पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

लेवी ग्रन्थ ( Leviticus )

अध्याय 1

1) प्रभु ने मूसा को बुलाया और दर्षन-कक्ष से उस से यह कहा, इस्राएलियों से यह कहो -
2) जब तुम में कोई प्रभु को चढ़+ावा अर्पित करना चाहे, तो वह ढोरों या भेड़-बकरियों के झुण्डों से कोई पशु ले आ सकता है।
3) जब कोई होम-बलि के रूप में ढोरों से एक पशु चढ़ाना चाहे, तो उसे एक अदोष नर ही चढ़ाना चाहिए। वह उसे दर्षन-कक्ष के द्वार पर ला कर चढ़ाये, जिससे वह प्रभु को ग्राह्य हो। वह बलि पषु पर अपना हाथ रखे।
4) इस प्रकार वह उसके पापों का प्रायष्चित के लिए प्रभु को ग्राह् होगा।
5) तब वह प्रभु के सामने बछड़े का वध करे और याजक, हारून के पुत्र उसका रक्त चढ़ायें। वे उसका रक्त दर्षन-कक्ष के द्वार पर वेदी के चारों ओर छिड़कें।
6) फिर वह उस बलि-पशु की खाल निकाले और उसे टुकड़े-टुकड़े कर दे।
7) याजक, हारून के पुत्र वेदी पर अग्नि लायें और उस अग्नि पर लकड़ी रखें।
8) इसके बाद याजक, हारून के पुत्र वे टुकड़े, सिर और चरबी के साथ वेदी पर जलती लकड़ी पर रखें।
9) चढ़ाने वाला अँतड़ियों और टाँगों को जल से धो दे और याजक सब कुछ वेदी पर जलाये। यह होम-बलि सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
10) जब कोई होम बलि के रूप में भेड़-बकरियों में से एक पशु चढ़ाना चाहे, तो वह उसी प्रकार एक अदोष नर ले आये।
11) वह वेदी के उत्तर में प्रभु के सामने उसका वध करे और याजक, हारून के पुत्र वेदी के चारों और उसका रक्त छिड़के।
12) वह उसके टुकड़े-टुकड़े कर दे और याजक वे टुकड़े, सिर और चरबी के साथ वेदी पर जलती लकड़ी पर रखे।
13) वह अँतड़ियों और टाँगों को जल से धो दे और याजक सब कुछ वेदी पर जलाये। यह होम-बलि सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
14) जब कोई होम-बलि के रूप में प्रभु को एक पक्षी चढ़ाना, तो पण्डुकों या कबूतरों में से एक ले आये।
15) याजक उसे वेदी पर ला कर उसका सिर काटे और उसे वेदी पर जलाये। उसका रक्त वेदी की बगल से बह जायेगा।
16) याजक उसकी गलथैली काट कर, उसे और उसमें जो कुछ है, वेदी के पूर्व में, जहाँ राख डाली जाती है, फेंक दे।
17) फिर वह उसे पंखों के बीच से फाड़ दे, पर पंखों को अलग नहीं करे। इसके बाद याजक उसे वेदी पर जलती लकड़ी में भस्म कर दे। यह होम-बलि सुगन्धयुक्त चढ़वा है, जो प्रभु को प्रिय है।

अध्याय 2

1) जब कोई प्रभु को अन्न-बलि चढ़ाता है, तो वह मैदे की बनी हो।
2) वह उस पर तेल डाले और लोबान भी साथ रखे। फिर वह उसे याजकों, हारून के पुत्रों के पास ले जाये। याजक उस में से मुट्ठी भर तेल मिश्रित मैदा और सारा लोबान निकाल कर उसे पूरे चढ़ावे के प्रतीक के रूप में जला दे। यह होम-बलि सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
3) चढ़ावे का शेष भाग हारून और उसके पुत्रों का होगा यह प्रभु को अर्पित होम-बलियों में परम पवित्र है।
4) जब तुम भट्ठी में पकायी हुई अन्न बलि चढ़ाना चाहते हो, तो वह मैदे की बनी हो। वह तेल-मिश्रित बेख़मीर रोटियों की हो अथवा तेल से चुपड़ी हुई चपातियों की।
5) जब तुम तवे पर सेंकी हुई अन्न बलि चढ़ाना चाहते हो, तो वह तेल-मिश्रित बेख़मीर मैदे की बनी हो।
6) उसके टुकड़े-टुकड़े कर उस पर तेल डालो। यह अन्न बलि है।
7) जब तुम कड़ाही में तली हुई अन्न-बलि चढ़ाना चाहते हो, तो वह मैदे और तेल की बनी हो।
8) इस प्रकार की अन्न-बलि प्रभु के पास लाओ और उसे याजक को दो, जो उसे वेदी के पास ले जायेगा।
9) याजक पूरे चढ़ावे के प्रतीक के रूप में उसका एक अंष निकाल कर वेदी पर भस्म कर देगा। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
10) अन्न-बलि का शेष भाग हारून और उसके पुत्रों का होगा। वह प्रभु को अर्पित होम-बलियों में परम-पवित्र है।
11) प्रभु को अर्पित सब होम-बलियाँ बेख़मीर हों। प्रभु को अर्पित होम-बलियों में कोई ख़मीर या मधु मत जलाओ।
12) तुम प्रथम फलों के रूप में इन में से कुछ प्रभु को अर्पित कर सकते हो, किन्तु वे सुगन्धयुक्त चढ़ावे के रूप में वेदी पर नहीं चढ़ाये जा सकते हैं।
13) तुम अपनी सब अन्न-बलियों में नमक डालो। अपनी अन्न बलियों पर अपने ईष्वर के विधान का नमक नहीं भुलाओं; तुम अपने सब चढ़ावों के साथ नमक भी अर्पित करो।
14) जब तुम अपने प्रथम फलों से प्रभु को अन्न-बलि अर्पित करते हो, तो नयी फ़सल की बालों को काट कर और उन्हें अग्नि में भून कर अर्पित करो।
15) उसके साथ तेल और लोबान भी दे सकते हो। यह अन्न बलि है।
16) याजक पूर्ण चढ़ावे के प्रतीक के रूप में अन्न और तेल का कुछ अंश निकाल कर उसे सारे लोबान के साथ जलाये। यह प्रभु को अर्पित होम-बलि है।

अध्याय 3

1) यदि कोई शान्ति-बलि के रूप में ढोरों से एक पशु चढ़ाता है, तो वह नर या मादा चढ़ा सकता है, किन्तु वह अदोष हो।
2) वह अपना हाथ बलि पशु के सिर पर रखे और दर्षन-कक्ष के द्वार पर उसका वध करे। याजक, हारून के पुत्र उसका रक्त वेदी के चारों ओर छिड़कें।
3) फिर वह शान्ति-बलि का एक अंष प्रभु को चढ़ाये, अर्थात् अँतड़ियों के आसपास की सारी चरबी,
4) दोनों गुरदे तथा उन पर और कमर के पास की चरबी तथा जिगर की झिल्ली, जिसे वह गुरदों के साथ निकालेगा।
5) याजक, हारून के पुत्र शान्ति-बलि के साथ यह सब वेदी पर जलती लकड़ी में भस्म करें। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
6) यदि कोई शान्ति-बलि के रूप में भेड़ बकरियों में से प्रभु को एक पषु चढ़ाना चाहे, तो वह नर या मादा चढ़ा सकता है, किन्तु वह अदोष हो।
7) यदि वह बलि के रूप में एक मेमना चढ़ाये, तो वह उसे प्रभु के सामने लाये
8) और उस बलि-पशु के सिर पर अपना हाथ रख कर दर्षन-कक्ष के सामने उसका वध करे। हारून के पुत्र उसका रक्त वेदी के चारों ओर छिड़के।
9) फिर वह शान्ति-बलि की चरबी प्रभु को अर्पित करे - चरबी-श्री मोटी पूँछ, अँतड़ियों के आसपास की चरबी,
10) दोनों गुरदे तथा उन पर और कमर के पास की चरबी तथा जिगर की झिल्ली, जिसे वह गुरदों के साथ निकालता है।
11) याजक यह सब भस्म करे। यह प्रभु को अर्पित आहार है।
12) यदि कोई बलि के रूप में एक बकरी चढ़ाये, तो वह उसे प्रभु के सामने लाये
13) और अपना हाथ उसके सिर पर रख कर दर्षन-कक्ष के पास उसका वध करे। हारून के पुत्र उसका रक्त वेदी के चारों ओर छिड़कें।
14) वह बलि-पशु का एक अंष प्रभु को अर्पित करे - अँतड़ियों के आसपास की चरबी,
15) दोनों गुरदे तथा उन पर और कमर के पास की चरबी तथा जिगर की झिल्ली, जिसे वह गुरदों के साथ निकालता है।
16) याजक यह सब वेदी पर भस्म करे। यह प्रभु को अर्पित आहार और सुगन्धयुक्त चढ़ावा है। सारी चरबी प्रभु की है।
17) तुम जहाँ कहीं भी निवास करोगे, यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी तुम्हारे लिए एक चिरस्थायी आदेष है। तुम न तो चरबी खाओगे और न रक्त ही।

अध्याय 4

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से कहो कि यदि कोई व्यक्ति अनजाने प्रभु के आदेषों का उल्लंघन करे या प्रभु द्वारा मना किया हुआ कोई काम करें,
3) यदि पापी व्यक्ति अभ्यंजित याजक हो और वह इस प्रकार प्रजा को पाप का भागी बनाये, तो उसे अपने पाप के कारण प्रायष्चित-बलि के रूप में प्रभु को एक अदोष बछड़ा अर्पित करना चाहिए।
4) वह उस बछड़े को दर्षन-कक्ष के द्वार के पास प्रभु के सामने लाये, बछड़े के सिर पर अपना हाथ रखे और प्रभु के सामने उसका वध कर दे।
5) तब अभ्यंजित याजक बछड़े का रक्त दर्षन कक्ष के अन्दर ले जाये।
6) वह अपनी उँगली रक्त में डुबो कर उस रक्त को सात बार प्रभु के सामने, पवित्र स्थान के अन्तरपट पर छिड़के।
7) इसके बाद याजक धूप-वेदी के सींगों पर, जो प्रभु के सामने दर्षन-कक्ष में है, रक्त लगाये। वह बछड़े का शेष रक्त दर्षन-कक्ष के द्वार के सामने की होम-बलि की वेदी के निचले भाग पर डाले।
8) इसके बाद वह शान्ति बलि के बछड़े की तरह प्रायष्चित बलि के बछड़े की सारी चरबी निकाले, अर्थात अँतड़ियों के आसपास की चरबी,
9) दोनों गुरदे तथा उन पर और कमर के पास की चरबी तथा जिगर की झिल्ली, जिसे वह गुरदों के साथ निकालता है।
10) याजक यह सब बलि वेदी पर भस्म कर दे।
11) बछड़े की खाल, उसका सारा मांस, उसका सिर और उसकी टाँगें, उसकी अँतड़ियाँ और उसका गोबर,
12) अर्थात बछड़े का शेष अंष, वह षिविर के बाहर एक शुद्ध स्थान पर ले जाये और उसे राख के ऊपर लकड़ी की आग में जलाये।
13) ''यदि पूरा समुदाय अनजाने प्रभु के आदेषों का उल्लंघन करे या प्रभु द्वारा मना किया हुआ कोई और काम करे और इस प्रकार दोषी बने,
14) तो पाप का पता लगते ही पूरे समुदाय को प्रायष्चित-बलि के रूप में एक साँड़ चढ़ाना चाहिए। वे उसे दर्षन-कक्ष के सामने लायें
15) और समुदाय के नेता प्रभु के सामने पशु के सिर पर अपना हाथ रखें और प्रभु के सामने पशु का वध किया जाये
16) इसके बाद अभ्यंजित याजक साँड का रक्त दर्षन-कक्ष के अन्दर ले जाये,
17) उस में अपनी उँगली डुबो कर उस रक्त को सात बार प्रभु के सामने अन्तरपट पर छिड़के।
18) तब याजक धूप-वेदी के सींगों पर, जो प्रभु के सामने दर्षन-कक्ष में हैं, रक्त लगाये। शेष रक्त वह दर्षन कक्ष के द्वार पर की होम-बलि की वेदी के निचले भाग पर डाले।
19) वह सारी चरबी निकाल कर उसे वेदी पर भस्म करे।
20) फिर वह उस साँड के साथ वही करे, जो प्रायष्चित के बलि-पशु के साथ किया जाता है। इस प्रकार याजक लोगों के लिए प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करता है और उन्हें क्षमा दी जाती है।
21) वह पहले पशु की तरह साँड़ को षिविर के बाहर ले जा कर उसे जलाये। यह समुदाय के पाप के लिए प्रायष्चित-बलि है।
22) यदि कोई नेता अनजाने पाप करता है, क्योंकि वह प्रभु द्वारा मना किया हुआ काम करता है और इस प्रकार दोषी बनता है,
23) तो पाप का पता लगते ही उसे एक अदोष बकरा चढ़ाना चाहिए।
24) वह पशु के सिर पर हाथ रखे और होम-बलि के स्थान पर प्रभु के सामने पशु का वध करे। यह पाप के लिए प्रायष्चित-बलि है।
25) याजक अपनी उँगली से प्रायश्चित-बलि के रक्त में से कुछ ले कर उसे धूप-वेदी के सींगों पर लगाये। शेष रक्त वह वेदी के निचले भाग पर डाले।
26) वह शान्ति-बलि की चरबी की तरह पशु की सारी चरबी वेदी पर जलाये। इस प्रकार याजक उसके पापों के लिए प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करता है और उसे क्षमा दी जाती है।
27) यदि समुदाय का कोई सामान्य सदस्य अनजाने में पाप करता है, क्योंकि वह प्रभु द्वारा मना किया हुआ काम करता है और इस प्रकार दोषी बनता है,
28) तो पाप का पता लगते ही उसे पाप के प्रायष्चित के लिए एक अदोष बकरा चढ़ाना चाहिए।
29) वह पशु के सिर पर हाथ रखे और होम-बलि के स्थान पर उसका वध करे।
30) याजक अपनी उँगली से उसका कुछ रक्त ले कर उसे धूप-वेदी के सींगों पर लगाये और शेष रक्त वेदी के निचले भाग पर डाले।
31) वह शान्ति-बलि की चरबी की तरह पशु की सारी चरबी निकाले और उसे वेदी पर जलाये। यह प्रभु के लिए सुगन्धयुक्त चढ़ावा है। इस प्रकार याजक उसके लिए प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करता है और उसे क्षमा दी जाती है।
32) यदि कोई प्रायष्चित-बलि के रूप में एक मेमना चढ़ाना चाहे, तो वह एक अदोष मादा हो।
33) वह पशु के सिर पर हाथ रखे और होम-बलि के स्थान पर प्रायष्चित-बलि के रूप में उसका वध करे।
34) याजक अपनी उँगली से प्रायष्चित-बलि के रक्त में से कुछ ले कर उसे धूप-वेदी के सींगों पर लगााये। शेष रक्त वह वेदी के निचले भाग पर डाले।
35) वह शान्ति-बलि की चरबी की तरह पशु की सारी चरबी निकाले और याजक उसे वेदी पर प्रभु को अर्पित अन्य होम-बलियों के ऊपर रख कर जलाये। इस प्रकार याजक उसके पाप के लिए प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करता है और उसे क्षमा दी जाती है।

अध्याय 5

1) यदि कोई व्यक्ति पाप करता है, क्योंकि उस से शपथपूर्वक निवेदन किया जाता है कि उसने जो देखा या सुना है, उसके विषय में साक्ष्य दे और वह चुप रहता है, तो वह दोषी समझा जायेगा।
2) यदि कोई व्यक्ति एक अषुद्ध वस्तु का - चाहे वह किसी अशुद्ध जंगली जानवर की लाश हो, चाहे किसी अशुद्ध घरेलू जानवर की लाष हो, चाहे किसी अषुद्व रेंगने वाले जानवर की लाष हो - स्पर्ष करे, तो वह अषुद्व हो जाता है और दोषी है, यद्यपि उसने अनजाने ऐसा किया है।
3) अथवा यदि कोई व्यक्ति अनजाने किसी भी प्रकार की मानवीय अषुद्धता का स्पर्ष करे, तो इसका पता लगते ही वह दोषी हो जाता है।
4) अथवा यदि कोई बिना विचारे बुरा-भला करने की या किसी भी प्रकार की शपथ खाये, तो इसका पता लगते ही वह दोषी हो जायेगा।
5) यदि कोई व्यक्ति ऐसी बातों में किसी एक का दोषी हो, तो उसे स्वीकार करना है कि उसने क्या किया है
6) और वह प्रायष्चित-बलि के रूप में अपने झुण्ड से भेड़ या बकरी प्रभु के पास ले आये और याजक उसके पाप के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा।
7) यदि कोई व्यक्ति भेड़ या बकरी, न चढ़ा सके, तो वह अपने पाप के प्रायष्चित के लिए प्रभु को दो पण्डुक या दो कबूतर चढ़ाये - एक को प्रायष्चित-बलि के रूप में और दूसरे को होम-बलि के रूप में।
8) वह उन्हें याजक के पास ले जाये, जो एक पक्षी प्रायष्चित-बलि के रूप में पहले चढ़ाये। वह उसका सिर गर्दन के पास मरोड़ दे, लेकिन उसे अलग न करे।
9) तब वह प्रायष्चित-बलि का कुछ रक्त वेदी की बगल में छिड़के और शेष रक्त वेदी के निचले भाग पर निचोड़े। यह प्रायष्चित-बलि है।
10) दूसरा पक्षी वह होम-बलि के रूप में निर्धारित विधि के अनुसार चढ़ाये। इस प्रकार याजक उसके पाप के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करता है और उसे क्षमा दी जाती है।
11) यदि वह दो पण्डुक या दो कबूतर न चढ़ा सके, तो वह अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में एक सेर मैदा चढ़ाये। वह उस पर कुछ तेल न डाले और न उसके साथ लोबान रखे, क्योंकि यह प्रायश्चित-बलि है।
12) वह उसे याजक के पास लाये। याजक उस में से पूरे चढ़ावे के प्रतीक के रूप में मुट्ठी भर निकाल ले और उसे प्रभु को अर्पित अन्य चढ़ावों के साथ भस्म करे। यह प्रायश्चित-बलि है।
13) इस प्रकार याजक उसके किये हुए उपर्युक्त पापों की प्रायश्चित-विधि सम्पन्न करता है और उसे क्षमा दी जाती है।
14) प्रभु ने मूसा से कहा,
15) ''यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है, क्योंकि वह प्रभु को अर्पित पवित्र वस्तुओं के विषय में अनजाने पाप करता है, तो उसे क्षतिपूर्ति के रूप में अपने झुण्ड से एक अदोष मेढ़ा प्रभु को चढ़ाना होगा। यह क्षतिपूर्ति-बलि है। पशु का निर्धारित मूल्य चाँदी के पवित्र शेकेलों के अनुसार होगा।
16) उसे पवित्र वस्तुओं में की गयी कमी की क्षतिपूर्ति करनी है और उस में उसका पाँचवाँ भाग जोड़ कर पूरा-का-पूरा याजक को देना है। याजक क्षतिपूर्ति-बलि के रूप में मेढ़ा चढ़ा कर उसके लिए प्रायश्चित करता है और उसे क्षमा दी जाती है।
17) यदि कोई व्यक्ति अनजाने में प्रभु की किसी आज्ञा का उल्लंघन करता है और वह काम करता है, जिसे प्रभु ने मना किया है, तो वह दोषी है और उसे प्रायश्चित करना है।
18) उसे क्षतिपूर्ति के रूप में अपने झुण्ड से निर्धारित मूल्य का एक अदोष मेढ़ा याजक के पास ले आना है। याजक उसके लिए उस पाप का प्रायश्चित्त करता है, जिसे उसने असावधानी से अनजाने किया है और उसे क्षमा दी जाती है।
19) उसने प्रभु के प्रति जो पाप किया था, वह उसकी क्षतिपूर्ति-बलि है।
20) प्रभु ने मूसा से कहा,
21) ''यदि कोई व्यक्ति पाप और प्रभु के साथ विश्वासघात करता है, क्योंकि वह किसी देश-भाई द्वारा धरोहर के रूप में या यों ही सौंपी हुई या चोरी में प्राप्त वस्तु के विषय में झूठ बोलता हैः यदि वह अपने देश-भाई पर अत्याचार करता है या
22) झूठी शपथ खाकर अस्वीकार करता है कि उसे कोई खोयी हूई वस्तु मिल गयी है, या इस प्रकार कोई अपराध करता है,
23) तो जो इस प्रकार का पाप करता और दोषी बनता है, उसे चोरी में या अत्याचार द्वारा या धरोहर के रूप में प्राप्त या खोयी हूई वस्तु लौटानी है।
24) और जिसके विषय में उसने झूठी शपथ खायी, उसे भी लौटाना है। उन सब वस्तुओं के मूल्य का पाँचवाँ भाग जोड़ कर उसे क्षतिपूर्ति-बलि के दिन उसके स्वामी को लौटाना है।
25) इसके अतिरिक्त उसे क्षतिपूर्ति के रूप में अपने झुण्ड से निर्धारित मूल्य का एक अदोष मेढ़ा प्रभु को चढ़ाना होगा।
26) वह पशु को याजक के सामने उसके किये अपराध की प्रायश्चित-विधि सम्पन्न करेगा।''

