पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

मीकाह का ग्रन्थ ( Michah )

अध्याय 1

1) यूदा के राजा योताम, आहाज और हिजकीया के दिनों में मोरेशेत के मीकाह को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी। उसके दर्शन समारिया और येरुसालेम के विषय में हैं।
2) लोगो! तुम सब सुनो। पृथ्वी के सब निवासियो! कान दो। प्रभु-ईश्वर तुम्हारे विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए अपने पवित्र मन्दिर से प्रस्थान करने वाला है।
3) देखो, प्रभु अपने स्थान से उतर रहा है, वह पर्वत-शिखरों पर कदम रखेगा।
4) उसके गुजरने से पर्वत उसी तरह पिघलते हैं, जिस तरह आग के सामने मोम गलती है; और घाटियों में वैसे ही दरारें पड रही हैं, जैसे जलप्रापात का पानी ढाल को काटता है।
5) यह सब याकूब के अपराध और इस्राएल के पापों के कारण ही हुआ। याकूब का अपराध क्या है? क्या वह समारिया नहीं है? यूदा के घराने का पाप क्या है? क्या वह येरुसालेम नहीं है?
6) अतः मैं समारिया को खुले मैदान में मलबे के ढेर-जैसा बना दूँगा, उसे दाखबारी लगाने योग्य स्थान बना दूँगा। मैं उसके पत्थरों को घाटी में ढाह दूँगा, उसकी नींवें तक दीखने लगेंगी।
7) उसकी सारी देवमूर्तियाँ टुकडे-टुकडे कर दी जायेंगी, उसकी वेश्यावृत्ति की सारी कमाई आग में भस्म हो जाएगी। उसकी सब देव-प्रतिमाएँ चूर-चूर हो जायेंगी, वे तो वेश्याओं की कमाई से एकात्रित की गयी थीं, वे हराम की कमाई बनी रहेगी।
8) इसीलिए मैं शेक मना रहा हूँ और विलाप कर रहा हूँ; मैं नंगे पैर, नंगे बदन घूमता फिरूँगा; मैं सियार की तरह हुआँ-हुआँ करूँगा; मैं शुतुरमुर्ग के समान विलाप करूँगा।
9) प्रभु-ईश्वर ने उसे मारा है, जिससे असाध्य घाव उत्पन्न हो गया है, यूदा भी इस चोट से अछूता नहीं, वह मेरी प्रजा की डोढ़ी, हाँ, येरुसालेम तक पहुँच गयी है।
10) गत में इसकी चर्चा न करना, रोना एकदम नहीं। बेत-ल-लफ्रा में धूल में लोटते रहना।
11) शाफीर के निवासियो! नंगे हो और लज्जा से भरे अपने मार्ग पर चले जाओ; सानान के निवासियो! बाहर मत निकालो; मजबूत नींव के होते हुए भी बेत-एसेल उखाड़ा गया है।
12) मारोत के निवासी रक्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं, क्योंकि प्रभु से आयी हुई विपत्ति येरुसालेम के द्वार तक पहुँच गयी है।
13) लाकीश के निवासियो! रथों में घोड़े जोतो, तुम ही तो पहले-पहले सियोन की पुत्री के पाप के कारण रहे; क्योंकि तुम में से ही इस्राएल के अपराधों की शुरुआत हुई।
14) इसलिए तुम मोरेशेत-गत को दहेज दे कर विदा करो। इस्राएल के राजाओं को अकजीब के घरों से धोखा होगा।
15) मारेशा के निवासियो! मैं तुम्हारे ऊपर फिर विजेता भेज दूँगा; अदुल्लाम से इस्राएल की शक्ति सदा तक जाती रहेगी।
16) अपने प्रिय पुत्रों के लिए अपने सिर गिद्ध की तरह मुडवा लो, क्योंकि उनको देश-निकाले का दण्ड मिला है।

