पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

योएल का ग्रन्थ ( Joel )

अध्याय 1

1) यह प्रभु की वाणी है, जो पेतुएल के पुत्र योएल को प्राप्त हुईः
2) वृद्धों! सुनो। सब निवासियो! कान दो। क्या तुम्हारे दिनों में, या तुम्हारे पूर्वजों के दिनों में, कभी ऐसी विपत्ति आयी थीं?
3) तुम इसका वर्णन अपने बाल-बच्चों से कर दो, बाल-बच्चे भी अपनी ही सन्तान से और उनकी सन्तान फिर आगामी पीढियों से इसका वर्णन करती जाये।
4) जो कुछ कुतरने वाली टिड्डी से बचा, उसे उडने वाली प्रौढ टिड्डी खा गयी! जो कुछ उडने वाली से बचा, उसे फुदकने वाल टिड्डी खा गयी; जो कुछ फुदकने वाली से बचा, उसे सूँडी खा गयी।
5) तुम, शराबियो! जागो और विलाप करो; अंगूरी पीने वालो! हाय-हाय मचाओ, क्योंकि अब ताजी अंगूरी तुम्हारे मुँह से छिन गयी है।
6) यह इसलिए कि मेरे देश पर एक शक्तिशाली राष्ट्र असंख्य सेना ले कर चढ आया है; उसके दाँत सिंहों के दाँतों के-से हैं और उसकी दाढ़ें सिंहनी की-सी हैं।
7) उसने मेरी दाखबारियों को उजाड दिया है, उसने मेरे अंजीर के वृक्षों को चीर-फाड डाला है; उसने उनकी छाल झाड कर गिरा दी हैं, जिससे उनकी डालियाँ सफेद हो गयी हैं।
8) वर की मृत्यु पर जिस तरह विधवा कन्या टाट ओढ़ कर विलाप करती है, तुम मातम मनाओ।
9) प्रभु-ईश्वर के मन्दिर में अन्न की बलि और अंगूर का तर्पण बन्द हो गये हैं। प्रभु के सेवक, याजक शोक मना रहे हैं।
10) खेत उजड गये हैं, धरती शोकाकुल है, क्योंकि अनाज नष्ट हो गया है, दाखलताएँ बरबाद हो गयी हैं, तेल सूख गया है।
11) किसानो! गेहूँ और जौ की फसल के लिए तुम शोक करो; दाखबारियों के माली! तुम विलाप करो, खेतों की फसल नष्ट हो गयी है।
12) दाखलआएँ मुरझा रही हैं अंजीर वृक्ष सूख गये हैं; अनार, खजूर और सेब, बाग के सभी वृक्ष कुम्हला गये हैं; लोगों के चेहरों पर मुर्दानी छायी हुई है।
13) याजको! टाट ओढ कर शोक मनाओ। वेदी के सेवको! विलाप करो। मेरी ईश्वर के सेवको, शोक के वस्त्र पहन कर रात बिताओ; क्योंकि तुम्हारे ईश्वर का मन्दिर नैवेद्य और तर्पण से वंचित हो गया है।
14) उपवास की घोषण करो, सभा बुलाओ, बूढों और देश के सभी निवासियों को अपने-प्रभु-ईश्वर के मंदिर में एकत्र करो और प्रभु की दुहाई दो।
15) हाय! वह दिन आ गया है। प्रभु का दिन निकट आ रहा है। वह सर्वशक्तिमान् की विनाश-लीला की तरह आ रहा है।
16) सच है कि हमारी आँखों के सामने से हमारा भोजन छिन गया है और हमारे ईश्वर के मन्दिर से हर्ष और आनन्द विदा हो गये हैं।
17) मिट्टी के ढेलों के नीचे बीज झुलज गये हैं, खलिहान श्मशान-जैसे हैं, भण्डार खाली है, क्योंकि फसल मारी गयी है।
18) पशु कैसे कराह रहे हैं! झुण्ड के झुण्ड मवेशी निराश भटक रहे हैं, क्योंकि उनके लिए चरागाह नहीं रहाः भेड़ों के झुण्ड विपत्ति के शिकार हो गये हैं।
19) प्रभु! अब मैं तेरी दुहाई देता हूँ, क्योंकि आग से चरागाह झुलस गया है और बाग के सभी वृक्ष उसकी ज्वाला में सूख गये हैं।
20) जंगली जानवर भी तुझे पुकार रहे हैं, क्योंकि नदियाँ सूख गयी हैं और आग मैदानों की हरी-हरी घास खा गयी है।

