पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

एस्तेर का ग्रन्थ ( Esther )

अध्याय 1

1) (ए) महाराजा अर्तजर्कसीस के शासनकाल के दूसरे वर्ष, नीसान मास के पहले दिन, मोरदकय ने एक स्वप्न देखा। मोरदकय याईर का पुत्र था, याईर शिमई का और शिमई कीश का। वह बेनयामीन कुल का था।
1) (बी) वह सूसा नगर में रहने वाला यहूदी था; वह प्रतिष्ठित नागरिक था और राजा के दरबार में सेवक था।
1) (सी) वह उन बन्दियों में एक था, जिन्हें बाबुल का राजा नबूकदनेजर यूदा के राजा यकोन्या के साथ येरुसालेम से ले आया था।
1) (डी) उसका स्वप्न यह थाः कोलाहल और हंगामा सुनाई पड़ा, बादलों का गर्जन, भूकम्प और पृथ्वी पर बड़ा उपद्रव।
1) (इ) फिर दो बड़े परदार सर्प दिखाई दिये, जो एक दूसरे से लड़ने को तैयार थे। वे जोर-जोर से फुफकारते थे।
1) (एफ) उनकी फुफकार सुनते ही सभी राष्ट्र धर्मी राष्ट्र के लोगों से युद्ध करने को तैयार हो गये।
1) (जी) वह अन्धकारमय और विषादपूर्ण दिन था। पृथ्वी पर विपत्ति और घबराहट, दुःख और भारी आतंक!
1) (एच) धर्मी राष्ट्र के सभी लोग आने वाली विपत्तियों के कारण भयभीत हो कर अपने विनाश की आशंका से ईश्वर की दुहाई देने लगे।
1) (आइ) उनकी पुकार पर एक छोटे स्रोत से एक बड़ी नदी, एक उमड़ती हुई जलधारा फूट पड़ी।
1) (के) सूर्योदय के साथ प्रकाश हुआ। दीनहीन लोग प्रतिष्ठित किये गये और वे शक्तिशाली लोगों को निगल गये।
1) (एल) जगने पर मोरदकय उस स्वप्न और ईश्वर की योजनाओं पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर रात तक उसका अर्थ तरह-तरह से समझने का प्रयत्न करता रहा।
1) (एम) उस समय मोरदकय बिगतान और तेरेश के साथ, जो राजा के कंचुकी और महलरक्षक थे, प्रांगण में विश्राम कर रहा था।
1) (एन) उसने उनकी बातचीत सुनी और उनके षड्यन्त्रों की छानबीन करने पर उसे यह पता चला कि वे राजा अर्तजर्कसीस का वध करना चाहते हैं। उसने राजा को उनके विषय में यह सूचना दी।
1) (ओ) राजा ने उन दो कंचुकियों से पूछताछ करायी और उनके दोष स्वीकार करने पर उनका वध कराया।
1) (पी) उसने इस घटना का उल्लेख वर्णन-ग्रन्थ में कराया। स्वयं मोरदकय ने भी इसे अपने लिये लिखा।
1) (क्यू) इसके बाद राजा ने मोरदकय को राजकीय सेवा में नियुक्त किया और पुरस्कार के रूप में उसे उपहार दिये।
1) (आर) हम्मदाता का पुत्र अगागी हामान, जो राजा का प्रिय पात्र था, मोरदकय और उसकी जाति के लोगों को उन दो राजकीय कंचुकियों के कारण हानि पहुँचाने का विचार करने लगा। अर्तजर्कसीस के समय की घटना है, जिसने भारतवर्ष की सीमा से इथोपिया की सीमा तक के एक सौ सत्ताईस प्रदेशों पर राज्य किया था।
2) जब वह सूसा के क़िले में अपने सिंहासन पर विराजमान था,
3) तो उसने अपने शासन के तीसरे वर्ष अपने सब उच्च पदाधिकारियों और दरबारियों, फ़ारस और मेदिया के क्षत्रपों, कुलीनों और प्रदेशों के राज्यपालों को अपने यहाँ एक महाभोज दिया।
4) वह बहुत दिनों तक, अर्थात् एक सौ अस्सी दिन तक, उन्हें अपने यशस्वी राज्य की सम्पत्ति और अपनी महिमा की भव्यता और प्रताप दिखाता रहा।
5) भोज के दिन पूरे हो जाने पर राजा ने राजा ने सूसा के सब निवासियों-क्या छोटे, क्या बड़े-को निमन्त्रित किया और आदेश दिया कि राजकीय भवन से लगे बगीचे में सात दिन के भोज की तैयारी की जाये।
6) वहाँ चाँदी की छड़ों में और संगमरमर के खम्भों में बैंगनी रंग की छालटी की डोरियों पर सफ़ेद सूती परदे टँगे थे और नीले रंग की झालरें लटक रही थीं तथा लाल, सफेद, पीले और काले संगमरमर के फ़र्श पर सोने और चाँदी के पलंग रखे गये थे।
7) अतिथि सोने के विभिन्न प्रकार के पात्रों से पान करते थे। राजकीय वैभव के अनुरूप भरपूर अत्युत्तम मदिरा परोसी जा रही थी।
8) कोई पीने के लिए बाध्य नहीं किया जाता था; क्योंकि राजा ने अपने महल के सब पदाधिकारियों को आज्ञा दे रखी थी कि उन्हें प्रत्येक अतिथि का मन रखना चाहिए।
9) रानी वशती ने राजा अर्तजर्कसीस के महल में स्त्रियों को भी एक भोज दिया।
10) सातवें दिन राजा अर्तजर्कसीस मदिरा पी कर आनन्दमग्न था। उसने अपने यहाँ सेवा करने वाले सात कंचुकियों को, अर्थात् महूमान, बिज्जता, हरबोना, बिगता, अबगता, जेतर और करकस को आज्ञा दी
11) कि वे रानी वशती को राजकीय मुकुट पहने राजा के सामने ले आयें। वह सभी लोगों और क्षत्रपों को उसका सौन्दर्य दिखाना चाहता था; क्योंकि वह बहुत ही सुन्दर थी।
12) परन्तु रानी वशती ने कंचुकियों द्वारा प्राप्त राजा के आदेश पर आना अस्वीकार कर दिया। इस पर राजा अप्रसन्न हुआ और उसका क्रोध भड़क उठा।
13) राजा क़ानून और न्याय के विशेषज्ञों से परामर्श ले कर शासन करता था, इसलिए उसने उन विद्वानों को बुलाया, जो परम्पराओं से परिचित थे
14) और जो उस से सब से निकट थे, अर्थात् कर्शना, शेतार, अदमाता, तरशीश, मेरेस, मरसना और ममूकान को। वे फ़ारसियों और मेदियों के सात प्रशासक और राजा के दरबारी थे। राज्य में उनका प्रथम स्थान था। उसने उन से पूछा,
15) ''रानी वशती ने अस्सूर के राजा की आज्ञा का तिरस्कार किया, जिसे राजा ने कंचुकियों द्वारा भेजा था, तो क़ानून को ध्यान में रखते हुए वशती के साथ क्या करना चाहिए?''
16) तब ममूकान ने राजा और प्रशासकों के सामने कहा, ''रानी वशती ने केवल राजा के ही विरुद्ध अपराध नहीं किया, बल्कि सब क्षत्रपों और सब लोगों के विरुद्ध भी, जो राजा अर्तजर्कसीस के सब प्रदेशों में रहते हैं।
17) रानी की यह बात सब स्त्रियों को मालूम हो जायेगी और इस से वे अपने पतियों को यह कहते हुए तुच्छ समझने लगेंगी कि राजा अर्तजर्कसीस ने रानी वशती को अपने ेसामने आने की आज्ञा दी थी, लेकिन वह नहीं आयी।
18) आज ही फ़ारस और मेदिया की महिलाएँ रानी के व्यवहार के सम्बन्ध में सुनेंगी और वे राजा के सब क्षत्रपों से इसी प्रकार कहेंगी। इस तरह तिरस्कार और विवाद उत्पन्न होगा।
19) यदि राजा उचित समझें, तो राजाज्ञा दी जाये और वह फ़ारसियों और मेदियों के विधि-ग्रन्थों में लिखी जाये, जिससे वह रद्द न हो सके, अर्थात् वशती फिर कभी राजा अर्तजर्कसीस के सामने न आ सकें और उनका राजकीय पद एक अन्य महिला ग्रहण करे, जो उन से अधिक योग्य हो।
20) यदि राजा का यह निर्णय उनके सारे राज्य में, जो बहुत विस्तृत है, सुनाया जायेगा तो सब पत्नियाँ अपने-अपने पतियों का सम्मान करेंगी- चाहे वे बड़े हों या छोटे।''
21) राजा और प्रशासकों को यह परामर्श अच्छा लगा और राजा ने ममूकान के परामर्श के अनुसार कार्य किया।
22) उसने अपने राज्य के सब प्रदेशों में राजकीय आज्ञा की घोषणा करायी- प्रत्येक प्रदेश की भाषा और लिपि में। वह यह थी कि प्रत्येक पुरुष अपने घर का स्वामी होगा और उसके यहाँ रहने वाली सभी स्त्रियाँ उसके अधीन रहेंगी।

