1) सुलेमान का ''गीतों का गीत÷। |
2) ओह! वह अपने मुख के चुम्बनों से मेरा चुम्बन करें; क्योंकि तुम्हारा प्यार अंगूरी से भी अधिक आह्लादक है। |
3) तुम्हारे इत्रों की महक सुखद है, तुम्हारा नाम फैलने वाली सुगन्ध के सदृष है, इसलिए कुमारियाँ तुम से प्रेम करती हैं। |
4) मुझे अपने साथ ले चलो, हम भाग जायें। राजा! मुझे अपने कक्ष में ले जाओ। हम तुम में आनन्द और उल्लास मनायें, हम अंगूरी से भी अधिक आह्लादक तुम्हारे प्रेम की प्रषंसा करें। वे ठीक ही तुम से प्रेम करती है। |
5) येरुसालेम की पुत्रियों! मैं केदार के तम्बुओं की तरह, सलमा के तम्बुओं के अन्तरपटों की तरह साँवली हूँ, तब भी सलोनी हूूँ। |
6) मुझे तुच्छ मत समझो, क्योंकि मैं साँवली हूँ; सूर्य ने मेरा रंग साँवला दिया है। मेरे सहोदर भाई मुझ से अप्रसन्न थे, उन्होंने मुझ से दाखबारियों की रखवाली करायी। इस तरह मैंने अपनी ही दाखबारी की उपेक्षा कर दी है। |
7) मेरे प्राणप्रिय! मुझे बतलाओं कि तुम अपने रेवड़ कहाँ चराओगे और अपनी भेड़ों को दोपहर में कहाँ विश्राम कराओगे, जिससे तुम्हारे मित्रों के रेवड़ों के पास मुझे आवारा औरत की तरह मारी-मारी न फिरना पड़े। |
8) सुन्दर षिरोमणि! यदि तुम नहीं जानती, तो भेड़ों के पद-चिन्हों के पीछे चलो और गड़ेरियों के तम्बुओं के पास अपनी बकरियाँ चराओ। |
9) मेरी प्रेयसी! मैं तुम्हारी उपमा फिराउन के रथ की घोड़ी से देता हूँ। |
10) तुम्हारे कपोल कर्णफूलों से सुषोभित है, तुम्हारी ग्रीवा मालाओं से। |
11) हम तुम्हारे लिए सोने की बालियाँ और चाँदी के आभूषण बनवायेंगे। |
12) जब राजा भोजन कर रहा है, तो मेरा इत्र अपनी सुगन्ध बिखेरता है। |
13) मेरा प्रियतम मेरे उरोजों के बीच गन्धरस की थैली की तरह विश्राम करता है। |
14) मेरा प्रियतम एन-गेदी की दाखबारी के मेंहदी फूलों के गुच्छे-जैसा है। |
15) कितनी सुन्दर हो तुम, मेरी प्रियतमें! कितनी सुन्दर! तुम्हारी आँखे कपोतियों-जैसी हैं। |
16) कितने सुन्दर हो तुम, मेरे प्रियतम! कितने मनमोहक! हमारी शय्या हरी घासस्थली है। |
17) हमारे घर की धरनें देवदार और हमारी बल्लियाँ सनोवर है। |
1) मैं शारोन की नरगिस हूँ, घाटियों का सोसन पुष्प-जैसी है। |
2) कुमारियों के बीच मेरी प्रेयसी कंटकों के बीच सोसन पुष्प-जैसी है। |
3) युवकों के बीच मेरा प्रियतम वन-वृक्षों के बीच सेब वृक्ष-जैसा है। मैं उसकी छाया मेें बैठ कर आनन्दविभोर हो जाती हूँ और उसके फल का स्वाद मुझे मीठा लगता है। |
4) वह मुझे मधुषाला में ले आता है और मुझ पर उसके प्रेम की पताका लहरा रही है। |
5) किषमिष की रोटियाँ खिला कर मुझे पुष्ट कर दो, सेब खिला कर मुझे ताजा कर दो, क्योंकि मैं प्रेम से दुर्बल हो गयी हूँ। |
6) उसकी बायीं भुजा मेरे सिर के नीचे है और उसकी दाहिनी भुजा मेरा आलिंगन कर रही है। |
