पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

गणना ग्रन्थ ( Numbers )

अध्याय 1

1) मिस्र देष से बाहर आने पर, दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के पहले दिन, प्रभु ने सीनई के उजाड़खण्ड में, दर्षन-कक्ष में, मूसा से यह कहा,
2) ''तुम कुलों और घरानों के अनुसार सारे समुदाय के उनसब पुरुषों की गणना करो,
3) जो सैनिक सेवा के योग्य हों और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक हो। तुम हारून के साथ उन पुरुषों का उनके दल के अनुसार नाम लिखवाओ।
4) प्रत्येक वंष का एक ऐसा पुरुष तुम्हारी सहायता करेगा, जो अपने घराने का मुखिया हो।
5) तुम्हारी सहायता करने वालों के नाम ये हैं : रूबेन के लिए शदेऊर का पुत्र एलीसूर,
6) सिमओन के लिए सूरीषद्दय का पुत्र शलुमीएल,
7) यूदा के लिए अम्मीनादाब का पुत्र नहषोन,
8) इस्साकार के लिए सूआर का पुत्र नतनएल,
9) जबुलोन के लिए हेलोन का पुत्र एलीआब,
10) यूसुफ़ के पुत्र एफ्र+ईम के लिए अम्मीहूद का पुत्र एलीषामा और मनस्से के लिए पदाहसूर का पुत्र गमलीएल,
11) बेनयामीन के लिए गिदओनी का पुत्र आबीदान,
12) दान के लिए अम्मीषद्दय का पुत्र अहीएजेर,
13) आषेर के लिए ओक्रान का पुत्र पगीएल,
14) गाद के लिए दऊएल का पुत्र एल्यासाफ
15) और नफ्+ताली के लिए एनान का पुत्र अहीरा।''
16) यही समुदाय में से नियुक्त किये गये। ये अपने-अपने वंषों के नेता और इस्राएली कुलों के मुखिया थे।
17) इस पर मूसा और हारून ने उन नियुक्त पुरुषों को बुलाया
18) और दूसरे महीने के पहले दिन सारे समुदाय को एकत्रित किया। बीस वर्ष या इस से अधिक के सब पुरुषों का अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया।
19) प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, उसी तरह उसने सीनई के उजाड़खण्ड में लोगों की जनगणना की।
20) इस्राएल के पहलौठे पुत्र रूबेन के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
21) उनकी संख्या छियालीस हज+ार पाँच सौ थी।
22) सिमओन के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
23) उनकी संख्या उनसठ हज+ार तीन सौ थी।
24) गाद के सब पुरुष वंशजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
25) उनकी संख्या पैंतालीस हज+ार साढ़े छह सौ थी।
26) यूदा के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
27) उनकी संख्या चौहत्तर हज+ार छः सौ थी।
28) इस्साकार के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
29) उनकी संख्या चौवन हज+ार चार सौ थी।
30) जबुलोन के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
31) उनकी संख्या सत्तावन हज+ार चार सौ थी।
32) यूसूफ के पुत्र एफ्रईम के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया।
33) उनकी संख्या चालीस हज+ार पाँच सौ थी।
34) यूसुफ़ के पुत्र मनस्से के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
35) उनकी संख्या बत्तीस हज+ार दो सौ थी।
36) बेनयामीन के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया-
37) उनकी संख्या पैंतीस हज+ार चार सौ थी।
38) दान के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
39) उनकी संख्या बासठ हज+ार सात सौ थी।
40) आषेर के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
41) उनकी संख्या इकतालीस हज+ार पाँच सौ थी।
42) नफ्ताली के सब पुरुष वंषजों का, जो सैनिक सेवा के योग्य थे और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक थी, अपने कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया गया -
43) उनकी संख्या तिरपन हज+ार चार सौ थी।
44) यही मूसा और हारून द्वारा की गयी गणना की संख्याएँ हैं। इस्राएलियों में से बारह नेताओं ने, हर वंष के एक प्रतिनिधी ने, उनकी सहायता की।
45) इस्राएल में जो पुरुष बीस वर्ष और इस से अधिक के थे तथा जो सैनिक सेवा के योग्य थे, उन सब इस्राएलियों की उनकी घरानों के अनुसार गणना की गयी।
46) उनकी कुल संख्या छः लाख तीन हज+ार साढ़े पाँच सौ थी।
47) अन्य इस्राएलियों के साथ लेवियों का अपने कुलों के अनुसार नामांकन नहीं किया गया,
48) क्योंकि प्रभु ने मूसा से कहा था,
49) ''लेवी वंष का नामांकन नहीं करोगे और अन्य इस्राएलियों के साथ उनकी जनगणना नहीं करोगे।
50) तुम लेवियों को विधान पत्र के तम्बू और उसके सारे साज++-सामान पर नियुक्त करोगे। वे तम्बू और उसके सारे साज+-सामान उसकी देख-भाल करेंगे। वे तम्बू और उसका सारा साज-सामान ढोयेंगे। वे उसकी देख-भाल करेंगे और उसके चारों ओर पड़ाव डाला करेंगे।
51) जब-जब तम्बू को आगे ले जाना होगा, खड़ा करना होगा, तो लेवी उसे उखाड़ेंगे और जब-जब तम्बू खड़ा करना होगा, तो लेवी ही यह काम करेंगे। यदि कोई दूसरा उसके पास जायेगा, तो उसे मृत्युदण्ड दिया जायेगा,
52) अन्य इस्राएली अपने-अपने दल के अनुसार तम्बू खड़े करेंगे, हर एक अपने पड़ाव में और अपने झण्डे के पास रहेगा;
53) किन्तु लेवी विधान-पत्र के तम्बू के चारों ओर पड़ाव डालेगे, जिससे इस्राएली समाज पर कोई विपत्ति न आये। लेवी वंषी विधान पत्र के तम्बू की देखभाल करेंगे।''
54) इस्राएलियों ने ऐसा ही किया - ठीक वैसा ही, जैसा प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।

अध्याय 2

1) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
2) ''सभी इस्राएली अपने दल के साथ, अपने घराने के झण्डे के साथ अपना पड़ाव डालेंगे। वे दर्षन-कक्ष के चारों ओर कुछ दूरी पर अपने पड़ाव डालेंगे।
3) यूदावंषी पूर्व की ओर, सूर्योदय की दिषा में अपने-अपने दलों के अनुसार अपना झण्डा खड़ा करेंगे। अम्मीनादाब का पुत्र नहषोन यूदा वंष का नेता होगा।
4) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या चौहत्तर हज+ार छः सौ हैं।
5) उसके पास इस्साकारवंषी अपना पड़ाव डालेंगे। सूआर का पुत्र नतनएल इस्साकार वंष का नेता होगा।
6) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या चौवन हजार चार सौ है।
7) फिर ज+बुलोन वंषी हेलोन का पुत्र अलीआब ज+बुलोन वंश का नेता होगा।
8) उसके नामांकित सैनिकों की कुल संख्या सत्तावन हज+ार चार सौ है।
9) अपन-अपने दलों के अनुसार यूदा के षिविर के नामांकित सैनिकों की कुल संख्या एक लाख छियासी हज+ार चार सौ है। वे पहले प्रस्थान करेंगे।
10) रूबेनवंषी दक्षिण की ओर अपने-अपने दलों के अनुसार अपना-अपना झण्डा खड़ा करेंगे। शदेऊर का पुत्र एलीसूर रूबेन वंष का नेता होगा।
11) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या छियालीस हजार पाँच सौ है।
12) उसके पास सिमओनवंषी अपना पड़ाव डालेंगे। सूरीषद्दय का पुत्र शलुमीएल सिमओन वंष का नेता होगा।
13) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या उनसठ हज+ार तीन सौ है।
14) फिर गादवंषी।
15) दऊएल का पुत्र एल्यासाफ गाद वंष का नेता होगा। उसके नामांकित सैनिकों की संख्या पैंतालीस हजार साढ़े छः सौ है।
16) अपने-अपने दलों के अनुसार रूबेन के षिविर के नामांकित सैनिकों की कुल संख्या एक लाख इक्यावन हज+ार साढ़े चार सौ है। प्रस्थान क्रम में उनका स्थान दूसरा होगा।
17) इसके बाद अन्य पड़ावों के बीचों बीच लेवियों के पड़ाव के साथ दर्षन-कक्ष प्रस्थान करेगा। वे अपने-अपने तम्बूओं के क्रम से अपने-अपने झुण्ड़ों के साथ प्रस्थान करेंगे।
18) एफ्र+ईमवंषी पष्चिम की ओर अपने-अपने दलों के अनुसार अपना झण्डा खड़ा कर दें। अम्मीहूद का पुत्र एलीषामा एफ्र+ईमवंष का नेता होगा।
19) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या चालीस हज+ार पाँच सौ है।
20) उसके पास मनस्सेवंषी। पदाहसूर का पुत्र गमलीएल मनस्से वंष का नेता होगा।
21) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या बत्तीस हजार दो सौ है।
22) फिर बेनयामीनवंषी।
23) गिदओनी का पुत्र अबीदान बेनयामीन वंष का नेता होगा। उसके नामांकित सैनिकों की संख्या पैंतीस हज+ार चार सौ है।
24) अपने-अपने दलों के अनुसार एफ्र+ईम के षिविर के नामांकित सैनिकों की कुल संख्या एक लाख आठ हज+ार एक सौ है। प्रस्थान क्रम में उनका स्थान तीसरा होगा।
25) दानवंषी उत्तर की ओर अपने दलों के अनुसार अपना झण्डा खड़ा करेंगे। अम्मीषद्दय का पुत्र अहीएजेर दान वंष का नेता होगा।
26) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या बासठ हज+ार सात सौ है।
27) उसके पास आषेरवंषी अपना पड़ाव डालेंगे। ओक्रान का पुत्र पगीएल आषेर वंष का नेता होगा।
28) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या इकतालीस हज+ार पाँच सौ है।
29) फिर नफ्+तालीं वंषी। एनान का पुत्र अहीरा नफ्ताली वंष का नेता होगा।
30) उसके नामांकित सैनिकों की संख्या तिरपन हज+ार चार सौ है।
31) अपने-अपने दलों के अनुसार षिविर के नामांकित सैनिकों की कुल संख्या एक लाख सत्तावन हजार छः सौ है। वे सब के बाद अपने-अपने झण्डों के साथ प्रस्थान करेंगे।
32) अपने-अपने घरानों के अनुसार नामांकित इस्राएली यही हैं। अपने-अपने दलों के अनुसार षिविरों के नामांकित सैनिकों की कुल संख्या छः लाख तीन हजार साढ़े पाँच सौ है।
33) प्रभु द्वारा मूसा को दिये गये आदेष के अनुसार लेवियों की गणना अन्य इस्राएलियों के साथ नहीं की गयी।
34) प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, इस्राएलियों ने ठीक वैसा ही किया। वे अपने झण्ड़ों के पास पड़ाव डाला करते थे और अपने-अपने कुलों और घरानों के अनुसार प्रस्थान करते थे।

अध्याय 3

1) जिस समय प्रभु ने सीनई पर्वत पर मूसा से बातें की, उस समय हारून और मूसा के पुत्र ये थे।
2) हारून के पुत्रों के नाम ये थे : पहलौठा नादाब, अबीहू, एलआज+ार और ईतामार।
3) हारून के इन पुत्रों का अभिषेक हुआ और इनकी नियुक्ति याजक-कार्य के लिए हुई थी।
4) नादाब और अबीहू की मृत्यु प्रभु के सामने हो गयी थी, जब कि वे सीनई के उजाड़खण्ड में प्रभु को अवैध अग्नि अर्पित करना चाहते थे। उनके कोई पुत्र नहीं था। इसलिए एलआजार और ईतामार ही अपने पिता हारून के निर्देषन में याजकीय काम करते थे।
5) प्रभु ने मूसा से कहा,
6) ''लेवीवंषियों को बुला कर उन्हें याजक हारून की सहायता के लिए नियुक्त करो।
7) वे तम्बू की सेवा करेंगे और दर्षन-कक्ष के सामने हारून तथा समस्त समुदाय का कार्यभार संभालेंगे।
8) वे दर्षन-कक्ष की सब सामग्रिायों की देख-भाल करेंगे और तम्बू की सेवा करते हुए इस्राएलियों के कर्त्तव्यों का पालन करेंगे।
9) तुम इस्राएलियों की ओर से लेवियों को हारून और उसके पुत्रों की सेवा में अर्पित करोगे।
10) हारून और उसके पुत्रों को याजकीय सेवा में नियुक्त करो। यदि कोई अनधिकारी व्यक्ति यह करे, तो उसका वध किया जाये।''
11) प्रभु ने मूसा से यह भी कहा,
12) मैं इस्राएलियों के बीच उनके पहलौठे पुत्रों के स्थान पर लेवियों को चुनता हूँ। लेवीवंषी मेरे ही होंगे। सब पहलौठे पुत्र मेरे हैं।
13) जिस दिन मैंने मिस्र देष में सब पहलौठे बच्चों को मार डाला था, उसी दिन से मैंने इस्राएलियों में प्रत्येक पहलौठे बच्चें को, चाहे वह मनुष्य हो या पशु, अपना ही मान लिया है। इसलिए वे मेरे हैं। मैं प्रभु हूँ।''
14) सीनई के उजाड़खण्ड में प्रभु ने मूसा से कहा,
15) ''तुम सब पुरुष लेवीवंषियों का, जिनकी अवस्था एक महीना या इस से अधिक है, उनके कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन करो।''
16) मूसा ने प्रभु के आदेष के अनुसार उनका नामांकन किया।
17) लेवी के पुत्रों के नाम ये हैं : गेरषोनो, कहात और मरारी।
18) अपने-अपने कुलों के अनुसार गेरशोन के पुत्रों के नाम ये हैं : लिबनी और षिमई।
19) अपने-अपने कुलों के अनुसार कहात के पुत्र ये हैं : अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, उज्जीएल।
20) अपने-अपने कुलों के अनुसार मरारी के पुत्र ये हैं : महली और मूषी। ये हैं अपने-अपने घरानों के अनुसार लेवियों के कुल।
21) गेरषोन से लिबनी और षिमई के कुल उत्पन्न हुए। ये गेरषोनियों के कुल हैं।
22) इन में एक महीने के बालक और इस से ऊपर के सब नामांकित पुरुषों की संख्या सात हज+ार पाँच सौ थी।
23) गेरषोन के कुटुम्बियों के पड़ाव निवास के पीछे पष्चिम की ओर थे।
24) गेरषोनियों के घरानों का मुखिया लाएल का पुत्र एल्यासाफ था।
25) गेरषोनियों को दर्षन-कक्ष में इन वस्तुओं की देखभाल करनी थी - निवास और तम्बू, उसका आवरण, दर्षन-कक्ष के प्रवेष का परदा,
26) आँगन के परदे, निवास और वेदी के चारों ओर के आँगन के द्वार का परदा, उसके लिए सब आवष्यक रस्सियाँ और इन्हीं से संबंधित अन्य सब कार्य।
27) कहात से अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल के कुल उत्पन्न हुए। ये कहातियों के कुल हैं।
28) इन में एक महीने और इस से ऊपर के सब नामांकित पुरुषों की संख्या आठ हजार छः सौ थी। ये पवित्र स्थान की सेवा करते थे।
29) कहात के कुटुम्बियों के पड़ाव निवास के दक्षिण की ओर थे।
30) कहातियों के घरानों का मुखिया उज्जीएल का पुत्र एलीसाफान था।
31) इन्हें मंजूषा, मेज, दीपवृक्ष, वेदियों, सेवा-कार्य में प्रयुक्त पवित्र-स्थान की वस्तुओं और अन्तरपट की देखभाल करनी थी और इन्हीं से संबंधित अन्य सब कार्य।
32) लेबियों के नेताओं का प्रधान याजक हारून का पुत्र एलआजार था। उसका कार्य पवित्र-स्थान की सेवा करने वालों का निरीक्षण करना था।
33) मरारी से महली और मूषी के कुल उत्पन्न हुए। ये मरारियों के कुल हैं
34) इन में एक महीने और इस से ऊपर के सब नामांकित पुरुषों की संख्या छः हजार दो सौ थी।
35) मरारियों के घरानों का मुखिया अबीहैल का पुत्र सूरीएल था। उनका पड़ाव उत्तर की ओर था।
36) मरारियों को तम्बू की चौखटों, छड़ों, खूँटों, कुर्सियों और उनके सारे सामान की देखभाल करनी थी और इन्हीं से संबंधित अन्य कार्य;
37) इसके अतिरिक्त चारों ओर के आँगन के खूँटों, उनकी कुर्सियों, खूँटियों और रस्सियों की देखभाल।
38) निवास के सामने, अर्थात दर्षन-कक्ष के पूर्व ओर, सूर्योदय की दिषा में मूसा, हारून तथा उनके पुत्रों का पड़ाव था। उन्हें इस्राएलियों के लिए पवित्र-स्थान की सेवा करनी थी। यदि कोई अनधिकारी व्यक्ति यहाँ जाता, तो उसका वध किया जाता।
39) एक महीने और इस से ऊपर के लेवियों के पुरुषों की, जिनका मूसा और हारून ने प्रभु के आदेष से उनके कुलों के अनुसार नामांकन किया था, कुल संख्या बाईस हज+ार थी।
40) प्रभु ने मूसा से कहा, ''एक महीने और इस के ऊपर के पहलौठे इस्राएली पुरुषों का नामांकन करो और उनकी गणना करो।
41) सब पहलौठे इस्रालियों के स्थान पर लेवियों को और इस्राएलियों के पशुओं के पहलौठे के स्थान पर लेवियों के पशुओं को मेरे लिए अलग करो। मैं प्रभु हूँ।''
42) मूसा ने प्रभु के आदेष के अनुसार सब पहलौठे इस्राएलियों का नामांकन किया।
43) एक महीने और इस से ऊपर के नामांकित पहलौठे पुरुषों की कुल संख्या बाईस हज+ार दो सौ तिहत्तर थी।
44) प्रभु ने मूसा से यह भी कहा,
45) ''इस्राएलियों के सब पहलौठे पुरुषों के स्थान पर लेवियों को और इस्राएलियों के पशुओं के पहलौठों के स्थान पर लेवियों के पशुओं को लो। लेवी मेरे हैं। मैं प्रभु हूँं।
46) पहलौठे इस्राएलियों की संख्या लेवियों की संख्या से दो सौ तिहत्तर अधिक हैं।
47) उनके विमोचन के लिए तुम प्रति पुरुष के लिए पाँच शेकेल लो। वे पवित्र स्थान के शेकेलों की तौल के अनुसार हों - प्रत्येक शेकेल में बीस गेरा।
48) तुम यह द्रव्य जिससे उन लोगों का विमोचन किया जायेगा, जो लेवियों से अधिक हैं-हारून और उसके पुत्रों को दोगे।
49) (४९-५०)मूसा ने अतिरिक्त पहलौठे, इस्राएलियों के लिए पवित्र-स्थान के शेकेलों के हिसाब से एक हजार तीन सौ पैंसठ शेकेल वसूल किये।
51) मूसा ने प्रभु के आदेष के अनुसार यह द्रव्य हारून और उसके पुत्रों को दिया।

अध्याय 4

1) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
2) ''लेवियों में से उन कहातियों उनके विभिन्न कुलों और घरानों के अनुसार जनगणना करो,
3) जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के हैं और जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य हैं।
4) दर्षन-कक्ष में कहातियों का कार्य है - परमपवित्र वस्तुओं की देखभाल।
5) जब षिविर को उठाना होगा, हारून और उसके पुत्र अन्दर जा कर अन्तर पट उतारेंगे और उस से विधान-पत्र की मंजूषा ढक देंगे।
6) वे उसके ऊपर सूस के चमड़े का एक आवरण रखेंगे और उसके ऊपर नीला कपड़ा बिछायेंगे। इसके बाद वे उस में उसके डण्डे लगायेंगे।
7) भेंट की रोटियों की मेज+ पर वे नीला कपड़ा बिछायेंगे और उस पर थालियाँ, कलछे, घड़े और अर्घ के लिए प्याले रखेंगे। जो रोटियाँ उस पर बराबर रखी रहती हैं, वे भी उस पर रहेंगी।
8) वे उन वस्तुओं पर लाल कपड़ा बिछायेंगे, उस पर सूस के चमड़े का आवरण रखेंगे और मेज में उसके डण्डे लगायेंगे।
9) वे नीले रंग के कपड़े से दीपवृक्ष, उसके दीपक, उसके गुलतराष और किष्तियाँ और तेल के पात्र ढक देंगे।
10) वे उसे और उसकी सारी सामग्री सूस के चमडे+ में लपेट लेंगे और उसे ले जाने के तख्ते पर रख देंगे।
11) वे सोने की वेदी पर नीले रंग का कपड़ा बिछा कर उसके ऊपर सूस के चमड़े का आवरण डाल देंगे और उस में उसके डण्डे लगा देंगे।
12) तब वे पवित्र सेवा के लिए सब आवष्यक अन्य वस्तुओं को नीले रंग के कपड़ें और सूस के चमड़े के आवरण से ढकेंगे और उन्हें ले जाने के तख्ते पर रख देंगे।
13) वे वेदी पर की राख उठा कर उसके ऊपर नीले रंग का कपड़ा रख देंगे।
14) तब उसके ऊपर वेदी की सेवा में आने वाली सब वस्तुएँ रखेंगे, अर्थात् अँगीठियाँ, काँटे, फावड़ियाँ और कटोरे। उनके ऊपर सूस के चमड़े का आवरण रखेंगे और वेदी में उसके डण्डे लगायेंगे।
15) जब षिविर उठाया जायेगा, तब हारून और उसके पुत्र पवित्र स्थान और सब पवित्र वस्तुओं को कपड़ों से वेष्टित करेंगे। इसके बाद ही कहात के वंषज उन्हें उठाने के लिए आयेंगे, परन्तु वे पवित्र वस्तुओं का स्पर्ष नहीं करेंगे। नहीं तो उनकी मृत्यु हो जायेगी। यही दर्षन-कक्ष की वे वस्तुएँ हैं, जिन्हें कहाती ढोया करेंगे।
16) ''याजक हारून के पुत्र एलआजार के ये कर्तव्य होंगे : दीपकों के तेल, सुगन्धित द्रव्य, दैनिक अन्न-बलि और अभ्यंजन के तेल का प्रबन्ध तथा पूरे निवास और उसके समान का निरीक्षण और पवित्र-स्थान और उसकी सामग्री की देखभाल।''
17) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
18) ''इसका ध्यान रखो कि लेवियों में से कहाती वंष का अन्त न हो जाये।
19) उनके कार्य की ऐसी व्यवस्था करो कि जब वे परम पवित्र वस्तुओं के पास आयें, तो उनकी मृत्यु न हो जाये। हारून और उसके पुत्र उन में से प्रत्येक को अपने-अपने सेवा कार्य और ढोयी जाने वाली वस्तु के स्थान पर ले जायें।
20) इस प्रकार वे पवित्र वस्तुओं को एक क्षण भी नहीं देख पायेंगे। नहीं तो उनकी मृत्यु हो जायेगी।''
21) फिर प्रभु ने मूसा से कहा,
22) ''उन गेरषोनियों की भी, उसके विभिन्न कुलों और घरानों के अनुसार, जनगणना करो,
23) जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के हैं और जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य हैं।
24) षिविर के परिवहन के समय गेरषोनी कुलों का कार्य यह होगा :
25) वे निवास के परदे और दर्षन-कक्ष, उसके आवरण, उसके ऊपर का सूस के चमड़े का आवरण और दर्षन-कक्ष के द्वार का परदा,
26) आँगन के परदे, तथा निवास और वेदी के चारों ओर के परदे, उनकी आवष्यक रस्सियाँ और उनकी सेवा में आने वाले सब सामान ढोयेंगे।
27) हारून और उसके पुत्रों के आदेष के अनुसार ही गेरषोनी सब कुछ ढोयेंगे और दूसरे काम करेंगे। तुम उन सब को समझाओगे कि वे क्या-क्या ढोयेंगे।
28) यह दर्षन-कक्ष से सम्बन्धित गेरषोनी कुलों का सेवा-कार्य होगा। याजक हारून के पुत्र ईतामार के निर्देषन में सेवा करेंगे।
29) ''तुम उन मरारियों का, उनके कुलों और घरानों के अनुसार, नामांकन करो,
30) जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के हैं और जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य हैं।
31) षिविर के परिवहन के समय उनका कार्य और दर्षन कक्ष में उनकी सेवा यह है : वे तम्बू की चौखटें, उसके छड़ खूँटे और कुर्सियाँ,
32) चारों ओर के आँगन के खूँटें उनकी र्कुसियाँ, खँटियाँ, रस्सियाँ और उनका सारा सामान और काम में आने वाली सब वस्तुएँ ढोयेंगे। तुम उन को समझाओ कि वे क्या-क्या ढोयेंगे।
33) यह दर्षन-कक्ष से संबंधित मरारी कुलों का सेवा-कार्य हैं। वे याजक हारून के पुत्र ईतामार के निर्देषन में सेवा करेंगे।''
34) मूसा, हारून और समुदाय के नेताओं ने, उनके कुलों और घरानों के अनुसार, कहातियों की जनगणना की,
35) अर्थात् उन सब की, जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के थे और जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य थे।
36) उनके कुलों के अनुसार उनकी संख्या दो हजार साढ़े सात सौ थी।
37) ये कहातियों के कुलों के सब पुरुष थे, जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य थे। मूसा और हारून ने उनका नामांकन किया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।
38) अपने अपने कुलों और घरानों के अनुसार उन नामांकित गेरषोनियों की, जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के थे।
39) और जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य थे,
40) संख्या दो हजार छःसौ तीस थी।
41) ये गेरषोनी कुलों के पुरुष थे, जो दर्षन-कक्ष की सेवा के लिए नियुक्त थे और जिनका नामांकन हारून ने प्रभु के आदेष के अनुसार किया।
42) (४२-४४) उनके कुलों और घरानों के अनुसार उन नामांकित मरारियों की, जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के थें और जो दर्षन-कक्ष में सेवा करने योग्य थे, संख्या तीन हजार दो सौ थी।
45) ये मरारी कुलों के पुरुष थे, जिनका नामांकन मूसा और हारून ने किया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।
46) मूसा और हारून ने जिन लेवियों का, उनके कुलों और घरानों के अनुसार नामांकन किया था,
47) जो तीस वर्ष से पचास वर्ष की उमर के थे और जो दर्षन-कक्ष में सेवा एवं परिवहन काम करने योग्य थे,
48) उनकी कुल संख्या आठ हज+ार पाँच सौ अस्सी थी।
49) प्रभु के आदेषों के अनुसार और मूसा के निर्देषन में सब को समझाया गया कि परिवहन में उन को क्या करना है वे प्रभु द्वारा मूसा को दिये हुए आदेष के अनुसार नियुक्त किये गये।