अध्याय 2

1) कुछ दिन बीत जाने पर राजा अर्तजर्कसीस का क्रोध शान्त हुआ। उसे वशती की याद आयी और यह भी कि उसने क्या किया और उसे कौन-सा दण्ड मिला था।
2) राजा के यहाँ सेवा करने वाले दरबारियों ने कहा, ''राजा के लिए सुन्दर-सुन्दर कन्याएँ ढूँढ़ी जायें।
3) राजा अपने साम्राज्य के सब प्रदेशों में ऐसे पदाधिकारियों को नियुक्त करें, जो सुन्दर कुमारियों का पता लगा कर उन्हें सूसा ले आयें और रनिवास के अध्यक्ष और रक्षक कंचुकी हेगय को सौंप दें। सबों को प्रसाधन की सामग्री दी जाये।
4) राजा को जो कन्या पसन्द होगी, वह वशती के स्थान पर रानी बनेगी।'' राजा को यह बात पसन्द आयी और उसने यही किया।
5) राजधानी सूसा में एक यहूदी रहता था। उसका नाम मोरदकय था। वह याईर का पुत्र था, याईर शिमई का और शिमई कीश का। वह बेनयामीन कुल का था।
6) वह उन्हीं बन्दियों में से एक था, जिन्हें बाबुल का राजा नबूकदनेजर यूदा के राजा योकन्या के साथ येरुसालेम से ले आया था।
7) उसने अपने चाचा की बेटी हदस्सा, अर्थात् एस्तेर का पालन-पोषण किया था; क्योंंिक वह अनाथ थी। वह कन्या सुधड़ और सुमुखी थी। उसके माता-पिता के मर जाने पर मोरदकय ने उसे गोद ले कर अपनी पुत्री बना लिया था।
8) जब राजा की आज्ञा की घोषणा की गयी और बहुत-सी कन्याएँ राजधानी सूसा में हेगय के प्रबन्ध में ले आयी जा चुकीं, तो एस्तेर भी हेगय के निरीक्षण में, जो रनिवास की देखरेख करता था, राजभवन में लायी गयी।
9) यह कन्या उसे पसन्द आयी और उसने हेगय की कृपा प्राप्त की। हेगय ने तुरन्त उसे प्रसाधान की सामग्री प्रदान की और उसके लिए विशेष भोजन का प्रबन्ध किया। उसने राजभवन की सात सर्वसुन्दर कन्याओं को उसकी सेवा में नियुक्त किया और उसे अपनी सहेलियों के साथ रनिवास के सब से उत्तम भाग में ठहराया।
10) एस्तेर ने अपनी जाति और अपने जन्म के सम्बन्ध में कुछ नहीं बताया; क्योंकि मोरदकय ने उसे कहा था कि वह इस विषय में कुछ न कहे।
11) मोरदकय प्रतिदिन रनिवास के आँगन के सामने आता-जाता, जिससे उसे यह पता चलता रहे कि एस्तोर कैसी है।
12) उन कन्याओं का सौन्दर्य-उपचार बारह महीनों तक किया जाता। उनका विलेपन छः महीनों तक गन्धरस के तेल से और छः महीनों तक उबटन और अंगराम से किया जाता। इसके बाद उनका राजा के पास जाने का समय आया।
13) जब कोई कन्या राजा के पास जाती, तो उसे वह सब दिया जाता, जो वह माँगती और जिसे वह रनिवास से राजमहल ले जाती।
14) वह सन्ध्या-समय भीतर चली जाती और प्रातःकाल उस दूसरे रनिवास में लौट जाती, जो राजा के कंचुकी, उपपत्नियों के प्रबन्धक शाशगज के अधिकार में था। इसके बाद जब तक राजा इच्छा नहीं प्रकट करता और उसे नाम ले कर नहीं बुला भेजता, तब तक वह फिर राजा के पास नहीं जा सकती थी।
15) जब मोरदकय के चाचा अबीहैल की पुत्री एस्तेर की, जिसे उसने गोद लिया था, राजा के पास जाने की बारी आयी, तो वह उसके सिवा और कुछ नहीं ले गयी, जो उपपत्नियों के प्रबन्धक कंचुकी हेगय ने उसे सुझाया। फिर भी सब देखने वाले उसकी सौम्यता और सौन्दर्य की प्रशंसा करते थे।
16) राजा अर्तजर्कसीस के शासन के सातवें वर्ष, टेबेत नामक दसवें महीने में एस्तेर राजमहल के अन्दर लायी गयी थी।
17) राजा ने एस्तेर को अन्य सब स्त्रियों से अधिक प्यार किया। अन्य सब कुमारियों के बीच एस्तेर ने राजा की कृपादृष्टि प्राप्त की। इसलिए उसने उसके सिर पर राजमुकुट रख दिया और उसे वशती के स्थान पर रानी बनाया।
18) तब एस्तेर के आगमन के सम्मान में राजा ने अपने सब क्षत्रपों और पदाधिकारियों को एक बड़ा भोज दिया, उसने सब प्रदेशों में करों की छूट की घोषणा की और राजकीय उदारता के अनुरूप उपहार बाँटे।
19) मोरदकय राजमहल के द्वार पर रहा करता था।
20) एस्तेर ने अपने कुल और जाति के विषय में कुछ नहीं कहा था, जैसा कि मोरदकय ने उसे आदेश दिया था; क्योंकि एस्तेर अब भी मोरदकय के आदेशों का पालन उसी तरह करती थी, जिस तरह वह बचपन में तब करती थी, तब मोरदकय उसका पालन-पोषण करता था।
21) उन दिनों, जब मोरदकय राजकीय भवन के द्वार पर बैठा हुआ था, राजा के द्वारपालों में दो ख़ोजे बिगतान और तेरेश क्रुद्ध हो कर राजा अर्तजर्कसीस को मार डालने की योजना बना रहे थे।
22) मोरदकय को उनके षड्यन्त्र का पता चला और उसने तुरन्त रानी एस्तेर को सूचित किया और एस्तेर ने मोरदकय की ओर से राजा को।
23) इस बात की जाँच की गयी और यह सही निकली। इसलिए उन दोनों को सूली पर लटका दिया गया। इस घटना का विवरण राजा के सामने ही इतिहास-ग्रन्थ में लिखा गया।

