कोई आकृति नहीं देखी थी। वहाँ केवल वाणी ही सुनाई पड़ी थी।
13) इस प्रकार उसने तुम्हारे सामने अपना विधान घोषित किया था और उसके पालन का आदेष दिया था अर्थात् वे दस आज्ञाएँ, जिन्हें उसने पत्थर की दो पाटियों पर अंकित किया।
14) उस समय प्रभु ने मुझे तुम लोगों को वे नियम और आदेष सिखाने की आज्ञा दी, जिनका पालन उन्हें देष में करना है, जिसे तुम यर्दन पार कर अपने अधिकार में कर लोगे।
15) जिस समय प्रभु ने होरेब पर्वत पर अग्नि के भीतर से तुम्हारे साथ बात की, तुमने कोई आकृति नहीं देखी। इसलिए सावधान रहो।
16) तुम भ्रष्ट न हो जाओ और अपने लिए किसी प्रकार की मूर्ति नहीं बनाओ - न किसी पुरुष, न किसी स्त्री,
17) न पृथ्वी पर किसी पषु, न आकाष में उड़ने वाली पंख धारी किसी पक्षी,
18) न पृथ्वी पर रेंगने वाले किसी जन्तु और न पृथ्वी के जलाषयों के किसी जीव-जन्तु की।
19) यदि तुम आकाष की ओर अपनी आँखें उठाकर सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रों और आकाष मण्डल के समस्त तारागण को देखो, तो उन से प्रभावित होकर न तो उन्हें दण्डवत् करो और न उनकी पूजा करो। प्रभु तुम्हारे ईष्वर ने उन्हें पृथ्वी भर की सब जातियों में बाँट दिया है।
20) प्रभु मिस्र के लोहे के भट्टे से तुम्हें इसलिए निकाल लाया है कि तुम उसकी अपनी प्रजा हो जाओ, जैसे तुम आज हो।
21) तुम्हारे कारण प्रभु ने मुझ पर क्रुद्ध होकर शपथ खा कर कहा था कि मैं यर्दन पार नहीं कर सकूँगा और उस रमणीय देष में नहीं पहुँच सकूँगा, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें दायभाग के रूप में देने वाला है।
22) इसी देष मे मेरी मृत्यु हो जाएगी, मैं यर्दन पार नहीं कर पाऊँगा। हाँ, तुम उसे पार कर सकोगे और उस रमणीय देष को अपने अधिकार में कर लोगे।
23) सावधान रहो - प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम लोगों के लिए जो विधान निर्धारित किया है, उसे कभी नहीं भुलाओ और किसी प्रकार की मूर्ति बनाकर उसके आदेष का उल्लंघन नहीं करो;
24) क्योंकि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर भस्म करने वाली अग्नि है; वह असहनषील ईष्वर है।
25) जब तुम्हारे पुत्र-पौत्र पैदा हो जायेंगे और तुम उस देष में काफी समय तक रह चुक होंगे और तुम किसी प्रकार की मूर्ति बनाकर भ्रष्ट हो जाओगे और ऐसे कर्म करोगे, जो प्रभु की दृष्टि मे बुरे होंगे और इस प्रकार उसका क्रोध भड़का दोगे,
26) तो मैं आज आकाष और पृथ्वी को साक्षी बनाकर कहता हँू कि तुम शीघ्र ही उस देष से लुप्त हो जाओगे, जिसे प्राप्त करने के लिए तुम अभी-अभी यर्दन पार करने जा रहे हो। तुम अधिक समय तक वहाँ नहीं रह पाओगे , बल्कि तुम्हारा सर्वनाष हो जाएगा।
27) तब प्रभु तुम्हें अन्य जातियों में तितर-बितर कर देगा और उन अन्य जातियों के बीच भी, जिन में प्रभु तुम्हें ले जाएगा, तुम में से कुछ ही शेष बचेंगे।
28) तब तुम वहाँ ऐसे देवताओं की पूजा करने लगोगे, जो मनुष्य द्वारा लकड़ी और पत्थरों से निर्मित होते हैं, जो न देख सकते, न सुन सकते, न खा सकते और न सूँघ सकते हैं।
29) यदि तुम वहाँ प्रभु, अपने ईष्वर से फिर मिलना चाहोगे तो वह तुम्हें तभी मिलेगा, जब तुम उसे सारे मन और सारी आत्मा से ढूँढ़ोगे।
30) जब तुम कष्ट से पीड़ित होगे और जब भविष्य में ये सब विपत्तियाँ तुम को अक्रान्त करेगी, तब तुम फिर प्रभु, अपने ईष्वर की ओर अभिमुख हो जाओगे और उसकी आज्ञा का पालन करने लगोगे।
31) इसका कारण यह है कि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर एक करूणामय ईष्वर है। वह न तो तुम को त्यागेगा, न तुम्हारा विनाष करेगा और न वह विधान भूलेगा, जिसे उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किया है।
32) ईष्वर ने जब पृथ्वी पर मनुष्य की सृष्टि की थी, तुम सब से ले कर अपने पहले के प्राचीन युगों का हाल पूछो। क्या पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक कभी इतनी अद्भुत घटना हुई है?
33) क्या इस प्रकार की बात कभी सुनने में आयी है? क्या और कोई ऐसा राष्ट्र है, जिसने तुम लोगों की तरह अग्नि में से बोलते हुए ईष्वर की वाणी सुनी और जीवित बच गया हो?
34) ईष्वर ने आतंक दिखाकर, विपत्तियों, चिन्हों, चमत्कारों और युद्धों के माध्यम से, अपने सामर्थ्य तथा बाहुबल द्वारा तुम लोगों को मिस्र देष से निकाल लिया है - यह सब तुमने अपनी आँखों से देखा है। क्या और कोई ऐसा ईष्वर है, जिसने इस तरह किसी दूसरे राष्ट्र में से अपना राष्ट्र चुना हो?
35) यह सब तुम लोगों को इसलिए देखने को मिला कि तुम जान जाओ कि प्रभु ही ईष्वर है। उसके सिवा और कोई ईष्वर नहीं है।
36) तुम्हें षिक्षा देने के लिए उसने आकाष से तुम को अपनी वाणी सुनायी और पृथ्वी पर तुम को वह महान् अग्नि दिखायी, जिस में से तुमने उसे बातें करते सुना है।
37) उसने तुम्हारे पूर्वजों को प्यार किया और उनके वंषजों को चुन लिया, इसलिए उसने अपना सामर्थ्य प्रकट किया और वह स्वयं तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाया।
38) उसने तुम्हारे सामने से ऐसे राष्ट्रों को भगा दिया जो, तुम से अधिक महान और शक्तिषाली थे। उसने तुम को उनके देष में पहुँचा दिया और अब उसे विरासत के रूप में तुम्हें प्रदान किया।
39) आज यह जान लो और इस पर मन-ही-मन विचार करो कि ऊपर आकाष में तथा नीचे पृथ्वी पर प्रभु ही ईष्वर है; उसके सिवा कोई और ईष्वर नहीं है।
40) मैं तुम लोगों को आज उसके नियम और आदेष सुनाता हँू। तुम उनका पालन किया करो, जिससे जो देष तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम्हें सदा के लिए देने वाला है, उस में तुम को और तुम्हारे पुत्रों को सुख-षांति तथा लम्बी आयु मिल सकें।''
41) उस समय मूसा ने पूर्व में, यर्दन के उस पार, तीन नगर अलग कर दिये,
42) जिन में ऐसा व्यक्ति भाग कर शरण ले सकेगा, जिसने अनजाने, बिना किसी पूर्व शत्रुता के किसी की हत्या की है। इन नगरो में से किसी भी नगर में शरण लेने वाला जीवित रहेगा।
43) वे थे : रूबेनवंषियों के लिए उजाड़खण्ड में पठार पर स्थित बेसेर, गादवंषियों के लिए गिलआद मे स्थित रामोत और मनस्से वंषियों के लिए बाषान में स्थित गोलान।
44) मूसा ने जो संहिता प्रस्तुत की, वह इस प्रकार है।
45) यही वे नियम, आदेष और विधि-निषेध हैं, जिन्हें मूसा ने मिस्र से बाहर जाते समय इस्राएलियों को सुनाया था।
46) यह यर्दन के उस पार की घाटी में हुआ, जो बेत-पओर के सामने, हेषबोन में रहने वाले अमोरियों के राजा सीहोन के देष में है। मिस्र देश से बाहर आ कर मूसा और इस्राएलियों ने उसे पराजित किया था।
47) और उसके देष को तथा बाषान के राजा ओग के देष को अपने अधिकार में ले लिया था। ये दोनों यर्दन के उस पार, पूर्व दिषा में, अमोरियों के राजा थे।
48) इनका राज्य-विस्तार अरनोन तट पर स्थित अरोएर से ले कर सिर्योन (या हेरमोन की पर्वत-श्रेणी तक था
49) और पूर्व की ओर यर्दन के उस पार का सम्पूर्ण अराबा, जो पिसगा की ढालों पर लगे अराबा के समुद्र तक फैला है।

अध्याय 5

1) मूसा ने सारे इस्राएली समुदाय को एकत्रित कर उन से कहा : ''इस्राएल! सुनो। यही वे नियम और आदेष हैं, जिन्हें मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हँू। इन्हें सीखो और इनका सावधानी से पालन करो।
2) प्रभु, हमारे ईष्वर ने होरेब पर्वत पर हमारे लिए एक विधान निर्धारित किया।
3) प्रभु ने हमारे पूर्वजों के लिए यह विधान निर्धारित नहीं किया था, बल्कि हमारे लिए, जो आज यहाँ उपस्थित हैं।
4) उस पर्वत पर प्रभु ने अग्नि में से तुम्हारे सामने तुम से बातें की थीं।
5) उस समय मैं तुम्हें प्रभु की बातें समझाने के लिए प्रभु और तुम्हारे बीच खड़ा था, क्योंकि उस अग्नि के भय से तुम पर्वत पर नहीं चढ़े। उसने यह कहा,
6) मैं प्रभु, तुम्हारा वही ईष्वर हूँ। मैं तुम को मिस्र, गुलामी के देष से निकाल लाया।
7) मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईष्वर नहीं होगा।
8) अपने लिए कोई देव मूर्ति मत बनाओ। ऊपर आकाष में या नीचे पृथ्वीतल पर, या पृथ्वी के नीचे के जल में रहने वाले किसी भी प्राणी अथवा वस्तु की मूर्ति मत बनाओ।
9) उन मूर्तियों को दण्डवत् करके उनकी पूजा मत करो; क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर ऐसी बातें सहन नहीं करता। जो मुझ से बैर करते है; मैं तीसरी और चौथी पीढ़ी तक उनकी सन्तति को उनके अपराधों का दण्ड देता हँू।
10) जो मुझे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं, मैं हजार पीढ़ियों तक उन पर दया करता हँू।
11) प्रभु अपने ईष्वर का नाम व्यर्थ मत लो; क्योंकि जो व्यर्थ ही प्रभु का नाम लेता है, प्रभु उसे अवष्य दण्डित करेगा।
12) विश्राम-दिवस के नियम का पालन करो और उसे पवित्र रखो, जैसा कि तुम्हारे प्रभु-ईष्वर ने तुम्हें आदेष दिया है।
13) तुम छः दिन परिश्रम करते हुए अपना सारा काम-काज करो,
14) किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के सम्मान का विश्राम-दिवस है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो, न तुम्हारा पुत्र या पुत्री, न तुम्हारा दास या दासी, न तुम्हारा बैल, न तुम्हारा गधा या कोई पषु और न तुम्हारे यहाँ रहने वाला परदेषी। इस प्रकार तुम्हारा दास और तुम्हारी दासी तुम्हारी तरह विश्राम कर सकेंगे।
15) याद रखो कि तुम मिस्र देष में दास के रूप में रहते थे और तुम्हारा प्रभु-ईष्वर हाथ बढ़ा कर, अपने भुजबल से, तुम को वहाँ से निकाल लाया है। यही कारण है कि तुम्हारे प्रभु-ईष्वर ने तुम्हें विश्राम दिवस मनाने का आदेष दिया है।
16) 'अपने माता-पिता का आदर करो, जैसा कि प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम को आदेष दिया है। तब तुम बहुत दिनों तक उस भूमि पर जीते रहोगे, जिसे वह तुम्हें प्रदान करेगा।
17) 'हत्या मत करो'।
18) 'व्यभिचार मत करो'।
19) 'चोरी मत करो'।
20) 'अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो।'
21) 'अपने पड़ोसी की पत्नी का लालच मत करो। अपने पड़ोसी के घर, उसके खेत, उसके दास, उसके दासी, उसके बैल, उसके गधे और उसकी किसी भी अन्य चीज+ का लालच मत करो'
22) ''प्रभु ने यही बातें अग्नि, मेघखण्ड और अन्धकार में से ऊँचे स्वर में तुम्हारे सारे समुदाय से कही। उसने इतना ही कहा। उसने उन्हें पत्थर की दो पाटियों पर अंकित कर मुझे दिया।
23) जब पर्वत धधकती अग्नि में जल रहा था, तुमने अन्धकार में से प्रभु की वाणी सुनी थी और वंषों के मुखिया और नेता मेरे पास आये।
24) तुमने कहा, 'प्रभु हमारे ईष्वर ने हम पर अपनी महिमा प्रकट की और हमने अग्नि में से उसकी वाणी सुनी। आज हमने अनुभव किया कि ईष्वर ने मनुष्य के साथ बातें कीं और फिर भी मनुष्य जीवित रह गया।
25) यदि हम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी फिर सुन लेंगे, तो यह भयावह अग्नि हमें भस्म कर डालेगी और हमारी मृत्यु हो जायेगी। हम क्यों मरें?
26) ऐसा कौन मनुष्य है, जो अग्नि में से बोलते हुए जीवन्त ईष्वर की वाणी सुन कर जीवित बच गया हो?
27) इसलिए आप पास जा कर प्रभु, हमारे ईष्वर की वाणी सुनें। इसके बाद आप सब कुछ बता दें जो प्रभु हमारा ईष्वर आप से कहेगा और हम सुन कर उसका पालन करेंगे।'
28) ''जब प्रभु ने मुझ से कही गयी तुम्हारी ये बातें सुनी, तो प्रभु ने मुझ से कहा, 'मैनें इन लोगों की बातें सुनी हैं। इन्होंने जो कुछ तुम से कहा है, वह ठीक है।
29) अच्छा होता, यदि ये लोग सदा मुझ पर श्रद्धा रखते और मेरी आज्ञाओं का पालन करने में तत्पर रहते। तब वे और उनके बाल बच्चे सदैव सकुषल रहते।
30) तुम उनके पास जा कर उन्हें अपने तम्बुओं में लौट जाने को कहो।
31) तुम यहाँ मेरे पास रहो। मैं तुम को सब नियम, आदेष और विधि-निषेध सुनाऊँगा, जिन्हें तुम उन्हें सिखाओगे, जिससे वे उस देष में उनका पालन करें, जिसे मैं उनके अधिकार में दूँगा।'
32) इसलिए तुम सावधानी से प्रभु, अपने ईष्वर की सब आज्ञाओं का पालन करते रहो और अपने कर्त्तव्य-पथ से तनिक भी विचलित नहीं हो जाओ।
33) तुम ठीक उसी मार्ग का अनुसरण करो, जिसके लिए प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें आज्ञा दी है, जिससे तुम जीवन प्राप्त करो, तुम्हारा कल्याण हो और उस भूमि में तुम दीर्घ काल तक बने रहो, जिस पर तुम अधिकार करोगे।

अध्याय 6

1) ''तुम्हारे प्रभु-ईष्वर ने तुम लोगों को ये नियम, आदेष और विधि-निषेध सिखाने का आदेष दिया है, जिससे तुम नदी पार कर जिस देष पर अधिकार करने जा रहे हो वहाँ उनका पालन करते रहो।
2) यदि तुम अपने पुत्रों और पौत्रों के साथ जीवन भर अपने प्रभु-ईष्वर पर श्रद्धा रखोगे और जो नियम तथा आदेष मैं तुम्हें दे रहा हँू, यदि तुम उनका पालन करोगे, तो तुम्हारी आयु लम्बी होगी।
3) इस्राएल यदि तुम सुनोगे और सावधानी से उनका पालन करोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा, तुम फलोगे-फूलोगे और जैसा कि प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईष्वर ने कहा, वह तुम्हें वह देष प्रदान करेगा, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैैं।
4) इस्राएल सुनो। हमारा प्रभु-ईष्वर एकमात्र प्रभु है।
5) तुम अपने प्रभु-ईष्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्यार करो।
6) जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हँू वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।
7) तुम उन्हें अपने पुत्रों को अच्छी तरह सिखाओ। घर में बैठते या राह चलते, शाम को लेटते या सुबह उठते समय, उनकी चरचा किया करो।
8) तुम उन्हें निषानी की तरह अपने हाथ पर और तावीज+ की तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो
9) और अपने घरों की चौखट तथा अपने फाटकों पर लिख दो।
10) जब तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम लोगो को उस देष ले जायेगा, जिसे उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों - इब्राहीम, इसहाक और याकूब - को देने की प्रतिज्ञा की है; जहाँ बड़े और भव्य नगर है, जिन्हें तुमने नहीं बनाया;
11) जहाँ के घर कीमती चीजों से भरें हैं; जिन्हें तुमने एकत्र नहीं किया; जहाँ पानी के कुण्ड़ है; जिन्हें तुमने नहीं खोदा; जहाँ दाखबारियाँ और जैतून के पेड़ है, जिन्हें तुमने नहीं लगाया; जब तुम वहाँ खा कर तृप्त हो जाओगे,
12) तो सावधान रहो और अपने प्रभु-ईष्वर को मत भूलो, जो तुम लोगों को मिस्र से - गुलामी के घर से - निकाल लाया।
13) ''तुम अपने प्रभु-ईष्वर पर श्रद्धा रखोगे, उसी की सेवा करोगे और उसी के नाम पर षपथ खाओगे।
14) तुम पराये देवताओं के अनुयायी मत बनो - उन राष्ट्रों के देवताओं के जो तुम्हारे आसपास रहते हैं;
15) क्योंकि तुम्हारे बीच रहने वाला तुम्हारा प्रभु ईष्वर एक असहनषील ईष्वर है। ऐसा न हो कि उसका क्रोध तुम पर भड़क उठे और वह देष की भूमि पर से तुम को मिटा दे।
16) ''प्रभु, अपने ईष्वर की परीक्षा मत करो, जैसा कि तुम लोगों ने मस्सा में किया था।
17) प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें जो आदेष, नियम और विधि-निषेध दिये हैं; उनका विधिवत् पालन करो।
18) तुम्हें वही करना चाहिए, जो प्रभु की दृष्टि में उचित और भला है। ऐसा करने से तुम्हारा कल्याण होगा और तुम वह रमणीय देष अपने अधिकार में करोगे, जिसे प्रभु ने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की है।
19) वह तुम्हारे सामने से तुम्हारे सब शत्रुओं को भगा देगा, जैसे कि उसने प्रतिज्ञा की है।
20) जब भविष्य में तुम्हारा पुत्र तुम से पूछे कि प्रभु, हमारे ईष्वर ने आप को जो आदेष और विधि-निषेध दिये हैं, उनका अर्थ क्या है,
21) तो उसे यह उत्तर दो : 'हम मिस्र में फिराउन के यहाँ दास थे। प्रभु हमें अपने बाहुबल से मिस्र से निकाल लाया।
22) उस समय प्रभु ने हमारी आँखों के सामने ही मिस्र, फिराउन और उसके दरबारियों के विरुद्ध महान् और भयावह चिन्ह और चमत्कार दिखाये।
23) वह हमें वहाँ से निकाल कर यहाँ लाया और उसने हमें वह देश दिया, जिसकी उसने शपथ खा कर हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी।
24) उस समय प्रभु ने हमें आज्ञा दी कि हम इन सब नियमों का पालन करें और प्रभु अपने ईष्वर पर श्रद्धा रखें, जिससे हमारा आजीवन कल्याण हो और हम जीवित रहें जैसे हम आज हैं।
25) यह हमारा धर्म है कि हम प्रभु, अपने ईष्वर के सामने इन सारे नियमों का विधिवत् पालन करते रहें, जैसा कि उसने हमें आदेष दिया है।'