7) येरुसालेम की पुत्रियों! मैं मैदान के चिकारों और हरिणियों के नाम पर तुम से विनती करता हूँ : मेरी प्रियतमा को मत जगाओ, जब तक वह चाहे, तब तक उसे सोने दो। |
8) मैं अपने प्रियतम की आवाज सुन रही हूँ- देखो! वह पर्वतों पर उछलते-कूदते, पहाड़ियों को लाँघते हुए आ रहा है। |
9) मेरा प्रियतम चिकारे के सदृष है अथवा तरूण मृग के सदृष। देखो! वह हमारी दीवार के ओट में खड़ा है, वह खिड़की से ताक रहा है, वह जाली में से झाँक रहा है। |
10) मेरा प्रियतम बोल रहा है। वह मुझ से यह कहता है, |
11) ''प्रिये! सुन्दरी! उठो, मेरे साथ चलो। देखो! शीतकाल बीत गया है, वर्षा-ऋतु समाप्त हो गयी है। |
12) पृथ्वी पर फूल खिनने लगे हैं। गीत गाने का समय आ गया है और हमारे देष में कपोत की कूजन सुनाई दे रही है। |
13) अंजीर के पेड़ में नये फल लग गये हैं और दाखलताओं के फूल महक रहे है। प्रिये! सुन्दरी! उठो, मेरे साथ चलो। |
14) चट्टानों की दरारों में, पर्वतों की गुफाओें में छिपने वाली, मेरी कपोती! मुझे अपना मुख दिखाओ, अपनी आवाज सुनने दो, क्योंकि तुम्हारा कण्ठ मधुर है और तुम्हारा मुख सुन्दर है।'' |
15) हमारे लिए लोमड़ियॉ पकड़ो, क्षुद्र लोमड़ियाँ; वे हमारी दाखबारियोें का सत्यानाष करती है, जो फूलोें से लदी हुई है। |
16) मेरा प्रियतम मेरा अपना है और मैं उसकी हूँ। वह सोसनों के खेत में चरता है। |
17) मेरे प्रियतम! प्रभात से पहले, अँधेरा मिटने से पूर्व, चिकारे की तरह, ऊँची पहाड़ियों पर मृग-षावक की तरह लौट कर आ जाना। |
1) मैं सारी रात अपने पलंग पर अपने प्राणप्रिय को ढूँढ़ती हूँ। मैं उसे ढँूढ़ती हूँ, किन्तु नहीं पाती। |
2) मैं उठ कर गलियों तथा चौकों से होते नगर का चक्कर लगाती हूँ। मैं अपने प्राणप्रिय को ढूँढ़ती हूँ मैं उसे ढूँढ़ती हूँ, किन्तु नहीं पाती। |
3) नगर का फेरा लगाते हुए पहरेदार मुझे मिलते हैं : ''क्या आप लोगों ने मेरे प्राणप्रिय को देखा?'' |
4) मैं उनसे आगे बढ़ती ही हूँ कि मैं अपने प्राणप्रिय को पा लेती हॅँू। मैं उसे रोक लेती हूँ और तब तक नहीं जाने दूँगी, जब तक उसे अपनी माँ के घर नहीं ले जाऊँगी, उसके कमरे में, जिसने मुझे जन्म दिया। |
5) येरुसालेम की पुत्रियों! मैं मैदान में चिकारों और हरिणियों के नाम पर तुम से विनती करता हूँ : मेरी प्रियतमा को मत जगाओ, जब तक वह चाहे, तब तक उसे सोने दो। |
6) मरुभूमि की ओर से वह कौन आ रहा है, जो धुएँ के खम्भे के सदृष है, जो देष-देष के चूणोर्ं से बने गन्धरस और लोबान से महक रहा है? |
7) देखो, यह सुलेमान की पालकी है, उसके साथ इस्राएल के सात वीर पुरुष चल रहे हैं। |
8) सब-के-सब तलवार धारण किये हुए हैं, सब-के-सब युद्धकुषल हैं। प्रत्येक की बगल मेें रात के संकटो का सामना करने के लिए अपनी-अपनी तलवार है। |
9) राजा सुलेमान ने यह पालकी अपने लिए बनवायी, उसने इसे लेबानोन की लकड़ी से बनवाया। |
10) उसने इसके खम्भे बनवाये। उसने इसका आधार चाँदी का और इसका आसन सोने का बनवाया। येरुसालेम की पुलियों ने इसका अन्तर्भाग बैंगनी वस्त्र से सुसज्जित किया। |