अध्याय 6

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) हारून और उसके पुत्रों को यह आदेश दो : यह होम-बलि की विधि है। होम-बलि रात भर, प्रातःकाल तक, वेदी की आग पर रहेगी और वह आग वेदी पर प्रज्वलित रखी जायेगी।
3) याजक छालटी का वस्त्र और छालटी का जाँघिया पहने वेदी पर जलायी होम-बलि की राख एकत्र कर उसे वेदी की बगल में रखेगा।
4) इसके बाद वह कपड़े बदल कर राख शिविर के बाहर किसी शुद्ध स्थान पर ले जायेगा।
5) (५-६) वेदी की आग को प्रज्वलित रखना है। उसे कभी बुझने नहीं देना चाहिए। याजक प्रतिदिन सबेरे उस पर लकड़ी रखेगा, आग पर होम बलि सजायेगा और उस में शान्ति-बलियों की चरबी जलायेगा।
7) अन्न-बलि की विधि इस प्रकार है। हारून का कोई पुत्र उसे वेदी के सामने प्रभु को चढ़ाये।
8) याजक अन्न-बलि में से मुट्ठी भर तेल-मिश्रित मैदा निकाल कर उसे सारे चढ़ावे के प्रतीक के रूप में लोबान के साथ वेदी पर जलाये। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
9) शेष भाग हारून और उसके पुत्र खा सकते हैं, किन्तु वह एक पवित्र स्थान पर - दर्शन कक्ष के आँगन में, खमीर के बिना खाया जाये।
10) वह खमीर के साथ नहीं पकाया जा सकता है। मैं अपने चढ़ावों में से उन्हें यह भाग देता हूँ। यह प्रायश्चित बलि और क्षतिपूर्ति-बलि के समान परमपवित्र है।
11) हारून के सब पुरुष वंशज इसे खा सकते हैं। प्रभु के चढ़ावों के इस अंश पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनका चिरस्थायी अधिकार है। जो इसका स्पर्श करता है, वह पवित्र हो जाता है।
12) प्रभु ने मूसा से कहा,
13) हारून के अभ्यंजन के दिन हारून और उसके पुत्र यह चढ़ावा अर्पित करेंगे - अन्न-बलि के रूप में प्रतिदिन एक सेर मैदा, आधा भाग प्रात : और आधा भाग सायंकाल।
14) उस में तेल डाला जाये और वह तवे पर पकाया जाये। उसे टुकड़े-टुकड़े कर अन्न-बलि के रूप में चढ़ाया जाये। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
15) हारून का वंशज जो अभ्यंजित याजक के रूप में उसका उत्तराधिकारी होगा, ऐसा ही करेगा। यह एक स्थ्रिस्थायी विधि है। यह चढ़ावा प्रभु के आदर में पूरा-का-पूरा भस्म कर दिया जायेगा।
16) यह नियम याजक द्वारा अर्पित हर अन्न-बलि पर लागू है। वह नहीं खाया जा सकता।
17) प्रभु ने मूसा से कहा,
18) हारून और उसके पुत्रों से कहो : प्रायश्चित-बलि की विधि इस प्रकार है। जिस स्थान पर होम बलि के पशु का वध किया जाता है, वहीं प्रभु के सामने प्रायश्चित-बलि के प्शु का वध किया जाये। वह परमपवित्र है।
19) जो याजक प्रायश्चित-बलि चढ़ाता है, वही उसे खाये। वह पवित्र स्थान पर, दर्शन-कक्ष के आँगन में उसे खाये।
20) जो उसके मांस का स्पर्ष करता है, वह पवित्र हो जाता है। यदि उसका रक्त किसी के वस्त्र पर लग जाये, तो उसे पवित्र स्थान पर ही धो दिया जाये।
21) मिट्टी का वह बरतन तोड़ डाला जाये, जिस में उसे पकाया गया है। यदि वह किसी काँसे के बरतन में पकाया गया हो, तो उसे माँज कर पानी से धो देना चाहिए।
22) याजकों के परिवारों में कोई भी पुरुष उसे खा सकता है। वह परमपवित्र है।
23) परन्तु वह प्रायश्चित-बलि नहीं खायी जा सकती है, जिसका रक्त पवित्र-स्थान में प्रायश्चित-विधि सम्पन्न करने के लिए दर्शन कक्ष में लाया जाता है। वह अग्नि में जला दी जाये।

अध्याय 7

1) ''क्षतिपूर्ति बलि की विधि इस प्रकार है। वह परमपवित्र है।
2) जिस स्थान पर होम-बलि के पशु का वध किया जाता है, वहीं क्षतिपूर्ति-बलि के पशु का वध किया जाये। उसका रक्त वेदी के चारों ओर छिड़ता जाये,
3) उसकी सारी चरबी चढ़ायी जाये - उसकी मोटी पूँछ, अँतड़ियों के आसपास की चरबी,
4) उसके गुरदे तथा उनकी चरबी और कमर के आसपास की चरबी तथा जिगर की झिल्ली, जिसे गुरदों के साथ निकाला जाता है।
5) याजक यह सब वेदी पर जलाये। यह चढ़ावा प्रभु के लिए है।
6) याजक वंश के पुरुष ही इसे एक पवित्र स्थान पर खा सकते हैं, क्योंकि यह परमपवित्र है।
7) प्रायश्चित-बलि का नियम क्षतिर्पूति-बलि पर भी लागू है। दोनों उस याजक की हैं, जो क्षतिपूर्ति की विधि सम्पन्न करता है।
8) जब याजक किसी के लिए होम-बलि चढ़ाता है, तो बलि-पशु की खाल उसे मिलती है।
9) भट्ठी में पकायी हुई, कड़ाही में या तवे पर सेंकी हुई हर अन्न-बलि उस याजक को मिलती है, जो उसे चढ़ाता है।
10) अन्य सब अन्न-बलियों को, चाहे वे तेल-मिश्रित हों या सूखी, बराबर भागों में बाँट कर हारून के सब पुत्रों को दिया जाये।
11) प्रभु को अर्पित शान्ति-बलि की विधि इस प्रकार है।
12) यदि कोई व्यक्ति उसे धन्यवाद के रूप में चढ़ाना चाहे, तो वह बलि-पशु के साथ तेल-मिश्रित बेख़मीर रोटियाँ, तेल से चुपड़ी हुई बेख़मीर चपातियाँ और तेल-मिश्रित मैदे की गूँथी हुई रोटियाँ चढ़ाये।
13) इनके अतिरिक्त वह इस प्रकार की शान्ति-बलि के अवसर पर बेख़मीर रोटी भी चढ़ाये।
14) इन सब प्रकार की अर्पित वस्तुओं में से एक-एक प्रभु को चढ़ायी जाये। वह उस याजक का भाग होगा, जिसने बलि पशु का रक्त छिड़का।
15) इस बलि का मांस उसी दिन खाया जाये। दूसरे दिन तक उसका कुछ नहीं छोड़ा जाये।
16) मन्नत की या स्वेच्छा से अर्पित बलि का मांस भी उसी दिन खाया जाये, किन्तु उस में से जो बचता है, वह उसके दूसरे दिन भी खाया जा सकता है।
17) यदि तीसरे दिन बलि का कुछ माँस बचा रहता है, तो वह जलाया जाये।
18) यदि तीसरे दिन भी शान्ति-बलि का मांस खाया जाये, तो शान्ति-बलि चढ़ाने वाले को कुछ लाभ नहीं होगा, क्योंकि वह मांस दूषित हो गया है और जो व्यक्ति उस में से कुछ खाता है, वह दोषी होगा।
19) अशुद्ध वस्तु से स्पर्श किया हुआ मांस खाना मना है; उसे जलाना चाहिए। जो व्यक्ति शुद्ध है, वह दूसरा मांस खा सकता है।
20) यदि कोई व्यक्ति अशुद्ध हो और प्रभु को अर्पित बलि का मांस खाये, तो वह समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाये।
21) यदि कोई व्यक्ति अशुद्ध वस्तु का स्पर्श करे - चाहे वह अशुद्ध व्यक्ति हो या कोई अशुद्ध पशु या ऐसा कुछ, जो घृणित माना जाता है - और यदि वह ऐसी अवस्था में प्रभु को चढ़ायी शान्ति-बलि का मांस खाये, तो वह समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाये।''
22) प्रभु ने मूसा से कहा,
23) ''इस्राएलियों से यह कहो - तुम गायों या बैलों, भेड़ों या बकरियों की किसी भी प्रकार की चरबी नहीं खाओ।
24) मरे हुए या जंगली जानवरों द्वारा मारे हुए पशु की चरबी को किसी दूसरे उपयोग में लाया जा सकता है, परन्तु उसे खाया नहीं जायेगा।
25) प्रत्येक व्यक्ति, जो किसी ऐसे जानवर की चरबी खाये, जो प्रभु की बलि के रूप में चढ़ाया गया है, वह समुदाय से बहिष्कृत किया जाये।
26) तुम अपने घरों में भी किसी पक्षी या पशु के रक्त का उपभोग नहीं कर सकते हो।
27) जो रक्त का उपभोग करता है, उसे समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जायेगा।''
28) प्रभु ने मूसा से कहा,
29) ''इस्राएलियों से कहो - जो प्रभु को शान्ति-बलि अर्पित करता है, वह अपने चढ़ावे का एक भाग प्रभु के पास ले आये।
30) वह अपने ही हाथों से उसकी चरबी और उसका सीना ले आये और सीना प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करे।
31) याजक चरबी को वेदी पर जलायेगा, किन्तु सीना हारून और उसके पुत्रों का होगा।
32) तुम अपनी शान्ति-बलियों के पशु की दाहिनी जाँघ
33) हारून के उस पुत्र को दोगे, जो बलि-पशु का रक्त और चरबी चढ़ाता है। दाहिनी जाँघ पर याजक का अधिकार है।
34) सीना, जो प्रभु के सामने हिला-हिला कर चढ़ाया जाता है और जाँघ, जो दी जाती है, यह इस्राएलियों की शान्ति-बलियों का वह भाग है, जिसे मैंने हारून और उसके पुत्रों के लिए अलग कर दिया है। इसे इस्राएलियों से पाने का अधिकार सदा उनका होगा।''
35) यह प्रभु को अर्पित चढ़ावों का वह भाग है, जिस पर हारून और उसके पुत्रों का उस दिन से अधिकार है, जिस दिन प्रभु के याजकों के पद पर उनकी नियुक्ति हुई है।
36) प्रभु ने इस्राएलियों को आदेश दिया है कि वे वह भाग अभ्यंजन के दिन याजकों को दिया करें - यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनका चिरस्थायी अधिकार है।
37) होम बलि, अन्न-बलि, प्रायश्चित और क्षतिपूर्ति-बलि, अभ्यंजन-बलि और शान्ति-बलि की विधियाँ यही हैं।
38) प्रभु ने सीनई पर्वत पर इनके सम्बन्ध में मूसा को उस दिन आदेश दिया था, जिस दिन उसने इस्राएलियों को सीनई की मरुभूमि में प्रभु को बलि चढ़ाने का आदेश दिया।

अध्याय 8

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''हारून और उसके पुत्रों को, उनके वस्त्र अभ्यंजन का तेल, प्रायश्चित-बलि का बछड़ा, दो मेढ़े और बेख़मीर रोटियों की टोकरी ले आओ
3) और सारे समुदाय को दर्शन कक्ष के द्वार पर बुलाओ।''
4) मूसा ने प्रभु के आदेश का पालन किया और सारा समुदाय दर्शन-कक्ष के द्वार पर एकत्र हो गया।
5) तब मूसा ने लोगों से कहा, ''हम जो करने वाले हैं, वह प्रभु के आदेश के अनुसार है।''
6) इसके बाद मूसा ने हारून और उसके पुत्रों को पास बुलाया और उन्हें जल से नहलाया।
7) उसने हारून को कुरता पहनाया, कमरपट्टी बाँधी और अँगरखा पहनाया। इसके बाद उसने उसे एफ़ोद पहनाया और उसके ऊपर कमरबन्द बाँधा।
8) उसने हारून पर वक्षपेटिका रखी और उस में ऊरीम और तुम्मीम डाले।
9) उसने हारून के सिर पर पगड़ी बाँधी और उस पर सामने की ओर स्वर्ण-पुष्प, पवित्र किरीट लगाया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।
10) इसके बाद मूसा ने पवित्र-स्थान और उसकी सब वस्तुओं को पवित्र करने के लिए उनका अभ्यंजन तेल से विलेपन किया।
11) उसने पवित्रीकरण के लिए वेदी पर तीन बार कुछ तेल छिड़का तथा वेदी एवं उसकी वस्तुओं पर और चिलमची एवं उसकी चौकी पर तेल का विलेपन किया।
12) उसने हारून के सिर पर भी अभ्यंजन का कुछ तेल उँडे+ला और उसे पवित्र करने के लिए उसका अभ्यंजन किया।
13) इसके बाद मूसा ने हारून के पुत्रों को पास बुलाया, उन्हें कुरता पहनाया, कमरपट्टी बाँधी और पगड़ी पहनायी, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।
14) तब मूसा ने प्रायश्चित-बलि के लिए बछड़ा ले आने को कहा। हारून और उसके पुत्रों ने पशु के सिर पर हाथ रखे।
15) मूसा ने उसका वध किया और आपनी उँगली से वेदी के सींगों पर कुछ रक्त लगाया, जिससे वह पाप के दोष से मुक्त हो जायें। उसने शेष रक्त वेदी के निचले भाग पर उँड़ेला। इस प्रकार मूसा ने उसके लिए प्रायश्चित-विधि सम्पन्न कर उसे पवित्र किया।
16) तब मूसा ने अँतड़ियों के आसपास की चरबी, जिगर की झिल्ली, गुरदे और उन पर की चरबी निकाल कर, यह सब वेदी पर भस्म कर दिया।
17) उसने बछड़े की खाल, मांस ओर अँतड़ियों को शिविर के बाहर जला दिया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।
18) तब उसने होम-बलि के लिए मेढ़ा ले आने को कहा। हारून और उसके पुत्रों ने मेढ़े के सिर पर अपने हाथ रखे।
19) मूसा ने उसका वध किया और उसका रक्त वेदी के चारों ओर छिड़का।
20) उसने मेढ़े के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। मूसा ने उसके सिर, टुकड़ों और चरबी को जला दिया।
21) उसने उसकी अँतड़ियों और टाँगें, पानी से धो दीं। तब मूसा ने सम्पूर्ण मेढ़े को वेदी पर जला दिया। यह होम-बलि थी, एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा, जो प्रभु को प्रिय है। प्रभु ने मूसा को ऐसा आदेश दिया था।
22) तब उसने दूसरे मेंढ़े, अभिषेक बलि के मेढ़े को ले आने को कहा। हारून और उसके पुत्रों ने मेढ़े के सिर पर अपने हाथ रखे।
23) मूसा ने उसका वध किया और उसका कुछ रक्त हारून के दाहिने कान की लौ, दाहिने हाथ के अँगूठे और दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाया।
24) फिर मूसा ने हारून के पुत्रों को पास बुलाया और पशु का कुछ रक्त प्रत्येक के दाहिने हाथ की लौ, दाहिने हाथ के अँगूठे ओर दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाया। मूसा ने शेष रक्त वेदी के चारों ओर छिड़का।
25) तब उसने चरबी - मोटी पूँछ, अँतड़ियों के आसपास की चरबी, जिगर की झिल्ली, गुरदे और उन पर की चरबी और दाहिनी जाँघ को लिया।
26) उसने प्रभु के सामने रखी बेख़मीर रोटियों की टोकरी से एक रोटी, एक तेल-मिश्रित पूरी और एक चपाती निकाली और उन्हें चरबी और जाँघ के पास रखा।
27) उसने इन सब को हारून और उसके पुत्रों के हाथों में दिया, जिससे वे उन्हें प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करे।
28) इसके बाद मूसा ने उन्हें उनके हाथों से ले कर होम-बलि के साथ वेदी पर जला दिया। यह अभिषेक की बलि है, एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा, जो प्रभु को प्रिय है।
29) मूसा ने सोना लिया और उसे प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित किया। यह अभिषेक-बलि का भाग है, जिस पर मूसा का अधिकार है, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।
30) तब मूसा ने अभ्यंजन के तेल ओर वेदी के रक्त में से थोड़ा-थोड़ा ले कर हारून और उसके वस्त्रों तथा उसके पुत्रों और उसके पुत्रों के वस्त्रों पर छिड़का। इस प्रकार उसने हारून और उसके वस्त्रों तथा उसके पुत्रों उनके वस्त्रों का अभिषेक किया।
31) तब मूसा ने हारून और उसके पुत्रों से कहा, ''मांस दर्शन-कक्ष के द्वार पर पकाओ और उसे अभिषेक बलि की रोटी के साथ, जो टोकरी में रखी है, खाओ। जो आदेश मुझे मिला है, उसके अनुसार हारून और उसके पुत्रों को उसे खाना है।
32) जो मांस और रोटी बच जाये, उसे जला देना है।
33) तुम्हारे अभिषेक के दिन पूरे हो जाने तक, तुम सात दिन तक दर्शन-कक्ष के द्वार से नहीं हटो, क्योंकि तुम्हारे अभिषेक की विधि में सात दिन लगेंगे।
34) जो आज किया गया है, उसे प्रभु के आदेश के अनुसार सात दिन तक करना होगा, जिससे तुम्हारे लिए प्रायश्चित्त की विधि पूरी हो जाये।
35) तुम सात दिन तक दिन-रात दर्शन-कक्ष के द्वार पर उपस्थित रहोगे। इस प्रकार तुम प्रभु के आदेश का पालन करोगे और तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। मुझे यह आदेश मिला है।
36) प्रभु ने मूसा द्वारा जो आदेश दिये थे, हारून और उसके पुत्रों ने उन सबका पालन किया।

अध्याय 9

1) आठवें दिन मूसा ने हारून, उसके पुत्रों और इस्राएलियों के नेताओं को बुलाया और उसने हारून से कहा,
2) ''प्रायष्चित-बलि के लिए एक बछड़ा और होम-बलि के लिए एक मेमना ले आओ। वे दोनों अदोष हों। उन्हें प्रभु के सामने अर्पित करो।
3) इस्राएलियों से कहा प्रायष्चित-बलि के लिए एक बकरा और होम बलि के लिए एक बछड़ा और एक भेड़ ले आओ। दोनों एक वर्ष के और अदोष हों।
4) प्रभु को शान्ति-बलि चढ़ाने के लिए एक बछड़ा और एक मेढ़ा और तेल-मिश्रित एक अन्न-बलि ले आओ; क्योंकि तुम लोगों को आज प्रभु के सामने उपस्थित होना है।
5) मूसा के आदेष के अनुसार इस्राएली यह सब दर्षन-कक्ष के द्वार पर ले आये। समस्त समुदाय एकत्र हो कर प्रभु के सामने उपस्थित हुआ।
6) तब मूसा ने कहा, प्रभु ने तुम लोगों को यह आदेष दिया, जिससे तुम्हें प्रभु की महिमा दिखाई दे।
7) उसने हारून से कहा, ''वेदी के पास जा कर अपनी प्रायष्चित-बलि और अपनी होम-बलि चढ़ाओ। अपने लिए और समुदाय के लिए प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करो। जैसा कि प्रभु ने आदेष दिया है, तुम समुदाय का चढ़ावा भी अर्पित करो और उसके लिए प्रायष्चित की विधि सम्पन्न करो।''
8) तब हारून वेदी के पास गया और अपने लिए प्रायष्चित-बलि के रूप में बलि-पशु का वध किया।
9) हारून के पुत्र उसका रक्त उसके पास ले आये, उसने उस में उँगली रख कर उसे वेदी के सींगों पर लगाया और शेष रक्त वेदी के निचले भाग पर उँड़ेला।
10) उसने बलि पशु की चरबी, गुरदे और जिगल की झिल्ली वेदी पर जलायी, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।
11) उसने उसका मांस और उसकी चरबी षिविर के बाहर जलायी।
12) इसके बाद उसने होम-बलि के पशु का वध किया। हारून के पुत्र उसका रक्त उसके पास आये और उसने उसे वेदी के चारों ओर छिड़का।
13) इसके बाद उन्होंने उसे बलि-पशु के मांस के टुकड़े और सिर दिया और उसने उन्हें वेदी पर जलाया।
14) उसने उसकी अँतड़ियाँ और टाँगें पानी से धो कर उन्हें भी वेदी पर जलाया।
15) इसके बाद उसने समुदाय का चढ़ावा अर्पित किया। उसने समुदाय के लिए प्रायष्चित का मेढ़ा ले आने का, उसका वध किया और उसे पहले पशु की तरह प्रायष्चित-बलि के रूप में चढ़ाया।
16) उसने होम-बलि को भी निर्धारित विधि के अनुसार सम्पन्न किया।
17) इसके बाद उसने प्रातःकाल की होम-बलि के अतिरिक्त अन्न-बलि चढ़ायी और उसमें से मुट्ठी भर वेदी पर जलाया।
18) उसने समुदाय के लिए शान्ति-बलि के रूप में बछड़े और मेढ़े का वध किया। उसके पुत्रों ने उसे उसका रक्त दिया और उसने उसे वेदी के चारों ओर छिड़का।
19) उन्होंने बछड़े और मेढ़े की चरबी - मोटी पूँछ, अँतड़ियों के आसपास की चरबी, गुरदे और जिगर की झिल्ली-
20) यह सब वेदी पर सीने के ऊपर रखा और इसके बाद हारून ने चरबी को वेदी पर जलाया।
21) हारून ने सीना और दाहिनी जाँघ को प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित किया, जैसा कि मूसा ने आदेष दिया था।
22) हारून ने इस प्रकार प्रायष्चित-बलि, होम-बलि और शान्ति-बलि की विधि सम्पन्न करने के बाद अपने हाथ समुदाय की ओर फैला कर लोगों को आषीर्वाद दिया। तब वह नीचे उतरा
23) और उसने मूसा के साथ दर्षन-कक्ष में प्रवेष किया। बाद में दोनों ने बाहर निकल कर लोगों को आषीर्वाद दिया। उस समय प्रभु की महिमा सारे समुदाय को दिखाई दी।
24) प्रभु के सामने से अग्नि निकली और उसने वेदी पर रखी होम-बलि और चरबी को भस्म कर दिया। लोगों ने यह देख कर जयकार किया और मुँह के बल गिर कर प्रणाम किया।