अध्याय 7

1) ''जब प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुमको उस देष में पहुँचा दिया होगा, जिसे तुम अपने अधिकार में लेने के लिए प्रवेष करने वाले हो और जब उसने तुम्हारे सामने से अनेक राष्ट्रों को -हित्तियों, गिर-गाषियों, अमोरियों, कनानियों, परिज्जि+यों, हिव्वियों और यबूसियों को - भगा दिया होगा - सात राष्ट्रों को, तुम से महान् और शक्तिषाली है;
2) जब प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने उन्हें तुम्हारे हवाले कर दिया होगा, जिससे तुमने उन्हें पराजित किया होगा, तब तुम उनका संहार करोगे। तुम न तो उनके साथ समझौता करोगे न उन पर दया करोगे।
3) तुम न तो उन से विवाह करोगे, न अपनी पुत्री को उनके पुत्र को दोगे और न अपने पुत्र का विवाह उनकी पुत्री से करोगे;
4) क्योंकि वे तुम्हारे पुत्रों को मुझ से विमुख कर उन से पराये देवताओं की पूजा करवायेंगी। ऐसा होने पर तुम लोगों पर प्रभु का क्रोध भड़क उठेगा और वह शीघ्र ही तुम्हारा विनाष करेगा।
5) तुम उन राष्ट्रों के साथ यह व्यवहार करोगे - उनकी वेदियों को गिरा दोगे, उनके पवित्र स्मारकों को तोड़ डालोगे, उनके पूजा के स्तम्भों को काट दोगे और उनकी देवमूर्तियों को आग में जला दोगे।
6) तुम लोग अपने प्रभु - ईष्वर की पवित्र प्रजा हो। हमारे प्रभु - ईष्वर ने पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों में से तुम्हें अपनी निजी प्रजा चुना है।
7) प्रभु ने तुम्हें इसलिए नहीं अपनाया और चुना है कि तुम्हारी संख्या दूसरो राष्ट्रों से अधिक थी - तुम्हारी संख्या तो सब राष्ट्रों से कम थी।
8) प्रभु ने तुम्हें प्यार किया और तुम्हारे पूर्वजों को दी गई शपथ को पूरा किया, इसलिए प्रभु ने तुम्हें अपने भुज-बल से निकाला और दासता के घर से, मिस्र देष के राजा फ़िराउन के हाथ से छुड़ाया है।
9) इसलिए याद रखो कि तुम्हारा प्रभु ईष्वर सच्चा और सत्यप्रतिज्ञ ईष्वर है। जो लोग उसे प्यार करते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, वह उनके लिए हज+ार पीढियों तक अपनी प्रतिज्ञा और अपनी कृपा बनाये रखता है।
10) जो लोग उसका तिरस्कार करते है, वह उन्हें दण्ड देता और उनका विनाष करता है। जो व्यक्ति उसका तिरस्कार करता है, वह उसको दण्ड़ देने में देर नहीं करता।
11) इसलिए जो आदेष नियम और विधि-निषेध मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हँू, तुम लोग उनका पालन करो।
12) यदि तुम इन विधि-निषेधों का ध्यान रखोगे और इनका सावधानी से पालन करोगे, तो प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे लिए अपना विधान और अपनी सत्यप्रतिज्ञता बनाए रखेगा, जैसा उसने तुम्हारे पूर्वजों को शपथ पूर्वक वचन दिया था।
13) वह तुमसे प्रेम करेगा, तुम्हें आषीर्वाद देगा और तुम्हारी संख्या बढ़ायेगा। वह उस देष में, जिसे उसने तुम्हारे पूर्वजों को देने का शपथ पूर्वक वचन दिया था, तुम्हारी सन्तति, तुम्हारी भूमि की उपज - तुम्हारे अनाज, तुम्हारी नयी अंगूरी और तुम्हारे तेल - तुम्हारे मवेषी के बछड़ों और तुम्हारी भेड़-बकरियों के मेमनों को आषीर्वाद प्रदान करता रहेगा।
14) तुम को अन्य सभी जातियों की अपेक्षा अधिक आषीर्वाद मिलेगा। तुम में कोई पुरुष या स्त्री अथवा तुम्हारे पषुओं में कोई नर या मादा निस्सन्तान नहीं होगा।
15) प्रभु तुम से सब प्रकार की बीमारियों को दूर रखेगा और तुम पर वे भयानक महामारियाँ नहीं आने देगा, जिनका अनुभव तुमने मिस्र में किया। वह उन्हें उन लोगों पर ढाहेगा, जो तुम से घृणा करते हैं।
16) तुम उन सब जातियों का विनाष करोगे, जिन्हें प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे हाथ सौंप देगा तुम न उन पर दया करोगे और न उनके देवताओं की पूजा करोगे। नहीं तो वे तुम्हारे लिए फन्दा बन जायेंगे।
17) ''संभव है, तुम अपने मन में सोचो कि ये जातियाँ तुम से बड़ी हैं, तुम इन्हें भगा कैसे सकोगे।
18) पर तुम उन से नहीं डरो। याद रखो कि प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने फ़िराउन और सारे मिस्र देष के साथ क्या-क्या नहीं किया था।
19) उन बड़े-बड़े कष्टों को याद करो, जिन्हें तुमने अपनी आँखों से देखा था; उन चिन्हों और उन चमत्कारों को, उस बाहुबल और सामर्थ्य को, जिनके द्वारा प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हे वहाँ से निकाल लाया था। प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उन सब जातियों के साथ ठीक वही करेगा, जिनसे तुम डर रहे हो।
20) इसके सिवा प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उनके बीच बर्रे भेजेगा, जिससे पराजय के बाद तुम से छिपने वाले भी नष्ट हो जायेंगे।
21) उन से नहीं डरो; क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर, वह महान् और भीषण ईष्वर तुम्हारे ही साथ है।
22) प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उन जातियों को धीरे-धीरे तुम्हारे सामने से भगा देगा। तुम उन्हें अचानक नष्ट नहीं कर पाओगे। नहीं तो तुम्हारे चारों ओर जंगली पषुओं की संख्या बढ़ जायेगी।
23) किन्तु प्रभु तुम्हारा ईष्वर उन्हें तुम्हारे हाथ दे देगा और जब तक उनका सर्वनाष नहीं हो जाएगा, उन्हें भयभीत करता रहेगा।
24) वह उनके राजाओं को भी तुम्हारे हवाले कर देगा, जिससे तुम पृथ्वी पर से उनका नाम तक मिटा दोगे। जब तक तुम उनका विनाष न कर चुकोगे, तब तक तुम्हारे सामने कोई भी नहीं टिक सकेगा।
25) ''तुम उनकी देवमूर्तियों को आग में जला दोगे। उन पर जो सोना-चाँदी मंढ़ी है, उनका लालच मत करो और उसे अपने लिए मत रखो। नहीं तो वह तुम्हारे लिए फन्दा बन जाएगी, क्योंकि वह तुम्हारे प्रभु-ईष्वर की दृष्टि में घृणित है।
26) ऐसी घृणित वस्तुएँ अपने घर में नहीं रखोगे। नहीं तो तुम भी उनकी तरह नष्ट हो जाओगे। तुम उन से घोर घृणा करोगे, क्योंकि उनका सर्वनाष सुनिष्चित है

अध्याय 8

1) मैं आज तुम्हें जो आदेष सुना रहा हँू, उन सबका सावधानी से पालन करो, जिससे तुम जीवित रहो, तुम्हारी संख्या बढ़ती जाए और तुम उस देष में प्रवेष कर उसे अपने अधिकार में कर लो, जिसे प्रभु ने शपथपूर्वक तुम्हारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की।
2) मरुभूमि में इन चालीस वर्षों की वह यात्रा याद रखो, जिसके लिए तुम्हारे प्रभु-ईष्वर ने तुम लोगों को बाध्य किया था। उस ने तुम्हें दीन-हीन बनाने के लिए ऐसा किया, तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए, तुम्हारा मनोभाव पता लगाने के लिए और इस प्रकार यह जानने के लिए कि तुम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हो या नहीं।
3) उसने तुम्हे त्रस्त किया, भूखा रखा फिर तुम्हें मन्ना भी खिलाया, जिसे न तुम जानते थे और न तुम्हारे पूर्वज ही। इससे उसने तुमको यह समझाना चाहा कि मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।
4) इन चालीस वर्षो में न तुम्हारे पहने हुए वस्त्र जर्जर हुए और न तुम्हारे पाँव ही सूजे।
5) इसलिए यह समझ लो कि जैसे कोई पिता अपने पुत्र को अनुषासित करता है, वैसे ही प्रभु, तुम्हारा ईष्वर भी तुम को अनुषासित करता है।
6) अतः तुम उसके मार्गों पर चलते हुए और उस पर श्रद्धा रखते हुए प्रभु, अपने ईष्वर की आज्ञाओं का पालन करते रहोगे।
7) अब तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम लोगों को उपजाऊ देष ले जा रहा है। वह एक ऐसा देष है जहाँ नदियाँ बहती हैं और झरने तथा जलस्रोत घाटियों तथा पहाड़ियों से फूट कर निकलते हैं।
8) एक ऐसा देष, जहाँ गेहँू और जौ हैं, दाखबारियाँ हैं, अंगूर, अंजीर और जैतून के पेड़ हैं, तेल और मधु हैं।
9) एक ऐसा देष, जहाँ तुम्हें प्रचुर मात्रा में रोटी मिलेगी और तुम को कभी कोई कमी नहीं होगी। एक देष, जहाँ के पत्थरों में लोहा है और जहाँ के पहाडों से तुम ताम्बा निकालोगे;
10) जहाँ तुम खा कर तृप्त हो जाओगे और अपने प्रभु-ईष्वर को उस उपजाऊ भूमि के लिए धन्यवाद दोगे, जिसे उसने तुम्हें दिया है।
11) सावधान रहो-तुम अपने प्रभु ईष्वर को मत भूलो और उसके जो आदेष, विधियाँ तथा नियम मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हँू, उनकी उपेक्षा मत करो।
12) (१२-१३) कहीं ऐसा न हो कि जब तुम खा कर तृप्त हो जाओगे, जब तुम सुन्दर भवन बना कर उन में निवास करोगे, जब तुम्हारे गाय-बैलों और भेड़-बकरियों की संख्या बढ़ जायेगी, जब तुम्हारे पास बहुत सोना-चाँदी और धन सम्पत्ति एकत्र हो जायेगी'
14) तो तुम घमण्डी बन जाओ और अपने प्रभु ईष्वर को भूल जाओ। उसने तुम लोगो को मिस्र देष से - दासता के घर से - निकाल लिया।
15) उसने इस विषाल भयंकर मरुभूमि में विषैले साँपो, बिच्छुओं और प्यास के देष में तुम्हारा पथप्रदर्षन किया। उसने इस जलहीन स्थल में तुम्हारे लिए कठोर चट्टान से पानी निकाला।
16) उसने तुम लोगों को इस मरुभूमि मे मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पूर्वज नहीं जानते थे। उसने तुम लोगों का घमण्ड तोड़ने के लिए और तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ऐसा किया, जिससे आगे चल कर तुम्हारा कल्याण हो।
17) तुम लोग अपने मन में यह नहीं कहो - हमने अपने सामर्थ्य और बाहुबल से यह सारी सम्पत्ति एकत्र कर ली है,
18) बल्कि अपने प्रभु-ईष्वर का स्मरण करते रहो। वही तुम्हें सम्पत्ति एकत्र करने का सामर्थ्य प्रदान करता है; क्योंकि वह आज तक वह विधान बनाये रखता है, जिसे उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किया था।
19) यदि तुम अपने ईष्वर को भुला कर पराये देवताओं के अनुयायी बन जाओगे, उनकी पूजा करोगे और उन्हें दण्डवत् करोगे, तो मैं आज तुम को विष्वास दिलाता हँू कि तुम नष्ट हो जाओगे।
20) जिस तरह प्रभु ने तुम्हारे सामने राष्ट्रों का विनाष किया, उसी तरह तुम भी नष्ट हो जाओगे; क्योंकि तुमने प्रभु की वाणी की अवज्ञा की है।

अध्याय 9

1) इस्राएल! सुनो! आज तुम उन लोगों के देष पर अधिकार करने के लिए यर्दन पार करने वाले हो जो तुम से बड़े और शक्तिषाली हैं और जिनके नगर गंगनचुम्बी परकोटों से घिरे हुए है।
2) वहाँ बड़े और ऊँचे क़द वाले अनाकियों की जाति रहती है। उनके विषय में तुम स्वयं जानते हो और तुमने यह कहावत भी सुनी है, 'अनाकियों का सामना कौन कर सकता है?'
3) आज तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर भस्म करने वाली अग्नि की तरह तुम्हारे आगे-आगे उस पार चलेगा। वह उनका नाष करेगा और उन्हें तुम्हारे अधीन कर देगा, जिससे तुम उन को भगा दोगे और थोड़े ही समय में उनका विनाष करोगे, जैसा कि प्रभु वचन दिया है।
4) अब यदि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उन्हें तुम्हारे सामने से भगा देगा, तो यह नहीं सोचो कि तुम्हारे धर्माचरण के कारण ही प्रभु तुम्हें इस देष पर अधिकार कराने के लिए यहाँ लाया है। नहीं; उन लोगों के दुराचरण के कारण प्रभु उन्हें तुम्हारे सामने से भगा रहा है।
5) तुम अपनी धर्मपरायणता अथवा अपनी निष्कपटता के कारण उस देष पर अधिकार नहीं करोगे, बल्कि उन लोगों के दुराचरण के कारण प्रभु, तुम्हारा ईष्वर स्वयं उन्हें तुम्हारे सामने से भगायेगा। प्रभु इसलिए भी यह कर रहा है कि वह तुम्हारे पूर्वजों-इब्राहीम, इसहाक और याकूब - से शपथपूर्वक की हुई प्रतिज्ञा पूरी करना चाहता है।
6) यह समझ लो कि प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हें तुम्हारे धर्माचरण के कारण उस रमणीय देष पर अधिकार नहीं दे रहा है, क्योंकि तुम एक हठधर्मी प्रजा हो।
7) यह याद रखो और कभी नहीं भुलाओ कि तुमने उजाड़खण्ड में प्रभु को चिढ़ाया था। जिस दिन तुम मिस्र से निकले, उसी दिन से आज यहाँ आने तक तुम हमेषा प्रभु के विरुद्ध विद्रोह करते आ रहे हो।
8) होरेब पर्वत पर तुमने प्रभु के कोप को प्रज्वलित किया था और प्रभु तुम पर इतना कुपित हुआ था कि वह तुम्हारा विनाष कर डालने वाला था।
9) मैं पत्थर की पाटियाँ, प्रभु द्वारा तुम्हारे लिए निर्धारित विधान की पाटियाँ प्राप्त करने के लिए पर्वत पर चढ़ गया था। चालीस दिन और चालीस रात तक मैं बिना अन्न-पानी ग्रहण किये वहाँ पर्वत पर रहा।
10) उस समय प्रभु ने मुझे दो पाटियाँ दीं, जिन पर उसने अपने हाथ से वे सब आज्ञाएँ अंकित की थीं, जिन्हें प्रभु ने तुम्हारे समुदाय को अग्नि में से पर्वत पर सुनाया था।
11) चालीस दिन और चालीस रात बीत जाने पर प्रभु ने मुझे पत्थर की वे दो पाटियाँ, विधान की पाटियाँ दे दीं।
12) प्रभु ने मुझ से कहा, 'यहाँ से जल्दी नीचे जाओ, क्योंकि तुम्हारे उन लोगों ने कुकर्म किया है, जिन्हें तुम मिस्र से निकाल लाये। वे मेरे बताये पथ से जल्द ही भ्रष्ट हो गये है। उन्होंने अपने लिए एक प्रतिमा गढ़ी हैं'।
13) प्रभु ने मुझ से यह भी कहा, 'मैंने इन लोगों को देखा है। ये निष्चय ही एक हठधर्मी प्रजा हैं। मुझे इनका नाष करने दो।
14) मुझे मत रोको मैं इनका नाष करूँगा और पृथ्वी पर से इनका नाम मिटा दूँगा। मैं तुम्हारे द्वारा एक ऐसा राष्ट्र उत्पन्न करूँगा, जो इन से शक्तिषाली और संख्या में बड़ा होगा।'
15) ''इस पर मैं मुड़ कर अपने हाथों में विधान की वे दो पाटियाँ लिये पर्वत सें नीचे उतरा। अब तक पर्वत अग्नि से प्रज्वलित हो रहा था।
16) तब मैंने अपनी आँखों से देखा कि तुम लोगों ने धातु से बछडे+ की मूर्ति बना कर प्रभु के विरुद्ध पाप किया था। तुम जल्द ही प्रभु के बताये मार्ग से भ्रष्ट हो गये थे।
17) यह देख मैंने उन दोनों पाटियों को अपने हाथों से पटक दिया था और तुम्हारे देखते ही उनके टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे।
18) फिर मै पहले की तरह चालीस दिन और चालीस रात, बिना अन्न-जल ग्रहण किये, प्रभु के विरुद्ध तुम्हारे पापों के कारण पड़ा रहा क्योंकि तुमने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और उसका क्रोध भड़काया।
19) मुझे डर था कि कहीं प्रभु अपने क्रोध के आवेष में तुम्हारा सर्वनाष न कर दे। परन्तु इस बार भी प्रभु ने मेरी प्रार्थना सुनी।
20) प्रभु हारून पर इतना कुपित हुआ था कि वह उसका भी नाष करने वाला था। उस बार मैंने हारून के लिए प्रार्थना की थी।
21) फिर मैंने तुम्हारी वह पापमय कृति, वह बछड़ा पकड़ कर अग्नि में जला लिया उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये, उसे रेत कणों की तरह चूर-चूर कर दिया और पर्वत से बहती हुई नदी में बहा दिया।
22) ''तबएरा, मस्सा और किब्रोत-हत्तावा के पास भी तुम लोगों ने प्रभु का क्रोध भड़काया।
23) प्रभु ने तुम्हें कादेष-बरनेअ से यह आदेष दे कर भेजा कि उधर जाओ और उस देष को अपने अधिकार में ले लो, जिसे मैंने तुम्हें दे दिया है। लेकिन तुमने प्रभु, अपने ईष्वर के इस आदेष के विरुद्ध विद्रोह किया। तुमने उस पर भरोसा नहीं रखा और उसके आदेष का पालन नहीं किया।
24) तुम लोगों से जिस दिन से मेरा परिचय हुआ, उस दिन से तुम प्रभु से विद्रोह करते आ रहे हो।
25) मैं चालीस दिन और चालीस रात मँुह के बल प्रभु के सामने पड़ा रहा, क्योंकि प्रभु ने तुम्हारा विनाष करने को कहा था।
26) उस समय मैंने प्रभु से यह प्रार्थना की, 'प्रभु! ईष्वर! तू अपनी निजी प्रजा का विनाष नहीं कर, जिसका तूने अपने सामर्थ्य द्वारा उद्धार किया और जिसे तू अपने बाहुबल से मिस्र से निकाल लाया।
27) तू इब्राहीम, इसहाक और याकूब को, अपने सेवकों को स्मरण कर। इस प्रजा की हठर्धमिता, इसके अपराधों और पापों पर ध्यान न दे।
28) उस देष के लोग, जहाँ से तू इन लोगों को निकाल लाया, यह न कहने पायें कि प्रभु इन्हें उस देष में ले जाने में असमर्थ रहा, जिसके लिए उसने इन से प्रतिज्ञा की थी, या वह इन से घृणा करता है, इसीलिए वह इन्हें उजाड़खण्ड़ में मार डालने के लिए ले गया था।
29) वे तो तेरी अपनी प्रजा हैं, जिसे तू सामर्थ्य और बाहुबल से निकाल लाया।'

अध्याय 10

1) ''उस समय प्रभु ने मुझ से कहा, 'तुम पहली पाटियों की तरह पत्थर की दो पाटियाँ कटवाओ और मेरे पास पर्वत पर लाओ। लकड़ी की मंजूषा भी बनवाओ।
2) मैं पाटियों पर वहीं शब्द लिखूँगा जो उन पहली पाटियों पर अंकित थे, जिन्हें तुमने तोड़ दिया। इसके बाद तुम उन्हे मंजूषा में रख लोगे।'
3) इस पर मैंने बबूल की लकड़ी की एक मंजूषा बनवायी और पहले की उन पाटियों की तरह ही पत्थर की दो पाटियों कटवायीं। फिर मैं पत्थर की वे दोनों पाटियाँ हाथों में लिये पर्वत पर चढ़ा।
4) प्रभु ने उन पाटियों पर वही लिखा, जो उसने पहले लिखा था, अर्थात् वे दस आज्ञाएँ, जिन्हें उसने तुम्हारे समुदाय को अग्नि में से पर्वत पर सुनाया था और प्रभु ने उन्हें मुझे दिया।
5) तब मैं मुड़ कर पर्वत से नीचे उतरा था और मैंने उन पाटियों को अपनी बनवायी उस मंजूषा में रखा था। उस में वे आज तक सुरक्षित हैं, जैसी कि प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी।
6) (बने-याकान के कुओं के पास से इस्राएली मोसेरा की ओर चल दिये थे। वहाँ हारून की मृत्यु हुई और वह वहाँ दफ़नाया गया। उसके स्थान पर उसका पुत्र एलआज+ार याजकीय कार्य करने लगा था।
7) वहाँ से उन्होंने गुदगोदा की ओर प्रस्थान किया और गुदगोदा से योटबाता की ओर, जहाँ बहुत-सी जलधाराएँ हैं।
8) उस समय प्रभु ने लेवी के वंष को नियुक्त किया, जिससे - जैसा कि वह अब तक करता आया है - वह प्रभु के संविधान की मंजूषा ले जाया करे, प्रभु की सेवा के लिए उसके सम्मुख उपस्थित रहे और उसके नाम पर आषीर्वाद दे।
9) लेवीवंषियों को अपने भाइयों के साथ विरासत में भाग नहीं मिला है। प्रभु ही उनकी विरासत है जैसे की उसने प्रतिज्ञा की है।)
10) ''पहली बार की तरह ही मैं चालीस दिन और चालीस रात पर्वत पर रहा। इस बार भी प्रभु ने मेरी प्रार्थना स्वीकार की। प्रभु तुम्हारा सर्वनाष नहीं करना चाहता था।
11) इसके बाद प्रभु ने मुझे यह आज्ञा दी थी, ÷लोगों के नेता बन कर उनके आगे-आगे चलो, जिससे वे वह देष अपने अधिकार में लें, जिसे उन्हें देने का वचन मैंने शपथ पूर्वक उनके पूर्वजों को दिया था।''
12) मूसा ने लोगों से कहा, ''इस्राएल! तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम से क्या चाहता है? वह यही चाहता है कि तुम अपने प्रभु-ईष्वर पर श्रद्धा रखो, उसके सब मार्गों पर चलते रहो, उसे प्यार करो, सारे हृदय और सारी आत्मा से अपने प्रभु-ईष्वर की सेवा करो और
13) प्रभु के उन सब आदेषों तथा नियमों का पालन करो, जिन्हें मैं आज तुम्हारे कल्याण के लिए तुम्हारे सामने रख रहा हँू।
14) आकाष, सर्वोच्च आकाष, पृथ्वी और जो कुछ उस में है - यह सब तुम्हारे प्रभु ईष्वर का है।
15) फिर भी प्रभु ने तुम्हारे पूर्वजों को प्यार किया और उन को अपनाया है। उनके बाद उसने उनके वंषजों को अर्थात् तुमको सभी राष्ट्रों में से अपनी प्रजा के रूप में चुन लिया, जैसे कि तुम आज हो।
16) अपने हृदयों का खतना करो और हठधर्मी मत बने रहो;
17) क्योंकि तुम्हारा प्रभु ईष्वर ईष्वरों का ईष्वर तथा प्रभुओं का प्रभु है। वह महान् शक्तिषाली तथा भीषण ईष्वर है। वह पक्षपात नहीं करता और घूस नहीं लेता।
18) वह अनाथ तथा विधवा को न्याय दिलाता है, वह परदेषी को प्यार करता है और उसे भोजन-वस्त्र प्रदान करता है।
19) तुम परदेषी को प्यार करो, क्योंकि तुम लोग भी मिस्र में परदेषी थे।
20) तुम अपने प्र्रभु-ईष्वर पर श्रद्धा रखोगे, उसकी सेवा करोगे, उस से संयुक्त रहोगे और उसके नाम की शपथ लोगे।
21) तुम को उसकी स्तुति करनी चाहिए। वह तुम्हारा ईष्वर है। उसने तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे लिए महान् तथा विस्मयकायी कार्य सम्पन्न किये हैं।
22) जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र में आए, तो उनकी संख्या सत्तर ही थी और अब तुम्हारे प्रभु-ईष्वर ने तुम लोगों को आकाष के तारों की तरह असंख्य बना दिया है।

