पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

एज़ेकिएल का ग्रन्थ ( Ezekiel )

अध्याय 1

1) जब तीसवें वर्ष चौथे महीने के पाँचवें दिन मैं निर्वासितों के साथ कबार नदी के तट पर था, तो स्वर्ग खुल गया और मुझे प्रभु के दिव्य दर्शन हुए।
2) राजा यहोयाकीम के निर्वासन के पंचम वर्ष, महीने के पाँचवें दिन,
3) खल्दैयियों के देश में, कबार नदी के तट पर याजक बूजी के पुत्र एजेकिएल को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी और वहाँ प्रभु का हाथ उस पर पड़ा।
4) मैंने देखा कि उत्तर की ओर से आँधी आ रही हैः प्रकाशमण्डल से घिरा हुआ एक विशाल मेघपुंज आ रहा है। उस में से आग झर रही थी और उसके चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश था। उसकी ज्वालओं के मध्य भाग में काँसे-जैसी चमक थी।
5) आग में चार प्राणी दिखाई पड़ने लगे और उनका रूपरंग मनुष्यों-जैसा था;
6) किन्तु उन मे प्रत्येक के चार मुख थे और हर एक के चार पंख।
7) उनके पैर सीधे थे और उनके पैरों के तलवे बछड़े के खुर-जैसे थे। वे चमकदार काँसे की तरह झलमला रहे थे।
8) उनके पंखों की नीचे मनुष्य-जैसी भुजाएँ चारों ओर फैली थीं। उन चारों के मुख और पंख इस प्रकार के थेः
9) उनके पंख एक-दूसरे को छू रहे थे। उन में कोई भी चलते समय पीछे नहीं मुड़ता था; वे सीधे चल रहे थे।
10) जहाँ तक उनके रूपरंग की बात है, प्र्रत्येक का मुख मनुष्य का था; चारों की दायीं ओर का मुख सिंह था; चारों की बायीं ओर का मुख साँड़ का था और चारों के पीछे का मुख गरुड़ का था।
11) उनके पंख ऊपर की ओर फैले थे। प्रत्येक प्राणी के दो-दो पंख थे, जिन में प्रत्येक दूसरे के पंख का स्पर्श करता था, जब कि दो उनके शरीर को ढँके हुए थे।
12) उन में प्रत्येक सीधे चल रहा था। जहाँ कहीं आत्मा जाना चाहता था, वे समय बिना मुडे बढ़ते जाते थे।
13) उन प्राणियों के बीच कुछ ऐसा था, जो जलते अंगारे-सा प्रतीत होता था- उन प्राणियों के बीच इधर-उधर चल रही मशालों-जैसा। आग दहक रही थी और उस आग में से बिजली कौंध रही थीं।
14) वे प्राणी बिजली की चमक की तरह इधर-उधर दौड़ रहे थे।
15) जब मैंने उन प्राणियों को ध्यान से देखा, तो मुझे उनके पास पृथ्वी पर एक पहिया दिखाई पड़ा, उन चारों में पत्येक के लिए एक-एक पहिया।
16) उन पहियों के रूप और बनावट की झलक स्वर्गमणि-जैसी थी और चारों एक-जैसे थे; उनकी बनावट ऐसी थी, मानो एक पहिये के भीतर दूसरा पहिया लगा हो।
17) चलते समय वे मुुडे बिना ही चारों दिशाओं में बढ़ जाते थे।
18) उनके घेरे ऊँचे और डरावने थे और उनके चारों पहियों के घेरों में चारों ओर आँखें ही आँखें थीं।
19) जब वे प्राणी चलते, तो पहिये उनके साथ चलते और जब वे प्राणी पृथ्वी से ऊपर उठते, तो पहिये उठ जाते थे।
20) जहाँ कहीं आत्मा जाना चाहता, वे चले जाते और उनके साथ पहिये ऊपर उठ जाते; क्योंकि उन प्राणियों के आत्मा का वास पहियों में था।
21) जब वे चलते, तो वे चलते; जब वे रुकते, तो वे रुक जाते और जब से पृथ्वी से ऊपर उठते, तो उनके साथ पहिये उठ जाया करते; क्योंकि उन प्राणियों के आत्मा का वास पहियों में था।
22) उन प्राणियों के सिरों के ऊपर स्फटिक की तरह उज्ज्वल, वितान-जैसा उनके मस्तकों पर फैला हुआ था।
23) वितान के नीचे उनके पंख एक दूसरे की ओर सीधे फैले हुए थे और प्रत्येक प्राणी के दो पंख थे, जो उसका शरीर ढके हुए थे।
24) मैंने उनके पंखों की आवाज सुनी। जब वे चलने लगे, तो वह आवाज प्रचण्ड जलप्रवाह की गड़-गड़ाहट, सर्वशक्तिमान् के गर्जन या सेना के पड़ाव के कोलाहल के समान थी। जब वे रुकते, तो वे अपने पंख नीचे कर देते थे।
25) उनके सिरों के ऊपर के वितान से एक वाणी सुनाई दे रही थी। जब वे रुकते, तो वे अपने पंख नीचे कर देते थे।
26) उनके सिरों के ऊपर वितान फैला हुआ था और उस पर सिंहासन-जैसा एक नीलमणि दिखाई देता था, जिस पर मनुष्य के आकार का कोई बैठा हुआ था।
27) कमर के ऊपर उसका शरीर अग्नि से चमकते हुए पीतल-जैसा था और कमर के नीचे उसका शरीर अग्नि के सदृश था, जिस में से प्रकाश फैल रहा था।
28) चारों ओर फैला हुआ प्रकाश वर्षा के दिनों में बादलों में दिखाई पड़ने वाले इन्द्रधनुष-जैसा था। प्रभु की महिमा इस प्रकार प्रकट हुई। यह देख कर मैं मुँह के बल गिर पड़ा। तब मुझे एक वाणी सुनाई पडी।

अध्याय 2

1) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! अपने पैरों पर खडे हो जाओ और मैं तुम से बात करूँगा''। जैसे ही उसने मुझ से यह कहा,
2) आत्मा ने मुझ में प्रवेश कर मुझे पैरों के पर खड़ा कर दिया और मैंने उसे मुझ से यह कहते सुना।
3) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! मैं तुम्हें इस्राएलियों के पास भेज रहा हूँ, उस विद्रेही राष्ट्र के पास, जो मेरे विरुद्ध में उठ खड़ा है। वे और उनके पुरखे आज तक मेरे विरुद्ध विद्रोह करते चले आ रहे हैं।
4) उनके पुत्र हठी हैं और उनका हृदय कठोर है। मैं तुम्हें उनके पास यह कहने भेज रहा हूँ: 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है'।
5) चाहे वे सुनें या सुनने से इनकार करें, क्योंकि वे विद्रोही प्रजा हैं- किन्तु वे जान जायेंगे कि उनके बीच एक नबी प्रकट हुआ है।
6) मानवपुत्र! तुम उन से नहीं डरोगे और और न उनकी बातों से भयभीत होगे, भले ही तुम्हें कँटीली झाड़ियाँ और काँटे मिलें और तुम को बिच्छुओं पर बैठना पडे। उनके शब्दों से भयभीत मत हो और उनकी नजरों से मत डरो; क्योंकि वे विद्रोही हैं।
7) चाहे वे सुनें या सुनने से इनकार करें, तुम मेरे शब्द उन्हें सुनाओगे; क्योंकि उनका घराना विद्रोही है।
8) ''मानवपुत्र! मैं जो कहने जा रहा हूँ, उसे सुनो। इस विद्रोही प्रजा की तरह विद्रोह मत करो। अपना मुँह खोलो और जो दे रहा हूँ, उसे खा लो।''
9) मैंने आँखें ऊपर उठा कर देखा कि एक हाथ मेरी ओर बढ़ रहा है और उस में एक लपेटी हुई पुस्तक थी।
10) उसने उसे खोल दिया। काग़ज पर दोनों ओर लिखा हुआ था- उस पर विलाप, मातम और शोक गीत अंकित थे।

अध्याय 3

1) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! जो अपने-सामने हैं, उसे खा लो। यह पुस्तक खा जाओ और तब इस्राएल की प्रजा को सम्बोधित करो।''
2) मैंने अपना मुँह खोला और उसने मुझे यह पुस्तक खिलायी।
3) उसने मुझ से कहा ''मानवपुत्र! मैं जो पुस्तक दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो''। मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु-जैसा मीठा था।
4) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! इस्राएल की प्रजा के पास जा कर उसे मेरे शब्द सुनाओ।
5) मैं तुम को विदेशी भाषा और कठिन बोली बोलने वाली जाति के पास नहीं, बल्कि इस्राएल के घराने के पास भेज रहा हूँ,
6) विदेशी भाषा और कठिन बोली बोलने वाले राष्ट्रों के यहाँ नहीं, जिनके शब्द तुम नहीं समझ सकते। यदि मैं तुम को ऐसे लोगों के पास भेजता, तो वे तुम्हारी बात अवश्य सुनते।
7) किन्तु इस्राएल का घराना तुम्हारी बात नहीं सुनेगा, क्योंकि वे लोग मेरी बात सुनना नहीं चाहते; क्योंकि इस्राएल का समस्त घराना हठी मन और कठोर हृदय वाला है।
8) देखो, मैंने तुम्हारा चेहरा उनके चेहरों की तरह कठोर बना दिया है और तुुम्हारा मस्तक उनके मस्तकों की तरह कठोर बना दिया है।
9) मैंने तुम्हारा मस्तक कठोर चक़मक़ पत्थर से भी अधिक कड़ा बना दिया है। न उन से डरो और न उनकी नजरों से भयभीत हो; क्योंकि वे विद्रोही प्रजा है।''
10) तब वह मुझ से यह बोला, ''मानवपुत्र! मैं तुम से जो शब्द कह रहा हूँ, उन्हें अपने हृदय से ग्रहरण करो और अपने कानों से सुनो।
11) तुम निर्वासितों, अपनी जाति के लोगों के यहाँ जाओ और चाहे वे सुनें या सुनने से इनकार करें, उन से कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है÷।''
12) इसके बाद आत्मा ने मुझे ऊपर उठा लिया और मुझे अपने पीछे भयंकर भूकंप की आवाज सुनाई पड़ी'- ''प्रभु की महिमा हो- अपने निवासस्थान में!'
13) यह उन प्राणियों के परस्पर टकराने वाले पंखों की आवाज थी और उनकी बग़ल के पहियों की आवाज थी और एक भयंकर भूकंप का कोलाहल।
14) आत्मा मुझे उठा कर ले गया। मैं बड़े कड़वे मन और आवेश में गया और प्रभु के हाथ का भार मुझ पर पड़ा।
15) मैं निर्वासितों के पास तेल-आबीब आया, जो कबार नदी के पास रह रहे थे और उनके बीच सात दिनों तक चकित बैठा रहा।
16) सात दिन बीतने पर प्रभु की वाणी मुझ से यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
17) ''मानवपुत्र! मैंने तुम्हें इस्राएल के घराने का पहरेदार नियुक्त किया। तुम मेरे मुख के वचन सुन कर उन्हें मेरी ओर से चेतावनी दोगे।
18) यदि मैं दुष्ट से यह कहूँगा-'तुम अवश्य मर जाओगे' और तुम उसे चेतावनी नहीं दोगे और उसे नहीं समझाओगे कि वह पापाचरण छोड़ दे और जीवित रहे, तो दुष्ट अपने पाप के कारण मर जायेगा; किन्तु मैं तुम को उसकी मृत्यु का उत्तरदायी मानूँगा।
19) दूसरी ओर, यदि तुम दुष्ट को चेतावनी दोगे और वह अपनी बुराई और पापाचरण नहीं छोडेगा, तो वह अपने दोष के कारण मर जायेगा, किन्तु तुम अपना जीवन सुरक्षित रख पाओगे।
20) जब धर्मी अपनी धार्मिकता त्याग कर अधर्म करने लगेगा, तो मैं उसे दण्डित करूँगा और वह मर जायेगा। तुमने उसे चेतावनी नहीं दी, इसलिए वह अपने पाप के कारण मर जायेगा और उसका धर्माचरण भुला दिया जायेगा। किन्तु मैं तुम को उसकी मृत्यु का उत्तरदायी मानूँगा।
21) दूसरी ओर, यदि तुम धर्मी को चेतावनी दोगे और वह पाप नहीं करेगा, तो वह तुम्हारी चेतावनी के कारण जीवित रहेगा और तुम भी अपना जीवन सुरक्षित रख पाओगे।''
22) वहाँ प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा और वह मुझ से बोला, ''उठो, घाटियों की ओर जाओ; वहाँ मैं तुम से बात करूँगा''।
23) मैं उठ कर घाटी की ओर गया और देखो, वहाँ प्रभु की महिमा उस महिमा के रूप में विराजमान थी, जिसके दर्शन मैंने कबार नदी किनारे किये थे। मैं अपने मुँह के बल गिर पड़ा।
24) किन्तु मुझ में आत्मा प्रविष्ट हो गया और उसने मुझे पैर के बल खड़ा कर दिया। उसने मुझ से बात की और मुझ से यह कहा, ''अपने घर जा कर किवाड बन्द कर लो।
25) मानवपुत्र! तुम पर रस्सियाँ रखी जायेंगी और तुम उन से बाँध दिये जाओगे, जिससे तुम लोगों के बीच न जा सको।
26) मैं तुम्हारी जीभ तालू से चिपका दूँगा, जिससे तुम गूँगे और उन्हें धिक्कारने में असमर्थ हो जाओगे; क्योंकि वे विद्रोही प्रजा हैं।
27) किन्तु जब मैं तुम से बोलूँगा, तो मैं तुम्हारी जीभ खोल दूँगा और तुम उन से यह कहोगे, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है'। जो सुनना चाहेगा, वह सुने और जो सुनने से इनकार करेगा, वह इनकार करे; क्योंकि वे विद्रोही प्रजा हैं।''

अध्याय 4

1) ''मानवपुत्र! एक ईंट ले कर उसे अपने सामने रखो और उस पर एक नगर का- येरुसालेम का चित्र बनाओ।
2) उसकी घेराबन्दी करो, घेरे की दीवार बनाओ और टीला खड़ा करो। फिर उसके चारों ओर खेमे बना कर उसके विरुद्ध भित्तिपातक लगा दो।
3) लोहे का एक तवा ले कर उसे लोहे की दीवार के रूप में अपने और नगर के बीच रखो। अपना मुँह उसकी ओर करो। वह घिर जायेगा और तुम उसे घेरोगे। यह इस्राएल के घराने के लिए एक चिन्ह-जैसा होगा।
4) ''फिर तुम बायीं करवट लेट जाओ और इस्राएल के घराने के पाप अपने ऊपर डाल लो। तुम जितने दिन लेटे रहोगे, तुम उन लोगों का पाप भोगते रहोगे।
5) मैं उनके पाप के वषोर्ं की संख्या के बराबर के दिन- तीन सौ नब्बे दिन- तुम्हारे लिए निर्धारित करता हूँ। तब तक तुम इस्राएल के घराने का पाप भोगोगे।
6) जब तुम इसे पूरा कर लोगे, तब तुम दूसरी बार, लेकिन अपनी दायीं ओर, लेट जाओ और यूदा के घराने का पाप भोगो। मैं एक वर्ष के बदले एक दिन के हिसाब से तुम्हारे लिए चालीस दिन निश्चित करता हूँ।
7) इसके बाद तुम येरुसालेम की घेरेबन्दी की ओर मुँह कर अपना नंगा हाथ ऊपर उठाओगे और इस नगर के विरुद्ध भविष्यवाणी करोगे।
8) देखो, मैं तुम को रस्सियों से बाँध दूँगा, जिससे तुम तब तक एक ओर से दूसरी ओर करवट न बदल सको, जब तक तुम अपनी घेरेबन्दी के दिन पूर न कर लो।
9) ''तुम गेहँू और जौ, सेम और मसूर, बाजरा और कठिया गेहूँ लो, उन्हें एक ही बरतन में रखो और उनकी रोटी बनाओ। जब तक तुम एक ही करवट तीन सौ नब्बे दिनों तक लेटे रहोगे, तब तक वही खाओगे।
10) तुम जो भोजन करोगे, उसका दैनिक वजन बीस शेकेल होगा। तुम दिन में एक ही बार निश्चित समय पर भोजन करोगे।
11) तुम नाप से एक हिन का छठा भाग पानी पिओगे। तुम दिन में एक ही बार पिओगे।
12) तुम उन लोगों के सामने मनुष्य के मल के कण्डे पर सेंक कर उसे जौ की रोटी की तरह खाओगे।''
13) प्रभु ने कहा, ''इस्राएल के लोग उन राष्ट्रों के यहाँ, जहाँ मैं उन्हें बिखेर दूँगा, इसी तरह अशुद्ध भोजन करेंगे''।
14) इस पर मैंने कहा, ''प्रभु-ईश्वर! मैंने कभी अपने को अपवित्र नहीं किया है। यौवन से ले कर आज तक मैंने उसका मांस नहीं खाया है, जो स्वयं मरा हो या पशुओं द्वारा मारा गया हो, न ही मैंने अशुद्ध मांस मुँह में डाला है।''
15) इस पर वह मुझ से बोला, ''मैं मनुष्य के मल की जगह गोबर का उपयोग करने दूँगा। तुम उस पर अपनी रोटी सेंक सकते हो।''
16) उसने मुझ से यह भी कहा, ''मानवपुत्र! देखो, मैं येरुसालेम में रोटी का भण्डार नष्ट कर दूँगा। लोग रोटी तौल कर डरते हुए खायेंगे और वे पानी नाप कर घबराते हुए पियेंगे।
17) मैं यह इसलिए करूँगा, जिससे उन्हें भोजन और पानी का अभाव हो और वे एक दूसरे को भय से देखें और अपने पाप के कारण नष्ट हो जायें।''

अध्याय 5

1) ''मानवपुत्र! तुम एक तेज लोहे की पत्ती लो। उसका उपयोग नाई के उस्तरे के रूप में करो और उस से अपना सिर और दाढ़ी मूँड़ो। फिर तराजू से तौल कर केशों के भाग करो।
2) तुम एक तिहाई भाग उस समय नगर के बीच जला दो, जब उसकी घेराबन्दी के दिन पूरे हो जायें। तुम एक तिहाई भाग ले कर उस पर नगर के चारों ओर तलवार से प्रहार करो। एक तिहाई भाग हवा में बिखेर दो और मैं तलवार से उनका पीछा करूँगा।
3) तुम उन में से कुछ को ले कर उन्हें अपने वस्त्र के खूँटों से बाँध लो।
4) फिर उन में से कुछ को आग में डाल कर जला दो और उन से एक ज्वाला निकल कर इस्राएल के समस्त घराने पर फैल जायेगी।''
5) प्रभु-ईश्वर कहता है, ''यह येरुसालेम है! मैंने इसे राष्ट्रों के बीचों-बीच, चारों ओर देशों के साथ रखा है।
6) किन्तु उसने अपनी दुष्टता द्वारा अन्य राष्ट्रों से भी अधिक मेरे आदेशों का तिरस्कार किया और पड़ोस के देशों से भी अधिक मेरे आदेशों का उल्लंघन किया; क्योंकि उसने मेरे नियमों की अवहेलना की है और मेरे आदेशों का अनुसरण नहीं किया।''
7) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है, ''तुम अपने पडोसी राष्ट्रों से भी अधिक विद्रोही हो और तुमने न तो मेरे विधानों का अनुसरण किया है और न ही मेरे आदेशों का पालन किया है, बल्कि अपने पड़ोस के राष्ट्रों के रीति-रिवाजों के अनुसार आचरण किया है।
8) इसलिए प्रभु-ईश्वर कहता हैः देखो, मैं यहाँ तक कि मैं भी तुम्हारे विरुद्ध हो गया हूँ और मैं राष्ट्रों के सामने तुम्हारे ही बीच अपने निर्णय पूरा करूँगा।
9) तुम्हारे घृणित कर्मों के कारण मैंं तुम्हारे साथ वैसा व्यवहार करूँगा, जैसा मैंने कभी नही किया और जैसा मैं कभी नहीं करूँगा।
10) इसलिए तुम्हारे यहाँ पिता अपने पुत्रों को खायेंगे और पुत्र अपने पिताओं को। मैं तुम्हें दण्ड दूँगा और तुम में जो बच जायेंगे, उन को इधर-उधर बिखेर दँूगा।''
11) इसलिए प्रभु-ईश्वर कहता है, ''अपनी शपथ! तुमने अपनी घृणित मूर्तियों और घृणित कायोर्ं द्वारा मेरे पवित्र-स्थान को अपवित्र किया है, इसलिए मैं तुम्हारा विनाश करूँगा। तुम मेरी आँखों से बच नहीं सकोगे और मैं दया नहीं दिखलाऊँगा।
12) तुम्हारा एक तिहाई भाग महामारी से मर जायेगा और तुम्हारे यहाँ अकाल से नष्ट हो जायेगा। एक तिहाई भाग तुम्हारे तुम्हारे आसपास तलवार के घाट उतारा जायेगा और मैं एक तिहाई भाग को इधर-उधर बिखेर दूँगा और उसका पीछा तलवार से करूँगा।
13) ''इस प्रकार मेरा क्रोध शान्त होगा और मैं उन पर अपना क्रोध उतार कर सन्तोष का अनुभव करूँगा। जब मैं उन पर अपना क्रोध उतारूँगा तो वे यह जान जायेंगे कि मैं, प्रभु, ने ही उत्तेजित हो कर ऐसा कहा है।
14) यही नहीं, मैं तुम लोगों को उजाड़ दूँगा और तुम्हारे पड़ोस के राष्ट्रों के बीच और वहाँ से गुजरने वाले लोगों के सामने उपहास का पात्र बना दूँगा।
15) तुम अपने आसपास के राष्ट्रों के लिए निन्दा और उपहास, चेतावनी और आतंक के पात्र बन जाओगे, जब मैं अपने क्रोध और आक्रोश में और घोर प्र्रताड़ना के साथ, तुम्हें दण्ड दूँगा- यह मैं, प्रभु ने कहा है;
16) जब मैं तुम पर अकाल के घातक बाण, विनाश के भीषण बाण छोडँूगा, जिन्हें मैं मिटा देने के लिए छोडूँगा और जब मैं तुम्हारे यहाँ अकाल-पर-अकाल भेजूँगा और तुम्हारी रोटी का आधार तोड़ दूँगा।
17) मैं तुम्हारे विरुद्ध अकाल और जंगली पशुओं को भेजँूगा और वे तुम्हें निस्सन्तान बना देंगे। तुम्हारे यहाँ महामारी और रक्तपात विचरण करेंगें और मैं तुम पर तलवार भेजूँगा। यह मैं, प्रभु, ने कहा है।''

अध्याय 6

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
2) ''मानवपुत्र! अपना मुँह इस्राएल के पर्वतों की ओर करो और उनके विरुद्ध यह भविष्यवाणी करो।
3) कहो, 'इस्राएल के पर्वतों! प्रभु-ईश्वर की यह वाणी सुनो। प्रभु-ईश्वर पर्वतों और पहाड़ियों, दरियों और घाटियों से कहता हैः देखो, मैं तुम पर तलवार भेजूँगा और तुम्हारे पहाड़ी पूजा-स्थानों को नष्ट कर दूँगा।
4) तुम्हारी वेदियाँ उड़ज जायेंगी धूप-वेदियाँ तोड़ दी जायेंगी और मैं तुम्हारे मृतकों को तुम्हारी मूर्तियों के सामने फेंक दूँगा।
5) मैं इस्राएल के मृतकों के शव उनकी मूर्तियों के सामने डाल दूँगा और तुम्हारी हड्डियाँ तुम्हारी वेदियों के पास बिखेर दूँगा।
6) तुम जहाँ कहीं निवास करोगे, तुम्हारे नगर उजाड़ हो जायेंगे और तुम्हारे पहाड़ी पूजास्थान नष्ट कर दिये जायेंगे, जिससे तुम्हारी वेदियाँ उजाड़ और नष्ट हो जायें, तुम्हारी मूर्तियाँ टुकडे-टुकडे हो कर नष्ट हो जायें, तुम्हारी धूप-वेदियाँ तोड़ दी जायें और तुम्हारे हाथों की कृतियों का नाम तक न रहे।
7) मृतक तुम्हारे बीच गिर पडंेगे और तुम तभी यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
8) 'तब भी मैं तुम में से कुछ लोगों को जीवित छोड़ दूँगा। जब राष्ट्रों में तलवार के बच निकले कुछ लोग होंगे और जब तुम देश-देश में बिखर जाओगे,
9) तो तुम में से वे लोग, जो बच निकले हैं, तब उन राष्ट्रों में मुझे याद करेंगे, जहाँ वे बन्दी बना कर ले जाये गये हैं। मैं उनके व्यभिचारी हृदय को, जो मुझ से विमुख हो गया है, चूर कर दूँगा और उनकी वे आँखें फोड़ दूँगा, जो अपनी मूर्तियों को कामातुरता से देखती हैं। वे अपने द्वारा किये गये पापों और सभी वीभत्स कमोर्ं के लिए स्वयं अपनी दृष्टि में घृणा के पात्र हो जायेंगे।
10) वे तभी यह समझेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ; मैंने यों ही नहीं कहा है कि मैं उन पर यह विपत्ति ढाहूँगा।'
11) प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः 'हाथ पीट कर और पैर पटक कर यह कहो- इस्राएल के घराने के घृणित कुकमोर्ं के लिए धिक्कार! क्योंकि वह तलवार, अकाल और महामारी का शिकार होगा।
12) जो दूर होगा, वह महामारी से मरेगा; जो नजदीक होगा, वह तलवार से मारा जायेगा और जो बच कर सुरक्षित रह जायेगा, उसकी मृृत्यु अकाल से होगी। इस प्रकार मैं उन पर अकाल क्रोध उतारूँगा।
13) तुम तभी यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब उनकी वेदियों के चारों ओर, उनकी देवमूर्तियों के पास, प्रत्येक पहाड़ी पर, सभी पर्वत-शिखरों पर, प्रत्येक हरे वृक्ष और प्रत्येक पत्तेदार बलूत के नीचे, जहाँ कहीं भी वे अपनी देवमूर्तियों को सुगन्धित धूप चढाया करते थे, उनके मृतक बिछ जायेंगे।
14) मैं अपना हाथ उनके विरुद्ध उठाऊँगा और उनके सभी निवास-स्थानों में, रिबला से ले कर उजाड़खण्ड तक, उनके देश को निर्जन और उजाड़ बना दूँगा। वे तभी यह समझेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''

अध्याय 7

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
2) ''मानवपुत्र! यह कहो, 'इस्राएल का प्रभु-ईश्वर कहता हैः अन्त! देश के चारों कोनों पर अन्त आ गया है!
3) अब तुम्हारा अन्त है और मैं तुम पर अपना कोप बरसाऊँगा। तुम्हारे आचरण के अनुसार तुम्हारा न्याय करूँगा और तुम्हारे वीभत्स कमोर्ं के लिए तुम्हें दण्ड दूँगा।
4) तुम न तो मेरी दृष्टि से बच सकोगे और न ही मैं तुम पर दया दिखलाऊँगा; क्योंकि मैं तुम्हारे बीच के वीभत्स कमोर्ं और साथ ही पापपूर्ण आचरण के लिए तुम्हें दण्ड दूँगा। तुम तभी यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।'
5) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः विपत्ति-पर-विपत्ति! देखो, वह आ रही है।
6) अन्त आ गया है, अन्त आ ही गया है। वह तुम्हारे विरुद्ध जाग उठा है। देखो, वह आ रहा है।
7) इस देश के निवासियों! तुम्हारा विनाश तुम्हारे निकट आ गया है। वह समय आ गया है, वह दिन समीप है- विप्लव का, न कि पर्वतों पर प्रसन्न कोलाहल का दिन।
8) मैं तुम पर अपना कोप बरसाऊँगा और तुम पर मेरा क्रोध शान्त हो जायेगा। मैं तुम्हारा न्याय तुम्हारे आचरण के अनुसार करूँगा और तुम्हारे सभी वीभत्स कमोर्ं का लेखा लूँगा।
9) मैं तुम पर न तो दया दिखाऊँगा और न तुम मेरी दृष्टि से बच सकोगे। मैं तुम को तुम्हारे आचरण के अनुसार दण्ड दूँगा और तुम्हारे वीभत्स कर्म तुम्हारे यहाँ रह जायेंगे। तुम तभी यह समझोगे कि मैं, प्रभु, तुम पर आघात कर रहा हूँ।
10) ''देखो, वह दिन! देखो, वह आ रहा है! तुम्हारा अन्त आ गया है। डाली खिल रही है, घमण्ड फूल रहा है।
11) हिंसा दुष्टता की लाठी बन गयी है। उनका कुछ भी शेष नहीं रहेगा- न तो उनकी समृद्धि और न उनकी सम्पत्ति। उन में कोई बड़प्पन नहीं रहेगा।
12) वह समय आ गया है, वह दिन पास आ गया है। ख़रीदने वाला आनन्दित न हो, बेचने वाला शोक न मनाये; क्योंकि उनके समस्त समुदाय पर कोप भड़क गया है।
13) बेचने वाले को जीवन भर वह वापस नहीं मिलेगा, जो उसने बेच दिया; क्योंकि उनके समस्त समुदाय पर कोप भड़क गया है, वह पीछे नहीं मुडेगा और अपने पापों के कारण कोई अपने जीवन की रक्षा नहीं कर पायेगा।
14) ''वे तुरही बजा कर तैयार हो गये हैं; लेकिन उन में कोई भी युद्ध करने नहीं जा पायेगा; क्योंकि मेरा कोप उनके समस्त समुदाय पर भड़क उठा है।
15) बाहर तलवार चल रही है, भीतर महामारी और अकाल है। जो देहात में है, वह तलवार से मारा जाता है और जो नगर में है, वह अकाल और महामारी का आहार बन गया है।
16) जो बच कर भागेंगे, वे पहाड़ों पर घाटियों के कराहने वाले कबूतरों-जैसे हो जायेंगे। सभी अपने-अपने पापों के कारण मरेंगे।
17) सब के हाथ शक्तिहीन हो जायेंगे और सब के घुटने शिथिल।
18) वे कमर में टाट लपेटेंगे और उन पर आतंक छा जायेगा। सभी चेहरों पर लज्जा दिखाई देगी और उनके माथे पर गंजापन।
19) वे अपनी चाँदी सड़कों पर फेकेंगे और अपना सोना उन्हें अपवित्र लगने लगेगा। प्रभु के कोप के दिन उनका चाँदी-सोना उनकी रक्षा नहीं कर पायेगा। इस से वे न तो अपनी भूख मिटा सकेंगे और न अपना पेट ही भर सकेंगे यही उनके पापों के कारण रहा है।
20) वे झूठे अंहकार के लिए अपने सुन्दर आभूषणों का उपयोग करते थे तथा वे उस से अपनी वीभत्स मूर्तियाँ और घृणित वस्तुएँ बनाते थे। इसीलिए मैं उनके आभूषणों को उनके लिए अशुद्ध वस्तु बना दूँगा।
21) मैं इसे लूट के रूप में विदेशियों के हाथ में और लूट के माल के रूप में पृथ्वी के दुष्टों को दे दूँगा।
22) ''मैं उन से अपना मुँह मोड़ लूँगा; वे मेरी अमूल्य निधि को अपवित्र कर देंगे। उस में लुटेरे प्रवेश करेंगे और उसे अपवित्र कर देंगे और
23) वे लोगों का वध करेंगे; क्योंकि देश में हत्या का बोलबाला है और नगर में हिंसा की भरमार है।
24) मैं उनके घरों पर अधिकार करने के लिए सब से बुरे राष्ट्रों को ले आऊँगा। मैं उनकी घमण्डभरी शक्ति को समाप्त कर दूँगा और उनके पवित्र स्थान अपवित्र किये जायेंगे।
25) आतंक आ रहा है। वे शांति खोजेंगे, लेकिन वह नहीं मिलेगी।
26) विपत्ति-पर-विपत्ति आयेगी, अफ़वाह-पर अफ़वाह फैलेगी। वे नबी से दिव्य दृश्य चाहेंगे। न तो याजक में उपदेश की क्षमता रहेगी और न नेताओं में परामर्श की।
27) राजा शोक मनायेगा, राज्याधिकारी पर निराशा छा जायेगी। देश की जनता के हाथ आतंक से काँपेंगे। मैं उनका न्याय उनके आचरण के अनुसार और उनका निर्णय उनके निर्णयों के अनुसार करूँगा और वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''

अध्याय 8

1) छठे वर्ष के छठे महीने के पाँचवें दिन, जब मैं अपने घर में, अपने सामने बैठे हुए यूदा के नेताओं के साथ बैठा था, तो प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा।
2) मैं देख रहा था। तभी मुझे एक आकृति दिखाई पड़ी, जिसका रूप मनुष्य-जैसा था। जो उसकी कमर-जैसा लगता था, उसके नीचे तक अग्नि थी और उसकी कमर के ऊपर का भाग चमकदार आकृति-जैसा, झलमल पीतल-जैसा था।
3) उसने हाथ-जैसा आकार बढाया और मेरे सिर के गुच्छाभर केश पकड़ कर मुझे खींचा। आत्मा मुझे उठाकर पृथ्वी और आकाश के बीच ले गया और मुझे दिव्य दृश्यों में येरुसालेम, उसके भीतरी प्रांगण के प्रवेशद्वार के पास ले गया, जो उत्तर की ओर है। वहाँ ईर्ष्या-देवी की प्रतिमा का आसन था, जो ईर्ष्या उत्पन्न करती है।
4) वहाँ इस्राएल के ईश्वर की महिमा विराजमान थी- उस दिव्य दृश्य-जैसी, जिसके दर्शन मैंने घाटी में किये थे।
5) उसने मुझे से यह कहा, ''मानवपुत्र! अब अपनी आँखें उठा कर उत्तर की ओर देखो''। मैंने अपनी आँखें उत्तर की ओर कीं और देखा, बेदी के द्वार के उत्तर, प्रवेश मार्ग पर ईष्या-देवी की वही मूर्ति थी।
6) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! क्या तुम यह देखते हो कि मुझे अपने मन्दिर का परित्याग करने के लिए ये लोग क्या कर रहे हैं, इस्राएल का घराना यहाँ कैसे-कैसे महावीभत्स कर्म कर रहा है? किन्तु तुम और भी अधिक घृणित कार्य देखोगे।''
7) वह मुझे प्रांगण के द्वार पर ले गया और जब मैंने आँखे उठायीं, तो दीवर में एक छिद्र देखा।
8) वह मुझ से बोला, ''मानवपुत्र! दीवार में छेद करो''। जब मैंने दीवार में छेद किया, तो वहाँ द्वार देखा।
9) उसने मुझ से यह कहा, ''भीतर जा कर वे वीभत्स कर्म देखो, जो वे वहाँ कर रहे हैं''।
10) मैंने भीतर जा कर देखा। वहाँ दीवार पर चारों ओर रेंगने वाले प्राणियों, घृणित पशुओं और इस्राएली घराने की सभी देव-मूर्तियों के चित्र अंकित थे।
11) उनके सामने इस्राएल के घराने के नेताओं में सत्तर पुरुष खड़े थे, जिन में शाफ़ान का पुत्र याजन्या भी खड़ा था। प्रत्येक के हाथ में धूपदान था और लोबान का धुआँ उठ रहा था।
12) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! क्या तुम यह देख रहे हो कि इस्राएल के घराने के नतागण अँधेरे में- प्रत्येक व्यक्ति अपने चित्र वाले कमरे में-क्या कर रहे हैं? क्योंकि वे कहते हैं, ''प्रभु हमें नही देखता, प्रभु ने तो इस देश का परित्याग कर दिया है'।''
13) उसने मुझ से यह भी कहा, ''तुम इन से भी अधिक वीभत्स कर्म देखोगे, जो वे करते हैं''।
14) तब वह मुझे प्रभु के मन्दिर के उत्तरी प्रवेशद्वार पर ले आया। वहाँ स्त्रियाँ बैठ कर तम्मूज के लिए विलाप कर रही थीं।
15) वह मुझ से बोला, ''मानवपुत्र! क्या तुमने यह देख लिया है? तुम इन से भी अधिक वीभत्य कर्म देखोगे।''
16) वह मुझे प्रभु के मन्दिर के भीतरी प्रांगण में ले आया। प्रभु के मन्दिर के प्रवेशद्वार पर, द्वार और वेदी के बीच, लगभग पच्चीस व्यक्ति थे, जिनकी पीठ मन्दिर की ओर थी और जो पूर्व की ओर मुँह कर, पूर्व दिशा में सूर्य की पूजा कर रहे थे।
17) वह मुझ से बोला, ''मानवपुत्र! तुमने यह देखा? क्या यह कोई साधारण बात है कि यूदा का घराना ऐसे वीभत्स कर्म करे, जो यह यहाँ कर रहा है; इस देश को हिंसा से भरे और फिर मेरे क्रोध को प्रज्वलित करे? वे लोग अपनी नाक पर टहनी रख रहे हैं।
18) इसलिए मैं उनसे क्रुद्ध व्यवहार करूँगा। वे मेरी दृष्टि से बच नहीं सकेंगे और न मैं उन पर दया करूँगा। चाहे वे मेरे कानों में जोर-जोर से ऊँचे स्वर से क्यों न पुकारें, मैं उनकी नहीं सुनूँगा।''