अध्याय 3

1) कुछ दिनों बाद अर्तजर्कसीस ने हम्मदाता के पुत्र अगागी हामान को उच्च पद पर नियुक्त किया और अपने यहाँ के समस्त क्षत्रपों में उसे ऊँचा स्थान दिया।
2) राजा के सब सेवक, जो राजद्वार पर नियुक्त थे, हामान को दण्डवत् प्रणाम किया करते थे; क्योंकि इसके विषय में राजा की आज्ञा यही थी। लेकिन मोरदकय ने इस प्रकार दण्डवत् प्रणाम नहीं किया।
3) राजा के सेवकों ने, जो राजद्वार पर नियुक्त थे, मोरदकय से कहा, ''तुम राजा की आज्ञा क्यों भंग करते हो?''
4) वे प्रतिदिन उस से यही कहते रहे। तब भी उसने उनकी नहीं मानी। तब उन्होंने यह बात हामान को बतायी; क्योंकि वे देखना चाहते थे कि मोरदकय अपनी बात पर दृढ़ रहेगा या नहीं। उसने उन्हें बताया था कि वह यहूदी है।
5) जब हामान ने देखा कि मोरदकय दण्डवत् प्रणाम नहीं करता, तो वह क्रुद्ध हो उठा।
6) उसने मोरदकय पर ही हाथ उठाना नहीं चाहा, बल्कि असूरी राज्य में रहने वाली समस्त यहूदी जाति का सर्वनाश करना चाहा; क्योंकि उसने सुना था कि मोरदकय यहूदी है।
7) राजा अर्तजर्कसीस के बारहवें वर्ष के नीसान नामक पहले महीने में हामान के सामने 'पूर', अर्थात् चिट्ठी डाली गयी कि किस दिन और किस महीने यहूदी जाति का सर्वनाश किया जाये और अदार नामक महीने का तेरहवाँ दिन निकला।
8) (८-९) इसके बाद हामान ने राजा अर्तजर्कसीस से कहा, ''आपके राज्य के सारे प्रदेशों के लोगों के बीच एक ऐसी जाति फैल गयी है, जिसके विधि-विधान अन्य सब लोगों से भिन्न हैं और जो राजाज्ञाएँ नहीं मानती। अतः यह राजा के हित में उचित नहीं है कि उसे शान्ति से रहने दिया जाये। यदि राजा उचित समझें, तो उसके विनाश की लिखित आज्ञा दी जाये और मैं राजा के पदाधिकारियों के हाथ दस हजार मन चाँदी दूँगा, जिसे वे राजकीय कोष में रखेंगे।''
10) तब राजा ने अपने हाथ की मुहर-लगी अँगूठी उतार कर हम्मदाता के पुत्र यहूदी-शत्रु अगागी हामान को दे दी।
11) राजा ने हामान से कहा, ''वह चाँदी तुम्हारे पास रहे और उस जाति के साथ तुम जो चाहो, वही करो।''
12) पहले महीने के तेरहवें दिन राजा के सचिव बुलाये गये और हामान के आदेशानुसार राजा के क्षत्रपों, सभी प्रदेशों के राज्यपालों और सभी जातियों के शासकों को, प्रत्येक प्रदेश की लिपि तथा प्रत्येक जाति की भाषा में लिखित आज्ञा दी गयी। वह आज्ञा राजा अर्तजर्कसीस के नाम से लिखी गयी और उस पर राजा की अँगूठी की मुहर लगा दी गयी।
13) (ए) राजाज्ञा की प्रतिलिपि इस प्रकार है : ''भारतवर्ष की सीमा से ले कर इथोपिया की सीमा तक एक सौ सत्ताईस प्रदेशों के क्षत्रपों और उनके अधीनस्थ पदाधिकारियों को महाराजा अर्तजर्कसीस यह लिखते हैं :
13) (बी) बहुत-सी जातियों पर शासन और सारी पृथ्वी का अधिकार प्राप्त होन भयरहित हो कर जीवन बिताये और राज्य के सीमान्तों तक सुरक्षित यात्रा कर सके और मैं वह शान्ति पुनः स्थापित कर सकूँ , जो सबों को प्रिय है।
13) (सी) जब मैंने अपने मन्त्रियों से पूछा कि यह उद्देश्य किस प्रकार पूरा किया जा सकता है, तो हामान ने, जो समझदारी, राजभक्ति और ईमानदारी में दूसरों से श्रेष्ठ है और जो राज्य में राजा के बाद सर्वोच्च पद पर हैं।
13) (डी) हमें यह बताया कि पृथ्वी पर रहने वाली सब जातियों में एक जाति ऐसी भी है, जो दूष्ठ है, जिसके विधि विधान अन्य सभी जातियों से भिन्न है और जो सदा राजाओं के आदेशों का तिरस्कार करती हैंं। इससे हम अपने राज्य में जातियों का जो मेल स्थापित करता चाहते है, वह नहीं हो पाता हैं।
13) (ई) हमें मालूम हो गया है कि मात्र वही जाति सब अन्य जातियों के प्रतिकूल है, दुष्ट विधि-विधान का अनुसरण करती, हमारे उद्देश्य का विरोध करती, अपराध करती रहती और राज्य की शान्ति में बाधा डालती है।
13) (एफ) इसलिए हमारा आदेश है कि हमारे प्रशासक और पितृतुल्य हामान अपने पत्र में जिन लोगों का उल्लेख करते हैं, उनका, उनकी पत्नियों और बच्चों के साथ, किसी पर दया दिखलाये बिना, इस वर्ष के अदार महीने के चौदहवें दिन, शत्रुओं की तलवार से सर्वनार्श किया जाये।
13) (जी) इस प्रकार ये दुष्ट लोग सब-के-सब एक ही दिन बलपूर्वक अधोलोक उतारे जायेंगे, जिससे भविष्य में हमारे राज्य में सुरक्षा और शान्ति रहे।
13) (एच) जो व्यक्ति इन लोगों को छिपा रखेगा, उसे न तो मनुष्यों के बीच और न पक्षियों के बीच रहने दिया जायेगा। वह पवित्र आग में जलाया जायेगा और राज्य उसकी धन-सम्पत्ति जब्त करेगा। अलविदा।
14) ''इस पत्र की प्रतिलिपि प्रत्येक प्रदेश में राजाज्ञा के रूप में घोषित करने का आदेश है, जिससे सभी लोग इसे जान जायें और उस दिन के लिए तैयार रहें।''
15) भेजे हुए हरकारों ने राजा के आदेश का तुरन्त पालन किया और राजाज्ञा की घोषणा राजधानी सूसा में हो गयी। राजा और हामान मदिरा पीने बैठे, परन्तु सूसा नगर में आतंक छाया हुआ था।
15) (ए) सब जातियों ने उत्सव मनाया। राजा और हामान राजभवन में प्रवेश कर मित्रों के साथ भोग विलास करते रहें।
15) (बी) जहाँ कहीं भी पत्र की प्रतिलिपि प्रदर्शित की जाती, वहाँ सभी यहूदी रोते हुए भारी शोक मनाते।
15) (सी) वे यह कहते हुए अपने पूर्वजों के ईश्वर से प्रार्थना करते थे :-
15) (डि) प्रभु ईश्वर! तू ऊपर, स्वर्ग में एकमात्र ईश्वर है। तेरे सिवा और कोई ईश्वर नहीं।
15) (र्ई) यदि हमने तेरी संहिता और तेरे आदेशों का पालन किया होता, तो हम जीवन भर सुरक्षा और शान्ति में निवास करते।
15) (एफ) अब यह सारी विपत्ति हम पर इसलिए आ पड़ी हैं कि हमने तेरे आदेशों का पालन नहीं किया।
15) (जी) प्रभु! तू न्यायी, दयालु, सर्वोच्य और महान् हैं। तेरे सभी मार्ग न्यायपूर्ण हैं।
15) (एच) प्रभु तू बन्दी गृह से अपनी पुत्रों की बलात्कार और सर्वनाश से हमारी पत्नियों की रक्षा करः क्योंकि तू मिस्र की दासता के समय से अब तक हम पर कृपा करता रहा ।
15) (आई) अपनी प्रिय प्रजा पर दया कर, अपनी विरासत को कलंकित न होने दे, हमारे शत्रु हम पर हावी न हों।