अध्याय 11

1) ''तुम अपने प्रभु-ईष्वर को प्यार करो और उसकी आज्ञाओं, नियमों, विधि निषेधों और आदेषों का सदा पालन करो।
2) आज अपने प्रभु-ईष्वर की षिक्षा याद रखो - मैं तुम्हारे बच्चों से यह नहीं कह रहा हँू; उन्होंने तो प्रभु का अनुषासन नहीं देखा और इसका अनुभव नहीं किया -
3) लेकिन तुमने उसकी महिमा, उसका सामर्थ्य और उसका बाहुबल देखा। तुमने मिस्र में मिस्र के राजा फ़िराउन और उसके समस्त देष के विरुद्ध प्रभु के किये हुए चमत्कार और कार्य देखे।
4) उसने तुम्हारा पीछा करती हुई मिस्र की सेना का विनाष किया, उसने उसके घोड़े और रथ लाल समुद्र की लहरों में बहा दिये।
5) तुमने देखा कि यहाँ तक पहुँचने से पहले उसने उजाड़खण्ड में तुम्हारे लिये क्या-क्या किया।
6) तुमने देखा कि उसने रूबेनवंषी एलीआब के पुत्र दातान और अबीरान के साथ क्या किया, जब पृथ्वी फट गई थी और उसने अपने परिवारों को, उनके तम्बुओं और उनके सर्वस्व को इस्राएलियों के देखते-देखते निगल लिया।
7) तुमने अपनी आँखो से प्रभु द्वारा किये गये इन सारे महान् कार्यों को देखा।
8) ''इसलिए तुम्हें उन सब आज्ञाओं का पालन करना चाहिए, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हूँ, जिससे तुम शक्तिषाली बनो और उस देष को जीत सको, जिसे तुम अपने अधिकार में लेने के लिए यर्दन पार कर रहे हो।
9) और उस देष में दीर्घ काल तक बस सको, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं। प्रभु ने उसे तुम्हारे पूर्वजों और उनके वंषजों को देने का शपथपूर्वक वचन दिया।
10) तुम अपने अधिकार में करने के लिए जिस देष में प्रवेष करने जा रहे हो, वह मिस्र के समान नहीं हैं, जिस से तुम निकल आये हो। वहाँ तुम बीज+ बोने के बाद पैरों से रहट चलाकर सिंचाई करते थे, जैसे सब्ज+ी की क्यारियों में की जाती है।
11) जो देष तुम उस पार अपने अधिकार में करोगे, पहाड़ियों और तराइयों का देष है और वह बादलों के जल से सींचा जाता है।
12) वह एक ऐसा देष है, जिसकी देखरेख प्रभु, तुम्हारा ईष्वर करता है और जिस पर वर्ष के प्रारम्भ से अन्त तक प्रभु का ध्यान रहता है।
13) ''यदि तुम मेरी इन सब आज्ञाओं का, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हूँ, पालन करोगे और प्रभु, अपने ईष्वर को प्यार करोगे तथा सारे हृदय और सारी आत्मा से उसकी सेवा करोगे,
14) तो मैं तुम्हारे देष को शरत् और वसन्त में, ठीक समय पर वर्षा प्रदान करूँगा, जिससे तुम अनाज, अंगूरी और तेल की फ़सल बटोर सकोगे।
15) मैं तुम्हारे खेतों पर तुम्हारे पषुओं के लिए चारा उगाऊँगा। तुम भी खाकर तृप्त हो जाओगे।
16) सावधान रहो, तुम्हारा हृदय बहके नहीं और तुम पथभ्रष्ट हो कर पराये देवताओं की सेवा मत करो और उन्हें दण्ड़वत् मत करो।
17) ऐसा करोगे, तो तुम्हारे विरुद्ध प्रभु का कोप भड़क उठेगा और वह आकाष के द्वार बंद करेगा और तुम्हारे लिए वर्षा नहीं होगी। भूमि फ़सल पैदा नहीं करेगी और इस प्रकार वह रमणीय देष नष्ट हो जायेगा, जिसे प्रभु तुमको देने वाला है।
18) तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निषानी के तौर पर अपने हाथ में और षिरोबन्द तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो।
19) इन्हें अपने बाल-बच्चों को सिखाते रहो और तुम चाहे घर में रहो, चाहे यात्रा करो - सोते-जागते समय इनका मनन करते रहो।
20) तुम इन्हें अपने घरों की चौखटों और फाटकों पर लिख दो,
21) जिससे तुम और तुम्हारे वंषज उस देष में रह सकें, जिसके विषय में प्रभु ने तुम्हारे पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया था कि जब तक आकाष और पृथ्वी बने रहेंगे वह तब तक के लिए उसे तुम्हें दे देगा।
22) ''यदि तुम इन सब आदेषों का सावधानी से पालन करोगे, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हँू, प्रभु, अपने ईष्वर को प्यार करोगे, उसके मागोर्ं पर चलते रहोगे और उसके अनुगामी बने रहोगे,
23) तो प्रभु उन सब राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से भगा देगा और तुम अपने से अधिक महान् और शक्तिशाली राष्ट्रों का देष अपने अधिकार में करोगे।
24) प्रत्येक स्थान, जिस पर तुम पैर रखोगे, तुम्हारा हो जायेगा। तुम्हारे देष का विस्तार उजाड़खण्ड़ से लेबानोन तक और फ़रात नदी से ले कर पष्चिमी समुद्र तक होगा।
25) तुम्हारा सामना कोई भी नहीं कर सकेगा। तुम जिस भूमि पर अपने पाँव रखोगे, उस समस्त देष में प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे प्रति भय और आतंक उत्पन्न करेगा, जैसी उसने तुम से प्रतिज्ञा की थी।
26) देखो! आज मैं तुम लोगों के सामने आषीर्वाद तथा अभिषाप, दोनों रख रहा हँू।
27) प्रभु की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हँू उनका पालन करोगे, तो तुम्हें आषीर्वाद प्राप्त होगा।
28) यदि तुम अपने प्रभु-ईष्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और जो मार्ग मैं आज तुम्हें बता रहा हँू, उसे छोड़ कर उन अन्य देवताओं के अनुयायी बन जाओगे, जिन्हें तुम अब तक नहीं जानते तो तुम्हें अभिषाप दिया जायेगा।
29) यदि प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें उस देष में ले जायेगा, जिस पर तुम अधिकार करने जा रहे हो, तो तुम गरिज्+ज+ीम पर्वत पर आशीर्वाद और एलाब पर्वत पर अभिषाप दोगे।
30) ये दोनों पर्वत यर्दन के उस पार, पष्चिम के मार्ग में अराबा में रहने वाले कनानियों के देष में, गिलआद के सामने, मोरे के बलूत के पास स्थित हैं।
31) अब तुम उस देष में प्रवेष करने के लिए यर्दन पार करने वाले हो, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें दे रहा है। जब उस पर तुम्हारा अधिकार हो जाये और तुम वहाँ बस जाओ,
32) तो मैं जो आदेष और नियम आज तुम्हें दे रहा हूँ उनका सावधानी से पालन करो।

अध्याय 12

1) ''जब तक तुम इस पृथ्वी पर जीवित रहोगे, तब तक तुम प्रभु, अपने पूर्वजों के ईष्वर द्वारा अपने अधिकार में दिये गये उस देष में इन आदेषों और विधियों का सावधानी से पालन करोगे।''
2) ''तुम ऊँचे पर्वतों और पहाड़ियों पर तथा सब छायादार वृक्षों के नीचे उन सब स्थान को पूर्णतया नष्ट करो, जहाँ वे राष्ट्र अपने देवताओं की पूजा करते हैं, जिनका देष तुम अपने अधिकार में करने जा रहे हो।
3) उनकी वेदियों को तोड़ दो, उनके पवित्र स्मारकों को चकनाचूर कर दो, उनके पूजा के स्तम्भों को जला दो, उनकी देवमूर्तियों को टुकड़े-टुकड़े कर दो और उन स्थानों में उनका नाम तक मिटा दो।
4) ''तुम उनकी तरह प्रभु, अपने ईष्वर की पूजा नहीं करोगे।
5) प्रभु, तुम्हारा ईष्वर अपना नाम स्थापित करने और वहाँ निवास करने के लिए, तुम्हारे सब वंषों में जिस स्थान को निष्चित करेगा, तुम उसका पता लगा कर केवल वहाँ जाओगे।
6) तुम वहीं अपनी होम - और शांति-बलियाँ ले आओगे अपने दषमांष और अन्य चढ़ावे, मन्नतों की या स्वेच्छा से अर्पित बलियाँ और अपनी गायों तथा भेड़-बकरियों के पहलौठे।
7) वहाँ तुम प्रभु, अपने ईष्वर के सामने अपने परिवारों के साथ भोजन करोगे और अपने कल्याण के कारण आनन्द मनाओगे; क्योंकि तुम्हें प्रभु अपने ईष्वर का आषीर्वाद प्राप्त होगा।
8) ''तुम वहाँ वैसा आचरण नहीं करोगे जैसा हम यहाँ करते हैं - यहाँ तो प्रत्येक व्यक्ति जो उचित समझता है, वही करता है;
9) क्योंकि अब तक तुम उस विश्राम स्थान और उस विरासत तक नहीं पहँुचे हो, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम को देने जा रहा है।
10) परन्तु जब तुम यर्दन पार कर उस देष में पहँुचोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें दायभाग के रूप में दे रहा है, तो वह तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं से मुक्त करेगा और तुम उस में सुरक्षित हो कर निवास करोगे।
11) तुम उस स्थान पर, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनेगा, ये सारे चढ़ावे ले आओगे, जिनके विषय में मैं तुम्हें आदेष देता हँू - अपनी होम और शांति-बलियाँ, अपने दशमाँश और अन्य चढ़ावे तथा मन्नत के अन्य उपहार।
12) तब तुम अपने प्रभु-ईष्वर के सामने अपने पुत्र-पुत्रियों, अपने दास-दासियों और अपने नगरों में रहने वाले लेवियों के साथ आनन्द मनाओगे; क्योंकि तुम्हारी तरह लेवियों की अपनी कोई भूमि और दायभाग नहीं है।
13) 'सावधान रहो। तुम जहाँ कहीं चाहते हो, वहाँ होम-बलियाँ मत चढ़ाओ।
14) केवल उसी स्थान पर होम-बलियाँ चढ़ानी चाहिए, जिसे प्रभु तुम्हारे किसी वंष के यहाँ चुनेगा और वहाँ मेरे आदेष के अनुसार ही सब अन्य विधियाँ पूरी करो।
15) ''फिर भी अपने सब नगरों मे, जब चाहो कोई पषु मार सकते हो, जैसा कि प्रभु का आषीर्वाद तुम को प्राप्त है। सब लोग, चाहे वे शुद्ध हों या अषुद्ध, उसे खा सकते हैं, मानो वह किसी चिकारे या हिरण का माँस हो।
16) किन्तु तुम रक्त का उपभोग नहीं करोगे। तुम उसे निकाल कर पानी की तरह जमीन पर बहा दोगे।
17) ''अपने किसी भी नगर में तुम अपने अनाज, अपने अंगूरी या अपने तेल का दशमांष, अपने मवेषी और भेड़-बकरियों के पहलौठे, मन्नत की अपनी बलियाँ, स्वेच्छा से अर्पित बलियाँ और अन्य चढ़ावे नहीं खाओगे;
18) बल्कि प्रभु, अपने ईष्वर के सामने, अपने पुत्र-पुत्रियों, अपने दास-दासियों और अपने नगरों में रहने वाले लेवियों के साथ उन्हें उस स्थान पर खाओगे, जिसका चुनाव प्रभु, तुम्हारा ईष्वर करेगा। वहीं तुम अपने सब कामों की सफ़लता के लिए प्रभु, अपने ईष्वर के सामने आनन्द मनाओगे।
19) जब तक तुम अपने उस देष में रहो, तब तक लेवियों को नहीं भुलाओ।
20) ''जब प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे देष का विस्तार किया हो और तुम मांस खाना चाहते हो, क्योंकि तुम मांस खाना पंसद करते हो, तो तुम जितना चाहो, खा सकते हो।
21) यदि वह स्थान तुम्हारे यहाँ से अधिक दूर हो, जिसे प्रभु तुम्हारा ईष्वर अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनता है, तो तुम अपने मवेषी या भेड़-बकरियों में से जिन्हें प्रभु ने तुम्हें दिया है, कोई भी पषु, बताये हुए नियमों के अनुसार, मार सकते हो और अपने नगरों में जितना चाहो खा सकते हो।
22) सब लोग चाहे वे शुद्ध हों या अषुद्ध उसे खा सकते हैं मानो वह कोई चिकारा या हरिण हो।
23) किन्तु तुम रक्त का उपभोग नहीं करोगे; क्योंकि रक्त में जीवन-शक्ति है और वह मांस खाना वर्जति है, जिस में जीवन-षक्ति है।
24) तुम रक्त का उपभोग नहीं करोगे। तुम उसे निकाल कर पानी की तरह बहा दोगे।
25) उसका उपभोग नहीं करो। इस से तुम्हारा और तुम्हारे बाद तुम्हारी सन्तति का कल्याण होगा; तुम प्रभु की इच्छा के अनुसार आचरण करोगे।
26) किन्तु तुम अपने पवित्र चढ़ावे और मन्नत के उपहार उस स्थान में ले जाओगे, जिसे प्रभु चुनता है।
27) तुम अपनी होम-बलियों का मांस और रक्त प्रभु की वेदी पर चढ़ाओगे। शान्ति-बलियों का रक्त वेदी पर उँड़ेला जाये, किन्तु तुम्हें उनका मांस खाने की अनुमति है।
28) उन सब आदेषों का सावधानी से पालन करो, जो मैं आज तुम्हें दे रहा हँू। इस से तुम्हारा और तुम्हारी सन्तति का कल्याण होगा; क्योंकि तुम वही करोगे, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है।
29) ''जब प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हारे सामने उन राष्ट्रों का विनाष किया होगा, जिनका देष तुम अपने अधिकार में करने जा रहे हो और जब तुमने उसे अपने अधिकार में किया होगा और तुम उनके देष में बस गये होगे,
30) तो सावधान रहो कि तुम्हारे सामने उनके विनाष के बाद तुम उनका अनुकरण करते हुए फन्दे में न फँस जाओ। उनके देवताओं के विषय में यह मत पूछो, 'वे राष्ट्र अपने देवताओं की पूजा किस प्रकार करते थे? हम उसी प्रकार क्यों न करें?
31) तुम उनकी तरह प्रभु, अपने ईष्वर की पूजा नहीं करोगे; क्योंकि वे अपने देवताओं की पूजा करते समय सब प्रकार क घोर कुकर्म करते है, जिन से प्रभु घृणा करता है। वे अपने देवताओं के लिए अपने पुत्र-पुत्रियों को भी अग्नि में जला देते हैं।

अध्याय 13

1) मैं तुम्हें जो आदेष दे रहा हँू, उन सब का सावधानी से पालन करो। तुम उन में न तो कुछ बढ़ाओ और न कुछ घटाओ।
2) ''यदि तुम्हारे यहाँ एक ऐसा नबी या एक ऐसा स्वप्नद्रष्टा उत्पन्न हो, जो तुम्हारे सामने आने वाले चिह्न या चमत्कार घोषित करता है।
3) और यदि उसके द्वारा बताये गये वे चिह्न या चमत्कार घटित हों और यदि वह कहे कि हम पराये देवताओं के, जिन्हें तुम नहीं जानते, अनुयायी बनें और उनकी पूजा करें,
4) तो तुम उस नबी या स्वप्नद्रष्टा की बातों पर ध्यान नहीं दोगे। इस प्रकार प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारी परीक्षा लेते हुए जानना चाहता है कि तुम उस को अपने सारे हृदय और अपनी सारी आत्मा से प्यार करते हो या नहीं।
5) तुम केवल प्रभु, अपने ईष्वर का अनुगमन करो, उस पर श्रद्धा रखो उसके आदेषों का पालन करो उसकी बात मानो, उसकी पूजा करो और उसके अनुयायी बने रहो।
6) किन्तु तुम उस नबी या स्वप्नद्रष्टा का वध करोगे, क्योंकि उसने तुम को प्रभु, अपने ईष्वर से विमुख करना चाहा, जो तुम को मिस्र से निकाल लाया और दासता के घर से तुम्हारा उद्धार किया। उसने तुम को उस मार्ग से बहलाना चाहा जिस पर चलने का प्रभु ने तुम को आदेष दिया। तुम अपने बीच से यह बुराई निकाल दोगे।
7) ''यदि तुम्हारा भाई तुम्हारी माँ का पुत्र या तुम्हारा पुत्र या तुम्हारी पुत्री या तुम्हारी प्रिय पत्नी या तुम्हारे अन्तरंग मित्र यह कहते हुए तुम्हें अकेले में बहकाये, ÷चलो हम पराये देवताओं की पूजा करें' - ऐसे देवताओं कि जिन्हें न तुम जानते थे और न तुम्हारे पूर्वज;
8) उन देवताओं की, जो तुम्हारे निकट या पृथ्वी पर कहीं भी अवस्थित राष्ट्रों के हैं -
9) तो तुम उस से सहमत नहीं होगे और उसकी बात नहीं सुनोगे। तुम उस पर दया नहीं करोगे उसकी रक्षा नहीं करोगे उसका पाप नहीं छिपाओगे;
10) बल्कि तुम उसका वध अवष्य करोगे; उसका वध करने के लिए सब से पहले तुम्हारा ही हाथ उठे और इसके बाद सारे समुदाय का हाथ।
11) उसे पत्थरों से मार-मार कर मृत्युदण्ड़ दिया जाये; क्योंकि उसने मिस्र से, दासता के घर से, तुम को छुड़ाने वाले ईष्वर के मार्ग से तुम्हें बहकाने का प्रयत्न किया।
12) तब सभी इस्राएली उसकी चरचा सुनेंगे, उन्हें भय होगा और बाद में तुम्हारे बीच ऐसा कुकर्म कभी नहीं होगा।
13) ''यदि अपने किसी नगर के विषय में, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे निवास के लिए तुम्हें दे रहा है, तुम यह सुनो कि
14) तुम में ऐसे दुष्ट लोग उठ खड़े हुए हैं, जिन्होंने यह कहते हुए अपने नगर - निवासियों को बहकाया है, 'चलो, हम पराये देवताओं की पूजा करें' - ऐसे देवताओं की, जिन्हें तुम नहीं जानते थे -
15) तो तुम इस बात की ठीक-ठीक जाँच करोगे। यदि यह निष्चित हो जाये कि तुम्हारे बीच सचमुच ऐसा कुकर्म हुआ है,
16) तो उस नगर के निवासियों को अवष्य तलवार के घाट उतारोगे, उसका विनाश करोगे और उसमें रहने वाले सब लोगों और पषुओं का वध करोगे।
17) तुम उस को लूट कर सारा माल बाज+ार के चौक में इकट्ठा करोगे और प्रभु, अपने ईष्वर को अर्पित चढ़ावे के रूप में उसे नगर के साथ जला दिया जायेगा। वह सदा के लिए खँडहर बना दिया जाये, उसका कभी पुनर्निर्माण न किया जाये।
18) उस शापित नगर की किसी वस्तु को अपने पास मत रखो, जिससे प्रभु का क्रोध शान्त हो जाये, वह तुम पर दया करे, तुम पर तरस खायें और तुम्हारी संख्या बढ़ाये, जैसी कि उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी;
19) क्योंकि तुम लोगों ने प्रभु की बातों पर कान दिया होगा, उन सब आदेषों का पालन किया होगा, जिन्हें मैं आज तुम को दे रहा हँू और तुमने वही किया होगा, जो प्रभु तुम्हारे ईष्वर की दृष्टि में उचित है।

अध्याय 14

1) ''तुम लोग प्रभु, अपने ईष्वर की सन्तान हो। तुम किसी की मृत्यु के कारण न तो अपने शरीर में घाव करोगे और न अपने सिर के सामने के बाल कटवाओगे।
2) कारण, तुम प्रभु, अपने ईष्वर को अर्पित प्रजा हो। प्रभु ने पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों में से तुम को अपनी निजी प्रजा के रूप में चुना है।
3) ''तुम कोई घृणित वस्तु नहीं खाओगे।
4) वे पषु, जिन्हें तुम खा सकते हो, ये हैं : बैल, भेड़, बकरी,
5) हरिण, चिकारा, साँभर, जंगली बकरा, चीतल, कुरंग और पहाड़ी भेड़।
6) तुम उन सब पषुओं को खा सकते हो जिनके खुर फटे हैं और जो पागुर करते हैं।
7) परन्तु पागुर करने वालों और फटे खुर वालों में तुम इन को नहीं खा सकते हो : ऊँट, खरगोष और चट्टानी बिज्जू। ये पागुर करने वाले है परन्तु इनके खुर फटे नहीं होते। ये तुम्हारे लिए अषुद्ध हैं।
8) और सुअर भी, जो फटे खुर वाला है, लेकिन पागुर नहीं करता। इसलिए वह तुम्हारे लिए अषुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खा सकते हो और इनकी लाष छू सकते हो।
9) ''सब जल-जन्तुओं में तुम उन्हें खा सकते हो जो पंख और शल्क वाले हैं;
10) परन्तु उन्हें, नहीं खा सकते, जिनके पंख और शल्क नहीं हैं। वे तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं।
11) ''तुम सभी पशु पक्षियों को खा सकते हो।
12) तुम जिन पक्षियों को नहीं खा सकते हो, वे हैं : गरुड़, हड़फोड़, कुरर,
13) चील सब प्रकार के बाज,
14) लग्घड़, सब प्रकार के कौए,
15) शुतुरमुर्ग, रात-षिकरा, जल-कुक्कुट, सब प्रकार के षिकरे,
16) घुग्घू, बड़ा उल्लू, उल्लू,
17) हवासील, गिद्ध, हड़-गीला,
18) लगलग, सब प्रकार के बगुले, हुदहुद और चमगादड़।
19) सब प्रकार के पंख वाले छोटे जीव-जन्तु तुम्हारे लिए अषुद्ध हैं। तुम उन्हें नहीं खा सकते।
20) तुम पंख वाले सभी शुद्ध पक्षियों को खा सकते हो।
21) ''तुम किसी भी मृत पषु-पक्षी को नहीं खा सकते हो। तुम उसे अपने गाँव में रहने वाले विदेषी द्वारा खाये जाने के लिए छोड़ सकते हो या वह किसी परदेषी को बेचा जा सकता है। तुम एक ऐसी जाति के हो, जो प्रभु अपने ईष्वर के लिए पवित्र है, तुम किसी मेमने को उसकी माँ के दूध में नहीं उबालोगे।
22) ''तुम प्रति वर्ष अपनी भूमि में बोये हुए बीज की उपज का दषमांष अलग करोगे।
23) तुम अपने अनाज, अपनी अंगूरी, अपने तेल का दषमांष और अपने मवेषी और भेड़-बकरियों के पहलौठे का मांस प्रभु, अपने ईष्वर के सामने उसी स्थान पर खाओगे, जिसे वह अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनेगा, जिससे तुम प्रभु, अपने ईष्वर पर सदा श्रद्धा रखना सीखोगे।
24) यदि वह स्थान तुम्हारे यहाँ से अधिक दूर हो, जिसे प्रभु तुम्हारा ईष्वर अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनता है और तुम वहाँ सब कुछ नहीं ले जा सकते हो, क्योंकि प्रभु ने तुम को भरपूर आषीर्वाद दिया है।
25) तो तुम वह सब बेच सकते हो और उसका रूपया ले कर उसे वह स्थान ले जा सकते हो, जिसे प्रभु चुनता है।
26) फिर तुम वहाँ उस रूपये से अपनी इच्छा के अनुसार सब कुछ मोल ले सकते हो; जैसे बछड़ें, भेड़ें, अंगूरी, मंदिरा या जो वस्तु चाहते हो तुम वहाँ प्रभु, अपने ईष्वर के सामने अपने परिवार के साथ आनन्द मनाते हुए भोजन कर सकते हो।
27) उस समय अपने नगरों में रहने वाले लेवियों को मत भुलाओ, क्योंकि लेवियों की तुम्हारी तरह अपनी भूमि और दायभाग नहीं है।
28) ''तुम प्रति तीसरे वर्ष उस वर्ष की उपज का दषमांष अपने-अपने नगर में जमा करो,
29) जिससे लेवी (उनकी अपनी भूमि का दायभाग नहीं है।) और तुम्हारे नगर में रहने वाले परदेषी, अनाथ और विधवाएँ आ सकें और खा कर तृृप्त हो जायें और प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे सब कार्यो में आषीर्वाद प्रदान करे।

