पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

यूदीत का ग्रन्थ ( Judith )

अध्याय 1

1) महानगर नीनवे में अस्सूरियों पर शासन करने वाला राजा नबूकदनेजर के बाहरवें वर्ष की बात हैं। उस समय एकबतना में मेदियों पर अरफ़क्षद राज्य करता था।
2) (इस अरफ़क्षद ने एकबतना के चारों ओर तीन-तीन हाथ चौड़े और छः-छः हाथ लम्बे गढ़े पत्थरों से एक दीवार बनवायी थी। उसने वह दीवार सत्तर हाथ ऊँची और पचास हाथ चौड़ी बनवायी थी।
3) उसने फाटकों के ऊपर सौ-सौ हाथ ऊँची मीनारें बनवायी थी, जिसकी नींव साठ हाथ चौड़ी थी।
4) उसने फाटकों को सत्तर हाथ ऊँचा और चालीस हाथ चौड़ा बनवाया था, जिससे उसके रथ और पैदल सैनिक पंक्तिबद्ध हो कर बाहर जा सकें।)
5) उस समय राजा नबूकदनेजर ने उस विशाल मैदान में, जो रागौ के प्रान्त में है, राजा अरफ़क्षद के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।
6) पहाड़ी प्रदेश के सब निवासियों ने, फ़रात, दजला और हिदास्पिस के तटों पर तथा एलामियों के राजा अर्योक के अधीनस्थ मैदानों के निवासी, सभी लोगों ने उसका पक्ष लिया। खलेऊद के लोगों के विरुद्ध लड़ने के लिए अनेक राष्ट्र एकत्र हुए।
7) तब अस्सूरियों के राजा नबूकदनेजर ने फ़ारस के सभी निवासियों और पश्चिम दिशा में रहने वाले सब लोगों, किलीकिया, दमिश्क, लेबानोन, लेबानोन के सामने के भाग के निवासियों और समुद्रतट पर रहने वाले सब लोगों को,
8) करमेल और गिलआद में रहने वाले और ऊपरी गलीलिया के विशाल मैदान एस्द्रालोन में रहने वाले लोगों को
9) तथा समारिया और उसके नगरों में रहने वाले सब लोगों और यर्दन के उसपार येरुसालेम, बताने, खलूस, कादेश, मिस्र के नाले पर तफ़ने, रामसेस और गोशेन के समस्त प्रान्त में,
10) तानिस और मेमफ़िस के आगे ऊपरी प्रान्तों तक तथा मिस्र के और इथोपिया देश की सीमा तक के सब लोगों को सन्देश भेजा।
11) परन्तु उन सभी देशों के लोगों ने अस्सूरियों के राजा नबूकदनेजर के सन्देश पर ध्यान नहीं दिया और युद्ध में उसका साथ नहीं दिया। वे उस से नहीं डरते थे, क्योंकि वे उसे अपना अकेला शत्रु समझते थे। उन्होंने उसके दूतों को अपमानित किया और ख़ाली हाथ लौटा दिया।
12) इस पर नबूकदनेजर उन सभी देशों पर क्रुद्ध हो उठा। उसने अपने सिंहासन और अपने राज्य की शपथ खायी कि वह उन सभी देशों से, किलीकिया, दमिश्क और सीरिया से बदला लेगा और सब मोआबियों, अम्मोनियों, सारे यहूदिया और दोनों समुद्रों के तटों तक के सभी मिस्रवासियों को तलवार के घाट उतारेगा।
13) उसने सत्रहवें वर्ष अपनी सेना ले कर राजा अरफ़क्षद पर आक्रमण किया। उसने विजयी हो कर अरफ़क्षद की सारी पैदल सेना, उसकी सारी अश्वसेना और उसके रथों को पराजित किया और उसके सब नगरों पर अधिकार कर लिया।
14) उसने एकबतना पहुँच कर उसके बुजोर्ं को जीता, उसके बाजार लूटे और उसकी शोभा मिट्टी में मिला दी।
15) फिर उसने रागौ के पर्वतों में अरफ़क्षद को पकड़ा और उसे अपनी साँगों से छेद कर उसका सदा के लिए सर्वनाश कर दिया।
16) इसके बाद वह और उसकी विशाल सेना लूट का माल साथ ले कर नीनवे लौट आयी। वहाँ उसने और उसकी सेना ने विश्राम किया और एक सौ बीस दिन तक दावत उड़ाता रहा।

अध्याय 2

1) अठाहरवें वर्ष के पहले महीने के बाईसवें दिन, अस्सूरियों के राजा नबूकदनेजर के महल में इसकी चरचा हुई कि वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन सभी देशों में बदला लेगा।
2) उसने अपने सब दरबारियों और अपने सब उच्च पदाधिकारियों को एकत्रित कर एकान्त में उन्हें अपना निर्णय बताया कि वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन सब देशों का विनाश करेगा।
3) उन्होंने भी इस निर्णय का समर्थन किया कि उन सब का सर्वनाश किया जाये, जिन्होंने उसकी आज्ञा की अवहेलना की थी।
4) इस सभा के बाद अस्सूरियों के राजा नबूकदनेजर ने अपने प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस को, जिसका उसके बाद दूसरा स्थान था, बुलाया
5) और उस से कहा, ''समस्त पृथ्वी के राजाधिराज की आज्ञा हैः तुम यहाँ से विदा हो कर अपने साथ ऐसे व्यक्तियों को ले जाओ, जिन को अपने बल पर भरोसा हो। तुम एक लाख बीस हजार पैदल सैनिकों और बारह हजार घुड़सवारों को ले कर
6) सारे पश्चिमी देशों पर इसलिए आक्रमण करोगे कि उन्होंने मेरे आदेश की अवहेलना की थी।
7) तुम उन्हें यह आज्ञा भी दोगे कि वे अधीनता स्वीकार करें। नहीं तो मैं क्रुद्ध हो कर उन पर आक्रमण करूँगा और पृथ्वी को अपनी सेना से पाट कर उन्हें लुटवाऊँगा।
8) उनके घायलों से घाटियाँ भर जायेंगी और उनके मृतकों की लाशों से नाले और नदियाँ इस प्रकार प्रकार पट जायेंगी कि पानी उनके तट के ऊपर से बह निकलेगा।
9) मैं उनके बन्दियों को पृथ्वी के कोनों तक ले जाऊँगा।
10) तुम जा कर मेरे लिए उन लोगों के सभी सीमान्तों पर अधिकार करोगे। जब वे तुम्हें अपने को समर्र्पित करेंगे, तो उन्हें मेरे लिए उस दिन तक रख छोड़ोगे, जिस दिन मैं स्वयं उन को दण्ड देने जाऊँगा।
11) जो तुम्हारा विरोध करेंगे, तुम उन पर दया मत दिखाओगे। उन्हें सब जगह वध और लूट का शिकार होने दोगे ;
12) क्योंकि मैंने अपने जीवन और राज्याधिकार की शपथ खा कर जो कहा है, मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा ।
13) तुम अपने स्वामी की इन आज्ञाओं में एक का भी उल्लंघन नहीं करोगे, बल्कि जैसा मैंने आदेश दिया, उसका बिना विलम्ब किये अवश्य पालन करोगे।''
14) होलोफ़ेरनिस ने अपने स्वामी से विदा ले कर सब सामन्तों और अस्सूर की सेना के सेनापतियों और अध्यक्षों को बुलाया
15) और अपने स्वामी के आदेशानुसार युद्ध के लिए उत्तम सैनिकों को चुना-एक लाख बीस हजार पैदल सैनिकों और बारह हजार घुड़सवार तीरन्दाजों को-ह्ढ
16) और युद्ध के लिए उनकी व्यूहरचना की।
17) वह इनके साथ बहुत से ऊँटों, गधों और खच्चरों को माल-असबाब लादने के लिए तथा असंख्य भेड़ों, गायों और बकरियों को रसद के लिए ले गया।
18) उसने प्रत्येक सैनिक के लिए भरपूर भोज्य-पदार्थ का प्रबन्ध किया और राजभवन से प्रचुर मात्रा में सोना-चाँदी निकलवायी।
19) इस प्रकार वह अपनी सारी सेना के साथ राजा नबूकदनेजर से पहले नीनवे से चल पड़ा, जिससे वह सभी पश्चिमी देशों को अपने रथों, घुड़सवारों और चुने हुए पैदल सैनिकों से भर दे।
20) उनके साथ हर प्रकार के अन्य लोग भी थे, जो टिड्डियों और पृथ्वी के रेतकणों की तरह असंख्य थे।
21) वे नीनवे की तीन दिन की यात्रा की दूरी तक, बेकटिलेत के मैदान तक गये और उन्होंने बेकटिलेत के पास, जो उस पर्वतश्रेणी के निकट है जो किलीकिया के ऊपरी भाग में अवस्थित है, पड़ाव डाला।
22) फिर वह अपनी सारी सेना-पैदल सैनिक, घुड़सवार और रथ-ले कर वहाँ से पहाड़ी प्रान्त की ओर आगे बढ़ा।
23) पूद और लूद वालों को पराजित कर उसने रस्सीद के सभी वंशजों और इसमाएलियों को लूटा, जो खलैयों के देश के दक्षिण में उजाड़खण्ड के निकट रहते हैं।
24) इसके बाद वह फ़रात नदी पार कर मेसोपोतामिया हो कर गया और समुद्र तक आगे बढ़ कर अब्रोना नदी के पास के सब क़िलाबन्द नगरों को ध्वस्त कर दिया।
25) उसने किलीकिया प्रान्त पर अधिकार कर लिया और अपने सब विरोध करने वालों का वध किया। इस प्रकार वह याफ़ेत की सीमा तक आया, जो दक्षिण में अरब के सामने है।
26) इसके बाद उसने मिदयान के सभी वंशजों को घेर कर उनके खेमों को जला दिया और उनके रेवड़ों को लूटा।
27) तब वह गेहूँ की फ़सल के समय दमिश्क के मैदान में उतरा और उसने उनके सब खेत जला दिये, उनका पशुधन नष्ट किया, उनके नगरों को लूटा, उनके मैदान उजाड़ दिये और उनके सब नौजवानों को तलवार के घाट उतार दिया।
28) तब समुद्रतट के लोग, सीदोन और तीरुस के निवासी, सूर और ओकीना के निवासी तथा यमनिया के सब निवासी भयभीत हो कर काँपने लगे। अशदोद और अशकलोन के निवासी उस से बहुत डरने लगे।