अध्याय 4

1) जब मोरदकय को इन सब बातों का पता चला, तो उसने अपने वस्त्र फाड़ लिये, टाट ओढ़ा और अपने सिर पर राख डाली। वह ऊँचे स्वर में विलाप करता हुआ नगर के मुख्य मार्ग से हो कर
2) राजमहल के प्रवेश-द्वार तक आया; क्योंकि टाट पहन कर राजमहन के भीतर आना मना था।
3) (प्रत्येक प्रदेश में जहाँ-जहाँ राजा की आज्ञा और आदेश की घोषणा हुई थी, वहाँ-वहाँ यहूदियों ने शोक मनाया। उन्होंने उपवास, क्रन्दन और विलाप किया। उन में बहुतों ने टाट ओढ़े राख पर शयन किया।)
4) जब एस्तेर की दासियों और ख़ोजों ने उसे यह बताया, तो वह बहुुत दुःखी हुई। उसने मोरदकय को पहनने के वस्त्र भेजे, जिससे वह टाट उतार कर उन्हें पहन ले। परन्तु उसने उन्हें पहनना स्वीकार नहीं किया।
5) अब एस्तेर ने हताक नामक एक ख़ोजे को बुलाया, जिसे राजा ने उसकी सेवा में नियुक्त किया था। उसने उसे मोरदकय के पास भेजा, जिससे वह पता लगाये कि मोरदकय ऐसा क्यों कर रहा है।
6) हताक मोरदकय के पास नगर के चौक गया, जो राजद्वार के सामने था।
7) मोरदकय ने उसे वह सब बताया, जो उसके साथ हुआ था और कि हामान ने यहूदियों का विनाश कर कितना धन राजकीय कोष में जमा कराने का वचन दिया है।
8) उसने कहा, ''अपना बचपन याद रखो, जब मैं तुम्हारा पालन-पोषण करता था। हामान, जिसका स्थान राजा के बाद दूसरा है, हमारे विरुद्ध बोला और हमारा विनाश चाहता है।''
8) उसने उसे उस राजाज्ञा की प्रति-लिपि भी दी, जो सूसा नगर में उनके विनाश के लिए प्रसारित की गयी थी और यह कहा कि उसे एस्तेर को दिखलाये और उस से अनुरोध करे कि वह राजा के पास जा कर निवेदन और अपने लोगों के लिए प्रार्थना करे।
9) हताक ने आ कर एस्तेर को वह सब बताया, जो मोरदकय ने कहा था।
10) एस्तेर ने हताक द्वारा मोरदकय को कहला भेजा,
11) ''राजा के सब सेवक और राजा के प्रदेशों के सभी निवासी जानते हैं कि जो पुरुष या स्त्री बिना बुलाये राजा के भीतरी प्रांगण में प्रवेश करता है, उसके विषय में एक ही क़ानून हैं, अर्थात् तत्काल उसका वध किया जाये; किन्तु यदि राजा अपनी स्वर्ण राजदण्ड उसकी ओर बढ़ाये, जो वह जीवित रह सकता है। मैं तीस दिन से राजा के पास नहीं बुलायी गयी हूँ।''
12) मोरदकय ने यह सुनकर
13) एस्तेर के पास यह उत्तर भिजवाया, ''यह नहीं सोचो कि राजमहल में रहने के कारण तुम सभी यहूदियों की अपेक्षा अपने प्राण बचा सकोगी।
14) यदि इस समय तुम चुप बैठी रहोगी, तो यहूदियों को कहीं-न-कहीं से मुक्ति और सुरक्षा प्र्राप्त हो जायेगी, किन्तु तुम्हारा और तुम्हारे पितृकुल का विनाश होगा। क्या जानें, शायद इस प्रकार की विपत्ति से हमारी रक्षा करने के लिए तुम को रानी का पद प्राप्त हुआ हो?''
15) एस्तेर ने मोरदकय को उत्तर भिजवाया,
16) ''जाइए; सूसा में रहने वाले सब यहूदियों को एकत्रित कर कहिए कि वे सभी मेरे लिए उपवास करें। वे तीन दिन, तीन रात कुछ नहीं खायें-पियें। मैं भी अपनी दासियों के साथ इसी प्रकार उपवास करूँगी। फिर मैं आज्ञा का उल्लंघन करते हुए राजा के पास जाऊँगी और यदि मेरे भाग्य में मरना ही बदा होगा, तो मर मिटूँगी।''
17) (ए) मोरदकय अपने वस्त्र फाड़ कर और टाट ओढ़ कर जनता के नेताओं के साथ प्रातः से सन्ध्या तक मुँह के बल पड़ा रहा।
17) (बी) उसने कहा : ÷÷इब्राहीम, इसहाक और याकूब के ईश्वर! तू धन्य है।
17) (सी) प्रभु! प्रभु! सर्वशक्तिमान् अधिपति! सब कुछ तेरे अधिकार में है। यदि तू इस्राएल को बचाना चाहे, तो मेरे सामने कोई नहीं टिकेगा।
17) (डी) तूने आकाश और पृथ्वी बनायी और आकाश के नीचे सब आश्चयोर्ं को
17) (इ) प्रभु! तू विश्व का अधिपति है। तेरा सामना कोई नहीं कर सकता।
17) (एफ) प्रभु! तू जानता है कि मैं इस्राएल के कल्याण के लिए हामान के चरणों का तलवा सहर्ष चूमने को तैयार हूँ।
17) (जी) किन्तु मैंने ऐसा नहीं किया; क्योंकि मैं ईश्वर की प्रतिष्ठा की अपेक्षा मनुष्य की प्रतिष्ठा को अधिक महत्व नहीं देना चाहता था। प्रभु! मेरे ईश्वर! मैं तुझ को छोड़ किसी अन्य को दण्डवत् नहीं करूँगा।
17) (एच) मैंने न तो अभिमान से और न नाम कमाने की इच्छा से ऐसा किया। प्रभु! प्रकट हो कर हमारी सहायता कर।
17) (आइ) अधिपति! इब्राहीम, इसहाक और याकूब के ईश्वर! अब अपनी प्रजा की रक्षा कर, क्योंकि हमारे शत्रु हम को मिटाना और तेरी विरासत का विनाश करना चाहते हैं।
17) (के) उस प्रजा का तिरस्कार न कर, जिसने तूने मिस्र के उद्धार किया हैं।
17) (एल) प्रभु! मेरी प्रर्थना सुन, अपनी विरासत पर दया कर, हमारा शोक आनन्द में बदलने की कृपा कर, जिससे हम जीते रहें और तेरे नाम के गीत गा सकें। जो मुख तेरी स्तुति करते हैं, उनका विनाश न होने दे।''
17) (एम) सभी इस्राएली भी सारी शक्ति से प्रभु की दुहाई देते थे, क्योंकि वे अपनी मृत्यु निकट समझते थे।
17) (एन) रानी एस्तेर ने भी मृत्यु के भय से पीड़ित हो कर प्रभु की शरण ली।
17) (ओ) उसने राजसी वस्त्र उतार कर शोक के वस्त्र धारण किये, बहुमूल्य विलेपन के बदले अपने सिर पर राख डाली और कठोर उपवास द्वारा अपना शरीर तपाया।
17) (पी) वह अपनी दासियों के साथ प्रातः से सन्ध्या तक मँुह के बल पड़ी रही। उसने कहा :
17) (क्यू) ÷÷इब्राहीम, इसहाक और याकूब के ईश्वर! तू धन्य है! मुझ एकाकिनी की सहायता कर। प्रभु! तेरे सिवा मेरा कोई रक्षक नहीं।
17) (आर) मैं हथेली पर जान रखने जा रही हूँ
17) (एस) प्रभु! मुझे अपने पूर्वजों के ग्रन्थों से यह पता चला कि तूने जलप्रलय में नूह की रक्षा की।
17) (टी) प्रभु! मुझे अपनी पूर्वजों के ग्रन्थों से यह पता चला जब इब्राहीम तीन सौ अठारह वीरों के साथ युद्व करने निकले, तो तूने नौ राजाओं को उनके हाथ दिया।
17) (यू) प्रभु! मुझे अपने पूर्वजों के गं्रथों से यह पता चला कि कि तूने योना को मच्छ के पेट से निकाला।
17) (व्ही) प्रभु! मुझे अपने पूर्वजों के ग्रंथों से यह पता चला कि तूने हनन्या, अजर्या और मिशाएल को आग की भट्ठी से निकाला।
17) (एक्स) प्रभु! तुझे अपने पूर्वजों के ग्रंथें से यह पता चला। कि तूने दानिएल को सिह के खड्ड से निकाला।
17) (वाय) प्रभु! मुझे अपने पूर्वजों के ग्रन्थों से यह पता चला कि जब यहूदियों के राजा हिजकीया मरने पर थे और अपने जीवन के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो तूने उन पर दया की और उन्हें पन्द्रह वर्ष और जीवित रहने दिया।
17) (ए जेड) प्रभु! मुझे अपने पूर्वजों के ग्रन्थों से यह पता चला कि जब अन्ना ने सारे हृदय से प्रार्थना की, तो तूने उसे पुत्र प्रदान किया।
17) (ए ए ) प्रभु! तुझे अपने पूर्वजों के ग्रंथें से यह पता चला कि जिन लोगों पर तू प्रसन्न है, तू, प्रभु! उन सब की सदा रक्षा करता है।
17) (बी बी) प्रभु! मेरे ईश्वर मुझ एकाकिनी की सहायता कर; क्योंकि तेरे सिवा मेरा कोई नहीं।
17) (सी सी) प्रभु! तू जानता है कि तेरी इस दासी को बेखतना लोगों के प्रसंग से घृणा है।
17) (डी डी) ईश्वर तू जानता है कि मैंने बीभत्स मेज पर से नहीं खाया और उनकी गोष्ठियों की मदिरा नहीं पी।
17) (इ इ) प्रभु तू जानता है कि जिस दिन से मैं रानी बनी, उस दिन से तू ही मेरा आनन्द रहा।
17) (एफ एफ) ईश्वर तू जानता है कि मैं जो राजसी वस्त्र पहनती हूँ उससे रजस्वला के कपड़े की तरह घृणा करती हूँ। मैंने उसे शुभ दिन में नहीं पहना।
17) (जी जी) अब मुझ अनाथ की सहायता कर। सिंह के सामने मेरे मुख में उपयुक्त शब्द रख। मुझे उसकी कृपा दृष्टि प्रदान कर, उसका हृदय बदल और उसमें हमारे शत्रु का बैर उत्पन्न कर, जिससे हमारे शत्रु और उसके समर्थकों का विनाश हो।
17) (एच एच) हमें हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ा, हमारा शोक आनन्द में और हमारी विपत्ति कल्याण में बदलने की कृपा कर।
17) (आइ आइ) ईश्वर अपनी प्रजा की रक्षा कर! अपनी शक्ति प्रदर्शित कर।
17) (के के) प्रभु प्रकट होकर हमारी सहायता कर।''