अध्याय 2

1) धिक्कार उन लोगों को, जो अधर्म की योजना बनाते और शय्या पर पडे हुए बुराई सोचा करते हैं! वे उठते ही ऐसा करते हैं, क्योंकि उनके हाथ में शक्ति हैं।
2) यदि वे किसी खेत के लिए लालच करते हैं, तो उसे ले लेते हैं; यदि किसी घर पर उनकी आँख लग जाती, तो वे उसे हथियाते हैं। वे मनुष्य और उसके घर को, मालिक और उसकी सम्पत्ति को अपने अधिकार में कर लेते हैं।
3) इसलिए प्रभु उन लोगों से यह कहता है- मैं तुम पर एक ऐसी विपत्ति भेजने की सोच रहा हूँ, जिसका भार तुम अपने कंधों से उतार नहीं सकोगे और फिर सीधे हो कर चल नहीं सकोगे। यह तुम्हारे लिए घोर संकट का समय होगा।
4) उस दिन लोग तुम्हारे विषय में उपहास का गीत गायेंगे और तुम लोग इस तरह विलाप करोगे- हमारा सर्वनाश हो गया है। प्रभु ने अपनी प्रजा की भूमि को विदेशियों को दे दिया। उसने विधार्मियों में हमारे खेत बाँट दिये। कौन हमें हमारे खेत लौटा सकेगा?
5) तब कोई नहीं होगा, जो चिट्ठी डाल कर तुम्हें प्रभु की सभा में विरासत दिलायेगा।
6) ''मत बको'', वे बकते हैं, ''इस तरह मत बको; हमें शरमिन्दा नहीं होना पडेगा''।
7) याकूब के घराने! क्या यह कहा जा सकता है, क्या प्रभु अपनी सहनशक्ति खो बैठा है? क्या वह इस प्रकार कार्य करता है? क्या उसके शब्द इस्राएल के प्रति दयापूर्ण नहीं हैं।
8) किन्तु तुम तो शत्रु-जैसे मेरे लोगों का विरोध करते हो; तुम निर्दोष लोगों की चादर लूटते हो, और जो सुख-शांति से रहते हैं, तुम उन पर धावा बोल देते हो।
9) तुम मेरे लोगों की स्त्रियों को उनके प्रिय घरों से भगा देते हो, और उनके बच्चों को बन्दी बना कर उन से यह स्वतन्त्रता छीन लेते हो, जिसे मैंने स्वयं उन को प्रदान किया था।
10) हटो, भाग जाओ, अब यह रहने की जगह नहीं रह गयी। तुम थोडे-से रूपयों के लिए मूल्यवान् वस्तु रेहन रखते हो।
11) इस प्रकार के लोगों के लिए ऐसा झूठा नबी पसंद आयेगा, जो अनाप-शनाप बकते फिरेगा और नबूवत करेगा, ''शराब पिओ, नशा जम जाने दो''।
12) मैं याकूब के समस्त घराने को इस्राएल के बाकी लोगों को बुला भेजूँगा और एकत्रित करूँगा। बाड़े में भेड़ों के झुण्ड की तरह, या रखवाले के साथ चरागाह में रेवड की तरह, तुम निडर रहोगे। उनका नेता उनके आगे-आगे चलेगा; वे उनके पीछे-पीछे चल कर द्वार को पार कर बाहर निकलेंगे;
13) उनका राजा उनके आगे-आगे चलेगा और प्रभु-ईश्वर उनका नेतृत्व करेगा।

अध्याय 3

1) तब मैंने कहाः याकूब के घराने के मुखियाओ! इस्राएल के शासको! सुनो। तुम्हारा कर्तव्य तो न्याय करना है,
2) किन्तु तुम को भलाई से घृणा और बुराई से प्रेम है। तुम मेरे लोगों की खाल खींचते हो और उनकी हाड्डियों से उनका मांस नोच लेते हो;
3) तुम मेरी प्रजा का मांस खाते हो, उनकी चमड़ी उधेड लेते हो, उनकी हाड्डियाँ पीस देते हो और हाँड़ी के गोश्त की तरह उनका शरीर की बोटी-बोटी काट देते हो।
4) यह सब करने पर भी वे प्रेमु की दुहाई देंगे, परन्तु वह उनकी नहीं सुनेगा, बल्कि उनके कुकमोर्ं के कारण वह उन से मुँह मोड़ लेगा।
5) उन नबियों के लिए यह प्रभु की वाणी है, जो मेरी प्रजा को पथभ्रष्ट करते हैं; जब तक उनके पेट भरे रहते हैं, तब तक वे ''कल्याण, कल्याण'' बकते हैं, किन्तु भोजन नहीं मिलने पर 'युद्ध होगा' की नबूवत करते हैं।
6) अतः तुम्हारी आँखों के सामने अन्धेरा छा जायेगा, जिससे तुम अब दृश्य नहीं देखोगे, न इस अन्धेरी रात में शकुन विचार सकोगे। नबियों के लिए सूर्यास्त हो जायेगा और दिन में भी उन पर अन्धेरा छा जायेगा।
7) दृष्टाओं और सगुनियों, दोनों को लज्जा के कारण सिर झुकाना पडेगा, ईश्वर की ओर से कोई उत्तर नहीं मिलेने पर वे लज्जा से अपने मुँह पर मुहर लगाये रहेंगे।
8) किंतु मैं! मुझे तो अधिकार प्राप्त है, मुझ में ईश्वर का सामर्थ्य, न्याय और बल भरपूर है कि मैं याकूब को उसके पापों से, इस्राएल को उसके अपराधों से आगाह करूँ।
9) याकूब के घराने के मुखियाओ! इस्राएल के शासको! सुनो। तुम को न्याय से घृणा है; तुम साम्य को उलट देते हो;
10) तुम रक्तपात द्वारा सियोन का और अन्याय द्वारा येरुसालेम का निर्माण करते हो। उसके मुखिया घूस ले कर निर्णय देते हैं,
11) याजक पैसे ले कर ही शिक्षा देते हैं, उसके नबी धन माँग कर ही शाकुन विचारते हैं। यह सब करने पर भी वे प्रभु की शरण जा कर कहते हैं, ''प्रभु हमारे बीच में है! हम पर कोई विपत्ति नहीं आयेगी।''
12) अतः तुम्हारे कारण सियोन जुता हुआ खेत हो जायेगा, येरुसालेम खंडहरों का ढेर, और मन्दिर का पर्वत जंगल।