अध्याय 15

1) ''तुम हर सातवें वर्ष ऋण माफ़ करोगे।
2) ऋण से मुक्ति का नियम इस प्रकार होगा : हर ऋणदाता अपने पड़ोसी को दिया हुआ ऋण माफ करेगा। वह अपने पड़ोसी या अपने भाई को ऋण चुकाने के लिए बाध्य नहीं करेगा, क्योंकि प्रभु के नाम पर ऋण-मुक्ति की घोषणा की गयी है।
3) तुम परदेषी को ऋण चुकाने के लिए बाध्य कर सकते हो, किन्तु अपने भाई को दिया हुआ ऋण माफ़ करोगे।
4) उस देष में, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें अपने अधिकार में देगा, प्रभु तुम्हें इतना आषीर्वाद देगा कि वहाँ गरीब नहीं होगे।
5) यह तभी होगा जब तुम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान दोगे और उन सभी आज्ञाओं का सावधानी से पालन करोगे, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हँू।
6) प्रभु का आषीर्वाद तुम पर बना रहेगा, जैसी कि उसने प्रतिज्ञा की हैं। तुम अनेक राष्ट्रों को उधार दे सकोगे और तुम्हें उधार लेने की आवष्यकता नहीं होगी; तुम अनेक राष्ट्रों पर षासन करोगे और तुम किसी के द्वारा शासित नहीं होगे।
7) ''जब उस देष के तुम्हारे किसी नगर में जो प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है, तुम्हारा कोई भाई कंगाल हो जाये, तो तुम उसके प्रति निर्दय न बनो और उसकी सहायता करने के लिए अपना हाथ बन्द मत रखो,
8) बल्कि ज+रूरत हो, तो उसे खुले हाथ उधार दो।
9) अपने मन में ऐसा तुच्छ विचार न आने दो कि अब सातवाँ वर्ष, ऋण मुक्ति वर्ष, आने वाला है और इसलिए तुम निर्दय बन कर अपने कंगाल भाई को कुछ न दो; क्योंकि यदि वह तुम्हारे विरुद्ध प्रभु से दुहाई करेगा, तो तुम दोषी ठहरोगे।
10) तुम उसे अनिच्छा से नहीं, बल्कि, खुले हाथ दो। इसके लिए प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हें अपने सब काम में आषीर्वाद देगा।
11) कंगाल तो बराबर देष में रहेंगे। इसलिए मैं तुम्हें यह आदेष देता हँू कि अपने देष में रहने वाले अपने कंगाल और ग़रीब देष-भाई के लिए अपना हाथ खुला रखो।
12) ''यदि तुम्हारा कोई जाति-भाई, कोई इब्रानी या इब्रानिन अपने को तुम्हारे हाथ बेचे, तो वह छः वर्ष तक तुम्हारे यहाँ सेवा करेगी। परन्तु तुम उसे सातवें वर्ष सेवा से मुक्त कर दोगे।
13) जब वह सेवा से मुक्त हो कर तुम्हारे यहाँ से जाने लगे, तो उसे ख़ाली हाथ नहीं जाने दोगे।
14) तुम अपनी भेड़-बकरियों में से, अपने खलिहान और अपने अंगूरी के कुण्ड़ से उदार दान दो। तुम प्रभु, अपने ईश्वर से प्राप्त आशीर्वाद के अनुसार उसे दे दो।
15) याद रखो कि तुम भी मिस्र देष में दास के रूप में रहते थे और प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हारा उद्धार किया था। इसीलिए मैं आज तुम्हें ऐसा करने का आदेष देता हँू।
16) ''यदि वह तुम से कहे कि मैं तुम्हारी सेवा से मुक्ति नहीं चाहता हँू ,क्योंकि वह तुम से और तुम्हारे परिवार से प्रेम करने लगा है - क्योंकि वहाँ से उसे सुख मिल रहा है -
17) तो तुम उसका कान किवाड़ पर लगाकर सूए से छेद दोगे और वह हमेषा के लिए तुम्हारा दास हो जायेगा। तुम अपनी दासी के साथ भी यही करोगे।
18) दास को मुक्त करते समय तुम्हें दुःख नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसने छह वर्षों तक मज+दूरी से दुगुने मूल्य की सेवा की है। ऐसा करने पर प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें अपने सब कामों में आषीर्वाद देगा।
19) ''तुम अपनी गायों और भेड़-बकरियों के हर पहलौठे बच्चे को प्रभु, अपने ईष्वर को अर्पित करोगे। पहलौठे बच्चे से तुम कोई काम नहीं करवाओगे। भेड़ो के पहलौठे बच्चे का ऊन नहीं कतरोगे।
20) तुम उसे प्रति वर्ष प्रभु के सामने अपने परिवार के साथ उस स्थान पर खाओगे, जिसे प्रभु चुनता है।
21) यदि कोई पषु सदोष है, यदि वह लँगड़ा या अन्धा है या उस में किसी प्रकार का बड़ा दोष है, तो तुम उसे बलि के रूप में प्रभु, अपने ईष्वर को मत चढ़ाओ।
22) तुम चाहे शुद्ध हो या अषुद्ध, उसे अपने यहाँ खा सकते हो, मानो वह कोई चिकारा या हरिण हो।
23) किन्तु तुम रक्त का उपभोग नहीं करोगे। तुम उसे निकाल कर पानी की तरह बहा दोगे।

अध्याय 16

1) ''अबीब महीने में प्रभु, अपने ईष्वर के सामने पास्का का पर्व मनाओ, क्योंकि अबीब महीने में ही प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें रात के समय मिस्र से निकाल लाया।
2) प्रभु अपने ईष्वर को पास्का की बलि, अर्थात् एक भेड़ या एक बछड़ा, उस स्थान पर चढ़ाओ, जिसे प्रभु अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनेगा।
3) तुम उसके साथ ख़मीरी रोटी नहीं खाओगे। तुम सात दिन तक बेख़मीर रोटी - विपत्ति की रोटी - खाओगे क्योंकि तुम्हें बड़ी जल्दी में मिस्र से भागना पड़ा। इस प्रकार तुम मिस्र से अपने निर्गमन का दिन आजीवन याद रखोगे।
4) तुम्हारे सारे देष में सात दिन तक तुम्हारे पास कहीं भी ख़मीर न हो। तुम पहले दिन की शाम जो मांस चढ़ाते हो, उसका कुछ भी प्रातःकाल तक शेष न रहने दो।
5) तुम पास्का की बलि उन नगरों में नहीं चढ़ाओगे, जिन्हें प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है -
6) केवल उसी स्थान पर चढ़ाओगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनता है। तुम शाम को सूर्यास्त के समय पास्का की बलि चढ़ओगे क्योंकि यही वह समय है, जब तुम मिस्र से निकले थे।
7) जो स्थान प्रभु, तुम्हारा ईष्वर चुनता है, तुम उस स्थान पर उसे पका कर खाओगे और प्रातःकाल अपने यहाँ लौट जाओगे।
8) तुम छः दिन तक बेख़मीर रोटियाँ खाओगे और सातवें दिन प्रभु, अपने ईष्वर के आदर में धर्मसभा का आयोजन करोगे। तुम उस दिन किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।
9) ''सात सप्ताह गिनोगे। जिस दिन तुम पकी हुई फ़सल काटने के लिए अपनी हंँसिया उठाओगे, उसी दिन से सात गिनोगे।
10) इसके बाद तुम प्रभु, अपने ईष्वर के आदर में सप्ताहों का पर्व मनाओगे और प्रभु अपने ईष्वर से प्राप्त आषीर्वाद के अनुपात में स्वेच्छा से चढ़ावा अर्पित करोगे।
11) तुम उस स्थान पर आनन्द मनाओगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनेगा। तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ तुम्हारे दास-दासियाँ तुम्हारे नगर में रहने वाले लेवी, तुम्हारे बीच रहने वाले प्रवासी, अनाथ और विधवाएँ भी तुम्हारे साथ प्रभु, अपने ईष्वर के सामने आनन्द मनायेंगे
12) याद रखो कि तुम मिस्र में दास थे। तुम इन नियमों का विधिपूर्वक पालन करोगे।
13) ''तुम खलिहान का अनाज और अंगूरी कुण्ड़ का रस एकत्रित कर लेने के बाद, सात दिन तक षिविर-पर्व मनाओगे।
14) तुम इस पर्व के अवसर पर अपने पुत्र-पुत्रियों, अपने दास-दासियों, अपने नगर में रहने वाले लेवियों, प्रवासियों, अनाथों और विधवाओं के साथ आनन्द मनाओगे।
15) तुम सात दिन तक उस स्थान पर, जिसे प्रभु चुनेगा, प्रभु अपने ईष्वर के आदर में यह पर्व मनाओगे; क्योकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारी फ़सल और तुम्हारे कार्यों को इस प्रकार आषीर्वाद प्रदान करता रहेगा, जिससे तुम आनन्द के साथ उत्सव मना सकते हो।
16) ''सब पुरुष प्रतिवर्ष तीन बार प्रभु, अपने ईष्वर के दर्षनार्थ उस स्थान पर आयेंगे, जिसे वह चुनेगा, अर्थात् बेख़मीर रोटी के पर्व, सप्ताहों के पर्व और षिविर-पर्व के अवसर पर। प्रभु के सामने कोई ख़ाली हाथ नहीं आए।
17) प्रत्येक व्यक्ति प्रभु अपने ईष्वर से प्राप्त आषीर्वाद के अनुपात में चढ़ावा ले आये।
18) ''तुम अपने वंषो के सब नगरों में, जो प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देगा, न्यायाधीष और पदाधिकारी नियुक्त करोगे। वे लोगों का ईमानदारी से न्याय करें।
19) तुम न्याय का दुरूपयोग नहीं करोगे, पक्षपात नहीं करोगे और घूस नहीं लोगे क्योंकि घूस समझदार लोगों को भी अंधा बना देती है और धर्मियों का पक्ष निर्बल कर देती है।
20) तुम न्याय के अनुसार ही निर्णय दोगे। ऐसा करने से तुम दीर्घायु होगे और प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें जो देष देने वाला है, वह तुम्हारे अधिकार में रहेगा।
21) ''प्रभु, अपने ईष्वर के लिए अपनी बनायी हुई वेदी के पास अषेरा-देवी के लिए पूजा-स्तम्भ नहीं लगाओगे
22) और वहाँ कोई पवित्र स्मारक नहीं स्थापित करोगे; क्योंकि यह प्रभु तुम्हारे ईष्वर की दृष्टि में घृणित है।

अध्याय 17

1) ''प्रभु, अपने ईष्वर के लिए कोई ऐसा बछड़ा या भेड़ मत चढ़ाओ, जिस में कोई दोष या बुराई हो। यह प्रभु, तुम्हारे ईष्वर की दृष्टि में घृणित है।
2) यदि तुम्हारे किसी नगर में, जो प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है, कोई ऐसा पुरुष या ऐसी स्त्री हो, जो तुम्हारे ईष्वर के विधान का उल्लंघन करते हुए ऐसा कोई काम करे, जो प्रभु को अप्रिय है,
3) जो पराये देवताओं की पूजा करता है या सूर्य, चन्द्र और आकाष के किसी अन्य नक्षत्र को दण्डवत् करता है
4) और जब यह बात तुम्हें मालूम हो जाये, तो इस बात की ठीक-ठीक जाँच करोगे। तब यदि यह सत्य प्रमाणित हो जाये कि ऐसा कुकर्म इस्राएल में किया गया है,
5) तो उस कुकर्मी पुरुष या स्त्री को फाटक के बाहर ले जाओगे और उस पुरुष या स्त्री को पत्थरों से मार डालोगे।
6) केवल दो या तीन साक्षियों के आधार पर किसी को मृत्युदण्ड दिया जा सकता है। एक साक्षी के आधार पर किसी को प्राणदण्ड नहीं दिया जा सकता है।
7) सब से पहले साक्षी उसे मृत्युदण्ड देने के लिए अपने हाथ उठायें, उनके बाद अन्य सब लोग। इस प्रकार तुम अपने बीच से ऐसी बुराई दूर कर दोगे।
8) ''यदि तुम्हारे किसी नगर में कोई ऐसा मामला उपस्थित हो, जैसे हत्या, कानूनी अधिकारों के विवाद या मारपीट का - कोई ऐसा मामला, जिसका न्याय करना तुम्हारे लिए कठिन प्रतीत हो - तो तुम उस स्थान पर जाओगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर चुनेगा।
9) वहाँ लेवी कुल के उन याजकों और उस न्यायाधीष के पास जाओगे, जो उन दिनों अपने पद पर काम कर रहे हों और उन से परामर्ष करोगे। वे ही तुम्हारे लिए निर्णय करेंगे।
10) तुम्हें प्रभु अपने ईष्वर द्वारा नियुक्त उसके स्थान पर से घोषित निर्णय के अनुसार ही काम करना चाहिए। तुम उनके आदेष का सावधानी से पालन करोगे।
11) उनके द्वारा प्राप्त आदेष और घोषित निर्णय के अनुसार तुम्हें काम करना होगा। जो रास्ता वे तुम्हें बताते हैं, उस से तुम न बायें भटकोगे और न दाहिने।
12) उस व्यक्ति को मृत्युदण्ड दिया जायेगा, जो उस याजक की, जो वहाँ प्रभु, तुम्हारे ईष्वर की सेवा करता है या न्यायाधीष की अवज्ञा करता है। इस प्रकार तुम इस्राएल में से वह बुराई दूर करोगे।
13) जब लोग उसके विषय में सुनेंगे, तो वे भयभीत हो जायेंगे और उन्हें इस प्रकार की अवज्ञा करने का साहस नहीं होगा।
14) ''जब तुम लोग उस देष में पहुँचोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देगा और जब तुम उसे अधिकार में कर वहाँ बस जाओगे, तब यदि तुम चाहो कि अपने आसपास के अन्य सब राष्ट्रों की तरह तुम भी अपने ऊपर एक राजा नियुक्त करो।
15) तो तुम अपने ऊपर एक ऐसा राजा नियुक्त करोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर चुनेगा। तुम अपने किसी देष-भाई को राजा के रूप में नियुक्त करोगे। तुम अपने ऊपर किसी परदेषी को, जो इस्राएली न हो, राजा मत बनाओगे।
16) ''वह अपने घोड़ो की संख्या अधिक नहीं बढ़ाये और लोगों को इसके लिए मिस्र जाने दे कि वे घोड़े ले आयें। प्रभु ने तुमको यह चेतावनी दी है कि तुम लोग कभी उस मार्ग पर वापस नहीं जाओगे।
17) वह बहुत-सी पत्नियाँ नहीं रखे, जिससे कहीं उसका हृदय नहीं बहकाया जाये और न वह अधिक सोना-चाँदी एकत्रित करे।
18) ''जब वह राजगद्दी पर बैठेगा, तब वह अपने लिए इस संहिता की एक प्रतिलिपि करवायेगा, जो लेवीवंषी याजकों के पास सुरक्षित है।
19) वह उसे अपने पास रखेगा और जीवन भर प्रतिदिन उसका पाठ करता रहेगा, जिससे वह प्रभु, अपने ईष्वर पर श्रद्धा रखे और इस संहिता के सब आदेषों और नियमों का सावधानी से पालन करे।
20) इस प्रकार वह अपने भाइयों को तुच्छ नहीं समझेगा और आदेशों के मार्ग से न बायें भटकेगा और न दाहिने। ऐसा करने से वह और उसके पुत्र इस्राएल में दीर्घ काल तक शासन करते रहेंगे।

अध्याय 18

1) ''लेवीवंषी याजकों, अर्थात् लेवी वंष के सभी सदस्यों को अन्य इस्राएलियों के साथ कोई भाग या विरासत नहीं मिलेगी। वे प्रभु को अर्पित बलिदानों से अपनी जीविका चलायेंगे।
2) उन को अपने भाइयों के साथ दायभाग नहीं मिलेगा। प्रभु ही उनका दायभाग है, जैसा कि उसने उन से कहा है।
3) ''लोगों द्वारा अर्पित चढ़ावों का याजकीय भाग यह होगा : यदि कोई व्यक्ति बछड़ा या भेड़ चढ़ाये, तो याजक को कन्धा, दोनों गाल और उदर मिलें।
4) अनाज, अंगूरी और तेल के पहले फल और भेड़ों का सबसे पहला काटा हुआ ऊन याजक का है।
5) कारण यह कि प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने उन्हें तुम्हारे सब वंषों में से इसलिए चुना है कि वे और उनके पुत्र सदा प्रभु के सामने उपस्थित होकर उसकी सेवा करते रहें और उसके नाम पर आषीर्वाद देते रहें।
6) ''यदि कोई लेवी इस्राएल देष या कोई नगर छोड़ कर, जहाँ वह रहता है, प्रभु द्वारा चुने हुए स्थान पर बसना चाहे, तो वह आ सकता है
7) और वह प्रभु की सेवा करने वाले अपने लेवी वंषी भाइयों के साथ वहाँ प्रभु, अपने ईष्वर की सेवा करेगा।
8) उसे अन्य याजकों के साथ चढ़ावों का अंष मिलेगा, यद्यपि अपनी पैतृक सम्पत्ति की बिक्री का रूपया उसके पास हो।
9) ''जब तुम उस देष में पहुँचोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है, तो वहाँ रहने वाले लोगों के घृणित आचरण का अनुसरण मत करो।
10) तुम्हारे बीच ऐसा कोई व्यक्ति न हो, जो अपने पुत्र या पुत्री को अग्नि में जलाये, भविष्य बताये, सगुन विचारे, जादू-टोना करे,
11) अभिचार करे, भूत-प्रेत की साधना करे या मृतकों को जगाये।
12) जो ऐसे कर्म करता है, वह प्रभु की दृष्टि में घृणित है। इन घृणित कर्मों के कारण प्रभु उन राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से भगा देगा।
13) तुम प्रभु, अपने ईष्वर की दृष्टि में निर्दोष आचरण करोगे।
14) जिन राष्ट्रों का देष तुम अपने अधिकार में करने जा रहे हो, वे जादूगरों और सगुन विचारने वालों पर विष्वास करते हैं, किन्तु प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी है।
15) तुम्हारा प्रभु ईष्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा-तुम लोग उसकी बात सुनोगे।
16) जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईष्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईष्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे+ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे।
17) तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है।
18) मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखँूगा और उसे जो-जो आदेष दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा।
19) वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।
20) यदि कोई नबी मेरे नाम पर ऐसी बात कहने का साहस करेगा, जिसके लिए मैंने उसे आदेष नहीं दिया, या वह अन्य देवताओं के नाम पर बोलेगा, तो वह मर जायेगा।'
21) ''तुम्हारे मन में यह प्रश्न उठ सकता है : हम यह कैसे जानें कि नबी द्वारा दिया हुआ संदेष प्रभु की ओर से नहीं है?
22) यदि नबी प्रभु के नाम से बोलने का दावा करता है, किन्तु उसका कथन सच नहीं निकलता, तो वह कथन प्रभु का नहीं, बल्कि अविवेकी नबी का है। ऐसे व्यक्ति से मत डरो।

अध्याय 19

1) ''जब प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने उन राष्ट्रों का संहार किया होगा, जिनका देष प्रभु, तुम्हारे ईष्वर तुम्हें देने वाला है और तुम लोगों ने उन्हें भगा दिया होगा और तुम उनके नगरों और घरों में निवास करते होगे,
2) तो जो देष प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे अधिकार में देता है, तुम उस में तीन नगर निर्धारित करोगे।
3) तुम वहाँ तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाओगे और प्रभु, अपने ईष्वर द्वारा तुम को प्रदत्त देष तीन भागों में विभाजित करोगे, जिससे हत्या करने वाला हर व्यक्ति वहाँ भाग कर शरण ले सके।
4) जो व्यक्ति अनजाने, बिना किसी पूर्व शत्रुता के, किसी की हत्या करे वह अपने जीवन की रक्षा के लिए वहाँ भाग सकता है।
5) उदाहरणार्थ, यदि कोई अपने पड़ोसी के साथ लकड़ी काटने के लिए वन में जाये और लकडी काटने को कुल्हाड़ी हाथ से उठाये, पर कुल्हाड़ी बेंट से निकल कर उस पड़ोसी को इस तरह लगे की उसकी मृत्यु हो जाये, तो वह इन नगरो में से एक में शरण लेकर अपने जीवन की रक्षा कर सकता है।
6) नहीं तो ऐसा हो सकता है कि रक्त का प्रतिषोधी क्रोध के आवेष में उसका पीछा करें रास्ता लम्बा होने के कारण उसे पकड़ कर मार डाले, हालाँकि वह निर्दोष है क्योंकि उसकी अपने पड़ोसी के साथ कोई पूर्व शत्रुता नहीं थी।
7) इसलिए मै तुम्हें तीन नगरों को निर्धारित करने का आदेष देता हँू
8) (८-९) यदि तुम लोग उन सब नियमों का पालन करोगे, जिन्हें मैं आज तुम को दे रहा हँू और तुम ईष्वर को प्यार करते हुए उसके बताये हुये मार्ग पर चलते रहोगे, तो प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे देष का विस्तार बढ़ाएगा, जैसा कि उसने तुम्हारे पूर्वजों को शपथ पूर्वक वचन दिया और वह तुम्हें सारा देष दे देगा, जैसा कि उसने तुम्हारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की। तब तुम और तीन नगर निर्धारित करोगे।
10) इस प्रकार तुम्हारे देष में, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें विरासत के रूप में दे रहा है, निर्दोष रक्त नहीं बहाया जायेगा और तुम पर हत्या का दोष नहीं लगेगा।
11) ''परन्तु यदि कोई अपने पड़ोसी से द्वेष करता है, घात लगाकर उस पर टूट पड़ता और उसे मार डालता है और तब उन नगरो में से किसी में भाग जाता है,
12) तो उसके निवास स्थान के नेता किसी को भेज कर उसे वापस ले आयेंगे और रक्त-प्रतिषोधी के हवाले कर देंगे, जो उसका वध करेगा।
13) ऐसे लोगों के प्रति दया नहीं करोगे। जिसने निर्दोष रक्त बहाया है, वह इस्राएल से निकाल दिया जाएगा। इसी में तुम्हारा कल्याण है।
14) ''जो भूमि तुम को दायभाग के रूप में उस देष में मिलेगी, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम लोगों को देने वाला है, तुम उस में अपने पड़ोसी का वह सीमा-पत्थर नहीं हटाओगे, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने लगाया है।
15) ''केवल एक ही साक्षी के आधार पर किसी भी व्यक्ति द्वारा किया हुआ कोई भी दोष या अपराध प्रमाणित नहीं माना जायेगा, बल्कि दो या तीन साक्षियों के आधार पर दोष प्रमाणित माना जा सकता है।
16) यदि कोई साक्षी किसी पर द्वेष के कारण दोष लगाये,
17) तो दानों पक्ष प्रभु के सामने, याजकों और उस समय के न्यायाधीषों के सामने, उपस्थित होंगे।
18) न्यायाधीष इस मामले की ठीक-ठीक जाँच करें और जब यह मालूम हो कि साक्षी झूठा है और उसने अपने भाई के विरुद्ध मिथ्या आरोप लगाया है,
19) तो तुम लोग उसके साथ वैसा ही व्यवहार करोगे, जैसा उसने अपने भाई के साथ करना चाहा था। इस प्रकार तुम अपने बीच से यह बुराई निकाल दोगे।
20) दूसरे लोग इसके विषय में सुन कर भयभीत हो जायेंगे और इस प्रकार का कुकर्म कभी नहीं करेंगे।
21) तुम दया नहीं दिखाओगे प्राण के बदले प्राण, आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पाँव के बदले पाँव लोगे।