अध्याय 5

1) तीसरे दिन, एस्तेर राजसी वस्त्र पहने राजमहल के भीतरी प्रांगण में उपस्थित हुई। राजा दर्शन-कक्ष में, महल के प्रवेश-द्वार के सामने, अपने सिंहासन पर विराजमान था।
2) जब उसने रानी एस्तेर को खड़ा देखा, वह उस पर प्रसन्न हुआ और अपने हाथ का स्वर्ण राजदण्ड उसकी ओर बढ़ाया। एस्तेर ने निकट आ कर उसे राजदण्ड का सिरा स्पर्श किया।
2) (ए) एस्तेर ने सबों के अधिपति और रक्षक ईश्वर से प्रार्थना करने के बाद अपने राजसी वस्त्र पहन लिये और दो दासियों को अपने साथ लिया।
2) (बी) वह सुकुमारी की तरह एक पर हलका-सा भार दे कर आगे बढ़ी।
2) (सी) दूसरी अपनी स्वामिनी के वस्त्र का पुछल्ला सँभालते हुए उसके पीछे-पीछे चलती थी।
2) (डी) उसका मुख गुलाबी रंग से प्रदीप्त था और उसकी आँखें मानों उल्लास से चमकती थी, किंतु उसका उदास मन मृृत्यु के डर से काँपता था।
2) (इ) वह क्रमशः सभी द्वार पार कर भीतरी दर्शन-कक्ष में राजा के सामने उपस्थित हुई, जहाँ वह स्वर्ण और बहुमूल्य रत्नों से सुसज्जित राजसी वस्त्र पहने अपने सिंहासन पर विराजमान था। उसकी आकृति विस्मयकारी थी।
2) (एफ) उसने आँख उठा कर उसे देखा। उसका क्रोध मदान्य साँड़ की तरह भड़क उठा और उसे पहचाने बिना उसका विनाश करने के विचार से बोल उठा, ''किसने बिना बुलाये दर्शन-कक्ष में प्रवेश करने का साहस किया?'' रानी का रंग उड़ गया और वह बेहोश हो कर अपने सामने की दासी क
2) (जी) यहूदियों के ईश्वर और समस्त सृष्टि के प्रभु ने राजा का मन शांत कर दिया। वह घबरा कर अपने सिंहासन से तुरंत उठा। उसने एस्तेर को अपनी बाँहों से सँभाला और जब तक वह होश में न आयी, उसे शांतिपूर्ण शब्दों में इस प्रकार आश्वासन देता रहा,
2) (एच) ''रानी एस्तेर! मेरी बहन और रानी! क्या बात है?
2) (आइ) तुम्हारा वध नहीं होगा। हमारा यह कानून तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि अन्य सब लोगों के लिए है।
2) (के) आओ।''
2) (एल) फिर उसने सोने का राजदण्ड उठा कर उसकी गर्दन पर रखा और उसका आलिंगन कर उस से कहा, ''मेरे साथ बात करो।''
2) (एम) तब उसने उस से कहा, ''स्वामी! आप मुझे देवदूत-सदृश लगे। आपकी महिमा देख कर मेरा मन भय से घबरा उठा।
2) (एन) स्वामी आप तो विस्मयकारी हैं, परन्तु आपका मुखमण्डल कैसा अनुग्रहपूर्ण है।''
2) (ओ) ऐसा कह कर वह फिर बेहोश हो गिर पड़ी।
2) (पी) इस से राजा अपने सब अनुचरों के साथ व्याकुल हो उठा।
3) राजा ने उस से पूछा, ''रानी एस्तेर! क्या बात है? तुम क्या चाहती हो? यदि तुम मेरे राज्य का आधा भाग भी माँगोगी, तो वह तुम्हें दिया जायेगा''।
4) एस्तेर ने उत्तर दिया, ''यदि राजा उचित समझे तो आप और हामान, दोनों आज मेरे उस भोज में सम्मिलित हों, जो मैं राजा को दे रही हूँ।''
5) राजा ने कहा, ''हामान को जल्दी बुलाओ, जिससे एस्तेर का मन रखा जाये''। राजा और हामान एस्तेर द्वारा दिये हुए भोज में सम्मिलित हुए।
6) राजा ने अंगूरी पीने के बाद एस्तेर से कहा, ''बालो, तुम क्या चाहती हो? वह तुम को दिया जायेगा। तुम्हारा क्या निवेदन है? यदि तुम मेरे राज्य का आधा भाग भी माँगोगी, तो वह तुम को मिलेगा।''
7) इस पर एस्तेर बोली, ''मेरा निवेदन और प्रार्थना यह है :
8) यदि मुझे राजा की कृपादृष्टि प्राप्त है और राजा मेरा निवेदन स्वीकार करें और मेरी प्रार्थना पूरी करें, तो राजा और हामान कल भी उस भोज में सम्मिलित हों, जो मैं उन्हें दूँगी मैं कल राजा के प्रश्न का उत्तर दूँगी।''
9) हामान उस दिन आनन्दित और प्रसन्नचित वहाँ से चला गया। उसने मोरदकय को राजा के द्वार पर बैठा देखा, किन्तु मोरदकय उसे देख कर खडा नहीं हुआ और उसकी कोई परवाह नहीं की। इस पर हामान को बड़ा क्रोध आया,
10) किंतु उसने अपना भाव प्रकट नहीं होने दिया। घर पहँुचने पर उसने अपने मित्रों अपनी पत्नी जेरेश को बुलाया।
11) और उनके सामने अपने वैभव का वर्णन किया, अपने बहुसंख्यक पुत्रों की चरचा की और यह बताया कि राजा ने उस अन्य प्रशासकों और अनुचरों की अपेक्षा कितनी महिमा प्रदान की।
12) हामान ने यह भी कहा, ''रानी एस्तेर ने अपने भोज में राजा के सिवा केवल मुझे बुलाया और मैं कल भी उनके यहाँ राजा के साथ भोजन करूँगा।
13) परंतु जब मैं उस यहूदी मोरदकय को राजा के द्वार पर बैठा देखता हूँ, तो यह सब मुझे फीका लगने लगता हैं।'
14) इस पर उसकी पत्नी जेरेश और उनके अन्य मित्रों ने उस से कहा, ''पचास हाथ ऊँचा फाँसी का तख्ता तैयार करने का आदेश दे और प्रातः राजा से कहें कि उस पर मोरदकय लटका दिया जाये। इसके बाद राजा के साथ सहर्ष भोजन करने चले जाये।'' यह विचार हामान को अच्छा लगा और उसने फाँसी का तख्ता तैयार करने का आदेश दिया।

अध्याय 6

1) उस रात राजा को नींद नहीं आ रही थी। उसने विवरण-ग्रंथ लाने की आज्ञा दी और राजा को पढ़ कर सुनाया गया।
2) उस में लिखा था कि राजा के द्वारपालों में दो खोजे बिगतान और तेरेश ने राजा अर्तकर्जसीस को मारने का षड्यन्त्र रचा था और मोरदकय ने उसका उद्घाटन किया था।
3) तब राजा ने पूछा, ''इसके लिए मोरदकय को कौन-सा सम्मान या पुरस्कार प्राप्त हुआ?'' राजा के सेवकों ने, जो उसकी सेवा में उपस्थित थे, उस से कहा, ''उसने कुछ नहीं मिला''।
4) तब राजा ने पूछा, ''प्रांगण में कौन है। ''उसी समय हामान राजमहल के बाहरी प्रांगण मे आया था, जिससे वह राजा को यह सुझाव दे कि वह मोरदयक को उस तख्ते पर लटकने का आदेश दे, जो उसके लिए तैयार किया था।
5) राजा के सेवकों ने उस से कहा, ''हामान प्रांगण में खडे हैं'। राजा ने उसे अंदर जाने की आज्ञा दी।
6) हामान के अंदर आने पर राजा ने उस से पूछा, ''यदि राजा किसी सम्मान देना चाहे, तो उसे उसके साथ क्या करना चाहिए?'' अब हामान ने अपने मन में सोचा कि राजा मेरे सिवा और किस को सम्मान देना चाहेगा।
7) इसलिए उसने उत्तर दिया, ''राजा जिस को सम्मान देना चाहते हैं,
8) उसके लिए राजा के पहने राजसी वस्त्र और वह घोड़ा लाया जाये, जिस पर राजा सवार थे, जब उन्हें राजमुकुट पहनाया गया था।
9) राजा के सर्वोच्च प्रशासक उसे वस्त्र पहनाये, उसे वस्त्र पहनाये, उस को घोडे पर बैठायें और नगर के चौक में घोड़ा घुमाते हुए घोषित करे, 'राजा जिस को सम्मान देना चाहते हैं, उसके साथ ऐसा ही किया जाता है'।''
10) राजा ने हामान से कहा, ''जैसा तुमने कहा, शीघ्र ही एक वैसा वस्त्र और एक वैसा घोड़ा ले आओ और राजद्वार पर बैठे हुए यहूदी मोरदकय के लिए वही करो। इसका ध्यान रखो कि तुमने जो कुछ कहा, उस में से एक भी बात मत भुलाओं।''
11) इस पर हामान वस्त्र और घोड़ा ले आया। उसने वह वस्त्र मोरदकय को पहनाया। फिर उसे घोड़े पर सवार कर नगर के चौक में घूमाते हुए उसने यह घोषणा की, ''राजा जिस को सम्मान देना चाहते हैं, उसके साथ ऐसा ही किया जाता है''।
12) मोरदकय राजभवन के द्वार पर लौटा और हामान सिर ढक कर उदास मन घर गया।
13) हामान ने अपनी पत्नी जेरेश और अपने सब मित्रों को वह बताया, जो उसके साथ हुआ था। तब उसके बुद्धिमान्् मित्रों और उसकी पत्नी जेरेश ने उस से कहा, ''यदि मोरदकय, जिसके सामने आनी अवनति प्रारंभ हो गयी है, यहूदी जाति का है, तो आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे, बल्कि आप उसके द्वारा निश्चय हार जायेंगे''।
14) अभी वे उसके साथ बात कर रही रहे थे कि राजा के खोजे आ पहुँचे और हामान को शीघ्र ही एस्तेर के भोज में ले गये।

