पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

होशेआ का ग्रन्थ ( Hosea )

अध्याय 1

1) यूदा के राजा उज्जीया, योताम और हिजकीया तथा इस्राएल में राजा योआश के पुत्र यरोबआम के दिनों में बएरी के पुत्र होशेआ को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी।
2) जब प्रभु पहले-पहल होशेआ से बोला, उसने उस से यह कहा, ''जाओ किसी वेश्या से विवाह कर जारज संतान पैदा करो, क्योंकि देश भी प्रभु को त्याग कर वेश्यावृृत्ति कर रहा है''।
3) अतः उसने जा कर दिब्लाइम की पुत्री गोमेर से विवाह किया, जिसने गर्र्भवती हो कर पुत्र को जन्म दिया।
4) प्रभु ने उस से कहा, ''उसका नाम यिज्रएल रखना : क्योंकि थोड़े समय के बाद मैं यिज्रएल के रक्तपात का येहू के घराने में बदला चुकाऊँगा और इस्राएल वंश की प्रभुसत्ता समाप्त कर दूँगा।
5) उसी दिन मैं यिज्रएल की घाटी में उसके धनुष को तोड डालूँगा।''
6) उसने फिर गर्भवती हो कर एक पुत्री को जन्म दिया। प्रभु ने होशेआ से कहा, ''उसका नाम लो-रूहामाह रखना; क्योंकि मैं फिर कभी इस्राएल को प्रेम नहीं करूँगा, न उसे क्षमा करूँगा।
7) किन्तु मैं यूदा के घराने को प्रेम करूँगा और प्रभु-ईश्वर ही उसका उद्धार होगा, न ही धनुष, या तलवार, या युद्ध या घोडे या घुडसवार
8) लो-रूहामाह का दूध छुडाने के बाद गोमेर ने फिर गर्भवती हो कर पुत्र को जन्म दिया।
9) प्रभु ने कहा, ''उसका नाम लोअम्मी रखना; क्योंकि अब तुम लोग मेरी प्रजा नहीं रहे और न मैं तुम्हारा रह गया''।
10) समुद्रतट के रेतकणों की तरह इस्राएली असंख्य बन जायेंगे, जिनका पारावार नहीं। और जहाँ कहा गया था, ''तुम लोग मेरी प्रजा नहीं रहे'', वहाँ वे जीवन्त ईश्वर की संतान कहलायेंगे।
11) यूदा और इस्राएल के लोग मिल कर एक हो जायेंगे और अपना ही नेता चुनेंगें तथा वे देश-विदेश में फैल जायेंगे। यिज्रएल का वह दन तो महान् दिवस होगा।

अध्याय 2

1) ''तुम अपने भाइयों से 'मेरी प्रजा' कह कर पुकारो और बहनों से 'प्रेमपात्र' कहो।
2) ''तुम अपन माँ को समझाओ। क्या वह मेरी पत्नी नहीं है? क्या मैं उसका पति नहीं हूँ? उस से निवेदन करो कि वह अपने चेहरे और वक्षस्थल से व्यभिचार के चिन्ह हटा दे।
3) कहीं ऐसा न हो कि मैं उसे निर्वस्त्र और नंगा करूँ, जैसे वह अपने जन्म के दिन थी। मैं उसे उजाड बना कर मरुभूमि-जैसा बना दूँगा, जहाँ वह प्यास से मर जायेगी।
4) मैं उसकी सन्तान से प्रेम नहीं करूँगा, क्योंकि वे वेश्या से उत्पन्न हैं।
5) उनकी माँ तो वेश्या बन गयी, उनकी जननी निर्लज्ज थीः क्योंकि उसने कहा था, ''मैं तो अपने उन्हीं प्रेमियों से लगी रहूँगी, जो मुझे रोटी खिलाते और पानी पिताते हैं; जो मुझे ऊन, छालटी, तेल और अंगूरी देते हैं'।
6) ''अतः मैं उसके मार्ग में काँटों का घेरा लगाऊगा और पथ में दीवार खड़ी करूँगा कि वह अपने अभिसार मार्ग पर न जा सके।
7) वह अपने प्रेमियों का पीछा करेगी, किन्तु वह उन्हें पकड नहीं सकेगी; वह उन्हें ढूँढगी, किन्तु उन्हें नहीं पायेगी। तब वह कहेगी, 'मैं अपने पति के पास लौटूँगी, क्योंकि उस समय की मेरी स्थिति अब की स्थिति से कहीं अच्छी थी'।
8) वह नहीं जानती कि मैं ही उसे अन्न, अंगूरी, और तेल दे रहा था और जिस सोने-चांदी से वह बाल-देवता की मूर्तियाँ बना रही थी, वह भी मेरी उदारता की देन थी।
9) अतः मैं कटनी के समय अपना अनाज वापस ले लूँगा और अंगूर की फसल के समय अपनी अंगूरी भी। मैं उसके बदन पर से अपना ऊन और छालटी वापस ले लूँगा।
10) तब मैं उसके प्रेमियों के सामने उसकी कामुकता का पर्दाफाश करूँगा और मेरे वश से कोई उसे नहीं छुडा सकेगा।
11) मैं उसकी उन दाखलताओं और अंजीर के पेड़ों को उजाड दूँगा, जिनके विषय में उसने कहा था, 'इन्हें मेरे प्रेमियों ने मुुझे उपहार स्वरूप दिये हैं'। मैं उन को जंगल बना दूँगा, जहाँ जंगली जानवर उन को बरबाद कर देंगे।
12) मैं उसके सारे सुख-विलास का अन्त कर दूँग; उसके त्योहार, अमावस पर्व, व्रत-दिवस और सारा पँचाँग समाप्त कर दूँगा।
13) उसने पवोर्ं पर बाल-देवताओं को धूप चढायी है, वह नथ और हार पहन कर मुझ को भूल गयी और प्रेमियों के पीछे दौड गयी। मैं इन सब कायोर्ं के लिए उसे दण्ड दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।
14) ''मैं उसे लुभा कर मरुभूमि को ले चलूँगा और उसे सान्त्वना दूँगा।
15) वहाँ मैं उसे उसकी दाखबारियाँ लौटा दूँगा; मैं कष्ट की घाटी को आशा के द्वार में परिणत करूँगा। वहाँ वह मुझे स्वीकार करेगी, जैसा कि उसने अपनी जवानी के दिनों में किया था- उस समय, जब वह मिस्र से निकली थीं।
16) ''प्रभु की यह वाणी हैः उस समय तुम मुझे 'अपना पति' कह कर पुकारोगी। तुम फिर कभी मुझे 'अपना बाल' कह कर नहीं पुकारोगी।
17) मैं उसके होठों के बाल-देवताओं के नाम मिटा दूँगा, जिससे वे फिर कभी याद नहीं रहेंगे।
18) उस समय मैं इस्राएल के पक्ष से वन के पशु-पक्षियों और भूमि पर रेंगेन वाले प्राणियों के साथ व्यवस्थापन स्थापित करूँगा। मैं धनुष, तलवार और युद्धास्त्र तोड दूँगा, जिससे तुम सुख-चैन से जीवन व्यतीत कर सको।
19) मैं सदा के लिए तुम्हें अपनाऊँगा। मैं तुम्हें धर्म और विधि के अनुसार कोमलता और प्यार से अपनाऊँगा।
20) मैं सच्ची निष्टा से तुम्हें अपनाऊँगा और तुम प्रभु को जान जाआंगी।
21) ''प्रभु की यह वाणी हैः मैं उस दिन उत्तर दूँगा। मैं आकाश को आदेश दूँगा कि वह पृथ्वी पर वर्षा करे;
22) मैं पृथ्वी को आदेश दूँगा, कि वह अन्न, अंगूरी और तेल उत्पन्न करे; मैं यिज्रएल को धनसंपन्न बनाऊँगा।
23) मैं उसे देश की भूमि में पुनः बो दूँूँगा। मैं लो-रूहामाह से प्रेम करूँगाः मैं लो-अम्मी को मेरी प्रजा कह कर पुकारूँगा, और उत्तर में वह कहेगा, ते मेर ईयवर है।''