अध्याय 3

1) उन्होंने उसके पास सन्धि के दूत भेजे। उन्होंने कहा,
2) ''हम, राजाधिराज नबूकदनेजर के दास, आपके पाँव पड़ते हैं। आप जैसा चाहें, हमारे साथ वैसा ही करें।
3) हमारे बाड़े, हमारे सब घर-द्वार, हमारे गेहूँ के सभी खेत, हमारा पशुधन और हमारी गोशालाएँ-यह सब आपका है। आप जैसा चाहें, उनके साथ वैसा ही करें।
4) हमारे नगर आपके हैं, उनके निवासी आपके दास हैं। आप हमारे यहाँ पधारें और वही करें, जो आप को उत्तम जान पड़े।''
5) वे दूत होलोफ़ेरनिस के पास गये और उसे यह सन्देश सुनाया।
6) इसके बाद उसने अपनी सेना-सहित समुद्रतट के प्रान्त में प्रवेश किया। उसने क़िलाबन्द नगरों में रक्षक-सेना रख दी और उन जातियों में से सहायक सैनिकों का चुनाव किया।
7) उन्होंने और आसपास के सब लोगों ने मालाएँ लिये नाचते और डफली बजाते हुए उसका स्वागत किया।
8) परन्तु उसने उनका प्रान्त उजाड़ दिया और उनके पूजा-कुुंज कटवाये ; क्योंकि उसने पृथ्वी भर के देवताओं का विनाश करने का संकल्प किया, जिससे सब राष्ट्र केवल नबूकदनेजर की आराधना करें और सभी जातियाँ एक स्वर से उसे देवता के रूप में स्वीकार करें।
9) इसके बाद वह दोतान के पास एस्द्रालोन आया, जो यहूदिया की पर्वतश्रेणी के सामने है।
10) उसने गाबै और स्कूतापुलिस के बीच पड़ाव डाला। वहाँ अपनी सेना का रसद एकत्रित करने के लिए वह महीना भर रुका रहा।

अध्याय 4

1) यहूदिया में रहने वाले इस्राएलियों ने सुना कि अस्सूरियों के राजा नबूकदनेजर के प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस ने उन लोगों के साथ क्या-क्या किया था, अर्थात् उसने किस प्रकार उनके सब देवालयों को लुटवा कर नष्ट कर दिया था।
2) यह सुन कर वे उस से भयभीत हुए और येरुसालेम और प्रभु-ईश्वर के मन्दिर के कारण घबरा गये;
3) क्योंकि थोड़े समय पहले ही वे निर्वासन से लौटे थे, यूदा की जनता एकत्र हो गयी थी और पात्रों, वेदी और ईश्वर के मन्दिर का दूषण दूर कर इन सब की शुद्धि की गयी थी।
4) इसलिए उन्होंने समस्त समारिया प्रान्त, कोना, बेत-होरोन, बेलमैल, येरीख़ो, खोबा, ऐसोरा और सालेम के मैदान के निवासियों को एक सन्देश भेजा।
5) उन्होंने ऊँचे पर्वतों के सब शिखर अपने अधिकार में कर लिये, उन पर अवस्थित सब गाँवों के चारों ओर दीवारें बनवायीं और क्योंकि हाल में फ़सल कटी थी, उन्होंने युद्ध के लिए रसद एकत्र किया।
6) येरुसालेम के तत्कालीन प्रधानयाजक योआकीम ने बेतूलिया और एस्द्रालोन के सामने, दोतान के निकटवर्ती मैदान में अवस्थित बेतोमेस्ताईम के निवासियों को लिखा
7) कि वे पहाड़ों की सब घाटियाँ अपने अधिकार में कर ले; क्योंकि उन से हो कर यहूदिया जाया जा सकता था। वहाँ किसी को आगे बढ़ने से रोकना आसान था; क्योंकि प्रवेश-मार्ग इतना सँकरा था कि केवल दो आदमी एक साथ जा सकते थे।
8) इस पर इस्राएलियों ने प्रधानयाजक योआकीम और येरुसालेम में रहने वाले समस्त इस्राएल की समिति के नेताओं के आदेश का पालन किया।
9) सभी इस्राएलियों ने आग्रहपूर्वक ईश्वर की दुहाई दी और ईश्वर के सामने दीन बन कर कठोर उपवास किया।
10) वे, उनकी पत्नियाँ, उनके बाल-बच्चे, उनके पशु, उनके सब प्रवासी, मजदूर और दास-सब ने टाट ओढ़ लिये।
11) येरुसालेम के प्रत्येक इस्राएली पुरुष, स्त्री और बच्चे-सब ने मन्दिर के सामने दण्डवत् किया। उन्होंने अपने-अपने सिर पर राख डाली और अपने टाट के वस्त्र प्रभु के सामने फैला दिये।
12) उन्होंने वेदी को भी टाट से ढक दिया। वे एक स्वर से आग्रहपूर्वक इस्राएल के ईश्वर की दुहाई देते रहे, जिससे वह यह न होने दे कि उनके बच्चों का अपहरण हो, उनकी पत्नियों को बन्दी बनाया जाये, उनके दायभाग के नगरों का विनाश हो और विजयी राष्ट्रों द्वारा उनके मन्दिर का अपवित्रीकरण और अपमान किया जाये।
13) प्रभु ने उनकी पुकार सुनी और उनकी विपत्ति पर ध्यान दिया। समस्त यहूदिया में और येरुसालेम के सर्वशक्तिमान् ईश्वर के मन्दिर के सामने लोग कई दिनों तक उपवास करते रहे।
14) प्रधानयाजक योआकीम, प्रभु के सामने उपस्थित सब याजक और प्रभु के मन्दिर के सब सेवक कमर में टाट बाँधे दैनिक होम-बलि, मन्नत की बलियाँ और लोगों द्वारा दिये हुए स्वेच्छा से अर्पित बलिदान चढ़ाते रहे।
15) वे अपनी पगड़ियों पर राख डाल कर जोर-जोर से प्रभु की दुहाई दे रहे थे, जिससे वह इस्राएल के समस्त घराने पर कृपादृष्टि करे।

अध्याय 5

1) अस्सूरी सेना के प्रधान सेनापति होलोफेरनिस को यह सूचना मिली कि इस्राएली लोग युद्ध की तैयारियाँ कर रहे हैं, पहाड़ी घाटियों में जाने वाले रास्ते बन्द कर रहे हैं, प्रत्येक पर्वत-शिखर की क़िलेबन्दी कर रहे है और मैदानों में घात लगाये बैठे हैं।
2) यह सुन कर वह आगबबूला हो उठा। उसने मोआब के सब सामन्तों, अम्मोन के सेनाध्यक्षों और तटीय प्रान्त के सब क्षत्रपों को एकत्रित कर
3) उन से कहा, ''कनानियो! मुझे बताओ कि वह कौन-सी जाति है, जो पहाड़ों पर रहती है और वे कौन-से नगर हैं, जिन में वह निवास करती है। उसकी सेना कितनी बड़ी है और उसका सामर्थ्य और शक्ति किस बात में है? उसकी सेना का नेता और राजा कौन है?
4) और पश्चिमी देशों के निवासियों में क्यों अकेले वही मुझ से मिलने नहीं आयी?''
5) इस पर सारे अम्मोनियों के नेता अहीओर ने उस से कहा, ''यदि मेरे स्वामी मुझ, अपने दास से जानना चाहें, तो में इन पहाड़ों में आपके सामने रहने वाली इस जाति के विषय में आप को सच-सच बताऊँगा। आपके दास के मुँह से कुछ भी झूठ नहीं निकलेगा।
6) यह जाति खल्दैयियों की एक शाखा है।
7) यह पहले मेसोपोतामिया में बस गयी थी।
8) यह अपने पुरखों का मार्ग छोड़ कर स्वर्ग के उस ईश्वर की आराधना करने लगी थी, जिसका ज्ञान इसे प्राप्त हुआ था। इसलिए वहाँ के लोगों ने इसे अपने देवताओं के सामने से भगा दिया था। इस पर यह मेसोपोतामिया जा कर बहुत दिनों तक वहाँ रही।
9) इसके ईश्वर ने इसे आदेश दिया कि यह अपना निवासस्थान छोड़ कर कनान देश जाये। यह वहाँ बस गयी और इसने बहुत-सा सोना-चाँदी और पशुधन प्राप्त किया।
10) जब समस्त कनान में अकाल पड़ा, तो यह जाति मिस्र चली गयी। वहाँ रहते समय इसे भरण-पोषण मिला और यह इस प्रकार फूलती-फलती रही कि इसकी संख्या की गिनती असम्भव हो गयी।
11) मिस्र के लोगों ने इस पर अत्याचार किया, इसे गारा और ईंट बनाने का काम दे कर इसे नीचा दिखाया और दास बना लिया।
12) इसने अपने ईश्वर की दुहाई दी और ईश्वर ने समस्त मिस्र पर ऐसी विपत्तियाँ ढाहीं, जिन से मिस्री अपनी रक्षा नहीं कर सके और उन्होंने इस जाति को अपने देश से भगा दिया।
13) ईश्वर इसके लिए लाल समुद्र सुखा कर
14) इसे सीनई और कादेश-बरनेअ के मार्ग पर ले गया। इस जाति ने उजाड़खण्ड में रहने वाले सब लोगों को भगा दिया
15) और यह अमोरियों के देश में बस गयी; फिर इसने अपने बाहुबल से हेशबोन के सब निवासियों का विनाश किया। इसके बाद इसने यर्दन नदी पार कर समस्त पहाड़ी प्रान्त अपने अधिकार में कर लिया।
16) यह कनानी, परिज्जी, यबूसी, सिखेमी और सब गिरगाशी जातियों को अपने सामने से भगा कर बहुत समय तक वहीं बसी रही।
17) जब तक यह अपने ईश्वर के सामने पाप नहीं करती थी, तब तक यह सकुशल रही; क्योंकि इसका ईश्वर, जो अधर्म से घृणा करता है, इसके साथ था।
18) परन्तु जब यह निर्दिष्ट मार्ग से भटक गयी, तो यह बहुत-से युद्धों द्वारा निर्बल होती गयी, और अन्त में बन्दी बना कर अपने देश से निर्वासित की गयी। इसके ईश्वर का मन्दिर ध्वस्त किया गया और इसके शत्रुओं ने इसके नगर अपने अधिकार में कर लिये।
19) अब यह फिर अपने ईश्वर की ओर अभिमुख हुई और जहाँ यह निर्वासित की गयी थी, वहाँ से लौटी। इसने फिर येरुसालेम अपने अधिकार में कर लिया, जहाँ इसका मन्दिर है और यह पहाड़ी प्रान्त में बस गयी, जो उजाड़ था।
20) ''स्वामी और प्रभु! अब यदि यह जाति दोषी है और अपने ईश्वर के विरुद्ध पाप करती और हमें इसके अपराध का पता चल जाता है, तो हम ऊपर चढ़ कर इसे पराजित कर दें।
21) किन्तु यदि इस जाति में कोई अधर्म नहीं, तो मेरे स्वामी इस से दूर रहें। कहीं ऐसा न हो कि इसका प्रभु-ईश्वर इसकी रक्षा करे और समस्त पृथ्वी की दृष्टि में हमारा अपमान हो।''
22) अहीओर का कहना समाप्त होने पर तम्बू के आसपास खड़े सब लोगों ने इस पर आपत्ति उठायी। होलोफ़ेरनिस के उच्च पदाधिकारी, समुद्रतट के निवासी और मोआबी उसका वध करना चाहते थे।
23) उन्होंने कहा, ''हम इन इस्राएलियो से नहीं डरेंगे। इस जाति में न तो घमासान युद्ध करने का साहस है और न बल।
24) इसीलिए, स्वामी होलोफ़ेरनिस! हम आगे बढ़ें और आपकी सेना इसका भक्षण करेगी।''