अध्याय 5

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों को आदेष दो कि वे प्रत्येक चर्मरोगी और प्रत्येक व्यक्ति को, जो स्राव से पीड़ित अथवा जो शव का स्पर्ष करने के कारण अपवित्र हो गया है, षिविर से बाहर कर दें।
3) ऐसे लोगों को - चाहे पुरुष हों या स्त्रियाँ - बाहर कर दो। उन्हें षिविर से बाहर कर दो, जिससे षिविर अपवित्र न हो जाये, जिस में मैं तुम लोगों के बीच निवास करता हूँ।''
4) इस्राएलियों ने ऐसा ही किया और उन्हें षिविर से बाहर कर दिया। प्रभु ने मूसा को जैसा कह दिया था, इस्राएलियों ने वैसा ही किया।
5) प्रभु ने मूसा से कहा,
6) ''इस्राएलियों से कहो कि यदि कोई पुरुष या स्त्री किसी के साथ अन्याय करता है और इस प्रकार ईष्वर के साथ विष्वासघात करता है, तो वह दोषी है।
7) वह अपना पाप स्वीकार करे और अपने द्वारा की गयी हानि की पूरी क्षतिर्पूति करे और उस में पाँचवाँ हिस्सा जोड़ कर उस व्यक्ति को दे, जिसके साथ उसने अन्याय किया।
8) यदि उस व्यक्ति का कोई निकट सम्बन्धी न हो, जिसे क्षतिर्पूति का द्रव्य दिया जा सके, तो वह द्रव्य प्रभु का है और वह याजक को क्षतिपूर्ति-यज्ञ के साथ दे दिया जाये।
9) ''जो चढ़ावे इस्राएली याजक के पास ले जाते हैं, उन सब का एक भाग याजक का होगा।
10) हर एक का चढ़ावा चढ़ाने वाले का है, किन्तु वह याजक को जो देता है, वह याजक का होगा।''
11) प्रभु ने मूसा से कहा,
12) ''इस्राएलियों से कहो कि यदि किसी पुरुष की पत्नी पथभ्रष्ट हो कर उसके साथ विष्वासघात करते हुए
13) परपुरुष के साथ प्रसंग करे और उसके पति को इसकी जानकारी न हो, क्योंकि दोष लगाने वाले साक्षी के अभाव के कारण उसका व्यभिचार छिपा रह गया
14) और यदि पति को ईर्ष्या के कारण अपनी पत्नी पर सन्देह हो गया और वह पथभ्रष्ट हो- अथवा यदि वह ईर्ष्या के कारण अपनी पत्नी पर संदेह और वह निर्दोष हो-
15) तो वह अपनी पत्नी को याजक के पास ले आये और उसके लिए चढ़ावे के रूप में दो सेर जौ का मैदा भी ले आये। वह उस चढ़ावे पर न तो तेल डाले और न लोबान ही रखे; क्योंकि वह ईर्ष्या की अन्न-बलि, पाप का स्मरण दिलाने वाला चढ़ावा है।
16) ''याजक स्त्री को प्रभु के सामने उपस्थित करने के लिए ले आये।
17) वह मिट्टी के एक पात्र में आषिष का जल भरे और तम्बू के फ़र्ष की थोड़ी-सी धूल जल में डाल दे।
18) इसके बाद याजक उस स्त्री को प्रभु के सामने खड़ा करे, उसके सिर के बाल खोल दे और उसके हाथ में पाप का स्मरण दिलाने वाला चढ़ावा, ईर्ष्या की अन्न-बलि रख दे और अपने हाथ में कड़वा शाप लाने वाला जल लिये रहे।
19) तब याजक स्त्री को शपथ खिलाते हुए उस से कहे, यदि तुम्हारे साथ किसी परपुरुष का प्रसंग नहीं हुआ, यदि तुम पति के रहते पथभ्रष्ट और अपवित्र नहीं हुई हो, तो यह शाप लाने वाला कड़वा जल तुम्हारी कोई हानि नहीं करे।
20) परन्तु यदि तुम पति के रहते हुए पथभ्रष्ट और अपवित्र हो गयी हो, क्योंकि परपुरुष का तुम्हारे साथ प्रसंग हुआ है-
21) अब याजक यह कहते हुए स्त्री को अभिषाप की शपथ खिलाये - 'तो प्रभु तुम्हारा नाम अपने लोगों में घृणास्पद और अभिषप्त बना दे; वह तुम्हारी जाँघे धुलाये और तुम्हारा पेट फुला दे।
22) यह शाप लाने वाला जल तुम्हारे अन्दर जा कर तुम्हारा पेट फुलाये और तुम्हारी जाँघें धुला दे। इस पर स्त्री कहे, 'ऐसा ही हो।'
23) इसके बाद याजक एक काग़ज पर अभिषाप के ये शब्द लिख कर उन्हें कड़वे जल से धोये
24) और वह अभिषाप लाने वाला कड़वा जल स्त्री को पिलायें, जिससे वह जल उसके शरीर में जा कर असह्य पीड़ा उत्पन्न करे।
25) तब याजक ईर्ष्या की अन्न-बलि स्त्री के हाथ से ले ले और वेदी के पास जा कर उसे हिला-हिला कर प्रभु को अर्पित करे।
26) वह उस में से समूची अन्न-बलि के प्रतीक के रूप में मुट्ठी-भर ले कर उसे वेदी पर जलाये। इसके बाद वह स्त्री को वह जल पिला दे।
27) यदि उसने अपराध किया और अपने पति के साथ विष्वासघात किया, तो वह शाप लाने वाला जल, जो याजक उसे पिलाता है, उस में असह्य पीड़ा उत्पन्न करेगा। स्त्री का पेट फूल जायेगा, उसकी जाँघें धुल जोयेंगी और उसका नाम उसके लोगों में अभिषप्त हो जायेगा।
28) यदि उस स्त्री ने अपराध नहीं किया और उसका आचरण निर्दोष रहा, तब उसे कुछ नहीं होगा और वह गर्भ धारण कर सकेगी।
29) ''यह ईर्ष्या की विधि है, जब कोई स्त्री पथभ्रष्ट और पति के रहते अपवित्र हो जाती है
30) अथवा यदि पति के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि वह अपनी पत्नी पर सन्देह करता हैं। वह उसे प्रभु के सामने उपस्थित करेगा और याजक उसके साथ वही करेगा, जो यहाँ लिखा है।
31) पुरुष को अपराध नहीं लगता, पर स्त्री अपने अपराध का फल भोगेगी।''

अध्याय 6

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से कहो कि यदि कोई पुरुष या स्त्री अपने को प्रभु के प्रति अर्पित करने का ÷नाज+ीर÷ नामक विषिष्ट व्रत लेना चाहे,
3) तो वह अंगूरी ओर अन्य मादक पेयों से परहेज करे। वह अंगूरी अथवा अन्य मादक पेय से बनाया हुआ सिरका नहीं पिये, वह दाखरस भी नहीं पिये और न ताज+े या सुखाये अंगूर खाये।
4) वह अपने नाज+ीर-व्रत की पूरी अवधि में दाखलता की उपज से कुछ नहीं खाये, अंगूरों के बीज अथवा छिलके भी नहीं।
5) उसके नाज+ीर-व्रत की अवधि में उस्तरा उसके सिर का स्पर्ष नहीं करे। जब तक उसके व्रत की अवधि पूरी न हो जाये, वह पवित्र माना जाये और अपने सिर के बाल नहीं काटे।
6) वह अपने व्रत की अवधि में किसी शव का स्पर्श नहीं करे।
7) वह अपने पिता, अपनी माता, अपने भाई-बहन के मरने पर उनके शवों के स्पर्ष द्वारा अपने को अपवित्र नहीं होने दे; क्योंकि उसने प्रभु के प्रति अपने समर्पण का प्रतीक अपने सिर पर धारण किया है।
8) वह अपने व्रत की पूरी अवधि में प्रभु को समर्पित माना जाये।
9) ''यदि अचानक किसी की मृत्यु उसकी उपस्थिति में हो गयी हो और इस प्रकार उसके समर्पित बाल अपवित्र हो गये हों, तो वह अपने शुद्वीकरण के दिन, अर्थात् सातवें दिन अपना सिर मुड़वा ले।
10) वह आठवें दिन दर्षन-कक्ष के द्वार पर याजक के पास दो पण्डुक या दो कबूतर ले आये।
11) याजक उन में एक को प्रायष्चित-बलि के रूप में और दूसरे को होम-बलि के रूप में चढ़ाये और इस प्रकार वह मृतक के कारण उसके दोष की प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करे। उसी दिन वह फिर अपना सिर पवित्र करेगा।
12) वह अपने को अपने व्रत की पूरी अवधि के लिए प्रभु को फिर अर्पित करे और प्रायष्चित-बलि के रूप में एक वर्ष का एक मेमना ले जाये। उसके व्रत के बीते दिन व्यर्थ हैं, क्योंकि उसका व्रत अपवित्र हो गया है।
13) यह विधि नाज+ीर-व्रती के लिए है : जिस दिन उसके व्रत की अवधि समाप्त हो, उस दिन वह दर्षन-कक्ष के द्वार पर लाया जाये।
14) वह प्रभु के लिए यह चढ़ावा ले आये - होम बलि के लिए एक वर्ष का एक अदोष नर मेमना, प्रायष्चित-बलि के लिए एक वर्ष की एक अदोष मादा मेमना, शान्ति-बलि के लिए एक अदोष मेढ़ा;
15) टोकरी-भर मैदे की बेख़मीर रोटियाँ, तेल-मिश्रित चपातियाँ, तेल से चुपड़ी बेख़मीर पतली रोटियाँ, साथ-साथ आवष्यक अन्न-बलियाँ और अर्घ-बलियाँ।
16) याजक ये चढ़ावे प्रभु को अर्पित कर प्रायष्चित-बलि और होम बलि की विधि सम्पन्न करे।
17) वह शान्ति-बलि के रूप में प्रभु को बेख़मीर रोटियों की टोकरी के साथ मेढ़ा चढ़ाये। वह उसके लिए आवष्यक अन्न-बलि और अर्ध-बलि भी चढ़ाये।
18) तब नाज+ीर-व्रती दर्षन-कक्ष के द्वार पर प्रभु को समर्पित अपने बाल मुड़वाये और उन्हें शान्ति-बलि की अग्नि में जलाये।
19) इसके बाद याजक मेढ़े का उबाला हुआ कन्धा और टोकरी से एक बेख़मीर रोटी और चपाती उसके हाथ में रख दे।
20) तब याजक उन्हें हिला-हिला कर प्रभु को अर्पित करेगा। वे पवित्र हैं और उन पर याजक का अधिकार है। बलि-पशु की छाती और जाँघ भी याजक को मिलती है। इसके बाद वह फिर अंगूरी पी सकता है।
21) ''यह नाज+ीर-व्रत की विधि है और धारण करने वाले को प्रभु को यह चढ़ावा अर्पित करना है। इसके सिवा वह जो चाहता है, अर्पित कर सकता है। उसने नाजीर व्रत के अनुसार जो मन्नत की है, वह उसे पूरा करेगा।''
22) प्रभु ने मूसा से कहा,
23) ''हारून और उसके पुत्रों से कहो - इस्राएलियों को आषीर्वाद देते समय यह कहोगे :
24) 'प्रभु तुम लोगों को आषीर्वाद प्रदान करे और सुरक्षित रखे।
25) प्रभु तुम लोगों पर प्रसन्न हो और तुम पर दया करे।
26) प्रभु तुम लोगों पर दयादृष्टि करे और तुम्हें शान्ति प्रदान करे।'
27) वे इस प्रकार इस्राएलियों के लिए मुझ से प्रार्थना करें और मैं उन्हें आषीर्वाद प्रदान करूँगा।

अध्याय 7

1) जब मूसा ने निवास का निर्माण पूरा किया, तो उसने उस पर तथा उसकी समस्त आवष्यक वस्तुओं पर तेल लगा कर उनकी प्रतिष्ठा की। उसने वेदी तथा उसकी सारी आवष्यक सामग्री पर तेल लगा कर उनकी प्रतिष्ठा की।
2) इसके बाद इस्राएली नेता, विभिन्न घरानों के मुखिया, जो नामांकित पुरुषों के प्रधान थे, अपने-अपने चढ़ावे देने आये।
3) वे चढ़ावे के रूप में प्रभु के सामने छत वाली छः गाडियाँ और बारह बैल ले आये, अर्थात् दो-दो नेताओं की ओर से एक-एक गाड़ी और एक-एक नेता की ओर से एक-एक बैल।
4) तब प्रभु ने मूसा से कहा,
5) ''उन से ये उपहार स्वीकार करो। ये दर्षन-कक्ष के काम आयेंगे। इन्हें लेवियों को उनके कार्य की आवष्यकता के अनुसार दे दो।
6) इस पर मूसा ने गाड़ियों और बैलों को उन से ले लिया और उन्हें लेवियों को दे दिया।
7) उसने गेरषोनियों को, उनके कार्य की आवष्यकता के अनुसार, दो गाड़ियाँ और चार बैल दिये
8) और मरारियों को चार गाड़ियाँ और आठ बैल दिये, उनके उस कार्य की आवष्यकता के अनुसार, जिसे वे याजक हारून के पुत्र ईतामार के निर्देषन में करते थे।
9) उसने कहातियों को कुछ नहीं दिया, क्योंकि उनके जिम्मे कन्धों पर उठायी जाने वाली पवित्र वस्तुएँ थीं।
10) जिस दिन वेदी का विलेपन किया गया, उस दिन नेताओं ने उसके प्रतिष्ठान के लिए अपने उपहार चढ़ाये और उन्हें वेदी के सामने रखा।
11) प्रभु ने मूसा से कहा, ''प्रतिदिन एक ही नेता वेदी के प्रतिष्ठान के लिए अपना चढ़ावा ले आये।
12) पहले दिन यूदा वंष के अम्मीनादाब के पुत्र नहषेन ने अपनी भेंट चढ़ायी।
13) वह भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
14) फिर वह लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र, होम बलि के लिए बछड़ा,
15) एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक ममना लाया।
16) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
17) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। अम्मीनादब के पुत्र नहषोन की भेंट यही थी।
18) दूसरे दिन इस्साकार के नेता, सूआर के पुत्र नतनएल ने भंेंट चढ़ायी।
19) वह भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल मिश्रित मैदे से भरे थे।
20) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
21) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
22) प्रायष्चित बलि के लिए एक बकरा
23) तथा शान्ति बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। सूआर के पुत्र नतनएल की भेंट यही थी।
24) तीसरे दिन ज+बुलोन वंष का नेता, हेलोन के पुत्र एलीआब
25) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल मिश्रित मैदे से भरे थे।
26) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
27) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मढ़ा, और एक मेमना।
28) प्रायष्चित-बलि के लिए एक बकरा तथा
29) शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। हेलोन के पुत्र एलीआब की भेंट यही थी।
30) चौथे दिन रूबेन वंष का नेता, शदेऊर का पुत्र एलीसूर
31) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी की एक पात्र।
32) दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे। फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
33) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
34) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
35) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढे+, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमेने। शदेऊर के पुत्र एलीसूर की भेंट यही थी।
36) पाँचवें दिन सिमओन वंष का नेता, सूरीषद्दय का पुत्र शलुमीएल
37) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र।
38) दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे। फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
39) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
40) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
41) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। सूरीषद्दय के पुत्र शुलमीएल की भेंट यही थी।
42) छठे दिन गाद वंष का नेता, दऊएल का पुत्र एल्यासाफ
43) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
44) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
45) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
46) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा तथा
47) शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। दऊएल के पुत्र एल्यासाफ की भेंट यही थी।
48) सातवें दिन एफ्रईम वंष वालों का नेता, अम्मीहूद का पुत्र एलीषामा
49) भेंट-रूवरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
50) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
51) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
52) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
53) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़ा, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। अम्मीहूद के पुत्र एलीषामा की भेंट यही थी।
54) आठवें दिन मनस्से वंष का नेता, पदाहसूर का पुत्र गमलीएल
55) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
56) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
57) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक मेमना।
58) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
59) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। पदाहसूर के पुत्र गमलीएल की भेंट यही थी।
60) नौवें दिन बेनयामीन वंष का नेता, गिदओनी का पुत्र अबीदान
61) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
62) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
63) होम-बलि के लिए एक बछड़ा एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
64) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
65) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। गिदओनी के पुत्र अबीदान की भेंट यही थी।
66) दसवें दिन दान वंष का नेता, अम्मीषद्दय का पुत्र अहीएजे+र
67) भेंट-स्परूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र-शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल मिश्रित मैदे से भरे थे।
68) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का वह पात्र,
69) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
70) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा,
71) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। अम्मीषद्दय के पुत्र अहीएजे+र की भेंट यही थी।
72) ग्यारहवें दिन आषेर वंष का नेता, ओक्रान का पुत्र पगीएल
73) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
74) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
75) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना
76) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
77) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमनें। ओक्रान के पुत्र पगीएल की भेंट यही थी।
78) बारहवें दिन नफ़ताली वंष का नेता, एनान का पुत्र अहीरा
79) भेंट-स्वरूप एक सौ तीस शेकेल की चाँदी की एक थाली लाया और पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार सत्तर शेकेल का चाँदी का एक पात्र। दोनों अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदे से भरे थे।
80) फिर लोबान से भरा दस शेकेल का सोने का एक पात्र,
81) होम-बलि के लिए एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना।
82) प्रायष्चित्त-बलि के लिए एक बकरा
83) तथा शान्ति-बलि के लिए दो बछड़े, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक वर्ष के पाँच मेमने। एनान के पुत्र अहीरा की भेंट यही थी।
84) यही वे भेंटें थी, जिन्हें वेदी का प्रतिष्ठान करने के अवसर पर इस्राएल के नेताओं ने उस दिन चढ़ाया, जब उसका विलेपन किया गया था, अर्थात् चाँदी की बारह थालियाँ, चाँदी के बारह पात्र और सोने के बारह पात्र।
85) प्रत्येक थाली की चाँदी एक सौ तीस शेकेल और प्रत्येक पात्र की चाँदी सत्तर शेकेल थी। पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार इन पात्रों की कुल तौल दो हजार चार सौ शेकेल थी।
86) लोबान से भरे सोने के पात्र कुल बारह थे। पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार प्रत्येक पात्र की तौल दस शेकेल थी। इन पात्रों के सोने की कुल तौल एक सौ बीस शेकेल थी।
87) होम बलि के लिए चढ़ाये हुए पशुओं की संख्या थी - बारह बछड़े, बारह मेढ़े, एक-एक वर्ष के बारह मेमने तथा उसके लिए आवष्यक अन्न-बलि और प्रायष्चित-बलि के लिए बारह मेढ़े।
88) शान्ति-बलि के लिए कुल पषुओं की संख्या इस प्रकार थी चौबीस बछड़े, साठ मेढ़े, साठ बकरे और एक-एक वर्ष के साठ मेमने। जब विलेपन के बाद वेदी का प्रतिष्ठान किया गया, तब ये भेंटें चढ़ायी गयीं।
89) जब-जब प्रभु से बातें करने के लिए मूसा दर्षन-कक्ष में प्रवेष करता था, तब-तब वह अपने को संबोधित करने वाली उसकी वाणी सुनता था। वह वाणी विधान-मंजूषा पर लगे छादन-फलक के ऊपर से दोनों केरूबों के बीच से होकर आती थी। यह उसी तरह उस से बातें करता था।

अध्याय 8

1) प्रभु ने मूसा से कहा -
2) ''हारून से यह कहो दीपकों को इस प्रकार जलाओ कि सातों दीपकों का प्रकाष दीपवृक्ष के सामने पड़े''।
3) हारून ने वैसा ही किया। प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, उसने दीपकों को जला कर वैसा ही दीपवृक्ष के सामने की ओर रखा।
4) सोने का दीपवृक्ष पाये से कलियों तक एक ही धातु-खण्ड का बना था। प्रभु ने मूसा को जो नमूना दिखाया था, दीपवृक्ष ठीक वैसा ही बनाया गया था।
5) प्रभु ने मूसा से कहा,
6) ''इस्राएलियों में से लेवियों को अलग कर उनका शुद्धीकरण करो।
7) तुम उनके शुद्धीकरण के लिए यह करो - उन पर शुद्धीकरण का जल छिड़क दो। इसके बाद वे अपने शरीर के सारे बाल मुड़वायें और अपने कपड़े धोयें। इस प्रकार वे शुद्ध हो जायेंगे।
8) फिर वे एक बछड़ा और उसके साथ अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित मैदा लायें तथा प्रायष्चित-बलि के लिए एक और बछड़ा लायें।
9) तब लेवियों को दर्षन-कक्ष के सामने बुलाओ और इस्राएलियों के सारे समुदाय को एकत्रित करो।
10) जब लेवी प्रभु के सामने उपस्थित हों, तो शेष इस्राएली लेवियों के सिरों पर अपने हाथ रखें
11) और हारून इस्राएलियों की ओर से लेवियों को प्रभु को अर्पित करे, जिससे वे प्रभु की सेवा करने योग्य हो जायें।
12) ''इसके बाद लेवी अपने हाथ बछड़ों के सिरों पर रखें। तब एक को प्रायष्चित-बलि के लिए और दूसरे को होम बलि के रूप में प्रभु को चढ़ाओ, जिससे लेवियों के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न हो।
13) फिर लेवियों को हारून और उसके पुत्रों के सामने उपस्थित कर उन्हें प्रभु को अर्पित करो।
14) इस प्रकार लेवियों को इस्राएलियों में से अलग करो, जिससे लेवी मेरे अपने बन जायें।
15) तुम्हारे द्वारा उनके शुद्धीकरण और समर्पण के बाद, वे दर्षन कक्ष में कार्य करने योग्य हो जायेंगे।
16) मैंने इस्राएलियों में से उन्हें अलग कर उन को पूर्ण रूप से अपना लिया है। मैंने सब इस्राएली पहलौठों के बदले उन को अपने लिए अलग किया;
17) क्योंकि इस्राएलियों के सब पहलौठे मेरे ही है चाहें वे मनुष्य के हों या पशुओं के मैंने मिस्र देष में जिस दिन सब पहलौठों को मारा था, मैंने उसी दिन उन्हें अपने लिए अलग किया।
18) अब मैंने इस्राएलियों के सब पहलौठों के स्थान पर लेवियों को ले लिया है,
19) और इस्राएलियों में से लेवियों को अलग कर, हारून और उसके पुत्रों को उन्हें इसलिए दिया है कि वे इस्राएलियों की जगह दर्षन-कक्ष की सेवा करें और उनके लिए प्रायष्चित करें, जिससे इस्राएलियों में यदि कोई पवित्र-स्थान के पास आये, तो उस पर कोई विपत्ति नहीं पड़े।
20) मूसा, हारून और इस्राएलियों के सारे समुदाय ने लेवियों के साथ ऐसा ही किया। प्रभु ने मूसा को लेवियों के संबंध में जैसा आदेष दिया था, इस्राएलियों ने उनके साथ वैसा ही किया।
21) इसलिए लेवियों ने अपने को पवित्र किया और अपने वस्त्र धोये। फिर हारून ने उन को प्रभु को अर्पित किया और उनके शुद्धीकरण के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न की।
22) इसके बाद लेवी हारून और उसके पुत्रों के निर्देषन में दर्षन कक्ष में सेवा करने लगे। प्रभु ने मूसा को लेवियों के संबंध में जैसा आदेष दिया था, लोगों ने उनके साथ वैसा ही किया।
23) प्रभु ने मूसा से कहा,
24) ''लेवियों के लिए नियम यह होगा - वे पच्चीस वर्ष की उमर से दर्षन कक्ष में सेवा करने आयेंगे।
25) वे पचास वर्ष की अवस्था में इस सेवा से मुक्त हो जायेंगे और उन्हें इसके बाद सेवा नहीं करनी होगी।
26) दर्षन-कक्ष के सेवा कार्यों की देखभाल में वे अपने भाइयों की सहायता कर सकेंगे, परन्तु वे इसके लिए बाध्य नहीं होंगे। तुम इस प्रकार लेवियों का कर्त्तव्य निर्धारण करोगे।''

अध्याय 9

1) मिस्र देष से बाहर आने के बाद, दूसरे वर्ष के पहले महीने में, प्रभु ने सीनई के उजाड़खण्ड में मूसा से कहा,
2) ''इस्राएली निर्धारित समय पर पास्का पर्व मनायें।
3) इसी महीने के चौदहवें दिन की शाम को, उसे उसके सब नियमों और आदेषों के अनुसार मनाओ।
4) इसलिए मूसा ने इस्राएलियों से पास्का पर्व मनाने को कहा।
5) उन्होंने पहले महीने के चौदहवें दिन, ठीक इसी दिन सन्ध्या समय सीनई के उजाड़खण्ड में पास्का का पर्व मनाया। प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, इस्राएलियों ने उसे वैसा ही मनाया।
6) लेकिन कुछ लोग ऐसे थे, जो किसी मनुष्य के षव के स्पर्ष से अषुद्व होने के कारण उसी दिन पास्का का पर्व नहीं मना सके। इसलिए वे उस दिन मूसा और हारून के पास आ कर उन से कहने लगे,
7) ''हम षव का स्पर्ष करने के कारण अषुद्ध हो गये हैं। हमें अन्य इस्राएलियों के साथ निष्चित समय पर प्रभु को बलि चढ़ाने से क्यों रोका जा रहा है?''
8) मूसा ने उन्हें उत्तर दिया, ''ठहरो, मैं पता लगाने जाता हूँ कि तुम्हारे विषय में प्रभु की क्या आज्ञा है''।
9) इस पर प्रभु ने मूसा से कहा,
10) ''इस्राएलियों से कहो - यदि तुम में या तुम्हारे वंषजों में कोई किसी के षव के स्पर्ष से अषुद्ध हो जाये या कोई दूर यात्रा पर हो, तो भी उसे प्रभु के लिए पास्का का पर्व मनाना चाहिए।
11) वे उसे दूसरे महीने के चौदहवें दिन की षाम को मनायें वे पास्का का मेमना बेख़मीर रोटी और कड़वी भाजी के साथ खायें।
12) वे उस में से दूसरे दिन के लिए कुछ भी नहीं छोड़ें। उसकी एक भी हड्डी नहीं तोडे+। वे पास्का का उत्सव सब निर्धारित नियमों के अनुसार मनायें।
13) जो व्यक्ति शुद्ध है और यात्रा नहीं कर रहा है, फिर भी पास्का का पर्व नहीं मनाता है, वह अपने लोगों से बहिष्कृत किया जाये ; क्योंकि उसने निर्धारित समय पर बलि नहीं चढ़ायी। उसका पाप उसके सिर पड़ेगा।
14) ''यदि तुम्हारे साथ कोई विदेषी प्रवासी हो और वह प्रभु के लिए पास्का का पर्व मनाना चाहें, तो वह पास्का के लिए निर्धारित विधियों और आदेषों के अनुसार उसे मना सकता है। तुम्हारे साथ रहने वाले प्रवासी और स्वदेषी, दोनों के लिए एक ही विधि होगी।''
15) जिस दिन निवास का षिविर लगाया गया था, उस दिन बादल ने निवास को, विधान-पत्र के तम्बू को ढक लिया था। वह निवास के ऊपर शाम से सबेरे तक अग्नि ज्वाला की तरह छाया रहा।
16) ऐसा बराबर होता रहा। बादल दिन में उसे ढके रहता था और रात को उसके ऊपर अग्नि जैसा दिखाई देता था।
17) जब बादल षिविर से हट जाता था, इस्राएली प्रस्थान करते थे और जहाँ बादल ठहर जाता था, वहाँ इस्राएली अपना पड़ाव डाल दिया करते थे।
18) प्रभु की आज्ञा पा कर इस्राएली प्रस्थान किया करते थे और प्रभु की आज्ञा के अनुसार पड़ाव डाला करते थे। जब बादल निवास के ऊपर ठहरा रहता था, वे जहाँ थे, वहीं रह जाते थे।
19) जब बादल निवास के ऊपर बहुत दिनों तक ठहरा रहता, तब इस्राएली प्रभु की आज्ञा मान कर प्रस्थान नहीं करते।
20) कभी-कभी बादल थोड़े ही दिन निवास पर ठहरता था। इस्राएली प्रभु की आज्ञा मान कर पड़ाव डालते और फिर प्रभु की आज्ञा पाने के बाद प्रस्थान करते थे।
21) ऐसा भी होता कि बादल शाम से सुबह तक रहता। तब इस्राएली सबेरे, जब बादल उठता, प्रस्थान करते। जब बादल एक दिन और रात के बाद उठता, तो एस्राएली प्रस्थान करते।
22) अथवा कभी ऐसा होता कि बादल दो दिन या एक महीना या इस से भी अधिक ठहरा रहता। तो इस्राएली तब तक अपने षिविर में रहते और प्रस्थान नहीं करते, जब तक बादल निवास के ऊपर ठहरता था। वे तभी प्रस्थान करते, जब बादल उठता था।
23) इस प्रकार वे प्रभु की आज्ञा के अनुसार पड़ाव डालते और प्रभु कि आज्ञा के अनुसार प्रस्थान करते रहे। प्रभु मूसा द्वारा जैसी आज्ञा देता था, ठीक वैसे ही, प्रभु की आज्ञा के अनुसार ही, वे करते थे।

