पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

यिरमियाह का ग्रन्थ ( Jeremiah )

अध्याय 1

1) ये शब्द यिरमियाह के हैं, जो बेनयामीन प्रान्त के अनातोत में निवास करने वाले याजक हिलकीया का पुत्र है।
2) आमोन के पुत्र, यूदा के राजा योशीया के शासनकाल के तेरहवें वर्ष यिरमियाह को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी।
3) फिर योशीया के पुत्र, यूदा के राजा यहोयाकीम के शासनकाल से ले कर योशीया के पुत्र, यूदा के राजा सिदकीया के शासनकाल के ग्यारहवें वर्ष के अन्त तक। इसी वर्ष के पाँचवें महीने में येरुसालेम के निवासियों को निर्वासित किया गया।
4) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी-
5) ''माता के गर्भ में तुम को रचने से पहले ही, मैंने तुम को जान लिया। तुम्हारे जन्म से पहले ही, मैंने तुम को पवित्र किया। मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया।''
6) मैंने कहा, ''आह, प्रभु-ईश्वर! मुझे बोलना नहीं आता। मैं तो बच्चा हूँ।''
7) परन्तु प्रभु ने उत्तर दिया, ''यह न कहो- मैं तो बच्चा हूँ। मैं जिन लोगों के पास तुम्हें भेजूँगा, तुम उनके पास जाओगे और जो कुछ तुम्हें बताऊगा, तुम वही कहोगे।
8) उन लोगों से मत डरो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। यह प्रभु वाणी है।''
9) तब प्रभु ने हाथ बढ़ा कर मेरा मुख स्पर्श किया और मुझ से यह कहा, ''मैं तुम्हारे मुख में अपने शब्द रख देता हूँ।
10) देखो! उखाड़ने और गिराने, नष्ट करने और ढा देने, निर्माण करने और रोपने के लिए मैं आज तुम्हें राष्ट्रों तथा राज्यों पर अधिकार देता हूँ।''
11) प्रभु की वाणी मुझे सुनाई पड़ीः ''यिरमियाह! तुम क्या देख रहे हो?'' मैंने उत्तर दिया, ''मुझे बादाम की डाली दिखाई दे रही है।''
12) प्रभु ने मुझ से कहा, ''तुम ने ठीक ही देखा है। मैं अपनी वाणी पूरी करने का ध्यान रखता हूँ।''
13) प्रभु की वाणी मुझे फिर सुनाई पड़ीः ''तुम क्या देख रहे हो?'' मैंने कहा, ''मुझे एक उबलती हुई केतली दिखाई दे रही है; उसका मुँह उत्तर की ओर है।''
14) प्रभु ने मुझ से कहा, ''उत्तर की ओर से देश के सब निवासियों पर विपत्तियाँ आयेंगी।
15) मैं उत्तर के राज्यों के सब कुलों को बुला रहा हूँ।'' यह प्रभु की वाणी है। ''वे येरुसालेम के फाटकों के पास, उसकी चारदीवारी के सामने और यूदा के सब नगरों के सामने अपने सिंहासन स्थापित करेंगे।
16) तब मैं उनके कुकर्मों के कारण उनका न्याय करूँगा, क्योंकि उन्होंने मेरा परित्याग किया, पराये देवताओं को धूप चढ़ायी और अपने हाथ की कृतियों की आराधना की।
17) अब तुम कमर कस कर तैयार हो जाओ और मैं तुम्हें जो कुछ बताऊँ, वह सब सुना दो। तुम उनके सामने भयभीत मत हो, नहीं तो मैं तुम को उनके सामने भयभीत बना दूँगा।
18) देखो! इस सारे देश के सामने, यूदा के राजाओं, इसके अमीरों, इसके याजकों और इसके सब निवासियों के सामने, मैं आज तुम को एक सुदृढ़ नगर के सदृश, लोहे के खम्भे और काँसे की दीवार की तरह खड़ा करता हूँ।
19) वे तुम्हारे विरुद्ध लडेंगे, किन्तु तुम को हराने में असमर्थ होंगे; क्योंकि मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।

अध्याय 2

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी -
2) ''जाओ और येरुसालेम को यह सन्देश सुनाओ। प्रभु यह कहता हैः मुझे तेरी जवानी की भक्ति याद है, जब तू मुझे नववधू की तरह प्यार करती थी। तू मरुभूमि में, बंजर भूखण्ड में मेरे पीछे-पीछे चलती थी।
3) उस समय इस्राएल प्रभु की अपनी पवित्र वस्तु था, उसकी फ़सल के प्रथम फल। जो उस में कुछ लेने का साहस करते थे, उन्हें दण्ड दिया जाता था, उन पर विपत्ति आ पड़ती थी।'' यह प्रभु की वाणी है।
4) याकूब के घरानो! इस्राएल के सब वंशजो! प्रभु की बात सुनो।
5) प्रभु यह कहता है, ''तुम्हारे पूर्वजों ने मुझ में क्या दोष पाया कि वे मुझे छोड़ कर निस्सार मूर्तियों के अनुयायी बने और स्वयं निस्सार बन गये?
6) उन्होंने यह नहीं पूछा कि वह प्रभु कहाँ है, जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया, जो उस उजाड़ प्रदेश में हमारा पथप्रदर्शन करता था, जहाँ मरुस्थल और खड्ड थे, जहाँ सूखा और अन्धकार था, जहाँ न तो कोई गुजरता या निवास करता था।
7) में तुम लोगों को एक उपजाऊ भूमि में ले आया। मैंने तुम्हें उसके उत्तम फलों से तृप्त किया। किन्तु तुम लोगों ने उस में प्रवेश करते हुए उसे अपवित्र कर दिया, जिससे मुझे अपनी विरासत से घृणा हो गयी है।
8) याजकों को प्रभु की कोई चिन्ता नहीं थी। संहिता के शास्त्री मेरी कोई परवाह नहीं करते थे। शासक मेरे विरुद्ध विद्रोह करते थे। नबी, बाल के नबी बन कर, ऐसे देवताओं के अनुयायी हो जाते थे, जिन से कोई लाभ नहीं।''
9) प्रभु कहता है, ''मैं तुम लोगों पर दोष लगाऊँगा, तुम पर और तुम्हारे पुत्रों के पुत्रों पर।
10) कित्ती जाति के द्वीपों को जा कर देखो, केदार प्रेदश में दूत भेज कर यह पता लगाओ कि क्या वहाँ कभी ऐसी बात हुई है।
11) क्या कभी किसी राष्ट्र ने अपने देवताओं को बदला? और वे तो देवता हैं ही नहीं, किन्तु मेरी प्रजा ने अपने ऐश्वर्यमय ईश्वर के बदले निस्सार देवताओं को अपनाया।
12) आकाश इस पर आश्चर्य करे और विस्मित हो कर काँपें।'' यह प्रभु की वाणी है।
13) ''मेरी प्रजा ने दो अपराध कर डालेः उसने मुझे, संजीवन जल के स्त्रोत को त्याग दिया और अपने लिए ऐसे कुण्ड बनाये, जिन में दरारें हैं और जिन में पानी नहीं ठहरता।
14) ''इस्राएल दास नहीं है, वह दासता में नहीं जन्मा है, तो वह क्यों लूट का शिकार हुआ?
15) सिंह उसके विरुद्ध गरजते हैं, वे उसे देख कर दहाड़ते हैं। उन्होंने उसका देश उजाड़ा है। उसका नगर जला कर निर्जन बना दिया गया है।
16) मेमफ़िस और तहपनहेस के लोगों ने तुम्हारा सिर फोड़ा है।
17) क्या यह तुम्हारे साथ इसलिए नहीं हुआ कि तुमने अपने प्रभु-ईश्वर का परित्याग किया, जब वह तुम्हारा पथप्रदर्शन करता था?
18) अब तुम क्यों मिस्र जा कर नील नदी का पानी पीना चाहते हो? तुम क्यों अस्सूर जा कर फ़रात नदी का पानी पीना चाहते हो?
19) तुम्हारी दुष्टता तुम को दण्ड देती है। तुम्हारा विश्वासघात तुम को मारता है। इस पर विचार करो और जान लो कि अपने प्रभु-ईश्वर का परित्याग करना और मुझ पर श्रद्धा नहीं रखना तुम्हारे लिए कितना दुःखद और कटु है।'' यह सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
20) ''तुमने बहुत समय पहले से ही अपना जुआ तोड़ा और अपने बन्धन खोल कर फेंक दिये। तुमने कहा, 'मैं तेरी सेवा नहीं करूँगी'। तुम हर ऊँची पहाड़ी पर और हर घने पेड़ के नीचे व्यभिचारिणी की तरह लेट गयी।
21) मैंने तुम को श्रेष्ठ जाति की उत्तम दाखलता की तरह रोपा। तुम्हारी डालियाँ कैसे जंगली दाखलता में बदल गयी हैं?
22) चाहे तुम अपने को क्षार से धोती और साबुन मल-मल कर नहाती रहो, तुम्हारे दोष की मैल मेरे सामने बनी रहेगी।'' यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
23) ''तुम यह कैसे कह सकती हो, 'मैं निर्दोष हूँ, मैंने बाल-देवताओं का अनुसरण नहीं किया? घाटी में तुम्हारा आचरण कैसा रहा? इस पर विचार करो कि तुमने क्या किया। तुम चंचल साँड़नी की तरह इधर-उधर दौड़ती रही,
24) उजाड़खण्ड की गधी की तरह, जो कामातुर हो कर हवा सूँघती है, जो अपनी मस्ती में किसी के वश में नही रहती। उसे ढूँढ़ने वालों को व्यर्थ परिश्रम नहीं करना पड़ता है, वह उन्हें संगम ऋतु में मिलेगी।
25) सावधान रहो। नहीं तो तुम्हारे जूते घिस जायेंगे, तुम्हारा गला सूख जायेगा, किन्तु तुम कहती हो, 'यह सब व्यर्थ है। मैं पराये देवताओं को प्यार करती हूँ। मुछे उनके पास जाना है।'
26) ''जिस प्रकार पकड़े जाने पर चोर लज्जित होता है, उसी प्रकार इस्राएलियों को लज्जित होना पड़ेगा- उन को, उनके राजाओं और अधिकारियों को, उनके याजकों और उनके नबियों को।
27) वे काठ से कहते हैं, 'तू ही हमारा पिता है', और शिला से, 'तूने हमें जन्म दिया है'। वे मेरी और अपनी पीठ करते, किन्तु मुझ से मँह नहीं फेरते हैं किन्तु ज्यों ही उन पर विपत्ति आती है, वे मुझ से कहते हैं, 'आ कर हमारी रक्षा कर'।
28) तुम्हारे बनाये देवता कहाँ हैं? जब तुम पर विपत्ति आती है, तो वे आ कर तुम्हारी रक्षा करें। यूदा! जितने तुम्हारे नगर हैं, उतने ही तुम्हारे देवता हैं!
29) तुम क्यों मेरी शिकायत करते हो? तुम सबों ने मुझ से विद्रोह किया।'' यह प्रभु की वाणी है।
30) ''मैंने तुम्हारी प्रजा को दण्ड दिया, किन्तु उस से उसका सुधार नहीं हुआ। तुम्हारी अपनी तलवार ने हिंसक सिंह की तरह तुम्हारे नबियों को फाड़ खाया है।
31) इस पीढ़ी के लोगों! तुम प्रभु के इस कथन पर ध्यान दो : क्या मैं इस्राएल के लिए उजाड़खण्ड या अँधेरी रात्रि का देश बन गया हूँ? मेरी प्रजा यह क्यों कहती हैः 'हम जहाँ चाहेंगे, वहाँ आयेंगे? हम फिर तेरे पास नहीं आयेंगे'?
32) क्या कोई युवती अपने आभूषण या कोई वधू अपना श्रृंगार भूल सकती है? किन्तु मेरी प्रजा ने न जाने कितने दिनों से मुझे भुला दिया है।
33) तुम अपने प्रेमी का पता लगाने में कितने षड्यन्त्र रचती हो! तुम बुराई करने में कितनी चतुर हो!
34) निर्दोष दरिद्रों का रक्त तेरे वस्त्रों की गोट पर लग गया है, यद्यपि तुमने उन्हें सेंध मारते नहीं पकड़ा।
35) फिर भी तुम कहती हो, 'मैं निर्दोष हूँ। उसका क्रोध मुझ से दूर हो जायेगा।' किन्तु मैं तुम को न्यायालय में बुलाता हूँ; क्योंकि तुम कहती हो, 'मैंने कोई पाप नहीं किया'।
36) तुम कितनी आसानी से अपना मार्ग बदलती रहती हो! मिस्र भी उसी प्रकार तुम को निराश करेगा, जिस प्रकार अस्सूर ने तुम को निराश किया।
37) तुम सिर पर हाथ रख कर वहाँ से भी लौटोगी; क्योंकि प्रभु ने उन्हें त्याग दिया, जिन पर तुम भरोसा रखती हो। तुम्हें उन से कोई सहायता नहीं मिलेगी।

अध्याय 3

1) ''यदि कोई पुरुष अपनी पत्निी को त्याग दे और वह जा कर किसी दूसरे से विवाह करे, तो क्या वह उसे फिर स्वीकार करेगा? क्या वह पूरी तरह अपवित्र नहीं हो गयी है? तुमने बहुत-से प्रेमियों के साथ व्यभिचार किया। क्या तुम अब मेरे पास लौटना चाहती हो?'' यह प्रभु की वाणी है।
2) ''पहाड़ी शिखरों की ओर आँख उठा कर देखो। क्या वहाँ कोई ऐसी जगह है, जहाँ तुमने व्यभिचार नहीं किया? तुम मरुभूमि में अरबी की तरह रास्ते के किनारे अपने प्रेमियों की प्रतीक्षा करती रही। तुमने अपनी वेश्यावृत्ति और दुष्टता से देश को दूषित किया।
3) जब तुम्हारे यहाँ पानी नहीं बरसा और वसन्त-ऋतु में होने वाली वर्षा नहीं हुई, तो तुम वेश्या की तरह आँखें मटका रही हो और तुम्हें लाज नहीं लगती।
4) तब भी तुम मुझ से कहती होः 'तू मेरा पिता है। तू बचपन से मेरा मित्र रहा।
5) क्या वह सदा के लिए मुझ पर अप्रसन्न रहेगा, क्या उसका क्रोध कभी शान्त नहीं होगा?' तुम यह कहती हो और पाप-पर-पाप करती जाती हो।''
6) राजा योशीया के शासनकाल में प्रभु ने मुझ से कहाः ''क्या तुमने यह देखा कि इस्राएल की विश्वासघातिनी प्रजा ने क्या किया है? उसने ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ कर हर घने वृक्ष के नीचे व्यभिचार किया।
7) मेरा विचार था कि यह सब करने के बाद वह मेरे पास लौटेगी, किन्तु वह नहीं लौटी। उसकी बहन, कपटपूर्ण यूदा ने यह देखा।
8) मैंने भी देखा। मैंने उसके व्यभिचार के कारण विश्वासघातिनी इस्राएल को त्यागपत्र दे कर छोड़ दिया। किन्तु उसकी बहन, कपट पूर्ण यूदा नहीं डरी। वह भी व्यभिचार करने लगी।
9) उसने अपनी चपलता और दुराचरण से पृथ्वी को दूषित किया। वह पत्थर और लकड़ी की पूजा द्वारा व्यभिचार करती है।
10) इन सब बातों के बावजूद उसकी बहन, कपटपूर्ण यूदा सच्चे हृदय से नहीं, बल्कि दिखावे के लिए मेरे पास लौटी।'' यह प्रभु की वाणी है।
11) प्रभु ने मुझ से कहाः ''कपटपूर्ण यूदा की अपेक्षा विश्वासघातिनी इस्राएल कम दोषी है।
12) तुम उत्तर की ओर जा कर यह सन्देश सुनाओः 'विश्वासघातिनी इस्राएल! मेरे पास लौटो'। -यह प्रभु की वाणी है- 'मैं तुम पर और अप्रसन्न नहीं होऊँगा, क्योंकि मैं दयालु हूँ'। -यह प्रभु की वाणी है- 'मैं सदा के लिए तुम पर क्रोध नहीं करूँगा।
13) तुम अपना दोष स्वीकार करो। तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से विद्रोह किया। तुमने अपने को हर घने वृक्ष के नीचे पराये देवताओं के प्रति अर्पित किया। तुमने मेरी वाणी पर ध्यान नहीं दिया।'' - यह प्रभु की वाणी है।
14) प्रभु यह कहता हैः ''विद्रोही पुत्रो! मेरे पास लौट आओ। मैं ही तुम्हारा स्वामी हूँ। मैं तुम लोगों को, सब नगरों और राष्ट्रों से निकाल कर, सियोन में वापस ले आऊँगा।
15) में तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहों को प्रदान करूँगा, जो विवेक और बुद्धिमानी से तुम्हें चरायेंगे।''
16) प्रभु यह कहता हैः ''जब देश में तुम लोगों की संख्या बहुत बढ़ेगी और तुम्हारी बड़ी उन्नति होगी, तब कोई प्रभु के विधान की मंजूषा की चरचा नहीं करेगा। कोई उसे याद नहीं करेगा। किसी को उसका अभाव नहीं खटकेगा और उसके स्थान पर कोई दूसरी मंजूषा नहीं बनायी जायेगी।
17) उस समय येरुसालेम 'प्रभु का सिंहासन' कहलायेगा। सभी राष्ट्र प्रभु के नाम पर येरुसालेम में एकत्र हो जायेंगे। वे फिर कभी अपने दुष्ट और हठीले हृदय की वासनाओं के अनुसार नहीं चलेंगे।
18) उस समय यूदा के लोग इस्राएल के लोगों से मेल करेंगे और वे एक साथ उत्तर के देश से आ कर उस देश में प्रवेश करेंगे, जिसे मैंने विरासत के रूप में उनके पूर्वजों को दिया है।
19) ''मैं सोचता था, मैं कितना चाहता हूँ कि तुम लोगों के साथ अपने पुत्रों-जैसा व्यवहार करूँ और तुम को एक ऐसा सुखद देश प्रदान करूँ, जो किसी भी अन्य देश से सुन्दर है। मैं सोचता था, तुम मुझे पिता कह कर पुकारोगे और तुम फिर मेरा परित्याग नहीं करोगे।
20) किन्तु जिस प्रकार पत्नी अपने पति के साथ विश्वासघात करती है, उसी प्रकार तुम, इस्राएल ने मेरे साथ विश्वासघात किया।'' यह प्रभु की वाणी है।
21) इस्राएली उजाड़ पहाड़ों पर क्रन्दन करते और दुहाई देते हैं। वे टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर भटक गये हैं। उन्होंने अपने प्रभु-ईश्वर को भुला दिया है।
22) ''विश्वासघाती पुत्रो! मेरे पास लौटो मैं तुम्हारे विश्वासघात का घाव भर दूँगा।'' ''देख, हम तेरे पास आ रहे हैं; क्योंकि तू ही हमारा प्रभु-ईश्वर है।
23) पहाड़ियों और पर्वतों पर की पूजा कोलाहलपूर्ण धोखा मात्र है। निश्चय ही हमारे प्रभु-ईश्वर में इस्राएल का कल्याण है।
24) हमारी युवावस्था के समय घृणित देवता हमारे पूर्वजों के परिश्रम के फल को, हमारी भेड़-बकरियों, गाय-बैल, हमारे पुत्र-पुत्रियों को खाते आ रहे हैं।
25) हम लज्जा के मारे जमीन में गड़ गये हैं, हमारा कलंक हमें ढ़क रहा है। हमने और हमारे पूर्वजों ने अपने प्रभु-ईश्वर के विरुद्ध पाप किया है। हमने अपनी युवावस्था से आज तक अपने प्रभ्ुा-ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया।''

अध्याय 4

1) प्रभु यह कहता है, ''इस्राएल! यदि तुम लौटते हो, तो तुम्हें मेरे पास लौटना चाहिए। यदि तुम अपने सामने से अपनी देवमूर्तियों को दूर करोगे, तो तुम फिर नहीं भटकोगे।
2) यदि तुम सच्चाई, न्याय और निष्कपट हृदय से जीवन्त ईश्वर की शपथ खाओगे, तो राष्ट्रों को प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होगा और वे उस पर गौरव करेंगे।''
3) क्योंकि प्रभु यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों से यह कहता हैः ''अपनी पड़ती जमीन को जोतो और काँटों में बीज मत बोओ।
4) यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों! प्रभु के लिए अपने शरीर और अपने हृदय का ख़तना करो। नहीं तो तुम्हारे कुकर्मों के कारण मेरा क्रोध आग की तरह भड़क उठेगा और कोई उसे बुझाने में समर्थ नहीं होगा।
5) ''यूदा में प्रकट करो और येरुसालेम में यह घोषित करोः 'देश भर में तुरही बजाओ! पुकार-पुकार कर यह कहो; 'हम सब मिल कर किलाबन्द नगरों की शरण लें'।
6) सियोन जाने का झण्डा फहराओ! अविलम्ब रक्षा के लिए भाग जाओ; क्योंकि मैं उत्तर की ओर से तुम्हारे लिए विपत्ति और संहार लाने वाला हूँ।''
7) सिंह अपनी माँद से निकला है, राष्ट्रों का विध्वंसक चल पड़ा है। वह तुम्हारा देश उजाड़ने अपने यहाँ से बाहर निकला है। तुम्हारे नगर उजड़ जायेंगे, उन में कोई निवासी नहीं रह पायेगा।
8) इसलिए टाट के वस्त्र ओढ़ कर शोक मनाओ और विलाप करो; क्योंकि प्रभु का भीषण क्रोध हम पर से दूर नहीं हुआ है।
9) प्रभु यह कहता है, ''उस दिन राजा और अधिकारियों का साहस जाता रहेगा। याजक स्तब्ध रह जायेंगे और नबी विस्मित हो उठेंगे।''
10) इस पर मैंने कहा, ''हाय, प्रभु-ईश्वर! तूने इस प्रजा और येरुसालेम को यह कहते हुए धोखा दिया कि 'तुम्हें शान्ति प्राप्त होगी' और अब हमें तलवार के घाट उतारा जायेगा'।
11) (११-१२) उस समय इस प्रजा और येरुसालेम से यह कहा जायेगाः ''मरुभूमि के उजाड़ पहाड़ों की ओर से मेरी प्रजा पर लू चलेगी। किन्तु वह प्रचण्ड लू छानने या ओसाने के लिए नहीं आयेगी। मैं तुम्हें दण्ड देने के लिए उसे तुम पर भेज रहा हूँ।''
13) वह घने बादल की तरह आ रहा है। उसके रथ बवण्डर की तरह हैं। उसके घोड़े गरुड़ से भी तेज हैं। हाय! हमारा विनाश हो जायेगा।
14) येरुसालेम! अपने हृदय से बुराई निकाल दे, जिससे तू बच सके! तेरे बुरे विचार तुझ से कब निकलेंगे?
15) दान से, एफ्राईम के पहाड़ी प्रदेश से एक वाणी विपत्ति के आगमन की घोषणा कर रही है।
16) ''यूदा को सूचित करो, येरुसालेम को सुना दोः 'शत्रु दूर देश से आक्रमण करने आ रहा है वह यूदा के नगरों को ललकार रहा है।
17) वह खेत के रखवालों की तरह उसे चारों ओर से घेर रहा है।'' यह प्रभु की वाणी है।
18) ''यह सब तेरे आचरण और कुकर्मों के कारण हो रहा है। यह तेरी दुष्टता का फ़ल है। यह कितना कटु है! यह तेरा हृदय, छेद रहा है!
19) ओ, मेरे हृदय, मेरे हृदय! मैं पीड़ा से तड़पता हूँ! ओ! मेरे हृदय की प्राणपीड़ा, मेरे हृदय की धड़कने! मैं चुप नहीं रह सकता, क्योंकि रणसिंघे की आवाज और युद्ध का कोलाहल सुन रहा हूँ।
20) विपत्ति-पर-विपत्ति का समाचार आ रहा है। सारा-का-सारा देश उजाड़ हो रहा है। मेरा शिविर अचानक उठाया गया और क्षण भर में मेरे तम्बू!
21) मैं कब तक युद्ध का झण्डा देखता रहूँ? मैं कब तक रणसिंघे की आवाज सुनता रहूँ?
22) ''मेरी प्रजा निश्चय ही मूर्ख है। वे मुझे नहीं जानते। वे नासमझ बच्चे हैं और कुछ नहीं समझते। वे कुकर्मों में बहुत कुशल हैं, किन्तु भलाई करना नहीं जानते।''
23) मैं पृथ्वी की ओर देखता हूँ- वह उजाड़ और निर्जन है। मैं आकाश की ओर देखता हूँ- उसका प्रकाश लुप्त हो गया है।
24) मैं पहाड़ों की ओर देखता हूँ- वे काँपते हैं और सब पहाड़ियाँ हिल रही हैं।
25) मैं देख रहा हूँ- मनुष्य नहीं रहे और सभी पक्षी भाग गये।
26) मैं देख रहा हूँ- उपजाउ भूमि उजाड़ पड़ी है, सभी नगर जलाये गये हैं। यह प्रभु के प्रज्वलित क्रोध का परिणाम है।
27) प्रभु यह कहता हैः ''पूरा देश उजाड़ हो जायेगा, किन्तु मैं उसका पूरा विनाश नहीं करूँगा।
28) पृथ्वी इसके कारण शोक मनायेगी और आकाश में अँधेरा छा जायेगा। मैंने यह कहा और मेरा कथन पूरा हो कर रहेगा। मैंने यह निर्णय किया और मैं उसे वापस नहीं लूँगा।''
29) घुड़सवारों और धनुर्धारियों को आते सुन कर नगरों के सब निवासी भाग जाते हैं। वे झाड़ियों में छिपते हैं; वे चट्टानों पर चढ़ते हैं। हर नगर निर्जन हो गया है, वहाँ अब कोई नहीं रहता।
30) तू क्या कर रही है? तू लाल वस्त्र धारण कर स्वर्ण आभूषण पहनती और अपनी आँखों में काजल लगाती है। तू व्यर्थ ही अपना श्रृंगार करती है, क्योंकि तेरे प्रेमी तेरा तिरस्कार करते और तेरा वध करना चाहते हैं।
31) मैं प्रसवपीड़िता की-सी कराह, प्रथम बार जन्म देने वाली का चीत्कार सुनता हूँ। यह सियोन की हाँफती हुई पुत्री की आवाज है, जो यह कहते हुए हाथ पसारती है : ''हाय! मैं बेहोश हो रही हूँ। मैं हत्यारों के हाथ में पड़ी हूँ।''

अध्याय 5

1) ''येरुसालेम की हर गली में जाओ; देखो और पता लगाओ; उसके चौकों में खोजोः यदि तुम को एक भी ऐसा व्यक्ति मिले, जो न्यायी और और सत्यनिष्ठ हो, तो मैं इस नगर को क्षमा प्रदान करूँगा।
2) वे जीवन्त ईश्वर की शपथ खाते हैं, किन्तु उनकी शपथें झूठी हैं।''
3) प्रभु! क्या तेरी आँखें सत्य की खोज नहीं करतीं? तूने उन्हें मारा, किन्तु उन्हें दुःख का अनुभव नहीं हुआ। तूने उन्हें रौंदा, किन्तु उन में सुधार नहीं हुआ। उन्होंने अपना मन पत्थर से भी कठोर बना लिया और पाश्चाताप करना अस्वीकार किया।
4) मैंने सोचा, ''ये तो साधारण लोग हैं और कुछ नहीं समझते। ये प्रभु का मार्ग नहीं जानते और उसके आदेशों से अपरिचित हैं।
5) इसलिए अब मैं बड़ों के पास जाऊँगा और उन से बात करूँगा। वे तो प्रभु का मार्ग जानते हैं और उसके आदेशों से परिचित हैं।'' किन्तु सब ने एकमत हो कर जूआ तोड़ डाला और अपने बन्धन काट दिये हैं।
6) इसलिए जंगल का सिंह उन्हें मार गिरायेगा; मैंदान का भेड़िया उनका चीर-फाड़ करेगा; चीता उनके नगरों के पास घात लगाये बैठा रहेगा और जो कोई बाहर निकलेगा, वह टुकड़े-टुकड़े कर दिया जायेगा; क्योंकि उन्होंने बारम्बार विद्रोह किया और उनके अपराध असंख्य हैं।
7) ''मैं तुझे क्यों क्षमा प्रदान करूँ? तेरे पुत्र मेरा परित्याग करते और झूठे देवताओं की शपथ खाते हैं। मैंने उनकी सब आवश्यकताओं को पूरा किया, फिर भी वे व्यभिचार करते और भीड़ लगा कर वेश्या के घर जाते हैं।
8) वे मोटे-ताजे मस्त घोड़ों की तरह अपने पड़ोसी की पत्नी पर हिनहिनाते हैं।
9) क्या मैं उन को दण्ड न दूँ और ऐसी प्रजा से प्रतिशोध न लूँ?'' यह प्रभु की वाणी है।
10) ''उनकी दाखबारियों को लूटो, किन्तु उनका सर्वनाश मत करो। उनकी दाखलताएँ काट डालो; क्योंकि यह प्रजा ईश्वर की नहीं रही।
11) इस्राएल और यूदा के लोगों ने मेरे साथ घोर विश्वासघात किया।'' यह प्रभु की वाणी है।
12) उन्होंने यह कहते हुए प्रभु से विश्वासघात कियाः ''वह कुछ नहीं करेगा। हम पर कोई विपत्ति नहीं आयेगी। हम तलवार या अकाल के शिकार नहीं बनेंगे।
13) नबी हवा मात्र हैं। उनके द्वारा प्रभु नहीं बोलता। वे जो धमकी देते हैं, वह उन में चरितार्थ हो।''
14) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''क्योंकि तुम ऐसा कहते हो, मैं तुम्हारे मुँह में अपने शब्दों को आग और उन लोगों की लकड़ी बना दूँगा और वह आग उन लोगों को भस्म कर देगी।
15) इस्राएलियों! मैं तुम्हारे विरुद्ध एक दूरवर्ती राष्ट्र को भेजूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है। ''यह एक अजेय और प्राचीन राष्ट्र है, एक ऐसा राष्ट्र, जिसकी भाषा तुम नहीं जानते और जिसकी बातें तुम नहीं समझते।
16) उनका तरकश खुली हुई कब्र है। उनके सभी सैनिक शूरवीर हैं।
17) वे तुम्हारी फ़सल और रोटी खाते हैं, वे तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों को खाते हैं। वे तुम्हारी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल खाते हैं। वे तुम्हारी दाखलता और अंजीर खाते हैं। जब वे तलवार के साथ आते हैं, तो वे तुम्हारे किलाबन्द नगर नष्ट करते हैं, जिन पर तुम भरोसा रखते हो।''
18) प्रभु यह कहता हैः ''मैं उस समय भी तुम्हारा पूरी तरह विनाश नहीं करूँगा।
19) जब लोग यह पूछेंगे कि हमारे प्रभु-ईश्वर ने हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया, तो तुम उन को यह उत्तर दोगे, 'जैसे तुम लोगों ने मुझे त्याग कर अपने देश में पराये देवताओं की सेवा की है, वैसे ही तुम एक ऐसे देश में, जो तुम्हारा नहीं है, पराये लोगों की सेवा करोगे'।
20) ''याकूब के वंशजों के सामने यह घोषित करो, यूदा में इसका प्रचार करोः
21) मूर्ख और नासमझ लोगो! जो आँखें रहते भी नहीं देखते, कान रहते भी नहीं सुनते, इस बात पर ध्यान दो।''
22) प्रभु कहता हैः ''क्या तुम मुझ पर श्रद्धा नहीं रखते? क्या तुम मेरे सामने नहीं काँपते हो? मैंने रेती को समुद्र की सीमा निर्धारित किया, जिसे वह कभी पार नहीं कर सकेगा। चाहे लहरें कितना ही उछलें, उनका कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे वे कितना ही गर्जन करें, वे उसे पार नहीं कर सकतीं।
23) किन्तु यह प्रजा हठीली और विद्रोही है, यह मुझे त्याग कर चली जाती है।
24) यह अपने मन में यह नहीं कहती, 'हम अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखें, जो समय पर पानी बरसाता है- शिशिर ऋतु और वसन्त ऋतु की वर्षा, जिससे हमें निश्चित समय पर फसल मिलती है।'
25) तुम्हारे कुकर्मों के कारण समय पर वर्षा नहीं होती। तुम्हारे पापों ने तुमको उन वरदानों से वंचित कर दिया है।
26) ''मेरी प्रजा के बीच दुष्टों की कमी नहीं, जो चिड़ीमारों की तरह झुक कर घात लगाये बैठे हैं। वे लोगों को फन्दे लगा कर फँसाते है।
27) पक्षियों से भरी टोकरी के समान उनके घर लूट के माल से भरे हैं। वे छल-कपट से धनी बने और समाज में बड़े समझे जाते हैं।
28) वे मोटे-ताजे हैं; उनके शरीर पर चरबी चढ़ गयी है। उनके कुकर्मों की सीमा नहीं। वे अनाथों को न्याय नहीं दिलाते और दरिद्रों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते।
29) क्या मैं इसके लिए उन्हें दण्ड न दूँ,'' यह प्रभु की वाणी है। ''क्या मैं ऐसी प्रजा से प्रतिशोध न लूँ?
30) इस देश में जो घटित हुआ है, वह भयंकर और घृणित है।
31) नबी झूठी भविष्यवाणियाँ करते हैं, याजक भ्रष्टाचार करते हैं और मेरी प्रजा को यह सब प्रिय है। किन्तु तुम लोग अन्त में क्या करोगे?

अध्याय 6

1) ''बेनयामीन की प्रजा! येरुसालेम से भाग जाओ, सुरक्षा के लिए भाग जाओ! तकोआ में तुरही बजाओ! बेत-हक्केरेम में झण्डा फहाराओ; क्योंकि उत्तर दिशा से विपत्ति और घोर विध्वंस आने वाला है।
2) मैं सियोन की सुन्दरी सुकुमारी पुत्री का विनाश करूँगा।
3) चरवाहे अपने झुण्डों के साथ उसके विरुद्ध अभियान करेंगे। वे उसके चारों ओर अपने तम्बू खड़ा करेंगे और अपने-अपने हिस्से में अपनी भेड़ें चरायेंगे।''
4) ''येरुसालेम से युद्ध की तैयारी करो। उठो, दोपहर में उस पर आक्रमण करो। हाय! दिन ढल रहा है और साँझ की छाया बढ़ती जा रही है।
5) उठो! घोर रात में आक्रमण करें और उसके सुन्दर भवन ढाह दें।''
6) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''येरुसालेम की घेराबन्दी करने के लिए वृक्ष काट डालो। उस नगर को अवश्य दण्ड दिया जायेगा; वह अत्याचार से भरा है।
7) जिस प्रकार स्रोत से जल उमड़ता रहता है, उसी प्रकार उस में से दुष्टता निकलती रहती है। वहाँ हिंसा और विनाश ही सुनाई पड़ता है। उसकी बीमारी और उसके घाव सदा मेरे सामने हैं।
8) येरुसालेम! चेतावनी पर ध्यान दो। नहीं तो मैं तुझ से विमुख हो जाऊँगा और तुझ को उजाड़ कर निर्जन स्थान बना दूँगा।''
9) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः 'दाखलता के अंगूरों की तरह इस्राएल के बचे हुए लोगों को एकत्र करो। अंगूर तोड़ने वाले की तरह उन को ढूँढ़-ढूँढ कर निकालो।''
10) मैं किन को सम्बोधित कर उन्हें चेतावनी दूँ, जिससे वे सुनें? उनके कान बहरे हैं। वे सुन नहीं सकते। वे प्रभु की वाणी को फटकार समझते हैं और उसे सुनना नहीं चाहते।
11) प्रभ्ुा का क्रोध मुझ में भर गया, मैं उसे अपने में बन्द नहीं रख सकता। प्रभु यह कहता है : ''उसे गलियों में बच्चों को सुनाओ और नवयुवकों के दलों को; क्योंकि पुरुष और स्त्रियाँ, पके बाल वाले और वृद्ध, सब-के-सब बन्दी बनाये जायेंगे।
12) उनके घर, उनके खेत और उनकी पत्नियाँ दूसरों को दी जायेंगी; क्योंकि मैं देश के सब निवासियों पर अपना हाथ उठाउँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
13) ''छोटे और बड़े, सब-के-सब अनुचित लाभ के लोभी हैं। नबी और याजक, सब-के-सब कपटपूर्ण आचरण करते हैं।
14) वे 'शान्ति, शान्ति' कहते हुए मेरी प्रजा के घाव भरना चाहते हैं, किन्तु शान्ति कहाँ है?
15) क्या उन्हें अपने आचरण पर लज्जा हुई है? नहीं! वे किंचित् भी लज्जित नहीं हैं, वे यह भी नहीं जानते कि लज्जा क्या है। इसलिए दूसरों के साथ उनका भी पतन होगा। जब मैं उन को दण्ड दूँगा, तो वे ठोकर खा कर गिर जायेंगे।'' यह प्रभु की वाणी है।
16) प्रभु यह कहता हैः ''चौराहों पर खड़े हो कर देखो। परम्परागत पथों का पता लगाओ। सन्मार्ग पा कर उसका अनुसरण करो और तुम को शान्ति मिलेगी। किन्तु वे कहते हैं, 'हम उस पर नहीं चलेंगे'।
17) मैंने तुम लोगों के लिए पहरेदार नियुक्त कर दिये, जिससे वे तुरही बजा कर तुम को सचेत करें। किन्तु वे कहते हैं, ''हम ध्यान नहीं देंगे।
18) इसलिए राष्ट्रो! सुनो और जान लो कि उन पर क्या बीतेगी।
19) पृथ्वी! सुनो। मैं इस प्रजा पर विपत्तियाँ भेजूँगा, मैं इसे विश्वासघात का फल दूँगा; क्योंकि यह मेरे कथन पर ध्यान नहीं देती और मेरे आदेशों का तिरस्कार करती है।
20) शेबा से लाये हुए लोबान या दूर देश से प्राप्त सुगन्धित द्रव्य से मुझे क्या? मैं तुम्हारी होम-बलियाँ नहीं चाहता, तुम्हारे चढ़ावों में मेरी कोई रूचि नहीं।''
21) इसलिए प्रभु यह कहता हैः ''मैं इन लोगों के मार्ग में रोड़े अटकाऊँगा जिन से ठोकर खा कर पिता और पुत्र गिर पड़ेंगे, पड़ोसी और मित्र नष्ट हो जायेंगे।''
22) प्रभु यह कहता हैः ''देखो, उत्तर से एक जाति चली आ रही है, एक महान राष्ट्र पृथ्वी के सीमान्तों से बढ़ता आ रहा है।
23) वे धनुष और बरछा धारण कर आ रहे हैं। वे कठोर हैं, उन में रंचमात्र दया नहीं। उनका कोलाहल समुद्र के गर्जन-जैसा है। वे घोड़ों पर सवार हैं। सियोन की पुत्री! वे तुझ पर आक्रमण करने पंक्तिबद्ध हो कर चले आ रहे हैं।''
24) हम उनके विषय में सुन कर निराश हो गये हैं। प्रसवपीड़िता की वेदना की तरह आतंक ने हमें घेर लिया है।
25) खेतों की ओर मत जाओ, सड़कों पर मत टहलो; क्योंकि शत्रु के हाथ में तलवार है। चारों ओर आतंक छाया हुआ है।
26) मेरी प्रजा! टाट के कपड़े पहन लो, राख में लोटो। एकलौते पुत्र की मृत्यु के अवसर पर विलाप करते हुए शोक मनाओ; क्योंकि विनाश करने वाला तुम पर अचानक टूट पड़ेगा।
27) ''मैंने तुम को अपनी प्रजा की कच्ची धातु के पारखी के रूप में नियुक्त किया। तुम उसका आचरण देख कर उसकी परीक्षा लो।
28) वे सब हठीले विद्रोही हैं और जहाँ-तहाँ मेरी निन्दा करते हैं वे काँसा और लोहा हैं और दुराचरण करते रहते हैं।
29) धौंकनी जोरों से फँूकती है, आग सीसा पिघलाती है, किन्तु परिष्कार की क्रिया व्यर्थ है। दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ते।
30) वे 'खोटी चाँदी' कहलाते हैं, क्योंकि प्रभु ने सबों का परित्याग किया है।''