अध्याय 6

1) सभा के आसपास के लोगों का कोलाहल बन्द हो जाने पर अस्सूरी सेना के प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस ने अन्य सभी जातियों और मोआबियों के सामने कहा,
2) ''अहीओर! तुम कौन होते हो और एफ्रईम के भाड़े के सब सैनिको! तुम कौन होते हो, जो तुम आज हमारे सामने भविष्यवाणी करते हो और कहते हो कि हम इस्राएलियों से नहीं लड़ें, क्योंकि उनका ईश्वर उनकी रक्षा करेग? नबूकदनेजर के सिवा और कौन ईश्वर है? वही अपनी सेनाएँ भेज कर अपनी शक्ति का परिचय देगा, उन्हें पृथ्वीतल से मिटा देगा और उनका ईश्वर उनका उद्धार नहीं कर सकेगा!
3) हम, उसके दास, उन्हें यों मार गिरायेंगे, जैसे वे एक आदमी भर हों। वे हमारे घुड़सवार सैनिक-बल का सामना कभी नहीं कर सकेंगे।
4) हम इसके द्वारा उन्हें पराजित करेंगे। उनकी पहाड़ियाँ उनके रक्त से भर जायेंगी और उनके मैदान उनकी लाशों से पट जायेंगे। उनके पैर हमारे सामने नहीं टिक पायेंगे। उनका सर्वनाश किया जायेगा। यह समस्त पृथ्वी के स्वामी राजा नबूकदनेजर का कहना है। उसने यही कहा था और उसके शब्द व्यर्थ नहीं जायेंगे।
5) ''अहीओर! तुम अम्मोन के भाड़े के टट्टू हो! तुम्हारे दुर्भाग्य ने ही तुम से ये शब्द कहलवाये हैं। तुम मेरा मुँह आज से तब तक नहीं देखोगे, जब तक मैं मिस्र से आयी इस जाति से बदला न ले लूँ।
6) तब मेरे लौटने पर मेरे सैनिकों और सेवकों के भाले तुम्हारी बग़ल छेदेंगे और तुम उन लोगों के घायलों के बीच गिर कर पड़े रहोगे।
7) अब मेरे दास तुम्हें पहाड़ों पर ले जायेंगे और वहाँ घाटी के मार्ग पर के किसी नगर में तुम्हें छोड़ देंगे।
8) तुम्हारा वध तभी होगा, जब उन लोगों का विध्वंस हो जायेगा।
9) यदि तुम अपने मन में आशा करते हो कि उनकी हार नहीं होगी, तो तुम्हारे उदास होने का कोई कारण नहीं। मेरा एक शब्द भी व्यर्थ नहीं जायेगा।''
10) होलोफ़ेरनिस ने अपने तम्बू के पास खड़े अपने दासों को अहीओर को पकड़ कर बेतूलिया ले जाने और वहाँ उसे इस्राएलियों के सुपुर्द करने की आज्ञा दी।
11) उसके दास उसे पकड़ कर पड़ाव के बाहर मैदान में ले गये। मैदान पार कर और पहाड़ पर चढ़ कर वे उन जलस्रोतों के पास आये, जो बेतूलिया की तलहटी में है।
12) जैसे ही पर्वत की चोटी पर के नगरवासियों ने उन्हें आते देखा, वे अपने अस्त्र-शस्त्र ले कर नगर के बाहर, पहाड़ की चोटी पर दौड़ पड़े और सभी गोफेन चलाने वालों ने पत्थर मार-मार कर उनका रास्ता रोका।
13) तब वे पर्वत के नीचे छिप गये और अहीओर को बाँध कर पर्वत की तलहटी में छोड़ दिया। इसके बाद वे अपने स्वामी के पास लौट गये।
14) इस्राएली अपने नगर से नीचे उतरे और उन्होंने उसके पास जा कर उसके बन्धन खोल दिये। फिर उन्होंने उसे बेतूलिया ले जा कर अपने नगर के अध्यक्षों के सामने उपस्थित किया।
15) उन दिनों सिमओनवंशी मीका का पुत्र उज्जीया, गोतोनीएल का पुत्र काब्रीस और मलकीएल का पुत्र करमीस-ये नगर के अध्यक्ष थे।
16) उन्होंने नगर के सब नेताओ को एकत्रित किया। सब युवक और स्त्रियाँ भी सभा में उपस्थित हुए। अब उज्जीया ने अहीओर को सब लोगों के बीच खड़ा कर उस से पूछा कि उसके साथ क्या हुआ।
17) तब उसने उन्हें वह सब कुछ बताना आरम्भ किया, जो होलोफ़ेरनिस के मन्त्रियों की सभा में हुआ था और उसने वह सारा भाषण भी सुनाया, जो उसने अस्सूरियों के सेनापतियों के सामने दिया था और वह भी, जो होलोफ़ेरनिस ने शेखी मारते हुए इस्राएल के विरुद्ध कहा था।
18) यह सुन कर लोग ईश्वर के सामने नतमस्तक हो कहने लगे,
19) ''प्रभु! स्वर्गेश्वर! उनका अहंकार देख और हमारी जाति की दुर्गति पर दया कर। आज तू उन पर दयादृष्टि कर, जिन्होंने अपने को तुझे समर्पित कर दिया है।''
20) इसके बाद उन्होंने अहीओर को सान्त्वना दी और उसकी बड़ी प्रशंसा की।
21) उज्जीया उसे सभा से अपने घर ले गया और उसने नेताओं को एक भोज दिया। वे इस्राएल के ईश्वर से सहायता के लिए रात भर प्रार्थना करते रहे।

अध्याय 7

1) दूसरे दिन होलोफ़ेरनिस ने अपनी सारी सेना तथा अपने अन्य सब सहायक सैनिकों को बेतूलिया पर आक्रमण करने, पहाड़ी घाटों को जाने वाले मार्गों पर अधिकार करने और इस्राएलियों के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की आज्ञा दी।
2) उसके सारे सैनिक उसी दिन चल पड़े। उसकी सेना में एक लाख सत्तर हजार पैदल सैनिक और बारह हजार घुड़सवार थे। उनके साथ बहुत सारा सामान और उनके साथ चलने वाले असैनिकों की बहुत बड़ी संख्या थी।
3) उन्होंने बेतूलिया के सामने के मैदान में जलस्रोत के पास, एक ऐसे क्षेत्र में पड़ाव डाला, तो दोतान की ओर बेलबैन तक चौड़ा और बेतूलिया से एस्द्रालोन के सामने क्यानमो तक लम्बा था।
4) इस्राएली उनकी भारी संख्या देख कर विस्मित हो गये और एक दूसरे से कहने लगे, ''अब ये पूरा देश चाट कर साफ़ कर देंगे। इनका भार बड़े-बड़े पर्वत, घाटियाँ और पहाड़ियाँ भी वहन न कर सकेंगी।''
5) प्रत्येक व्यक्ति ने अपने अस्त्र-शस्त्र हाथ में लिये। उन्होंने बुर्जों पर आग सुलगायी और रात भर पहरा देते रहे।
6) दूसरे दिन होलोफ़ेरनिस बेतूलिया में रहने वाले इस्राएलियों के देखते-देखते अपने सारे घुड़सवार सैनिकों को बाहर ले गया।
7) उसने उनके नगर की ओर जाने वाले मार्गों का निरीक्षण किया, उनके जलस्रोतों को ढूँढ़-ढूँढ़ कर अपने अधिकार में ले लिया और पहरे के लिए उन पर सैनिक नियुक्त कर दिये। तब वह स्वयं अपनी सेना के पास लौटा।
8) अब एसाववंशियों के सब मुखिया, मोआबी सेना के सब नेता और समुद्रतट के सेनाध्यक्ष उसके पास जा कर बोले,
9) ''हमारे स्वामी हमारी एक बात सुनें, जिससे आपकी सेना की क्षति न हो।
10) इस्राएली अपने भालों पर उतना भरोसा नहीं रखते, बल्कि उन शिखरों का भरोसा रखते हैं, जिन पर वे रहते हैं ; क्योंकि सच पूछिए, तो उनके पर्वत-शिखरों पर पहुँचना सरल नहीं है।
11) स्वामी! इसलिए इन से वैसी लड़ाई मत कीजिए, जैसी खुले युद्धक्षेत्र में होती है और आपकी सेना के एक भी आदमी की मृत्यु नहीं होगी।
12) आप अपनी सेना के प्रत्येक सैनिक को अपने पास सुरक्षित रखते हुए अपने पड़ाव में ही रहें और हम, आपके सेवक, उस स्रोत को अधिकार में कर लें, जो पहाड़ की तलहटी से निकलता है ;
13) क्योंकि बेतूलिया के सभी निवासी वहीं पानी भरते हैं। इस प्रकार वे प्यासे मर जायेंगे और अपना नगर सौंप देंगे। इस बीच हम अपने लोगों को ले कर पास वाले पर्वत-शिखरों पर चढ़ जायेंगे और वहाँ पहरा देते हुए पड़े रहेंगे। नगर से एक भी आदमी नहीं भाग पायेगा।
14) तब वे, उनकी पत्नियाँ और उनके बाल-बच्चे भूखों मर जायेंगे और तलवार के प्रहार से पहले ही अपने नगर की सड़कों पर पड़े रहेंगे।
15) इस प्रकार आप इन्हें इसलिए कठोर दण्ड देंगे कि उन्होंने आपके विरुद्ध विद्रोह किया और आप से सन्धि नहीं की।''
16) होजोफ़ेरनिस और उसके सब सेनापतियों को उनका यह परामर्श अच्छा लगा और उसने उसके अनुसार काम करने का आदेश दिया।
17) अम्मोनियों का एक दल पाँच हजार अस्सूरियों के साथ निकल पड़ा और मैदान में उतर कर उसने जलाशयों और इस्राएलियों के जलस्रोतों पर अधिकार कर लिया।
18) इधर एदोमी और अम्मोनी सैनिक ऊपर चढ़ कर दोतान के सामने की पर्वतश्रेणी पर जम गये और अपने आदमियों में से कुछ को दक्षिण और पूर्व की ओर एग्रेबेल के पास भेज दिया, जो मोखमूर नाले पर अवस्थित खुस के पास हैं। अस्सूरियों की शेष सेना मैदान में पड़ाव डाले रही और समस्त प्रदेश उस से भर गया। उनके तम्बू और माल-असबाब के ढेर दूर-दूर तक बिखरे थे; क्योंकि उनकी संख्या बहुत बड़ी थी।
19) उधर इस्राएली प्रभु, अपने ईश्वर की दुहाई दे रहे थे। उनका साहस घटता जा रहा था; क्योंकि उनके सभी शत्रु उन्हें घेरे थे और उन से बचना असम्भव लग रहा था।
20) अस्सूरियों की समस्त सेना, उनके पैदल सैनिक, रथ और घुड़सवार उन्हें चौतीस दिन तक घेरे पड़े रहे। बेतूलिया के निवासियों के सारे जलाशय सूखने लगे।
21) और कुण्ड खाली होने लगे। लोग एक दिन भी इच्छा भर पानी नहीं पी सकते थे, क्योंकि उन्हें जल नाप कर दिया जाता था।
22) उनके बाल-बच्चे निर्बल होते जा रहे थे, उनके युवक-युवतियाँ प्यास के मारे मूर्च्छित हो जाते थे। वे नगर की सड़कों और दरवाजों पर निर्जीव पड़े थे ; क्योंकि उन्हें कोई आशा नहीं थी।
23) समस्त जनता उज्जीया और नगर के अध्यक्षों के पास एकत्रित हो गयी। युवक, स्त्रियाँ और बच्चे चिल्ला-चिल्ला कर सब नेताओं से कहने लगे,
24) ''ईश्वर आपके और हमारे बीच न्याय करे। आप लोगों ने हम पर बड़ी विपत्ति ढाही है, क्योंकि आपने अस्सूरियों से सन्धि नहीं की।
25) अब हमारा कोई सहायक नहीं रहा। ईश्वर हमें उनके हाथ दे रहा है। हम प्यास और घोर विपत्ति के शिकार बन कर उनके सामने निर्जीव पड़े हैं।
26) अब होलोफ़ेरनिस को बुला कर सारे नगर को उसकी सेना की लूट का शिकार होने दीजिए।
27) हमारे लिए अच्छा यही है कि हम उनके द्वारा लूटे जायें और उनके दास-दासियाँ भी बन जायें, बल्कि जीवित रहें और अपनी आँखों से अपनी सन्तान की मृत्यु और अपनी पत्नियों और पुत्रों की दयनीय दशा न देखें।
28) हम स्वर्ग एवं पृथ्वी को और अपने पूर्वजों के उस प्रभु ईश्वर को साक्षी बना कर, जो हमारे पूर्वजों के पापों के कारण हमें दण्ड दे रहा है, आप से निवेदन करते हैं कि आप आज हमारा कहना मान लीजिए।''
29) इसके बाद सब विलाप करने लगे और उन्होंने ऊँचे स्वर में प्रभु-ईश्वर की दुहाई दी।
30) उज्जीया ने उन से कहा, 'भाइयो! ढारस रखो। हम पाँच दिन और ठहरेंगे। इस बीच प्रभु, हमारा ईश्वर अवश्य ही हम पर दया करेगा; क्योंकि वह हमें अन्त तक नहीं छोड़ेगा।
31) यदि इस अवधि में हमें सहायता प्राप्त नहीं होगी, तो मैं तुम्हारा कहना मानूँगा।''
32) तब उसने लोगों को विदा किया-पुरुष अपने नगर के प्राचीरों और बुर्जों पर चले गये; स्त्रियाँ और बच्चे अपने-अपने घर लौटे। नगर में बड़ी निराशा छा गयी।