अध्याय 10

1) हारून के पुत्र नादाब और अबीहू ने अपने-अपने धूपदानों में आग रख कर उस में धूप-द्रव्य डाला और प्रभु को ऐसी अग्नि अर्पित की, ये प्रभु के नियमों के अनुसार नहीं थीं।
2) इस पर प्रभु के सामने से अग्नि निकली और उसने उन्हें भस्म कर दिया। इस प्रकार प्रभु के सामने उनकी मृत्यु हो गई।
3) इस पर मूसा ने हारून से कहा, ''प्रभु ने वही कहा था - जो मेरे निकट आयेंगे, वे मुझे पवित्र मानेंगे; सारी प्रजा के सामने मेरी महिमा प्रकट को जायेगी।'' हारून मौन रहा।
4) मूसा ने हारून के चाचा, उज्जीएल के पुत्र मीषाएल और एल्साफान को बुलावा भेजा और उन से कहा ''यहाँ आओ, अपने भाइयों को पवित्र-स्थान से षिविर के बाहर ले जाओ।''
5) वे आये और मूसा के आदेष के अनुसार उन्हें कुरते पहने हुए ही षिविर के बाहर ले गये।
6) मूसा ने हारून और उसके पुत्र एलआजार और ईतामार से कहा, ''तुम अपने बाल खुले मत रखो और न अपने वस्त्र ही फाड़ो। नहीं तो तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी और सारे समुदाय पर प्रभु का कोप भड़क उठेगा। इस्राएली प्रजा, तुम्हारे सब भाई-बन्धु उन पर शोक मना सकते हैं, जिनका प्रभु की अग्नि ने विनाष किया है।
7) तुम लोग दर्षन-कक्ष का द्वार मत छोड़ो। नहीं तो तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी; क्योंकि प्रभु के अभ्यंजन के तेल से तुम्हारा विलेपन किया गया है।'' उन्होंने मूसा का आदेष मान लिया।
8) प्रभु ने हारून से कहा,
9) ''जब तुम और तुम्हारे पुत्र दर्षन-कक्ष में प्रवेष करें, तो तुम अंगूरी या अन्य मादक पेय नहीं पी सकते हो। नहीं तो तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चिरस्थायी आदेष है
10) तुम्हारे लिए यह आवष्यक है कि तुम पवित्र और अपवित्र, शुद्व और अषुद्व का भेद जानो।
11) तुम्हें इस्राएलियों को उन सब नियमों की षिक्षा देनी है, जिन्हें प्रभु ने मूसा द्वारा घोषित किया है।''
12) मूसा ने हारून और उसके जीवित पुत्रों-एलआजार और ईतामार - से कहा, ''प्रभु को अन्न बलि चढ़ाने के बाद जो अंष बच जाता है, तुम उसे वेदी के पास ख़मीर के बिना खा सकते हो। यह परमपवित्र हैं।
13) तुम इसे एक पवित्र स्थान पर खाओगें। प्रभु के चढ़ावे के इस अंष पर तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का अधिकार है। मुझे ऐसा आदेष मिला है।
14) सीना, जो हिल-हिला कर चढ़ाया गया है और जाँघ, जो दी गयी है, यह इस्राएलियों की शान्ति-बलियों का वह भाग है, जिस पर तुम्हारा और तुम्हारे वंष का अधिकार है। उसे तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ एक शुद्ध स्थान पर खा सकती हैं।
15) जाँघ, जो दी गयी है और सीना, जो हिला-हिला कर चढा+या गया है, उन्हें लोग उस चरबी के साथ ले आयें, जो जलायी जायेगी। यह सब प्रभु के सामने हिला-हिला कर चढ़ाया जायेगा। इसके बाद जाँघ और सीना, दोनों तुम्हे मिलेगें। उन पर तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का चिरस्थायी अधिकार है। प्रभु ने ऐसा आदेष दिया है।
16) मूसा ने जब प्रायष्चित-बलि के बकरे के विषय में पूछा, तो पता चला कि वह जला दिया गया है। उसने क्रुद्ध होकर हारून के जीवित पुत्रों - एलआजार और ईतामार से पूछा,
17) ''तुमने प्रायष्चित-बलि को पवित्र-स्थान पर क्यों नहीं खाया? वह तो परमपिवत्र है। वह तुम्हें इसीलिए मिला था कि तुम प्रभु के सामने उस से प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करो और समुदाय का पाप दूर करो।
18) उसका रक्त पवित्र-स्थान के भीतर नहीं लाया गया, इसलिए तुम्हें उसे उसके पास ही खाना चाहिए था, जैसा कि मैंने आदेष दिया था।''
19) इस पर हारून ने मूसा को उत्तर दिया, ''आज ही तो उन्होंने अपनी प्रायष्चित और होम-बलि प्रभु को चढ़ायी है, फिर भी मुझ पर ऐसी विपत्तियाँ आ पड़ी। यदि आज में प्रायष्चित बलि का मांस खाता, तो क्या यह प्रभु को अच्छा लगता?''
20) यह सुन कर मूसा सन्तुष्ट हो गया।

अध्याय 11

1) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
2) इस्राएलियों से कहो कि पृथ्वी पर के सब पशुओं में
3) जो पशु फटे खुर वाले और पागुर करने वाले हैं, उन्हें तुम खा सकते हो।
4) परन्तु केवल पागुर करने वालों या केवल फटे खुर वालों को तुम नहीं खा सकते हो। तुम ऊँट को अषुद्ध मानोगे : वह पागुर तो करता है परन्तु उसके खुर फटे नहीं होते।
5) तुम चट्टानी बिज्जू को अषुद्व मानोगे : वह पागुर तो करता है, परन्तु इसके खूर फटे नहीं होते।
6) तुम खरगोष को अषुद्ध मानोगे : वह पागुर तो करता है, परन्तु उसके खुर फटे नहीं होते।
7) तुम सुअर को अषुद्ध मानोगे, उसके खुर तो फटे होते, परन्तु पागुर नहीं करता।
8) तुम इन पशुओं का मांस नहीं खा सकते और इनकी लाषें छू नहीं सकते। ये तुम्हारे लिए अषुद्ध हैं।
9) सब जल-जन्तुओं में तुम इन को खा सकते हो : तुम उन सब को खा सकते हो, जो पंख और शल्क वाले हैं - चाहे वे समुद्र में रहते हों, चाहे नदियों में।
10) बिना पंख और शल्क वाली मछलियाँ तुम घृणित समझोगे - चाहे वे समुद्र में रहें या नदियों में, चाहे वे छोटी हों या बड़ी।
11) तुम इन को घृणित समझों और इस प्रकार की मरी मछली कभी नहीं खाओगे।
12) तुम सब बिना पंख और शल्क वाले जल-जन्तुओं को घृणित समझो।
13) पक्षियों में तुम इन्हें घृणित समझोगे और इन्हें खाओगे : गरुड़, हड़फोड़, कुरर,
14) चील, सब प्रकार के बाज,
15) सब प्रकार के कौए,
16) शुतुरमुर्ग़, रात षिकरा, जल-कुक्कुट, सब प्रकार के षिकरे,
17) घुग्घू, हड़गीला, बड़ा उल्लू,
18) उल्लू, हवासील, गिद्ध,
19) लगलग, सब प्रकार के बगुले, हुदहुद और चमगादड़।
20) तुम सब पंख और चार पाँव वाले कीड़े को घृणित समझोगे।
21) परन्तु तुम उन पंख और चार पाँव वले कीडों को खा सकते हो, जिनके पृथ्वी पर कूदने के पैर होते हैं।
22) इसलिए तुम इन्हें खा सकते हो : सब प्रकार की टिड्डियाँ, सब प्रकार के सोलआम-टिड्डे सब प्रकार के हरगोल-टिड्डे और सब प्रकार के हागाव-टिड्डे।
23) शेष सभी पंख वाले कीड़े, जिनके चार पैर होते हैं, तुम्हारे लिए घृणित हैं।
24) ''तुम इन पषुओं के स्पर्ष से अषुद्ध हो जाते हो। जो इनकी लाष का स्पर्ष करता है, वह शाम तक अषुद्ध होगा।
25) जो इनकी लाष ले जाता है, वह अपने कपडे+ धोयेगा और शाम तक अषुद्ध होगा
26) जिन पषुओं के खुर फटे नहीं होते और जो पागुर नहीं करते, तुम उन्हें अषुद्ध समझोगे। जो उनका स्पर्ष करता है, वह अषुद्ध हो जाता है।
27) तुम चार पाँव वाले पषुओं को अषुद्ध समझोगे, जो अपने पंजों के बल चलते हैं। जो उनकी लाष का स्पर्ष करता है, वह शाम तक अषुद्ध होगा।
28) जो इनकी लाष ले जाता है, वह अपनी कपडे+ धोयेगा और शाम तक अषुद्ध होगा। वे तुम्हारे लिए अषुद्ध हैं।
29) भूमि से सट कर चलने वाले जीव-जन्तुओं में तुम इन्हें अषुद्ध समझोगे : नेवला, चूहा सब प्रकार के गोहे,
30) छिपकली, अग्निकीट, टिकटिक, साण्डा और गिरगिट।
31) तुम भूमि से सटकर चलने वाले सब जीव-जन्तुओं को अषुद्ध मानो। जो उनकी लाष का स्पर्ष करता है, वह शाम तक अषुद्ध है -
32) जिन चीजों पर उनकी लाष गिरती है - चाहे वह लकड़ी हो, वस्त्र, चमड़ा या टाट हो या उपयोग में आने वाली कोई वस्तु वे शाम तक अषुद्ध हैं। उन्हें पानी में रख दो और वे दूसरे दिन शुद्ध होंगी।
33) यदि उन जन्तुओं में कोई मिट्टी के बर्तन में गिरे, तो उसमें जो कुछ रखा होगा, वह अषुद्ध हो जाएगा। तुम वह बर्तन फोड़ डालोगे
34) जिस खाद्य पदार्थ पर इस प्रकार के बर्तन का पानी पडे+ या उसमें जो पेय है, वह अषुद्ध है।
35) जिस किसी चीज+ पर उनकी लाष गिर जाए वह अषुद्ध हो जाएगी। तुम ऐसी भट्ठियाँ और चूल्हे तोड़ दोगे। वे अषुद्ध हैं और तुम उन्हें अषुद्ध मानोगे।
36) केवल सोता या पानी का संचय करने का कुण्ड शुद्ध माना जाएगा : परन्तु जो उनमें पड़ी हुई लाष को छूता है, वह अषुद्ध हो जाता है।
37) यदि ऐसी लाष बोये जाने वाले बीज पर गिरती है, तो वह शुद्ध रहता है।
38) परन्तु यदि बीज पानी में भीगा हो और उस पर इनकी लाष गिर जाये, तो तुम उसे अषुद्ध मानोगे।
39) यदि तुम्हारे खाद्य पषुओं में कोई मर जाता है, तो उसे छूने वाला व्यक्ति शाम तक अषुद्ध है।
40) जो उस का मॉँस खाएगा, वह अपने कपड़े धोएगा और शाम तक अषुद्ध होगा। जो उसकी लाष ले जाएगा, वह अपने कपड़े धोयेगा और शाम तक अषुद्ध होगा।
41) तुम भूमि पर रेंगने वाले सब जीव-जन्तुओं को घृणित समझोगे और उन्हें नहीं खाओगे -
42) चाहे वह पेट के बल या चार पाँवों से या चार से अधिक पावों से चलते हों। तुम उन्हें घृणित समझोगे।
43) इस प्रकार के जीव-जन्तुओं से अपवित्र मत बनो। तुम न तो स्वयं उन को छू कर अषुद्ध बनो और न अपने को उनके द्वारा अषुद्ध बनने दो।
44) मैं तुम्हारा प्रभु तुम्हारा ईष्वर हॅॅँू, इसलिए अपने आप को पवित्र करो और पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हॅँू। तुम भूमि पर रेंगने वाले जीव-जन्तुओं से अषुद्ध मत बनो।
45) मैं वह प्रभु हूँू, जो तुम्हें इसलिए मिस्र से निकाल लाया कि मैं तुम्हारा अपना ईष्वर बनूँ। पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हँू।
46) ''पषुओं, पक्षियों, जलचरों और पृथ्वी पर रेंगने वाले जीवों के संबंध में नियम यही हैं।
47) इस से सब लोग जान जायें कि कौन पषु अषुद्ध और कौन शुद्ध हैं, कौन खाद्य हैं और अखाद्य।''

अध्याय 12

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से कहो - यदि कोई स्त्री पुत्र प्रसव करेगी, तो वह सात दिन तक अषुद्ध रहेगी, जैसे वह ऋतुकाल में अषुद्ध रहती है।
3) आठवें दिन पुत्र का ख़तना किया जायेगा।
4) इसके बाद वह प्रसव के रक्तत्राव से तैंतीस दिन तक अषुद्ध रहेगी। जब तक उसके शुद्ध होने के दिन पूरे नहीं हो जायेंगे, तब तक वह न तो किसी पवित्र वस्तु का स्पर्श करेगी और न पवित्र-स्थान में प्रवेष करेगी।
5) यदि वह कन्या प्रसव करेगी, तो वह दो सप्ताह तक अषुद्ध रहेगी, जैसे वह ऋतुकाल में अषुद्ध रहती है। वह प्रसव के रक्तस्त्राव से छियासठ दिन तक अषुद्ध रहेगी।
6) जब उसके शुद्धीकरण के दिन पूरे हो जायेंगे, तब उसने चाहे पुत्र प्रसव किया हो या कन्या, वह दषर्न-कक्ष के द्वार के सामने याजक के पास होम-बलि के लिए एक वर्ष का मेमना और प्रायष्चित-बलि के लिए एक कबूतर या एक पण्डुक लाये।
7) याजक उन को प्रभु के सामने चढ़ा कर उसके लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा। इस प्रकार वह प्रसव के रक्तस्त्राव से शुद्ध हो जायेगी। यही पुत्र या कन्या प्रसव करने वाली स्त्री के नियम है।
8) यदि वह एक मेमना न चढ़ा सके, तो वह दो पण्डुक या दो कबूतर चढ़ाये- एक होम-बलि के लिए और एक प्रायष्चित-बलि के लिए। इस प्रकार याजक उसके लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा और वह शुद्ध हो जायेगी।