अध्याय 7

1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई दीः
2) ''प्रभु के मन्दिर के फाटक पर खड़ा हो कर यह घोषित करो- यूदा के लोगो! तुम, जो प्रभु की आराधना करने के लिए इस फाटक से प्रवेश कर रहे हो, प्रभु की वाणी सुनो।
3) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : अपना सारा आचरण सुधारो और मैं तुम लोगों को यहाँ रहने दूँगा।
4) तुम कहते रहते हो- 'यह प्रभ्ुा का मन्दिर है! प्रभु का मन्दिर है! प्रभु का मन्दिर है!' इस निरर्थक नारे पर भरोसा मत रखो।
5) यदि तुम अपना सारा आचरण सुधारोगे, एक दूसरे को धोखा नहीं दोगे,
6) परदेशी, अनाथ और विधवा पर अत्याचार नहीं करोगे, यहाँ निर्दोष का रक्त नहीं बहाओगे और अपने सर्वनाश के लिए पराये देवताओं के अनुयायी नहीं बनोगे,
7) तो मैं तुम्हें यहाँ इस देश में रहने दूँगा, जिसे मैंने सदा के लिए तुम्हारे पूर्वजों को प्रदान किया है।
8) ''किन्तु तुम लोग निरर्थक नारों पर भरोसा रखते हो।
9) तुम चोरी, हत्या और व्यभिचार करते हो। तुम झूठी शपथ खाते हो। तुम बाल को होम चढ़ाते हो और ऐसे पराये देवताओं के अनुयायी बनते हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानते थे।
10) इसके बाद तुम यहाँ, इस मन्दिर में, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है, मेरे सामने उपस्थित होने और यह कहने का साहस करते हो- 'हम सुरक्षित हैं'। फिर भी तुम अधर्म करते जाते हो।
11) क्या तुम लोग इस मन्दिर को, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है लुटेरों का अड्डा समझते हो? यहाँ जो हो रहा है, मैं वह सब देखता रहता हूँ। यह प्रभु की वाणी है।
12) ''अब शिलो नामक स्थान जाओ, जहाँ मैंने पहले अपने नाम की प्रतिष्ठा की और देखो कि मैंने अपनी प्रजा इस्राएल के कुकर्मों के कारण उसके साथ कौन-सा व्यवहार किया।
13) प्रभु कहता है- जब तुम यह सब कर रहे थे, तो मैंने तुम को बारम्बार समझाया, किन्तु तुमने नहीं सुना। मैंने तुमको बुलाया और तुमने उत्तर नहीं दिया।
14) इसलिए मैंने शिलो के साथ जो किया, वही मैं उस मन्दिर के साथ करूँगा, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है और जिस पर तुम भरोसा रखते हो- उस स्थान के साथ, जिसे मैंने तुम को और तुम्हारे पूर्वजों को दिया।
15) मैं तुम लोगों को वैसे ही अपने सामने से निकाल दूँगा, जैसे मैंने तुम्हारे भाइयों, एफ्रईम के लोगों को निकाला।
16) ''तुम अब इस प्रजा के लिए प्रार्थना मत करो। इसके लिए न तो क्षमा-याचना करो और न अनुनय-विनय। मुझ से अनुरोध मत करो, मैं नहीं सुनूँगा।
17) क्या तुम नहीं देखते कि लोग यूदा के नगरों और येरुसालेम की गलियों में क्या कर रहे हैं?
18) बच्चे लकड़ियाँ बटोरते, पिता आग सुलगाते और स्त्रियाँ आटा गूँधती हैं, जिससे ये आकाश की देवी के लिए पूरियाँ पकायें। ये अन्य देवताओं को अर्घ चढ़ाते हैं और इस तरह मेरा क्रोध भड़काते हैं।
19) ''किन्तु क्या ये मेरा या अपना ही अपमान नहीं करते है? क्या ये अपने को कलंकित नहीं करते? यह प्रभु की वाणी है।
20) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- इस स्थान पर, मनुष्यों और पशुओं पर, मैदान के वृक्षों और पृथ्वी के फलों पर मेरा प्रज्वलित क्रोध न बुझने वाली आग की तरह भड़क उठेगा।
21) ''सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- अपनी होम-बलियाँ और अन्य बलियाँ चढ़ाते रहो और उनका माँस स्वयं खाओ।
22) जब मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया और उन से बोला, तो मैंने उन्हें होम-बलियों और अन्य बलियों के विषय में कोई आदेश नहीं दिया।
23) मैंने उन्हें केवल यह आदेश दियाः यदि तुम मेरी बात पर ध्यान दोगे, तो मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे। यदि तुम मेरे बताये हुए मार्गों पर चलोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा।
24) किन्तु उन्होंने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। वे अकड़ कर बुराई करते रहे और मेरे पास आने की अपेक्षा मुझ से दूर चले गये।
25) जिस दिन उनके पूर्वज मिस्र देश से निकले, उस दिन से आज तक मैं अपने सब सेवकों, अर्थात् नबियों को उनके पास भेजता रहा।
26) किन्तु उन्होंने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। वे अकड़ कर बुराई करते रहे और अपने पूर्वजों से अधिक दुष्ट निकले।
27) ''तुम उन्हें यह सब बता दोगे, किन्तु वे तुम्हारी नहीं सुनेंगे। तुम उन्हें पुकारोगे, किन्तु वे उत्तर नहीं देंगे।
28) तुम उन से यह कहोः यह वह प्रजा है जो अपने प्रभु-ईश्वर की बात नहीं सुनती और शिक्षा ग्रहण करने से इन्कार करती है। सच्चाई नहीं रही; वह उनके मुख से चली गयी है।
29) अपने सिर के केश मुड़ा कर फेंक दो, पहाड़ी शिखरों पर विलाप करो; क्योंकि प्रभु का क्रोध इस पीढ़ी पर भड़क उठा है, उसने इसे अस्वीकार कर त्याग दिया है।
30) यूदा की प्रजा ने वही किया, जो मेरी दृष्टि में बुरा है। उसने उस मन्दिर में, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है, घृणित देवमूर्तियों रख कर उसे अपवित्र किया है।
31) वे आग में अपने पुत्र-पुत्रियों की आहुति देने के लिए बेन-हिन्नोम की घाटी में तोफ़ेत का पूजास्थान बनाते हैं। मैंने न तो इसका आदेश दिया और न मेरे मन में ऐसी बात आयी थी।
32) इसलिए प्रभु यह कहता हैः वे दिन आ रहे हैं, जब लोग 'तोफेत' या 'बेन-हिन्नोम की घाटी' कह कर नहीं पुकारेंगे, बल्कि उन्हें वध की घाटी कहेंगे और तोफ़ेत एक बड़ा कब्रिस्तान बनेगा।
33) आकाश के पक्षी और पृथ्वी के पशु वहाँ इस प्रजा की लाशें खायेंगे और कोई उन्हें नही भगायेगा।
34) मैं यूदा के नगरों और येरुसालेम की गलियों में प्रसन्नता एवं आनन्द की ध्वनि और वर-वधू के गीत समाप्त कर दूँगा; क्योंकि समस्त देश उजाड़ हो जायेगा।

अध्याय 8

1) ''प्रभु कहता है : उस समय यूदा के राजाओं, उच्चाधिकारियों, याजकों, नबियों और येरुसालेम के निवासियों की हड्डियों को उनकी कब्रों से निकाला जायेगा।
2) वे सूर्य, चन्द्रमा और आकाश के नक्षत्रों के नीचे बिखेर दी जायेंगी; क्योंकि उन्होंने उन को प्यार किया, उनकी सेवा और अनुसरण किया, उन से परामर्श लिया और उनकी आराधना की। उन्हें न तो इकट्ठा किया जायेगा और न दफ़नाया जायेगा। वे खेते में खाद की तरह पड़ी रहेंगी।
3) इस दुष्ट जाति के जो लोग शेष रहेंगे, जो उन सब स्थानों में, जहाँ मैंने उन्हें बिखेरा, जीवित रहेंगे, वे सब जीवन के बदले मृत्यु की कामना करेंगे। यह सर्वशक्तिमान् प्रभु की वाणी है।
4) ''तुम उन्हें बता दो, प्रभु यह कहता है- यदि कोई गिरता है, तो क्या वह फिर नहीं उठता? यदि कोई भटक जाता है, तो क्या वह फिर नहीं लौटता?
5) तो क्या यह प्रजा, येरुसालेम के ये निवासी सदा के लिए भटकते रहेंगे? वे कपटपूर्ण आचरण करते रहते हैं और लौटने से इनकार करते हैं।
6) मैंने उन्हें ध्यान से सुना है, किन्तु वे कभी ठीक बात नहीं बोलते। कोई अपनी दुष्टता पर पश्चाताप कर यह नहीं कहता, 'मैंने क्या कर डाला?' प्रत्येक अपने-अपने मार्ग पर वैसे ही चला जा रहा है, जैसे घोड़ा बिना सोचे-समझे युद्धभूमि में शत्रु पर टूट पड़ता है।
7) आकाश का लगलग पक्षी अपने प्रव्रजन का समय जानता है। पंडूक, अबाबील और सारस अपने लौटने का समय नहीं भूलते। किन्तु मेरी प्रजा प्रभु द्वारा निर्धारित व्यवस्था की अवज्ञा करती है।
8) ''तुम लोग कैसे कह सकते हो, 'हमें प्रज्ञा प्राप्त है और हमारे पास प्रभु की संहिता है', क्योंकि शास्त्रियों की झूठी लेखनी ने उसे असत्य बना दिया है?
9) ज्ञानी भयभीत और विस्मित हैं, वे अपने ही जाल में फँस गये हैं। वे प्रभु की वाणी का तिरस्कार करते हैं। उन में अब प्रज्ञा कहाँ है?
10) इसलिए मैं उनकी पत्नियों को दूसरों को और उनके खेतों को विजेताओं को दे दूँगा; क्योंकि छोटे और बड़े, सब अनुचित लाभ के लोभी हैं। नबी और याजक, सब-के-सब कपटपूर्ण आचरण करते हैं।
11) वे 'शान्ति, शान्ति' कहते हुए मेरी प्रजा का घाव भरना चाहते हैं, किन्तु शान्ति कहाँ है?
12) क्या उन्हें अपने आचरण की लज्जा नहीं हुई है? नहीं! वे किंचित् भी लज्जित नहीं हैं, वे यह भी नहीं जानते कि लज्जा क्या है; इसलिए दूसरों के साथ उनका भी पतन होगा; जब मैं उन को दण्ड दूंँगा, तो वे ठोकर खार कर गिर जायेंगे।'' यह प्रभु की वाणी है।
13) प्रभु यह कहता है : ''मैंने उनका विनाश करने का निश्चय किया है। उनकी दाखलताओं में एक भी अंगूर नहीं मिलेगा, उनके अंजीर वृक्षों में एक भी अंजीर नहीं। उनकी पत्तियाँ सूख जायेंगी। मैंने उन्हें जो भी दिया, वह उन से ले लिया जायेगा।''
14) ''हम क्यों निष्क्रिय बैठे रहें? हम सब मिल कर किलाबन्द नगरों के भीतर चलें और वहीं म्त्यु की प्रतीक्षा करें। हमारे प्रभु-ईश्वर ने हमारे विनाश का निश्चय किया है और हमारे पीने के पानी में विष डाल दिया है; क्योंकि हमने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है।
15) हमें शान्ति की प्रतीक्षा थी, किन्तु वह नहीं मिली। हमें स्वास्थ्य की प्रतीक्षा थी, किन्तु हम पर आतंक छा गया।
16) दान से शत्रुओं के घोड़ों की फुफकार सुनाई दे रही है। उनके घोड़ों की हिनहिनाहट सारा देश कँपा रही है। वे देश और उसकी उपज को, नगर और उसके निवासियों को फाड़ कर खाने आ रहे हैं।''
17) ''देखो, मैं तुम्हारे यहाँ विषैले साँप भेज रहा हूँ, ऐसे साँप, जिन पर तन्त्र-मन्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे तुम लोगों को डसेंगे।'' यह प्रभु की वाणी है।
18) मेरी पीड़ा असाध्य है। मेरा दिल टूट गया है।
19) मेरी प्रजा की दूर-दूर से आने वाली यह करुण पुकार सुनोः ''क्या अब प्रभु सियोन में नहीं रहता? क्या उनका राजा अब वहाँ नहीं रहता?'' ''उन्होंने अपनी देवमूर्तियों और निस्सार पराये देवताओं की पूजा द्वारा मेरा क्रोध क्यों भड़काया?''
20) ''फसल का समय बीत चुका है, ग्रीष्म ऋतु समाप्त हो गयी है, किन्तु हमारा उद्धार नहीं हुआ है!''
21) अपने लोगों की विपत्ति के कारण मेरा दिल टूट गया है। मैं शोक मना रहा हूँ। मैं निराशा से घिर गया हूँ।
22) क्या गिलआद में मरहम नहीं? क्या वहाँ कोई वैद्य भी नहीं? क्या मेरे लोगों के स्वास्थ्यलाभ का कोई लक्षण नहीं?
23) ओह! यदि मेरा सिर जलस्रोत बनता और मेरी आँखें आँसुओं की धारा! तो मैं अपने देश के मारे हुए लागों के लिए दिन-रात रोता रहता।

अध्याय 9

1) ओह! यदि उजाड़खण्ड में तेरी अपनी सराय होती! तो मैं अपने लोगों को छोड़ कर उनके यहाँ से भाग जाता; क्योंकि वे सब-के-सब व्यभिाचरी हैं और विश्वासघातियों के दल में सम्मिलित हो गये हैं।
2) ''वे अपनी जिह्वा को धनुष बना कर झूठ और कपट के बाण छोड़ते हैं। वे पाप-पर-पाप करते जाते हैं, और मुझे जानना नहीं चाहते।'' यह प्रभु की वाणी है।
3) ''तुम अपने साथी से सावधान रहो और अपने भाइयों पर विश्वास मत करो; क्योंकि हर भाई कपटी बन गया है और हर साथी दूसरे की निन्दा करता है।
4) हर व्यक्ति अपने साथी को धोखा देता है और कोई सत्य नहीं बोलता। उन्होंने अपनी जिह्वा को झूठ की शिक्षा दी है। वे इतने दुष्ट बन गये कि पश्चाताप नहीं कर सकते हैं।
5) वे अत्याचार-पर-अत्याचार, कपट-पर-कपट करते जाते हैं और मुझे जानना नहीं चाहते।'' यह प्रभु की वाणी है।
6) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''मैं घरिया में उनका परिष्कार और जाँच करूँगा। अपने प्रजा जनों के पाप के कारण मैं उनके साथ और क्या कर सकता हूँ?
7) उनकी जिह्वा घातक बाज-जैसी है। वे कपटपूर्ण बातें करते हैं। हर व्यक्ति अपने पड़ोसी से शान्ति की बात करता है, किन्तु अपने हृदय में उसके लिए जाल रचता है।
8) क्या मैं इसके लिए उन्हें दण्ड न दूँ? क्या मैं ऐसे राष्ट्र से प्रतिशोध न लूँ? यह प्रभु की वाणी है।
9) मैं पर्वतों के लिए रोता और विलाप करता हूँ, मैं मैदान के चारागाहों के लिए शोक मनाता हूँ; क्योंकि वे उजाड़ पड़े हैं, वहाँ कोई नहीं गुजरता, वहाँ झुण्डों की आवाज नहीं सुनाई देती, पक्षी और गाय-बैल, सब-के-सब भाग गये हैं।
10) ''मैं येरुसालेम को खँडहरों का ढेर और गीदड़ों की माँद बना दूँगा। मैं यूदा के नगरों को उजाड़ कर निवासियों से शून्य बना दूँगा।''
11) ''कौन इतना समझदार है कि वह यह समझे? प्रभु किससे बोला कि वह यह बता सकेः इस देश का विनाश क्यों हुआ? यह क्यों मरुभूमि की तरह उजाड़ पड़ा है और क्यों इस से हो कर कोई नहीं जाता?
12) प्रभु ने कहा, ''यह इसलिए हुआ कि ये उस संहिता का परित्याग करते हैं, जिसे मैंने उन्हें दिया था; ये मेरी वाणी की अवज्ञा करते और मेरी संहिता का पालन नहीं करते।
13) ये अपनी हठधर्मी में अपनी राह चलते हैं। ये बाल-देवताओं के अनुयायी बन गये हैं, जैसा कि इनके पूर्वजों ने इन्हें सिखाया है।''
14) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : ''मैं इन्हें चिरायता खिलाऊँगा और विष मिला हुआ पानी पिलाऊँगा।
15) मैं इन्हें ऐसे राष्ट्रों में बिखेर दूँगा, जिन्हें न तो ये जानते हैं और न इनके पूर्वज जानते थे और मैं तलवार ले कर इनका तब तक पीछा करूँगा, जब तक मैंने इनका सर्वनाश नहीं कर दिया हो।''
16) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''विलाप करने वाली स्त्रियों को बुलाओ। वे यहाँ एकत्र हो जायें।
17) वे शीघ्र ही आ जायें और हमारे लिए शोकगीत गायें, जिससे हमारी आँखों में आँसू उमड़ पड़े और हमारी पलकों से जलधाराएँ बह निकलें।
18) सियोन से विलाप का स्वर सुनाई दे रहा है, 'हाय! हमारा सर्वनाश हो गया है। हमारा कलंक कितना बड़ा है! हमें निर्वासित किया जा रहा है। हमें अपने घरों से निकाला जा रहा है'।
19) महिलाओं! प्रभु की वाणी सुनो, उसकी बातों पर ध्यान दो। अपनी पुत्रियों को शोकगीत सिखाओ, अपनी सखियों को विलाप का गीत सिखाओ;
20) क्योंकि मृत्यु हमारी खिड़कियों के अन्दर आ गयी है। वह हमारे किलों में पहुँच गयी है। वह गलियों में बच्चों का और चौकों में हमारे युवकों का वध कर रही है।
21) ''मनुष्यों की लाशें खाद की तरह खेतों में पड़ी हैं- लुनने वाले के पीछे पूलों की तरह, जिन्हें कोई एकत्र नहीं करता।''
22) प्रभु यह कहता हैः ''प्रज्ञ अपनी प्रज्ञा पर गर्व नहीं करे। बलवान् अपने बल पर दम्भ नहीं करे और धनवान् अपनी सम्पत्ति पर घमण्ड नहीं करे।
23) यदि कोई गर्व ही करना चाहे, तो वह इस बात पर गर्व करे कि वह मुझे जानता है और यह समझता है कि मैं वह प्रभु हूँ, जो पृथ्वी पर दया, न्याय और धार्मिकता बनाये रखता है; क्योंकि मुझे ये बातें प्रिय हैं।'' यह प्रभु की वाणी है।
24) प्रभु यह कहता हैः ''वे दिन आ रहे हैं, जब मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा, जिनका खतना हो चुका है, किन्तु जो वास्तव में बेख़तना है ;
25) मिस्र, यूदा, एदोम, अम्मोन और उजाड़खण्ड में रहने वालों को, जो अपनी कनपटियों के केश काटते हैं: ये सब लोग बेख़तना हैं और इस्राएलियों के हृदय भी बेखतना हैं।''

अध्याय 10

1) इस्राएलियों! अपने प्रति ईश्वर की वाणी सुनो।
2) प्रभु यह कहता हैः ''राष्ट्रों का आचरण मत सीखो और आकाश के उन चिन्हों से मत डरो जिन से वे लोग घबराते हैं।
3) उन लोगों के रिवाज व्यर्थ हैं। वे जंगल का कोई वृक्ष काट डालते हैं और शिल्पकार उसे छेनी से गढ़ता है।
4) वे उस पर सोना एंव चाँदी मढ़ते हैं और हथौड़े से कीलें ठोक कर उसे बैठाते हैं, जिससे वह हिले नहीं।
5) उनकी मूर्तियाँ ककड़ी के खेत में फूस के पुतले-जैसी हैं। वे न बोल सकती हैं और न चल सकतीं, इसलिए उन्हें उठा कर ले जाना पड़ता है। उन से मत डरो। वे न तो कोई हानि कर सकती हैं औ न कोई लाभ पहुँचा सकती है।''
6) प्रभु! तुझ-जैसा कोई नहीं है। तू महान् है और तेरा नाम शक्तिमान् है।
7) राष्ट्रों के अधिपति! किसे तुझ पर श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए? तू इसके यौग्य है। राष्ट्रों के सब ज्ञानियों में और उनके सब राज्यों में तेरे समान कोई भी नहीं!
8) वे सभी नासमझ और मूर्ख हैं। लकड़ी की मूर्तियाँ उन्हें कौन-सी शिक्षा दे सकती हैं?
9) उन पर तरशीश से लायी हुई चाँदी और अफ़ाज का सोना मढ़ दिया गया है। कारीगर और सोना की कृतियों पर नीले और बैंगनी वस्त्र पहनाये गये हैं। यह सब निपुण कलाकारों द्वारा निर्मित है।
10) किन्तु प्रभु ही सच्चा ईश्वर है। वही जीवन्त ईश्वर और शाश्वत राजा है। उसके क्रोध पर धरती डोलने लगती है। उसके कोप के सामने राष्ट्र नहीं टिक सकते।
11) ''तुम उन से यह कहोः जिन देवताओं ने स्वर्ग और पृथ्वी नहीं बनायी, वे पृथ्वी पर से और आकाश के नीचे से मिट जायेंगे।''
12) ईश्वर ने अपने सामर्थ्य से पृथ्वी बनायी। उसने अपनी प्रज्ञा से संसार को उत्पन्न किया और अपने विवेक से आकाश फैलाया।
13) जब वह गरजता है, तो आकाश से मूसलधार वर्षा होती है। वह पृथ्वी के सीमान्तों से बादल बुलाता है। वह वर्षा के साथ बिजली चमकाता और अपने भण्डारों से पवन बहाता है।
14) मनुष्य चकित रह जाते और नहीं समझ पाते हैं। सोनार अपनी मूर्ति पर लज्जित है, उसकी मूर्तियाँ मिथ्या हैं। उन में प्राण नहीं हैं।
15) वे असार हैं और उपहास के पात्र हैं। दण्ड का समय आने पर वे नष्ट हो जायेंगी।
16) किन्तु याकूब का ईश्वर ऐसा नहीं है। वह सभी वस्तुओं की सृष्टि करता है और इस्राएल उसकी अपनी विरासत है। उसका नाम सर्वशक्तिमान् प्रभु है।
17) तुम, जो घेरेबन्द नगर में रहते हो, जमीन पर से अपनी गठरियाँ उठा कर देश छोड़ दो ;
18) क्योंकि प्रभ्ुा यह कहता हैः ''इस बार मैं निवासियों को गोफन में रखे पत्थरों की तरह दूर फेंक दूँगा। मैं उन पर विपत्तियाँ ढाहूँगा, जिससे वे दण्ड से न बच सकें।''
19) मुझ पर शोक! मैं घायल हूँ, मेरे घावों का कोई इलाज नहीं! मैं सोचता हूँ- यह मेरा कष्ट है, मुझे इसे सहना होगा।
20) मेरा तम्बू नष्ट हो गया है, उसकी सारी रस्सियाँ टूट गयीं हैं। मेरे बाल-बच्चे चले गये, वे अब नहीं रहे। फिर मेरा तम्बू खड़ा करने और मेरा निवास को सुव्यवस्थित करने वाला कोई नहीं।
21) चरवाहे नासमझ हैं: वे प्रभु की खोज नहीं करते। इसलिए उनकी दुर्गति हो गयी है और उनका सारा रेवड़ तितर-बितर हो गया है।
22) यह समाचार सुनो-यूदा के नगरों को उजाड़ने और उन्हें गीदड़ों की माँद बनाने उत्तर के शत्रु भारी कोलाहल के साथ आ रहे हैं।
23) प्रभु! मैं जानता हूँ कि कोई मनुष्य अपना मार्ग निश्चित नहीं करता, कोई जहाँ चाहता, वहाँ नहीं जाता।
24) प्रभु! क्रुद्ध हुए बिना न्याय के अनुसार मुझे दण्ड दे। नहीं तो मेरा सर्वनाश हो जायेगा।
25) उन राष्ट्रों पर अपने क्रोध का प्याला उँड़ेल, जो तुझे नहीं जानते- उन जातियों पर, जो तेरा नाम नहीं लेतीं; क्योंकि वे याकूब को निगल रही हैं, वे उसे खाती और मिटाती हैं। वे उसका देश उजाड़ती हैं।

अध्याय 11

1) यिरमियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
2) ''इस विधान के शब्द सुनो और उन्हें यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों को समझाओ।
3) तुम कहोगेः प्रभु! इस्राएल का ईश्वर यह कहता है, 'जो व्यक्ति इस विधान के शब्दों पर ध्यान नहीं देता, वह अभिशप्त है।
4) मैंने यह विधान तुम्हारे पूर्वजों को उस समय सुनाया था, जब मैं उन्हें मिस्र देश से, लोहे की उस भट्ठी से निकाल लाया था।' मैंने उन से कहाः 'मेरी बात मानो और मेरे आदेशों का पालन करो।
5) इस प्रकार तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा। तब मैंने तुम्हारे पूर्वजों से जो शपथ खा कर यह प्रतिज्ञा की कि मैं उन्हें ऐसा देश प्रदान करूँगा, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं, मैं उसे पूरा कर सकूँगा।' तुम अब उस देश के अधिकारी हो।'' मैंने उत्तर दिया, ''प्रभु! ऐसा ही हो''।
6) प्रभु ने मुझ से कहा, ''यूदा के नगरों और येरुसालेम की गलियों में इन सब बातों की घोषणा करोः विधान के शब्दों पर ध्यान दो और उनका पालन करो।
7) जिस दिन से मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया, उस दिन से आज तक मैं निरन्तर उन से यह अनुरोध करता रहा कि तुम मेरे आदेश का पालन करो।
8) तब भी उन्होंने नहीं सुना और मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि वे अपने दुष्ट हृदय की हठधर्मी के अनुरूप आचरण करते रहे। इसलिए उन्हें उस विधान के उल्लंघन के सब परिणाम भुगतने पड़े, जिसका पालन करने का मैंने आदेश दिया, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया।''
9) प्रभु ने मुझ से फिर कहा, ''यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों ने षड्यन्त्र रचा है।
10) वे अपने उन पूर्वजों के पाप फिर कर रहे हैं, जिन्होंने मेरी बात पर ध्यान देने से इन्कार किया। वे अन्य देवताओं के अनुयायी बन कर उनकी पूजा करते हैं। इस प्रकार इस्राएल और यूदा के लोगों ने उस विधान को भंग किया, जिसे मैंने उनके पूर्वजों के लिए निर्धारित किया।
11) इसलिए प्रभु यह कहता है, 'मैं उन पर ऐसी विपत्तियाँ भेजूँगा, जिन से वे अपनी रक्षा नहीं कर सकेंगे। वे मेरी दुहाई देंगे, किन्तु मैं उनकी दुहाई पर ध्यान नहीं दूँगा।
12) यूदा के नगर और येरुसालेम के निवासी उन देवताओं की दुहाई देंगे, जिन्हें उन्होंने धूप चढ़ायी, किन्तु वे देवता संकट के समय उनकी सहायता नहीं कर सकेंगे।
13) यूदा! जितने तुम्हारे नगर हैं, उतने ही तुम्हारे देवता हैं। येरुसालेम! जितनी तुम्हारी गलियाँ हैं, उतनी ही वे वेदियाँ हैं, जिन्हें तुमने बनाया और जिन पर तुम घृणित बाल-देवता के लिए धूप चढ़ाते हो।'
14) ''इसलिए तुम उन लोगों के लिए न तो प्रार्थना करो, न विलाप और न अनुनय-विनय; क्योंकि यदि ये संकट के समय मेरी दुहाई देंगें, तो मैं नहीं सुनूँगा।
15) ''मेरी प्रियतमा मेरे मन्दिर में क्यों आती है? उसका आचरण कपटपूर्ण है। क्या तुम पर आने वाले संकट को मन्नतें और पशु-बलि टाल सकती हैं? तब तो तुम फिर आनन्द मना सकती।''
16) प्रभु ने तुम को यह नाम दिया था- 'सदाबहार रमणीय जैतून वृक्ष'! किन्तु वह एक भयंकर आँधी भेज कर उसके पत्ते जलायेगा। उसकी डालियाँ तोड़ दी जायेंगी।
17) सर्वशक्तिमान् प्रभु, जिसने तुम को रोपा, तुम्हारी घोर विपत्ति की घोषणा करता है; क्योंकि इस्राएल और यूदा के लोगों ने कुकर्म किया है। उन्होंने बाल-देवता को धूप चढ़ा कर उसका क्रोध भड़काया है।
18) प्रभु ने मुझे सावधान किया, तो मैं जान गया; उसने उनका षड्यन्त्र मुझ पर प्रकट किया।
19) मैं तो वध के लिए ले जाये जाने वाले मेमने के सदृश भोला-भाला था। मैं नहीं जानता था कि वे यह कहते हुए मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे थे, ''हम वह हरा-भरा वृक्ष काट गिरायें। हम उसे जीवितों की दुनिया से उठा दें, जिससे उसका नाम लेने वाला कोई न रहे।''
20) विश्वमण्डल के प्रभु! तू न्यायी है। तू मनुष्य के हृदय की थाह लेता है। मैं उन पर तेरा प्रतिशोध देखूँगा, क्योंकि मैंने अपना मामला तेरे हाथों सौंप दिया है।
21) अनातोत के निवासी मुझे मारना चाहते और मुझ से कहते हैं, ''प्रभु के नाम पर भविष्यवाणी मत करो, नहीं तो हम अपने हाथों से तुम्हारा वध करेंगे।''
22) उनके विषय में सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''मैं उन्हें दण्ड दूँगा। उनके युवक तलवार के घाट उतारे जायेंगे और उनके पुत्र-पुत्रियाँ भूखों मरेंगे।
23) उनके यहाँ कोई जीवित नहीं रहेगा। जिस वर्ष के अनातोत के निवासियों को लेखा देना पड़ेगा, मैं उन पर विपत्ति ढाहूँगा।''

अध्याय 12

1) प्रभु! तू न्यायप्रिय है। मैं तुझ से शिकायत नहीं कर सकता। फिर भी तुझ से कुछ प्रश्न करना चाहता हूँ। दुष्टों को अपने कार्यों में क्यों सफलता मिलती है? नास्तिक क्यों आराम का जीवन बिताते हैं?
2) तू उन्हें रोपता है, तभी वे जड़ पकड़ते हैं। वे बढ़ते और फल देते हैं। वे मुँह से तेरा नाम लेते हैं, किन्तू तू उनके हृदय में निवास नहीं करता।
3) प्रभु! तू मुझे जानता है। तू मुझे देखता और मेरे हृदय की थाह लेता है। दुष्टों को भेड़ों की तरह वध के लिए ले जा, विनाश के दिन के लिए उन्हें अलग कर।
4) कब तक देश शोक मनाता रहेगा? कब तक सभी खेतों की घास सूखी पड़ी रहेगी? निवासियों की दुष्टता के कारण पशु-पक्षियों की भी मृत्यु होती जा रही है। लोग कहते हैं, ''प्रभु नहीं देखता कि हम पर क्या बीत रही है''।
5) ''यदि तुम पैदल चलने वालों के साथ दौड़ते-दौड़ते थक गये हो, तो घोड़ों की बराबरी कैसे कर सकोगे? यदि तुम शान्तिपूर्ण देश में सुरक्षा का अनुभव नहीं करते, तो यर्दन के जंगल में क्या करोगे?
6) तुम्हारे भाई-बन्धु, तुम्हारे घराने के लोग तुम्हारे साथ विश्वासघात करते और पीठ पीछे तुम्हारी निन्दा करते हैं। वे तुम से कितनी ही मीठी बातें क्यों न करें, तुम उनका विश्वास नहीं करो।
7) 'मैंने अपने घर का त्याग कर दिया, मैंने अपनी विरासत अस्वीकार कर दी। जो मुझे सब से प्रिय थी, मैंने उसे शत्रुओं के हवाले कर दिया।
8) मेरी विरासत मेरे साथ जंगल के सिंह-जैसा व्यवहार करती है। वह मुझे देख कर दहाड़ती है। मुझे उस से घृणा हो गयी है।
9) मेरी विरासत बहुरंगी पक्षी-जैसी हो गयी है। शिकारी पक्षी उस पर चारों ओर से आक्रमण करते हैं। जाओ, सभी जंगली पशुओं को एकत्र करो। वे आ कर उसे फाड़ खायें।
10) बहुत-से चरवाहों ने मेरी दाखबारी का विनाश किया और मेरा खेत पैरों से रौंदा। उन्होंने मेरा रमणीय खेत उजाड़ा है।
11) उन्होंने उसे उजाड़खण्ड बना दिया। वह मेरे सामने वीरान और उजाड़ पड़ा है। समस्त देश का विनाश हो गया है और किसी को इसकी चिन्ता नहीं।
12) ''विनाश करने वाले उजाड़खण्ड की सब ऊँचाईयों पर से आ रहे हैं। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक कोई सुरिक्षत नहीं है। प्रभु की तलवार सबों का विनाश कर रही है।
13) लोग गेहूँ बोते और उन्हें काँटों की फ़लस मिलती है। वे पश्रिम करते-करते थक जाते हैं, किन्तु उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ता। तुम प्र्रभु के क्रोध के कारण अपनी फ़सल पर लज्जा अनुभव करो।''
14) प्रभु यह कहता है : ''मेरे सभी दुष्ट पड़ोसी उस विरासत पर आक्रमण करते हैं, जिसे मैंने अपनी प्रजा को प्रदान किया, इसलिए मैं उन्हें उनके दश से उखाडूँगा। मैं उनके बीच से यूदा के वंश को भी उखाडूँगा। किन्तु उन्हें उखाड़ने के बाद मैं फिर उन पर दया करूँगा और सब को उनकी अपनी विरासत और उनके अपने देश में वापस ले जाऊँगा।
15) जब वे मेरी प्रजा की तरह आचरण करना सीखेंगे और 'जीवन्त ईश्वर की सौगन्ध' कहते हुए मेरे नाम की शपथ खायेंगे, जिस तरह उन्होंने मेरी प्रजा की बाल का नाम ले कर शपथ खाने की शिक्षा दी थी, तब वे मेरी प्रजा के बीच सुरक्षित रहेंगे। किन्तु जो राष्ट्र मेरी बात पर ध्यान नहीं देता, मैं उसे समूल उखाड़ कर उसका विनाश करूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।

अध्याय 13

1) प्रभु ने मुझ से यह कहा, ''तुम जा जा कर छालटी की पेटी ख़रीदो और कमर में बाँध लो, किन्तु उसे पानी में नहीं डुबाओ''।
2) मैंने प्रभु के आदेशानुसार पेटी खरीद कर कमर में बाँध ली।
3) प्रभु ने मुझ से दूसरी बार कहा,
4) ''तुमने जो पेटी खरीदी, उसे कमर में बाँध कर तुरन्त फ़रात नदी जाओ और उसे वहाँ किसी चट्टान की दरार में छिपा दो।''
5) मैंने प्रभु के आदेशानुसार फ़रात जा कर वहाँ पेटी छिपा दी।
6) बहुत समय बाद प्रभु ने मुझ से कहा, ''फ़रात जा कर वह पेटी ले आओ, जिसे तुमने मेरे आदेशानुसार वहाँ छिपाया।''
7) मैंने फ़रात जा कर उस जगह का पता लगाया, जहाँ मैंने पेटी छिपायी थी। मैंने उसे निकाल कर देखा कि वह बिगड़ गयी है और किसी काम की नहीं रह गयी है।
8) तब प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
9) ''प्रभु यह कहता हैः ''मैं इसी प्रकार यूदा और येरुसालेम का गौरव नष्ट हो जाने दूँगा।
10) यह दुष्ट प्रजा मेरी एक भी नहीं सुनना चाहती और हठपूर्वक अपनी राह चलती है। यह दूसरे देवताओं की अनुयायी बन कर उनकी उपासना और आराधना करती है। इसलिए यह इस पेटी की तरह किसी काम की नहीं रहेगी ;
11) क्योंकि जिस तरह पेटी मनुष्य की कमर में कस कर बाँधी जाती है, उसी तरह मैंने समस्त इस्राएल और यूदा को अपने से बाँध लिया था, जिससे वे मेरी प्रजा, मेरा गौरव, मेरी कीर्ति और मेरी शोभा बन जायें। किन्तु उन्होंने मेरी एक भी न सुनी।' यह प्रभु की वाणी है।
12) ''तुम उन से यह कहोगे : 'प्रभु इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : लोग अंगूरी का हर घड़ा भरते हैं'। यदि वे यह उत्तर देंगे, 'हम जानते हैं कि लोग अूंगूरी का हर घड़ा भरते हैं',
13) तो तुम उन से यह कहोगे : 'प्रभु यह कहता है : मैं इस देश के सब निवासियों को -दाऊद के सिंहासन पर बैठने वाले राजाओं, याजकों, नबियों और येरुसालेम के सब निवासियों- सभी को मदिरा के उन्माद से भर दूँगा।
14) मैं उन्हें एक दूसरे से, पिताओं को पुत्रों से भिड़ाऊँगा। यह प्रभु की वाणी है। मैं उनका विनाश करते समय दया नहीं करूँगा। न तो मैं उन पर करूणा करूँगा और न उन पर तरस खाउँगा।''
15) ध्यान लगा कर सुनो, घमण्ड मत करो; क्योकि यह प्रभु की वाणी है।
16) अँधेरा होने से पहले ही, इस से पहले कि अन्धकारमय पहाड़ियों पर तुम्हारे पैर ठोकर खायें, तुम अपने प्रभु-ईश्वर की स्तुति करो। तुम प्रकाश की प्रतीक्षा करो, किन्तु वह उसे घोर अन्धकार में बदलता और उसे काला बादल बना देता है।
17) यदि तुम नहीं सुनते, तो तुम्हारे अहंकार के कारण मुझे एकान्त में बैठ कर रोना पड़ेगा। मेरी आँखें बुरी तरह रोयेंगी और आँसू बहायेंगी; क्योंकि प्रभ्ुा का रेवड़ बन्दी बना लिया जा रहा है।
18) राजा और राजमाता से यह कहो : ''अब भूमि पर बैठिए! आपके महिमामय मुकुट आपके सिर से गिर गये हैं।''
19) नेगेब के नगर बन्द हो गये हैं, उन को खोलने कोई नहीं आता, समस्त यूदा निर्वासित किया गया है। उसके सभी निवासी निर्वासित हो गये है।
20) आँखें उठा कर उन्हें देखो, जो उत्तर की ओर से बढ़े आ रहे हैं। जो रेवड़ तुम को सौंपा गया, वह कहाँ है? कहाँ है तुम्हारी सुन्दर-सुन्दर भेडें?
21) जब प्रभु उन्हें तुम्हारे शासक नियुक्त करेगा, जिन्हें तुमने अपने मित्र बनाया, तो तुम क्या कहोगे? तुम को प्रसवपीड़िता का दुःख सहना पड़ेगा।
22) यदि तुम अपने मन में सोचोगे, ''यह मुझ पर क्यों बीत रही है?'' तो जान लो कि तुम्हारे घोर पापों के कारण तुम्हारे वस्त्र उतारे जाते हैं और तुम्हारे साथ बलात्कार होता है।
23) क्या कूशी अपने चमड़े का रंग या चीता अपनी चित्तियाँ बदल सकता है? तो तुम सत्कर्म कैसे कर सकते हो, जब तुम को कुकर्म करने की आदत हो गयी है?
24) प्रभु कहता है, ''मैं तुम को वैसे ही छितरा दूँगा, जैसे उजाड़खण्ड की हवा भूसा उड़ा ले जाती है।
25) यह तुम्हारे भाग्य में बदा है। यह वही है, जो मैंने तुम्हारे लिए निश्चित किया है; क्योंकि तमने मुझे भुला दिया और असत्य देवताओं पर भरोसा रखा है।
26) मैं तुम्हारे वस्त्र उतारूँगा और लोग तुम्हारी नग्नता देखेंगे -
27) तुम्हारा व्यभिचार, तुम्हारी कामुकता और निर्लज्ज वेश्यावृत्ति! मैं पहाड़ियों पर और मैदान में तुम्हारी घृणित देवमूर्तियाँ देखता हूँ। धिक्कार तुम को, येरुसालेम! तुम कब तक अशुद्ध बनी रहोगी?''