अध्याय 20

1) ''जब तुम अपने शत्रु से लड़ने जाओ और घोड़ों, रथों और उनकी सेना को अपने से अधिक संख्या में देखो, तो उस से नहीं डरो। प्रभु, तुम्हारा ईष्वर, जो तुम्हें मिस्र देष से निकाल लाया, तुम्हारे साथ है।
2) जब तुम आक्रमण प्रारम्भ करो, तब याजक सामने आये और लोगों को सम्बोधित करे। वह इस प्रकार कहे,
3) इस्राएल! सुनो! अब तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने जा रहे हो। तुम्हारा हृदय विचलित न हो, तुम नहीं डरो उनके सामने से मत भागो और उन से न आतंकित हो;
4) क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे पक्ष में तुम्हारे शत्रुओं के विरुद्ध लड़ेगा। वही तुम्हें विजय देगा।'
5) ''इसके बाद सचिव सैनिकों से यह कहें, 'यदि कोई ऐसा हो, जिसने नया घर बनाया हो और अब तक गृह-प्रवेष न किया हो तो वह घर लौट जाये। कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाये और तब कोई दूसरा उस में प्रवेष कर बस जाये।
6) यदि कोई ऐसा हो, जिसने अंगूर का बाग लगाया हो, किन्तु उसके फल नहीं खाये हों, तो वह भी घर लौट जाये। कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाये और कोई दूसरा उसके प्रथम फल खा ले।
7) यदि कोई ऐसा हो, जिसकी किसी कन्या से सगाई हो चुुकी हो, किन्तु उसने उस से विवाह नहीं किया हो, तो वह अपने घर लौट जाये। कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाये और कोई दूसरा उस से विवाह कर ले।'
8) ''इसके सिवा सचिव यह कहें, यदि कोई ऐसा हो, जो भयभीत हो रहा हो और जिसका हृदय काँप रहा हो, तो वह अपने घर लौट जा सकता है, जिससे वह अपने भाइयों को निरूत्साह न कर दे।'
9) जब सचिव सैनिकों को ये सब बातें सुना चुके, तब वे विभिन्न टोलियों के सेनाध्यक्ष नियुक्त करें।
10) ''यदि तुम किसी नगर पर आक्रमण करने के लिए उसके समीप आ जाओ, तो उसके सामने पहले सन्धि का प्रस्ताव करो।
11) यदि नगरवासी शान्ति से सन्धि कर लें और अपने नगर के द्वार खोल दें, तो उसके सब लोगों को बेगार में लगाया जायेगा और वे तुम्हारे लिए काम करेंगे।
12) लेकिन यदि वे तुम्हारे साथ सन्धि नहीं करें और युद्ध का उपक्रम करें, तो तुम उस नगर को घेर लो।
13) यदि प्रभु तुम्हारा ईष्वर उसे तुम्हारे हवाले करे, तो उसका प्रत्येक पुरुष तलवार के घाट उतार दिया जाये।
14) स्त्रियाँ, बच्चे, पषु और जो कुछ उस नगर में है - वह सब तुम अपने अधिकार में कर लो और अपने शत्रुओं से लूटे हुए माल का उपभोग करो।
15) ''ऐसा तुम उन सब नगरों के साथ करोगे, जो तुम से दूर हैं और जो यहाँ के राष्ट्रों के नहीं हैं।
16) परन्तु उन राष्ट्रों के नगरों में, जिन्हें प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें दायभाग के रूप में दे रहा है, किसी भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ोगे।
17) तुम हित्तियों, अमोरियों, कनानियों, परिज्+जि+यों, हिव्वियों और यबूसियों का पूर्ण संहार करोगे, जैसा कि प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें आदेष दिया है।
18) कहीं ऐसा न हो कि वे तुम्हें वे सब घृणित कर्म सिखायें, जिन्हें वे अपने देवताओं की सेेवा के लिए करते हैं और इस प्रकार तुम भी प्रभु अपने ईष्वर के विरुद्ध पाप करने लगो।
19) ''यदि किसी नगर को अधिकार में करने के लिए तुम्हें लम्बे समय तक उसका घेरा डालना पड़े, तो उसके आसपास के वृक्षों को कुल्हाड़ी से काट कर नष्ट नहीं करोगे। तुम उनके फल खा सकते हो, किन्तु उन्हें नही काट सकते हो। मैदान के वृक्ष मनुष्य तो नहीं हैं कि तुम उनकी भी घेरा बंदी करो।
20) लेकिन जिन वृक्षों के संबंध तुम्हें पता चले कि उनके फल खाने योग्य नहीं हैं, उन्हें यदि चाहो, तो काट सकते हो। तुम नगर की घेराबन्दी में उनका उपयोग करने के लिए उन्हें तब तक काट सकते हो, जब तक वह नगर जिससे तुम युद्ध करते हो, तुम्हारे अधीन न हो जाये।

अध्याय 21

1) ''यदि उस देष में, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे अधिकार में देगा कोई मारा हुआ व्यक्ति खेत में पड़ा मिले और किसी को यह मालूम नहीं हो कि उसकी हत्या किसने की है,
2) तो तुम्हारे नेता और तुम्हारे न्यायाधीश वहाँ जाकर नापें की मारा हुआ व्यक्ति निकटवर्ती नगरों में कितनी दूरी पर पड़ा है।
3) उस नगर के नेता, जो मारे हुए व्यक्ति के सबसे निकट है, एक कलोर, जिस से अब तक काम नहीं लिया गया हो और जो अब तक जोती नहीं गयी हो,
4) एक ऐसी घाटी में ले जायेंगे जो कभी, न और बोयी गयी हो और जहाँ एक सदा बहने वाली जलधारा हो। वे उसी घाटी में कलोर का गर्दन तोडे+ंगे।
5) इसके बाद कुल के याजक आगे बढे+ंगे, क्योकि प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने उन्हें इसलिये चुना है की वे उसकी सेवा करें, प्रभु के नाम पर आषीर्वाद दें और हर झगड़े तथा मार-पीट का निबटारा किया करें।
6) उस मारे हुए व्यक्ति के निकटस्थ नगर के सब नेता जलधारा के पास मारी हुई कलोर के ऊपर अपने हाथ धोयेंगे
7) और यह कहेंगे, हमारे हाथों ने न यह रक्त बहाया और न हमारी आँखों ने यह हत्या देखी है।
8) प्रभु! तुने इस्राएल का उद्धार किया है। तू इस हत्या का दोष अपनी प्रजा इस्राएल पर नहीं लगा, निर्दोष व्यक्ति का रक्त अपनी प्रजा पर नहीं पड़ने दे। इस प्रकार रक्तपात का प्रायष्चित किया जायेगा
9) और तुम निर्दोष का रक्त पात का अपराध अपने बीच से दूर करोगे; क्योंकि तुमने वहीं किया होगा, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है।
10) ''यदि तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने जाओ और प्रभु तुम्हारा ईष्वर उन्हें तुम्हारे हाथ दे दे और तुम उन्हें बंदी बनाकर ले जाओ,
11) तो यदि तुम उन बंदियों में किसी सुन्दर स्त्री को देखकर उसे चाहने लगो तथा उस से विवाह करना चाहो,
12) तो उसे अपने घर ले जाओ। वह अपना सिर मूँड़, अपने नाखून काट डाले
13) और उन वस्त्रों को उतार दे, जिन में वह बंदी बनायी गई है। फिर वह तुम्हारे घर में रहे और महीने भर अपने माता-पिता का शोक मनाये। इसके बाद तुम उसके पास जा सकते हो और उसके साथ विवाह कर उसे अपनी पत्नी बना सकते हो।
14) किन्तु यदि तुम बाद में उसे नापसन्द करो, तो वह जहाँ चाहे, तुम उसे वहाँ जाने दोगे। तुम उसे नहीं बेच सकते हो या उसके साथ दासी-जैसा व्यवहार नहीं कर सकते हो; क्योंकि तुमने उसके साथ प्रसंग किया है।
15) ''यदि किसी पुरुष की दो पत्नियाँ है; एक जिसे वह प्यार करता है और दूसरी वह, जिसे वह प्यार नहीं करता है और यदि उसकी प्रिय तथा अप्रिय, दोनों पत्नियों से पुत्र उत्पन्न हों, किन्तु पहला पुत्र अप्रिय पत्नी से उत्पन्न हो,
16) तो वह अपने पुत्रों में अपनी सम्पत्ति बाँटते समय अप्रिय पत्नी से उत्पन्न वास्तविक पहलौठे का अधिकार अपनी प्रिय पत्नी से उत्पन्न पुत्र को नहीं दे सकता है।
17) उसे उस अप्रिय पत्नी के जेठे पुत्र को ही अपना पहलौठा मानना होगा और उसे अपनी समस्त सम्पत्ति में दूसरे का दूना भाग देना होगा, क्योंकि वह उसके पुरुषत्व का प्रथम फल है। पहलौठे का अधिकार उसी का है।
18) ''यदि किसी का पुत्र हठी और उद्दण्ड हो, जो न अपने पिता और न अपनी माता की बात सुनता हो और न उनके समझाने पर उनकी मानता हो,
19) तो उसके माता-पिता उसे नगर के नेताओं के पास अपने नगर के फाटक पर ले जा कर,
20) अपने नगर के नेताओं से कहें, ÷हमारा यह पुत्र हठी और उद्दण्ड है। यह हमारी बात नहीं सुनता। यह चरित्रहीन और पियक्कड़ हो गया है।'
21) तब नगर के सब लोग उसे पत्थरों से मार डालें। इस प्रकार तुम अपने बीच से यह बुराई दूर कर दोगे। सब इस्राएली यह सुन कर भयभीत होंगे।
22) यदि किसी ने मृत्युदण्ड़ पाने योग्य अपराध किया है और काठ पर लटका कर उसका वध किया गया है,
23) तो उसका शव रात भर काठ पर नहीं छोड़ा जा सकता है। तुम उसी दिन उसका दफ़न करोगे; क्योंकि जो काठ पर लटकाया गया है, वह ईष्वर द्वारा अभिषप्त है। प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें विरासत के रूप में जो देष देने वाला है, तुम उसे दूषित नहीं करोगे।

अध्याय 22

1) ''यदि तुम अपने किसी भाई के बैल या भेड़ भटकते हुए पाओ, तो तुम उसे यों ही नहीं छोड़ दोगे। उसे अपने भाई के पास पहँुचा दोगे।
2) यदि तुम्हारा वह भाई तुम्हारे पड़ोस में नहीं रहता या तुम उसे नहीं जानते, तो तुम वह पषु अपने घर ले जाओगे और उसे तब तक रखोगे, जब तक तुम्हारा भाई उसे ढँूढते हुए न आये। इसके बाद तुम उसे लौटा दोगे।
3) तुम उसके गधे, उसकी चादर या उसकी किसी खोयी हुई वस्तु के साथ यही करोगे, जो तुम्हें मिल जाये। तुम इस बात का ध्यान अवष्य रखोगे।
4) ''यदि तुम देखो कि तुम्हारे भाई का गधा या बैल रास्ते में गिर गया है, तो तुम उसकी सहायता से मँुह नहीं मोड़ोगे। उसे उठाने में तुम उसकी सहायता करोगे।
5) ''स्त्री को पुरुष के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए और न पुरुष को स्त्री के वस्त्र। जो ऐसा करता है, वह प्रभु, तुम्हारे ईष्वर की दृष्टि में घृणित है।
6) यदि तुम किसी वृक्ष या भूमि पर पक्षियों का घोंसला पाओ जिस में पक्षियों के बच्चे या अण्ड़े हों और बच्चों या अण्ड़ों पर मादा पक्षी बैठी हो, तो तुम मादा पक्षी को उसके बच्चों के साथ नहीं ले जाओगे।
7) यदि तुम बच्चों को ले जाओ तो पहले मादा पक्षी को उड़ जाने दोगे। इस से तुम्हारा कल्याण होगा और तुम दीर्घजीवी बनोगे।
8) ''जब तुम नया घर बनाओ, तो उसकी छत पर एक मुँड़ेर रखो ऐसा न हो कि उसके ऊपर से कोई गिर जाये और तुम्हारे घर को हत्या का दोष लगे।
9) ''तुम अपनी दाखबारी में दूसरे प्रकार के बीज नहीं बोओगे। नहीं तो वह, जिसे तुमने उस में बोया हो और दाखबारी की फ़सल दोनों पवित्र-स्थान के लिए ज+ब्त किये जायेंगे।
10) तुम बैल और गधे को एक साथ जोत कर हल नहीं चलाओगे।
11) तुम ऊन और सन दोनों के मेल से बुने वस्त्र नहीं पहनोगे।
12) ''तुम अपने ओढ़ने की चादर के चारों कोनों पर झब्बे लगाओगे।
13) ''यदि कोई किसी कन्या से विवाह करें, संसर्ग होने पर उसे नापसन्द करें,
14) उसकी झूठी निन्दा करे और यह कहते हुए उसकी बदनामी करें, ÷मैनें इस लड़की से विवाह किया और प्रसंग होने पर मैंने उसे कँुवारी नहीं पाया'
15) तो उस लड़की के माता-पिता नगर के फ़ाटक पर नेताओं के पास उसके कौमार्य का प्रमाण ले आयेंगे। लड़की का पिता नेताओं से यह कहेगा,
16) 'मैंने अपनी इस पुत्री का उस पुरुष से विवाह किया, परन्तु वह उसे नापसन्द करता है
17) और अब वह इस पर दुुराचरण का दोष लगा कर कहता है कि मैंने तुम्हारी पुत्री को कुँवारी नहीं पाया। परन्तु देखो, यहाँ मेरी पुत्री के कौमार्य का प्रमाण मौजूद है।' फिर वे नगर के नेताओं के सामने वह चादर फैला दें।
18) तब नगर के नेता उस व्यक्ति को पकड़कर दण्ड़ित करेंगे।
19) वे उस से चाँदी के सौ शेकेल का जुर्माना लेंगे और उन्हें लड़की के पिता को देंगे; क्योंकि उस व्यक्ति ने एक इस्राएली कुँवारी की बदनामी की। वह उसकी पत्नी बनी रहेगी और उस व्यक्ति को जीवन भर उसका परित्याग करने का अधिकार नहीं होगा।
20) ''परन्तु यदि यह बात सत्य हो और उस लड़की के कौमार्य का प्रमाण नहीं मिले,
21) तो उस लड़की को उसके पिता के घर के द्वार पर ले जाया जाये और उस नगर के पुरुष उसे पत्थरों से मार ड़ालें; क्योंकि उसने इस्राएल में घृणित काम किया है, उसने अपने पिता के घर में रहते ही व्यभिचार किया है। तुम अपने बीच यह बुराई दूर करोगे।
22) ''यदि कोई पुरुष किसी विवाहिता स्त्री के साथ व्यभिचार करता हुआ पकड़ा जाए, तो उन्हें मृत्यु दण्ड़ दिया जाये - दोनों को, उस पुरुष को, जिसने उस स्त्री के साथ व्यभिचार किया और स्त्री को। तुम इस्राएल से यह बुराई दूर कर दोगे।
23) ''यदि किसी व्यक्ति को कुँवारी, जिसकी मँगनी हो चुकी है, नगर के अन्दर मिले और वह उसके साथ व्यभिचार करे,
24) तो तुम दोनों को नगर के फाटक के बाहर ले जाओगे और दोनों को पत्थरों से मार डालोगे - उस कन्या को इसलिए कि वह नगर के अन्दर होते हुए भी सहायता के लिए नहीं चिल्लायी और उस पुरुष को इसलिए कि उसने अपने पड़ोसी की भावी पत्नी का शील भंग किया। तुम अपने बीच से यह बुराई दूर करोगे।
25) ''परन्तु यदि कोई पुरुष किसी कन्या को खेत में पाकर उसके साथ बलात्कार करता है, जिसकी मँगनी हो चुकी है, तो केवल उसी पुरुष का वध किया जाए, जिसने बलात्कार किया है।
26) लड़की को कोई दण्ड़ नहीं मिले, क्योंकि उसने मृत्यु दण्ड़ के योग्य कोई पाप नहीं किया। यह मामला ऐसा है कि कोई पुरुष अपने पड़ोसी पर टूट पड़े और उसे मार डाले।
27) उस पुरुष ने उसे खेत में पाया होगा, वह लड़की, जिसकी मँगनी हुई है, चिल्लायी होगी और कोई उसकी सहायता करने नहीं आया।
28) ''यदि कोई पुरुष किसी कन्या से, जिसकी मँगनी नहीं हुई है, मिले और उसे पकड़ कर बलात्कार करे और वे पकड़े जायें,
29) तो वह पुरुष, जिसने उसके साथ बलात्कार किया, उस कन्या के पिता को चाँदी के पचास शेकेल देगा और उसके साथ विवाह करेगा, क्योंकि उसने उसका शील भंग किया है। वह जीवन भर उसका परित्याग नहीं कर सकता।

अध्याय 23

1) ''कोई न तो अपने पिता की किसी पत्नी से विवाह कर सकता है और न वह अपने पिता की पत्नी का शील भंग कर सकता है।
2) ऐसा कोई व्यक्ति प्रभु की धर्मसभा में सम्मिलित नहीं हो सकता है, जिसके अण्डकोष कुचले गये हैं या जिसका लिंग काटा गया है।
3) कोई जारज और दसवीं पीढ़ी तक उसका कोई वंषज भी प्रभु की धर्मसभा में सम्मिलित नहीं हो सकता।
4) कोई भी अम्मोनी, मोआबी या दसवीं पीढ़ी तक उनके वंषज प्रभु के समुदाय में सम्मिलित नहीं हो सकते।
5) यह इसलिए कि उन्होंने मिस्र से तुम्हारे निकलते समय तुम्हें खाने-पीने के लिए कुछ नहीं दिया था और इसलिए भी कि उन्होंने मेसोपोतामिया से पतोर-निवासी बओर के पुत्र बिलआम को पैसा दे कर तुम्हें अभिषाप देने बुलाया था।
6) किन्तु प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने बिलआम की इच्छा के अनुसार नहीं किया। प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने उसके अभिषाप को आषीर्वाद में बदल दिया था। प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने ऐसा इसलिए किया कि वह तुम को प्यार करता है।
7) तुम जीवन भर उन लोगों के साथ शान्ति या अच्छा सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास मत करो।
8) ''तुम एदोमियों से घृणा नहीं करोगे, क्योंकि वे तुम्हारे भाई हैं। तुम मिस्रियों से घृणा नहीं करोगे, क्योंकि तुम उनके देष में प्रवासी के रूप में रह चुके हो।
9) उनकी तीसरी पीढ़ी के वंषज प्रभु की धर्मसभा में सम्मिलित हो सकते हैं।
10) ''यदि तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने जाओ और पड़ाव डालो, तो हर प्रकार की अषुद्धता से दूर रहो।
11) तब यदि तुम्हारे साथ कोई ऐसा व्यक्ति हो जो रात में वीर्यपतन के कारण अषुद्ध हो गया हो, तो वह षिविर के बाहर जा कर वहाँ रहेगा।
12) वह शाम को स्नान करेगा और सूर्यास्त के समय षिविर में लौटेगा।
13) षिविर के बाहर ऐसा स्थान भी हो जहाँ तुम शौच के लिए जा सको।
14) तुम अपने अस्त्र-षस्त्र के साथ एक खुरपी भी रखोगे जिस से तुम शौच के समय गड्ढा खोद कर मल ढक सको;
15) क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारी रक्षा करने और तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे हाथ देने के लिए तुम्हारे षिविर में विचरता है। इसलिए तुम्हें षिविर को शुद्ध रखना चाहिए। ऐसा न हो कि वह तुम्हारे यहाँ कोई गन्दगी देख कर तुम से विमुख हो जाये।
16) ''यदि कोई दास तुम्हारे यहाँ शरण लें तो उसे स्वामी के हवाले मत करो।
17) वह जहाँ चाहे अपनी पंसन्द के किसी नगर में निवास कर सकता है। तुम उस पर अत्याचार नहीं करोगे।
18) ''कोई इस्राएली पुरुष या स्त्री मन्दिर में होने वाले व्यभिचार के लिए अपने को अर्पित नहीं करेगी।
19) अपनी मन्नत पूरी करने के उद्देष्य से कोई भी वेष्यावृत्ति या पुरुषगमन की कमाई प्रभु, अपने ईंष्वर के मन्दिर में नहीं ला सकता; क्योंकि उसकी दृष्टि में दोनों घृणित है।
20) तुम अपने भाइयों से सूद नहीं लोगे, न रूपये के लिए, न खाद्य पदार्थों के लिए और न किसी ऐसी चीज+ के लिए, जिसके लिए सूद लिया जाता है।
21) तुम परदेषी से सूद ले सकते हो, परन्तु अपने भाई से तुम सूद नहीं ले सकते। ऐसा करने पर प्रभु, तुम्हारा ईष्वर उस देष में, जिसे तुम अपने अधिकार में करने जा रहे हो, तुम्हें अपने सब कार्यों में आषीर्वाद प्रदान करेगा।
22) ''यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर के लिए कोई मन्नत करते हो तो उसे पूर्ण करने में विलम्ब नहीं करोगे। नहीं तो प्रभु, तुम्हारा ईष्वर निस्सन्देह उसकी माँग करेगा और उसे पूरा नहीं करने पर तुम्हें दोष लगेगा।
23) यदि तुम कोई मन्नत नहीं करते, तो इस में कोई दोष नहीं।
24) तुम अपने मँुह से जो कहते हो, उसे अवष्य पूरा करो; क्योंकि तुमने स्वेच्छा से, अपने ही मँुह से प्रभु, अपने ईष्वर के लिए मन्नत की है।
25) ''तुम अपने पड़ोसी की दाखबारी जा कर वहाँ जितना चाहो, अंगूर खा सकते हो; किन्तु अपनी टोकरी में कुछ नहीं ले जा सकते हो।
26) यदि तुम अपने पड़ोसी के अनाज के खेत से हो कर निकलो, तो हाथ से बालों को तोड़ कर खा सकते हो; किन्तु अपने पड़ोसी के खड़े खेत में हँसिया नहीं चला सकते।

अध्याय 24

1) ''यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री से विवाह करे, बाद में वह उसे इसलिए नापसन्द कर कि वह उस में कोई लज्जाजनक बात पाता हो और उसे त्याग पत्र दे कर घर से निकाल दे और
2) वह स्त्री उसका घर छोड़ कर किसी दूसरे पुरुष से विवाह कर ले;
3) अब यदि दूसरा पुरुष भी उसे नापसन्द करे और उसे त्याग पत्र देकर घर से निकाल दे या वह दूसरा पुरुष, जिसने उस से विवाह किया था, मर जाये,
4) तब वह पहला पुरुष, जिसने उसका परित्याग कर दिया था, उसके साथ दुबारा विवाह नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसके लिए अशुद्ध हो गयी है। वह प्रभु की दृष्टि में घृणित है। ऐसा करने पर तुम उस देष को दूषित करोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें दायभाग के रूप में देने वाला है।
5) ''कोई नवविवाहित पुरुष सेना के साथ युद्ध में न जायें या किसी काम का भार उस पर न डाला जायें। वह एक वर्ष तक घर पर मुक्त रहकर अपनी विवाहिता पत्नी को आनन्दित करे।
6) ''चक्की या चक्की का ऊपरी पाठ बन्धक में न लिया जाये; क्योंकि यह तो उसकी जीविका को बन्धक रखने के बराबर है।
7) ''यदि कोई व्यक्ति अपने इस्राएली भाई का अपहरण करे और पकड़ा जाये या उसके साथ दास-जैसा आचरण करे या उसे बेचे, तो अपहर्त्ता को मृत्यु दण्ड़ दिया जाये। इस प्रकार तुम अपने बीच से यह बुराई दूर करोगे।
8) ''यदि किसी को चर्म रोग लग जाये, तो लेवी कुल के याजकों, द्वारा दिये गए आदेषों का सावधानी से पालन करो। मैंने उन्हें जैसी आज्ञा दी थी, ठीक वैसा ही तुम्हें करना चाहिए।
9) याद रखो कि मिस्र से तुम्हारे निकलने के समय प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने मिरयम के साथ क्या किया था।
10) ''यदि तुम अपने पड़ोसी को किसी प्रकार का कोई उधार दे रहो हो, तो उसका बन्धक लेने के लिए उसके घर के भीतर नहीं जाओगे।
11) तुम बाहर खड़े रहोगे। जिसे तुमने उधार दिया है, वह स्वयं बन्धक तुम्हारे पास बाहर लायेगा।
12) ''यदि वह आदमी दरिद्र हो, तो उस से प्राप्त बन्धक अपने सोने के समय तक नहीं रखोगे।
13) उसे सूर्योस्त के समय अपना बन्धक वापस दे दिया जायेगा, जिससे वह अपनी चादर ओढ़ कर आराम से सो सके और वह तुम्हें आषीर्वाद दे। यह प्रभु, तुम्हारे ईष्वर की दृष्टि में पुण्य होगा।
14) ''किसी अभागे, कंगाल मज+दूर का शोषण नहीं करोगे, चाहे वह तुम्हारा देष-भाई हो या तुम्हारे किसी नगर में रहने वाला प्रवासी।
15) उसने जिस दिन मज+दूरी की है, तुम उसी दिन उसे उसकी मज+दूरी सूर्यास्त के पहले दे दोगे। वह दरिद्र है, वह उसकी प्रतीक्षा कर रहा है; क्योंकि यदि वह तुम्हारे विरुद्ध प्रभु से दुहाई करेगा, तो तुम दोषी माने जाओगे।
16) ''न तो पिता को अपने किसी बच्चे के पाप के लिए प्राणदण्ड दिया जाये और न बच्चे को अपने पिता के पाप के लिए। हर व्यक्ति को अपने दोष के लिए प्राणदण्ड़ दिया जायेगा।
17) ''तुम न तो परदेषी अथवा अनाथ के साथ अन्याय करो और न रहन के तौर पर विधवा का वस्त्र लो।
18) याद रखो की तुम मिस्र देष में दास थे और कि ईष्वर ने वहाँ से तुम्हारा उद्धार किया। इसलिए मैं तुम लोगों को यह आदेष दे रहा हँू।
19) ''जब तुम अपने खेत में फ़सल काटोगे और यदि वहाँ एक पूला भूल जाओगे, तो उसे ले आने के लिए नहीं लौटोगे। उसे किसी परदेषी, अनाथ अथवा विधवा के लिए छोड़ दोगे, जिससे तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम्हें अपने सब कार्यों में आषीर्वाद देता रहे।
20) जब तुम अपने जैतून के पेड़ों से फ़ल झाड़ोगे, तो बाद में दुबारा उसकी शाखाओं को नहीं झाड़ोगे। जो रह जायेगा, वह परदेषी, अनाथ अथवा विधवा का होगा।
21) जब तुम अपनी दाखबारी में अंगूर तोड़ लोगे, तो बाद में बचे हुए अंगूर बटोरने नहीं जाओगे। जो रह जायेगा वह परदेषी, अनाथ अथवा विधवा का होगा।
22) याद रखो कि तुम मिस्र देष में दास थे। इसलिए मैं तुम लोगों को यह आदेष दे रहा हँू।