अध्याय 9

1) मैंने प्रभु को ऊँचे स्वर से यह कहते सुना, ''जो नगर को दण्ड देने के लिये नियुक्त हैं, वे विनाश के शस्त्र हाथ पर लिये निकट आ रहे हैं''।
2) इस पर उत्तर के ऊपरी फाटक से हो कर छः व्यक्ति आ गये- नगर का विनाश करने के लिए उनके हाथ में शस्त्र थे। उन में से एक छालटी के कपड़े पहने था और उसके कमरबन्द से लेखनसामग्री की थैली लटक रही थी। वे आकर काँसे की वेदी के पास खड़े हो गये।
3) तब इस्राएल के ईश्वर की महिमा, जो केरूबों के ऊपर विराजमान थी, ऊपर उठ मन्दिर की देहली पर आ गयी। प्रभु ने छालटी के कपड़े पहने मनुष्य को, जिसके कमरबन्द से लेखन-सामग्री की थैली लटक रही थी, बुलाया
4) और उस से कहा, ''नगर के आरपार जाओ, सारे येरुसालेम में घूम कर उन लोगों का पता लगाओ, जो वहाँ हो रहे वीभत्स कमोर्ं के कारण रोते और विलाप करते हैं और उनके मस्तक पर ताव अक्षर का चिन्ह अंकित करो''।
5) मैंने उसे दूसरे से यह कहते सुना, ''इसके पीछे-पीछे चलो और सभी निवासियों को दया किये बिना मारो। कोई बचने न पाये।
6) तुम बूढ़ों, नवयुवकों और नवयुवतियों को, दुधमुँहे बच्चों और स्त्रियों को दया किये बिना मारो। किन्तु जिन पर ताव अक्षर का चिन्ह अंकित हैं, उन पर हाथ मत लगाओ। मन्दिर से शुरू करो।'' उन्होंने पहले मन्दिर के सामने के बूढ़ों को मार डाला।
7) तब उसने उन से कहा, ''मन्दिर को अपवित्र करो और प्रांगण को लाशों से भर दो। इसके बाद नगर जा कर लोगों का वध कर दो।'' वे आगे बढ़कर नगर के लोगों का वध करने लगे।
8) जब वे वध करने लगे और मैं अकेला रह गया, तो मैं मुँह के बल गिर पड़ा और चिल्ला उठा, ''प्रभु-ईश्वर! क्या तू येरुसालेम पर अपना क्रोध बरसाने में इस्राएल के सभी शेष लोगों को नष्ट कर देगा?''
9) वह मुझ से बोला, ''इस्राएल के घराने और यूदा का अपराध बहुत भारी है; देश खून से रँगा है और नगर अन्याय से भर गया है; क्योंकि वे कहते हैं, ''प्रभु ने देश का परित्याग कर दिया है; प्रभु नहीं देखता है'।
10) किन्तु वे न तो मेरी आँख से बच सकेंगे और न मैं उन पर दया करूँगा, बल्कि मैं उनकी करनी का दोष उनके सिर पर डालूँगा।''
11) मैंने देखा कि छालटी पहना हुआ व्यक्ति जिसकी कमरबन्द से लेखन-सामग्री, लटक रही थी, लौट कर उसे वह सूचना दे रहा था, ''मैंने तेरा आदेश पूरा कर दिया है''।

अध्याय 10

1) मैंने आँखे उठायीं और देखा कि केरूबों के मस्तक पर अवस्थित आकाश-मण्डल पर नीलमणि-जैसा कुछ दिखाई दे रहा था, जिसका आकार सिंहासन के सदृश था।
2) वह छालटी पहने हुए व्यक्ति से यह बोला, ''केरूबों के नीचे पहियों के बीच जाओ और केरूबों के बीच के जलते हुए अंगारे अंजुली में भर कर उन्हें नगर पर बिखेर दो''। वह मेरी आँखों के सामने ही वहाँ गया।
3) जब वह व्यक्ति वहाँ चला गया, तब केरूब मन्दिर के दक्षिण की ओर खड़े थे और भीतरी प्रांगण बादल से भर गया था।
4) प्रभु, की महिमा केरूबों पर से मन्दिर की देहली पर पहुँची और मन्दिर बादल से भर गया और प्रभु की महिमा के प्रकाश से प्रांगण जगमगा उठा।
5) केरूबों के पंखों की आवाज भीतरी प्रांगण तक सुनाई दे रही थी। वह सर्वशक्तिमान् प्रभु की आवाज-जैसी थी, जब वह बोल रहा होता है।
6) जब उसने छालटी पहने व्यक्ति को यह आदेश दिया, ''पहियों के बीच से, केरूबों के बीच से, आग ले लो'', तो वह जा कर एक पहिये के पास खड़ा हो गया।
7) एक केरूब ने उस आग की ओर अपना हाथ बढ़ाया, जो केरूबों के बीच थी और उस मे से कुछ ले कर छालटी पहने व्यक्ति के हाथ में दी जो उसे लेने के बाद बाहर चला गया।
8) केरूबों के पंखों के नीचे मनुष्य के हाथ-जैसा कुछ दिखाई दे रहा था।
9) मैंने आँखें उठायी, तो देखा कि केरूबों की बग़ल में चार पहिये हैं -प्रत्येक केरूब के बगल में एक पहिया। पहियों की झलक चमकदार स्वर्णमणि के सदृश थी।
10) चारों की आकृति एक-जैसी थी, मानों एक पहिये के भीतर दूसरा पहिया हो
11) चलते समय वे मुड़े बिना ही चारों दिशाओं में बढ़ जाते थे; क्योंकि जिस ओर उनका मुख रहता था, वे उसी दिशा में बिना मुड़े आगे बढ़ जाते थे।
12) उनके शरीर, पीठ, हाथ और पंख, तथा पहिये भी आँखों से भरे हुए थे -उन चारों के हर ओर।
13) मेरे कानों में उन पहियों का नाम 'घूमने वाला पहिया' सुनाई पड़ा।
14) हर प्राणी के चार मुख थे। पहला मुख केरूब के मुख-जैसा था, दूसरा मुख मनुष्य के मुख-जैसा, तीसरा मुख सिंह के मुख-जैसा और चौथा, गरुड़ के मुख-जैसा।
15) केरूब ऊपर उठ गये। वे वही प्राणी थे, जिन्हें मैंने कबार नदी के पास देखा था
16) जब वे चलते थे, तो उनके साथ पहिये भी चलते थे और जब केरूब जमीन के ऊपर उड़ने के लिए अपने पंख फैलाते, तो पहिये उनका साथ नहीं छोड़ते।
17) जब वे रुक जाते, तो वे भी रुक जाते और जब वे ऊपर उठते, तो वे उनके साथ ऊपर उठ जाते; कयोंकि उन प्राणियों का आत्मा उन में निवास करता था।
18) तब प्रभु की महिमा मन्दिर की देहली से उठ कर केरूबों पर उतरी।
19) केरूब पंख फैला कर मेरे देखते जमीन के ऊपर उठे और पहिये भी उनके साथ चले गये। वे मन्दिर के पूर्वी द्वार के पास उतरे और इस्राएल के ईश्वर की महिमा उनके ऊपर विराजमान रही।
20) वे वही प्राणी थे, जिन्हें मैंने कबार नदी के पास रहते समय इस्राएल के ईश्वर के नीचे देखा था और अब मैं समझा कि वे केरूब थे।
21) प्रत्येक के चार मुख और प्रत्येक के चार पंख थे और उनके पंखों के नीचे मनुष्य के जैसे हाथ थे।
22) उनके मुख की वही आकृति थी, जिसे मैंने कबार के पास देखा था और प्रत्येक अपने सामने सीधे आगे बढ़ता जा रहा था।

अध्याय 11

1) आत्मा मुझे उठा का ऊपर ले गया और मुझे प्रभु के मन्दिर के पूर्वी द्वार पर ले आया, जिसका मुख पूर्व की ओर है। मैंने प्रवेशद्वार पर पच्चीस आदमी देखे। मुझे उनके बीच जनता के पदाधिकारी अज्जूर का पुत्र याजन्या और बनाया का पुत्र पलट्या दिखाई दिये।
2) उसने मुझ से यह कहा, ''मानवपुत्र! ये वही लोग हैं, जो पाप की योजना बनाते और नगर में कुमन्त्रणा देते हैं,
3) जो यह बोलते हैं, 'अभी हमें घर बनाना नहीं है। यह नगर कड़ाह है और हम लोग मांस हैं।'
4) इसलिए मानवपुत्र! भविष्यवाणी करो, उनके विरुद्ध भविष्यवाणी करो।''
5) प्रभु का आत्मा मुझ पर उतरा और उसने मुझ से कहा, ''यह कहोः प्रभु की यह वाणी है- इस्राएल के घराने! तुम ऐसा ही कहते हो। मैं वे बातें जानता हूँ, जो तुम्हारे मन में आती हैं।
6) तुमने इस नगर में बहुतों का वध किया है और इसकी सड़कों को मृतकों से पाट दिया है।
7) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुम्हारे द्वारा वध किये हुए लोग, जिन्हें तुमने यहाँ डाल दिया है, मांस हैं और यह नगर कड़ाह है; किन्तु तुम इस में से बाहर निकाल लिये जाओगे।
8) तुम तलवार से डरते हो, लेकिन मैं तुम पर तलवार भेजूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
9) मैं तुम्हें इस में से बाहर ले आऊँगा, तुम्हें विदेशियों के हाथ कर दूँगा और तुम्हें दण्ड दूँगा।
10) तुम तलवार के घाट उतारे जाओगे। मैं इस्राएल की सीमा पर तुम्हारा न्याय करूँगा और तुम यह समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
11) यह नगर तुम्हारे लिए कड़ाह नहीं होगा और तुम इस में माँस नहीं बनोगे। मैं इस्राएल की सीमा पर तुम्हारा न्याय करूँगा।
12) और तुम यह समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ। तुमने न तो मेरे आदेशों के अनुसरण किया है और न मेरे रीति-रिवाजों का पालन किया है, बल्कि तुमने अपने पड़ोस के राष्ट्रों के विधि-निषेधों के अनुसार कार्य किया है।''
13) मैं भविष्यवाणी कर ही रहा था कि बनाया के पुत्र पलट्या की मृत्यु हो गयी। इस पर मैं अपने मुँह के बल गिर गया और ऊँचे स्वर से पुकारते हुए बोला, ''प्रभु-ईश्वर! क्या तू इस्राएल के अवशेष को भी एकदम मिटा देगा?''
14) मुझे प्रभु-ईश्वर की यह वाणी सुनाई पड़ी,
15) ''मानवपुत्र! तुम्हारे भाई-बन्धु इस्राएल का समस्त घराना, सब-के-सब वही हैं, जिनके विषय में येरुसालेम के निवासी यह कहते हैं, 'वे प्रभु से दूर भटक गये हैं और यह देश विरासत में हमें दिया गया है'।
16) इसलिए यह कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैंने उन्हें राष्ट्रों में भगा दिया है और देशों में बिखेर दिया है। वे जिन देशों में गये हैं, उन में मैं ही कुछ समय तक उनका आश्रय था'।
17) इसलिए यह कहो, 'प्रभु-ईश्वर कहता है- मैं तुम्हें राष्ट्रों में से एकत्र करूँगा, उन देशों से इकट्ठा करूँगा, जहाँ तुम बिखेर दिये गये हो और तुम्हें इस्राएल की भूमि प्रदान करूँगा'।
18) वे वहाँ लौटेंगे और वहाँ से सब वीभत्स मूर्तियों और वीभत्स कर्मों का बहिष्कर कर देंगे।
19) मैं उन्हें एक नया हृदय प्रदान करूँगा और उन में एक नयी आत्मा रख दूँगा। मैं उनके शरीर से पत्थर का हृदय निकाल कर उन्हें रक्त मांस का हृदय प्रदान करूँगा,
20) जिससे वे मेरी संहिता पर चलें और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करें। इस से वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका ईश्वर होऊँगा।
21) किन्तु जिन लोगों का हृदय अपनी घृणित मूर्तियों और अपने वीभत्स कमोर्ं में संलग्न है, मैं उनकी करनी का दोष उनके सिर पर डालूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
22) इसके बाद केरूबों ने, अपने साथ के पहियों के साथ, अपने पंख ऊपर फैला दिये। इस्राएल के ईश्वर की महिमा उनके ऊपर विराजमान थी।
23) प्रभु की महिमा नगर के बीच से ऊपर उठी और पर्वत पर टिक गयी, जो नगर के पूर्व में है।
24) आत्मा मुझे उठा कर ऊपर ले गया और ईश्वर के आत्मा की प्रेरणा से दिव्य दृश्य में मुझे निर्वासितों के पास खल्दैया ले गया। तब वह दिव्य दृश्य, जो मैंने देखा था, लुप्त हो गया
25) और मैंने निर्वासितों से वे सभी बातें कही, जो प्रभु ने मुझे दिखायी थीं।

अध्याय 12

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुई सुनाई दी,
2) ''मानवपुत्र! तुम विद्रोही लोगों के बीच रहते हो। देखने के लिए उनके आँखें हैं, किन्तु वे देखते नहीं; सुनने के लिए कान हैं, किन्तु वे सुनते नहीं;
3) क्योंकि वे विद्रोही हैं। मानवपुत्र! प्रवास का सामान बाँध लो और दिन में सब के देखते प्रवास के लिए प्रस्थान करो। तुम जहाँँ रहते हो, उनके देखते ही वहाँ से प्रवास के लिए प्रस्थान करो। हो सकता है कि वे समझ जायें कि वे एक विद्रोही प्रजा हैं।
4) प्रवास का सामान दिन में ही उनके देखते-देखते बाहर रखो और सन्ध्या को उनकी आँखों के सामने प्रवास के लिए प्रस्थान करो।
5) उनके देखते ही दीवार में छेद करो और उस से निकल जाओ।
6) उनके देखते ही सामान कन्धो पर रख कर सन्ध्या के समय प्रस्थान करो। अपना मुँह ढक लो, जिससे तुम भूमि नहीं देख सको; क्योंकि मैं तुम्हें इस्राएली प्रजा के सामने एक चिन्ह के रूप में प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।''
7) मुझे जैसा आदेश मिला था, मैंने वैसा ही किया। मैंने दिन में प्रवास का सामान बाहर रखा और सन्ध्या के समय अपने हाथ से दीवार में छेद किया। मैं झुटपुटे में कन्धे पर सामान रख कर उनके देखते ही चला गया।
8) दूसरे दिन प्रातः मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
9) ''मानवपुत्र! क्या इस्राएल की विद्रोही प्रजा ने तुम से यह नहीं पूछा कि तुम क्या करते हो?
10) उन से कहोः प्रभु-ईश्वर यह कहता है। यह येरुसालेम के राजा और वहाँ रहने वाली समस्त इस्राएली प्रजा के विषय में भविष्यवाणी है।
11) उन से यह कहोः मैं तुम लोगों के लिए एक चिन्ह हूँ। तुमने जैसा किया, उन लोगों के साथ वैसा ही किया जायेगा। वे बन्दी बनकर निर्वासित किये जायेंगे।
12) उन लोगों का राजा सन्ध्या के समय अपना सामान कन्धे पर रख कर नगर से चला जायेगा। लोग दीवार में छेद करेंगे, जिससे वह बाहर जा सके। वह अपना मुँह ढक लेगा, जिससे वह अपनी आँखों से यह भूमि न देखे।
13) मैं उस पर अपना जाल डालूँगा और वह मेरे फन्दे में फँस जायेगा। मैं उसे खल्दैयियों के देश, बाबुल ले जाऊँगा यद्यपि वह उसे नहीं देख सकेगा और वहाँ उसकी मृत्यु हो जायेगी।
14) मैं उसके परिजनों, सहायकों और उसके सभी सैनिकों को सभी ओर बिखेर दूँगा और उनका पीछा तलवार से करूँगा।
15) वे तभी यह समझेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब मैं उन्हें राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देशों मे तितर-बितर कर दूँगा।
16) लेकिन में उन में से कुछ को तलवार, अकाल और महामारी से बच निकलने दूँगा, जिससे वे जिन राष्ट्रों में जाते हैं, उन्हें अपने वीभत्स कमोर्ं की बात बतला सकें और यह समझ जायें कि मैं ही प्रभु हूँ।''
17) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
18) ''मानवपुत्र! काँपते हुए भोजन करो, थरथराते-डरते हुए पानी पियो और देश के लोगों से यह कहो, ''प्रभु-ईश्वर ने इस्राएल देश के येरुसालेम-निवासियों के विषय में यह कहा हैः
19) वे डरते हुए भोजन करेंगे और भयभीत हो कर पानी पियेंगे, जिससे देश और उसके निवासी अपने यहाँ रहने वाले लोगों की हिंसा से मुक्त हों।
20) बसे हुए नगर खँडहर हो जायेंगे और देश उजाड़ हो जायेगा। तब तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ''।
21) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
22) ''मानवपुत्र! इस्राएल देश-सम्बन्धी इस कहावत से क्या समझते हो, 'दिन-बीतते जा रहे हैं, दिव्य दृश्य निष्फल होते जा रहे हैं?'
23) इसलिए उन से यह कहो, ''मैं यह कहावत उठा दूँगा और वे इस्राएल में फिर कभी इसका प्रयोग नहीं करेंगे। बल्कि तुम उन से यह कहोः दिन पास आ गये हैं और प्रत्येक दिव्य दृश्व की पूर्ति भी;
24) क्योंकि इस्र्राएल के घराने में अब कोई मिथ्या दिव्य दृश्य या झूठी भविष्यवाणी नहीं होगी।
25) मैं, प्रभु, वही कहूँगा, जो मुझे कहना है और वह पूरा होगा। उस में कोई देर नहीं होगीः क्योंकि विद्रोही घराने के लोगो! तुम्हारे जीवनकाल के विषय मैं जो कहूँगा, उसे पूरा करूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है'।''
26) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
27) ''मानवपुत्र! देखो, इस्राएली घराने के लोग यह कहते हैं, 'वह जो दिव्य दृश्य देखता है। वह बहुत दिन बाद के लिए है और वह बहुत समय की भविष्यवाणी करता है'।
28) इसलिए उन से कहो कि प्रभु-ईश्वर यह कहता है, 'मेरी किसी भी बात के पूरा हाने में कोई देर नहीं होगी, बल्कि मैं जो कहता हूँ वह हो कर रहेगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है'।''

अध्याय 13

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
2) ''मानवपुत्र! इस्राएल के नबियों के विरुद्ध भविष्यवाणी करो; भविष्यवाणी करो और उन से कहो, जो अपनी कल्पना से भविष्यवाणी करते हैं: प्रभु की वाणी सुनो!
3) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, 'उन मूर्ख नबियों को धिक्कार, जो अपनी प्रेरणा से भविष्यवाणी करते हैं और जिन्होंने कोई दिव्य दृश्य नहीं देखा!
4) इस्राएल! तुम्हारे नबी खँडहरों की लोमड़ियों-जैसे हैं।
5) तुम न तो चारदीवारी पर चढ़े और न तुमने इस्राएली घराने के चारों ओर कोई दीवार बनायी, जिससे वह प्रभु के दिन युद्ध का सामना कर सके।
6) वे भ्रामक दिव्य दृश्य देखते हैं और झूठी भविष्यवाणियाँ करते हैं। वे कहते हैं, ''प्रभु यह कहता हूँ'', जब कि प्रभु ने उन्हें नहीं भेजा है, तब भी वे उस से यह अपेक्षा करते हैं कि वह उनकी बात पूरी करे।
7) क्या तुम कोई झूठा दिव्य दृश्य नहीं देखते हो और झूठी भविष्यवाणी नहीं करते हो, जब तुम यह कहते हो, ''प्रभु यह कहता है'', जब कि मैंने नहीं कहा है?'
8) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है, 'तुम भ्रामक बातें कहते हो और झूठे दिव्य दृश्य देखते हो; इसलिए देखो, मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ। यह प्रभु ईश्वर कहता है।
9) मैं उन नबियों के विरुद्ध अपने हाथ उठाऊँगा, जो भ्रामक दृश्य देखते और झूठी भविष्यवाणियाँ करते हैं। मेरी प्रजा के समुदाय में उनके लिए कोई स्थान नहीं होगा, न ही इस्राएल के घराने की पंजी में उनका नाम लिखा जायेगा और न वे इस्राएल देश में प्रवेश करेंगे। तब तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।'
10) वे मेरी प्रजा को ''शान्ति! कह कर बहकाते हैं, जब कि वास्तव में शान्ति नहीं है और जब लोग दीवार बनाते हैं, तो उसकी सफेदी करते हैं।
11) तुम उसकी सफ़ेदी करने वालों से कहो कि प्रलयंकारी वर्षा होगी, बड़े-बड़े ओले गिरेंगे और आँधी बहेगी और दीवार गिर जायेगी।
12) जब दीवार गिर जायेगी, तो क्या लोग तुम से यह नहीं कहेंगे, 'वह सफेदी कहाँ गयी, जिस से तुमने उसे पोता था?'
13) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है, ''मैं अपने क्रोध के आवेश में आँधी बहाऊँगा, मेरे कोप के कारण प्रलयंकारी वर्षा होगी और मेरे रोष के कारण उसका विध्वंस करने के लिए बड़े-बड़े ओले गिरेंगे।
14) मैं वह दीवार, जिसकी तुमने सफेदी की है, गिरा दूँगा और उसे भूमिसात कर दूँगा, जिससे उसकी नींव तक दिखने लगेगी। जब वह गिरेगी, तो उसके साथ तुम भी नष्ट हो जाओगे और यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
15) इस प्रकार मैं इस दीवार और इसकी सफ़ेदी करने वालों पर अपना क्रोध उतारूगा और तुम से कहूगा, ''न वह दीवार रही न वे, जिन्होंने उसे पोता था
16) और न इस्राएल के वे नबी, जिन्होंने येरुसालेम के विषय में भविष्यवाणी की थी और उसकी शान्ति के दिव्य दृश्य देखे थे,'' जब कि शान्ति नहीं थी। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।'
17) ''मानवपुत्र! तुम अपने राष्ट्र की उन पुत्रियों की ओर मुँह करो, जो अपनी कल्पना से भविष्यवाणी करती हैं। तुम उनके विरुद्ध भविष्यवाणी करो।
18) और कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः उन स्त्रियों को धिक्कार, जो आत्माओं को फँसाने के लिए सबों की कलाइयों पर फ़ीते बाँधती हैं और हर एक कद के लोगों के सिर के लिए पल्ले बनाती हैं! क्या तुम लोग मेरी प्रजा की आत्माओं का शिकार करोगी और अपनी आत्माओं को सुरक्षित रख पाओगी?
19) तुमने मुट्टीभर जौ और रोटी के टुकड़ों के लिए उन लोगों ही हत्या द्वारा, जिन्हें नहीं मरना चाहिए और उन लोगों को जीवित रख कर, जिन्हें जीवित नहीं रहना चाहिए, मेरी प्रजा के उन लोगों से झूठ बोल कर, जिन्हें झूठ सुनना पसन्द हैं, मेरी प्रजा के सामने मेरा अपमान किया है।
20) '' 'इसी से प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः देखो, मैं तुम्हारे फ़ीतों के विरुद्ध हूँ जिन से तुम आत्माओं को फाँसती हो। मैं तुम्हारी बाँहों पर से उन्हें तोड़ दूँगा और तुम जिन आत्माओं को फँसाती हो, उन्हें पक्षियों की तरह मुक्त कर दूँगा।
21) मैं तुम्हारे पल्ले भी फाड़ दूँगा, तुम्हारे हाथ से अपनी प्रजा को छुड़ाऊँगा और वह तुम्हारे हाथों का शिकार नहीं बनेगी। तुम यह समझ जाओगी कि मैं ही प्रभु हूँ।
22) तुमने झूठी बातों द्वारा धर्मी को हतोस्साह किया है, जब कि मैं उसका जी दुःखाना नहीं चाहता था और दुष्ट को प्रोत्साहित किया, जिससे वह अपना पापाचरण छोड़ दे, जिससे उसे पुनः जीवन प्राप्त हो।
23) इसलिए अब से तुम भ्रामक दिव्य दृश्य नहीं देखोगी और भविष्यवाणी नहीं करोगी। मैं तुम्हारे हाथ से अपनी प्रजा को छुडाऊँगा। तब तुम यह समझोगी कि मैं ही प्रभु हूँ'।''

अध्याय 14

1) मेरे यहाँ इस्राएल के कुछ नेता आये और मेरे सामने बैठे गये।
2) तब मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
3) ''मानवपुत्र! इन लोगों का मन अपनी देवमूर्तियों में आसक्त है और इन्होंने अपने सामने अपने पतन की ठोकर रख दी है। क्या मैं ऐसे लोगों को अपने से परामर्श लेने दूँ?
4) इसलिए उन से बात कर यह कहो, 'प्रभु-ईश्वर कहता है : यदि इस्राएल के घराने का कोई ऐसा व्यक्ति भी, जिसका मन अपनी देवमूर्तियों में आसक्त है और जिसने अपने सामने अपने पतन की ठोकर रख दी है, नबी के पास आता है, जो उसकी अनेकानेक देवमूर्तियों के कारण स्वयं मैं, प्रभु, उसे उत्तर दूँगा,
5) जिससे मैं इस्राएल के घराने के लोगों के हृदय अपने वश में करूँ, जो अपनी देवमूर्तियों के कारण मुझ से विमुख हो गये हैं।''
6) ''इसलिए इस्राएल के घराने से यह कहो, ''प्रभु-ईश्वर कहता है : पश्चात्ताप करो और अपनी दूवमूर्तियों का परित्याग कर दो; अपने सभी वीभत्स कमोर्ं का परित्याग कर दो।
7) यदि इस्राएल के घरने का कोई व्यक्ति या इस्राएल में प्रवास करने वाला कोई विदेशी, जिसका मन अपनी देवमूर्तियों में आसक्त है और जिसने अपने सामने पतन की ठोकर डाल दी है, मुझे अस्वीकार करता है और मुझसे प्रश्न करने किसी नबी के पास आता है, तो स्वयं मैं, प्रभु उसे उत्तर दूँगा।
8) मैं उस से अपना मुँह फेर लूँगा। मैं उसे एक उदाहरण और कहावत बना दूँगा, उसे अपनी प्रजा से काट कर अलग कर दूँगा और तब तुम समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
9) '' 'यदि कोई नबी बहकावे में आ कर कोई बात बोलता है, तो उस नबी को मैं, प्रभु, ने बहकाया है। मैं उसके विरुद्ध अपना हाथ उठाऊँगा और उसे अपनी प्रजा इस्राएल के बीच से नष्ट कर दूँगा।
10) उन लोगों को अपना दण्ड भोगना पडेगा- नबी का दण्ड और प्रश्न करने वाले का दण्ड एक-जैसे होंगे-
11) जिससे इस्राएल का घराना फिर मुझसे विमुख न हो पाये और न अपने पापों से अपने को भ्रष्ट करे, बल्कि वह मेरी प्रजा हो और मैं उसका प्रभु होऊँ। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है'।''
12) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
13) ''मानवपुत्र! यदि कोई देश मेरे साथ विश्वासघात कर पाप करता और मैं उसके विरुद्ध अपना हाथ उठाता; यदि में उसकी रोटी का भण्डार नष्ट करता आर उसके यहाँ अकाल भेजता; यदि मैं उसके मनुष्यों और पशुओं का विनाश करता,
14) तो चाहे वहाँ नूह, दानेल और अय्यूब- ये तीनों न हों, तो वह अपनी धार्मिकता के बल पर अपनी जीवन-रक्षा कर पाते। यह प्रभु की वाणी है।
15) यदि मैं उनके बच्चों को खाने के लिए उस देश में बनैले पशुओं को आने देता और वे उसे उजाड़ डालते और वह इतना निर्जन हो जाता कि इन पशुओं के कारण कोई भी आदमी उस से हो कर न जा पाता,
16) तो यदि वहाँ ये तीनों होते, तब भी, प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! वे न तो पुत्रों को बचा पाते न पुत्रियों को। केवल वे ही बच पाते और वह देश उजाड़ हो जाता।
17) अथवा, यदि मैं उस देश पर तलवार भेजता, यदि यह कहता, 'तलवार इस देश को आरपार करे और मैं उसके मनुष्यों तथा पशुओं का विनाश करूँगा'
18) और यदि वहाँ ये तीनों होते, तब भी, प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! वे न तो पुत्रों को बचा पाते और पुत्रियों को, बल्कि केवल वे ही बच पाते।
19) अथवा, यदि में उस देश में महामारी भेजता और उसके मनुष्यों और पशुओं का विनाश कर खून के रूप में उस पर अपना क्रोध बरसाता,
20) तो वहाँ यदि नूह, दानेल और अय्यूब होते, तो प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! वे न तो पुत्रों को बचा पाते और न पुत्रियों को। अपनी धार्मिकता के बल पर केवल वे ही बच पाते।
21) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है-यदि मैं येरुसालेम की ओर मनुष्य और पशु का विनाश करने के लिए अपनी चारों निर्गम विपत्तियाँ-तलवार, अकाल, बनैले पशु और महामारी-भेज दूँ
22) और यदि उस में कुछ लोग जीवित पाये जायें, जो अपने पुत्र-पुत्रियों को उस से निकाल लाये है, वे तुम्हारे पास आयें और तुम उनके आचरण और कर्म देखो, तो तुम को येरुसालेम पर मेरे द्वारा ढाही हुई विपत्ति से-मैंने उस पर जो कुछ ढाहा है, उस से सन्तोष ही होगा।
23) तुम को उन्हें देखकर सन्तोष होगा, जब तुम उनके आचरण और कर्म देखोगे और तुम यह समझोगे कि मैंने वहाँ जो कुछ किया है, वह अकारण नहीं हैं। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''

अध्याय 15

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दीः
2) ''मानवुपुत्र! दाखलता की लकड़ी दूसरी लडकी से कैसे अच्छी है- जो वन के वृक्षों में ही एक है?
3) क्या कोई सामान बनाने के लिए उसकी लकड़ी ली जाती है? क्या लोग कोई चीज टाँगने उस से ख्ूँाटी बनाते हैं?
4) वह तो ईन्धन के रूप में आग में झोंकी जाती है। जब आग उसके दिनों सिरे जला देती है और उसका मध्य भाग झुलस जाता है, तो क्या वह किसी काम की रह जाती है?
5) देखो, जब वह अक्षुण्ण थी, तब भी किसी काम की नहीं थी और जब उसे आग ने जला दिया है और वह झुलस गयी है, तो क्या वह किसी काम आयेगी?
6) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- जिस प्रकार वन के वृक्षों में दाखलता की लडकी को मैंने ईन्धन के रूप में आग में झोंक दिया है, उसी प्रकार येरुसालेम के निवासियों का मैंने परित्याग कर दिया है।
7) मैं उन से विमुख हो जाऊँगा। वे भले ही आग से बच निकले हो, किन्तु आग उन्हें भस्म कर देगी और जब मैं उन से विमुख हो जाऊँगा, तो तुम समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
8) मैं इस देश को उजाड़ बना दूँगा, क्योंकि उन्होंने विश्वासघात किया है। यह प्रभु की वाणी है।''