अध्याय 14

1) सूखा पड़ने पर यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
2) ''यूदा विलाप कर रहा है। उसके नगर दुःख के दिन काट रहे हैं। उनके निवासी भूमि पर बैठ कर शोक मनाते हैं। येरुसालेम से दुहाई उठ रही है।
3) कुलीन लोग अपने सेवकों को पानी भरने भेजते हैं, किन्तु उन्हें कुओं पर पानी नहीं मिलता और वे ख़ाली बरतन लिये लौटते हैं। वे लज्जित और निराश हो कर अपना सिर ढ़क लेते हैं।
4) वर्षा नहीं होने के कारण धरती फट गयी है। किसान मुँह लटकाये बैठ कर अपना सिर ढकते हैं।
5) घास नहीं होने के कारण हरिणी अपने नवजात बच्चे को खेत में छोड़ दे रही है।
6) जंगली गधे वीरान पहाड़ियों पर खड़े गीदड़ों की तरह हाँफ रहे हैं। चारा नहीं मिलने के कारण उनकी आँखे पथरा गयी हैं।''
7) प्रभु! यद्यपि हमारे पाप हमारे विरुद्ध साक्ष्य देते हैं, फिर भी अपने महिमामय नाम के कारण हम पर दया कर। हमने बारम्बार तेरा परित्याग किया और तेरे विरुद्ध पाप किया है।
8) इस्राएल की आशा! विपत्ति में उसके उद्धारक! तू इस देश में अपरिचित-जैसा क्यों हो गया है, उस पथिक की तरह, जो यहाँ केवल रात भर ठहरता है?
9) तू क्यों घबराये हुए व्यक्ति-जैसा हो गया है? एक योद्धा-जैसा, जो रक्षा करने में असमर्थ है? प्रभु! तू तो हमारे बीच है, हम तेरे ही कहलाते हैं। तू हमारा त्याग नहीं कर।
10) इस प्रजा के विषय में प्रभु यह कहता हैः ''इधर-उधर भटकना इन्हें बहुत प्रिय है। ये अपने पैरों पर नियन्त्रण नहीं कर पाते हैं। इसलिए प्रभु इन्हें अस्वीकार कर रहा है। अब वह इनके कुकर्मों को याद कर इन्हें इनके पापों का दण्ड दे रहा है।''
11) प्रभु ने मुझ से कहा, ''इस प्रजा के कल्याण के लिए प्रार्थना मत करो।
12) यदि ये उपवास करते, तो मैं इनकी पुकार नहीं सुनता। यदि ये मुझे होम-बलि और अन्नबलि अर्पित करते, तो मैं उन्हें स्वीकार नहीं करता। मैं तलवार, अकाल और महामारी द्वारा इनका विनाश करूँगा।''
13) मैंने कहा, ''हाय, प्रभु-ईश्वर! किन्तु नबी लोग इन्हें यह आश्वासन देते हैं: 'तुम लोगों को न तो तलवार का सामना करना पड़ेगा और न अकाल का। मैं तुम्हें इस देश में चिरस्थायी शान्ति प्रदान करूँगा।''
14) इस पर प्रभु ने मुझ से कहा, ''नबी मेरे नाम पर असत्य बोलते हैं। मैंने न तो उन्हें भेजा, न नियुक्त किया और न उनसे कुछ कहा। वे तुम्हारे सामने झूठे दर्शन, निरर्थक, भविष्यवाणियाँ और अपने मन की कल्पित बातें प्रस्तुत करते हैं।
15) इसलिए प्रभु यह कहता है : जिन नबियों को मैंने नहीं भेजा और जो मेरे नाम पर कहते हैं कि इस देश को न तो तलवार का सामना करना पड़ेगा और न अकाल का, उन नबियों का तलवार और अकाल द्वारा विनाश किया जायेगा।
16) जिन लोगों को वे सम्बोधित करते हैं, वे अकाल और तलवार के शिकार बन कर येरुसालेम की गलियों में पड़े रहेंगे। कोई न तो उनका और न उनकी पत्नियों का दफ़न करेगा और न उनके पुत्र-पुत्रियों का। मैं उन्हें उसकी दुष्टता का फल दूँगा।
17) ''तुम उन्हें यह कहोगे : 'मैं दिन-रात निरन्तर आँसू बहाता रहता हूँ, क्योंकि मेरी पुत्री विपत्ति की मारी है, मेरी प्रजा घोर संकट में पड़ी हुई है।
18) यदि मैं खेतों की ओर जाता हूँ, तो तलवार से मारे हुए लोगों को देखता हूँ और यदि मैं नगर में आता हूँ, तो उन्हें भूखों मरते देखता हूँ। नबी और याजक भी देश में मारे-मारे फिरते हैं और नहीं समझते हैं कि क्या हो रहा है?।''
19) क्या तूने यूदा को त्याग दिया है? क्या तुझे सियोन से घृणा हो गयी है? तूने हमें क्यों इस प्रकार मारा है, कि अब उपचार असम्भव हो गया है। हम शान्ति की राह देखते रहे, किन्तु वह मिली नहीं। हम कल्याण की प्रतीक्षा करते रहे, किन्तु आतंक बना रहा।
20) प्रभु! हम अपनी दुष्टता और अपने पूर्वजों का अपराध स्वीकार करते हैं। हमने तेरे विरुद्ध पाप किया है।
21) अपने नाम के कारण हमें न ठुकरा; अपने महिमामय सिंहासन का अपमान न होने दे। हमारे लिए अपने विधान को न भुला और उसे भंग न कर।
22) क्या राष्ट्रों के देवताओं में कोई पानी बरसा सकता है? क्या आकाश अपने आप वर्षा कर सकता है? हमारे प्रभु-ईश्वर! तुझ में ही यह सामर्थ्य है। इसलिए हमें तेरा भरोसा है; क्योंकि तू ही यह सब करता है।

अध्याय 15

1) प्रभु ने मुझ से कहाः ''यदि मूसा और समूएल भी मेरे सामने खड़े हो जाते, तो मेरा हृदय इन लोगों पर तरस न खाता। इन्हें मेरे सामने से हटा दो। ये चले जायें।
2) यदि ये तुम से पूछें कि हम कहाँ जायें, तो तुम इन्हें उत्तर दो- प्रभु यह कहता है : मृत्यु की ओर! जिनके लिए मृत्यु बदी है; तलवार की ओर! जिनके लिए तलवार बदी है; अकाल की ओर! जिनके लिए अकाल बदा है; निर्वासन की ओर! जिनके लिए निर्वासन बदा है।''
3) प्रभु कहता है : ''मैं उनके पास ये चार विनाशक भेजता हूँ: मारने के लिए तलवार, फाड़ने के लिए कुत्ते, नोच-नोच कर खाने और मिटाने के लिए आकाश के पक्षी और पृथ्वी के पशु।
4) मैं यूदा के राजा हिजकीया के पुत्र मनस्से द्वारा येरुसालेम में किये गये कर्मों का उन को ऐसा दण्ड दूँगा कि उस पर पृथ्वी के सभी राष्ट्र काँप उठेंगे।
5) ''येरुसालेम! कौन तुम पर तरस खायेगा? कौन तुम से सहानुभूति दिखायेगा? कौन तुम्हारा कुशल-क्षेप पूछने तुम्हारे पास आयेगा?''
6) प्रभु कहता है, ''तुमने मुझे त्याग दिया, तुमने मेरी ओर पीठ कर ली है। इसलिए मैंने तुम्हारा विनाश करने तुम्हारे विरुद्ध अपना हाथ उठाया। मैं तुम पर दया करते थक गया हूँ।
7) मैंने देश के नगरों में सूप हाथ में लिया, जिससे मैं अपने लोगों को फटक दूँ। मैंने उनका विनाश करने के लिए उन्हें निस्सन्तान बनाया, किन्तु उन्होंने अपना आचरण नहीं बदला।
8) मैंने उनकी विधवाओं की संख्या समुद्रतट के रेतकणों से भी अधिक कर दी। मैंने युवा सैनिकों की माताओं के पास दिन दहाड़े अत्याचारियों को भेजा। मैंने अचानक उनके पास परिताप और आतंक भेजा।
9) जो सात बच्चों की माँ है, वह बेहोश हो कर प्राण त्याग देती है। उसके जीवन का सूर्य दिन रहते अस्त हो जाता है। वह लज्जित और निराश है। उन में जो जीवित रह गये, उन्हें मैं शत्रुओं की तलवार के हवाले कर दूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
10) हाय! माता! आपने मुझे क्यों जन्म दिया? धिक्कार मुझे, क्योंकि सारा देश मुझ से लड़ता-झगड़ता है। मैं न तो किसी को उधार देता और न किसी से उधार लेता हूँ, फिर भी सब मुझे कोसते हैं।
11) प्रभु कहता है, ''मैं तुम को विश्वास दिलाता हूँ कि मैं तुम्हारे कल्याण का प्रबंध करूँगा। मैं तुम को विश्वास दिलाता हूँ कि विपत्ति और कष्ट के समय तुम्हारे विरोधी तुम्हारी सहायता माँगेगे।
12) क्या कोई उत्तर का लोहा या काँसा तोड़ सकता है?
13) तुम लोगों ने देश भर में जो असंख्य पाप किये, उनके कारण मैं तुम्हारी सम्पत्ति और भण्डार लुटवाऊँगा।
14) मैं तुम को एक अज्ञात देश में तुम्हारे शत्रुओं का दास बनाऊँगा। मेरी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो कर तुम्हारे विरुद्ध जलती हैं।''
15) प्रभु! तू जानता है, मेरी सहायता कर! मुझ पर अत्याचार करने वालों से बदला चुका। अपनी सहनशीलता के कारण मेरा विनाश न हो। याद कर कि तेरे कारण मेरा अपमान हो रहा है।
16) तेरी वाणी मुझे प्राप्त हुई और मैं उसे तुरंत निगल गया। वह मरे लिए आनंद और उल्लास का विषय थी; क्योंकि तूने मुझे अपनाया विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर!
17) मैं मनोरंजन करने वालों के साथ बैठ कर आनन्द नहीं मनाता। मैं तुझ से आविष्ट हो कर एकांत में जीवन बिताता रहा; क्योंकि तूने मुझ में अपना क्रोध भर दिया था।
18) मेरी पीड़ा का अंत क्यों नही होता? मेरा घाव क्यों नहीं भरता? तू मेरे लिए उस अविश्वसनीय नदी के सदृश है, जिस में सदा पानी नहीं रहता।
19) इस पर प्रभु ने यह उत्तर दिया, ''यदि तुम अपने शब्द वापस लोगे, तो मैं तुम्हें स्वीकार करूँगा और तुम फिर मेरी सेवा करोगे। यदि तुम निरर्थक भाषा नहीं, बल्कि उपयुक्त भाषा का प्रयोग करोगे, तो फिर मेरे प्रवक्ता बनोगे। ये लोग फिर तुम्हारे पास आयेंगे; तुम को इनके पास नहीं जाना होगा।
20) मैं तुम को उस प्रजा के लिए काँसे की अजेय दीवार बनाऊँगा। वे तुम पर आक्रमण करेंगे, किन्तु हमारे विरुद्ध कुछ नहीं कर पायेंगे; क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारी सहायता और रक्षा करूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
21) ''मैं तुम को दुष्टों के हाथ से, उग्र लोगों के पंजे से छुड़ाऊँगा।''

अध्याय 16

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
2) ''तुम को यहाँ न तो विवाह करना चाहिए और न पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न करना'' ;
3) क्योंकि इस देश में उत्पन्न होने वाले पुत्र-पुत्रियों, उन्हें जन्म देने वाली माताओं और उनके जन्मदाता पिताओं के विषय में प्रभु यह कहता है,
4) ''वे भूख से पीड़ित हो कर मर जायेंगे, उनके लिए न तो कोई शोक मनायेगा और न कोई उनका दफ़न करेगा। वे खेतों में खाद की तरह पड़े रहेंगे। तलवार और अकाल से उनका विनाश होगा और उनके शव आकाश के पक्षी और पृथ्वी के पशु खायेंगे।''
5) क्योंकि प्रभु यह कहता है, ''तुम शोक मनाने वाले किसी घर में प्रवेश मत करना, किसी के दफ़न में सम्मिलित मत होना और उन लोगों से सहानुभूति मत रखना; क्योंकि मैंने इस प्रजा को प्रदत्त अपना आशीर्वाद, अपनी कृपा और अपनी अनुकम्पा को वापस ले लिया''। यह प्रभु की वाणी है।
6) ''इस देश में छोटे-बड़े, सब मरेंगे। न तो इन्हें कोई दफ़नायेगा, न अपने को काट कर या सिर मूँड़ कर कोई शोक मनायेगा।
7) जो किसी मृतक के लिए- चाहे वह उसका पिता हो या माता- शोक मना रहा है, उसे सान्त्वना देने के लिए न तो उसे कोई भोजन देगा और न पेय।
8) ''तुम उत्सव मनाने वालों के घर में प्रवेश मत करना और उन लोगों के साथ बैठ कर मत खाना-पीना ;
9) क्योंकि सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : तुम्हारी आँखों के सामने, तुम्हारे जीवनकाल में ही, मैं इस देश में आनन्द एवं उल्लास की ध्वनि और वर-वधू का गीत बन्द कर दूँगा।
10) ''जब तुम इन लोगों से ये बातें कहोगे और ये तुम से पूछेंगे : ''प्रभु ने हम पर इतनी बड़ी विपत्ति ढाहने का निश्चय क्यों किया है? हमने अपने प्रभु-ईश्वर के विरुद्ध कौन-सा अपराध और कौन-सा पाप किया है?
11) तो तुम इन से कहोगे, 'प्रभु कहता है : यह इसलिए कि तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे त्याग दिया। उन्होंने पराये देवताओं के अनुयायी बन कर उनकी सेवा और पूजा की। उन्होंने मुझे त्याग दिया और मेरी संहिता का पालन नहीं किया।
12) तुम लोग अपने पूर्वजों से भी अधिक बुरा आचरण करते हो; तुम लागों में प्रत्येक व्यक्ति हठपूर्वक बुराई करता रहता; कोई मेरी बात नहीं सुनता।
13) इसलिए मैं तुम लोगों को इस देश से निकाल कर एक अज्ञात देश में निर्वासित करूँगा, जिसे तुम्हारे पूर्वज भी नहीं जानते थे। वहाँ तुम दिन-रात अन्य देवताओं की सेवा करोगे और मैं तुम्हारी चिन्ता नहीं करूँगा।''
14) प्रभु यह कहता है, ''देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब लोग यह नहीं कहेंगे, 'उस जीवन्त ईश्वर के नाम, जो मिस्र से इस्राएलियों को निकाल लाया',
15) बल्कि यह कहेंगे, 'उस जीवन्त ईश्वर के नाम, जो इस्राएलियों को उत्तरी देश और अन्य सब देशों से निकाल लाया, जहाँ उसने उन्हें निर्वासित किया था'; क्योंकि मैं उन्हें उस भूमि में वापस ले जाऊँगा, जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।''
16) प्रभु यह कहता है, ''देखो, मैं बहुत-से मछुओं को बुला भेजूँगा; वे उन्हें पकड़ेगें। इसके बाद मैं बहुत-से शिकारियों को बुला भेजूँगा, जो हर पर्वत, हर पहाड़ी और चट्टान की दरारों में उनका शिकार करेंगे।
17) मेरी आँखें उनके समस्त आचरण पर टिकी हुई हैं; मुझ से कुछ छिपा नहीं है। मैं उनका प्रत्येक अपराध देखता हूँ।
18) मैं उन्हें उनके अपराधों और पापों का दुगुना दण्ड दूँगा, क्योंकि उन्होंने मेरे देश को अपनी मूर्तियों की लोथों से दूषित किया और मेरी विरासत को अपनी घृणित देवमूर्तियों से भर दिया है।''
19) प्रभु! मेरे बल और मेरे गढ़! विपत्ति के समय मेरे आश्रय! पृथ्वी के सीमान्तों से राष्ट्र, यह कहते हुए तेरे पास आयेंगे, ''हमारे पूर्वजों के पास झूठे देवता थे, निरर्थक देवमूर्तियाँ, जिन से कोई लाभ नहीं।
20) क्या मनुष्य अपने लिए देवता बना सकता है? वे देवता होते ही नहीं!''
21) ''इसलिए मैं उन्हें शिक्षा प्रदान करूँगा। इस बार मैं उन पर बना बाहुबल प्रकट करूँगा और वे जान जायेंगे कि मेरा ही नाम प्रभु है।

अध्याय 17

1) ''यूदा का पाप लोहे की छेनी से लिखा गया है। वह उनके हृदय-पटल पर और उनकी वेदियों के कंगूरों पर हीरे की नोक से अंकित किया गया है।
2) (२-३) वे अपनी वेदियों और सदाबहार वृक्षों के नीचे एवं उँची पहाड़ियों पर अपने पूजा-स्तम्भों की उतनी चरचा करते हैं, जितनी अपनी सन्तानों की। मैं देश भर की ऊँची पहाड़ियों पर किये हुए तुम्हारे पापों के कारण तुम्हारी सम्पत्ति और तुम्हारे भण्डार लुटवाऊँगा।
4) तुम को उस विरासत से हाथ धोना पड़ेगा, जिसे मैंने तुम को दिया। मैं तुम को अज्ञात देश में अपने शत्रुओं का दास बना दूँगा, क्योंकि मेरी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो कर सदा तुम्हारे विरुद्ध जलती रहेगी।''
5) प्रभु यह कहता है : ''धिक्कार उस मनुष्य को, जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, जो निरे मनुष्य का सहारा लेता है और जिसका हृदय प्रभु से विमुख हो जाता है!
6) वह मरुभूमि के पौधे के सदृश है, जो कभी अच्छे दिन नहीं देखता। वह मरुभूमि के उत्तप्त स्थानों में- नुनखरी और निर्जन धरती पर रहता है।
7) धन्य है वह मनुष्य, जो प्रभु पर भरोसा रखता है, जो प्रभु का सहारा लेता है।
8) वह जलस्रोत के किनारे लगाये हुए वृक्ष के सदृश हैं, जिसकी जड़ें पानी के पास फैली हुई हैं। वह कड़ी धूप से नहीं डरता- उसके पत्ते हरे-भरे बने रहते हैं। सूखे के समय उसे कोई चिंता नहीं होती क्योंकि उस समय भी वह फलता हैं।''
9) मनुष्य का हृदय सब से अधिक कपटी और अविश्वसनीय हैं। उसकी थाह कौन ले सकता है?
10) ''मैं प्रभु, मनुष्य का हृदय और अन्तरतम जानता हूँ। मैं हर एक को उसके आचरण और उसके कमोर्ं का फल देता हूँ''।
11) जो अन्याय से धन बटोरता है, वह उस तीतरी के सदृश हैं, जो दूूसरों के अण्डे सेती हैं। उसकी सम्पत्ति उसके जीवन के मध्यकाल में उसका साथ छोड़ देती हैं और अपनी मृत्यु के समय वह मूर्ख प्रमाणित होगा।
12) जहाँ हमारा मन्दिर है, वह प्राचीन काल से एक ऊँचा महिमामय सिंहासन है।
13) प्रभु! इस्राएल की आशा! उन सबों को निराश होना पडेगा, जो तुझे त्याग देते हैं। जो तुझ से मुह मोड़ लेते हैं, उनके नाम धूल मे लिखे हुए हैं; क्योंकि वे प्रभु का, जीवन्त जल के स्रोत का त्याग करते हैं।
14) प्रभु मुझे स्वस्थ कर, तभी में स्वस्थ होऊँगा। मेरा उद्धार कर, तभी मेरा उद्धार होगा; क्योंकि मैं तेरी ही स्तुति करता हूँ।
15) वे मुझ से कहते रहते हैं, ''कहाँ है प्रभु की वाणी? अब वह पूरी हो जाये!
16) मैंने उन पर विपत्ति ढाहने का तुझ से अनुरोध नहीं किया। तू जानता है कि मैंने विपत्ति के दिन की आशंका नहीं की। मैंने जो कुछ कहा, वह तेरे सामने ही प्रकट किया गया है।
17) तू मुझे आतंकित न कर, तू विपत्ति के दिन मेरा आश्रय है।
18) मेरे अत्याचारी लज्जित हों, किन्तु तू मुझे लज्जित न होने दे। वे डर से कांप उठें, किन्तु तू मेरी रक्षा कर। उन पर विपत्ति का दिन भेज, उनका पूरी तरह विनाश कर।
19) प्रभु ने मुझ से कहा, ''तुम जा कर जनता के फाटक पर, जिस से यूदा के राजा आते-जाते हैं और येरुसालेम के अन्य फाटकों पर खड़े हो कर
20) यह कहो, 'इन फाटकों से हो कर जाने वाले यूदा के राजाओं, यूदा के लोगो और येरुसालेम के सब निवासियो! प्रभु की वाणी सुनो।
21) प्रभु यह कहता हैं : इसका ध्यान रखो कि तुम विश्राम के दिन न तो किसी प्रकार का बोझ उठाओ और न उसे येरुसालेम के फाटकों के अन्दर ले आओ।
22) तुम विश्राम के दिन न तो अपने घरों से बाहर कोई बोझ ले जाओ और न कोई काम करो, बल्कि विश्राम का दिन पवित्र बनाये रखो। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को यही आदेश दिया।
23) किन्तु उन्होंने न उसे सुना और न उस पर ध्यान दिया। वे हठीले बने रहे- उन्होंने न तो सुनना चाहा और न शिक्षा ग्रहरण करना।
24) प्रभु यह कहता हैः यादि तुम मेरे आदेश का पालन करोगे और विश्राम के दिन इस नगर के फाटकों के अन्दर बोझ नहीं ले आओगे, बल्कि विश्राम का दिन पवित्र बनाये रखते हुए उस दिन कोई काम नहीं करोगे,
25) तो दाऊद के सिंहासन पर बैठने वाले राजा अपने मन्त्रियों के साथ इस नगर के फाटकों से हो कर आते-जाते रहेंगे। वे, उनके मन्त्री, यूदा के लोग और येरुसालेम के निवासी रथों और घोड़ों पर सवारी करेंगे और यह नगर सदा आबाद रहेगा
26) तब यूदा के नगरों से, येरूसोम के आसपास के गावों से बेनयामीन के क्षेत्र से, निचले प्रदेश और नेगेब से आ कर होम-बलियाँ, शान्ति-बलियाँ, अन्न-बलियाँ, धूप और धन्यवाद की बलियाँ प्रभु के मन्दिर में चढ़ायेंगे।
27) परन्तु यदि तुम विश्राम-दिवस पवित्र रखने की मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे और विश्राम-दिवस को बोझ उठा कर येरुसालेम के फ़ाटकों में प्रवेश करोगे, तो मैं उसकी फाटकों में ऐसी आग लगाऊँगा, जा येरुसालेम के महलों को भस्म कर डालेगी; वह कभी नहीं बुझेगी।''

अध्याय 18

1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
2) ''उठो और कुम्हार के घर जाओ। वहाँ मैं तुम्हें अपना सन्देश दूँगा''
3) मैं कुम्हार के घर गया, जो चाक पर काम कर रहा था।
4) वह जो बरतन बना रहा था, जब वह उसके हाथ में बिगड़ जाता, तो वह उसकी मिट्टी से अपनी पसंद का दूसरा बरतन बनाता।
5) तब प्रभु की यह वाणी मुझे सुनाई पड़ी,
6) ''इस्राएलियो! क्या मैं इस कुम्हार की तरह तुम्हारे साथ व्यवहार नहीं कर सकता?'' यह प्रभु की वाणी हैं। ''इस्राएलियों! जैसे कुम्हार के हाथ में मिट्टी है, वैसे ही तुम भी मेरे हाथ में हो।
7) यदि मैं किसी राष्ट्र या राज्य के विषय में घोषित करता हूँ कि मैं उसे उखाड़ और तोड़ कर उसका विनाश करूँगा,
8) किन्तु यादि वह राष्ट्र, जिसे मैंने चेतावनी दी थी, पश्चाताप करता है, तो मैं उसका विनाश करने का विचार छोड़ देता हूँ।
9) यदि मैं किसी राष्ट्र या राज्य के विषय में घोषित करता हूँ कि मैं उसका निर्माण करूँगा और उसे रोपूँगा,
10) किन्तु यदि वह मेरी वाणी पर ध्यान न दे कर ऐसे काम करने लगता है, जो मरी दृष्टि में बुरे हैं, तो मैैं उसके साथ भलाई करने का विचार छोड़ देता हूँ।
11) ''इसलिए तुम अब यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों से कहोगे ''प्रभु यह कहता हैः देखो मैं तुम्हारा अनिष्ट करने का विचार कर रहा हूँ, मैं तुम्हारे विरुद्ध एक योजना तैयार कर रहा हूँ। तुम में प्रत्येक व्यक्ति कमार्ग छोड़ कर अपने आचरण और कमोर्ं का सुधार करे।'
12) किन्तु वे यह कहेंगेः 'यह व्यर्थ की बात है! हम अपनी योजना के अनुसार चलेंगे और हम में प्रत्येक हठपूर्वक बुराई करता रहेगा।''
13) इसलिए प्रभु यह कहता हैं, ''राष्ट्रों से पूछोः क्या कभी किसी ने ऐसी बात सुनी है? कुमारी इस्राएल ने एक घृणित काम किया है।
14) क्या लोग लेबानोन से उतरने वाला और मैदान की चट्टनों से उमड़ने वाला हिम छोड़ देते हैं? क्या दूर से आने वाली ठण्डी जलधाराओं का तिरस्कार किया जा सकता है?
15) किन्तु मेरी प्रजा ने मुझे भुला दिया हैं। वह निस्सार देवमूर्तियों को धूप चढाती हैं। इस कारण वह अपने परम्परागत मागोर्ं पर ठोकर खाती हैं और ऊबड़-खाबड पगडण्डियों पर भटकती फिरती है।
16) उसका देश उजड़ गया है, अन्य राष्ट्र उसका उपहास करते हैं। जो उधर गुजरते हैं, वे दंग रह जाते और सिर हिला कर आगे बढ़ते हैं।
17) मैं पूर्वी हवा की तरह उसे शत्रुओं के सामने से तितर-बितर कर दँूगा। मैं संकट के समय उसे अपना मुख नहीं बल्कि अपनी पीठ दिखाऊँगा।''
18) वे कहते हैं, ''आओ! हम यिरमियाह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचें। पुरोहितों से शिक्षा मिलती रहती है, बुद्धिमानों से सत्यपरामर्श और नबियों से भविष्यवाणी। आओ! हम उस पर झूठा आरोप लगायें, हम उसकी किसी भी बात पर ध्यान न दें।''
19) प्रभु! तू मेरी पुकार सुन, मेरे अभियोक्ताओं की बातों पर ध्यान दे।
20) क्या भलाई के बदले बुराई करना उचित है? वे मेरे लिए गड्ढा खोदते हैं। याद कर कि मैं उनके पक्ष में बोलने और उन पर से तेरा क्रोध दूर करने के लिए तेरे सामने खड़ा रहा।
21) उनके बच्चों को अकाल का शिकार बना, तू उन्हें तलवार के घाट उतार। उनकी स्त्रियाँ निस्सन्तान और विधवा हो जायें; उनके पुरुष महामारी के शिकार बनें; उनके युवक युद्ध में तलवार से मारे जायें!
22) जब तू अचानक उनके यहाँ लुटेरों को भजेगा, तो उनके घरों से चीख़ सुनाई पडेगी; क्योंकि उन्होंने मुझे पकडने के लिए गड्ढा खोदा और मेरे पैरों के लिए फन्दे बिछाये हैं।
23) किन्तु प्रभु! तू जानता हैं कि उन्होंने मेरी हत्या का षड्यन्त्र रचा हैं। उनका अपराध क्षमा मत कर और उनके पाप मत भुला। अपने सामने उनका विनाश कर अपने क्रोध के समय उन्हें दण्ड दे।

अध्याय 19

1) प्रभु यह कहता हैं, ''जाओ और कुम्हार से एक सुराही ख़रीद लो। तब जनता के कुछ नेताओं और कुछ याजकों को अपने साथ ले कर
2) बेन-हिन्नोम की घाटी जाओ, जो 'ठीकरा-फाटक' के सामने है और वहाँ वह सन्देश सुनाओ जो मैं तुम को दे रहा हूँ।
3) तुम उन से यह कहोगे, 'यूदा के राजाओ और येरुसालेम के निवासियो! प्रभु की वाणी सुनो। सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं इस स्थान पर ऐसी विपत्तियाँ ढाहूँगा कि उनके विषय में जो सुनेगा, वह दंग रह जायेगा।
4) लोगों ने मुझे त्याग दिया है और इस स्थान को अपवित्र कर दिया है- उन्होंने पराये देवताओं को होम-बालियाँ चढायीं, जिन्हें न तो वे जानते थे, न उनके पूर्वज और न यूदा के राजा। उन्होंने निर्दोष व्यक्तियों के रक्त से यह स्थान भर दिया।
5) उन्होंने बाल-देवता के आदर में टीलों पर पूजा स्थान बनाये, जिससे वे बाल को अपने बच्चों की होम-बलियाँ चढ़ाये, यद्यपि मैंने उन को न तो ऐसा करने का आदेश दिया, न अनुमति दी और न कभी ऐसी बात मेरे मन में आयी।
6) इसलिए प्रभु कहता है कि देखो, अब ऐसे दिन आयेंगे कि लोग इस स्थान को न तो तोफेत की घाटी कहेंगे और न बेन-हिन्नोम की घाटी, बल्कि इसे वध की घाटी कहेंगे।
7) ''मैं इस स्थान पर यूदा और येरुसालेम की योजनाएँ निष्फल कर दूगा। जो उन लोगों के प्राणों के ग्राहक हैं, उनके माध्यम से मैं उनके शत्रुओं के सामने तलवार के घाट उतरवाऊँगा। मैं उन लोगों की लाशों को आकाश के पक्षियों और पृथ्वी के पशुओं का आहार बनाऊँगा।
8) मैं इस नगर को उजाड़ कर इसे घृणा का पात्र बनाऊँगा। जो इधर गुजरेगा, वह दंग रह जायेगा; वह यह संहार देख कर आतंकित हो उठेगा।
9) मैं उन्हें उनके पुत्र-पुत्रियों का मांस खिलाऊँगा। उनके शत्रु और उनके प्राणें के गाहक उन्हें घेर कर इतना पीड़ित करेंगे कि वे एक-दूसरे को फाड़ खायेंगे।'
10) ''तुम अपने साथ आये हुए लोगों के सामने वह सुराही फोड़ दोगे
11) और उन से कहोगे, 'सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः जैसे कुम्हार का बरतन टूटने पर फिर मरम्मत नहीं हो सकता, वैसे ही मैं इस राष्ट्र और इस नगर को टुकडे-टुकडे कर दूँगा। तोफेत मुर्दे दफ़नाने के काम आयेगा, क्योंकि दफ़नाने का दूसरा स्थान नहीं मिलेगा।
12) मैं इस स्थान और इसके निवासियों के साथ ऐसा ही करूँगा। मैं इस नगर को तोफेत-जैसा बना दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।
13) येरुसालेम और यूदा के राजाओं के घर, वे सभी घर तोफेत की तरह अपवित्र हो जायेंगे, जिनकी छतों पर आकाश के तारागण को धूप चढ़ायी जाती है और जहाँ अन्य देवताओं को अर्घ अर्पित किया जाता है'।''
14) इसके बाद यिरमियाह तोफ़ेत से लौट आया, जहाँ प्रभु ने उसे भविष्यवाणी करने भेजा था। उसने प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में खड़े हो कर सब लोगों से कहा,
15) ''सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं इस नगर पर और इसके आसपास के सब नगरों पर वे सब विपत्तियाँ ढाहूँगा, जिनकी मैंने घोषण की है; क्योंकि वे हठीले हैं और मेरी बात सुनना नहीं चाहते''।

अध्याय 20

1) इम्मेर का पुत्र, याजक पशहूर, प्रभु के मन्दिर का प्रमुख निरीक्षक था। उसने यिरमियाह की यह भविष्यवाणी सुन कर
2) उसे पिटवाया और मन्दिर के बेनयामीन नामक ऊपरी के फाठक के काठ में डलवाया।
3) जब पशहूर ने दूसरे दिन यिरमियाह को काठ से निकलवाया, तो यिरमियाह ने उस से कहा, ''अब से प्रभु तुम को 'पशहूर' नहीं, बल्कि 'मागोर' (चारों ओर आतंक) कह कर पुकारेगा;
4) क्योंकि प्रभु यह कहता हैः ''तुम अपने और अपने मित्रों के लिए आतंक के कारण बनोगे। वे अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे जायेंगे और यह तुम स्वयं अपनी आँखों से देखोगे। मैं यूदा के सब लोगों को बाबुल के राजा के हवाले कर दूँगा; वह उन्हें बाबुल में निर्वासित करेगा और उन्हें तलवार के घाट उतारेगा।
5) मैं इस नगर की समस्त सम्पत्ति उनके शत्रुओं के हाथ में दूँगा- इसके परिश्रम का सारा फल, इसकी सब बहुमूल्य वस्तुएँ और यूदा के राजाओं के सारे ख़जाने। वे यह लूटेंगे और बाबुल ले जायेंगे
6) और तुम पशहूर! तुम अपने घर के सब लोगों के साथ बन्दी बना कर बाबुल ले जाये जाओगे। वहाँ तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी और तुम्हारा दफ़न किया जायेगा- तुम और तुम्हारे सभी मित्र, जिन्हें तुमने झूठी भविष्यवाणियाँ सुनायी हैं'।''
7) प्रभु! तूने मुझे राजी किया और मैं मान गया। तूने मुझे मात कर दिया और मैं हार गया। मैं दिन भर हँसी का पात्र बना रहता हूँ। सब-के-सब मेरा उपहास करते हैं।
8) जब-जब मैं बोलता हूँ, तो मुझे चिल्लाना और हिंसा तथा विध्वंस की घोषणा करनी पड़ती हैं। ईश्वर का वचन मेरे लिए निरंतर अपमान तथा उपहास का कारण बन गया हैं।
9) जब मैं सोचता हूँ, मैं उसे भुलाऊँगा, मैं फिर कभी उसके नाम पर भविष्य वाणी नहीं करूँगा'' तो उसका वचन मेरे अन्दर एक धधकती आग जैसा बन जाता है, जो मेरी हड्डी-हड्डी में समा जाती है। मैं उसे दबाते-दबाते थक जाता हूँ और अब मुझ से नहीं रहा जाता।
10) मैंने बहुतों को यह फुसफुसाते हुए सुना है- ''चारों ओर आतंक फैला हुआ हैं। उस पर अभियोग लगाओ! हम उस पर अभियोग लगायें''। जो पहले मेरे मित्र थे, वे सब इस ताक में रहते हैं कि मैं कोई ग़लती कर बैठूँ और कहते हैं, ''वह शायद भटक जायेगा और हम उस पर हावी हो कर उस से बदला लेंगे''।
11) परन्तु प्रभु एक पराक्रमी शूरवीर की तरह मेरे साथ हैं। मेरे विरोधी ठोकर खा कर गिर जायेंगे। वे मुझ पर हावी नहीं हो पायेंगे और अपनी हार का कटु अनुभव करेंगे। उनका अपयश सदा बना रहेगा।
12) विश्वमण्डल के प्रभु! तू धर्मी की परीक्षा करता और मन तथा हृदय की थाह लेता है। मैं अपने को तुझ पर छोड़ता हूँ। मैं दूखूँगा कि तू उन लोगों से क्या बदला लेता है।
13) प्रभु का गीत गाओ! प्रभु की स्तुति करो! क्योंकि वह दरिद्रों के प्राणों को दुष्टों के हाथ से छुडाता है।
14) जिस दिन मैं पैदा हुआ, वह अभिशप्त हो जिस दिन मेरी माता ने मुझे जन्म दिया, उसे आशीर्वाद न मिले।
15) अभिशप्त हो वह व्यक्ति, जिसने मेरे पिता से कहते हुए उसे आनन्दित किया, ''तुम को एक पुत्र पैदा हुआ है।''
16) वह व्यक्ति उन नगरों-जैसा बने, जिनका प्रभु ने बिना दया किये विनाश किया है। उसे प्रातः चीत्कार सुनाई पड़े और दिन में लड़ाई का नारा।
17) प्रभु ने मुझे गर्भ में क्यों नहीं मारा, जिससे मेरी माता मेरी कब्र बन जाती और मैं उसके गर्भ में सदा पड़ा रहता?
18) मैं अपनी माता के गर्भ से क्यों निकला, जिससे मैं कष्ट और दुःख ही सहता रहूँ और प्रतिदिन लज्जा का अनुभव करूँ?