अध्याय 13

1) प्रभु ने मूसा और हारून से यह कहा,
2) यदि किसी मनुष्य के चमड़े पर सूजन, पपड़ी या फूल दिखाई पड़े और चमड़े में चर्मरोग हो जाने का डर हो, तो वह मनुष्य याजक हारून अथवा उसके पुत्रों में किसी के पास लाया जाये।
3) याजक उसके शरीर के रोगग्रस्त अंष की जाँच करे। यदि उस रोगग्रस्त अंश के रोयें सफेद हो गये हों और वह रोग चमड़े के भीतर तक दिखाई दे, तो वह कोढ़-जैसी बीमारी हैं। याजक जाँच करने के बाद उस मनुष्य को अषुद्ध घोषित करेगा।
4) किन्तु यदि उसके शरीर पर हलका सफ़ेद दाग हो और वह चमड़े के भीतर तक नहीं दिखाई देता हों और वहाँ के रोयें सफे+द नहीं हुए हों, तो याजक रोगी को सात दिन तक अलग रखे।
5) याजक सातवें दिन उसकी फिर जाँच करे और यदि वह देखे कि उसका दाग़ ज्यों-का-त्यों है और नहीं बढ़ा है, तो याजक उसे फिर सात दिन तक अलग रखे।
6) यदि याजक फिर सातवें दिन उसकी जाँच करने पर देखे कि वह दाग़ कुछ हलका हो गया है और वह दाग़ चमड़े पर नहीं फैला है, तो याजक उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित करे। वह दाग़ केवल पपड़ी थी। वह अपने कपड़े धोने के बाद शुद्ध माना जायेगा।
7) किन्तु यदि याजक द्वारा शुद्ध घोषित किये जाने बाद पपड़ी चमड़े पर बढ़ने लगती है, तो उस व्यक्ति को फिर याजक के पास आना चाहिए।
8) यदि याजक दूसरी बार जाँच करते समय देखता है कि पपड़ी बढ़ी है, तो वह उस व्यक्ति को अषुद्व घोषित करेगा। यह चर्मरोग ही है।
9) जब किसी मनुष्य पर कोढ़-जैसा रोग दिखाई पडे+, तो वह याजक के पास लाया जाये,
10) यदि याजक उसकी जाँच करने करने पर देखे कि चमड़े पर सफ़ेद-सी सूजन है और वहाँ के रोयें सफ़ेद हो गये हैं और वहॉँ के मांस पर चमड़ा नहीं है,
11) तो वह पुराना चर्म रोग है। याजक उस व्यक्ति को तुरन्त अषुद्ध घोषित करेगा। वह उसे पहले कुछ समय तक अलग नहीं करेगा। वह अषुद्ध ही है।
12) किन्तु यदि चर्मरोग उसके सारे षरीर से फूट पड़ा हो और रोगी के चमडे+ पर सिर से पैर तक फैल गया हो, तो याजक उसकी अच्छी तरह जाँच करेगा।
13) यदि वह रोग सारे षरीर पर फैल गया हो, तो याजक उस व्यक्ति को षुद्ध घोषित करेगा। पूरा षरीर सफ़ेद हो गया है, इसलिए वह षुद्ध है।
14) किन्तु यदि उसके शरीर पर चमड़ा नहीं है, तो वह अषुद्ध है।
15) यदि याजक देखता है कि उस पर कहीं-कहीं चमड़ा नहीं है तो वह उसको अषुद्ध घोषित करेगा; क्योंकि जिस मांस पर चमड़ा नहीं है वह अषुद्ध है यह चर्मरोग है।
16) यदि उसका शरीर फिर से सफ़ेद हो जाता हो, तो वह याजक के पास जाए
17) और यदि जाँच करने पर याजक देखे कि वह सफ़ेद हो गया है, तो याजक उस रोगी को शुद्ध घोषित करे। वह शुद्ध माना जायेगा।
18) यदि किसी के शरीर पर फोड़ा निकले और वह फिर अच्छा हो जाए,
19) किन्तु फोड़े के स्थान पर एक सफ़ेद-सी सूजन या हल्का लाल दाग़ हो जाये, तो वह अपने को याजक को याजक को दिखाये
20) जब याजक जाँच करने पर यह देखे कि वह दाग़ चमडे+ के भीतर तक दिखाई पड़ता है और वहाँ के रोयें सफ़ेद हो गये हैं, तो याजक उसे अषुद्ध घोषित करे। वह फोड़े के स्थान पर निकला हुआ चर्मरोग है।
21) परन्तु यदि याजक जाँच करने पर देखे कि वहाँ के रोयें सफेद नहीं हैं और वहाँ दाग़ चमडे+ के भीतर तक दिखाई नहीं देता है और उसकी सफ़ेदी कम हो गई है, तो याजक उसे सात दिन तक अलग रखें।
22) यदि वह रोग चमड़े पर फैल जाये, तो याजक उसे अषुद्ध घोषित करे। यह रोग है।
23) पर यदि वह दाग ज्यों-का-त्यों रहता है और बढ़वा नहीं, तो वह फोंड़े का दाग़ है। याजक उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित करे।
24) यदि किसी के चमड़े पर जलने का घाव हो और उस पर हल्का लाल या सफ़ेद दाग पड़ जाये
25) और याजक जाँच करने पर देखे कि वहाँ के रोयें सफ़ेद हो गये हैं और वह चमड़े के भीतर तक दिखाई देता है, तो वह जलने के दाग़ से फूटा हुआ चर्मरोग है। याजक उस व्यक्ति को अषुद्ध घोषित करे। यह चर्मरोग ही है।
26) लेकिन यदि याजक जाँच करते समय देखे कि वहाँ के रोयें सफेद नहीं हैं और वह चमड़े के भीतर तक नहीं दिखाई देता है और उसकी सफ़ेदी कम हो गयी है, तो याजक उस व्यक्ति को सात दिन तक अलग रखे।
27) सातवें दिन याजक फिर उसकी जाँच करे। यदि इसके बाद वह दाग़ चमड़े पर और अधिक फैल गया हो, तो याजक उसे अषुद्ध घोषित करे। वह चर्मरोग ही है।
28) परन्तु यदि वह दाग़ ज्यों-का-त्यों हो और बढ़ता नहीं और उसकी सफ़ेदी कम हो गयी है, तो वह जलने का दाग़ है। याजक उसे शुद्ध घोषित करे; क्योंकि वह जलने का दाग़ ही है।
29) यदि किसी पुरुष या स्त्री के सिर या ठुड्डी पर कोई रोग दिखाई दे
30) और याजक जाँच करने पर यह देखे कि वह रोग चमड़े के भीतर तक है और वहाँ के बाल पतले और पीले हैं, तो याजक उसे अषुद्ध घोषित करे। यह खाज, सिर या ठुड्डी का चर्मरोग है।
31) लेकिन यदि याजक खाज की जाँच करते समय देखे कि वह चमड़े में भीतर तक नहीं दिखाई दे रहा है और उस पर काले बाल नहीं हैं, तो याजक उस रोगी को सात दिन तक अलग रखे।
32) यदि सातवें दिन याजक जाँच कर देखे कि वह खाज नहीं फैली है और उस पर पीले रोयें नहीं हैं और वह खाज चमड़े की भीतर तक नहीं दिखाई दे रहीं है,
33) तो खाज वाले स्थान को छोड़ कर, इसके बाद याजक रोगी व्यक्ति को सात दिन तक अलग रखे।
34) यदि सातवें दिन याजक खाज की जाँच करे और देखे कि वह चमड़े पर और अधिक नहीं फैली है और चमड़े के भीतर तक नहीं दिखाई दे रही है, तो याजक उसे शुद्ध घोषित करे। वह अपने वस्त्र धो ले, इसके बाद वह शुद्ध माना जायेगा।
35) लेकिन यदि शुद्धीकरण के बाद खाज चमड़े पर फैल जाये
36) और याजक जाँच करते समय यह देखे कि खाज चमड़े पर फैल गयी है, तो याजक को पीले बालों पर ध्यान देने की आष्वयकता नहीं है। वह व्यक्ति अषुद्ध ही है।
37) यदि याजक यह देखे कि खाज ज्यों-की-त्यों है और उस पर काले बाल उग गये हैं, तो रोग अच्छा हो गया है और वह व्यक्ति शुद्ध हैं। याजक उसे शुद्ध घोषित करेगा।
38) यदि किसी पुरुष या स्त्री के शरीर पर सफ़ेद दाग़ है
39) और याजक जाँच करते समय यह देखे कि उसके चमड़े के दाग़ सफ़ेद हो और उनकी सफ़ेदी कम होती जा रही है, तो वह समझे कि वह उसके चमड़े पर निकली हुई दाद है। ऐसा व्यक्ति शुद्ध है।
40) यदि किसी मनुष्य के सिर के बाल झड़ गये हो तो वह गंजा है। वह शुद्ध है।
41) यदि उसके सिर के सामने के बाल झड़ गये हों, तो वह आधा गंजा है। वह भी शुद्ध है।
42) किन्तु यदि उसके सिर या सामने के गंजे भाग पर हलका लाल दाग़ दिखाई दे, तो यह उसके सिर या माथे का चर्मरोग है।
43) यदि याजक उस व्यक्ति की जाँच करते समय देखे क सिर या माथे पर चर्मरोग-जैसी कोई हल्की लाल सूजन है,
44) तो वह व्यक्ति रोगी और अषुद्ध है। याजक उसे अषुद्ध घोषित करे, क्योंकि यह उसके सिर पर चर्मरोग है।
45) चर्मरोगी फटे कपड़े पहन ले। उसके बाल बिखरे हुए हों। वह अपना मुँह ढक कर ÷अषुद्ध, अषुद्ध!÷ चिल्लाता रहे।
46) वह तब तक अषुद्ध होगा, जब तक उसका रोग दूर न हो। वह अलग रहेगा और षिविर के बाहर निवास करेगा।
47) जिस वस्त्र पर फफूंदी के दाग हों चाहे वे ऊन या छालटी के वस्त्र पर हों,
48) चाहे छालटी या ऊन के बुने या बिने हुए कपड़े पर हों, चमड़े पर हों या चमड़े की बनी वस्तु पर -
49) यदि वे दाग़ वस्त्र पर, चमड़े पर, बुने या बिने हुए कपड़े पर अथवा चमड़े की बनी किसी वस्तु पर हरे या लाल रंग के हों, तो वह फफूंदी है। उसे याजक को दिखाना चाहिए।
50) याजक जाँच करने के बाद उस दाग़ वाली वस्तु को सात दिन तक अलग रखे।
51) जब सातवें दिन वह उस दाग़+ वाली वस्तु की फिर जाँच करे और देखे कि उस वस्तु पर, बुने या बिने हुए कपड़े पर या चमड़े की बनी वस्तु पर का दाग़ बढ़ गया है, तो यह विषालु फफूंदी है। वह वस्तु अषुद्ध मानी जायेगी।
52) वह दाग़ वाला वस्त्र, ऊन या छालटी का बुना या बिना हुआ कपड़ा या चमड़े की बनी वस्तु जला दी जायेगी। यह विषालु फफूंदी है। उसे जला दिया जायेगा।
53) परन्तु यदि याजक जाँच करते समय देखे कि वह दाग़ - वस्त्र, बुने या बिने हुए कपड़े या चमड़े की बनी हुई वस्तु पर - नहीं बढ़ा है,
54) तो याजक उस वस्तु को धुला दे और फिर सात दिन तक अलग रखवाये।
55) यदि याजक यह देखे कि धुलाई के बाद दाग़ का रंग नहीं बदला और नहीं बढ़ा हैं, तो वह वस्तु अषुद्ध है। उसे जला दिया जायेगा, चाहे वह दाग सामने की ओर हो या पीछे की ओर।
56) किन्तु यदि याजक दाग़ वाली वस्तु को धुलाई के बाद उसकी जाँच करते समय देखे कि वह दाग़ कम हो गया है, तो उस वस्त्र या उस चमड़े से या बुने या बिने हुए कपड़े से उस दाग वाले भाग को काट दे।
57) इसके बाद यदि उस वस्त्र या उस बुने हुए कपड़े या चमड़े की उस वस्तु पर वह दाग फिर दिखाई दे, तो वह एक फैलने वाला चर्मरोग है। जिस पर वह दाग़ होगा, उसे आग में जला दिया जायेगा।
58) किन्तु वह वस्त्र या बुने या बिने हुए कपड़े या चमड़े की वह वस्तु, जिसके धोने पर दाग़ निकल गया हो, फिर धोयी जाये। इसके बाद वह शुद्ध मानी जायेगी।
59) ऊन या छालटी के वस्त्रों पर, बुने या बिन हुए कपड़ों या चमड़े की वस्तुओं पर फफूंदी पड़ी हो, तो उन्हें शुद्ध या अषुद्ध घोषित करने के यही नियम है।

अध्याय 14

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) किसी चर्मरोगी को शुद्ध घोषित करने के नियम इस प्रकार हैं। लोग उसे याजक के पास ले जायें।
3) याजक उसे षिविर के बाहर ले जाये और उसकी जाँच करें। यदि याजक देखे कि चर्मरोग स्वस्थ हो गया है,
4) तो उसके शुद्धीकरण के लिए याजक दो शुद्ध जीवित पक्षी, देवदार की लकड़ी, लाल कपड़ा और जूफ़ा मँगवाये।
5) याजक झरने के पानी से भरे पात्र के ऊपर एक पक्षी का वध करे।
6) वह जीवित पक्षी को देवदार की लकड़ी, लाल कपड़े और जुफ़ा को उस पक्षी के रक्त में डुबा दे, जिसका वध झरने के पानी के ऊपर किया गया है।
7) इसके बाद वह शुद्धीकरण चाहने वाले व्यक्ति पर सात बार वह पानी छिड़क कर उसे शुद्ध घोषित करे। वह जीवित पक्षी को खुले मैदान में उड़ जाने दे।
8) शुद्धीकरण चाहने वाला व्यक्ति अपने कपड़े धोये और सब बाल मुँड़वा कर जल से स्नान करे। इस प्रकार वह शुद्ध हो जायेगा। इसके बाद वह षिविर में आ सकता है, किन्तु सात दिन तक अपने तम्बू के बाहर रहे।
9) सातवें दिन वह फिर सारे बाल मुँड़वाये, सिर, ठुड्डी और भौंहों के सभी बाल मुँड़वा ले, अपने कपड़े धोये और जल से स्नान करे। वह शुद्ध हो जायेगा।
10) आठवें दिन वह दो अदोष मेमने, एक वर्ष की एक अदोष भेड़ तथा अन्न-बलि के लिए छह सेर तेल मिश्रित मैदा और आधा सेर तेल लाये।
11) शुद्धीकरण करने वाला याजक उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति और इन सब चीजों को प्रभु के सामने दर्षन-कक्ष के द्वार ले आये।
12) याजक एक मेमना और आधा सेर तेल क्षतिपूर्ति-बलि के रूप में चढ़ाये। वह उन्हें प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करे।
13) तब उस स्थान पर, जहाँ प्रायष्चित-बलि और होम-बलि में वध होता है, वहाँ अर्थात् पवित्र-स्थान पर उस मेमने का वध किया जाये; क्योंकि प्रायष्चित बलि के समान ही क्षतिपूर्ति-बलि पर याजक का अधिकार है। वह परम पवित्र है।
14) याजक उस क्षतिपूर्ति-बलि के रक्त में से थोड़ा ले कर शुद्ध किये जाने वाले उस व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाये।
15) तब याजक अपनी बायीं हथेली पर थोड़ा तेल उँडेले और
16) अपने दाहिने हाथ की तर्जनी तेल में डुबो कर, तेल को सात बार प्रभु के सामने छिड़के।
17) याजक हथेली पर का शेष तेल उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर क्षतिपूर्ति-बलि के रक्त के ऊपर ही लगा दे।
18) याजक हथेली का शेष तेल शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के सिर पर लगा दे। इस प्रकार याजक प्रभु के सामने उस व्यक्ति के लिए प्रायष्चित करे।
19) इसके बाद याजक प्रायष्चित-बलि चढ़ाये और उस शुद्व किये जाने वाले व्यक्ति के लिए प्रायष्चित पूरा करे। फिर वह होम-बलि के पशु का वध करे।
20) इसके बाद याजक होम-बलि और अन्न-बलि वेदी पर चढ़ा दे। इस प्रकार याजक उसके लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करे।
21) लेकिन यदि वह व्यक्ति ग़रीब हो और उतना न दे सके, तो वह क्षतिपूर्ति-बलि के लिए एक मेमना दे, जो प्रायश्चित के रूप में प्रभु के सामने हिला-हिला कर चढ़ाया जाये। वह अन्न बलि के लिए तेल-मिश्रित दो सेर मैदा और आधा सेर तेल ले आये।
22) और इसके अतिरिक्त दो पण्डुक या दो कबूतर, जो भी मिल सकें एक प्रायष्चित बलि के लिए और एक होम बलि के लिए।
23) आठवें दिन वह यह सब दर्षन कक्ष के द्वार पर, प्रभु के सामने अपने शुद्धीकरण के लिए याजक के पास ले आये।
24) याजक क्षतिपूर्ति-बलि का मेमना और आधा सेर तेल ले कर उन्हें प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करे।
25) इसके बाद वह क्षतिपूर्ति-बलि के मेमने का वध करे और उसका कुछ रक्त उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाये।
26) तब याजक अपनी बायीं हथेली पर थोड़ा तेल उँडेले और
27) अपने दाहिने हाथ की तर्जनी से तेल को सात बार प्रभु के सामने छिड़के।
28) तब याजक अपनी हथेली पर का कुछ तेल उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर क्षतिपूर्ति-बलि के रक्त के ऊपर ही लगा दे।
29) याजक हथेली का शेष तेल शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के सिर पर लगा दे। इस प्रकार वह प्रभु के सामने उस व्यक्ति के लिए प्रायष्चित करे।
30) इसके बाद वह पण्डुकों या कबूतरों में से एक, जो भी मिल सके,
31) क्षतिपूर्ति-बलि के रूप में चढ़ाये और अन्न बलि के साथ दूसरा पक्षी होम-बलि के रूप में। इस प्रकार याजक शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करे।
32) वह विधि केवल उस चर्मरोगी के लिए है, जो अपने शुद्धीकरण का पूरा खर्च नहीं दे सकता है।''
33) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
34) ''जब तुम कनान देष पहुँचोगे, जिसे मैं तुम्हारे अधिकार में देता हूँ, तब यदि मैं वहाँ किसी व्यक्ति के घर में फफूंदी लगने देता हूँ,
35) तो घर का मालिक याजक के पास जा कर यह कहते हुए इसकी सूचना, मेरे घर में फफूंदी की-सी बीमारी दिखाई देती है।
36) तब याजक आदेष दे कि उसके द्वारा जाँच के पहले ही उस घर को खाली किया जाये, जिससे घर का सारा सामान अषुद्ध घोषित होने से बच जाये। इसके बाद याजक उस घर की जाँच करने के लिए घर के भीतर जाये।
37) यदि याजक जाँच करते समय देखे कि घर की दीवारों पर हरे और लाल दाग़ पड़े है जो दीवारों की भीतर तक दिखाई दे रहे हैं,
38) तो वह घर से निकल कर सात दिन के लिए घर बन्द कर दे।
39) सातवें दिन याजक फिर आये और यदि जाँच करते समय देखे कि घर की दीवारों पर लगे दाग़ और अधिक फैल गये हैं,
40) तो वह आदेष दे कि दाग़ लगे पत्थर निकाल दिये जायें और उसे नगर के बाहर किसी अषुद्ध स्थान पर फेंक दिये जाये।
41) घर के चारों ओर की दीवारों का पलस्तर निकाल दिया जाये और उसे नगर के बाहर किसी अषुद्ध स्थान पर फेंक दिया जाये।
42) तब उन पत्थरों की जगह दूसरे पत्थर लगाये जायें और और दूसरा पलस्तर भी लगाया जायें।
43) यदि पत्थर और पलस्तर के निकाल देने और नया पलस्तर लगाने के बाद भी उस घर में फिर वैसे ही दाग़ दिखाई देने लगें
44) तो याजक फिर उसकी जाँच करने आये। यदि वह देखे कि वे दाग़ घर में बहुत अधिक फैल गये है, तो उस घर में विषालु फफूंदी है। वह अषुद्व हैं।
45) वह घर तोड़ दिया जाये। उसके पत्थर, उसकी बल्लियाँ, घर का सारा पलस्तर, सब कुछ नगर के बाहर किसी अषुद्ध स्थान पर फेंक दिया जाये।
46) जो उस घर में, उसके बन्द रहने के समय, किसी दिन प्रवेष करेगा, वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
47) जो उस घर में सोयेगा, वह अपने कपड़े धो डाले और जो उस घर में भोजन करेगा, वह भी अपने कपड़े धो डाले।
48) यदि याजक फिर उसकी जाँच करने पर देखे कि दीवारों पर, नया पलस्तर करने के बाद, दाग घर में अधिक नहीं फैले है, तो याजक उस घर को शुद्ध धोषित करे; क्योंकि उस में फफूंदी नहीं रही।
49) उस घर के शुद्धीकरण के लिए वह दो पक्षी, देवदार की लकड़ी, लाल कपड़ा और ज्+ाूफ़ा लाये।
50) वह झरने के पानी से भरे पात्र के ऊपर एक पक्षी का वध करे।
51) वह जीवित पक्षी को, देवदार की लकड़ी, लाल कपड़े और ज्+ाूफ़ा को उस पक्षी के रक्त में डुबा दे, जिसका वध पानी के ऊपर किया गया है और घर पर सात बार वह पानी छिड़के।
52) इस प्रकार वह पक्षी के रक्त, झरने के पानी, जीवित पक्षी, देवदार की लकड़ी, ज्+ाूफ़ा और लाल कपड़े से वह घर शुद्ध करता है। वह उस जीवित पक्षी को नगर से बाहर खुले मैदान में उड़ जाने दे।
53) इस प्रकार वह उस घर का प्रायष्चित सम्पन्न करेगा और वह शुद्ध हो जायेगा।
54) ''सब प्रकार के चर्मरोग, खाज
55) वस्तुओं और घरों में लगी फफूंदी,
56) सूजन पपड़ी और सफ़ेद दाग़ों के विषय में विविध नियम यही है।
57) इनके द्वारा तुम किसी वस्तु को अशुद्व घोषित करोगे। वह चर्मरोग-संबंधित विधि है।''

अध्याय 15

1) प्रभु ने मूसा और हारून से कहा इस्राएलियों से कहो-
2) ''यदि किसी पुरुष के शरीर से वीर्य का स्राव होता है तो वह इस कारण अशुद्ध है।
3) चाहे वह स्राव होता रहता हो या उसके शरीर में रुका रहता हो, वह उसे अषुद्ध बनाता है।
4) इस प्रकार के स्राव से पीड़ित व्यक्ति जिस बिछावन पर लेटता है या जिस वस्तु पर बैठता है, वह अषुद्ध है।
5) जो उस व्यक्ति के बिछावन का स्पर्ष करेगा, वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
6) जिस वस्तु पर रोगी बैठता है, उस पर बैठने वाला व्यक्ति अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
7) जो रोगी व्यक्ति का स्पर्ष करेगा, वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
8) यदि रोगी व्यक्ति का थूक किसी शुद्ध मनुष्य पर पडे+, तो वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
9) जिस जीन पर वह रोगी व्यक्ति बैठा है, वह अषुद्ध है।
10) यदि कोई ऐसी चीज+ का स्पर्ष करेगा, जिस पर रोगी बैठा है, तो वह अषुद्ध है। जो ऐसी चीज+ उठायेगा, वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
11) यदि रोगी व्यक्ति बिना हाथ धोये किसी का स्पर्ष करेगा, तो वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
12) मिट्टी का वह बरतन, जिसे रोगी ने स्पर्ष किया, फोड़ दिया जायेगा और लकड़ी की बनी चीज+ पानी से धोयी जायेगी।
13) यदि किसी रोगी का स्राव अच्छा हो गया हो और वह शुद्धीकरण करना चाहे तो वह सात दिन तक प्रतीक्षा करे। वह कपड़े धोयेगा और बहते पानी में स्नान करेगा। इस पर वह शुद्ध हो जायेगा।
14) आठवें दिन वह दो पण्डुक या दो कबूतर लिये दर्षन-कक्ष के द्वार पर प्रभु के सामने आयेगा और उन्हें याजक को देगा।
15) याजक एक को पाप के प्रायष्चित के रूप में चढ़ायेगा और एक को होम-बलि के रूप में। इस प्रकार वह स्राव के कारण उसके लिए प्रभु के सामने प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा।
16) यदि किसी पुरुष का वीर्यपात हो जाये, तो वह पानी से स्नान करे। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
17) ऐसे वस्त्र और चमड़े की वस्तुएँ जिन पर वीर्य गिरा हो, पानी से धोयी जायें। वे शाम तक अषुद्ध होंगी।
18) यदि कोई पुरुष किसी स्त्री से प्रसंग करता है और वीर्यपात हो जाता है, तो दोनों स्नान करेंगे। वे शाम तक अषुद्ध रहेंगे।
19) यदि किसी स्त्री का मासिक स्राव हो, तो वह सात दिन तक अषुद्ध रहेगी और जो उसका स्पर्ष करेगा, वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
20) वह सब, जिस पर वह अपने मासिक धर्म के समय लेटती या बैठती है, अषुद्ध हो जायेगा।
21) जो उसके बिछावन का स्पर्ष करेगा। वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
22) यदि कोई ऐसी चीज का स्पर्ष करेगा, जिस पर वह बैठी है, तो वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा।
23) जो व्यक्ति किसी ऐसी चीज+ का स्पर्ष करे, जो उस बिछावन या उस वस्तु पर पड़ी हो, जिस पर वह बैठी थी, वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
24) यदि कोई पुरुष ऐसी स्त्री से प्रसंग करे, तो वह भी सात दिन तक अषुद्ध रहेगा और वह जिस बिछावन पर लेटता है, वह अषुद्ध हो जायेगा।
25) यदि किसी स्त्री को उसके मासिक धर्म के दिनों के सिवा अन्य दिनों में अथवा मासिक धर्म पूरा होने के बाद रक्तस्राव होता रहे, तो वह उस समय ऋतुकाल की तरह अषुद्ध है।
26) रक्तस्राव के दिनों में बिछावन के लिए मासिक धर्म का नियम लागू है। जिस वस्तु पर वह बैठी है, उस पर यही नियम लागू है; वह मासिक धर्म के समय की तरह अषुद्ध है।
27) जो उन वस्तुओं का स्पर्ष करेगा, वह अषुद्ध हो जायेगा। वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा।
28) जब वह अपने स्राव से मुक्त हो जायेगी, तो वह सात दिन तक प्रतीक्षा करेगी। इसके बाद वह शुद्ध होगी।
29) आठवें दिन वह दो पण्डुक या दो कबूतर प्रभु के सामने, दर्षन-कक्ष के द्वार पर, याजक के पास ले जाये।
30) याजक एक को प्रायष्चित-बलि के रूप में और दूसरें को होग-बलि के रूप में चढ़ाये। इस प्रकार याजक स्राव की अषुद्धता के कारण उसके लिए प्रभु के सामने प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा।
31) इस्राएलियों को उनकी अषुद्धता के परिणामों की चेतावनी दो। यदि वे उस अवस्था में मेरे निवास में प्रवेष करेंगे, तो उनकी मृत्यु हो जायेगी।
32) (३२-३३) जिस पुरुष के शरीर से वीर्य का स्राव होता है या वीर्य पात हुआ है, जिस स्त्री का मासिक धर्म होता है, जिस पुरुष या स्त्री का स्राव होता है, जिस पुरुष का किसी स्त्री से प्रसंग हुआ है, उन सब की अषुद्धता के विषय में यही नियम है।''