अध्याय 10

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''दो तुरहियाँ बनवाओं। तुम उन्हे चाँदी से गढ़वाओ। उन से लोगों को बुलाने और षिविर उठाने की सूचना देने का काम लो।
3) जब दोनों बजायी जायेंगी, तो सारा समुदाय तुम्हारे पास दर्षन-कक्ष के द्वार पर एकत्रित हो जायेगा।
4) जब केवल एक ही तुरही बजायी जायेगी, तब तुम्हारे पास नेतागण, इस्राएली वंषों के मुखिया एकत्रित हो जायेंगे।
5) जब उस से देर तक जोरों की आवाज हो, तब पूर्व दिषा के पड़ाव प्रस्थान करेंगे।
6) जब दूसरी बार ज+ोरों से देर तक आवाज हो, तब दक्षिण के पड़ाव प्रस्थान करेंगे। जब प्रस्थान करना हो, तो देर तक ज+ोरों की आवाज में उन्हें बजाया जाये
7) और जब समुदाय को एकत्रित करना हो, तो देर तक ज+ोर से बजवा कर सामान्य रूप से बजवाओ।
8) हारून के याजक पुत्र तुरही बजायें। यह तुम्हारी पीढ़ियों के लिए चिरस्थायी आदेष है।
9) जब अपने देष में तुम को सताने वाले शत्रु के विरुद्ध लड़ाई करनी पड़े, तब लगातार जोर से तुरहियाँ बजवाओ। इससे प्रभु, तुम्हारे ईष्वर को तुम्हारा स्मरण हो जायेगा और तुम अपने शत्रुओं के हाथों से सुरक्षित रहोगे।
10) अपने आनन्द के दिनों, अपने उत्सवों, अमावस की होम-बलियों और शान्ति-बलियों के अवसरों पर तुरहियाँ बजवाओ। ये प्रभु को तुम्हारा स्मरण करायेंगी। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूँ।''
11) दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन बादल विधान की मंजूषा के निवास से ऊपर उठा।
12) तब इस्राएली लोग भी सीनई के उजाड़खण्ड से शिविर उठाते हुए आगे की ओर बढ़े। बादल पारान नामक उजाड़खण्ड में रुक गया।
13) यह पहला अवसर था कि प्रभु के द्वारा मूसा को दी गयी आज्ञा के अनुसार प्रस्थान किया गया।
14) सब से पहले यूदा कुल के लोगों ने अपने दलों के अनुसार अपने झण्डे के साथ प्रस्थान किया। उनके समुदाय का नेता अम्मीनादाब का पुत्र नहषोन था।
15) सूआर का पुत्र नतनएल इस्साकार कुल वालों का नेता था।
16) हेलोन का पुत्र एलीआब ज+बुलोन कुल वालों का नेतृत्व कर रहा था।
17) तब निवास का षिविर उठाया गया और गेरषोनी और मरारी लोगों ने प्रस्थान किया, जो निवास का परिवहन करते थे।
18) फिर रूबेन कुल के लोगों ने अपने दलों के अनुसार अपने झण्डे साथ प्रस्थान किया। उनके समुदाय का नेता शदेऊर का पुत्र एलीसूर था।
19) सूरीषद्दय का पुत्र शलुमीएल सिमओन कुल का नेता था।
20) दऊएल का पुत्र एल्यासाफ गाद कुल वालों के समुदाय का नेता था।
21) इसके बाद कहातियों ने प्रस्थान किया, जो पवित्र वस्तुएँ ढोया करते थे। इनके पहँुचने के पहले ही निवास का षिविर तान दिया गया था।
22) इसके बाद एफ्र+ईम कुल के लोगों ने अपने झण्डे के साथ, अपने दलों के अनुसार, प्रस्थान किया। अम्मीहूद का पुत्र एलीषामा उनके समुदाय का नेता था।
23) पदाहसूर का पुत्र गमलीएल मनस्से कुल वालों का नेतृत्व कर रहा था।
24) गिदओनी का पुत्र अबीदान बेनयामीन कुल वालों के समुदाय का नेता था।
25) अन्त में दान कुल के लोगों ने अपने झण्डे के साथ, अपने दलों के अनुसार, प्रस्थान किया। अम्मीषद्दय का पुत्र अहीएजे+र उनके समुदाय का नेता था।
26) अक्रोन का पुत्र पगीएल आषेर कुल वालों के समुदाय का नेता था
27) और एनान का पुत्र अहीरा नफ्+ताली कुल का नेता था।
28) इसी क्रम में इस्राएलियों के दलों को प्रस्थान करना पड़ता था और इसी के अनुसार उन्होंने प्रस्थान किया।
29) मूसा ने अपने ससूर, मिदयानी रऊएल के पुत्र होबाब से कहा, ''अब हम वह देष जायेंगे, जिसके विषय में प्रभु ने यह वचन दिया था कि मैं उसे तुम्हें दे दूँगा ; तुम भी हमारे साथ चलो। हम तुम्हारी भलाई करेंगे, क्योंकि प्रभु ने इस्राएलियों की भलाई करने का वचन दिया है।''
30) परन्तु उसने उत्तर दिया, ''मैं नहीं जाऊँगा। मैं अपने देष में, अपने कुटुम्बियों के पास लौट जाऊँगा।''
31) तब मूसा ने निवेदन किया, ''हमें नहीं त्यागना, क्योंकि तुम उजाड़खण्ड के उन सब स्थानों को जानते हो, जो पड़ाव डालने के लिए उपयुक्त होंगे। इसलिए तुम हमारे पथप्रदर्षक बन जाओ।
32) यदि तुम हमारे साथ चलोगे, तो हम भी तुम्हारी वैसी ही भलाई करेंगे, जैसी प्रभु हमारी करेगा।''
33) तब उन्होंने प्रभु के पर्वत से अपनी तीन दिन की यात्रा के लिए प्रस्थान किया। तीन दिन की इस यात्रा में प्रभु के विधान की मंजूषा उनके आगे चलती रही, जिससे उसके माध्यम से ठहरने के स्थान का पता चले।
34) जब वे अपना षिविर उठाते, तब दिन में प्रभु का बादल उनके ऊपर छाया रहता।
35) जब मंजूषा आगे बढ़ने लगती, तब मूसा कहता, ''प्रभु! उठ खड़ा हो जा, जिससे तेरे शत्रु तितर-बितर हो जायें और तेरे विरोधी तेरे सामने से भाग जायें!
36) और जब वह ठहर जाती, जब वह कहता, ''प्रभु! इन लाखों इस्राएलियों के पास लौट आ।''

अध्याय 11

1) लोग अपने कष्टों के कारण प्रभु के विरुद्ध भुनभुनाने लगे। इस से प्रभु का कोप भड़क उठा। प्रभु की अग्नि उनके बीच प्रज्वलित हुई और उसने षिविर का एक कोना जला दिया।
2) लोगों ने मूसा को सहायता के लिए पुकारा। मूसा ने प्रभु से प्रार्थना की और अग्नि बुझ गयी।
3) इसलिए उस स्थान का नाम तबएरा पड़ गया, क्योंकि वहाँ उनके बीच प्रभु की अग्नि प्रज्वलित हुई थी।
4) उनके साथ चलने वाले छोटे लोग स्वादिष्ट भोजन के लिए लालायित हो उठे और इस्राएली भी विलाप करने लगे। उन्होंने यह कहा, ''कौन हमें खाने के लिए मांस देगा?
5) हाय! हमें याद आता है कि हम मिस्र में मुफ्+त मछली खाते थे, साथ ही खीरा, तरबूज, गन्दना प्याज और लहसुन।
6) अब तो हम भूखों मर रहे हैं - हमें कुछ भी नहीं मिलता। मन्ना के सिवा हमें और कुछ दिखाई नहीं देता।''
7) मन्ना धनिया के बीज-जैसा था। उसका रूप-रंग गुग्गुल के सदृष था।
8) लोग उसे बटोरने जाते थे, चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे, और बरतनों में उबाल कर उसकी रोटियाँ पकाते थे। उसका स्वाद तेल में तली हुई पूरी-जैसा था
9) जब रात को ओस षिविर पर उतरती थी, तो मन्ना भी गिरता था।
10) मूसा ने लोगों को, हर परिवार को अपने-अपने तम्बू के द्वार पर विलाप करते सुना। प्रभु का क्रोध भड़क उठा। मूसा को यह बहुत बुरा लगा
11) और उसने प्रभु से यह कहा, ''तू अपने दास को इतना दुख क्यों दे रहा है? तू मुझ पर इतना अप्रसन्न क्यों है कि तूने इस प्रजा का पूरा भार मुझ पर ही डाल दिया है?
12) क्या मैंने इसे उत्पन्न किया है, जो तू मुझसे कहता है - जिस तरह दायी दूध-पीते बच्चे को सँभालती है, तुम इसे गोद में उठाकर उस देष ले जाओ, जिसे मैंने इसके पूर्वजों को देने की शपथ खाई है।
13) मैं इन सब लोगों के लिए कहाँ से माँस ले आऊँ। वे विलाप करते हुए मुझ से कहते है, ÷हमें खाने के लिए माँस दीजिए।÷
14) मैं अकेले ही इस प्रजा को नहीं सँभाल सकता, मैं यह भार उठाने में असमर्थ हूँ।
15) यदि मेरे साथ तेरा यही व्यवहार हो, तो यह अच्छा होता कि तू मुझे मार डालता। यह संकट मुझ से दूर करने की कृपा कर।''
16) प्रभु ने मूसा से कहा, ''इस्राएलियों में से सत्तर वयोवृद्धों को बुलाओ, जिनके विषय में तुम जानते हो कि वे जनता के नेता और शास्त्री हैं। उन्हें दर्षन-कक्ष ले जा कर अपने साथ खड़ा करो।
17) मैं आ कर वहाँ तुम्हारे साथ बात करूँगा। जो शक्ति तुम्हें मिली है, मैं उसका कुछ अंष वापस ले कर उन्हें प्रदान करूँगा। इस तरह वे तुम्हारे साथ इस जाति का भार सँभालेंगे और तुम्हें इसे अकेले ही नहीं उठाना पडे+गा।
18) लोगों से यह भी कहो कि कल के लिए तुम अपने को पवित्र करो, क्योंकि तुम्हें मांस खाने को मिलेगा। तुम लोगों ने तो प्रभु के विरुद्ध भुनभुनाते हुए कहा, ÷कौन हमें मांस खाने को देगा? मिस्र में हमारी दषा कितनी अच्छी थी।÷ इसलिए प्रभु तुम्हें मांस खाने को देगा।
19) न केवल एक दिन, न दो दिन, न पाँच, न दस, न बीस दिन,
20) बल्कि तुम महीने भर मांस खाओगे - यहाँ तक कि उस से तुम्हें अरूचि हो जायेगी और तुम ऊब जाओगे; क्योंकि तुमने अपने साथ रहने वाले प्रभु को तुच्छ समझा और यह कहते हुए उसके सामने पश्चात्ताप प्रकट किया कि हम मिस्र से क्यों निकल आये।''
21) मूसा ने कहा, ''ये लोग, जिनके साथ मैं हूँ, छःलाख पैदल सैनिक हैं। तो भी तू कह रहा है कि मैं उनके लिए इतना मांस जुटा दूँगा कि वे महीने भर खायेंगे। तो क्या इतनी भेड़ें और बछड़े काटे जा सकते हैं कि वे उनके लिए पर्याप्त हों?
22) अथवा कोई उनके लिए समुद्र की सब मछलियाँ पकड़े, तो क्या वे भी उनके लिए पर्याप्त होंगी।
23) प्रभु ने मूसा को उत्तर दिया, ''क्या प्रभु में इतनी भी शक्ति नहीं है कि वह ऐसा कर सके? तुम स्वयं देखोगे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह सच होगा या नहीं।''
24) मूसा ने जा कर लोगों को प्रभु के ये शब्द सुनाये। उसने सत्तर वयोवृद्धों को बुला कर दर्षन-कक्ष के आसपास खड़ा कर दिया।
25) तब प्रभु बादल में आ कर मूसा से बात करने लगा और उसने मूसा की शक्ति का कुछ अंष सत्तर वयोवृद्धों को प्रदान किया। इसके फलस्वरूप उन्हें एक दिव्य प्रेरणा का अनुभव हुआ और वे भविष्यवाणी करने लगे। बाद में उन्हें फिर ऐसा अनुभव नहीं हुआ।
26) दो पुरुष षिविर में रह गये थे। एक का नाम था एलदाद और दूसरे का मेदाद। यद्यपि वे दर्षन-कक्ष में नहीं आये थे, तब भी उन्हें दिव्य प्रेरणा का अनुभव हुआ क्योंकि वे चुने हुए वयोवृद्वों में से थे और वे षिविर में ही भविष्यवाणी करने लगे।
27) एक नवयुवक दौड़ कर मूसा से यह कहने आया - ''एलदाद और मेदाद षिविर में भविष्यवाणी कर रहे हैं''।
28) नुन के पुत्र योषुआ ने, जो बचपन में मूसा की सेवा करता था, यह कह कर अनुरोध किया, ''मूसा! गुरूवर! उन्हें रोक दीजिए।''
29) इस पर मूसा ने उसे उत्तर दिया, ''क्या तुम मेरे कारण ईर्ष्या करते हो? अच्छा यही होता कि प्रभु सब को प्रेरणा प्रदान करता और प्रभु की सारी प्रजा भविष्यवाणी करती।''
30) इसके बाद मूसा और इस्राएलियों के नेता षिविर लौट आये।
31) प्रभु की आज्ञा से समुद्र की ओर से हवा आयी और अपने साथ बटेरें ले आयी और उन्हें आसपास गिरा दिया। उन्होंने षिविर के चारों ओर एक दिन की यात्रा की दूरी तक और दो हाथ की ऊँचाई तक सारी पृथ्वी ढक ली।
32) तब लोग उस दिन और रात तथा दूसरे दिन भी जा-जा कर बटेरें पकड़ने लगे। किसी ने भी सौ मन से कम नहीं बटोरा। उन्हें सुखाने के लिए लोगों ने उन्हें षिविर के आसपास रख दिया।
33) वे उनका मांस पूरा खा भी नहीं पाये थे कि प्रभु का क्रोध लोगों पर भड़क उठा और प्रभु ने उन लोगों पर एक भारी व्याधि भेज दी।
34) इसलिए उस स्थान का नाम किब्रोत-हत्तावा पड़ गया, क्योंकि वहीं उन लोगों को दफ़नाया गया, जो स्वादिष्ट भोजन के लिए लालायित हो उठे थे।
35) लोग किब्रोत-हत्तावा से आगे चल कर हसेरोत पहुँचे और हसेरोत में ठहर गये।

अध्याय 12

1) मूसा ने एक इथोपियाई स्त्री से विवाह किया था। इस इथोपियाई पत्नी के कारण मिरयम और हारून मूसा की निन्दा करने लगे।
2) उन्होंने कहा, ''क्या प्रभु केवल मूसा के द्वारा बोला है? क्या वह हमारे द्वारा भी नहीं बोला है?'' प्रभु ने यह सुना।
3) मूसा अत्यन्त विनम्र था। वह पृथ्वी के सब मनुष्यों में सब से अधिक विनम्र था।
4) प्रभु ने तुरन्त मूसा, हारून और मिरयम से कहा, ''तुम तीनों दर्षन-कक्ष जाओ''। तीनों वहाँ गये।
5) तब प्रभु बादल के खम्भे के रूप में उतर कर तम्बू के पास खड़ा हो गया। उसने हारून और मिरयम को बुलाया। दोनों आगे बढ़े
6) और प्रभु ने उन से कहा, ''मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं तुम्हारे नबियों को दिव्य दर्षनों में दिखाई देता हूँ और स्वप्नों में उन से बातें करता हूँ।
7) मैं अपने सेवक मूसा के साथ ऐसा नहीं करता। मेरी सारी प्रजा में वही विष्वनीय है।
8) मैं उसे पहेली नहीं बुझाता, बल्कि आमने-सामने स्पष्ट रूप से बातें करता हूँ। वह प्रभु का स्वरूप देखता है। मेरे सेवक मूसा की निन्दा करने में तुम्हें डर क्यों नहीं लगा?''
9) प्रभु का क्रोध उन पर भड़क उठा और वह उन्हें छोड़ कर चला गया।
10) तब बादल तम्बू पर से हट गया और मिरयम का शरीर कोढ़ से बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो गया। हारून ने मिरयम की ओर मुड़ कर देखा कि वह कोढ़िन हो गयी है।
11) हारून ने मूसा से कहा, ''महोदय! हमने मूर्खतावष पाप किया है। कृपया हमें उसका दण्ड न दिलायें।
12) मिरयम को उस मृतजात षिषु के सदृष न रहने दें, जिसका शरीर जन्म के समय आधा गला हुआ है।''
13) मूसा ने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना की, ''ईष्वर! इसका रोग दूर करने की कृपा कर।''
14) प्रभु ने मूसा को उत्तर दिया, ''यदि उसके पिता ने उसके मुँह पर थूक दिया हो, तो क्या सात दिन तक उसे मुँह नहीं छिपाना चाहिए? इसी प्रकार उसे भी सात दिन के लिए शिविर के बाहर कर दिया जाये। इसके बाद वह फिर आ सकेगी।''
15) तब मिरयम को सात दिन तक षिविर के बाहर रहना पड़ा और जब तक मिरयम वापस नहीं लायी गयी, तब तक लोग हसेरोत से प्रस्थान कर पारान के अजाड़खण्ड में अपने तम्बू डाले रहे।

अध्याय 13

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''जो कनान देश में इस्राएलियों को देने जा रहा हूँ, उसकी टोह लगाने के लिए आदमियों को भेजो - हर एक वंष से एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को।''
3) इसलिए प्रभु की आज्ञा पाकर मूसा ने उन्हें पारान के उजाड़खण्ड से भेजा। वे सब इस्राएलियों के नेता थे।
4) उनके नाम थे : रूबेन के कुल के जक्कूर का पुत्र शम्मूआ,
5) सिमओन कुल के होरी का पुत्र शाफ़ाट,
6) यूदा कुल के यफुन्ने का पुत्र कालेब,
7) इस्साकार कुल के यूसुफ़ का पुत्र यिगआर,
8) एफ्रईम कुल के नून का पुत्र होषेआ,
9) बेनयामीन कुल के राफू का पुत्र पल्टी,
10) ज+बुलोन कुल के सोदी का पुत्र गद्दीएल,
11) मनस्से कुल के, अर्थात् यूसुफ़ के कुल के सूसी का पुत्र गद्दी,
12) दान कुल के गमल्ली का पुत्र अम्मीएल,
13) आशेर कुल के मीकाएल का पुत्र सतूर,
14) नफ्ताली कुल के वापसी का पुत्र नहबी,
15) और गाद कुल के माकी का पुत्र गऊएल।
16) ये उन पुरुषों के नाम हैं, जिन्हें मूसा ने देष की टोह लगाने भेजा। मूसा ने नून के पुत्र होषेआ का नाम योषुआ रखा।
17) मूसा ने उन्हें कनान देष की टोह लगाने भेजते समय उन से कहा, ''यहाँ से नेगेब हो कर पहाड़ी प्रदेष जाओ।
18) उस देष की स्थिति जाँच कर देखो कि वहाँ के लोग बलवान् हैं या निर्बल, उनकी संख्या अधिक है या कम,
19) उनके देष की हालत अच्छी है या बुरी। वे नगर, जिन में वे रहते हैं, कैसे हैं - परकोटे वाले हैं या नहीं
20) और वहाँ की भूमि कैसी है - उपजाऊ है या ऊसर? उस में वन-जंगल हैं या नहीं? वहाँ के फलों में से भी कुछ ले आने का साहस करो।'' (वह मौसम अंगूरों की फ़सल का था।)
21) इस पर वे सिन के उजाड़खण्ड से रहोब तक चलते गये, जहाँ से हमात की ओर मार्ग जाता है और उन्होंने उस भूमि की टोह लगायी।
22) वे नेगेब होते हुए हेब्रोन तक पहुँचे। वहाँ अनाक के वंषज अहीमान, शेषय और तलमय रहते थे। (हेब्रोन नगर मिस्र के सोअन नगर से सात वर्ष पहले बसा था।)
23) वे एषकोल घाटी तक पहुँच गये। वहाँ उन्होंने फल लगी अंगूर की एक बेल काटी। उन में दो व्यक्ति उसे एक डण्डे पर लटका लाये। वे कुछ अनार और अंजीर भी लेते आये।
24) उस अंगूर के गुच्छे के कारण, जिसे इस्राएलियों ने वहाँ काटा था, उस घाटी का नाम एषकोल घाटी (अंगूर घाटी) पड़ गया।
25) चालीस दिन बाद वे उस देष की टोह लगा कर लौटे।
26) वे पारान की मरुभूमि के कादेष नामक स्थान पर मूसा, हारून और इस्राएल के सारे समुदाय के पास आये। उन्होंने उनके और सारे समुदाय के सामने अपना विवरण प्रस्तुत किया और उन्हें उस देष के फल दिखाये।
27) उन्होंने मूसा से कहा, ''हम उस देष में गये, जहाँ आपने हमें भेजा था। वहाँ दूध और मधू की नदियाँ बहती हैं। ये रहे वहाँ के फल!
28) वहाँ के निवासी बलवान् है। उनके नगर सुरक्षित और बहुत बड़े हैं। हमने वहाँ अनाक के वंषजों को भी देखा है।
29) नेगेब प्रदेष में अमालेकी रहते है ; पहाड़ी प्रदेष में हित्ती, यबूसी और अमोरी; समुद्र के किनारे और यर्दन नदी के तट पर कनानी निवास करते हैं।
30) कालेब ने मूसा के विरुद्ध भुनभुनाने वाले लोगों को शान्त किया और कहा, ''हम वहाँ चलें और उस देष को अपने अधिकार में कर लें। हम उसे जीतने में समर्थ हैं।''
31) किन्तु जो व्यक्ति कालेब के साथ गये थे, वे बोले, ''हम उन लोगों का सामना नहीं कर सकते, क्योंकि वे हम से बलवान् हैं।
32) वे जिस देष की टोह लगा चुके थे, उसकी निन्दा करने लगे और बोले, ''हम जिस देष की टोह लगा चुके हैं, वह एक ऐसा देष है, जो अपने निवासियों को खा जाता है। हमने जिन लोगों का वहाँ देखा है, वे सब बहुत लम्बे कद के हैं।
33) हमने वहाँ भीमकाय लोगों को भी देखा। अनाकी भीमकाय लोगों के वंषज हैं। उनकी तुलना में हम अपने को टिड्डियाँ समझते थे और वे भी हमें यही समझते होंगे।''