अध्याय 21

1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को सुनाई पड़ी, जब राजा सिदकीया ने उसके पास मलकीया के पुत्र पशहूर और मासेया के पुत्र याजक सफ़न्या को यह पूछने भेजा,
2) ''बाबुल का राजा नबूकदनेजर हम पर आक्रमण कर रहा है। इस सम्बन्ध में प्रभु से परामर्श लो। संभव है कि प्रभु हमारे लिए अपना कोई ऐसा चमत्कार दिखाये, जिससे वह हम पर आक्रमण करने का विचार छोड़ दे।''
3) यिरमियाह ने उन से कहा, ''तुम सिदकीया से यह कहोगे, 'प्रभु इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः
4) जिन सैनिकों के सहारे तुम अपने को घेरने वाले बाबुल के राजा और खल्दैयियों के विरुद्ध चारदीवारी के बाहर लड़ते हो, मैं उन्हें इस नगर के भीतर भगा दूँगा;
5) क्योंकि मैं स्वयं अपना बाहुबल प्रकट करते हुए तुम पर अपना हाथ उठाऊँगा और प्रचण्ड प्रकोप एवं क्रोध के आवेश में तुम्हारे विरुद्ध लडँूगा।
6) मैं इस नगर में रहने वाले मनुष्यों और पशुओं को मारूँगा; वे भयंकर महामारी के शिकार बनेंगे।
7) इसके बाद मैं यूदा के राजा सिदकीया, उसके अधिकारियों और उन लोगों को, जो इस नगर में महामारी, तलवार और भूखमारी से बच जायेंगे, बाबुल के राजा के हाथ- उनके शत्रुओं और उनके प्राणों के गाहकों के हाथ-दे दूँगा। वह उन्हें तलवार के घाट उतरवा देगा। वह उनके प्राणों की रक्षा नहीं करेगा। वह उन पर न तरस खायेगा और न दया करेगा। यह प्रभु की वाणी है।'
8) ''तुम लोगों से कहोगे, ''प्रभु यह कहता हैः मैं तुम्हारे सामने जीवन का मार्ग और मृत्यु का मार्ग रखता हूँ। तुम स्वयं चुनो।
9) जो इस नगर में रहेगा, वह तलवार, भुखमरी या महामारी से मारा जायेगा। जो नगर छोड कर तुम्हें घेरने वाले खल्दैयियों के सामने आत्मसमर्पण करेगा, वह जीवित रहेगा और अपने प्राण बचायेगा।
10) मैंने इस नगर के साथ भलाई नहीं, बल्कि अनिष्ट करने का निश्चिय किया है। यह प्रभु की वाणी है। यह बाबुल के राजा के हाथ दिया जायेगा और वह इसे जला देगा।'
11) ''यूदा के राजवंश! प्रभु की वाणी सुनों।
12) दाऊद के घराने! प्रभु यह कहता हैः ''प्रतिदिन सबेरे न्याय करो। जो लुट रहा है, अत्याचारी के हाथ से उसकी रक्षा करो। ऐसा न हो कि मेरा क्रोध आग की तरह भडक उठे और तुम्हारे कुकर्मों के कारण उसे बुझाने वाला कोई न रहे।
13) प्रभु यह कहता हैः तुम, जो घाटी के ऊपर चट्टान पर अवस्थित हो! मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ। तुम डींग मारते हुए कहते हो, ''कौन हम पर आक्रमण कर सकता है हमारे गढ़ में कौन प्रवेश कर पायेगा?''
14) मैं तुम्हारे कुकमोर्ं के अनुसार तुम को दण्ड दूँगाा। यह प्रभु की वाणी हैं। मैं तुम्हारे जंगलों में ऐसी आग लगाऊगा, जो आसपास का सारा प्रदेश जला देगी।''

अध्याय 22

1) प्रभु यह कहता है, ''यूदा के राजा के महल में जाओ और वहाँ यह सन्देश सुनाओ :
2) 'यूदा के राजा! जो दाऊद के सिंहासन पर विराजमान हो, मन्त्रीगण और इन फाटकों से आने-जाने वाले लोगो! तुम प्रभु की वाणी सुनो।
3) प्रभु यह कहता हैः न्याय और सदाचरण करो। जो लुट रहा है, अत्याचारी के हाथ से उसकी रक्षा करो। विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के साथ अन्याय मत करो, उन पर अत्याचार मत करो और इस स्थान पर निर्दोष रक्त मत बहाओ।
4) यदि तुम सचमुच इन आदेशों का पालन करोगे, तो दाऊद के सिंहासन पर बैठने वाले राजा, उनके मन्त्री और उनकी प्रजा, रथों और घोड़ों पर सवारी करते हुए, इन फाटकों से हो कर आते-जाते रहेंगे।
5) किन्तु यदि तुम इन आदेशों का पालन नहीं करोगे, तो मैं शपथ खा कर कहता हूँ कि यह महल खँडहर बन जायेगा।''
6) क्योंकि यूदा के राजा के महल के विषय में प्रभु यह कहता हैः ''यद्यपि तुम मेरे लिए गिलआद-जैसे, लेबानोन के शिखर-जैसे हो, किन्तु अब मैं निश्चय ही तुम को मरुभूमि-जैसा, उजाड़ नगर-जैसा बना दूँगा।
7) मैं तुम्हारे पास विनाश करने वालों को भेजूँगा; वे अपने-अपने अस्त्र लिये आयेंगे, वे तुम्हारे अच्छे-से-अच्छे देवदार काट कर आग में झोंक देंगे।
8) ''जब विदेशी इस नगर के पास गुजरेंगे, वे एक दूसरे से पूछेंगे, 'प्रभु ने इस बड़े नगर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?',
9) तो उन्हें उत्तर मिलेगा, 'यह इसलिए हुआ कि उन्होंने प्रभु, अपने ईश्वर का विधान भंग किया और अन्य देवताओं की आराधना और पूजा की।''
10) मृतक के लिए विलाप मत करो, उसके लिए शोक मत मनाओ। उसके लिए फूट-फूट कर रोओ, जो विदेश चला गया है; क्योंकि वह फिर कभी नहीं लौटेगा। वह फिर कभी अपनी जन्मभूमि के दर्शन नहीं करेगा।
11) योशीया का पुत्र, यूदा का राजा शल्लूम अपने पिता योशीया का उत्तराधिकारी बना और वहाँ से चला गया। उसके विषय में प्रभु यह कहता हैः ''वह कभी नहीं लौटेगा।
12) उसकी मृत्यु वहीं होगी, जहाँ वह बन्दी बना कर ले जाया गया है। वह फिर कभी इस देश के दर्शन नहीं करेगा।''
13) ''धिक्कार उसे, जो अधर्म के धन से अपना महल और अन्याय से अटारियाँ बनवाता है; जो वेतन दिये बिना अपने पड़ोसी से काम लेता है;
14) जो कहता है, मैं अपने लिए एक विशाल भवन बनवाता हूँ, जिस में बड़ी-बड़ी अटारियाँ होंगी'; उस में बड़ी खिड़कियाँ लगाता, उसकी दीवारों पर देवदार के पटरे जड़वाता और उस पर सिन्दूर रँगवाता है!
15) क्या तुम इसलिए राजा हो कि तुम्हारे पास देवदार की लकड़ी अधिक है! क्या तुम्हारा पिता खाता-पीता नहीं था? वह न्याय और सदाचरण का जीवन बिताता था और इसलिए उसे सुख-शान्ति मिली।
16) वह पददलित और दरिद्र को न्याय दिलाता था, इसलिए उसका भला हुआ। जो मुझे जानता है, वह ऐसा आचरण करता है।'' यह प्रभु की वाणी है।
17) ''लेकिन तुम मात्र इन बातों पर तुले हुए हो : अनुचित लाभ उठाना, निर्दोष रक्त बहाना, अत्याचार और हिंसा करना।''
18) इसलिए योशीया के पुत्र यहोयाकीम, इस्राएल के राजा के विषय में प्रभु यह कहता है : ''लोग यह कहते हुए उस पर विलाप नहीं करेंगे- 'हाय, मेरे भाई! हाय, मेरी बहन! वे यह कहते हुए उस पर विलाप नहीं करेंगे- 'हाय, मेरे स्वामी! हाय, महाराज!
19) वे गधे की तरह उसका दफ़न करेंगे; वे उसे येरुसालेम के बाहर घसीट कर उसे वहाँ फेंक देंगे।''
20) ''लेबानोन पर चढ़ कर विलाप करो, बाशान में उँचे स्वर से चिल्लाओ, अबारीम से पुकार लगाओ, क्योंकि तुम्हारे सभी प्रेमी रौंदे गये।
21) मैंने तुम्हारी समृद्धि के समय तुम को चेतावनी दी, किन्तु तुमने उत्तर दिया, 'मैं नहीं सुनूँगी'। तुम अपनी जवानी के समय से यही आचरण करती रही। तुमने कभी मेरी वाणी पर ध्यान नहीं दिया।
22) हवा तुम्हारे चरवाहों को उड़ा ले जायेगी, तुम्हारे प्रेमियों को निर्वासित किया जायेगा। तब तुम को अपने कुकर्मों के कारण लज्जित और कलंकित होना पड़ेगा।
23) लेबानोन में निवास करने वाली! देवदार के महलों में अपना नीड़ बनाने वाली! जब तुम पर प्रसव की-सी पीड़ा टूट पड़ेगी, तो तुम वेदना से आहें भरोगी।''
24) प्रभु कहता है, ''अपने अस्तित्व की शपथ! यहोयाकीम के पुत्र, यूदा के राजा कोन्याह! यदि तुम मेरे दाहिने हाथ की मुद्रिका होते, तब भी मैं तुम को निकाल कर फेंक देता।
25) मैं निश्चय तुम को बाबुल के राजा नबूकदनेजर और खल्दैयियों के हाथ दूँगा, जो तुम्हारे जीवन के गाहक हैं और जिन से तुम डरते हो।
26) मैं तुम को और तुम्हारी माता को, जिसने तुम को जन्म दिया, एक ऐसे देश में फेंक दूँगा, जहाँ तुम दोनों का जन्म नहीं हुआ और वहाँ तुम दोनों की मृत्यु होगी।
27) तुम जिस देश में लौटना चाहोगे, वहाँ लौट नहीं सकोगे।''
28) क्या कोन्याह तिरस्कृत, टूटा हुआ पात्र है? एक ऐसा बरतन, जो किसी के काम का नहीं? वह और उसके वशंज क्यों एक ऐसे देश में भगाये गये हैं, जिसे वे नहीं जानते?
29) देश! ओ देश! प्रभु की वाणी सुनो।
30) प्रभु यह कहता हैः ''इस व्यक्ति को निस्सन्तान समझो। इसे अपने जीवन में कभी सफलता नहीं मिली; क्योंकि इसके वंशजों में कोई दाउद के सिंहासन पर नहीं बैठेगा और यूदा पर शासन नहीं करेगा।''

अध्याय 23

1) ''धिक्कार उन चरवाहों को जो मेरे चरागाह की भेड़ों को नष्ट और तितर-बितर हो जाने देते हैं!'' यह प्रभु की वाणी है।
2) इसलिए प्रभु, इस्राएल का ईश्वर अपनी प्रजा को चराने वालों से यह कहता है, ''तुम लोगों ने मेरी भेड़ों को भटकने और तितर-बितर हो जाने दिया; तुमने उनकी देखरेख नहीं की। देखो! मैं तुम लोगों को तुम्हारे अपराधों का दण्ड दूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
3) ''इसके बाद मैं स्वयं अपने झुण्ड की बची हुई भेड़ों को उन सभी देशों से एकत्र कर लूँगा, जहाँ मैंने उन्हें बिखेर दिया है; मैं उन्हें उनके अपने मैदान वापस ले चलूँगा और वे फलेंगी-फूलेंगी।
4) मैं उनके लिए ऐसे चरवाहों को नियुक्त करूँगा, जो उन्हें सचमुच चरायेंगे। तब उन्हें न तो भय रहेगा, न आतंक और न उन में से एक का भी सर्वनाश होगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
5) प्रभु यह कहता है : ''वे दिन आ रहे हैं, जब मैं दाऊद के लिए एक न्यायी वंशज उत्पन्न करूँगा। वह राजा बन कर बुद्धिमानी से शासन करेगा और अपने देश में न्याय और धार्मिकता स्थापित करेगा।
6) उसके राज्यकाल में यूदा का उद्धार होगा और इस्राएल सुरक्षित रहेगा और उसका यह नाम रखा जायेगा- प्रभु ही हमारी धार्मिकता है।''
7) यह प्रभु का कहना है, ''वह समय आ रहा है, जब लोग फिर यह नहीं कहेंगे, 'प्रभु के अस्तित्व की शपथ! वह इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया है।'
8) वे यह कहेंगे, 'प्रभु के अस्तित्व की शपथ! वह इस्राएल के वंशजों को उत्तरी देश से और उन सब देशों से वापस बुला कर लाया है, जहाँ उसने उन्हें बिखेर दिया था।' वे फिर अपनी ही भूमि में बस जायेंगे।''
9) नबियों के विषय में : मेरा हृदय मेरे अन्तरतम में टूटा हुआ है; मेरी सभी हड्डियाँ काँप रही हैं। प्रभु और उसके पवित्र शब्दों के कारण मैं शराबी-जैसा बन गया हूँ, उस व्यक्ति-जैसा, जो पीकर मतवाला हो गया है।
10) देश व्यभिचारियों से भर गया है; देश अभिशाप के कारण शोक मना रहा है। जंगल के चरागाह सूख गये हैं। वे बुराई की बात ही सोचते हैं, उनकी शक्ति अन्याय पर निर्भर है।
11) ''नबी और याजक, दोनों दुष्ट हैं। मैं मन्दिर में भी उनका दुराचरण देखता हूँ।'' यह प्रभु की वाणी है।
12) ''इसलिए उनका मार्ग उनके लिए पिच्छल भूमि बन जायेगा। वे अन्धकार में भटकते और गिर जाते हैं। जिस वर्ष उन्हें लेखा देना पड़ेगा, मैं उन पर विपत्तियाँ ढाहूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
13) ''समारिया के नबियों में मैंने अप्रिय बातें देखी हैं। वे बाल के नाम पर भविष्यवाणियाँ करते और मेरी प्रजा इस्राएल को भटकाते थे।
14) किन्तु येरुसालेम के नबियों में मैं घृणित बातें देखता हूँ : वे व्यभिचार करते और झूठ बोलते हैं। वे कुकर्मियों को प्रोत्साहन देते हैं, जिससे कोई पश्चाताप नहीं करता। समस्त नगर मेरी दृष्टि में सोदोम-जैसा हो गया है, उसके निवासी गोमोरा के लोगों-जैसे हो गये हैं।''
15) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु इन नबियों के विषय में यह कहता हैः ''मैं उन्हें कड़वा भोजन खिलाऊँगा और विष मिला हुआ पानी पिलाउँगा; क्योंकि येरुसालेम के नबियों के कारण देश भर में अधर्म फैल जाता है।''
16) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''तुम नबियों की बातों पर ध्यान मत दो वे तुम को झूठी आशा दिलाते हैं। वे तुम को प्रभु की वाणी नहीं, बल्कि अपने मन की कल्पित बातें बताते हैं।
17) प्रभु की वाणी का तिरस्कार करने वालों से वे कहते हैं, 'तुम्हारा भला होगा' और जो अपनी दुष्टता में दृढ़ बना रहता है, उस से वे कहते हैं, 'तुम्हारी कोई हानि नहीं होगी'।
18) ''किन्तु उन में कौन ईश्वर की परिषद में है? कौन यह सब देखता और प्रभु की वाणी सुनता है? कौन प्रभु की वाणी ध्यान से सुनता है?
19) प्रभु का क्रोध आँधी की तरह भड़क उठता है, वह बवण्डर की तरह उनके सिर पर मँडराता है।
20) जब तक प्रभु ने अपनी सुनिश्चित योजना को कार्य रूप में परिणत नहीं किया होगा, तब तक उसका प्रकोप शान्त नहीं होगा। तुम बाद में उसे पूरी तरह समझोगे।
21) ''मैं उन नबियों को नहीं भेजता, फिर भी वे इधर-उधर अपना सन्देश सुनाते हैं। मैं उनसे बात नहीं करता, फिर भी वे भविष्यवाणी करते हैं।
22) यदि वे मेरी परिषद् में सम्मिलित होते, तो वे मेरी प्रजा को मेरा सन्देश सुनाते और उसे अपने दुराचरण और अपने कुकर्मों से विमुख करते।
23) ''मैं एक ही स्थान का ईश्वर नहीं, बल्कि विश्व का ईश्वर हूँ।'' यह प्रभु की वाणी है।
24) ''क्या कोई व्यक्ति अपने को इस प्रकार छिपा सकता कि मैं उसे देख नहीं सकता?'' यह प्रभु की वाणी है ''क्या मैं स्वर्ग में और पृथ्वी में व्याप्त नहीं?'' यह प्रभु की वाणी है।
25) ''जो नबी मेरे नाम पर झूठी भविष्यवाणियाँ करते हैं, मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना है, 'मैंने एक स्वप्न देखा है, मैंने एक स्वप्न देखा'।
26) यह कब तक होता रहेगा? अपनी मनगढ़न्त बातों का प्रचार करने वाले इन झूठे नबियों का क्या उद्देश्य है?
27) वे समझते हैं कि जो स्वप्न वे एक दूसरे की बताते हैं, उनके द्वारा मेरी प्रजा मेरा नाम भूल जायेगी, जैसा कि उनके पूर्वजों ने बाल की पूजा करते-करते मेरा नाम भुला दिया।
28) जो नबी स्वप्न देखता है, वह उसे प्रकट करे, किन्तु जिसे मेरी वाणी प्राप्त हो, वह उसे ईमानदारी से सुनाये। भूसे और गेहूँ में कौन समता है?'' यह प्रभु की वाणी है।
29) ''मेरी वाणी अग्नि-जैसी है, वह उस हथौड़े की तरह है, जो चट्टान को टुकड़े-टुकड़े कर देता है।'' यह प्रभु की वाणी है।
30) प्रभु कहता है, ''देखो, मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा, जो एक दूसरे से शब्द चुरा कर उन्हें मेरे नाम पर घोषित करते हैं''।
31) प्रभु कहता है, ''मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा, जो निरर्थक बातें सुनाते हैं और उन्हें ईश्वर की वाणी समझते हैं''।
32) प्रभु कहता है, ''मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा, जो तथाकथित स्वप्न देखते हैं और उन्हें लोगों को बताते हैं। वे अपनी झूठी बातें और शब्दजाल द्वारा मेरी प्रजा को भटकाते हैं। मैंने उन्हें नहीं भेजा और उन्हें नियुक्त नहीं किया। वे इस प्रजा के लिए किसी काम के नहीं।'' यह प्रभु की वाणी है।
33) ''यदि इन लोगों में कोई- चाहे वह नबी हो या याजक- तुम से पूछे कि 'प्रभु का भार क्या है?, तो उन से कहो, 'प्रभु कहता हैः तुम्हीं मेरे लिए भार हो और मैं तुम को निकाल कर फेंक दूँगा'।
34) यदि कोई नबी, याजक या जनता में कोई 'प्रभु के भार' की चरचा करता है, तो मैं उसे और उसके परिवार को दण्ड दूँगा।
35) तुम एक दूसरे से पूछो, 'प्रभु का उत्तर क्या है? प्रभु का संदेश क्या है?'
36) किन्तु प्रभु के 'भार' के विषय में मेरा आदेश यह है कि तुम इस शब्द का उच्चारण नहीं करोगे। प्रत्येक व्यक्ति का वचन उसी का 'भार' होगा, क्योंकि तुम जीवन्त ईश्वर, सर्वशक्तिमान् प्रभु, हमारे ईश्वर की वाणी विकृत करते हो।
37) तुम नबी से यह कहोगे, 'प्रभु का उत्तर क्या है? प्रभु का सन्देश क्या है?'
38) यदि तुम 'प्रभु के भार' की चरचा करोगे, तो प्रभु कहता हैः क्योंकि तुम 'प्रभु के भार' की चरचा करते हो, जब कि मैंने तुम को 'प्रभु का भार' कहना मना किया है,
39) इसलिए मैं तुम को उठा कर अपने से दूर फेंक दूँगा और इस नगर को भी, जिसे मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया।
40) मैं तुम पर चिरस्थायी अपयश और चिरस्थायी कलंक का भार लाद दूँगा, जिसे कभी भुलाया नहीं जायेगा।''

अध्याय 24

1) जब बाबुल का राजा नबूकदनेजर यूदा के राजा यहोयाकीम के पुत्र यकोन्याह को यूदा के उच्च पदाधिकारियों, कारीगरों और शिल्पकारों के साथ येरुसालेम से बाबुल ले गया था, उस समय प्रभु ने मुझे एक दृश्य दिखाया थाः प्रभु के मन्दिर के सामने अंजीरों से भरी दो टोकरियाँ रखी थीं।
2) एक टोकरी में उत्तम अंजीर थे, जैसे पहले पके अंजीर होते हैं और दूसरी टोकरी में एकदम ख़राब अंजीर। वे इतने ख़राब थे कि खाये भी नहीं जा सकते थे।
3) तब प्रभु ने मुझ से पूछा, ''यिरमियाह! तुम क्या देख रहे हो?'' मैंने उत्तर दिया, ''अंजीर देख रहा हूँ। अच्छे अंजीर बहुत अच्छे हैं, किन्तु खराब अंजीर ऐसे बुरे हैं कि खाये नहीं जा सकते।''
4) इसके बाद मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
5) ''प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है, 'इन अच्छे अंजीरों की तरह ही मैं यूदा से निर्वासित लोगों पर दयादृष्टि रखूँगा, जिन्हें मैंने इस स्थान से खल्दैयियों के देश में भेजा था।
6) मैं उन पर अपनी कृपा-दृष्टि बनाये रखूँगा, और उन्हें इस देश में वापस ले आऊँगा। मैं उनकी रक्षा करूँगा, उनका विनाश नहीं करूँगा; मैं उन्हें रोपूँगा, उखाडूँगा नहीं।
7) मैं उन को ऐसी बुद्धि दूँगा कि वे समझेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ। वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका ईश्वर होऊँगा ; क्योंकि वे सारे हृदय से मेरी ओर अभिमुख हो जायेंगे।'
8) ''प्रभु यह कहता हैः 'जैसा व्यवहार उन खराब अंजीरों के साथ किया जाता है, जो इतने खराब है कि खाये नहीं जा सकते, वैसा ही व्याहार मैं यूदा के राजा सिदकीया, उसके पदाधिकारियों, येरुसालेम के बचे हुए लोगों के साथ करूँगा, जो इस देश में रह गये और उन लोगों के साथ, जो मिस्र में बस गये हैं।
9) मैं उन्हें पृथ्वी के सब राज्यों के लिए आतंक का कारण बना दूँगा और मैं उन को जहाँ-जहाँ बिखेरूँगा, वहाँ-वहाँ कलंक, उपहास, निन्दा और अभिशाप का पात्र बना दूँगा।
10) जब तक मैं उस देश में, जिसे मैंने उन्हें तथा उनके पूर्वजों को दिया, उनका समूल विनाश न कर दूँगा, तब तक मैं उनके विरुद्ध तलवार, भुखमरी और महामारी भेजता रहूँगा।''

अध्याय 25

1) यूदा के राज योशीया के पुत्र यहोयाकीम के शासन के चौथे वर्ष, अर्थात् बाबुल के राजा नबूकदनेजर के पहले वर्ष, यूदा की सारी प्रजा के विषय में यिरमियाह को यह वाणी प्राप्त हुई।
2) नबी यिरमियाह ने यूदा के सब लोगों और येरुसालेम के सब निवासियों से यह कहाः
3) यूदा के राजा आमोन के पुत्र योशीया के शासनकाल के तेरहवें वर्ष से ले कर आज तक, अर्थात् तेईस वर्षों तक मुझे प्रभु की वाणी प्राप्त होती रही और में उसे बराबर तुम लागों को सुनाता आ रहा हूँ, किन्तु तुमने एक न सुनी।
4) प्रभु निरन्तर तुम्हारे पास अपने सेवकों, नबियों को भेजता रहा, किन्तु तुमने नहीं सुना और ध्यान नहीं दिया।
5) वे तुम से कहते रहेः ''तुम में प्रत्येक व्यक्ति कुमार्ग और कुकर्म छोड़ दे, तभी तुम इस देश में सदा के लिए रह पाओगे, जिसे प्रभु ने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को प्रदान किया।
6) अन्य देवताओं के अनुयायी बन कर उनकी सेवा और पूजा मत करो। अपनी बनायी हुई मूर्तियों द्वारा मुझे मत चिढ़ाओ और मैं तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं करूँगा।''
7) प्रभु कहता है, ''तुमने मेरी एक न सुनी, बल्कि तुमने अपने आचरण से मेरा अपमान किया। इस से तुमने अपनी हानि की।''
8) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ''तुमने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया,
9) इसलिए मैं उत्तर के सभी राष्ट्रों को और अपने सेवक बाबुल के राजा नबूकदनेजर को बुला भेजता हूँ।'' यह प्रभु की वाणी है। ''मैं उन्हें इस देश के विरुद्ध, इसके निवासियों के विरुद्ध और आसपास रहने वाले लोगों के विरुद्ध भेजता हूँ। मैं इनका विनाश कर दूँगा। मैं इन्हें सदा के लिए आतंक का कारण और उपहास एवं कलंक का पात्र बना दूँगा।
10) उल्लास और आनन्द, वर-वधू के गीत, चक्की की आवाज और दीपक का प्रकाश मैं इनके यहाँ यह सब बन्द कर दूँगा।
11) सारा देश खँडहर और उजाड़ हो जायेगा और इन सब लोगों को सत्तर वर्षों तक बाबुल के राजा की सेवा करनी पड़ेगी।
12) जब सत्तर वर्ष पूरे हो जायेंगे, तो मैं बाबुल के राजा और राष्ट्र को, खल्दैयियों के देश को उनके अपराधों का दण्ड दूँगा और उस देश को सदा के लिए उजाड़ बना दूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
13) ''मैं उनके विषय में कही हुई अपनी सारी बातें घटित होने दूँगा- वह सब कुछ जो इस पुस्तक में लिखा हुआ है और वे भविष्यवाणियाँ, जिन्हें यिरमियाह ने उन सभी राष्ट्रों के विरुद्ध घोषित किया।
14) वे स्वयं कई राजाओं और शक्तिशाली राष्ट्रों के दास बनेंगे। मैं उन से उनके आचरण और उनके अपराधों का बदला चुकाऊँगा।''
15) प्रभु, इस्राएल के ईश्वर ने मुझ से यह कहा, ''मेरे हाथ से यह प्याला लो और जिन राष्ट्रों के पास मैं तुम को भेजता हूँ, उन सब को मेरे कोप की मदिरा पिला दो।
16) जब वे उसे पियेंगे, तो लडखड़ा उठेंगे और उस तलवार के कारण पागल-जैसे हो जायेंगे, जिसे मैं उनके पास भेज रहा हूँ।''
17) मैंने प्रभु के हाथ से वह प्याला ले लिया और उन सब राष्ट्रों को पिलाया, जिनके पास प्रभु ने मुझे भेजा था-
18) येरुसालेम, उसके राजाओं और पदाधिकारियों को और यूदा के नगरों को, जिससे मैं उन्हें खँडहर और आतंक, उपहास एवं अभिशाप का पात्र बना दूँ, जैसी आज उनकी स्थिति है;
19) फिर मिस्र के राजा फ़िराउन, उसके दरबारियों, पदाधिकारियों, उसकी सारी प्रजा,
20) और वहाँ के सब विदेशियों को; ऊस देश के सब राजाओं को; अशकलोन, गाजा और एक्रोन-फ़िलिस्तिया के इन देशों के राजाओं को; अशदोद के बचे हुए लोगों को;
21) एदोम, मोआब और अम्मोन;
22) तीरुस, सीदोन और समुद्र पार के क्षेत्रों के बचे हुए राजाओं को;
23) फिर ददान, तेमा, बूज और उन सबों को, जो अपनी कनपटियों के केश काटते हैं;
24) अरब के सब राजाओं, रेगिस्तान में रहने वाली विभिन्न जातियों के सब राजाओं ;
25) जिम्री के सब राजाओं, एलाम के सब राजाओं और मेदिया के सब राजाओं को;
26) उत्तर के सब निकटवर्ती और दूर के राजाओं को एक के बाद एक कर, पृथ्वी भर के सब राज्यों को और उनके बाद शेशक (बाबुल) के राजा को सब को मदिरा पीनी पड़ेगी।
27) ''तब तुम उन से कहोगे, 'सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का राजा यह कहता हैः पीकर मस्त हो जाओ और वमन करो। मैं तुम्हारे पास ऐसी तलवार भेज रहा हूँ, जिसके कारण तुम फिर नहीं उठ सकोगे।''
28) ''और यदि वे तुम्हारे हाथ से प्याला ले कर पीने से इनकार करेंगे, तो उन से कहोगे, 'सर्वशक्तिमान प्रभु कहता है कि तुम्हें उसे पीना पड़ेगा ;
29) क्योंकि जब मैं इस नगर को दण्ड देना प्रारम्भ करूँगा, जो मेरे नाम से पुकारा जाता है, तो तुुम दण्ड से कैसे बच जाओगे? नहीं, तुम दण्ड से नहीं बचोगे; क्योंकि मैं पृथ्वी के सब निवासियों के विरुद्ध तलवार भेज रहा हूँ। यह सर्वशक्तिमान् प्रभु की वाणी है।'
30) ''तुम उनके विरुद्ध ये भविष्यवाणियाँ सुनाओगेः प्रभु अपने ऊँचे स्थान से गरजता है। वह अपने पवित्र निवास से बोलता है। वह अपने नगर के विरुद्ध गरजता है। वह अंगूर रौंदने वालों की तरह पृथ्वी के सब निवासियों को ललकारता है।
31) यह गर्जन पृथ्वी के सीमान्तों तक पहुँचता है। प्रभु राष्ट्रों पर अभियोग लगाता और सब मनुष्यों का न्याय करता है। वह अपराधियों को तलवार के घाट उतारता है।'' यह प्रभु की वाणी है।
32) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता है : ''सभी जातियों पर विपत्ति आ पड़ती है। पृथ्वी के सीमान्तों से एक भयंकर आँधी उठती है।''
33) उस दिन प्रभु के मारे हुए लोग पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक पड़े रहेंगे और उन पर कोई विलाप नहीं करेगा। कोई उन्हें उठा कर उनका दफ़न नहीं करेगा। वे खाद की तरह भूमि पर पड़े रहेंगे।
34) चरवाहो! रोओ और विलाप करो। झुण्डों के स्वामियो! धूल में लोटो; क्योंकि तुम्हारे वध का दिन आ पहुँचा है। तुम तितर-बितर कर दिये जाओगे और मिट्टी के बहुमूल्य पात्रों की तरह टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाओगे।
35) चरवाहों को कहीं शरणस्थान नहीं मिलेगा, झुण्ड के स्वामियों को कहीं आश्रय नहीं मिलेगा।
36) चरवाहों का विलाप और झुण्ड के स्वामियों का रुदन सुनो; क्योंकि प्रभु उनके चरागाह का विनाश कर रहा है।
37) प्रभु के क्रोध के कारण समृद्ध भेड़शालाएँ मौन हो गयी हैं।
38) वह सिंह की तरह अपनी माँद से निकलता है। विनाशक की तलवार और प्रभु की क्रोधाग्नि के कारण उनका देश उजड़ रहा है।

अध्याय 26

1) योशीया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के शासनकाल के प्रारम्भ में यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
2) ''प्रभु यह कहता है- प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में खड़ा हो कर यूदा के सब नगरों के निवासियों को सम्बोधित करो, जो वहाँ आराधना करने आते हैं। जो कुछ मैं तुम्हें बताऊँगा, यह सब उन्हें सुनाओगे- एक शब्द भी नहीं छोड़ोगे।
3) हो सकता है कि वे सुनें और अपना कुमार्ग छोड़ कर मेरे पास लौट आयें। तब मैं भी अपना मन बदल कर उनके पापों के कारण उन पर विपत्ति भेजने का अपना विचार छोड़ दूँगा।
4) इसलिए उन से कहो : प्रभु यह कहता है -यदि तुम लोग मेरी बात नहीं सुनोगे और उस संहिता का पालन नहीं करोगे, जिसे मैंने तुम को दिया है;
5) यदि तुम मेरे सेवकों की उन नबियों की बात नहीं सुनोगे, जिन्हें मैं व्यर्थ ही तुम्हारे पास भेजता रहा,
6) तब मैं इस मन्दिर के साथ वही करूँगा, जो मैंने शिलो के साथ किया और मैं इस नगर को पृथ्वी के राष्ट्रों की दृष्टि में अभिशाप की वस्तु बना दूँगा।''
7) याजकों, नबियों और सभी लोगों ने प्रभु के मन्दिर में यिरमियाह का यह भाषण सुना।
8) जब यिरमियाह प्रभु के आदेश के अनुसार जनता को यह सब सुना चुका था, तो याजक, नबी और सब लोग यह कहते हुए उस पर टूट पड़े : ''तुम को मरना ही होगा।
9) तुमने क्यों प्रभु के नाम पर भविष्यवाणी की है कि यह मन्दिर शिलो के सदृश और यह नगर एक निर्जन खँडहर हो जायेगा?'' सब लोगों ने प्रभु के मन्दिर में यिरमियाह को घेर लिया।
10) यूदा के शासकों ने जब यह सब सुना, तो वे राजभवन से प्रभु के मन्दिर आये और प्रभ्ुा के मन्दिर के नये द्वार के सामने बैठ गये।
11) याजकों और नबियों ने शासकों और समस्त जनता से कहा, ''यह व्यक्ति प्राणदण्ड के योग्य है। इसने इस नगर के विरुद्ध भविष्यवाणी की है, जैसा कि आपने अपने कानों से सुना है।''
12) किन्तु यिरमियाह ने शासकों और समस्त जनता से कहा, ''तुम लोगों ने इस मन्दिर और इस नगर के विरुद्ध जो भविष्यवाणी सुनी है, मैंने उसे प्रभु के आदेश से घोषित किया है।
13) इसलिए अपना आचरण सुधारो। अपने प्रभु-ईश्वर की बात सुनो, जिससे उसने जो विपत्ति भेजने की धमकी दी है, वह उसका विचार छोड़ दे।
14) मैं तो तुम्हारे वश में हूँ- जो उचित और न्यायसंगत समझते हो, वही मेरे साथ करो।
15) किन्तु यह अच्छी तरह समझ लो कि यदि तुम मेरा वध करोगे, तो तुम अपने पर, इस नगर और इसके निवासियों पर निर्दोष रक्त बहाने का अपराध लगाओगे; क्योंकि प्रभु ने ही तुम्हें यह सब सुनाने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।''
16) इस पर शासकों और समस्त जनता ने याजकों और नबियां से कहा, ''यह व्यक्ति प्राणदण्ड के योग्य नहीं है। यह हमारे प्रभु ईश्वर के नाम पर हम से बोला है।''
17) देश के कई नेता भी उठ खड़े हुए और वहाँ एकत्रित जनसमुदाय से यह कहने लगे,
18) ''जब यूदा के राज हिजकीया के समय मोरेशेत-निवासी नबी मीका ने यूदा के सब लोगों से यह कहा थाः विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है- सियोन एक जुता हुआ खेत बन जायेगा, येरुसालेम खँडहरों का ढेर और मन्दिर का पर्वत एक जंगल,
19) तो क्या यूदा के राजा हिजकीया और यूदावासियों में से किसी ने उसका वध किया था? इसके विपरीत, क्या वे प्रभु से नहीं डरने लगे थे, और उन्होंने प्रभु से दया की भीख नहीं माँगी थी, जिससे प्रभु ने वह विपत्ति भेजने का विचार बदल दिया, जो वह उन पर ढाहने वाला था? क्या हम अपने विनाश के लिए वही कुकर्म नहीं करने जा रहे हैं?''
20) प्रभु के नाम पर भविष्यवाणी करने वाला एक दूसरा व्यक्ति शमाया का पुत्र ऊरीया था, जो किर्यत-यआरीम का निवासी था। उसने इस नगर और इस देश के विरुद्ध ठीक यिरमियाह-जैसी भविष्यवाणी की थी।
21) जब राजा यहोयाकीम, उसके सभी अधिकारियों और सामन्तों ने उसकी बातों के विषय में सुना, तो राजा ने उसका वध करना चाहा। ऊरीया ने यह सुना, तो वह भयभीत हो कर मिस्र भाग गया।
22) राजा यहोयाकीम ने अकबोर के पुत्र एल्नातान और उसके साथ कई लोगों को मिस्र भेजा।
23) वे ऊरीया को मिस्र से वापस ले आये और उसे राजा यहोयाकीम के पास ले गये। उसने उसे तलवार के घाट उतरवा दिया और उसके शव का दफ़न साधारण लोगों के कब्रिस्तान में कराया।
24) शाफ़ान के पुत्र अहीकाम ने यिरमियाह की रक्षा की और उसे लोगों के हाथ नहीं पड़ने दिया, जो उसका वध करना चाहते थे।

अध्याय 27

1) यूदा के राजा योशीया के पुत्र सिदकीया के शासनकाल के प्रारम्भ में यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी।
2) प्रभु ने मुझ से ऐसा कहाः ''रस्सियाँ और जूआ तैयार करो और उन्हें अपनी गर्दन पर रखो।
3) फिर एदोम, मोआब, अम्मोन, तीरुसा और सीदोन के राजाओं को उन दूतों द्वारा, जो यूदा के राजा सिदकीया के यहाँ येरुसालेम आये हैं, यह कहला भेजो।
4) उन्हें अपने स्वामियों के लिए यह सन्देश दोः 'विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- तुम लोग अपने-अपने स्वामी से यह कहोगेः
5) मैंने अपने महान् सामर्थ्य और बाहुबल से पृथ्वी की रचना की, पृथ्वी की रचना की, पृथ्वी पर के मनुष्यों और पशुओं को बनाया और मैं जिसे चाहता हूँ, उसके हाथों इसे दे देता हूँ।
6) अब मैं ये सभी देश अपने सेवक, बाबुल के राजा नबूकदनेजर को दे रहा हूँ और मैं जंगल के पशुओं को भी उसके अधीन कर रहा हूँ।
7) जब तक उसके देश का समय पुरा नहीं हो जाता, तब तक सभी राष्ट्र उसके, उसके पुत्र और उसके पौत्र के अधीन बने रहेंगे। तब शक्तिशाली राष्ट्र और महान् राजा उसे अपना दास बनायेंगे।
8) यदि कोई राष्ट्र या राज्य बाबुल के राजा नबूकदनेजर के अधीन नहीं रहेगा या बाबुल के राजा के जूए के नीचे गर्दन नहीं झुकायेगा, तो मैं उस राष्ट्र को तलवार, अकाल और महामारी द्वारा तब तक दण्ड देता रहूँगा, जब तक मैं उसे पूर्णतः उसके अधीन नहीं कर देता।' यह प्रभु की वाणी है।
9) 'इसलिए तुम अपने नबियों, भविष्यवक्ताओं, स्वप्नदर्शियों, ज्योतिषियों और जादूगरों की बात पर ध्यान मत दो, जब वे तुम से यह कहते हैं, ''तुम बाबुल के राजा के अधीन नहीं होगे''।
10) वे तुम से झूठी भविष्यवाणी करते हैं, जिसका फल यह होगा कि तुम अपने देश से भगा दिये जाओगे, मैं तुम्हें निर्वासित कर दँूगा और तुम्हारा विनाश हो जायेगा।
11) लेकिन जो राष्ट्र बाबुल के राजा के जूए के नीचे गर्दन झुकायेगा और उसकी अधीनता मान लेगा, मैं उसे अपनी भूमि पर शान्तिपूर्वक बने रहने, खेती-बारी करने और निवास करने दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।''
12) मैंने यही बात यूदा के राजा सिदकीया से भी कहीः ''बाबुल के राजा के जुए के नीचे अपनी गर्दन झुकाओ; उसकी और उसकी प्रजा की अधीनता स्वीकार करो, जिससे तुम जीवित रह सको।
13) तुम और तुम्हारी प्रजा तलवार, अकाल और महामारी से किस लिए मरना चाहते हैं, जैसा कि बाबुल के राजा की अधीनता नहीं स्वीकार करने वाले राष्ट्र के विषय में प्रभु ने कहा है?
14) उन नबियों की बात पर ध्यान मत दो, जो तुम से यह कहते हैं, 'तुम बाबुल के राजा के अधीन नहीं होगे'; क्योंकि वे तुम से झूठी भविष्यवाणी करते हैं।
15) प्रभु यह कहता हैः 'मैंने उन्हें नहीं भेजा है, बल्कि वे मेने नाम पर झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं। इसका फल यह होगा कि मैं तुम्हें अपने देश से भगा दूँगा और तुम सबों का- तुम्हारा और तुम्हारे सामने भविष्यवाणी करने वाले नबियों का- विनाश हो जायेगा।''
16) तब मैंने याजकों और सब लोगों से कहाः ''प्रभु यह कहता हैः तुम अपने उन नबियों की बातों पर ध्यान मत दो, जो तुम से यह भविष्यवाणी करते हैं, 'प्रभु के मन्दिर का सामान शीघ्र ही बाबुल से वापस लाया जायेगा'; क्योंकि वे तुम से झूठी भविष्यवाणी करते हैं।
17) उनकी बात पर ध्यान मत दो। बाबुल के राजा की अधीनता स्वीकार करो, जिससे तुम जीवित रह सको। इस नगर को खँडहरों का ढेर क्यों बनाना चाहते हो?
18) यदि वे सचमुच नबी हैं और उन में प्रभु की वाणी निवास करती है, तो वे विश्वमण्डल के प्रभु से निवेदन करें कि जो सामान प्रभु के मन्दिर, यूदा के राजभवन और येरुसालेम में रह गया है, वह बाबुल न लाया जाये।
19) कारण यह कि उन स्तम्भों, हौज, आधारों और इस नगर के शेष सामान के विषय में विश्वमण्डल के प्रभु का कथन यही है,
20) जो सामान बाबुल का राजा नबूकदनेजर उस समय अपने साथ नहीं ले गया था, जब वह यूदा के राजा यहोयाकीम के पुत्र यकोन्याह और यूदा तथा येरुसालेम के सब सामन्तों को येरुसालेम से बाबुल ले गया था।
21) उस सामान के व्षिय में, जो प्रभु के मन्दिर, यूदा के राजभवन और येरुसालेम में बचा रह गया है, विश्वमण्डल के प्रभु, इस्राएल के ईश्वर की वाणी यह हैः
22) 'अब वह बाबुल ले जाया जायेगा और वहाँ उस दिन तक पड़ा रहेगा, जिस दिन तक मैं फिर उस पर अपनी दयादृष्टि नहीं करता'। यह प्रभु की वाणी है। 'इसके बाद मैं उसे वापस ला कर फिर यहीं रखूँगा।''

अध्याय 28

1) यूदा के राजा योशीया के शासनकाल के प्रारम्भ में, चौथे वर्ष के पाँचवें महीने में अज्जूर के पुत्र हनन्या- गिबओन में रहने वाले नबी- ने प्रभु के मन्दिर में याजकों तथा समस्त जनता के सामने यिरमियाह से यह कहा,
2) ''विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं बाबुल के राजा का जूआ तोडूँगा।
3) मैं ठीक दो वर्ष बाद प्रभु के मन्दिर के वे सब सामान वापस ले आऊँगा जिन्हें बाबुल का राजा नबूकदनेजर यहाँ से बाबुल ले गया था।
4) यहोयाकीम के पुत्र, यूदा के राजा यकोन्याह को और यूदा के सब निर्वासितों को भी मैं बाबुल से यहाँ वापस ले आऊँगा- यह प्रभु की वाणी है- क्योंकि मैं बाबुल के राजा का जूआ तोड़ूँगा।''
5) किन्तु नबी यिरमियाह ने सब याजकों समस्त जनता के सामने नबी हनन्या को सम्बोधित करते हुए कहा,
6) ''एवमस्तु! प्रभु ऐसा ही करें! प्रभु तुम्हारी भविष्यवाणी पूरी करे और प्रभु के मन्दिर के सब सामान और सब निर्वासितों को भी वापस ले आये।
7) किन्तु जो बात मैं तुम को और सारी जनता को बताने जा रहा हूँ, उसे ध्यान से सुनो।
8) तुम्हारे और मेरे पहले जो नबी थे, वे प्राचीन काल से, शक्तिशाली देशों और बड़े राज्यों के लिए युद्ध, विपत्ति और महामारी की भविष्यवाणी करते आ रहे हैं।
9) जो नबी शान्ति की भविष्यवाणी करता है, वह तभी प्रभु का भेजा हुआ नबी माना जा सकता है, जब उसकी भविष्यवाणी पूरी हो जाये।''
10) इस पर नबी हनन्या ने नबी यिरमियाह के कन्धे पर से जूआ उतारा और उसे तोड़ डाला।
11) तब हनन्या समस्त जनता के सामने यह बोला, ''प्रभु यह कहता है : मैं इसी तरह बाबुल के राजा नबूकदनेजर का जूआ तोड़ूँगा। मैं ठीक दो वर्ष बाद उसे सब राष्ट्रों के कन्धे पर से उतार कर तोड़ दूँगा।'' इसके बाद नबी यिरमियाह अपनी राह चला गया।
12) जब हनन्या ने नबी यिरमियाह के कन्धे पर से जूआ उतार कर तोड़ दिया था, तो उस के थोड़े समय बाद प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई दी,
13) ''जाओ और हनन्या से कहो- यह प्रभु की वाणी है। तुमने लकड़ी का जूआ तोड़ा, इसके बदले लोहे का जूआ आयेगा;
14) क्योंकि विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं सब राष्ट्रों के कन्धे पर लोहे का जूआ रखने जा रहा हूँ। वे सब बाबुल के राजा नबूकदनेजर के अधीन होंगे। मैंने बनैले पशुओं को भी उसके अधीन कर दिया है।''
15) नबी यिरमियाह ने नबी हनन्या से कहा, ''हनन्या! ध्यान से मेरी बात सुनो! प्रभु ने तुम को नहीं भेजा है। तुमने इस प्रजा को झूठी आशा दिलायी है।
16) इसलिए प्रभु यह कहता हैः मैं तुम को इस पृथ्वी पर से मिटा दूँगा। तुम इसी वर्ष मर जाओगे; क्योंकि तुमने प्रभु के विरुद्ध विद्रोह का प्रचार किया है।''
17) उसी वर्ष के सातवें महीने नबी हनन्या का देहान्त हो गया।