11) सियोन की पुत्रियो! घर से बाहर आओ और मुकुट धारण किये राजा सुलेमान को देखो, वह मुकुट, जिसे उसके विवाह के दिन, उसके हृदय के उल्लास के दिन उसकी माता उसे पहनाती है। |
1) मेरी प्रिये! तुम कितनी सुन्दर हो! ओह! कितनी सुन्दर! घूँघट के भीतर से झाँकती तुम्हारी आँखे कपोतियों-जैसी हैं। तुम्हारी अलकें गिलआद पर्वत से उतरती हुई बकरियों के झुण्ड-जैसी हैं। |
2) तुम्हारे दाँत अभी-अभी मुँड़ कर धोये हुए रेवड़ के सदृष प्रत्येक दाँत का अपना जोड़ा है, उन में एक भी अकेला नहीं। |
3) तुम्हारे अधर लाल फीते के सदृष है, तुम्हारी जीभ सुन्दर है। घूँघट में झलकाता तुम्हारा कपोल दाड़िम की फाँक-जैसा है। |
4) तुम्हारी ग्रीवा दाऊद की मीनार के सदृष है जो विजयस्मारकों के लिए निर्मित है। उस पर हजारों ढालें, योद्धाओं की ढालें लटक रही हैं। |
5) तुम्हारे उरोज दो मृग-षावकों के सदृष हैं, चिकारे के जुड़वाँ शावकों के सदृष जो सोसनों के खेत में चरते हैं। |
6) प्रभात के पहले, अँधेरा मिटने के पूर्व मैं गन्धरस के पर्वत तथा लोबान की पहाड़ी पर जाऊँगा। |
7) मेरी प्रेयसी! तुम सर्वांगसुन्दर हो, तुम मैं कहीं कोई दोष नहीं। |
8) मेरी वधू! तुम लेबानोन से मेरे साथ चलोगी, तुम मेरे साथ लेबानोन से चलोगी। तुम अमाना के षिखर, सेनीर और हेरनान की चोटी से, सिंहो की माँदों और तेन्दुओें के पर्वतों से उतरोगी। |
9) मेरी बहन, मेरी वधू! तुमने मेरा हृदय चुरा लिया है। तुमने एक ही चितवन से, अपनी माला की एक ही मणि से मेरा हृदय चुरा लिया है। |
10) तुम्हारा प्रेमालिंगन कितना रोमांचक है! तुम्हारा प्यार अंगूरी से भी आह्लादक है। तुम्हारे इत्र की महक किसी भी अंगराग से अधिक सुखद है। |
11) मेरी वधू! तुम्हारे अधरों से अमृत टपकता है; तुम्हारी जिह्वा के नीचे मधु और दुग्ध का निवास है। तुम्हारे वस्त्रों का सौरभ लेबानोन की सुगन्ध-जैसा है। |
12) मेरी बहन, मेरी वधू! तुम एक बन्द पुष्पवाटिका हो; तुम एक परिबद्ध निर्झर, एक मुहरबन्द जलस्रोत हो। |
13) तुम उत्तम फलों से लदे अनार वृक्षों की फलती-फूलती वाटिका हो, जिसमें मेंहदी और जटामांसी हैं, |
14) जटामांसी और केसर मुष्क और दारचीनी, हर जाति के लोबान-वृक्ष, गन्धरस और अगरू तथा सभी सर्वोत्तम मसाले। |
15) मैं पुष्पवाटिका की निर्झरिणी, लेबानोन से बहते जलस्रोत का कूप हूँ। |
16) उत्तरी पवन! जागो! दक्षिणी पवन! आओ! मेरी पुष्पवाटिका पर बह जाओ, जिससे उसकी सुगन्ध सब ओर फैल जाये। मेरी प्रियतम को अपनी वाटिका में आने और उसके सुमधुर फल चखने दो। |
1) मेरी बहन, मेरी वधू! मैं अपनी पुष्पवाटिका में आ रहा हूँ। मैं अपना गन्धरस और मसाले चुनता हूँ। मैं अपना छत्ता और मधू खाता हूँ। मैं अपनी अंगूरी और दूध पीता हूँ। मित्रों! खाओ और पियो। प्रेमियों! छक कर पिओ। |