अध्याय 8

1) उस समय यूदीत नगर में रहती थी। वह मरारी की पुत्री थी; मरारी ओक्ष का पुत्र था, ओक्ष यूसुफ़ का, यूसुफ़ ओजीएल का, ओजीएल हिलकीया का, हिलकीया हनन्या का, हनन्या गिदओन का, गिदओन रफ़ाईन का, रफ़ाईन अहीटूब का, अहीटूब एलीया का, एलीया हिलकीया का, हिलकीया एलीआब का, एलीआब नतनएल का, नतनएल सलामीएल का, सलामीएल सरासदय का और सरासदय सिमओन का और सिमओन इस्राएल का पुत्र था।
2) यूदीत का पति मनस्से उसके वंश और कुल का था। जौ की फ़सल के समय उसका देहान्त हो गया था।
3) वह खेत में पूले बांँधने वालों का काम देख रहा था कि उसे लू लग गयी। उसे पलंग पकड़ना पड़ा और वह अपने नगर बेतूलियों में मर गया। लोगों ने उसे दोतान तथा बलामोन के बीच वाले खेत में अपने पूर्वजों के साथ दफ़ना दिया था
4) विधवा बनने के बाद यूदीत ने सवा तीन वर्ष अपने घर में बिताये।
5) उसने अपने घर की छत पर आने के लिए एक छोटा-सा कमरा बनवाया। वह टाट ओढ़े थी और शोक के वस्त्र पहनती थी।
6) विधवा बनने के बाद वह विश्राम-दिवस के पूर्वदिन, विश्राम-दिवस, अमावस के पूर्वदिन, अमावस और इस्राएली पर्वों तथा अन्य पर्वों को छोड़ कर प्रतिदिन उपवास करती थी।
7) वह सुडौल और अत्यन्त सुन्दर थी। वह समझदार और व्यवहारकुशल थी। उसका पति मनस्से उसके लिए सोना-चाँदी, दास-दासियाँ, पशुधन और खेत छोड़ गया था और वह अपनी सम्पत्ति का प्रबन्ध करती थी। उसका पति यूसुफ़ का पुत्र था, यूसुफ़ अहीटूब का, अहीटूब मेलखी का, मेलखी एलीआब का, एलीआब नतनएल का, नतनएल शूरीशद्दय का, शूरीशद्दय सिमओन का और सिमओन इस्राएल का पुत्र था।
8) कोई भी उसकी चुग़ली नहीं खाता था; क्योंकि वह ईश्वर पर बहुत श्रद्धा रखती थी।
9) जनता ने जल के अभाव के कारण निराश हो कर शासक से जो कटु शब्द कहे थे, यूदीत ने उनके विषय में, सुना और वह सब भी सुना, जो उज्जीया ने लोगों से कहा था और किस प्रकार उसने शपथ खा कर उन्हें आश्वासन दिया था कि वह पाँच दिन बाद नगर को अस्सूरियों के हाथ दे देगा।
10) इस पर उसने अपनी सेविका को, जो उसकी सारी सम्पत्ति की देखरेख करती थी, भेज कर नगर के अध्यक्ष काब्रीस और करमीस को बुलवाया।
11) वे उसके पास आये। तब उसने उन से कहा, ''बेतूलियावासियों के नेताओ! मेरी बात सुनिए। आपने लोगों के सामने जो भाषण दिया, वह उचित नहीं है। आपने प्रभु को साक्षी बना कर शपथ खायी है कि यदि प्रभु, हमारे ईश्वर ने निश्चित अवधि तक हमारी सहायता नहीं की, तो आप नगर हमारे शत्रुओं के हाथ दे देंगे।
12) आप कौन होते हैं, जो आपने आज ईश्वर की परीक्षा ली और जो मनुष्यों के बीच ईश्वर का स्थान लेते हैं?
13) आप सर्वशक्तिमान् प्रभु की परीक्षा लेते है। आप उसके विषय में कभी कुछ नहीं समझेंगे।
14) जब आप न तो मनुष्य के हृदय की थाह ले सकेंगे और न उसके मन के विचार समझ सकेंगे, तो आप कैसे ईश्वर की थाह लेंगे, जिसने यह सब किया? आप कैसे उसके विचार जानेंगे और उसका उद्देश्य समझेंगे?
15) कभी नहीं! भाइयो! आप हमारे प्रभु-ईश्वर को अप्रसन्न नहीं कीजिए। यदि वह पाँच दिन के अन्दर हमें सहायता देना नहीं चाहता, तो वह जितने दिनों के अन्दर चाहता है, वह हमारी रक्षा करने में अथवा हमारे शत्रुओं द्वारा हमारा विनाश करवाने में समर्थ है।
16) आप हमारे प्रभु-ईश्वर को निर्णय के लिए बाध्य करने का प्रयत्न मत कीजिए; क्योंकि ईश्वर को मनुष्य की तरह डराया या फुसलाया नहीं जा सकता।
17) इसलिए हम रक्षा के लिए धैर्यपूर्वक उसकी प्रतीक्षा करें और अपनी सहायता के लिए उस से प्रार्थना करें। यदि वह उचित समझेगा, तो हमारी पुकार सुनेगा ;
18) क्योंकि आजकल हमारे बीच कोई वंश, घराना, कुल या नगर ऐसा नहीं, जहाँ लोग हाथ से निर्मित देवताओं की पूजा करते हों, जैसे पहले की जाती थी
19) और जिसके कारण हमारे पूर्वज तलवार और लूट के शिकार हो गये और हमारे शत्रुओं द्वारा बुरी तरह पराजित किये गये।
20) हम तो उसके सिवा किसी अन्य ईश्वर को नहीं मानते। इसीलिए हमें आशा है कि वह हमारा तिरस्कार नहीं करेगा और न हम से और न हमारी जाति पर से अपनी कृपादृृष्टि हटायेगा ;
21) क्योंकि यदि हम पराधीन हुए, तो सारा यहूदिया प्रदेश पराधीन किया जायेगा और हमारा पवित्र-स्थान लूटा जायेगा और हमें रक्त बहा कर उसके अपवित्रीकरण का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।
22) जहाँ हम विदेश में दास बनेंगे, वहाँ हमारे भाई-बन्धुओं के वध, देश से हमारी जाति के निर्वासन और हमारे दायभाग के उजाड़ का दोष हमारे सिर पड़ेगा और हमारे स्वामी हम से घृणा करेंगे और हमारा उपहास करेंगे;
23) क्योंकि हम अपने स्वामियों के कृपापात्र नहीं बनेंगे, बल्कि हमारा प्रभु-ईश्वर हमारा अपमान क़ायम रखेगा।
24) ''भाइयो; हम अपने भाइयों को समझायें कि उनका जीवन हम पर निर्भर है; पवित्र-स्थान, मन्दिर और वेदी की सुरक्षा हमारे हाथ में है।
25) इसके अतिरिक्त हम अपने प्रभु-ईश्वर को धन्यवाद दें। वह हमारी परीक्षा लेता है, जैसे उसने हमारे पूर्वजों की परीक्षा ली है।
26) याद रखिए कि उसने इब्राहीम और इसहाक के साथ क्या-क्या किया और याकूब पर क्या-क्या बीती, जब वह सीरियाई मेसोपोतामिया में अपने मामा लाबान की भेड़ें चराते थे ;
27) क्योंकि जिस प्रकार उसने आग में उनके हृदय की परीक्षा ली उसी प्रकार वह हमें दण्ड नहीं दे रहा है, बल्कि प्रभु शिक्षा देने के उद्देश्य से उन लोगों को कोड़ों से मारता है, जो उसकी ओर अभिमुख होते हैं।''
28) इस पर उज्जीया ने उस से कहा, ''तुमने जो कुछ कहा, उसे तुमने सच्चे हृदय के कहा और कोई भी व्यक्ति तुम्हारे कथन का विरोध नहीं करेगा।
29) सच पूछो, तो यह पहली बार नहीं है कि तुम अपने विवेक का परिचय दे रही हो। सारी जनता तुम्हारे जीवन के प्रारम्भ से तुम्हारी बुद्धिमानी और तुम्हारे हृदय के सद्भाव जानती है।
30) परन्तु लोग इतने प्यासे थे कि उन्होंने हमें उन बातों के लिए और उस शपथ के लिए विवश किया, जिसे हम भंग नहीं करेंगे।
31) अब तुम हमारे लिए प्रार्थना करो, क्योंकि तुम ईश्वर-भक्त महिला हो, जिससे प्रभु हमारे जलकुण्ड भरने के लिए पानी बरसाये और हम प्यास के कारण शिथिल न पड़ें।''
32) यूदीत ने उन्हें उत्तर दिया, ''मेरी बात सुनिए। मैं एक ऐसा काम करूँगी, जिसकी चरचा पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारी जाति की सन्तानों के बीच होती रहेगी।
33) आप लोग आज रात फाटक के पास आइए। मैं अपनी सेविका को साथ लिए निकल जाऊँगी और उन दिनों की अवधि के भीतर, जिस में आपने नगर हमारे शत्रुओं के हाथ देने का वचन दिया है, मेरे द्वारा प्रभु इस्राएल का उद्धार करायेगा।
34) लेकिन आप लोग मुझ से यह नहीं पूछेंगे कि मैं क्या करने जा रही हूँ। मैं जो करने वाली हूँ, जब तक वह बात पूरी नहीं होगी, तब तक मैं आप को उसके विषय में कुछ नहीं बताऊँगी।''
35) इस पर उज्जीया और प्रशासकों ने उस से कहा, ''सकुशल जाओ! प्रभु-ईश्वर हमारे शत्रुओं से बदला लेने तुम्हारे साथ रहे!''
36) इसके बाद वे उसके यहाँ से निकल कर अपनी-अपनी चौकियों पर चले गये।