अध्याय 29

1) यह लेख उस पत्र का है, जिसे नबी यिरमियाह ने येरुसालेम से निर्वासितों के नेताओं तथा याजकों, नबियों और उन सभी लोगों के पास भेजा था, जिन्हें नबूकदनेजर बन्दी बना कर येरुसालेम से बाबुल ले गया था।
2) यह बात उस समय की है, जब राजा यकोन्याह, राजमाता, कंचुकी, यूदा और येरुसालेम के पदाधिकारी, शिल्पी और लोहार येरुसालेम छोड़ कर चले गये थे।
3) यह पत्र शाफ़ान के पुत्र एलआसा और हिलकीया के पुत्र गमर्या द्वारा तब भेजा गया था, जब यूदा के राजा सिदकीया ने उन्हें बाबुल के राजा नबूकदनेजर के पास भेजा था। उस में लिखा थाः
4) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर उन सभी बन्दियों से यह कहता हैः जिन्हें मैंने येरुसालेम से निर्वासित किया है :
5) ''तुम लोग घर बनाओ और बस जाओ; बगीचे लगाओ और उनके फल खाओ।
6) विवाह कर पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न करो। अपने पुत्रों के लिए बहुएँ लाओ और अपनी पुत्रियों के लिए वर खोजो, जिससे उनके भी सन्तान हो। वहाँ तुम्हारी संख्या बढ़ती रहे, घटे नहीं।
7) उस नगर की भलाई के लिए कार्य करो, जहाँ मैंने तुम्हें निर्वासित किया है और उसके लिए प्रभु से प्रार्थना करो ; क्योंकि उसकी भलाई में ही तुम्हारी भलाई है।
8) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर कहता हैः अपने भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के धोखे में मत आओ और उनके स्वप्नों पर ध्यान मत दो,
9) क्योंकि मेरे नाम पर तुम से झूठी भविष्यवाणी करते हैं। उन्हें मैंने नहीं भेजा है।''
10) प्रभु यह कहता हैः ''जब बाबुल के ये सत्तर वर्ष बीत जायेंगे, तो मैं तुम्हारे यहाँ आऊँगा। मैं तुम्हारे साथ की गयी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा और तुम्हें इसी स्थान पर वापस ले आऊँगा ;
11) कयोंकि मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ''- यह प्रभु की वाणी है- ''तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाए।
12) जब तुम मुझे पुकारोगे और मुझ से प्रार्थना करोगे, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँगा। जब तुम मुझे ढूँढ़ोगे, तो मुझे पा जाओगे।
13) यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूँढ़ोगे,
14) तो मैं तुम्हे मिल जाऊँगा''- यह प्रभु की वाणी है- ''और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा। मैं तुम्हें उन सब राष्ट्रों और उन सब स्थानों से, जहाँ मैंने तुम्हें निर्वासित कर दिया है, यहाँ फिर एकत्रित करूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है। ''मैं तुम्हें फिर उसी जगह ले आऊँगा, जहाँ से मैंने तुम्हें निर्वासित कर दिया था।''
15) तुम कहते हो, ''प्रभु ने हमें बाबुल में भी नबी दिये हैं।''
16) दाऊद के सिंहासन पर विराजमान राजा तथा इस नगर के सभी निवासियो, तुम्हारे उन सभी भाई-बन्धुओं के विषय में, जो निर्वासन में तुम्हारे साथ नहीं गये, प्रभु यह कहता हैः
17) ''विश्वमण्डल का प्रभु कहता है- मैं उन पर तलवार, अकाल और महामारी भेजूँगा और मैं उन्हें सड़े अंजीरों-जैसा बना दूँगा, जो इतने खराब हैं कि वे खाये नहीं जा सकते।
18) मैं उन पर तलवार, अकाल और महामारी भेजूँगा और उन्हें पृथ्वी के सब राज्यों के लिए आतंक का कारण बना दूँगा और उन सब राष्ट्रों में, जहाँ मैंने उन्हें निर्वासित किया है, अभिशाप, भय, उपहास और अपशब्द का पात्र बना दूँगा।
19) प्रभु कहता है- उन्होंने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया, हालाँकि मैं उनके पास बारम्बार अपने सेवक, नबियों को भेजता रहा, किन्तु तुमने उन पर कान नहीं दिया।'' प्रभु यह कहता हैः
20) किन्तु समस्त निर्वासितगण! जिन्हें मैंने येरुसालेम से बाबुल भेजा है, अब तुम लोग प्रभु की बात पर ध्यान दो।
21) कोलाया के पुत्र अहाब और मासेया के पुत्र सिदकीया के विषय में, जो मेरे नाम पर तुम से झूठी भविष्यवाणी करते हैं, विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ''मैं उन्हें बाबुल के राजा नबूकदनेजर के हवाले कर दूँगा और वह तुम्हारी आँखों के सामने उनका वध करायेगा।
22) यूदा से बाबुल में निर्वासित लोग उनका नाम ले कर यह अभिशाप दिया करेंगे, 'प्रभु तुम्हें सिदकीया और अहाब-जैसा कर दे, जिन्हें बाबुल के राजा ने आग में भुनवाया था'।
23) इसका कारण यह है कि उन्होंने इस्राएल में घृणित कर्म किये हैं। उन्होंने अपने पड़ोसियों की पत्नियों के साथ व्यभिचार किया है और मेरे आदेश के बिना मेरे नाम पर झूठ कहा है। मैं यह जानता हूँ; मैं इसका साक्षी हूँ।'' यह प्रभु की वाणी है।
24) तुम नेहेलाम-निवासी शमाया से कहोगेः
25) ''विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- तुमने अपने नाम से येरुसालेम के सब निवासियों, सभी याजकों और मासेया के पुत्र याजक सफ़न्या को यह पत्र लिखा है
26) कि प्रभु ने तुम को याजक यहोयादा के स्थान में याजक बनाया है, इसलिए प्रभु के मन्दिर के प्रभारी के रूप में तुम्हारा कर्तव्य प्रत्येक पागल भविष्यवक्ता को कठबेड़ी और गलबेड़ी पहनाना है।
27) लेकिन तब तुमने अनातोत-निवासी यिरमियाह को क्यों नहीं फटकारा जो तुम्हारे सामने नबी होने का दम भरता है?
28) कारण, उसने ही हमें बाबुल में यह कहला भेजा है, 'तुम्हारे निर्वासन की अवधि लम्बी होगी। वहाँ घर बनाओ और बस जाओ; बगीचे लगाओ और उनके फल खाओ।''
29) यह पत्र याजक सफ़न्या ने नबी यिरमियाह के सामने पढ़ा।
30) इसके बाद यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
31) ''सभी निर्वासित लोगों को यह कहला भेजो, 'नेहेलाम निवासी शमाया के विषय में प्रभु यह कहता हैः यद्यपि मैंने शमाया को नहीं भेजा था, फिर भी उसने तुम्हारे सामने भविष्यवाणी की है और तुम्हें झूठा विश्वास दिलाया है, इसलिए
32) प्रभु यह कहता है-मैं नेहेलाम-निवासी शमाया और उसके वंशजों को दण्ड दूँगा। उसके वंशजों में एक भी व्यक्ति इन लोगों में जीवित नहीं रह जायेगा, जो उन शुभ कार्यों को देख सके, जिन्हें मैं अपनी प्रजा के लिए करूँगा, क्योंकि उसने मेरे प्रति विद्रोह का प्रचार किया है। यह प्रभु की वाणी है।''

अध्याय 30

1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
2) इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता है - 'मैंने जो कुछ तुम से कहा, वह सब एक पुस्तक में लिख लो ;
3) क्योकि वह समय आ रहा है, जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल और यूदा का भाग्य बदल दूँगा'- प्रभु यह कहता है- 'और उसे उस देश में वापस ले आऊँगा, जिसे मैंने उसके पुरखों को दिया था और वह उसे अपने अधिकार में कर लेगी।''
4) इस्राएल और यूदा के विषय में प्रभु की यह वाणी है :
5) ''प्रभु यह कहता है- हमने भगदड़ और आतंक का कोलाहल सुना है, शान्ति का नहीं।
6) पूछ कर देखो : क्या किसी पुरुष को बच्चा हो सकता है? तो क्यों मैं हर पुरुष की प्रसवपीड़ित स्त्री की तरह अपनी कमर पर हाथ रखे देख रहा हूँ? क्यों सब के चेहरे पीले पड़ गये हैं?
7) काश! वह दिन इतना महान् है, जितना और कोई दिन नहीं! यह याकूब के लिए संकट का समय है, लेकिन वह इस से उबार दिया जायेगा।
8) ''विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है, उस दिन मैं उनके कन्धे पर का जूआ तोड़ दूँगा और उनके बन्धन काट दूँगा और उसके बाद विदेशी उन्हें फिर अपना दास नहीं बना सकेंगे,
9) बल्कि वे अपने प्रभु-ईश्वर की और राजा दाऊद की सेवा करेंगे, जिसे मैं उनके लिए नियुक्त करूँगा।
10) ''प्रभु यह कहता है- मेरे सेवक याकूब! मत डरो; इस्राएल! मत भयभीत हो; क्योंकि मैं तुम्हें दूरवर्ती देशों और तुम्हारे वंशजों को उनकी दासता के देश से सुरक्षित लौटाऊँगा। याकूब लौट आयेगा और उसे सुख-शान्ति प्राप्त होगी। उसे कोई नहीं डरा सकेगा;
11) क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारी रक्षा करूँगा - प्रभु यह कहता है। मैं उन राष्ट्रों का विनाश करूँगा जिन में मैंने तुम्हें बिखेरा है, किन्तु मैं तुम्हारा विनाश नहीं होने दूँगा। मैं तुम्हें उचित सीमा तक दण्ड दूँगा और मैं किसी भी तरह तुम्हें दण्ड दिये बिना नहीं रहूँगा।
12) ''प्रभु यह कहता है- तुम्हारी बीमारी कभी अच्छी नहीं होगी। तुम्हारे घावों पर कोई इलाज नहीं है।
13) तुम्हारा कोई पक्षधर नहीं है। तुम्हारे घाव नहीं भरेंगे।
14) तुम्हारे सभी प्रेमियों ने तुम को भुला दिया; वे तुम्हारी कोई परवाह नहीं करते, क्योंकि तुम्हारे असंख्य अपराधों और पापों के कारण मैंने तुम को शत्रु की तरह मारा और घोर दण्ड दिया है।
15) तुम अपने घावों पर क्यों रोती हो? तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नहीं। तुम्हारे असंख्य अपराधों और पापों के कारण ही मैंने तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया है।
16) लेकिन जिन्होंने तुम्हें अपना आहार बनाया था, वे स्वयं आहार बन जायेंगे। तुम्हारे सभी शत्रु बन्दी बनाये जायेंगे। जिन्होंने तुम्हें लूटा है, वे स्वयं लूट जायेंगे। जिन्होंने तुम को हड़पा है, मैं उन को हड़प जाऊँगा;
17) क्योंकि मैं तुम्हें चंगा करूँगा और तुम्हारे घाव भर दूँगा - यह प्रभु की वाणी है- क्योकि उन्होंने तुम्हें 'परित्यक्ता' कहा हैः 'सियोन, जिसकी कोई परवाह नहीं करता!
18) ''प्रभु यह कहता है- मैं याकूब के तम्बुओं को फिर खड़ा करूँगा। मैं उसके घरों पर दया करूँगा। खँडहरों पर नगर का पुननिर्माण होगा और अपने पुराने स्थान पर गढ़ का पुनरुद्धार होगा।
19) उन में से स्तुतिगान और आनन्दोत्सव की ध्वनि सुनाई देगी। मैं उनकी संख्या बढ़ाऊँगा, वह फिर कभी नहीं घटेगी। मैं उन्हें सम्मान प्रदान करूँगा, उनका फिर कभी तिरस्कार नहीं किया जायेगा।
20) उनकी सन्तति पहले-जैसी होगी और उनका समुदाय मेरे सामने बना रहेगा। मैं उनके सब अत्याचारियों को दण्ड दूँगा।
21) उन में से एक उनका शासक बनेगा और उनके बीच में से उनका राजा उत्पन्न होगा। मैं स्वयं उसे अपने पास बुलाऊँगा और वह मेरे पास आयेगा; क्योंकि कोई भी अपने आप मेरे पास आने का साहस नहीं करता। यह प्रभु की वाणी है।
22) तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।''
23) प्रभु की यह आँधी देखो! उसका क्रोध बवण्डर की तरह बह चला है। वह दुष्टों के सिर पर टूट पड़ेगा।
24) प्रभु का उग्र कोप तब तक नहीं दूर होगा, जब तक वह अपने मन के संकल्प कार्यान्वित और पूर्ण नहीं कर लेता। आने वाले दिनों में तुम यह बात समझोगे।

अध्याय 31

1) प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी : ''मैं उस समय इस्राएल के सब वंशों का ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।''
2) प्रभु यह कहता है- ''जो लोग तलवार से बच गये, उन्हें मरुभूमि में कृपा प्राप्त हुई। इस्राएल विश्राम की खोज में आगे बढ़ रहा था।
3) प्रभु उसे दूर से दिखाई पड़ा। ''मैं अनन्त काल से तुम को प्यार करता आ रहा हूँ, इसलिए मेरी कृपादृष्टि निरन्तर तुम पर बनी रही।
4) कुमारी इस्राएल! मैं तुम्हें फिर बनाऊँगा और तुम्हारा नवनिर्माण हो जायेगा। तुम फिर हाथ में डफली ले कर गाने-बजाने वालों के साथ नाचोगी।
5) तुम फिर समारिया की पहाड़ियों पर दाखबारियाँ लगाओगी और जो उन्हें लगायेंगे, वे उनके फल खायेंगे।
6) वह दिन आ रहा है, जब एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेश के पहरेदार पुकार कर यह कहेंगे- 'आओ! हम सियोन चलें, हम अपने प्रभु-ईश्वर के पास जायें।''
7) क्योंकि प्रभु यह कहता है- ''याकूब के लिए आनन्द के गीत गाओ। जो राष्ट्रों में श्रेष्ठ है, उसका जयकार करो; उसका स्तुतिगान सुनाओ और पुकार कर कहो : 'प्रभु ने अपनी प्रजा का, इस्राएल के बचे हुए लोगों का उद्धार किया है'।
8) देखो, में उन्हें उत्तरी देश से वापस ले आऊँगा, पृथ्वी के सीमान्तों से उन्हें एकत्र कर लूँगा। उन में अन्धे, लँगड़े, गर्भवती और प्रसूता स्त्रियाँ हैं। वे बड़ी संख्या में लौट रहे हैं।
9) वे रोते हुए चले गये थे, मैं उन्हें सांत्वना दे कर वापस ले आऊँगा। मैं उन्हें जलधाराओं के पास ले चलूँगा, मैं उन्हें समतल मार्ग से ले चलूँगा, जिससे उन्हें ठोकर न लगे ; क्योंकि मैं इस्राएल के लिए पिता-जैसा हूँ और एफ्रईम मेरा पहलौठा है।
10) ''राष्ट्रों! ईश्वर का सन्देश सुनो और दूर के द्वीपों में उसकी घोषणा करो। जिसने इस्राएल को चारों दिशाओं में बिखेरा, वह उसे एकत्र करता और उसकी रखवाली करता है, जिस तरह चरवाहा अपने झुण्ड की रक्षा करता है;
11) क्योंकि वह याकूब का उद्धार करता है और उसके हाथ से उसे छुड़ाता है, जो उस से बलवान् है।
12) वे आ रहे हैं और सियोन पर्वत पर आनन्द के गीत गा रहे हैं। वे प्रभु के उदार दानों के पास आ रहे हैं- गेहूँ, नयी अंगूरी और तेल, मवेशी और भेड़ बकरियाँ। सींची हुई वाटिका के सदृश उन में नवजीवन का संचार हो रहा है। वे फिर कभी नहीं कुम्हलायेंगे।
13) युवतियाँ उल्लास से नाचती हैं, नवयुवक और वृद्ध आनन्द मनाते हैं; मैं उनका शोक हर्ष में बदल कर उन्हें सान्त्वना देता हूँ, मैं दुःखियों में उत्साह भरता हूँ।
14) मैं याजकों को उत्तम व्यंजन खिलाता हूँ, मेरी प्रजा मेरे उदार दानों से तृप्त है।'' यह प्रभु की वाणी है।
15) प्रभ्ुा यह कहता है- ''रामा में रुदन और दारुण विलाप सुनाई दिया, राखेल अपने बच्चों के लिए रो रही है और अपने आँसू किसी को पोंछने नहीं देती, क्योंकि वे अब नहीं रहे।''
16) प्रभु यह कहता है- ''अपना विलाप बन्द करो और अपनी आँखों के आँसू पोंछो, क्योंकि तुम्हें अपने कष्ट के लिए पुरस्कार मिलेगा- यह प्रभु की वाणी है- और वे अपने शत्रुओं के देश से लौटेंगे।''
17) प्रभु यह कहता है- ''तुम्हारा भविष्य उज्जवल है और तुम्हारी सन्तानें अपने देश लौटेंगी।
18) मैंने एफ्रईसम को यह कह कर रोते हुए सुना है : 'तूने मुझे दण्ड दिया है और अनसाधे बछड़े की तरह मैं अनुशासित हो गया हूँ। मुझे वापस ले आ, जिससे मैं पहले-जैसा हो जाऊँ; क्योंकि तू ही मेरा प्रभु-ईश्वर है।
19) क्योंकि तुझ से विमुख होने पर मैंने पश्चात्ताप किया, समझ आ जाने पर मैंने अपनी छाती पीटी। मैं लज्जित था, मैं पानी-पानी हो गया था; क्योंकि मैं अपनी युवावस्था के कुकमोर्ं से कलंकित था।'
20) क्या एफ्रईम मेरा प्रिय पुत्र है? क्या वह मेरा लाड़ला बेटा है? क्योंकि जब कभी मैं उसे फटकारता हूँ, तो मुझे उसका ध्यान भी रहता है; इसलिए मेरा हृदय उसके लिए व्याकुल रहता है। मैं उस पर अवश्य दया करूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
21) ''अपने लिए मार्गसूचक संकेत बनाओ, पथ बतलाने वाले स्तम्भ खड़े करो। उस राजपथ को ठीक-ठीक पहचान लो, जिस से हो कर तुम गयी थी। लौट आओ, कुमारी इस्राएल! अपने इन नगरों में लौट आओ।
22) तुम कब तक भटकती रहोगी, विद्रोही पुत्री? क्योंकि प्रभु ने धरती पर एक नयी बात पैदा की हैः स्त्री पुरुष को लुभाती है।''
23) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ''जब मैं उनका भाग्य बदल दूँगा, तो यूदा और उसके नगरों में एक बार फिर वे ऐसा कहेंगे- धार्मिकता के निवास पवित्र पर्वत! प्रभु तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे'।
24) यूदा और उसके नगर, किसान और अपने रेवड़ों के साथ घूमने वाले लोग वहाँ एक साथ रहने लगेंगे ;
25) क्योंकि मैं थके हुए लोगों को हराकर दूँगा और प्रत्येक दुर्बल मनुष्य को शक्ति दूँगा।''
26) इस पर मैं जग कर चारों ओर देखने लगा और अपनी नींद मुझे मीठी लगी।
27) प्रभु यह कहता हैः ''वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल के घराने और यूदा के घराने में मनुष्यों और पशुओं के बच्चों की संख्या बढ़ाऊँगा।
28) ऐसा होगा कि जिस प्रकार मैं उन्हें तोड़ने और उखाड़ने, गिराने, नष्ट करने और विपत्ति में डालने के विचार से उन पर ध्यान देता रहा, उसी प्रकार मैं उन्हें बनाने और रोपने पर ध्यान दूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।
29) ''उन दिनों वे फिर कभी ऐसा नहीं कहेंगेः 'बाप-दादों ने खट्टे अंगूर खाये हैं और बच्चों के दाँत खुरदरे हो गये हैं'।
30) बल्कि हर आदमी अपने पाप के कारण मरेगा- जो खट्टे अंगूर खाता है, उसके दाँत खट्टे होंगे।''
31) प्रभु यह कहता हैः ''वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल के घराने और यूदा के घराने के साथ एक नया विधान स्थापित करूँगा।
32) यह उस विधान की तरह नहीं होगा, जिसे मैंने उस दिन उनके पूर्वजों के साथ स्थापित किया था, जब मैंने उन्हें मिस्र से निकालने के लिए हाथ से पकड़ लिया था। उस विधान को उन्होंने भंग कर दिया, यद्यपि मैं उनका स्वामी था।'' यह प्रभु की वाणी है।
33) ''वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए एक नया विधान निर्धारित करूँगा।' यह प्रभु की वाणी है। ''मैं अपना नियम उनके अभ्यन्तर में रख दूँगा, मैं उसे उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।
34) इसकी जरूरत नहीं रहेगी कि वे एक दूसरे को शिक्षा दें और अपने भाइयों से कहें- 'प्रभु का ज्ञान प्राप्त कीजिए' ; क्योंकि छोटे और बड़े, सब-के-सब मुझे जानेंगे।'' यह प्रभु की वाणी है। ''मैं उनके अपराध क्षमा कर दूँगा, मैं उनके पापों की याद नहीं रखूँगा।''
35) वह प्रभु यह कहता है, जिसने दिन में प्रकाश के लिए सूर्य और रात में ज्योति के लिए चन्द्रमा और तारे दिये हैं; जो समुद्र को झकझोरता है, तो उसकी लहरें गरजने लगती हैं; जिसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है।
36) प्रभु कहता है- ''यदि मरे सामने से इस निर्धारित क्रम का लोप हो जाये, तभी मेरे सामने से इस्राएल के वंशजों का राष्ट्र बना रहना भी लुप्त हो जायेगा।''
37) प्रभु कहता है- ''यदि ऊपर का आकाश नापा जा सकता हो या पृथ्वी के नीचे की नींवों की गहराई जानी जा सकती हो, तभी इस्राएल के वंशजों का मेरे द्वारा परित्याग उनके कर्मों के कारण सम्भव होगा।''
38) प्रभु कहता हैः ''वे दिन आ रहे हैं, जब हननएल की मीनार से ले कर कोणद्वार तक प्रभु का यह नगर फिर से बनाया जायेगा।
39) इसकी माप की रस्सी सीधे गारेब पहाड़ी तक पहुँचेगी और फिर गोआ की ओर जायेगी।
40) मृतकों और राख की समस्त घाटी और केद्रोन के नाले से ले कर पूरब में अश्व-द्वार तक की समस्त भूमि प्रभु को अर्पित होगी। वह फिर कभी उजाड़ी या नष्ट नहीं की जायेगी।''

अध्याय 32

1) यूदा के राजा सिदकीया के दसवें वर्ष, अर्थात् नबूकदनेजर के अठारहवें वर्ष यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी।
2) उस समय बाबुल के राजा की सेना येरुसालेम पर घेरा डाले पड़ी थी और नबी यिरमियाह यूदा के राजभवन के रक्षादल के प्रांगण में बन्दी था;
3) क्योंकि यूदा के राजा सिदकीया ने यह कह कर उसे बन्दी बनाया था, ''तुम यह भविष्यवाणी क्यों करते होः प्रभु कहता है- मैं यह नगर बाबुल के राजा के हाथ देता हूँ और वह इसे अधिकार में कर लेगा।
4) यूदा का राजा सिदकीया खल्दैयियों के हाथ से नहीं बच सकेगा, बल्कि वह निश्चय ही बाबुल के राजा के अधीन हो जायेगा। वह उसके सामने लाया जोयेगा, उस से बातें करेगा और उसे अपनी आँखों से देखेगा
5) और वह सिदकीया को बाबुल ले जायेगा और वह तब तक वहाँ रहेगा, जब तक मैं उसके पास नहीं आता। यह प्रभु की वाणी है। तुम खल्दैयियों से कितना ही युद्ध क्यों न करो, तुम्हें कोई सफलता नहीं मिलेगी।''
6) यिरमियाह ने कहा, ''मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी हैः
7) तुम्हारे चाचा शल्लूम का पुत्र हनमएल तुम्हारे पास आ कर यह कहेगा- 'आप मेरी अनातोत वाली भूमि खरीद लें, क्योंकि उसे ख़रीदने का अधिकार आप को ही है'।
8) तब, जैसा कि प्रभु ने कहा था, मेरा चचेरा भाई हनमएल रक्षादल के प्रांगण में मेरे पास आया और मुझ से यह बोला- 'बेनयामीन देश की अनातोत वाली भूमि खरीद लें, क्योंकि उसके स्वामित्व और ख़रीदारी का अधिकार आप को ही है। उसे अपने लिए ख़रीद लें।'' तब मैं यह जान गया कि वह वाणी प्रभु की ही थी
9) और मैंने अपने चचेरे भाई हनमएल से अनातोत वाली भूमि मोल ले ली और उसे सत्रह शेकेल चाँदी तौल कर दी।
10) मैने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये, उस पर मुहर लगायी, उसे साक्षी लोगों द्वारा प्रमाणित कराया और तराजू पर तौल कर दाम दे दिया।
11) मैंने मुहरबन्द पट्टा-जिस पर स्वामित्य और शर्तों का उल्लेख था- और खुला पट्टा लिये और
12) अपने चचेरे भाई हनमएल, जिन व्यक्तियों ने पट्टे पर हस्ताक्षर किये थे, उन साक्षियों, तथा जो रक्षा-दल के प्रांगण में बैठे थे, उन सभी यहूदियों के सामने वे पट्टे महसेया के पुत्र नेरीया के बेटे बारूक को दे दिये।
13) मैंने उनके सामने बारूक को ये निर्देश दिये,
14) ''विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ये दस्तावेज लो। मुहरबन्द और खुला, दोनों पट्टे लो और इन्हें मिट्टी के एक पात्र में रख दो, जिससे ये लम्बे समय तक सुरक्षित रहें;
15) क्योंकि विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः इस देश में घरों, खेतों और दाखबारियों की खरीद-बिक्री फिर होगी।''
16) नेरीया के पुत्र बारूक को पट्टा देने के बाद मैंने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना कीः
17) ''प्रभु-ईश्वर! तूने ही अपने महान् सामर्थ्य और बाहुबल से स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की है। तेरे लिए कुछ भी कठिन नहीं है।
18) तू असंख्य लोगों पर कृपा करता है, किन्तु पूर्वजों के पापों का बदला उनकी सन्तति से लेता है। महान् और शक्तिशाली ईश्वर! जिसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है,
19) जिसकी योजनाएँ महान् और कार्य शक्तिशाली हैं; जिसकी आँखें मनुष्यों की सभी गतिविधियों को देखती रहती हैं और जो प्रत्येक मनुष्य को उसके आचरण और कर्मों के फल के अनुसार प्रतिदान देता है;
20) जिसने मिस्र देश में चिन्ह और चमत्कार दिखाये हैं और आज तक इस्राएल तथा समस्त मानवजाति में दिखाता रहा है और अपनी कीर्ति स्थापित की है, जो आज भी विद्यमान है !
21) तू अपनी प्रजा इस्राएल को चिन्हों और चमत्कारों के साथ, सुदृढ़ हाथ और बाहुबल से, भारी आतंक प्रदर्शित कर मिस्र देश से निकाल लाया था।
22) तूने उन्हें यह देश दिया, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं और जिसे देने का वचन उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक दिया था और
23) उन्होंने यहाँ आ कर इस पर अधिकार किया। किन्तु उन्होंने तेरी बात नहीं मानी और न तेरे विधान का अनुसरण किया। उन्होंने तेरे आदेशों का कुछ भी पालन नहीं किया। इसलिए तूने उन पर यह विपत्ति ढाही है।
24) देख, नगर पर विजय पाने के लिए उसकी मोरचाबन्दी की जा रही है। तलवार, अकाल और महामारी के कारण यह नगर खल्दैयियों के हाथ चला जा रहा है, जो इस पर आक्रमण कर रहे हैं। तूने जो कहा था, वही हो रहा है और तू उसे देख रहा है।
25) यह नगर खल्दैयियों के हाथ चला जा रहा है, तब भी प्रभु-ईश्वर! तूने मुझे यह कहा है, ÷दाम दे कर यह भूमि खरीद लो और साक्षियों से हस्ताक्षर करा लो'।''
26) इस पर यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
27) ''मैं, प्रभु, सब शरीरधारियों का ईश्वर हूँ। क्या मेरे लिए कुछ असम्भव है?
28) इसलिए प्रभु यह कहता है-'मैं यह नगर खल्दैयियों और बाबुल के राजा नबूकदनेजर के हाथ दे रहा हूँ, जो इस पर अधिकार करेगा।
29) वे खल्दैयी लोग, जो इस नगर के विरुद्ध लड़ रहे हैं, यहाँ आ कर इस नगर में आग लगायेंगे और इसे उन घरों के साथ भस्म कर देंगे, जिनकी छतों पर बाल-देवता को धूप चढ़ायी गयी थी और अन्य देवताओं को अर्घ अर्पित किया गया था, जिससे मेरा क्रोध भड़क उठा था।
30) इस्राएल और यूदा की प्रजा ने अपनी जवानी के दिनों से ही वही किया है, जो मेरी दृष्टि में बुरा है।' प्रभु यह कहता है-''इस्राएल की प्रजा ने अपने कर्मों द्वारा मेरा क्रोध भड़काने के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया है।
31) अपने निर्माण के दिन से ले कर आज तक यह नगर मेरा क्रोध और कोप ही जगाता रहा है, जिसके कारण मैं इसे अपनी आँखों से दूर कर दूँगा।
32) इस्राएल और यूदा की प्रजा, उसके राजाओं और राज्याधिकारियों, उसके याजकों और नबियों, यूदा के लागों और येरुसालेम के निवासियों ने अपने पापों से मुझे क्रुद्ध कर दिया है।
33) उन्होंने मेरे सामने अपना मुुँह नहीं, बल्कि अपनी पीठ कर दी है और यद्यपि मैंने उन्हें बारम्बार समझाया, किन्तु उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शिक्षा ग्रहण नहीं की।
34) उन्होंने मेरे नाम से प्रसिद्ध निवास में अपनी घृणित मूर्तियों की स्थापना कर उसे अपवित्र कर दिया है।
35) उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों की बलि मोलेक को देने के लिए बेन-हिन्नोम की घाटी में बाल-देवता के पहाड़ी पूजास्थान बनाये, यद्यपि मैंने उन को इसका आदेश नहीं दिया था और न ही मेरे मन में यह विचार आ सकता था कि वे ऐसा घृणित कर्म करें, जिससे यूदा पाप की ओर प्रेरित हो।'
36) ''इसलिए प्रभु, इस्राएल का ईश्वर इस नगर के विषय में यह कहता है, जिसके सम्बन्ध में तुम यह कहते हो, ÷यह तलवार, अकाल और महामारी के कारण बाबुल के राजा के हाथ जा रहा है'।
37) मैं उन्हें उन सब देशों से एकत्रित करूँगा, जहाँ अपने क्रोध, आक्रोश और महाकोप में मैंने उन्हें भगा दिया था। मैं उन्हें पुनः इसी स्थान पर वापस ले आऊँगा और शान्तिपूर्वक रहने दूँगा।
38) वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका ईश्वर होऊँगा।
39) मैं उन को एक ही मन और एक ही मार्ग प्रदान करूँगा, जिससे वे अपने और अपने बाद आने वाली सन्तान के कल्याण के लिए सदा मुझ से डरते रहें।
40) मैं उनके साथ यह चिरस्थायी विधान निर्धारित करूँगा कि मैं उनकी भलाई करने से कभी विमुख नहीं होँऊँगा। मैं उनके हृदय में अपने प्रति ऐसा भय उत्पन्न करूँगा कि वे मुझ से फिर कभी विमुख नहीं होंगे।
41) मुझे उनकी भलाई करने में प्रसन्नता होगी और मैं सच में सम्पूर्ण हृदय और मन से उन्हें इस देश में सुदृढ़ करूँगा।
42) ''इसलिए प्रभु, यह कहता हैः जिस तरह मैंने इन लोगों पर यह बड़ी विपत्ति ढाही है, उसी तरह मैं इन्हें वह समृद्धि प्रदान करूँगा, जिसका मैं इन्हें वचन दे रहा हूँ।
43) इस देश में खेत फिर ख़रीदे जायेंगे, जिसके विषय में तुम यह कह रहे हो, ÷यह उजाड़, जनहीन और पशुरहित हो गया है। यह खल्दैयिायों के हाथ चला गया है।'
44) बेनयामीन के देश में, येरुसालेम के पड़ोस की जगहों और यूदा के नगरों में, पहाड़ी प्रदेश के नगरों, निम्न भूमी के नगरों और नेगेब के नगरों में मूल्य दे कर खेत ख़रीदे जायेंगे, पट्टों पर हस्ताक्षर होंगे, मुहर लगायी जायेगी और उन्हें साक्षियों द्वारा प्रमाणित कराया जायेगा।''

अध्याय 33

1) यिरमियाह रक्षादल के प्रांगण में उस समय बन्दी ही था, जब उसे दूसरी बार प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी,
2) ''यह उस प्रभु की वाणी है, जिसने पृथ्वी बनायी, उसका स्वरूप गढ़ा और उसे स्थिर किया। उसका नाम प्रभु है।
3) यदि तुम मुझे पुकारोगे, तो मैं तुम्हें उत्तर दूँगा और तुम्हें वैसी महान् तथा रहस्यमय बातें बताऊँगा, जिन्हें तुम नहीं जानते।
4) इस नगर के घरों और यूदा के राजाओं के महलों के विषय में, जिन्हें मोरचाबन्दी और तलवार का मुक़ाबला करने के लिए गिरा दिया था, प्रभु इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैं:
5) खल्दैयी युद्ध करने और उन लोगों की लाशों से इसे पाटने के लिए इस में प्रवेश कर रहे हैं, जिन लोगों को मैं अपने क्रोध और प्रकोप में दण्ड दूँगा; क्योंकि इस नगर की दुष्टता के कारण मैंने इस से अपना मुँह फेर लिया है।
6) लेकिन अब में इसके स्वस्थ और चंगा कर दूँगा; मैं लोगों को चंगा करूँगा और उन्हें प्रचुर शांति और सुरक्षा प्रदान करूँगा।
7) मैं यूदा और इस्राएल का भाग्य पलट दूँगा और उन्हें पहले-जैसा बना दूँगा।
8) मैं उनके वे सभी अपराध धो डालूँगा, जो उन्होंने मेर प्रति पाप कर किये हैं और मैं उनके वे सभी कुकर्म क्षमा कर दूँगा, जो उनसे मेरे प्र्रति पाप और विरोध के कारण हुए हैं।
9) तब यह नगर पृथ्वी के सब राष्ट्रों की दृष्टि में, जो इस पर किये गये मेरे उपकारों के विषय में सुनेंगे, मेरी प्रसन्नता, सम्मान और गौरव का पात्र बन जायेगा। मैं इसे जो आनन्द और शांति दूँगा, उसके कारण वे भयभीत और आतंकित हो जायेंगे।
10) ''प्रभु कहता हैः इस स्थान पर, जिसके विषय में तुम यह कहते हो, 'यह मनुष्य और पशु से रहित वीरान है', यूदा के नगरों में और येरुसालेम की सड़कों पर, जो मनुष्यों, निवासियों और पशुओं के बिना निर्जन हैं,
11) फिर प्रसन्नता और आनन्द की ध्वनियाँ, वर और वधू के स्वर तथा प्रभु के मन्दिर में आभार-बलि अर्पित करते समय लोगों के गीत के ये शब्द सुनाई देंगेः 'विश्वमंडल के प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि प्रभु भला है। उसकी कृपा अनन्त काल तक बनी रहती हैं।' इसका कारण यह है कि मैं इस देश की अवस्था पहले-जैसी कर दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।
12) ''विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः इस स्थान में, जो अभी मनुष्य और पशु से रहित वीरान है और इसके सभी नगरों में चरागाह होंगे, जहाँ चरवाहे अपने रेवड को विश्राम करने के लिए ठहरायेंगे।
13) पहाड़ी प्रदेश के नगरों, निम्नभूमि के नगरों और नेगेब के नगरों, बेनयामीन प्रदेश, येरुसालेम के आसपास और यूदा के नगरों में भेडें फिर अपनी गिनती करने वाले के सामने से गुजरेंगी। यह प्रभु की वाणी है।
14) ''प्रभु यह कहता हैः देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल तथा यूदा के घराने के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा।
15) उन दिनों और उस समय, मैं दाऊद के लिए एक धर्मी वंशज उत्पन्न करूँगा, जो देश पर न्यायपूर्वक शासन करेगा।
16) उन दिनों यूदा का उद्धार होगा और येरुसालेम सुरक्षित रहेगा। यरूसालेम का यह नाम रखा जायेगा- 'प्रभु ही हमारा न्याय है';
17) क्योंकि प्रभु यह कहता हैं: दाऊद के लिए इस्राएल के घराने के सिंहासन पर बैठने वाले उत्तराधिकारी का कभी अभाव नहीं होगा।
18) और न लेवीवंशी याजकों को मेरे सामने होमबालियाँ, अन्न-बलियाँ तथा अन्य बालियाँ अर्पित करने वाले वंशज की कभी कमी होगी।''
19) यिरमिहाय को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
20) ''प्रभु यह कहता है- यदि तुम दिन या रात के सम्बन्ध में मेरा विधान भंग कर पाते, जिससे कि निश्चित समय पर दिन और रात नहीं हो;
21) तो अपने सेवक दाऊद के साथ निर्धारित मेरा विधान भी भंग होगा, जिससे उसके सिंहासन पर राज करने वाला उसका कोई वंशज नहीं होगा और लेवीवंशी याजकों के साथ, जो मेरी सेवा करते हैं, निर्धारित मेरा विधान भी भंग हो जायेगा।
22) जैसे आकाश के तारों की गिनती नहीं की जा सकती और समुद्र के रेतकणों की गणना सम्भव नहीं, वैसे ही मैं अपने सेवक दाऊद के वंशजों और लेवियों की, जो मेरी सेवा करते हैं, संख्या बढ़ा दूँगा।''
23) यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
24) ''क्या तुमने ध्यान नहीं दिया कि ये लोग क्या कह रहे हैं, 'प्रभु ने उन दो कुलों को, जिन्हें उसने अपनाया था, त्याग दिया है'? इस प्रकार वे मेरी प्रजा को तुुच्छ समझते हैं और वह उनकी दृष्टि में राष्ट्र नहीं रह गयी है।
25) प्रभु यह कहता है- यदि मैंने दिन और रात के विषय में अपना विधान तथा स्वर्ग और पृथ्वी के सम्बंध में अपने विधिनिषेध निर्धारित नहीं किये हैं,
26) तो मैं, याकूब और अपने सेवक दाऊद के वंशजों को त्याग दूँगा तथा इब्राहीम, इसहाक और याकूब की सन्तान पर शासन करने के लिए उसके किसी वंशज की नियुक्त नहीं करूँगा! इसलिए कि मैं उनका भाग्य पटल दूँगा और उन पर कृपा करूँगा।''