अध्याय 16

1) हारून के दो पुत्रों की मृत्यु के बाद, जिनकी मृत्यु प्रभु के सामने बलि चढ़ाते समय हो गयी थी,
2) प्रभु ने मूसा से कहा, ''अपने भाई हारून से कहो कि वह किसी भी समय पवित्र-स्थान के अन्तरपट के भीतर मंजूषा के छादन-फलक के पास न जाया करे। नहीं तो उसकी मृत्यु हो जायेगी। मैं मंजूषा के छादन-फलक के ऊपर बादल में दर्षन देता हूँ।
3) हारून पवित्र-स्थान में तभी प्रवेष करे, जब वह प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बछड़ा चढ़ाता है और होम-बलि के रूप में एक मेढ़ा।
4) वह छालटी का कुरता और छालटी का जाँघिया पहन ले, कमर में छालटी की पट्टी बाँध ले और छालटी की पगड़ी बाँधे। वे पवित्र वस्तुएँ हैं। वह उन्हें पहनने के पहले स्नान करे।
5) वह इस्राएली समुदाय से प्रायष्चित के लिए दो बकरे और होम-बलि के लिए एक मेढ़ा ले ले।
6) हारून पहले अपने लिए और अपने वंष के लिए प्रायष्चित के रूप में एक बछड़ा चढ़ाये।
7) तब वह उन दो बकरों को दर्षन-कक्ष के द्वार पर ले आये।
8) फिर हारून इन दो बकरों पर चिट्टियाँ डाले - एक चिट्टी प्रभु के लिए और एक चिट्टी अजाज+ेल के लिए।
9) हारून उस बकरे को, जिस पर प्रभु के नाम की चिट्टी पड़ी प्रायष्चित-बलि के रूप में चढ़ाये।
10) फिर उस बकरे को, जिस पर अजाज+ेल के नाम की चिट्टी पड़ी, प्रायष्चित-बलि के रूप में जीवित ही प्रभु के सामने प्रस्तुत किया जाये, उसके साथ प्रायष्चित-विधि सम्पन्न की जाये और बाद में उसे निर्जनस्थान में अजाजे+ल के पास भेज दिया जाए।
11) हारून पहले अपने लिए और अपने वंष के लिए प्रायष्चित-बलि के रूप में बछड़ा चढ़ाये और उसका वध करे।
12) फिर वह प्रभु की वेदी से अंगारों से भरे धूपदान और अंजलि-भर महीन सुगन्धित धूप-द्रव्य ले कर उन्हें अन्तरपट के पीछे ले जाये।
13) वह प्रभु के सामने धूप-द्रव्य अंगारों पर रखे, जिससे धुआँ विधान की मंजूषा का छादन-फलक ढक ले। नहीं तो उसकी मृत्यु हो जायेगी।
14) अन्त में वह उस बछड़े के रक्त में अपनी उँगली डुबों कर उसे छादन-फलक के सामने के भाग पर सात बार छिड़के।
15) इसके बाद वह समुदाय के लिए प्रायष्चित-बलि के बकरे का वध करे। वह उसका रक्त अन्तरपट के भीतर ले जाये और बछड़े के रक्त की तरह उसे छादन-फलक के सामने और ऊपर छिड़के।
16) इसी प्रकार इस्राएलियों के अपराधों और उनके सब प्रकार के पापों की अषुद्धता के कारण वह परमपवित्र-स्थान की प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा और इसी प्रकार वह दर्षन-कक्ष की भी प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा, जो उनकी अषुद्धता के होते हुए भी उनके बीच रहता है।
17) जब हारून उसका प्रायष्चित करने परमपवित्र-स्थान में प्रवेष करे, तो वह जब तक बाहर नहीं आये, तब तक कोई व्यक्ति दर्षन-कक्ष में प्रवेष नहीं करे। इस प्रकार वह अपने और अपने घर के सब लोगों तथा सारे इस्राएली समुदाय के लिए प्रायष्चित करे।
18) इसके बाद वह प्रभु के सामने की वेदी के पास प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करे। वह उस बछड़े और उस बकरे का रक्त वेदी के चार सींगों पर लगायें
19) और अपनी उँगली से सात बार वेदी पर रक्त छिड़के। इस प्रकार वह इस्राएलियों की अषुद्धता से वेदी को शुद्ध और पवित्र करे।
20) वह परमपवित्र-स्थान, दर्षन-कक्ष और वेदी का प्रायष्चित कर चुकने के बाद दूसरा जीवित बकरा ले आने कहें।
21) हारून अपने दोनों हाथ उस जीवित बकरे के सिर पर रख कर, इस्राएलियों के सारे कुकर्मों और सब प्रकार के अपराधों को स्वीकार कर, उन्हें उसके सिर पर डाल दे और फिर पहले से निर्धारित व्यक्ति के द्वारा उसे रेगिस्तान में पहुँचा दे।
22) इस प्रकार वह बकरा लोगों के सब अपराधों को निर्जन-स्थान ले जायेगा और वह वहाँ छोड़ दिया जायेगा।
23) इसके बाद हारून फिर दर्षन-कक्ष में प्रवेष करे और छालटी के वे कपड़े उतार कर वहाँ रखें, जिन्हें उसने परमपवित्र-स्थान में प्रवेष करने के लिए पहना था।
24) तब वह पवित्र-स्थान में स्नान करे, अपने वस्त्र पहने और फिर बाहर आये और अपने और लोगों के लिए होम-बलि चढ़ाये और इस प्रकार वह अपनी और लोगों की प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करे।
25) वह प्रायष्चित-बलि की चरबी वेदी पर जला दे।
26) ''वह व्यक्ति, जो उस बकरे को अजाजे+ल के पास ले गया था, अपने कपड़े धोये और स्नान करे। तब वह फिर षिविर में प्रवेष कर सकता है।
27) प्रायष्चित-बलि का बछड़ा और प्रायष्चित-बलि का बकरा जिनका रक्त प्रायष्चित्त करने के लिए परमपपित्र-स्थान में लाया गया था, षिविर के बाहर ले जाये। उनकी खालें, उनका मांस और उनका गोबर आग में जला दिया जाये।
28) जो उन्हें जलाये, वह अपने वस्त्र धो कर और स्नान कर फिर षिविर में प्रवेष कर सकता है।
29) यह तुम्हारे लिए चिरस्थायी धर्मविधि होगी : सातवें महीनें, महीने के ठीक दसवें दिन, तुम उपवास करोगे और किसी प्रकार का काम नहीं करोगे-न तो इस्राएली और न तुम्हारे साथ रहने वाला प्रवासी;
30) क्योंकि उसी दिन तुम्हारे पापों के कारण तुम्हारे प्रायष्चित की विधि सम्पन्न की जायेगी। जिससे तुम प्रभु के सामने फिर शुद्ध हो जाओ।
31) वह तुम्हारे लिए पूर्ण विश्राम का दिन होगा और तुम उस दिन उपवास करोगे। यह तुम्हारे लिए चिरस्थायी आदेष है।
32) यही याजक प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा, जो अपने पिता के स्थान पर याजक-पद के लिए अभ्यंजित और अभिषिक्त किया गया है।
33) वह छालटी के पवित्र वस्त्र धारण कर परमपवित्र-स्थान का, दर्शन-कक्ष का, वेदी का और याजकों तथा इस्राएलियों के समुदाय का प्रायष्चित भी करेगा।
34) यह तुम्हारे लिए चिरस्थायी आदेश है कि वर्ष में एक बार इस्राएलियों के सब पापों के लिए प्रायष्चित किया जाये।'' प्रभु ने मूसा को जैसा आदेष दिया था, वैसा ही किया गया।

अध्याय 17

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''हारून उसक पुत्रों और सब इस्राएलियों से कहो - प्रभु का आदेष यह है।
3) यदि इस्राएलियों में कोई व्यक्ति षिविर के अन्दर या षिविर के बाहर किसी बछड़े, भेड़ या बकरी का वध करे
4) और उसे दर्षन-कक्ष के द्वार पर, प्रभु के निवास के सामने, प्रभु को अर्पित नहीं करे, तो वह रक्तपात का दोषी माना जायेगा। उसने रक्त बहाया और वह समुदाय से बहिष्कृत किया जायेगा।
5) अब से इस्राएली अपने बलि-पशुओं का किसी भी स्थान पर वध नहीं करेंगे। वे उन्हें याजक के पास, अर्थात् प्रभु के दर्षन-कक्ष के द्वार पर ले आयेंगे और उन्हें शान्ति-बलि के रूप में चढ़ायेंगे।
6) याजक बलि-पशु का रक्त दर्षन-कक्ष के द्वार पर छिड़केगा और उसकी चरबी वेदी पर जला देगा। यह एक सुगन्धयुक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
7) वे अब से उन वन-देवताओं को बलि नहीं चढ़ायेंगे, जिनकी वे व्यभिचार करते हुए पूजा करते है। यह उनके लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी चिरस्थायी आदेष है।
8) तुम उन से यह कहो : यदि कोई - चाहे वह इस्राएली हो या तुम्हारे बीच रहने वाला प्रवासी होम-बलि या शान्ति-बलि चढ़ाये
9) और उसे प्रभु को अर्पित करने के लिए दर्षन-कक्ष के द्वार पर नहीं ले आये, तो वह समुदाय से बहिष्कृत किया जायेगा।
10) यदि कोई - चाहे वह इस्राएली हो या तुम्हारे बीच रहने वाला प्रवासी - रक्त का उपभोग करेगा, तो मैं उस पर अप्रसन्न हो जाऊँगा और उसका उसके समुदाय से बहिष्कार करूँगा,
11) क्योंकि रक्त में ही किसी प्राणी की जीवन-शक्ति है। मैंने उसे तुम्हें केवल इसलिए दे दिया कि तुम उस से वेदी पर अपने लिए प्रायष्चित करो, क्योंकि रक्त से इस कारण प्रायष्चित किया जाता है कि उस में जीवन-शक्ति है।
12) इसलिए मैंने इस्राएलियों को यह आदेष दिया : तुम में कोई रक्त का उपभोग नहीं करेगा, तुम्हारे बीच रहने वाला प्रवासी भी नहीं।
13) यदि कोई इस्राएली या तुम्हारे बीच रहने वाला कोई प्रवासी षिकार खेलते कोई जानवर या पक्षी पकड़े जिसे खाने की आज्ञा है, तो वह उस से रक्त निकाल दे और रक्त को बालू से ढ़क दें,
14) क्योंकि रक्त में ही मनुष्य और पशु की जीवन-शक्ति है। इसलिए मैंने इस्राएलियों से कहा : मनुष्य या पशु के रक्त में ही मनुष्य और पषु की जीवन-शक्ति है। जो रक्त का उपभोग करेगा, वह समुदाय से बहिष्कृत किया जायेगा।
15) जो इस्राएली या प्रवासी मरे हुए या फाडे+ हुए पशु का मांस खायेगा, वह अपने कपड़े धोयेगा और स्नान करेगा। वह शाम तक अषुद्ध रहेगा। इसके बाद वह फिर शुद्ध होगा।
16) जो अपने कपड़े नहीं धोयेगा और स्नान नहीं करेगा, वह दोषी माना जायेगा।''

अध्याय 18

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से यह कहो - मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूँ।
3) तुम लोगों को वैसा नहीं करना चाहिए, जैसा मिस्र के लोग, जहाँ तुम रहते थे, किया करते हैं और न वैसा ही करना चाहिए, जैसा कनान देष के लोग जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ, किया करते हैं।
4) तुम उनके आचरण का अनुकरण नहीं करो। तुम मेरी विधियों के आदेषों का पालन करो। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हँू।
5) तुम मेरे ही आदेषों और विधियों का पालन करते रहो। जो उनका पालन करेगा, उस को उनके द्वारा जीवन प्राप्त होगा। मैं प्रभु हूँ।
6) तुम में कोई अपनी निकट कुटुम्बिनी के पास जा कर उसका शील भंग नहीं करेगा। मैं प्रभु हूँ।
7) तुम अपनी माता का शील भंग कर अपने पिता का अनादर नहीं करोगे। वह तुम्हारी माता है, इसलिए तुम उसका शील भंग नहीं करोगे।
8) तुम अपने पिता की दूसरी पत्नी का शील भंग कर अपने पिता का अनादर नहीं करोगे।
9) तुम अपने पिता या अपनी माता की पुत्री, अपनी बहन का शील भंग नहीं करोगे, चाहे वह एक ही घर में या दूसरी जगह पैदा हुई हो।
10) तुम अपनी पोती या नतिनी का शील भंग कर अपना अनादर नहीं करोगे।
11) तुम अपने पिता की किसी पत्नी से उत्पन्न, उसकी अपनी पुत्री का शील भंग नहीं करोगे। वह तुम्हारी बहन है।
12) तुम अपने पिता की बहन का शील भंग नहीं करोगे। वह तुम्हारे पिता की निकट कुटुम्बिनी है।
13) तुम अपनी माता की बहन की बहन का शील भंग नहीं करोगे। वह तुम्हारी माता की निकट कुटुम्बिनी है।
14) तुम अपने पिता के भाई की पत्नी का शील भंग कर अपने चाचा का अनादर नहीं करोगे। वह तुम्हारी चाची है।
15) तुम अपनी पुत्रवधू का शील भंग नहीं करोगे। वह तुम्हारे पुत्र की पत्नी है, इसलिए तुम उसका शील भंग नहीं करोगे।
16) तुम अपने भाई की पत्नी का शील भंग कर अपने भाई का अनादर नहीं करोगे।
17) तुम किसी स्त्री और उसकी पुत्री का शील भंग नहीं करोगे। तुम उसकी पोती या नातिनी का शील भंग नहीं करोगे। ये उसकी निकट कुटुम्बिनियाँ हैं। यह व्यभिचार है,
18) तुम अपनी पत्नी की बहन से विवाह नहीं करोगे; क्योंकि एक के जीते दूसरी के साथ प्रसंग करने से ईर्ष्या उत्पन्न होती है।
19) किसी स्त्री के साथ उसके मासिक धर्म के समय प्रसंग मत करो। वह अषुद्ध है।
20) तुम अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ प्रसंग नहीं करोगे। इस से तुम दूषित हो जाओगे।
21) तुम अपनी कोई सन्तान मोलेक देवता को नहीं चढ़ाओगे। इस से तुम अपने ईष्वर का नाम अपवित्र करोगे। मैं प्रभु हूँंं।
22) तुम स्त्री की तरह, किसी पुरुष के साथ प्रसंग नहीं करोगे। यह घृणित है।
23) तुम पशुगमन द्वारा अपने को दूषित नहीं करोगे। कोई स्त्री किसी पशु के साथ प्रसंग नहीं करेगी। यह घृणित है।
24) तुम इन सब कामों द्वारा अपने को दूषित नहीं करोगे; क्योंकि जिन राष्ट्रों को मैं तुम लोगों के सामने निकाल दूँगा, उन्होंने इसी प्रकार अपने को दूषित किया है।
25) इस कारण वह देष दूषित हो गया है। मैंने उसे उसके कुकमोर्ंं का दण्ड दिया और उस देष ने अपने निवासियों को बाहर निकाल दिया।
26) तुम मेरे आदेषों और विधियों का पालन करोगे और ऐसे कुकर्म नहीं करोगे - न तो इस्राएली और न तुम्हारे बीच रहने वाला प्रवासी।
27) तुम से पहले उस देष के रहने वालों ने ऐसे कुुकर्म किये और वह देष दूषित हो गया है।
28) सावधान रहो, उस देष को फिर दूषित मत करो। नहीं तो वह तुम को बाहर निकाल देगा, जैसा कि उसने तुम्हारे पहले के लोगों के साथ किया।
29) जो इस प्रकार के कुकर्म करते हैं, वे अपने समुदाय से बहिष्कृत किये जायेगे।
30) मेरे आदेषों का पालन करो और तुम पहले के कुकर्मों से दूर रहो। उनके द्वारा दूषित न बनो। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूँ।''