अध्याय 4

1) भविष्य में प्रभु के मन्दिर का पर्वत पहाड़ों से ऊपर उठेगा और पहाडियों से ऊँचा होगा। लोग बड़ी संख्या में यहाँ आयेंगे।
2) बहुत-से राष्ट्र यह कह कर यहाँ के लिए प्रस्थान करेंगे, ''आओ हम प्रभु के पर्वत, याकूब के ईश्वर के मन्दिर चल दें, जिससे वह हमें अपने मार्ग सिखाये और हम उसके पथ पर चलते रहें; क्योंकि सियोन से संहिता प्रकट होगी और येरुसालेम से प्रभुु की वाणी।
3) वह असंख्य लोगों का शासन करेगा और दूरवर्ती शक्तिशाली राष्ट्रों के आपसी झगड़े मिटायेगा। वे अपनी तलवार को पीट-पीट कर फाल और अपने भाले को हँसिया बनायेंगे। राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध-विद्या की शिक्षा समाप्त हो जायेगी।
4) इस प्रकार सब लोग अपने-अपने अंगूर और अंजीर के पेड के नीचे शान्तिपूर्वक बैठेंगे, क्योंकि विश्वमण्डल के प्रभु ने स्वयं यह कहा है।''
5) राष्ट्रों के लोग अपने-अपने देवता के नाम पर चलते हैं, पर हम सदा-सर्वदा प्रभु-ईश्वर के ही नाम पर चलते रहते हैं।
6) प्रभु यह कहता हैः उस दिन मैं लँगडे-लूलों को इकट्ठा करूँगा और बिखरे हुओं को एकत्रित करूँगा तथा उन को भी, जिन्हें मैंने दण्ड दिया था।
7) जीवित बच गये लँगडे-लूलों और निर्वासितों में से मैं शक्तिशाली राष्ट्र बनाऊँगा। और उस समय से आगे और अनन्त काल तक सियोन पर्वत पर से प्रभु-ईश्वर उन पर शासन करता रहेगा।
8) गल्ला-बुर्ज, सियोन-पुत्री की पहाड़ी! तुझ को तेरी प्राचीन प्रभुसत्ता लौटा दी जायेगी। और येरुसालेम-पुत्री को उसका राज्याधिकार भी।
9) येरुसालेम नगरी! तू क्यों चिल्लाती है? क्या तेरे यहाँ कोई राजा नहीं? क्या तेरा कोई मंत्री नहीं कि तू प्रसव-पीडा में गर्भवती स्त्री की तरह तपड रही है।?
10) सियोन-पुत्री! प्रसूता स्त्री के समान छटपटा और कराह ले, तुझे अब नगर छोड कर भागना और बेघरबार रहना पडेगा। पहले तुझे बाबुल जाना पडेगा; वहाँ से प्रभु तुझे छुडायेगा और तेरे शत्रुओं के चंगुल से तेरा उद्वार करेगा।
11) अभी अनेक राष्ट्र तेरे विरुद्ध तैनात हैं; वे कहते हैं, ''इसे भ्रष्ट कर दिया जाये कि हम सियोन के पतन पर आनन्द मनायें''।
12) किंतु वे प्रभु के विचार क्या जानते, वे प्रभु की यह योजना क्या समझते हैं कि उसने उन को वैसे ही इकट्ठा किया है, जैसे खलिहान में पूले इकट्ठे किये जाते हैं,।
13) सियोन-पुत्री! उठ कर दँवरी कर; मैं तेरी सींग लोहे के और तेरे खुर काँसे के बना दूँगा, जिससे तू अनेक राष्ट्रों को रौंद सकेगी। तू उनकी सम्पत्ति लूट कर प्रभु को समार्पित कर, उनका धन समस्त पृथ्वी के प्रभु के चरणों में सौंप दे।
14) अब तू दीवार के भीतर हट जा और किलाबन्दी ठीक कर, क्योंकि शत्रुओं ने घेरा डाल रखा है, कि वे इस्राएल के शासक के मुँह पर तमाचा मारें।