अध्याय 34

1) जब बाबुल का राजा नबूकदनेजर और उसकी समस्त सेना, उसके अधीनस्थ पृथ्वी के सभी राज्य तथा सभी लोग येरुसालेम और उसके सभी नगरों से युद्ध कर रहे थे, तो यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
2) ''प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- जा कर यूदा के राजा सिदकीया से कहोः प्रभु यह कहता हैं, 'देखो, मैं यह नगर बाबुल के राजा के हाथ दे रहा हूँ और वह इसे जला डालेगा।
3) तुम उसके हाथ से नहीं बच सकोगे, बल्कि तुम बन्दी बना लिये जाओगे और उसके अधीन हो जाओगे। तुम बाबुल के राजा को अपनी आँखों से देखोगे और वह तुम से आमने-सामने बात करेगा और तुम बाबुल जाओगे।
4) किन्तु यूदा के राजा सिदकीय! प्रभु की यह वाणी सुनो। तुम्हारे विषय में प्रभु यह कहता हैः तुम तलवार से नहीं मरोगे।
5) तुम्हारी मृत्यु शान्तिपूर्वक होगी। जिस प्रकार तुम्हारे पूर्वजों, तुम्हारे पहले के राजाओं के लिए धूप जलायी गयी थी, उसी प्रकार लोग तुम्हारे लिए भी धूप जलायेंगे और ''हाय! हाय! स्वामी!'' कहते हुए विलाप करेंगे। प्रभु कहता है- यह मेरी वाणी है'।''
6) नबी यिरमियाह ने येरुसालेम में यूदा के राजा सिकदीका को ये सब बातें कह सुनायी।
7) उस समय बाबुल के राजा की सेना येरुसालेम के विरुद्ध और यूदा के उन सभी नगरों- लाकीश और अजेका- के विरुद्ध लड़ रही थी, जो अब तक उसका सामना कर रहे थे; क्योंकि यूदा के नगरों में यही ऐसे किलाबंद नगर थे, जो बचे हुए थे।
8) यिरमियाह को उस समय प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी, जब राजा सिदकीया ने येरुसालेम के सब लोगों से उनके द्वारा स्वतन्त्रता की यह घोषणा कराने का समझौता करा लिया था कि
9) प्रत्येक व्यक्ति अपने इब्रानी दास-दासी को इस तरह मुक्त कर दे कि कोई अपने यहूदी भाई को दास बना कर न रखे।
10) सभी राज्याधिकारियों और अन्य सभी लोगों ने, जिन्होंने उसके साथ यह समझौता किया था कि प्रत्येक व्यक्ति अपेन दास-दासी को मुुक्त कर देगा, इसका पालन किया। उन्होंने इसका पालन कर दासों को मुक्त कर दिया।
11) लेकिन बाद में उनका विचार बदल गया और वे अपने मुक्त किये हुए दास-दासियों को वापस ले आये और उन्होंने उन को दास बनने के लिए बाध्य किया।
12) तब यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
13) ''प्रभु इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- जब मैं तुम्हारे पुरखों को मिस्र देश से, दासता के घर से बाहर ले आया था, तो मैंने यह कहते हुए उनके साथ अपना विधान निर्धारित किया था,
14) तुम ऐसे हर इब्रानी भाई को सातवें वर्ष मुक्त कर दोगे, जिसने अपने को तुम्हारे यहाँ बेचा है और छः वर्षों तक तुम्हारी सेवा की है। तुम उसे अपनी सेवा से मुक्त कर दोगे।' लेकिन तुम्हारे पुरखों ने न तो मेरी बात मानी और न उस पर ध्यान ही दिया।
15) कुछ समय पहले तुमने पश्चात्ताप किया और तुम में से प्रत्येक ने अपने पड़ोसी की स्वतंन्त्रता की घोषणा की, जो मेरी दृष्टि मे उचित है; तुमने मेरे निवास में जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है, मेरे साथ विधान स्थापित किया।
16) किन्तु इसके बाद तुमने अपना विचार बदल दिया और उस समय मेरा नाम कलंकित किया, जब तुम अपने दास-दासियों को उनकी इच्छा के अनुसार स्वतंत्र कर देने के बाद भी वापस ले आये और उन्हें दास बनने के लिए बाध्य किया।
17) इसलिए प्रभु यह कहता है- तुम में से प्रत्येक ने अपने भाई और पडोसी की स्वतंत्रता की घोषणा करने पर भी मेरा आदेश नहीं माना। इसलिए मैं तुम को तलवार, महामारी और अकाल के लिए स्वतन्त्र छोड दूँगा। मैं तुम को पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के सामने घृणा का पात्र बना दूँगा।
18) जिन लोगों ने मेरा विधान भंग किया और विधान की उन बातों का पालन नहीं किया, जिनके पालन की उन्होंने मेरे सामने प्रतिज्ञा की थी, मैं उन्हें उस बछडे-जैसा बना दूँगा, जिसके उन्होंने दो टुकडे किये थे और उनके बीच से हो कर निकल गये थे-
19) यूदा और येरुसालेम के राज्याधिकारी, कंचुकी, याजक और देश के सभी लोग, जो बछड़े के टुकडों के बीच से ही कर निकल गये थे।
20) मैं उन को शत्रुओं के हाथ, उन लोगों के हाथ कर दूँगा जो उनके प्राणों के गाहक हैं। उनके शव आकाश के पक्षियों और धरती के पशुओं के आहार बन जायेंगे।
21) मैं यूदा के राजा सिदकीया और उसके राज्याधिकारियों को शत्रुओं के हाथ, उन लोगों के हाथ कर दूँगा, जो उनके प्राणों के गाहक हैं; बाबुल के राजा की सेना के हाथ, जो अभी तुम्हारे यहाँ से गयी है।
22) प्रभु कहता है- मैं उसे आदेश दे कर इस नगर में फिर बुलाउँगा, वह इस पर आक्रमण करेगी, इसे अपने अधिकार में ले लेगी और आग लगा कर इसे जला डालेगी। मैं यूदा के नगरों को उजाड़ और जनहीन बना दूँगा।''

अध्याय 35

1) योशिया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के दिनों में यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
2) 'रेकाबी घराने के लोगों के यहाँ जा कर उन से बात करो, उन्हें प्रभु के मन्दिर के किसी कक्ष में ले जाओ और उन्हें पीने के लिए अंगूरी दो।''
3) इसलिए मैंने हबस्सिन्या के पुत्र यिरमियाह के बेटे याजन्या को और उसके भाइयों तथा सब पुत्रों और रेकाबी घराने के सब लोगों को बुलाया।
4) मैं उन्हें प्रभु के मंदिर के ईश्वरभक्त यिगदल्या के बेटे हानान के पुत्रों के कक्ष में ले गया। वह शल्लूम के पुत्र द्वारपाल मासेया के कमरे के ऊपर, राज्याधिकारियों के कमरे के पास था।
5) तब मैंने रेकाबियों के सामने अंगूरी से भरी हुई सुराहियाँ और प्याले रख दिये और उन से कहा, ''अंगूरी पीजिए''।
6) लेकिन वे यह बोले, ''हम अंगूरी नहीं पियेंगे, क्योंकि रेकाब के पुत्र हमारे पूर्वज योनादाब ने हमें यह आदेश दिया थाः 'तुम या तुम्हारे पुत्र कभी अंगूरी नहीं पियेंगे।
7) तुम घर नहीं बनाओगे; बीज नहीं बोओगे। तुम न तो अंगूर के बाग़ लगाओगे और न रखोगे, बल्कि तुम सब दिन तम्बुओं में रहोगे, जिससे तुम इस देश में, जहाँ तुम प्रवासी हो, बहुत दिन रह सको।'
8) हमने रेकाब के पुत्र और अपने पूर्वज योनादाब के सभी आदेशों का पालन किया है और अपने पूरे जीवन में न तो हमने, हमारी पत्नियों, हमारे पुत्रों या पुत्रियों ने कभी अंगूरी पी है
9) और न रहने के लिए घर बनाया है। हमारे पास दाखबारी, खेत या बीज नहीं है,
10) बल्कि हम तम्बुओं में रहते आये हैं और हमारे पूर्वज योनादाब ने हमें जो-जो आदेश दिये हैं, हमने उनका पालन किया है।
11) किन्तु जब बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने इस देश पर आक्रमण किया, तो हम यह बाले, 'आइए, हम खल्दैयियों और अरामियों की सेना से बच निकलने के लिए येरुसालेम चलें। इस प्रकार हम येरुसालेम में रह रहे हैं।''
12) यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
13) ''विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : तुम यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों से जा कर यह कहो- प्रभु कहता है, 'क्या तुम मेरी शिक्षा ग्रहण नहीं करोगे और मेरी बातों पर ध्यान नहीं दोगे?
14) रेकाब के पुत्र योनादाब ने अपने वंशजों को अंगूरी न पीने का जो आदेश दिया था, उसका पालन किया गया है और वे आज तक अंगूरी नहीं पीते; क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वज के आदेश का पालन किया है। मैंने तुम्हें बार-बार समझाया है, लेकिन तुमने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया है।
15) मैंने तुम्हारे पास अपने सेवक, नबियों को यह कहने के लिए निरन्तर भेजा है, ''अब तुम में से प्रत्येक व्यक्ति अपना दुराचरण त्याग दे, अपना आचरण सुधारे और अन्य देवताओं का अनुगमन और पूजा करना छोड़ दे। तभी तुम इस देश में रह सकोगे, जिसे मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को प्रदान किया है।'' लेकिन तुमने मेरी आज्ञा नही मानी और मेरी एक न सुनी।
16) रेकाब के पुत्र योनादाब के वंशजों ने अपने पूर्वज के आदेश का पालन किया है, लेकिन इन लोगों ने मेरी अवज्ञा की है।'
17) ''इसलिए प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर, इस्राएल का ईश्वर यह कहता : 'देखों मैं यूदा और येरुसालेम के निवासियों पर वे सभी विपत्तियाँ ढाहने वाला हूँ, जिनकी चेतावनी मैं उन्हें दे चुका हूँ; क्योंकि मैंने उन से कहा है और उन्होंने नहीं सुना है, मैंने उन्हें पुकारा है और उन्होंने उत्तर नहीं दिया है'।''
18) तब रेकाबी घराने के लोगों से यिरमियाह यह बोलाः 'विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है, 'तुमने अपने पूर्वज योनादाब के आदेश का पालन किया है, उसके सभी उपदेश माने हैं और उसकी सभी आज्ञाओं के अनुसार आचरण किया है;
19) इसलिए विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- 'रेकाब के पुत्र योनादाब को मेरी सेवा करने वाले वंशज का कभी अभाव नहीं होगा'।''

अध्याय 36

1) योशिया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के चौथे वर्ष यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
2) ''एक खर्रा लो और उस पर वे सब बातें लिखो, जो मैंने इस्राएल और यूदा और अन्य सभी राष्ट्रों के विषय में उस दिन से, जब मैं तुम से बोला था- योशीया के समय से ले कर आज तक- कही हैं।
3) हो सकता है कि यूदा का घराना उन सब विपत्तियों के विषय में सुने, जो मैं उस पर ढाहना चाहता हूँ और हर व्यक्ति अपने दुराचरण का त्याग करे और तब में उनके दुष्कर्म और पाप क्षमा कर दूँ।''
4) इस पर यिरमियाह ने नेरीया के पुत्र बारूक को बुलाया और बारूक ने यिरमियाह से सुन कर प्रभु की वे सब बातें खर्रे पर लिखी, जो उसने यिरमियाह से कही थीं।
5) तब यिरमियाह ने बारूक को आदेश देते हुए यह कहा, ''मैं प्रभु के मन्दिर में नहीं जा सकता।
6) इसलिए तुम वहाँ जाओगे और उपसास दिवस पर प्रभु के मन्दिर में सब लोगों को खर्रे पर अंकित प्र्रभु की वे सब बातें पढ़ कर सुनाओगे, जो तुमने मुझ से सुन कर लिखी हैं। तुम यूदा के उन सब लोगों को भी इन्हें पढ़ कर सुनाओगे, जो उसके नगरों से आये हैं।
7) तब सम्भव है कि उनकी प्रार्थना प्रभु तक पहुँचे और हर व्यक्ति अपने दुराचरण का त्याग करे; क्योंकि इन लोगों के विरुद्ध घोषित प्रभु का क्रोध और आक्रोश बहुत भयानक है।''
8) नेरीया के पुत्र बारूक ने प्रभु के मन्दिर में खर्रे पर अंकित प्रभु की बातों को पढ़ कर ठीक वैसे ही सुनाया, जैसे यिरमियाह ने कहा था।
9) योशीया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के पाँचवें वर्ष के नौवें महीने में येरुसालेम के सब लोगों और यूदा के नगरों से येरुसालेम आने वाले सब लोगों के लिए प्रभु के सामने उपवास रखने की घोषणा की गयी।
10) इसके बाद बारूक ने प्रभु के मन्दिर में, सचिव शाफ़ान के पुत्र गमर्या के कक्ष में, जो प्रभु के मन्दिर के नव-द्वार के प्रवेश-स्थान पर अवस्थित ऊपरी प्रांगण में था, सब लोगों के सामने खर्रे पर अंकित यिरमियाह की बातें पढ़ कर सुनायीं।
11) जब शाफ़ान के बेटे गमर्या के पुत्र मीकाया ने खर्रे पर अंकित प्रभु की सब बातें सुनीं,
12) तो वह राजमहल के सचिव-कक्ष गया। वहाँ सभी राज्याधिकारी बैठे थे- सचिव एलीशामा, शमाया का पुत्र दलाया, अकबोर का पुत्र एल्नातान, शाफ़ान का पुत्र गमर्या, हनन्या का पुत्र सिदकीया तथा अन्य सभी अधिकारी।
13) वहाँ मीकाया ने उन्हें वे सब बातें कहीं, जो उसने बारूक को लोगों को सुनाते समय सुनी थीं।
14) इस पर सभी राज्याधिकारियों ने कूशी के बैटे शेलेम्या के पुत्र नतन्या के पुत्र यहूदी को यह कहने के लिए बारूक के पास भेजा, ''तुमने जो खर्रा लोगों को पढ़कर सुनाया, उसे साथ ले कर आओ।'' इसलिए नेरीया का पुत्र बारूक हाथ में खर्रा ले कर उनके पास आया।
15) वे उस से बोले, ''बैठो और इसे पढ़ कर सुनाओ।'' बारूक ने उसे पढ़ कर उन्हें सुनाया।
16) जब उन्होंने वे सभी बातें सुनीं, तो वे एक दूसरे को भयभीत हो कर देखने लगे और बारूक से यह बोले, ''हमें इन बातों की सूचना राजा को देनी चाहिए।''
17) तब उन्होंने बारूक से यह पूछा, ''यह बताओ, तुमने ये बातें कैसे लिखीं?''
18) बारूक ने उन से कहा, ''उसने ये सभी बातें मुझ से कहीं और मैंने खर्रे पर स्याही से उन्हें लिख लिया।''
19) इस पर राज्याधिकारियों ने बारूक से कहा, ''तुम और यिरमियाह जा कर छिप जाओ, जिससे कोई यह न जान पाये कि तुम कहाँ हो।''
20) सचिव एलीशामा के कमरे में खर्रा रखने के बाद वे राजदरबार पहुँचे और उन्होंने राजा को ये बातें बतायीं।
21) राजा ने यहूदी को खर्रा लाने भेजा और वह इसे सचिव एलीशामा के कमरे से ले आया। यहूदी ने इसे राजा और राजा के पास खड़े सभी राज्याधिकारियों के सामने पढ़ कर सुनाया।
22) वह नौवाँ महीना था। राजा शरद-प्रासाद में बैठा हुआ था तथा उसके सामने अँगीठी में आग जल रही थी।
23) जब यहूदी तीन-चार स्तम्भ पढ़ जाता, तो राजा वह अंश सचिव के चाकू से काट कर अँगीठी में फेंक देता। वह ऐसा तब तक करता रहा, जब तक पूरा खर्रा अँगीठी की आग में नहीं जल गया।
24) राजा और उसके किसी सेवक को, जिन्होंने ये बातें सुनीं, कोई भय नहीं हुआ और न उन्होंने अपने वस्त्र ही फाड़े।
25) यद्यपि एल्नातान्, दलाया और गमर्या ने राजा से खर्रा नहीं जलाने की प्रार्थना की, किन्तु उसने उनकी बात नहीं मानी।
26) राजा ने राजकुमार यरहमएल, अजीएल के पुत्र सराया और अबदएल के पुत्र शेलेम्या को आज्ञा दी कि वे सचिव बारूक और नबी यिरमियाह को गिरफ्तार कर लें, किन्तु प्रभु ने उन्हें छिपा दिया।
27) जब राजा ने वह खर्रा जला दिया, जिस पर बारूक ने यिरमियाह से सुन कर लिखा था, तो यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
28) ''दूसरा खर्रा लो और उस पर पहले खर्रे की, जिसे यूदा के राजा यहोयाकीम ने जला दिया है, सभी बातें लिख दो।
29) तुम यूदा के राजा यहोयाकीम के विरुद्ध यह कहोगे- प्रभु यह कहता है : तुमने यह कह कर खर्रा जलाया, 'तुमने इस पर यह क्यों लिखा कि बाबुल का राजा अवश्य आयेगा, इस देश का विनाश करेगा तथा मनुष्यों और पशुओं का संहार कर देगा?'
30) इसलिए यूदा के राजा यहोयाकीम के विरुद्ध प्रभु यह कहता है, 'दाऊद के सिंहसन पर बैठने के लिए उसका कोई वंशज जीवित नहीं रहेगा। उसका शव दिन में ताप और रात में शीत में पड़ा रहेगा।
31) मैं उस को, उसके वंशजों और उसके सेवकों को उनकी दुष्टता के लिए दण्डित करूँगा। मैं उन पर, येरुसालेम के निवासियों और यूद के लोगों पर वे सभी विपत्तियाँ ढाहूँगा, जिनकी धमकी मैं उन्हें दे चुका हूँ, किन्तु जिन पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया है।''
32) इस पर यिरमियाह ने दूसरा खर्रा लेकर नेरीया के पुत्र लिपिक बारूक को दिया, जिसने यिरमियाह से सुन कर उस खर्रे की वे सभी बातें लिखीं, जिसे यूदा के राजा यहोयाकीम ने आग में जला दिया था, और उन बातों से कई मिलती-जुलती बातें भी उन में जोड़ दी गयी थीं।

अध्याय 37

1) योशीया के पुत्र सिदकीया ने यहोयाकीम के पुत्र कोन्याह के स्थान में राज्य किया। उसे बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने यूदा का राजा बना दिया था।
2) किन्तु न तो उसने, न उसके सेवकों और न देश के लोगों ने प्रभु की उन बातों पर ध्यान दिया, जो नबी यिरमियाह ने कही थीं।
3) राजा सिदकीया ने शेलेम्या के पुत्र यहूकल और मासेया के पुत्र याजक सफ़न्या को नबी यिरमियाह के पास यह कहने भेजा, ''हमारे प्रभु-ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थना कीजिए।''
4) उस समय यिरमियाह लोगों के बीच स्वतन्त्र रूप से आया-जाया करता था; क्योंकि वह अब तक बन्दीगृह में नहीं डाला गया था।
5) फ़िराउन की सेना मिस्र से प्रस्थान कर चुकी थी और जब खल्दैयियों को, जो येरुसालेम पर घेरा डाले हुए थे, यह समाचार मिला, तो वे येरुसालेम से पीछे हट गये।
6) नबी यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
7) ''प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- तुम यूदा के राजा को, जिसने तुम को मुझ से पूछने भेजा था, यह उत्तर दोगे, 'फ़िराउन की सेना, जो तुम्हारी सहायता करने आयी थी, अपने देश मिस्र लौट जायेगी और
8) खल्दैयी फिर आ कर इस नगर से युद्ध करेंगे। वे इसे जीतेंगे और आग लगा कर जला देंगे।'
9) प्रभु कहता हैः तुम लोग यह कह कर धोखे में मत रहो, 'खल्दैयी हमारे यहाँ से सदा के लिए चले जायेंगे', क्योंकि वे नहीं जायेंगे।
10) यदि तुम अपने विरुद्ध लड़ने वाले खल्दैयियों की समस्त सेना को भी पराजित कर दो और उसे में केवल घायल लोग ही बच जायें, तो वे भी अपने तम्बुओं में उठ खड़े होंगे और इस नगर को आग से जला देंगे।''
11) जब फ़िराउन की सेना की समीपता के कारण खल्दैयियों की सेना ने येरुसालेम से घेरा हटा लिया था,
12) तो यिरमियाह बेनयामीन देश जा कर अपने परिवार के लोगों से पैतृक सम्पत्ति में अपना भाग प्राप्त करने के लिए येरुसालेम से चल पड़ा।
13) जब वह बेनयामीन-द्वार पर पहुँचा, तो हनन्या के बेटे एलेम्या के पुत्र यिरईयाय नामक रक्षादल के प्रधान ने यह कहते हुए उसे बन्दी बना लिया, ''तुम खल्दैयियों के साथ देने भाग रहे हो।''
14) यिरमियाह बोला, ''यह बात झूठी है। मैं खल्दैयियों के साथ देने नहीं भाग रहा हूँ।'' लेकिन यिरईयाय ने उसकी एक न सुनी और वह उसे पकड़कर पदाधिकारियों के पास ले गया।
15) पदाधिकारी क्रुद्ध हो गये, उन्होंने उसे पीटा और सचिव योनातान के घर में बन्दी बना दिया; क्योंकि उस घर को बन्दीगृह बना दिया गया था।
16) यों यिरमियाह मेहराबी तलघर में डाल दिया गया और वहाँ बहुत समय तक पड़ा रहा।
17) राजा सिदकीया ने उसे बुला भेजा और अपने महल में उस से गुप्त रूप से यह पूछा, ''क्या प्रभु ने कोई सन्देश दिया है?'' यिरमियाह ने उत्तर दिया, ''हाँ, दिया है'' और कहा, 'आप बाबुल के राजा के हाथ कर दिये जायेंगे।''
18) यिरमियाह ने राजा सिदकीया से यह भी कहा, ''मैंने आपका, आपके सेवकों या आपकी प्रजा का क्या बिगाड़ा है, जो आपने मुझे बन्दीगृह में डाल दिया है?
19) आपके वे नबी कहाँ हैं, जिन्होंने आपके सामने भविष्यवाणी करते हुए कहा था, 'बाबुल का राजा आप पर और इस देश पर आक्रमण नहीं करेगा'?
20) मेरे स्वामी राजा! अब मेरी प्रार्थना सुनिए; मेरा निवेदन स्वीकार कीजिए। मुझे सचिव योनातान के घर वापस मत भेजिए, नहीं तो मेरी मृत्यु हो जायेगी।''
21) इसएिल राजा सिदकीया ने आदेश दिया और यरिमियाह को रक्षादल के प्रांगण में बन्दी बना कर रख दिया और जब तक नगर की रोटियाँ खत्म नहीं हो गयीं, तब तक उसे नानबाई की गली से प्रतिदिन एक छोटी रोटी दी जाती रही। इस प्रकार यिरमियाह रक्षादल के प्रांगण में पड़ा रहा।

अध्याय 38

1) मत्तान के पुत्र शफ़ट्या, पशहूर के पुत्र गदल्या, शलेम्या के पुत्र यूकल और मलकीया के पुत्र पशहूर ने वे सारी बातें सुनी थी, जो यिरमियाह सब लोगों से कहा करता था-
2) ''प्रभु यह कहता हैः जो इस नगर में रहेगा, वह तलवार, अकाल और महामरी से मरेगा; किन्तु जो खल्दैयियों के पास जा कर आत्मसमर्पण कर देगा, वह जीवित रह जायेगा। लूट के माल के रूप में उसके प्राण सुरक्षित रहेंगे और वह जीवित रहेगा।
3) प्रभु यह कहता हैः यह नगर निश्चय ही बाबुल के राजा की सेना के हाथ चला जायेगा और वह इस पर अधिकार कर लेगा।''
4) पदाधिकारियों ने राजा से कहा, ''यिरमियाह को मार डाला जाये। वह येरूासालेम की हार की भविष्यवाणी करता है और इस प्रकार शहर में रहने वाले सौनिकों और सारी जनता की हिम्मत तोड़ता है। वह प्रजा का हित नहीं, बल्कि अहित चाहता है''।
5) राजा सिदकीया ने उत्तर दिया, ''वह आप लोगों के वश में है। राजा आप लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता।''
6) इस पर वे यिरमियाह को ले गये और उन्होंने उस को रक्षादल के प्रांगण में स्थित राजकुमार मलकीया के कुएँ में डाल दिया। उन्होंने यिरमियाह को रस्सी से उतार दिया। कुएँ में पानी नहीं था, उस में केवल कीच था और यिरमियाह कीच में धँस गया।
7) कूशी कंचुकी एबेद-मेलेक ने, जो राजमहल में था, यह सुना कि यिरमियाह को कुएँ में डाल दिया गया है। जिस समय राजा बेनयामीन-द्वार पर बैठा हुआ था,
8) एबेद-मेलेक ने राजमहल से निकल कर राजा से कहा,
9) ''राजा! मेरे स्वामी! उन लोगों ने नबी यिरमियाह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया- उन्होंने उन को कुएँ में डाल दिया। वह वहाँ भूखे मर जायेंगे, क्योंकि नगर में रोटी नहीं बची है।''
10) इस पर राजा ने कूशी एबेद-मेलेक को यह आदेश दिया, ''यहाँ के तीन आदमियों को अपने साथ ले जाओ और इस से पहले कि यिरमियाह मर जाये, उसे कुएँ में से खींच निकालो।''
11) इसलिए एबेद-मेलेक ने उन लोगों के साथ ले कर राजमहल के भण्डार के वस्त्रागार में प्रवेश किया और वहाँ से फटे-पुराने कपड़े ले कर उन्हें रस्सी से यिरमियाह के पास कुएँ में उतार दिया।
12) इसके बाद कूशी एबेद-मेलेक यिरिमयाह से बोला, ''अपनी काँखों और रस्सियों बीच फटे-पुराने कपड़े रख दो''। यिरमियाह ने ऐसा ही किया।
13) उन्होंने रस्सियों से यिरमियाह को ऊपर खींचा और उसे कुएँ में से बाहर निकाल लिया। इस प्रकार यिरमियाह रक्षादल के प्रांगण में रहने लगा।
14) राजा सिदकीया ने नबी यिरमियाह को बुला भेजा और वह उस से प्रभु के मंदिर के तीसरे प्रवेशद्वार पर मिला। यिरमियाह से राजा यह बोला, ''मैं तुम से एक बात पूछूँगा। तुम मुझ से कुछ नहीं छिपाना।''
15) यिरमियाह ने सिदकीया से कहा, ''यदि मैं आप से कह देता हूँ, तो क्या आप मुझे मरवा तो नहीं देगें? और यदि मैं आप को परामर्श देता हूँ, तो आप मेरी नहीं सुनेंगे।''
16) राजा सिदकीया ने यिरमियाह के सामने गुप्त रूप से यह शपथ खायी, ''प्रभु के अस्तित्व की शपथ! जिसने हमें जीवन प्रदान किया है। मैं तुम्हारा वध नहीं करूँगा और न तुम को उन लोगों के हाथ दूँगा, जो तुम्हारे प्राणों के गाहक हैं।''
17) तब यिरमियाह ने सिदकीय से कहा, ''प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैं: यदि तुम बाबुल के राजा के पदाधिकारियों के पास आत्मसमर्पण कर देते हो, तो तुमहारे प्राण बच जायेंगे, यह नगर आग से नहीं जलाया जायेगा और तुम और तुम्हारे घर के लोग जीवित रहेंगे।
18) किन्तु यदि तुम बाबुल के राजा के पदाधिकारियों के पास आत्मसमर्पण नहीं करते हो, तो यह नगर खल्दैयियों के हाथ चला जायेगा और वे इसे आग से जला देंगे और तुम उनके हाथ से नहीं बच सकोगे।''
19) राजा सिदाकीय ने यिरमियाह से कहा, 'मुझे उन यहूदियों का भय है, जो खल्दैलियों के पक्ष में चले गये हैं। कहीं ऐसा न हो कि मैं उनके हाथ कर दिया जाऊँ और वे मेरे साथ दुर्व्यवहार करें।''
20) यिरमियाह बोला, ''आप उनके हाथ नहीं किये जायेंगे। मैं जो कहता हँू, आप प्रभु की उस वाणी के अनुसरण करें। इस से आपका कल्याण होगा और आप जीवित रह जायेंगे।
21) किन्तु यदि आप आत्मसमर्पण नहीं करते, तो प्रभु ने मुझे यह दृश्य दिखलाया हैः
22) देखो, यूदा के राजा के महल में छूटी हुई सभी महिलाएँ बाबुल के राजा के पदाधिकारियों के पास ले जायी जायेगी और कहेंगी- 'तुमहारे विश्वासी मित्रों ने तुम्हारे साथ धोखा किया है और उन्होंने तुम को पराजित कर दिया है। अब, जब कि तुम्हारे पैर कीचड़ में फँस गये हैं, वे तुम को छोड़ कर भाग गये हैं।'
23) आपकी सभी पत्नियाँ और पुत्र खल्दैयियों के पास लाये जायेंगे और स्वयं आप भी उनके हाथ से नहीं बचेंगे, वरन् बाबुल के राजा द्वार बन्दी बनाये जायेंगे और यह नगर आग से जला दिया जायेगा।''
24) इस पर सिदकीया ने यिरमियाह से कहा, ''इन बातों की जानकारी किसी को न होने पाये; तभी तुम्हारा वध नहीं किया जायेगा।
25) यदि पदाधिकारी यह सुनते हैं कि मैंने तुम से बात की है और वे तुम से मिलते और यह कहते हैं, 'हमें यह बतलाओ कि तुमने राजा से क्या कहा है और राजा तुम से क्या बोले हैं। हम से कुछ मत छिपाओ, तब हम तुम्हारा वध नहीं करेंगे',
26) तो तुम उन से यह बोलोगे 'मैं राजा से यह प्रार्थना करने गया था कि आप मुझे योनातान के घर में मरने के लिए वापस मत भेजिए।''
27) सब पदाधिकारि यिरमियाह के पास आ कर पूछने लगे और राजा ने उसे तो बतलाया था, उसने उन्हें वही उत्तर दिया। इसलिए उन्होंने उस से और कुछ नहीं पूछा, क्योंकि उन बातों को किसी और ने नहीं सुना था।
28) इसके बाद यिरमियाह रक्षादल के प्रांगण में उस दिन तक पड़ा रहा, जिस दिन येरुसालेम का पतन हुआ।

अध्याय 39

1) यूदा के राजा सिदकीया के शासन के नौवें वर्ष के दसवें महीने बाबुल का राजा नबूकदनेजर अपनी समस्त सेना के साथ येरुसालेम आया और उसने उसे घेर लिया।
2) सिदकीया के ग्यारहवें वर्ष के चौथे महीने, उस महीने के नौवें दिन नगर की चारदीवारी में दरार कर दी गयी।
3) इसके बाद बाबुल के राजा के सब पदाधिकारी अन्दर आये और मध्य द्वार के सामने बैठ गये- नेरगल-सरएसेर, समगर-नबों, रबसारीस सरसकीम, रबमाग नेरगल-सरएसेर तथा बाबुल के राजा के अन्य सभी पदाधिकारी।
4) जब यूदा के राजा सिदकीया और उसके सभी सैनिकों ने उन्हें देखा तो, वे भाग गये। वे राज उद्यान से हो कर दो दीवारों के बीच वाले प्रवेशद्वार से रात में नगर से बाहर निकल गये और अराबा की ओर चल पड़े।
5) किन्तु खल्दैयियों की सेना ने उनका पीछा किया और येरीखो के मैदान में सिदकीया को पकड़ लिया। वे उसे पकड़ कर बाबुल के राजा नबूकदनेजर के पास हमात देश के रिबला ले गये और उसने उसे दण्डाज्ञा दी।
6) बाबुल के राजा ने रिबला में सिदकीया के सभी पुत्रों का गला उसकी आँखों के सामने घोंटवा दिया और बाबुल के राजा ने यूदा के सभी पदाधिकारियों का भी गला घोंटवा दिया।
7) उसने सिदकीया की आँखें निकाल लीं और उसे बाबुल ले जाने के लिए बेड़ियों में बाँध दिया।
8) खल्दैयियों ने राजा का महल और लोगों के घर जला दिये तथा येरुसालेम की चारदीवारी गिरा दी।
9) रक्षादल का नायक नबूजरअदान नगर में छूट गये शेष लोगों को, अपने पास भाग कर आये हुए लोगों तथा बचे हुए करीगरों को बाबुल ले गया।
10) किन्तु रक्षादल के नायक नबूजरअदान ने कुछ ऐसे लोगों को, जो एकदम निर्धन थे, यूदा देश में रहने दिया तथा उन्हें दाखबारियाँ और खेत भी दिये।
11) बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने रक्षादल के नायक नबूजरअदान को यिरमियाह के विषय में यह आदेश दिया था,
12) ''उसे ले आओ, उस पर नजर रखो और उसे कोई हानि न पहुँचाओ, बल्कि वह तुम से जैसा कहे, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो।''
13) इसलिए रक्षादल के नायक नबूजरअदान ने नबूशजबन, नेरगल-सरएसेर और बाबुल के राजा के सभी पदाधिकारियों को भेजा।
14) वे यिरमियाह को रक्षादल के प्रांगण से ले आये और उन्होंने उसे शाफ़ान के बेटे अहीकाम के पुत्र गदल्या को अपने घर ले जाने के लिए उसे सुपुर्द कर दिया। इस प्रकार वह फिर लोगों के बीच रहने लगा।
15) जब यिरमियाह रक्षादल के प्रांगण में बंदी था, तो उसे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी
16) ''जाओ, कूशी एबेद-मेलेक से कहो, 'विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैं इस नगर के कल्याण के लिए नहीं, बल्कि विनाश के लिए इसके विरुद्ध कहे गये अपने वचनों को पूरा करूँगा और वे वचन तुम्हारी आँखों के सामने उस दिन पूरे होंगे।
17) किन्तु उस दिन मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा- यह प्रभु की वाणी है- और जिन से तुम डरते हो, तुम उनके हाथ नहीं पड़ोगे।
18) मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूँगा और तुम्हारी मृत्यु तलवार से नहीं होगी, बल्कि तुम्हें अपना जीवन लूट के माल की तरह प्राप्त होगा, क्योंकि तुमने मुझ में विश्वास किया है। यह प्रभु की वाणी है।''

अध्याय 40

1) यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी उस समय सुनाई पड़ी, जब रक्षादल के नायक नबूजरअदान ने उसे रामा में मुक्त कर दिया था, जहाँ वह बाबुल ले जाने के लिए येरुसालेम और यूदा के अन्य सभी बन्दियों के साथ बेडियों में बाँध कर उसे ले गया था।
2) रक्षादल के नायक ने उसका प्रभार लेते हुए उस से कहा, ''तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने इस स्थान के लिए अभिशाप की घोषणा की थी।
3) और प्रभु ने उसे घटित होने दिया है और उसने जैसा कहा था, वही किया है। तुम लोगों ने प्रभु के विरुद्ध पाप किया था और उसकी वाणी पर ध्यान नहीं दिया था, इसलिए तुम्हें यह भोगना पड़ा है।
4) लेकिन देखो, आज मैं तुम को अपने हाथों में बँधी जंजीरों से मुक्त करता हूँ। यदि तुम्हारी इच्छा मेरे साथ बाबुल चलने की हो, तो चलो। मैं तुम्हारी देखभाल अच्छी तरह करूँगाा। लेकिन यदि तुम्हें मेरे साथ बाबुल चलना अच्छा नहीं लगता, तो मत चलो तुम्हारे लिए सारा देश पड़ा है। तुम को जहाँ जाना अच्छा और उचित लगे, वहीं जाओ।
5) यदि तुम यहीं रहते हो, तो शाफ़ान के बेटे अहीकाम के पुत्र गदल्या के पास जाओ, जिसे बाबुल के राजा ने यूदा के नगरों का राज्यपाल नियुक्त किया है और अपने लोगों के बीच उसी के साथ रहो, या तुम को जहाँ जाना उचित लगे, वहाँ जाओ।'' इस तरह रक्षादल के नायक ने उसे भोजन-सामग्री दी और उपहार प्रदान किया और विदा किया।
6) यिरमियाह अहीकाम के पुत्र गदल्या के यहाँ मिस्पा चला गया और उसके साथ देश के बचे हुए लोगों के बीच रहने लगा।
7) जब गाँवों में अब तक मौजूद सभी सेनानायकों और उनके लोगों ने यह सुना कि बाबुल के राजा ने अहीकाम के पुत्र गदल्या को देश का राज्यपाल नियुक्त किया है और उस को पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों तथा देश के वैसे सर्वाधिक निर्धन लोगों की देखरेख का जो बाबुल नहीं ले जाये गये हैं, भार दिया है,
8) तो वे- नतन्या का पुत्र इस्माएल, कारेअह का पुत्र योहानान, तनहुमेत का पुत्र सराया, नटोफ़ाती एफ़य के पुत्र, माकाती का पुत्र याजन्या और उनके लोग- गदल्या के यहाँ मिस्पा गये।
9) शाफ़ान के बेटे अहीकाम के पुत्र गदल्या ने उनके और उनके लोगों के सामने शपथ खाते हुए कहा, ''खल्दैयियों की अधीनता स्वीकार करने से नहीं डरें। आप इस देश में रहें और बाबुल के राजा की अधीनता स्वीकार कर लें और आपका भला होगा।
10) जहाँ तक मेरा संबंध है, उन खल्दैयियों की चिन्ता मैं कर लूँगा, जो हमारे यहाँ आयेंगे। किन्तु जहाँ तक आपकी बात है, आप लोग अंगूरी, ग्रीष्मकालीन फल और तेल अपने मर्तबानों में संचित करें तथा जिन नगरों पर आपने अधिकार किया है, उन में निवास करें।''
11) इसी तरह, जब उन सभी यहूदियों ने, जो मोआब में, अम्मोनियों के यहाँ और एदोम तथा अन्य देशों में थे, यह सुना कि बाबुल के राजा ने यूदा में अवशिष्ट लोगों को छोड़ दिया है और शाफ़ान के बेटे अहीकाम के पुत्र गदल्या को उनका राज्यपाल नियुक्त किया है,
12) तो सभी यहूदी उन सभी देशों से में लौट आये, जहाँ वे भाग गये थे और यूदा देश में गदल्या के यहाँ मिस्पा आये। उन्होंने प्रचुर मात्रा में अंगूरी और ग्रीष्मकालीन फल जमा किये।
13) कारेअह का पुत्र योहानान और ग्रामीण क्षेत्र में अलग पड़े हुए सेनानायक गदल्या के यहाँ मिस्पा आये।
14) और उस से बोला, ''क्या आप को यह मालूम है कि अम्मोनियों के राजा बालीस ने नतन्या के पुत्र इसमाएल को आपकी हत्या करने भेजा है?'' किन्तु अहीकाम के पुत्र गदल्य ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया।
15) तब कारेअह के पुत्र योहानान ने गदल्य से मिस्पा में अकेले में यह कहा, ''मुझे जाने की अनुमति दीजिए; मैं नतन्या के पुत्र इसमाएल को मार डालूँगा। इसका पता किसी को नहीं चलेगा। उसे आपकी हत्या क्यों करने दे, जिससे वे सभी यहूदी, जो आपके पास एकत्रित हो गये हैं, तितर-बितर हो जायें और यूदा के बचे हुए लोगों का विनाश हो जाये?''
16) किन्तु अहीकाम के पुत्र गदल्या ने कारेअह के पुत्र योहानान से कहा, ''तुम ऐसा नहीं करोगे। तुम इसमाएल के विषय में झूठ कह रहे हो।''

अध्याय 41

1) सातवें महीने एलीशामा के बेटे नतन्या का पुत्र राजवंशी इसमाएल, जो राजा के प्रमुख पदाधिकारियों में था, दस व्यक्तियों के साथ अहीकाम के पुत्र गदल्या के यहाँ मिस्पा आया। जब वे मिस्पा में एक साथ भोजन कर रहे थे,
2) तो नतन्या का पुत्र इसमाएल और उसके साथ के दस व्यक्ति उठ खड़े हुए और उन्होंने शाफ़ान के बटे अहीकाम के पुत्र गदल्या पर, जिसे बाबुल के राजा ने देश का राज्यपाल नियुक्त किया था, तलवार चलायी और उसे मार डाला।
3) इसमाएल ने मिस्पा के गदल्या के साथ के सभी यहूदियों तथा वहाँ उपस्थित खल्दैयी सैनिकों को भी मार डाला।
4) गदल्या की हत्या के दूसरे दिन, जब किसी को इसकी जानकारी भी नहीं हुई थी,
5) सिखेम, शिलो और समारिया से अस्सी आदमी प्रभु के मन्दिर में चढाने के लिए अन्न-बलियाँ और लोबान ले कर आये। उनकी दाढ़ियाँ मूड़ी हुई थीं, उनके वस्त्र फटे हुए थे और उनके शरीर पर घाव थे।
6) नतन्या का पुत्र इसमाएल मिस्पा से रोते हुए उन से मिलने आया। उन से मिलने पर वह उन लोगों से यह बोला, ''अहीकाम के पुत्र गदल्या के यहाँ चलिए''।
7) जब वे नगर के भीतर आये, तो नतन्या के पुत्र इसमाएल और उसके साथ के लोगों ने उन्हें मार कर कूएँ में फेंक दिया।
8) किन्तु उन में से दस व्यक्ति ऐसे थे, जिन्होंने इसमाएल से यह निवेदन किया, ''हमें मत मारिए; हमारे पास खेतों में गड़े हुए गेहँू, जौ, तेल और मधु के भण्डार हैं'' इसलिए उसने उन्हें छोड़ दिया और उनके साथियों के साथ उन्हें नहीं मारा।
9) इसमाएल ने अपने द्वारा वध किये गये लोगों के शव जिस कुएँ में डाले थे, वह बड़ा कुआँ था। उसे राजा आसा ने इस्राएल के राजा बाशा से अपनी रक्षा के लिए बनाया था। नतन्या के पुत्र इसमाएल ने मारे हुए लोगों के शवों से उसे पाट दिया।
10) इसके बाद इसमाएल ने मिस्पा में मौजूद शेष लोगों, राज-पुत्रियों और मिस्पा में छूटे हुए उन सभी लोगों को, जिन्हें रक्षादल के नायक नबूजरअदान ने अहीकाम के पुत्र गदल्या को देखभाल करने के लिए सौंप दिया था, बन्दी बना लिया। नतन्या का पुत्र इसमाएल उन को साथ ले कर अम्मोनियों के देश चल पड़ा।
11) किन्तु जब कारेअह के पुत्र योहानान और उसके साथ के अन्य सेनानायकों ने नतन्या के पुत्र इसमाएल के कुकर्मों के विषय में सुना,
12) तो वे अपने सभी लोगों को साथ ले कर नतन्या के पुत्र इसमाएल से युद्ध करने चल पड़े। वे गिबओन के बडे कुण्ड के पास उसके बराबर आ पहुँचे।
13) जब उन सभी लोगों ने, जो इसमाएल के साथ थे, कारेअह के पुत्र योहानान और अन्य सभी सेनानायकों को देखा, तो वे प्रसन्नता से भर गये।
14) इसलिए वे सभी लोग, जिन्हें इसमाएल मिस्पा से बन्दी बना कर ले आया था, पीछे मुड़ कर वापस आ गया और कारेअह के पुत्र योहानान से आ मिले।
15) किन्तु नतन्या का पुत्र इसमाएल आठ आदमियों के साथ योहानान के हाथों से बच निकल गया और अम्मोनियों के यहाँ भाग गया।
16) तब कारेअह के पुत्र योहानान और सभी सेनानायकों ने उन शेष लोगों को-सैनिकों, स्त्रियों, बच्चों और कंचुकियों को, जिन्हें अहीकाम के पुत्र गदल्या की हत्या करने के बाद नतन्या का पुत्र इसमाएल बन्दी बना कर मिस्पा से ले आया था तथा जिन्हें योहानान गिबओन से वापस ले आया था, अपने साथ कर लिया।
17) वे खल्दैयियों से बच कर मिस्र भाग जाने के विचार से चल कर बेथलेहेम के निकट गेरूत-किमहाम में रुके।
18) वे उन से डर रहे थे; क्योंकि नतन्या के पुत्र इसमाएल ने अहीकाम के पुत्र गदल्या को, जिसे बाबुल के राजा ने देश का राज्यपाल नियुक्त किया था, मार डाला था।