अध्याय 14

1) सारा समुदाय ये बातें सुन कर ज+ोर से चिल्लाने लगा और रात भर विलाप करता रहा।
2) सभी इस्राएली मूसा और हारून के विरुद्ध भुनभुनाने लगे। सारे समुदाय ने उन से कहा, ''अच्छा होता कि हम मिस्र देष में ही मर गये होते या इसी उजाड़खण्ड में मर जाते।
3) प्रभु हमें उस देष में क्यों ले जाना चाहता है? इसीलिए कि हम तलवार के घाट उतार दिये जायें और हमारी स्त्रियाँ और बच्चें शत्रुओं द्वारा लूट लिए जायें? हमारे लिए यही अच्छा होगा कि हम फिर मिस्र लौट जायें।
4) वे आपस में कहने लगे, ''चलो, हम अपने लिए एक नेता चुन लें और फिर मिस्र लौट जायें।''
5) इस पर मूसा और हारून इस्राएलियों के सारे समुदाय के सामने मुँह के बल गिर पड़े।
6) नून के पुत्र योषुआ और यफुन्ने के पुत्र कालेब ने, जो देष की टोह लेने वालों में थे, अपने वस्त्र फाड़ कर
7) इस्राएलियों के सारे समुदाय से कहा, ''वह देष एक अनुपम देष है, जिसके निरी+क्षण के लिए हम गये थे।
8) यदि हम पर प्रभु की कृपा हुई, तो वह हमें उस देष में बसा देगा। सचमुच वह एक ऐसा देष है, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं,
9) परन्तु तुम प्रभु के विरुद्ध विद्रोह मत करो। उस देष के रहने वालों से मत डरो, क्योंकि हम उन्हें समाप्त कर देंगे। उनका कोई संरक्षक नहीं रहा। प्रभु हमारे साथ है, इसलिए उन से डरने का कोई सवाल नहीं उठता।''
10) इस पर सारा समुदाय उन्हें पत्थरों से मार डालने का उपक्रम करने लगा। तब प्रभु की महिमा दर्षन-कक्ष के ऊपर सब इस्राएलियों को दिखाई पड़ी
11) और प्रभु ने मूसा से कहा, ''ये लोग कब तक मेरी निन्दा करते रहेंगे? मैंने इनके बीच कितने चमत्कार दिखाये; फिर भी वे मुझ मंें विष्वास नहीं करते।
12) मैं इन पर महामारी भेज कर इनका विनाष करूँगा। फिर मैं तुम से एक ऐसा राष्ट्र उत्पन्न करूँगा, जो इन लोगों से महान् और शक्तिषाली होगा।''
13) इस पर मूसा ने प्रभु को उत्तर दिया, ''मिस्री जानते हैं कि तू बड़े सामर्थ्य के साथ इस्राएलियों को उनके देष से निकाल लाया है।
14) उन्होंने इस देष के लोगों को भी यह बात बता दी है। उन्होंने यह भी सुना है कि तू, प्रभु! इस प्रजा के साथ रहता है; तू, प्रभु! इन्हें दर्षन देता है, तेरा बादल इनके ऊपर बना रहता है और कि तू दिन में बादल के खम्भे के रूप में और रात को अग्नि-स्तम्भ के रूप में इनके आगे-आगे चलता है।
15) अब यदि तू इन लोगों का पूर्ण रूप से विनाष करेगा, तो वे राष्ट्र, जिन्होंने तेरी कीर्ति सुनी है, यह कहेंगे,
16) प्रभु इन लोगों को उस देष में ले जाने में असमर्थ रहा, जिस में ले जाने का उसने शपथ खा कर वचन दिया था। इसलिए उसने उन्हें उजाड़खण्ड में ही मार डाला।
17) इसलिए प्रभु! अपने सामर्थ्य का प्रदर्षन कर, जैसा कि तूने कहा है :
18) प्रभु देर से क्रोध करता और अनुकम्पा का धनी है। वह अपराध और विरोध क्षमा करता है, किन्तु वह कोई पाप अनदेखा नहीं करता और पूर्वजों के अपराधों का दण्ड तीसरी-चौथी, पीढ़ी÷ तक उनकी सन्तति को देता है।÷
19) इसलिए तू अपनी महान् दया के अनुरूप इन लोगों का अपराध क्षमा कर, जैसा कि तू मिस्र से यहाँ तक करता आया है।''
20) इस पर प्रभु ने कहा, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें क्षमा करता हूँ।
21) मेरे अस्तित्व की शपथ! समस्त पृथ्वी में व्याप्त प्रभु की महिमा की शपथ!
22) जिन लोगों ने मेरी महिमा और मिस्र तथा मरूभूमि में मेरे चमत्कार देखे हैं, किन्तु जिन्होंने मेरी अवज्ञा करते हुए दस बार मेरी परीक्षा ली है,
23) उन में एक भी उस देष के दर्षन नहीं करेंगे, जिसे मैंने शपथ खा कर उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की है। जिन्होंने मेरी निन्दा की है, उन में एक भी उस देष के दर्षन नहीं करेगा।
24) मेरे सेवक कालेब का मनोभाव उन से भिन्न था। वह मेरा सच्चा अनुयायी बना रहा। मैं उसे वह देष पहुँचा दूँगा, जहाँ वह गया है और उसके वंषजों को वह देष विरासत के रूप में मिलेगा।
25) अमालेकी और कनानी लोग तराइयों में रहते हैं ; इसलिए कल तुम मुड़ कर लाल समुद्र की ओर उजाड़खण्ड जाओ।''
26) प्रभु ने मूसा और हारून से यह कहा,
27) ''मैं कब तक इस दुष्ट समुदाय की षिकायतें सहन करता रहूँ? मैं इस्राएलियों से अपनी षिकायतें सुन चुका हूँं।
28) उन्हें यह बता दो - प्रभु कहता है, ÷अपने अस्तित्व की शपथ! मैंने तुम लोगों को जो बातें कहते सुना है, उन्हीं के अनुसार मैं तुम्हारे साथ व्यवहार करूँगा।
29) यहाँ इस मरूभूमि में तुम्हारे शव पड़े रहेंगे, क्योंकि तुम लोगों ने मेरी षिकायत की है। जितने लोगों के नाम जनगणना के समय लिखे गये थे और जिनकी आयु बीस के ऊपर है,
30) उन में एक भी उस देष में प्रवेष नहीं करेगा, जहाँ मैंने हाथ उठा कर तुम्हें बसाने की शपथ ली है। यफुन्ने का पुत्र कालेब और नून का पुत्र योषुआ इसके एकमात्र अपवाद हैं।
31) परन्तु मैं तुम्हारे छोटे बच्चों को वहाँ पहुँचा दूँगा, जिनके विषय में तुमने कहा था कि वे शत्रुओं की लूट में आ जायेंगे। वे उस देश के दर्शन करेंगे, जिसकी तुमने अवहेलना की है।
32) परन्तु तुम्हारे शरीर इसी अजाड़खण्ड में धराषायी हो जायेंगे।
33) तुम्हारे पुत्र चरवाहे होकर चालीस वर्ष तक उजाड़खण्ड में मारे-मारे फिरेंगे और इस प्रकार तुम्हारे विष्वासघात का फल तब तक भुगतेंगे, जब तक तुम्हारे शरीर उजाड़खण्ड में ढेर न हो जायें।
34) तुम लोगों ने चालीस दिन तक उस देष का निरीक्षण किया। उनका हर दिन एक वर्ष गिना जायेगा। इसके अनुसार तुम्हें चालीस वर्ष तक अपने अपराधों का फल भुगतना पड़ेगा और तुम जान जाओगे कि मेरा विरोध करने का फल क्या होता है।
35) मैं प्रभु यह कह चुका हूँ। इस दुष्ट समुदाय ने मेरा विरोध किया है। मैं इसके साथ यही व्यवहार करूँगा। यह इस मरूभूमि में समाप्त हो जायेगा। ये लोग सब-के-सब यहाँ मर जायेंगे।''
36) जिन लोगों को मूसा ने देष का भेद लेने भेजा था और जिन्होंने लौटने पर उस देष के विषय में झूठ बोलते हुए सारे समुदाय को उसके विरुद्ध भुनभुनाने के लिए उकसाया था,
37) जो लोग उस देष के विषय में झूठ बोले थे, वे प्रभु के सामने महामारी से मर गये।
38) जो लोग उस देष की टोह लगाने गये थे, उन में केवल नून का पुत्र योषुआ और यफुन्ने का पुत्र कालेब जीवित रह गये।
39) जब मूसा ने ये बातें सब इस्राएलियों को सुनायीं, तब लोगों ने बहुत शोक मनाया।
40) वे दूसरे दिन बड़े सबेरे उठ कर उस पहाड़ी प्रान्त की और चल पड़े और बोले, ''हमने पाप किया है, जिसके विषय में प्रभु ने प्रतिज्ञा की, हम उस स्थान पर जाने के लिए तैयार हैं।''
41) किन्तु मूसा ने उत्तर दिया, ''तुम प्रभु का आदेष भंग क्यों करते हो? तुम इस में सफल नहीं होगे।''
42) प्रभु तुम्हारे साथ नहीं है। इसलिए उधर मत जाओ, नहीं तो तुम्हारे शत्रु तुम्हें पराजित करेंगे।
43) वहाँ अमालेकी और कनानी तुम्हारा सामना करेंगे और तुम तलवार के घाट उतार दिये जाओगे। तुम प्रभु से विमुख हो गये हो, इसलिए प्रभु तुम्हारे साथ नहीं होगा।''
44) लोगों ने पहाड़ी प्रदेष की ओर प्रस्थान किया, यद्यपि प्रभु के विधान की मंजूषा और मूसा षिविर में रह गये।
45) तब पहाड़ी प्रदेष के रहने बाले अमालेकियों और कनानियों ने उतर कर उन्हें पराजित किया और होरमा तक भगा दिया।

अध्याय 15

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) इस्राएलियों से यह कहो कि जब तुम उस देष में पहुँचो, जो मैं तुम्हें रहने के लिए देने वाला हूँ
3) और यदि कोई व्यक्ति अपने ढोरों या गल्लों में से प्रभु को एक सुगन्धयुक्त बलि चढ़ाना चाहे - चाहे वह होम-बलि, शान्ति-बलि मन्नत पूरी करने की बलि, स्वेच्छा से या पर्व के अवसर पर अर्पित बलि हो -
4) तो वह प्रभु को अन्न-बलि के रूप में एक सेर तेल से सना हुआ दो सेर मैदा और एक सेर अंगूरी अर्पित करेगा।
5) वह होम-बलि या शान्ति-बलि के हर मेमने के साथ अर्घ के रूप में एक सेर अंगूरी अर्पित करेगा।
6) वह हर मेढ़े के साथ अन्न-बलि के रूप में सवा सेर तेल से सना हुआ चार सेर मैदा
7) और अर्घ के रूप में सवा सेर अंगूरी ले आयेगा। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय हो।
8) यदि तुम मन्नत पूरी करने के लिए या किसी अन्य कारण से प्रभु को होम-बलि या शान्ति-बलि के रूप में एक बछड़ा चढ़ाना चाहते हो,
9) तो बछड़े के साथ अन्न-बलि के रूप में दो सेर तेल से सना हुआ छः सेर मैदा
10) और अर्घ के रूप में दो सेर अंगूरी ले आओ। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
11) प्रत्येक बछड़े, मेढ़े और भेड़ या बकरे के साथ ऐसा ही किया जाये।
12) चढ़ायी जाने वाली बलियों की संख्या के अनुसार प्रत्येक के साथ ऐसा ही किया जाये।
13) प्रत्येक स्वदेषी ऐसा ही करे, जो प्रभु को प्रिय सुगन्धयुक्त चढ़ावे के रूप में उसे होम-बलि अर्पित करना चाहे।
14) यदि तुम्हारे साथ कोई विदेषी प्रवासी रहता हो या तुम्हारे साथ पीढ़ियों से रहता चला आ रहा हो और वह प्रभु को सुगन्धयुक्त चढ़ावा अर्पित करना चाहे, तो वह उसी विधि का पालन करे, जिसके अनुसार तुम होम-बलि चढ़ाते हो।
15) तुम्हारे लिए और तुम्हारे साथ रहने वाले प्रवासी के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी चिरस्थायी आदेष है। प्रभु की दृष्टि में जैसे तुम हो, वैसे ही प्रवासी भी हैं।
16) वही विधि और वही आदेष तुम्हारे लिए होगा और तुम्हारे साथ रहने वाले विदेषी प्रवासियों के लिए भी।
17) फिर प्रभु ने मूसा से कहा,
18) ''इस्राएलियों से कहो कि जब तुम उस देष में पहुँचो, जो मैं तुम्हें देने वाला हूँ,
19) तब यदि तुम उस देष की रोटी खाओगे, तो पहले प्रभु को इसका एक भाग चढ़ाओ।
20) तुम नये आटे से बनी एक रोटी ले कर उसे खलिहान में चढ़ावे के रूप में अर्पित करोगे।
21) तुम पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रभु को अपने इस नये आटे से चढ़ावा अर्पित करोगे।
22) यदि तुम लोग भूल से इन सब आदेषों में से, जिन्हें प्रभु ने मूसा को दिया, किसी एक का उल्लंघन कर बैठो,
23) अर्थात् उन सब आदेषों में से एक का उल्लंघन जिन्हें प्रभु ने मूसा के माध्यम से तुम्हें दिया है - जिस दिन से प्रभु ने उन्हें दिया और पीढ़ी दर पीढ़ी तक के लिए -
24) और यदि वह उल्लंघन भूल से और समुदाय के अनजान में किया गया हो, तो सारा समुदाय होम-बलि अर्थात् सुगन्धयुक्त चढ़ावे के रूप में, जो प्रभु को प्रिय है, एक बछड़ा अर्पित करें, उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि तथा अर्घ और इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा।
25) याजक सारे इस्राएली समुदाय के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करे और उन्हें क्षमा मिलेगी; क्योंकि यह उल्लंघन भूल से किया गया और उन्होंने इसके लिए प्रभु को प्रायष्चित-बलि चढ़ायी।
26) इस्राएलियों के सारे समुदाय और उनके बीच रहने वाले विदेषियों को क्षमा मिलेगी, क्योंकि सभी लोग उस भूल से किये हुए अपराध के भागी थे।
27) परन्तु यदि एक व्यक्ति भूल से किसी आज्ञा का उल्लंघन करे, तो वह प्रायष्चित-बलि के लिए एक वर्ष की बकरी चढ़ाये।
28) याजक प्रभु के सामने उस व्यक्ति के लिए, जिसने भूल से अपराध किया है, प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करे ओर इसके बाद उसे क्षमा मिलेगी।
29) यदि कोई भूल से अपराध करे, तो इस्राएल में रहने वाले स्वदेषी और प्रवासी, दोनों के लिए यही नियम लागू होगा।
30) परन्तु यदि कोई, चाहे वह स्वदेषी हो या प्रवासी, जानबूझ कर अपराध करता है, तो वह प्रभु की निन्दा करता है।
31) ऐसा व्यक्ति जाति से बहिष्कृत कर दिया जाये, क्योंकि उसने प्रभु के आदेष का तिरस्कार और उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है। उसका पूर्ण बहिष्कार किया जाये। उसका दोष उसके सिर पड़ेगा।
32) जिस समय इस्राएली उजाड़खण्ड में थे, एक व्यक्ति विश्राम-दिवस पर लकड़ी बीनते पकड़ा गया।
33) जिन लोगों ने उसे बीनते पकड़ा था, वे उसे मूसा, हारून और सारे समुदाय के सामने ले आये।
34) उन्होंने उसे हवालात में रखा, क्योंकि अब तक वे समझ नहीं पाये थे कि उसके साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए।
35) प्रभु ने मूसा को बताया कि उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड दिया जाये। सारा समुदाय मिल कर उसे षिविर के बाहर पत्थरों से मार डाले।
36) इसलिए प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, सारे समुदाय ने उसे षिविर से बाहर ले जा कर पत्थरों से मार डाला।
37) प्रभु ने मूसा से कहा,
38) ''इस्राएलियों से कहो कि वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने वस्त्रों के कोनों में झब्बे लगाये रहें और हर कोने के झब्बे पर नीले रंग का डोरा लगायें।
39) इन झब्बों के लगाने का आषय यह हो कि इन्हें देख कर तुम्हें प्रभु के सब आदेष याद आते रहें, जिससे तुम उनका पालन करते रहो और अपने हृदय और आँखों की लालसाओं में फँस कर मेरे साथ विष्वासघात नहीं करो।
40) इस प्रकार तुम मेरे आदेषों का पालन करने का ध्यान रखोगे और अपने ईष्वर से सामने पवित्र बने रहोगे।
41) मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँ और तुम्हें इसलिए मिस्र से देष से निकाल लाया हूँ कि मैं तुम्हारा ईष्वर होऊँ। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँ।''

अध्याय 16

1) लेवी के वंषज कहात के पोते यिसहार के पुत्र कोरह, एलीआब के पुत्र दातान और अबीरा तथा रूबेन के वंषज पेलेत के पुत्र ओन ने
2) अन्य ढाई सौ इस्राएलियों के साथ, जो समुदाय के प्रतिष्ठित नेता और सभासद थे, मूसा के विरुद्ध विद्रोह किया।
3) वे एकत्रित हो कर मूसा और हारून का विरोध करने आये और बोले : ''बहुत हुआ! सारा समुदाय और उसके सब सदस्य पवित्र है, क्योंकि प्रभु उनके बीच है। आप अपने को प्रभु के समुदाय से बड़ा क्यों समझते हैं?''
4) (४-५) यह सुन कर मूसा ने सिर नीचे झुका लिया और कोरह और उसके पूरे दल को उत्तर देते हुए कहा, ''कल सुबह प्रभु निपटारा कर देगा कि उसका कौन अपना है और कौन इतना पवित्र है कि वह उसे अपने पास तक आने दे। वह जिसे चुनेगा, उसे अपने पास तक आने देगा।
6) तुम लोग ऐसा करो कि कल कोरह ओर उसके दल के सारे लोग धूपदान ले कर आयें ;
7) वे उन में आग रखें और प्रभु के सामने उस पर लोबान रखें। तब प्रभु जिसे चुनेगा, वही पवित्र मान लिया जायेगा। लेवी के वंषजों! बहुत हुआ।''
8) फिर मूसा ने कोरह को सम्बोधित करते हुए कहा, लेवी के वंषजों, सुनो!
9) क्या तुम इतने से सन्तुष्ट नहीं हो कि इस्राएल के ईष्वर ने तुम्हें इस्राएलियों के समुदाय से चुन लिया है, जिससे वह तुम्हें प्रभु के निवास में सेवा करने अपने पास तक आने दे और कि तुम समुदाय की ओर से उसकी सेवा करो?
10) उसने स्वयं तुम को अपने लेवीवंषी भाइयों के साथ अपने निकट तक आ जाने दिया और अब तुम याजक का पद भी पाना चाहते हो?
11) तुम और तुम्हारा सारा दल प्रभु के विरुद्ध एकत्रित हुआ है, क्योंकि हारून कौन है कि तुम उसके विरुद्ध भुनभुनाओ?''
12) इसके बाद मूसा ने एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम को बुलवाया। परन्तु उन्होंने यह कहला भेजा, ''हम नहीं आयेंगे।
13) यही बहुत है कि आप हमें एक ऐसे देष से, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बह रही थीं, इस उजाड़खण्ड में बेमौत मारने को निकाल लाये हैं। क्या अब आप हमारा शासक भी बनना चाहते हैं?
14) आप न हमें ऐसे देष में लाये हैं, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं, और न आपने हमें विरासत के रूप में खेत और दाखबरियाँ दी हैं। आप इन सब लोगों की आँखों में धूल झोंकना चाहते हैं? हम नहीं आयेंगे।
15) यह सुन कर मूसा बहुत क्रुद्ध हुआ और प्रभु से निवेदन करने लगा, तू इनके चढ़ावे स्वीकार न कर। न तो मैंने इन से कोई गधा लिया है और न इन में किसी का कुछ बिगाड़ा है।
16) इसके बाद मूसा ने कोरह से कहा, तुम और तुम्हारे दल के सारे लोग कल प्रभु के सामने आयें। तुम उनके साथ आओ और हारून भी आये।
17) तुम में प्रत्येक अपना धूपदान लेता आये और उस पर लोबान रखे। फिर प्रत्येक अपना धूपदान लाये, अर्थात् ढाई सौ धूपदान प्रभु के सामने ले आओ। तुम और हारून अपना-अपना धूपदान ले कर आना।
18) इसलिए सब ने अपने धूपदान में आग ली, उस पर लोबान रखा और दर्षन-क़क्ष के द्वार पर खड़े हो गये। मूसा और हारून भी खड़े हुए।
19) कोरह ने सारे समुदाय को उनके विरुद्ध दर्षन-कक्ष के द्वार पर एकत्रित किया। तब प्रभु की महिमा सारे समुदाय को दिखाई पड़ी।
20) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
21) ''तुम लोग अपने को उनके दल से अलग कर लो, क्योंकि मैं क्षण भर में ही उनका विनाष करने जा रहा हूँ।
22) तब वे नतमस्तक हो कर निवेदन करने लगे, ''ईष्वर! सारे प्राणियों के जीवनदाता! क्या तू एक व्यक्ति के पाप के कारण सारे समुदाय पर क्रोध करेगा?''
23) इस पर प्रभु ने मूसा से कहा,
24) ''तुम समुदाय से यह कहो - कोरह, दातान और अबीराम के तम्बूओं के पास से दूर हो जाओ।''
25) इसके बाद मूसा उठ कर दातान और अबीराम के पास गया। इस्राएल के नेता भी उसके पीछे हो लिए।
26) तब उसने समुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा, ''इन दुष्ट आदमियों के तम्बूओं से दूर जाओ। इनके किसी भी सामान का स्पर्ष न करो। नहीं तो इनके सब पापों के कारण तुम्हारा भी विनाष हो जायेगा।''
27) तब लोग कोरह, दातान और अबीराम के तम्बूओं से अलग हो गये। दातान और अबीराम निकल कर अपनी पत्नियों और अपने छोट-बड़े बच्चों के साथ अपने तम्बूओं के द्वार पर खड़े थे।
28) उसी समय मूसा ने कहा, ''अब तुम जान जाओगे कि प्रभु ने मुझे ये सब कार्य करने भेजा है और मैं अपने आप कुछ नहीं करता।
29) यदि इन लोगों की मृत्यु अन्य लोगों की तरह हो जाये और इनका भाग्य अन्य मनुष्यों की तरह ही हो, तो समझो कि प्रभु ने मुझे नहीं भेजा है।
30) परन्तु यदि प्रभु कोई असाधारण कार्य करे और पृथ्वी अपना मुँह खोल कर इन्हें और इनका सारा सामान लील+ जाये तथा ये जीवित ही अधोलोक में उतरें, तो तुम जानोगे कि इन मनुष्यों ने प्रभु का तिरस्कार किया है।''
31) मूसा जैसे ही यह कह चुका, उन लोगों के नीचे की भूमि फटी और पृथ्वी अपना मुँह खोल कर उन्हें उनके परिवारों-सहित निगल गयी-यही नहीं,
32) उनके सारे सामान के साथ कोरह के दल वालों को भी।
33) वे अपने परिवारों के साथ जीवित ही अधोलोक में उतरे। उन को निगल जाने के बाद पृथ्वी का मुँह फिर बन्द हो गया। इस तरह समाज से उनका विलोप हो गया।
34) उनका हाहाकार सुन कर आसपास खड़े सब इस्राएली यह सोच कर भाग निकले कि ऐसा न हो पृथ्वी हमें भी निगल जाये।
35) प्रभु की ओर से अग्नि आयी और उसने उन ढाई सौ लोगों को भस्म कर दिया, जो धूप चढ़ाने आये थे।

अध्याय 17

1) इसके बाद प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''याजक हारून के पुत्र एलआज+ार से कहो कि वह अधबुझी अग्नि से धूपदानों को निकाल लें ओर अग्नि इधर-उधर फैला दे। वे ध्ूापदान पवित्र हो गये हैं।
3) जो व्यक्ति अपने पापों के कारण मर गये हैं, उनके धूपदान ठोंक-पीट कर उन से पत्तर बनवाओ, जो वेदी को ढकने के काम आयेंगे। वे प्रभु को अर्पित हो चुके हैं, इसलिए वे पवित्र हो गये हैं। वे इस्राएलियों के लिए एक चिन्ह होंगे।
4) इस पर याजक एलआज+ार ने काँसे के उन धूपदानों को उठा लिया, जिन्हें वे लोग ले आये थे, जो भस्म हो गये थे। उन्हें ठोक-पीट कर वेदी के लिए आवरण बना लिया गया।
5) वइ इस्राएलियों को यह स्मरण दिलाता है कि हारूनवंषियों के सिवा कोई अनधिकारी व्यक्ति प्रभु के सामने धूप जलाने न आये। कहीं ऐसा न हो कि उसके साथ वह हो जाये, जो कोरह और उसके दल वालों के साथ हुआ था। प्रभु ने मूसा के माध्यम से कोरह को यह चेतावनी दी थी।
6) दूसरे दिन इस्राएलियों का सारा समुदाय मूसा और हारून के विरुद्ध भुनभुनाने लगा। वे कहते थे, ''आपने प्रभु की प्रजा को मार डाला।''
7) जब सारा समुदाय मूसा और हारून के विरुद्व एकत्रित हुआ और दर्षन-कक्ष के पास आया, तो लोगों ने देखा कि बादल ने उसे ढक लिया और प्रभु की महिमा प्रकट हो गयी है।
8) इस पर हारून और मूसा दर्षन-कक्ष के सामने आये।
9) प्रभु ने मूसा से यह कहा,
10) ''तुम इस समुदाय से दूर रहो। मैं क्षणभर में इसे नष्ट कर दूँगा। तब दोनों मुँह के बल गिर पड़े।
11) मूसा ने हारून से कहा, ''तुम अपने धूपदान में वेदी पर से आग लो और उस पर लोबान रखों। उसे तुरन्त समुदाय के पास ले जाओ और उनके लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करो, क्योंकि प्रभु का क्रोध भड़क उठा और महामारी प्रारम्भ हो चुकी है।''
12) हारून, मूसा की आज्ञा के अनुसार धूपदान ले कर जल्दी ही लोगों के बीच आया। उन में सचमुच महामारी प्रारम्भ हो चुकी थी उसने धूप चढ़ा कर लोगों के लिए प्रायष्चित्त किया।
13) वह मृतकों और जीवितों के बीच ख़ड़ा रहा और महामारी रूक गयी।
14) उन लोगों के अतिरिक्त, जो कोरह के कारण मर गये थे, उस महामारी में चौदह हजार सात सौ व्यक्तियों की मृत्यु हुई।
15) महामारी रूकने के बाद हारून मूसा के पास दर्षन कक्ष के द्वार पर लौट आया।
16) प्रभु ने मूसा से कहा,
17) ''तुम इस्राएलियों से कहो कि प्रत्येक वंष का मुखिया एक डण्डा ले आये। कुल मिला कर बारह डण्डे होंगे। हर डण्डे पर वंष के मुखिया का नाम लिखो।
18) लेवी के डण्डे पर हारून का नाम लिखो। प्रत्येक मुखिया के लिए एक डण्डा हो।
19) उन्हें दर्षन-कक्ष में विधान की मंजूषा के सामने रखो, जहाँ मैं तुम से मिलने आता हूँ।
20) उस व्यक्ति के डण्डे में अंकुर निकल आयेंगे, जिसे मैं चुनता हूँ। इस तरह मैं तुम्हारे विरुद्ध इस्राएलियों की भुनभुनाहट शान्त कर दूँगा।
21) मूसा ने इस्राएलियों से यह कहा और हर वंष का मुखिया एक डण्डा लाया। कुल मिला कर बारह डण्डे थे और उन में हारून का डण्डा भी था।
22) मूसा ने इन डण्डों को प्रभु के सामने दर्षन-कक्ष में रख दिया।
23) दूसरे दिन जब मूसा ने विधान-पत्र के तम्बू में प्रवेष किया, तो उसने देखा कि लेवीवंषी हारून के डण्डे में अंकुर निकले थे। उस में कोपलें और बौंड़ियाँ निकल आयी थीं और उस में बादाम भी लग गये थे।
24) मूसा उन सब डण्डों को इस्राएलियों के पास बाहर लाया, जो प्रभु के सामने रखे हुए थे। उन्होंने उन्हें देखा और अपना डण्डा वापस ले लिया।
25) इसके बाद प्रभु ने मूसा से कहा, ''हारून का डण्डा विधान-पत्र के सामने फिर रखो। वह वहाँ विद्रोहियों को चेतावनी देता रहेगा। इस प्रकार वे मेरे विरुद्ध भुनभुनाना बन्द करेंगे और उनकी मृत्यु नहीं होगी।''
26) प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया, मूसा ने वैसा ही किया।
27) इस्राएलियों ने मूसा से कहा, ''देखिए, हमारा विनाष हो रहा है। हम मर रहे हैं, हम सब मर रहे हैं।
28) जो व्यक्ति प्रभु के निवास के पास आता है, वह मर जाता है। क्या हम सब की मृत्यु हो जायेगी?''