अध्याय 3

1) पभु ने मुझे यह आदेश दियाः ''तुम पुनः जाओं और परकीया तथा व्यभिचारिणी स्त्री से प्रेम करो, जैसे मैं प्रभुु, इस्राएलियों से प्रेम करता हूँ; यद्यपि वे अन्य देवताओं की शरण जा कर किशमिश की रोटियों का प्रसाद पसन्द करते हैं''।
2) अतः मैंने चाँदी के पन्द्रह सिक्कों और डेढ सौ किलो जौ दे कर उस को छुडाया।
3) तब मैंने उस से कहा, ''तुम को बहुत दिनों तक मेरी बन कर रहना पडेगा। तुम वेश्यावृत्ति छोड़ो और पतिव्रता बनी रहो; मैं भी तुम्हारे साथ वैसा ही व्यवहार करूँगा''।
4) इस्राएलियों को तो बहुत दिनों तक राजा और शासक-रहित, बलि और वेदी-रहित, देवमूर्ति और देवी-देवताओं के बिना रहना पडेगा।
5) उसके बाद वे फिर प्रभु-ईश्वर को ढूँढेगे और दाऊद को राजा मानना शुरू करेंगे। उन दिनों वे भयभीत हो कर आशिष पाने के लिए प्रभु-ईश्वर के पास लौट आयेंगे।