अध्याय 42

1) सभी सेनानायक, कोरअह का पुत्र योहानान और होशाया का पुत्र अजर्या तथा छोटे से ले कर बडे तक, सभी लोग नबी यिरमियाह के यहाँ आये
2) और उस से यह बोले, ''हमारा निवेदन स्वीकार कीजिए। इन बचे हुए लोगों के लिए प्रभु, अपने ईश्वर से हमारी ओर से प्रार्थना कीजिएः क्योंकि जैसा आप स्वयं अपनी आँखों से देख रहे हैं, हम बहुत लोगों में बहुत कम लोग ही बच गये हैं।
3) प्रभु, आपका ईश्वर हमें वह मार्ग बाताये, जिस पर चलना चाहिए और यह कि हमें क्या करना चाहिए।''
4) नबी यिरमियाह ने उन से कहा, ''मैंने तुम्हारी बात सुनी। तुम्हारी इच्छा से मैं प्रभु, तुम्हारे ईश्वर से प्रार्थना करूँगा और प्रभु जो उत्तर देगा, वह तुम्हें बता दूँगाा। मैं तुम से कुछ नहीं छिपाऊँगा।''
5) इस पर वे यिरमियाह से बोले, ''प्रभु आपका ईष्वर आप को जिन आदेशों के साथ हमारे पास भेजता है, यदि हम उनका पालन नहीं करें, तो प्रभु हमारे विरुद्ध सच्चा और सही साक्षी हो!
6) अच्छी हो या बुरी, हम प्रभु अपने ईश्वर की आज्ञा का, जिसके पास हम आप को भेज रहे हैं, पालन करेंगे, जिससे कि प्रभु, अपने ईश्वर की आज्ञा मानने के कारण हमारा कल्याण हो।''
7) दस दिनों के बाद यिरमियाह को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी।
8) तब उसने कारेअह के पुत्र योहानान, उसके साथ के सब सेनानायकों और छोटे से ले कर बड़े तक, सभी लोगों को बुला भेजा।
9) और उन से यह कहा, ''प्रभु इस्राएल का ईश्वर, जिसके पास तुम लोगों ने मुझे अपना निवेदन प्रस्तुत करने भेजा था, यह कहता हैः
10) यदि तुम इसी देश में रह जाते हो, मैं तुम्हें नहीं ढाहूँगा, बल्कि तुम्हारा निर्माण करूँगा; मैं तुम्हें नहीं उखाडूँगा, बल्कि तुम्हें रोपूँगा; क्योंकि मैंने तुम्हारा जो अहित किया है, उसका मुझे पछतावा है।
11) बाबुल के राजा से मत डरो, जिस से तुम भयभीत हो रहे हो। उस से मत डरो, क्योंकि उस से तुम्हारी रक्षा करने और उसके हाथों से तुम्हें छुडाने के लिए मैं तुम्हारे साथ हूँ- यह प्रभु की वाणी है।
12) मैं तुम को दया का पात्र बनाऊँगा जिससे वह तुम पर कृपा करे और तुम्हें अपने देश में रहने दे।
13) किन्तु यदि तुम प्रभु, अपने ईश्वर की आज्ञा नहीं मान कर यह कहते हो, 'हम इस देश में नहीं रहेंगे।
14) हम मिस्र देश जायेंगे, जहाँ हमें न तो युद्ध दिखाई देगा, न नरसिंघे की आवाज सुनाई देगी और न रोटी के अभाव में भूखों मरना पड़ेगा। हम वहीं निवास करेंगे।'
15) तो यूदा के अवशेष! प्रभु की यह वाणी सुनो। विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : यदि तुम मिस्र जाने के लिए अपना मुँह उसकी ओर करते और वहाँ रहने जाते हो,
16) तो वह तलवार जिस से तुम डरते हो, वहाँ मिस्र देश में भी तुम्हारा पीछा करेगी और वह अकाल, जिसकी तुम्हें आशंका है, तुम्हें मिस्र में भी नहीं छोडेगा और वहाँ तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।
17) वे सभी लोग, जो मिस्र जा कर रहने के लिए उसकी ओर प्रस्थान करेंगे, वे वहाँ तलवार, अकाल और महामारी से मरेंगे। मैं उन पर जो विपत्ति ढाहूँगाा, उस से न तो उन में कोई बचेगा और न जीवित रह पायेगा।
18) ''विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : जैसे येरुसालेम के निवासियों पर मेरा क्रोध और प्रकोप बरसा था, यदि तुम मिस्र जाओगे, तो वैसा ही तुम पर मेरा प्रकोप बरसेगा। तुम घृणा और संत्रास, अभिशाप और उपहास के पात्र बन जाओगे। इस स्थान को तुम फिर कभी नहीं देख सकोगे।
19) यूदा के अवशेष! प्रभु ने तुम से यह कहा है, ''मिस्र मत जाओ'। वह जान लो कि मैंने आज तुम्हें चेतावनी दी है।
20) तुमने स्वयं अपनी हानि की है; क्योंकि तुमने प्रभु, अपने ईश्वर के पास मुझे यह कर भेजा, 'प्रभु, हमारे ईश्वर से हमारी ओर से प्रार्थना कीजिए और प्रभु, हमारा ईश्वर जो कहे, वह हमें बतला दीजिए; हम उसका पालन करेंगे'
21) और आज मैंने तुम्हें वह बतला दिया है, किन्तु तुमने प्रभु, अपने ईश्वर का उस आज्ञा की एक बात भी नहीं मानी है, जिसे तुम से कहने के लिए उसने मुझे भेजा है।
22) इसलिए यह निश्चय जानो कि तुम जहाँ जा कर रहना चाहते हो, वहाँ तुम तलवार, अकाल और महामारी से मरोगे।''

अध्याय 43

1) जब यिरमियाह प्रभु, उनके ईश्वर की वे सभी बातें उन लोगों से कह चुका- वे सभी बातें, जिन्हें सुनाने के लिए प्रभु, उसके ईश्वर ने उस को उनके पास भेजा था,
2) तो होशया का पुत्र अजर्या, कारेअह का पुत्र योहानान और सभी ढीठ लोग यिरमियाह से बोले, ''आप झूठ बोल रहे हैं। प्रभु, हमारे र्ईश्वर ने आप को यह कहने नहीं भेजा था, 'मिस्र में रहने मत जाओ',
3) बल्कि नेरीया के पुत्र बारूक ने आप को हमारे विरुद्ध बहका कर हमें खल्दैयियों के हाथ कर देने के लिए भेजा है, जिससे वे हमें मार डालें या हमें बंदी बना कर बाबुल ले जायें।''
4) इसलिए कारेअह के पुत्र योहानान, सभी सेनानायकों और सभी लोगों ने प्रभु का यूदा देश में रहने का आदेश नहीं माना,
5) बल्कि कारेअह के पुत्र योहानान और सभी सेनानायकों ने यूदा के उन सभी अवशिष्ट लोगों को, जो उन सभी राष्ट्रों में से, जहाँ वे बिखर गये थे, यूदा देश में बसने के लिए लौट आये थे, अपने साथ कर लिया-
6) सभी पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों, राजकुमारियों और उन सभी व्यक्तियों को, जिन्हें रक्षादल के नायक नबूजरअदान ने शाफ़ान के बेटे अहीकाम के पुत्र गदल्या की देखरेख में छोड़ दिया था, तथा नबी यिरमियाह और नेरीया के पुत्र बारूक को भी।
7) वे मिश्र देश आ गये, क्योंकि उन्होंने प्रभु के आदेश की उपेक्षा की और वे तहपनहेस पहूँचे।
8) तहपनहेस में यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी :
9) ''अपने हाथों में बड़े पत्थर ले कर उन्हें यूदा के लोगों की आँखों के सामने तहपनहेस अवस्थित फ़िराउन के महल के प्रवेशद्वार के फ़र्श के गारे में डाल दो
10) और उन से यह कहो, 'विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर कहता है : मैं अपने सेवक, बाबुल के राजा नबूकदनेजर को बुला कर यहाँ ले आऊँगा। वह इन पत्थरों पर, जिन्हें मैंने नीचे डाला है, अपना सिंहासन रखेगा और उन पर अपना राजकीय चँदोवा तानेगा।
11) वह यहाँ आयेगा और मिस्र देश को दण्ड देगा : जो महामारी के दण्ड के योग्य हैं, उन को महामारी द्वारा; जो बन्दी होने योग्य हैं, उन्हें बन्दी बना कर और जो तलवार के दण्ड के योग्य हैं, उन्हें तलवार द्वारा।
12) वह मिस्र के देवमन्दिरों में आग लगा कर उन्हें जला देगा और देवताओं को ले जायेगा। वह मिस्र देश को उसी प्रकार साफ़ कर देगा, जिस प्रकार गडेरिया चीलर निकाल कर अपना लबादा साफ़ कर देता है और वह वहाँ से निर्विन चला जायेगा।
13) वह मिस्र देश के सूर्यमन्दिर के स्तम्भों के टुकड़े-टुकडे कर देगा और मिस्र के देवताओं के मंदिर जला देगा'।''

अध्याय 44

1) मिस्र देश में, मिगदोल, तहपनहेस, मेमफ़िस और पत्रोस प्रदेश में रहने वाले यहूदियों के विषय में वाणी यिरमियाह को सुनाई पड़ी :
2) ''विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : तुम लोगों ने वे सब विपत्तियाँ देखी हैं, जो मैंने येरुसालेम तथा यूदा के सब नगरों पर ढाही हैं। आज वे खँडहर हो गये हैं और उन में कोई निवास नहीं करता-
3) उनके उन कुकमोर्ं के कारण, जिन से मैं क्रुद्ध हो गया, क्योंकि उन्होंने उन पराये देवताओं को धूप चढ़ायी और उनकी पूजा की, जिन्हें न तो वे, न तुम और न उनके पुरखे जानते थे।
4) मैं तुम्हारे पास अपने सेवक, नबियों को यह बतलाने के लिए बारम्बार भेजता रहा, 'यह घृणित कार्य, जिस से मुझे घृणा है, मत करो'।
5) किन्तु उन्होंने अपनी दृष्टता त्यागने या पराये देवताओं को धूप न चढ़ाने की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और उसकी परवाह नहीं की।
6) इसलिए मेरा क्रोध और प्रकोप उन पर बरस पड़ा और यूदा के नगरों तथा येरुसालेम की सड़कों पर धधक उठा; वे खँडहर और उजाड़ हो गये, जैसा वे आज हैं।
7) ''अब विश्वमण्डल का प्रभु-ईश्वर, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : तुम अपना भारी अपकार क्यों कर रहे हो? इस से तुम पुरुषों और स्त्रियों, शिशुओं और बच्चों का यूदा से विनाश कर डालोगे और तुम्हारे बीच कोई जीवित नहीं रह जायेगा।
8) मिस्र देश में, तुम बसने आये हो, पराये देवताओं को धूप चढ़ा कर अपने ही हाथ से किये गये कायोर्ं द्वारा मेरा क्रोध क्यों भड़का रहे हो, जिससे तुम उजड़ जाओ और पृथ्वी के सब राष्ट्रों में अभिशाप और उपहास के पात्र बन जाओ?
9) क्या तुम अपने पुरखों के कुकर्म, यूदा के राजाओं और उनकी पत्नियों के कुकर्म, स्वयं अपने और अपनी पत्नियों के कुकर्म भूल गये, जो उन लोगों ने यूदा देश और येरुसालेम की सड़कों पर किये थे।
10) उन्होंने आज तक कोई पश्चाताप नहीं किया, न उन्हें कोई भय हुआ, न ही उन्होंने मेरे विधान तथा आदेशों का पालन किया, जो मैंने तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किये थे।
11) ''इसलिए विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : मैंने तुम्हारा विनाश करने और यूदा के सभी लोगों को मिटा देने का निश्चय कर लिया है।
12) मैं यूदा के अवशिष्ट लोगों को, जिन्होंने मिस्र देश में आ कर बसने का निश्चय किया है, ले आऊँगा और उनका विनाशा हो जायेगा। मिस्र देश में उनकी मृत्यु हो जायेगी। वे तलवार और अकाल से मारे जायेंगे। उन में छोटे से ले कर बड़े तक तलवार और अकाल से मरेंगे तथा वे घृणा, आतंक, अभिशाप और उपहास के पात्र बन जायेंगे।
13) जो मिस्र देश में रहेंगे, मैं उन को दण्ड दूँगा जैसे मैंने तलवार, अकाल और महामारी से येरुसालेम को दण्ड दिया है।
14) इस से यूदा के जो अवशिष्ट लोग मिस्र देश में रहने आये हैं, उन में कोई भी निकल कर भाग नहीं सकेगा, जीवित नहीं रहेगा या यूदा देश नहीं लौट सकेगा, जहाँ बसने के लिए वे लौटना चाहते हैं; क्योंकि कुछ भगोड़ों को छोड़ कर उन में कोई भी वहाँ नहीं लौट सकेगा।''
15) तब उन सभी लोगों ने, जो यह जानते थे कि उनकी पत्नियों ने पराये देवताओं को धूप चढ़ायी है और उन सभी स्त्रियों ने, जो भारी संख्या में उपस्थित थीं, उन सभी लोगों ने, जो मिस्र देश के पत्रोस प्रदेश में रह रहे थे, यिरमियाह को यह उत्तर दिया,
16) ''हम आपकी वह बात नहीं मानेंगे जो आपने प्रभु के नाम पर हम से कही हैं।
17) किन्तु हम ऐसा हर कार्य करेंगे जिसकी प्रतिज्ञा हमने की हैं। हम आकाश की देवी को धूप चढ़ायेगें और उसे अर्घ देंगे, जैसे यूदा के नगरों और येरुसालेम की सड़कों पर हम और हमारे पुरखे, हमारे राजा और राजकुमार दिया करते थे; क्योंकि उस समय हमारे पास प्रचुर भोजन था, हम सम्पन्न थे और हम पर कोई विपत्ति नहीं आयी थी।
18) लेकिन जब से हमने आकाश की देवी को धूप चढ़ाना और अर्घ देना छोड़ दिया, तब से हमें हर वस्तु के अभाव का सामना करना पड़ रहा है और हम तलवार और अकाल से नष्ट होते जा रहे हैं।''
19) स्त्रियों ने यह कहा, ''जब हम आकाश की देवी को धूप चढ़ाती और अर्घ देती थीं, तो क्या हम अपने पतियों की अनुमति के बिना उसकी मूर्ति के आकार की रोटियाँ बनाती और उसे अर्घ देती थीं।?''
20) यिरमियाह ने उन सभी लोगों- परुषों और स्त्रियों- उन सभी लोगों से, जिन्होंने उसे यह उत्तर दिया था, ऐसा कहाः
21) ''क्या प्रभु को यह याद नहीं कि यूदा के नगरों और येरुसालेम की सडकों पर तुम लोगों ने- तुमने और तुम्हारे पुरखों तुम्हारे राजाओं और राजकुमारों और देश के सभी लोगों ने- धूप चढ़ायी थी? क्या उसके मन में यह बात नहीं आयी थी?
22) प्रभु को तुम्हारे कुकर्म और घृणित कार्य, जो तुम कर रहे थे, सहन नहीं हुए। इसलिए तुम्हारा देश वीरान और बंजर, अभिशप्त और जनहीन हो गया, जैसा कि वह इस समय है।
23) आज तुम पर यह विपत्ति इसलिए आयी है कि तुमने धूप चढ़यी थी और प्रभु के विरुद्ध पाप किया था, प्रभु के आदेश पर ध्यान नहीं दिया था अथवा उसके नियमों, आज्ञाओं तथा वचनों के अनुसार आचरण नहीं किया था।''
24) यिरमियाह ने समस्त जनता और सभी स्त्रियों से कहा : ''मिस्र में विद्यमान यूदा के सब लोगो! तुम प्रभु की वाणी सुनो।
25) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- तुम और तुम्हारी पत्नियों ने अपने मुख से यह बात घोषित की है और यह कहते हुए उसका पालन किया है कि हमने आकाश की देवी को धूप चढ़ाने और अर्घ देने की जो प्रतिज्ञा की है, हम उसका पालन अवश्य करेंगे। बहुत अच्छा, अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते रहो, अपने संकल्प की पूर्ति करते रहो।
26) ''मिस्र में रहने वाले यूदा के लोगों! प्रभु की यह वाणी सुनोः प्रभु कहता है- 'देखो, मैंने अपने महान् नाम की यह शपथ खायी है कि पूरे मिस्र देश में यूदा का कोई आदमी मेरा नाम ले कर यह नहीं कह पायेगा, ''प्रभु-ईश्वर की शपथ!''
27) मैं उनका अहित करने, न कि कल्याण करने के अवसर की ताक में हूँ। मिस्र देश में रहने वाले यूदा के सभी लोगों का तलवार और अकाल से तब तक विनाश होता रहेगा, जब तक वे सामाप्त नहीं हो जायेंगे।
28) ऐसे बहुत थोड़े लोग, जो तलवार से बच पायेंगे, मिस्र देश से यूदा देश लौटेंगे और यूदा के सब अवशिष्ट लोगों को, जो मिस्र देश में रहने आये थे, यह पता चल जायेगा कि किसकी बात सच होती है- मेरी या उनकी।
29) यह तुम्हारे लिए इस बात का संकेत होगा कि- प्रभु यह कहता है- मैं तुम्हें इसी स्थान पर दण्ड दूँगा, जिससे तुम यह जान लो कि तुम्हारे अनिष्ट-सम्बन्धी मेरे वचन अवश्य पूरे होंगे।
30) प्रभु कहता हैः मैं मिस्र के राजा फ़िराउन होफ्रा को उसके शत्रुओं और उसके प्राणों के गाहकों के हाथ उसी प्रकार दे दूँगा, जिस प्रकार मैंने यूदा के राजा सिदकीय को बाबुल के राजा नबूकदनेजर के हाथ दे दिया था, जो उसका शत्रु और उसके प्राणों का गाहक था।''

अध्याय 45

1) ये वही बातें हैं, जो नबी यिरमियाह ने नेरीया के पुत्र बारूक से तब कही, जब बारूक योशीया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के चौथे वर्ष यिरमियाह से सुन कर ये बातें एक पुस्तक में लिख रहा थाः
2) ''बारूक! प्रभु, इस्राएल का ईश्वर तुम से यह कहता हैः
3) तुम बोले थे, 'धिक्कार मुझे, क्योंकि प्रभु ने मेरी पीड़ा को और भी दुःखमय बना दिया है! आह भरते-भरते मैं थक गया हूँ और मुझे कोई चैन नहीं।' प्रभु कहता हैः तुम उस से ऐसा कहोगे,
4) 'देखो, मैंने जिसे उठाया था, उसे ढाह रहा हूँ और जिसे रोपा था, उसे उखाड़ रहा हूँ, अर्थात इस समस्त देश को।
5) क्या तुम अपने लिए बड़ी-बड़ी आशाएँ पाल रहे हो? उनकी आशा मत करो; क्योंकि प्रभु कहता है कि मैं सभी प्राणियों पर विपत्ति ढाहने जा रहा हूँ; किन्तु तुम जहाँ कहीं भी जाओगे, मैं उन सभी जगहों में तुम को लूट के माल की तरह तुम्हारा जीवन प्रदान करूँगा'।''

अध्याय 46

1) राष्ट्रों के विषय में प्रभु की वह वाणी, जो नबी यिरमियाह की प्राप्त हुई।
2) मिस्र के विषय में। मिस्र के राजा फ़िराउन की सेना के विषय में, जो करकमीश में फ़रात के किनारे थी और जिसे योशीया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के चौथे वर्ष बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने पराजित किया था :
3) ''फरी और ढाल ठीक करो और युद्ध के लिए आगे बढ़ो।
4) कस लो घोड़े; घुड़सवारों! सवार हो जाओ। अपने टोप पहन कर अपनी जगह खड़े हो जाओ। अपने भाले तेज कर लो, अपने कवच धारण करो,
5) मैं यह क्या देख रहा हूँ? वे घबरा गये हैं और पीछे मुड़ चले हैं। उनके वीर योद्धा परास्त हो गये हैं। और तेजी से भाग रहे हैं। वे पीछे मुड़ कर नहीं देखते। चारों ओर आतंक फैल गया है यह प्रभु की वाणी है।
6) तेज दौड़ने वाले भी नहीं भाग पा रहे हैं, वीर भी बच कर निकल नहीं पा रहा है। उत्तर में फ़रात नदी के किनारे वे ठोकर खा कर गिर गये हैं।
7) ''वह कौन है, जो नील नदी की तरह उमड़ रहा है, बाढ़ से उफनती नादियों की तरह?
8) मिस्र, नील नदी की तरह उमड़ रहा है, बाढ़ से उफनती नदियों की तरह। वह कहता है, ''मैं उमड़ पडूँगा; मैं पृथ्वी को ढँक दूँगा। मैं नगरों और उनके निवासियों का विनाश करूँगा।'
9) घोड़ो! आगे बढ़ो। रथो! प्रबल वेग से दौड़ो। वीरों को प्रस्थान करने दो- ढाल धारण किये कूश और पूट के लोगों को, लूद के धनुर्धरों को।
10) यह दिन प्रभु, विश्वमण्डल के ईश्वर का दिन हैं, अपने शत्रुओं से बदला लेने के लिए प्रतिशोध का दिन। तलवार खायेगी और तृप्त हो जायेगी और उनका रक्त छक कर पियेगी; क्योंकि प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर उत्तर देश में फ़रात के तट पर बलि-यज्ञ कर रहा है।
11) ''मिस्र की कुवाँरी पुत्री! गिलआद पर जाओ और मरहम ले लो। तुम व्यर्थ ही औषधियों का व्यवहार कर रही हो। तुम्हारा घाव नहीं भरेगा।
12) राष्ट्र तुम्हारे कलंक के विषय में सुन चुके हैं, पृथ्वी कोलाहल से गूँज रही है; क्योंकि योद्धा, योद्धा से टकरा गया है; दोनों एक साथ गिर गये हैं।''
13) वह वाणी, जो प्रभु ने मिस्र देश पर आक्रमण के लिए बाबुल के राजा नबूकदनेजर के आगमन के विषय में नबी यिरमियाह से कही थीः
14) ''मिस्र में घोषणा कर दो, मिगदोल में बोल दो; मेमफ़िस और तहपनहेस में घोषणा कर दो। कह दो, 'तत्पर हो जाओ; तैयार रहो। तलवार तुम्हारे चारों ओर के लोगों को खा जायेगी।'
15) एपिस क्यों भाग गया है? तुम्हारा वृषभ-देवता क्यों नही टिका? क्योंकि प्रभु ने उसे धकेल कर गिरा दिया।
16) तुम्हारी भीड़-की-भीड़ ठोकर खा कर गिर गयी। वे आपस में कहने लगे, 'उठो, हम अपने लोगों के यहाँ, अपनी जन्मभूमि में, विनाशक की तलवार से दूर, लौट चलें'।
17) मिस्र के राजा फ़िराउन का यह नाम रखोः 'कोलाहली! जिसने अवसर खो दिया है'।
18) ''वह राजा, जिसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है, कहता है : अपने अस्तित्व की शपथ! पर्वतों में ताबोर-जैसा, समुद्रतट पर करमेल-जैसा एक व्यक्ति आयेगा।
19) मिस्र के निवासियों! निर्वासन के लिए अपनी-अपनी गठरी बाँध लो; क्योंकि मेमफ़िस उजाड़ हो जायेगा, खँडहर, जहाँ कोई नहीं रहेगा।
20) ''मिस्र एक सुन्दर कलोर है। किन्तु उत्तर से उस पर एक डाँस बैठ गया है;
21) उस में मौजूद भाडे के सैनिक भी मोटे बछड़ों की तरह हैं। वे पीठ दिखा कर एक साथ भाग गये हैं; वे टिके नही रहे; क्योंकि उनके विनाश का दिन उन पर आ गया है, उनके दण्ड का दिन।
22) वह भागने वाले साँप की तरह फुफकार रहा है, क्योंकि उसके शत्रु सदलबल आ रहे हैं। वे पेड़ काटने वाले लोगों की तरह कुल्हाडियाँ ले कर उस पर टूट रहे हैं।
23) प्रभु कहता हैः वे उसका जंगल काट डालेंगे, भले ही वह बहुत घना हो; क्योंकि व टिड्डियों से भी बहुसंख्यक है, उनकी गिनती सम्भव नहीं है।
24) मिस्र की पुत्री का अपमान किया जायेगा, वह उत्तर के लोगों के हाथ कर दी जायेगी।''
25) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ''देखो, मैं नो के आमोन की, फ़िराउन को और मिस्र, उसके देवताओं और उसके राजाओं को, फिराउन और उस पर भरोसा रखने वाले सब लोगों को दण्ड देने जा रहा हूँ।
26) मैं उन को उनकी जान के गाहकों, बाबुल के राजा नबूकदनेजर और उसके पदाधिकारियों के हाथ कर दूँगा। इसके बाद मिस्र पहले की तरह फिर बसाया जायेगा। यह प्रभु की वाणी है।
27) किन्तु मेरे सेवक याकूब! मत डरो, इस्राएल! मत भयभीत हो; क्योंकि मैं तुम्हें सुदूर देश से, तुम्हारी सन्तान को उनकी दासता के देश से मुक्त कर दूँगा। याकूब लौटेगा, वह सुख-शांति से रहेगा और उसे कोई नहीं डरा सकेगा
28) प्रभु कहता हैः मेरे सेवक याकूब! मत डरो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैंने तुम को जिन राष्ट्रों के बीच बिखेरा हैं, मैं उनका सर्वनाश करूँगा, लेकिन मैं तुम्हारा सर्वनाश नहीं करूँगाा। मैं तुम को न्यायोचित दण्ड दूँगा। मैं तुम्हें किसी भी तरह दण्ड दिये बिना नहीं छोडँूगा।''

अध्याय 47

1) फ़िराउन द्वारा गाजा पर आक्रमण करने के पहले फ़िलिस्तियों के विषय में वह वाणी, जो नबी यिरमियाह को सुनाई पडीः
2) ''प्रभु यह कहता है : देखो, उत्तर से जलसमूह उमड़ता आ रहा है और वह विशाल प्रखर धारा बनता जा रहा है। वह देश और उस में जो कुछ हैं, नगरों और उनके निवासियों की बहाये जा रहा है। लोग हाहाकार कर रहे हैं और देश का हर निवासी विलाप कर रहा है।
3) जब उसके घोड़ों के खुरों की टाप सुनाई देती है, उसके रथों के दौड़ने की आवाज, उनके पहियों की घरघराहट, तो पिता की पीछे मुड़ कर अपनी सन्तान की चिन्ता नहीं करते- उनके हाथ इतने निर्जीव हो गये हैं!
4) क्योंकि फ़िलिस्तियों के विनाश और तीरुस तथा सीदोन में बचे हुए सहायकों से उन को वंचित करने का दिन आ रहा है; क्योंकि प्रभु फ़िलिस्तियों और कफ्तोप द्वीप के बचे हुए लोगों का विनाश कर रहा है।
5) गाजा गंजा हो गया है, अशकलोन मौन हो गया है अनाकीन के अवशेष! तुम कब तक स्वयं अपने को घाव करते रहोगे?
6) हाय! प्रभु की तलवार! तुम कब शान्त होगी? अपनी म्यान में चली जाओ; रुको, शान्त हो जाओ।
7) यह कैसे शांत होगी, जब प्रभु ने इसे आदेश दे दिया है? उसने अशकलोन और समुद्रतट को इसका लक्ष्य बना दिया है।''

अध्याय 48

1) विश्वमण्डल का प्र्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ''नेबो पर शोक, क्योंकि वह उजाड़ हो गया है! किर्यातईम का अपमान हुआ है; उसे जीत लिया गया है। गढ़ अपमानित और ध्वस्त कर दिया गया है।
2) मोआब की कीर्ति नष्ट हो चुकी है। हेशबोन में उन्होंने उसका अनिष्ट करने का षड््यंत्र रचा थाः 'आओ, हम उसे राष्ट्र नहीं रहने दें'। मदमेन! तुम भी चुप कर दिये जाओगे। तलवार तुम्हारा पीछा करेगी।
3) होरोनईम से आने वाला यह चीत्कार सुनो, विध्वंस! महानाश!
4) मोआब नष्ट कर दिया गया है। उसकी चीख़ सोअर तक सुनाई दे रही है;
5) क्योंकि लूहीत के चढ़ाव पर लोग रोते हुए चढ़ रहे हैं; होरोनईम के उतार पर उन्होंने विनाश का हाहाकार सुना है।
6) भागो! अपनी जान बचाओ! मरुभूमि में जंगली गधे-जैसे हो जाओ!
7) तुमने अपने क़िलों और कोषागारों पर भरोसा किया, इसलिए तुम भी बंदी बनाये जाओगे। अपने याजकों और राज्यधिकारियों के साथ कमोश भी निर्वासित किया जायेगा।
8) विनाशकर्ता हर नगर पर आक्रमण करेगा और एक भी नगर नहीं बचेगा। घाटी का विनाश हो जायेगा और मैदान वीरान हो जायेगा, जैसा कि प्रभु ने कहा है।
9) मोआब को पंख दे दो, जिससे वह उड़ सके। उसके नगर उजाड़ हो जायेंगे, उन में कोई नहीं रह जायेगा।
10) ''वह व्यक्ति अभिशप्त है, जो प्रभु के कार्य में शिथिलता दिखाता है। वह व्यक्ति अभिशप्त है, जो अपनी तलवार को रक्तपात करने से रोकता है।
11) मोआब अपनी जवानी से ही सुख-चैन से था और वह अपनी तलछट पर लेटा था। वह एक बरतन से दूसरे बरतन में उँढ़ेला नहीं गया था और न कभी वह निर्वासित हुआ था। इसी से उसका स्वाद बना हुआ है और उसकी गंध ज्यों-की-त्यों है।
12) इसलिए प्रभु यह कहता है- देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब मैं उसके पास निथारने वालों को भेजूँगा, जो उसे निथारेंगे, उसके मटके ख़ाली कर देंगे और उसके घडे ॅफोड़ डालेंगे।
13) तब मोआब, कमोश के कारण, उसी प्रकार लज्जित होगा, जिस प्रकार इस्राएल का घराना बेतेल के कारण लज्जित हुआ था, जिस में उसका विश्वास था।
14) ''वे यह कैसे कह सकते हैं, 'हम वीर और शक्तिशाली योद्धा हैं'?
15) ''मोआब और उसके नगरों को विनाशकर्ता आ गया है, और उसके सर्वश्रेष्ट नवयुवकों का वध कर दिया गया है। यह वह राजा कहता है, जिसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है।
16) ''मोआब का विनाश निकट आ गया है, उसकी विपत्ति तेजी से आ रही है।
17) ''तुम सब, जो उसके आसपास रहते हो और उसे नाम से जानते हो, उसके लिए विलाप करो और यह कहो 'वह शक्तिशाली दण्ड, गौरवशाली राजदण्ड कैसे टूट गया!
18) ''दीबोन के निवासियो! अपनी महिमा से नीचे आ कर प्यासी धरती पर बैठो; क्योंकि मोआब का विनाशकर्ता तुम पर चढ़ आया है; उसने तुम्हारे गढ़ नष्ट कर दिये हैं।
19) अरोएर के निवासियो! रास्ते के किनारे खडे हो कर देखते रहो। भागने वाले और बच कर निकलने वाले से पूछो। पूछो, 'क्या बात है?'
20) मोआब का अपमान हुआ है, क्योंकि वह नष्ट हो गया है। रोओ और विलाप करो! अरनोन के किनारे यह घोषित करो कि मोआब उजाड़ दिया गया है।
21) ''इन को दण्डाज्ञा मिल गयी हैः पठार-भूमी और होलोन को तथा यहसा और मेफ़ाअत को,
22) दीबोन और नेबो और बेत-दिब-लातैम को,
23) किर्यातईम और बेत-गामूल और बेत-अमोन को,
24) करीओत और बोसरा और मोआब देश के दूर तथा समीप के सभी नगरों को।
25) मोआब का सींग कट चुका है और उसकी भुजा टूट चुकी है। यह प्रभु की वाणी है।
26) ''वह अपने को प्रभु से बड़ा कहता था, इसलिए उसे पिला कर मतवाला बना दो, जिससे वह अपने वमन में लोटे और वह भी उपहास का पात्र बन जाये।
27) क्या इस्राएल तुम्हारे लिए उपहास का पात्र नहीं था? क्या वह चोरों के साथ पकड़ा गया था, जो तुम उसकी बात करते समय हर समय सिर हिलाने लगते थे?।
28) ''मोआब के निवासियो! नगरों को छोड दो और चट्टानों में वास करो। महाखड्ड की चट्टानी सतहों में घोंसला बनाने वाला कबूतर बन जाओ।
29) हमने मोआब के घमण्ड के विषय में- वह सच में बहुत धमण्डी है- उसके अक्खड़पन, उसके घमण्ड, उसके गर्व और उसकी अहम्मन्यता के विषय में सुना है।
30) प्रभु कहता है- मैं उसकी धृष्टता जानता हूँ। उसकी बकवास खोखली है; उसके कार्य निरर्थक हैं।
31) इसलिए में मोआब के लिए विलाप करता हूँ, समस्त मोआब के लिए रोता हूँ, मैं कीर-हेरेस के लोगों के लिए शोक मनाता हूँ।
32) सिबमा की दाखबारी! मैं याजेर से भी अधिक तुम्हारे लिए रोता हूँ। तुम्हारी टहनियाँ समुद्र्र के परे फैल गयी थीं, याजेर तक पहुँची थीं। तुम्हारे फलों और अंगूर फ़सल पर विनाशकर्ता टूट पड़ा है।
33) ेमोआब के बगीचे से आनंद और उल्लास छीन लिये गये है। मैंने दाखकुण्डों से अंगूरी बहना बन्द कर दिया है दाख रौंदने वाला नहीं रौंदता, प्रसन्नता का कालाहत नहीं सुनाई देता।
34) ''हेशबोन और एलआले चीख़ रहे हैं। उनकी आवाज यहस तक, सोअर से ले कर हेरानईम और एगलात-शलिशीया तक सुनाई दे रही है; क्योंकि निम्रीम के जलाशय भी सूख गये हैं।
35) प्रभु कहता है- मैं मोआब में उसका अन्त कर दूँगा, जो पूजा-टीलों पर बलि देता और अपने देवताओं को धूप चढ़ाता है।
36) इसलिए मेरा हृदय मोआब के लिए बाँसुरी की तरह रोता है; मेरा हृदय कीरहेरेस के लोगों के लिए बाँसुरी की तरह रोता है; क्योंकि उन्होंने जो सम्पत्ति अर्जित की, वह नष्ट हो गयी है।
37) हर एक का सिर मँूड दिया गया है और हर एक की दाढ़ी साफ कर दी गयी है। सब के हाथों पर घाव है और सब की कमर में टाट है।
38) मोआब की सभी छतों और चौंको पर केवल रोना सुनाई दे रहा है; क्योंकि- प्रभु यह कहता है- मैं ने मोआब को उस बरतन की तरह तोड़ दिया है, जिसकी कोई परवाह नहीं करता।
39) वह कैसा नष्ट हो गया है! विलाप करो! मोआब ने कैसे लज्जा से अपनी पीठ कर दी है! मोआब अपने चारों ओर के निवासियों के लिए उपहास और आंतक का विषय बन गया है।''
40) क्योंकि प्रभु यह कहता हैः 'देखो, कोई गरुड़ की तरह मँडरता हुआ आयेगा और मोआब पर अपने पंख फैलायेगा।
41) नगर जीत लिये गये हैं। और गढ़ अधिकार में आ गये हैं। उस दिन मोआब के योद्धाओं का हृदय प्रसवकाल में स्त्री के हृदय-जैसा हो गया है।
42) मोआब नष्ट हो गया है और वह राष्ट्र नहीं रह गया है; क्योंकि वह अपने को प्रभु से बड़ा मानता था।
43) मोआब के निवासियो! आतंक, गर्त्त और फन्दा ही तुम्हारे सामने हैं, यह प्रभु की वाणी है।
44) जो आतंक से बच कर भागेगा, वह गर्त्त में गिरेगा और जो गर्त्त से बाहर निकलेगा, वह फन्दे में फँसेगा; क्योंकि-प्रभु यह कहता है- मैं मोआब पर उसके दण्ड के वर्ष यह सब ढाहूँगा।
45) हेशबोन की छाया में भागे हुए लोक थकावट से चूर हो कर ठहरते हैं; लेकिन हेशबोन से एक आग, सीहोन के महल से एक ज्वाला निकली है। उसने मोआब की कनपटियों को, कोलाहल के पुत्रों के कपाल को जला दिया है।
46) मोआब, तुम को धिक्कार! कमोश की प्रजा का विनाश हो गया है; क्योंकि तुम्हारे पुत्र बन्दी बना लिये गये हैं और तुमहारी पुत्रियाँ बन्दी बना ली गयी हैं।
47) तो भी मैं आने वाले दिनों में मोआब का भाग्य बदल दूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है। यहाँ तक मोआब की दण्डाज्ञा।