अध्याय 7

1) राजा और हामान एस्तेर के साथ मदिरापान करने आये।
2) राजा ने अंगूरी पीने के कारण आनन्दित हो कर दूसरे दिन भी एस्तेर से कहा, ''एस्तेर! तुम्हारी प्रार्थना क्या है? वह पूरी हो जायेगी। तुम क्या है? यदि तुम मेरे राज्य का आधा भाग भी माँगोगी, तो वह तुम्हें दिया जायेगा।''
3) इस पर उसने कहा, ''महाराज! यदि मुझे आपकी कृपादृष्टि प्राप्त है और यदि राजा यह उचित समझें, तो मेरी विनती यह है कि मुझे जीवनदान मिले
4) और मेरी जाति के लोगों को भी, जिनके लिए मैं प्रार्थना करती हूँ; क्योंकि मेरे और मेरी जाति के लोगों से संबंध में यह निर्णय लिया जा चुका है कि हमारा विनाश और वध किया जाये और अस्तित्व मिटा दिया जाये। यदि हम दास और दासी बना कर बेच दिये जाते, तो मैं कुछ न कहती; क्योंकि इस प्रकार की विपत्ति के कारण राजा को कष्ट देना उचित नहीं होता।''
5) इसके उत्तर में राजा अर्तकर्जसीस रानी एस्तेर से बोला, ''वह कौन है, वह कहाँ है, जो ऐसा करने का साहस करता है?''
6) इस पर एस्तेर ने कहा, ''हमारा विरोधी और शत्रु यह दुष्ट हामान है''। हामान यह सुन कर राजा और रानी के सामने एकदम भयभीत हो उठा।
7) क्रोधवेश में राजा भोज पर से उठ खड़ा हुआ और राजमहल की वाटिका में चला गया। हामान रानी एस्तेर से प्राणदान की प्रार्थना करने उठा, क्योंकि वह समझ गया कि राजा ने उसका अनिष्ट करने का निश्चय किया है।
8) जब राजा वाटिका से भोजनालय में लौटा, तो उसने देखा कि हामान एस्तेर के पंलग पर झुका हुआ है। यह देख कर राजा ने कहा, ''क्या यह मेरे रहते, मेरे ही घर में रानी क साथ अभद्र व्यवहार करना चाहता है?'' राजा के मँुह से जैसे ही ये शब्द निकले, लोगों ने हामान का मुँह ढक दिया।
9) तब राजा की सेवा में नियुक्त खोजे हरबोना ने कहा, ''हमान के घर में एक पचास हाथ ऊँचा फाँसी का तख्ता खड़ा है। उसने उसे मोरदकय के लिए तैयार कराया था, जिसने षड्यंत्र का रहस्य खोल कर राजा के प्राण बचाये थे''
10) राजा ने उसे उस पर लटकाने की आज्ञा दी।
11) इसलिए हामान उसी फँासी पर लटका दिया गया, जो उसने मोरदकय के लिए बनवायी थी। इस पर राजा का क्रोध शांत हुआ।