अध्याय 2

1) सियोन में तुरही बजाओ। मेरे पवित्र पर्वत्र पर खतरे का घण्टा बजा दो। देश के सभी निवास काँप उठें, क्योंकि प्रभु का दिन आ रहा है, वह निकट आ गया है।
2) वह अंधकार और विषाद का दिन है। वह बादलों और अन्धेरे का दिन है। एक बहुसंख्यक और शक्तिशाली सेना काले बादल की तरह पर्वतों पर फैल रही है। इस प्रकार की सेना न पहले कभी थी और न अनन्त काल तक फिर कभी होगी।
3) उसकी सेना के हरावल में आग भसम करती जा रही है, उसके चन्दावल में ज्वाला धधकती आ रही है। उसके आने के पहले अदन-वाटिका की तरह देश हरा-भरा था, किन्तु उसके पार होने के बाद उजाडखण्ड हो गया। टिड्डियों ने कुछ छोड़ा नहीं।
4) वे घोड़ों की तरह दिखाई देती हैं, युद्धाश्वों के समान सरपट दौड़ती हैं।
5) रथों की खडखडाहट-जैसी आवाज से या खूँटियों के जलने की चटचटाहट से वे पर्वत-शिखरों को फाँदती है। टिड्डी दल मानों युद्ध में तैनात विशाल सेना हैं।
6) उन्हें आते देख कर लोग काँपने लगते हैं, सब के मुख मलिीन हो गये हैं।
7) वे योद्धाओं की तरह टूट पडती हैं, सनिकों की तरह वे दीवारों पर चढती हैं। वे सब अपने-अपने रास्ते पर बढती आ रही हैं, अपने रास्ते से भटकती नहीं।
8) वे एक दूसरे से टकराती नहीं, वे सीधे चली आती हैं; वे अस्त्र-शस्त्रों की पंक्ति को भेदती हैं और रुकने का नाम तक नहीं लेतीं।
9) वे नगर पर टूट पडती हैं, दीवारों पर चढ जाती हैं। वे मकानों के ऊपर चढती हैं और चोर की तरह खिडकियों से अन्दर घुस जाती हैं।
10) उनके सामने पृथ्वी भी थरथर काँपती है और आकाश हिलता है। सूर्य और चन्द्रमा पर अन्धेरा छा जाता है और तारे बुझ गये हैं।
11) प्रभु बुलन्द आवाज से अपनी सेना को आज्ञा देता है; उसकी सेना अपार समूह है और अपने महाबल द्वारा आज्ञा पूरी करती है। प्रभु का दिन अत्यधिक भयंकर है; उस दिन कौन टिक पायेगा?
12) प्रभु यह कहता है, ''अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ''।
13) अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।
14) क्या जाने, वह द्रवित हो जाये और तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे। तब तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर को बलि और तर्पण चढाओगे।