अध्याय 4

1) इस्राएली लोगों! प्रभु की वाणी सुनो, क्योंकि प्रभु इस देश के निवासियों पर दोष लगा रहे हैं:
2) देश में से सच्चाई और करुणा तक ईश्वर-भक्ति लुप्त हो गयी है। लोग वचन के पक्के नहीं होते; रक्तपात, डाके और व्यभिचार, बलात्कार और नृशंक हत्याएँ हो रही हैं।
3) इस कारण देश शोकग्रस्त रहता है और उसके सब निवासी मुरझा रहे हैं; पशु-पक्षी और मछली भी मर रहे हैं।
4) परन्तु कोई किसी पर दोषारोपण न करे, न कोई किसी की निन्दा करे। याजकों! मैं ही तुम पर दोष लगा रहा हूँ।
5) दिन-रात तुम स्वयं पथभ्रष्ट हो कर ठोकर खाते चलते हो और नबी भी तुमहारे साथ हैं।
6) धर्म के अभाव में मेरी प्रजा भ्रष्ट हो गयी है। तुमने भक्ति को ठुकरा दिया है, अतः मैं तुम को याजक के पद से हटा रहा हूँ। तुम ईश्वर की वाणी की उपेक्षा करते हो, अतः मैं तुम्हारा ईश्वर, तुम्हारी सन्तान को तिरस्कृत करूँगा।
7) जैसे-जैसे उनकी संख्या बढती गयी, मेरे विरुद्ध उनके पाप भी बढते गये; मैं उनका सम्मान अपमान में बदल दूँगा।
8) वे मरी प्रजा के पापों पर पलते हैं और उनके अधर्म के भूखे रहते हैं।
9) इसलिए मैं प्रजा और याजकों के साथ एक ही व्यवहार करूँगा; दोनों के पापों का दण्ड एक ही होगा और अपराधों का बदला चुकाऊँगा।
10) वे खायेंगे, पर भूख मिटेगी नहीं; वे भोग-विलास करेंगे, किन्तु निस्संतान रहेंगे; क्योंकि वे प्रभु-ईश्वर को त्याग कर वेश्यावृत्ति में लग गये हैं।
11) अंगूरी चाहे नयी, चाहे पुरानी हो, वह बुद्धि को भ्रष्ट करती है।
12) मेरी प्रजा कुन्दे से परामर्श करती है और डण्डों से शकुन पूछती है; क्योंकि वेश्यावृत्ति ने उस पर मोहनी डाली है तथा प्रभु-ईश्वर को त्याग कर वह रण्डीबाजी करती है।
13) वे पर्वत-शिखरों पर बलिदान चढाते हैं; पहाडियों पर वे बलूत, चिनार और एला के वृक्षों के नीचे धूप चढाते हैं, क्योंकि उनकी छाया इन्हें अच्छी लगती है।
14) यद्यपि तुम्हारी पुत्रियाँ वेश्यावृत्ति करती हैं और तुमहारी बहुएँ भी व्यभिचार करती हैं, तथापि मैं उनकी वेश्यावृत्ति के लिए तुम्हारी पुत्रियों को या उनके व्यभिचार के लिए तुम्हारी बहुओं को दण्ड नहीं दूंगा; क्योंकि स्वयं पुरुष परस्त्रीगामी बन कर मन्दिरों में वेश्याओं के साथ पूजा करते हैं। इस प्रकार विधर्मी जाति भ्रष्ट होती जायेगी।
15) इस्राएल! यद्यपि तुम वेश्या बन गयी हो, यूदा पाप में तुम्हारा अनुकरण न करे। तुम लोग गिलगाल मत जाना, न ''जीवन्त ईश्वर की सौगंध'' खाने बेत-आवेन जाना।
16) इस्राएल तो हठी बछिया के समान हठीली हो गयी है। क्या प्रभु खुले मैदान में उन्हें मेमनों की तरह चरा सकता हैं? कदापि नहीं।
17) एफ्राईम मूर्तिपूजा में लग गया है; लगने दो।
18) वे अब शराबियों का गिरोह बन गये हैं और वेश्यवृत्ति स्थापित कर गये हैं। वे अपमान के लिए अपना सम्मान बेच बैठे हैं।
19) बवण्डर आ कर उन्हें अपने वेग से उडा देगा; तब उन को अपनी मूर्ति पूजा पर लज्जित होना पडेगा।

अध्याय 5

1) याजको सुनो! इस्राएल के घराने, कान दो! राजा के घराने, सुनो! न्याय देने के लिए तुम उत्तरदायी हो, परन्तु तुमने मिस्पा पर धार्मियों को गिराने के लिए फन्दा लगाया और ताबोर पर्वत पर लोगों को फँसाने का जाल बिछा दिया है।
2) दगाबाज! कितना गहरा है उनका विश्वासघात! अतः मैं उन सब को दण्ड दूँगा।
3) मेरी दृष्टि एफ्राईम पर रही है और मैं इस्राएल का लिहाज करता आया हूँ; पर एफ्राईम! तुम वेश्या बन गये हो और इस्राएल! तुम भी भ्रष्ट हो गये हो।
4) वे अपनी करतूतों में जकडे रह कर प्रभु के पास लौटे नहीं सकते; वेश्यावृत्ति ने तो उन पर ऐसी मोहनी डाल रखी हैं कि वे प्रभु-ईश्वर से अनभिज्ञ रहते हैं।
5) इस्राएल का अक्खडपन उसके अपने विरुद्ध साक्षी दे रहा है; एफ्राईम का अधर्म उसे ठोकर खिलायेगा; यूदा भी उसके साथ गिरेगा।
6) वे अपने गाय-बैल, भेड-बकरियाँ ले कर प्रभु की खोज में निकलेंगे, पर वे उसे नहीं पा सकेंगे, क्योंकि वह उन से ओझल हो गया है।
7) वे तो उसके प्रति अविश्वासी ही रहे हैं और जारज संतान उत्पन्न कर गये हैं। अब आक्रमणकारी आ कर उन को और उनके खेत-खलिहान खा जायेगा।
8) गिबआ में नरसिंघा सुनाओ और रामा में तुम्ही बजाओ। बेत-आवेन में लडाई का नारा लगाओ; ''बेनयामीन! हम तुम्हारे साथ हैं''।
9) मैं यह घोषण करता हूँ, दण्ड के दिन एफ्राईम उजाड हो जायेगा; इस्राएलियों के कुलों की तबाही निश्चित है।
10) यूदा के शासकों ने देश की सीमाओं पर अतिक्रमण किया है। अतः मैं उन पर अपना क्रोध बरसाऊँगा।
11) एफ्राईम अत्याचार कर रहा है। और न्याय का गला घोंट रहा है; वह हाथ धो कर मिथ्या लाभ के पीछे पडा हुआ है।
12) अच्छा, मेरे चलते एफ्रईम कीडे से खाये गये कपडे-जैसे जीर्ण हो जायेगा और यूदा का घराना सड जायेगा।
13) जब एफ्रईम ने अपनी लाचारी देखी और यूदा ने अपने घाव महसूस किये, तो एफ्राइम अस्सूर के महाराजा के पास दौड गया; किन्तु वह तुम्हारा रोग दूर कर तुम्हें स्वस्थ करने में असमर्थ है।
14) एफ्राईम के लिए मैं शेर बनूँगा और यूदा के घराने के लिए सिंह। मैं ही अपना शिकार चीर-फाड कर चल दूँगा; मैं उसे उठा ले जाऊँगा और कोई उसे छुडा न पायेगा
15) हाँ, मैं अपने निवासस्थान के पास तब तक लौट कर रहूँगा, जब तक वे अपने पापों पर पश्चात्ताप कर मेरी कृपा ढूँढने न आयें इस दुर्दशा में वे मुझे खोजते रहेंगे।