अध्याय 18

1) प्रभु ने हारून से कहा, ''पवित्र स्थान की सेवा में किये हुए, दोषों की जिम्मेदारी तुम्हारी, तुम्हारे पुत्रों और तुम्हारे परिवार की होगी। याजकीय सेवा में किये हुए दोषों की जिम्मेदारी तुम्हारी और तुम्हारे पुत्रों की होगी।
2) तुम अपने पिता के वंष, अर्थात् लेवी वंष के अपने भाइयों को भी अपने पास आने दो और विधान पत्र के तम्बू की सेवा में अपनी और अपने पुत्रों की सहायता करने दो।
3) वे तम्बू में सेवा करते हुए तुम्हारी सहायता करेंगे, किन्तु वे पवित्र-स्थान के पात्रों और वेदी के पास नहीं जायें। नहीं तो उनकी और तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।
4) वे तुम्हारे सहायक बनें और दर्षन-कक्ष की देखभाल करें। कोई अनधिकारी व्यक्ति तुम्हारे पास नहीं आ सकता।
5) पवित्र स्थान और वेदी की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। इस प्रकार इस्राएलियों पर फिर क्रोध नहीं भड़केगा।
6) मैंने तुम्हारे भाइयों को, लेवियों को इस्राएलियों में से चुन लिया। वे प्रभु को अर्पित हैं, जिससे वे दर्षन-कक्ष में सेवा कार्य करें और तुम्हारी सहायता करें।
7) तुम और तुम्हारे पुत्र वेदी और अन्तरपट के पीछे याजक की सब क्रियाएं सम्पन्न करेंगे। यह तुम्हारा कार्य है। मैं तुम को वरदान के रूप में याजक का सेवा-कार्य सौंपता हूँं। यदि कोई अनधिकारी व्यक्ति समीप आयेगा, तो उसे मृत्युदण्ड दिया जायेगा।''
8) प्रभु ने हारून से कहा, ''इस्राएली मुझे जो चढ़ावे र्अपित करते हैं, मैं उनकी देख-रेख तुम्हें सौंपता हूँ और उन्हें तुम को और तुम्हारे पुत्रों को देता हूँ। यह एक अपरिवर्तनीय नियम है।
9) जो परम्परागत चढ़ावे नहीं जलाये जाते हैं, उनका एक भाग तुम्हारा होगा, अर्थात् सब अन्न बलियाँ प्रायष्चित और क्षतिपूर्ति-बलियाँ। यह तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का भाग है।
10) तुम उन्हें एक पवित्र स्थान पर खाओगे। उन्हें सभी पुरुष खा सकते हैं। तुम उन्हें पवित्र मानोगे।
11) यह भी तुम्हारा भाग होगा इस्राएलियों के जो चढ़ावे हिला-हिला कर अर्पित किये जाते हैं, उनका एक भाग मैं तुम्हें देता हूँ। यह एक चिरस्थायी नियम के अनुसार तुम्हारा, तुम्हारे पुत्रों और पुत्रियों का भाग है। तुम्हारे परिवार का प्रत्येक सदस्य उसे खा सकता है, बषर्ते वह शुद्ध हो।
12) तेल का सब सर्वोत्तम भाग और नयी अंगूरी और अन्न का सर्वोत्तम भाग, प्रभु को अर्पित प्रथम फल - मैं यह सब तुम को देता हूँ।
13) लोगों द्वारा अर्पित अपने खेतों के प्रथम फल तुम्हारे हैं। तुम्हारे परिवार का प्रत्येक सदस्य उन्हें खा सकता है, बषर्ते वह शुद्ध हो।
14) इस्राएल में प्रत्येक पूर्ण-समर्पित वस्तु तुम्हारी है।
15) प्रभु को अर्पित शरीरधारियों के पहलौठे तुम्हारे हैं - चाहे वे मनुष्यों के हों, चाहे पशुओं के। तुम मनुष्यों और अषुद्ध पशुओं के पहलौठों को छुड़ाने का प्रबन्ध करोगे।
16) छुड़ाये जाने वाले बच्चे एक महीने की अवस्था में निर्धारित मूल्य पर छुड़ाये जायें। उनका मूल्य पवित्र-स्थान के शेकेलों की तौल के अनुसार पाँच शेकेल हैं - प्रत्येक शेकेल में बीस गेरा।
17) गायों, भेड़ों और बकरियों के पहलौठे बच्चे नहीं छुड़ाये जायें। वे पवित्र हैं। उनका रक्त वेदी पर छिड़कोगे और उनकी चरबी होम-बलि के रूप में अर्पित करोगे। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
18) उनका मांस तुम्हारा भाग होगा। हिला-हिला कर अर्पित छाती और दाहिनी जाँघ भी तुम्हारी है।
19) मैं इस्राएलियों द्वारा प्रभु को अर्पित सब पवित्र चढ़ावों का एक निर्धारित भाग तुम्हें, तुम्हारे पुत्रों और पुत्रियों को देता हूँ। यह प्रभु की दृष्टि में तुम्हारे और तुम्हारे वंषजों के लिए एक चिरस्थायी विधान है।
20) प्रभु ने हारून से कहा - ''तुम्हें विरासत के रूप में इस्राएलियों की तरह कोई ज+मीन नहीं मिलेगी। उनके साथ तुम्हारा कोई अपना भाग नहीं होगा। इस्राएलियों के बीच मैं ही तुम्हारा भाग और तुम्हारी विरासत हूँ।
21) मैं लेवियों को दर्षन-कक्ष में उनकी सेवा के पुरस्कार में इस्राएलियों द्वारा अर्पित दषमांष देता हूँ।
22) इस्राएली दर्षन-कक्ष के निकट कभी नहीं आयें। नहीं तो इस पाप के कारण उनकी मृत्यु हो जायेगी।
23) लेवी ही दर्षन-कक्ष का सेवा-कार्य करेंगे। उस में किये हुए दोषों की जिम्मेवारी उनकी होगी। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक चरस्थायी विधान है। लेवियों को इस्राएलियों के यहाँ कोई ज+मीन नहीं मिलेगी।
24) इस्राएली प्रभु को जो दषमांष अर्पित करते हैं, मैं इसे लेवियों को देता हूँं। इसलिए मैंने निष्चय किया कि उन्हें अन्य इस्राएलियों के साथ विरासत नहीं मिलेगी।''
25) प्रभु ने मूसा से कहा,
26) लेवियों से यह कहो - जब तुम इस्राएलियों से मेरे द्वारा अपने को दिये दायभाग के रूप में दषमांष पाते हो, तब तुम उसका एक निष्चित अंष, दषमांष का दषमांष प्रभु को अर्पित करोगे।
27) तुम्हारा यह चढ़ावा दूसरों द्वारा अर्पित खलिहान के अन्न और अंगूर के रस-कुण्ड का दषमांष समझा जायेगा।
28) इस प्रकार तुम भी इस्राएलियों से प्राप्त दषमांष का एक भाग प्रभु को अर्पित करोगे। तुम प्रभु का यह भाग याजक हारून को दोगे।
29) तुम को जो कुछ भी मिलेगा, उसका सर्वोत्तम और सब से पवित्र भाग प्रभु को अर्पित करोगे।
30) उन से यह कहो - यदि तुम उसका सर्वोत्तम भाग चढ़ाते हो, तो वह खलिहान और अंगूर के रस-कुण्ड का सर्वोत्तम भाग समझा जायेगा।
31) तुम और तुम्हारे कुटुम्बी उसे हर जगह खा सकते हैं, क्योंकि वह दर्षन-कक्ष में तुम्हारे सेवा-कार्य का पुरस्कार है।
32) यदि तुम उन में सर्वोत्तम भाग चढ़ाते हो, तो इस संबंध में तुम्हारा कोई दोष नहीं होगा। इस प्रकार तुम इस्राएलियों के पवित्र चढ़ावे अपवित्र नहीं करोगें और तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी।''

अध्याय 19

1) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
2) ''प्रभु संहिता का यह नियम घोषित करता है, इस्राएलियों को लाल रंग की ऐसी कलोर ले आने का आदेष दो, की अदोष हो और जो जोती न गयी हो।
3) तुम उसे याजक एलआजार को दो। वह षिविर के बाहर ले जायी जाये और वहाँ उसके सामने उसका वध किया जाये।
4) याजक एलआजार कलोर के रक्त में अपनी उँगली डुबो कर उसे दर्षन-कक्ष के द्वार की ओर सात बार छिड़के।
5) इसके बाद कलोर उसके सामने जला दी जाये। उसकी खाल, उसके मांस, रक्त और गोबर आदि भी जला दिये जायें।
6) याजक देवदार की लकड़ी, जूफा और लाल डोरे उस आग में डाल दे, जिस में कलोर जलायी जा रही है।
7) इसके बाद याजक अपने वस्त्र धोये और जल से स्नान करे। वह फिर षिविर में आ सकता है, परन्तु वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
8) वह व्यक्ति, जो कलोर को जलाता है, अपने वस्त्र जल से धोये और जल से स्नान करे। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
9) तब एक व्यक्ति, जो षुद्ध है, उस कलोर की राख बटोर कर उसे षिविर के बाहर किसी स्वच्छ स्थान पर रखेगा और उस से इस्राएलियों के शुद्धीकरण का जल तैयार किया जायेगा।
10) जिसने कलोर की राख बटोरी है, वह अपने वस्त्र धोये। वह शाम तक अषु+द्ध रहेगा। इस्राएलियों और उनके साथ रहने वाले विदेषी प्रवासियों के लिए यह चिरस्थायी विधि होगी।
11) ''जिसने मनुष्य के शव का स्पर्ष किया है, वह सात दिन तक अषुद्ध रहेगा।
12) वह तीसरे और सातवें दिन उस जल से अपना शुद्धीकरण करायेगा। इसके बाद वह शुद्ध होगा। परन्तु यदि वह तीसरे ओर सातवें दिन अपना शुद्धीकरण नहीं करता, तो वह शुद्ध नहीं होगा।
13) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिसने मृतक के शव का स्पर्ष किया है और अपना शुद्धीकरण नहीं कराया, प्रभु के निवास को अषुद्ध करता है। ऐसे व्यक्ति को इस्राएल से बहिष्कृत किया जाना चाहिए। उस पर शुद्धीकरण का जल नहीं छिड़का गया है, इसलिए वह अषुद्ध है। उसकी अषुद्धता उसे लगी रहती है।
14) ''यदि कोई व्यक्ति तम्बू में मर जाये, तो नियम यह है - प्रत्येक व्यक्ति, जो उस तम्बू में प्रवेष करता है या उस में विद्यमान है, सात दिन तक अषुद्ध होगा।
15) प्रत्येक ऐसा पात्र अषुद्ध हो जायेगा, जिस पर ढक्कन न हो।
16) ''वह व्यक्ति भी सात दिन के लिए अषुद्ध हो जायेगा, जो खुले मैदान में मारे हुए व्यक्ति या किसी मृतक, किसी मनुष्य की हड्डी या किसी कब्र का स्पर्ष करेगा।
17) ''अषुद्ध व्यक्ति के लिए जलायी हुई कलोर की कुछ राख एक पात्र में रखकर उस पर झरने का जल उँड़ेला जाये।
18) एक शुद्ध व्यक्ति उस पानी में ज+ूफ़ा डुबो कर तम्बू पर और उस में के सब पात्रों और मनुष्यों पर पानी छिड़के। वह उस व्यक्ति पर भी वह पानी छिड़के, जिसने खुले मैदान में मारे हुए व्यक्ति या किसी मृतक, किसी मनुष्य की हड्डी या कब्र का स्पर्ष किया हो।
19) वह शुद्ध व्यक्ति उस अषुद्ध व्यक्ति पर तीसरे और सातवें दिन जल छिड़केगा। इस प्रकार वह सातवें दिन उसका शुद्धीकरण करेगा। वह व्यक्ति अपने वस्त्र धोये और जल से स्नान करे। वह शाम को शुद्ध हो जायेगा।
20) ''परन्तु जो अषुद्ध होने पर भी अपने को शुद्ध नहीं कराता, वह समुदाय से बहिष्कृत किया जाये, क्योंकि वह प्रभु के पवित्र-स्थान को अषुद्ध करता है। उस पर शुद्धीकरण का जल न छिड़के जाने के कारण वह अषुद्ध रहेगा।
21) उनके लिए यही विधान है, जो सदा मान्य होगा। जो शुद्धीकरण का जल छिड़के, वह अपने वस्त्र धोये। जो शुद्धीकरण का जल स्पर्ष करता है, वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
22) वे सब वस्तुएँ अषुद्ध हो जायेंगी, जिनका स्पर्ष अषुद्ध व्यक्ति करता है और जो उनका स्पर्ष करेगा, वह भी शाम तक अषुद्ध रहेगा।

अध्याय 20

1) इस्राएलियों का सारा समुदाय, पहले महीने, सिन नामक मरूभूमि पहुँचा और कुछ समय तक कादेष में रहा। वहाँ मिरयम की मृत्यु हो गयी और वह दफ़नायी गयी।
2) लोगों को पानी नहीं मिल रहा था, इसलिए वे एकत्र हो कर मूसा और हारून का विरोध करने लगे।
3) उन्होंने यह कहते हुए मूसा से षिकायत की, ''ओह! यदि हम अपने भाई-बन्धुओं के साथ ही प्रभु के हाथ मर गये होते!
4) क्या आप इसलिए प्रभु का समुदाय इस मरूभूमि में ले आये कि हम और हमारे पशु यहाँ मर जायें?
5) आप हमें मिस्र से निकाल कर इस अषुभ स्थान में क्यों ले आये, जहाँ न तो अजान मिलता है, न अंजीर, न अंगूर और न अनार? यहाँ तो पीने का पानी तक नहीं मिलता!''
6) मूसा और हारून सभा को छोड़ कर दर्षन कक्ष के द्वार पर आये। वे मुँह के बल गिर पड़े और उन्हें प्रभु की महिमा दिखाई दी।
7) प्रभु ने मूसा से यह कहा,
8) ''डण्डा ले लो और अपने भाई हारून के साथ समुदाय को एकत्र करो। तुम लोगों के सामने चट्टान को यह आदेश दोगे - हमें अपना पानी दो। इस प्रकार तुम चट्टान से पानी निकालोगे और तुम लोगों और पशुओं को पीने के लिए पानी दोगे।''
9) मूसा ने तम्बू से डण्डा ले लिया, जैसा कि प्रभु ने उसे आदेष दिया था।
10) मूसा और हारून ने चट्टान के सामने लोगों को एकत्र किया और उन से कहा, ''विद्रोहियों! सुनो। क्या हम तुम लोगों के लिए इस चट्टान से पानी निकालें?''
11) मूसा ने हाथ उठा कर दो बाद चट्टान पर डण्डा मारा और चट्टान से पानी की धारा फूट निकली। इस प्रकार लोगों और पशुओं को पीने के लिए पानी मिला।
12) इसके बाद प्रभु ने मूसा और हारून से कहा, ''तुमने मुझ में विष्वास नहीं किया और इस्राएलियों की दृष्टि में मेरी पवित्रता को बनाये नहीं रखा ; इसलिए तुम इस समुदाय को उस देष नहीं पहुँचाओंगे, जिसे मैं उन्हें दे दूँगा।''
13) यह मरीबा का पानी है, जहाँ इस्राएलियों ने प्रभु की षिकायत की और प्रभु ने उनके सामने अपनी पवित्रता प्रकट की।
14) कादेष से मूसा ने एदोम के राजा के पास अपने दूत भेज कर यह कहलवाया, ''आपके भाई इस्राएल यह कहते हैं आप को उन सभी कष्टों की जानकारी है, जो हमें झेलने पड़ रहे हैं।
15) हमारे पूर्वज मिस्र गये थे। हम वहाँ बहुत समय तक रहे। मिस्री हमारे और हमारे पूर्वजों के साथ बुरा व्यवहार करते थे।
16) जब हमने प्रभु की दुहाई दी, तो उसने हमारी पुकार सुन कर हमें मिस्र से निकाल ले जाने के लिए एक दूत भेजा। अब हम कादेष में हैं, जो आपके देष की सीमा पर अवस्थित नगर है।
17) आप हमें अपने देष से हो कर जाने दें। हम खेतों या दाखबारियों से होकर नहीं जायेंगे और न किसी कुएँ से पानी ही पियेंगे। हम राजमार्ग से सीधे चले जायेंगे और जब तक हम आपका देष पार नहीं करेंगे, तब तक न तो दाहिनी ओर मुड़ेंगे और न बायीं ओर।''
18) परन्तु एदोम ने यह उत्तर भिजवाया, ''तुम पार नहीं जा सकते। यदि पार जाओगे, तो हमें तुम्हारे विरुद्ध तलवार उठानी पड़ेगी।''
19) इस पर इस्राएलियों ने उसे उत्तर दिया, ''हम केवल राजमार्ग से जायेंगे और यदि हम और हमारे पशु आपके देष का पानी पियेंगे, तो हम उसका मूल्य चुकायेंगे। हमें पैदल ही निकल जाने दीजिए। हम इस से अधिक कुछ नहीं चाहतें।''
20) परन्तु एदोम ने उत्तर दिया, ''तुम पार नहीं कर सकते।'' एदोम अपने बहुत से पैदल और सषस्त्र सैनिकों को ले कर उनका सामना करने के लिए निकल आया।
21) जब एदोम ने इस्राएलियों को देष पार करने की अनुमति नहीं दी, तब इस्राएली दूसरी ओर मुड़ गये।
22) कादेष से आगे बढ़कर इस्राएलियों का सारा समुदाय होर पर्वत पर पहुँचा। होर पर्वत पर,
23) जो एदोम देष की सीमा पर है, प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
24) ''अब हारून अपने पूर्वजों के पास जायेगा। वह उस देष में नहीं जा सकेगा, जिसे मैं इस्राएलियों को देने वाला हूँ; क्योंकि तुमने मरीबा के जलाषयों के पास मेरे आदेषों की अवहेलना की थी।
25) हारून और उसके पुत्र एलआज+ार को ले कर होर पर्वत पर, जाओ।
26) वहाँ हारून ने अपने वस्त्र उतर दे। फिर तुम उन्हें उसके पुत्र एलआज+ार को पहना दो। वहाँ हारून की मृत्यु हो जायेगी और वह अपने पूर्वजों से जा मिलेगा।
27) मूसा ने प्रभु के आदेष का पालन किया। सारे समुदाय के देखते-देखते वे होर पर्वत पर चढ़ गये।
28) वहाँ मूसा ने हारून से उसके वस्त्र उतरवाये और उन्हें उसके पुत्र एलआज+ार को पहना दिया। उसी पर्वत-षिखर पर हारून का देहान्त हो गया। तब मूसा और एलआज+ार पर्वत से नीचे उतरे।
29) सारे समुदाय को पता चला कि हारून का देहान्त हो गया है। इस्राएल के सारे घराने ने हारून के लिए तीस दिन तक शोक मनाया।

अध्याय 21

1) जैसे ही नेगेब-निवासी अराद के कनानी राजा ने सुना कि इस्राएली अतारीम के मार्ग से आ रहे हैं, वैसे ही उसने इस्राएलियों पर आक्रमण कर कुछ लोगों को कैदी बना लिया।
2) इस पर इस्राएलियों ने प्रभु से लिए यह मन्नत की, ''यदि तू हमारे अधिकार में वह राष्ट्र दे देगा, तो हम उसके नगरों का पूरी तरह विनाष करेंगे।''
3) प्रभु ने इस्राएलियों की प्रार्थना सुनी और कनानियों को उनके हवाले कर दिया। तब उन्होंने उनका और उनके नगरों का पूरा-पूरा विनाष किया; इसलिए उस स्थान का नाम होरमा पड़ा।
4) होर पर्वत से वे एदोमियों के देष के किनारे-किनारे चल कर लाल समुद्र की ओर आगे बढ़े। यात्रा करते-करते लोगों का धैर्य टूट गया
5) और वे यह कहते हुए ईष्वर और मूसा के विरुद्ध भुनभुनाने लगे, ''आप हमें मिस्र देष से निकाल कर यहाँ मरुभूमि में मरने के लिए क्यों ले आये हैं? यहाँ न तो रोटी मिलती है और न पानी। हम इस रूखे-सूखे भोजन से ऊब गये हैं।''
6) प्रभु ने लोगों के बीच विषैले साँप भेजे और उनके दंष से बहुत-से इस्राएली मर गये।
7) तब लोग मूसा के पास आये और बोले, ''हमने पाप किया। हम प्रभु के विरुद्ध और आपके विरुद्ध भुनभुनाये। प्रभु से प्रार्थना कीजिए कि वह हमारे बीच से साँपों को हटा दे।'' मूसा ने जनता के लिए प्रभु से प्रार्थना की
8) और प्रभु ने मूसा से कहा, ''काँसे का साँप बनवाओ और उसे डण्डे पर लगाओ। जो साँप द्वारा काटा गया, वह उसकी ओर दृष्टि डाले और वह अच्छा हो जायेगा।''
9) मूसा ने काँसे का साँप बनवाया और उसे डण्डे पर लगा दिया। जब किसी को साँप काटता था, तो वह काँसे के साँप की ओर दृष्टि डाल कर अच्छा हो जाता था।
10) इस्राएलियों ने आगे बढ़ कर ओबोत के पास पड़ाव डाला।
11) फिर ओबोत से आगे बढ़ कर उन्होंने मोआब के पूर्व के उजाड़खण्ड में, इय्ये-अबारीम के पास पड़ाव डाला।
12) वहाँ से आगे बढ़ कर उन्होंने जेरेद की घाटी में पड़ाव डाला।
13) वहाँ से आगे बढ़ कर उन्होंने अरनोन नदी के उस पार के उजाड़खण्ड के उस स्थान पर पड़ाव डाला, जहाँ वह अमोरियों के देष से बहती हुई आती है। वह नदी मोआबियों और अमोरियों के बीच मोआब की सीमा है।
14) इसीलिए ÷प्रभु के युद्ध÷ नामक पुस्तक में लिखा है : ''सूफा में वाहेब और अरनोन की जलधाराएँ,
15) जो आर तक जाती हैं और मोआब की सीमा छूती है।''
16) वहाँ से वे बएर आये। यह वही कुआँ है, जहाँ प्रभु ने मूसा से कहा कि ''लोगों को एकत्रित करो और मैं उन्हें पानी दूँगा।''
17) उस समय इस्राएलियों ने यह गीत गायाः
18) राजाओं ने उसे खोदा,
19) मत्ताना से नहलीएल और नहलीएल से बामोत पहुँचे।
20) बामोत से चल कर वे उस तराई तक पहुँचे, जो मोआब के मैदान में है और जहाँ पिसगा की चोटी पर से रेगिस्तान दिखाई देता है।
21) तब इस्राएलियों ने अमोरियों के राजा सीहोन के पास दूत भेज कर उस से यह कहा,
22) ''आप हमें अपने देष से हो कर जाने दें। हम खेतों या दाखबारियों से हो कर नहीं जायेंगे और न किसी कुएँ से पानी ही पियेंगे। हम जब तक आपका देश पार नहीं करेंगे, तब तक राजमार्ग पर सीधे चलते जायेंगे।''
23) परन्तु सीहोन ने इस्राएलियों को अपना देष पार करने की अनुमति नहीं दी। इसके विपरीत सीहोन ने अपनी सारी सेना एकत्रित की और इस्राएलियों का सामना करने उजाड़खण्ड की ओर बढ़ा। उसने यहस तक आ कर इस्राएलियों पर आक्रमण किया।
24) परन्तु इस्राएलियों ने उसे तलवार के घाट उतारा और उसके देष को अरनोक से यब्बोक तक, अम्मोनियों के देष तक, अपने अधिकार में कर लिया। अम्मोनियों की सीमा किलाबन्द थी।
25) इस्राएलियों ने उन सब नगरों को अपने अधिकार में कर लिया और वे अमोरियों के सारे नगरों में, हेषबोन और उसके आसपास की सब बस्तियों में बस गये।
26) हेषबोन अमोरियों के राजा सीहोन की राजधानी थी। उसने पहले मोआबी राजा से युद्ध किया और अरनोन तक उसका सारा देष उसके हाथ से छीन लिया था।
27) इसलिए कवि कहते हैं :
28) हेषबोन से आग फूट पड़ी,
29) मोआब! तुम पर शोक!
30) हमने उन्हें वाणों से छेदा है।
31) इस्राएली अमोरियों के देष में बस गये
32) मूसा ने लोगों को याजेर का भेद लेने के लिए भेजा। उन्होंने उसकी सब बस्तियों के साथ उसे अपने अधिकार में कर लिया और अमोरियों को भगा दिया।
33) इसके बाद वे बाषान की ओर आगे बढ़े। तब बाषान का राजा ओग अपनी समस्त सेना के साथ निकल पड़ा और एद्रेई के पास उनका सामना किया।
34) प्रभु ने मूसा से कहा, ''इस से मत डरो, क्योंकि मैं इसकी सारी प्रजा, इसका देष और इस को भी तुम्हारे हवाले कर देता हूँ। तुमने हेषबोन के अमोरियों के राजा सीहोन के साथ जैसा किया था, वैसा ही इसके साथ करो।
35) इसलिए उन्होंने उसे, उसके पुत्रों और उसकी समस्त प्रजा को इस प्रकार परास्त किया कि एक भी व्यक्ति जीवित नहीं रहा। फिर उन्होंने उसका देष अपने अधिकार में कर लिया।