अध्याय 25

1) ''यदि लोगों में कोई झगड़ा हो और वे न्यायालय जायें तो न्यायाधीष निर्णय करेगा। वह निर्दोष को निर्दोष और दोषी को दोषी घोषित करे।
2) यदि दोषी मनुष्य को कोड़ों का दण्ड़ दिया जाये, तो न्यायाधीष उसे अपने सामने पिटवाये और उसके दोष के अनुसार कोड़ों की संख्या निर्धारित करे।
3) वह चालीस कोड़े तक लगवा सकता है, अधिक नहीं। कहीं ऐसा न हो कि अधिक कोड़ों के कारण तुम्हारे भाई को तुम्हारे सामने नीचा दिखाया जाये।
4) ''तुम दँवरी करते बैल के मँुह पर मोहरा नहीं लगाओगे।
5) ''यदि कई भाई एक साथ रहते हों और उन में कोई निस्सन्तान मर जाये, तो मृतक की पत्नी का विवाह परिवार के बाहर के किसी पुरुष से न किया जाये। उसके पति का भाई उसके पास जाये और नियोग की प्रथा के अनुसार उसके साथ विवाह करे।
6) उसका पहला पुत्र उसके मृत भाई का पुत्र माना जायेगा और इस प्रकार इस्राएल में उसका नाम लुप्त नहीं होगा।
7) यदि वह व्यक्ति अपनी भाभी से विवाह करना नहीं चाहता, तो उसकी भाभी नगर के फाटक पर नेताओं के पास जा कर यह कहे, ÷मेरा देवर अपने भाई का वंष इस्राएल में चलने नहीं देता। वह नियोग की प्रथा के अनुसार मेरे साथ विवाह करना अस्वीकार करता है।'
8) नगर के नेता उसे बुला कर इस विषय में उस से पूछताछ करें। यदि वह हठ करते हुए कहे, मैं उस से विवाह करना नहीं चाहता',
9) तो उसकी भाभी नेताओं के सामने उसके पास जाये, उसके पैरों से जूते उतारे, उसके मँुह पर थूके और कहे, 'उस व्यक्ति के साथ ऐसा किया जाता है, जो अपने भाई का वंष चलने नहीं देता'।
10) इस्राएल में उसका यह नाम रखा जायेगा - वह व्यक्ति जिसके जूते उतारे गये।
11) ''यदि दो पुरुष आपस में मारपीट करें और किसी पुरुष की पत्नी अपने पति को मारने वाले के हाथों से छुड़ाने के लिए अपना हाथ बढ़ा कर उसका गुप्तांग पकड़ ले,
12) तो उसका हाथ काट डाला जाये। तुम उस पर दया नहीं करोगे।
13) ''तुम अपनी थैली में दो प्रकार के बाट - एक हलका और एक भारी - नहीं रखोगे।
14) अपने घर में दो प्रकार के नाप नहीं रखोगे, अर्थात् घट-बढ़ नाप के।
15) तुम्हारे बाट-नाप आदि पूरे-पूरे, ठीक-ठीक तौल के और पूरे-पूरे, ठीक-ठीक नाप के हों, जिससे तुम उस देष में दीर्घायु हो सको, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है।
16) प्रत्येक जो ऐसा करेगा, प्रत्येक जो अन्याय करेगा, वह प्रभु तुम्हारे ईष्वर की दृष्टि में घृणित होगा।
17) ''अमालेकियों ने तुम्हारे साथ मिस्र से निकलते समय जो कुछ किया था, उसे याद रखो।
18) उन्होंने तुम पर उस समय आक्रमण किया, जब तुम यात्रा करते-करते थके-माँदे थे और उन्होंने तुम में उन लोगों को, जो पीछे रह गये थे, तुम से अलग कर दिया। वे ईष्वर पर श्रद्धा नहीं रखते थे।
19) इसलिए, जब प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें अपने आसपास के सब शत्रुओं से छुड़ा कर उस देष में शान्ति प्रदान करे, जिसे प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हें विरासत के रूप में देने वाला है, तो तुम आकाष के नीचे अमालेकियों की स्मृति मिटा दोगे। तुम यह नहीं भूलोगे।

अध्याय 26

1) ''जब तुम उस देष में पहुँच गये हो, जिसे प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हें विरासत के रूप में देने वाला है और तुम उस पर अपना अधिकार कर, उस में बस गये हो,
2) तब जो देष प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम को देने वाला हैं, उसकी भूमि की उपज के प्रथम फल एक टोकरी में रख कर उस स्थान ले जाओगे, जिसे प्रभु अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनेगा।
3) वहाँ पहुँचने पर तुम उस समय सेवा करने वाले याजक के पास जा कर कहोगे, आज मैं प्रभु अपने ईष्वर के सामने घोषित करता हूँ कि मैं उस देष में आ गया हूँ, जिसे हमें देने की प्रभु ने हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी।
4) ''याजक तुम्हारे हाथ से टोकरी ले कर उसे तुम्हारे प्रभु-ईष्वर की वेदी के सामने रख देगा।
5) तब तुम लोग अपने प्रभु-ईष्वर के सामने यह कहोगे, 'हमारे पूर्वज अरामी यायावर थे। जब वे शरण लेने के लिए मिस्र देष में बसने आये, तो थोड़े थे; किन्तु वे वहाँ एक शक्तिषाली बहुसंख्यक तथा महान् राष्ट्र बन गये।
6) मिस्र के लोग हमें सताने, हम पर अत्याचार करने और हम को कठोर बेगार में लगाने लगे।
7) तब हमने प्रभु की, अपने पूर्वजों के ईष्वर की, दुहाई दी। प्रभु ने हमारी दुर्गति, दुःख-तकलीफ़ तथा हम पर किया जाने वाला अत्याचार देख कर हमारी पुकार सुन ली।
8) आतंक फैला कर और चिन्ह तथा चमत्कार दिखा कर प्रभु ने अपने बाहुबल से हमें मिस्र से निकाल लिया।
9) उसने हमें यहाँ ला कर यह देष, जहाँ दूध अैर मधु की नदियाँ बहती हैं, दे दिया।
10) प्रभु! तूने मुझे जो भूमि दी है, उसकी फ़सल के प्रथम फल मैं तुझे चढ़ा रहा हूँ - यह कह कर तुम उन्हें अपने प्रभु-ईष्वर के सामने रखोगे और अपने प्रभु-ईष्वर को दण्डवत् करोगे।
11) ''इसके बाद तुम लेवियों और अपने बीच रहने वाले प्रवासियों के साथ उन सब वरदानों के लिए आनन्द मनाओगे, जिन्हें प्रभु, तुम्हारे ईष्वर ने तुम्हें और तुम्हारे परिवार को दिया है।
12) ''हर तीसरे वर्ष, अर्थात् दषमांष के वर्ष जब तुमने अपनी उपज का सारा दषमांष अलग कर लेवियों, प्रवासियों, अनाथों और विधवाओं को दे दिया हो, जिससे वे तुम्हारे नगरों में रहते हुए भरपेट खा सकें,
13) तो तुम प्रभु अपने ईष्वर से यह कहोगे, मैंने तेरे आदेष के अनुसार अपने घर से पुण्य चढ़ावा निकाल कर उसे लेवियों, प्रवासियों, अनाथों और विधवाओं को दे दिया है। मैंने तेरे आदेषों का उल्लंघन नहीं किया और उन्हें नहीं भुलाया।
14) मैंने शोक मनाते समय दषमांष से कुछ नहीं खाया, अषुद्ध अवस्था में उसे नहीं छुआ और उस में कुछ भी मृतको कों नहीं चढ़ाया। मैंने प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान दे कर ठीक वैसा ही किया है, जैसी तूने मुझे आज्ञा दी थी।
15) स्वर्ग के अपने पवित्र निवास से दृष्टि डाल और अपनी प्रजा इस्राएल को आषीर्वाद दे और उस देष को भी, जिसे तूने हमारे पूर्वजों से की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार हमें दिया हैं, उस देष को, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती है।
16) ''आज तुम्हारा प्रभु-ईष्वर इन नियमों तथा आज्ञाओं का पालन करने का आदेष दे रहा है। तुम उन पर चलते रहोगे और सारे हृदय और सारी आत्मा से इनका पालन करते रहोगे।
17) आज तुम्हें प्रभु से यह आष्वासन मिला की वह तुम्हारा अपना ईष्वर होगा - बशर्ते तुम उसके मार्ग पर चलो, उसके नियमों, आदेषों तथा आज्ञाओं का पालन करो और उसकी बातों पर ध्यान दो।
18) तुमने प्रभु को यह आष्वासन दिया कि तुम उसकी अपनी प्रजा होगे, जैसा कि उसने तुम से कहा है, बषर्ते तुम उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करो।
19) उसने जितने राष्ट्र बनाये, उन सब से अधिक तुम्हें सम्मान, ख्याति तथा महिमा प्रदान करेगा और तुम प्रभु की पवित्र प्रजा होगे, जैसा कि उसने तुम से कहा है।''

अध्याय 27

1) मूसा और इस्राएल के नेताओं ने लोगों को यह आदेष दिया, ''मैं जो आज्ञायें तुम्हें आज दे रहा हँू, तुम उन सबका पालन करते रहो।
2) जब तुम यर्दन पार कर उस देष में पहुँचो, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है, तब बड़े-बड़े पत्थर लगा कर उन पर चूना फेर दो
3) और उन पर संहिता के सब नियम अंकित करो। इस प्रकार तुम यर्दन पार कर उस देष में पहँुच सकोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें दे रहा है - एक ऐसा देष, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं, जैसी की प्रभु तुम्हारे पूर्वजों के ईष्वर ने तुम से प्रतिज्ञा की थी।
4) ''यर्दन पार करने के बाद तुम उन पत्थरों को, जिन के विषय में मैं तुम्हें आज आदेष दे रहा हँू, एबाल पर्वत पर स्थापित कर उन पर चूना फेर दो।
5) वहाँ प्रभु, अपने ईष्वर के लिए एक ऐसी वेदी बनाओ, जिसके पत्थरों पर लोहे का औज+ार न चला हो।
6) तुम प्रभु, अपने ईष्वर के लिए ऐसे ही अनगढ़ पत्थरों की एक वेदी बनाओ और उस पर प्रभु, अपने ईष्वर के लिए होम बलियाँ चढ़ाओ।
7) तुम वहाँ शांति-बलि भी चढ़ाओ और वहाँ भोजन करते हुये आनन्द मनाओ।
8) तुम उन पत्थरों पर इस संहिता के सभी शब्द स्पष्ट अक्षरों में अंकित करो।
9) मूसा और लेवी कुल के याजकों ने सब इस्राएलियों से कहा, ''इस्राएल! शांत रहकर ध्यान से सुनो। आज तुम प्रभु, अपने ईष्वर की प्रजा बन गये हो।
10) तुम प्रभु, अपने ईष्वर की बात मानो; उसके आदेषों और विधि-निषेधों का पालन करो, जो मैं आज तुम्हें दे रहा हँू।''
11) उसी दिन मूसा ने लोगों को यह कहते हुये आदेष दिया,
12) ''यर्दन पार करने के बाद लोगों को आषीर्वचन देने के लिए सिमओन, लेवी, युदा, इस्साकार, यूसुफ और बेनयामीन के वंष गरिज्+ज+ीम पर्वत पर खडे+ हों
13) और अभिषाप देने के लिए रूबेन, गाद, आषेर, जबुलोन, दान और नफ्+ताली के वंष एबाल पर्वत पर खड़े हों।
14) तब लेवीवंष ऊँचे स्वर में सब इस्राएलियों को यह घोषणा सुनायेंगे-
15) 'अभिषप्त है वह व्यक्ति, जो प्रतिमा खोदता या देव मूर्ति ढ़ालता है और उसे छिप कर स्थापित करता है, क्योंकि प्रभु की दृष्टि में कारीगर की कृति घृणित है', और सब लोग उत्तर मे कहेंगे 'आमेन'।
16) 'अभिषप्त है वह, जो अपने पिता या अपनी माता का अपमान करता है', और सब लोग उत्तर में कहेंगे। आमेन
17) 'अभिषप्त है वह, जो अपने पड़ोसी की मेड़ बदलता है' और सब लोग उत्तर में कहेंगे, 'आमेन'।
18) 'अभिषप्त है वह, जो अंधे को उसके रास्ते से भटकाता है' और सब लोग उत्तर में कहेगे 'आमेन'।
19) 'अभिषप्त वह, जो प्रवासी, अनाथ और विधवा के विरुद्ध अन्यायपूर्ण निर्णय देता है', और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'।
20) 'अभिषप्त है वह, जो अपने पिता की पत्नी से संसर्ग करता है, क्योंकि वह अपने पिता की शय्या का अनादर करता है,' और सब लोग उत्तर में कहेंगे, 'आमेन'।
21) 'अभिषप्त वह, जो किसी भी पषु के साथ गमन करता है', और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'।
22) 'अभिषप्त है वह, जो अपनी बहन के साथ - चाहे व अपने पिता या माता की बेटी हो - प्रसंग करता है, और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'।
23) 'अभिषप्त है वह, जो अपनी सास के साथ प्रसंग करता है, और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'।
24) 'अभिषप्त है वह, जो छिप कर अपने पड़ोसी की हत्या करता है', और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'।
25) 'अभिषप्त है वह, जो निर्दोष रक्त बहाने के लिए घूस लेता है' और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'।
26) 'अभिषप्त है वह, जो इस संहिता के शब्दों का आदर और पालन नहीं करेगा,' और सब लोग उत्तर में कहेंगे 'आमेन'ं।