अध्याय 6

1) '' आओ! हम प्रभु के पास लौटें। उसने हम को घायल किया, वही हमें चंगा करेगा; उसने हम को मारा है, वही हमारे घावों पर पट्टी बाँधेगा।
2) वह हमें दो दिन बाद जिलायेगा; तीसरे दिन वह हमें उठोयेगा और हम उसके सामने जीवित रहेंगे।
3) आओ! हम प्रभु का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। उसका आगमन भोर की तरह निश्चित है। वह पृथ्वी को सींचने वाली हितकारी वर्षा की तरह हमारे पास आयेगा।''
4) एफ्राईम! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? यूदा! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? तुम्हारा प्रेम भोर के कोहरे के समान है, ओस के समान, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाती है।
5) इसलिए मैंने नबियों द्वारा तुम्हें घायल किया। अपने मुख के शब्दों द्वारा तुम्हें मारा है;
6) क्योंकि मैं बलिदान की अपेक्षा प्रेम और होम की अपेक्षा ईश्वर का ज्ञान चाहता हूँ।
7) आदाम में उन्होंने मेरा व्यवस्थान भंग किया है, वहाँ उन्होंने मेरे साथ विश्वासघात किया है।
8) गिलआद दुष्कर्मियों के लिए रक्त से सना हुआ नगर है।
9) और याजक, जैसे डाकू मार्ग में घात लगा कर यात्रियों की प्रतीक्षा करते हैं, ये याजक वैसे ही दल बना कर सिखेम के मार्ग में हत्या करते हैं; कितने घृणास्पद हैं। उनके कार्य!
10) इस्राएल के घराने में मैंने एक भयानक बात देखी है; वहाँ एफ्राईम वेश्यावृत्ति करता है और इस्राएल भी कलुषित हो गा है।
11) यूदा! तुम्हारे लिए भी न्याय का समय नियत किया गया है।

अध्याय 7

1) अब मैं अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि पुनः स्थापित करना चाहता हूँ और इस्राएल को चंगा करूँगा। तब मैं एफ्राईम के भ्रष्टाचार का और समारिया के दुराचार का पदाफाश करूँगा। वे तो अविश्वासी रहे हैं, चोर हैं, घरों में सेंघ मारते हैं और बाहर डाका डालते हैं।
2) वे इस पर ध्यान तक नहीं देते कि मैं उनके सब दुष्कमोर्ं को स्मरण करता हूँ। अब वे अपने ही अपराधों से घिरे हुए हैं और मेरी आंखों का काँटा बन गये हैं।
3) वे राजा को अपने छल-कपट से फुसला लेते हैं और अपने विश्वसाघात से शासकों को भी।
4) वे सब-के-सब लम्पट हैं; तपे तुए तन्दूर में राख के नीचे जलते अंगारों के समान, जिन्हें नानबाई तब तक नही फूँकता, जब तक खमीर के साथ गूँथा हुआ आटा न फूल गया हो।
5) अपने पर्व-दिवस पर राजा इन धूतोर्ं से मिलता-जुलता है और वे अंगूरी पिला-पिला कर उसे भरमा देते हैं।
6) षड्यंत्र रचने की उत्तेजना में तन्दूर में अंगार की तरह उनके हृदय जलते हैं; रात भर उनका क्रोध सुलगता रहता है और भोर को धधकती ज्वाला बन कर भभक उठाता है।
7) तब वे धधकती भट्ठी बन कर अपने शासकों को भस्म कर देते हैं। इस प्रकार उनके सभी राजाओं का पतन हो गया है और उन में से किसी ने भी मुझ को नहीं पुकारा है।
8) एफ्राईम अन्य जातियों के साथ धुलमिल गया है; एफ्राईम अधपकी रोटी है।
9) विदेशी उसकी शक्ति खा रहे हैं, किन्तु उसे उसका कुछ पता नहीं। अनजाने ही उसके बाल पक गये हैं।
10) इस्राएल का घमण्ड उसी के अपने मुँह पर कालिख लगा रहा है। यह होते हुुए भी वे न अपने प्रभु-ईश्वर की ओर उन्मुख होते, न ही उसे ढूँढते हैं।
11) एफ्राइम नादान और नासम कबूतर हैं; वे मिस्र की सहायता माँगते और अस्सूर की शरण दौडते हैं।
12) जब वे वहाँ जायेंगे, तो मैं उन पर जाल फेंक कर उन्हें पक्षियों की तरह गिरा दूँगा; मैं उनके कुकमोर्ं के लिए उन्हें दण्ड दूँगा।
13) धिक्कार है उन को कि वे मुझ से विमुख हो कर पथभ्रष्ट हो गये हैं! नाश हो उनका क्योंकि उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है! मैं उनका क्या उद्धार करूँ, जब कि वे मेरे विरुद्ध झूठ बोलते हैं?
14) वे अपनी चटाइयों पर पड़-पडे जब हाय-हाय करते हुए मुझे पुकारते हैं, तब उनकी पुकार हृदय की पुकार नहीं होती। अन्न और अंगूरी के लिए वे अपने को ही घायल करते हैं, और इस तरह मेरे विरुद्ध विद्रोह करते हैं।
15) यद्यपि मैंने ही उनकी भुजाओं को बल प्रदान किया, तथापि वे मेरे विरुद्ध कुचक्र रचते रहते हैं।
16) वे बिना डोरी के धनुष-जैसे ढीले हैं; वे तो बालदेवता के पास लौट कर उसकी दुहाई देते हैं। बात करने में गुस्ताखी के कारण ही उनके शासक तलवार से मरेंगे। मिस्र में लोग उनकी बड़ी हँसी उडायेंगे।