अध्याय 19

1) प्रभु मूसा से बोला,
2) ''इस्राएलियों के सारे समुदाय से यह कहो - पवित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर, पवित्र हूँ।
3) तुम में प्रत्येक व्यक्ति अपने माता-पिता का आदर करेगा और मेरे विश्राम-दिवस मनायेगा, क्योंकि मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूँ।
4) तुम मूर्तिपूजा नहीं करोगे, न तुम अपने लिए ढाली हुई देव मूर्तियाँ बनाओगे; क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँ।
5) यदि तुम प्रभु के लिए शान्ति-बलि चढ़ाओं, तो उसे इस प्रकार चढ़ाओ कि तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओ।
6) तुम जिस दिन बलि चढ़ाते हो, उसे उसी दिन जो शेष रह जाये, वह आग में जला दिया जाये।
7) यदि तीसरे दिन उस में से कुछ खाया जायेगा, तो वह अषुद्ध है और चढ़ाने वाले को उस से कुछ लाभ नहीं होगा।
8) जो उस में से खाता है, वह दोषी होगा। उसने प्रभु की पवित्र वस्तु को अपवित्र किया। वह अपने समुदाय से बहिष्कृत किया जायेगा।
9) जब तुम अपनी भूमि की फ़सल काटो, तो अपने खेतों को किनारे तक नहीं काटो और काटे हुए खेत की बालें नहीं बीनो।
10) तुम अपनी दाखबारियों से दूसरी बार फल नहीं बटोरो और गिरे हुए अंगूरों को नहीं बीनो। तुम उन्हें गरीबों और परदेषियों के लिए छोड़ दो। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँ।
11) चोरी मत करो, झूठ मत बोलो और अपने पड़ोसी को धोखा मत दो।
12) अपने ईष्वर का नाम अपवित्र करते हुए मेरे नाम की झूठी शपथ मत लो। मैं प्रभु हूँ।
13) तुम न तो अपने पड़ोसी का षोषण करो और न उसके साथ किसी प्रकार का अन्याय। अपने दैनिक मजदूर का वेतन दूसरे दिन तक अपने पास मत रखो।
14) तुम न तो बहरे का तिरस्कार करो और न अन्धे के मार्ग में ठोकर लगाओ, बल्कि अपने ईष्वर पर श्रद्धा रखो। मैं प्रभु हूँं।
15) तुम न्याय करते समय पक्षपात मत करो। तुम न तो दरिद्र का पक्ष लो और न धनी का मन रखो। तुम निष्पक्ष होकर अपने पड़ोसी का न्याय करो।
16) तुम न तो अपने लोगों की बदनामी करो और न अपने पड़ोसी को प्राणदण्ड दिलाओं। मैं प्रभु हँू।
17) अपने भाई के प्रति अपने हृदय में बैर मत रखो। यदि तुम्हारा पड़ोसी कोई अपराध करे, तो उसे डाँटो। नहीं तो तुम उसके पाप के भागी बनोगे।
18) तुम न तो बदला लो और न तो अपने देष-भाइयों से मनमुटाव रखो। तुम अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। मैं प्रभु हूँ।
19) तुम मेरे आदेषों का पालन करो। तुम एक जाति के पशु से दूसरी जाति के पषु का गर्भाधान नहीं कराओं। तुम अपने खेतों में दो प्रकार के बीज नहीं बोओगे तुम दो प्रकार के धागों से बुने वस्त्र नहीं पहनोगे।
20) यदि कोई पुरुष ऐसी स्त्री से प्रसंग करता है, जो दासी है और जिसकी सगाई किसी दूसरे से हो चुकी है, किन्तु जिसको रूपया देखर नहीं छुड़ाया गया है और जो अपनी दासता से मुक्त नहीं हुई है, तो उन्हें उचित दण्ड दिया जाये, लेकिन उन्हें प्राणदण्ड नहीं दिया जाएगा, क्योंकि वह स्वतंत्र नहीं है।
21) पुरुष प्रभु के सामने क्षतिपूर्ति-बलि चढ़ाने के लिए दर्षन-कक्ष के द्वार पर एक मेढ़ा लायेगा।
22) इसके द्वारा याजक उसके पाप के लिए प्रभु के सामने प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करेगा इसके बाद उसे पाप की क्षमा मिलेगी।
23) जब तुम देष में पहँुचोगे, और वहाँ भिन्न प्रकार के फल-वृक्ष लगाओगे, तो उनके फल वर्जित होंगे। वे तीन वर्ष तक तुम्हारे लिये वर्जित होंगे तुम उन्हें नहीं खाओगे।
24) चौथे वर्ष उनके सब फल पवित्र होंगे और प्रभु को अर्पित किये जायेंगे।
25) पाँचवे वर्ष तुम उनके फल खा सकोगे। उस समय से वृक्षों की फ़सल बढ़ती जायेगी। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हँू।
26) तुम ऐसा माँस नही खाओगे जिस में रक्त रह गया है। तुम न तो सगुन विचारोगे और न तो भूत-प्रेत की साधना करोगे।
27) तुम कनपटियों पर अपने बाल या अपनी दाढ़ी का किनारा मत कटवाओ।
28) तुम किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण अपने शरीर में घाव नहीं करोगे और न उस पर गोदना बनवाओगे। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हँू।
29) तुम अपनी बेटी को वेष्या बना कर उसे भ्रष्ट नहीं करोगे। कहीं ऐसा न हो कि देष में वेष्यागमन बढ़ जाये और दुराचार से भर जाए।
30) तुम मेरे विश्राम-दिवस मनाओगे और मेरे पवित्र-स्थान का आदर करोगे। मैं प्रभु हँू।
31) तुम भूत-प्रेत साधने वालों और ओझों के पास नहीं जाओगे और उन से प्रष्न नहीं करोगे। उससे तुम दूषित हो जाओगे। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हॅँू।
32) तुम बूढ़ों के सामने खडे+ हो जाओगे और उनका सम्मान करोगे। तुम अपने ईष्वर पर श्रद्धा रखोगे। मैं प्रभु हॅँू।
33) यदि तुम्हारे देष में तुम्हारे साथ कोई प्रवासी रहता हो, तो उसके प्रति अन्याय नहीं करोगे।
34) यदि कोई विदेषी तुम्हारे साथ प्रवासी के रूप में रहता हो, तो उसे अपनी जाति वाले के समान समझोगे। उस से अपने ही समान प्रेम करोगे; क्योंकि तुम भी मिस्र देष में प्रवासी के रूप में रह चुके हो। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हँू।
35) तुम न्याय करते समय पक्षपात नहीं करोगे और नाप-तोल आदि में कपट नहीं करोगे।
36) तुम्हारा तराजू सच्चा हो, गेहँू और तेल के लिए तुम्हारे बाट और नाप सही हों। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हँू, जो तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाया।
37) तुम मेरे सब आदेषों और विधियों का पालन करोगे और उनके अनुसार आचरण करोगे। मैं प्रभु हँू।''

अध्याय 20

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ÷÷इस्राएलियों से यह कहो - यदि इस्राएलियों में से या इस्राएल में रहने वाले प्रवासियों में से कोई अपनी संतान मोलेक देवता को चढ़ाएगा, तो उसे प्राणदण्ड दिया जायेगा, देष वासी उसे पत्थरों से मार डालेंगे।
3) मैं उस पर अप्रसन्न हो जाऊँगा और उसका समुदाय से बहिष्कार करूँगा; क्योंकि उसने मोलेक देवता को अपनी संतान चढ़ा कर मेरे पवित्र-स्थान को दूषित किया और मेरा पवित्र नाम अपवित्र किया।
4) यदि देष के निवासी उस बात पर ध्यान नहीं देंगे कि उस व्यक्ति ने अपनी संतान मोलेक को चढ़ायी है और उसे प्राणदण्ड नहीं देंगे,
5) तो मैं उस पर और उसके परिवार पर अप्रसन्न हो जाऊँगा और उनका उसके समुदाय से बहिष्कार करूँगा, उसे और उन सबको जो व्यभिचार करते हुए उसका अनुसरण करते हैं।
6) यदि कोई भूत-प्रेत साधने वालों या ओझों के पास जायेगा तथा व्यभिचार करते हुए उनका अनुसरण करेगा, तो मैं उस पर अप्रसन्न हो जाऊँगा और उसका उसके समुदाय से बहिष्कार करूँगा।
7) तुम अपने को पवित्र करो और पवित्र बने रहो। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हॅँू।
8) तुम मेरी विधियों का पालन करोगे और उनके अनुसार आचरण करोगे। मैं वह प्रभु हॅँू जो तुमको पवित्र करता है।
9) यदि कोई अपने पिता या अपनी माता को अभिषाप देगा, तो उसे प्राणदण्ड दिया जाएगा। उसने अपने पिता या माता को अभिषाप दिया, इसलिए उसका रक्त उसके सिर पड़ेगा।
10) यदि कोई पुरुष किसी की पत्नी - अपने पड़ोसी की पत्नी - से व्यभिचार करे, तो व्यभिचारी और व्यभिचारिणी को प्राणदण्ड दिया जाएगा।
11) यदि कोई अपने पिता की किसी पत्नी के साथ व्यभिचार करे, तो वह अपने पिता का अनादर करता है। दोनों को प्राणदण्ड दिया जाएगा उनका रक्त उनके सिर पडे+गा।
12) यदि कोई अपनी पुत्रवधुु के साथ व्यभिचार करे, तो दोनों को प्राणदण्ड दिया जाएगा। उन्होंने घृणित पाप किया - उनका रक्त उनके सिर पडे+गा।
13) यदि कोई स्त्री की तरह किसी पुरुष के साथ प्रसंग करे, तो दोनों घृणित पाप करते हैं। उनको प्राणदण्ड दिया जाएगा - उनका रक्त उनके सिर पडे+गा।
14) यदि कोई किसी स्त्री और उसकी माता, दोनों के साथ विवाह करे, तो यह घृणित पाप है। उस पुरुष और दोनों स्त्रियों को आग में जलाया जाएगा; इस प्रकार का कुकर्म तुम लोगों में नहीं रहेगा।
15) यदि कोई पशुगमन करे, तो उसे और पषु को दोनों को मार दिया जाएगा।
16) यदि कोई स्त्री किसी पषु के साथ प्रसंग होने दे, तो उसे और पषु, दोनों को मार दिया जाएगा। उन्हें मारना है - उनका रक्त उनके सिर पडे+गा।
17) यदि कोई पुरुष अपनी बहन के साथ विवाह करे - चाहे वह उसके पिता की पुत्री हो, चाहे उसकी माता कि हो - और वह प्रसंग करें, तो दोनों को लोगों के सामने मारना है। उसने अपनी बहन का अनादर किया और वह दोषी है।
18) यदि कोई पुरुष किसी स्त्री के मासिक धर्म के समय उसकी अनुमति से उसके साथ प्रसंग करे, तो दोनों को मारा जाएगा; क्योंकि उन्होंने उसके रक्त का बहता स्रोत उघारा।
19) तुम अपने पिता या अपनी माता कि बहन का शील भंग नहीं करोगे। जो ऐसा करता है, वह अपनी निकट कुटुम्बिनी का अनादर करता है और वह दोषी है।
20) जो अपनी चाची का शील भंग करता है, वह अपने चाचा का अनादर करता है। वह दोषी है और वे निःसन्तान मर जायेंगे।
21) यदि कोई अपनी भाई की पत्नि से विवाह करता है, तो वह व्यभिचार है। उसने अपने भाई का अनादर किया। दोनों निःसन्तान मर जायेंगे।
22) जब तुम मेरी सब विधियों और आदेषों का पालन करोगे और उनके अनुसार आचरण करोगे तो मैं जिस देष में तुम लोगों को ले जाऊँगा, वह तुम्हें बाहर नहीं निकालेगा।
23) जिन जातियों को मैं तुम्हारे सामने निकाल दूँगा, तुम उनकी प्रथाओं का अनुसरण नहीं करोगे। उनके कुकर्मों के कारण मैं उन से घृणा करता था।
24) मैंने तुम लोगों से कहा, ÷तुम उनके देष अपने अधिकार में करोगे। मैं उस देष को, जहाँ दूध और मधु कि नदियॉँ बहती हैं, तुम लोगों को विरासत के रूप में देता हूँ÷। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हँू। मैंने तुम को अन्य राष्ट्रों से अलग कर लिया।
25) तुम शुद्ध और अषुद्ध पषुओं तथा अषुद्ध और शुद्ध पक्षियों में भेद करोगे। तुम उन पषुओं, पक्षियों और भूमि पर रेगनें वाले जीवों से अपने को दूषित नहीं करोगे, जिन्हें मैंने तुम्हारे लिये अषुद्ध घोषित किया है।
26) मेरे लिये पवित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु पवित्र हूँ। मैंने तुम लोगों को अन्य राष्ट्रों से अपने लिये अलग कर लिया है।
27) जो पुरुष और स्त्रियाँ भूत-प्रेत की साधना करते है, या जादू-टोना करते हैं, उन्हें मार डाला जाए। वे पत्थरों से मारे जायेंगे उनका रक्त उनके सिर पडे+गा।''

अध्याय 21

1) प्रभु ने मूसा से कहा - ''हारून के पुत्रांें, याजकों से यह कहो - याजक किसी देष-भाई के शव का स्पर्ष कर अपवित्र न बने।
2) वह अपने इन निकट सम्बन्धियों के लिये अपने को अपवित्र कर सकता है - अपनी माता, अपना पिता, अपना पुत्र, अपनी पुत्री, अपना भाई,
3) अपनी ऐसी बहन, जो अविवाहित होने के कारण उसके अपने परिवार की हो।
4) वह अपने कुटुम्ब में प्रमुख है, इसीलिए वह अपने को अषुद्ध और अपवित्र न करे।
5) याजक अपने सिर के बाल नहीं मूँडे+ं, अपनी दाढ़ी का किनारा नहीं काटें और अपने शरीर में घाव नहीं करें।
6) वे अपने ईष्वर के सामने पवित्र बने रहें और उसका नाम अपवित्र नहीं करें। वे प्रभु को होम-बलियॉँ, अपने ईष्वर का आहार, चढ़ाते हैं; इसलिए उन्हें पवित्र होना चाहिए।
7) वे किसी वेष्या या किसी शीलभ्रष्ट स्त्री या पति द्वारा परित्यक्ता के साथ विवाह नहीं करें, क्योंकि याजक को अपने ईष्वर के लिये पवित्र होना चाहिए।
8) तुम उसे पवित्र मानोगे, क्योंकि वह तुम्हारे ईष्वर का आहार चढ़ाता है। वह तुम्हारे लिये पवित्र होगा, क्योंकि मैं, प्रभु, जो तुमको पवित्र करता है, पवित्र हॅँू।
9) याजक की पुत्री, जो वेष्या बनती है अपने पिता का अनादर करती है। उसे आग में जला दिया जाए।
10) वह याजक, जो अपने भाइयों में प्रधान है, जिसके सिर पर अभ्यंजन का तेल उँडे+ला गया है और पवित्र वस्त्र पहनने के लिये जिसका अभिषेक हो चुका है, अपने बाल खुले न रखे और अपने वस्त्र न फाड़े।
11) वह किसी शव के पास जा कर अपने को अपवित्र न करें - चाहे वह अपने पिता या अपनी माता का शव क्यों न हो।
12) वह पवित्र-स्थान से दूर नहीं जाए और अपने ईष्वर के पवित्र-स्थान को अपवित्र नहीं करें क्योंकि वह तेल के अभ्यंजन द्वारा अपने ईष्वर को अर्पित किया गया है। मैं प्रभु हॅँू।
13) वह कन्या अक्षत हो, जिसके साथ वह विवाह करें।
14) विधवा, परित्यक्ता, शीलभ्रष्टा या वेष्या, वह इन में किसी के साथ विवाह नहीं करे।
15) वह केवल अपने वंष की किसी कुँवारी से विवाह करें। इस प्रकार वह अपने वंषजों को अपवित्र नहीं करेगा। मैं प्रभु हँू, जो उसे पवित्र करता है।''
16) फिर प्रभु ने मूसा से कहा,
17) हारून से कहो कि यदि तुम्हारे वंषजो में किसी के शरीर में कोई दोष हो, तो वह अपने ईष्वर का आहार चढ़ाने नहीं आये। यह सब पीढ़ियों के लिए चिरस्थायी आदेष है।
18) जिसके शरीर में कोई दोष हो, वह याजक का कार्य सम्पन्न नहीं करें, अर्थात् अन्धा, लँगड़ा, विकृत मुखवाला, विकलाँग,
19) जिसका पैर या हाथ टूटा हो,
20) कुबडा, बौना, जिसकी आँख में कोई दोष हो, चर्मरोगी या नपुंसक।
21) यदि हारून के वंषजों में किसी को इस प्रकार का दोष हो, तो वह प्रभु के चढ़ावे अर्पित नहीं कर सकता। वह अपने दोष के कारण अपने ईष्वर का आहार नहीं चढ़ा सकता।
22) लेकिन वह अपने ईष्वर का पवित्र बलि-प्रसाद और परमपवित्र बलि-प्रसाद खा सकता हेै।
23) वह अपने दोष के कारण अन्तरपट और वेदी के पास नहीं आ सकता। वह मेरा पवित्र-स्थान अपवित्र नहीं करेगा, क्योंकि मैं वही प्रभु हॅँू जो उन्हें पवित्र करता है।''
24) मूसा ने यह सब हारून, उसके पुत्रों और सब इस्राएलियों को बताया।

अध्याय 22

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''हारून और उसके पुत्रों से कहो कि इस्राएली मुझे जो पवित्र चढ़ावे अर्पित करते हैं, वे उनके विषय में सावधान रहें।
3) मैं प्रभु हॅॅँू। उनसे यह कहो : यदि भावी पीढ़ियों में तुम्हारे वंषजों में कोई अपवित्र होते हुए भी इस्रालियों द्वारा प्रभु को अर्पित पवित्र चढ़ावों के पास आये, तो उस व्यक्ति का मेरे सामने से बहिष्कार किया जाये। मैं प्रभु हॅँू।
4) यदि हारून का कोई वंषज चर्म रोगी हो या स्राव से पीढ़ित हो, तो वह शुद्ध हो जाने के बाद बलि-प्रसाद खा सकता है। यह उस व्यक्ति पर भी लागू है, जो ऐसी वस्तु का स्पर्ष करें, जो शव से अपवित्र हो गई है; जिसका वीर्यपात हो गया हो;
5) जिसने अपवित्र करने वाले भूमि से सट कर चलने वाले जीव-जन्तुओं का स्पर्ष किया हो; जिसने अपवित्र करने वाले मनुष्य का स्पर्ष किया हो या जो किसी भी प्रकार से अपवित्र हो गया हो।
6) वह शाम तक अपवित्र है और स्नान करने के बाद ही पवित्र प्रसाद पा सकता है।
7) वह सूर्यास्त के बाद फिर पवित्र है और पवित्र प्रसाद पा सकता है, क्योंकि यह उसका जीवन-निर्वाह है।
8) वह किसी मरे हुए या किसी जानवर द्वारा फाड़े गए पषु को नहीं खा सकता। इससे वह अषुद्ध हो जाता है। मैं प्रभु हॅँू।
9) वे मेरे आदेषों का इसलिए पालन करें, जिससे वे दोषी न बनें और उनकी मृत्यु न हो जाये। मैं वह प्रभु हँू, जो उन्हें पवित्र करता है।
10) अनाधिकारी व्यक्ति पवित्र प्रसाद नहीं खा सकता; याजक का अतिथि या मज+दूर भी नहीं।
11) परन्तु याजक द्वारा ख़रीदा दास या याजक के घर में पैदा हुआ दास उसे खा सकता है।
12) यदि याजक की पुत्री ऐसे व्यक्ति से विवाह करे, जो याजक नहीं हो, तो वह पवित्र चढ़ावे नहीं खा सकती।
13) लेकिन यदि याजक की पुत्री विधवा या परित्यक्ता हो, निस्संतान हो और अपनी युवावस्था की तरह अपने पिता के यहाँ रहे, तो वह अपने पिता का भोजन खा सकती है। जो याजक नहीं है वह ऐसा नहीं कर सकता।
14) यदि कोई भूल से पवित्र चढ़ावा खाता है तो वह उसका पाँचवाँ भाग जोड़कर क्षतिपूर्ति के रूप में याजक को उसे अर्पित करें।
15) याजक इस्राएलियों द्वारा प्रभु को अर्पित चढ़ावे अपवित्र नहीं करे और इस्राएलियों को उन्हें खाने की अनुमति नहीं दे।
16) कहीं ऐसा न हो कि इस्राएली दोषी बनें और क्षतिपूर्ति के लिए बाध्य हो जाएं। मैं वह प्रभु हॅँू जो उन्हें पवित्र करता है।''
17) प्रभु ने मूसा से कहा,
18) ''हारून, उसके पुत्रों और सब इस्राएलियों से कहो यदि कोई इस्राएली या इस्राएल में रहने वाला प्रवासी मन्नत के कारण या स्वेच्छा से प्रभु को होम बलि अर्पित करना चाहे,
19) तो वह एक अदोष नर पषु ले आये, अर्थात् बछड़ा, मेढ़ा या बकरा तब प्रभु उस पर प्रसन्न होगा।
20) सदोष पषुओं को कभी नहीं चढाना चाहिए। नहीं तो प्रभु तुम पर प्रसन्न नहीं होगा।
21) यदि कोई व्यक्ति मन्नत के कारण या स्वेच्छा से शांति बलि के रूप में प्रभु को बछड़ा, मेढ़ा या बकरा चढ़ाये, तो वह तभी स्वीकार्य होगा जब वह स्वस्थ और अदोष हो।
22) तुम प्रभु को अन्धा, लँगड़ा या अंगभंग पषु नहीं चढ़ाओगे, या ऐसा पषु, जिसके शरीर में फोड़ा-फून्सी, खाज-खुजली हो ऐसे पषुओं को वेदी पर प्रभु को अर्पित नहीं करोगे।
23) तुम अंग-भंग बछड़ा या मेढ़ा दान के रूप में दे सकते हो; किन्तु यदि वह किसी मन्नत के कारण चढ़ाया जाता है, तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
24) तुम प्रभु को ऐसा पषु नहीं चढ़ाओगे, जिसके अण्डकोष विक्षत, कुचले, फाड़े या कटे हों। तुम्हारे देष में ऐसे पषुओं को प्रभु को अर्पित नहीं किया जाता है
25) और तुम उन्हें प्रभु को अर्पित करने के लिए किसी प्रवासी से भी नहीं स्वीकार करोगे। वे विकृत और सदोष हैं। उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा।''
26) फिर प्रभु ने मूसा से कहा,
27) ''गाय, भेड़ या बकरी का बच्चा सात दिन तक अपनी माँ के साथ रहेगा। आठवें दिन या उसके बाद वह प्रभु के लिए होम-बलि के रूप में स्वीकृत किया जाएगा।
28) तुम किसी गाय या किसी भेड़ का और उसके बच्चे का एक ही दिन वध नहीं करोगे।
29) यदि तुम धन्यवाद के रूप में प्रभु को शांति-बलि चढ़ाते हो, तो इस प्रकार चढ़ाओ, जिससे वह ग्राह हो।
30) वह उसी दिन खायी जाये। दूसरे दिन तक उसका कुछ शेष न रहे। मैं प्रभु हूँ।
31) तुम मेरे आदेषों का पालन करोगे और उनके अनुसार आचरण करोगे। मैं प्रभु हूँू।
32) तुम मेरे पवित्र नाम अपवित्र नहीं करोगे। इस्राएलियों को मुझे पवित्र मानना चाहिए। मैं वह प्रभु हॅँू, जो तुमको पवित्र करता है,
33) जो तुम्हारा अपना ईष्वर बनने के लिए तुमको मिस्र से निकाल लाया। मैं प्रभु हँू।''