अध्याय 28

1) ''यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान दोगे और उन सब आदेषों का पालन करोगे, जिन्हें मैं आज तुम को दे रहा हँू। तो वह तुम्हें पृथ्वी भर के राष्ट्रों से महान् बनायेगा।
2) यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान दोगे, तो ये सब वरदान तुम को मिलेंगे और तुम्हारा साथ देते रहेंगे।
3) ''नगर मे तुम्हारा कल्याण होगा और देहात में तुम्हारा कल्याण होगा।
4) तुम्हारी संतान, तुम्हारी भूमि की उपज, तुम्हारे पषु धन, तुम्हारी गायों और भेड़-बकरियों के बच्चों को आषीर्वाद प्राप्त होगा।
5) तुम्हारी टोकरी और आटा गुँधने के पात्र को आषीर्वाद प्राप्त होगा।
6) घर आने पर और घर से बाहर जाने पर, दोनों समय तुम्हें आषीर्वाद प्राप्त होगा।
7) ''प्रभु तुम्हारा विरोध करने वाले शत्रुओं को पराजित करेगा। वे एक मार्ग से तुम पर आक्रमण करने आयेंगे, परन्तु तुम्हारे सामने से हो कर सात मार्गों से भाग निकलेंगे।
8) प्रभु तुम को तुम्हारे भण्डारों और तुम्हारे सब कार्यों में आषीर्वाद देता रहेगा। प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें उस देष में आषीर्वाद देता रहेगा, जिसे वह तुम्हें प्रदान करने वाला है।
9) यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके बताए हुये मार्गों पर चलोगे, तो प्रभु तुमको अपनी पवित्र प्रजा बनायेगा, जैसी कि उसने तुम से शपथ पूर्वक प्रतिज्ञा की है।
10) पृथ्वी की समस्त जातियाँ देखेंगी कि तुम प्रभु की अपनी प्रजा हो और वे तुम्हारा सम्मान करेंगी।
11) प्रभु तुम्हें अपने सब तरह के वरदानों से सम्पन्न बनायेगा - सन्तानों की दृष्टि से, पषुओं के बच्चों की दृष्टि से और उस देष की भूमि की उपज की दृष्टि से, जिसे प्रभु ने तुम्हें देने की तुम्हारे पूर्वजों से शपथपूूर्वक प्रतिज्ञा की है।
12) प्रभु अपने आकाष का अपूर्व भण्डार खोलकर तुम्हारी भूमि पर ठीक समय पर पानी बरसाएगा और तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हें आषीर्वाद देता रहेगा। तुम अन्य अनेक राष्ट्रों को उधार दे सकोगे और तुम्हें किसी से उधार लेने की आवष्यकता नहीं होगी।
13) (१३-१४) प्रभु तुम्हें नेता बनाएगा, किसी का अनुयायी नहीं। यदि तुम मेरे द्वारा अपने को दी गई प्रभु, अपने ईष्वर की आज्ञाओं का सावधानी से पालन करोगे और अन्य देवताओं की सेवा और पूजा करने से उन नियमों से जरा भी विचलित नहीं होगे, जिन्हें में तुम्हें आज दे रहा हँू, तो तुम्हारी अवनति नहीं, बल्कि उन्नति होती रहेगी।
15) ''परन्तु यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दोगे और उसके सब आदेषों और विधि-निषेधों का सावधानी से पालन नहीं करोगे, जिन्हें में आज तुम्हें दे रहा हँू, तो ये समस्त अभिषाप तुम पर आ पड़ेंगे और तुम्हें दबोचेंगे।
16) तुम नगर में अभिषप्त होगे और तुम देहात में अभिषप्त होगे।
17) तुम्हारी टोकरी और तुम्हारा आटा गूँधने का पात्र अभिषप्त होगा।
18) तुम्हारी संतान, तुम्हारी भूमि की उपज, तुम्हारी गायों के बच्चे और तुम्हारी भेड़-बकरियाँ के बच्चे अभिषप्त होंगे।
19) घर आने पर और घर से बाहर जाने पर, दोनों समय तुम्हें अभिषाप मिलता रहेगा।
20) 'तुम्हारे सब कार्यों में, प्रभु तुमको अभिषाप, विपत्ति और धमकी देगा जिससे तुम्हारा सर्वनाष होता जायेगा और तुम शीघ्र ही अपने कुकर्मों के कारण मिट जाओगे। यह इसलिए होगा कि तुमने मुझे त्याग दिया है
21) और जब तक कि तुम उस देष से जो तुम अपने अधिकार में लेने जा रहे हो, समूल नष्ट नहीं हो जाओगे, तब तक प्रभु तुम पर बीमारियाँ भेजता रहेगा।
22) प्रभु तुम पर क्षय रोग, ज्वर, सूजन, भयंकर गर्मी, सूखा, पाला और फफँूदी भेजेगा। जब तक तुम निर्मूल नहीं हो जाओगे, वे तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे।
23) तुम्हारे सिर के ऊपर का आकाष काँसे-सा हो जायेगा और तुम्हारे पाँव तले की भूमि लोहे-सी हो जायेगी
24) और जब तक तुम्हारा सर्वनाष न हो जायेगा, तब तक प्रभु आकाष से तुम्हारी भूमि पर पानी की जगह धूल और राख की वर्षा करता रहेगा।
25) ''प्रभु ऐसा करेगा कि तुम अपने शत्रुओं से पराजित हो जाओगे। तुम एक मार्ग से उन पर आक्रमण करने जाओगे, किन्तु हार खा कर उनके सामने से सात मार्गों से भाग निकलोगे। इस प्रकार तुम पृथ्वी के सब राष्ट्रों की दृष्टि में घृणित बन जाओगे।
26) तुम्हारी लाषों को आकाष के पक्षी और पृथ्वी के जानवर खायेंगे। कोई उन्हें भगाने वाला नहीं होगा।
27) ''प्रभु तुम्हें मिस्री फोड़े और व्रण, खुजली तथा सेहुएँ से पीड़ित करेगा और उनका कोई उपचार नहीं हो सकेगा।
28) प्रभु तुम्हें उन्माद, अंधापन और पागलपन से पीड़ित करेगा।
29) जिस तरह अन्धा अन्धेरे में टटोलता-फिरता है, उसी तरह तुम दिन-दोपहर करोगे और अपने रास्ते में आगे नहीं बढ़ सकोगे, बल्कि तुम पर निरंतर अत्याचार होते रहेंगे और तुम लुटते जाओगे। कोई तुम्हारी सहायता नहीं करेगा।
30) ''यदि किसी स्त्री से तुम्हारी मँगनी होगी, तो दूसरा व्यक्ति उसके साथ संसर्ग करेगा। तुम अपने लिए घर बनाओगे और कोई दूसरा उस में निवास करेगा। तुम दाखबारी लगाओगे और तुम स्वंय उसके प्रथम फल नहीं खाओगे।
31) तुम्हारे देखते तुम्हारा बैल मार डाला जायेगा और तुम्हें उससे कुछ नहीं मिलेगा। तुम्हारे देखते तुम्हारा गधा तुम से ज+बरदस्ती ले लिया जायेगा और वह कभी वापस नहीं मिलेगा। तुम्हारी भेड़-बकरियाँ तुम्हारे शत्रुओं के हाथ पड़ जायेगी और कोई तुम्हारी सहायता नहीं कर पायेगा।
32) तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ तुम्हारी आँखों के सामने किसी दूसरे राष्ट्र के हाथ पड़ जायेंगे और तुम असहाय हो कर उनके फिर मिलने की आकांक्षा करते रह जाओगे।
33) तुम्हारी भूमि की उपज और तुम्हारे परिश्रम का सारा फल एक ऐसा राष्ट्र खायेगा, जिसे तुम नहीं जानते। तुम्हारा निरंतर दमन किया जायेगा और तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार होता रहेगा।
34) जो दृष्य तुम्हारी आँखें देखेगी, उन से तुम पागल हो उठोगे।
35) प्रभु तुम्हारे पाँवों और घुटनों में ऐसे असाध्य भयंकर फोड़े उत्पन्न करेगा, जिनका कोई उपचार नहीं हो सकेगा और जो तुम्हारे पैरों के तलवे से तुम्हारे सिर की चोटी तक फैल जायेंगे।
36) ''प्रभु तुम को और उस राजा को, जिसे तुम अपना शासक बनाओगे, एक अन्य राष्ट्र में निर्वासित करेगा, जिसे न तो तुम जानते थे और न तुम्हारे पूर्वज। तुम वहीं लकड़ी और पत्थर से बने पराए देवताओं की पूजा करोगे।
37) इस प्रकार तुम उन सब राष्ट्रों के बीच, जिनके पास प्रभु तुम्हें ले जायेगा, घृणा, तिरस्कार और उपहास के पात्र बनोगे।
38) ''तुम अपने, खेत में बहुत बीज बोओगे, किन्तु कम लुनोगे; क्योंकि सारी फ़सल टिड्डियाँ चाट जायेगी।
39) तुम दाखबारियाँ लगा कर उनमें श्रम करोगे; किन्तु उनकी अंगूरी नहीं पिओगे और उनके फल एकत्र नहीं करोगे, क्योंकि कीड़े उन्हें खा जायेंगे।
40) अपने देष में सर्वत्र जैतून वृक्षों के होते हुये भी तुम उनके तेल का उपयोग नहीं करोगे, क्योंकि जैतून के फल झड़ जायेंगे।
41) तुम्हारे यहाँ पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न होंगे, किन्तु वे तुम्हारे नहीं रहेंगे, क्योंकि वे बंदी बनाकर ले जाये जायेंगे।
42) तुम्हारे सब वृक्ष और तुम्हारी भूमि सब फल टिड्डियाँ चाट जायेगी।
43) ''तुम्हारे यहाँ का प्रवासी तुम से अधिक उन्नति करता रहेगा और तुम्हारी हालत बराबर बदतर होती जायेगी।
44) वह तुम को उधार दे सकेगा, परन्तु तुम उसे उधार नहीं दे सकोगे। वह सिर हो जायेगा और तुम पँूछ।
45) यदि तुमने प्रभु, अपने ईष्वर की बातों पर ध्यान न देकर उसके दिये हुये आदेषों और विधि-निषेधों का पालन नहीं किया, तो तुम्हें ये सारे अभिषाप तब तक भोगने पडेंगे, जब तक तुम्हारा सर्वनाष नहीं हो जायेगा।
46) ये अभिषाप संकेत और चेतावनी के रूप में तुम्हें और तुम्हारे वंषजों को याद रहेंगे।
47) ''तुमने समृद्धि के दिनों में प्रसन्नता और आनन्द के साथ प्रभु की सेवा नहीं की,
48) इसलिए तुमको भूखे-प्यासे रहकर, नंगे और सब तरह से निर्धन हो कर अपने शत्रुओं की सेवा करनी पड़ेगी, जिन्हें प्रभु तुम्हारे विरुद्ध भेजेगा। जब तक वह तुम्हारा सर्वनाष नहीं करेगा, वह तुम्हारी गर्दन पर लोहे का जुआ रखेगा।
49) प्रभु दूर से, पृथ्वी के सीमांतों से एक राष्ट्र तुम्हारे पास भेजेगा, जो गरूड़ की तरह अपने षिकार पर झपटता है; एक ऐसा राष्ट्र जिसकी भाषा तुम नहीं समझते हो;
50) एक निर्दयी राष्ट्र जो न वृद्धों का सम्मान करेगा और न बालकों पर दया।
51) जब तक वह तुम्हारा सर्वनाष न कर लेगा, तब तक वह तुम्हारी भेड़-बकरियों और तुम्हारी भूमि की उपज को खाता रहेगा। जब तक वह तुम्हारा समूल नाष नहीं करेगा, तब तक वह न तुम्हारा अनाज छोडे+गा, न अंगूरी, न तेल, न तुम्हारी गायों के बच्चे और न तुम्हारी भेड़-बकरियों के बच्चे।
52) जब तक तुम्हारे देष भर के नगरों की ऊँची पक्की दीवारों, जिन पर तुम्हारा भरोसा होगा, गिरा नहीं दी जायेगी, तब तक वह तुम्हारे उन सब नगरों का घेराव करता रहेगा, जिन्हें प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें देने वाला है।
53) अपने शत्रुओं द्वारा डाले हुये घेरे से तंग होकर तुम प्रभु की दी हुई अपनी सन्तति, अर्थात् अपने ही पुत्र-पुत्रियों का मांस खाओगे।
54) तुम्हारे बीच सब से सौम्य और सुकुमार मनुष्य भी अपने भाई, अपनी प्राणप्रिय पत्नी और अपनी बची हुई सन्तान के साथ दया नहीं करेगा और जब वह अपने बच्चों का मांस खाता होगा, तो उस में से उन्हें कुछ नहीं देगा।
55) कारण यह होगा कि अपने शत्रु द्वारा अपने नगरों के घेरे के समय तुम्हारी इतनी दुर्दषा होगी कि उसके पास कुछ नहीं रहेगा।
56) तुम्हारे बीच सब से सौम्य और सुकुमार स्त्री, जो अपनी सुकुमारता और कोमलता के कारण भूमि पर नंगे पाँव तक न रखती होगी, अपने प्राण प्रिय पति, अपने पुत्र और अपनी पुत्री पर दया नहीं करेगी और
57) वह उन्हें अपने गर्भ का आँवल और अपने नवजात षिषु नहीं देगी। कारण यह होगा कि तुम्हारे शत्रुओं द्वारा तुम्हारे नगरों के घेरे के समय तुम्हारी इतनी दुर्दषा होगी कि वह स्वयं उन्हें छिप कर खाना चाहेगी।
58) यदि तुम इस संहिता के सब नियमों का सावधानी से पालन नहीं करोगे और प्रभु अपने ईष्वर के महिमामय और पूज्य नाम पर श्रद्धा नहीं रखोगे,
59) तो प्रभु तुम पर और तुम्हारे वंषजों पर भयंकर महामारियाँ भेजेगा, विकट और दीर्घ कालीन विपत्तियाँ, घोर और असाध्य रोग।
60) वह तुम्हारे विरुद्ध मिस्र की वे समस्त व्याधियाँ भेजेगा जिन से तुम डरते हो और वे तुम्हारे पीछे लगी रहेंगी।
61) जब तक तुम्हारा सर्वनाष नहीं हो जायेगा, तब तक प्रभु सब प्रकार की बीमारियों और विपत्तियों से तुम को पीड़ित करता रहेगा, जिनके विषय में संहिता के इस ग्रन्थ में कुछ नहीं लिखा है।
62) तुम आकाष के तारों की तरह असंख्य थे, किन्तु तुम में थोड़े ही लोग शेष रहेंगे; क्योंकि तुमने प्रभु, अपने ईष्वर के आदेष का पालन नहीं किया।
63) जैसे पहले प्रभु को तुम्हारी भलाई करने और तुम्हारी संख्या बढ़ाने में सुख मिलता था, वैसे ही प्रभु तुम्हें नष्ट और निर्मूल करना चाहेगा, जब तक कि तुम उस देष से उखाड़ कर नहीं फेंक दिये जाओगे, जिसे तुम अपने अधिकार में करने जा रहे हो।
64) प्रभु तुमको पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक सब राष्ट्रों में बिखेर देगा। तब तुम वहाँ लकड़ी और पत्थर के बने ऐसे देवताओं की पूजा करोगे, जिन्हें न तो तुम जानते हो और न तुम्हारे पूर्वज ही जानते थे।
65) तुम को उन राष्ट्रों के बीच शान्ति नहीं मिलेगी और तुम किसी एक स्थान पर नहीं रह पाओगे। वहाँ प्रभु तुम्हारे मन में चिंता भर देगा, तुम्हारी आँखें प्रतीक्षा में पथरा जायेंगी और तुम्हारा हृदय निराष होगा।
66) तुम्हारा जीवन निरन्तर जोखिम में रहेगा, तुम दिन-रात डरते रहोगे, क्योंकि तुम्हारी कोई सुरक्षा नहीं होगी।
67) अपने मन की घबराहट के कारण और उन सब दुःखदायक दृष्यों के कारण, जिन्हें तुम देखोगे, तुम सबेरे सोचोगे की शाम होती, तो अच्छा होता और शाम को साचोगे की सबेरा होता, तो अच्छा होता।
68) प्रभु तुम को जलयानों में फिर मिस्र वापस भेज देगा, यद्यपि मैंने तुमको यह वचन दिया था कि तुम फिर कभी उस मार्ग पर नहीं लौटोगे। तुम वहाँ जाकर अपने शत्रुओं के यहाँ अपने को दास-दासी के रूप में बेच देना चाहोगे, लेकिन तुम्हें कोई नहीं ख़रीदेगा।''
69) प्रभु ने इस्राएलियों के लिए होरेब में जो विधान निर्धारित किया था, उसके सिवा उसने मूसा को आदेष दिया कि वह मोआब में यह विधान घोषित करें।

अध्याय 29

1) मूसा ने सब इस्राएलियों को एकत्रित कर उन से कहा, ''तुम ने वह सब देखा है, जो प्रभु ने मिस्र देष में तुम्हारी आँखों के सामने फिराऊन, उसके सब दरबारियों और उसके सारे देष के साथ किया था,
2) अर्थात् वे बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ, चमत्कारी चिन्ह और महान कार्य जिन्हें तुमने अपनी आँखों से देखा है।
3) परन्तु आज के दिन तक प्रभु ने तुम्हें ऐसा हृदय नहीं दिया, जिससे तुम समझ सको, ऐसी आँखे नहीं दी, जिससे तुम देख सको और ऐसे कान नहीं दिये, जिन से तुम सुन सको।
4) मैंने चालीस वर्ष तक उजाड़खण्ड़ में तुम्हारा नेतृत्व किया। तब भी न तुम्हारे शरीर के वस्त्र जर्जर हुुये और न तुम्हारे पाँव के जूते घिसे।
5) तुम्हें खाने के लिए रोटी नहीं मिली, पीने के लिये अंगूरी नहीं मिली, मदिरा नहीं मिली। इसी से तुम्हें समझ लेना चाहिए था कि मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हँू।
6) जब तुम उस स्थान पर आ गये थे, तब हेषबोन का राजा सीहोन और बषान का राजा ओग हम से लड़ने आये थे, लेकिन हमने उन को पराजित किया।
7) हमने उनके देष पर अधिकार कर लिया और उसे दायभाग के रूप में रूबेन और गाद के वंषों को तथा मनस्से के आधे वंष में बाँट दिया।
8) इसलिए तुम इस विधान के शब्दों का सावधानी से पालन करो, जिससे तुम अपने सब कार्यों में सफ़ल हो सको।
9) आज तुम सब प्रभु, अपने ईष्वर के सामने उपस्थित हुये हो - तुम्हारे मुखिया, तुम्हारे वंष, तुम्हारे नेता और तुम्हारे सचिव, अर्थात् इस्राएल के सब पुरुष,
10) फिर तुम्हारे बच्चे और स्त्रियों और लकड़ी काटने वाले से पानी भरने वाले तक तुम्हारे षिविर के प्रवासी भी।
11) तुम प्रभु, अपने ईष्वर का विधान स्वीकार करोगे, जिसे वह आज शपथ पूर्वक तुम्हारे लिए निर्धारित करेगा।
12) वह तुम को आज अपनी प्रजा के रूप में अपनाना और स्वंय तुम्हारा ईष्वर बनना चाहता है, जैसे की उसने तुम से प्रतिज्ञा की और तुम्हारे पूर्वजों, इब्राहीम, इसहाक और याकूब से शपथ खाकर कहा है।
13) ''यह शपथपूर्वक घोषित विधान न केवल तुम्हारे लिए है,
14) जो आज यहाँ हमारे साथ प्रभु, अपने ईष्वर के सामने खडे+ है, बल्कि उन लोगों के लिए भी है, जो आज यहाँ नहीं हैं।
15) तुम्हें मालूम है कि हम मिस्र में कैसे रहते थे और हम किस प्रकार अनेक देषों से होकर वहाँ से आये हैं।
16) उस समय तुमने उनके यहाँ लकड़ी और पत्थर, चाँदी और सोने की घृणित देव मूर्तियों को देखा है।
17) अब तुम में कोई ऐसा न हो - न कोई पुरुष, न कोई स्त्री, न कोई कुल, न कोई वंष - जो आज प्रभु, अपने ईष्वर से विमुख होकर उन राष्ट्रों के देवताओं की पूजा करने लगे। सावधान रहो कि तुम में कोई ऐसी जड़ नहीं हो, जो ऐसा कड़वा विष पैदा करें।
18) यदि कोई इस विधान के शब्द सुनकर अपने को सुरक्षित समझे और अपने मन में कहे, 'यद्यपि मैं हठ पूर्वक अपनी राह चलता रहूँगा, तो मुझे कुछ नहीं होगा; क्योंकि सीचीं हुई भूमि को प्यास नहीं लगती',
19) तो प्रभु उस व्यक्ति को कभी क्षमा नहीं करेगा। उसका क्रोध और ईर्ष्या उस व्यक्ति के प्रति भड़क उठेगी। इस ग्रन्थ में लिखे सभी अभिषाप उस पर आ पड़ेंगे और प्रभु उसका नाम पृथ्वीतल से मिटा देगा।
20) संहिता के इस ग्रंथ मे लिखित विधान के सब अभिषापों के अनुसार प्रभु उसका विनाष करने के लिए उसे इस्राएल के सब वंषों से अलग कर देगा।
21) ''आने वाली पीढ़ियाँ, तुम्हारे बाद उत्पन्न होने वाले तुम्हारे वंषज और दूर देष से आने वाला परदेषी, प्रभु द्वारा इस देष पर भेजी हुई विपत्तियाँ और बीमारियाँ देख कर कहेंगे,
22) 'यह सारा देष नमक और गंधक के कारण उजड़ गया है। इस में न बीज बोया जाता है और न अंकुर ही उगता है। इसमें कोई घास-वनस्पति पैदा नहीं होती। सोदोम और गोमोरा, अदमा और सबोयीम की भी यही दषा थी, जब प्रभु ने कुपित होकर उन्हें अपने क्रोध में नष्ट किया था।'
23) सब लोग पूछेंगे, 'प्रभु ने इस देष के साथ ऐसा क्यों किया? इस भयंकर कोपाग्नि का क्या कारण है?
24) तब उसका उत्तर यह होगा, 'यह इसलिए हुआ की उन्होंने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईष्वर का वह विधान भंग किया जिसे उसने मिस्र देष से निकालते समय उनके लिए निर्धारित किया था।
25) ऐसा इसलिए हुआ कि उन्होंने पराये देवताओं कि पूजा और वन्दना की, ऐसे देवताओं की, जिन्हें वे नहीं जानते थे और जिनके लिए उसने उन्हें मना किया था।
26) यही कारण है कि प्रभु का कोप इस देष पर प्रज्वलित हुआ और उसने इस ग्रंथ में लिखित समस्त अभिषापों को उन पर पड़ने दिया।
27) प्रभु ने क्रोध और रोष में आकर उन्हें उनके देष से उखाड़ कर दूसरे देष में निर्वासित किया, जैसा कि हम आज देख रहे हैं।
28) ''गुप्त बातें प्रभु, हमारा ईष्वर ही जानता है, लेकिन यह बातें हम पर और हमारी सन्तति पर इसलिए प्रकट हुई हैं कि हम सदा इस संहिता के शब्दों का पालन करें।''

अध्याय 30

1) ''मैंने आषीर्वाद और अभिषाप, दोनों को तुम्हारे सामने रखा है। जब ये सब बातें तुम पर बीतेंगी, तो यदि तुम और तुम्हारी सन्तान उन सब देषों में, जहाँ तुम्हारे प्रभु-ईष्वर ने तुम्हें निर्वासित किया होगा इन पर हृदय में विचार करोगे;
2) यदि तुम अपने प्रभु-ईष्वर के पास लौट आओगे; यदि तुम और तुम्हारी सन्तान सारे हृदय और सारी आत्मा से उन आज्ञाओं का पालन करेंगे, जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ,
3) तब तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम्हारे निर्वासितों को वापस ले जायेगा और तुम पर दया करेगा। तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम को उन सब राष्ट्रों से फिर एकत्र करेगा, जहाँ उसने तुम्हें बिखेर दिया होगा।
4) यदि तुम आकाष के सीमान्तों तक बिखर गये होगे, तो भी तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम्हें वहाँ से एकत्रित कर लेगा और वहाँ से वापस ले जाएगा।
5) प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम को उस देष में फिर ले जायेगा, जिस पर तुम्हारे पूर्वजों का अधिकार था। तुम उसे फिर अपने अधिकार में करोगे। वह तुम्हें अपने पूर्वजों से भी अधिक सम्पन्न और बहुसंख्यक बना देगा।
6) ''तब प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारा तथा तुम्हारे वंषजों के हृदय का ख़तना करेगा, जिससे तुम प्रभु, अपने ईष्वर को सारे हृदय और सारी आत्मा से प्रेम कर सको और जीवित रह सको।
7) प्रभु, तुम्हारे ईष्वर इन सब अभिषापों को तुम्हारे विरोधियों और तुम पर अत्याचार करने वाले शत्रुओं पर पड़ने देगा।
8) उस समय तुम फिर से प्रभु की बात पर ध्यान दोगे और मेरे द्वारा अपने को आज सुनायी गयी उसकी सारी आज्ञाओं का पालन करोगे।
9) तब प्रभु तुम्हें अपने सब कार्यों में पूरी सफलता प्रदान करेगा। वह तुम्हारी सन्तति की, तुम्हारे पषुओं की और तुम्हारी भूमि की उपज की वृद्धि करेगा; क्योंकि तुम्हें अपने पूर्वजों की तरह प्रभु की कृपादृष्टि प्राप्त होगी,
10) बषर्तें तुम अपने प्रभु-ईष्वर की बात मानो, इस संहिता के ग्रन्थ में लिखी हुई उसकी आज्ञाओं और नियमों का पालन करो और सारे हृदय तथा सारी आत्मा से प्रभु-ईष्वर के पास लौट जाओ।
11) ''क्योंकि मैं तुम लोगों को आज जो संहिता दे रहा हूँ, वह न तो तुम्हारी शक्ति के बाहर है और न तुम्हारी पहुँच के परे।
12) यह स्वर्ग नहीं है, जो तुमको कहना पड़े - कौन हमारे लिए स्वर्ग जा कर उसे हमारे पास लायेगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें?
13) और यह समुद्र के उस पार नहीं है, जो तुम को कहना पड़े - कौन हमारे लिए समुद्र पार कर उसे हमारे पास लायेगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें?
14) नहीं, वचन तो तुम्हारे पास ही है; वह तुम्हारे मुख और हृदय में हैं, जिससे तुम उसका पालन करो।
15) ''आज मैं तुम लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हँू।
16) तुम्हारे प्रभु-ईष्वर की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हें दे रहा हँू, यदि तुम उनका पालन करोगे, यदि तुम अपने प्रभु-ईष्वर को प्यार करोगे, उसके मार्ग पर चलोगे और उसकी आज्ञाओं विधियों तथा नियमों का पालन करोगे, तो जीवित रहोगे, तुम्हारी संख्या बढ़ती जायेगी और जिस देष पर तुम अधिकार करने जा रहे हो, उस में प्रभु-ईष्वर तुम्हें आषीर्वाद प्रदान करेगा।
17) परन्तु यदि तुम्हारा मन भटक जायेगा, यदि तुम नहीं सुनोगे और अन्य देवताओं की आराधना तथा सेवा के प्रलोभन में पड़ जाओगे,
18) तो मैं आज तुम लोगों से कहे देता हँू कि तुम अवष्य ही नष्ट हो जाओगे और यर्दन नदी पार कर जिस देष पर अधिकार करने जा रहो हो, वहाँ तुम बहुत समय तक नहीं रहने पाओगे।
19) मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हँू - मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हँू। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंषज जीवत रह सकें।
20) अपने प्रभु-ईष्वर को प्यार करो, उसकी बात मानो और उसकी सेवा करते रहो। इसी में तुम्हारा जीवन है और ऐसा करने से तुम बहुत समय तक उस देष में रह पाओगे, जिसे प्रभु ने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों - इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की है।''