15) सियोन पर्वत पर तुरही बजाओ। उपवास घोषित करो।
16) सभा की बैठक बुलाओ जनता की इकट्ठा करो; बूढ़ों बालकों और दुधमुँहे बच्चों को भी बुला लो। दुलहा और दुलहिन अपना कमरा छोड कर चले आयें।
17) प्रभु-ईश्वर की सेवा करने वाले याजक मन्दिर में वेदी के सामने रोते हुए इस प्रकार प्रार्थना करे, ''प्रभु! अपनी प्रजा पर दया कर। अपने लोगों का अपमान न होने दे, राष्टों में उनका उपहास न होने दे गैर-यहूदी यह न कहने पायें कि उनका ईश्वर कहा रह गया''।
18) तब प्रभु ने अपने देश की सुध ली और अपनी प्रजा को बचा लिया।
19) प्रभु ने अपने लोगों की प्रार्थना का यह उत्तर दिया, ''देखो, अब मैं तुम्हें अनाज, अंगूरी और तेल प्रदान करूँगा, जिससे तुम तृप्त हो जाओगे; मैं तुम्हें अन्य राष्ट्रों के सामने उपहास का पात्र फिर कभी न बनने दूँगा।
20) मैं उत्तर से आये शत्रु को तुम्हारे यहाँ से हटा कर सूखे उजाडखण्ड में भगा दूँगा; उसके हरावल को पूर्वी समुद्र में और चद्रावल को पश्चिमी समुद्र में डुबा दूँगा। उस से दुर्गन्ध और सडांध उठेगी; अन्होंने तो महाविनाश किया था।
21) ''भूमि; मत डरो; उल्लसित हो कर आनन्द मनाओ; क्योंकि प्रभु ने महान् कार्य किये हैं,
22) खेत के पशुओ; मत डरो; क्योंकि चरागाह हरे हो गये हैं, पेड़ों में फल लग चुके हैं, अंजीर का वृक्ष और दाखलता पूरी-पूरी उपज दे रहे हैं।
23) ''सियोन की सन्तान; अपने प्रभ-ईश्वर में आनन्द मनाओ; उसके कृपापूर्वक तुम्हें शरत् की वर्षा प्रदान की, उसने प्रचुर मात्रा में पानी बरसाया, उसने पहले की तरह शरत् और वसन्त की वर्षा भेजी है।
24) खलिहान में अनाज के ढेर लग जायेंगे मटके नयी अंगूरी और तेल से लबालब भर जायेंगे।
25) उडने वाली और फुदकने वाल टिड्डियों, सूँडी और कुतरने वाली टिड्डियों, मेरी विशाल सेना-दल से, जो वर्ष नष्ट हो गये थे, उनके लिए मैं क्षतिपूर्ति कर दूँगा।
26) तुम खा कर तृप्त हो जाओगे और अपने ईश्वर का नाम धन्य कहोगे। उसने तुम्हारे लिए महान् चमत्कार दिखाये हैं। मेरी प्रजा फिर कभी निराश नहीं होगी।
27) तुम जान जाओगे कि मैं इस्राएलियों के बीच हूँ, कि मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ। मेरे सदृश कोई ईश्वर नहीं। मेरी प्रजा फिर कभी निराश नहीं होगी।