अध्याय 16

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
2) ''मानवपुत्र! येरुसालेम को उसके वीभत्स कमोर्ं का विवरण सुनाओं।
3) उस से कहोः प्रभु-ईश्वर येरुसालेम से यह कहता है- वंश और जन्म ही दृष्टि से तुम कनानी हो। तुम्हारा पिता अमोरी था और तुम्हारी माता हित्ती थी।
4) जन्म के समय तुम्हारी नाल नहीं काटी गयी, शुद्धीकरण के हेतु तुम को पानी से नहीं नहलाया गया। लोगों ने तुम्हारे शरीर पर नमक नहीं लगाया और तुम को कपड़ों में नहीं लपेटा।
5) किसी ने भी तुम्हारे लिए यह सब करने की परवाह नहीं की। किसी को को भी तुम पर ममता नहीं हुई। तुम्हारे जन्म के दिन तुम को घृणित समझ कर खुले मैंदान में छोड़ दिया गया।
6) ''उस समय मैं तुम्हारे पास से हो कर जा रहा था। मैंने तुम को तुम्हारे अपने रक्त में लोटता हुआ देखा और तुम से, जो अपने रक्त से सनी हुई थी, कहा- जीती रहो, जीती रहो!
7) तुम मेरी देखरेख में खेत के फूल की तरह बढ़ती गयी। तुम बढ़ कर बड़ी हो गयी। तुम बहुत सुन्दर थी। तुम्हारे स्तन उठने और तुम्हारे केश बढ़ने लगे, किन्तु तुम उस समय तक नग्न और विवस्त्र थी।
8) ''जब मैं दुबारा तुम्हारे पास से हो कर गया, तो मैंने देखा कि तुम विवाह-योग्य हो गयी हो। मैंने अपने वस्त्र का पल्ला तुम पर डाल तुम्हारा नग्न शरीर ढक दिया। मैंने शपथ खा कर तुम से समझौता किया और तुम मेरी हो गयी। यह प्रभु की वाणी है।
9) मैंने तुम को पानी से नहलाया, तुम पर लगा हुआ रक्त धो डाला और तुम पर तेल का विलेपन किया।
10) मैंने तुम को बेलबूटेदार कपड़े और बढिया चमडे के जूते पहनाये। मैंने तुम को छालटी का सरबन्द और रेशमी वस्त्र प्रदान किये।
11) मैंने तुम को आभूषण पहनाये, तुम्हारे हाथों में कंगन और तुम्हारे गले में हार डाला।
12) मैंने तुम्हारी नाक में नथ लगाया, तुम्हारे कानों में बालियाँ पहनायी और तुम्हारे सिर पर शानदार मुकुट रख दिया।
13) तुम सोने और चाँदी से अलंकृत थी। तुम छालटी, रेशम और बेलबूटेदार कपड़े पहनती थी। तुम्हारा भोजन मैदे, मधु और तेल से बनता था। तुम राजरानी के सदृश अत्यन्त सुुन्दर हो गयी।
14) तुम्हारे सौन्दर्य का ख्याति संसार भर में फैल गयी, क्योंकि मैंने तुम को अपूर्व गौरव प्रदान किया था। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
15) ''किन्तु तुम्हारे सौन्दर्य ने तुम को बहका दिया। तुम अपनी ख्याति को दुुरुपयोग करते हुए व्यभिचार करने लगी। तुमने किसी भी बटोही को अपना सौन्दर्य बेच दिया।
16) तुमने अपने कुछ वस्त्र ले कर अपने लिए भड़कीले रंगों वाले पहाड़ी पूजास्थान बनाये और वहाँ व्यभिचार किया।
17) तुमने मेरे द्वारा दिये हुए सोने और चान्दी के आभूषणों से अपने लिए पुरुष-प्रतिमाएँ गढ़ीं और उनके साथ व्यभिचार किया।
18) तुमने उन को अपने बेलबूटेदार वस्त्र पहना दिये और उन्हें मेरा तेल और लोबान अर्पित किया।
19) तुमने मेरा दिया हुआ भोजन- मैदा, तेल और मधु, जो मैं तुम्हें खिलाता था- ले कर उन्हें सुगन्धित बलि के रूप मे अर्पित किया। वह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
20) तुमने उनके आहार के लिए उन पर मेरे लिए उत्पन्न अपने पुत्र-पुत्रियों की बलि चढ़ायी। क्या तुम्हारा व्यभिचार ही काफ़ी नहीं था?
21) तुमने मेरी सन्तानों का वध कर उन पर चढ़ाया और उनकी आहुति दी।
22) अपने वीभत्स कर्म और व्यभिचार के समय तुम को अपनी जवानी के उन दिनों का स्मरण नहीं रहा, जब तुम नग्न और विवस्त्र अपने रक्त में लोट रही थी।
23) ''अपने इन सभी दुष्कमोर्ं के बाद धिक्कार, धिक्कार तुम्हें! प्रभु यह कहता है-
24) तुमने हर चौराहे पर अपने लिए टीला और मंच बनाया।
25) तुमने हर सड़क के सिरे पर अपना टीला बनाया, अपना सौन्दर्य कलंकित किया और हर बटोही को अपने को अर्पित किया और तुम्हारा व्यभिचार बढ़ता गया।
26) तुमने अपने कामुक पड़ोसी, मिस्रवासियों के साथ व्यभिचार किया और अपने असंख्य व्यभिचारों द्वारा मेरा क्रोध भड़काया।
27) यही कारण है कि मैंने तुम्हारे विरुद्ध अपना हाथ उठाया। मैंने तुम्हारा भाग कम कर दिया। मैंने तुम को तुम्हारी शत्रु फिलिस्तीनियों की पुत्रियों के लोभ के हवाले कर दिया, जो तुम्हारे दुराचरण पर लज्जित थीं।
28) तुमने अस्सूरियों के साथ व्यभिचार किया, क्योंकि तुम तृप्त नहीं हर्इु थीं। हाँ, तुमने उनके साथ भी व्यभिचार किया और तुम्हारी तृप्ति तब भी नहीं हुई।
29) तुमने व्यापारी खल्दैयियों के देश में भी व्यभिचार किया और तुम्हारी तृप्ति तब भी नहीं हुई।
30) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है- तुम्हारा हृदय कितना उन्मत्त था, जब तुमने निपुण वेश्या की तरह यह सब किया था।
31) तुमने हर सड़क के सिरे पर अपना टीला बनाया और हर चौराहे पर अपना मंच बनाया। तुम वेश्या से भिन्न थी, क्योंकि तुम शुल्क नहीं लेती थी।
32) दुश्चरित्र पत्नी, जो अपने पति का नहीं बल्कि परपुरुषों का सत्कार करती है!
33) लोग वेश्याओं को उपहार देते हैं, किन्तु तुमने अपने सब प्रेमियों को उपहार दिये। तुमने उन को ख़रीदा, जिससे वे चारों ओर से व्यभिचार करने तुम्हारे पास आयें।
34) तुम अपने दुष्कमोर्ं में वेश्याओं से भिन्न थी; तुम्हारे साथ व्यभिचार करने कोई नहीं आया। तुम्हीं उन को शुल्क देती थी, वे नहीं। तुम दूसरों से कितनी भिन्न थीं!
35) ''वेश्या! प्रभु की यह वाणी सुनो।
36) प्रभु यह कहता है- अपने प्रेमियों के साथ व्यभिचार, तुम्हारी वीभत्स देवमूर्तियों और उन को अर्पित तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों के रक्त के कारण तुम्हारी निर्लज्जता प्रकट हो चुकी है और तुम्हारी नग्नता का आवरण उठ चुका है।
37) इसलिए मैं तुम्हारे उन प्रेमियों को एकत्र करूँगा, जिन को तुमने लुभाया था- उन सबों को, जिन्हें तुमने प्यार किया और उन सब को भी, जिन से तुम को घृणा थी। मैं उन को हर दिशा में तुम्हारे विरुद्ध एकत्र करूँगा। मैं उन को दिखाने के लिए उनके सामने तुम्हारी नग्नता प्रकट करूँगा।
38) मैं तुम्हारा न्याय उस रूप से करूँगा, जिस रूप में विवाह की पवित्रता भंग करने वाली और हत्या करने वाली स्त्रियों का किया जाता है। मैं तुम पर रोष और ईर्ष्या-जनित हत्या का आरोप लगाऊँगा।
39) मैं तुम को उनके हाथ दे दूँगा। वे तुम्हारे टीले नीचे गिरा देंगे और तुम्हारे मंच तोड़ डालेगें। वे तुम्हारे वस्त्र उतार और तुम्हारे आभूषण छीन कर तुम को नग्न और विवस्त्र छोड़ देंगे।
40) वे तुम्हारे विरुद्ध भीड़ जमा कर तुम्हें पत्थरों से मारेंगे और अपनी तलवारों से तुम को टुकड़े-टुकड़े कर देंगे।
41) वे तुम्हारे घर भस्म कर देंगे और बहुत-सी स्त्रियों के सामने तुम्हें दण्ड देंगे। मैं तुम्हारा व्यभिचार बन्द कर दूँगा और तुम फिर किसी को शुल्क नहीं दोगी।
42) तब तुम पर मेरा क्रोध शान्त हो जायेगा और तुम पर से मेरा आवेश जाता रहेगा। मैं शान्त हो जाऊँगा और फिर क्रोध नहीं करूँगा।
43) तुमने अपनी जवानी के दिन भुला दिये हैं। और इन बातों से मेरा क्रोध भड़काया है; इसलिए मैं तुम को तुम्हारे कुकमोर्ं का दण्ड दूँगा। वह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
44) कहावत कहने वाले लोग तुम्हारे विषय में यह कहावत कहेंगे, ''जैसी माँ, वैसी बेटी''।
45) तुम ऐस माँ की बेटी हो, जिसे अपने पति और पुत्र-पुत्रियों से घृणा थी। तुम ऐसी बहनों की बहन हो, जिन्हें अपने पति और पुत्र-पुत्रियों से घृणा थी। तुम्हारी माता हित्ती थी और तुम्हारे पिता अमोरी था।
46) तुम्हारी बड़ी बहन समारिया है, जो अपनी पुत्रियों के साथ तुम्हारे उत्तर में रहती है और तुम्हारी छोटी बहन जो अपनी पुत्रियों के साथ तुम्हारे दक्षिण में रहती हैं, सोदोम है।
47) तुम्हें उनके-जैसे आचरण से सन्तोष नहीं था और न उनके-जैसे वीभत्स कमोर्ं से। अपने आचरण में तुम उन से भी अधिक भ्रष्ट हो गयी।
48) प्रभु-ईश्वर कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! तुम्हारी बहन सोदोम और उसकी पुत्रियों ने वैसा नहीं किया, जैसे तुमने और तुम्हारी पुत्रियों ने किया है।
49) तुम्हारी बहन सोदोम का अपराध यह थाः उस में और उसकी पुत्रियों में अहंकार था, उनके पास प्रचुर खाद्य-सामग्री और सुख-सुविधा थी; किन्तु उन्होंने निर्धन और अभावग्रस्त लोगों की सहायता न की।
50) वे घमण्डी हो गयीं और उन्होंने मेरे सामने वीभत्स कर्म किये। इसलिए, जैसा कि तुमने देखा, मैंने उनका विनाश कर दिया।
51) समारिया का पाप तुम्हारे पाप का आधा भी नहीं है। तुमने उस से अधिक वीभत्स कर्म किये हैं। तुमने जितने वीभत्स कर्म किये हैं, उनके सामने तो तुम्हारी बहनें धर्मी प्रतीत होती हैं।
52) इसलिए वह अपयश भोगो, जिस से तुमने अपनी बहनों को मुक्त कर दिया हैं। तुमने उप पापों के कारण अपने को उन से भी अधिक घृणित बना लिया है। वे तुम से अधिक धर्मी हैं। इसलिए तुम लज्जित हो और अपना अपमान भोगो, क्योंकि तुमने अपनी बहनों को सही ठहराया है।
53) ''मैं उनका भाग्य पलट दूँगा- सोदोम और उसकी पुत्रियों तथा समारिया और उसकी पुत्रियों का भाग्य-पलट दूँगा। मैं उनके साथ तुम्हारा भी भाग्य पलटूँगा,
54) जिससे तुम अपना अपयश भोगो और अपने उन सभी कर्मों के लिए लज्जित हो, जिन से तुम उनकी सान्त्वना का कारण बन गयी हो।
55) हाँ, सोदोम और उसकी पुत्रियों की अवस्था पहले-जैसी हो जायेगी; समारिया और उसकी पुत्रियों की अवस्था पहले-जैसी हो जायेगी; तुम्हारी और तुम्हारी पुत्रियों की अवस्था पहले-जैसी हो जायेगी।
56) क्या तुम अपने गर्व के दिनों में अपने मुख से अपनी बहन सोदोम की तब तक बारम्बार निन्दा नहीं करती थी,
57) जब तक कि तुम्हारी दुष्टता प्रकट नहीं हुई थी? अब एदोम की पुत्रियों और उसके पड़ोसियों तथा फ़िलिस्तियों की पुत्रियों के लिए, जो तुम्हारे आसपास तुम्हारा तिरस्कार करती हैं, उन्हीं के सदृश तुम भी उपहास का पात्र बन गयी हो।
58) तुम अपने व्यभिचार और वीभत्स कर्मों का दण्ड भुगत रही हो। यह प्रभु की वाणी है।
59) ''प्रभु ईश्वर यह कहता है- तुमने अपनी शपथ तोड़ कर मेरे साथ अपना विधान भंग किया, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ ऐसा ही व्यवहार करूँगा।
60) फ़िर भी मैं उस प्रतिज्ञा को याद रखूँगा, जो मैंने तुम्हारी जवानी के दिनों तुम से की थी। मेरा और तुम्हारा विधान सदा के लिए बना रहेगा।
61) यद्यपि मैं अपनी प्रतिज्ञा के कारण इसके लिए बाध्य नहीं हूँ, फिर भी मैं तुम्हारी बड़ी और छोटी बहनों को तुम को पुत्रियों के रूप में प्रदान करूँगा। उस समय तुम अपने अपराधों का स्मरण करते हुए लज्जित होगी।
62) मैं तुम्हारे साथ अपना विधान बनाये रखूँगा और तुम जान जाओगी कि मैं प्रभु हूँ।
63) जब तुम अपना अतीत याद करोगी, तो तुम लज्जा के मारे एक भी शब्द कहने का साहस नहीं करोगी; क्योकि मैंने तुम्हारे सभी अपराध क्षमा कर दिये। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

अध्याय 17

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
2) ''मानवपुत्र! इस्र्राएल के घराने से यह पहेली पूछो और यह दृष्टान्त सुनाओ।
3) कहो, प्रभु-ईश्वर यह कहता है- विशाल पंखों वाला, लम्बे डैनों वाला, घने रंगबिरंगे पिच्छकों वाला एक महागरुड़ लेबानोन पर उतरा और देवदार के शिखर पर बैठ गया।
4) उसने उसकी सब से ऊँची टहनी तोड़ी, वह उस को व्यापार करने वाले देश में ले गया और उसे व्यापारियों के नगर में रोप दिया।
5) तब उसने उस देश से थोड़ा बीज ले कर उसे रोपण-क्यारी में डाल दिया। उसने उसे मजनूँ की टहनी की तरह प्रचुर जल के पास लगाया।
6) उस में पत्तियँ फूटीं और वह नीचे जमीन पर फैलने वाली दखलता बन गयी। उसकी शाखएँ गरुड़ की ओर बढ़ गयीं और उसकी जडेें उसके नीचे जमी रही। इस प्रकार वह दाखलता बन गयी। उस से शाखाएँ फूटीं और पत्ते निकल आये।
7) ''किन्तु विशाल पंखों वाला, घने पिच्छकों वाला एक दूसरा महागरुड़ था। उस दाखलता की जडें उसकी ओर मुड़ गयीं, और उसकी शाखाएँ उसकी ओर फैल गयीं, जिससे वह उसे जल से सींचे- उस क्यारी से, जहाँ उसने उस को लगाया था।
8) वह प्रचुर जल के समीप उपजाऊ भूमि में लगायी गयी, जिससे उस में शाखाएँ फूटें और फल लगें और वह विशाल दाखलता बन जाये।
9) कहो, प्रभु-ईश्वर यह कहता है- क्या वह वहाँ पनपेगी? क्या वह उसकी जडें नही उखाडेगा, उसकी शाखाएँ नहीं काटेगा और उस से फूूटने वाली सभी नयी पत्तियाँ नही सूखेंगी? उस को जड़ से उखाड़ने के लिए मजबूत हाथ या बहुत लोगों की जरूरत नहीं होगी।
10) क्या रोपे जाने पर वह पनपेगी? जब पुरवैया उसे झकझोरेगी, तो क्या वह नहीं सूख जायेगी? वह उसी क्यारी में सूख जायेगी, जहाँ वह उगी थी'।''
11) फिर मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
12) ''अब उस विद्रोही घराने से कहो, 'क्या तुम यह नहीं समझते कि इन बातों को अभिप्राय क्या हैं?' उन से बोलोः बाबुल का राजा येरुसालेम आया। वह उसके राजा और पदाधिकारियों को पकड़ कर अपने यहाँ बाबुल ले गया।
13) उसने राजकुल के एक व्यक्ति को चुन कर उसके साथ सन्धि की और उसे शपथ खिलायी। वह उस देश के नेताओं को अपने साथ ले आया था,
14) जिससे वह राज्य अपने को ऊपर उठा न सके और दब कर रहे और उसके साथ सन्धि का पालन कर उसे मानता रहे।
15) किन्तु उस व्यक्ति ने उस से विद्रोह किया। उसने भारी संख्या में घोड़े और सैनिक प्राप्त करने के विचार से दूतों को मिस्र भेजा। क्या वह सफल हो सकेगा? क्या ऐसा काम करने वाला व्यक्ति बच पायेगा? क्या वह विधान भंग करने पर भी सुरक्षित रह सकेगा?
16) ''प्रभु कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! निश्चय ही उसकी मृत्यु बाबुल में होगी- उस स्थान में, जहाँ वह राजा निवास करता है, जिसने उसे राजा बनाया, जिसकी शपथ की उसने अवहेलना की और जिस से की हुई सन्धि को उसने भंग किया।
17) जब बहुतों के वध के लिये टीले बनाये जायेंगे और मोरचाबन्दी की जायेगी तो फ़िराउन अपनी शक्तिाशाली सेना और विशाल समूह के साथ यूद्ध में उसकी सहायता नहीं करेगा।
18) उसने शपथ की अवहेलना की और सान्धि भंग की, उसने हाथ मिलाया और तब भी यह सब कियाः वह नहीं बच पायेगा।
19) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! उसने मेरी जिस शपथ की अवहेलना की और मेरे साथ की हुई जिस सन्धि को भंग किया, उसका अपराध उसके सिर डालूँगा।
20) मैं उस पर अपना जाल डालूँगा और वह मेर फन्दे में फँस जायेगा। मैं उस को बाबुल ले आऊँगा और उसने मेरे साथ जो विश्वासघात किया है, वहाँ उसका न्याय करूँगा।
21) उसके सभी चुने हुए सैनिक तलवार के घाट उतारे जायेंगे और बच कर निकलने वाले चारों ओर तितर-बितर कर, दिये जायेंगे। तुम तभी यह समझोगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा है।
22) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं देवदार की फुनगी से, उसकी ऊँची-ऊँची शाखाओं से एक टहनी काटूँगा। उसे मैं स्वयं एक ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा,
23) उसे मैं इस्राएल के ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा। उस में डालियाँ निकल आयेंगी। वह फल उत्पन्न करेगा और एक शानदार देवदार बन जायेगा। नाना प्रकार के पक्षी उसके नीचे आ जायेंगे; वे उसकी डालियों की छाया में बसेरा करेंगे
24) और मैदान के सभी पेड़ जान लेंगे कि मैं प्रभु, ऊँचे वृक्ष को नीचा बना देता हूँ और नीचे वृक्ष को ऊँचा। मैं हरे वृक्ष को सूखा बना देता हूँ और सूखे वृक्ष को हरा। मैं, प्रभु जो कह चुका हूँ, उसे पूरा कर देता हूँ।''

अध्याय 18

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
2) ''तुम लोग इस्राएल देश के विषय में यह कहावत क्यों दोहराते हो- बाप-दादों ने खट्टे अंगूर खाये और बच्चों के दाँत खुरदरे हो गये?
3) प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! कोई भी इस्राएली यह कहावत फिर नहीं दोहरायेगा!
4) सभी आत्माएँ मेरी ही हैं। पिता की आत्मा मेरी है और पुत्र की आत्मा भी। जो व्यक्ति पाप करता है, वही मरेगा।
5) ''यदि कोई मनुष्य धार्मिक है और संहिता तथा न्याय के अनुसार आचरण करता है;
6) यदि वह पहाड़ी पूजास्थानों में भोजन नहीं करता और इस्राएली प्रजा की देवमूर्तियों की ओर आँख उठा कर नहीं देखता; यदि वह परायी स्त्री का शील भंग नहीं करता और ऋतुमती स्त्री के पास नहीं जाता;
7) यदि वह किसी पर अत्याचार नहीं करता, अपने कर्जदार को उधार लौटाता और किसी का धन नहीं चुराता; यदि वह भूखों को भोजन और नंगों को कपड़े देता;
8) यदि वह ब्याज ले कर उधार नहीं देता, सूदखोरी अथवा अन्याय नहीं करता और दो पक्षों का उचित न्याय करता है;
9) यदि वह मेरे विधान के अनुसार आचरण करता और मेरे नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करता है, तो ऐसा धार्मिक मनुष्य जीवित रहेगा- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
10) ''किन्तु यदि उस से ऐसा पुत्र उत्पन्न हो, जो डाकू और हत्यारा हो जाये, जो स्वयं भी इन में से कोई अपराध करे;
11) जब उसने स्वयं ऐसा कोई अपराध न किया हो, यदि वह पहाड़ी पूजास्थानों में भोजन करे, परायी स्त्री का शील भंग करे,
12) दरिद्र और अभावग्रस्त लोगों पर अत्याचार करे, धन चुराये, जमानत न लौटाये, देवमूर्तियों की ओर आँख उठा कर देखे, कुकर्म करे,
13) ब्याज पर कर्ज दे और सूदख़ोरी करे, तो क्या वह जीवित रहेगा? कभी नही! वह अपने कुकमोर्ं के कारण अवश्य मर जायेगा और उसका रक्त उसी के सिर पड़ेगा।
14) ''किन्तु यदि उस से ऐसा पुत्र उत्पन्न हो, जो अपने पिता द्वारा किये गये पापों को देखे और उसके-जैसा आचरण न करे,
15) जो पहाड़ी पूजास्थानों में भोजन न करे या इस्राएल के घराने की दूवमूर्तियों की ओर आँख उठा कर न देखे, अपने पड़ोसी की पत्नी का शील भंग न करे,
16) किसी पर अत्याचार न करें, जमानत न ले, धन न चुराये, बल्कि भूखे को भोजन और नंगे को वस्त्र दे,
17) अन्याय से दूर रहे, ब्याज या अतिरिक्त रकम न ले, मेरे विधानों का पालन करे और मेरी आज्ञाओं का पालन करे, तो वह अपने पिता के पापों के कारण नहीं मरेगा, बल्कि वह अवश्य जीवित रहेगा।
18) उसके पिता ने लूटा-खसोटा, अपने भाई का धन चुराया और अपने जातिवालों के साथ अनुचित व्यवहार किया, इसलिए वह अपने पापों के कारण मर जायेगा।
19) ''इस पर भी तुम यह कहते हो, 'पिता के पाप का दण्ड पुत्र क्यों नहीं भोगेगा?' लेकिन वह धार्मिकता और न्याय के पथ पर चलता रहा है तथा उसके सावधानी से मेरी सब आज्ञाओं का पालन किया है। वह अवश्य जीवित रहेगा।
20) जो पाप करता है, वह मर जायेगा। पुत्र अपने पिता के पाप की दण्ड नहीं भोगेगा और पुत्र के पाप का दण्ड पिता नहीं भोगेगा। धर्मी को अपनी धार्मिकता का फल प्राप्त होगा और दुष्ट को अपनी दुष्टता का फल मिलेगा।
21) ''यदि पापी, अपना पुराना पापमय जीवन त्याग कर, मेरी सब आज्ञाओं का पालन करता और धार्मिकता तथा न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अवश्य जीवित रहेगा, मरेगा नहीं।
22) उसके सब पापों को भुला दिया जायेगा और वह अपनी धार्मिकता के कारण जीवित रहेगा।
23) प्रभु-ईश्वर का यह कहना है- क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न हूँ? क्या मैं यह नहीं चाहता कि वह अपना मार्ग छोड़ दे और जीवित रहे?
24) किन्तु यदि भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर दुष्ट की तरह घृणित पाप करने लगता है, तो क्या वह जीवित रहेगा? उसकी समस्त धार्मिकता को भुला दिया जायेगा और वह अपने अधर्म तथा पाप के कारण मर जायेगा।
25) ''तुम लोग कहते हो कि प्रभु का व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं। इस्राएलियो! मेरी बात सुनो। क्या मेरा व्यवहार न्यायसंगत नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि तुम्हारा ही व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं।
26) यदि कोई भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर अधर्म करने लगता और मर जाता है, तो वह अपने पाप के कारण मरता है।
27) और यदि कोई पापी अपना पापमय जीवन त्याग कर धार्मिकता और न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अपने जीवन को सुरक्षित रखेगा।
28) यदि उसने अपने पुराने पापों को छोड़ देने का निश्चय किया है, तो वह अवश्य जीवित रहेगा, मरेगा नहीं।
29) इस्राएल का घराना यह कहता है 'प्रभु का व्यवहार न्यासंगत नहीं हं'। इस्राएलियो! मेरी बात सुनो। क्या मेरा व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं? क्या यह सही नहीं है कि तुम्हारा ही व्यवहार न्यायसंगत नहीं है?
30) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है- इस्राएल के घराने! मैं हर एक का उसके कमोर्ं के अनुसार न्याय करूँगा। तुम मेरे पास लौट कर अपने सब पापों को त्याग दो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे अपराधों को कारण तुम्हारा विनाश हो जाये।
31) अपने पुराने पापों का भार फेंक दो। एक नया हृदय और एक नया मनोभाव धारण करो। प्रभु-ईश्वर यह कहता है-इस्राएलियों! तुम क्यों मरना चाहते हो?
32) मैं किसी भी मनुष्य की मृत्यु से प्रसन्न नहीं होता। इसलिए तुम मेरे पास लौट कर जीते रहो।''

अध्याय 19

1) ''इस्राएल के पदाधिकारियों के विषय में शोकगीत गाओ।
2) तुम यह कहोः तुम्हारी माता सिंहों के बीच एक सिंहनी थी। वह सिंह-शावकों के बीच लेट कर अपने बच्चों का पालन करती थी।
3) उसने अपने बच्चों में से एक का पालन किया और वह युवा सिंह बन गया। वह शिकार करना सीख गया और उसने नर-भक्षण किया।
4) तब राष्ट्र उसके विरुद्ध हल्ला करने लगे और वह उनके गड्ढ़े में फँस गया। वे उसे अँकुसियों में फँसा कर मिस्र ले गये।
5) जब सिंहनी ने अनुभव किया कि उसकी प्रतीक्षा व्यर्थ हो गयी और उसकी आशा पर पानी फिर गया, तो उसने अपना दूसरा बच्चा चुना और उसे पोस कर युवा सिंह बना दिया।
6) वह सिंहों के बीच विचरने लगा; वह युवा सिंह बन गया और शिकार करना सीख गया। उसने नर-भक्षण किया।
7) उसने उनके गढ़ ध्वस्त कर दिये और उनके नगर उजाड़ डाले। उसके गर्जन की ध्वनि सुन कर देश और उसके सब प्राणी आतंक से भर गये।
8) राष्ट्रों और आसपास के प्रदेशों ने उस से विद्रोह किया; उन्होंने उस पर अपना जाल फैलाया और वह उनके गड्ढ़े में फँस गया।
9) उन्होंने अँकुसियों में फाँस कर उसके पिंजड़े में बन्द कर दिया और बाबुल के राजा के पास ले गये। उन्होंने उसे बन्दी बना लिया, जिससे इस्राएल के पर्वतों पर उसका गर्जन फिर सुनाई नहीं पड़े।
10) तुम्हारी माता दाखबारी में दाखलता के सदृश थी, जो जल के समीप लगायी गयी थी। प्रचुर जल के कारण वह फलों और टहनियों से लद गयी थी।
11) उसका सबसे सबल तना राजदण्ड बन गया। वह मोटी शाखाओं के बीच सब से ऊँचा हो गया। उसकी लम्बाई बादलों तक पहुँच गयी। उसकी प्रशंसा उसकी ऊँचाई और शाखाओं की बहुलता के कारण की जाने लगी।
12) किन्तु क्रोधावेश में उसे तोड़ कर नीचे फेंक दिया गया और पुरवैया ने उसके फल सुखा दिये और वे उड़ गये। उसका पुष्ट तना मुरझा गया और वह आग में जल कर भस्म हो गयी।
13) अब वह उजाड़खण्ड में, सूखी और प्यासी भूमि में लगायी गयी है
14) और उसके तने से आग फूटी है; उसने उसकी शाखाओं और फलों को भस्म कर दिया हैं, जिससे उस में कोई पुष्ट तना शेष न रहे, जो राजदण्ड बन सके। ''यह एक शोकगीत है और इसका उपयोग शोकगीत के रूप में हुआ।''

अध्याय 20

1) सातवें वर्ष के पांचवे महीने के दसवें दिन इस्राएल के कुछ नेता प्रभु से परामर्श लेने के लिए आये और मेरे सामने बैठ गये।
2) उस समय मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
3) ''मानवपुत्र! इस्राएल के नेताओं से बात कर यह कहोः प्रभु-ईश्वर यह कहता है- क्या तुम लोग मुझसे परामर्श करने आये हो? प्रभु कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! मैं तुम्हें परामर्श लेने नहीं दूँगा।
4) मानवपुत्र! क्या तुम उनका न्याय करना चाहोगे? क्या तुम उनका न्याय करोगे? तो तुम उन को उनके पूर्वजों के वीभत्स कमोर्ं के विषय में बलताओ
5) और उन से बोलोः प्रभु-ईश्वर यह कहता है-जिस दिन मैंने इस्राएल को चुना, मैंने याकूब के घराने के वंशजों के सामने हाथ उठा कर शपथ खायी। मैंने मिस्र देश में अपने को उन पर प्रकट किया और हाथ उठा कर शपथ खायीः मैं ही प्रभु, तुम्हारा इश्वर हूँ।
6) उस दिन मैंने हाथ उठा कर शपथ खायी और उन से कहा कि मैं उन्हें मिस्र देश से निकाल कर उस देश में ले जाऊँगा, जिसकी मैंने उनके लिए खोज की थी, उस देश में जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं और जो भी सभी देशों में श्रेष्ठ है।
7) मैंने उन से कहा, 'अपनी आँखों को आसक्त करने वाली देवमूर्तियों का उठा कर फेंक दो और मिस्र की दूवमूर्तियों से अपने को दूषित मत करो। मैं ही प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ।
8) किन्तु उन्होंने मुझ से विद्रोह किया और मेरी बातें अनसुनी कर दी। न तो उन में से किसी ने अपनी आँखों को लुभाने वाली वीभत्स वस्तुओं को फेंका और न उन्होंने मिस्र की देवमूर्तियों का ही पत्यिाग किया। ''तब मैंने सोचा कि मिस्र देश में मैं उन पर अपना कोप बरसाऊँ और उन पर अपना क्रोध उतार दूँ।
9) किन्तु मैंने अपने नाम की मर्यादा के अनरूप कार्य किया, जिससे वह उन राष्ट्रों की दृष्टि में दूषित न हो, जहाँ वे निवास कर रहे थे और जिनके सामने मैंने उन्हें मिस्र से बाहर निकालते समय अपने को उन पर प्रकट किया था।
10) इसलिए मैं उन्हें मिस्र देश के बाहर निकाल लाया और उजाड़खण्ड ले गया।
11) मैंने उन को अपनी विधियाँ प्रदान कीं और अपने नियम बतलाये, जिनका पालन करने पर मनुष्य जीवित रह सकता है।
12) यही नहीं, मैंने अपने और उनके बीच के चिन्हस्वरूप उनके लिए विश्राम-दिवस निर्धारित किये, जिससे वे यह जानें कि मैं, प्रभु, उन्हें पवित्र ठहराता हूँ।
13) किन्तु इस्राएल के घराने ने उजाडखण्ड में मेरे विरुद्ध विद्रोह किया। उसने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया, वरन् मेरे उन नियमों का तिरस्कार किया, जिनका पालन करने पर मनुष्य जीवित रह सकता है। उन्होंने मेरे विश्राम-दिवसों को दूषित किया। ''इस पर मैंने उन को पूर्णतः विनष्ट कर देने के लिए उजाड़खण्ड में अपना क्रोध बरसाने का निश्यच किया।
14) किन्तु मैंने अपने नाम की मर्यादा के अनुरूप कार्य किया, जिससे यह उन राष्ट्रों की दृष्टि में दूषित न हो, जिनके देखते-देखते मैं उन्हें बाहर निकाल लाया था।
15) यही नहीं, मैंने हाथ उठा कर शपथ खायी और उन से उजाड़खण्ड में यह कहा कि मैं उन्हें वह देश नहीं ले जाऊँगा, जो मैंने उनको प्रदान किया था, वह देश, जहाँ, दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं और जो सभी देशों में श्रेष्ठ है;
16) क्योंकि उन्होंने मेरे नियमों का तिरस्कार किया, मेरे आदेशों का पालन नहीं किया और मेरे विश्राम-दिवसों को दूषित किया; क्योंकि उनका हृदय अपनी दूवमूर्तियों में आसक्त था।
17) इतना होने पर भी मैंने उन पर दया दिखलायी। मैंने न तो उन को नष्ट किया और न ही उजाड़खण्ड में उनका सर्वनाश किया।
18) ''मैंने उजाड़खण्ड में उनके पुत्र-पुत्रियों से कहा, 'तुम लोग अपने पुरखों की रीजि-रिवाजों का अनुसरण मत करो, उनके नियमों का पालन मत करो और उनकी दूवमूर्तियों द्वारा अपने को दूषित न होने दो।
19) मैं, प्रभु ही तुम्हारा ईश्वर हूँ। मेरे आदेशों का अनुसरण करो और मेरे नियमों का सावधानी से पालन करो।
20) मेरे विश्राम-दिवसों की पवित्रता बनाये रखो, जिससे वे मेरे और तुम्हारे सम्बन्धों के लिए चिन्हस्वरूप हों और तुम यह जान जाओ कि मैं, प्रभु ही तुम्हारा ईश्वर हूँ।'
21) किन्तु उनके पुत्र-पुत्रियों ने मुझ से विद्रोह किया। उन्होंने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया और मेरे नियमों के पालन में सावधानी नहीं दिखलायी, जिनका पालन करने पर मनुष्य जीवित रहेगा। उन्होंने मेरे विश्राम-दिवस दूषित किये। ''तब मैं ने उजाड़खण्ड में उन पर अपना कोप बरसाने और अपना क्रोध उतार देने का निश्चय किया।
22) लेकिन मैंने इस से अपना हाथ खींच लिया और अपने नाम की मर्यादा के अनुरूप कार्य किया, जिससे यह उन राष्ट्रों की दृष्टि में दूषित न हो, जिनके देखते-देखते मैं उन को बहार निकाल लाया था।
23) किन्तु मैंने उजाड़खण्ड में हाथ उठाते हुए शपथ खा कर यह कहा कि मैं उन्हें राष्ट्रों के बीच बिखेर दूँगा और विभिन्न देशों में तितर-बितर कर दूँगा;
24) क्योंकि उन्होंने मेरे नियमों की अवहेलना की थी, मेरे आदेशों का तिरस्कार किया और मेरे विश्राम-दिवासों को दूषित किया था तथा उनकी आँखें उनके पुरखों की देवमूर्तियों में लगी हुइ थीं।
25) इसलिए मैंने उनके लिए ऐसे नियम निर्धारित किये, जो अच्छे नहीं थे और उन्हें ऐसे आदेश दिये, जिनके द्वारा उनके लिए जीवित रहना सम्भव नहीं था।
26) मैंने उन को स्वयं उनके द्वारा प्रदत्त बलियों, अपने पहलौठों की अग्नि में आहुति द्वारा दूषित कर दिया, जिससे वे आतंकित हो कर यह समझें कि मैं भी प्रभु हूँ।
27) ''मानवपुत्र! इसलिए तुम इस्राएल के घराने से बात कर यह कहोः प्रभु-ईश्वर यह कहता है- तुम्हारे पुरखों ने इसी तरह मेरी निन्दा की और मेरे साथ विश्वासघात किया।
28) जब मैं उन्हें इस देश ले आया था, जिसे देने की मैंने उन से शपथ खा कर प्रतिज्ञा की थी, तो जहाँ कहीं भी उन्होंने ऊँची पहाड़ी या घना वृक्ष देखा, वहाँ-वहाँ वे बलियाँ चढाने और मेरा क्रोध भडकाने वाले बलिदान अर्पित करने लगे। वहाँ वे सुगान्धित धूप जलाते और अर्घ चढ़ाते थे।
29) मैंने उन से यह कहा- 'तू किस पहाड़ी पूजास्थान के लिए ऊपर जा रहे हो? तब से उसका नाम बामा चला आ रहा है।
30) इसलिए इस्राएल के घराने से यह कहो, 'प्रभु-ईश्वर का कहना है- क्या सचमुच तुम सब अपने पुरखों की तरह अपने को दूषित करते और उनकी वीभत्स वस्तुओं के पीछे भटकते रहते हो।
31) अपनी बलियाँ अर्पित कर और अपने पुत्रों को आहुति दे कर तुम आज भी अपनी देवमूर्तियों की पूजा द्वारा अपने को दूषित कर रहे हो। इस्राएल के घराने! क्या तब भी मैं तुम को मुझ से परापर्श लेने देता? प्रभु-ईश्वर कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! मैं तुम्हें मुझ से परामर्श लेने नहीं दूँगा।
32) तुम जो यह सोचते हो, ''हम भी दूसरे राष्ट्रों-जैसे, दूसरे देशों की जातियों-जैसे हो जायें तथा काठ और पत्थर की पूजा करे'', वह कभी पूरा नहीं होगा।'
33) ''प्रभु-ईश्वर कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! निश्चय ही मैं हाथ बढ़ा कर अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करने और क्रोध बरसाते हुए तुम पर राज्य करूँगा।
34) मैं हाथ बढ़ा कर अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करते हुए तुम लोगों को राष्ट्रों में से बाहर निकाल लाऊँगा और तुम जिन देशों में बिखर गये हो, वहाँ से एकत्र करूँगा।
35) मैं तुम को राष्ट्रों के उजाड़खण्ड में ले आऊँगा और आमने-सामने तुम्हारा न्याय करूँगा।
36) जिस प्रकार मिस्र देश के उजाड़खण्ड में मैंने तुम्हारे पुरखों का न्याय किया, उसी प्रकार मैं तुम्हारा भी न्याय करूँगा। यह प्रभु-ईश्वर का कहना है।
37) मैं तुम्हें अपनी छड़ी के नीचे से हो कर जाने दूँगा और तुम्हारी गिनती करूँगा,
38) मैं उन लोगों को तुम से अलग कर दूगा, जिन्होंने मुझ से विद्रोह किया और मेरी आज्ञाओं का उल्लंघन किय है। मैं उन्हें अपने प्रावस के देश से बाहर निकाल लाऊँगा, किन्तु वे इस्राएल की भूमि में प्रवेश नहीं करेंगे। तुम तभी यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
39) ''इस्राएल के घराने! प्रभु-ईश्वर तुम्हारे विषय में यह कहता है, 'प्रत्येक व्यक्ति अपनी देवमूूर्तियों को फेंक दे। तभी तुम मेरी बात पर ध्यान दोगे और अपनी बलियों और घृणित देवमूर्तियों द्वारा मेरे पवित्र नाम को कभी दूषित नहीं करोगे;
40) क्योंकि प्रभु-ईश्वर कहता है कि मेरे पवित्र पर्वत, इस्राएल के ऊँचे पर्वत पर इस्राएल के घराने के सभी लोग देश में मेरी सेवा करेंगे। वहाँ मैं तुम्हें अपनाऊँगा और तुम्हारे अंशदान, तुम्हारे सर्वोत्तम उपहार और तुम्हारी सभी पवित्र वस्तुएँ ग्रहण करूँगा।
41) जब मैं तुम्हें राष्ट्रों से बाहर निकालूँगा, तो मैं तुम्हें सुगन्धित धूप की तरह अपनाऊँगा, उन देशों से, जहाँ तुम बिखरे हुए हो, मैं तुम को एकत्र करूँगा और मैं राष्ट्रों की आँखों के सामने अपनी पवित्रता प्रकट करूँगा।
42) तुम यह समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब मैं तुम्हें इस्राएल की भूमि में, उस देश में ले आऊँगा, जिसे देने की प्रतिज्ञा मैंने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों से की थीं।
43) वहाँ तुम्हें अपने वे आचरण और वे सभी कर्म याद आयेंगे, जिनके द्वारा तुमने अपने को दूषित किया है। तब तुम को अपने द्वारा किये हुए पापों के कारण अपने आप से घृणा हो जायेगी।
44) इस्राएल के घराने! तुम उस समय यह समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब मैं तुम्हारे साथ तुुम्हारे कुकमोर्ं के अनुसार नहीं, बल्कि अपने नाम की मर्यादा के अनुरूप कार्य करूँगा। यह प्रभु-ईश्वर का कहना है'।''