अध्याय 9

1) यूदीत अपने सिर पर राख डाले अपने वस्त्र उतार कर मात्र टाट ओढ़े मुँह के बल गिर पड़ी। जब येरुसालेम के प्रभु के मन्दिर में उस दिन सन्ध्या की धूप चढ़ायी जा रही थी, ठीक उसी समय यूदीत ने उच्च स्वर में प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहा,
2) ''प्रभु! मेरे पूर्वज सिमओन के ईश्वर! तूने उसके हाथ में तलवार दी थी, जिससे वह उन विजातियों से बदला ले, जिन्होंने एक कन्या को दूषित और अपमानित करने के लिए उसका कमरबन्द खोला था और उसे वस्त्र खोल कर उसका शील भंग किया। और यह उन्होंने तेरे मना करने पर किया था।
3) इसीलिए तूने उनके नेताओं को वध के लिए छोड़ दिया और उनकी उस शय्या को रक्त से सींचा, जिस पर उन्होंने यह निन्दनीय कार्य किया था। तूने दासों के साथ शासकों को और शासकों को उनकी गद्दियों पर मारा।
4) तूने उनकी पत्नियों को लुटने के लिए और उनकी पुत्रियों को बन्दी बनने के लिए छोड़ दिया और तूने उनकी सम्पत्ति अपनी उन प्रिय सन्तानों को दे दी, जिन में तेरे लिए बड़ा उत्साह था, जो अपने रक्त के दूषण से दुःखी थे और जिन्होंने तेरी सहायता माँगी थी। ईश्वर! मेरे ईश्वर! मुझ विधवा की प्रार्थना स्वीकार कर।
5) पहले जो हुआ था और बाद में जो हुआ, यह बस तेरा ही कार्य है। तूने वर्तमान और भविष्य की योजना की। तू जिन घटनाओं की योजना करता है, वे पूरी हो जाती है।
6) वे तेरे सामने आ कर कहती है, 'देख! हम प्रस्तुत है'। तेरे सभी मार्ग प्रशस्त है और तू पूर्वज्ञान के आधार पर निर्णय करता है।
7) अस्सूरियों की सेना कितनी विशाल है; उन्हें अपने घोड़ों और घुड़सवारों पर अभिमान है। वे अपने पैदल सैनिकों का घमण्ड करते हैं। उन्हें ढाल, भाले, तीर और गोफन का भरोसा है। वे यह नहीं जानते कि तू वह प्रभु है, जो युद्ध समाप्त करता है।
8) (८-९) तेरा नाम 'प्रभु' है। शाश्वत ईश्वर! उनके सामर्थ्य का विनाश कर अपने बाहुबल से उनकी सेना तितर-बितर कर और क्रुद्ध हो कर उनका साहस तोड़ दे; क्योंकि उन्होंने तेरे पवित्र स्थान को दूषित करने का, तेरे महिमामय नाम का निवास अपवित्र करने का और तेरी वेदी के कंगूरों को लोहे से काटने का निश्चय किया है। उनका अहंकार देख और उनके सिरों पर अपना क्रोध प्रकट कर। मुझ विधवा को वह महान् कार्य सम्पन्न करने की शक्ति दे, जिसकी योजना मैंने अपने मन में बनायी है।
10) मेरे कपटपूर्ण शब्दों द्वारा दास के साथ स्वामी को और स्वामी के साथ दास को मार गिरा। विधवा के हाथ से उनका घमण्ड तोड़।
11) तेरी शक्ति न तो विशाल संख्या पर निर्भर है और न तेरा सामर्थ्य शूरवीरों पर। तू दीन-हीन लोगों का ईश्वर है, दलितों का सहायक, बलहीनों का रक्षक, उपेक्षितों का संरक्षक और निराश जनों का उद्धारक है।
12) हाँ, मेरे पिता के ईश्वर! इस्राएल के दायभाग के ईश्वर स्वर्ग और पृथ्वी के स्वामी! समुद्रों के सृष्टिकर्ता! समस्त सृष्टि के अधीश्वर! तू मेरी प्रार्थना सुन।
13) तू मेरे कपटपूर्ण शब्दों द्वारा उन लोगों पर प्रहार कर, उन्होंने तेरे विधान, तेरे पवित्र मन्दिर, सियोन पर्वत और तेरी प्रजा के निवास के विरुद्ध कुचक्र रचा है।
14) अपनी सारी प्रजा, अपने सभी वंशों पर यह प्रकट कर कि तू समस्त सामर्थ्य और बल का ईश्वर है और तेरे सिवा इस्राएली जाति का कोई रक्षक नहीं।''

अध्याय 10

1) इस्राएल के ईश्वर की दुहाई देने और यह प्रार्थना पूरी करने बाद
2) उसने भूमि पर से उठ कर अपनी सेविका को बुलाया और ऊपरी कमरे से उतर कर अपने घर में प्रवेश किया, जिस में वह विश्राम-दिवसों और पर्वों में रहा करती थी।
3) वहाँ उसने टाट और वैधव्य के वस्त्र उतारे। उसने स्नान किया, उत्तमोत्तम तेल लगाया, अपने सिर के केश सँवारे, फ़ीता बाँधा और पर्व के वे वस्त्र पहने, जिन्हें वह उस समय पहनती थी, तब उसका पति मनस्से जीवित था
4) उसने अपने पाँवों में चप्पलें डालीं और नूपुर, बाजूबन्द, अँगूठियाँ, कर्णफूल आदि आभूषण पहने। उसने अपने को इस प्रकार आकर्षक बनाया कि उसे देख कर कोई भी पुरुष मुग्ध हो जा सकता था।
5) इसके बाद उसने अपनी सेविका को एक कुप्पा अंगूरी और एक कुप्पी तेल दिया; फिर थैली में भूना हुआ जौ, अंजीर की रोटी, मैदे की रोटियाँ और पनीर रख दिया और रसोई के अपने सब पात्र बाँध कर अपनी सेविका को सौंपे।
6) इसके बाद वे दोनों बेतूलिया नगर के फाटक गयीं। वहाँ उन्होंने उज्जीया, काब्रीस और करमीस, नगर के शासकों को खड़ा देखा।
7) उसके चेहरे और वस्त्रों में इस प्रकार का परिवर्तन देख कर वे चकित हो उठे और उस से बोले,
8) ''इस्राएल की महिमा और येरुसालेम के गौरव के लिए हमारे पूर्वजों का ईश्वर तुम पर दया करे और तुम्हारी योजना सफल होने दे''।
9) इस पर यूदीत ने मुँह के बल गिर कर ईश्वर की आराधना की और उन से कहा, ''मेरे लिए नगर का फाटक खोलने की आज्ञा दीजिए, जिससे मैं जा कर वह कार्य पूरा करूँ, जिसके विषय में आपने मेरे साथ बातचीत की''। तब उन्होंने युवकों को आज्ञा दी कि वे उसके निवेदन के अनुसार उसके लिए फाटक खोल दें और उन्होंने ऐसा ही किया।
10) यूदीत अपनी सेविका के साथ बाहर निकली। जब तक वह पर्वत के नीचे न उतरी और मैदान पार कर उनकी दृष्टि से ओझल न हो गयी, तब तक नगर के लोग उस को देखते रहे।
11) दोनों मैदान में चली जा रही थीं कि उन्हें अस्सूरियों की एक चौकी मिली।
12) वहाँ उसे रोक दिया गया और उस से यह पूछा गया, ''तुम किस पक्ष की हो, कहाँ से आ रही हो और कहाँ जा रही हो?'' उसने उत्तर दिया, ''मैं इब्रानी स्त्री हूँ और उनके पास से इसलिए भागी जा रही हूँ कि वे तुम्हारा शिकार हो गये हैं।
13) मैं तुम्हारी सेना के प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस से भेंट करना चाहती हूँ, जिससे मैं उन्हें एक सच्चा समाचार दूँ और एक ऐसा मार्ग बता दूँ, जिस से हो कर जाने पर वह समस्त पहाड़ी प्रदेश पर अधिकार कर सकते हैं और उनके किसी सैनिक की क्षति या मृत्यु नहीं होगी।''
14) जब उन लोगों ने उसके शब्द सुने और यह देखा कि वह अत्यन्त सुन्दर है, तो उन्होंने उस से कहा,
15) ''तुमने हमारे स्वामी से मिलने के लिए पहाड़ से उतर कर अपने प्राणों की रक्षा की। अब उनके तम्बू में चली जाओ। हम में से कुछ व्यक्ति तुम्हारे साथ तुम्हें उनके यहाँ पहुँचाने जा रहे हैं।
16) तुम उनके सामने खड़ी होने से मत डरो। तुमने अभी जो कहा, उसे उनके सामने दुहराओ और वह तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।''
17) उन्होंने अपने बीच में एक सौ आदमी चुन कर उन्हें उसके और उसकी सेविका के साथ कर दिया और उन्होंने उन को होलोफेरनिस के खेमे के पास पहुँचाया।
18) उसके आने की ख़बर पूरे पड़ाव में फैल चुकी थी और सभी लोग एकत्र हो गये वे आकर उसके चारों ओर खड़े हो गये; क्योंकि वह तब तक होलोफ़ेरनिस के तम्बू के बाहर प्रतीक्षा करती रही, जब तक होलोफ़ेरनिस को उसके आने की सूचना न मिली।
19) लोग उसकी सुन्दरता पर आश्चर्य प्रकट कर रहे थे और उसके सौंदर्य के कारण इस्राएलियों की प्रशंसा करते हुए एक दूसरे से कहते थे, ''कौन इस जाति को तुच्छ समझ सकता है, जिसके यहाँ ऐसी स्त्रियाँ विद्यमान है? उनके पुरुषों में किसी को जीवित रहने देना उचित नहीं है ; क्योंकि यदि वे बच जायेंगे, तो सारी दुनिया को बहकाने में समर्थ होंगे।''
20) होलोफ़ेरनिस के अंगरक्षक और उसके सब सहायक अधिकारी बाहर आये और उसे तम्बू के भीतर ले गये।
21) होलोफ़ेरनिस अपने पलंग पर एक बैंगनी मसहरी के अन्दर लेटा हुआ था, जो सोना-चाँदी, मरकत और अन्य मणियों से अलंकृत था।
22) जब उसे यूदीत के आने की सूचना दी गयी, तो चाँदी के दीप धारण किये अनेक सेवकों के पीछे-पीछे वह डोंढ़ी में आया और यूदीत उसके सामने प्रस्तुत की गयी।
23) जब यूदीत उसके और उसके सेवकों के सामने आयी, तो वे सभी मन-ही-मन उसके सौदंर्य की प्रशंसा करने लगे। यूदीत ने उसके सामने मुँह के बल गिर कर उसे दण्डवत् किया और होलोफ़ेरनिस के सेवकों ने उसे खड़ा किया।