अध्याय 22

1) इसके बाद इस्राएलियों ने आगे बढ़ कर यर्दन नदी के उस पार, येरीखों के सामने, मोआब देष के मैदान में पड़ाव डाला।
2) सिप्पोंर का पुत्र बालाक वह सब देख चुका था, जो इस्राएलियों ने अमोरियों के साथ किया था।
3) मोआब भयभीत हो गया, क्योंकि इस्राएलियों की संख्या बहुत अधिक थी। इस्राएलियों को देख कर मोआबियों में आंतक फैल गया।
4) इसलिए मोआबियों ने मिदयानियों के नेताओं से कहा, ''अब यह विषाल जनसमूह हमारे आसपास की सब चीजों को वैसे ही चाट जायेगा, जैसे बैल खेत की हरी घास चट कर जाता है।'' उस समय सिप्पोर का पुत्र बालाक मोआबियों का राजा था।
5) उसने अपनी जन्मभूमि के पतोर नामक स्थान को, जो फरात नदी के तट पर है, दूत भेज कर बओर के पुत्र बिलआम से कहलवाया, ''मिस्र देष से एक जाति आयी है। वह सारे प्रदेष पर छा गयी है और मेरे सीमान्तों तक पहुँची है।
6) आप आइए और उस जाति को शाप दीजिए, क्योंकि वह मुझ से अधिक शक्तिषाली है। सम्भव है, मैं इसके बाद उस को पराजित कर देष से निकालने में समर्थ हो जाऊँगा। मैं जानता हूँ कि आप जिसे आषीर्वाद देते हैं उसका कल्याण होता है और जिसे शाप देते हैं, उस पर विपत्तियाँ आ पड़ती हैं।''
7) इस पर मोआबियों और मिदयानियों के नेता भविष्यवाणी का शुल्क ले कर रवाना हुए। बिलआम के पास आ कर उन्होंने उसे बालाक का सन्देष सुनाया।
8) इस पर वह उन से बोला, ''यहाँ रात बिताओ। इसके बाद मैं तुम को प्रभु का उत्तर बताऊँगा।'' मोआब के नेता बिलआम के यहाँ ठहर गये।
9) ईष्वर ने बिलआम को दर्षन दे कर उस से पूछा, ''तुम्हारे यहाँ रहने वाले लोग कौन हैं?''
10) बिलआम ने ईष्वर को उत्तर दिया, ''मोआबियों के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक ने उन्हें मेरे यहाँ यह कहने के लिए भेजा है कि
11) मिस्र से एक जाति आयी है। वह सारे प्रदेष पर छा गयी है। आप आइए और उस जाति को शाप दीजिए। सम्भव है कि इसके बाद मैं उस को पराजित कर भगाने में समर्थ हो जाऊँगा।
12) इस पर ईष्वर ने बिलआम से कहा, ''तुम इनके साथ नहीं जाओ और उस जाति को शाप मत दो, क्योंकि वह जाति धन्य है।''
13) सबेरे उठने पर बिलआम ने बालाक के नेताओं को यह संदेष दिया, ''अपने देष लौट जाओ, क्योंकि प्रभु ने मुझे तुम्हारे साथ जाने की अनुमति नहीं दी।''
14) इस पर मोआबी नेता चले गये। बालाक के पास पहुँचने पर वे उस से बोले, ''बिलआम ने हमारे साथ आना अस्वीकार किया।''
15) इस पर बालाक ने फिर नेताओं को भेजा, जो पहले नेताओं से अधिक प्रतिष्ठित और संख्या में अधिक थे।
16) बिलआम के यहाँ पहुँच कर वे उस से बोले, ''सिप्पोर का पुत्र बालाक आप से यह कहता है कि मेरे यहाँ आना अस्वीकार न कीजिए,
17) मैं आप को महान् पुरस्कार दूँगा और आप जो कुछ भी कहेंगे, मैं वह सब करूँगा। इसलिए आ कर मेरे लिए उस जाति को शाप दीजिए।''
18) बिलआम ने बालाक के लोगों को उत्तर देते हुए कहा, ''यदि बालाक मुझे अपने महल का सारा सोना-चाँदी भी दें, तो भी मैं किसी भी तरह प्रभु के आदेष का उल्लंघन नहीं कर सकता।
19) +एक रात मेरे यहाँ ठहरो। मैं पता लगाता हूँ कि प्रभु की आज्ञा क्या है।''
20) रात को ईष्वर ने बिलआम को दर्षन दे कर उस से कहा, ''यदि ये लोग तुम्हें ले जाने के लिए आये हों, तो इनके साथ चले जाओ; परन्तु तुम वही कहोगे, जिसकी मैं तुम्हें आज्ञा दूँगा।''
21) दूसरे दिन सबेरे उठ कर बिलआम ने अपनी गधी कसी और मोआबी नेताओं के साथ चल पड़ा।
22) तब प्रभु को क्रोध हुआ, क्योंकि वह उनके साथ चला गया। प्रभु का दूत उसे रोकने के लिए रास्ते में खड़ा हो गया। वह अपनी गधी पर सवार हो कर जा रहा था और उसके साथ दो सेवक थे।
23) जब गधी ने प्रभु के दूत को रास्ते में तलवार खींचे खड़ा देखा, तब गधी रास्ते से मुड़ कर खेत हो कर आगे बढ़ी। इस पर बिलआम गधी को रास्ते पर लाने के लिए मारने लगा।
24) तब प्रभु का दूत दाखबारियों के बीच के संकरे मार्ग पर खड़ा हो गया, जहाँ दोनों तरफ़ दीवारें थी।
25) प्रभु के दूत को देख कर गधी ने दीवार से सट कर निकलना चाहा; उसने बिलआम का पैर दीवार से टकरा दिया। इसलिए उसने उसे फिर मारा।
26) अब प्रभु का दूत कुछ आगे जा कर एक ऐसे संकरे स्थान पर खड़ा हो गया, जहाँ न तो दाहिनी ओर से निकलने की जगह थी और न बायीं ओर।
27) जब उस गधी ने प्रभु के दूत को देखा, तब वह बिलआम के नीचे बैठ गयी। इस से बिलआम को बड़ा क्रोध अया और उसने गधी को लाठी से मारा।
28) इस पर प्रभु ने उस गधी को वाणी दी और वह बिलआम से कहने लगी, ''मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुमने मुझे तीन बार मारा है?''
29) बिलआम ने गधी को उत्तर दिया, ''इसलिए कि तूने मेरा मजाक उड़ाया, हैं। यदि मेरे हाथ में तलवार होती, तो मैं तुझे निष्चय ही मार डालता।''
30) गधी ने बिलआम को उत्तर दिया, ''क्या मैं तुम्हारी वही गधी नहीं हूँ, जिस पर तुम अब तक सवारी करते रहे हो? क्या मैंने पहले कभी तुम्हारे साथ ऐसा किया था?'' उसने उत्तर दिया ''नहीं''।
31) इस पर प्रभु ने बिलआम की आँखें खोल दीं और उसने मार्ग पर प्रभु के दूत को तलवार खींचे खड़ा देखा। उसने भूमि पर सिर झुका कर साष्टांग प्रणाम किया।
32) प्रभु के दूत ने उस से पूछा, ''आपने अपनी गधी को तीन बार क्यों मारा? मैं आप को रोकने आया हूँ, क्योंकि मेरी दृष्टि में आपकी यात्रा का परिणाम अच्छा नहीं होगा।
33) गधी मुझे देख कर मेरे सामने से तीन बार मुड़ी। यदि वह न मुड़ती, तो मैं निष्चय ही आप को मार डालता और उसे बचा लेता।''
34) इस पर बिलआम ने प्रभु के दूत से कहा, ''मैंने पाप किया है। मुझे पता नहीं था कि आप मेरे सामने रास्ते पर खड़े हैं। यदि यह यात्रा आप को पसन्द नहीं है, तो मैं वापस जाने को तैयार हूँ।''
35) परन्तु प्रभु के दूत ने बिलआम से कहा, ''आप इन लोगों के साथ आगे बढ़ें, लेकिन जो मैं बताऊँगा, आप वही करेंगे।'' इसके बाद बिलआम बालाक के नेताओं के साथ आगे बढ़ा।
36) जब बालाक ने सुना कि बिलआम आ रहा है, तो वह उस से मिलने के लिए ईर-मोआब तक गया। वह नगर अपने प्रदेष की सीमा, अरनोन नदी के पास था।
37) बालाक ने बिलआम से कहा, ''मैंने आप को बार-बार बुला भेजा, तो आप मेरे पास क्यों नहीं आये? क्या मैं आप को उचित पुरस्कार नहीं दे सकता?''
38) बिलआम ने बालाक को उत्तर दिया, ''मैं तो आपके पास आ गया हूँ, किन्तु मैं मनमानी बातें नहीं कह सकता। मैं केवल वही बातें बताऊँगा, जो ईष्वर मुझ से कहलायेगा।''
39) इसके बाद बिलआम बालाक के साथ चल पड़ा और वे किर्यात-हुसोत पहुँचे।
40) वहाँ बालाक ने बछड़ों और भेड़ो की बलि चढ़ायी और बिलआम और उसके साथ के नेताओं को उनका प्रसाद भेजा।
41) दूसरे दिन सबेरे बालाक बिलआम को अपने साथ ले कर बामोत-बाल के ऊपर गया, जहाँ से वह इस्राएलियों के षिविर का एक भाग देख सकता था।

अध्याय 23

1) तब बिलआम ने बालाक से कहा, ''यहाँ मेरे लिए सात वेदियाँ बनायें और मेरे लिए सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार रखें।''
2) बालाक ने बिलआम की बात मान ली। बालाक और बिलआम ने प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
3) इस पर बिलआम ने बालाक से कहा, ''आप अपनी होम-बलि के पास खड़े रहें। मैं थोड़ा आगे जाऊँगा। सम्भव है, प्रभु मुझ से मिलने आये। वह मुझ पर जो प्रकट करेगा, मैं उसे आप को बता दूँगा।'' इसके बाद वह एक एकान्त स्थान गया।
4) तब ईष्वर ने बिलआम को दर्षन दिये। बिलआम ने उस से कहा, ''मैंने सात वेदियाँ तैयार करवायी हैं और प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है।''
5) तब प्रभु ने बिलआम को एक संदेष दिया और उसे आज्ञा दी कि वह बालाक के पास लौट कर वह संदेष दुहराये।
6) वह उसके पास लौट गया। बालाक अब तक मोआबी नेताओं के साथ अपनी होम-बलि के पास खड़ा था।
7) इस पर बिलआम ने यह गीत सुनायाः
8) जिसे प्रभु षाप नहीं देता,
9) चट्टानों के षिखर पर से मैं उसे देखता हूँ,
10) याकूब के धूलि-कणों को कौन गिन सकता है?
11) बालाक ने बिलआम से कहा, ''आपने मेरे साथ क्या किया? मैंने आप को अपने शत्रुओं को शाप देने के लिए बुलवाया और आप उन्हें आषीर्वाद दे रहे हैं?''
12) उसने उत्तर दिया, ''प्रभु मेरे मुहँ में जो वाणी रखता है, क्या मैं उसे प्रकट न करूँ?''
13) बालाक ने उस से कहा, ''मेरे साथ एक दूसरे स्थान पर आइए, जहाँ से आप उन लोगों को देख सकते हैं। यहाँ से तो आपने पूरा समुदाय नहीं, उसका केवल एक भाग देखा है। वहाँ चल कर आप मेरे लिए उन को शाप दीजिए।''
14) तब वह उसे सोफीम के मैदान में पिसगा की चोटी पर ले गया। वहाँ उसने सात वेदियाँ बनवायीं और प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़वाया।
15) बिलआम ने बालाक से कहा, ''आप यहाँ अपनी होम-बलि के पास खड़े रहें। मैं वहाँ जा कर प्रभु के दर्षनों की प्रतीक्षा करूँगा।''
16) प्रभु ने बिलआम को दर्षन दे कर एक संदेष दिया और आज्ञा दी कि वह बालाक के पास लौट कर वह सन्देश दुहराये।
17) वह बालाक के पास लौट आया। बालाक अब तक मोआबी नेताओं के साथ अपनी होम-बलि के पास खड़ा था। बालाक ने उस से पूछा, ''प्रभु ने क्या कहा?''
18) तब बिलआम ने यह गीत सुनायाः
19) ईष्वर मनुष्य नहीं है, वह झूठ नहीं बोलता;
20) उसने मुझे आषीर्वाद देने का आदेष दिया।
21) याकूब का कोई दुर्भाग्य नहीं दिखाई देता।
22) ईष्वर उसे मिस्र से निकाल लाया।
23) याकूब के विरुद्ध अभिचार व्यर्थ है।
24) यह जाति सिंहनी की तरह उठती है,
25) यह सुन कर बालाक ने बिलआम से कहा, ''यदि आप उन्हें शाप देने में असमर्थ हों, तो आषीर्वाद भी नहीं दें''।
26) बिलआम ने बालाक को उत्तर दिया, ''क्या मैंने आप से नहीं कहा था कि प्रभु मुझ से जो कहेगा, मैं वही करूँगा?''
27) तब बालाक ने बिलआम से कहा, ''आइए, मैं आप को किसी और स्थान ले चलूँ। हो सकता है कि आप वहाँ से ईष्वर की प्रेरणा से मेरे लिए उन्हें शाप दे सकें।''
28) इसलिए बालाक बिलआम को पओर की चोटी पर ले गया, जहाँ से रेगिस्तान दिखाई देता है।
29) वहाँ बिलआम ने बालाक से कहा, ''यहाँ मेरे लिए सात वेदियाँ बनवाइए और मेरे लिए सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार रखिए।''
30) बालाक ने बिलआम की बात मान ली और प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।

अध्याय 24

1) बिलआम ने देखा कि प्रभु इस्राएलियों को आषीर्वाद देना चाहता है, इसलिए उसने पहले की तरह तंत्र-मंत्र छोड़ कर,
2) अपनी आँखें ऊपर उठायीं और इस्राएलियों को देखा, जो अपने-अपने वंष के अनुसार षिविर डाल चुके थे। ईष्वर का आत्मा उस पर उतरा
3) और वह अपना यह काव्य सुनाने लगाः
4) यह उसकी भविष्यवाणी है, जो ईष्वर के वचन सुनता
5) याकूब! तुम्हारे तम्बू कितने सुन्दर है!
6) वे घाटियों की तरह फैले हुए हैं,
7) इस्राएलियों के पात्र जल से भरे रहेंगे,
8) ईष्वर उसे मिस्र से निकाल लाया,
9) वह सिंह की तरह झुक कर बैठा है,
10) इसे सुनने के बाद बालाक को बिलआम पर क्रोध हो गया। उसने हाथ पर हाथ मार कद बिलआम से कहा, ''मैंने आप को अपने शत्रुओं को शाप देने के लिए बुलाया था। इसके विपरीत आपने उन्हें तीन बार आषीर्वाद दिया है।
11) आप तुरन्त अपने घर लौट जाइए। मैंने आप को महान् पुरस्कार देने का वचन दिया था, किन्तु प्रभु ने आप को उस से वंचित कर दिया है।''
12) बिलआम ने बालाक को उत्तर दिया, ''क्या मैंने आपके दूतों से, जिन्हें आपने मेरे पास भेजा था, यह नहीं कहा था कि
13) यदि बालाक मुझे इतना सोना चाँदी दे, जो उनके महल में भी न समा सके, तो भी मैं न तो प्रभु के आदेश का उल्लंघन करूँगा और न अपनी ओर से भला-बुरा कहूँगा। जो प्रभु कहेगा, मैं वही बोलूँगा।
14) अच्छा, अब मैं फिर अपनी जाति वालों के पास लौट जाता हूँ। लेकिन मैं जाने से पहले आप को यह बताऊँगा कि ये भविष्य में आपकी प्रजा के साथ क्या करेंगे।''
15) इसके बाद बिलआम ने फिर कहा
16) यह उसकी भविष्यवाणी है, जो ईष्वर के वचन सुनता
17) मैं उसे देखता हूँ - किन्तु वर्तमान में नहीं,
18) एदोम पराधीन देष होगा,
19) याकूब के वंष मंें एक शासक का उदय होगा,
20) बिलआम ने अमालेकियों को देख कर यह गीत सुनायाः
21) फिर केनानियों को देख कर उसने कहा :
22) फिर भी काइन का नाष होगा।
23) अन्त में उसने यह कहाः
24) कित्तीम के तट से जलयान आयेंगे।
25) इसके बाद बिलआम लौट कर अपने देष चला गया और बालाक भी अपने रास्ते गया।

अध्याय 25

1) इस्राएली षिट्टीम में अपने पड़ाव डाले हुए थे। उस समय वे मोआबी स्त्रियों के साथ व्यभिचार करने लगे।
2) उन स्त्रियों ने उन को अपने देवताओं की पूजा में आमन्त्रित किया। इस्राएलियों ने उनके देव प्रसाद खाये और उनके देवताओं को दण्डव्त किया।
3) इस प्रकार इस्राएली बाल-देवता की पूजा करने लगे और उनके विरुद्ध प्रभु का कोप भड़क उठा।
4) प्रभु ने मूसा से कहा, ''उनके सब नेताओं को पकड़ कर प्रभु के सामने धूप मंें खूँटों पर लटका दो, जिससे प्रभु की क्रोधाग्नि इस्राएल पर से दूर हो।''
5) इस पर मूसा ने इस्राएलियों के न्यायाधीषों को यह आदेष दिया, ''तुम में प्रत्येक उन लोगों को मार डाले, जिन्होंने बाल-देवता, की पूजा की है।''
6) जब मूसा और इस्राएल का सारा समुदाय दर्षन-कक्ष के द्वार पर विलाप कर रहा था, तो लोगों के देखते ही एक इस्राएली पुरुष एक मिदयानी स्त्री को अपने घर ले गया।
7) याजक हारून के पुत्र एलआजार के बेटे पीनहास ने उसे देखा। वह उठा और सभा छोड़ कर, हाथ में एक बल्लम लिये, उस इस्राएली पुरुष के पीछे-पीछे उसके घर के भीतरी भाग तक घुस आया। वहाँ उसने उन दोनों के - उस पुरुष और उस स्त्री के - शरीर में बल्लम भोंक दिया।
8) इसके बाद इस्राएलियों के बीच फैली हुई महामारी दूर हो गयी।
9) उस महामारी के कारण चौबीस हज+ार लोगों की मृत्यु हुई।
10) प्रभु ने मूसा से कहा,
11) ''याजक हारून के पुत्र एलआज+र के पुत्र पीनहास ने इस्राएलियों पर से मेरा कोप दूर कर दिया, क्योंकि उसने इस्राएलियों के बीच मेरे लिए उत्साह का प्रदर्षन किया। इसलिए मैंने क्रुद्व होकर इस्राएलियों का सर्वनाष नहीं किया।
12) उस से यह कहो कि मैं उसके साथ शान्ति-विधान निर्धारित करता हूँ।
13) उस विधान के अनुसार उसे तथा उसके बाद उसके वंषजों को सदा याजक-पद प्राप्त होता रहेगा। उसने अपने ईष्वर के लिए उत्साह का प्रदर्षन किया और इस्राएलियों के लिए प्रायष्चित किया।''
14) मिदयानी स्त्री के साथ मारे गये इस्राएली पुरुष का नाम जि+म्री था। वह सिमओन कुल के किसी घराने के मुखिया सालू का पुत्र था।
15) मारी गयी मिदयानी स्त्री का नाम कोज+वी था। वह सूर की बेटी थी, जो मिदयानी के किसी कुल के एक घराने का मुखिया था।
16) प्रभु ने मूसा से कहा,
17) ''मिदयानियों पर आक्रमण कर उन्हें मार दो,
18) क्योंकि उन्होंने तुम्हारे साथ शत्रुओं का-सा व्यवहार किया, तुम्हारे विरुद्ध षड्यंत्र रचा और पओर की घटना और अपनी बहन कोज+बी के मामले में तुम को बहकाया। कोज+बी एक मिदयानी नेता की पुत्री थी, जिसका उस समय वध किया गया, जब पओर की घटना के कारण महामारी फैल गयी थी।''

अध्याय 26

1) महामारी के बाद प्रभु ने मूसा और हारून के पुत्र याजक, एलआजार से कहा,
2) ''इस्राएलियों के सारे समुदाय की गणना, उनके अपने-अपने घरानों के अनुसार, करो - उन सब पुरुषों की, जो सैनिक सेवा के योग्य हैं और जिनकी अवस्था बीस वर्ष या इस से अधिक है।
3) इस पर याजक एलआजार के साथ मूसा ने मोआब के मैदान में, यर्दन के पास, येरीखो के निकट,
4) बीस वर्ष और इस से अधिक के लोगों की गणना ठीक वैसे ही की, जैसे प्रभु ने मूसा को आदेष दिया। वे इस्राएली जो, मिस्र से निकल आये थे, ये थे :
5) इस्राएल के जेठा पुत्र रूबेन। रूबेन के पुत्र ये थे : हनोक, जिस में हनोकियों का कुल; पल्लू, जिस से पल्लुओं का कुल;
6) हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियों का और करमी, जिस से करमियों का कुल उत्पन्न हुआ।
7) ये रूबेन के कुल थे। इनकी संख्या तैंतालीस हज+ार सात सौ तीस थी।
8) पल्लू का पुत्र एलीआब था।
9) एलीआब के पुत्र ये थे : नमूएल, दातान और अबीराम दातान और अबीराम ससुदाय के वे नेता थे, जिन्होंने मूसा और हारून के विरुद्ध विद्रोह किया था। वे कोरह के दल के साथ थे, जब उन्होंने प्रभु के विरुद्ध विद्रोह किया था।
10) पृथ्वी ने उन्हें और कोरह को अपना मुँह खोल कर निगल लिया था और उसके दल वाले उस अग्नि में मर गये थे, जिसने ढाई सौ पुरुषों को भस्म कर दिया था। उनके भस्म होने की घटना चेतावनी के रूप में थी।
11) उनकी साथ कोरह के पुत्रों की मृत्यु नहीं हुई थी।
12) अपने-अपने कुलों के अनुसार सिमओन के पुत्र ये थे : नमूएल, जिस से नमुएलियों का कुल; यामीन, जिस से यामीनियों का कुल; याकीन, जिस से याकीनियों का कुल;
13) जेरह, जिस से जेरहियों का कुल और शौल, जिस से शौलियों का कुल उत्पन्न हुआ।
14) ये सिमओन के कुल थे। इनकी संख्या बाईस हज+ार दो सौ थी।
15) अपने-अपने कुलों के अनुसार गाद के पुत्र ये थे : सिफ़ोन, जिस से सिफ़ोनियों का कुल; हग्गी, जिसे से हग्गियों का कुल; शूनी, जिस से शूनियों का कुल;
16) ओज+नी जिसे से ओज+नियों का कुल; एरी, जिस से एरियों का कुल;
17) अरोद, जिस से अरोदियों का कुल और अरएली, जिस से अरएलियों का कुल उत्पन्न हुआ।
18) ये गाद के कुल थे। इनकी संख्या चालीस हज+ार पाँच सौ थी।
19) यूदा के पुत्र एर और ओनान थे। एर और ओनान की मृत्यु कनान देष में हुई थी।
20) अपने-अपने कुलों के अनुसार यूदा के पुत्र ये थे : शेला, जिस से शेलानियों का कुल; येरेस, जिस से येरेसियों का कुल और जे+रह, जिस से जे+रहियों का कुल उत्पन्न हुआ।
21) येरेस के पुत्र ये थे : हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियों का कुल उत्पन्न हुआ।
22) ये यूदा के कुल थे। इनकी संख्या छिहत्तर हजार पाँच सौ थी।
23) अपने-अपने कुलों के अनुसार इस्साकार के पुत्र ये थे : तोला, जिस से तोलाईयों का कुल; पुव्वा, जिस से पुव्वाइयों का कुल;
24) याषूब, जिस से याषूबियों का कुल और षिम्रोन, जिस से षिम्रोनियों का कुल उत्पन्न हुआ।
25) ये इस्साकार के कुल थे। इनकी संख्या चौसठ हज+ार तीन सौ थी।
26) अपने-अपने कुलों के अनुसार जबुलोन के पुत्र ये थे : सेरेद, जिसे से सेरेदियों का कुल; एलोन जिस से एलोनियों का कुल और यहलएल, जिस से यहलएलियों का कुल उत्पन्न हुआ।
27) ये जबुलोन के कुल थे। इनकी संख्या साठ हजार पाँच सौ थी।
28) अपने-अपने कुलों के अनुसार यूसुफ़ के पुत्र थे : मनस्से और एफ्रईम।
29) मनस्से के पुत्र : माकीर से माकीरियों का कुल। माकीर गिलआद का पिता था; गिलआद से गिलआदियों का कुल।
30) गिलआद के पुत्र : येज+ेर से येज+ेरियों का कुल, हेलेक से हेलेकियों का कुल,
31) अस्रीएल से अस्रीएलियों का कुल, सिखेम से सिखेमियों का कुल,
32) शमीदा से शमीदाइयों का कुल और हेफे+र से हेफ़ेरियों का कुल।
33) हेफ़ेर के पुत्र सलोफ़हाद के कोई पुत्र न था, उसके केवल पुत्रियाँ थीं। सलोफ़हाद के पुत्रियों के नाम ये थे : महला, नोआ, होगला, मिल्का और तिर्सा।
34) ये मनस्से के कुल थे। इनकी संख्या बावन हज+ार सात सौ थी।
35) अपने-अपने कुलों के अनुसार एफ्रईम के पुत्र ये थे : षूतेलह से शूतेलहियों का कुल, बेकेर से बेकेरियो का कुल और तहन से तहनियों का कुल।
36) शूतेलह के पुत्र ये थे : एरान से एरानियों का कुल।
37) ये एफ्रईम के कुल थे। इनकी संख्या बत्तीस हजार पाँच सौ थी।
38) अपने-अपने कुलों के अनुसार बेनयामीन के पुत्र ये थे : बेला से बेलाइयों का कुल, अषबेल से अषबेलियों का कुल, अहीराम से अहीरामियों का कुल,
39) शफूफ़ाम से शफूफ़ामियों का कुल और हूफ़ाम से हूफ़ामियों का कुल।
40) बेला के पुत्र अर्द और नामान थे : अर्द से र्अदियों का कुल और नामान से नामानियों का कुल।
41) ये बेनयामीन के कुल थे। इनकी संख्या पैंतालीस हज+ार छः सौ थी।
42) अपने-अपने कुलों के अनुसार दान के पुत्र ये थे : शूहाम से शूहामियों का कुल। ये दान के कुल थे।
43) ये सब शूहमियों के कुल थे। इनकी संख्या चौसठ हजार चार सौ थी।
44) अपने-अपने कुलों के अनुसार आषेर के पुत्र ये थे : यिमना से यिमनाइयों का कुल, यिषवी से यिषवियों का कुल और बरीआ से बरीआइयों का कुल।
45) बरीआ के पुत्रों से : हेबेर से हेबेरियों का और मलकीएल से मलकीएलियों का कुल।
46) आषेर की पुत्री का नाम सारह था।
47) ये आषेर के कुल थे। इनकी संख्या तिरपन हजार चार सौ थी।
48) अपने-अपने कुलों के अनुसार नफ्+ताली के पुत्र ये थे : यहसेएल से यहसेएलियों का कुल, गूनी से गूनियों का कुल,
49) येसेर से येसेरियो का कुल और षिल्लेम से षिल्लेमियों का कुल।
50) ये नफ्ताली के कुल थे। इनकी संख्या पैंतालीस हज+ार चार सौ थी।
51) इस प्रकार इस्राएल के लोगों की कुल संख्या छः लाख एक हज+ार सात सौ तीस थी।
52) (५२-५३) प्रभु ने मूसा से कहा, ''इन कुलों में, इनकी जनसंख्या के अनुसार, विरासत के रूप में भूमि बाँट दी जाये।
54) बडे+ कुल को बड़ा दायभाग दिया जाये और छोटे कुल को छोटा दायभाग। अपनी जनसंख्या के अनुसार प्रत्येक कुल को अपना दायभाग दिया जाये।
55) भूमि का बँटवारा चिट्टी डाल कर किया जाये। उनके पूर्वजों के कुलों की जनसंख्या के अनुसार उन्हें भूमिभाग दिया जाये। प्रत्येक दल को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा,
56) अपना दायभाग चिट्टी डाल कर दिया जाये।
57) अपने-अपने कुलों के अनुसार नामांकित लेवी ये थे : गेरषोन से गेरषोनियों का कुल, कहात से कहातियों का कुल और मरारी से मरारियों का कुल।
58) ये भी लेवियों के कुल थे : लिबनियों का कुल, हेब्रोनियों का कुल, महलियों का कुल, मूषियों का कुल और कोरहियों का कुल। कहात अम्राम का पिता था।
59) अम्राम की पत्नी लेवी की पुत्री योकेबेद थी, जो मिस्र मे लेवी के यहाँ पैदा हुई थी। उस से अम्राम के यहाँ हारून, मूसा और उनकी बहन मिरयम का जन्म हुआ।
60) नादाब, अबीहू, एलआज+ार, और ईतामार हारून के पुत्र थे।
61) नादाब और अबीहू की मृत्यु उस समय हो गयी, जब वे प्रभु को अवैध अग्नि अर्पित कर रहे थे।
62) एक महीने के बालक और इस से ऊपर के सब नामांकित लेवी पुरुषों की संख्या तेईस हज+ार थी। इस्राएल के अन्य लोगों के साथ उनकी गणना नहीं की गयी, क्योंकि उन को अन्य इस्राएलियों के साथ विरासत नहीं मिलती थी।
63) मूसा और याजक एलआज+ार द्वारा नामांकित पुरुष ये थे, जब उन्होंने यर्दन तट पर येरीखों के पास, मोआब के मैदानों में इस्राएली लोगों की जनगणना की।
64) उन में एक भी ऐसा नहीं था, जिसका नामांकन उस समय हुआ था, जब मूसा और याजक हारून ने सीनई के उजाड़खण्ड में इस्राएलियों की गणना की थी।
65) कारण यह था कि प्रभु ने उनके विषय में कहा था कि वे उजाड़खण्ड में ही मर जायेंगे। यफुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र योषुआ के सिवा उन में एक भी शेष नहीं रहा।