अध्याय 8

1) अपने होंठों पर नरसिंघा लगा कर फँूकों, क्योंकि प्रभु के निवास के ऊपर गिद्ध मंडरा रहा है। उन्होंने मेरे व्यवस्थान को भंग किया है और मेरे विधि-विधान के विरुद्ध विद्रोह किया है।
2) बे बेकार ही मुझ को पुकारते हैं, ''इस्राएल के ईश्वर! हम तुझे मानते हैं''।
3) इस्राएल ने अपना हित ठुकरा दिया है; अतः वह शत्रु का शिकार हो जायेगा।
4) उन्होंने मेरी अनुमति लिये बिना राजाओं का अभिषेक किया। उन्होंने मुझ से पारामर्श किये बिना नेताओं को नियुक्त किया। उन्होंने अपने सोने और चांदी से अपने लिए ऐसी देवमूर्तियाँ बनायीं, जो उनके विनाश का कारण बन जायेंगी।
5) समरिया! तुम्हारी बछडे की देवमूर्ति वीभत्स है। मेरा क्रोध उन लोगों को भडक उठा है। वे बहुत समय तक अपने को निर्दोष प्रमाणित नहीं कर सकेंगे;
6) क्योंकि वह देवमूर्ति इस्राएल से आयी, किसी कारीगर ने उसे बनाया है और वह कोई देवता है ही नहीं। समारिया का वह बछड़ा टुकडे-टुकडे कर दिया जायेगा।
7) इस्राएल पवन बोता है, किन्तु वह आँधी लुनेगा। वह उस डण्ठल के सदृश है, जिस में बाल नहीं लगती और गेहूँ पैदा नहीं होता। यदि उस में गेहूँ पैदा भी होता, तो विदेशी उसे खा जाते।
8) इस्राएल हडप लिया गया है और अन्य राष्ट्र के बीच ठीकरे के समान नगण्य है। यही अस्सूर से सहायता माँगने का परिणाम है।
9) वह जंगली गधा है, रेवड से कट कर रहता है। एफ्राइम के प्रेमी भाडे के टट्टू हैं।
10) एफ्राईम के मित्र भी खरीदे गये हैं। होने दो, किन्तु मैं उन को झट से तितर-बितर कर दूँगा; तब वे जल्दी ही राजा और शासकों का अभिषेक करना छोड़ देंगे।
11) एफ्राईम ने अपनी वेदियों की संख्या बढायी, किन्तु वे उसके लिए पाप का कारण बन गयी।
12) मैंने उसे बहुत-से नियम लिख कर दिये हैं, किन्तु उसने उन्हें किसी अपरिचित के नियम माना है।
13) वे अपनी ही इच्छा के अनुसार बलि चढाते हैं और बलिपशु का मांस खाते हैं, किन्तु प्रभु उन्हें स्वीकार नहीं करता। वह अनके अपराध याद करता है और उन्हें पापों का दण्ड देता है। वे फिर मिस्र देश जायेंगे।
14) इस्राएल अपने सृष्टिकर्ता को भूल गया है और अपने-अपने राजप्रसादों का निर्माण किया है। यूदा ने अनेकानेक सुदृढ़ गढ बना लिये हैं: किन्तु मैं उसके नगरों में आग लगा दूँगा, जो उसके दुगोर्ं को भी भस्म कर डालेगी।

अध्याय 9

1) इस्राएल! खुशियाँ मत मनाओ; अन्य राष्ट्रों की तरह आनन्दित मत दो, क्योंकि तुमने अपने ईश्वर को त्याग कर वेश्यावृत्ति की है और तुम खलिहान-खलि-हान में वेश्या की कमाई भोग चुके हो।
2) उन को न खलिहान न कोल्हू पुष्ट करेगा और न ताजी अंगूरी उन को तृप्त करेगी।
3) वे अब प्रभु-ईश्वर की भूमि में नही निवास करेंगे; एफ्राईम को मिस्र में लौट जाना पडेगा और अस्सूर में उन्हें अशुद्ध भोजन खाना पडेगा।
4) वे प्रभु-ईश्वर के सामने अंगूरी का तर्पण नहीं करेंगे, न उस को बलि चढायेंगे। ऐसी बलि मातम मनाने वालों की रोटी की तरह अशुद्ध होगी और उसे खाने वाले भी अशुद्ध होंगे। ऐसी रोटी पेट भरने के काम तो आयेगी, किन्तु वह प्रभु के मन्दिर में चढाने योग्य नहीं होगी।
5) तब तुम पवोर्ंत्सव के दिन क्या करोगे और यात्रा-पर्व कैसे मनाओगे?
6) वे अवश्य ही उजाड से भाग गये होंगे, वे मिस्र की शरण गये होंगे और मेमफिस ही उनका कब्रिस्थान होगा। कितनी बहुमूल्य थी उनकी चाँदी- बिच्छू पौधे उसे ढक देंगे और उनके तुम्बुओं में झाड-झंखाड उग आयेंगे।
7) दण्ड के दिन आ रहे हैं; प्रतिकार के दिन आ गये हैं। इस्राएल की यह शिकायतः 'नबी मूर्ख है; इस पागल के सिर पर क्या सवार है?' हाँ तो, किन्तु इसका कारण तुम्हारे भीषण अपराध और घोर विश्वासघात ही है।
8) नबी के तम्बू के सामने एफ्राईम घात लगाये रहता है और उसके सभी मागोर्ं पर फन्दे बिछा चुका है; ईश्वर के मन्दिर में भी शत्रु उसका विरोध करते हैं।
9) ये व्यक्ति जैसे गिबआ के दिनों में, वैसे ही नष्ट, भ्रष्ट हो गये हैं। प्रभु-ईश्वर उनके अपराध स्मरण करेगा और उनके पापों का दण्ड देगा।
10) मुझे इस्राएल इस प्रकार मिला, जैसे उजाड भूमि में अंगूर। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को इस प्रकार देखा, जैसे कोई ऋतु के शुरू में नये अंजीर के फल पाता है। किन्तु जब वे बाल-पओर पहुँचे, तब वे घृणास्पद देवता के सामने आत्मसमर्पण करेने लगे और देवता के समान स्वयं घृणित बन गये।
11) एफ्राईम का वैभाव फुर्र से उड जायेगा; न जन्म, न गर्भ, न ही गर्भधारण होगा।
12) यदि वे बच्चों को पालन-पोषण करेंगे भी, तो मैं उन्हें सन्तानहीन बना कर निर्वंश बना दूँगा। जब मैं उन से विमुख हो जाऊँगा, तो उनके दुर्दिन आयेंगे।
13) सिंह के शावक केवल शिकार बनने के लिए अपनी माँद से बाहर निकलते हैं, वैसे ही एफ्राईम भी वध के लिए अपने बच्चों का पालन कर रहा है।
14) प्रभु-ईश्वर! भिक्षा दान! किन्तु तू क्या देगा उन्हें? गर्भपात करने वाले गर्भाशय और सूखे स्तन?
15) उनके प्रत्येक दुष्कर्म का गिलगाल से ही प्रारंभ हुआ; वही उन से मेरी घृणा भी शुरू हो गयी। उनके दुष्कमोर्ं के कारण मैं उन्हें अपने घर से भगा दूँगा। मैं उन से प्रम और नहीं करूँगा, क्योंकि उनके सभी नेता विद्रोही हैं।
16) एफ्रईम का वृक्ष कट गया, उसकी जडे सूख गयी हैं, वे फल नहीं दे सकेंगे। यदि वे बच्चों को जन्म भी देंगे, तो मैं उनके लाडले बच्चों को मार डालूँगा।
17) मेरा ईश्वर उन्हें त्याग देगा, क्योंकि उन्होंने उसकी नहीं सुनी; अतः राष्ट्रों में भटकते रहना पडेगा।