अध्याय 31

1) इसके बाद मूसा ने समस्त इस्राएलियों से कहा,
2) ''अब मैं एक सौ बीस वर्षो का हो गया हँू और चलने-फिरने मे असमर्थ हँूं। प्रभु ने मुझ से कहा, ÷तुम इस यर्दन नदी को पार नहीं करोगे।÷
3) तुम लोगों का प्रभु-ईष्वर तुम से पहले यर्दन पार करेगा। वह तुम्हारे लिए उन लोगों का विनाष करेगा और तुम उनका देष अपने अधिकार में करोगे। योषुआ यर्दन पार करने में तुम्हारा नेतृत्व करेगा, जैसा कि प्रभु ने कहा है।
4) प्रभु उन लोगों का विनाष करेगा, जैसा कि उसने अमोरियों के राजा सीहोन और ओग तथा उनके देष का विनाष किया है।
5) जब प्रभु उन लोगों को तुम्हारे हवाले कर देगा, तो तुम मेरे आदेष के अनुसार ही उनके साथ व्यवहार करोगे।
6) दृढ बने रहो और ढारस रखो! भयभीत न हो और उन से मत डरो क्योंकि तुम्हारा प्रभु-ईष्वर तुम्हारे साथ चलता है। वह तुम्हारा विनाष नहीं करेगा और तुमको नहीं छोडेगा।''
7) तब मूसा ने योषुआ को बुलाया और सभी इस्राएलियों के सामने उससे कहा, ''दृढ बने रहो और ढारस रखो! तुम इन लोगों को उस देष ले चलोगे, जिसे प्रभु ने शपथ खाकर उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की है। तुम उस देष को उनके अधिकार में दे दोगे।
8) प्रभु तुम्हारे आगे-आगे चलेगा और तुम्हारे साथ रहेगा। वह तुम्हें निराष नहीं करेगा और तुम को नहीं छोडेगा। भयभीत न हो और मत डरो।
9) मूसा ने यह संहिता लिखकर इसे विधान की मंजूषा ढोने वाली लेवी वंष के याजकों और इस्राएल के नेताओं को दिया।
10) मूसा ने उन्हें यह आदेष भी दिया, प्रत्येक सातवें वर्ष, ऋण-मुक्ति के वर्ष, षिविर-पर्व के अवसर पर,
11) सब इस्राएली प्रभु, तुम्हारे ईष्वर के सामने उस स्थान पर, जिसे वह चुनेगा, एकत्रित होंगे। तब तुम उन्हें इस संहिता का पाठ पढ़ कर सुनाओगे।
12) तुम सब लोगों को, क्या पुरुषों, क्या स्त्रियों, क्या बच्चों तथा अपने नगर में रहने वाले प्रवासियों को, सबको इकट्ठा करोगे, जिससे वह सुन सकें, प्रभु, तुम्हारे ईष्वर पर श्रद्धा रखना सीखें और इस संहिता के सब शब्दों का सावधानी से पालन करें।
13) उनके बच्चे, जो यह संहिता नहीं जानते, इसे सुनें और प्रभु तुम्हारे ईष्वर पर तब तक श्रद्धा रखना सीख लें, जब तक तुम उस देष में रहोगे, जिसे अधिकार में करने तुम यर्दन पार करने वाले हो।
14) प्रभु ने मूसा से कहा, ''देखो तुम्हारी मृत्यु का समय निकट है। तुम योषुआ को बुला कर उसके साथ दर्षन-कक्ष में प्रवेष करो, जिससे मैं उसे नियुक्त करूँ।'' मूसा और योषुआ जाकर दर्षन-कक्ष में उपस्थित हुए।
15) प्रभु ने षिविर में मेघखण्ड़ के रूप में दर्शन दिये। मेघखण्ड़ दर्षन-कक्ष के द्वार के ऊपर ठहर गया।
16) प्रभु ने मूसा से कहा, ''देखो अब तुम अपने पूर्वजों के पास चिरनिद्रा में विश्राम करोगे। इसके बाद ये लोग उस देष के पराये देवताओं के अनुयायी बन कर मेरे साथ विष्वासघात करेंगे, जिसमें वे प्रवेष करेंगे। वे मुझे त्याग देंगे और वह विधान भंग करेंगे जिसे मैंने उनके लिए निर्धारित किया।
17) उस दिन मेरा क्रोध उनके विरुद्ध प्रज्वलित हो उठेगा। मैं उन्हें त्याग दँूगा और उन पर से अपनी कृपादृष्टि हटाऊँगा; इस से उनका सर्वनाष हो जायेगा। बहुत-सी विपत्तियाँ और कष्ट उन पर टूट पड़ेंगे और उस दिन वे पूछेंगे, 'क्या वे विपत्तियाँ हम पर इसलिए पड़ी हैं कि हमारा ईष्वर हमारे साथ नहीं हैं?'
18) उनके सब कुकमोर्ं और पराये देवताओं की उनकी भक्ति के कारण मैं अवष्य उन पर से अपनी कृपादृष्टि हटाऊँगा।
19) ''अब यह भजन लिख कर इस्राएलियों को सिखाओ और इसे कण्ठस्थ करा दो जिससे यह भजन इस्राएलियों के विरुद्ध मेरे पक्ष में साक्ष्य दे।
20) जब मैं उन्हें उस देष पहँुचा दूँगा, जिसे देने का मैंने उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया है, वह देष, जिस में दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं और जब वे वहाँ खाते-पीते हुए फलेंगे-फूलेंगे, तब वे पराये देवताओं के अनुगामी बन कर उनकी पूजा करने लगेंगे और मेरा परित्याग कर मेरा विधान भंग करेंगे।
21) तब यदि उन पर बहुत-सी विपत्तियाँ और कष्ट टूट पड़ेंगे तो यह भजन, जो उनके वंषजों को कण्ठस्थ होगा उनके विरुद्ध इस बात का साक्ष्य देगा। मैंने उन्हें अब तक उस देष नहीं पहँुचाया, जिसे उन्हें देने की मैंने शपथपूर्वक प्रतिज्ञा की है, किन्तु मैं जानता हँू कि वे क्या करना चाहते हैं।''
22) इसलिए उस दिन मूसा ने यह भजन लिख कर उसे इस्राएल के लोगों को सिखाया।
23) नून के पुत्र योषुआ को आदेष दे कर प्रभु ने कहा, ''दृढ बने रहो और ढारस रखो तुम लोगों को उस देष ले जाओगे जिसे देने का मैंने उन्हें शपथपूर्वक वचन दिया था। मैं तुम्हारे साथ रहँूगा।''
24) इस संहिता के ये शब्द ग्रन्थ में लिख चुकने के बाद
25) मूसा ने प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले लेवियों को यह आदेष दिया,
26) ''संहिता का यह ग्रन्थ प्रभु, अपने ईष्वर के विधान की मंजूषा में रखो। यह वहाँ तुम लोगों के विरुद्ध साक्ष्य देगा।
27) मैं तुम लोगों के विद्रोह और हठधार्मिता से परिचित हँू। देखो, आज जब मेरे जीवत रहते ही तुम लोग प्रभु के विरुद्ध विद्रोह करते रहते हो, तो मेरे मरने के बाद तुम और अधिक विद्रोह करोगे।
28) अब मेरे सामने अपने सब वंषों के नेताओं और अपने सचिवों को एकत्रित करो। मैं उन्हें सुस्पष्ट रूप से ये शब्द सुनाऊँगा और उनके विरुद्ध आकाष और पृथ्वी को साक्षी बनाऊँगा।
29) मैं जानता हँू कि मेरे मरने के बाद तुम निष्चय ही कुकर्म करोगे और मेरे बताये हुये मार्ग से भटक जाओगे; भविष्य में विपत्तियाँ तुम पर आ पड़ेगी, क्योंकि तुम वही करोगे जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और अपने हाथ की कृतियों से उसका क्रोध प्रज्वलित करोगे।''
30) इसके बाद मूसा ने सारे इस्राएली समुदाय को यह भजन सुनायाः

अध्याय 32

1) ''आकाष मण्ड़ल! ध्यान दो; मैं बोलूगा। पृथ्वी! मेरे शब्दों को सुनो।
2) मेरी षिक्षा वृष्टि की तरह फैले, मेरी वाणी ओस की तरह उतरे - घासस्थली पर मूसलाधार वर्षा की तरह, फ़सलों पर बौछार की तरह।
3) मैं प्रभु के नाम की स्तुति करूँगा। हमारे ईष्वर की महिमा घोषित करो।
4) वह हमारी चट्टान है। उसके सभी कार्य अदोष हैं। और उसके सभी मार्ग न्यायपूर्ण; क्योंकि ईष्वर सत्य प्रतिज्ञ है, उसमें अन्याय नहीं, वह न्यायी और निष्कपट है।
5) उन्होंने उसके विरुद्ध पाप किया, इसके कारण वे उसके पुत्र नहीं रहे। वह एक दुष्ट और भ्रष्ट पीढ़ी है।
6) मूर्ख और अविवेकी प्रजा! क्या प्रभु के साथ ऐसा व्यवहार उचित है? क्या वह तुम्हारा पिता नहीं, जिसने तुम्हें उत्पन्न किया? उसने तुमको बनाया और जीवन दिया।
7) प्राचीन काल को याद करो, युग-युगों के वर्षों पर ध्यान दो। अपने पिता से पूछो, वह तुम्हें बतायेगा। बड़ों से पूछो, वे तुम्हें समझायेंगे
8) जब सर्वोच्च प्रभु ने राष्ट्रों के देष निर्धारित किये और मनुष्यों को पृथ्वी पर बिखेर दिया, तो उसने ईष्वर के पुत्रों की संख्या के अनुसार राष्ट्रों की सीमाओं का निर्धारण किया।
9) ईष्वर की विरासत है उसकी अपनी प्रजा, याकूब है उसका दायभाग।
10) उसने उन्हें मरूभूमि में, भयानक निर्जन स्थान में पाया। उसने उन्हें सँभाला और षिक्षा प्रदान की, आँखों की पुतली की तरह उनकी रक्षा की।
11) गरूड़ जिस तरह अपने नीड़ की रखवाली करता और अपने बच्चों के ऊपर मँडराता है, उसी तरह उसने अपने पंखों को फैला कर उन्हें उठाया और अपनें पंखों पर ले गया।
12) प्रभु ही अपनी प्रजा का पथप्रदर्षक रहा। उसका कोई और देवता नहीं था।
13) उसने उसे देष की पहाड़ियों पर बसाया, जिससे वह, खेतों की उपज खाये। वह उसे चट्टान का मधु चटाता और कड़े पत्थरों का तेल देता है।
14) वह उसे गायों का मक्खन, भेड़ो का दूध, मेमनों की चरबी बाषान के बछड़े और बकरे और साथ-साथ उत्तम गेहँू देता है। तुम लोग अंगूर के रस की मदिरा पीते हो।
15) यषुरून खा-पी कर मोटा हुआ और लात मारने लगा, मोटा और हष्ट-पुष्ट हो कर मस्त हो गया। उसने ईष्वर को भुला दिया जिसने उसे बनाया था। वह अपने उद्धार की चट्टान का तिरस्कार करने लगा।
16) उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा कर प्रभु को चिढ़ाया और घृणित कार्यों से उसकी कोपग्नि प्रज्वलित की।
17) उन्होंने ऐसे असुरों की पूजा की, जो ईष्वर नहीं है; ऐसे देवताओं की जिन्हें वे कभी नहीं जानते थे; ऐसे देवताओं की जो अभी-अभी प्रकट हुए थे; ऐसे देवताओं की जिन पर उनके पूर्वज श्रद्धा नहीं रखते थे।
18) जिस चट्टान से तुम्हारी उत्पत्ति हुई है, उसे तुम लोग भूल गये। तुमने अपने सृष्टिकर्ता ईष्वर को भुला दिया।
19) ईष्वर ने यह देखा और उसने क्रुद्ध हो कर अपने पुत्र-पुत्रियों को त्याग दिया।
20) उसने कहा, 'मैं उन से अपना मँुह मोड़ लूँगा और यह देखूँगा कि उनका क्या होगा; क्योंकि यह एक दुष्ट पीढ़ी है यह एक विष्वासघाती सन्तति है।
21) ऐसे देवताओं को मान कर, जो ईष्वर नहीं हैं, उन्होंने मुझे चिढ़ाया। तुच्छ देवमूर्तियों की पूजा कर उन्होंने मेरा अनादर किया। इसलिए मैं ऐसे लोगों द्वारा उन्हें चिढ़ाऊँगा, जो मेरी प्रजा नहीं हैं। मैं एक तुच्छ राष्ट्र द्वारा उनका अनादर कराऊँगा;
22) क्योंकि मेरे क्रोध के कारण एक ऐसी अग्नि प्रज्वलित हो उठी, जो अधोलोक के तेल तक फैला गयी। वह पृथ्वी और उसकी समस्त उपज भस्म कर देगी और पर्वतों की नींव जलायेगी।
23) मैं उन पर विपत्ति पर विपत्ति ढ़ाहँूगा; मैं उन्हें अपने तीरों का निषाना बनाऊँगा।
24) जब वे भुखमरी से दुर्बल हो गये होंगे, महामारी से अषक्त और ताऊन से आक्रान्त, तो मैं उनके विरुद्ध जंगली जानवरों के दाँत और पृथ्वी पर रेंगने वाले सर्पों का विष भेजँूगा।
25) तलवार सड़कों पर उसकी सन्तति मिटा देगी। उनके घरों में आतंक बना रहेगा। नवयुवकों और नवयुवतियों का वध किया जायेगा। पके बाल वाले बूढ़े और दूधमुँहे बच्चे समान रूप से मारे जायेंगे।
26) मैंने कहा कि मैं उन्हें मिट्टी में मिला कर मनुष्यों में से उनकी स्मृति मिटा सकता हँू;
27) किन्तु तब उनके शत्रु शेखी मारते और उसका ग़लत अर्थ लगाते हुये कहते : 'यह हमारे बाहुबल की विजय है, इस में प्रभु ने हस्तक्षेप नहीं किया।'
28) वे एक नासमझ राष्ट्र हैं। उनमें विवेक का अभाव है।
29) यदि वे बुद्धिमान् होते, तो यह बात समझते और उन्हें अपने भविष्य का ज्ञान होता।
30) 'यदि उनकी चट्टान ने उन्हें नहीं बेचा होता, यदि प्रभु ने उनका परित्याग नहीं किया होता, तो कैसे एक व्यक्ति एक हज+ार लोगों को खदेड सकता, कैसे दो व्यक्ति एक लाख लोगों को भगा सकते?'
31) हमारे शत्रुओं की चट्टान हमारी चट्टान जैसी नहीं हैं। हमारे शत्रु भी यह स्वीकार करते हैं।
32) उनकी दाखलता सोदोम की दाखलताओं से, गोमोरा के खेतों से निकली है। उनकी अंगूर विष से भरे हुये हैं और उनके अंगूर गुच्छे कड़वे हैं।
33) उनकी अंगूरी साँपो का विष, नाग का हलाहल है।
34) क्या मैंने यह अपने पास नहीं रोक रखा है? क्या यह मेरे अन्तरतम में मुहरबन्द नहीं?
35) जब उनके पैर फिसलेंगे, तो प्रतिषोध और बदला लेना मेरा अधिकार होगा, क्योंकि उन लोगों की विपत्ति का दिन निकट है और उनका सर्वनाष शीघ्र ही होगा।
36) जब प्रभु देखेगा कि अपनी प्रजा कि सारी शक्ति शेष हो गई है। और उन मैं न कोई दास और न कोई स्वतन्त्र है, तब वह अपनी प्रजा को न्याय दिलायेगा और अपने सेवकों पर दया करेगा।
37) तब वह कहेगा, 'अब कहाँ है उनके देवता? कहाँ है वह चट्टान, जिनके आश्रय में वह रहते थे?
38) वे देवता, जो उनकी बलियों की चर्बी खाते और उनके अर्घों की अंगूरी पीते थे? जब वे उठकर तुम्हारी सहायता करें और तुम लोगों की रक्षा करें।
39) अब समझो की मैं वही हँू, मेरे सिवा और कोई देवता नहीं है। मैं ही जीवन और मरण का विधाता हँू। मैं मारता भी हँू और चंगा भी करता हँू। मेरे हाथ से कोई किसी को छुड़ा नहीं सकता।
40) मैं आकाष की ओर हाथ उठाकर कहता हँूः मैं अनन्त काल तक जीवित रहता हँू
41) जब मैं अपनी चमचमाती तलवार तेज+ कर चुका होऊँगा। और उसे न्याय करने के लिए हाथ में लूँगा तो मैं अपने विरोधियों का प्रतिकार करूँगा और अपने बैरियों को बदला चुकाऊँगा।
42) मैं अपने बाणों को रक्त से मदोन्मत्त करूँगा और अपनी तलवार को मांस से तृप्त करूँगा : मृतकों और बन्दियों के रक्त से, शत्रु के झबरे सीरों के मांस से।
43) राष्ट्रों! उसकी प्रजा का जयकार करो, क्योंकि वह अपने सेवकों के रक्त का बदला चुकायेगा। वह अपने शत्रुओं का प्रतिकार करेगा, वह अपने देष और अपनी प्रजा का शुद्धीकरण करेगा।
44) मूसा ने नून के पुत्र योषुआ के साथ आकर यह भजन लोगों को सुनाया।
45) जब मूसा इस्राएलियों के समस्त समुदाय को ये शब्द सुना चुका,
46) तब वह उन से बोला, इन सब शब्दों को, जिन्हें मैंने आज तुम को सुनाया, अपने हृदय पर अंकित करो। अपने बच्चों को आदेष दो कि वे इस संहिता के सब शब्दों का सावधानी से पालन करें।
47) ये तुम्हारे लिए निरे शब्द नहीं हैं, बल्कि इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है। इन का पालन करने से तुम दीर्घ काल तक उस देष में जीवित रहोगे, जिसे अपने अधिकार में करने तुम यर्दन पार करने वाले हो।
48) उसी दिन प्रभु ने मूसा से कहा,
49) ''इस अबारीम पर्वतश्रेणी के नेबो पर्वत पर चढ़ो, जो मोआब देष में येरीखो के पूर्व में है और कनान देष को देखो, जिसे मैं इस्राएलियों के अधिकार में देता हँू।
50) उस पर्वत पर चढ़ने पर वहाँ तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी और तुम अपने पूर्वजों से जा मिलोगे, जैसे तुम्हारे भाई हारून की मृत्यु होर पर्वत पर हुई थी और वह अपने पूर्वजों से जा मिला था;
51) क्योंकि तुम दोनों ने इस्राएलियों के सामने मेरी पवित्रता का सम्मान नहीं किया।
52) तुम वहाँ से देष तो देखोगे, किन्तु तुम उस देष में प्रवेष नहीं करोगे जिसे मैं इस्राएलियों को दे रहा हँू।''

अध्याय 33

1) ईष्वर-भक्त मूसा ने अपनी मृत्यु से पहले इस्राएलियों को यह आषीर्वाद दिया।
2) उसने कहाः ''प्रभु सीनई से आया, वह सेईर से उन पर उदित हुआ, पाराना पर्वत से उसकी महिमा प्रकट हुई। वह कादेष से मरीबा पहुँचा, वह दक्षिण पर्वत से उनके पास आया।
3) तू अपनी प्रजा को प्यार करता और सभी भक्तों को सुरक्षित रखता है। वे तेरे चरणों को दण्डवत् करते और तेरी षिक्षा मानते हैं।
4) मूसा ने हमें संहिता प्रदान की, जो याकूब के समुदाय की निधि है।
5) जब इस्राएली वंषों के साथ नेताओं की सभा हुई, तो यषुरून में एक राजा का उदय हुआ।
6) ''रूबेन जीवित रहे, मरे नहीं, उसकी जनसंख्या कभी घटे नहीं।''
7) उसने यूदा के विषय में यह कहाः ''प्रभु! यूदा की पुकार सुन, उसे उसके अपने लोगों के पास पहुँचा दे। वह अपने हाथ से अपनी रक्षा करें, तू उसके बैरियों के विरुद्ध उसकी सहायता कर।''
8) उसने लेवी के विषय में यह कहा : ''लेवी को अपना तुम्मीम, अपने भक्त को अपना ऊरीम दे। तूने मस्सा में उसकी परीक्षा ली, मरीबा के जलाषय के पास उसका विरोध किया।
9) उसने अपने माता-पिता के सम्बन्ध में यह कहा, 'मैं उनकी चिन्ता नहीं करता।' उसने अपने भाइयों को अस्वीकार किया और अपने बाल-बच्चों का ध्यान नहीं रखा। किन्तु उसने तेरी वाणी हृदयंगम की और तेरे विधान का पालन किया।
10) वह याकूब को तेरे आदेषों की और इस्राएल को तेरी संहिता की षिक्षा देता है। वह तुझे सुगन्धयुक्त चढ़ावे अर्पित करता और तेरी वेदी पर होम-बलियाँ जलाता है।
11) प्रभु! उसका सामर्थ्य बढ़ा, उसके कार्यों में आषीर्वाद प्रदान कर। उसके विरोधियों की कमर तोड़, उसके बैरियों को फिर उठने न दे।''
12) उसने बेनयामीन के विषय में यह कहा : ''प्रभु का यह कृपापात्र सकुषल उसके सान्निध्य में रहता हैं। सर्वोच्च प्रभु उसे सुरक्षित रखता है। वह प्रभु की पहाड़ियों के बीच निवास करता है।''
13) उसने यूसुफ़ के विषय में यह कहा : ''प्रभु उसके प्रदेष को यह आषीर्वाद दे - आकाष की निर्मल ओस, भूमि की गहराईयों का जल,
14) धूप में पकने वाली और चाँदनी में बढ़ने वाली उत्तम फ़सल;
15) प्राचीन पर्वतों की उपज, चिरस्थायी पहाड़ियों की उर्वरता,
16) पृथ्वी के उदार वरदान और प्रभु की कृपादृष्टि यह सब यूसुफ़ का शीर्ष सुषोभित करे, जो अपने भाइयों में श्रेष्ठ है।
17) वह पहलौठे साँड़-जैसा प्रतापी है, उसके सींग जंगली भैंसे के जैसे है; वह उन से पृथ्वी के सीमान्तों तक सभी राष्ट्रों को मारेगा। ऐसे ही हैं एफ्रईम के लाखों वंषज! ऐसे ही हैं मनस्से के सहस्रों वंषज!
18) उसने ज+बुलोन के विषय में यह कहा; जबुलोन! अपनी यात्राओं में आनन्द मनाओ। इस्साकार अपने तम्बुओं में आनन्द मनाओ।
19) वे वंषों को पर्वत पर बुलाते हैं, जहाँ वे निर्धारित बलियाँ चढ़ाते हैं। वे समुद्र से धन निकालते हैं और बालू से छिपी हुई सम्पदा।''
20) उसने गाद के विषय में यह कहा : ''धन्य है वह, जो गाद का विस्तार करता है। गाद उस सिंह की तरह झुक कर बैठा है, जो षिकार की बाँह और सिर फाड़ता है
21) उसने सर्वोत्तम भूभाग अपने लिए चुना, जहाँ उसे नेतृत्व का भार सौंपा गया। उसने प्रजा का नेता बन कर प्रभु का उद्देश्य पूरा किया। और इस्राएल के पक्ष में उसके निर्णय पूरे किये।''
22) उसने दान के विषय में यह कहा, ''दान एक युवा ंिसह है, जो बाषान से कूद कर आता है।''
23) उसने नफ्ताली के विषय में यह कहा : ''नफ्ताली प्रभु का कृपापात्र है और उसके आशीर्वाद से परिपूर्ण है। उसे समुद्र के दक्षिण का प्रान्त मिलेगा।''
24) उसने आषेर के विषय मे यह कहा : ''आषेर पुत्रों में सर्वाधिक धन्य है, उसे अपने भाइयों में सर्वाधिक अनुग्रह मिलें। वह अपने पैर तेल से नहलाये।
25) तुम्हारी अर्गलाएँ लोहे और काँसे की हों, तुम्हारी शक्ति आजीवन बनी रहे।''
26) ''यषरून! ईष्वर के तुल्य कोई नहीं! वह महिमा से विभूषित हो कर, बादलों पर आरूढ़, आकाष के मार्ग से तुम्हारी सहायता करने आता है।
27) शाष्वत ईष्वर तुम्हारा आश्रय है, उसका बाहुबल निरन्तर सक्रिय है। वह तुम्हारे सामने से यह कहते हुए तुम्हारे शत्रु को भगाता है - उसे मिटा दो।
28) इस्राएल सकुषल निवास करता है। अन्न और अंगूरी के देष में, जहाँ आकाष ओस टपकाता है, याकूब का वंष सुरक्षित रहता है।
29) प्रभु द्वारा रक्षित प्रजा, इस्राएल! तुम धन्य हो। तुम्हारे तुल्य कौन है? वह तुम्हारी ढाल है, तुम्हारा सहायक और तुम्हारी विजयी तलवार है। तुम्हारे शत्रु तुम्हारी चाटुकारी करेंगे और तुम उनके देष के पर्वतों पर पैर रखोगे।''

अध्याय 34

1) इसके बाद मूसा मोआब के मैदान से नेबो पर्वत पर पिसगा की चोटी पर चढ़ा! यह येरीखो के सामने है। प्रभु ने उसे समस्त देष दिखाया - दान तक गिलआद को,
2) सारे नफ्ताली, एफ्रईम और मनस्से प्रदेष को पष्चिमी समुद्र तक समस्त यूदा प्रदेष को,
3) नेगेब और यर्दन की घाटी तथा सोअर तक खजूरों के नगर येरीख़ो के मैदान को।
4) तब प्रभु ने उस से कहा, ''यही वह देश है, जिसके विषय में मैंने शपथ खाकर इब्राहीम इसहाक और याकूब से कहा - मैं उसे तुम्हारे वंषजों को प्रदान करूँगा। मैंने इसे तुम को दिखाया और तुमने इसे अपनी आँखों से देखा किन्तु तुम इस में प्रवेष नहीं करोगे।''
5) प्रभु के सेवक मूसा की वहाँ मोआब में मृत्यु हो गयी, जैसा कि प्रभु ने कहा था।
6) लोगों ने उसे बेत-पओर के सामने मोआब की घाटी में दफनाया, किन्तु अब कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहाँ है।
7) मूसा का देहान्त एक सौ बीस वर्ष की उम्र में हुआ था। उसकी आँखों की ज्योति धुँधलायी नहीं थी और न ही उसकी तेजस्विता घटी थी।
8) इस्राएलियों ने मोआब के मैदान में तीस दिन तक मूसा के लिए विलाप किया। इसके बाद मूसा के लिए शोक का समय समाप्त हुआ।
9) नून का पुत्र योषुआ प्रज्ञा-चेतना से परिपूर्ण था, क्योंकि मूसा ने उस पर हाथ रखे थे। इस्राएली उसका आज्ञापालन करते और इस प्रकार वे प्रभु का वह आदेश पूरा करते थे, जिसे प्रभु ने मूसा को दिया था।
10) बाद में मूसा के सदृष इस्राएल में ऐसा कोई नबी प्रकट नहीं हुआ, जिसने प्रभु को आमने-सामने देखा हो।
11) ऐसा कोई नबी प्रकट नहीं हुआ, जिसने प्रभु के द्वारा भेजा जा कर मिस्र में फ़िराउन, उसके सब दरबारियों और उसके समस्त देष को इतने चिन्ह तथा चमत्कार और
12) सब इस्राएलियों के सामने सामर्थ्य एवं आतंक के साथ इतने महान् कार्य कर दिखाये।