अध्याय 8

1) राजा अर्तजर्कसीस ने उसी दिन यहूदियों के विरोधी हामान की जागीर रानी एस्तेर को भेंट कर दी। अब मारदकय राजा के यहाँ आ गया, क्योंकि एस्तेर ने बताया था कि उसका उससे क्या संबंध है।
2) राजा ने मुुहर वाली वह अंँगूठी मोरदयक को दी, जिसे उसने हामान से उतरवा लिया था। एस्तेर ने मोरदकय को हामान की जागीर का प्रबंधक नियुक्त किया।
3) एस्तेर ने रोते हुए राजा के चरणों पर गिर कर उस से प्रार्थना की कि यहूदियों के विरुद्ध अगागी हामान का दुष्ट षड्यंत्र रद्द कर दिया जाये।
4) राजा ने सोने का राजदण्ड एस्तेर की ओर बढा दिया। एस्तेर उठी और राजा के सामने खड़ी हो कर
5) उसने कहा, ''यदि राजा उचित समझे, यदि मुझे उनकी कृपादृष्टि प्राप्त हो, यदि मेरी प्रार्थना उन्हें अप्रिय न लगे और वह मुझ पर प्रसन्न हों, तो एक राजाज्ञा निकाली जाये, जिसके द्वारा अगागी हामान के वे पत्र रद्द कर दिये जाये, जिन मे राजा के सब प्रदेशों में यहूदियों का विनाश करने का आदेश है।
6) कारण, मैं अपनी जति पर पड़ने वाली विपत्ति कैसे देख सकती हूँ? मैं अपने संबंधियों का सर्वनाश कैसे सहन कर पाऊँगी?''
7) इस पर राजा अर्तजर्कसीस ने, रानी एस्तेर और यहूदी मोरदकय से कहा, ''देखो, मैंने एस्तेर को हामान की जागीर दे दी और उसे फँासी पर लटकाने का आदेश दिया, क्योंकि वह यहूदियों का विनाश करना चाहता था।
8) अब तुम राजा के नाम से यहूदियों के विषय में वह लिख दो, जो तुम ठीक समझती हो और उस पर राजकीय मुद्र्रा अंकित कर दो; क्योंकि जो राजाज्ञा राजा के नाम से लिखी गयी हो और जिस पर राजमुद्रा अंकित हो, वह रद्द नहीं की जा सकती।''
9) इसलिए सीवान नामक तीसरे महीने के तेईसवें दिन, राजा के सचिव बुलाये गये और उन्होंने मोरदकय की आज्ञा के अनुसार पत्र लिखे। वे यहूदियों, क्षत्रपों, राज्यपालों को, भारतवर्ष की सीमा से ले कर इथोपिया की सीमा तक के प्रदेशों में एक सौ सत्ताईस शासकों को, प्रत्येक प्रदेश की लिपि तथा प्रत्येक राष्ट्र की भाषा में और यहूदियों को भी उनकी लिपि और उनकी भाषा में लिखे गये।
10) वे राजा अर्र्तकर्जसीस के नाम से लिखे गये, उन पर राजमुद्रा अंकित की गयी और वे पत्र राजकीय अश्वशाला के द्रुतगामी घोड़ों पर सवार हरकारों द्वारा भेजे गये।
11) इनके द्वारा राजा ने हर नगर में रहने वाले यहूदियों को संगठित हो कर सुरक्षा-दल बनाने, अपने सब शत्रुओं का उनकी पत्नियों और बच्चों के साथ वध और विनाश करने और उनका धन-माल लूटने की अनुमति दी थी।
12) सभी प्रांतों में प्रतिशोध का एक ही दिन, अर्थात अदार नामक बारहवें महीने का तेरहवाँ दिन निश्चित किया गया।
12) (ए बी) यहूदियों को उस पत्र द्वारा अनुमति दी गयी थी कि वे अदार नामक बारहवें महीने के तेरहवें दिन अर्तजर्कसीस के समस्त राज्य के प्रत्येक नगर में विधि के अनुसार उसी एक दिन अपने विरोधियों और शत्रुओं के साथ जो करना चाहें, कर सकते हैं
12) (सी) उस पत्र की प्रतिलिपि इस प्रकार है :
12) (डी) ''महाराजा अर्तजर्कसीस की ओर से भारतवर्ष की सीमा से ले कर इथोपिया की सीमा तक के एक सौ सत्ताईस क्षत्रपों और अपने अधीन रहने वाले सब लोगों को नमस्कार।
12) (इ) बहुत-से लोग ऐसे हैं, जो राजाओं द्वारा अपने को प्रदत्त उपकार और सम्मान के कारण अहंकारी बन गये हैं।
12) (एफ) वे न केवल हमारी प्रजा को हानि पहुँचाना चाहते, वरन् जिनसे सम्मान मिला, उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचते हैं।
12) (जी) वे मानव समाज से कृतज्ञता की भावना को ही निर्मूल नहीं करते, बल्कि मूर्ख मनुष्यों की झूठी प्रशंसाओं से घमण्डी बन कर यह सोचने लगते हैं कि वे सर्वज्ञ ईश्वर के दण्ड से बच सकेंगे, जो बुराई से घृणा करता है।
12) (एच) बहुत-से शासक प्रायः निर्दोष रक्त बहाने के दोषी बने और अपरिहार्य विपत्तियों में फँस गये; क्योंकि उन्होंने अपने द्वारा उच्च पदों पर नियुक्त उन मित्रों का परामर्श सुना,
12) (आइ) जो अपनी दुष्ट और कपटपूर्ण बातों द्वारा उपकारी शासकों को धोखा देते हैं।
12) (के) इसका प्रमाण न केवल प्राचीन इतिहास से मिलता है, बल्कि अयोग्य और दुष्ट प्रशासकों द्वारा हमारे बीच किये गये कुकर्मों पर विचार करने से भी।
12) (एल) इसलिये हमें भविष्य में सब प्रांतों में शान्ति बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये।
12) (एम) यदि परिवर्तित परिस्थितियों के आधार पर हम नये आदेश देंगे, तो हम सदा उचित विचार करने के बाद ही निर्णय करेंगे।
12) (एन) हम्मदाता का पुत्र मकेदूनी हामान फारसवंशी नहीं था और हमारे उदार स्वभाव के नितांत विपरीत था, फिर भी हमने अतिथि के रूप में स्वागत किया।
12) (ओ) हम प्रत्येक जाति के प्रति जो सद्भाव दिखलाते हैं, हामान को उसका इतना अनुभव हुआ कि वह सार्वजनिक तौर पर हमारा पिता कहलाता था। सब लोग उसे प्रणाम करते थे और उसका स्थान राजा के बाद दूसरा था।
12) (पी) वह इतना अंहकारी बन गया था कि उसने हमको राज्य और जीवन से वंचित करने का प्रयास किया।
12) (क्यू) उसने हमारे प्राणरक्षक एवं स्थायी उपकारी मोरदकय, हमारी निर्दोष महारानी एस्तेर और उनकी समस्त जाति की हत्या करने का कपटपूर्ण और गूढ़ षडयंत्र रचा था।
12) (आर) वह सोचता था कि उसकी मृत्यु के बाद हमारा कोई सहायक नहीं रहेगा और वह फारसियों का राजा मकेदूनियों के हाथ देगा।
12) (एस) लेकिन वह दुष्ट जिन यहूदियों का विनाश करना चाहता था उनमें हमने कोेई दोष नहीं पाया।
12) (टी) उलटे, वे न्याय-संगत विधि-निषेधों का पालन करते थे और उस सर्वोच्च महिमा में जीवंत ईश्वर के पुत्र हैं, जो हमारे और हमारे पूर्वजों के कल्याण के लिये हमारे राज्य का संचालन करता आ रहा है।
12) (यू) इसलिये आप लोग हम्मदाता के पुत्र हामान द्वारा भेजे पत्र ध्यान नहीं देंगे।
12) (व्ही) क्योंकि उस पत्र का लेखक अपने समस्त परिवार के साथ इस नगर सूसा के फाटक के सामने फाँसी पर लटका दिया गया है। इस प्रकार विश्व के विधाता ईश्वर ने उसे तुरन्त यथा योग्य दण्ड दिया।
12) (एक्स) जो राजज्ञा हम भेज रहे हैं, आप उसकी प्रतिलिपि सब नगरों में घोषित करे और यहूदियों को उनके विधि-निषेधों के अनुसार जीवन बिताने की अनुमति प्रदान करे।
12) (वाय) आप लोग उनकी सहायता करे जिससे वे अपने विनाश के दिन, अर्थात अदार नामक बारहवें महीने के दसवें दिन अपने आक्रमकों से अपनी रक्षा कर सके।
12) (जेड) क्योंकि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने अपनी चुनी हुई प्रजा के विनाश का दिन आनन्द के दिन में परिवर्तित कर दिया है।
12) (ए ए) इसलिये आप अपने महान उत्सवों में इस दिन को विशेष स्थान दे कर इसे उल्लास के साथ मनायें,
12) (बी बी) जिससे यह आज और भविष्य में हमारे और राजभक्त फारसियों के लिये कल्याण का दिन हो और हमारे विरुद्ध षडयंत्र रचने वालों के लिए विनाश का स्मृति-दिवस।
12) (सी सी) ऐसे हर एक नगर और प्रांत का जो इस उत्सव में सम्मिलित नहीं होना चाहेगा, तलवार और आग द्वारा निर्दयता से विनाश किया जाये और वह इस प्रकार मिटा दिया जाये कि वह न केवल मनुष्य नहीं जाये, बल्कि जानवर और पक्षी भी उसे घृणित समझकर त्याग दें।''
13) पत्र की प्रतिलिपि प्रत्येक प्रदेश में राजाज्ञा के रूप में घोषित करने का आदेश था, जिससे सभी लोग जान जायें कि यहूदी उस दिन अपने शत्रुओं से प्रतिशोध लेने के लिये तैयार रहें।
14) द्रुतगामी हरकारे समाचार ले कर चल पढ़े और सूसा में राजाज्ञा की घोषणा हुई।
15) मोरदकय नीले और सफेद राजसी वस्त्र पहन कर, सिर पर बड़ा स्वर्णमुकुट धारण किये और बैंगनी छालटी की चादर ओढे राजा से मिल कर महल के बाहर निकला। सूसा के लोग उल्लसित हो कर आनंद मनाते थे।
16) यहूदियों पर नयी ज्योति का उदाय हुुआ- आनंद, सम्मान और जयकार का।
17) सब जातियों, नगरों और प्रांतों में, जहाँ भी राजा का आदेश पहुँचा, वहाँ यहूदियों में उल्लास था, भोजों का प्रबंध किया गया और उत्सव माने गये - यहाँ तक कि अन्य जातियों और धमोर्ं के लोग यहूदी धर्म स्वीकार कर उनके समारोहों में सम्मिलित हो गये; क्योंकि सब पर यहूदियों का आतंक छा गया।