अध्याय 11

1) होलोफ़ेरनिस ने उस से कहा, ''भद्रे! धीरज धरो; तुम्हारा हृदय भयभीत न हो। मैंने कभी किसी भी ऐसे मनुष्य का बुरा नहीं किया है, जो सारी पृथ्वी के राजाधिराज नबूकदनेजर की सेवा करने को तैयार हो।
2) यदि पहाड़ी प्रदेश में रहने वाली तुम्हारी जाति ने मेरा अपमान न किया होता, तो मैं उसके विरुद्ध अपना भाला न उठाता। इसका दायित्व उसी पर है।
3) अब तुम मुझे बताओ कि तुम उसके यहाँ से भाग कर हमारी शरण में क्यों आयी हो। तुम अपने प्राणों की रक्षा के लिए आयी होगी। ढारस रखो। तुम इस रात जीवित रहोगी और बाद में भी।
4) कोई भी तुम्हारी हानि नहीं करेगा। तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार किया जायेगा, जैसा मेरे स्वामी राजा नबूदकनेजर के दासों के साथ किया जाता है।''
5) यूदीत ने उस से कहा, ''अपनी दासी का कहना मानिए और यदि आपकी दासी को कुछ कहने की आज्ञा मिले, तो मैं इस रात श्रीमान् से कुछ झूठ नहीं कहूँगी।
6) यदि आप अपनी इस दासी की बात मानेंगे, तो ईश्वर आपके द्वारा अपनी योजना पूरी करेगा। स्वामी को जीवन भर अपने सब कामों में सफलता मिलेगी।
7) सारी पृथ्वी के राजा नबूकदनेजर की जय, जिन्होंने आप को प्रत्येक प्राणी का कल्याण करने भेजा है, उनकी शक्ति की जय! क्योंकि आपके कारण न केवल मनुष्य, बल्कि जंगल के जानवर, घरेलू पशु और आकाश के पक्षी नबूकदनेजर की सेवा करेंगे और वे आपके सामर्थ्य के प्रभाव से नबूकदनेजर और उनके वंश की छत्रछाया में निवास करेंगे।
8) ÷÷हमने आपकी बुद्धि और व्यवहार-कुशलता के विषय में सुना है और सारी पृथ्वी पर यह चरचा हो रही है कि समस्त साम्राज्य में आप ही योग्य, ज्ञानी, शक्तिशाली और युद्धकला में निपुण हैं।
9) हम आपकी सभा में अहीओर के भाषण के शब्द सुन चुके है; क्योंकि बेतुलिया के लोगों ने उसे शरण दी है और उसने उन्हें वह सब बताया, जो उसने आपके सामने कहा था।
10) इसलिए स्वामी और प्रभु! आप उसके शब्दों की उपेक्षा नहीं करें; उन पर अवश्य ध्यान दें। वे सच हैं; क्योंकि हमारी जाति को तब तक न तो दण्डित किया जाता और न उसके विरुद्ध तलवार उठायी जाती, जब तक वह ईश्वर के विरुद्ध पाप न करे।
11) किन्तु अब मेरे स्वामी निष्फल और पराजित नहीं होंगे। मेरी जाति मृत्यु का शिकार होगी और एक महापाप के ेजाल में फँसेगी, जिसके द्वारा वह अपने प्रभु का क्रोध भड़कायेगी। ज्यों ही वह पाप करेगी, वह आपके द्वारा नष्ट हो जायेगी।
12) जब उसके यहाँ खाद्य का अभाव हुआ और पानी की कमी हो गयी, तो उसने ऐसे पशुओं को मारने और ऐसी चीजें खाने का निश्चय किया, जिन्हें ईश्वर ने अपनी संहिता में यहूदियों को खाने से मना किया है।
13) उन्होंने अनाज, अंगूरी और तेल का दशमांश, जो येरुसालेम में हमारे ईश्वर की सेवा करने वाले याजकों के लिए संचित किया गया है, खाने का निश्चय किया है, जबकि लोगों में किसी को भी उसे हाथ से स्पर्श तक करने का अधिकार नहीं है।
14) अब उन्होंने दूतों द्वारा येरुसालेम के नेताओं की समिति से वह सब खाने की अनुमति माँगी है; क्योंकि वहाँ के निवासियों ने भी वही किया है।
15) जिस दिन उसे अनुमति मिलेगी और वह उसका उपयोग करेगी, उसी दिन वह विनाश के लिए आपके हाथ दी जायेगी।
16) ''यह सब जान कर कर मैं, आपकी यह दासी, उनके यहाँ से भाग निकली हूँ। ईश्वर ने मुझे इसलिए यहाँ भेजा है कि मैं आपके साथ ऐसे-ऐसे कार्य करूँ कि उन्हें सुन कर पृथ्वी के सब लोग दांँतों तले अंगुली दबायें।
17) आपकी दासी ईश्वर-भक्त है और दिन-रात स्वर्ग के ईश्वर की सेवा करती है। श्रीमान्! मैं अब आपके यहाँ रहना चाहती हूँ। आपकी यह दासी अब रात को घाटी जायेगी और वहाँ ईश्वर से प्रार्थना करेगी। वह मुझे वह समय बता देगा, जब उनके पाप का घडा भर जायेगा।
18) तब मैं आपके पास आ कर आप को सूचित करूँगी। इसके बाद आप सारी सेना ले कर निकलेंगे। उन में कोई भी आपका सामना नहीं कर पायेगा।
19) मैं स्वयं आप को यहूदिया प्रदेश से हो कर येरुसालेम ले चलूँगी। मैं आपका सिंहासन उसके बीचोबीच स्थापित करूँगी और आप उन्हें उन भेड़ों की तरह हाँकते जायेंगे, जिसका कोई चरवाह नहीं। आप पर कोई कुत्ता भी नहीं भोंकेगा। यह बात मुझ पर पहले से ही प्रकट की गयी और मैं इसलिए भेजी गयी कि आप को सूचित करूँ।''
20) होलोफ़ेरनिस और उसके सभी सेवकों को ये बातें पसन्द आयीं। उन्होंने उसकी बुद्धि पर चकित हो कर कहा,
21) ''पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक कोई भी स्त्री इसके समान सुन्दर और अच्छी तरह बोलने वाली नहीं है।''
22) होलोफेरनिस ने उस से कहा, ''ईश्वर ने यह तो अच्छा किया कि उसने तुम्हारी जाति से तुम्हें निकाल कर यहाँ पहले ही भेज दिया, जिससे हमारी भुजाओं में बल आ जाये और मेरे स्वामी की निन्दा करने वालों का विनाश हो।
23) तुम सुन्दर हो और सुभाषिणी भी। जैसा तुमने कहा है, यदि तुम वैसा करोगी, तो तुम्हारा ईश्वर मेरा ईश्वर होगा। तुम राजा नबूकदनेजर के महल में रहोगी और तुम्हारी कीर्ति पृथ्वी में फैलेगी।''