अध्याय 27

1) यूसुफ़ के पुत्र मनस्से के कुटुम्बी सलोफ़हाद के कई पुत्रियाँ थीं। उसके पूर्वज मनस्से, माकीर, गिलआद और हेफ़ेर थे और उसकी पुत्रियों के नाम महला, नोआ, होगला, मिल्का और तिर्सा थे।
2) एक दिन वे मूसा, याजक एलआज+ार, नेताओं और सारे समुदाय के सामने दर्षन-कक्ष के द्वार पर आ कर कहने लगीं, ''हमारे पिता की मृत्यु उजाड़खण्ड में हुई थी।
3) वह कोरह के दल में नहीं थे, जिसने प्रभु के विरुद्ध विद्रोह किया था; बल्कि उनके अपने पापों के कारण उनकी मृत्यु हुई थी।
4) क्या हमारे पिता का नाम उनके कुल से इसलिए लुप्त हो जायेगा कि उनके कोई पुत्र नहीं था? हमारे पिता के कुटुम्बियों के साथ हमें भी दायभाग दीजिए।''
5) मूसा ने उनका मामला प्रभु के सामने रख दिया।
6) प्रभु ने मूसा को उत्तर दिया,
7) ''सलोफ़हाद की पुत्रियाँ ठीक ही तो कहती हैं। उनके पिता के कुटुम्बियों के साथ उन्हें भी दायभाग दो। तुम उन्हें उनके पिता के भाइयों के साथ विरासत के रूप में भूमि दो।
8) तुम इस्राएलियों को यह आदेष दोगे कि यदि कोई पुरुष पुत्रहीन मर जाये, तो उसका दायभाग उसकी पुत्रियों को मिले।
9) यदि उसकी कोई पुत्री न हो, तो उसका दायभाग उसके भाइयों को मिले।
10) यदि उसके कोई भाई न हो, तो उसका दायभाग उसके पिता के भाइयों को मिले।
11) किन्तु यदि उसके पिता का कोई भाई न हो तो, उसका दायभाग उसके कुल के निकटतम कुटुम्बी को मिले। वह उसके दायभाग का अधिकारी होगा। यह इस्राएलियों की विधि की माँग है, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।''
12) प्रभु ने मूसा से कहा, ''उस अबीराम पर्वत पर चढ़ कर उस देष को देखो, जिसे मैं इस्राएलियों को देने वाला हूँ।
13) उसे देखने के बाद तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी, जैसे कि तुम्हारे भाई हारून की मृत्यु हुई।
14) इसका कारण यह है कि जब सिन के उजाड़खण्ड के जलाषय के पास समुदाय ने विद्रोह किया, तब तुम दोनों ने मेरे आदेष का उल्लंघन किया और समुदाय के सामने मेरी पवित्रता का सम्मान नहीं किया।'' (यह सिन के उजाड़खण्ड में कादेष के मरीबा का जलाषय है।)
15) मूसा ने प्रभु से कहा,
16) (१६-१७) ''प्रभु ईष्वर, सब प्राणियों का जीवनदाता, समुदाय के एक ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करे, जो उसका पथप्रदर्षन करेगा। ऐसा नहीं हो कि प्रभु की प्रजा उन भेड़ों-जैसी हो जाये, जिनका कोई चरवाहा नहीं।''
18) इस पर प्रभु ने मूसा से कहा, ''नून के पुत्र योषुआ को लो, वह आत्मा से परिपूर्ण है। तुम उस पर हाथ रखोगे,
19) उसे याजक एलआज+ार तथा सारे समुदाय के सम्मुख उपस्थित करोगे और उसे उनके सामने नियुक्त करोगे।
20) तुम उसे अपनी प्रतिष्ठा का भागी बना दोगे, जिससे इस्राएलियों का समुदाय उसके आदेष का पालन करे।
21) वह याजक एलआज+ार के सम्मुख खड़ा होगा और एलआज+ार प्रभु के सामने ऊरीम के माध्यम से उसके लिए निर्णय प्राप्त करेगा। उसी निर्णय के अनुसार वह और समस्त इस्राएली समुदाय कार्य करेंगे।''
22) मूसा ने ठीक वैसा ही किया, जैसा प्रभु ने आदेष दिया था। उसने योषुआ को बुला कर याजक एलआज+ार और सारे समुदाय के सामने उपस्थित किया,
23) उस पर हाथ रखे और इस प्रकार उसे नियुक्त किया, जैसा प्रभु ने मूसा के माध्यम से आदेष दिया था।

अध्याय 28

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों को यह आदेष दो : इसका ध्यान रखो कि तुम निर्धारित समय पर मुझे होम-बलियों के साथ अन्न-बलि चढ़ाया करो। वह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो मुझे प्रिय है।
3) ''उन से यह कहो : तुम प्रभु को नित्य प्रति होम-बलि के रूप में एक-एक वर्ष के दो अदोष मेमने चढ़ाओगे।
4) एक मेमना सबेरे चढ़ाओगे और दूसरा शाम को,
5) उसके साथ अन्न-बलि के रूप में एक सेर जैतून के तेल से सना हुआ एक सेर मैदा।
6) यह नित्यप्रति प्रभु को अर्पित होम-बलि है, जो सीनई पर्वत पर निष्चित की गयी है। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
7) प्रत्येक मेमने के साथ एक सेर अंगूरी का अर्घ अर्पित किया जाये।
8) दूसरा मेमना शाम को चढ़ाओगे और उसके साथ सबेरे की तरह वही अन्न-बलि और अर्घ। यह होम-बलि है, एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा, जो प्रभु को प्रिय है।
9) तुम विश्राम दिवस पर एक-एक वर्ष के दो अदोष मेमने चढ़ाओगे - उनके साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ चार सेर मैदा और अर्घ।
10) यह दैनिक होम-बलि और अर्घ के अतिरिक्त प्रत्येक विश्राम-दिवस की होम-बलि है।
11) तुम हर अमावस प्रभु को यह होम-बलि चढ़ाओगे : दो बछड़े, एक मेढा और एक-एक वर्ष के सात अदोष मेमने,
12) और प्रत्येक बछड़े के साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ छः सेर मैदा; मेढे के साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ चार सेर मैदा;
13) प्रत्येक मेमने के साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ दो सेर मैदा। यह होम-बलि है, एक सुगनधयुक्त चढ़ावा, जो प्रभु को प्रिय है।
14) बछड़े के साथ अर्घ के रूप में दो सेर अंगूरी अर्पित की जाये, मेढे के साथ सवा सेर और मेमने के साथ एक सेर। यह मासिक होम-बलि है, जो वर्ष के प्रत्येक महीने के पहले दिन अर्पित की जाये।
15) दैनिक होम-बलि और अर्घ के अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में प्रभु को एक बकरा चढ़ाया जाये।
16) ''पहले महीने के चौदहवें दिन प्रभु के लिए पास्का-पर्व मनाया जाये।
17) इसी महीने के पन्द्रहवें दिन भी पर्व मनाया जाये, जिसमें सात दिन तक बेख़मीर रोटियाँ खायी जायें।
18) पहले दिन तुम्हारे लिए धर्मसभा का आयोजन किया जाये और तुम उस दिन कोई काम मत करो।
19) उस दिन होम-बलि के रूप में प्रभु को यह चढ़ाओं : दो बछड़े, एक मेढा और एक-एक वर्ष के सात अदोष मेमने।
20) उसके साथ तेल से सने हुए मैदे की अन्न-बलियाँ - प्रत्येक बछड़े के साथ छः सेर, मेढ़े के साथ चार सेर
21) और प्रत्येक मेमने के साथ दो सेर।
22) फिर प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा, जिससे तुम्हारे लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न की जाये।
23) यह सब सबेरे की होम-बलि के अतिरिक्त चढ़ाया जाये।
24) इसी तरह तुम्हें सात दिन तक प्रतिदिन ये अन्न-बलियाँ अर्पित करनी हैं। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है। इन्हें दैनिक होम-बलि और अर्घ के अतिरिक्त चढ़ाना है।
25) सातवें दिन फिर धर्मसभा का आयोजन किया जाये और तुम उस दिन कोई काम मत करो।
26) ''प्रथम फल के दिन, जब तुम सप्ताहों का उत्सव मनाते हुए प्रभु की नयी फसल का चढ़ावा अर्पित करो, तो धर्मसभा का आयोजन करो और कोई काम नहीं करो।
27) तुम होम-बलि के रूप में दो बछड़े, एक मेढ़ा और एक-एक वर्ष के सात मेमने अर्पित करोगे। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
28) हर बछड़े के साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ छः सेर मैदा चढ़ाना है;
29) मेढ़े के साथ चार सेर और हर एक मेमने के साथ दो सेर।
30) इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा।
31) दैनिक होम-बलि और अन्न-बलि के अतिरिक्त इन्हें अपने अर्घ के साथ चढ़ाना है। इसका ध्यान रखों कि पशु अदोष हो।

अध्याय 29

1) ''तुम सातवें महीने के पहले दिन धर्मसभा का आयोजन करो और कोई काम मत करो।
2) उस दिन तुरहियाँ बजवाओ और होम-बलि के रूप में एक बछड़ा एक मेढ़ा और एक-एक वर्ष के सात अदोष मेमने अर्पित करो। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
3) साथ-साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ मैदा - बछड़े के साथ छः सेर, मेढ़े के साथ चार सेर
4) और प्रत्येक मेमने के साथ दो सेर।
5) इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा, जिसमें तुम्हारे लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न की जाये।
6) यह सब प्रभु को अर्पित करना है। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है। इसके अलावा मासिक एवं दैनिक होम-बलियाँ और उनके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
7) ''उस सातवें महीने क दसवें दिन तुम्हें धर्मसभा का आयोजन करना है। उस दिन उपवास करना चाहिए और कोई काम नहीं।
8) तुम्हें होम-बलि के रूप में एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक-एक वर्ष के सात अदोष मेमने अर्पित करने है। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
9) साथ-साथ निर्धारित अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ मैदा - बछड़े के साथ छः सेर, मेढ़े के साथ चार सेर
10) और हर एक मेमने के साथ दो सेर।
11) इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा, जिससे तुम्हारे लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न की जाये। इसके सिवा दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
12) ''उस सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन तुम्हें धर्मसभा का आयोजन करना चाहिए और कोई काम नहीं। तुम्हें सात दिन तक प्रभु के लिए यह पर्व मनाना चाहिए।
13) तुम्हें होम-बलि के रूप में तेरह बछड़े, दो मेढ़े और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने अर्पित करने हैं। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
14) साथ-साथ अन्न-बलि के रूप में तेल से सना हुआ मैदा - हर एक बछड़े के साथ छः सेर, हर एक मेढ़े के साथ चार सेर
15) और प्रत्येक मेमने के साथ दो सेर।
16) इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके सिवा दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
17) ''दूसरे दिन बारह बछड़े, दो मेढे और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने
18) और उनके साथ बछड़ों, मेढों और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
19) इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके सिवा दैनिक होम-बलि एवं अन्न-बलि और उसके लिए निर्धारित अर्घ चढ़ाना है।
20) तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, दो मेढ़े और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने
21) और उनके साथ बछड़ों, मेढ़ों और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
22) इसके अतिरिक्त प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके सिवा दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
23) चौथे दिन दस बछड़े, दो मेढ़े और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने
24) और उनके साथ बछड़ों, मेढ़ों और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
25) फिर प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके अतिरिक्त दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
26) पाँचवें दिन नौ बछड़ें, दो मेढ़े और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने
27) और उनके साथ बछ+ड़ों, मेढ़ों और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
28) फिर प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके अतिरिक्त दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
29) छठे दिन आठ बछड़े, दो मेढ़े और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने
30) और उनके साथ बछड़ों, मेढ़ों और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
31) फिर प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके अतिरिक्त दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
32) सातवें दिन सात बछड़े, दो मेढ़े और एक-एक वर्ष के चौदह अदोष मेमने
33) और उनके साथ बछड़ों, मेढ़ों और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
34) फिर प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके अतिरिक्त दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ चढ़ाना है।
35) आठवें दिन तुम्हें धर्मसभा का आयोजन करना चाहिए और कोई काम नहीं।
36) होम-बलि के रूप में एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक-एक वर्ष के सात अदोष मेमने चढ़ाओगे। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
37) उनके साथ बछड़े, मेढ़े और मेमनों की संख्या के अनुसार निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
38) फिर प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा। इसके अतिरिक्त दैनिक होम-बलि और उसके साथ निर्धारित अन्न-बलि और अर्घ।
39) तुम्हें अपने पर्वों पर ये चढ़ावें अर्पित करने हैं और इसके अतिरिक्त वे होम-बलियाँ, अन्न-बलियाँ, अर्घ और शान्ति-बलियाँ, जिन्हें तुम मन्नत के कारण या स्वेच्छा से चढ़ाते हो।

अध्याय 30

1) इसके बाद मूसा ने इस्राएलियों को ये आदेष सुनाये, जिन्हें प्रभु ने उसे दिया था।
2) मूसा ने इस्राएलियों के वंषजों के मुखियाओं से कहा,
3) प्रभु ने मुझे यह आदेष दिया है। यदि कोई प्रभु के लिए मन्नत या शपथ खा कर कोई दायित्व स्वीकार करता है, तो वह अपना वचन भंग न करे, बल्कि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसका ठीक-ठीक पालन करे।
4) यदि कोई कन्या, कुमारी अवस्था में अपने पिता के घर में रहती हुई, प्रभु के लिए मन्नत करती या कोई दायित्व स्वीकार करती है,
5) और उसका पिता यह जान जाता और चुप रहता है, तो उसे अपनी मन्नत या स्वीकृत दायित्व का पालन करना होगा।
6) किन्तु यदि पता लगने पर उसका पिता उसी दिन उस पर आपत्ति करता है, तो उसकी मन्नतें और उसके द्वारा स्वीकृत दायित्व अमान्य होगा। प्रभु उसे क्षमा कर देगा, क्योंकि उसके पिता ने आपत्ति की है।
7) यदि वह मन्नत करने या बिना सोचे विचारे कोई दायित्व स्वीकार करने के बाद विवाह करती है
8) और पति यह जान जाता और चुप रहता है, तो उसे अपनी मन्नत या स्वीकृत दायित्व का पालन करना होगा।
9) किन्तु यदि पता लगने पर पति उस पर आपत्ति करता है, तो वह उसकी मन्नत या बिना सोचे विचारे स्वीकृत दायित्व रद्द करता है। प्रभु उसे मुक्त करेगा।
10) यदि कोई विधवा या परित्यक्ता मन्नत करती है या कोई दायित्व स्वीकार करती है, तो उसे अपनी मन्नत या दायित्व का पालन करना होगा।
11) यदि कोई स्त्री अपने पति के घर में मन्नत करती या शपथ खा कर कोई दायित्व स्वीकार करती है
12) और पता लगने पर उसका पति कुछ नहीं कहता, तो उसे अपनी मन्नत या स्वीकृत दायित्व का पालन करना होगा।
13) किन्तु यदि पत+ा लगने पर उसका पति उसी दिन उसे रद्द करता है, तो उसकी मन्नतें और उसके द्वारा स्वीकृत दायित्व अमान्य होगा। प्रभु उसे मुक्त करेगा।
14) उसका पति उसकी कोई भी मन्नत या स्वीकृत दायित्व मान्य या अमान्य कर सकता है।
15) यदि पति दूसरे दिन कुछ नहीं कहता, तो उसने सब मन्नतें और स्वीकृत दायित्व मान लिये। उसने उन्हें इसलिए मान लिया कि पता लगने पर उसने कुछ नहीं किया।
16) यदि वह बाद में उन्हें रद्द करता है, तो वह अपनी पत्नी के अपराध का दोषी है।
17) पुरुष और उसकी पत्नी तथा पिता और पिता के घर में रहने वाली अविवाहिता कन्या के विषय में यही नियम है, जिन्हें प्रभु ने मूसा को दिया था।

अध्याय 31

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''तुम इस्राएलियों का बदला मिदयानियों से लो। इसके बाद तुम अपने पूर्वजों से जा मिलोगे।''
3) इस पर मूसा ने लोगों से कहा, ''तुम में से एक दल युद्ध के लिए तैयार हो जाये। वह प्रभु के नाम पर मिदयानियों से बदला लेने जाये।
4) तुम इस्राएलियों के प्रत्येक वंष से युद्ध के लिए एक-एक हज+ार पुरुष भेजो।''
5) इसलिए इस्राएल के प्रत्येक वंष से एक हज+ार मनुष्य चुने गये, अर्थात् कुल बारह हजार सषस्त्र सैनिक।
6) मूसा ने प्रत्येक कुल के एक हज+ार पुरुष भेजे और उनके साथ याजक एलआजार के पुत्र पीनहास को, जो पवित्र-स्थान के पात्र और युद्ध की तुरहियाँ अपने साथ ले गया।
7) इस प्रकार, जैसी प्रभु ने मूसा को आज्ञा दी थी, वे मिदयानियों से लड़ने निकले। उन्होंने उनके सब पुरुषों को मार डाला।
8) मारे हुओं में मिदयान के ये राजा थे : ऐवी, रेकेम, सूर, हूर और रेबा। उन्होंने बओर के पुत्र बिलआम को भी तलवार के घाट उतारा।
9) तब इस्राएली लोग मिदयानियों की स्त्रियों और उनके बच्चों को बन्दी बना कर ले गये और उनके सब पशुओं, रेवड़ों और उनके सब सामान को लूट लिया।
10) उन्होंने उनके सब नगरों और षिविरों को जला दिया।
11) वे लूट का सारा माल, बन्दियों और पशुओं को ले गये।
12) वे बन्दियों को, पकड़े हुए पशुओं को और लूट का सारा माल मूसा, एलआज+ार और इस्राएलियों के समुदाय के पास, यर्दन नदी के तट पर, येरीख़ों के सामने, मोआब के मैदान में षिविर में ले आये।
13) मूसा, याजक एलआज+ार और समुदाय के सब नेता उनसे मिलने के लिए षिविर के बाहर आये।
14) मूसा युद्ध से लौटने वाले सेनापतियों, सहस्रपतियों और शतपतियों पर क्रुद्ध हुआ।
15) मूसा ने उन से पूछा, ''क्या तुमने सब स्त्रियों को जीवित छोड़ दिया हैं ?
16) इन्होंने तो बिलआम के परामर्ष के अनुसार पओर में इस्राएलियों को बहकाया और इसके कारण प्रभु ने समुदाय पर महामारी भेजी।
17) इसलिए सब लड़कों को मार डालो और उन स्त्रियों को भी, जिनका पुरुष से प्रसंग हुआ है।
18) किन्तु तुम उन सब कन्याओं को, जिनका पुरुष से प्रसंग नहीं हुआ है, जीवित छोड़ सकते हो।
19) तुम सात दिन तक षिविर के बाहर रहो। प्रत्येक व्यक्ति, जिसने किसी को मारा है या किसी मृतक का स्पर्ष किया है, तीसरे या सातवें दिन अपना शुद्धीकरण करायेगा। यह तुम पर और तुम्हारे बन्दियों पर लागू है।
20) तुम सब कपड़े, चमडे+ की, बकरों की बालों की बनी हुई और लकड़ी की सब वस्तुएँ शुद्ध करोगे।''
21) याजक एलआज+ार ने युद्ध में गये हुए सैनिकों से कहा, ''प्रभु ने मूसा को यह नियम दिया है -
22) तुम प्रत्येक धातु को, सोना, चाँदी, काँसा, लोहा, राँगा और सीसा,
23) अर्थात् उन सब चीजों को, जो अग्नि में भस्म नहीं होती है, अग्नि में डाल कर शुद्ध करोगे। इसके बाद शुद्धीकरण के जल से उन्हें शुद्ध करोगे। इसके बाद वे शुद्ध मानी जायेगी। किन्तु जो अग्नि में भस्म हो सकती हैं, उसे केवल जल से शुद्ध करोगे।
24) तुम सातवें दिन अपने कपड़े धोओगे और तुम शुद्ध होगे। इसके बाद तुम षिविर में आ सकोगे।''
25) प्रभु ने मूसा से कहा,
26) तुम याजक एलआज+ार और समुदाय के मुखियाओं के साथ लूट के बन्दिओं और पशुओं की गिनती करोगे।
27) तुम लूट का आधा भाग युद्ध से आये हुए सैनिकों को दोगे और आधा भाग समुदाय के अन्य लोगों को।
28) युद्ध से आये हुए सैनिकों के भाग से तुम प्रति पाँच सौ बन्दियों, गाय-बैलों, गधों और भेड़ों में से एक-एक प्रभु को अर्पित करोगे।
29) तुम प्रभु के लिए यह चढ़ावा याजक एलआज+ार को दोगे।
30) इस्राएलियों के भाग से तुम प्रति पचास बन्दियों, बैलों, गधों और भेड़ों अर्थात् सब प्राणियों में से एक-एक लोगे और उन्हें लेवियों को, जो प्रभु के निवास में सेवा करते हैं, दे दोगे।
31) मूसा और याजक एलआज+ार ने ठीक वैसा ही किया, जैसा प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।
32) सैनिकों ने जो वस्तुएँ अपने लिए ले ली थीं, उनके अतिरिक्त लूट का विवरण इस प्रकार था : छः लाख पचहत्तर हज+ार भेड़े,
33) बहत्तर हजार गाय-बैल
34) इकसठ हज+ार गधे
35) और कुल मिला कर ऐसी बत्तीस हज+ार कन्याएँ, जिनका किसी पुरुष के साथ प्रसंग नहीं हुआ था।
36) युद्ध से आये सैनिकों को लूट का जो आधा भाग मिला, वह इस प्रकार था : तीन लाख सैंतीस हज+ार पाँच सौ भेडं+े,
37) इन में से प्रभु के लिए चढ़ावा छह सौ पचहत्तर भेडं+े;
38) छत्तीस हज+ार गाय-बैल - इन में से प्रभु के लिए चढ़ावा बहत्तर गाय-बैल,
39) तीस हजार पाँच सौ गधे - इन में से प्रभु के लिए चढ़ावा इकसठ गधे;
40) सोलह हज+ार कन्याएँ - इन में से प्रभु के लिए चढ़ावा बत्तीस कन्याएँ।
41) मूसा ने प्रभु के लिए यह चढ़ावा याजक एलआज+ार को दिया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।
42) (४२-४३) मूसा ने युद्ध से आये हुए सैनिकों के भाग से इस्राएलियों के समुदाय को मिलने वाला भाग अलग कर दिया। वह इस प्रकार था : तीन लाख सैंतीस हज+ार पाँच सौ भेडं+े,
44) छत्तीस हजार गाय-बैल,
45) तीस हज+ार पाँच सौ गधे
46) और सोलह हज+ार कन्याएँ।
47) मूसा ने इस्राएलियों के भाग से प्रति पचास कन्याओं और पशुओं में से एक-एक को अलग कर दिया और उन्हें लेवियों को दिया, जो प्रभु के निवास में सेवा करते थे।
48) तब सेनापति, सहस्रपति और शतपति भी मूसा के पास आये। वे मूसा से कहने लगे,
49) ''हम, आपके सेवकों ने अपने अधीन सैनिकों की गणना की है और उन में से एक भी खेत नहीं रहा।
50) इसलिए प्रभु के सामने अपना प्रायष्चित कराने के लिए हम प्रभु को भेट-स्वरूप वह सोना चढ़ाते हैं, जो हम में से प्रत्येक ने लिया है, अर्थात् भुजबन्द, कड़े, अँगूठियाँ, बालियाँ और हार।
51) मूसा और याजक एलआज+ार ने उन से वे सोने के आभूषण स्वीकार किये।
52) सहस्रपति और शतपति प्रभु को भेंट स्वरूप जो सोना ले आये, उसका वज+न सोलह हज+ार सात सौ पचास शेकेल था।
53) इसके अतिरिक्त सैनिकों ने अपने लिए लूट ली थी।
54) मूसा और याजक एलआज+ार ने सहस्रपतियों और शतपतियों से सोना स्वीकार किया और वे उसे दर्षन-कक्ष ले आये, जिससे वह इस्राएलियों के लिए स्मरण-चिन्ह के रूप में प्रभु के सामने विद्यमान रहे।