अध्याय 10

1) इस्राएल फैलने वाली दाखलता के सदृश है, जिस में बहुत-से फल लगते हैं। वह फलों की बढती हुई संख्या के अनुरूप अपनी वेदियों की संख्या भी बढाता रहता है। वह अपने देश की समृद्धि के अनुरूप अपने पूजा-स्तम्भ अलंकृत करता है।
2) उन लोगों का हृदय कपटपूर्ण है, इसलिए उन्हें अपने पापों का फल भोगना पडेगा। वह स्वयं उनकी वेदियाँ नष्ट करेगा। और उनके पूजा-स्तम्भ गिरा देगा।
3) तब वे कहेंगे, ''हमारा कोई राजा नहीं है; क्योंकि जब हम प्रभु पर श्रद्धा नहीं रखते हैं, तो राजा हमारे लिए क्या कर सकता है?''
4) बकवाद! बकवाद! झूठी शपथें! सांधियाँ! और जोते हुए खेतों के कूडों में धतूरे के पौधों जैसे मुकदमेबाजी बढती जा रही हैं।
5) समारिया के निवासी बेत-आवेन के बछडे के लिए चिन्तित हैं; लोग उसके लिए मातम मनाते हैं और पुजारी मूर्ति की महिमा के लिए विलाप करते हैं, क्योंकि वह अब महिमा-रहित हो गयी है।
6) वह बडे राजा को भेंटस्वरूप अस्सूर ले जायी जायेगी। एफ्राईम को लज्जित होना पडेगा और इ्रस्राएल को भी अपनी मूर्तिपूजा के कारण हताश होना पडेगा।
7) समारिया का राजा पानी के फेन की तरह लुप्त हो गया है।
8) आवेन के पहाडी पूजास्थान नष्ट किये गये, जहाँ इस्राएल पाप करता था उनकी वेदियों पर काँटे और ऊँटकटारे उगेंगे। तब लोग पहाडों से कहने लगेंगे, ''हमें ढक लो'' और पहाडियों से, ''हम पर गिर पडो''।
9) इस्राएल! गिबआ के समय से ही तुम पाप करते चले आ रहे हो; वहाँ उन्होंने मुझ से विश्वासघात किया, तो गिबआ में ही युद्ध उन्हें क्यों न धर दबायेगा?
10) मैं दुष्कर्मियों को दण्ड देने आ रहा हूँ, राष्ट्र उनके विरुद्ध एकत्र हो जायेंगे; वे उनके महापाप के लिए उन को दण्ड देंगे।
11) एफ्राईम ऐसी निकाली हुई बछिया है, जो दाँवने के लिए तैयार रहती है; किन्तु अब तक मैंने उसकी कोमल गरदन पर जूआ नहीं रखा; अब तो एफ्राईम पर जूआ रखूँगा ही; यूदा को हल जोतना होगा, याकूब को हेंगा खींचना पडेगा
12) तुम धार्मिकता बोओ, तो भक्ति लुनोगे। अपनी परती भूमि जोतो, क्योंकि समय आ गया है। प्रभु को तब तक खोजते रहो, जब तक वह आ कर धार्मिकता न बरसाये।
13) तुमने अधर्म के बीज बो कर हल होता था; अतः तुम्हारी फसल अधर्म ही है और तुम को विश्वासघात का फल खाना पडा है। तुमने अपने रथों पर और सेना बल पर भरोसा रखा है,
14) इसलिए तुम्हारे लोगों के बीच भीषण युद्ध छिड जायेगा, तथा तुम्हारे किले नष्ट हो जायेंगे। स्मरण रहे कि शलमान ने युद्ध में बेतअरबेल को नष्ट किया था और बच्चों के साथ ही माताओं को भी मौत के घाट उतारा था।
15) इस्राएल के घराने! तुम्हारी घोर दुष्टता के कारण तुम्हारी भी यही गति होगी, और भोर को इस्राएल के राजा का पूर्ण विनाश होगा।