अध्याय 21

1) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई दी,
2) ''मानवपुत्र! अपना मुँह दक्षिण की ओर करो; दक्षिण की ओर हो कर बोलो और नेगेब की वनभूमि के विरुद्ध भविष्यवाणी करो।
3) नेगेब के वन से कहो- 'प्रभु की यह वाणी सुनो। प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं तुम में ऐसी आग लगाऊँगा, जो तुम्हारे प्रत्येक हरे वृक्ष और हर सूखे पेड़े को भस्म कर देगी। उसकी प्रचण्ड ज्वाला नहीं बुझ पायेगी और नेगेब से उत्तर तक के सभी चेहरे उस से झुलस जायेंगे।
4) सभी शरीरधारी यह देखेंगे कि मैं, प्रभु, ने ही यह आग प्रज्वलित की है और यह अब नहीं बुझ पायेगी'।''
5) और मैं यह बोला, ''प्रभु-ईश्वर! मेरे विषय में सब लोग यह कहत हैं, 'यह तो दृष्टान्त गढ़ता रहता है'।''
6) तब मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
7) ''मानवपुत्र! येरुसालेम की ओर मुँह कर उसके मन्दिरों के विरुद्ध यह कहो; इस्राएल देश के विषय में भविष्यवाणी करो।
8) इस्राएल देश से यह बोलोः 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है - मैं तुम्हारे विरुद्ध हो गया हूँ। मैं म्यान से अपनी तलवार निकालूँगा और तुम से धार्मियों और अधर्मियों, दानों को अलग कर दूँगा,
9) इसलिए धर्मियों और अधर्मियों, दोनों को अलग करने मेरी तलवार दक्षिण से ले कर उत्तर तक के सभी शरीरधारियों के विरुद्ध म्यान से बाहर निकलेगी और नहीं लौटेगी।
10) तब सभी शरीरधारी यह समझ जायेंगे कि मैं, प्रभु ने म्यान से अपनी तलवार निकाली है और वह फिर म्यान में बन्द नहीं होगी।
11) ''इसलिए मानवपुत्र! आह भरो। उनके सामने भग्न हृदय और कटुता से आह भरो।
12) जब वे तुम से पूछें, 'तुम क्यों आह भरते हो?', तो तुम यह कहो, 'समाचार के कारण। जब वह मिल जायेगा, तो हर एक हृदय पसीज उठेगा और सबों के हाथ शक्तिहीन हो जायेंगे; हर एक का मन मुरझा जायेगा और सब के घुटने शिथिल हो जायेंगे। वह आ रहा है। वह आ गया है। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''
13) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई दी,
14) ''मानवपुत्र! भविष्यवाणी करते हुए कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तलवार! तलवार पर सान चढ़ाया और उसे चमकाया जा रहा है;
15) वध करने के लिए उस पर सान चढ़ाया जा रहा है। और बिजली की तरह दमकाने के लिए उसे चमकाया जा रहा है।
16) इसलिए तलवार को चमकाने के लिए दे दिया गया है, जिससे उसका उपयोग किया जा सके उसे वधिक के हाथ में देने के लिए उस पर सान चढ़ाया और चमकाया जा रहा है।
17) मानवपुत्र! रोओ और विलाप करो; क्योंकि वह मेरी प्रजा के विरुद्ध है, वह इस्राएल के सभी पदाधिकारियों के विरुद्ध है। मेरी प्रजा के साथ वे सभी तलवार को सुपुर्द किये जा रहे हैं। इसलिए छाती पीटो।
18) इसलिए......यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।'
19) ''मानवपुत्र! भविष्यवाणी करो और तालियाँ बजाओ! तलवार को तिबारा चलने दो, उस तलवार को, जो शिकार का वध करती है, उस तलवार को, जो बड़े शिकार का वध करती है, जो उनके चारों ओर चल रही है।
20) जिससे उनके हृदय अशान्त हो जायें और उन सब के द्वार पर बहुत-से लोगों का वध हो, मैंने यह तलवार दे दी है। यह वध करने के लिए बिजली की तरह चमकदार बनायी गयी है।
21) दायीं और तेजी से काटो, बायीं ओर खड़े हो जाओ, जहाँ कहीं भी तुम्हारा वार जरूरी हो।
22) मैं भी अपने हाथों से तालियाँ पीटूँगा। और अपना क्रोध शान्त करूँगा। यह मैं, प्रभु ने कहा है।''
23) मुझे प्रभु की वाणी फिर सुनाई पड़ीः
24) ''मानवपुत्र! बाबुल के राजा की तलवार के आने के दो मार्ग चिन्हित करो। दोनों मार्ग एक ही देश से निकले। नगर की ओर जाने वाले मार्ग के सिरे पर एक मार्गपट्ट अंकित करो।
25) अम्मोनियों के रब्बा और यूदा के किलाबन्द नगर येरुसालेम तक तलवार के आने का मार्ग रेखांकित करो;
26) क्योंकि बाबुल का राजा चौराहे पर, दोनों मागोर्ं के फूटने के स्थान पर शकुन निकालने के लिए खड़ा है। वह तीर हिला रहा है, तराफ़ीम से प्रश्न कर रहा है और कलेजे की परख कर रहा है।
27) वध का आदेश देने, युद्ध की ललकार देने, फाटकों तक युद्धयंत्र लगाने, टीले बनाने और मोरचा बन्दी करने का संकेत 'येरुसालेम' उसके दाहिने हाथ में है।
28) उन लोगों के लिए यह शकुन झूठा है; उन्होंने खायी हुई शपथ पर विश्वास किया था, लेकिन वह उनके दोष याद कर रहा है, जिससे वे बन्दी बना लिये जायेंगे।
29) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है : अपने अपराध और अपने सभी कमोर्ं के पाप प्रकट कर तुम अपने दोषों की याद दिला रहे हो, अतः अपनी याद दिलाने के कारण बन्दी बना लिये जाओगे।
30) दुष्ट अपराधी! इस्राएल के शासक! तुम, जिसका वह दिन, अन्तिम निर्णय का समय आ गया है!
31) प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः पगड़ी हटा लो और मुकुट उतार दो। अब पहले-जैसी बात नहीं रहेगी। नीचे को ऊँचा किया जायेगा और ऊँचे को नीचा।
32) मैं इस को नष्ट, नष्ट, नष्ट, कर दूँगा.... जब तक इसका न्याय करने वाला अधिकारी नहीं आ जाता, जिसे मैं वह अधिकार प्रदान करूँगा।
33) ''मानवपुत्र! भविष्यवाणी करते हुए कहोः प्रभु-ईश्वर यह कहता है। तुम अम्मोनियों और उनके निन्दनीय व्यवहार के विषय में यह कहोगे : तलवार, तलवार, वध करने के लिए खींच ल गयी है; विनाश करने और बिजली की तरह दमकने के लिए, चमका दी गयी है!
34) जब कि तुम मिथ्यां दिव्य दृश्य देख रहे हो; झूठी भविष्यवाणियों पर, उन दुष्ट अपराधियों का गला घोंटने के लिए, विश्वास कर रहे हो, जिनके अन्तिम पापों के साथ उनके न्याय का दिन आ गया है।
35) उसे म्यान में बन्द करो। मैं तुम्हारा न्याय तुम्हारी सृष्टि के स्थान, तुम्हारे जन्म के देश में करूँगा।
36) मैं तुम पर अपना कोप बरसाऊँगा। मैं तुम पर अपनी क्रोधाग्नि फूँक दूँगा और तुम्हें विध्वंस में निपुण क्रूर लोगों के हाथ कर दूँगा।
37) तुम आग में ईन्धन बन जाओगे; तुम्हारा रक्त देश भर में बहाया जायेगाः तुम्हारी स्मृति सदा के लिए मिट जायेगी; क्योंकि यह मैं, प्रभु ने कहा है।''

अध्याय 22

1) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी :
2) ''मानवपुत्र! क्या तुम न्याय करोगे? क्या हत्यारे नगर का तुम न्याय करोगे? तो उसे अपने सभी वीभत्स कर्म बतला दो।
3) कहो, ÷प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः धिक्कार उस नगर को, जो अपने यहाँ रक्त बहाता है, जिससे उसका समय समीप आ जाये और देवमूर्तियों का निर्माण कर अपने को अपवित्र बनाता है!
4) तुम अपने द्वारा बहाये हुए रक्त के कारण दोषी और अपने द्वारा निर्मित देवमूर्तियों द्वारा अपवित्र हो गये हो; तुमने अपना अन्त निकट बुला लिया है, तुम्हारा अन्त-समय आ गया है। इसलिए मैंने तुम को राष्ट्रों के लिए निन्दनीय और सभी देशों के लिए उपहास का पात्र बना दिया है।
5) तुम्हारे निकट और दूर के राष्ट्र तुम्हारे अपयश और अशान्ति के कारण तुम्हारी हँसी उड़ायेंगे।
6) ''तुम्हारे यहाँ रहने वाले इस्राएल के पदाधिकारियों में से प्रत्येक अपनी-अपनी शक्ति भर रक्त बहाने पर तुला हुआ है।
7) तुम्हारे यहाँ माता-पिता का अपमान होता है। प्रवासियों को सताया जाता है और अनाथों तथा विधवाओं के साथ अन्याय किया जाता है।
8) तुमने मेरी पवित्र वस्तुओं का अनादर किया है और मेरे विश्राम-दिवसों की पवित्रता भंग की है।
9) तुम्हारे यहाँ ऐसे लोग हैं, जो रक्त बहाने के लिए झूठे दोष मढ़ते हैं और जो पहाड़ी पूजास्थानों में प्रसाद खातें हैं। तुम्हारे यहाँ ऐसे लोग हैं, जो व्यभिचार करते हैं।
10) तुम्हारे यहाँ लोग पिता की शय्या अपवित्र करते हैं; वे तुम्हारे यहाँ रजस्वला स्त्रियों को बाध्य करते हैं।
11) कोई अपने पड़ोसी की पत्नी का शील भंग करता है; कोई अपनी पुत्रवधु को भ्रष्ट करता है; कोई अपने ही पिता की सन्तान, अपनी बहन के साथ बलात्कार करता है।
12) तुम्हारे यहाँ लोग हत्या करने के लिए घूस लेते हैं: तुम ब्याज लेते, सूदखोरी करते और अपने पड़ोसियों से पैसा ऐंठते हो। प्रभु-ईश्वर कहता हैः तुमने मुझ को भुला दिया है।
13) ''मैं तुम्हारे अन्याय से उपार्जित लाभ और तुम्हारे यहाँ बहाये गये रक्त पर तालियाँ बजाऊँगा।
14) क्या उन दिनों, जब मैं तुम से हिसाब लूँगा, तुम्हारा साहस बना रहेगा या तुम्हारे हाथ दृृढ़ रह सकेंगे? यह मैं प्रभु ने कहा है और मैं इसे पूरा करूँगा।
15) मैं तुम्हें राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा और तुम्हें अपनी अपवित्रता से मुक्त कर दूँगा।
16) तुम राष्ट्रों के सामने अपने पापों के कारण अपवित्र बन जाओगे और तब तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हँू।''
17) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी :
18) ''मानवपुत्र! इस्राएल का घराना मेरी दृष्टि में धातुमल हो गया है; वे सभी भट्टी में गलायी गयी चाँदी, काँसे, राँगे, लोहे और सीसे का मल हो गये हैं।
19) अतः प्रभु-ईश्वर कहता हैः तुम सभी धातुमल हो गये हो, इसीलिए मैं तुम्हें येरुसालेम में एकत्रित करूँगा।
20) जैसे लोग भट्टी में चाँदी, काँसा, लोहा, सीसा और राँगा एकत्रित कर उन्हें गलाने के लिए आग सुलगाते हैं, वैसे ही मैं अपने क्रोध और रोष में तुम को एकत्रित करूँगा और उस में डाल कर गलाऊँगा।
21) में तुम्हें एकत्रित करूँगा, तुम को अपने क्रोध की आग से फूँकूँगा और तुम उस में गल जाओगे।
22) जैसे भट्टी में चाँदी गलायी जाती है, वैसे तुम भी उस में गलाये जाओगे और तब तुम यह जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने तुम पर अपना क्रोध बरसाया है।''
23) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी :
24) ''मानवपुत्र! उस से यह कहो, 'तुम एक ऐसा देश हो, जिस पर न तो मेरे कोप के दिन पानी पड़ा है और न वर्षा हुई है।'
25) उसके पदाधिकारी अपने शिकार को फाड़ते समय गरजने वाले सिहं की तरह हैं। उन्होंने नर-भक्षण किया है। उन्होंने उनका धनकोष और बहुमूल्य पदार्थ छीने हैं। उन्होंने उसके यहाँ अनेक स्त्रियों को विधवा बनाया है।
26) उसके याजकों ने मेरा विधान भंग किया है और मेरी पवित्र वस्तुओं को अपवित्र किया है। उन्होंने पवित्र और लौकिक में भेद नहीं किया है। उन्होंने अशुद्ध और शुद्ध की शिक्षा नहीं दी है। उन्होंने मेरे विश्राम-दिवसों की अवहेलना की है और इस से मेरे नाम को अपवित्र किया है।
27) उसके यहाँ के पदाधिकारी भेड़ियों के सदृश हैं। वे अपने शिकार को फाड़ते, खून बहाते और अनुचित लाभ के लिए हत्या करते है।
28) उनके नबी उन पर सफ़ेदी पोतते हैं, जो उनके लिए झूटे दिव्य दृश्य देखते और झूठे शकुन विचारते हुए यह बोलते हैं, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है', जब कि प्रभु ने नहीं कहा है।
29) इस देश के लोगों ने पैसा ऐंठा है, दूसरों का धन छीना है; उन्होंने निर्धन और अभावग्रस्त लोगों पर अत्याचार किया है तथा प्रवासियों का अन्यायपूर्ण शोषण किया है।
30) मैंने एक ऐसे व्यक्ति की खोज की, जो मोरचाबन्दी करे और जो मेरे सामने दीवार पर खड़ा हो कर उसकी रक्षा करे; किन्तु मुझे ऐसा कोई नहीं मिला।
31) इसलिए मैंने उन पर क्रोध बरसाया है; अपनी कोपाग्नि में उन्हें भस्म कर दिया है; मैंने उनके आचरण का बदला उनके सिर चुकाया है। यह प्रभु की वाणी है।''

अध्याय 23

1) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
2) ''मानवपुत्र! दो स्त्रियाँ, एक ही माता की दो पुत्रियाँ थीं।
3) वे मिस्र में व्यभिचार करती थीं। वे अपनी युवावस्था से ही व्यभिचार करती थीं। वहाँ उनका उरोजमर्दन होता था, उनके अक्षत स्तन सहलाये जाते थे।
4) बड़ी का नाम ओहोला था और उसकी बहन का नाम ओहोलीबा। मैंने उन्हें अपना लिया और उनके पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न हुए। ओहोला नाम समरिया का है और ओहोलीबा, येरुसालेम का।
5) ''जब ओहोला मेरे अधीन थी, तो उसने व्यभिचार किया। वह अस्सूरियों पर मोहित हो गयी,
6) उस बैंगनी वस्त्रधारी योद्धाओं क्षत्रपों और सेनापतियों पर, जो सभी अश्वारोही सुन्दर नवयुवक थे।
7) उसने अपने आप को सभी सर्वोत्म अस्सूरियों को व्यभिचार के लिए अर्पित किया और वह जिनके प्रति आसक्त थी, उनकी मूर्तियों की पूजा द्वारा अपने को दूषित किया।
8) उसके मिस्र में रहते समय किये गये व्यभिचार का परित्याग नहीं किया था; क्योंकि उसकी तुरुणाई में लोग उसके साथ सोये थे, उन्होंने उसके अक्षत उरोज सहलाये और अपनी वासना शान्त की थी॥
9) इसलिए मैंने उस को अपने प्रेमी अस्सूरियों के हाथ दे दिया, जिन पर वह आसक्त थी।
10) उन्होंने उसे निर्वस्त्र कर उसके पुत्र-पुत्रियों को बन्दी बनाया और उसे तलवार के घाट उतार दिया। दण्डित किये जाने के बाद वह स्त्रियों के बीच दृष्टान्त बन गयी।
11) ''उसकी बहन ओहोलीबा ने यह सब देखा, तब भी वह उस से कहीं अधिक भ्रष्ट बनी रही और व्यभिचार में उस से भी आगे रही।
12) वह अस्सूरियों पर मोहित हो गयी- क्षत्रपों, सेनापतियों, अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित योद्धाओं, अश्वारोहियों पर जो सभी मोहक नवयुवक थे।
13) मैंने यह देखा कि वह शीलभ्रष्ट हो गयी; दोनों का आचरण एक जैसा था।
14) किन्तु वह व्यभिचार में और भी आगे बढ़ गयी। जब उसने भित्ति पर अंकित लोगों को, लाल रंग से बने हुए खल्दैयियों के वे चित्र देखे,
15) जो अपनी कमर में बन्दकसे, अपने सिर पर साफे पहने, सब-के-सब सैनिक अधिकारियों-जैसे थे, खल्दैया में रहने वाले बाबुलवासियों के चित्र जैसे,
16) तो वह उन पर मोहित हो गयी। उसने खल्देया में उनके यहाँ दूत भेजे।
17) बाबुलवासी उसके प्रेम की सेज के समीप आ गये और उन्होंने अपनी वासना द्वारा उसे भ्रष्ट कर दिया। उनके द्वारा अपवित्र किये जाने पर घृणा के कारण वह उन से विमुख हो गयी।
18) जब उसने खुले आम व्यभिचार किया और अपनी निर्लज्जता प्रकट की, तो घृणा के कारण मैं उस से उसी तरह विमुख हो गया, जिस तरह मैं उसकी बहन से विमुख हुआ था।
19) तब भी वह अपनी तरुणाई के उन दिनों की याद कर, जब वह मिस्र देश में व्यभिचार करती थी, और अधिक व्यभिचार करती गयी।
20) वह वहाँ अपने प्रेमियों पर मोहित हो गयी, जिनके कामांग गधों-जैसे थे और जिनका स्राव घोड़ों के सदृश था।
21) इस तरह तुम अपनी उस तरुणाई के व्यभिचार के लिए लालायित हो गयी, जब मिस्रवासी तुम्हारे स्तन सहलाते और तुम्हारा उरोज-मर्दन करते थे।
22) ''इसलिए ओहोलीबा! प्रभु-ईश्वर यह कहता है, 'मैं तुुम्हारे प्रेमियों को, जिन से तुम विमुख हो गयी हो, तम्हारे विरुद्ध उकसाऊँगा और हर दिशा से उन को तुम पर आक्रमण करने लाऊँगा-
23) बाबुलवासियों, सभी खल्दैदियों, पकोद, शोआ और कोआ के निवासियों तथा उनके साथ सभी अस्सूरियों को मोहक, नवयुवकों, उनके समस्त क्षत्रपों, सेनापतियों, पदाधिकारियों और सैनिकों को, जो सभी अश्वारोही हैं।
24) वे रथों, वाहनों और विशाल जनसमूह के साथ उत्तर की ओर से तुम पर आक्रमण करेंगे। वे फरी, ढाल और शिरस्त्राण धारणा कर तुम को हर ओर से घेर लेंगे। मैं उन को तुम्हारे न्याय का अधिकार दे दूँगा और वे अपने विधान के अनुसार तुम्हारा न्याय करेंगे।
25) मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना कोप प्रकट करूँगा, जिससे वे तुम्हारे साथ रोषपूर्ण व्यवहार करें। वे तुम्हारे नाक-कान काट देंगे और तुम्हारे बीच जीवित रह गये लोग तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे। वे तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों को पकड़ कर ले जायेंगे और तुम्हारे बीच जीवित रह गये लोग आग में जला दिये जायेंगे।
26) वे तुम्हारे वस्त्र तक उतार लेंगे और तुम्हारे बहुमूल्य आभूषण छीन लेंगे।
27) मैं मिस्र देश में शुरू हुए तुम्हारे दुराचरण और व्यभिचार का अन्त कर दूँगा, जिससे तुम न तो मिस्रियों की ओर देखोगी और न कभी उनका स्मरण करोगी।
28) क्योंकि प्रभु-ईश्वर यह कहता है : मैं तुम्हें उन लोगों के हाथ कर दूँगा, जिन से तु घृण करती हो- उन लोगों के हाथ, जिन से तुम घृणा के कारण विमुख हो गयी हो।
29) तुम्हारे प्रति उनका व्यवहार घृणा का होगा। वे तुम्हारे श्रम का समस्त लाभ हड़प लेंगे, तुम्हें निर्वस्त्र और नग्न छोड़ देंगे और तुम्हारे व्यभिचार की निर्लज्जता प्रकट हो जायेगी। तुम्हारे दुराचरण और व्यभिचार के कारण ही
30) तुम पर यह बीती है, क्योंकि तुमने राष्ट्रों के साथ व्यभिचार किया और उनकी दूवमूर्तियों की पूजा द्वारा अपने को अपवित्र बनाया।
31) तुमने अपनी बहन का अनुसरण किया; इसलिए मैं उसका प्याला तुम्हारे हाथ दे दूँगा।
32) प्रभु-ईश्वर यह कहता है- तुम अपनी बहन का प्याला पियोगी जो गहरा और बड़ा है। तुम्हारी हँसी होगी और तुम्हारा उपहास किया जायेगा, क्योंकि उस में बहुत समाता है।
33) तुम नशे और उदासी से भर जाओगी। तुम्हारी बहन समारिया का प्याला सन्त्रास और विध्वंस का प्याला है।
34) तुम इसे पियोगी और अंतिम बूँद तक पीती रहोगी; तुम अपने केश नोचोगी और अपनी छाती चीरोगी; क्योंकि यह मैंने कहा है- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
35) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुमने मुझे भुला दिया है और अपने आप से ओझ कर दिया है, इसलिए तुम अपनी दुश्चरित्रता और व्यभिचार के फल भोगो।''
36) प्रभु ने मुझ से यह कहा, ''मानवपुत्र! क्या तुम ओहोला और ओहोलीबा का न्याय करोगे? तो उनके घृणित कायोर्ं की घोषणा उनके सामने कर दो।
37) उन्होंने व्यभिचार किया है और उनके हाथ खून से रँगे हैं। उन्होंने अपनी दूवमूर्तियों के साथ व्यभिचार किया है, यहाँ तक कि उन्होंने मेरे लिए उत्पन्न अपने पुत्रों को उन्हें बलि के लिए अर्पित किया है।
38) यही नहीं, उन्होंने मेरे विरुद्ध यह कार्य किया है : उन्होंने उसी दिन मेरा मन्दिर अपवित्र किया है और मेरे विश्राम-दिवस अपवित्र किये हैं।
39) उन्होंने जिस दिन अपनी देवमूर्तियों पर चढ़ाने के लिए अपनी सन्तानों का वध किया था, उसी दिन उन्होंने मेरे मन्दिर को अपवित्र करने के लिए उस में प्रवेश किया था। उन्होंने यह कार्य मेरे घर में किया।
40) उन्होंने दूर-दूर के लोगों को बुलाया, यहाँ तक कि उनके यहाँ दूत भेजा और वे आ गये। तुमने उनके लिए स्नान कर अपनी आँखों के काजल लगाया और आभूषण सजाये।
41) तुम एक सुसज्जित आसन पर बैठ गयीं, उसके सामने एक मेज रखी थी, जिस पर तुमने मेरा लोबान और मेरा तेल रख दिया था।
42) उसके चारों ओर बेफिक्र लोगों का कोलाहल सुनाई दे रहा था और सामान्य लोगों के साथ उजाड़खण्ड से पियक्कड़ भी आये थे। उन्होंने इन स्त्रियों की कलाइयों में कंगन और इनके माथे पर सुन्दर मुकुट पहनाये थे।
43) ''इस पर मैं यह बोलाः क्या जब लोग उसके साथ संसर्ग करते हैं, तो वे व्यभिचार नहीं करते?
44) वे उसके यहाँ उसी प्रकार गये हैं, जिस प्रकार लोग वेश्या के यहाँ जाते हैं। ठीक उसी प्रकार वे ओहोला और ओहोलीबा के यहाँ व्यभिचार के लिए गये थे।
45) किन्तु धर्मी लोग उनका न्याय करेंगे, जैसे व्यभिचारिणियों और रक्त बहाने वाले लोगों का विचार करते हैं; क्योंकि वे व्यभिचारिणी हैं और उनके हाथ खून से रँगे हैं।
46) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : उनके विरुद्ध जनसमूह को एकत्रित करो और उन को आतंक और लूट का शिकार बनने दो।
47) वह जनसमूह उन्हें पत्थरों से मारेगा और तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर देगा। वह उनके पुत्र-पुत्रियों का वध करेगा और उनके घर जला डालेगा।
48) इस प्रकार मैं इस देश के व्यभिचार को मिटा दूँगा, जिससे सभी स्त्रियाँ सचेत हो जायें और तुम्हारी तरह दुराचरण न करें।
49) तुम्हें अपने दुराचरण का प्रतिफल मिलगा और अपनी पापपूर्ण मूर्तिपूजा का दण्ड भोगना होगा। तब तुम यह जान जाओगी कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।''

अध्याय 24

1) नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
2) ''मानवपुत्र! तुम आज ही आज की यह तिथि लिख लो। आज के दिन ही बाबुल के राजा ने येरुसालेम का घेरा डाला है।
3) तुम इस विद्रोही घराने को यह दृष्टान्त सुनाओ और उस से बोलोः 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है- बटलोई रखो, उसे रख दो; उस में पानी डाल दो।
4) उस में मांस के टुकड़े, सब अच्छे टुकड़े, जाँघ और कन्धा डाल दो; उसे अच्छी-अच्छी हड्डियों से भर दो।
5) रेवड़ की सब से अच्छी भेड़ ले लो; उसके नीचे लकड़ियाँ लगा दो। उस में उसके टुकड़े उबालो और उसकी हड्डियाँ सिझाओ'।
6) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः धिक्कार उस खूनी नगर को, उस बटलोई को, जिस में जंग लगा है और जिसका जंग साफ़ नहीं किया जा सका! उसका एक-एक टुकड़ा बिना किसी भेद-भाव के, बाहर निकाल लो।
7) उसने जो रक्त बहाया है, वह उनके बीच अब भी है। उसने उसें नंगी चट्टान पर डाल दिया था, उसने उसे धूल से ढकने के लिए जमीन पर नहीं डाला था।
8) अपना क्रोध भड़काने और प्रतिशोध लेने के लिए मैंने उसके द्वारा बहाये गये रक्त को नंगी चट्टान पर डाल दिया है, जिससे उसे ढका नहीं जा सके।
9) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- उस खूनी नगर को धिक्कार! मैं भी लकड़ियों का एक बड़ा ढेर लगाऊँगा।
10) लडकियों का ढेर लगाओ, आग जला दो, अच्छी तरह मांस पकाओ, शोरबा निकाल लो और हड्डियों को जलने दो।
11) इसके बाद उसे ख़ाली कर आग पर रख दो, जिससे वह गर्म हो जाये और उसका ताँबा जलने लगे, जिससे उसका मैल गल जाये और उसका जंग भस्म हो जाये।
12) मैने व्यर्थ ही परिश्रम किया है। उसका गाढ़ा जंग आग से भी दूर नहीं होता।
13) तुम्हारा व्यभिचार ही उसका जंग है। मैंने तुम्हें शुद्ध कर दिया होता, किन्तु तुम्हारी मलिनता शुद्ध नहीं की जा सकी; इसलिए तुम फिर तब तक शुद्ध नहीं हो सकोगी, जब तक मैं तुम पर अपना क्रोध न उतार लूँ।
14) यह मैं, प्रभु ने कहा है। यह हो कर रहेगा, मैं इसे पूरा करूँगा। मैं अपना निश्चय नहीं बदलूँगा। मैं किसी को नहीं छोडूँगा, मैं कोई दया नहीं दिखाऊँगा। मैं तुम्हारा न्याय तुम्हारे आचरण और कमोर्ं के अनुसार करूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''
15) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
16) ''मानवपुत्र! तुम जिसे प्यार करते हो, मैं उसे आकस्मिक मृत्यु द्वारा तुम से अलग कर दूँगा। किन्तु तुम न तो शोक मनाओ, न विलाप करो और न रोओ।
17) तुम अपना दुःख पी कर चुप रहो और मृतक के लिए मातम मत मनाओ। तुम पगड़ी बाँधो, जूते पहनो, अपना मुँह मत ढको और जो रोटी लोग देने आते हैं, उसे मत खाओ।''
18) मैंने प्रातः लोगों को सम्बोधित किया और उसी शाम मेरी पत्नी चल बसी। दूसरे दिन, जो मुझ से कहा गया था, मैंने वही किया।
19) लोगों ने मुझ से कहा, ''हमें बताइए कि हमारे लिए आपके आचरण का क्या अर्थ है''।
20) मैंने उत्तर दिया, ''प्रभु ने मुझ से यह कहा :
21) इस्राएलियों से कहो- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है। मैं अपने मन्दिर को अपवित्र कर दूँगा, जो तुम्हारे घमण्ड का कारण है। वह तुम्हारी आँखों की ज्योति और तुम्हारी आत्माओं को प्रिय है। तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ, जिन्हें तुम छोड़ गये हो, तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे।
22) तब तुम लोगों को वही करना होगा, जो मैंने किया। तुम अपना मुँह मत ढको और लोग जो रोटी तुम्हें देने आते हैं, उसे मत खाओ।
23) अपनी पगड़ी बाँधे रखो और जूते पहने रहो। तुम शोक नहीं मनाओ और नहीं रोओ। तुम अपने पापों के कारण गल जाओगे और एक दूसरे के सामने कराहते रहोगे।
24) एजेकिएल तुम्हारे लिए एक चिन्ह है। उसने जैसा किया, तुम लोग ऐसा ही करोगे। उस समय तुम जान जाओगे कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।
25) ''और तुम मानवपुत्र! जिस दिन मैं उन से उनका आश्रय, उनका उल्लास और गौरव, उनकी आँखों की ज्योति, उनके हृदय का आनंद और उनके पुत्र-पुत्रियाँ छीन लूँगा,
26) उस दिन एक भगोड़ा तुम्हारे यहाँ समाचार देने आयेगा।
27) उस दिन तुम अपना मूँह उस भगोड़े के सामने खोलोगे, तुम बोलोगे, गँूगे नहीं रह जाओगे। इस प्रकार तुम उन लोंगों के लिए एक चिन्ह होगे और वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

अध्याय 25

1) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
2) ''मानवपुत्र! अम्मोनियों की ओर अपना मुँह कर उनके विषय में यह भविष्यवाणी करो।
3) अम्मोनियों से कहा, 'प्रभु-ईश्वर की यह वाणी सुनो। प्रभु-ईश्वर यह कहता है- जब मेरे मन्दिर को अपवित्र किया गया, जब इस्राएल की भूमि को उजाड़ा गया और जब यूदा का घराना निर्वासित किया गया, तो तुमने ''अहा! कहा।
4) इसलिए मैं तुम्हें पूर्व देशवासियों के अधिकार में कर दूँगा। वे तुम्हारे यहाँ अपने खेमे डालेंगे और तुम्हारे बीच बस जायेंगे। वे तुम्हारी उपज खायेंगे और तुम्हारा दूध पियेंगे।
5) मैं रब्बा को ऊँटों का चरागाह और अम्मोनियों के नगरों को भेड़शाला बना दूँगा। तब तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
6) ''प्रभु-ईश्वर कहता है- तुमने इस्राएल देश के विरुद्ध तिरस्कारपूर्वक तालियाँ बजायीं, पैर पटके और खुशियाँ मनायीं;
7) इसलिए मैं तुम पर अपना हाथ उठाऊँगा और तुम्हें लूटे जाने के लिए राष्ट्रों को दे दूँगा। मैं राष्ट्रों के बीच से तुम्हें निर्मूल कर दूँगा और देशों से बहिष्कृत करूँगा। मैं तुम्हारा विनाश कर दूँगा। तुम तभी यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''
8) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : 'मोआब ने कहा था- ''यूदा का घराना दूसेरे सब राष्ट्रों के सदृश है'';
9) इसलिए मैं मोआब के पार्श्वभाग को खोल दूँगा और एक छोर से दूसरे छोर तक उसके नगरों को-देश के गौरव बेत-यशिमोत, बाल-मओन और किर्यातईम को-नष्ट करूँगा।
10) मैं अम्मोनियों के साथ उसे भी पूर्व देशवासियों के अधिकार में कर दूँगा, जिससे राष्ट्रों के बीच उसका स्मरण तक न किया जाये।
11) मैं मोआब को दण्ड दूँगा। वे तभी यह समझेंगे कि मैं ही प्रभु हँू।''
12) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : 'एदोम ने यूदा के घराने से बदला लिया और उस से प्रतिशोध ले कर घोर अपराध किया;
13) इसलिए प्रभु-ईश्वर कहता हैः मैं एदोम पर अपना हाथ उठाऊँगा। मैं उस से मनुष्यों और पशुओं को निर्मूल कर दूँगा और उस को उजाड़ बना डालूँगा। तेमान से ले कर ददान तक उसके निवासी तलवार के घाट उतारे जायेंगे।
14) मैं अपनी प्रजा इस्राएल द्वारा एदोम से अपना बदला चुकाऊँगा। वह एदोम के साथ मेरे क्रोध और आक्रोश के अनुरूप व्यवहार करेंगे और इस से उसे मेरे प्रतिशोध का पता चल जायेगा। यह प्रभु ईश्वर की वाणी है'।''
15) ''प्रभु ईश्वर यह कहता है : फ़िलिस्तियों ने बदला लिया और स्थायी शत्रुता के कारण विनाश करने के उद्देश्य से तिरस्कार के साथ प्रतिशोध लिया;
16) इसलिए प्रभु-ईश्वर कहता हैः मैं फिलिस्तियों पर अपना हाथ उठाऊँगा, करेतियों को निर्मूल कर दूँगा और समुद्रतट के शेष लोगों का विनाश कर दूँगा।
17) मैं क्रोधावेश में उन्हें दण्ड दे कर उन से भारी बदला चुकाऊँगा। जब मैं उन से बदला चुकाऊँगा, तो वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हँू''।