2) मैं सो रही थी, किन्तु अब जाग रही हूँ। मैं अपने प्रियतम को सुनती हूँ; वह खटखटा रहा है। मेरी बहन, मेरी प्रियतमे! मेरी कपोती, मेरी अनिन्द्य सुन्दरी! द्वार खोल दो; क्योंकि मेरा सिर ओस से भींग गया है, मेरे केष रात की आर्द्रता से गीले हो गये हैं। |
3) मैं अपनी कुरती उतार चुकी हूँ क्या मैं उसे फिर पहनूँ? मैं अपने पैर घो चुकी हूँ क्या मैं उन्हें फिर मैला करूँ? |
4) मेरा प्रियतम द्वार के छेद से हाथ बढ़ाता है। मेरा हृदय धड़कने लगा है। |
5) मैं अपने प्रियतम के लिए द्वार खोलने उठती हूँ। मेरे हाथों में गन्धरस टपक रहा है, मेरी अँगुलियों से गीला गन्धरस सिटकिनी की मूठ पर टपक रहा है। |
6) मैं अपने प्रियतम के लिए द्वार खोल देती हूँ। लेकिन मेरा प्रिय चला गया है, वह जा चुका है। मैं व्याकुल हो जाती हूँ और उसकी खोज में निकलती हूँ; मैं उसे ढूढ़ती हूँ, किन्तु नहीं पाती। मैं उसे पुकारती हूँ, किन्तु वह उत्तर नहीं देता। |
7) नगर का फेरा लगाते हुए पहरेदार मुझे मिलते हैं। चारदीवारी के वे पहरेदार मुझे पीटते हैं, मुझे घायल कर देते हैं। वे मेरी ओढ़नी छीन लेते हैं। |
8) येरुसालेम की पुत्रियों! मैं तुम से विनती करती हूँ : यदि तुम्हें मेरा प्रियतम मिल जाये, तो उसे बता दो कि मैं प्रेम से दुर्बल हो गयी हूँ। |
9) सुन्दरी-षिरोमणि! तुम्हारा प्रियतम दूसरों से किन बातों में श्रेष्ठ है? तुम्हारा प्रियतम दूसरों से किन बातों में श्रेष्ठ है, जो तुम हम से यह आग्रह करती हो? |
10) मेरा प्रियतम देदीप्यमान है और उसका रंग गुलाबी है। वह दस हजार में एक है। |
11) उसका मस्तक विषुद्ध सोने का है। उसकी अलकें खजूर के गुच्छे-जैसी और कृष्णकाक के समान काली है। |
12) उसकी आँखे जलस्रोतों के तट पर कुण्डों के किनारे पर दूध से धुली कपोतियों के सदृष हैं। |
13) उसके कपोल गन्धवृक्षों की क्यारियों के सदृष हैं, जो सुगन्ध बरसाती हैं। उसके अधर सोसन पुष्प के सदृष हैं, जिन से गन्धरस चूता है। |
14) उसकी भुजाएँ स्वर्णमणि-जटिल सोने की छड़ है, उसकी देह नीलमणियों से अलंकृत चिकनाया हुआ हाथीदाँत है। |
15) उसके पैर शुद्ध सोने के आधार पर खड़े संगमरमर के खम्भे हैं। उसका आकार लेबानोन के सदृष, उसके देवदारों के सदृष भव्य है। |
16) उसका मुख साक्षात् मधुरता है। वह सर्वांगसुन्दर है। येरुसालेम की पुत्रियों! ऐसा ही है मेरा प्रियतम, मेरा सखा ऐसा है। |
1) सुन्दरी-षिरोमणि! तुम्हारा प्रियतम कहाँ गया? तुम्हारा प्रियतम किस ओर मुड़ा, जिससे तुम्हारे साथ हम भी उसे ढूँढ़े? |
2) मेरा प्रियतम अपनी वाटिका की ओर उतरता है, वह चरने और सोसन पुष्प चुनने गन्धवृक्षों की क्यारियों की ओर उतरता है। |
3) मैं अपनी प्रियतम की हूँ और मेरा प्रियतम मेरा अपना है, वह सोसनों के खेत में चरता है। |
4) मेरी प्रेयसी! तुम तिर्षाह नगरी के सदृष सुन्दर, येरुसालेम के सदृष मोहक और पंक्तिबद्ध सेना के सदृष विस्मयकारी हो। |