अध्याय 5

1) बेथलेहेम एफ्राता! तू यूदा के वंशों में छोटा है। जो इस्राएल का शासन करेगा, वह मेरे लिए तुझ में उत्पन्न होग। उसकी उत्पत्ति सुदूर अतीत में, अत्यन्त प्राचीन काल में हुई है।
2) इसलिए प्रभु उन्हें तब तक त्याग देगा, जब तक उसकी माता प्रसव न करे। तब उसके बचे हुए भाई इस्राएल के लोगों से मिल जायेंगे।
3) वह उठ खडा हो जायेगा, वह प्रभु के सामर्थ्य से तथा अपने ईश्वर के नाम प्रताप से अपना झुण्ड चरायेगा। वे सुरक्षा में जीवन बितायेंगे, क्योंकि वह देश के सीमान्तों तक अपना शासन फैलायेगा
4) और शांति बनाये रखेगा। जब अस्सूरी लोग हमारे देश पर आक्रमण करेंगे और हमारी भूमि में घुसपैठ करेंगे, तब हम उनके विरुद्ध सात चरवाहों और आठ शासकों को नियुक्त करेंगे।
5) वे तलवार से अस्सूर को और निभ्रोद को हाथ में तलवार लिये हाँक देंगे। अतः जब अस्सूर वाले हमारे देश पर आक्रमण करेंगे और हमारी सीमाओं को पार कर हमारी भूमि में घुसेंगे, तब वे ही हमारा उद्धार करेंगे।
6) जीवित बच गये याकूबवंशी राष्ट्रों के बीच वैसे ही विद्यमान होंगे, जैसे प्रभु ईश्वर से उतरे हुए ओस-कण अथवा घास को सींचती वर्षा, जिन को न मनुष्यों की आज्ञा आवश्यक है, न मनुष्यों से पुरस्कार की अपेक्षा रहती है।
7) जीवित बच गये याकूबवंशी राष्ट्रों के बीच वैसे ही विद्यमान होंगे, जैसे जंगली जानवरों के बीच सिंह या रेवड में शिकार खेलते सिंह का शावक, जो मनमाने ढंग से भेड़ों को कुचलता और चीर-फाड डालता है- उसे किसी से डर नहीं
8) तू अपने विरोधियों पर हाथ उठायेगा और तेरे सब शत्रु परास्त हो जायेंगे।
9) प्रभु यह कहता हैः उस दिन मैं तेरे सब घोड़ों को नष्ट करूँगा और तेरे रथों को चूर-चूर करूँगाः
10) मैं तेरे देश के सब नगरों को ध्वस्त कर दूँगा और तेरे सारे गढों को ढा दूँगा;
11) मैं तुझ से किया जा रहा जादू-टोना समाप्त कर दूँगा और शकुन विचारना बन्द कर दूँगा;
12) मैं तेरी दूवमूर्तियाँ ध्वस्त कर दूँगा और तरे पूजास्थान भी; तब तू अपने हाथ की बनायी वस्तुओं की पूजा नहीं कर सकेगा;
13) मैं तेरे यहाँ की अशेरा-देवी की मूर्तियाँ उखाड दूँगा और तेरे नगरों का विनाश करूँगा। जो राष्ट्र मेरे विधान का पालन नहीं करते, मैं उन से भयंकर क्रोध से बदला लूँगा।