अध्याय 12

1) तब उसने उसे अन्दर वहाँ ले जाने की आज्ञा दी, जहाँ चांँदी के पात्र रखे थे और उसे अपनी मेज का भोजन परोसने और अपनी अंगूरी पिलाने को कहा।
2) परन्तु यूदीत ने कहा, ''मैं आपका भोजन नहीं खा सकती। कहीं ऐसा न हो कि मैं पाप करूँ। मैं जो लायी हूँ, वही खाऊँगी।''
3) इस पर होलोफेरनिस ने उस से कहा, ''परन्तु यदि तुम जो लायी हो, वह ख़त्म हो जाये, तो फिर तुम्हें वैसा भोजन कहाँ से मिलेगा; क्योंकि हमारे यहाँ एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं, जो तुम्हारी जाति का हो और जिसके पास वही भोजन हो''।
4) यूदीत ने उस से कहा, ''श्रीमान् निश्चिन्त रहें। जब तक प्रभु मेरे द्वारा वह कार्य, जिसका उसने निश्चिय कर रखा है, पूरा न करेगा, तब तक आपकी दासी के पास जो भोजन है, वह समाप्त नहीं होगा।''
5) इसके बाद होलोफेरनिस के सेवकों ने उसे उसके तम्बू में पहँुचा दिया। वह वहाँ आधी रात तक सोती रही।
6) उसने प्रातः कालीन प्रार्थना से पहले उठ कर होलोफ़ेरनिस से कहलवाया था, ''श्रीमान् आज्ञा दें कि आपकी दासी प्रार्थना करने बाहर जा सके''।
7) अतः होलोफेरनिस ने पहरेदारों को आज्ञा दी थी कि वे उसे न रोकें। इस प्रकार वह तीन दिन तक पड़ाव में रही। वह रोज रात बेतूलिया की घाटी जाती और पड़ाव के जलस्रोत में स्नान करती।
8) स्नान करने के बाद वह प्रभु, इस्राएल के ईश्वर से प्रार्थना करती कि वह उसकी जाति के लोगों के उद्धार के लिए उसका उद्देश्य सफल करे।
9) इसके बाद वह लौट आती और शुद्ध हो कर तम्बू में रहती, जहाँ सन्ध्याकाल उसके लिए भोजन लाया जाता।
10) चौथे दिन होलोफ़ेरनिस ने अपने सेवकों को एक भोज दिया। उस में एक भी उच्चाधिकारी को नहीं बुलाया गया।
11) उसने सारी सम्पत्ति की देखरेख करने वाले कंचुकी बगोआस से कहा, ''जाओ और उस इब्रानी स्त्री को, जो तुम्हारी निगरानी में हैं, हमारे पास आने और हमारे साथ खाने-पीने को राजी करो।
12) यह तो हमारे लिए लज्जा की बात होगी कि हम ऐसी स्त्री से बातें किये बिना उसे जाने दें। हम उसे अपने प्रति आकर्षित नहीं करेंगे, तो वह हमारा मजाक उड़ायेगी।''
13) होलोफ़ेरनिस के यहाँ से उसके पास जा कर बगोआस उस से बोला, ''सुन्दरी! मेरे स्वामी के पास जाने में संकोच न कीजिए। उनके यहाँ आपका सम्मान होगा। आप हमारे साथ आनन्द मनाते हुए अंगूरी पीजिए और नबूकदनेजर के महल में रहने वाली प्रतिष्ठित अस्सूरी नागरिकों की पुत्रियों-जैसी बनिए।''
14) यूदीत ने उस से कहा, ''मैं श्रीमान् का विरोध कैसे कर सकती हूँ? उन्हें जो अच्छा लगेगा, वह मैं तुरन्त करूँगी और वह मेरे लिए जीवन भर गौरव की बात होगी।'
15) उसके उठ कर अपने वस्त्र और अपने सब नारीसुलभ आभूषण पहन लिये। उसकी दासी ने जा कर उसके लिए होलोफ़ेरनिस के सामने वह ऊनी कालीन जमीन पर फैला दिया, जो बागोआस ने उसे उसके दैनिक उपयोग लिए दिया था, जिससे वह उस पर बैठ कर भोजन करे।
16) यूदीत भीतर जा कर बैठ गयी। उसे देख कर होलोफ़ेरनिस मुग्ध हो कर उत्तेजित हो उठा और उस से संसर्ग करने की प्रबल कामना करने लगा; क्योंकि उसने जब से उसे देखा था, तब से वह उसे भ्रष्ट करने का अवसर देख रहा था।
17) होलोफ़ेरनिस ने उस से कहा, ''पिओ और हमारे साथ आनन्द मनाओ ''।
18) यूदीत ने कहा ''श्रीमान्! मैं जरूर पिऊँगी, क्योंकि जन्म के बाद मुझे किसी भी दिन आज की तरह सम्मान नहीं मिला''।
19) तब होलोफ़ेरनिस के सामने उसने वह खाया-पिया, जो उसकी सेविका ने उसके लिए तैयार किया था।
20) होलोफेरनिस उसके कारण बहुत प्रसन्न था। उसने बहुत अधिक मदिरा पी - इतनी अधिक, जितनी उसने जन्म से आज तक किसी भी दिन नहीं पी थी।

अध्याय 13

1) काफ़ी देर बाद उसके सेवक उठ कर चले गये और बगोआस ने बाहर से तम्बू को बन्द कर दिया और होलोफ़ेरनिस के अंगरक्षकों को विदा किया। सब जा कर अपनी-अपनी शय्या पर लेट गये, क्योंकि वे भोज में अधिक पीने के कारण थक गये थे।
2) यूदीत तम्बू में अकेली रह गयी। होलोफेरनिस मद्यपान से बिलकुल बेहोश हो कर अपनी शय्या पर पड़ा था।
3) यूदीत ने अपनी सेविका को आज्ञा दे रखी थी कि वह शयनकक्ष के निकट रहे और वह जैसे हर दिन करती थी, वैसे ही उसके बाहर निकलने की प्रतीक्षा करे। उसने उस से कहा था कि वह प्रार्थना करने जायेगी और बगोआस से भी उसने यही कहा था।
4) अब होलोफ़ेरनिस के पास से सब लोग जा चुके थे। क्या छोटा, क्या बड़ा-कोई भी उसके शयन-कक्ष में नहीं रह गया था। यूदीत ने उसके सिरहाने के पास खड़ी हो कर कहा, ''प्रभु! प्रभु! सर्वशाक्तिमान् ईश्वर! येरुसालेम की महिमा के लिए, इसी घड़ी मेरे हाथों के कार्य पर ध्यान दें;
5) क्योंकि अब अपनी विरासत की सहायता करने और उन शत्रुओं के विनाश के लिए मेरी योजना पूरी करने का समय आ गया, जिन्होंने हम लोगों पर आक्रमण किया।''
6) उसने होलाफ़ेरनिस के सिरहाने के पाये के पास जा कर उस पर से उसकी तलवार उठा ली।
7) फिर पलंग के निकट जा कर उसके सिर के बाल पकड़ कर बोली, ''इस्राएल के ईश्वर ! इस्राएल के प्रभु-ईश्वर! मुझे आज शक्ति प्रदान कर''।
8) इसके बाद उसने पूरी शक्ति से उसकी गरदन पर तलवार से दो बार प्रहार किया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
9) तब उसने उसका धड़ पलंग के नीेचे गिरा दिया और डण्ड़ों से मसहरी खोल कर वह बाहर निकली और उसने होलोफ़ेरनिस का सिर अपनी सेविका को दिया।
10) उसने उसे भोजन का सामान रखने की अपनी थैली में डाल लिया। इसके बाद वे दोनों पहले की ही तरह प्रार्थना करने के बहाने निकल पड़ीं। पड़ाव पार कर वे घाटी के किनारे-किनारे गयीं और बेतूलिया के पहाड़ पर चढ़ कर उसके फाटक के पास जा पहुँचीं।
11) यूदीत ने दूर से ही फाटक के पहरेदारों को पुकारा, ''खोलिए, फाटक खोलिए! ईश्वर, हमारा ईश्वर सचमुच हमारे साथ है, जिससे वह इस्राएल में अपना सामर्थ्य और हमारे शत्रुओं के विरुद्ध अपना बाहुबल प्रदर्शित करे, जैसा कि उसने आज किया है।''
12) उसके नगरवासी उसकी आवाज पहचानने पर जल्दी-जल्दी नगर के फाटक के पास दौड़े और उन्होंने नगर के नेताओं को बुलाया।
13) छोटे से बड़े तक, सब-के-सब एकत्रित हो गये! क्योंकि उन्हें यह बात असम्भव-जैसी लगी कि वह लौट आयी है। उन्होंने फाटक खोल कर उन्हें अन्दर आ जाने दिया और उजाले के लिए आग जलायी। वे उन्हें घेर कर खड़े हो गये।
14) उसने उच्च स्वर से उन से कहा, ''ईश्वर की स्तुति करो, उसका स्तुतिगान करो; क्योंकि उसने इस्राएल के घराने पर से अपनी कृपादृष्टि नहीं हटायी, बल्कि आज रात मेरे हाथ से हमारे शत्रुओं को रौंदा है''।
15) इसके बाद उसने होलोफ़ेरनिस का सिर थैली से निकाला और उसे दिखलाते हुए उन से कहा, ''यह अस्सूरी सेना के प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस का सिर है और यह वह मसहरी है, जिसके अन्दर वह मदिरा पी कर बेहोश पड़ा था। प्रभु ने एक स्त्री के हाथ से उसे मारा है।
16) उस प्रभु की जय, जिसने मार्ग में मेरी रक्षा की! मेरे सौन्दर्य ने उसे मुग्ध किया और वह उसके विनाश का कारण बना। वह मुझे भ्रष्ट और कलंकित करने के लिए मेरे साथ कोई पाप नहीं कर पाया।''
17) सब लोग बड़े विस्मित हुए और नतमस्तक हो कर ईश्वर की आराधना करने लगे। वे एक स्वर से यह कहने लगे, ''हमारे ईश्वर! धन्य है तू! आप तूने अपनी प्रजा के शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है।''
18) तब उज्जीया ने उस से कहा, ''पुत्री! तुम सर्वोच्च ईश्वर की कृपापात्र हो। तुम पृथ्वी की सब नारियों में धन्य हो। धन्य है हमारा प्रभु-ईश्वर, स्वर्ग तथा पृथ्वी का सृष्टिकर्ता! उसी ने हमारे शत्रुओं के नेता का सिर काटने में तुम्हें सफलता दी है।
19) जब लोग हमारे ईश्वर के सामर्थ्य का स्मरण करेंगे, तो वे अनन्त काल तक तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।
20) प्रभु तुम्हारी कीर्ति सदा बनाये रखे और तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करता रहे; क्योंकि अपनी जाति की दुर्गति देख कर तुमने अपने प्राणों की चिन्ता नहीं की, बल्कि तुम हमारी विपत्ति दूर करने के लिए हमारे ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर निस्संकोच आगे बढ़ी'' और सारी जनता बोल उठी, ''आमेन! आमेन!