5) मुझ पर से अपनी आँखें हटा लो : वे मुझे विचलित कर देती है। तुम्हारी अलकें गिलआद पर्वत से उतरती हुई बकरियों के झुण्ड-जैसी है। |
6) तुम्हारे दाँत अभी-अभी धोयी हुई भेड़ों के झुण्ड के सदृष है। प्रत्येक दाँत का अपना जोड़ा है, उन में एक भी अकेला नहीं है। |
7) घूँघट में झलकता तुम्हारा कपोल दाड़िम की फाँक-जैसा है। |
8) चाहे साठ रानियाँ हों, अस्सी उपपत्नियाँ और असंख्य कुमारियाँ, |
9) किन्तु मेरी कपोती, मेरी सर्वांगसुन्दरी के सदृष कोई नहीं। वह अपनी माता की इकलौती पुत्री, अपनी जन्मदात्री की दुलारी है। कुमारियाँ उसे देख कर धन्य कहती है, रानियाँ और उपपत्नियाँ उसकी सराहना करती है। |
10) वह कौन है, जो उषा की तरह उदित होती है, जो चन्द्रमा की तरह कान्तिमय, सूर्य की तरह प्रकाषमान और पंक्तिबद्ध सेना की तरह विस्मयकारी है? |
11) मैं घाटी की नयी फसल देखने के लिए काष्ठफलों की वाटिका में उतरता हूँ। यह देखने के लिए कि क्या दाखलताओें में कलियॉ फूट चुकी हैं, अनारवृृक्षों में फूल खिल आये हैं। |
12) मैं अपनी सुध-बुध खो चुकी हूँ, मैं उसके कारण लज्जित हूँ, यद्यपि मैं अभिजात कुल की हूँ। |
1) लौट आओ, लौट आओ शूलम्मिती! लौट आओ, लौट आओ, जिससे हम तुम्हें जी भर देख सकें। क्यों तुम लोग शूलम्मिती को जी भर देखना चाहते हो, मानो वह विवाह का कोई उभयनृत्य हो? |
2) राजकुमारी! जूतियों से सजे तुम्हारे चरण कितने मनोहर है! तुम्हारे नितम्बों की गोलाई किसी षिल्पी के हाथों से तराषी हुई मालाओं के सदृष है। |
3) तुम्हारी नाभि गोल प्याला है, जिस में मिश्रित अंगूरी का अभाव न हो! तुम्हारा उदर सोसन पुष्पों से वेष्टित गेहूँ का ढेर है। |
4) तुम्हारे उरोज दो मृग-षावको के सदृष है। चिकारे के जुड़वाँ शावको के सदृष। |
5) तुम्हारी ग्रीवा हाथीदाँत की मीनार के सदृष है। तुम्हारी आँखे बत-रब्बीम के फाटक पर हेषबोन के जलाषय हैं। तुम्हारी नाक दमिष्क की ओर अभिमुख लेबानोन की मीनार है। |
6) तुम्हारा ऊँचा मस्तक करमेल पर्वत की तरह है। तुम्हारी अलकें बैंगनी वस्त्र के सदृष हैं, उनकी लटों ने राजा को बन्दी बना लिया है। |
7) आनन्ददायिनी मेरी प्रिये! तुम कितनी सुन्दर और कितनी रमणीय हो! |
8) तुम्हारा आकार खजूर वृक्ष के सदृष है और तुम्हारे उरोज उसके गुच्छों के सदृष। |
9) मैंने कहा; ''मैं इस खजूर पर चढूँगा और इसके फल तोडँूगा''। तुम्हारे उरोज मेरे लिए अंगूर के गुच्छे बन जायें, तुम्हारे श्वासों की सुरभि सेबों-जैसी |
10) और तुम्हारा मुख सर्वोत्तम अंगूरी-जैसा हो जाये! वह अंगूरी अधरों और दन्तपंक्तियों पर बहती हुई सीधे मेरे प्रियतम के पास पहुँचे। |
11) मैं अपने प्रियतम की हूँ और वह मेरी कामना करता है। |
12) आओ, मेरे प्रियतम! हम नगर के बाहर चलें, हम रात गाँवोंें में बितायें, |
13) हम सबेरे यह देखने दाखबारियाँ चलें कि क्या अंगूर लताओं में कलियाँ फूटी है, उनके फलों की पंखड़ियाँ खिली हैं और अनार वृक्ष फूलों से गदराये है। मैं वहाँ तुम को अपना मधुर चुम्बन दूँगी। |