अध्याय 11

1) इस्राएल जब बालक था, तो मैं उसे प्यार करता था और मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।
2) मैं उन लोगों को जितना अधिक बुलाता था, वे मुझ से उतना ही अधिक दूर होते जाते थे। वे बाल-देवताओं को बलि चढाते और अपनी मूर्तियों के सामने धूप जलाते थे।
3) मैंने एफ्राईम को चलना सिखाया। मैं उन्हें गोद में उठाय करता था, किन्तु वे नहीं समझे कि मैं उनकी देखरेख करता था।
4) मैं उन्हें दया तथा प्रेम की बागडोर से टहलाता था। जिस तरह कोई बच्चे को उठा कर गले लगाता है, उसी तरह मैं भी उनके साथ व्यवहार करता था। मैं झुक कर उन्हें भोजन दिया करता था।
5) उन को मिस्र में लौट जाना पडेगा और अस्सूर का राजा उन पर राज्य करेगा; क्योंकि उन्होंने मेरे पास आना अस्वीकार किया है।
6) उनके नगरों मे भयंकर रक्तपात होगा, युद्ध में उनके गढ क्षतिग्रस्त हो जायेंगे, वे निस्सहाय और निर्वस्त्र हो कर नष्ट हो जायेंगे।
7) मेरी प्रजा मेरे विरुद्ध विद्रोह करने को तुली है; इसलिए उसे जूए की सजा दी जायेगी, जिसे कोई नहीं खोल सकेगा।?
8) एफ्राईम! मैं तुम्हें कैसे त्याग दूँ? इस्राएल! मैं तुम्हें कैसे शत्रु के हाथों सौप दूँ? मैं तुम्हें अदमा के समान कैसे राख में मिला दूँ? मैं तुम्हें सबोयीम के समान कैसे भस्म कर दूँ? मेरा हृदय यह नहीं मानता, मुझ में दया उमड आती है।
9) मैं अपना क्रोध भडकने नहीं दूँगा, मैं फिर एफ्राईम का विनाश नहीं करूँगा, क्योंकि मैं मनुष्य नहीं, ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारे बीच परमपावन प्रभु हूँ- मुझे विनाश करने से घृणा है।
10) वे प्रभु के पीछे हो लेंगे, प्रभु सिंह की तरह गरज उठेगा; हाँ, गरज उठेगा। मेरी गरज सुन कर मेरे पुत्र दौडते हुए पश्चिम से आयेंगे,
11) वे मिस्र से हवा के घोडे पर सवार हो कर आ जायेंगे और अस्सूर से कबूतरों के सदृश्य उडान भरते हुए पहुँचेंगे; तो मैं उन्हें स्वदेश में पुनः बसा दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।

अध्याय 12

1) एफ्रईम ने मेरे इर्द-गिर्द झूठों का जाल रचा है और इस्राएली वंश को ठग दिया है; किन्तु यूदा, वह अडियल ट्टटू, ईश्वर को अब तक मानता है और पावनपुंज ईश्वर का भक्त बना रहा है।
2) एफ्राईम हवाई-महल बनाता है; वह दिन भर पुरवाई का शिकार करता है। वह छल के छल एवं नाश के नाश करता जाता है; इधर अस्सूर के साथ सन्धि, उधर मिस्र को तेल का शुल्क।
3) यूदा से भी प्रभु की शिकायत है; वह याकूब को उसके आचरण के अनुसार दण्ड देगा और उसे उसके पापों का फल देगा।
4) अपनी माँ के गर्भ में ही उसने भाई को धोखा दिया और बडे हो कर वह प्रभु से भी लडा था।
5) वह देवदूत से लडा और उसे रोते हुए धोखा दे कर हरा भी गया। ईश्वर से बेतेल में उसकी भेंट हुई और वहाँ ईश्वर ने उस से बात भी की।
6) हाँ, उस विश्वमण्डल के प्रभु से उसने बात की; प्रभु उसका नाम है।
7) इसलिए उसी ईश्वर की कृपा पा कर उसके पास लौट आओ; सत्यनिष्ठ और भक्ति में अटल बने रहो; ईश्वर ही सदैव तुम्हारा भरोसा है।
8) एफ्राईम व्यापारी बन गया है, उसके हाथ में खोटा तराजू है; वह छल-कपट का सौदा करता है।
9) एफ्राईम का दावा यह है, ''अरे, मैं कितना धनवान् हो गया हूँ, मैं मालामाल हो गया हूँ''। किन्तु उसकी सारी सम्पत्ति भी उनके किये अपराधों को मिटा नहीं सकती।
10) मिस्र में प्रवास के समय से ही मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ; दर्शनों के दिन की तरह मैं तुम को फिर तम्बुओं में बसा दूँगा।
11) मैं ही नबियों के माध्यम से बोल चुका हूँ; मैंने नबियों को अनेकानेक दिव्य दर्शन दिये और नबियों के द्वारा दृष्टांत भी सुनाये।
12) क्या गिलआद में मूर्तिपूजा थी? हाँ! निस्सार पूजा- वे गिलगाल में बछडों को बलि चढा रहे थे; जोते हुए खेत के किनारे पत्थरों के ढेरों-जैसी उनकी वेदियाँ तुच्द थीं।
13) याकूब अराम भाग गया, इस्राएल ने पत्नी प्राप्त करने के लिए बेगारी स्वीकार की; वह पत्नी की प्राप्ती के लिए चरवाहा बन गया।
14) एक नबी के द्वारा ही प्रभु-ईश्वर मिस्र से इस्राएल को बाहर निकाल लाया और नबी से ही उसने इस्राएल की रक्षा की।
15) एफ्राईम ने प्रभु-ईश्वर को बहुत अधिक उत्तेजित किया है, अतः वह अपने ही रक्तपात का उत्तरदायी है; प्रभु ही उसकी ईशनिन्दा का प्रतिफल देगा।