अध्याय 6

1) प्रभु का यह कहना सुनो- ''उठो! पहाड़ों के सामने अपनी सफाई दो। पहाडियों को अपनी बात सुनाओ।''
2) पर्वतों! पृृथ्वी को सँभालने वाले चिरस्थायी खंबो! प्रभु का मुकदमा सुनो। वह इस्राएल पर अभियोग लगा रहा है :
3) ''मेरी प्रजा! मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया? मैंने तुम को क्या कष्ट दिया? मुझे उत्तर दो।
4) मैं तुम को मिस्र से निकाल लाया, मैंने तुम को दासता के घर से छुडाया। मैंने पथप्रदर्शक के रूप में मूसा, हारून और मिरयम को तुम्हारे पास भेजा।
5) मेरे लोगो, याद करो कि मोआब के राजा बालाक ने कैसा कुचक्र रचा था और बओर के पुत्र, बलिआम ने उसे कैसा उत्तर दिया था; याद रहे कि शिट्टीम से गिलगाल तक क्या-क्या हुआ था, जिससे तुम प्रभु के उद्धार के कायोर्ं को समझ सको।''
6) ''मैं क्या ले कर प्रभु के सामने आऊँगा और सर्वोच्य ईश्वर को दण्डवत करूँगा? क्या मैं होम ले कर उसके सामने आऊँगा? अथवा एक वर्ष के बछड़ों को?
7) क्या ईश्वर हजारों मेढ़ों से प्रसन्न होगा? अथवा तेल की कोटि-कोटि धाराओं से? क्या मैं अपने अपराध के प्राश्श्चित्तस्वरूप आपने पहलौठे को अपने पाप के बदले में अपने शरीर के फल को अर्पित करूँगा?''
8) ''मनुष्य! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।''
9) प्रभु-ईश्वर की वाणी। यह नगर का सम्बोधन कर रहा है- प्रभु के नाम का आदर करना हितकर है। यूदा के वंश और नगर की परिषद् के सदस्यों! सुनो।
10) क्या मैं नाप-जोख में छल-कपट सहन करूँगा, अथवा खोटे बटखरे से घृणा न करूँ?
11) क्या मैं उस व्यक्ति को बिना दण्ड के ही छोड़ दूँ, जो खोटे तराजू का प्रयोग करता है और अपनी थैली में खोटे बाट रखता है?
12) तेरे धनवान् लोगों में हिंसावृत्ति भरी है, तेरे निवासी झूठ-पर-झूठ बोलते हैं और उनकी बातचीत कपटपूर्ण होती है।
13) इसीलिए तेरे पापों के कारण ही मैंने तुझ पर आघात करना और तेरा विध्वंस करना प्रारंभ किया है।
14) तू खायेगा, पर भूख मिटेगी नहीं, पेट हमेशा खाली रहेगा; बचाने पर भी तू कुछ न संचित कर सकेगा; और जो कुछ बेचेगा भी, उसे दसूरे आकर तलवार के बल पर छीन लेंगे।
15) तू बोयेगा, किन्तु काट नहीं पायेगा; भले ही तू जैतून का तेल निकालेगा, पर उसे अपने ही बदन पर कभी न लगा पायेगा; तू अंगूर का रस निचोडेगा, किन्तु अंगूरी नहीं पी पायेगा।
16) तूने तो ओम्री के विधानों का पालन किया अहाब के घराने की सब रीतियों का अनुसरण किया और अपने रहन-सहन में उनका अनुकरण भी किया। अतः मैं तुझ को उजाड दूँगा और तेरे निवासियों को उपहास का पात्र बना दूँगा; तुझे दूसरी जातियों की निंदा सहनी पडेगी।