अध्याय 32

1) रूबेन और गाद के वंषजों के पास बहुत-से पशु थे। उन्होंने यजेर और गिलआद के भूभाग देख कर उन्हें पशुपालन के लिए उपयुक्त समझा।
2) इसलिए गाद और रूबेन के वंषजों ने मूसा, याजक एलआज+ार और समुदाय के नेताओं के पास आ कर कहा,
3) ''अटारोत, दीबोन, यज+ेर, निम्रा, हेषबोन, एलआले, सबाम, नेबो और बओन के
4) ये भूभाग, जिन्हें प्रभु ने इस्राएलियों के सामने पराजित किया है, पशुपालन के लिए उपयुक्त हैं और हम, आपके सेवकों के पास बहुत-से पशु हैं।''
5) फिर वे यह बोले, ''यदि हम आपके कृपापात्र हैं, तो यह देष आपके इन सेवकों को मिले। आप हमें यर्दन के उस पार न ले जायें।''
6) मूसा ने गाद और रूबेन के वंषजों को उत्तर दिया, ''तुम्हारे भाई-बन्धु तो युद्ध करने जायें और तुम यहाँ बैठे रहोगे?
7) तुम इस्राएलियों को उस देष में जाने के लिए क्यों निरुत्साह करते हो, जिसे प्रभु ने उन्हें दिया है?
8) तुम्हारे पूर्वजों ने भी यही किया था, जब मैंने उन्हें उस देष का भेद लेने के लिए कादेष-बरनेअ से वहाँ भेजा था।
9) वे एषकोल घाटी तक गये थे और उन्होंने देष का निरीक्षण भी किया था, किन्तु उसके बाद उन्होंने इस्राएलियों को इतना निरुत्साह कर दिया था कि वे प्रभु के दिये उस देष में जाने से इन्कार करने लगे।
10) उस दिन प्रभु ने क्रोध में आकर यह शपथ ली थी कि
11) बीस साल और इस से ऊपर का कोई भी पुरुष, जो मिस्र से बाहर आया था, वह देश नहीं देख सकेगा, जिसे मैंने शपथपूर्वक इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की। यह इसलिए हुआ था कि उन्होंने सारे हृदय से मेरा अनुसरण नहीं किया था-
12) सिवा यफन्ने के पुत्र कनिज्ज+ी कालेब और नून के पुत्र योषुआ के, जिन्होंने सारे हृदय से प्रभु का अनुसरण किया था।
13) इस पर प्रभु ने क्रोध में आकर इस्राएलियों को चालीस वर्ष तक उजाड़खण्ड में तब तक भटकने दिया था, जब तक वह पूरी पीढ़ी मर नहीं गयी, जिसने प्रभु को अप्रसन्न किया था।
14) अब तुम, पापियों की सन्तान, अपने पूर्वजों के बदले, इस्राएलियों के विरुद्ध प्रभु का क्रोध भड़काने आये हो।
15) यदि तुम उसकी ओर से मुँह मोड़ोगे, तो वह निष्चय ही इस प्रजा को उजाड़खण्ड में भटकने रहने देगा और तुम इन सब लोगों के विनाष के कारण बनोगे।''
16) इस पर वे उसके और पास जा कर कहने लगे, ''हम यहाँ अपने पशुओं के लिए बाड़े और अपने बाल-बच्चों के लिए नगर बनायेंगे।
17) जब तक हम इस्राएलियों को उनके स्थानों तक नहीं पहुँचा देंगे, तब तक हम शस्त्रसज्जित हो कर उनके आगे-आगे चलते रहेंगे। इस बीच हमारे बाल-बच्चे देषवासियों से बचे रह कर क़िलेबन्द नगरों में निवास करते रहेंगे।
18) जब तक इस्राएली अपने-अपने दायभाग प्राप्त नहीं कर लेंगे, तब तक हम अपने घर नहीं लौटेगें।
19) हम यर्दन के उस पार की भूमि में कोई दायभाग नहीं चाहतें, क्योंकि हमारे दायभाग की जमीन हमें यर्दन के इस पार, पूर्वी भाग में प्राप्त हो चुकी है।''
20) (२०-२२) इस पर मूसा ने उन्हें उत्तर दिया, ''यदि तुम ऐसा करोगे, यदि तुम शस्त्रसज्जित हो कर युद्ध करने आओगे और जब तक प्रभु अपने शत्रुओं को नहीं भगा देगा और देष अपने अधिकार में नहीं करेगा, तब तक नहीं लौटोगे, तो तुम प्रभु और इस्राएलियों के लिए अपने कर्तव्य से मुक्त हो कर वापस जाओगे और यह देष प्रभु की दृष्टि में तुम्हारा दायभाग होगा।
23) किन्तु यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो तुम प्रभु की दृष्टि में निष्चय ही अपराधी ठहरोगे और तुम को अपने पाप का दण्ड भुगतना पड़ेगा।
24) तुम अपने बाल-बच्चों के लिए नगर बसाओ, और अपने गल्लों के लिए बाड़े बनाओ, किन्तु अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।
25) इस पर गाद और रूबेन के वंषजों ने कहा, ''हम आपके सेवक वैसा ही करेंगे, जैसा हमारे स्वामी का आदेष होगा।
26) हमारे बच्चे, हमारी पत्नियाँ हमारे गल्ले और सब पशु यहाँ गिलआद के नगरों में रहेंगे।
27) परन्तु हम, आपके सब सेवक शस्त्रसज्जित हो कर प्रभु के सामने युद्ध करने के लिए यर्दन पार करेंगे, जैसा कि हमारे स्वामी का आदेष है।''
28) इस पर मूसा ने याजक एलआज+ार नून के पुत्र योषुआ और इस्राएली कुलों के घरानों के मुखियाओं को उनके विषय में आदेष दिया।
29) मूसा ने उन से कहा, ''यदि गाद और रूबेन के सब वंषज प्रभु के सामने शस्त्रसज्जित हो कर तुम्हारे साथ यर्दन पार करेंगे, तो जब वह देष तुम्हारे अधिकार में आ गया होगा, तब तुम्हें दायभाग के रूप में उन को गिलआद देना होगा।
30) परन्तु यदि वे शस्त्रसज्जित हो कर तुम्हारे साथ उस पार नहीं जायेंगे, तो उन्हें तुम्हारी ही तरह कनान देष में दायभाग प्राप्त होगा।''
31) गाद और रूबेन के वंषजों ने उत्तर दिया, ''प्रभु ने आपके इन सेवकों को जैसी आज्ञा दी है, हम वैसा ही करेंगे।
32) हम प्रभु के सामने शस्त्रसज्जित हो कर कनान देष जायेंगे, किन्तु यर्दन के इस पार की भूमि ही दायभाग के रूप में हमारी होगी।''
33) तब मूसा ने गाद और रूबेन के वंषजों और यूसुफ़ के पुत्र मनस्से के आधे कुल को अमोरियों के राजा सीहोन का राज्य और बाषान के राजा ओग का राज्य - नगरों और उनके आसपास की भूमि के साथ - दे दिया।
34) (३४-३६) गाद के वंषजों ने दीबोन, अटोरोत, अरोएर, अट्रोत-शोफ़ान, यजे+र, योगबहा, बेतनिम्रा और बेत-हारान नामक किलाबन्द नगरों का पुनर्निर्माण किया तथा गल्लों के लिए बाड़े बनाये।
37) रूबेन के वंषजों ने हेषबोन, एलआले ओर किर्यातईम को फिर से बसाया
38) तथा नाम बदल कर नेबो और बाल-मओन को भी। उन्होंने जिन स्थानों का पुनर्निर्माण किया, उनका दूसरा नाम रखा।
39) मनस्से के पुत्र माकीर के वंषज गिलआद गये और उसे जीत कर वहाँ के निवासी अमोरियों को वहाँ से भगा दिया।
40) इसलिए, मूसा ने मनस्से के पुत्र माकीर को गिलआद दे दिया और वह वहाँ बस गया।
41) मनस्से के पुत्र याईर ने कुछ गाँवों को जीत कर उनका नाम हव्वोत-याईर (याईर के गाँव) रखा।
42) नोबह ने आसपास के गाँवों सहित कनान को जीत कर उसका नाम अपने नाम पर नोबह रख दिया।

अध्याय 33

1) जब इस्राएली लोग मूसा और हारून के नेतृत्व में अपने-अपने दलों के क्रम से मिस्र देष से बाहर आये, तो उन्होंने निम्नलिखित स्थलों पर पड़ाव डाला।
2) मूसा ने प्रभु के आदेष के अनुसार उनकी यात्रा के पड़ावों के नाम इस प्रकार लिपिबद्ध किये।
3) पहले महीने में, उस पहले महीने के ठीक पन्द्रहवें दिन, उन्होंने रामसेस से प्रस्थान किया। पास्का-पर्व के दूसरे दिन इस्राएली सब मिस्रियों के देखते-देखते विजय घोषणा करते हुए निकल आये।
4) उस समय मिस्री लोग अपने-अपने पहलौठों को दफ़नाने में व्यस्त थे, जिन्हें प्रभु ने मार डाला था और प्रभु उनके देवताओं को भी दण्ड दे रहा था।
5) इस्राएली लोगों ने रामसेस से आगे प्रस्थान कर सुक्कोत में पड़ाव डाला।
6) उन्होंने सुक्कोत से चल कर उजाड़खण्ड की सीमा पर एताम में पड़ाव डाला।
7) वे एताम से प्रस्थान कर पी-हहीरोत की ओर मुड़े, जो बाल-सफ़ोन के पास है। वहाँ उन्होंने मिगदोल के सामने पड़ाव डाला।
8) पी-हहीरोत से प्रस्थान कर और सागर पार कर वे उजाड़खण्ड पहुँचे। एताम के उजाड़खण्ड में तीन दिन तक यात्रा कर उन्होंने मारा में पड़ाव डाला।
9) वे मारा से चल कर एलीम आये। एलीम में पानी के बारह सोते और खजूर के सत्तर वृक्ष थे। उन्होंने वहाँ पड़ाव डाला।
10) उन्होंने एलीम से आगे बढ़ कर लाल समुद्र के पास पड़ाव डाला,
11) लाल समुद्र से आगे चल कर सीन नामक उजाड़खण्ड में पड़ाव डाला,
12) सीन के उजाड़खण्ड से आगे चल कर दोफ़का में पड़ाव डाला,
13) दोफ़का से चल कर आलूष में पड़ाव डाला,
14) आलूष से चल कर रफ़ीदीम में पड़ाव डाला। वहाँ लोगों को पीने का पानी नहीं मिला।
15) रफ़ीदीम से प्रस्थान कर उन्होंने सीनई के उजाड़खण्ड में पड़ाव डाला,
16) सीनई के उजाड़खण्ड से आगे चल कर किब्रोत-हत्ताबा में पड़ाव डाला,
17) किब्रोत-हत्तावा से चल कर हसेरोत में पड़ाव डाला,
18) हसेरोत से चल कर रितमा में पड़ाव डाला,
19) रितमा से चल कर रिम्मोन-पेरेस में पड़ाव डाला,
20) रिम्मोन-पेरेस से चल कर लिबना में पड़ाव डाला,
21) लिबना से चल कर रिस्सा में पड़ाव डाला,
22) रिस्सा से चल कर कहेलाता में पड़ाव डाला,
23) कहेलाता से चल कर शेफेर पर्वत पर पड़ाव डाला,
24) शेफेर पर्वत से चल कर हरादा में पड़ाव डाला,
25) हरादा से चल कर मकहेलोत में पड़ाव डाला,
26) मकहेलोत से चल कर तहत में पड़ाव डाला,
27) तहत से चल कर तेरह में पड़ाव डाला,
28) तेरह से चल कर मितका में पड़ाव डाला,
29) मितका से चल कर हषमोना में पड़ाव डाला,
30) हषमोना से चल कर मोसेरोत में पड़ाव डाला,
31) मोसेरोत से चल कर बने-याकान में पड़ाव डाला,
32) बने-याकान से चल कर होर-गिदगाद में पड़ाव डाला,
33) होर-गिदगाद से चल कर योटबाता में पड़ाव डाला,
34) योटबाता से चल कर अब्रोना में पड़ाव डाला,
35) अब्रोना से चल कर एस्योन-गेबेर में पड़ाव डाला,
36) एस्योन-गेबेर से चल कर सिन के उजाडखण्ड़ में, अर्थात् कादेष में पड़ाव डाला।
37) उन्होंने कादेष से प्रस्थान कर होर पर्वत पर, एदोम देष की सीमा पर, पड़ाव डाला।
38) प्रभु की आज्ञा पा कर याजक हारून होर पर्वत पर गया। इस्राएलियों के मिस्र देष से बाहर आने के चालीसवें वर्ष में, पाँचवें महीने के पहले दिन, वहाँ उसका देहान्त हो गया।
39) जब होर पर्वत पर हारून की मृत्यु हुई, तब उसकी अवस्था एक सौ तेईस वर्ष थी।
40) इसके बाद कनान देष के नेगेब प्रान्त के निवासी, अराद के कनानी राजा को संदेष मिला कि इस्राएली आ रहे हैं।
41) उन्होंने होर पर्वत से आगे प्रस्थान कर सलमोना में पड़ाव डाला,
42) सलमोना से चल कर पूनोन में पड़ाव डाला,
43) पूनोन से चल कर ओबोत में पड़ाव डाला,
44) ओबोत से चल कर मोआब देष में स्थित इय्ये-आबा-रीम में पड़ाव डाला,
45) इय्यीम से चल कर दीबोन-गाद में पड़ाव डाला,
46) दीबोन-गाद से चल कर अलमोन-दिबलायातीम में पड़ाव डाला,
47) अलमोन-दिबलायातीम से चल कर नेबो के सामने अबारीम पर्वत-श्रेणी के पास पड़ाव डाला,
48) अबारीम पर्वत श्रेणी से प्रस्थान कर यर्दन तट पर येरीखो के पास, मोआब के मैदान में पड़ाव डाला।
49) वे यर्दन तट पर मोआब के मैदान में बेत-यषिमोत से आबे षिट्टीम तक पड़ाव डाले पड़े थे।
50) यर्दन के पास, येरीखो के सामने मोआब के मैदान में प्रभु ने मूसा से कहा,
51) ''इस्राएलियों से कहो : जब तुम यर्दन को पार कर कनान में प्रवेष करोगे,
52) उस देष के सब निवासियों को अपने सामने से निकाल दो। उनकी पत्थर की मूर्तियों को तोड़ो, उनकी सब ढली प्रतिमाओं को तोड़ों और उनके सब टीले वाले पूजास्थानों को नष्ट कर दो।
53) फिर उस देष को अपने अधिकार में लो और वहाँ बस जाओ, क्योंकि मैंने वह देष तुम्हारे अधिकार में दे दिया है।
54) तुम चिट्ठी डाल कर अपने-अपने कुलों में दायभाग के रूप में भूमि बाँट दो। बड़े कुल को बड़ा भाग और छोटे कुल को छोटा भाग दो। जिसकी चिट्ठी जिस स्थान के लिए निकले, वह उसी को मिले। तुम अपने पूर्वजों के कुलों के अनुसार भूमि बाँट दो।
55) किन्तु यदि तुम उस देष के निवासियों को नहीं निकाल दोगे, तो फिर तुम जिन्हें वहाँ रहने दोगे, वे तुम्हारी आँखों में किर-किरी और तुम्हारी पसलियों में काँटों-जैसे बनेंगे और तुम जिस देष में रहोगे, उस में तुम्हें कष्ट पहुँचाते रहेंगे।
56) तब मैं उनके साथ जैसा करना चाहता था, वैसा ही तुम्हारे साथ करूँगा।''

अध्याय 34

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों को यह आदेष दो - जब तुम कनान देष पहुँचोगे, तब सारा कनान देष दायभाग के रूप में तुम्हारे अधिकार में आ जायेगा।
3) तुम्हारे दक्षिणी सीमान्त में सिन के उजाड़खण्ड का वह कुछ भाग रहेगा, जो एदोम की सीमा पर है। तुम्हारी दक्षिणी सीमा पूर्व में लवण समुद्र के छोर से प्रारम्भ होगी।
4) तब वह अऋब्बीस की घाटी के दक्षिण से हो कर सिन की ओर जायेगी और कादेष-बरनेअ के दक्षिण तक पहुँचेगी।
5) वह वहाँ से हसर-अद्दार होते हुए असमोन तक जायेगी, जहाँ वह मुड़ कर मिस्र की बरसाती नदी से मिल जायेगी और समुद्र में समाप्त हो जायेगी।
6) महासमुद्र का तट तुम्हारी पष्चिमी सीमा होगा। यही तुम्हारे देष की पष्चिमी सीमा होगी।
7) तुम्हारे उत्तरी सीमा समुद्र से होर पर्वत तक,
8) होर पर्वत से लेबो-हमात तक, वहाँ से ज+दाद और
9) जि+फ्रोम तक जायेगी और हसर-एनान में समाप्त होगी। यही तुम्हारी उत्तरी सीमा होगी।
10) ''तुम्हारी पूर्वी सीमा हसर-एनान से शफाम तक और
11) वहाँ से अयीन के पूर्व में रिबला तक जायेगी। फिर वह सीमा आगे जा कर किन्नेरेत के सागर के पूर्व की पर्वत-श्रेणी तक जायेगी।
12) यर्दन नदी के किनारे-किनारे हो कर लवण समुद्र पर इस सीमा का अन्त हो जायेगा। तुम्हारे देष के चारों ओर की सीमाएँ यही रहेगी।''
13) मूसा ने इस्राएलियों को यह आदेष दिया, ''तुम यह देष चिट्ठी डाल कर विरासत के रूप में बाँट लो। प्रभु ने उसे साढ़े नौ वंषों को देने कहा।
14) रूबेन के वंष, गाद के वंष और मनस्से के आधे वंष के घरानों ने अपना दायभाग प्राप्त किया है।
15) इन ढाई वंषों ने अपना-अपना दायभाग येरीख़ों के पास यर्दन के पूर्व, सूर्योदय की दिषा में, प्राप्त कर लिया है।''
16) प्रभु ने मूसा से कहा,
17) ''तुम्हारे लिए देष को दायभाग के रूप में बाँटने वालों के नाम ये हैं : याजक एलआज+ार और नून का पुत्र योषुआ।
18) फिर देष को दायभागों में बाँटने के लिए प्रत्येक वंष से एक-एक नेता लो।
19) उन पुरुषों के नाम ये है : यूदा के वंष से यफ़ुन्ने का पुत्र कालेब;
20) सिमओन के वंष से अम्मीहूद का पुत्र शमूएल;
21) बेनयामीन के वंष से किसलोन का पुत्र एलादाद;
22) दान के वंष से योग्ली का पुत्र बुक्की;
23) यूसुफ़ के पुत्र मनस्से के वंष से एफ़ोद का पुत्र हन्नीएल;
24) यूसुफ़ के पुत्र एफ्रईम के वंष से षिप+टान का पुत्र कमूएल;
25) ज+बुलोन के वंष से परनाक का पुत्र एलीसाफान;
26) इस्साकार के वंष से अज्ज+ान का पुत्र पल्टीएल;
27) आषेर के वंष से शलोमी का पुत्र अहीहूद;
28) नप+ताली के वंष से अम्मीहूद का पुत्र पदएल।''
29) यही वे पुरुष हैं, जिन्हें प्रभु ने कनान देष को इस्राएलियों के बीच विरासत के रूप में बाँटने का आदेष दिया था।

अध्याय 35

1) यर्दन के पास, येरीख़ों के सामने, मोआब के मैदान में, प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों को आज्ञा दो कि वे अपने दायभाग में लेवियों को रहने के लिए कुछ नगर दें और लेवियों को उन नगरों के आसपास के कुछ चरागाह भी दें।
3) वे उन नगरों में रहेंगे ओर वे चरागाह उनके गाय-बैलों, भेड़-बकरियों और उनके अन्य पशुओं के लिए होंगे।
4) जो चरागाह तुम लेवियों को दोगे, उसका विस्तार नगर के चारों और एक हज+ार हाथ होगा।
5) नगर के बाहर पूर्वी, दक्षिणी, पष्चिमी और उत्तरी दिशा में तुम दो-दो हज+ार हाथ इस तरह नापोगे कि नगर बीचोंबीच पड़े। यह क्षेत्र उन नगरों का चरागाह होगा।
6) तुम लेवियों को ये नगर दोगे : छह शरण-नगर, जहाँ तुम भागे हुए हत्यारे को शरण दोगे और उनके अतिरिक्त बयालीस नगर।
7) इस प्रकार उन नगरों की संख्या कुल मिला कर अड़तालीस होगी, जिन्हें तुम चरागाहों के साथ लेवियों को दोगे।
8) तुम इस्राएलियों की भूमि से हर वंष के दायभाग के विस्तार के अनुपात में लेवियों को नगर दोगे।''
9) प्रभु ने मूसा से यह भी कहा,
10) ''इस्राएलियों से कहो : जब तुम यर्दन पार कर कनान देष पहुँचो,
11) तब ऐसे नगरों को चुनो, जो तुम्हारे लिए शरण-नगर हो सके। वहाँ उस व्यक्ति को शरण मिलेगी, जिसने अनजाने हत्या की है।
12) उन नगरों में कोई भी प्रतिशोधी से शरण पा सकेगा। जिस पर हत्या का अभियोग लगाया गया है, उसका तब तक वध नहीं किया जायेगा, जब तक समुदाय के सामने उसका न्याय नहीं किया गया हो।
13) तुम इस प्रकार के छः नगर निर्धारित करोगे -
14) यर्दन के इस पार के तीन नगर और कनान देष के तीन नगर।
15) ये छः नगर इस्राएलियों, विदेषियों और उनके साथ रहने वाले प्रवासियों को शरण देने के लिए होंगे। वहाँ वह व्यक्ति भाग कर शरण पायेगा, जिसने अनजाने हत्या की है।
16) परन्तु यदि किसी ने लोहे के शस्त्र से किसी व्यक्ति को इस प्रकार मारा हो कि वह मर जाये, तो वह हत्यारा माना जायेगा। ऐसे हत्यारे को प्राणदण्ड दिया जायेगा।
17) यदि कोई अपने हाथ से पत्थर से किसी व्यक्ति को इस प्रकार मारे, जिस प्रकार मारने से मृत्यु हो सकती है और वह व्यक्ति मर जाये, तो वह हत्यारा माना जायेगा और उसे प्राणदण्ड दिया जायेगा।
18) यदि कोई अपने हाथ की लकड़ी से किसी व्यक्ति को इस प्रकार मारे, जिस प्रकार मारने से मृत्यु हो सकती है और वह व्यक्ति मर जाये, तो वह हत्यारा माना जायेगा और उसे प्राणदण्ड दिया जायेगा।
19) हत्या का प्रतिषोधी स्वयं हत्यारे का वध करेगा। हत्यारे से मिलते ही वह उसका वध कर सकता है।
20) यदि कोई द्वेष से किसी पर चोट करे या जान कर किसी पर कुछ फेंके और वह मर जाये, या
21) बैर से उसे मुक्का मारे और वह मर जाये, तो मारने वाले का वध किया जायेगा, क्योंकि वह हत्यारा है। प्रतिषोधी हत्यारे से मिलते ही उसका वध कर सकता है।
22) ''किन्तु यदि कोई बैर से नहीं, बल्कि संयोग से किसी व्यक्ति पर चोट करें या अनजाने किसी व्यक्ति पर कुछ फेंके,
23) या अनजाने किसी व्यक्ति पर कोई ऐसा पत्थर गिरने दे, जिससे उसकी मृत्यु हो सकती है, यद्यपि उसके प्रति उसका कोई बैर नहीं या और वह उसे हानि नहीं पहुँचाना चाहता था और वह व्यक्ति मर जाये,
24) तो समुदाय इन नियमों के अनुसार मारने वाले और प्रतिषोधी के बीच निर्णय करे।
25) समुदाय मारनेवालों को प्रतिषोधी से बचायेगा और उसे शरण-नगर वापस भेजेगा, जहाँ उसने शरण ली। मारने वाला महायाजक के देहान्त तक, जिसका अभिषेक पवित्र तेल से किया गया है, उस नगर में रहेगा।
26) परन्तु यदि मारने वाला शरण-नगर की सीमा के बाहर जाये,
27) और प्रतिषोधी उसे उसके शरण-नगर की सीमा के बाहर पाये और उसे मार डाले, तो वह हत्या का अपराधी नहीं समझा जायेगा;
28) क्योंकि मारने वाले के लिए महायाजक की मृत्यु तक अपने शरण-नगर में रहना अनिवार्य था। किन्तु महायाजक की मृत्यु के बाद मारने वाला अपनी भूमि लौट सकता है।
29) तुम जहाँ भी रहोगे, वहाँ ये विधि-निषेध पीढ़ी-दर-पीढ़ी मान्य होंगे।
30) यदि किसी ने किसी मनुष्य को मार दिया है, तो वह हत्यारा केवल साक्षियों के साक्ष्य के आधार पर मृत्युदण्ड पा सकता है। केवल एक ही साक्षी के साक्ष्य के आधार पर कोई मृत्युदण्ड नहीं पा सकता।
31) हत्यारे के जीवन की रक्षा के लिए रूपया स्वीकार नहीं करोगे; उसे मृत्युदण्ड देना है।
32) तुम शरण-नगर में शरण पाये हुए उस व्यक्ति के लिए रूपया नहीं स्वीकार करोगे, जो महायाजक की मृत्यु से पहले अपनी भूमि लौटना चाहता है।
33) तुम वह देश अपवित्र नहीं करोगे, जिस में तुम निवास करते हो। रक्तपात से देष अपवित्र होता है और रक्तपात से दूषित देष का प्रायष्चित्त हत्यारे का वध किये बिना नहीं किया जा सकता।
34) इसलिए तुम यह देष दूषित नहीं करो, जहाँ तुम निवास करते हो और जहाँ मैं भी निवास करता हूँ; क्योंकि मैं, प्रभु इस्राएलियों के बीच रहता हूँ।''

अध्याय 36

1) एक दिन यूसुफ़ के वंषज माकीर के पुत्र और मनस्से के पोते गिलआद के कुल के मुखिया आये। वे मूसा और नेताओं, इस्राएली घरानों के मुखियाओं से
2) बोले, ''स्वामी! प्रभु ने आप को आदेष दिया कि आप चिट्ठियाँ डाल कर यह देष इस्राएलियों में दायभाग के रूप में बाँट दें। हमारे स्वामी को प्रभु के द्वारा यह भी आदेष मिला था कि हमारे भाई सलोफ़हाद का दायभाग उसकी पुत्रियों को मिले।
3) अब यदि वे इस्राएलियों के किसी अन्य वंष के पुरुषों के साथ विवाह करें, तो उनका दायभाग हमारे पूर्वजों के दायभाग से निकल जायेगा और उस वंष के दायभाग में सम्मिलित हो जायेगा, जिस में वे विवाह करेंगी। इस प्रकार हमारी पैतृक सम्पति का भाग कम हो जायेगा
4) और तब यदि इस्राएलियों के लिए जयन्ती-वर्ष आयेगा, उनका दायभाग उस वंष के दायभाग में सम्मिलित हो जायेगा, जिस में उन्होंने विवाह किया है और इस प्रकार हमारे पूर्वजों के वंष का दायभाग हमसे छिनता जायेगा।
5) मूसा ने प्रभु की आज्ञा पर कर इस्राएलियों को यह आदेष दिया, यूसुफ़ के वंशजों का कहना ठीक है।
6) प्रभु सलोफ़हाद की पुत्रियों के मामलों में यह आज्ञा देता है कि वे जिसके साथ विवाह करना चाहें, कर लें परन्तु वे अपने पिता के कुल के किसी पुरुष से ही शादी करें।
7) इस्राएल में कोई दायभाग एक वंष से दूसरे वंष में न जाने पाये, बल्कि हर एक इस्राएली अपनी पूर्वजों की भूमि अपने पास रखे।
8) इसलिए प्रत्येक कन्या, जिसे इस्राएली वंष में भूमि प्राप्त है, केवल अपने पिता के कुल के किसी पुरुष से विवाह करे, जिससे प्रत्येक इस्राएली अपनी पैतृक सम्पत्ति स्थायी रूप से अपने कुल में ही रखे रहे।
9) कोई विरासत एक वंष से दूसरे वंष में न जाने पाये; प्रत्येक इस्राएली विरासत में प्राप्त भूमि अपने पास रखे।''
10) प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, सलोफ़हाद की पुत्रियों ने वैसा ही किया।
11) इसलिए सलोफ़हाद की पुत्रियों ने, अर्थात् महल, तिर्सा, होगला, मिल्का और नोआ ने, अपने चाचाओं के पुत्रों के साथ विवाह कर लिया।
12) उन्होंने यूसुफ़ के पुत्र मनस्से के वंषजों के साथ विवाह किया। इस प्रकार उनका दायभाग उनके पिता के कुल में ही रह गया।
13) यही वे आदेष और विवि-निषेध हैं, जिन्हें प्रभु ने मूसा द्वारा यर्दन के पास, येरीखों के सामने, मोआब के मैदान में इस्राएलियों को दिया था।