अध्याय 49

1) प्रभु यह कहता हैः ''क्या इस्राएल का कोई वंशज नहीं है? क्या उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं है? नहीं तो क्यों मिलकोम, गाद का उत्तराधिकारी हो गया है और इसके लोग उसके नगरों में बस गये हैं?
2) ''इसलिए- प्रभु यह कहता है- देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब मैं रब्बा-अम्मोन के विरुद्ध युद्धघोष करूँगा। वह उजाड़ खँडहरों का ढेर बन जायेगा और उसके नगर आग से जला दिये जायेंगे। प्रभु कहता हैः तब इस्राएल अपने उत्तराधिकारियों का उत्तराधिकारी हो जायेगा।
3) ''हेशबोन! विलाप करो; क्योंकि अय उजाड़ दिया गया है। रब्बा की पुत्रियो! रोओ। अपनी-अपनी कमर में टाट बांध लो, छाती पीटो और बाड़ों में इधर-उधर भागो; क्योंकि अपने याजकों और राज्याधिकारियों के साथ मिलकोम निर्वासित किया जायेगा।
4) तुम्हें अपनी घाटियों का गर्व क्यों है, विद्रोही पुत्री! तुम, जिसने अपनी धन-सम्पत्ति का भरोसा करते हुए यह कहा, 'मुझ पर कौन आक्रमण कर सकता है?''
5) विश्वमण्डल का प्रभु-ईश्वर यह कहता है : देखों, मैं तुम्हारे चारों ओर के लोगों द्वारा तुम पर आतंक बरसाऊँगा और तुम बाहर निकाल दी जाओगी' हर एक अपनी-अपनी राह पर। भागने वालों को एकात्रित करने कोई नहीं रहेगा।
6) लेकिन प्रभु कहता है- इसके बाद मैं अम्मोनियों का भाग्य बदल दूँगा।''
7) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है : ''क्या तेमान की प्रज्ञा नष्ट हो गयी? क्या मनीषियों में परामर्श देने की शक्ति नहीं रही? क्या उनकी प्रज्ञा का लोप हो गया?
8) ददान के निवासियो! मुड़ कर भागो, खाइयों में छिप जाओः क्योंकि मैं एसाव पर विपत्ति ढाहूँगा, जब में उसे दण्डित करूँगा।
9) यदि अंगूर बटोरने वाले तुम्हारे यहाँ आयेंगे, तो वे सिल्ला छोडेंगे। यदि चोर रात में आते हैं, तो वे अपनी इच्छा भर बरबाद करेंगे।
10) किन्तु मैंने एसाव को नंगा कर दिया है। मैंने उसके छिपने के सभी स्थान प्रकट कर दिये है और अब वह अपने को छिपा नहीं पा रहा है। उसके वंशज, उसके भाई और उसके पड़ोसी लोग नष्ट हो गये हैं और वह स्वयं भी जीवित नहीं।
11) अपने अनाथों को अपने पीछे छोड़ दो; मैं उन्हें जीवित रखूँगा और अपनी विधवाओं को मेरा भरोसा करने दो।''
12) प्रभु कहता है : ''यदि उन लोगों को भी प्याला पीना पड़ गया, जिन्हे नहीं पीना चाहिए था, तो क्या तुम बिना दण्ड के रहोगे? नहीं तुम बिना दण्ड के नहीं रहोगे, बल्कि तुम्हें प्याला पीना होगा;
13) क्योंकि प्रभु यह कहता हैः मैंने अपने नाम की यह शपथ खायी है कि बोसरा आंतक, उपहास, विध्वंस और अभिशाप का पात्र बन जायेगा और उसके सभी नगर सदा के लिए उजाड़ हो जायेंगे।''
14) मैंने प्रभु का यह सन्देश सुना है और राष्ट्रों के पास एक दूत भेजा गया हैः ''तुम सभी एकत्रित हो, उस पर आक्रमण करो, युद्ध के लिए तैयार हो जाओ!
15) क्योंकि देखो मैं तुम्हें राष्ट्रों के बीच छोटा और मनुष्यों के बीच तुच्छ बना दूँगा।
16) तुम जो आतंक फैलाते हो, उसी ने तुम्हें धोखा दिया है और तुम्हारे मन के अंहकार ने भी। तुम जो चट्ठान की दरारों में रहते हो, तुम, जो पहाडी की चोटियों पर निवास करते हो, यद्यपि तुम गरुड़ की तरह ऊँचे स्थानों पर अपना घोंसला बनाते हो, तब भी मैं तुम को नीचे गिरा दूगा। प्रभु की वाणी है।
17) ''एदोम आंतक का विषय बन जायेगा। जो कोई उसकी बग़ल से गुजरेगा, वह भयभीत हो जायेगा और उसके सभी संकटों के कारण उसका उपहास करेगा।
18) प्रभु कहता है : जैसा सोदोम और गोमोरा तथा उनके अन्य पड़ोसी नगरों के विनाश के बाद हुआ, वैसे ही इन में कोई नहीं रहेगा और इन में कोई ठहरने नहीं आयेगा।
19) देखो, यर्दन के जंगल से आ कर सदाबहार चरागाहों पर चढ़ने वाले सिंह की तरह मैं उन लोगों को पलक मारते ही वहाँ से भगा दूँगा और मैं जिस को चाहूँगा, उस को उस पर नियुक्त करूँगा; क्योंकि मेर सदृश कौन है? कौन मेरा लेखा लेगा? कौन चरवाहा मेरे सामने टिक पायेगा?
20) ''इसलिए वह योजना सुनो, जो प्रभु ने एदोम के विरुद्ध बनायी है और वे विचार, जो तेमान के निवासियों के विरुद्ध उसके मन में है : रेवड़ की छोटी भेडें भी घसीट कर ले जायी जायेंगी। हाँ, उनके कारण चहरागह अवाक् रह जायेगा।
21) उनके गिरने की आवाज से धरती काँपने लगेगी। उसकी प्रतिध्वनि लाल सागर तक सुनाई पडेगी।
22) देखो, कोई गरुड़ की तरह ऊपर तेजी से उड़ेगा और बोसरा पर अपने पंख फैला देगा और एदोम के योद्धाओं का हृदय प्रसवपीड़ित स्त्री के हृदय-जैसा हो जायेगा।''
23) दमिश्क के विषय में। ''हमात और अर्पाद घबराये हुए हैं, क्योंकि उन्होंने अशुभ समाचार सुने हैं। वे भय से घुल रहे हैं। वे समद्र की तरह अशांत हैं, जो कभी स्थिर नहीं होता।
24) दमिश्क शक्तिहीन हो गया हैः वह भागने लगा और उस पर आंतक छा गया। प्रसवकालीन स्त्री की तरह उसे वेदना और दुःख ने जकड़ लिया है।
25) वह प्रसिद्ध नगर कैसा उजाड़ जो गया है- वह प्रसन्न नगर!
26) इसलिए उसके नवयुवक उसके चौकों में गिर जायेंगे और उसके सभी सैनिक उस दिन नष्ट हो जायेंगे। विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है।
27) मैं दमिश्क की दीवारों में आग लगा दूँगा, और वह बेन-हदद के महल जला देगी।''
28) केदार और हासोर के राज्यों के विषय में, जिन्हें बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने पराजित किया था। प्रभु यह कहता हैः ''उठो, केदार पर आक्रमण करो! पूर्व के लोगों का विनाश कर दो!
29) ''उनके तम्बू और उनके रेवड़ उनके परदे और उनका सारा सामान ले लिया जायेगा। उनके ऊँट उनके यहाँ से छीन लिये जायेंगे और लोग चिल्ला कर उन से यह कहेंगेः 'हर तरफ़ आतंक ही आंतक है!
30) भागो, दूर चले जाओ, खाई खोद कर छिप जाओ, हासोर निवासियों! -यह प्रभु की वाणी है- क्योंकि बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने तुम्हारे विरुद्ध एक योजना बनायी है और तुम्हारे विरुद्ध एक षड्यंन्त्र रचा है।
31) ''उठो, उस शांत राष्ट्र पर आक्रमण करो, जो सुरक्षित है, - यह प्रभु की वाणी है- जिसके न फाटक है और न अर्गलाएँ हैं, जो अलग हैं।
32) उनके ऊँट लूट का माल बन जायेंगे, उनके ढोर लूट की वस्तु। जो अपनी कनपटियों के केश कटवाते हैं, मैं उन को चारों ओर बिखेर दूँगा और हर तरफ़ से उन पर विपत्ति ढाहूँगा - यह प्रभु की वाणी है।
33) हासोर गीदड़ों की माँद हो जायेगा, सर्वदा के लिए निर्जन। वहाँ कोई नहीं रहेगा, वहाँ कोई नहीं डेरा डालेगा।''
34) यूदा के राजा सिदकीया के राज्यकाल के प्रारम्भ में नबी यिरमियाह को एलाम के विषय में प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी।
35) विश्वमण्डल का प्रभु कहता है : ''देखो, मैं एलाम के धनुष, उसकी शक्ति के प्रमुख आधार को तोड़ दूँगा।
36) मैं आकाश की चारों दिशाओं से चारों पवन एलाम पर बहा दूँगा। मैं एलामियों की उन सभी पवनों के समान बिखेर दूँगा और कोई राष्ट्र ऐसा नहीं होगा, जहाँ एलाम से भगाये लोग नहीं आयेंगे।
37) मैं एलाम को उसके शत्रुओं के सामने और उसके प्राणों के गाहकों के सामने आतंक से भर दूँगा। मैं उस पर विपत्ति, अपना कोप बरसाऊँगा। यह प्रभु की वाणी है। मैं उसका पीछा तलवार से तब तक कराऊँगा, जब तक मैं उसका सर्वनाश न कर दूँ।
38) मैं एलाम में अपना सिंहासन स्थापित करूँगा और उसके राजा और पदाधिकारियों का विनाश कर दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।
39) किन्तु बाद में मैं एलाम के बन्दियों को वापस ले आऊँगा। यह प्रभु की वाणी है।''

अध्याय 50

1) प्रभु ने बाबुल, खल्दैयियों के देश के विषय में नबी यिमियाह द्वारा यह वाणी सुनायीः
2) ''राष्ट्रों के सामने यह घोषणा करो, यह बता दो, ध्वजा फहरा कर यह बता दो, इसे मत छिपाओ, यह कह दो- 'बाबुल का पतन हो गया है। बेल अपमानित किया गया है। मदुर्क को ध्वस्त कर दिया गया है। उसकी प्रतिमाएँ अपमानित कर दी गयी हैं; उसकी मूर्तियाँ विनष्ट हो गयी हैं।'
3) ''उत्तर की ओर एक राष्ट्र ने उस पर आक्रमण कर दिया है, जो उसके देश को उजाड़ डालेगा और वहाँ कोई नहीं रह जायेगा। क्या मनुष्य, क्या पशु, सब वहाँ से भाग जायेंगे।''
4) प्रभु कहता है : ''उन दिनों, उस समय इस्राएल और यूदा के लोग एक साथ आयेंगे, वे रोते हुए आयेंगे और अपुने प्रभु-ईश्वर की खोज करेंगे।
5) वे सियोन का मार्ग, उसकी ओर अभिमुख हो कर, पूछते हुए यह कहेंगे : 'आओ हम प्रभु के साथ एक चिरस्थायी विधान द्वारा जुड़ जायें, जो कभी नही विस्मृत होगा'।
6) ''मेरी प्रजा खोयी हुई भड़ों-जैसी हो गयी है। उनके चरवाहों ने उन्हें भटकाया है, पर्वतों में उन को विपथ पर ले गये हैं। वे पर्वतों से पहाड़ियों पर भटकती रही हैं। और अपनी भेड़शाला भूल गयी हैं।
7) जिन सबों ने उन्हें देखा, उन्हें अपना आहार बनाया है और उनके शत्रुओं ने कहा है- 'हमारा कोई दोष नहीं, क्योंकि उन्होंने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है, प्रभु-धर्मिकता के निवास और अपने पूर्वजों की आशा के विरुद्ध'।
8) ''बाबुल से भाग जाओ; खल्दैयियों के देश से बाहर चले जाओ; रेवड़ के आगे चलने वाले बकरे बन जाओ;
9) क्योंकि देखो, मैं उत्तर देश से बड़े राष्ट्रों के एक समूह को उत्तेजित कर बाबुल पर आक्रमण करने ला रहा हूँ। वे उसके विरुद्ध मोरचाबंदी करेंगे और उस पर अधिकार कर लेंगे। उनके तीर उस निपुण योद्धा की तरह है, जो ख़ाली हाथ नहीं लौटता।
10) खल्दैया लुट जायेगा। जो सब उसे लूटेंगे, परितृत्प हो जायेंगे।'' प्रभु यह कहता है।
11) ''मेरा दायभाग लूटने वालो! अभी तो तुम आनंद मना रहे हो, अभी तो तुम फूले नहीं समा रहे हो, अभी तो तुम घास पर कलोर की तरह उछल-कूद रहे हो, अभी तो तुम अड़ियल घोडे की तरह हिनहिना रहे हो,
12) किन्तु तुम्हारी माता को बहुत अपमानित होना पड़ेगा, तुम्हारी जननी को लज्जित होना पडेगा। राष्ट्रों में उसका स्थान सब से नीचे हो जायेगा- एक सूखी उजाड़ मरुभूमि!
13) प्रभु के कोप के कारण वह कभी बस नहीं पायेगी, बल्कि वह बिलकुल उजाड़खण्ड हो जायेगी। जो कोई बाबुल से हो कर गुजरेगा, वह भयभीत हो जायेगा और उसके घावों के कारण उसकी हँसी उड़ायेगा।
14) ''धनुर्धरगण! बाबुल के चारों ओर पंक्तिबद्ध हो जाओ। उस पर सन्धान करो, तीर चलाने में कमी मत करो, क्योंकि उसने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है।
15) उसे चारों ओर से ललकारो। उसने हार मान ली है; उसके खम्भे गिर गये हैं; उसकी दीवारें ढह गयी है। यह प्रभु का प्रतिशोध है। तुम उस से बदला लो। उसने जो किया है, वही उसके साथ करो।
16) बोआई करने वाले को बाबुल से दूर कर दो और उस को, जो फ़सल के समय हँसिया चलाता है। अत्याचारी की तलवार के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने लोगों के पास लौट जायेगा और प्रत्येक व्यक्ति अपने देश भाग जायेगा।
17) इस्राएल भटकी हुई भेड़ थी, जिसका पीछा सिंह कर रहे थे। पहले उसे अस्सूर का राजा खा गया और अब अन्त में बाबुल का राजा नबूकदनेजर उसकी हड्डियाँ चबा रहा है।''
18) इसलिए विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है : ''देखो, जैसे मैंने अस्सूर के राजा को दण्ड दिया था, वैसे ही मैं बाबुल के राजा और उसके देश को दण्ड देने जा रहा हूँ।
19) किन्तु मैं इस्राएल को उसके चरागह में लौटा लाऊँगा और वह करमेल पर और बाशान में चरेगा और एफ्राईम की पहाड़ियों और गिलआद में चर कर वह तृत्प हो जायेगा।
20) प्रभु कहता है : उन दिनों, उस समय इस्राएल में दोष ढूँढे जायेंगे और कोई दोष नहीं मिलेगा; यूदा के पाप खोजे जायेंगे और कोई पाप नहीं मिलेगा; क्योंकि मैं उन्हें क्षमा करूँगा, जिन्हें मैंने अवशेष के रूप में छोड़ दिया है।''
21) ''मरातईम देश पर आक्रमण करो और पेकोद के निवासियों पर। उन्हें मारो और पूरी तरह नष्ट कर दो- प्रभु यह कहता है- और मैंने तुम्हें जो-जो आदेश दिये हैं, उनका पालन करो।
22) देश में युद्ध का कोलाहल और घोर विपत्ति!
23) समस्त पृथ्वी का यह हथौड़ा कैसे टूट कर चूर-चूर हो गया है? कैसे यह बाबुल राष्ट्रों के बीच घृणा का पात्र बन गया है?
24) बाबुल! मैंने तुम्हारे लिए फँन्दा डाला और तुम फँस गये, और तुम को पता भी न चला। तुहें ढँूढ़ कर पकड़ लिया गया, क्योंकि तुमने प्रभुु को ललकारा था।
25) प्रभु ने अपना शस्त्रागार खोल दिया है और अपने क्रोध के अस्त्र निकाल लिये हैं, क्योंकि विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर को खल्दैयियों के देश में काम करना है।
26) उस पर हर ओर से आक्रमण करो। उसके अन्न-भण्डार खोल दो। उसे अनाज के ढ़ेरों की तरह जमा कर दो और पूरी तरह नष्ट कर दो। उसका कुछ भी शेष न रहने दो।
27) उसके सारे साँड़ मार डालो। उन्हें वध करने ले जाओ। उन पर शोक, क्योंकि उसका दिन, उनके दण्ड का समय आ गया है!
28) सुनो, सियोन में प्रभु, हमारे ईश्वर के प्रतिशोध, अपने मन्दिर के लिए उसके प्रतिशोध की घोषणा करने वे लोग आ रहे हैं, जो बाबुल देश से बच कर भागे हैं!
29) ''धनुर्धरों को, सब धनुष खींचने वालों को बाबुल के विरुद्ध एकत्रित करो। उसके चारों ओर पडाव डालो। किसी को बच कर निकलने मत दो। उसके कर्मों के अनुसार उसका बदला चुकाओ। उसने जो सब किया है, वैसा ही उसके साथ करो; क्योंकि उसने प्रभु, इस्राएल के परममावन की गर्व की अवहेलना की है।
30) इसलिए उसके नवयुवक उसके चौराहों पर गिर जायेंगे और उसके सभी सैनिक उस दिन नष्ट हो जायेंगे। यह प्रभु की वाणी है।''
31) विश्वमण्डल का प्रभु-ईश्वर कहता हैः ''अहंकारी! मैं तुम्हारे विरुद्ध हो गया हूँ: क्योंकि तुम्हारा दिन आ गया है, वह समय, जब मैं तुम्हें दण्ड दूँगा।
32) अहंकारी ठोकर खा कर गिर पडेगा, उसे कोई नहीं उठायेगा। मैं उसके नगरों में आग लगा दूँगा और वह उसके आसपास का सब कुछ जला देगी।''
33) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है : ''इस्राएल के लोग पददलित हैं और उनके साथ यूदा के लोग भी। जिन लोगों ने उन्हें बन्दी बनाया, वे उन्हें जकड़े हैं- वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहते।
34) किन्तु उसका उद्धारक शक्तिशाली है। उसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है। निश्चत ही वह उसका पक्ष लेगा, जिससे वह पृथ्वी को शान्ति, किन्तु बाबुल के निवासियों को अशान्ति प्रदान करे।''
35) प्रभु कहता है; ''खल्दैयियों पर तलवार और बाबुल के निवासियों और उसके पदाधिकारियों तथा बुद्धिमानों पर भी!
36) शकुन-विचारकों पर तलवार, जिससे वे मूर्ख बन जायें! योद्धाओं पर तलवार, जिससे वे भयभीत हो जायें!
37) उसके घोड़ों और रथों पर तलवार और उसके यहाँ के समस्त विदेशी सैनिकों पर भी, जिससे वे स्त्रियों-जैसे हो जायें! उसके सभी कोषागारों पर तलवार, जिससे वे लूटे जायें!
38) उसके जलाशयों पर सूखा, जिससे वे सूख जायें! क्योंकि वह देवमूर्तियों का देश है और लोग घृणित प्रतिमाओं के पीछे पागल हैं!
39) ''इसलिए वहाँ बनबिलाव और लकडबग्धे निवास करेंगे और वहाँ शुतुरमुर्ग रहा करेंगे। वहाँ कभी मनुष्य निवास नहीं करेंगे। उस में युग-युग तक कोई नहीं बसेगा।''
40) प्रभु कहता हैः ''जैसा ईश्वर द्वारा सोदोम और गोमोरा और उसके आसपास के नगरों का विनाश होने पर हआ था, वैसे ही वहाँ कोई मनुष्य नहीं रहेगा। और कोई मानव-सन्तान वहाँ नहीं रुकेगी।
41) ''देखो उत्तर से एक जाति आ रही है। एक शक्तिशाली राष्ट्र और अनेक राजा पृथ्वी के सीमान्तों से चले आ रहे हैं।
42) वे धनुष और बरछा लिये हुए हैं। वे क्रूर हैं, वे दया नहीं जानते हैं। उनका कोलाहल समुद्र के गर्जन की तरह है। वे घोड़ों पर सवार हैं। बाबुल की पृत्री! वे तुम से युद्ध करने संयुक्त रूप से तैयार हैं।
43) बाबुल के राजा ने उनके विषय में सुना है और उसकी भुजाएँ सुन्न हो गयी हैं। प्रसवकालीन स्त्री की पीड़ा-जैसी वेदना ने उसे ग्रस लिया है।
44) देखो, यर्दन के जंगल से सदाबहार चरागाह पर आक्रमण करने वाले सिंह की तरह मैं वहाँ से उन को अचानक भगा दूँगा। मैं जिसे चाहूँगा, उसे उस पर नियुक्त करूँगा; क्योंकि मेरे सदृश कौन हैं? कौन मुझ से उत्तर माँगेगा? मेरे सामने कौन चरवाहा टिक पायेगा?
45) इसलिए प्रभु-ईश्वर ने बाबुल के विरुद्ध जो योजना बनायी है और खल्दैयियों के देश के विरुद्ध जो लक्ष्य तय किये हैं, उन्हें सुनो। निश्चय ही उनके रेवड़ की छोटी भेंड़ें घसीट ली जायेंगी। निश्चय ही उनका चरागाह भयभीत हो जायेगा।
46) बाबुल पर विजय के कोलाहल से पृथ्वी काँप उठेगी और उसका चीत्कार राष्ट्रों में सुनाई देगा।''

अध्याय 51

1) प्रभु यह कहता है : ''देखो, मैं बाबुल के विरुद्ध खल्दैयावासियों के विरुद्ध एक विनाशकारी बवण्डर उठाऊँगा।
2) मैं ओसाने वालों को बाबुल भेजूँगा और वे उस को ओसायेंगे और जब उसके संकट के दिन वे उसे हर ओर से घेंरेगे, तो उसका देश ख़ाली कर देंगे।
3) धनुर्धर को अपना धनुष मत तानने दो और उसे अपना कवच पहन कर खडा मत होने दो। उसके नवयुवकों को जीवित मत छोड़ो। उसकी समस्त सेना का विनाश कर दो।
4) वे खल्दैयियों के देश में मारे जा कर और उसकी सड़कों पर घायल हो कर गिर जायेंगे;
5) क्योंकि इस्राएल और यूदा का परित्याग उनके ईश्वर, विश्वमण्डल के प्रभु ने नहीं किया है, बल्कि खल्दैयियों का देश इस्राएल के परमपावन के विरुद्ध किये गये पापों से भर गया है।
6) ''बाबुल से भाग जाओ। हर आदमी अपने प्राणों की रक्षा करे। उसके दण्ड में अपना विनाश मत होने दो; क्योंकि यह घड़ी प्रभु के प्रतिशोध की है। वह उस से बदला चुका रहा है।
7) प्रभु के हाथें में बाबुल सोने का एक प्याला था, जो समस्त पृथ्वी को मतवाला बना देता था। राष्ट्रों ने उसकी मदिरा पी थी, इसलिए राष्ट्र पागल हो गये थे।
8) बाबुल अचानक गिर पड़ा है और चकनाचूर हो गया है। उसके लिए विलाप करो। उसके दर्द के लिए मरहम लाओ। हो सकता हैं, वह चंगा हो जाये।
9) हम बाबुल को चंगा करना चाहते थे, लेकिन वह चंगा नहीं हुआ। उसे छोडो; हम चलें- हर आदमी अपने-अपने देश चले; क्योंकि उसक दण्ड आसमान छू रहा है, वह आकाश तक पहुँच गया है।
10) प्रभु ने हमारी धार्मिकता प्रकट कर दी है। आओ, हम सियोन में अपने प्रभु-ईश्वर के कार्य का बखान करें।
11) ''तीर तेज कर लो। अपनी ढाल उठा लो। प्रभु ने मेदिया के राजाओं को उत्तेजित कर दिया है; क्योंकि उसका उद्देश्य बाबुल का विनाश करना है। यह प्रभु का प्रतिशोध है, उसके मन्दिर का प्रतिशोध।
12) बाबुल के प्राचीरों के विरुद्ध झण्डा उठा लो, पहरा कड़ा कर दो। पहरेदारों को नियुक्त करो, घात से आक्रमण की तैयारी करो; क्योंकि प्रभु ने यह योजना बना ली और वह कर दिया है, जो वह बाबुल के निवासियों के विषय में बोला था।
13) तुम, जो अनेकानेक जलाशयों के किनारे रहते हो, जो धनकोषों से परिपूर्ण हो! तुम्हारा अन्त आ गया है, तुम्हारी लूट के धन का अन्त है।
14) विश्वमण्डल के प्रभु ने अपनी शपथ खायी हैः 'मैं तुम्हें टिड्डों की तरह लोगों से भर दूँगा और वे तुम पर जयघोष करेंगे'।
15) ''यह वही है, जिसने अपने सामर्थ्य से पृथ्वी बनायी, जिसने अपनी प्रज्ञा से संसार को उत्पन्न किया और अपने विवेक से आकाश फैलाया।
16) जब वह गरजता है, तो आकाश से मूसलाधार वर्षा होती है। वह पृथ्वी के सीमान्तों से बादल बुलाता है। वह वर्षा के साथ बिजली चमकाता और अपने भण्डारों से पवन बहाता है।
17) मनुष्य चकित रह जाते और नहीं समझ पाते हैं। सोनार अपनी मूर्ति पर लज्जित है। उसकी मूर्तियाँ मिथ्या हैं। उन में प्राण नहीं हैं।
18) वे असार हैं और उपहास के पात्र है। दण्ड का समय आने पर वे नष्ट हो जायेंगी।
19) किन्तु याकूब का ईश्वर ऐसा नहीं है। वह सभी वस्तुओं की सृष्टि करता है और इस्राएल उसकी अपनी विरासत है। उसका नाम सर्वशक्तिमान् प्रभु है।
20) ''तू ही मेरा हथौड़ा और युद्धास्त्र है। मैं तुझ से राष्ट्रों को तोड़ता हूँ। मैं तुझ से राज्यों का विनाश करता हूँ।
21) मैं तुझ से घोड़े और सवार को तोड़ता हूँ। मैं तुझ से रथ और रथारोही को तोड़ता हूँ।
22) मैं तुझ से पुरुष और स्त्री को तोड़ता हूँ। मैं तुझ से बूढे और जवान को तोड़ता हूँ। मैं तुझ से युवक और युवती को तोड़ता हूँ।
23) मै तुझ से चरवाहे और रेवड़ को तोड़ता हूँ। मैं तुझ से किसान और उसके बैलों को तोड़ता हूँ। मैं तुझ से क्षत्रपों और सेनापतियों को तोड़ता हूँ।
24) मैं बाबुल और खल्दैयिा के सभी निवासियों को उन सब अपराधों के लिए, जो उन्होंने सियोन के विरुद्ध किये गये हैं, तुम लोगों की आँखों के सामने दण्ड दूँगा। यह प्रभु की वाणी है।
25) विनाशकारी पर्वत, जो सारी पृथ्वी का संहार करते हो! देखों, मैं तुम्हारे विरुद्ध हो गया हूँ।'' यह प्रभु की वाणी है। ''मैं अपनी भुजा तुम्हारी ओर बढ़ाऊँगा और तुम्हें शिखरों पर से नीचे लुढकाऊँगा और तुम को जला हुआ पर्वत बना दूँगा।
26) तुम में से एक भी पत्थर न तो कोने के लिए और न एक भी पत्थर नींव के लिए लिया जायेगा, बल्कि तुम सदा के लिए उजाड़ हो जाओगे।'' यह प्रभु की वाणी है।
27) ''एक झण्डा भूमि पर गाड़ दो। राष्ट्रों में तुरही बजा दो। उसके विरुद्ध राष्ट्रों को अर्पित करो। उसके विरुद्ध राज्यों को आह्वान करो- अराराट, मिन्नी और अशकेनज का। उसके विरुद्ध सेनानायक नियुक्त करो; घोड़ों को झलमल टिड्डियों की तरह उस पर आक्रमण करने दो।
28) उसके विरुद्ध राष्ट्रों को अर्पित करो- अपने क्षत्रपों और अधिपतियों और अपने राज्य के प्रत्येक देश के साथ मोदिया के राजाओं को।
29) भूमि काँपती और छटपटाती है; क्योंकि बाबुल के विषय में प्रभु की योजनाएँ पूरी हो रही हैं, बाबुल देश को उजाड़ और निर्जन बनाने की।
30) बाबुल के योद्धाओं ने लडाई छेड़ दी है। वे अपने दुगोर्ं में छिप गये हैं। उनका साहस छूट गया है। वे स्त्रियों-जैसे हो गये हैं। उसके घर जल रहे हैं। उसके फाटकों की अर्गलाएँ टूट गयी हैं।
31) एक संन्देशवाहक दूसरे सन्देशवाहक से मिलने के लिए दौड़ रहा है और एक दूत दूसरे दूत से मिलने के लिए, दौड़ रहा है, जिससे वह बाबुल के राजा को यह सूचना दे कि उसके नगर पर चारों ओर से अधिकार कर लिया गया हैं,
32) घाटों पर अधिकार कर लिया गया है, बुजोर्ं में आग लगा दी गयी है और सैनिकों में भगदड़ मची हुई है;
33) क्योंकि विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ''बाबुल की पुत्री दाँवनी के समय के खलिहान-जैसी हो गयी है; जब कि कुछ ही घड़ी बीतने को है और उसकी कटनी का समय आ जायेगा'।''
34) ''बाबुल का राजा नबूकदनेजर मुझे खा गया है। वह मुझे निगल गया है। उसने मुझे ख़ाली बरतन बना दिया है। वह मुझे पंखदार सर्प की तरह निगल गया है। उसने मेरे स्वादिष्ट मांस से अपना पेट भर लिया है और मुझे उगल दिया है।
35) सियोन के निवासी यह कहें- 'मुझ पर और मेरे कुटुम्बियों पर किया गया अत्याचार बाबुर के सिर पड़े! येरुसालेम यह बोले- 'मेरा रक्त खल्दैयावासियों के सिर पडे!''
36) इसलिए प्रभु यह कहता हैः ''देखों, मैं तुम्हारा पक्ष लूँगा और तुम्हारा बदला चुकाऊँगा। मैं उसका समुद्र सुखा दूँगा और उसका जलस्रोत सूखने दूँगा;
37) और बाबुल खँडहरों का ढेर हो जायेगा, गीदड़ों की माँद, विनाश और उपहास का पात्र। वहाँ कोई नहीं रहेगा।
38) वे मिल कर युवा सिंहों की तरह गरजेंगे, शेरनी के बच्चों की तरह गुर्रायेंगे।
39) जब वे उत्तेजित होंगे, तो मैं उनके लिए भोजन तैयार करूँगा और उन्हें इतना अधिक पिलाऊँगा कि वे उन्मत्त हो जायेंगे और चिरनिद्रा में सो जायेंगे और कभी नहीं जगेंगे। यह प्रभु की वाणी है।
40) मैं उन को मेमनों की तरह, मेढों और बकरों की तरह कसाईखाना ले जाऊँगा।
41) ''शेशक किस तरह अधिकार में आ गया है, समस्त पृथ्वी का गौरव पराजित हो गया है! बाबुल किस तरह राष्ट्रों के बीच आतंक का पात्र बन गया है!
42) समुद्र बाबुल पर चढ़ आया है, वह गरजती लहरों से ढँक गया है।
43) उसके नगर उजाड़ हो गये हैं। वह निर्जल देश और मरूभूमि बन गया है, वह देश, जहाँ कोई नहीं रहता और जिस से हो कर कोई नहीं जाता।
44) ''मैं बाबुल में बेल को दण्ड दूँगा और उसने जो निगला है, उसके मुँह से उगलवाऊँगा। राष्ट्र उसके पास फिर कभी भीड़ नहीं लगायेंगे। बाबुल की चारदीवारी ढह गयी है।
45) मेरी प्रजा! उसके यहाँ से बाहर चली जाओ। हर व्यक्ति प्रभु के प्रचण्ड क्रोध से अपने प्राणों की रक्षा करे।
46) देश में सुनी गयी अफ़वाह से- जब एक वर्ष एक अफ़वाह फैलती हो और फिर दूसरे वर्ष दूसरी अफ़वाह, और देश में हिंसा छा गयी हो और एक शासक दूसरे शासक के विरुद्ध हो गया हो, तो हिम्मत मत हारो, भयभीत मत हो।
47) ''किन्तु देखो, वे दिन आयेंगे, जब मैं बाबुल की देवमूर्तियों को दण्ड दूँगा। उसका सारा देश अपमानित किया जायेगा और उसके सभी मारे हुए लोग उसके भीतर गिर कर पड़े रहेंगे।
48) तब आकाश और पृथ्वी और जो कुद उन में है, बाबुल की दशा पर प्रसन्न हो कर गाने लगेंगे; क्योंकि उसका विनाश करने वाले उस पर आक्रमण करने के लिए उत्तर से आयेंगे। यह प्रभु की वाणी है।
49) इस्राएल के मारे हुए लोगों के कारण बाबुल का निश्चय ही पतन होगा, जैसे बाबुल के कारण पुथ्वी भर के मारे हुए लोग नीचे गिरे थे।
50) तुम लोग, जो तलवार से बच निकले हो, चलते रहो, मत रुको। दूर रह कर भी प्रभु का स्मरण करते रहो और अपने मन में येरुसालेम की याद बनाये रहो।
51) हम लज्जित थे, क्योंकि हम अपमानित हुए थे। हमारा चेहरा शर्म से भर गया था; क्योंकि प्रभु के मन्दिर के पवित्र स्थानों में विदेशियों ने प्रवेश किया था।''
52) प्र्रभु कहता हैः ''किन्तु देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब मैं उसकी देवमूर्तियों को दण्ड दूँगा और उसके देश भर में घायलों की कराह सुनाई देगी।
53) भले ही बाबुल आकाश तक पहुँच जाये, भले ही वह अपनी ऊँची चारदीवारी को दुर्गम बना ले, तब भी मेरे भेजे हुए विनाशकर्ता उस पर आक्रमण करने आयेंगेे। यह प्रभु की वाणी है।
54) ''सुनो-बाबुल से आने वाला चीत्कार! खल्दैयियों के देश से महाविध्वंस का कोलाहल!
55) क्योंकि प्रभु बाबुल को उजाड़ रहा है और उसकी ऊँची बोली बन्द कर रहा है। उसकी तरंग अनेक जलधाराओं की तरह गरज रही है, उसकी ध्वनियों का कोलाहल बढ़ गया है;
56) क्योंकि उस पर, बाबुल पर एक विनाशकर्ता चढ़ आया है। उसके योद्धा बन्दी बना लिये गये हैं, उनके धनुष तोड़ दिये गये हैं; क्योंकि प्रभु प्रतिफल देने वाला ईश्वर है। वह निश्चय ही बदला चुकायेगा।
57) मैं उसके राज्यपालों और बुद्धिमानों को, उसके क्षत्रपों, उसके पदाधिकारियों और उसके सौनिकों को मदमत्त बना दूँगा। वे चिरनिद्रा में सो जायेंगे और फिर नहीं जगेंगे। यह उस राजा की वाणी है, जिसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है।''
58) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः ''महान् बाबुल की चारदीवारी तोड़ दी जायेगी और उसके ऊँचे प्रवेशद्वार जला दिये जायेंगे। इस प्रकार लोगों ने व्यर्थ ही परिश्रम किया होगा। राष्ट्रों को थकाने वाला परिश्रम जल कर भस्म हो जायेगा।''
59) यह वह आदेश है, जो नबी यिरमियाह ने महसेया के बेटे नेरीया के पुत्र सराया को उस समय दिया था, जब वह यूदा के राजा सिदकीया के साथ, उसके राज्य के चौथे वर्ष, बाबुल गया था। सराया उसका प्रधान प्रबंधक था।
60) यिरमियाह ने बाबुल पर आने वाली सभी विपत्तियों को एक-पुस्तक में लिख लिया था- उन सारी बातों को, जो बाबुल के विषय में लिखी है।
61) यिरमियाह ने सराया से यह कहा था, ''जब तुम बाबुल पहुँचोगे, तो तुम ये सभी बातें पढ़ कर सुना दोगे।
62) और यह बोलोगे- प्रभु! तूने इस स्थान के विषय में कहा है कि इसका इस प्रकार विनाश हो जायेगा कि इस में मनुष्य या पशु, कोई भी निवास नहीं करेगा और यह सब दिनों के लिए उजाड़ हो जायेगा'।
63) यह पुस्तक पढ़ कर समाप्त करने के बाद तुम इस में एक पत्थर बांध दोगे और इसे फ़रात में फेंक दोगे
64) तथा यह कहोगे, 'इसी तरह बाबुल भी डूब जायेगा और मैं इस पर जो विपत्ति ढाने जा रहा हूँ, उसके कारण यह फिर कभी ऊपर नहीं उठेगा'।'' यहाँ तक यिरमियाह के वचन।

अध्याय 52

1) जब सिदकीया राजा बना, तो वह इक्कीस वर्ष का था। उसने येरुसालेम में ग्यारह वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम हमूटल था। वह लिबनावासी यिरमिया की पुत्री थी।
2) उसने यहोयाकीम की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
3) येरुसालेम और यूदा पर प्रभु इतना क्रुद्ध था कि उसने इन्हें अपने सामने से दूर करने का निश्चय किया। उस समय सिदकीया ने बाबुल के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया।
4) उसके शासनकाल के नौवें वर्ष, दसवें महीने के दसवें दिन, बाबुल का राजा नबूकदनेजर अपनी समस्त सेना के साथ येरुसालेम पर आक्रमण करने आया।
5) यह घेराबन्दी सिदकीया के राज्यकाल के दसवें वर्ष तक बनी रही।
6) (६-७) उस वर्ष के चौथे महीने के नौवें दिन नगर की चारदीवारी में दरार की गयी; क्योंकि नगर में अकाल पड़ा था और खाने के लिए लोगों के पास कुछ नहीं रह गया था। यद्यपि खल्दैयी नगर के चारों ओर पड़े हुए थे, फिर भी सब सैनिक राजकीय उद्यान की दो दीवारों के बीच वाले फाटक से, रात को, नगर से बाहर निकले और अराबा की ओर भाग गये।
8) खल्दैयी सैनिकों ने राजा का पीछा किया और येरीखो के मैदान में सिदकीया को पकड़ लिया। उसकी सारी सेना उसे छोड़ कर तितर-बितर हो गयी।
9) उन्होंने राजा को बन्दी बना लिया और वे उसे बाबुल के राजा के यहाँ हमात देश के रिबला ले आये तथा उसने उसे दण्डाज्ञा दी।
10) उसने सिदकीय के पुत्रों को अपने-सामने मरवा डाला और यूदा के सभी राज्याधिकारियों का भी वध रिबला में करवा दिया।
11) उसने सिदकीया की आँखें निकलवा दीं और उसे काँसे की बोड़ियों में बँधवा दिया। बाबुल का राजा उसे बाबुल ले गया और उसे मृत्यु के दिन तक बन्दीगृह में रखा।
12) बाबुल के राजा नबूकदनेजर के राज्यकाल के उन्नीसवें वर्ष, पाँचवें महीने के दसवें दिन, अंगरक्षकों के नायक और बाबुल के राजा के सेनापति नबूजरअदान ने येरुसालेम में प्रवेश किया।
13) उसने प्रभु का मन्दिर, राजा का महल और येरुसालेम के सब घर जला दिये। उसने येरुसालेम के सब बड़े भवन भस्म कर दिये।
14) अंगरक्षकों के नायक के साथ जो खल्दैयी सेना आयी थी, उसने येरुसालेम की चारदीवारी गिरा दी।
15) नगर के कुछ सब से ग़रीब लोगों को, नगर में छूट गये निवासियों को, जो लोग बाबुल के राजा के समर्थक बन गये थे और जो भी कारीगर शेष रह गये थे, उन सबों को अंगरक्षकों के नायक नबूजरअदान ने निर्वासित किया।
16) किन्तु रक्षादल के नायक नबूजरअदान ने देश के कुछ सब से ग़रीब लोगों को दाखबारियों और खेतों में काम करने के लिए छोड़ दिया।
17) खल्दैयियों ने प्रभु के मन्दिर के काँसे के खम्भे तथा प्रभु के मन्दिर के ठेले और काँसे का हौज टूकडे-टुकडे कर दिये और उनका कांसा बाबुल ले गये।
18) वे बरतन, फावड़ियाँ, कैचियाँ, छिडकाव-पात्र, कटोरे और काँसे के सब सामान ले गये, जो मन्दिर की सेवा के काम आते थे।
19) रक्षादल का नायक प्याले, धूपदान, छिडकाव-पात्र, बरतन, दीपाधार, कटोरे और इत्रदान भी, जो सोने और चांदी के बने थे, उठा कर ले गया।
20) सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए जो दो खम्भे, हौज, उसके नीचे अवस्थित काँसे के बारह साँड़ और ठेले बनवाये थे, उनके काँसे का बजन इतना अधिक था कि तौला नहीं जा सकता था।
21) जहाँ तक खम्भों का सम्बन्ध है, हर खम्भे की ऊँचाई अठारह हाथ थी, उसकी परिधि बारह हाथ और उसकी मोटाई चार अंगुल थी और वह खोखला था।
22) उसके ऊपर काँसे का शीर्ष था प्रत्येक शीर्ष की ऊँचाई पाँच हाथ थी। स्तम्भ-शीर्ष के चारों ओर काँसे की जाली और अनार थे। दूसरा खम्भा भी ठीक इसी तरह का था।
23) अलग-अलग किनारों पर उभारदार अनारों की संख्या छियानबे थी। चारों ओर जाली पर लगे अनारों की कुल संख्या सौ थी।
24) अंगरक्षकों के नायक ने प्रधानयाजक सराया, दूसरे याजक सफन्या और तीन द्वारपालों को,
25) एक ख़ोजा को, जो सैनिकों का प्रधान था और राजा के सात मन्त्रियों को भी, जो उस समय नगर में उपस्थित थे, बन्दी बनाया और इनके अतिरिक्त सेनापति के सचिव को, जिसने लोगों को सेना में भरती किया था और देश के साठ व्यक्तियों को, जो उस नगर में उपस्थित थे।
26) अंगररक्षकों के नायक नबूजरअदान ने उन्हें बाबुल के राजा के पास रिबला भेज दिया।
27) बाबुल के राजा ने उन्हें हमात प्रांत के रिबला में मरवा डाला। इस प्रकार यूदा के लोगों को अपने देश से निर्वासित किया गया
28) नबूकदनेजर जिन लोगों को बंदी बना कर ले गया, उनकी संख्या इस प्रकार है : सातवें वर्ष तीन हजार तेईस यहूदी;
29) नबूकदनेजर के अठारहवें वर्ष वह येरुसालेम से आठ सौ बत्तीस लोगों को बन्दी बना कर ले गया;
30) नबूकदनेजर के तेईसवें वर्ष रक्षादल का नायक नबूजरअदान यहूदियों में सात सौ पैंतालीस व्यक्तियों को बन्दी बना कर ले गया। इस सब लोगों की संख्या चार हजार छः सौ थी।
31) यूदा के राजा यहोयाकीन के निर्वासन के सैतीसवें वर्ष, बारहवें महीने के पच्चीसवें दिन, बाबुल के राजा एवील-मरोदाक ने अपने राज्यारोहण के वर्ष यूदा के राजा यहोयाकीन को क्षमा कर दिया और उसे बन्दीगृह से मुक्त कर दिया।
32) उसने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया और बाबुल में अपने साथ रहने वाले राजाओं में उसे सर्वोच्च आसन दिया।
33) यहोयाकीन ने अपने क़ैदी वस्त्र उतारे और वह अपने जीवन भर प्रतिदिन राजा के यहाँ भोजन करता रहा।
34) जब तक वह जीवित रहा, उसे मृत्यु के दिन तक राजा द्वारा उसकी दैनिक आवश्यकता के अनुसार नियमित भत्ता दिया जाता रहा।