अध्याय 7

1) हाय, मनचाही वस्तु नहीं मिलती! गर्मी के दिन बीत गये हैं, तो मैं फल तोडने गया, पर मैंने पाया कुछ नहीं! अंगूर की फ़सल बटोरी गयी है और गिरे हुए फलों का बीनना भी समाप्त हो गया, तो मैं बेकार ही अंगूर तोडने गया; और न मुझे अंजीर ही मिला, जिसके लिए मैं ललचा रहा था।
2) वैसे ही पृथ्वीतल पर से धर्मियों का लोप हो गया है, न मनुष्य जाति में कोई सच्चा भक्त रह गया। सब लोग खून करने के लिए घात लगाये रहते हैं, या अपने भाई को गिराने के लिए जाल बिछाये रहते हैं।
3) वे दुष्कर्म करने में निपुण हैं; शासक और न्यायाधीश घूसखोर हैं, शक्तिशाली लोग मनमानी करते हैं- इस सब में साँठ-गाँठ हैं।
4) जो अच्छे हैं वे भी झाड़-झंखाड़ की तरह निहित-स्वार्थ में उलझे हुए हैं; जो धर्मी हैं, वे ही काँटेदार बाड़ की तरह ढकोसले से घिरे हैं। उनके दण्ड का दिन निश्चित है, वह उत्तर की ओर से आयेगा; उनके लिए वह लज्जा और आतंक का समय होगा।
5) अपने पडोसी का भी विश्वास मत करो, अपने मित्र पर भी भरोसा मत रखो अपनी प्रिय पत्नी से भी बोलने में सावधान रहो।
6) पुत्र तो अपने पिता को तुच्छ मानता है, पुत्री माँ का और बहू सास का विरोध करती है। मनुष्य के घर वाले ही उसके शत्रु बन गये हैं।
7) मैं प्रभु की राह देखता रहूँगा, मैं अपने मुक्तिदाता पर भरोसा रखूँगा। मेरा ईश्वर मेरी प्रार्थना स्वीकार करेगा।
8) मैं अपने शत्रुओं के उपहास का कारण न बनूँ। मैं गिर गया हूँ, किन्तु खडा हो जाऊँगा; मैं अन्धकार मे बैठा हूँ, किन्तु प्रभु मेरी ज्योति है।
9) मैंने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है, इसलिए मुझे तब तक उसका क्रोध सहना पडेगा जब तक वह मेरे मामले पर विचार न करे और मुझे न्याय न दिलाये। वह मुझे ज्योति तक ले जायेगा और मैं उसकी न्यायप्रियता के दर्शन करूँगा।
10) यह देख कर मेरी उस बैरिन को मुँह बा कर रहना पडेगा, जिसने मुझे यह कह कर चिढाया था, ''प्रभु, तेरा ईश्वर कहाँ है?'' वह गली के कीचड की तरह पददलित कर दी जायेगी; तब मेरी आँँखें उसे घूर कर तृप्त हो जायेंगी।
11) येरुसालेम! तुझे अपना प्राचीर पुनः खडा करने का दिन आयेगा; उस दिन तेरी सीमा का विस्तार होगा।
12) उस दिन अस्सूर से मिस्र तक के, मिस्र से फ़ारत नदी तक के, एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक के और एक पर्वत से दूसरे पर्वत तक के लोग तेरी शरण आयेंगे।
13) उसके निवासियों के दुष्कमोर्ं के प्रतिकार-स्वरूप पृथ्वी उजाड हो जायेगी।
14) तू अपना डण्डा ले कर अपनी प्रजा, अपनी विरासत की भेडें चराने की कृपा कर। वे जंगल और बंजर भूमि में अकेली ही पडी हुई है। प्राचीन काल की तरह उन्हें बाशान तथा गिलआद में चरने दे।
15) जिन दिनों तू हमें मिस्र से निकाल लाया, उन्हीं दिनों की तरह हमें चमत्कार दिखा।
16) यह देख कर विजातियों को हताश होना पडेगा, चाहे वे कितनी भी शक्तिशाली रहे हो; कोई दाँतों तले उँगली दबाये रहेंगे। और कोई कान पर हाथ रखे रहेंगे।
17) वे साँप के समान धूल चाटेंगे, जमीन पर रेंगने वाले कीड़ों की ही तरह। वे काँपते हुए अपने गढ़ों से बाहर निकलेंगे, और भयभीत को कर प्रभु, हमारे ईश्वर के सामने आयेंगे; प्रभु-ईश्वर! तू ही उनके भय का कारण है।
18) तेरे सदृश कौन ऐसा ईश्वर है, जो अपराध हरता और अपनी प्रजा का पाप अनदेखा करता हैं; जो अपना क्रोध बनाये नहीं रखता, बल्कि दया करना चाहता हैं?
19) वह फिर हम पर दया करेगा, हमारे अपराध पैरों तले रौंद देगा और हमारे सभी पाप गहरे समुद्र में फेंकेगा।
20) तू याकूब के लिए अपनी सत्यप्रतिज्ञता और इब्राहीम के लिए अपनी दयालुता प्रदर्शित करेगा, जैसी कि तूने शपथ खा कर हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की है।