अध्याय 13

1) जब एफ्राईम का स्वर सुनाई देता था, तो सब लोग काँप उठते थे, वह तो महान् ही था। किन्तु बाल-देवता का पूजा कर उसने अपराध किया और इस से वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।
2) और अब उनका पाप बढता ही जा रहा है; वे ढली मूर्तियाँ मनुष्यों की कृतियाँ बनाते हैं; चाँदी से कुशल कारीगर उन्हें गढते हैं; वे कहते हैं, ''इनकी पूजा करो''। मनुष्य बछडों की मूर्तियाँ चूमते हैं।
3) इसलिए वे प्रातःकाल के कुहरे की तरह ओर की बुँदों की तरह लुप्त हो जायेंगे। खलिहान से उडाये गये भूसे के समान या खिडकी से निकलने वाले धूएँ के समान वे विलीन हो जायेंगे।
4) मिस्र के निर्वासन के समय से मैं ही तुम्हारा प्रभु-ईश्वर रहा हूँ; मेरे सिवाय तुम किसी अन्य ईश्वर को नहीं मानते; मेरे सिवाय कोई अन्य उद्धारत नहीं।
5) मरुभूमि में मैंने ही तुम्हारी रक्षा की,
6) उस सूखे प्रदेश में मैं ने उन को खिलाया-पिलाया और वे खा-पीकर तृप्त रहते थे; तब वे घमण्ड से फूल गये और मुझे भुला बैठे।
7) अच्छा, तो मैं उनके साथ सिंह का-सा व्यवहार करूँगा, चीते की तरह मैं मार्ग में घात लगा कर बैठा रहूँगा।
8) अपने बच्चों को छिन जाते देख कर जैसे रीछनी शिकार पर टूट पडती है, वैसे ही मैं उन पर टूट कर उनके कलेजे फाड डालूँगा; सिंहनी की तरह उन को झट से चट जाऊँगा, जंगली जानवर बन कर मैं उन को निगल जाऊँगा।
9) इस्राएल! मैं तुम को नष्ट करूँगा और कौन तुम्हारी मदद करने आयेगा?
10) अब तुम्हारा वह राजा कहाँ रहा, जो तुम को बचाये; वे सभी नेता कहाँ हैं, जिनकी तुम शरण जाओ; तुमने मुझ से कहा था न, ''मुझे राजा और सामन्त दे''?
11) मैंने क्रुद्ध हो कर तुम को राजा दे दिये और फिर क्रोधित हो कर उन्हें वापस भी ले लिया।
12) एफ्राईम के अपराधों की गठरी बाँधी हुई है, उसके भण्डार पापों से भरे हुए हैं।
13) प्रसवपीडा शुरू हो गयी, किन्तु मूर्ख शिशु को समय का क्या पता, वह निकलता नहीं।
14) क्या मैं फिरौती चुका कर अधोलोक के वश से उन्हें बचाऊँ? क्या मैं मृत्यु से उनका उद्धार करूँ? काल! तेरी महामारियाँ कहाँ हैं? अधोलाक! कहाँ है तेरा विनाश? मेरा तो कलेजा पत्थर हो गया है।
15) एफ्राईम नरकुल-झुरमुट के बीच फले-फूले तो सही, किन्तु पुरवाई बहेगी, उजाड से प्रभु-ईश्वर की साँस; उसके झरने बन्द हो जायेंगे, उसके सोते सूख जायेंगे, उसका समस्त धन-वैभव लुट जायेगा।

अध्याय 14

1) समारिया को अपने पाप का फल भोगना पडेगा, उसने तो ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया है। वे तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे, उनके शिशु पटक-पटक कर मारे जायेंगे और गर्भवती स्त्रियों के पेट चीर डाले जायेंगे।
2) इस्राएल! अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट आओ, क्योंकि तुम अपने पापों के कारण गिर गये हो।
3) प्रार्थना का चढावा ले कर प्रभु के पास आओ और उस से यह कहो, ''हमारा अपराध मिटा दे और हमारा सद्भाव ग्रहरण कर। हम तुझे बलिपशुओं के स्थान पर यह निवेदन चढाते हैं।
4) अस्सूर हमें बचाने में असमर्थ है। हम फिर कभी अपने घोडों पर भरोस नहीं रखेंगे और अपने हाथों की बनायी हुई मुर्ति से नहीं कहेंगे- तू हमारा ईश्वर है। प्रभु! तू ही अनाथ पर दया करता है।''
5) मैं उनके विश्वासघात का घाव भर दूँगा। मैं सारे हृदय से उन को प्यार करूँगा; क्योंकि मेरा क्रोध उन पर से दूर हो गया है।
6) मैं इस्राएल के लिए ओस के सदृश बन जाऊँगा। वह सोसन की तरह खिलेगा और लेबानोन के बालूत की तरह जडे जमायेगा।
7) उसकी टहानियाँ फैलेंगी, उसकी शोभा जैतून के सदृश होगी और उसकी सुगन्ध लेबानोन के सदृश।
8) इस्राएली फिर मेरी छत्रछाया में निवास करेंगे और बहुत-सा अनाज उगायेंगे। वे दाखबारी की तरह फलेंगे-फूलेंगे और लेबानोन की अंगूरी की तरह प्रसिद्ध हो जायेंगे।
9) अब एफ्राईम को देवमूर्तियों से क्या? मैं ही उसकी सुनता और उसकी सुध लेता हूँ। मैं सदाबाहर सनोबर के सदृश हूँ- मुझ से ही उसे फल मिलते हैं।
10) जो समझदार है, वह इन बातों पर विचार करे। जो बुद्धिमान है, वह इन्हें अच्छी तरह जान ले। प्रभु के मार्ग सीधे हैं- धर्मी उन पर चलते हैं, किन्तु पापी उन पर ठोकर खा कर गिर जाते हैं।