अध्याय 23

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से कहो - प्रभु के पुण्य-पर्व जिन्हें समारोह के साथ मनाना चाहिए, इस प्रकार हैं।
3) तुम छः दिन तक काम करोगे, परन्तु सातवाँ दिन विश्राम-दिवस है। वह पवित्र है। उस दिन तुम विश्राम करोगे। तुम जहाँ कहीं भी रहोगे, वह प्रभु के लिए पवित्र होगा।
4) प्रभु के पुण्य-पर्व, जिन्हें समारोह के साथ निष्चित समय पर मनाना चाहिए, इस प्रकार हैं।
5) पहले महीने के चौदहवें दिन संध्या समय प्रभु के आदर में पास्का है
6) और उस महीने के पन्द्रहवें दिन प्रभु के आदर में बेख़मीर रोटियों का पर्व है। तुम सात दिन बेख़मीर रोटियाँ खाओगे।
7) पहले दिन तुम लोगों के लिए एक धर्म-सभा का आयोजन किया जाएगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।
8) तुम सात दिन तक प्रभु को अन्न-बलि चढ़ाओगे। सातवें दिन एक धर्म-सभा का आयोजन किया जाएगा, और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।''
9) प्रभु ने मूसा से कहा,
10) ''इस्राएलियों से यह कहो - जब तुम उस देष में पहुँच जाओगे, जिसे में तुम्हें देने जा रहा हँू और तुम वहाँ फ़सल काटोगे, तो तुम अपनी फ़सल का पहला पूला याजक के पास ले आओगे।
11) वह विश्राम-दिवस के दूसरे दिन उसे प्रभु के सामने प्रस्तुत करेगा, जिससे तुम्हें ईष्वर की कृपा दृष्टि प्राप्त हो जाये।
12) जिस दिन यह क्रिया सम्पन्न हो उस दिन प्रभु को होम-बलि के रूप में एक वर्ष का एक अदोष मेमना चढ़ाओ।
13) उसके साथ अन्न-बलि के रूप में जैतून के तेल से सना हुआ दो सेर मैदा चढ़ाओ और अर्ध के रूप में एक सेर अंगूरी। यह सुगन्धयुक्त चढ़ावा है जो प्रभु को प्रिय है।
14) उस दिन तक, अर्थात् जब तक तुम अपने ईष्वर को यह चढ़ावा अर्पित न करो, रोटी और भुने या ताजे+ दाने मत खाओ। यह तुम्हारी सब पीढ़ियों के लिए, चाहे तुम जहाँ कहीं रहो, एक चिरस्थायी आदेष है।
15) ''विश्राम-दिवस के दूसरे दिन, जब तुम चढ़ावे का पूला लाते हो, उस दिन से तुम पूरे सात सप्ताह गिनोगे।
16) सातवें सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् पचासवें दिन से तुम प्रभु को नये अनाज का अन्न-बलि चढ़ाओगे।
17) तुम लोग अपने-अपने घरों से चार-चार सेर मैदे की दो ख़मीरी रोटियाँ ले आओगे और उन्हें नयी फ़सल के प्रथम चढ़ावे के रूप में प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करोगे।
18) तुम इन दो रोटियों के साथ एक-एक साल के सात अदोष मेमने, एक बछड़ा और दो मेड़े निर्धारित अन्न-बलि और अर्धसहित प्रभु को चढ़ाओगे। यह एक सुगन्ध युक्त चढ़ावा है, जो प्रभु को प्रिय है।
19) तुम प्रायष्चित-बलि के रूप में एक बकरा और शांति-बलि के रूप में एक साल के दो मेमने चढ़ाओगे।
20) याजक नये अनाज की रोटियाँ और दो मेमने प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करेगा। यह प्रभु के लिए पवित्र चढ़ावा है, जिस पर याजक का अधिकार है।
21) उस दिन एक धर्म-सभा का आयोजन करोगे और काम नहीं करोगे। यह तुम्हारी सब पीढ़ियों के लिए चाहे तुम जहाँ कहीं रहो, एक चिरस्थायी आदेष है।
22) जब तुम अपनी भूमि की फ़सल काटो तो अपने खेतों के किनारे तक नहीं काटो और काटे हुए खेत की बालें नहीं बीनो। यह गरीबों और परदेषियों के लिए छोड़ दो। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूॅँू।
23) प्रभु ने मूसा से कहा,
24) ''इस्राएलियों से कहो कि सातवें महिने का पहला दिन तुम्हारे लिए एक महाविश्राम-दिवस होगा। तुम तुरही बजाकर उसे स्मरण-दिवस घोषित करोगे और धर्म-सभा का आयोजन करोगे।
25) तुम उस दिन किसी भी प्रकार का काम नहीं करोगे और प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे।''
26) फिर प्रभु ने मूसा से कहा,
27) ''सातवें महिने का दसवाँ दिन प्रायष्चित-दिवस है। उस दिन तुम लोगों के लिए धर्म-सभा का आयोजन किया जाएगा। तुम उपवास करोगे और प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे।
28) तुम उस दिन किसी प्रकार का कोई काम नहीं करोगे, क्योंकि वह प्रायष्चित का दिवस है, जब प्रभु तुम्हारे ईष्वर के सामने तुम्हारे लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न की जाती है।
29) जो उस दिन उपवास नहीं करेगा, वह अपने समुदाय से बहिष्कृत किया जाएगा।
30) जो उस दिन काम करेगा, मैं उसे उसके समुदाय से निकाल कर, उसका विनाष करूँगा।
31) तुम कोई भी काम नहीं करोगे। यह तुम्हारी सब पीढ़ियों के लिए, चाहे तुम जहाँ कहीं रहो, एक चिरस्थायी आदेष है।
32) यह तुम्हारे लिए महाविश्राम-दिवस होगा। तुम उस दिन उपवास करोगे महिने के नौवें दिन की शाम से दूसरे दिन की शाम तक विश्राम-दिवस मनाओगे।''
33) प्रभु ने मूसा से यह भी कहा,
34) ''इस्राएलियों से कहो कि सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन प्रभु के आदर में षिविर-पर्व प्रारम्भ होगा। वह सात दिन तक मनाया जायेगा।
35) उसके प्रथम दिन धर्म-सभा का आयोजन किया जायेगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।
36) तुम सात दिन प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे। आठवें दिन लोगों के लिए एक धर्म-सभा का आयोजन किया जायेगा और तुम प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे। उस दिन समापन समारोह होगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।
37) ये प्रभु के पर्व हैं, जिन में तुम धर्म सभा का आयोजन करोगे और प्रत्येक की विधि के अनुसार प्रभु को होम-बलि, अन्न-बलि, शान्ति-बलि और अर्घ चढ़ाओगे।
38) इसके अतिरिक्त प्रभु को अर्पित सामान्य विश्राम दिवसों के बलिदान, मन्नत के कारण या स्वेच्छिक बलिदान चढ़ाओगे।
39) सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन, भूमि की उपज एकत्रित कर लेने के बाद, तुम सात दिन तक प्रभु के लिए उत्सव मनाओगे। पहला दिन और आठवाँ दिन - ये महा-विश्राम-दिवस होंगे।
40) पहले दिन तुम वृक्षों के सर्वोत्तम फल, खजूर की डालियाँ घनी पत्तियों वाली डालियाँ और मजनँू ले आओगे और सात दिन तक अपने प्रभु-ईष्वर के लिए उल्लास के साथ आनन्द मनाओगे।
41) तुम प्रति वर्ष सातवें महीने में प्रभु के लिए सात दिन तक यह उत्सव मनाओगे। यह तुम्हारी सब पीढ़ियों के लिए चिरस्थायी आदेष है।
42) तुम सात दिन तक तम्बुओं में रहोगे। प्रत्येक मूल इस्राएली तम्बू में रहेगा।
43) इस तरह भावी पीढ़ियाँ जान जायेंगी कि जब मैं मिश्र से इस्राएलियों को ले चला, तो उन्हें तम्बूओं में रहने को बाध्य किया। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूँं।
44) मूसा ने इस प्रकार इस्राएलियों को प्रभु के निर्धारित पर्वों के विषय में बताया।

अध्याय 24

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों को आदेष दो कि वे दीपवृक्ष के लिए जैतून से निकाला हुआ शुद्ध तेल तुम्हारे पास ले आयें, जिससे दीपक निरन्तर जलते रहें।
3) हारून दर्षन-कक्ष में, अन्तरपट के सामने, जिसके पीछे विधान की मंजूषा रखी रहती है, दीपवृक्ष को शाम से सबेरे तक प्रभु के सामने प्रज्वलित रखे। यह तुम्हारी सब पीढ़ियों के लिए चिरस्थायी आदेष है।
4) वह दीपक तैयार कर उन को शुद्ध सोने के दीपवृक्ष पर रखें, जिससे वे प्रभु के सामने निरन्तर जलते रहें।
5) तुम चार-चार सेर मैदे की बारह रोटियाँ पकवा कर
6) उन को छह-छह की दो पंक्तियों में शुद्ध सोने की मेज+ पर प्रभु के सामने रखो।
7) प्रत्येक पंक्ति के साथ शुद्ध लोबान रखो। लोबान रोटी का प्रतीक बन कर होम-बलि के रूप में प्रभु को चढ़ाया जायेगा।
8) प्रत्येक विश्राम-दिवस पर इस्राएली लोगों की ओर से प्रभु के सामने नयी रोटियाँ रखी जायें। यह एक चिरस्थायी आदेष है।
9) उन रोटियों पर हारून और उसके पुत्रों का अधिकार है। वे रोटियाँ एक शुद्ध स्थान में खायी जायें, क्योंकि वे परमपवित्र हैं। यह प्रभु को अर्पित चढ़ावों में उनका चिरस्थायी भाग है।
10) इस्राएलियों के साथ एक ऐसा व्यक्ति भी आया था, जिसकी माँ इस्राएली थी, किन्तु जिसका पिता मिस्री था। षिविर में उसका एक इस्राएली के साथ झगड़ा हो गया।
11) उस इस्राएली स्त्री के पुत्र ने ईष-निन्दा की और प्रभु के नाम को कोसा। इस पर उसे मूसा के पास लाया गया। उसकी माँ का नाम शलोमीत था, जो दान वंष के दिब्री की पुत्री थी।
12) उसे उस समय तक हवालात में रखा गया, जब तक कि प्रभु की वाणी द्वारा उसका न्याय नहीं हुआ।
13) प्रभु ने मूसा से कहा,
14) ''उस ईष-निन्दक को षिविर के बाहर ले जाया जाये। जिन लोगों ने उसके अपषब्द सुने थे, वे उसके सिर पर हाथ रखें और सारा समुदाय उसे पत्थरों से मार डाले।
15) इस्राएलियों से कहो : जो अपने ईष्वर की निन्दा करता है, वह दोषी माना जायेगा।
16) जो व्यक्ति प्रभु के नाम को कोसता है, वह मार डाला जाये। सारा समुदाय उसे पत्थरों से मार डाले। चाहे वह प्रवासी हो या इस्राएली। जो प्रभु के नाम को कोसता है, उसे मार डाला जाये।
17) जो किसी मनुष्य का वध करे, वह मार डाला जाये।
18) जो किसी पशु को मार डाले, वह उसकी क्षतिपूर्ति करे पशु के बदले पशु।
19) यदि कोई अपने देष-भाई को घायल करें, तो उसे उसी तरह घायल किया जाये।
20) अस्थि भंग के बदले अस्थि भंग, आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत। जिस प्रकार का घाव उसने दूसरे का किया है, उसी प्रकार का उसका भी किया जाये।
21) जो किसी पशु को मार डाले, वह विधान क्षतिपूर्ति करे। जो किसी मनुष्य का वध करे, उसका वध किया जाये।
22) यह विधान प्रवासी और इस्राएली, दोनों के लिए समान होगा, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँ।
23) जब मूसा इस्राएलियों से कह चुका, तब लोग ईष-निन्दक को षिविर के बाहर ले गये और उन्होंने उसे पत्थरों से मार डाला, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेष दिया था।

अध्याय 25

1) प्रभु ने सीनई पर्वत पर मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से कहो कि जब तुम इस देष पहुँच जाओ, जिसे मैं तुम्हें देने वाला हूँ, तब वह देष प्रभु के आदर में विश्राम-वर्ष मनाये।
3) तुम छह वर्ष तक अपने खेत जोत कर और छह वर्ष तक अपनी दाखबारियों छाँट-छाँट कर देष की फ़सल बटोरो।
4) परन्तु सातवाँ वर्ष देष भर के लिए महा विश्राम-वर्ष होगा - प्रभु के आदर में एक विश्राम-वर्ष। इस वर्ष अपने खेत नहीं जोतो और अपनी दाखलताएँ नहीं छाँटो।
5) कटे हुए खेत में जो कुछ अपने आप उग जाये, उसे नहीं काटों और अनछँटी दाखलताओं के अंगूर नहीं तोड़ो। देष भर के लिए यह वर्ष विश्राम-वर्ष होगा।
6) जो विश्राम वर्ष में अपने आप उगेगा, वही तुम्हारे, तुम्हारे दासों, तुम्हारी दासियों, तुम्हारे मज+दूरों और तुम्हारे बीच रहने वाले प्रवासियों के भोजन के लिए पर्याप्त होगा।
7) तुम्हारे पशु और तुम्हारे देष के बनैले जानवर वही खायेंगे, जो भूमि में अपने आप उगता है।
8) वर्षों के सात सप्ताह, अर्थात् सात बार सात वर्ष, तदनुसार उनचास वर्ष बीत जाने पर
9) तुम सातवें महीने के दसवें दिन, प्रायष्चित के दिन, देष भर में तुरही बजवाओगे।
10) यह पचासवाँ वर्ष तुम दोनों के लिए एक पुष्प-वर्ष होगा और तुम देश में यह घोषित करोगे कि सभी निवासी अपने दासों को मुक्त कर दें। यह तुम्हारे लिए जयन्ती-वर्ष होगा - प्रत्येक अपनी पैतृक सम्पत्ति फिर प्राप्त करेगा और प्रत्येक अपने कुटुम्ब में लौटेगा।
11) पचासवाँ वर्ष तुम्हारे लिए जयन्ती-वर्ष होगा। इसमें तुम न तो बीच बोओगे, न पिछली फ़सल काटोगे और न अनछँटी दाखलताओं के अंगूर तोड़ोगे,
12) क्योंकि यह जयन्ती-वर्ष हैं तुम इसे पवित्र मानोगे और खेत में अपने आप उगी हुई उपज खाओगे।
13) इस जयन्ती-वर्ष में प्रत्येक अपनी पैतृक सम्पत्ति फ़िर प्राप्त करेगा।
14) जब तुम किसी देष-भाई के हाथ कोई जमीन बेचते हो अथवा उस से ख़रीद लेते हो, तो तुम एक दूसरे के साथ बेईमानी मत करो।
15) जब तुम किसी देष-भाई से कोई ज+मीन ख़रीदते हो, तो इसका ध्यान रखो कि पिछले जयन्ती-वर्ष के बाद कितने वर्ष बीत गये हैं और बाकी फ़सलों की संख्या के अनुसार बेचने वाले को विक्रय-मूल्य निर्धारित करना चाहिए।
16) जब अधिक वर्ष बाकी हों, तो मूल्य अधिक होगा और यदि कम वर्ष बाकी हों, तो मूल्य कम होगा; क्योंकि वह तुम्हें फसलों की एक निष्चित संख्या बेचता है।
17) तुम अपने देष-भाई के साथ बेईमानी मत करो, बल्कि अपने ईष्वर पर श्रद्वा रखो; क्योंकि मैं तुम्हारा प्रभु, ईष्वर हूँ।
18) ''मेरे आदेषों और विधियों का पालन करों। ऐसा करने पर तुम देष में सुरक्षित निवास करते रहोगे।
19) भूमि अच्छी फसल उत्पन्न करेगी, तुम को भरपूर भोजन मिलेगा और तुम देष में सुरक्षित निवास करोगे।
20) यदि तुम पूछो कि सातवें वर्ष, जब हम न तो बीज बोयेंगे और न फ़सल काटेंगे, तो हम क्या खायेंगे,
21) तो जान लो कि छठे वर्ष मेरे आषीर्वाद से फ़सल तीन वर्ष के लिए पर्याप्त होगी।
22) जब तुम आठवें वर्ष बीज बोओगे, उस समय पिछली फ़सल खाते रहोगे और नौवे वर्ष की नयी फ़सल आने तक तुम पिछली फ़सल खाते रहोगे।
23) तुम भूमि स्थायी रूप से नहीं बेचोगे, क्योंकि भूमि मेरी है। तुम उस में परदेषी और अतिथि-मात्र हो।
24) तुम को अपनी बेची जमीन को छुड़ाने का अधिकार रहेगा।
25) यदि तुम्हारे भाई को, ऋण के कारण अपनी ज+मीन से कुछ बेचना पड़ता है, तो उसके सब से निकट संबंधी को अपने भाई की बेची जमीन फ़िर से खरीदनी है।
26) यदि उसका कोई नहीं हो, जो जमीन छुड़ा सके, लेकिन उसकी अपनी आर्थिक स्थिति सुधरे और वह अपनी ज+मीन फिर से ख़रीदने में समर्थ हो जाये,
27) तो वह बिक्री के बाद के वर्षों की फ़सलों का मूल्य निर्धारित कर, उसे विक्रय-मूल्य से घटाये और शेष रक़म खरीदार को दे। इस प्रकार वह अपनी ज+मीन फिर प्राप्त कर सकता है।
28) यदि वह ज+मीन छुड़ाने में असमर्थ हो, तो जयन्ती-वर्ष तक बेची जमीन पर ख़रीदार का अधिकार रहेगा। जयन्ती-वर्ष में ज+मीन अपने आप मुक्त हो जायेगी और उस पर फिर उसका अधिकार हो जायेगा।
29) यदि कोई व्यक्ति चारदीवारी वाले नगर में एक मकान बेचे, तो वह उसे केवल बिक्री के एक वर्ष के अन्दर फ़िर से खरीद सकता है। केवल उसी अवधि के अन्दर वह उसे फिर से ख़रीद सकता है।
30) यदि चार दीवारी वाले नगर का मकान एक वर्ष के अन्दर फिर से नहीं ख़रीदा गया हो, तो उस पर सदा के लिए ख़रीदार और उसके वंषजों का अधिकार रहेगा। फिर से ख़रीदने की अवधि बीत गयी और वह मकान जयन्ती वर्ष में भी मुक्त नहीं होगा।
31) परन्तु जो मकान ऐसे गाँवों में हैं, जिनकी चारदीवारी नहीं है, वे खेतों की तरह ही समझे जायेंगे। वे फिर से खरीदे जा सकते हैं। जयन्ती-वर्ष में वे मुक्त हो जाते हैं।
32) लेवियों के नगरों में जो मकान हैं, लेवी लोग उन्हें किसी भी समय फिर से ख़रीद सकते हैं।
33) यदि कोई लेवी अपने बेचे मकान को फिर से नहीं खरीदेगा, तो वह मकान जयन्ती-वर्ष में मुक्त हो जायेगा! क्योंकि इस्राएल देष में लेवियों के नगरों के मकान उनकी निजी संपति समझे जाते हैं।
34) उनके नगरों के आसपास के चरागाह नहीं बेचे जा सकते हैं, क्योंकि उन पर उनका चिरस्थायी अधिकार है।
35) यदि तुम में कोई भाई इतना निर्धन हो जाये कि वह अपना निर्वाह न कर सके, तो तुम उसकी सहायता करो, जिससे वह एक परदेषी या प्रवासी की तरह तुम्हारे पास रह सके।
36) अपने ईष्वर पर श्रद्वा के कारण, तुम उस से न सूद लो और न लाभ उठाओ, जिससे वह तुम्हारे बीच निवास कर सके।
37) तुम जो द्रव्य उसे उधार दो, उसका ब्याज उस से नहीं लो और न अधिक दामों पर उसे खा+द्य पदार्थ दो।
38) मै प्रभु, तुम्हारा वही ईष्वर हूँ, जो तुम्हें मिस्र देष से इसलिए निकाल लाया कि मैं तुम्हें कनान देष दे दूँ और तुम्हारा ईष्वर होऊँ।
39) यदि तुम्हारे भाई-बन्धुओं में कोई इतना निर्धन हो जाता है कि वह अपने को तुम्हारे हाथ बेच देता है, तो उस से एक दास की तरह व्यवहार नहीं करोगे।
40) वह तुम्हारे यहाँ एक मज+दूर और प्रवासी की तरह रहे। वह जयन्ती-वर्ष तक तुम्हारे यहाँ सेवा करे।
41) इसके बाद वह मुक्त हो कर अपने बाल-बच्चों के साथ तुम्हारे यहाँ से जा कर अपने कुटुम्ब में रह सकता है।
42) वह अपनी पैतृक सम्पत्ति दुबारा प्राप्त करेगा, क्योंकि वे सब मेरे सेवक हैं, जिन्हें मैं मिस्र देष से निकाल लाया हूँ। उन में कोई भी दास की तरह नहीं बेचा जायेगा।
43) अपने ईष्वर पर श्रद्धा के कारण तुम उस से कठोर व्यवहार नहीं करोगे।
44) यदि तुम्हें दास-दासियों की आवष्यकता हो, तो तुम्हें उन्हें आसपास के राष्ट्रों से ख़रीदोगे
45) अथवा तुम अपने साथ रहने वाले प्रवासियों को या उनके घर में पैदा हुए बच्चों को खरीदोगे। वे तुम्हारे दास बन सकते हैं।
46) और तुम उन्हें विरासत के रूप में अपने पुत्रों को दे सकते हो। तुम उन्हें आजीवन दास बना सकते हो, किन्तु तुम अपने इस्राएली भाई-बन्धुओं के साथ कठोर व्यवहार नहीं करोगे।
47) यदि तुम्हारे साथ रहने वाला कोई परदेषी या प्रवासी धनी हो जाये और तुम्हारा देश-भाई उसका ऋणी हो जाये तथा वह अपने आप को दास के रूप में उस परदेषी या प्रवासी अथवा किसी भी अन्य जाति के व्यक्ति को बेच डाले,
48) तो अपने बिकने के बाद भी वह छुड़ाया जा सकता है। उसके भाई-बन्धुओं में कोई भी उसे छुड़ा सकता है।
49) उनका चाचा या चचेरा भाई या उसका कोई सम्बन्धी उसे छुड़ा सकता है। यदि वह स्वयं धनी बने, तो वह अपने आप को छुड़ा सकता है।
50) वह अपने खरीदार के साथ उस वर्ष से ले कर, जिस में उसने अपने को बेचा, जयन्ती-वर्ष तक वर्षों की संख्या का हिसाब लगा ले। उसने जिस रक़म पर अपने आप को बेचा, उसे वर्षों की इस संख्या द्वारा विभाजित किया जाये और विभाजन-फल को उसकी सालाना मज+दूरी समझा जाये।
51) जयन्ती-वर्ष के आने में यदि अधिक वर्ष बाकी रह गये हों, तो उसे अपनी मुक्ति के लिए अपने विक्रय-मूल्य का अधिक अंष लौटाना होगा।
52) यदि जयन्ती-वर्ष आने में थोड़े ही वर्ष बाकी हों, तो वह अपनी वार्षिक मज+दूरी के आधार पर अपनी मुक्ति का मूल्य निर्धारित करे।
53) सालाना मज+दूरी पर रखे नौकर की तरह वह अपने मालिक के यहाँ रहे और तुम ध्यान रखोगे कि उसका मालिक उसके साथ कठोर व्यवहार नहीं करे।
54) यदि वह इस प्रकार छुड़ाया नहीं जाता, तो वह जयन्ती-वर्ष में अपने आप मुक्त हो जायेगा और उसके साथ उसके बाल-बच्चे भी।
55) कारण यह है कि इस्राएल के पुत्र मेरे ही सेवक हैं। मैं उन्हें मिस्र देष से निकाल लाया हूँ। मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर हूँं।