अध्याय 26

1) ग्यारहवें वर्ष, महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की वाणी यह कहते सुनाई पड़ीः
2) ''मानवपुत्र! तीरुस ने येरुसालेम के विषय में यह कहा था : 'अह! राष्ट्रों का यह प्रवेशद्वार टूट गया है; इसके फाटक मेरे लिए खुले गये हैं। मैं सम्पन्न हो जाऊँगा; अब यह उजड़ गया है।'
3) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तीरुस! मैं तुम्हारे विरुद्ध हो गया हूँ और मैं तुम्हारे विरुद्ध राष्ट्रों को उमडने दूँगा, जिस तरह समुद्र अपनी लहरों को उमड़ने देता है।
4) वे तीरुस की दीवारें ढा देंगे और उसकी मीनारें गिरा देंगे। मैं उनकी धूल बुहारूँगा और उसे नंगी चट्टान बना डालँूगा।
5) वह समुद्र में जाल सुखाने का स्नान बन कर रह जायेगा; क्योंकि यह मैंने कहा है- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है। वह राष्ट्रों के लिए लूट का माल बन जायेगा।
6) और मुख्य भूमि पर उसकी पुत्रियाँ तलवार के घाट उतारी जायेंगी। वे तभी यह समझेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
7) ''यह प्रभु-ईश्वर का कहना हैः मैं तीरुस पर उत्तर दिशा से बाबुल के राजा, राजाधिराज, नबूकदनेजर द्वारा घुड़सवारों, घोडों और रथों, बहुत-से सैनिकों और जनसमूह के साथ आक्रमण कराऊँगा।
8) वह मुख्यभूमि में तुम्हारी पुत्रियों को तलवार के घाट उतारेगा। वह तुम्हारे विरुद्ध मोरचाबन्दी करेगा; वह तुम्हारे विरुद्ध टीले बनायेगा और ढालों का आवरण बनायेगा।
9) वह तुम्हारी चारदीवारी पर युद्धयंत्रों से आघात करेगा और अपनी कुल्हाड़ियों से तुम्हारी मीनारें गिरा देगा।
10) उसके घोड़ों की संख्या इतनी विशाल होगी कि उनकी धूल तुम को ढक लेगी। अश्वारोहियों, रथों और पहियों के कोलाहल से तुम्हारी दीवारें काँपने लगेंगी, जब वह तुम्हारे फाटकों में प्रवेश करेगा, जैसे कोई दरार किये हुए नगर में प्रवेश करता है।
11) वह अपने घोड़ों की टापों से तुम्हारे सभी मार्ग रौंद डालेगा। वह तुम्हारे निवासियों को तलवार से वध से करेगा और तुम्हारे विशाल स्तम्भ धरती पर लोट जायेंगे।
12) वे तुम्हारे सम्पत्ति लूट लेंगे और तुम्हारी व्यापार-सामग्री छीन लेंगे। वे तुम्हारी दीवारें नीचे गिरायेंगे और तुम्हारे सुखद घरों को नष्ट कर देंगे। वे तुम्हारे पत्थर, धरन और खँडहर समुद्र में फेंक देंगे।
13) मैं तुम्हारे गीतों का कोलाहल बन्द कर दूँगा और तुम्हारी सारंगियों का स्वर फिर कभी नहीं सुनाई पडेगा।
14) मैं तुम को एक नंगी चट्टान बना दूगा; तुम जाल सुखाने का स्थान बन जाओगे; तुम्हारा फिर पुनर्निर्माण नहीं होगा; क्योंकि यह मैंने कहा है- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
15) ''प्रभु-ईश्वर तीरुस से यह कहता हैः क्या तुम्हारे गिरने की आवाज से, जब घायल कराहेंगे, जब तुम्हारे यहाँ मारकाट मचेगी, समुद्रतट के देश नहीं काँप उठेंगे?
16) तब समुद्र के सभी शासक अपने सिंहासनों से उतर आयेंगे, अपने परिधान उतार देंगे और अपने बेलबूटेदार वस्त्र खोल देंगे। वे आतंक का वस्त्र पहनेंगे। वे भूमि पर बैठ कर हर क्षण काँपते रहेंगे और तुम को देख कर भयभीत हो जायेंगे।
17) वे तुम्होरे विषय में शोकगीत गाते हुए कहेंगेः समुद्र के बीच से तुम्हारा कैसे लोप हो गया, ओ प्रसिद्ध नगर! जो समुद्रपर महाबली थे, तुम और तुम्हारे निवासी, जिन्होंने समस्त मुख्यभूमि पर अपना आतंक फैलाया था।
18) अब तुम्हारे पतन के लिए द्वीप काँपते हैं; समुद्र के द्वीप तुम्हारे प्रस्थान पर विस्मित हैं।
19) ''क्योंकि प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः जब मैं तुम्हें एक उजाड़ नगर बनाऊँगा, उन नगरों के सदृश, जिन में कोई नहीं रहता; जब मैं तुम पर समुद्र को उमड़ने दूँगा और विशाल जलराशि तुम्हें ढक लेगी,
20) तब मैं तुम को उन लोगों के साथ नीचे ढकेल दूँगा, जो गर्त्त में उतरते हैं - पुरातन लोगों के पास; मैं तुम को अधोलोक में आदिम खँडहरों के बीच उन लोगों के साथ रहने के लिए विवश करूँगा, जो गर्त्त में उतरते हैं, जिससे न तो तुम में कोई निवास करेंगा और न जीवितों के लोक में तुम्हें फिर स्थान मिल सकेगा।
21) मैं तुम्हें आतंक का पात्र बना दूँगा और तुम्हारा पता तक न चलेगा। ढूँढ़ने पर भी कोई तुम्हें फिर कभी न पायेगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''

अध्याय 27

1) मुझे प्रभु-ईश्वर की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
2) ''मानवपुत्र! तीरुस के विषय में शोकगीत गाओ।
3) तीरुस से, जो समुद्र के प्रवेश-मार्ग पर है, जो अनेकानेक तटवर्ती देशों के लोगों के साथ व्यापार करता है, कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है- तीरुस! तुमने कहा था, ''मैं अनिन्द्य सुन्दरी हूँ''।
4) तुम्हारी सीमाएँ समुद्र की बीच हैं। तुम्हारे निर्माताओं ने तुम्हारे सौन्दर्य को अनिन्द्य बनाया।
5) उन्होंने सनीर के सनोवर वृक्षों से तुम्हारे तख्त बनाये। वे तुम्हारे मस्तूल बनाने के लिए लेबानोन से देवदार लाये।
6) बाशान के बलूत वृक्षों से उन्होंने तुम्हारी पतवारें बनायीं। उन्होंने कित्तीम के समुद्रतटों की देवदार लकड़ी से हाथीदाँत से जड़ा तुम्हारा मंच बनाया।
7) तुम्हारा पाल मिस्र की महीन बेलबूटेदार छालटी का था, जो तुम्हारी पताका था तुम्हारा चँदोवा एलीशा के समुद्रतटों के नीले और बैंंगनी वस्त्रों का था।
8) सीदोन और अरवाद के निवासी तुम्हारे केवट थे। सेमेर के निपुण व्यक्ति तुम्हारे यहाँ रहते थेः वे तुम्हारे नाविक थे
9) गेबल के नेता और उसके निपुण लोग तुम्हारे यहाँ रहते थे; वे तुम्हारी सीवनों की कलापट्टी करते थे। तुम्हारी वस्तुओं के विनिमय के लिए समुद्र की सभी नावें और उनके नाविक तुम्हारे यहाँ आते थे।
10) 'फारस, लूद और पूट के लोग तुम्हारी सेना में योद्धा थे। वे तुम्हारे यहाँ ढालें और शिरस्त्राण लटकाते थे। वे तुम्हारा गौरव बढ़ाते थे।
11) अरवाद और किलिकिया के लोग तुम्हारे प्राचीरों पर नियुक्त थे और गमाद के लोग तुम्हारी मीनारों में तेनात थे। वे तुम्हारे चारों ओर की दीवारों पर अपनी ढालें लटकाते थे। उन्होंने तुम्हारे सौन्दर्य को अनिन्द्य बनाया था।
12) ''तुम्हारी अपार और विविध संपत्ति के कारण तरशीश तुम्हारे साथ व्यापार करता था। वह तुम्हारी वस्तुओं के बदले तुम को चाँदी, लोहा, राँगा और सीसा देता था।
13) यावान, तूबल और मेशेक तुम्हारे साथ व्यापार करते थे। वे तुम्हारे व्यापार-वस्तुओं के बदले तुम को दास और काँसे के बरतन देते थे।
14) बेत-तोगरमा तुम्हारी वस्तुओं के बदले तुम को घोड़े युद्धाश्व और खच्चर देते थे।
15) ददान के लोग तुम्हारे साथ व्यापार करते थे। अनेक समुद्रतटवर्ती देश तुम्हारे प्रमुख बाजार थे। वे मूल्य के रूप में तुम को हाथीदाँत और आबनूस देते थे।
16) तुम्हारे अपार सामान के कारण ऐदोम तुम्हारे साथ व्यापार करता था। वह तुम्हारी वस्तुओं के बदले पन्ना, बैंगनी वस्त्र, बेलबूटेदार कपड़े, महीन छालटी, मूँगा और गोमेद देता था।
17) यूदा और इस्राएल देश तुम्हारे साथ व्यापार करते थे। वे बदले में मिन्नीत का गेहूँ, मोम, मधु, तेल और मरहम देते थे।
18) तुम्हारी अपार वस्तुओं, तुम्हारी विशाल और विविध सम्पत्ति के कारण दमिश्क तुम्हारे साथ व्यापार करता था। वह तुम्हारी वस्तुओं के बदले हेलबोन की अंगूरी और साहर का ऊन देता था।
19) दान और यावान, ऊजाल से, तुम्हारी व्यापार-वस्तुओं से पिटवाँ लोहे, तेजपत्ते और दारचीनी का विनिमय करते थे।
20) ददान तुमहारे साथ घुड़सवारी के नमदे का व्यापार करता था।
21) अरब और केदार के सभी पदाधिकारी तुम्हारे ग्राहक थे। वे मेमनों, मेढ़ों और बकरों का तुम्हारे साथ व्यापार करते थे।
22) शेबा और रअमा के सौदागर तुम्हारे साथ व्यापर करते थे। वे तुम्हारी वस्तुओं के बदले हर तरह की सर्वोत्तम गन्धवस्तुएँ, सभी बहुमूल्य रत्न और सोना देते थे।
23) हारान, कन्ने और एदेन, शेबा के व्यापारी, अस्सूर और किलमद के व्यापारी तुम्हारे साथ व्यापार करते थे।
24) ये तुम्हारे साथ तुम्हारे बाजारों में बढ़िया कपड़ों, नीले और बूलबूटेदार वस्त्रों, रंग-बिरंगे कालीनों और मजबूत बटी रस्सियों का व्यापार करते थे।
25) तरशीश के जहाज तुम्हारी व्यापर वस्तुओं के साथ तुम्हारे लिए यात्रा करते थे। ''समुद्रों के बीच तुम परिपूरित और अत्यधिक भार से लदे थे।
26) तुमहारे नाविक तुम्हें गहरे समुद्र में ले गये। समुद्रों के बीच पूर्वी हवा ने तुम को चकनाचूर कर दिया।
27) तुम्हारी सम्पत्ति, तुम्हारी वस्तुएँ, तुम्हारी व्यापार-सामग्री, तुम्हारे नाविक और तुम्हारे कर्णधार, तुम्हारी कलापट्टी करने वाले, तुम्हारे माल के सौदागर, और तुम्हारे यहाँ के सभी योद्धा, तुम्हारे यहाँ का समस्त जनसमुदाय तुम्हारे विनाश के दिन समुद्र के बीच डूब जायेगा।
28) तुम्हारे पोतचालकों का चीत्कार सुनकर समुद्रतट काँपेंगे।
29) तब नाविक अपने जहाजों से उतर आयेंगे, मल्लाह और समुद्र के सभी पोतचालक समुद्रतट पर खड़े हो जायेंगे।
30) वे तुम्हारे लिए ऊँचे स्वर से रोयेंगे और विलाप करेंगे। वे अपने सिर पर धूल डालेंगे और राख में लोटेंगे।
31) वे तुम्हारे कारण सिर मुड़वायेंगे और टाट ओढ़ लेंगे। वे दुखी मन से तुम्हारे लिए जोर-जोर से रोयेंगे और विलाप करेंगे।
32) वे विलाप करते हुए तुम पर शोकगीत गायेंगे और शोक प्रकट करेंगेः 'तीरुस की तरह समुद्र में पहले किसका विनाश हुआ था?
33) जब समुद्रों से तुम्हारी वस्तुएँ आती थीं, तो तुम अनेक राष्ट्रों को सन्तुष्ट करते थे। अपनी अपार सम्पत्ति और व्यापार-सामग्री द्वारा तुमने पृथ्वी के राजाओं को धनी बनाया था।
34) अब तुम समुद्र द्वारा, गहरे जल में, चकनाचूर कर दिये गये हो। तुम्हारी व्यापार-सामग्री और सभी तुम्हारे साथ डूब गये हैं।
35) समुद्रतट के देशों के निवासी तुम को देख कर विस्मित हैं : उनके शासक बुरी तरह डर गये हैं और उनके चेहरे उतरे हुए हैं।
36) राष्ट्रों के व्यापरी तुम्हारा उपहास करते हैं। तुम आतंक के पात्र बन गये हो और तुम्हारा सर्वनाश सदा के लिए हो गया है।''

अध्याय 28

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
2) ''मानवपुत्र तीरुस के शासक से कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुमने अपने घमण्ड में कहाः ''मैं ईश्वर हँू। मैं समुद्र के बीच एक दिव्य सिंहासन पर विराजमान हूँ।'' किन्तु तुम ईश्वर नहीं, बल्कि निरे मनुष्य हो। फिर भी तुम अपने को ईश्वर के बराबर समझते हो।
3) हाँ, तुम दानेल से भी बुद्धिमान हो और कोई भी रहस्य तुम से छिपा हुआ नहीं है।
4) तुमने अपनी बुद्धिमानी और सूझ-बूझ से धन कमाया और अपने कोषों में चाँदी-सोना एकत्र किया है।
5) तुम अपने व्यापार-कौशल के कारण बड़े धनी बन गये हो और इस धन के साथ-साथ तुम्हारा घमण्ड भी बढ़ गया है।
6) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है : तुम अपने को ईश्वर के बराबर समझते हो,
7) इसलिए मैं विदेशियों को, सब से निष्ठुर राष्ट्रों को तुम्हारे पास भेजूँगा। वे तलवार खींच कर तुम्हारी अपूर्व बुद्धिमानी पर आक्रमण करेंगे और तुम्हारा घमण्ड चकनाचूर कर देंगे।
8) ''वे तुम्हें अधोलोक पहुँचा देंगे और तुम समुद्र के बीच तलवार के घाट उतार दिये जाओगे।
9) जब तुम हत्यारों का सामना करोगे, तो क्या तुम ईश्वर होने का दावा करोगे? जब तुम अपने हत्यारों के हाथों पड़ जाओगे, तो तुम जान जाओगे कि तुम ईश्वर नहीं बल्कि निरे मनुष्य हो।
10) तुम विदेशियों के हाथों पड़ कर बेख़तना लोगों की मौत मरोगे, क्योंकि मैंने ऐसा कहा है। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
11) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
12) ''मानवपुत्र! तीरुस के शासक के विषय में शोकगीत गाते हुए उस से कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुम पूर्णता की मुहर, प्रज्ञा से परिपूर्ण और सर्वांगसुन्दर थे।
13) तुम ईश्वर की वाटिका अदन में रहते थे और तुम्हारे वस्त्र विभिन्न बहुमूल्य रत्नों से विभूषित थे- माणिक्य, पुखराज और हीरा, स्वर्णमणि, सुलेमानी और सूर्यकान्त, नीलम, फ़ीरोजा और मरकत से। तुम्हारे कर्णफूल और चमकियाँ सोने के थे। तुम्हारी सृष्टि के दिन उनकी भी रचना की गयी थी।
14) मैंने तुम को एक संरक्षक केरूब के साथ रख दिया था। तुम ईश्वर के पवित्र पर्वत पर रहते और दहकती चट्टानों के बीच चलते थे।
15) तुम्हारी सृष्टि के दिन से ले कर तब तक, जब तुम में पाप पाया गया, तुम्हारा आचरण निर्दोष था।
16) अपने व्यापार के विस्तार के कारण तुम्हारी चारदीवारी हिंसा से भर गयी और तुमने पाप किया। इसलिए मैंने तुम को अपमानित कर ईश्वर के पर्वत से ढकेल दिया और संरक्षक केरूब ने तुम को दहकती चट्टानों के बीच से बाहर निकाल दिया।
17) अपनी सुन्दरता के कारण तुम अहंकारी हो गये। अपने वैभव के कारण तुमने अपनी बुद्धि का दुरुपयोग किया। मैंने तुम को भूमि पर फेंक दिया; मैंने तुम को राजाओं की नजर में एक तमाशा बना दिया।
18) अपने असंख्य पापों, अपने व्यापार में बेईमानी द्वारा तुमने अपने मन्दिरों को अपवित्र कर दिया; इसलिए मैंने तुम्हारे बीच आग उत्पन्न की। उसने तुम को भस्म कर दिया और मैंने तुम को देखने वालों की आँखों के सामने पृथ्वी पर राख कर दिया।
19) वे सभी राष्ट्र, जो तुम को जानते हैं, तुम्हें देख कर विस्मित हैं। तुम आतंक के पात्र बन गये हो और तुम्हारा सर्वनाश सदा के लिए हो गया है'।''
20) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
21) ''मानवपुत्र! सीदोन की ओर मँुह करो और उसके विषय में भविष्यवाणी करो।
22) कहो, 'प्रभु-ईश्वर कहता है : सीदोन! मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ। मैं तुम्हारे बीच अपनी महिमा प्रकट करूँगा और तब से यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब मैं उस को दण्ड दूँगा और उस में अपनी पवित्रता प्रकट करूँगा।
23) मैं उसके यहाँ महामारी भेजूँगा और उसकी सड़कों पर रक्तपात मचाऊँगा हर दिशा से उसके विरुद्ध उठी तलवार से मारे हुए लोग उसके यहाँ गिर पडेंगे। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
24) तब इस्राएल के घराने के लिए उसके पड़ोसियों में, जो उसका अपमान करते हैं, कोई चुभने वाली झाड़ी या उसे दुख देने वाला काँटा नहीं रहेगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।'
25) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : जब मैं इस्राएल के घराने को उन राष्ट्रों में से, जिन में वह बिखरा हुआ है, एकत्रित करूँगा, तब मैं राष्ट्रों के सामने उसके द्वारा अपनी पवित्रता प्रकट करूँगा। वे अपने उस देश में बस जायेंगे, जिसे मैंने अपने सेवक याकूब को दिया था।
26) वे उस में सुरक्षित रहेंगे, घर बनायेंगे और दाखबारियाँ लगायेंगे। वे उस समय सुरक्षित रहेंगे, जब मैं उनके उन पडोसियों को, जो उनका अपमान करते हैं, दण्ड दूँगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु, उनका ईश्वर हूँ।''

अध्याय 29

1) दसवें वर्ष के दसवें महीने के बारहवें दिन मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी :
2) ''मानवपुत्र! मिस्र के राजा फ़िराउन की ओर मुँह कर उसके और समस्त मिस्र के विषय में यह भविष्यवाणी करो।
3) कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है : मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ, मिस्र के राजा फ़िराउन! नील की जलधाराओं के नीचे रहने वाला पंखदार सर्प, जो यह कहता है 'मेरी नील नदी मेरी अपनी है; उसकी रचना मैंने की है।''
4) मैं तुम्हारे जबड़ों में अँकुसी डालूँगा और तुम्हारे छिलके पर तुम्हारी जलधाराओं की मछलियों को चिपका दूँगा; मैं तुम्हारी जलधाराओं से तुम को तुम्हारी चमड़ी से चिपकी तुम्हारी जलधाराओं की सभी मछलियों के साथ बाहर खींच लूँगा।
5) मैं तुम्हें अपनी जलधाराओं की सभी के साथ उजाड़खण्ड में फेंक दूँगा। तुम खुले मैदान में गिर पड़ोगे, और तुम को उठा कर कोई तुम्हारा दफ़न नहीं करेगा। मैं तुम को धरती के पशुओं और आकाश के पक्षियों का आहार बना दूँगा।
6) ''तब सभी मिस्रवासी यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ। तुम इस्राएल के घराने के लिए सरकण्डे की छड़ी रहे होः
7) जब उन लोगों ने तुम को पकड़ा तो तुम उनके हाथ से टूट गये और उनके कन्धे तोड़ दिये; और जब वे तुम पर झुके, तो तुम टुकडे-टुकड़े हो गये और तुमने उनकी पीठ तोड़ दी।
8) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं तुम पर तलवार भेजूँगा और तुम्हारे यहाँ से मनुष्य और पशु को निर्मूल कर दूँगा।
9) मिस्र देश खँडहर और उजाड़ हो जायेगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ। ''क्योंकि तुमने यह कहा था, ''नील नदी मेरी अपनी है; मैंने उसकी रचना की थी''
10) इसलिए मैं तुम्हारे और तुम्हारी जलधाराओं के विरुद्ध हूँ। मैं मिगदोल से ले कर सवेने तक, कूश की सीमा तक, मिस्र देश को खँडहर और उजाड़ बना दूँगा।
11) वहाँ न तो किसी मनुष्य का चरण पड़ेगा और न किसी पशु की ही। वह चालीस वषोर्ं तक निर्जन रहेगा।
12) मैं मिस्र देश को उजाड़ देशों से भी उजाड़ बना दूँगा और उसके नगर उजाड़े गये नगरों से भी चालीस वषोर्ं तक उजाड़ बने रहेंगे। मैं मिस्रियों को राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा।
13) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः चालीस वर्ष बीतने पर मैं मिस्रियों को उन राष्ट्रों में से, जिन में वे बिखरे रहेंगे, एकत्रित करूँगा।
14) मैं मिस्रियों का भाग्य पलट दूँगा और उन्हें अपने मूल देश-पत्रोस देश वापस ले जाऊँगा, जहाँ वे एक दीन राज्य बन जायेंगे।
15) वह राज्यों में सब से दीन राज्य होगा और राष्ट्रों के बीच फिर कभी ऊपर नहीं उठेगा। मैं उसे इतना तुच्छ बना दूँगा कि वह फिर कभी राष्ट्रों पर शासन नहीं कर पायेगा।
16) वह इस्राएल के घराने के लिए फिर कभी विश्वास योग्य नहीं बनेगा, जिसे सहायता के लिए उसकी ओर देखने पर अपना अपराध याद हो आयेगा। तब वे लोग यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''
17) सत्ताईसवें वर्ष के पहले महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
18) ''मानवपुत्र! बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने अपनी सेना से तीरुस के विरुद्ध बहुत परिश्रम कराया। उस में से हर एक सिर के बाल उड़ गये और हर एक का कन्धा छिल गयाः किन्तु तीरुस के विरुद्ध किये गये परिश्रम का कोई मूल्य न तो उसे और न उसकी सेना को तीरुस से प्राप्त हुआ।
19) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है : मैं बाबूल के राजा नबूकदनेजर को मिस्र देश दे दूँगा। वह उसकी सम्पत्ति छीन कर ले जायेगा, उसे लूट लेगा और उजाड़ देगा और यही उसकी सेना का वेतन होगा।
20) मैंने उस को अपने परिश्रम के पुरस्कार के रूप में मिस्र देश दे दिया है, क्योंकि उन लोगों ने मेरे लिए श्रम किया था। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
21) ''उस दिन इस्राएल के घराने को मैं नयी शक्ति प्रदान करूँगा और उनके सामने तुम्हें बोलने का समार्थ्य दूँगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

अध्याय 30

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी :
2) ''मानवपुत्र! भविष्यवाणी करते हुए कहो, 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः विलाप करो, ''हाय, यह कैसा दिन आया!''
3) क्योंकि वह दिन निकट है, प्रभु का दिन समीप है। वह दिन बादलों का होगा, वह घड़ी राष्ट्रों की होगी।
4) मिस्र पर तलवार गिरेगी। और जब मिस्र में मारे हुए लोग धराशायी होंगे, उसकी सम्पत्ति छीन ली जायेगी और उसकी नींव तोड़ दी जायेगी, तब कूश भय से काँपेगा।
5) कूश, पूट और लूद, समस्त अरब, लीबिया और सन्धि देशों के लोग उनके साथ तलवार के घाट उतारे जायेंगे।
6) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मिस्र की सहायता करने वालों का पतन होगा और उसकी अभिमानी शक्ति का अपकर्ष हो जायेगा। मिगदोल से सवेने तक लोग तलवार के घाट उतारे जायेंगे - यह प्रभु-ईश्वर कहता है।
7) ''वह उजाड़े गये देशों से भी उजाड़ होगा और उसके नगर उजाड़ नगरों से भी अधिक उजाड़ होंगे।
8) तब वे लोग यह समझ जायेंगे कि मैं ही वह प्रभु हूँ, जब मैं मिस्र में आग लगाऊँगा और उसके सभी सहायक नष्ट हो जायेंगे।
9) ''उस दिन असावधान क्रूश को आतंकित करने मेरे यहाँ से नावों पर दूत जायेंगे और मिस्र के न्याय के दिन उन पर आशंका छा जायेगी; क्योंकि वह दिन आ ही रहा है।
10) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं बाबुल के राजा नबूकदनेजर के हाथों मिस्र का वैभव नष्ट कर दूँगा।
11) वह और उसके साथ उसकी प्रजा, जो राष्ट्रों में सब से भयंकर हैं, देश का विनाश करने के लिए लाये जायेंगे। वे मिस्र पर अपनी तलवारें खीचेंगे और मृतकों से देश पाट देंगे।
12) मैं नील की नहरों को सूखी भूमि बना दूँगा और देश को दुष्टों के हाथ बेच दूँगा। मैं विदेशियों द्वारा देश और उस में जो कुछ है, उसे उजाड़ बना दूँगा। यह मैं, प्रभु, ने कहा है।
13) '' 'प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं देवमूर्तियों को नष्ट कर दूँगा और मेमफिस की प्रतिमाओं के टुकडे-टुकड़े कर दूँगा। मिस्र में कोई शासक नहीं रह जायेगा। मैं मिस्र देश में आतंक भर दूँगा।
14) मैं पत्रोस को उजाड़ बना डालूँगा, सोअन में आग लागाऊँगा और नो को दण्ड दँूगा।
15) मैं मिस्र के गढ़ सीन पर अपना कोप बरसाऊँगा और नो के जनसमूह का विनाश करूँगा
16) मैं मिस्र में आग लगाऊँगा और सीन पीड़ा से छटपटायेगा। नो में दरार कर दी जायेगी और उस पर दिन दहाड़े आक्रमण किया जायेगा।
17) ओन और पीबेसेत के युवक तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे तथा उन्हें बन्दी बना कर ले जाया जायेगा।
18) जब में मिस्र का राजदण्ड तोड़ दूँगा, तो तहपनहेस में दिन में अँधेरा छा जायेगा। उसकी अभिमानी शक्ति समाप्त हो जायेगी। उस पर दुर्दिन छा जायेगा और उसकी पुत्रियों को बन्दी बना कर ले जाया जायेगा।
19) इस प्रकार मैं मिस्र को दण्ड दूँगा और वे लोग यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''
20) ग्यारहवें वर्ष के पहले महीने के सातवें दिन मुझे प्रभु की वाणी यह कहते सुनाई पड़ीः
21) ''मानवपुत्र! मैंने मिस्र के राजा फ़िराउन की भुजा तोड़ दी है और चंगा करने के लिए उस पर कोई मरहम-पट्टी नहीं बँधी गयी है, जिससे वह तलवार चलाने में समर्थ हो जाये।
22) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है, 'मैं मिस्र के राजा फिराउन के विरुद्ध हो गया हूँ और उसकी भुजाएँ तोड़ डालूँगा- उसकी सामर्थ और टूटी, दोनों भुजाओं को। मैं उसके हाथ से तलवार गिर जाने दूँगा।
23) मैं मिस्र के निवासियों को राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा।
24) मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को शक्तिशाली बनाऊँगा और अपनी तलवार उसके हाथ कर दूँगा; किन्तु मैं फ़िराउन की भुजाएँ तोड़ डालूँगा और वह उसके सामने गंभीर रूप से घायल हो कर कराहेगा।
25) मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को शक्तिशाली बनाऊँगा, किन्तु फ़िराउन की भुजाएँ टूट कर गिर जायेंगी। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ, जब मैं बाबुल के राजा के हाथ में अपनी तलवार रखूँगा, वह उस से मिस्र देश पर वार करेगा।
26) और मैं मिस्र के निवासियों को राष्ट्रों में बिखेर दूँगा तथा देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा। तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''

अध्याय 31

1) ग्याहरवें वर्ष के तीसरे महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
2) ''मानवपुत्र! मिस्र के राजा फ़िराउन और उसके जनसमुदाय से यह कहो- तुम अपनी महानता में किसके सदृश हो?
3) मैं तुम्हारी तुलना लेबानोन के देवदार से करूँगा, जिसकी शाखएँ सुन्दर और छाया जंगल जैसी थी, जो बहुत ऊँचा था, जिसकी चोटी बादलों का स्पर्श करती थी।
4) जलस्त्रोत उसे सींचते थे, अगाध गर्त्त ने अपनी नदियों को उसे लगाने के स्थान के चारों ओर प्रवाहित कर, अपनी जलधाराओं के वन के सभी वृक्षों के पास भेज कर, उसे ऊँचा बनाया था।
5) अपनी टहनियों को मिलने वाले प्रचुर जल के कारण वह वन के सभ वुक्षों से लम्बा हो गया उसकी शाखाएँ बड़ी और उसकी डालियाँ लंबी हो गयी।
6) आकाश से सभी पक्षियों ने उसकी शाखाओं में अपने घोंसले बनाये उसकी डालियों के नीचे मैदान के सभी पशुओं ने अपने बच्चों को जन्म दिया और उसकी छाया में सभी राष्ट्र निवास करते थे।
7) वह अपनी विशालता में, अपनी शाखाओं के विस्तार में सुन्दर दिखाई देता था; क्योंकि उसकी जडें प्रचुर जलधाराओं तक नीचे चली गयी थीं।
8) ईश्वर की वाटिका के देवदार उसकी समता नहीं कर सकते थे; सनोवर वुक्ष उसकी शाखाओं की बराबरी करने में असमर्थ थे; उसकी शाखाओं की तुलना में चिनार वुक्ष तुच्छ थे। ईश्वर की वाटिका का कोई भी वृक्ष उसके समान सुन्दर नहीं था।
9) मैंने उसे शाखाओं की विपुलता में सुन्दर बनाया था और अदन के वे सभी वुक्ष, जो ईश्वर की वटिका में थे, उस से ईर्ष्या करते थे।
10) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है : उसकी ऊँचाई बहुत बढ़ गयी थी, उसकी चोटी बादलों तक पहुँच गयी थी और अपनी ऊचाई के कारण उसका हृदय घमण्ड से भर गया था;
11) इसलएि मैं उसे सब से शक्तिशाली राष्ट्र के हाथ कर दूँगा। वह उसे निश्चय ही उसकी दुष्टता के अनुरूप दण्ड देगा; मैंने उसका परित्याग कर दिया है।
12) राष्ट्रों में सब से क्रूर विदेशी लोग उसे काट कर छोड़ देंगे। उसकी शाखाएँ पर्वतों पर और सभी घाटियों में गिर जायेंगी और उसकी टहनियाँ टूट कर देश के सभी जलमागोर्ं पर पड़ी रहेंगी। पृथ्वी की सभी जातियाँ उसकी छाया त्याग कर चली जायेंगी।
13) उसके ठूँठ पर आकाश के सभी पक्षी बसेरा करेंगे और उसकी शाखाओं पर मैदान के सभी पशु निवास करने लगेंगे।
14) यह सब इसलिए है कि जलस्रोत के निकट का कोई भी वुक्ष बहुत ऊँचाई तक न बढ़ सके, उसकी चोटी गगनचुम्बी न हो और जल से सिंचित कोई भी वृक्ष ऊँचाई में उसके पास तक न पहुँचे; क्योंकि वे सभी मृत्यु के अधीन कर दिये गये हैं - नश्वर मानवों के बीच अधोलोक के अधीन उन लोगों के साथ, जो गर्त में उतरते हैं।
15) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : जब वह अधोलोक में उतरेगा, तो मैं गर्त्त से उस पर विलाप कराऊँगा, उसकी नदियों को बहने से रोकूँगा और जलाशयों को सुखा दूँगा। मैं उसके कारण लेबानोन पर शोक फैलाऊँगा और मैदान के सभी वृक्ष उसके कारण मुरझा जायेंगे।
16) जब मैं उसे उन लोगों के साथ, जो गर्त में उतरते हैं, अधोलोक में ढकेलूँगा, तो उसके गिरने की आवाज से राष्ट्रों को कँपा दूँगा। अदन के सभी वृक्ष, लबानोन के चुने हुए और सर्वात्तम वृक्ष जो जल से सिंचित होते हैं, अधोलोक में प्रसन्न होंगे।
17) उसके साथ वे लोग भी उनके पास अधोलोक जायेंगे, जिन्हें तलवार के घाट उतारा गया है। वे, जो राष्ट्रों के बीच उसकी छाया में निवास करते थे, नष्ट हो जायेंगे।
18) तो तुम महिमा और महानता में अदन के वृक्षों में किसके सदृश हो? तुम अदन के वुक्षों के साथ अधोलोक में ढकेल दिये जाओगे। तुम बेखतना और तलवार के घाट उतारे हुए लोगों के बीच पड़े रहोगे। ''फिराउन और उसकी विशाल प्रजा का हाल यही होगा। -यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''