14) लक्ष्मण-पुष्पों की सुगन्ध फैल रही है और हमारे द्वार पर नये और पुराने, सभी प्रकार के स्वादिष्ट फल लटक रहे हैं, जिन्हें मेरी प्रियतम! मैंने तुम्हारे लिए संचित किया है। |
1) ओह! यदि तुम मेरे भाई होते, जिसने मेरी माता का दूध पिया है! तब यदि मैं तुम से बाहर मिलती, तो तुम्हें चूम लेती और कोई मेरा तिरस्कार नहीं करता। | ||
2) मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें अपनी माता के घर ले आती। तुम मुझे वहाँ दीक्षित कर लेते। मैं तुम को पीने के लिए सुवासित अंगूरी और अपने अनारों का रस देती। | ||
3) उसकी बायीं भुजा मेरे सिर के नीचे है और उसकी दाहिनी भुजा मेरा आलिंगन कर रही है। | ||
4) येरुसालेम की पुत्रियों! मैं तुम से विनती करता हूँ : मेरी प्रियतमा को मत जगाओं जब तक वह चाहे, तब तक उसे सोने दो। | ||
5) अपने प्रियतम के कन्धों पर झुकी हुई मरूभूमि की ओर से वह कौन आ रही है? मैं सेब वृक्षों के नीचे तुम को नींद से जगाती हूँ, यहीं तुम्हारी माता ने तुम को गर्भ में धारण किया था। यही तुम्हारी माता ने तुम को गर्भ मंें धारण किया था। | ||
6) मुझे मोहर की तरह अपने हृदय पर लगा लो मोहर की तरह अपनी भुजा पर बाँध लो; क्योंकि प्रेम मृत्यु की तरह शक्तिषाली है, ईर्ष्या अधोलोक-जैसी अजेय है। उसकी लपटें अग्नि की लपटों-जैसी है, विद्युत की अग्निज्वाला-जैसी। | ||
7) न तो समुद्र की लहरें पे्रम को बुझा सकती और न बाढ़ की जलधाराएँ उसे बहा सकती है। यदि कोई प्रेम को खरीदने के लिए अपने घर की सारी सम्पत्ति अर्पित करें, तो उसे तिरस्कार के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलेगा! | ||
8) हमारी एक छोटी बहन है। अभी उसके उरोज अविकसित है। जिस दिन उसकी चरचा होने लगेगी, तो हम अपनी बहन के लिए क्या करेंगे? | ||
9) यदि वह प्राचीर होती, तो हम उस पर चाँदी की मीनारें बनाते। यदि वह द्वार होती, तो हम उसे देवदार के पल्लोें से जड़ देते। | ||
10) मैं प्राचीर हूँ और मेरे उरोज वास्तव में मीनारों के सदृष हैं; इसलिए तो मैं उसकी दृष्टि में वह नगर हूँ, जहाँ शान्ति मिलती है। | ||
11) बएल-हामोन में सुलेमान की दाखबारी है। वह अपनी दाखबारी रखवालों को दे देता है। प्रत्येक को उसके फलों के लिए चाँदी के एक हजार शेकेल देने होंगे। | ||
12) किन्तु मेरी दाखबारी मेरी अपनी है। सुलेमान! लो ये हजार शेकेल तुम्हारे लिए हैं और ये दो सौ शेकेल तुम्हारे लिए हैं और ये दो सौ शेकेल उनके लिए, जो उसके फलोें के रखवाले हैं। | ||
13) ओ तुम, जो वाटिका में विराजती हो! मेरे साथी तुम्हारी आवाज सुनना चाहते हैं। मुझे अपनी आवाज सुनने दो। | ||
14) चिकारे की तरह, अथवा गन्धवृक्षों के पर्वतों पर मृग-षावक की तरह, तुम जल्दी-जल्दी आओ, मेरे प्रियतम! | ||
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