अध्याय 26

1) ''तुम अपने लिए देवमूर्तियाँ न बनाओ, न मूतियाँ और न स्तम्भ। तुम पूजा करने के लिए अपने देष में उत्कीर्ण पत्थर नहीं स्थापित करोगे।
2) तुम मेरे विश्राम दिवस मनाओगे और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान करोगे। मैं प्रभु हूँ।
3) यदि तुम मेरी विधियों के अनुसार आचरण करोगे और मेरे आदेषों का पालन करोगे।
4) तो मैं समय पर तुम को वर्षा प्रदान करूँगा, जिससे भूमि फसल और मैदान के पेड़ फल उत्पन्न करें।
5) तुम्हारे यहाँ अंगूर तोड़ने के समय तक दँवरी होती रहेगी और तुम बोने के समय तक अंगूर तोड़ते रहोगे। तुम भरपेट रोटी खा कर तृप्त रहोगे और देष में सुरक्षित जीवन बिताओगे।
6) मैं देष भर में शान्ति बनाये रखूँगा, जिससे तुम निर्भय हो कर सुख की नींद सो सको। मैं तुम्हारे देष में हिंसक जानवरों को निकालूँगा और युद्व की तलवार उसका विनाष नहीं करेगी।
7) तुम अपने शत्रुओं को भगा दोगे और उन्हें तलवार के घाट उतारोगे।
8) तुम्हारे पाँच उनके सौ को और तुम्हारे सौ उनके दस हजार को भगा देंगे। तुम अपने शत्रुओं को तलवार के घाट उतारोगे।
9) मेरी कृपादृष्टि तुम पर बनी रहेगी। मैं तुम को सन्तान प्रदान करूँगा और तुम्हारी संख्या बढ़ाऊँगा और तुम्हारे लिए निर्धारित विधान बनाये रखूँगा।
10) तुम पिछली फसल खाते रहोगे और नयी फसल रखने के लिए तुम को उसे निकालना पड़ेगा।
11) मैं तुम्हारे बीच निवास करूँगा और तुम से विमुख नहीं हो जाऊँगा।
12) मैं तुम्हारे बीच चलूँगा, मैं तुम्हारा ईष्वर होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे।
13) मैं प्रभु तुम्हारा वही ईष्वर हूँ, जो तुम्हें मिस्र देष से निकाल लाया है, जिससे तुम मिस्रियों के दास नहीं बने रहो। मैंने तुम्हारी दासता के बन्धन तोड़े हैं, जिससे तुम अपना सिर ऊँचा रख सको।
14) परन्तु यदि तुम मेरी नहीं सुनोगे और मेरे सब आदेषों का पालन नहीं करोगे,
15) मेरे निर्णयों को अस्वीकार करोगे, मेरी विधियों से घृणा करोगे, मेरे सब आदेषों के अनुसार आचरण नहीं करोगे और इस प्रकार मेरा विधान भंग करोगे,
16) तो मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा : तुम्हारे ऊपर घोर विपत्तियाँ ढाहूँगा। क्षयरोग और तीव्र ज्वर तुम्हारी आँखों की ज्योति धुँधली और तुम्हारी जीवन-शक्ति क्षीण कर देंगे। तुम्हारे बीज बोना व्यर्थ जायेगा, क्योंकि तुम्हारे शत्रु तुम्हारी फ़सल खा जायेंगे।
17) मैं तुम पर अप्रसन्न हो जाऊँगा, जिससे तुम्हारे शत्रु तुम्हें पराजित करेंगे। तुम्हारे बैरी तुम पर शासन करेंगे। तुम उस समय भी भागोगे, जब कोई तुम्हारा पीछा नहीं करेगा।
18) यदि तुम इस पर भी मेरी नहीं सुनोगे, तो मैं तुम्हारे पापों के कारण तुम्हें सात बार दण्ड दूँगा।
19) मैं तुम्हारा घमण्ड और बल तोड़ दूँगा। मैं तुम्हारे ऊपर का आकाष लोहे-जैसा और तुम्हारे देष की भूमि काँसे-जैसी बना दूँगा।
20) तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ जायेगा, क्योंकि भूमि तुम को अनाज नहीं देगी और देष के वृक्ष फल नहीं देंगे।
21) यदि इस पर भी तुम मेरी नहीं सुनोगे और मेरे विरुद्ध आचरण करते रहोगे, तो मैं तुम्हारे पापों के कारण तुम्हारी विपत्तियों को सतगुना बढ़ाऊँगा।
22) मैं तुम्हारे पास हिंसक जानवर भेजूँगा, जो तुम्हारे बाल-बच्चों को छीन लेंगे, तुम्हारे पशुओं को फाड़ेंगे और तुम्हारी जनसंख्या इतनी कम करेंगे कि तुम्हारी सड़कें सूनी हो जायेंगी।
23) यदि इस पर भी तुम शिक्षा नहीं ग्रहण करोगे और मेरा विरोध करते रहोगे,
24) तो मैं तुम्हारा विरोध करूँगा और तुम्हारे पापों के लिए सतगुना दण्ड दूँगा।
25) मैं विधानभंग के कारण तुम्हारे पास तलवार भेजूँगा। यदि तुम नगरों में शरण लोगे, तो मैं वहाँ तुम्हारे बीच महामारी भेजूँगा और तुम अपने शत्रुओं के हवाले कर दिये जाओगे।
26) मैं तुम्हारी रोटी इतनी कम कर दूँगा कि दस-दस स्त्रियाँ एक ही चूल्हें पर रोटियाँ बनायेंगी और तुम्हें तौल-तौल कर रोटियाँ देंगी, जिन्हें खा कर भी तुम तृप्त नहीं होगे।
27) यदि इस पर भी तुम मेरी बात नहीं मानोगे और मेरा विरोध करते जाओगे,
28) तो मैं कुद्ध हो कर तुम्हारा विरोध करूँगा और तुम को तुम्हारे पापों के लिए सतगुना दण्ड दूँगा।
29) तब तुम अपने पुत्रों और अपनी पुत्रियों का मांस खाओगे।
30) मैं तुम्हारे पहाड़ी पूजा-स्थानों का विनाष करूँगा, तुम्हारी धूप-वेदियाँ तोड़ दूँगा और तुम्हारी ध्वस्त देवमूर्तियों पर तुम्हारे शवों के ढेर लगाऊँगा। मैं तुम से घृणा करूँगा।
31) मैं तुम्हारे चढ़ावों की सुगन्ध अस्वीकार करूँगा।
32) मैं देष को इस प्रकार उजाड़ बना दूँगा कि तुम्हारे शत्रु, जो वहाँ बसने आयेंगे, विस्मित हो जायेंगे।
33) मैं तुम्हें राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और तुम्हारे विरुद्ध तलवार खींचूँगा। तुम्हारा देष उजाड़ और तुम्हारे नगर खँड़हर हो जायेंगे।
34) ''जब तक देष उजाड़ पड़ा रहेगा और तुम अपने शत्रुओं के यहाँ निवास करोगे, तब तक देष अपने विश्राम-वर्ष मनायेगा। तब देष विश्राम करेगा और अपने विश्राम-वर्ष मनायेगा।
35) जितने समय तक देष उजाड़ पड़ा रहेगा, वह विश्राम करेगा और इस प्रकार उन विश्राम-दिवसों की कसर पूरी करेगा, जब उसे तुम्हारे रहते समय विश्राम नहीं मिला था।
36) तुम लोगों में जो बच गये होंगे, मैं उन्हें उनके शत्रुओं के देष में इतना भयभीत कर दूँगा कि वे पवन द्वारा छितराये पत्तों की खड़खड़ाहट सुन कर भाग खड़े होंगे, मानो कोई तलवार लिये उनका पीछा कर रहा हो। वे मुँह के बल गिरेंगे, यद्यपि कोई उनका पीछा नहीं करता होगा।
37) वे एक दूसरे पर गिरते-पड़ते भागेंगे, मानो वे तलवार से भाग रहे हों, यद्यपि कोई उनका पीछा नहीं करता। तुम अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे।
38) तुम राष्ट्रों में नष्ट हो जाओंगे। तुम्हारे शत्रुओं का देष तुमको खा जायेगा।
39) तुम में जो शेष रहेंगे, वे अपने और अपने पूर्वजों के पापों के कारण अपने शत्रुओं के देष में क्षीण होते जायेंगे।
40) तब वे स्वीकार करेंगे कि उन्होंने और उनके पूर्वजों ने पाप किया, मेरे साथ विष्वासघात और बैर किया,
41) जिससे मैंने भी उन से बैर किया और उन्हें उनके शत्रुओं के देष में निर्वासित किया। जब उनका पापी हृदय इस प्रकार विनम्र हो जायेगा और वे अपने अपराधों के लिए प्रायष्चित करेंगे,
42) तो मैं याकूब, इसहाक और इब्राहीम के लिए निर्धारित अपने विधान का और देष का स्मरण करूँगा।
43) परन्तु इस से पहले उनका देष से निर्वासित किया जाना आवष्यक है, जिससे देष उनकी अनुपस्थिति में अपने विश्राम-दिवस मनाये और वे अपने पापों के लिए प्रायष्चित करें; क्योंकि उन्होंने मेरे आदेषों का तिरस्कार किया और मेरी विधियों को अस्वीकार किया।
44) लेकिन जब वे अपने शत्रुओं के देष में रहेंगे, तब भी मैं उनका इस तरह परित्याग नहीं करूँगा और उन से इतनी घृणा नहीं करूँगा कि मैं उनका सर्वनाष होने दूँ और उनके लिए निर्धारित विधान भंग करूँ। मैं प्रभु तुम्हारा ईष्वर हूँं।
45) मैं उनके पूर्वजों को राष्ट्रों के देखते-देखते मिस्र से निकाल लाया। मैं उनके लिए निर्धारित विधान का स्मरण करूँगा और मैं, प्रभु उनका अपना ईष्वर होऊँगा।
46) यही वे आदेष, विधियाँ नियम हैं, जिनके द्वारा प्रभु ने, मूसा के माध्यम से सीनई पर्वत पर इस्राएलियों के साथ अपना सम्बन्ध निर्धारित किया।

अध्याय 27

1) प्रभु ने मूसा से कहा,
2) ''इस्राएलियों से कहो कि यदि किसी ने प्रभु को एक मनुष्य अर्पित करने की मन्नत की है, तो उसके बदले उसे रुपया देना पड़ेगा,
3) बीस वर्ष से साठ वर्ष तक के पुरुष के लिए पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार चाँदी के पचास शेकेल;
4) इसी उमर की स्त्री के लिए तीस शेकेल;
5) पाँच वर्ष से बीस वर्ष तक के लड़के के लिए बीस शेकेल, इसी उमर की लड़की के लिए दस शेकेल;
6) एक महीने से पाँच वर्ष तक के बच्चें के लिए चाँदी के पाँच शेकेल, इसी उमर की बच्ची के लिए चाँदी के तीन शेकेल;
7) साठ वर्ष और इस से ऊपर के पुरुष के लिए पन्द्रह शेकेल और इसी उमर की स्त्री के लिए दस शेकेल।
8) यदि कोई इतना निर्धन हो कि वह निर्धारित मूल्य न दे सके, तो वह उसे याजक के पास ले जाये और याजक उसका मूल्य निर्धारित करे। याजक मन्नत करने वाले के सामर्थ्य के अनुसार ही उसका मूल्य निर्धारित करेगा।
9) ''यदि मन्नत के रूप में प्रभु को एक पशु अर्पित किया गया है, तो प्रभु को अर्पित ऐसा पशु पवित्र माना जाये।
10) न तो कोई अन्य चीज+ उसके स्थान पर अर्पित की जा सकती है और न कोई दूसरा जानवर चढ़ाया जा सकता है - अच्छे पशु के बदले बुरा अर्पित नहीं किया जाये और न बुरे के लिए अच्छा। यदि कोई ऐसी अदला-बदली करे, तो दोनों पशु पवित्र माने जायेंगे।
11) यदि मन्नत का कोई पशु अपवित्र हो और प्रभु को बलि देने योग्य न हो, तो वह पशु याजक के पास ले जाया जाये।
12) याजक उसका मूल्य निर्धारित करे और उसके द्वारा निर्धारित मूल्य मान्य है।
13) यदि वह उसे छुड़ाना चाहे, तो निर्धारित मूल्य के अतिरिक्त उसका पंचमांष चुकाये।
14) यदि कोई अपना घर प्रभु को मन्नत के रूप में अर्पित करे, तो याजक उसकी बनावट और स्थिति के अनुसार उसका मूल्य निर्धारित करे। याजक द्वारा निर्धारित मूल्य मान्य है।
15) यदि वह अपना वह घर छुड़ाना चाहे, तो निर्धारित मूल्य के अतिरिक्त उसका पंचमांष चुकाये।
16) यदि कोई अपनी पैतृक सम्पत्ति की भूमि का कोई भाग मन्नत के रूप में प्रभु को अर्पित करे, तो उसका मूल्य-निर्धारण उस में बोये जाने वाले बीज के आधार पर किया जाये - बोआई के बारह मन जौ के बीज के लिए चाँदी के पचास शेकेल।
17) यदि वह जयन्ती वर्ष में ही अपना खेत अर्पित करे, तो निर्धारित मूल्य पूरा-पूरा दिया जाये;
18) किन्तु यदि जयन्ती वर्ष के बाद अपना खेत अर्पित करे, तो याजक आगामी जयन्ती वर्ष तक जितने वर्ष बाकी है, उनकी संख्या के अनुसार खेत का निर्धारित मूल्य कम करे।
19) यदि खेत अर्पित करने वाला स्वयं उसे छुड़ाना चाहता हो, तो निर्धारित मूल्य के अतिरिक्त उसका पंचमांष चुकाये। इसके बाद वह खेत उसका हो जायेगा।
20) किन्तु यदि वह उस खेत को बिना छुड़ाये ही किसी दूसरे को बेच देता है, तब वह खेत छुड़ाया नहीं जा सकता।
21) यदि जयन्ती-वर्ष में वह खेत मुक्त हो जाता है, तो वह प्रभु को पूर्ण-समर्पित खेत की तरह पवित्र समझा जायेगा। उस पर याजक का अधिकार हो जायेगा।
22) ''यदि कोई व्यक्ति मन्नत के रूप में प्रभु को ऐसा खेत अर्पित करे, जिसे उसने ख़रीदा हो और जो उसकी पैतृक सम्पत्ति न हो,
23) तो याजक जयन्ती-वर्ष आने में जितने वर्ष रह गये हो, उसके आधार पर उस खेत का मूल्य निर्धारित करे। उसी दिन वह व्यक्ति निर्धारित मूल्य चुकाये। वह पवित्र है और उस पर प्रभु का अधिकार है।
24) जयन्ती-वर्ष में वह खेत फिर बेचने वाले का हो जायेगा; वह उसकी पैतृक सम्पत्ति है।
25) खेत का मूल्य पवित्र शेकेलों में दिया जायेगा। एक शेकेल में बीस गेरा होते हैं।
26) ''कोई भी पहलौठा पशु मन्नत के रूप में प्रभु को अर्पित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह तो प्रभु का है - चाहे वह गाय का हो, चाहे भेड़ का।
27) यदि वह अषुद्व पशु हो, तो निर्धारित मूल्य दे कर उसे छुड़ाया जा सकता है, किन्तु निर्धारित मूल्य का पाँचवाँ भाग और अधिक दिया जाये। यदि वह छुड़ाया नहीं जाता है, तो वह निर्धारित मूल्य पर बेच दिया जाये।
28) ''परन्तु जो कुछ प्रभु को पूर्ण-समर्पित किया जाता है, वह न तो बेचा और न छुड़ाया जा सकता है - चाहे वह मनुष्य हो, चाहे पशु या पैतृक खेत हो। जो कुछ प्रभु को पूर्ण रूप से समर्पित है, वह परमपवित्र है और प्रभु का है।
29) जो मनुष्य पूर्ण-समर्पित है, वह नहीं छुड़ाया जा सकता। उसका वध करना है।
30) ''भूमि का दषमांष - चाहे वह खेत की उपज का हो या वृक्षों के फलों का - प्रभु का है। प्रभु के लिए पवित्र माना जाये।
31) जो अपने दषमांष का कुछ छुड़ाना चाहे, वह उसके मूल्य का दषमांष जोड़ दे।
32) ढोरों और भेड़-बकरियों का प्रत्येक दसवाँ पशु, जो चरवाहे के सामने से गुजरता है, प्रभु के लिए पवित्र है।
33) उनमें न अच्छे बुरे पशु का ध्यान रखा जाये और न एक के बदले दूसरा दिया जाये। यदि कोई ऐसा ही करे, तो दोनों पशु पवित्र होंगे और नहीं छुड़ाये जा सकेंगे।''
34) यही वे आदेष हैं, जिन्हें प्रभु ने मूसा के माध्यम से, सीनई पर्वत पर इस्राएलियों को दिया।