अध्याय 9

1) अदार नामक बारहवें महीने के तेरहवें दिन, जिस दिन राजा का आदेश और आज्ञापत्र कार्यन्वित करना था और यहूदियों के विरोधियों को उन पर हावी होना था, उसी दिन बात उलट गयी और यहूदी अपने विरोधियों पर विजयी हुए।
2) यहूदी सब नगरों में अपने शत्रुओं और अत्याचारियों पर आक्रमण करने एकत्र हो गये। किसी को उनका विरोध करने का साहस नहीं हुआ; क्योंकि सब लोग उन से भयभीत थे।
3) प्रदेशों के शासक, क्षत्रप, राज्यपाल और पदाधिकारी-सभी यहूदियों से डरते थे।
4) वे जानते थे कि मोरदयक राजमहल का शक्तिशाली अध्यक्ष था। उसका यश दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया और सब उसकी चर्चा करते थे।
5) यहूदियों ने अपने सब विरोधियों को तलवार के घाट उतार कर उनका वध और सर्वनाश किया, जैसा वे स्वयं उनके साथ करने की प्रतीक्षा में थे।
6) यहूदियों ने सूसा में पाँच सौ पुरुषों के सिवा अपने शत्रु हम्मदाता के पुत्र हामान के इन दस पुत्रों का वध कियाः
7) पर्शनदाता, दलफोन, अस्पाता,
8) पोरता, अदल्या, अरीदाता,
9) परमश्ता, अरीसय, अरीदय और वजयाता,
10) लेकिन उन्होंने उनकी सम्पत्ति नहीं लूटी।
11) उस दिन राजा को सूसा में मारे हुए लोगों की संख्या बतायी गयी।
12) तब राजा ने रानी एस्तेर से कहा, ''राजधानी सूसा में यहूदियों ने पाँच सौ पुरुषों और हामान क दसों पुत्रों का वध कर उनका विनाश कर दिया हैं। उन्होंने राज्य के अन्य प्रदेशों में न जाने कितने लोगों का वध किया होगा! अब तुम्हारा और क्या निवेदन है? तुम जो चाहती हो, वह पूरा किया जायेगा।''
13) एस्तेर बोली, 'यदि राजा उचित समझें, तो सूसा में रहने वाले यहूदियों को अनुमति दी जाये कि वे कल भी वैसा ही करें, जैसा उन्होंने आज किया है और हामान के दसों पुत्र फाँसी पर लटका दिये जायें''।
14) तब राजा ने ऐसा ही करने की आज्ञा दी। सूसा में एक राजाज्ञा निकाली गयी और हामान के दसों पुत्रों को फाँसी पर लटका दिया गया।
15) इसके बाद सूसा में रहने वाले यहूदियों ने दल बना कर अदार मास के चौहदवें दिन भी सूसा में तीन सौ पुरुषों का वध किया; लेकिन उन्होंने उनकी सम्पत्ति नहीं लूटी।
16) राज्य के सब प्रांतों में रहने वाले अन्य यहूदी अपनी प्राण-रक्षा के लिए संगठित हो गये और उन्हें अपने शत्रुओं से मुक्ति मिली। उन्होंने अपने पचहत्तर आक्रमकों का वध किया, लेकिन उनकी संपत्ति नहीं लूटी।
17) सब ने अदार महीने के तेरहवें दिन यह वध किया और चौदहवें दिन विश्राम किया। उसी दिन उन्होंने महाभोज का आयोजन किया और आनन्द मनाया।
18) सूसा में रहने वाले यहूदी तेरहवें और चौहदवें दिन दल बाँध कर वध करते रहें और उन्होंने पन्द्रहवें दिन विश्राम किया और उसी दिन महाभोज का प्रबंध किया और आनंद मनाया।
19) जो यहूदी गाँवों और ऐसे कस्बों में रहते थे, जो किलाबंद नहीं थे, उन्होंने अदार महीने के चौदहवें दिन महाभोज और उत्सव घोषित किया, जिससे वे उस दिन आनंद मनायें और एक दूसरे को भोज का हिस्सा भेज दें और जो नगरों में रहते हैं, वे अदार महीने के पन्द्रहवें दिन भी आनंद और उत्सव मनायें, भोज का प्रबंध करें और एक दूसरे को भोज का हिस्सा भेजें।
19) (ए) प्रदेशों के क्षत्रप, प्रशासक और राजा के सचिव ईश्वर का आदर करते थे, क्योंकि वे मोरदयक से डरते थे। ऐसा था कि समस्त राज्य में राजा के आदेश की चर्चा थी।
20) मोरदयक ने इस सब घटनाओं का वर्णन लिखा और राजा के समस्त प्रांतों में रहने वाले सभी यहूदियों को पत्र भेज दिये, चाहे वे समीप हो या दूर।
21) उसने आदेश दिया कि हर वर्ष अदार महीने के चौदहवें और पन्द्रहवें दिन बड़े समारोह से उत्सव मनाये जायें;
22) क्योंकि इन्हीं दिनों यहूदियों को अपने शत्रुओं से मुक्ति मिली और इस महीने में उनका विलाप और दुःख उल्लास और सुख में बदल गया। वे इन दिनों भोज का प्रबंध करें, आनन्द मनाये, एक दूसरे को भोज का हिस्सा भेज दें और दरिद्रो को उपहार दें।
23) यहूदियों ने उस समय मोरदकय के आदेश के अनुसार जो पर्व मनाना प्रारंभ किया था, उन्होंने उसे भविष्य में समारोह के साथ मनाने का निश्चय किया।
24) हम्मदाता का पुत्र अगागी हामान सब यहूदियों को विरोधी था। उसने उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचा था और उन्हें कुचलने और मिटाने के लिए 'पूर', अर्थात चिट्ठी डाली थी।
25) किन्तु जब एस्तेर राजा से मिलनी गयी, तो राजा ने आदेश दिया हामान ने यहूदियों के विरुद्ध जो षड्यंत्र रचा था, वह उसी के सिर पड़े जिससे हामान और उसके पुत्र फाँसी पर लटकाये गये।
26) उस समय से उन दिनों का नाम 'पूर' शब्द के आधार पर 'पूरीम' पड़ा। मोरदकय के पत्र में जो बातें लिखी गयी थीं
27) और यहूदियों ने जो देखा और उन पर जो बीता, उन्होंने उसके कारण यह निर्धारित किया कि वे, उनके वंशज और वे सब, जो उनके धर्म में सम्मिलित होंगे, पत्र में उल्लिखित समय पर और उसके आदेश के अनुसार सदा के लिए उन दो दिनों में समारोह के साथ पर्व मनायेंगे।
28) वे दिन प्रत्येक कुल, प्रांत और नगर में पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्मरण किये जायें और उनका उत्सव मनाया जाये। कोई ऐसा नगर न हो, जहाँ यहूदियों और उनके वंशजों द्वारा पूरीम के दिन भुलाये जायें।
29) अबीहैल की पुत्री रानी एस्तेर और यहूदी मोरदकय ने ध्यान से पूरीम के विषय में यह दूसरा पत्र लिखा।
30) उन्होंने अस्सूरी राजा के एक सौ सत्ताईस प्रदेशों में रहने वाले सभी यहूदियों को शांति और कल्याण का संदेश भेजा।
31) इस में लिखा था कि 'पूरीम' के दिन उस समय मनाये जायें, जो समय यहूदी मोरदकय और रानी एस्तेर ने यहूदियों के लिए निर्धारित किया है और उपवास और शोक-संबंधी उन सब नियमों का पालन किया जाये, जिन्हें उन्होंने अपने तथा वंशजों के लिए निर्धारित किया था।
32) एस्तेर की आज्ञा से 'पूरीम'-संबंधी रीतियाँ निश्चित और ग्रंथ में लिपिबद्ध की गयी।

अध्याय 10

1) राजा अर्तजर्कसीस ने देश के प्रांतों और समुद्र के द्वीपों पर कर लगाया।
2) उसके सब महान् और प्रतापी कायोर्ं का विवरण और राजा द्वारा मोरदयक को प्रदत्त सम्मान और अधिकार का वर्णन मेदिया और फारस के राजाओं के इतिहास-ग्रंथ में किया गया है।
3) राजा अर्तजर्कसीस के बाद यहूदी मोरदकय का स्थान दूसरा था। वह यहूदियों में सम्मनित और अपने बहु-संख्यक भाइयों में लोकप्रिय था; क्योंकि वह अपनी जाति के लोगों का उपकारी और उनकी सुख-शांति के लिए प्रयत्न शील था।
3) (ए) मोरदकय ने कहा, ''यह सब ईश्वर की ओर से ही हुआ है।''
3) (बी) मोरदकय को अपना देखा हुआ स्वप्न याद आया, जिसका संबंध इन्हीं घटनाओं से था। उसकी हर बात सच निकली।
3) (सी) ''वह छोटा झरना बड़ी नदी बन गया, फिर प्रकाश, सूर्य और अपार जलधारा, झरना और नहीं एस्तेर है, जिसके साथ राजा ने विवाह किया और उसे रानी बनाया।
3) (डी) वे दोनों पंखदार सर्प मैं और हामान है।
3) (इ) जो राष्ट्र एकत्र हुये, वे, वे है, यो यहूदियों का नाम मिटाना चाहते थे।
3) (एफ) जो ईश्वर की दुहाई देते थे, वे थे-मेरी जाति इस्राएल। प्रभु ने अपनी प्रजा का उद्धार किया, हमें सब विपत्तियों से मुक्त किया और राष्ट्रों में अपूर्व चिन्ह और चमत्कार दिखाये।
3) (जी) उसने दो चिट्ठियों का आदेश दिया, एक ईश्वर की प्रजा के लिए और एक सब अन्य जातियों के लिए
3) (एच) वे दोनों चिट्ठियाँ उस समय निकालीं, जिसे ईश्वर ने सब जातियों के विचार का दिन निश्चित किया।
3) (आइ) ईश्वर ने अपनी प्रजा की सुध ली और अपनी विरासत को ेन्याय दिलाया।
3) (के) इस्राएली अदार महीने के चौदहवें और पंद्रहवें दिन एकत्र होकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी उल्लास और आनन्द के साथ ईश्वर के सामने उन दिनों का उत्सव मनायेंगे।
3) (एल) पतोलेमेउस और क्लेओपात्रा के राज्य के चौथे वर्ष दोसीते, जो अपने को पुरोहित और लेवी कहता था, और उसका पुत्र पतोलेमेउस पूरीम-संबंधी यह पत्र ले कर आये। उन्होंने इसकी सत्यता प्रमाणित की और इस येरुसालेम के समुदाय के सदस्य लिसिमक द्वारा अनूदित बतलाया।