अध्याय 3

1) ''इसके बाद मैं सब शरीरधारियों पर अपना आत्मा उतारूँगा। तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे बडे-बूढे स्वप्न दखेंगे और तुम तुम्हारे नवयुवकों को दिव्य दर्शन होंगे।
2) उन दिनों में मैं दास-दासियों पर भी अपना आत्मा उतारूँगा।
3) मैं आकाश में और पृथ्वी पर ये चिन्ह प्रकट करूँगा- रक्त, अग्नि और धुएँ के खम्भे।
4) प्रभु के महान् तथा भयंकर दिन के आगमन के पहले सूर्य अंधकारमय और चन्द्रमा रक्तमय हो जायेगा।
5) जो प्रभु के नाम की दुहाई देंगे, वे बच जायेंगे। प्रभु-ईश्वर ने तो कहा है, 'सियोन पर्वत पर' कुछ लोग बच जायेंगे' और यूरूसालेम में प्रभु-ईश्वर के चुनिन्दे लोगों का उद्धार होगा।

अध्याय 4

1) ''एक समय, एक दिन आयेगा, जब मैं यूदा और येरुसालेम का भाग्य जगा दूँगा;
2) तब मैं सब राष्ट्रों को एकत्रित कर यहोशाफाट की घाटी में ले जाऊँगा। वहाँ मेरी अपनी प्रजा इस्राएल, मेरे अपने दायभाग के प्र्रति किये हुए अन्यायों के लिए मैं राष्ट्रों का विचार करूँगा। उन्होंने तो मेरे देश को आपास में बाँट-बाँट कर, मेरी प्रजा को अपने बीच बिखेर दिया है।
3) उन्होंने मरेी प्रजा पर चिट्ठियाँ डालीं; वे अपने वेश्यागमन का मूल्य लडका दे कर और अंगूरी पीने का मूल्य लडकी दे कर चुकाया करते थे।
4) ''तीरूस, सीदोन और फिलिस्तिया के सारे प्रदेशों, तुम से मुझ कोई डर नहीं। क्या तुम मुझ से बदला लोगे? तुम बदला लेने आओ, तो मैं तत्क्षण तुम को तुम्हारी अपनी करतूतों का फल भोगने को बाध्य करूँगा।
5) तुम लोग तो मेरा सोना-चांदी छीन कर ले गये और मेरे रत्नाभूषण अपने मन्दिरों में ले गये।
6) तुमने यूदा और येरुसालेम के लोगों को यूनानियों के हाथ बेच दिया कि वे अपने स्वदेश से दूर रहें।
7) किन्तु अब मैं उन को वहाँ से वापस बुलाऊँगा, जहाँ तुमने उन्हें बेच कर छोड़ा था। तुम को अपने कुकमोर्ं का परिणाम भोगना पडेगा।
8) मैं तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों को यूदा के निवासियों के हाथ बेच दूँगा, जो उन को सुदूर रहने वाले शबाई लोगों के हाथ बेच देंगे। यह प्रभु की आज्ञा है।''
9) राष्ट्रों में घोषण करोः युद्ध की तैयारी करो; महान योद्धओं को उत्तेजित करो; सभी वीर सैनिक यहाँ एकत्रित हो जायें; वे आगे पधारें;
10) अपने फालों को तपा कर तलवारें गढ़ो और हाँसियों के भाले बना डालो; दुर्बल से दुर्बल भी समझें, ''मैं योद्धा हूँ''।
11) पडोसी देशों के लोगों; युद्ध-निनाद सुनो और एकत्रित हो जाओ।
12) प्रभु-ईश्वर! अपने योद्धओं को भेज। सब राष्ट्रों! जागो, यहोशाफाट की घाटी की राह पर चलो। मैं वहाँ न्याय सिंहासन पर बैठूँगा और चारों ओर के राष्ट्रों का न्याय करूँगा।
13) हँसिया चलाओ, क्योंकि फसल पक चुकी है। आओ और अंगूर रौंदो, क्योंकि कोल्हू परिपूर्ण है। कुण्ड लबालब भरे हुए हैं, क्योंकि राष्ट्रों की दुष्टता अपार है।
14) विचार की घाटी में लोगों की भारी भीड लग रही है, क्योंकि विचार की घाटी में प्रभु का दिन निकट आ गया है।
15) सूर्य और चन्द्रमा अंधकारमय होते जा रहे हैं और नक्षत्रों की ज्योति बुझ रही है।
16) प्रभु-सियोन से गरज रहा है, येरुसालेम से उसकी आवाज ऊँची उठ रही है; स्वर्ग और पृथ्वी कांप रहे हैं। किन्तु प्रभु अपनी प्रजा क ेलिए आश्रय सिद्ध होगा, इस्राएलियों के लिए सुदृढ़ गढ होगा।
17) ''उस दिन तुम जान जाओगे कि मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ, जो अपने पवित्र पर्वत सियोन पर निवास करता है। येरुसालेम पवित्र होगा और विदेशी उसे फिर पान नहीं करेंगे।''
18) उस दिन पर्वतों से अंगूरी टपकेगी, पहाडियों से मधु की धाराएँ फूट निकलेंगी और यहूदियों की सब नदियों में भरूपूर पानी होगा, क्योंकि प्रभु के मंदिर में से एक जलस्रोत बह निकलेगा, जो बाबुल की घाटी को सींचेगा।
19) मिस्र ऊसर हो जायेगा और एदोम मरुभूमि, क्योंकि उन्होंने यूदा के पुत्रों के साथ अत्याचार किया और अपने देश में उनका निर्दोष रक्त बहाया।
20) किन्तु यहूदिया सदैव बसी रहेगी और येरुसालेम युग-युग आबाद रहेगा।
21) ''मैं उनके रक्त को बदला लूँगा, वह अदण्डित नहीं रहेगा'; क्योंकि प्रभु सियोन में निवास करता रहेगा।