अध्याय 32

1) बाहरवें वर्ष के बारहवें महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
2) ''मानवपुत्र! मिस्र के राजा फ़िराउन के विषय में यह शोकगीत गाते हुए उस से कहोः तुम अपने को राष्ट्रों में युवा सिंह समझते हो; तुम समुद्र के पंखदार सर्प-जैसे हो। तुम अपनी ही नदियों में छपछपाते हो, अपने पैरों से जल कँपाते और उनकी नदियों को गँदला करते हो।
3) प्रभु-ईश्वर यह कहता है : विभिन्न जातियों के समूह के बीच मैं तुम पर अपना जाल फैलाऊँगा और तुम्हें फन्दे में फँसा कर खींच लूँगा।
4) मैं तुम्हें जमीन पर पटक दूँगा, खुले खेतों में फेंक दूँगा। मैं आकाश के सभी पक्षियों को तुम पर बैठाऊँगा और समस्त पृथ्वी के पशुओं को तुम्हें खा कर तृप्त हो जाने दूँगा।
5) मैं तुम्हारा मांस पर्वतों पर बिखेर दूँगा और तुम्हारे शव से घाटियों को भर दूँगा।
6) मैं पर्वतों के ऊपर तक की भूमि को तुम्हारे बहते हुए रक्त से सींच दूँगा और जलमार्ग तुम से भर जायेंगे।
7) तुम्हें मिटान के बाद आकाश को ढ़ँक दूँगा और उसके तारों को ज्योतिहीन बना दूँगा; मैं सूर्य को मेघों से आच्छादित करूँगा और चन्द्रमा प्रकाशहीन हो जायेगा।
8) मैं आकाश के सभी ज्येतिपिण्डों को तुम्हारे कारण धुँधला दूँगा। और तुम्हारे देश पर अन्धकार फैलाऊँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
9) ''जब मैं राष्ट्रों में, तुम्हारे लिए अनजान देशों में, तुम को बन्दी बना कर ले जाऊँगा, तो मैं अनेकानेक जातियों के हृदय में बेचैनी भर दूँगा
10) जब मैं उनके सामने अपनी तलवार चलाने लगूँगा, तो तुम को देख कर बहुत-सी जातियाँ डर जायेंगी और तुम्हारे कारण उनके राजा काँपने लगेंगे। तुम्हारे पतन के दिन उन में से प्रत्येक अपनी प्राणों के भय से हर क्षण काँपेगा।
11) प्रभु-ईश्वर का यह कहना है : तुम पर बाबुल के राजा की तलवार टूट पडेगी।
12) मैं उन शक्तिशाली लोगों की तलवार से, जो राष्ट्रों में सब से अधिक भयानक हैं, तुम्हारे जनसमूह का वध कराऊँगा। वे मिस्र का घमण्ड धूल में मिला देंगे और उसके सभी जनसमूह नष्ट हो जायेंगे।
13) मैं जलाश्यों के पास रहने वाले सब पशुओं का विनाश करूँगा। न तो मनुष्य के पाँव उन्हें फिर कभी हिलायेंगे और न पशुओं के खुर उन को आन्दोलित करेंगे।
14) तब मैं उनके जल को स्वच्छ बना दूँगा और उनकी नदियों को तेल की तरह बहने दूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
15) जब मैं मिस्र को उजाड़ बना दूँगा और उस में से कुछ भी हैं, उस से उस देश को ख़ाली कर दूँगा, और उस में निवास करने वालों पर आघात करूँगा, तो वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
16) ''यह शोकगीत है, जो गाया जायेगा। इसे राष्ट्रों की पुत्रियाँ गायेंगी। वे इसे मिस्र और इसकी विशाल प्रजा के विषय में गायेंगी यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''
17) बाहरवें वर्ष के पहले महीने के पन्द्रहवें दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
18) ''मानव पुत्र! मिस्र की विशाल प्रजा के लिए विलाप करो और उन को - उस को और वैभवशाली राष्ट्रों की पुत्रियों को - अधोलोक में उनके साथ उतार दो, जो गर्त्त में चले गये हैं।
19) तुम सौन्दर्य में किस से बढ़ कर हो? नीचे जा कर बेख़तना लोगों के बीच पड़े रहो।'
20) वे उन लोगों के बीच रहेंगे, जो तलवार से मारे गये है और उसके सभी लोग उसके साथ गिर जायेंगे।
21) शक्तिशाली योद्धा और उनके सहायक अधोलोक के भीतर से उनके विषय में यह बोलेंगे, 'वे नीचे आ गये हैं; तलवार से मारे हुए बेख़तना लोग मृत पड़े हैं'।
22) ''वहाँ अस्सूर और उसके सभी साथी पड़े हैं; उसके चारों ओर उनकी क़बें्र हैं, जो तलवार के घाट उतारे जा कर मृत पड़े हैं।
23) जिनकी कब्रें गर्त्त के सुदूर भागों में बनायी गयी हैं और उसके साथी उसकी क़ब्र के चारों ओर रहते हैं। उन में सब-के-सब तलवार के घाट उतारे जा कर मृत पड़े हैं, जो जीवलोक में आतंक मचाये हुए थे।
24) ''उसकी कब्र के चारों ओर एलाम और उसकी प्रजा हैं। उन में सब-के-सब तलवार के घाट उतारे जा कर मृत पड़े हैं। वे बेख़तना हो कर अधोलोक जा चुके हैं। वे जीवलोक में आतंक मचाने और गर्त्त में प्रवेश करने वालों के साथ उपयक्ष भोग रहे हैं।
25) उन्होंने उस को वध किये हुए लोगों के बीच लिटा दिया है, उसके प्रजाजनों के बीच, जिनकी कब्रें उसके चारों ओर हैं। वे सभी बेख़तना हैं और तलवार से मारे गये हैं, क्योंकि उन्होंने जीवलोक में आतंक मचा रखा था। वे उन लोगों के साथ अपयश भोग रहे है, जो गर्त्त में उतरते हैं। वे वध किये हुए लोगों के बीच पड़े हैं।
26) वहाँ मेशक और तूबल अपने सभी लोगों के साथ विद्यमान हैं। उनकी कब्रें उनके चारों ओर हैं। वे सब-के-सब बेख़तने हैं, जो तलवार से मारे गये हैं। वे जीवितों के देश में आतंक मचाते थे।
27) उन्हें प्राचीन काल के मृत महाबली लोगों के बीच स्थान नहीं मिला है, जो अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ अधोलोक गये थे, जिनकी तलवारें उनके मस्तक के नीचे रखी गयी थीं और जिनकी ढालें उनकी अस्थियों के ऊपर रखी हुई हैं; क्योंकि उन महाबली लोगों ने जीवलोक में आतंक मचा रखा था।
28) किन्तु तुम बेखतने लोगों के बीच टुकड़े-टुकड़े किये जाओगे और तलवार से वध किये लोगें के साथ पड़े रहोगे।
29) वहाँ एदोम, उसके राजा और उसके सभी पदाधिकारी हैं, जो अपनी समस्त वीरता के बावजूद उन लोगों के साथ पड़े हैं, जो तलवार से मारे गये थे। वे बेख़तना लोगों के साथ, उन लोगों के साथ पड़े हैं, जो गर्त्त में जाते हैं।
30) ''वहाँ उत्तर के सभी पदाधिकारी हैं और सभी सीदोनवासी भी, जो वध किये गये लोगों के साथ अपनी शक्ति द्वारा फैलाये गये आंतक के कारण नीचे गये हैं। वे तलवार से मारे गये लोगों के साथ बेखतना पड़े हैं और उनका अपयश भोगते हैं, जो गर्त्त में जाते हैं।
31) ''फिराउन उन्हें देखेगा, तो उसे अपने सभी लोगों के विषय में सान्त्वना मिलेगी - फ़िराउन और उसकी सभी सैनिक तलवार से मारे जायेंगे। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
32) उसने जीवलोक में अपना आंतक फैला रखा था, इसलिए वह-अपने सभी सैनिकों-सहित फिराउन-बेख़तना और तलवार से मारे गये लोगों के बीच डाल दिया जायेगा। यह प्रभु ईश्वर की वाणी है।''

अध्याय 33

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
2) ''मानवपुत्र! अपने लोगों से बात कर यह कहो- यदि मैं किसी देश पर तलवार भेजता हूँ और उस देश के लोग अपने बीच से किसी व्यक्ति को चुन कर उसे अपना पहरेदार नियुक्त करते हैं:
3) यदि वह व्यक्ति देश पर तलवार आते देखता और तुरही बजा कर लोगों को चेतावनी देता है,
4) तो यदि तुरही की आवाज सुन कर कोई चेतावनी पर ध्यान नहीं देता और तलवार आ कर उसका वध कर देती हैं, तो अपनी मृत्यु के लिए वह स्वयं उत्तरदायी होगा;
5) उसने तुरही की आवाज सुनकर भी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। अपनी मृत्यु के लिए वह स्वयं उत्तरदायी होगा; किन्तु यदि उसने चेतावनी पर ध्यान दिया होता, तो उसका जीवन सुरक्षित रह जाता।
6) पर यदि वह पहरेदार तलवार आते देख कर भी तुरही नहीं बजाता, जिससे लोग सावधान हो जायें और तलवार आ कर किसी का वध कर देती है, तो भले ही वह अपने पाप के कारण मर जायेगा, किन्तु वह पहरेदार उनकी मृत्यु के लिए उत्तरदायी होगा।
7) ''मानवपुत्र! मैंने तुम को इस्राएल के घराने का पहरेदार नियुक्त किया है। तुम मेरी वाणी सुनोगे और इस्रएलियों को मेरी ओर से चेतावनी दोगे।
8) यदि मैं किसी दुष्ट से कहूँ, 'दुष्ट तू मर जायेगा' और तुम कुमार्ग छोड़ने के लिए उसे चतावनी नहीं दोगे, तो वह अपने पाप के कारण मर जायेगा, किन्तु तुम उसकी मृत्यु के लिए उत्तरदायी होगे।
9) और यदि तुमने कुमार्ग छोड़ने के लिए उसे चेतावनी दी और उसने नहीं छोड़ा, तो वह अपने पाप के कारण मर जायेगा, किन्तु तुम्हारा जीवन सुरक्षित रह जायेगा।
10) ''मानवपुत्र! इस्राएल के घराने से तुम यह कहोगे- तुम लोगों ने कहा हैः 'हम अपने अपराधों और पापों के बोझ से दब गये हैं और हम उनके कारण नष्ट हो रहे हैं, तो हम कैसे जीवित रह सकते हैं?''
11) उन से कहोगे-प्रभु-ईश्वर यह कहता हैं : अपने अस्तित्व की शपथ! मुझे दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्नता नहीं होती, बल्कि इस से होती है कि दुष्ट अपना कुमार्ग छोड़ दे और जीवित रहे। अपना दुराचरण छोड़ दो, छोड़ दो; क्योंकि इस्राएल के घराने! तुम क्यों मर जाते?
12) ''मानवपुत्र! तुम अपने लोगों से यह कहोगे- धर्मी की धार्मिकता, उसके पाप करने पर, उसे नहीं बचा पायेगी और दुष्ट की दुष्टता, उसके दुष्टता छोड़ देने पर, उसके विनाश का कारण नहीं बनेगी और पाप करने पर धर्मी अपनी धर्मिकता के कारण जीवित नहीं रह सकेगा।
13) यद्यपि मैं धर्मी से कहता हूँ कि वह अवश्य जीवित रहेगा, फिर भी यदि वह अपनी धार्र्मिकता के भरोसे पाप करता है, तो उसका कोई भी सत्कर्म स्मरण नहीं रखा जायेगा, बल्कि उस पाप के कारण, जो उसने किया है, उसकी मृत्यु हो जायेगी।
14) यद्यपि मैं दुष्ट से यह कहता हूँ, 'तुम अवश्य मरोगे', फिर भी यदि वह कुमार्ग छोड़ देता और न्याय और सत्य का आचरण करता है;
15) यदि दुष्ट बन्धक लौटा देता, लूटा हुआ सामान वापस कर देता, जीवन प्रदान करने वाले नियमों का पालन करता और पाप का परित्याग करता है, तो वह निश्चय ही जीवित रहेगा, वह नहीं मरेगा।
16) उसके द्वारा किये गये पापों में से किसी को भी याद नहीं रखा जायेगा। उसने न्याय और सत्य का आचरण किया है; वह अवश्य जीवित रहेगा।
17) ''तब भी तुम्हारे लोग यह कहते हैं, 'प्रभु का मार्ग न्यायसंगत नहीं है' जब कि स्वयं उनका मार्ग न्यायसंगत नहीं है।
18) जब धर्मी धर्मिकता छोड़ कर पाप करता, तो इसके कारण उसकी मृत्यु हो जायेगी।
19) किन्तु यदि दुष्ट कुमार्ग छोड़ देता और न्याय और सत्य का आचरण करता है, तो वह इसके कारण जीवित रेहेगा।
20) तब भी तुम यह कहते हो, 'प्रभु का न्याय न्यायसंगत नहीं है'। इस्राएल के घराने! मैं तुम लोगों में से प्रत्येक का उसके आचरण के अनुसार न्याय करूँगा।''
21) हमारे निर्वासन के बारहवें वर्ष के दसवें महीने के पाँचवे दिन एक व्यक्ति, जो येरुसालेम से भाग निकला था, मेरे पास आया और यह बोला, ''नगर का पतन हो गया है''।
22) उस भगोड़े के आने से पहले ही सन्ध्या समय प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ चुका था और उसने उस आदमी के आने से पहले ही प्रातः काल मेरा मुँह खोल दिया और मेरा गूँगापन जाता रहा।
23) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
24) ''मानवपुत्र! इस्राएल देश के इन उजाड़खण्डों के निवासी यह कहा करते है, 'इब्राहीम तो अकेले थे, तब भी उन्होंने इस देश पर अधिकार कर लिया। किन्तु हमारी संख्या तो बहुत अधिक है; निश्चय ही यह देश हमें अधिकार में करने के लिए मिला है।'
25) इसलिए उन लोगों से यह कहो- प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुम रक्त-सहित मांस खाते हो, अपनी देवमूर्तियों पर भरोसा करते और रक्त बहाते हो। क्या तब भी तुम इस देश पर अधिकार करते?
26) तुम तलवार उठा लेते हो। तुम घृणित कार्य करते हो और तुम में से प्रत्येक अपने पडोसी की पत्नी का शील भंग करता है। क्या तब भी तुम इस देश पर अधिकार करते?
27) ''उन से यह कहो- प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः अपने अस्तित्व की शपथ! वे लोग, जो इन उजाड़खण्डों में निवास करते हैं, निश्चित ही तलवार के घाट उतारे जायेंगे और मैं उस व्यक्ति को, जो खुले मैदान में निवास करता है, जानवरों का आहार बनने दूँगा और वे लोग, जो किलों और गुफाओं में निवास करते हैं, महामारी से मरेंगे।
28) मैं देश को निर्जन और उजाड़ बना दूँगा, उसकी शक्ति का गर्व समाप्त हो जायेगा और इस्राएल के पर्वत इतने उजाड़ हो जायेंगे कि उन से हो कर कोई नहीं गुजरेगा।
29) जब मैं उनके द्वारा किये हुए वीभत्स कर्मों के कारण देश को निर्जन और उजाड़ बना दूँगा, तब वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
30) ''मानवपुत्र! तुम्हारे देशवासी घरों की दीवारों और दरवाजों के सामने तुम्हारी चर्चा करते हैं। वे एक दूसरे से कहते हैं, 'चल कर सुनो कि प्रभु की वाणी कया है'।
31) इसके बाद वे तुम्हारे पास उसी प्रकार आते हैं, जिस प्रकार लोग आया करते हैं और वे मेरी प्रजा की तरह तुम्हारे सामने बैठते हैं तथा तुम्हारी वाणी सुनते, किन्तु उस पर नहीं चलतेः क्योंकि वे मुह से मीठी बातें करते हैं, लेकिन उनका हृदय स्वार्थ में लिप्त है।
32) देखो तुम उनकी दृष्टि में उस व्यक्ति की तरह हो, जो मधुर स्वर में प्रेमगीत गाता और निपुणता से वाद्ययंत्र बजाता है; क्योंकि वे तुम्हारी वाणी सुनते, किन्तु उस पर नहीं चलते।
33) जब यह पूरा होगा- और यह अवश्य पूरा होगा - तो वे यह समझ जायेंगे कि उनके बीच एक नबी विद्यमान था।

अध्याय 34

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
2) ''मानवपुत्र! इस्राएल के चरवाहों के विरुद्ध भविष्यवाणी करो। भविष्यवाणी करो और उन से कहोः चरवाहो! प्रभु-ईश्वर यह कहता है! धिक्कार इस्राएल के चरवाहों को! वे केवल अपनी देखभाल करते हैं। क्या चरवाहों को झुुण्ड की देखवाल नहीं करनी चाहिए।
3) तुम भेड़ों का दूध पीते हो, उनका ऊन पहनते और मोटे पशुओं का वध करते हो, किन्तु तुम भेड़ों को नहीं चराते।
4) तुमने कमजोर भेड़ों को पौष्टिक भोजन नहीं दिया, बीमारों को चंगा नहीं किया, घायलों के घावों पर पटटी नहीं बाँधी, भूली-भटकी हुई भेड़ों को नहीं लौटा लाये और जो खो गयी थीं, उनका पता नहीं लगाया। तुमने भेड़ों के साथ निर्दय और कठोर व्यवहार किया है।
5) वे बिखर गयी, क्योंकि उन को चराने वाला कोई नहीं रहा और वे बनैले पशुओं को शिकार बन गयीं।
6) मेरी भेड़ें सब पर्वतों और ऊँची पहाडियों पर भटकती फिरती हैं: वे समस्त देश में बिखर गयी हैं, और उनकी परवाह कोई नहीं करता, उनकी खोज में कोई नहीं निकलता।
7) ''इसलिए चरवाहो! प्रभु की वाणी सुनो।
8) प्रभु-ईश्वर यह कहता है -अपने अस्तित्व की शपथ! मेरी भेडें, चराने वालों के अभाव में, बनैले पशुओं का शिकार और भक्ष्य बन गयी हैं: मेरे चरवाहों ने भेडों की परवाह नहीं की - उन्होंने भेडों की नहीं, बल्कि अपनी देखभाल की है;
9) इसलिए चरवाहो! प्रभु की वाणी सुनों।
10) प्रभु यह कहता हैं; मै उन चरवाहों का विरोधी बन गया
11) ''क्योंकि प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं स्वयं अपनी भेड़ों को सुध लूँगा और उनकी देखभाल करूँगा।
12) भेड़ों के भटक जाने पर जिस तरह गडेरिया उनका पता लगाने जाता है, उसी तरह में अपनी भेडें खोजने जाऊँगा। कुहरे और अँधेरे में जहाँ कहीं वे तितर-बितर हो गयी हैं, मैं उन्हें वहाँ से छुडा लाऊँगा।
13) मैं उन्हें राष्ट्रों में से निकाल कर और विदेशों से एकत्र कर उनके अपने देश में लौटा लाऊँगा। मैं उन्हें इस्राएल के पहाड़ों पर, घाटियों में और देश भर के बसे हुए स्थानों पर चाराऊँगा।
14) मैं उन्हें अच्छे चरागाहों में ले चलूँगा। वे इस्राएल के पर्वतों पर चरेंगी। वहाँ वे अच्छे चरागाहों में विश्राम करेंगी और इस्राएल के पर्वतों की हरी-भरी भूमि में चरेगी।
15) प्रभु कहता है - मैं स्वयं अपने भेडंे चराऊँगा और उन्हें विश्राम करने की जगह दिखाऊँगा।
16) जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं उन्हें खोज निकालूँगा; जो भटक गयी हैं, मैं उन्हें लौटा लाऊँगा; घायल हो गयी हैं, उनके घावों पर पट्टी बाँधूगा; जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूँगा; जो मोटी और भली-चंगी हैं, उनकी देखरेख करूँगा। मैं उनका सच्चा चरवाहा होऊँगा।
17) ''मेरी भेड़ो! तुम्हारे विषय में प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं एक-एक कर के भेड़ों, मेढो और बकरों का- सब का न्याय करूँगा।
18) क्या तुम्हारे लिए यही काफ़ी नहीं कि तुम अच्छे चरागाहों में चरो और अपने चरागाहों का शेष भाग अपने पाँवों से रौंदो, स्वच्छ पानी पियो और शेष पानी अपने पाँवों से मथ दो?
19) क्या मेरी भेडंे तुम्हारे पैरों से रौंदे चरागाहों में चरे और तुम्हारे पाँवों से मथा पानी पिये?
20) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर उन से यह कहता है- मोटी और दुबली भेड़ों का मैं ही न्याय करूँगा।
21) तुम तब तक सभी कमजोर भेड़ों को अपनी बग़ल और कन्धे से धक्के देती और अपने सींगों से मारती जाती हो, जब तक तुम उन्हें बाहर नहीं भगा देतीं।
22) इसलिए मैं अपनी भड़ों की रक्षा करूँगा और वे कभी दूसरों की शिकार नहीं होंगी और मैं भेड़ और भेड़ के बीच न्याय करूँगा।
23) मैं उनके लिए एक चरवाहे, अपने सेवक दाऊद को नियुक्त करूँगा और वह उन को चरायेगा और उनका चरवाहा होगा।
24) मैं, प्रभु, उनका ईश्वर होऊँगा और मेरा सेवक दाऊद उनका शासक होगा। यह मैं, प्रभु ने कहा है।
25) ''मैं उनके साथ शान्ति का विधान स्थापित करूँगा तथा देश से बनैले पशुओं का निकाल बाहर करूँगा, जिससे वे उजाड़खण्ड में सुरक्षित रह सकें और जंगलों में सो सकें।
26) मैं उन को और अपनी पहाड़ी के चारों ओर के स्थानों को आशीर्वाद दूँगा; मैं समय पर वर्षा कराऊँगा; वह आशीर्वाद की वर्षा होगी।
27) भूमि के वृक्ष अपने फल प्रदान करेंगे, पृथ्वी अपनी उपज देगी और वे अपने देश में सुरक्षित रहेंगी। जब मैं उनका जूआ तोड़ दूँगा और उनके हाथ से मुक्त कर दूँगा, जिन्होंने उन्हें दास बनाया था, तो वे यह समझेंगी कि मैं ही प्रभु हूँ।
28) वे फिर कभी राष्ट्रों की शिकार नहीं बनेगी, न ही देश के पशु उन्हें अपना आहार बनायेंगे। वे सुरक्षित हो कर निवास करेंगी और कोई उन्हें डरा नहीं सकेगा।
29) मैं उन्हें प्रसिद्ध उद्यान दूँगा, जिससे वे फिर कभी देश में भूखों नहीं मरेगी और न उन्हें राष्ट्रों के अपमान सहना पड़ेगा।
30) तब वे यह समझ जायेंगी कि मैं, उनका प्रभु-ईश्वर, उनके साथ हूँ और कि वे, इस्राएल का घराना, मेरी प्रजा हैं। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
31) तुम्हीं मेरे भेड़ें हो- मेरे चरागाह की भेड़ें और मैं तुम्हारा ईश्वर हूँ। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी हं।''

अध्याय 35

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
2) ''मानवपुत्र! सेईर पर्वत की ओर मुँह कर उसके विरुद्ध भविष्यवाणी करो।
3) उस से कहोः प्रभु-ईश्वर कहता है- सेईर पर्वत! मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ। मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना हाथ उठाऊँगा और तुम्हें निर्जन और उजाड़ बना दूँगा।
4) मैं तुम्हारे नगरों को खँडहर बना दूँगा और तुम उजाड़ हो जाओगे। तब तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
5) तुम मन में सदैव शत्रुता पालते थे और तुमने इस्राएल के लोगों को उनके संकट के समय, उनके अन्तिम दण्ड के समय तलवार की शक्ति के सामने कर दिया।
6) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! मैं तुम्हें रक्त बहाने के लिए तैयार करूँगा और रक्त तुम्हारा पीछा करेगा; क्योंकि तुम रक्तपात के दोषी हो, इसलिए रक्त तुम्हारा पीछा करेगा।
7) मैं सेईर पर्वत को निर्जन और उजाड़ बना दूँगा और वहाँ आने जाने वाले लोगों को उसके बीच से नष्ट कर दूँगा
8) तथा मैं तुम्हारे पर्वतों को मृतकों से पाट दूँगा; मारे हुए लोग तुम्हारी पहाड़ियों और घाटियों और तुम्हारे सभी खड्डों में गिर पड़ेंगे।
9) मैं तुम्हें सदा के लिए उजाड़ बना दूँगा और तुम्हारे नगरों में कोई निवास नहीं करेगा। तब तुम यह समझ जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
10) ''वस्तव में तुमने कहा था, 'ये दोनों राष्ट्र और ये दोनों देश मेरे हो जायेंगे और हम इन पर अधिकार कर लेंगे, - हालाँकि प्रभु वहाँ विद्यमान था -
11) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- अपने अस्तित्व की शपथ! मैं तुम्हारे साथ उसी क्रोध और ईर्ष्या से व्यवहार करूँगा, जो तुमने उनके प्रति घृणा के कारण उन पर प्रकट की थी। मैं तुम पर अपने प्रकट करूँगा, जब मैं तुम्हारा न्याय करूँगा।
12) और तुम यह जान जाओगे कि मैं, प्रभु ने तुम्हारे वे सभी अपशब्द सुने हैं, जो तुमने इस्राएल के पर्वतों के विरुद्ध कहे हैं, 'वे उजाड़ हो गये हैं, वे हमें हडपने के लिए दे दिये गये हैं'।
13) तुमने अपने मुँह से मेर विरुद्ध डींग हाँकी हैं और मेरे विषय में लगातार अपशब्द कहे हैं; मैंने उन्हें सुना है।
14) प्रभु-ईश्वर यह कहता है : समस्त संसार के आनन्द मनाने के लिए मैं तुम को उजाड़ बना दूँगा।
15) तुमने इस्राएल के घराने की विरासत पर इसलिए आनन्द मनाया कि वह उजाड़ थी, इसलिए मैं तुम्हारे साथ वही करूँगा। सेईर पर्वत! और समस्त एदोम! तुम भी एकदम उजाड़ हो जाओगे। तभी तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

अध्याय 36

1) ''मानवपुत्र! इस्राएल के पर्वतों से भविष्यवाणी करो यह कहो - इस्राएल के पर्वतो! प्रभु की यह वाणी सुनो।
2) प्रभु-ईश्वर यह कहता है : शत्रुओं ने तुम्हारे विषय में 'अहा-हा!' और 'प्राचीन पर्वत हमारे अधिकार में आ गये हैं' - यह कहा;
3) इसलिए भविष्यवाणी करते हुए कहो- प्रभु ईश्वर कहता है : हाँ, क्योंकि उन्होंने तुम्हें उजाड बनाया और सब ओर से तुम को कुचला, जिसमें तुम अन्य राष्ट्रों की सम्पत्ति बन गये और लोगों के बीच चर्चा और उपहास के विषय हो गये;
4) इसलिए इस्राएल के पर्वतों! प्रभु-ईश्वर की यह वाणी सुनो। पर्वतों और पहाड़ियों, खड्डों और घाटियों, निर्जन उजाड़खण्डों और परित्यक्त नगरों से? जो आसपास के अन्य सभी राष्ट्रों के शिकार और उपहास के पात्र बन गये हैं, प्रभु-ईश्वर यह कहता है।
5) इसलिए प्रभु-ईश्वर कहता हैः मैं अन्य सभी राष्ट्रों और समस्त एदोम के विरुद्ध क्रोध के आवेश में यह कहता हूँ। उन्होंने हार्दिक प्रसन्नता और भारी घृणा के साथ मेरा देश उनके अधिकार में दे दिया, जिससे वे उसे लूटें।
6) इसलिए इस्राएल देश के विरुद्ध भविष्यवाणी करो तथा पर्वतों और पहाड़ियों, खड्डों और घाटियों से कहो प्रभु-ईश्वर यह कहता है : मैं अपने ईर्ष्यालु क्रोध के साथ कहता हूँ क्योंकि तुम्हें राष्ट्रों का अपमान सहना पड़ा है।
7) इसलिए प्रभु-ईश्वर कहता हैः मैं यह शपथपूर्वक कहता हूँ कि तुम्हारे आसपास के राष्ट्रों को भी अपमान सहना होगा।
8) ''इस्राएल के पर्वतों! तुम्हारी शाखाएँ फूटेंगी और तुम मेरी प्रजा इस्राएल को अपने फल प्रदान करोगे, क्योंकि वह शीघ्र ही अपने देश लौटेंगी।
9) देखों, मैं तुम्हारे पक्ष में हूँ और तुम्हारी ओर अभिमुख हूँगा तथा तुम को जोता और बोया जायेगा।
10) मैं तुम पर लोगों की, इस्राएल के समस्त घराने की संख्या बढ़ाऊँगाः नगर फिर बसेंगे और उजाड़े स्थानों का पुनर्निर्माण होगा।
11) मैं तुम पर मनुष्यों और पशुओं की संख्या बढाऊँगा। उनकी संख्या बढती जायेगी और वे फलेंगे-फूलेंगे। मैं प्राचीन काल की तरह तुम्हें फिर बसाऊँगा और तुम्हारी पहले से कहीं अधिक भलाई करूँगा। तब तुम यह जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
12) मैं तुम लोगों को, स्वयं अपनी प्रजा इस्राएल को चलने दूँगा। उनका तुम पर अधिकार होगा और तुम उनकी विरासत होगे और तुम उन्हें फिर कभी निःसन्तान नहीं बनाओगे।
13) प्रभु-ईश्वर यह कहता है : लोग तुम से यह कहते हैं, ''तुम मनुष्यों को खाते और स्वयं अपने राष्ट्र को निःसन्तान बनाते हो';
14) इसलिए तुम फिर कभी मनुष्यों का आहार नहीं करोगे और अपने राष्ट्र को निःसन्तान नहीं बनाओगे- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है-
15) और मैं तुम्हें राष्ट्रों की निंदा फिर कभी सुनने नहीं दूँगा और तुम्हें फिर कभी राष्ट्रों का अपमान नहीं सहना पड़ेगा। मैं फिर कभी तुम्हारे राष्ट्र को निःसन्तान बनने नहीं दूँगा। यह प्रभु-ईश्वर को वाणी है।''
16) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
17) ''मानवपुत्र! इस्राएल के लोगों ने, अपनी निजी देश में रहते समय, उसे अपने आचरण और व्यवहार से अशुद्ध कर दिया। मेरे सामने उनका आचरण रजस्वला स्त्री की अशुद्धता-जैसा था।
18) उन्होंने देश में रक्त बहा कर और देवमूर्तियों को स्थापित कर उसे अपवित्र कर दिया, इसलिए मैंने उन पर अपना क्रोध प्रदार्शित किया।
19) मैंने उन्हें राष्ट्रों में तितर-बितर कर दिया और वे विदेशों में बिखर गये। मैंने उनके आचरण और व्यवहार के अनुसार उनका न्याय किया है।
20) उन्होंने दूसरे राष्ट्रों में पहुँच कर मेरे पवित्र नाम का अनादर कराया। लोग उनके विषय में कहते थे, 'यह प्रभु की प्रजा है, फिर भी इन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा।'
21) परंतु मुझे अपने पवित्र नाम का ध्यान है, जिसका अनादर इस्राएलियों ने देश-विदेश में, जहाँ वे गये थे, कराया है।
22) ''इसलिए इस्राएल की प्रजा से कहना- प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः इस्राएल की प्रजा! मैं जो करने जा रहा हूँ वह तुम्हारे कारण नहीं करूँगा, बल्कि अपने पवित्र नाम के कारण, जिसका अनादर तुम लोगों ने देश-विदेश में कराया।
23) मैं अपने महान् नाम की पवित्रता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश में कलंक लग गया है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवित्र नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
24) ''मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से एकत्र कर तुम्हारे अपने देश वापस ले जाऊँगा।
25) मैं तुम लोगों पर पवित्र जल छिडकूँगा और तुम पवित्र हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवित्रता से और तुम्हारी सब देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा।
26) मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।
27) मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोग।
28) तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।
29) तब मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवित्रता से शुद्ध कर दूँगा। मैं अन्न प्रचुर मात्रा में उपजने का अदेश दूँगा और तुम पर कभी अकाल पडने नहीं दूँगा।
30) मैं वृक्षों के फल और खेती की उपज बढाऊँगा, जिससे तुम लोगों को राष्ट्रों के बीच अकाल का कलंक फिर कभी झेलना न पड़े।
31) तब तुम लोगों को अपने दुराचरणों और कुकमोर्ं की याद आयेगी और तुम अपने पापों और वीभत्स कमोर्ं से स्वयं घृणा करने लगोगे।
32) प्रभु-ईश्वर कहता हैः मैं ऐसा तुम्हारे कारण नहीं करूँगा। तुम यह अच्छी तरह समझ लो। इस्राएल की प्रजा! तुम अपने आचरणों के लिए लज्जा और संकोच करो।
33) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैं जिस दिन तुम लोगों को तुम्हारे सभी पापों से शुद्ध कर दूँगा उस दिन मैं नगरों को फिर से बसाऊँगा और उजड़े स्थानों का पुनर्निर्माण होगा
34) और वह भूमि, जो उजाड़ पड़ी हुई थी, वहाँ से गुजरने वाले लोगों के सामने उजाड़ दिखने के बदले, जोती जाने लगेगी।
35) तब वे लोग यह कहेंगे, 'यह भूमि, जो पहले उजाड़ थी, अदन वाटिका-जैसी हो गयी है तथा बंजर, उजाड़ और विनष्ट नगर आबाद और किलाबंद हो गये हैं'।
36) तब तुम्हारे पड़ोस के बचे हुए राष्ट्र यह जान जायेंगे कि मैं, प्रभु, ने इस विनष्ट स्थानों को पुनर्निर्माण किया और जो उजाड़ था, उसे हराभरा बनाया है। यह मैं, प्रभु, ने कहा है और मैं इसे पूरा करूँगा।
37) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैं: मैं अपने प्रति, इस्राएल की प्रजा द्वारा उसके निवासियों की संख्या भेड़ों की तरह बढाने का अनुरोध कराऊँगा।
38) जैसे बलि की भेड़ों के झुण्ड, येरुसालेम के निर्धारित पवोर्ं की भेड़ों के झुण्ड, ये वैसे ही उजड़े नगर लोगों के झुण्ड से भर जायेंगे। तब वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।''

अध्याय 37

1) प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा और प्रभु के आत्मा ने मुझे ले जा कर एक घाटी में उतार दिया, जो हड्डियों से भरी हुई थी।
2) उसने मुझे उनके बीच चारों ओर घुमाया। वे हाड्डियाँ बड़ी संख्या में घाटी के धरातल पर पड़ी हुई थीं और एकदम सूख गयी थीं।
3) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! क्या इन हाड्डियों में फिर जीवन आ सकता है?'' मैंने उत्तर दिया, ''प्रभु-ईश्र! तू ही जानता है''।
4) इस पर उसने मुझ से कहा, ''इन हाड्डियों से भविष्यवाणी करो। इन से यह कहो, 'सूखी' हड्डियो! प्रभु की वाणी सुनो।
5) प्रभु-ईश्वर इन हड्डियों से यह कहता है : मैं तुम में प्राण डालूँगा और तुम जीवित हो जाओगी।
6) मैं तुम पर स्नायुएँ लगाऊँगा तुम में मांस भरूँगा, तुम पर चमड़ा चढाऊँगा। तुम में प्राण डालूँगा, तुम जीवित हो जाओगी और तुम जानोगी कि मैं प्रभु हूँ।''
7) मैं उसके आदेश के अनुसार भविष्यवाणी करने लगा। मैं भविष्यवाणी कर ही रहा था कि एक खडखडाती आवाज सुनाई पडी और वे हाड्डिया एक दूसरी से जुडने लगीं।
8) मैं देख रहा था कि उन पर स्नायुएँ लगीं; उन में मांस भर गया, उन पर चमड़ा चढ गया, किंतु उन में प्राण नहीं थे।
9) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! प्राणवायु को सम्बोधिक कर भविष्यवाणी करो। यह कह कर भविष्यवाणी करो : 'प्रभु-ईश्वर यह कहता है। प्राणवायु! चारों दिशाओं में आओ और उन मृतकों में प्राण फूँक दो, जिससे उन में जीवन आ जाये।''
10) मैंने उसके आदेशानुसार भविष्यवाणी की और उन में प्राण आये। वे पुनर्जीवित हो कर अपने पैरों पर खड़ी हो गयी- वह एक विशाल बहुसंख्यक सेना थी।
11) तब उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! ये हड्डियाँ समस्त इस्राएली हैं। वे कहते रहते हैं- 'हमारी हड्डियाँ सूख गयी हैं। हमारी आशा टूट गय है। हमारा सर्वनाश हो गया है।
12) तुम उन से कहोगे, 'प्रभु यह कहता है : मैं तुम्हारी कब्रों को खोल दूँगा। मेरी प्रजा! में तुम लोगों को कब्रों से निकाल का इस्राएल की धरती पर वापस ले जाऊँगा।
13) मेरी प्रजा! जब मैं तुम्हारी कब्रों को खोल कर तुम लोगों को उन में से निकालूँगा, तो तुम लोग जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
14) मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया'।''
15) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते सुनाई पड़ी :
16) मानवपुत्र! एक तख्ता लो और उस पर लिखो; 'यूदा और उसके साथ रहने वाले इस्राएली'। एक दूसरा तख्ता लो और उस पर लिखो, 'यूसुफ-एफ्राईम का तख्ता-और उसके साथ रहने वाला इस्राएल का सारा घराना'।
17) तब दोनों को इस प्रकार जोड़ दो कि वे तुम्हारे हाथ में एक ही तख्ता बन जायें।
18) ''जब तुम्हारे देशवासी तुम से यह पूछेंगे, 'हमें बताइए कि इस से आपका तात्पर्य क्या है',
19) तो तुम उन्हें उत्तर दोगे : प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं यूसुफ के तख्ते को जो एफ्राईम के हाथ में है- तथा उसके साथ रहने वाले इस्राएली वंशों को ले लूँगा और उन्हें यूदा के तख्ते से जाड़ दूँगा। मैं उन्हें एक ही तख्ता बना दूँगा और वे मेरे हाथ में एक हो जायेंगे।
20) उन दो तख्तों को, जिन पर तुमने लिखा है, लोगों के सामने अपने हाथ में लिये रहो
21) और उन से कहो : प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं इस्राएलियों को उन राष्ट्रों में से इकट्ठा करूँगा, जहाँ वे चले गये हैं। मैं उन्हें चारों दिशाओं से इकट्ठा करूँगा और उन्हें उनकी निजी भूमि वापस ले जाऊँगा।
22) मैं अपने देश में तथा इस्राएल के पर्वतों पर उन्हें एक राष्ट्र बना दूँगा और एक ही राजा उन सब का राजा होगा। वे अब से न तो दो राष्ट्र होंगे और न दो राज्यों में विभाजित।
23) वे फिर घृणास्पद मूर्तिपूजा और अधर्म से अपने को दूषित नहीं करेंगे। उन्होंने मरे साथ कितनी बार विश्वासघात किया! फिर भी मैं उन सब पापों से उन्हें छुडाऊँगा और शुद्ध करूँगा वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका ईश्वर होऊँगा।
24) मेरा सेवक दाऊद उनका राजा बनेगा आर उन सबों का एक ही चरवाहा होगा। वे मरे नियमों पर चलेंगे और मेरी आज्ञाओं को विधिवत् पालन करेंगे।
25) वे और उनके पुत्र-पौत्र सदा-सर्वदा अपने पूर्वजों के देश में निवास करेंगे, जिस मैंने अपने सेवक याकूब को दे दिया है। मेरा सेवक दाऊद सदा के लिए उनका राजा होगा।
26) मैं उनके लिए शांति का विधान निर्धारित करूँगा, एक ऐसा विधान, जो सदा बना रहेंगा। मैं उन्हें फिर बसाऊँगा, उनकी संख्या बढाऊँगा और उनके बीच सदा के लिए अपना मन्दिर बनाऊँगा।
27) मैं उनके बीच निवास करूँगा, मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।
28) जब मेरा मंदिर सदा के लिए उनके बीच स्थापित होगा, तब सभी राष्ट्र यह जान जायेंगे कि मैं प्रभु हूँ, जो इस्राएल को पवित्र करता है।''

अध्याय 38

1) मुझे प्रभु की यह वाण्ी सुनाई पड़ी :
2) ''मानवपुुत्र! अब मागोग देश के गोग की ओर मुँह करो, जो मेशेक और तूबल का महाराजा है। उसके विरुद्ध भविष्यवाणी करते हुए
3) यह कहो : प्रभु-ईश्वर यह कहता है : गोग! मेशेक और तूबल के महाराजा! मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ।
4) मैं तुम को मोड़ कर तुम्हारे जबड़ों में अँकुसी डाल दूँगा और मैं तुम को और तुम्हारे सभी सैनिकों घोड़ों और घुडसावरों को- अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए विशाल समुदाय, फरियाँ और ढाल और तलवार लिये हुए सभी लोगों को- बाहर खींच लाऊँगा।
5) ढाल और शिस्त्राण धारण करने वाले फरश, क्रूश और पूट वाले भी उन्हीं के साथ होंगे।
6) गोमेर और उसके सभी सैनिक और अपने सभी सैनिकों के साथ सुदूर उत्तर का बेत-तोगरमा- अनेकानेक राष्ट्र-तुम्हारे साथ होंगे।
7) ''तुम और तुम्हारे साथ एकत्र सभी सैनिको! तैयार हो, तत्पर रहो और मेरी सेवा के लिए उद्यत हो जाओ।
8) बहुत दिन बाद तुम लोगों को आदेश दिया जायेगा। बाद के वषोर्ं में तुम लोग एक ऐसे देश जाओगे, जो युद्ध से सुरक्षित रह गया है और जहाँ विभिन्न राष्ट्रों से लोग इस्राएल के पर्वतों पर एकत्र किये गये थे, जो निरंतर उजाड़ थे। उसके लोग राष्ट्रों से वापस लाये गये थे और वे सभी अब सुरक्षित रह गये हैं।
9) तुम आंधी की तरह आ कर आक्रमण करोगे। तुम और तुम्हारी सभी सैनिक और तुम्हारे साथ के अनेकानेक राष्ट्र बादल की तरह देश पर छा जायेंगे।
10) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : उस दिन तुम्हारे मन में विचार आयेंगे और तुम एक कुचक्र रचोगे।
11) और कहोगे, 'मैं प्राचीरहीन गाँवों के देश पर आक्रमण करूँगा। मैं उन शांत लोगों पर टूट पडूँगा, जो सुरक्षित रह रहे है, जो सभी बिना प्राचीर के निवास करते और जिनके यहाँ अर्गलाएँ और फाटक नहीं हैं,
12) उन को लूट कर उसका माल ले जाने; उन उजाड़ खण्डों पर धावा बोलने, जो अब बस गये हैं; उन लोगों पर, जो विभिन्न राष्ट्रों के बीच से एकत्र किये गये, जिन्होंने पशु और धन-संपत्ति प्राप्त की हैं और जो पृथ्वी के केन्द्र में रहते हैं।
13) शाबा और ददान तथा तरशीश के व्यापारी और उसके सभी गाँव तुम से पूछेंगे, 'क्या तुम लूट का धन लेने आए हो। क्या लूट का माल ले जाने, चाँदी और सोना, पशु और धन-संपत्ति छीनने, लूटी गयी प्रचुर सामग्री को अधिकार में करने के लिए तुमने अपने सैनिक एकत्र किये हैं?
14) ''इसलिए मानवपुत्र! भविष्यवाणी करते हुए गोग से बोलो : प्रभु-ईश्वर यह कहता है- जब मेरी प्रजा इस्राएल सुरक्षित रह रही होगी, तब तुम आक्रमण करोगे।
15) तुम और तुम्हारे साथ के अनेकानेक राष्ट्र सब-के-सब घोड़े पर सवार हो कर- एक विशाल समुदाय, एक शक्तिशाली सेना- सुदूर उत्तरी भागों के तुम्हारे निवासस्थान से आ जायेंगे।
16) देश पर छा जने वाले बादल की तरह तुम मेरी प्रजा इस्राएल पर आक्रमण करोगे। मैं बाद के दिनों में अपने देश पर तुम को आक्रमण करने दूँगा, जिससे, गोग! जब मैं राष्ट्रों की आँखों के सामने तुमहारे द्वारा अपनी पवित्रता प्रमाणित करूँ, तो वे मुझे जान जायें।
17) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः क्या तुम वही नहीं हो, जिसके विषय में अपने सेवक, इस्राएल के नबियों द्वारा मैंने प्राचीन काल में कहा था, जो उन दिनों बरसों बरस यह भविष्यवाणी करते रहे कि मैं तुम से उन पर आक्रमण कराऊँगा?
18) किंतु प्रभु-ईश्वर कहता है कि जिस दिन गोग इस्राएल देश पर आक्रमण करेगा, उस दिन मरो क्रोध भड़क उठेगा।
19) अपनी ईर्ष्या और अपने प्रज्वलिज क्रोध के आवेश में मैं घोषित करता हूँ- उस दिन इस्राएल देश में भारी भूकंप आयेगा;
20) समुद्र की मछलियाँ, आकाश के पक्षी, मैदान के पशु, भूमि पर रेंगेने वाले सभी कीडे-मकोड़े, और पृथ्वी पर के सभी मनुष्य मेरे सामने काँपने लगेंगे; पहाड टूट पर गिर पडेंगे, खड़ी चट्टानें लुढ़क जायेंगी और प्रत्येक दीवार जमीन चूमने लगेगी।
21) प्रभु-ईश्वर कहता है- मैं गोग के विरुद्ध हर तरह का आतंक बुला भेजूँगा। प्रत्येक की तलवार अपने भाई के विरुद्ध हो जायेगी
22) मैं महामारी और रक्तपात द्वारा उसका न्याय करूँगा; मैं उस पर, उसके सैनिकों और उसके साथ के अनेकानेक राष्ट्रों पर घनघोर वर्षा, ओले, आग और गंधक बरसाऊँगा।
23) इस प्रकार मैं अपनी महानता और पवित्रता प्रदर्शित करूँगा तथा अनेक राष्ट्रों के सामने अपने को प्रकट करूँगा। तब वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

अध्याय 39

1) ''और मानवपुत्र! तुम गाो के विरुद्ध भविष्यवाणी करते हुए यह कहो- प्रभु-ईश्वर यह कहता है : गोग! मेशेक और तूबल के महाराजा! मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ।
2) मैं तुम्हें मोड़ कर आगे बढने की प्रेरित करूंगा और तुम्हें उत्तर के सुदूर भागों से ला कर इस्राएल के पर्वतों पर आक्रमण कराऊँगा।
3) तब मैं तुम्हारे बायें हाथ से तुम्हारा धनुष झटक कर गिरा दूँगा और तुम्हारें दाहिने हाथ से तुम्हारे तीरों को छूट कर गिरने दूँगा।
4) तुम, तुम्हारे सभी सैनिक और तुम्हारे साथ के राष्ट्र इस्राएल के पर्वतों पर मर कर गिर जायेंगे। मैं तुम को सब प्रकार के शिकारी पक्षियों और जंगली पशुओं का आहार बनाऊँगा।
5) तुम खुले मैदान में गिर जाओगे, क्योंकि यह मैंने कहा है। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
6) मैं मागोग और समुद्रतटवर्ती क्षेत्रों में सुरक्षित रहने वाले लोगों पर आग बरसाऊँगा। तब वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
7) ''मैं अपनी प्रजा इस्राएल के बीच अपना पवित्र नाम प्रकट करूँगा और फिर कभी अपने पवित्र नाम का अनादर नहीं होने दूँगा। तब राष्ट्र यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु, इस्राएल में परमापवन ईश्वर हूँ।
8) देखो, यह होने वाला है और हो कर रहेगा- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है। यह वही दिन है, जिसकी चर्चा मैंने कि है।
9) ''तब इस्राएल के नगर के निवासी बाहर निकल कर उनके अस्त्र-शस्त्रों में आग लगा देंगे, ढालो और फरियों, धनुषों और तीरों, गदाओं और बरछों को जला डालेंगे और सात वर्षों तक उनसे आग जलायेंगे।
10) जिससे उन्हें न तो मैदानों से लकडियाँ लानी होंगी और न कोई जंगल काटना पडेगा; क्योंकि वे अस्त्र-शस्त्रों से ही आग जलायेंगे। वे अपने लूटने वालों को लूटेंगे और अपने उजाडने वालों को उजाड़ेंगे। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
11) ''उस दिन मैं गोग को दफन के लिए इस्राएल में एक स्थान, समुद्र के पूर्व में अवस्थित अबारीम की घाटी प्रदान करूँगा, यात्री उस से हो कर नहीं जा सकेंगे, क्योंकि वहाँ गोग और उसके सभी सैनिक दफन किये जायेंगे। वह 'हमोन-गोग की घाटी' कहलायेगी।
12) देश को शुद्ध करने के लिए इस्राएल का घराना सात महीनों तक उन्हें दफन करता रहेगा।
13) देश के सभी लोग उन्हें दफन करेंगे। वह दिन उनका सम्मान बढायेगा, जब मैं अपनी महिमा प्रकट करूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
14) वे देश में निरंतर यात्रा करते रहने के लिए आदमियों को नियुक्ति करेंगे और वे देश को शुद्ध करने के के लिए उसके ऊपर पड़ी हुई लाशों को दफनायेंगे। वे सात महीनों तक उनकी खोज करेंगे।
15) जब उनके देश से गुजरने पर कोई व्यक्ति मनुष्य की हड्डियाँ देखेगा, तो वह उनके पास चिन्ह गाड़ देगा, जब तक दफनाने वाले उन को हामोन-गोग की घाटी में दफना न दें।
16) (वहाँ हमोना नामक नगर भी है।) इस प्रकार वे देश को शुद्ध करेंगे।
17) ''और मानवपुत्र! प्रभु-ईश्वर तुम से यह कहता है : तुम सब प्रकार के पक्षियों और मैदान के सभी पशुओं से यह बोलो, एकत्र हो, आओ। उस बलि-भोज में सभी दिशाओं से इकट्ठे हो जाओ- इस्राएल के पर्वतों पर दिये गये भारी बलि-भोज में, जो मैं तुम्हारे लिए आयोजित कर रहा हूँ। तुम मांस खाओगे और रक्त पीओगे।
18) तुम बलवानों का मांस खाओगे और संसार के पदाधिकारियों का रक्त पियोगे; मेढों, मेमनों, बकरों और सांड़ो का, जो बाशान के हष्ट-पुष्ट पशु हैं।
19) मैं तुम्हारें लिए जो बलि-भोज आयोजित कर रहा हूँ, उस में चरबी खा-खा कर तुम तृप्त हो जाओगे और रक्त पी-पी कर उन्मत्त।
20) मेरी मेज पर घोड़ों और घुडसवारों, बलवान लोगों और सभी प्रकार के योद्धाओं को खा कर तुम तृत्प हो जाओगे। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।'
21) ''मैं राष्ट्रों में अपनी महिमा स्थापित करूँगा और सभी राष्ट्र मेरे द्वारा दिये गये दण्ड और उन पर प्रहार करने वाली मेरी भुजा देखेंगे।
22) उस दिन से इस्राएल का घराना यह जान जायेगा कि मैं ही उनका प्रभु-ईश्वर हूँ।
23) राष्ट्र यह जान जायेंगे कि अपने अपराधों के कारण इस्राएली घराने के लोगों को बंदी बन कर निर्वासित होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ ऐसा विश्वासघात किया कि मैंने उन से अपना मुँह छिपा लिया, उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दिया और उन में सब-के-सब तलवार के घाट उतार दिये गये।
24) मैंने उनकी अपवित्रता और पापों के अनुसार उनका न्याय किया और उन से अपना मुँह छिपा लिया।
25) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है : अब मैं याकूब का भाग्य फेर दूँगा और इस्राएल के समस्त घराने पर दया दिखलाऊँगा। मैं अपने पवित्र नाम के लिए ईर्ष्यालु रहूँगा।
26) तब वे लोग अपना अपमान और मरे विरुद्ध किये गये अपने समस्त विश्वसाघात भूल जायेंगे, जब वे अपने देश में, जहाँ उन्हें कोई आतंकित करने वाला नहीं होगा, सुरक्षित निवास करेंगे।
27) जब मैं उन्हें राष्ट्रों में से वापस ले आऊँगा और उनके शत्रुओं के देशों से उन्हें एकत्रित करूँगा, तो मैं अनेक राष्ट्रों के सामने अपनी महिमा प्रमाणित कर दूँगा।
28) इस प्रकार वे लोग यह जान जायेंगे कि मैं ही उनका प्रभु-ईश्वर हूँ; क्योंकि मैंने उन्हें राष्ट्रों में निर्वासित किया था और उसके बाद उन्हें उनके देश में एकत्रित किया। मैं उन में एक को भी फिर कभी दूसरे राष्ट्रों में रहने नहीं दूँगा।
29) जब मैं इस्राएल के घराने पर अपनी आत्मा उँढ़ेल दूँगा, तब मैं उन लोगों से फिर कभी अपना मुँह नहीं छिपाऊँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।''

अध्याय 40

1) हमारे निर्वासन के पच्चीसवें वर्ष के आरंभिक महीने के दसवें दिन, उसी दिन, नगर की पराजय के चौदहवें वर्ष, प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा।
2) वह दिव्य दर्शन में मुझे इस्राएल देश ले आया और उसने मुझे एक बहुत ऊँचे पर्वत पर रख दिया, जिस पर मेरे सामने नगर-जैसा आकार दिखाई दे रहा था।
3) जब वह मुझे वहाँ ले आया, तो वहाँ मैंने एक ऐसा व्यक्ति देखा, जिसका रूपरंग काँसे का था। उसके हाथ में क्षुमा, छालटी की डोरी और माप-छड़ी थी। वह फाटक पर खड़ा था।
4) वह व्यक्ति मुझ से यह बोला, 'मानवपुत्र! आँख खोल कर देखो, कान लगा कर सुनो और मैं तुम को जो कुछ दिखाता हूँ, उस पर ध्यान दो; क्योंकि तुम यहाँ इसीलिए लाये गये कि तुम्हें यह सब दिखाऊँ। तुम जो कुछ देखना, उसे इस्राएल के घराने को बता देना।''
5) मन्दिर-क्षेत्र के बाहर चारों ओर एक दीवार दिखाई दे रही थी। उस व्यक्ति के हाथ की मापने की छड़ी छह हाथ लंबी थी। प्रत्येक हाथ एक हाथ से बित्ता भर लंबा था। उसने दीवार की मोटाई नापी, जो एक हाथ थी और उसकी ऊँचाई, माप-छड़ी के बराबर।
6) इसके बाद वह पूर्वी फाटक के भीतर गया, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ गया और उसने फाटक की देहली नापी, जो माप-छड़ी के बराबर थी।
7) बगल के कमरों की लंबाई माप-छड़ी के बराबर थी और चौड़ाई माप-छड़ी के बराबर; बगल के कमरों के बीच की दूरी पाँच हाथ थी और भीतरी फाटक के द्वारमण्डप के समीप फाटक की देहली की चौड़ाई माप-छड़ी के बराबर।
8) इसके बाद उसने प्रवेशद्वार के मण्डल को नापा, तो आठ हाथ निकला
9) और उसके भित्तिस्तम्भ दो-दो हाथ। फाटक का द्वारमण्डल सब से भीतर की ओर था।
10) पूर्वी फाटक के दोनों ओर तीन-तीन कमरे थे। तीनों एक ही माप के थे और दोंनो ओर के भित्तिस्तम्भ भी एक ही माप के थे।
11) उसने फाटक के प्रवेशमार्ग के मुख की चौडाई नापी, जो दस हाथ थी और प्रवेशमार्ग की चौडाई, जो तेरह हाथ थी।
12) बगल वाले कमरों के सामने, दोनों ओर, एक-एक हाथ ऊँचा चबूतरा था बगल वाले सभी कमरे, दोनों तरफ, छः-छः हाथ के थे।
13) उसने एक ओर के बगल वाले कमरों के पिछले भाग से दूसरी ओर के बगल वाले कमरों के पिछले भाग तक फाटक की लंबाई नापी। एक के दरवाजे से दूसरे के दरवाजे की दूरी पच्चीस हाथ थी।
14) उसने द्वारमण्डप की माप भी निकाली, जो बीस हाथ निकली। प्रवेशद्वार के मण्डप के चारों ओर प्रांगण था।
15) प्रवेशद्वार के फाटक के सामने वाले भाग से ले कर फाटक के भीतरी द्वारमण्डप के अंत तक की लंबाई पचास हाथ थीं।
16) प्रवेशद्वार में चारों ओर खिडकियाँ थी,ं जो बगल वाले कमरों के भित्तिस्तम्भों की ओर सँकरी हो गयी थीं इसी प्रकार द्वारमण्डप में भी भीतर चारों ओर खिडकियाँ थी और भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे।
17) इसके बाद वह मुझे बाहरी प्रांगण में ले आया, जहाँ कमरे थे और प्रांगण के चारों ओर विस्तृत फर्श था। फर्श के सामने तीस कमरे थे।
18) फर्श फाटकों के पास था और वह फाटकों की लंबाई के बराबर चौड़ा था। वह निचला फर्श था।
19) उसने निचले फाटक के भीतरी सिरे से ले कर भीतरी प्रांगण के बाहरी सिरे तक की दूरी नापी। वह एक सौ हाथ थी। तब वह मेरे आगे-आगे उत्तर की ओर गया।
20) और वहाँ बाहरी प्रांगण में उत्तर मुख का एक फाटक दिखाई पड़ा। उसने उसकी लंबाई-चौड़ाई नापी।
21) उसके बगल वाले तीन-तीन कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और द्वारमण्डप उसी माप के थे, जैसे पहले फाटक के। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चौड़ाई पच्चीस हाथ।
22) उसकी खिडकियाँ, उसका द्वारमण्डप और उसके खजूर वृक्ष उसी आकार के थे, जैसे पूर्वी मुख वाले फाटक के। उसके पास सात सीढियाँ चढ कर पहुँचा जा सकता था और उसका द्वारमण्डप भीतर की ओर था।
23) पूर्वी फाटक की तरह ही उत्तरी फाटक के सामने भीतरी प्रांगण में जाने का फाटक था। उसने एक फाटक से दूसरे फाटक की दूरी नापी। वह एक सौ हाथ थीं।
24) वह मुझे दखिण की ओर ले गया और वहाँ दक्षिण की ओर एक फाटक दिखाई पड़ा। उसने उसके भित्तिस्तम्भों और द्वारमण्डप को नापा। उनका आकार वैसा ही था, जैसा दूसरों का।
25) उस में और उसके द्वारमण्डप में चारों ओर उसी प्रकार की खिडकियाँ थीं, जैसी दूसरों की खिडकियाँ। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चौडाई पच्चीस हाथ।
26) उसके पास सात सीढियाँ चढ कर पहुँचा जा सकता था और उसका द्वारमण्डप भीतर की ओर थ। उसके भित्तिस्तम्भों पर दोंनों ओर खजूर वृक्ष खुदे थे।
27) भीतरी प्रांगण के दक्षिण एक फाटक था। उसने एक फाटक से दूसरे फाटक तक दक्षिण की ओर की दूरी नापी। वह एक सौ हाथ थीं।
28) तब वह मुझे दक्षिणी फाटक से हो कर भीतरी प्रांगण में ले आया और उसने दक्षिणी फाटक को नापा। उसकी माप दूसरे फाटकों-जैसी थी।
29) उसके बगल वाले कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और उसका द्वारमण्डप उसी आकार के थे, जैसे दूसरे। उस में और उसके द्वारमण्डप में चारों ओर खिडकियाँ थीं। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चौड़ाई पच्चीस हाथ।
30) उसके चारों ओर पच्चीस हाथ लंबे और पाँच हाथ चौडे द्वारमण्डप थे।
31) उसके द्वारमण्डप का मुख बाहरी प्रांगण की ओर था; उसके भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे और उसकी सीढी में आठ सोपान थे।
32) वह मुझे पूर्वी भाग के भीतरी प्रांगण में ले गया और उसने फाटक को नापा। उसकी माप दूसरे फाटकों-जैसी थी।
33) उसके बगल वाले कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और उसका द्वारमण्डप उसी आकार के थे, जैसे दूसरे। उस में और उसके द्वारमण्डप में चारों ओर खिडकियाँ थीं। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चौडाई पच्चीस हाथ।
34) उसके द्वारमण्डप का मुख बाहरी प्रांगण की ओर था। उसके भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे उसकी सीढ़ी में आठ सोपान थे।
35) तब वह मुझे उत्तरी फाटक के पास ले आया और उसने उसे नापा। उसकी माप दूसरे फाटकों-जैसी थी।
36) उसके बगल वाले कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और उसका द्वारमण्डप उसी आकार के थे, जैसे दूसरे। उस में चारों ओर खिडकियाँ थीं। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चौडाई पच्चीस हाथ।
37) उसके द्वारमण्डप का मुख बाहरी प्रांगण की ओर था उसके भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे और उसकी सीढ़ी में आठ सोपान थे।
38) फाटक के द्वारमण्डप में खुलने वाला एक कमरा था, जहाँ होम-बलि धोयी जाती थीं।
39) फाटक के द्वारमण्डप में दोनों ओर दो-दो मेजें थीं, जिन पर होम-बलि, प्रायश्चित-बलि और क्षतिपूर्ति-बलि पशुओं का वध किया जाता था
40) और उत्तरी फाटक के प्रवेश-मार्ग के द्वारमण्डप के बाहर दो मेजें थीं और फाटक के द्वारमण्डप के दूसरी ओर दो मेंजे थीं।
41) फाटक के दोनों ओर भीतर चार मेजे थी और बाहर चार मेजें'- कुल आठ मेजे, जिन पर बलि-पशुओं का वध किया जाता था।
42) होम-बलि के लिए तराशे हुए पत्थर की, डेढ हाथ लम्बी, डेढ हाथ चौडी और डेढ हाथ ऊँची चार मेजें भी थी, जिन पर वे औजार रखे जाते थे, जिन से होम-बलि और अन्य बलियों के पशुओं का वध किया जाता था।
43) उनके भीतरी भाग में चारों ओर एक बित्ता लंबे अंकुश बंधे थे। बलि का मांस मेजों पर रखा जाता था।
44) वह मुझे बाहर की ओर से भीतरी प्रांगण ले गया। भीतरी प्रांगण में दो कमरे थे- एक, जिसका मुख दक्षिण की ओर था, उत्तरी फाटक की बगल में और दूसरा, जिसका मुख उत्तर की ओर था, दक्षिणी फाटक की बलग में।
45) वह मुझ से बोला, ''यह कमरा, जिसका मुख दक्षिण की ओर है, उन याजकों के लिए है, जो मंदिर की सेवा करते हैं,
46) और वह कमरा, जिसका मुख उत्तर की ओर हैं, उन याजको के लिए है जो वेदी की सेवा करते हैं; ये सादोकवंशी हैं। लेवीवंशियों में केवल वह प्रभु के समीप आ कर उसकी सेवा कर सकते हैं।''
47) उसने प्रांगण को नापा। वह सौ हाथ लंबा और सौ हाथ चौड़ा वर्गाकार था। वेदी मन्दिर के सामने अवस्थित थी।
48) वह मुझे मंदिर के द्वारमण्डप में ले गया और उसने द्वारमण्डप के भित्तिस्तम्भों को नापा, जो दानों ओर पाँच-पाँच हाथ के थे। फाटक की चौड़ाई चौदह हाथ थी और फाटक के दोनों ओर की दीवारें तीन-तीन हाथ की थीं।
49) द्वारमण्डप की लंबाई बीस हाथ थी और चौडाई बारह हाथ, और दास सीढ़ियाँ चढ कर वहाँ तक पहुँचा जा सकता था। भित्तिस्तभों के पास दोनों ओर खम्भे थे।

अध्याय 41

1) इसके बाद वह मुझे मध्य भाग में ले गया और भित्तिस्तम्भों को नापा। प्रत्येक ओर के भित्तिस्तम्भों की चौडाई छह हाथ थी।
2) प्रवेशद्वार की चौडाई दस हाथ थी और प्रवेशद्वार के दोनों ओकर की दीवारें पाँच-पाँच हाथ की थीं। उसने मध्य भाग की लंबाई नापी, जो चालीस हाथ थी और उसकी चौडाई बीस हाथ।
3) उसने अंतःकक्ष में जा कर प्रवेशद्वार के भित्तिस्तम्भ नापे। वे दो-दो हाथ के थे। प्रवेशद्वार की चौडाई छः हाथ थी और प्रवेशद्वार के दोनों ओर की दीवारें सात-सात हाथ की थीं।
4) और उसने मध्य भाग के सामने के कक्ष की लंबाई नापी, जो बीस हाथ थी और उसकी चौडाई बीस हाथ। उसने मुझ से कहा, ''यही परम-पवित्र-स्थान है''
5) तब उसने मंदिर की दीवार नापी। वह छः हाथ मोटी थी। मन्दिर के चारों ओर बगल के कमरों की चौडाई चार हाथ थी
6) तीन मंजिलों में एक के ऊपर एक बने हुए बगल मे कमरों की संख्या हर मजिल में तीस थी। बगल के कमरों को सहारा देने के लिए मंदिर की दीवार के चारों ओर कुर्सियाँ बनी थीं, जिससे उनका भार मन्दिर की दीवार पर न पडे।
7) बगल के कमरे जैसे-जैसे एक मंजिल के बाद दूसरी मंजिल की ओर ऊपर होते गये थे। वैसे-वैसे मंदिर के चारों ओर एक मंजिल के बाद दूसरी मंजिल पर बनी कुर्सी के विस्तार के अनुरूप क्रमशः अधिक चौडे हाते गये थे। मन्दिर की बगल से सीढी ऊपर जाती थीः इस प्रकार सब से नीचली मंजिल से बीच की मंजिल हो कर ऊपर की मंजिल तक पहुँचा जा सकता था।
8) मैंने यह भी देखा कि मन्दिर के चारों ओर ऊँचा मंच है। बगल के कमरों की नीवों की चौडाई पूर-पूरे छः हाथ लम्बी माप-छड़ी के बराबर थी
9) बगल के कमरों की बाहरी दीवार की चौडाई पांच हाथ थी और मंच का वह भाग, जो खाली छोड़ा गया था, पाँच हाथ था। मन्दिर के मंच और प्रांगण की
10) बगल के कमरों के बीच मन्दिर के चारों ओर हर तरफ, बीस हाथ चोडा खाली स्थान था।
11) बगल के कमरों के दरवाजे मंच के उस भाग की ओर खुलते थे, जो खाली था- एक दरवाजा उत्तर की ओर खुलता था और दूसरा दरवाजा दक्षिण की ओर। चारों ओर उस खाली भाग की चौडाई पांच हाथ थीं।
12) वह भवन, जिसका मुख पश्चिम में अवस्थित मन्दिर के प्रांगण के सामने था, सत्तर हाथ चौड़ा था। उस भवन के चारों ओर की दीवार पांच हाथ मोटी थी और उसकी लम्बाई नब्बे हाथ थी।
13) उसने मन्दिर को नापा। वह सौ हाथ था। प्रांगण और दीवारों-सहित उस भवन की लंबाई सत्तर हाथ थी।
14) तथा मन्दिर और प्रांगण के पूर्वी अग्रभाग की चौड़ाई सौ हाथ।
15) उसने भवन, जिसका मुख पश्चिम में अवस्थित प्रांगण के सामने था और उसके दोनों ओर की दीवारों की लंबाई नापी। वह सौ हाथ थीं। मंदिर के मध्य भाग, उसके अंतःकक्ष और बाहरी द्वारमण्डप
16) में तख्ते जडे थे और तीनों में चारों ओर जालीदार खिड़िकियाँ लगी थीं। देहली के आमने-सामने मंदिर मे तख्ते जड़े थे- फर्श से ले कर खिडकियों तक (खिडकियाँ ढँकी) थीं।
17) (१७-१८) दरवाजे के ऊपर वाले स्थान तक, यहाँ तक कि अंतःकक्ष और बाहर तक। अंतःकक्ष और मध्य भाग की दीवारों पर चारों ओर केरूब और खजूर वृक्ष की आकृतियाँ खुदी थीं- दो केरूबों के बीच एक खजूर वृक्ष। प्रत्येक केरूब के दो मुख थेः।
19) एक ओर के खजूर वृक्ष के सामने मनुष्य का मुख और दूसरी ओर के खजूर वृक्ष के सामने युवा सिंह का मुख। मन्दिर में चारों ओर उनकी आकृतियाँ खुदी थीं।
20) फर्श से ले कर दरवाजे के ऊपर तक की दीवार पर केरूब और खजूर वृक्ष खुदे थे।
21) (२१-२२) मध्य भाग के द्वार की चौखटें वर्गाकार थीं। पवित्र-स्थान के सामने कोई वस्तु थी, जो लकड़ी की वेदी-जैसी प्रतीत होती थी। वह तीन हाथ ऊँची, तीन हाथ लंबी और दो हाथ चौड़ी थी। उसके कोने, उसका आधार और उसकी दीवारें लकड़ी की थीं। उसने मुझ से कहा, ''यही प्रभु के सामने की मेज है''
23) मध्य भाग और पवित्र-स्थान में दोहरे दरवाजे लगे थे।
24) दरवाजों में दो पल्ले थे, प्रत्येक दरवाजे में दो कब्जे वाले डिल्ले।
25) मध्य भाग के दरवाजों पर उसी तरह केरूब और खजूर वृक्ष खुदे थे, जिस तरह दीवारों पर तथा बाहर द्वारमण्डप के सामने लकड़ी का छज्जा था।
26) द्वारमण्डप की बगल वाली दीवारों पर दोनों ओर जालीदार खिडकियाँ और खजूर वृक्ष थे।

अध्याय 42

1) वह मुझे उत्तर की ओर भीतरी प्रांगण में ले गया और उन कमरों में ले आया, जो मंदिर के अहाते और उत्तर की ओर के भवन के सामने थे।
2) उत्तर की ओर के भवन की लंबाई सौ हाथ थी और चौड़ाई पचास हाथ।
3) भीतरी प्रांगण के दरवाजों के सामने और बाहरी प्रांगण के फर्श के सामने तीनों मंजिलों में दीर्घा बनी थी।
4) कमरों के सामने भीतर की ओर दस हाथ चौड़ा और सौ हाथ लंबा मार्ग था और कमरों में उत्तर की ओर दरवाजे थे।
5) ऊपरी कमरे अपेक्षाकृत कम चौड़े थे क्योंकि भवन के निचले और बीच के कमरों की अपेक्षा उन में दीर्घाएँ अधिक जगह घेरती थीं।
6) वे तीन मंजिलों में बने थे और बाहरी प्रांगण के खम्भों की तरह उन में खम्भे नहीं थे; इसलिए निचले और बीच के कमरों की तुलना में ऊपरी कमरे जमीन से कहीं अधिक पीछे हटे थे।
7) बाहरी प्रांगण की ओर, कमरों के ठीक सामने, उनके समान्तर बाहर पचास हाथ लम्बी दीवार थीं,
8) क्योंकि बाहरी प्रांगण के कमरे पचास हाथ लम्बे थे, जब कि मन्दिर के सामने के कमरे सौ हाथ लम्बे।
9) (९-१०) बाहरी प्रांगण से, जहाँ, बाहर की दीवार शुरू होती है, जैसे ही कोई कमरों में प्रवेश करता है, वहाँ कमरों के ठीक नीचे पूर्व की ओर से भीतर का रास्ता था। अहाते और भवन के सामने दक्षिण की ओर भी कमरे थे।
11) उनके सामने भी मार्ग था। वे उत्तर की ओर के कमरे-जैसे थे- उन्हीं की लम्बाई-चौडाई के, वैसे ही बाहर निकलने के मार्ग वाले, वैसे ही दवाजों वाले।
12) दक्षिणी कमरों के नीचे पूर्व की ओर, जहाँ से कोई गलियारी में प्रवेश करता है, रास्था था और उनके सामने एक विभाजक दीवार थीं।
13) वह मुझ से बोला, 'अहाते के सामने की उत्तरी और दक्षिणी कमरे पवित्र कमरे हैं, जहाँ वे याजक, जो प्रभु के सामने उपस्थित हाते हैं, परमपवित्र बलियाँ खायेंगे। वहाँ वे परमपवित्र बलिया - अन्न-बलि, प्रायश्ति-बलि और क्षतिपूर्ति-बलि- रखेंग; क्योंकि यह स्थान पवित्र है।
14) जब याजक पवित्र-स्थान में प्रवेश करेंगे, तो वह वहाँ उन वस्त्रों को, जिन्हें पहन कर वे सेवाकार्य करते हैं, उतार कर रखे बिना बाहरी प्रांगण में नहीं जायेंगे; क्योंकि वे वस्त्र पवित्र हैं। वे उस स्थान के पास जाने से पहले, जो जनसामान्य के लिए है, दूसरे वस्त्र पहनेंगे।''
15) मन्दिर क्षेत्र के भीतरी भाग को नापने के बाद वह मुझे पूर्वी फाटक से बाहर ले गया और उसने चारों ओर से मन्दिर का क्षेत्र नापा।
16) उसने माप-छड़ी से पूर्वी भाग नापा। वह माप-छड़ी से पांच सौ हाथ था।
17) उसने मुड कर उत्तरी भाग नापा। वह माप-छड़ी से पांच सौ हाथ निकला।
18) उसने मुड कर दक्षिणी भाग नापा। वह माप-छड़ी से पांच सौ हाथ निकला।
19) उसने पश्चिमी भाग की ओर मुड कर उसे नापा। वह माप-छड़ी से पांच सौ हाथ निकला।
20) उसने उसे चारों ओर से नापा। उसके चारों ओर पवित्र और सामान्य स्थान को अलग करने वाली पांच सौ हाथ लम्बी और पाँच सौ हाथ चौड़ी दीवार थीं।

अध्याय 43

1) वह मुझे पूर्वी फाटक तक ले गया
2) और मैंने पूर्व की ओर से आती हुई इस्राएल के ईश्वर की महिमा देखी। उसके साथ-साथ समुद्र-गर्जन की-सी आवाज सुनाई पड़ी और पृथ्वी उसकी महिमा से आलोकित हो उठी।
3) जो दृश्य मैं देख रहा था, वह उसी के सदृश था, जिसे मैंने उस समय देखा था, जब प्रभु नगर का विनाश करने आया था और उस दृश्य के सदृश, जिसे मैंने कबार नदी के पास देखा था। मैं मुँह के बल गिर पड़ा।
4) प्रभु की महिमा पूर्वी फाटक से हो कर मंदिर में आ पहुँची।
5) आत्मा मुझे उठा कर मन्दिर के भीतरी प्रांगण में ले गया और मैंने देखा कि मन्दिर प्रभु की महिमा से भरा जा रहा है।
6) वह व्यक्ति मेरी बगल में खड़ा रहा और मैंने मन्दिर में से किसी को मुझ से यह कहते सुना।
7) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! यही मेरे सिंहासन का स्थान है। यही मेरा पावदान है। मैं सदा इस्राएलियों के बीच निवास करूँगा। इस्राएली घराने के लोग- वे और उनके राजा- अपने व्यभिचार और अपने राजाओं के शवों द्वारा मेरे पवित्र नाम को फिर कभी कलंकित नहीं करेंगे।
8) अपनी देहली को मेरी देहली से और अपनी चौखट के बाजू को मेरी चौखट के बाजू से सटा कर बनाने के कारण, जिससे मेरे और उनके बीच केवल एक दीवार रह गयी, उन्होंने अपने वीभत्स कमोर्ं द्वारा मेरे पवित्र नाम को कलंकित किया है; इसलिए मैंने अपने क्रोधावेश में उनका विनाश कर दिया है।
9) अब वे लोग अपनी मूर्तिपूजा और अपने राजाओं के शव मुझ से दूर कर दें और मैं सदा उनके बीच निवास करूँगा।
10) ''मानवपुत्र! तुम इस्राएली घराने के लोगों के सामने मन्दिर, उसके आकार और योजना का विवरण दो, जिससे वे अपने अपराधों के लिए लज्जित हों।
11) यदि वे अपने द्वारा किये हुए समस्त कायोर्ं पर लज्जा अनुभव करें, तो मन्दिर, उसके क्रम-विन्यास, उसके ेनिर्गम-मागोर्ं, प्रवेश-मागोर्ं और उसका रूप-विधान अंकित करो, तथा उन्हें उस से सम्बन्धित सभी आदेश और उसकी समस्त विधियाँ बता दो, तथा उन्हें उनकी आँखों के सामने लिख दो, जिससे वे उस से सम्बन्धित सभी विधियों और समस्त आदेशों का पालन और कार्यान्वयन करें।
12) मन्दिर-सम्बन्धी विधि यह है : पर्वत के शिखर के पर के चारों ओर का क्षेत्र परमपवित्र माना जायेगा। मन्दिर-सम्बन्धी विधि यही है।
13) ''हाथ की नाप से वेदी की परिमाप यह है (एक हाथ और एक बित्ते के बराबर एक हाथ) : उसका आधार एक हाथ ऊँचा और एक हाथ चौड़ा हागा और उसके चारों ओर की किनारी की चौड़ाई एक बित्ता होगी। वेदी की ऊँचाई इस प्रकार होगीः
14) नीचे की सतह से निचले कगर तक दो हाथ, जिसकी चौड़ाई एक हाथ होगी; छोटे कगर से बड़े कगर तक चार हाथ, जिसकी चौड़ाई एक हाथ होगी,
15) और वेदी के अग्निकुण्ड की ऊँचाई चार हाथ, तथा वेदी के अग्निकुण्ड के ऊपर निकले हुए एक-एक हाथ ऊँचे चार सींग होंगे।
16) वेदी का अग्निकुण्ड बारह हाथ लम्बा और बारह हाथ चौड़ा, वर्गाकार होगा।
17) कगर भी चौदह हाथ लम्बा और चौदह हाथ चौड़ा, वर्गाकार होगा। उसके चारों ओर की किनारी आधा हाथ चौड़ी होगी और उसका आधार चारों ओर एक हाथ ऊँचा होगा। वेदी के सोपानों की दिशा पूर्व की ओर होगी।''
18) उसने मुझ से यह कहा, ''मानवपुत्र! प्रभु-ईश्वर यह कहता है- वेदी सम्बन्धी आदेश ये हैं: जिस दिन उसकी प्रतिष्ठा उस पर होम-बलि चढाने और उस पर रक्त उँढ़ेलने के लिए कर दी जायेगी,
19) तुम सादोक वंश के लेवी याजकों को, जो मेरे सेवाकार्य के लिए मरे सामने उपस्थित होते हैं, प्रायश्चित-बलि के लिए एक बछड़ा दोगे। प्रभु-ईश्वर यह कहता है।
20) तुम उसका कुछ रक्त ले कर उस को वेदी के चारों सींगो, कगर के चारों कोनों और उसके चारों ओर की किनारी पर लगा दोगे। इस प्रकार तुम वेदी को शुद्ध करोगे और उसकी प्रायश्चित-विधि पूरी करोगे।
21) तुम प्रायश्चित्त-बलि का बछड़ा ले कर उसे पवित्र क्षेत्र से बाहर, मन्दिर के निर्धारित स्थान पर, जला दोगे।
22) दूसरे दिन तुम एक अदोष बकरा, प्रायश्चित-बलि के रूप में चढाओगे और वेदी को उसी प्रकार शुद्ध किया जायेगा, जिस प्रकार उसे बछड़े के प्रसंग में शुद्ध किया गया था।
23) उसे शुद्ध करने के बाद तुम एक अदोष सांड और रेवड़ का एक अदोष मेढा चढाओगे।
24) तुम उन्हें प्रभु के सामने प्रस्तुत करोगे, याजक उन पर नमक छिडकेंगे और होम-बलि के रूप में प्रभु को चढायेंगे।
25) तुम सात दिनों तक प्रतिदिन प्रायश्चित-बलि के रूप में एक-एक बकरा चढाओगे। इसके अतिरिक्त एक अदोष सांड और रेवड़ मे से एक अदोष मेढे का भी प्रबंध किा जायेगा।
26) वे लोग सात दिनों तक वेदी के लिए प्रायश्चित करेंगे, उसे शुद्ध करेंगे और इस प्रकार उसका अभ्यंजन करेंगे।
27) जब ये दिन पूरे हो जायेंगे, तो याजक आठवें दिन से वेदी पर तुम्हारी होम-बलियाँ और शांति बलियाँ चढायेंगे। तब मैं तुम्हें अपनाऊँगा यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

अध्याय 44

1) इसके बाद वह मुझे पवित्र-स्थान के, बाहरी फाटक पर वापस ले आया, जिसका मुख पूर्व की ओर है, किन्तु वह बन्द था
2) वह मुझ से बोला, ''यह फाटक बन्द रखा जायेगा। इसे खोला नहीं जायेगा और इस से हो कर कोई प्रवेश नहीं करेगा; क्योंकि इस से हो कर इस्राएल के प्रभु-ईश्वर ने प्रवेश किया है। इसलिए यह बंद रखा जायेगा।
3) प्रभु के सामने प्रसाद खाने के लिए इस में केवल शासक बैठ सकता है। वह फाटक के द्वारमण्डप से हो कर प्रवेश करेगा और उसी मार्ग से बाहर निकलेगा।''
4) इसके बाद वह मुझे उत्तरी फाटक के मार्ग से मंदिर के सामने ले अया। जब मैंने दृष्टि दौड़ायी, तो यह देखा कि प्रभु का मंदिर प्रभु की महिमा से भरा गया है और मैं मुँह के बल गिर पडा।
5) प्रभु ने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! अच्छी तरह ध्यान दो, अपनी आँखें खोल कर देखो और अपने कान लगा कर वह सब सुनो, जो मैं तुम को प्रभु के मंन्दिर सम्बन्धी आदेशों और उसकी विधियों के विषय में बताने जा रहा हूँ। इसका पूरा ध्यान रखो कि किन को मंदिर में प्रवेश करने दिया जा सकता है और किन को पवित्र-स्थान में प्रवेश करने नहीं देना है।
6) विद्रोही घराने से, इस्राएल के घराने से बोलोः प्रभु-ईश्वर यह कहता है- इस्राएल के घराने! अपने सभी वीभत्स कमोर्ं का त्याग कर दो।
7) तुम विदेशियों को, जो मन और शरीर से बेखतना है, मेरे पवित्र-स्थान में प्रवेश दे कर उसे दूषित करते हो, जब तुम मुझे नैवेद्य, चरबी और रक्त चढाते हो। तुमने अपने सभी वीभत्स कमोर्ं के अतिरिक्त मेर विधान भी भंग किया है।
8) तुमने मेरी पवित्र वस्तुओं की देखभाल नहीं की, बल्कि मेरे पवित्र-स्थान की सेवा के लिए विदेशियों को नियुक्त किया है।
9) ''इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है : इस्राएलियों के साथ रहने वाले सभी विदेशियों में एक भी विदेशी, जो मन और शरीर से बेखतना है, मेरे पवित्र-स्थान में प्रवेश नहीं करेगा।
10) किन्तु लेवियों को अपना दण्ड भोगना होगा, जो मुझ से बहुत दूर हो गये थे और इस्राएल के भटकते ही अपनी देवमूर्तियों की उपासना करने के कारण भटक गये थे।
11) वे मन्दिर के फाटकों पर पहरेदारी और उसका सेवाकार्य करेंगे। वे मेरे पवित्र-स्थान के सेवक होंगे। वे लोगों के लिए होम-बलि और बलि-पशुओं का वध करेंगे तथा लोगों की सेवा के लिए उनके सामने प्रस्तुत रहेंगे।
12) वे उनकी देवमूर्तियों के सामने उनके लिए सेवाकार्य करते थे और इस्राएल के घराने के लिए पाप की ठोकर बन गये थे, इसलिए मैंने उनके विषय में यह शपथ खायी है- प्रभु-ईश्वर यह कहता है-कि उन को अपना दण्ड भोगना होगा।
13) वे न तो याजकीय सेवा करने मरे पास आयेंगे और न मेरी पवित्र वस्तुओं और परमपवित्र वस्तुओं के पास, बल्कि उन्हें अपने द्वारा किये गये वीभत्स कायोर्ं के कारण अपमान सहना पडेगा।
14) तब भी मैं मन्दिर की रखवाली करने, उसके सभी सेवाकार्य और वहाँ जो कुछ किया जा सकता है, उसे सम्पन्न करने के लिए उन को नियुक्त करूँगा।
15) ''किन्तु सादोक वश के वे लेवी याजक, जो इस्राएलियों के मुझ से भटक जाने पर मेरे पवित्र-स्थान की सेवा करते थे, मेरे सेवाकार्य के लिए मेरे पास आ सकेंगे। वे मुझे चरबी और रक्त चढ़ाने के लिए मेरे सामने उपस्थित होंगे- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
16) मेरे पवित्र स्थान में प्रवेश करेंगे, मेरा सेवाकार्य करने मेरी मेज के समीप आयेंगे और मेरी सेवा करेंगे।
17) जब वे भीतरी प्रांगण के फाटकों में प्रवेश करेंगे, तो वे छालटी के वस्त्र धारण किये रहेंगे। जब वे भीतरी प्रांगण के फाटकों पर और मन्दिर के भीतर मेरी सेवा करेंगे, तो वे कोई ऊनी वस्त्र नहीं पहनेंगे।
18) वे अपने सिर पर छालटी की पगड़ी और कमर में छालटी के जाँघियें पहने रहेंगे। वे ऐसे वस्त्र न पहनेंगे, जिन से पसीना आता हो।
19) जब वे भीतरी प्रांगण में लोगों के पास जायेंगे, तो सेवाकार्य के समय पहने गये वस्त्र उतार देंगे और उन्हें पवित्र कक्षों में रख देंगे। वे दूसरे वस्त्र पहनेंगे, जिससे उनके वस्त्रों की पवित्रता लोगों का स्पर्श न करें।
20) वे न तो सिर मुँडायेंगे और न लम्बे बाल ही रखेंगे। वे अपने सिर के बाल कटाते रहेंगे।
21) कोई भी याजक भीतरी प्रांगण में अंगूरी पी कर प्रवेश नहीं करेगा।
22) वे किसी विधवा या परित्यक्ता से विवाह नहीं करेंगे, बल्कि इस्राएल के घराने की वंशज कुमारी कन्या अथवा ऐसी विधवा से, जो याजक की विधवा है।
23) वे मेरी प्रजा को पवित्र और सामान्य का भेद सिखलायेंगे और उसे अशुद्ध और शुद्ध में अन्तर करने की शिक्षा देंगे।
24) वे विवाद में न्यायकर्ता का काम करेंगे और वे उसका निर्णय मेरे निर्णयों के अनुसार करेंगे। वे मेरे सभी निर्धारित पर्वों में मेरे नियमों और आदेशों का पालन करेंगे और मेरे विश्रामदिवसों को पवित्र बनाये रखेंगे।
25) वे मृतक के पास जा कर अपने को अशुद्ध नहीं बनायेंगे किन्तु वे अपने पिता, माता, पुत्र, पुत्री, भाई या अविवाहित बहन के शव द्वारा अपने को अशुद्ध बना सकते हैं।
26) यदि वह अशुद्ध हो जाता है, तो वह सात दिन प्रतीक्षा करेगा और तब शुद्ध हो जायेगा।
27) जब वह पवित्र-स्थान में, भीतरी प्रांगन में पवित्र-स्थान का सेवाकार्य करने जायेगा, तो वह प्रायश्चित-बलि अर्पित करेगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
28) ''उनका कोई दायभाग नहीं होगा। मैं ही उनका दायभाग हूँ। तुम उन्हें इस्राएल में कोई सम्पत्ति नहीं दोगे। मैं ही उनकी सम्पत्ति हूँ।
29) वे अन्न-बलि, प्रायश्चित-बलि और क्षतिपूर्ति-बलि खा सकेंगे। इस्राएल की प्रत्येक पूर्णसमर्पित वस्तु मेरी होगी।
30) सब से पहले, सभी प्रकार के प्रथम फलों और तुम्हारी भेंटों में सब प्रकार की भेंटों पर याजकों का अधिकार होगा। तुम लोग भी अपने पहले आटे में से याजकों को दोगे, जिससे तुम्हारे घरों को आशीर्वाद प्राप्त हो।
31) याजक ऐसे पक्षी या पशु का मांस नहीं खायेंगे, जिसकी मृत्यु स्वयं हुई है या जिसे किसी पशु ने मारा है।

अध्याय 45

1) ''जब तुम चिट्ठी डाल कर भूमि का वितरण करोगे, तो तुम प्रभु के लिए भूमि का एक भाग पवित्र क्षेत्र के रूप में अलग कर दोगे। वह पच्चीस हजार हाथ लंबा और बीस हजार हाथ चौड़ा हागा। उसका सम्पूर्ण क्षेत्र पवित्र माना जायेगा।
2) उसका पांस सौ गुण पांच सौ हाथ का एक वर्गाकार भाग पवित्र-स्थान के लिए होगा। उसके चारों ओर पचास हाथ चौड़ा खुला स्थान होगा।
3) तुम इस पवित्र क्षेत्र से पच्चीस हजार हाथ लंबा और दस हजार हाथ चौड़ा भाग नाप कर अलग कर दोगे, जिस पर पवित्र-स्थान, परम-पवित्र स्थान का निर्माण किया जायेगा।
4) वह भूमि का पवित्र भाग हागा। वह उन याजकों के लिए होगा, जो पवित्र-स्थान की सेवा करते तथा सेवा करने प्रभु के पास जाते हैं।
5) पच्चीस हजार हाथ लंबा और दस हजार हाथ चौड़ा एक दूसरा भाग उन लेवियों के लिए होगा, जो मंदिर के सेवाकार्य करते हैं। वह उनके आवास के नगरों के लिए उनके अधिकार में रहेगा।
6) ''पवित्र क्षेत्र के रूप में निर्धारित भूखण्ड के समानान्तर तुम पचास हजार हाथ लम्बा और पच्चीस हजार हाथ चौडा एक क्षेत्र नगर की सम्पत्ति के रूप में नियत कर दोगे उस पर इस्राएल के समस्त घराने का अधिकार होगा।
7) ''पवित्र क्षेत्र और नगर की भूसंपत्ति के दोनों ओर तथा पवित्र क्षेत्र और नगर की भूसम्पत्ति के पश्चिम और पूर्व में कुल के एक भाग की लम्बाई के बराबर और देश की पश्चिमी सीमा से पूर्वी सीमा तक विस्तृत भूमि शासक की होगी।
8) इस्राएल में यह सम्पत्ति उसकी होगी। मेरे शासक मेरी प्रजा पर कभी अत्याचार नहीं करेंगे, बल्कि वे इस्राएल के घराने को अपने-अपने कुल के अनुसार भूमि रखने देंगे।
9) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : इस्राएल के शासको! बहुत हुआ। हिंसा और अत्याचार छोड़ दो; न्याय और धर्म के अनुसार आचरण करो। मेरी प्रजा को लूटना बंन्द करो। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
10) ''तुम सच्चा तराजू, सच्चा एफा और सच्चा बत रखोगे।
11) एफा और बत का परिमाण एक-जैसा हागा। बत में होमेर का दसवाँ भाग समायेगा और ऐफा में भी होमेर का दसवाँ भाग समायेगा। होमेर ही प्रामाणिक माप होगा।
12) शकेल बीस गेरा का होगा। पाँच शकेल, पाँच शकेल होंगे और दस शकेल, दस शकेल। तुम्हारे यहाँ माने, बीस शकेल, पच्चीस शकेल और पन्द्रह शकेल के यौग के बराबर होगा।
13) ''तुम यह चढावा दोगे : एक होमेर गेहूँ से एफा का छठा भाग और एक होमेर जौ से एफा का छठा भाग,
14) और तेल के निर्धारित अंश के रूप में प्रत्येक कोर से बत का दसवाँ भाग (होमेर की तरह कोर में भी दस बत समाते हैं'),
15) तथा इस्राएल के कुटुम्बों में से दो सौ के रेवड़ में एक भेड़ उनके द्वारा प्रायश्चित्त के लिए- प्रभु ईश्वर का कहना है- यही चढावा अन्न-बलियों, होम-बलियों और शांति-बलियों के लिए हैं।
16) इस्राएल की समस्त प्रजा यही चढावा इस्राएल के शासक को दिया करेगी।
17) पर्वो, नव चन्द्रदिवसों और विश्राम-दिवसों- इस्राएली घराने के सभी निर्धारित पर्वो पर होम-बलियों, अन्न-बलियों और अर्घ का प्रबंध करना शासक का कर्तव्य होगा। इस्राएल के घराने के प्रायश्चित के लिए प्रायश्चित-बलियों, अन्न-बलियों, होम-बोलियों तथा शांति-बालियों की व्सवस्था वही करेगा।
18) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : पहले महीने के प्रथम दिन तुम एक अदोष बछड़ा चढ़ा कर पवित्र-स्थान की शुद्धि करोगे।
19) याजक प्रायश्चित-बलि का थोड़ा रक्त ले कर उसे मन्दिर की चौखट के बाजुओं, वेदी के शिलाफलक के चारों कोनों और भीतरी प्रांगण के फाटक के खंभों पर लगा देगा।
20) महीने के सातवें दिन तुम उन लोगों के लिए वही करोगे, जिन्होंने किसी भूल या अज्ञान के कारण पाप किया है। इस प्रकार तुम मन्दिर के लएि प्रायश्चित सम्पन्न करोगे।
21) ''पहले महीने के चौदहवें दिन तुम पास्का पर्व मनाओगे और सात दिनों तक बेखमीरी रोटियाँ खायी जायेंगी।
22) उस दिन शासक अपने लिए और देश की समस्त जनता के लिए प्रायश्चित-बलि देने एक बछड़े का प्रबन्ध करेगा।
23) वह पर्व के सात दिनों तक प्रतिदिन प्रभु को होम-बलि देने के लिए सात अदोष बछड़े और सात अदोष मेढ़े तथा प्रतिदिन प्रायश्चित-बलि के रूप में एक बकरा चढायेगा।
24) वह अन्न-बलि के रूप में प्रत्येक बछड़े के लिए एक एफा, प्रत्येक मेढे के लिए एक एफा और प्रत्येक एफा के लिए एक हिन तेल देगा।
25) सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन तथा पर्व के सातों दिन वह पाप प्रायश्चित-बलियों, होम-बलियों अन्न-बलियों और तेल का यही प्रबन्ध करेगा।

अध्याय 46

1) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : भीतरी प्रांगण का फाटक, जिसका मुख पूर्व की ओर है, छः कार्यदिवसों के समय बन्द रखा जायेगा, किन्तु वह विश्राम-दिवस पर खोल दिया जायेगा। वह नव चन्द्रदिवस पर भी खुला रहेगा।
2) शासक फाटक के द्वारमण्डप हो कर बाहर से प्रवेश करेगा और वह फाटक की चौखट पर खड़ा रहगा। याजक उसकी होम-बलि और शांति-बलियाँ अर्पित करेंगे और वह फाटक की देहली पर से ही आराधना करेगा। इसके बाद वह बाहर चला जायेगा। किन्तु फाटक सांझ से पहले बन्द नहीं होगा।
3) देश की जनता विश्राम-दिवसों और नव चंद्रदिवसों पर फाटक के प्रवेश-मार्ग पर से ही प्रभु की आराधना करेगी।
4) विश्राम-दिवस पर शासक द्वारा प्रभु को अर्पित होम-बलि में छः अदोष मेमने होंगे और एक अदोष मेढ़ा रहेगा।
5) तथा मेढे के साथ दी जाने वाली अन्न-बलि का एक दफा के बराबर होगी। मेमनों के साथ दी जाने वाली अन्न-बलि उतनी ही रहेगी, जितनी का सामर्थ्य उस से होगा, किन्तु प्रत्येक एफा के साथ एक हिन तेल रहेगा।
6) वह नव चन्द्रदिवस पर एक अदोष बछड़ा तथा छः मेमने और एक मेढ़ा जो अदोष होंगे, चढायेगा।
7) वह प्रत्येक एफा पर एक हिन तेल के साथ, बछड़े के साथ एक एफा, मेढ़े के साथ एक एफा और मेमनों के साथ अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्न-बलि प्रदान करेगा।
8) शासक जव प्रवेश करेगा, तो वह फाटक के प्रवेशद्वार से हो कर जायेगा और उसी मार्ग से बाहर जायेगा।
9) ''जब निर्धारित पर्वों पर देश की जनता प्रभु के दर्शन के लिए आती है, तो जो व्यक्ति आराधना करने उत्तरी फाटक से आता है, वह दक्षिणी फाटक से बाहर जायेगा और जो दक्षिणी फाटक से आता है, वह उत्तरी फाटक से बाहर जायेगा। कोई भी उस फाटक से हो कर वापस नहीं होगा, जिससे उसने प्रवेश किया था, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति सामने से बाहर जायेगा।
10) जब लोग प्रवेश करेंगे, तो शासक भी उनके साथ प्रवेश करेगा और जब वे बाहर जायेंगे, तो वह भी बाहर जायेगा।
11) ''पवोर्ं और त्योहारों में, प्रत्येक एफा एक दिन तेल के साथ, बछड़े के साथ चढायी जाने वाली अन्न-बलि एक एफा होगी और मेढ़े के साथ एक एफा और मेमनों के साथ उतना, जितना कोई दे सकता है।
12) शासक जब स्वेच्छा बलि देता है- चाहे वह स्वेच्छा बलि के रूप में प्रभु को चढायी जाने वाले होम-बलि हो या शान्ति-बलियाँ तो उसके लिए पूर्व मुख वाला फाटक खोल दिया जायेगा और वह अपनी होम-बलि या शांति-बलियाँ उसी प्रकार चढायेगा, जैसे वह विश्राम-दिवस पर चढाता है। इसके बाद वह बाहर जायेगा और उसके बाहर जाने के बाद फाटक बन्द कर दिया जायेगा।
13) ''वह प्रभु को चढायी जाने वाली होम-बलि के लिए प्रतिदिन एक वर्ष के अदोष मेमने का प्रबन्ध करेगा; वह प्रत्येक प्रातःकाल के लिए उसका प्रबन्ध करेगा।
14) वह प्रभु को चढायी जाने वाली होम-बलि के रूप में प्रत्येक प्रातः काल उसके साथ एफ के छठे भाग और आटा सानने के लिए एक तिहाई हिन तेल का प्रबन्ध करेगा। अनवरत होम-बलि सम्बन्धी आदेश यही है।
15) अनवरत होम-बलि के लिए मेमने और अन्न-बलि तथा तेल का प्रबन्ध इसी रूप में किया जाता रहेगा।
16) ''प्रभु-ईश्वर यह कहता है : यदि शासक अपने पुत्रों में किसी को अपने दायभाग से दान देता है, तो वह उसके पुत्रों का होगा। वह सम्पति उन्हें दायभाग के रूप में मिली है।
17) लेकिन यदि वह अपने दायभाग से अपने किसी सेवक को दन देता है, तो वह उसके उद्धार के वर्ष तक ही उसका रहेगा। उसके बाद वह फिर शासक का हो जायेगा। उसके दायभाग से किये दान पर केवल उसके पुत्रों का अधिकार बना रहेगा।
18) प्रजा के दायभाग का कोई भाग, उसे अपनी सम्पत्ति से निष्कासित कर, शासक नहीं ले सकेगा। वह केवल अपनी सम्पत्ति से अपने पुत्रों को उनका दायभाग देगा, जिससे मेरी प्रजा में कोई भी अपनी सम्पत्ति से वंचित नहीं होगा।''
19) इसके बाद वह मुझे प्रवेश-मार्ग से, जो फाटक की बगल में था, याजकों के पवित्र कक्षों की उत्तरी कतार के पास ले गया और वहाँ उनके सुदूर पश्चिमी सिरे पर मुझे एक स्थान दिखाई पड़ा।
20) उसने मुझ से यह कहा, 'यह वही स्थान है, जहाँ याजक क्षतिपूर्र्ति-बलि और प्रायश्चित्त-बलि की सामग्री पकायेंगे और अन्न बलि तैयार करेंगे, जिससे उन्हें बाहरी प्रांगण में लाना न पड़े और उनकी पवित्रता लोगों का स्पर्श न करे।''
21) तब वह मुझे बाहरी प्रांगण में ले आया और उसने मुझे प्रांगण के चारों कोनों तक घुमाया। प्रांगण के प्रत्येक कोने में एक प्रांगण था।
22) प्रांगण के चारों कोनों में चालीस हाथ लम्बे और बीस हाथ चौड़े छोट-छोटे प्रांगण थे। चारों की लम्बाई-चौडाई एक-जैसी थी।
23) भीतर, चारों प्रांगणों में प्रत्येक के चारों ओर पत्थर की एक दीवार थी और इन दीवारों के ठीक नीचे चारों ओर चूल्हे बने हुए थे।
24) उसने मुझ से कहा, ''यही वे रसोईघर है, जहाँ मन्दिर का सेवाकार्य करने वाले लोगों द्वारा चढायी जाने वाली बलियों की सामग्री पकायेंगे''।

अध्याय 47

1) वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पार्श्व के नीचे से बह रहा था।
2) वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पार्श्व से टपक रहा है।
3) उसने हाथ में माप की डोरी ले कर पूर्व की ओर जाते हुए एक हजार हाथ की दूरी नापी। तब उसने मुझे जलधारा को पार करने को कहा- पानी टखनों तक था।
4) उसने फिर एक हजार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने को कहा- पानी घुटनों तक था। उसने फिर एक हजार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने के कहा- पानी कमर तक था।
5) उसने फिर एक हजार हाथ की दूरी नापी- अब मैं उस जलधारा को पार नहीं कर सकता था, पानी इतना बढ़ गया था कि तैर कर ही पार करना संभव था। वह जलधारा ऐसी थी कि उसे कोई पार नहीं कर सकता था।
6) उसने मुझ से कहा, ''मानवपुत्र! क्या तुमने इसे देखा?'' तब वह मुझे ले गया और बाद में उसने मुझे फिर जलधारा के किनारे पर पहुँचा दिया।
7) वहाँ से लौटने पर मुझे जलधारा के दोनों तटों पर बहुत-से पेड़ दिखाई पड़े।
8) उसने मुझ से कहा, ''यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।
9) यह नदी जहाँ कहीं गुजरती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।
10) समुद्र के किनारे मछुआरे खड़े रहेंगे। एक गेदी से कर एन-एगलईम तक का स्थान जाल फैलाने का होगा। उसकी मछलियाँ भी महासमुद्र की मछलियों की तरह प्रचुर होंगी
11) किन्तु उसकी दलदलें और समुद्र ताल मीठे नहीं हो सकेंगे; वे नमक के लिए छोड़ दिये जायेंगैे।
12) नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।
13) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, ''इस्राएल के बारह कुलों के बीच दायभाग के रूप में इस देश का विभाजन तुम इन्हीं सीमाओं के आधार पर करोगे। यूसुफ को दो भाग मिलेंगे।
14) और तुम इसका विभाजन एक समान करोगे। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को को इसे देने की शपथ खायी थी और यह देश तुम्हें दायभाग के रूप में प्राप्त होगा।
15) ''देश की सीमा यह होगी : उत्तर में महासमुद्र से हेतलोन होते हुए हमात के प्रवेश-मार्ग और उसे से आगे सदाद,
16) बेरोता, सिब्रईम (जो दमिश्क और हमात के बीच की सीमा पर है) और हासेर-हत्तीकोन तक, जो हवरान की सीमा पर है।
17) इस प्रकार यह सीमा समुद्र से हसर-एनान तक जायेगी, जो दश्मिक की उत्तरी सीमा पर है और उत्तर की ओर भी हमात की सीमा पर है। यह उत्तरी सीमा होगी।
18) ''पूर्व में हवरान और दमिश्क के बीच, गिलआद और इस्राएल देश के बीच, पूर्वी समुद्र और तामार तक यर्दन नदी सीमा होगी। यही पूर्वी सीमा होगी।
19) ''दक्षिणी में यह तामार से मरीबा-कादेश के जलाशयों तक और वहाँ मिस्र के नाले के किनारे-किनारे महासमुद्र तक जायेगी। यही दक्षिणी सीमा होगी।
20) ''पश्चिम में हमात के प्रवेश-मार्ग के सामने के स्थान तक महासमुद्र इसकी सीमा होगी। यह पश्चिमी सीमा होगी।
21) ''तुम लोग इस देश को आपस में इस्राएल के कुलों के अनुसार बाँटोगे।
22) तुम लोग इसे अपने दायभाग के रूप में अपने लिए और उन प्रवासियों के लिए, जो तुम्हारे यहाँ रह रहे हैं और जिनकी सन्तति का तुम्हारे यहाँ जन्म हुआ है, विभाजित कर दोगे। वे तुम्हारे लिए इस्राएल के मूल निवासियों की सन्तान-जैसे होंगे। तुम्हारे साथ उन्हें भी इस्राएल के कुलों के बीच दायभाग प्राप्त होगा।
23) जिस किसी कुल में प्रवासी निवास करेगा, तुम उसे उसी कुल में दायभाग दोगे। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

अध्याय 48

1) ''कुलों के नाम इस प्रकार हैं : उत्तरी सीमा पर, समुद्र की ओर से हेतलोन हो कर हमात के प्रवेश-मार्ग तक, हसर-एनान तक (जो हमात के सामने दमिश्क की उत्तरी सीमा पर है) तथा पूर्व दिशा से ले कर पश्चिमी तकः दान, एक भाग।
2) दान के सीमान्त पर पूर्व दिशा से पश्चिम तक : आशेर, एक भाग।
3) आशेर के सीमान्त पर पूर्व दिशा में पश्चिम तक : नफ्ताली, एक भाग।
4) नफ्ताली के सीमान्त पर पूर्व दिशा में पश्चिम तक : मनस्से, एक भाग।
5) मनस्से के सीमान्त पर पूर्व दिशा से पश्चिम तक : एफ्राईम, एक भाग।
6) एफ्राईम के सीमान्त पर पूर्व दिशा से पश्चिम तक : रूबेन, एक भाग।
7) रूबेन के सीमान्त पर पूर्व दिशा से पश्चिम तक : यूदा, एक भग।
8) ''यूदा के सीमान्त पर पूर्व की ओर से पश्चिम तक पच्चीस हजार हाथ चौड़ा और एक कुल की पूर्वी से पश्चिमी सीमा तक के भाग के बराबर लम्बा एक भूभाग, जिसके बीचोबीच पवित्र-स्थान होगा, तुम अलग कर दोगे।
9) तुम प्रभु के लिए जो भूभााग अलग करोगे, वह पच्चीस हजार हाथ लम्बा और बीस हजार हाथ चौड़ा होगा।
10) इस पवित्र भूभाग का विभाजन इस प्रकार किया जायेगा : उत्तर में पच्चीस हजार हाथ लम्बा, पश्चिम में दस हजार हाथ चौड़ा, पूर्व में दस हजार हाथ चौड़ा और दक्षिण में पच्चीस हजार हाथ लम्बा भाग याजकों का होगा; प्रभु का पवित्र स्थान इसके बीचोबीच होगा।
11) यह भाग उन, सादोकवंशी अभिषिक्त याजकों के लिए होगा, जो मेरी सेवा करते रहे और जो उस समय, जब इस्राएली लोग भटक गये थे, तो लेवियों की तरह नहीं भटके थे।
12) यह ठीक लेवियों के भूमिक्षेत्र के पास देश के पवित्र भाग- एक अत्यंत पवित्र स्थान- के विशेष भाग के रूप में उन को मिलेगा
13) और याजकों के भूमिक्षेत्र के पास लेवियों को पच्चीस हजार हाथ लंबा और दस हजार हाथ चौड़ा एक भाग दिया जायेगा। उसकी कुल लम्बाई पच्चीस हजार हाथ और चौडाई पच्चीस हजार हाथ होगी।
14) वे न तो इसका कोई हिस्सा बेचेंगे और न इसकी अदला-बदली करेंगे। देश के इस उत्तम भाग को वे हस्तान्तरित नहीं करेंगे; क्योंकि यह प्रभु की दष्टि में पवित्र है।
15) ''पाँच हजार हाथ चौड़ा और पच्चीस हजार हाथ लम्बा शेष भाग नगर के सामान्य उपयोग, घर बनाने और खुले स्थान के लिए होगा। नगर उसके ठीक मध्य में होगा।
16) उसकी लम्बाई-चौडाई इस प्रकार होगी- उत्तरी भाग साढे चार हजार हाथ, दक्षिणी भाग साढे चार हजार हाथ, पूर्वी भाग साढे चार हजार तथा पश्चिमी भाग साढे चार हजार हाथ।
17) नगर में एक खुला स्थान रहेगा- उत्तर में ढाई सौ हाथ; दक्षिण में ढाई सौ हाथ। पूर्व में ढाई सौ हाथ और पश्चिम में ढाई सौ हाथ।
18) पवित्र भूभाग में संलग्न लम्बाई का शेष भाग पूर्व की ओर दस हजार हाथ होगी और पश्चिम की ओर दस हजार हाथ। यह पवित्र भाग से संलग्न होगा। इसकी उपज से नगर के मजदूरों को भोजन प्राप्त होगा।
19) नगर के मजदूर, जो इस्राएल के सभी कुलों के होंगे, इसे जोतेंगे।
20) तुम्हारे द्वारा अलग किया हुआ समस्त भूभाग पच्चीस हजार वर्ग अर्थात् नगर की भूसंपत्ति-संहित पवित्र भूभाग होगा।
21) ''पवित्र भूभाग और नगर की भूसंपत्ति के दोनों ओर का अवशिष्ट भाग शासक का होगा। पवित्र भूभाग की पच्चीस हजार हाथ भूमि से ले कर पूर्वी सीमा तक और पश्चिमी में पच्चीस हजार हाथ भूमि से लेकर पश्चिमी सीमा तक, कुलों के भागों के समानान्तर यह क्षेत्र शासक का होगा। इसके बीच पवित्र भूभाग और मन्दिर का पवित्र-स्थान होगा।
22) लेवियों की भूसंपत्ति तथा नगर की भू-संपत्ति शासक के भाग के बीचोंबीच रहेगी शासक का भाग यूदा के भूमिक्षेत्र और बेनयामीन के भूमिक्षेत्र के बीचोंबीच अवस्थित होगा।
23) ''जहाँ तक शेष कुलों का सम्बन्ध है, पूर्व की ओर से पश्चिम तकः बेनयामीन, एक भाग।
24) बेनयामीन के सीमांत पर पूर्व की ओर से पश्चिम तक : सिमओन, एक भाग।
25) सिमओन के सीमांत से पूर्व की ओर से पश्चिम तक : इस्साकार, एक भाग।
26) इस्साकार के सीमांत से पूर्व की ओर से पश्चिम तक : जबुलोन, एक भाग।
27) जबुलोन के सीमांत से पूर्व की ओर से पश्चिम तक : गाद, एक भाग
28) और गाद के सीमांत से दक्षिण की ओर सीमा तामार से मरीबा कादेश के जलाशयों तक और वहाँ से मिस्र के नाले से महासमुद्र तक जायेगी।
29) यही वह देश है, जिसे तुम इस्राएल के विभिन्न कुलों के बीच दायभाग के रूप में विभाजित करोगे और यही उनके विभिन्न भाग हैं। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
30) ''नगर के बाहर जाने के मार्ग ये होंगे : उत्तर की ओर, जिसकी माप चार हजार पाच सौ हाथ होगी,
31) तीन फाटक : रूबेन का फाटक, यूदा का फाटक और लेवी का फाटक- इस्राएल के कुलों के नामों के अनुसार नगर के फाटक होंगे।
32) पूर्व की ओर, जो चार हजार पांच सौ हाथ लंबा होगा, तीन फाटक : यूसुफ का फाटक, बेनयामीन का फाटक और दान का फाटक।
33) दक्षिण की ओर, जिसकी माप चार हजार पाँच सौ हाथ होगी, तीन फाटक : सिमओन का फाटक, इस्साकार का फाटक और जबुलोन का फाटक।
34) पश्चिम की ओर, जिसका विस्तार पाँच हजार पाँच सौ हाथ होगा, तीन फाटकः गाद का फाटक, आशेर का फाटक और नफ्ताली का फाटक।
35) नगर का घेरा अठारह हजार हाथ होगा और तब से नगर का नाम रहेगा-'प्रभु यहाँ है'।''