अध्याय 14

1) अब यूदीत ने लोगों से कहा ''भाइयो! मेरी बात मानिए। यह सिर अपने नगर की दीवार पर टाँग दीजिए।
2) सबेरे जैसे ही पृथ्वी पर सूर्योदय हो, आप में प्रत्येक वीर अपने अस्त्र-शस्त्र धारण कर नगर के बाहर जाये। ऐसा दिखाइए, मानो आप मैदान में अस्सूरियों की चौकियों पर आक्रमण करने वाले हों;
3) परन्तु आप लोग नीचे नहीं उतरेंगे। यह देखने पर वे लोग अपने अस्त्र-शस्त्र ले कर अस्सूरी नेता के सेनापतियों को जगाने अपने पड़ाव जायेंगे। वे होलोफ़ेरनिस के तम्बू के पास दौड़ेंगे, पर उसे नहीं देख पायेंगे। तब वे भयभीत होंगे और आपके सामने से भाग खड़े होंगे।
4) इसके बाद आप और वे सभी, जो इस्राएल देश में रहते हैं, उनका पीछा करेंगे और वे जहाँ कहीं जायेंगे, उन्हें मार गिरायेंगे।
5) ''किन्तु ऐसा करने के पहले अम्मोनी अहीओर को मेरे पास बुला लें। वह उस आदमी को देख कर पहचाने, जो इस्राएल के घराने की निन्दा करता था और जिसने अहीओर को हमारे यहाँ यह सोच कर भेजा था, जैसे वह उसे मृत्यु के मुख में भेज रहा हो।''
6) अहीओर को उज्जीया के घर से बुलाया गया। वह आया और उसने जैसे ही होलोफ़ेरनिस का सिर भीड़ में किसी के हाथ देखा, वह मुँह के बल गिरा और बेहोश हो गया।
7) उसे उठाया गया और तब वह यूदीत के पाँवों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए उस को प्रणाम किया, ''धन्य है आप-यूदा के घर-घर में और सब राष्ट्रों में! वे सब आपका नाम सुन कर घबरा जायेंगे।
8) ''अब मुझे बताइए कि आपने उन दिनों क्या-क्या किया।'' तब जिस समय से यूदीत बाहर गयी थी, उसे से ले कर अब तक; जब वह उन से बोल रही थी, उसने लोगों के सामने वह सब बताया, जो उसने किया था।
9) जब उसकी बात समाप्त हुई, तो सब लोग ऊँचे स्वर में जयकार करने लगे और उनका नगर आनन्द के स्वरों से गूँज उठा।
10) इस्राएल के ईश्वर का यह कार्य देख अहीओर को ईश्वर पर दृढ़ विश्वास हो गया। उसने अपना ख़तना करवाया और वह आज तक इस्राएल के घराने का सदस्य है।
11) जैसे ही पौ फटने लगी, उन्होंने होलोफेरनिस का सिर दीवार पर टाँग दिया और सब इस्राएली पुरुष अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दलों के अनुसार पर्वत से नीचे की ओर जाने वाले मार्गों पर चल पड़े।
12) जब अस्सूरियों ने उन्हें देखा, तो उन्होंने अपने नेताओं को सूचित किया और उन्होंने अपने सेनापतियों, अध्यक्षों और सब पदाधिकारियों को।
13) उन्होंने होलोफ़ेरनिस के तम्बू के पास एकत्रित हो कर उसके प्रबन्धक बगोआस से कहा, ''हमारे स्वामी को जगाइए; क्योंकि यहूदियों ने हम से युद्ध करने के लिए पहाड़ से उतरने का साहस किया, जिससे उनका सर्वनाश हो जाये''।
14) इस पर बगोआस ने भीतर जा कर तम्बू के परदे के पास ताली बजायी। वह सोचता था कि वह यूदीत के साथ सो रहा है।
15) लेकिन जब किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया, तब वह परदा खोल कर शयन-कक्ष के भीतर गया। उसने देखा कि होलोफ़ेरनिस पावदान पर नंगा और मरा हुआ पड़ा है और उसका सिर हटा दिया गया है।
16) तब वह ऊँचे स्वर से चिल्ला कर उठा तथा रोता-पीटता और आहें भरता रहा। वह जोर-जोर से चिल्ला कर अपने वस्त्र फाड़ने लगा।
17) इसके बाद वह उस तम्बू में गया, जहाँ यूदीत रहती थी ; किन्तु वह वहाँ नहीं थी। फिर वह लोगों के पास बाहर आ कर चिल्ला उठा,
18) ''उन टुकड़खोरों ने विश्वासघात किया है! एक इब्रानी स्त्री ने राजा नबूकदनेजर के घराने को अपमानित किया है। देखो, होलोफेरनिस भूमि पर पड़े हैं और उनके धड से सिर गायब है।''
19) जब अस्सूरी सेना के अध्यक्षों ने ये शब्द सुने, तो उन्होंने अपने वस्त्र फाड़ डाले और वे बहुत घबरा गये। उनकी चिल्लाहट और उनका रोना-पीटना पड़ाव में सब जगह सुनाई पड़ रहा था।

अध्याय 15

1) जो लोग अभी तक तम्बुओं में थे, वे इस घटना के विषय में सुन कर दंग रह गये।
2) वे इतने भयभीत और आतंकित हो उठे कि कोई भी अपने सैनिक दल के साथियों के साथ नहीं रहा। सब-के-सब तितर-बितर हो कर मैदान और पहाड़ी प्रदेश के सब मार्गों पर भाग निकले।
3) वे लोग भी भाग निकले, जो बेतूलिया के आसपास के पर्वतों पर तम्बू डाले पड़े थे। अब सब इस्राएली सैनिक उन पर टूट पड़े ।
4) उज्जीया ने बतोमेस्ताईम, बेबय खोबय, कोला और समस्त इस्राएल में दूतों द्वारा इन घटनाओं की सूचना भेजी और आदेश दिया कि सब लोग शत्रुओं पर आक्रमण कर उनका वध करें।
5) इस्राएलियों ने जैसे ही यह सुना, वैसे ही वे सभी एक साथ उन पर टूट पड़े और उन को खोबा तक खदेड़ दिया। येरुसालेम और पहाड़ी प्रदेश के निवासी भी पहुँचे; क्योंकि उन्हें शत्रुओं के पड़ाव की घटनाओं की सूचना दे दी गयी थी। गिलआद और गलीलिया के निवासी उन पर कठोर प्रहार करते हुए उन्हें दमिश्क और उसके प्रदेश तक खदेड़ते रहे।
6) बेतूलिया के निवासियों ने अस्सूरियों के पड़ाव में घुस कर उन्हें लूटा और उनके हाथ बहुत सारा धन लगा।
7) युद्ध से लौटने वाले इस्राएलियों ने शेष सामान हथिया लिया। पहाड़ी प्रदेश और मैदान के गाँवों और बस्तियों के लोगों को भी लूट का बहुत धन मिला, क्योंकि वहाँ अपार सामग्री पड़ी हुई थी।
8) महायाजक योआकीम और येरुसालेम में रहने वाले नेता यह देखने आये कि प्रभु ने इस्राएल के लिए क्या उपकार किया था और इसलिए भी कि वे यूदीत के दर्शन करें और उसे बधाई दें।
9) उसके पास आ कर सब ने एक स्वर से उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, ''तुम येरुसालेम की महिमा, इस्राएल का गौरव और हमारी जाति की कीर्ति हो।
10) तुमने यह सब अपने ही हाथ से किया। तुमने इस्राएल का कल्याण किया और ईश्वर तुम्हारे कार्य से प्रसन्न है। भद्रे! सर्वशक्तिमान् ईश्वर का आशीर्वाद तुम्हें अनन्त काल तक प्राप्त हो!' इस पर सारी जनता ने कहा, ''आमेन, आमेन!'
11) जनता तीस दिनों तक पड़ाव लूटती रही। लोगों ने यूदीत को होलोफ़ेरनिस का तम्बू, उसकी समस्त चाँदी, पलंग, पात्र और सारा सामान दे दिया। उसने यह सब स्वीकार किया और अपनी गाड़ियों पर लदवा कर उन में अपने खच्चर जुतवाये।
12) इस्राएल की सब स्त्रियाँ उसे देखने के लिए एकत्रित हुईं। उन्होंने उसकी प्रशंसा की और उसके सम्मान में नृत्य किया। यूदीत ने हाथ से टहनियाँ तोड़ कर अपने साथ की स्त्रियों को दे दीं।
13) और उन सब ने जैतून की टहनियों का मुकुट पहन लिया। यूदीत नृत्य करती हुई सब स्त्रियों के आगे-आगे चली और इस्राएल के सब सैनिक अस्त्र-शस्त्र धारण किये, मुकुट पहने और भजन गाते उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।
14) तब यूदीत सब इस्राएलियों के सामने यह गीत गाने लगी और सब लोग प्रभु का यह स्तुतिगान ऊँचे स्वर में गाने लगे।

अध्याय 16

1) यूदीत ने कहाः डफली बजाते हुये मेरे ईश्वर के आदर में भजन गाओ, झाँझ बजाते हुए ईश्वर के आदर में गीत गाओ, उसके लिए स्तुति के भजन की रचना करो, उसका नाम लेते हुए यशोगान करो।
2) तू वही ईश्वर है, जो युद्ध समाप्त करने वाला है, जो अपनी प्रजा के बीच में अपना पड़ाव डालता है, जिससे वह मेरा पीछा करने वालों के हाथ से मुझे छुड़ाये।
3) उत्तर के पर्वतों की ओर से अस्सूर आया, वह लाखों की संख्या में सैन्य दल ले कर आया। उनके समूह ने नदियों का प्रवाह रोका, उनकी घुड़सवार सेना ने पहाड़ों को ढक दिया।
4) उसने कहा कि वह मेरा देश जला कर उजाड़ेगा, मेरे यहाँ के युवकों को तलवार के घाट उतारेगा, मेरे दुधमुँहे बच्चों को भूमि पर पटकेगा, मेरे शिशुओं को चुरा कर ले जायेगा और मेरी कन्याओं का अपहरण करेगा।
5) सर्वशक्तिमान् प्रभु ने उनका तिरस्कार किया, उसने एक स्त्री के हाथ से उन को पराजित किया।
6) उनका अध्यक्ष युवकों से नहीं मारा गया, उस पर दानव के पुत्रों ने प्रहार नहीं किया, उस पर दैत्याकार वीर विजयी नहीं हुए, बल्कि मरारी की पुत्री यूदीत ने अपने सौन्दर्य द्वारा उसे पराजित किया।
7) इस्राएल के पीड़ितों की रक्षा के लिए उसने अपने वैधव्य के वस्त्र उतारे, सुगन्धित तेल से अपने मुख का विलेपन किया,
8) अपने केशों में पट्टी बाँधी और उसे लुभाने के लिए छालटी के वस्त्र धारण किये।
9) उसकी चप्पल ने उसकी आँखें ललचायीं, उसके सौन्दर्य ने उसका मन मुग्ध किया और तलवार ने उसका सिर काट दिया।
10) फ़ारसी उसकी निर्भीकता पर चकित हो गये, मेदी उसका साहस देख कर घबरा गये।
11) मेरे दीन-हीन और निर्बल देशभाई जोर-जोर से चिल्लाने लगे और शत्रु भयभीत हो उठे। वे जोर-जोर से चिल्लाने लगे और शत्रु भयभीत हो उठे। वे जोर-जोर से ललकारने लगे और शत्रु भाग खड़े हुए।
12) वे दासी-पुत्रों की तरह छेदे गये, वे कायरों की तरह मारे गये, मेरे ईश्वर के युद्ध में उनका विनाश हुआ।
13) मैं अपने ईश्वर के आदर में नया गीत गाऊँगी। प्रभु! तू महान् और महिमान्वित है, तेरा सामर्थ्य आश्चर्यजनक और अविजेय है।
14) समस्त सृष्टि तेरी सेवा करे, क्योंकि तेरे शब्द-मात्र से सब कुछ अस्तित्व में आया है। तूने अपना आत्मा भेजा है और सब कुछ बन गया है। तेरी वाणी का विरोध कोई भी नहीं कर सकता।
15) समुद्र और पर्वतों के आधार हिल जायेंगे, तेरे आगमन पर चट्टानें मोम की तरह पिघल जायेंगी, परन्तु जो तुझ पर श्रद्धा रखते हैं, तू उन पर दया करेगा।
16) तेरी दृष्टि में हर सुगन्धयुक्त बलि तुच्छ है और होम-बलि की सारी चरबी नगण्य। परन्तु जो प्रभु पर श्रद्धा रखता है, वह उसकी दृष्टि में महान् है।
17) धिक्कार मेरी जाति पर आक्रमण करने वाले राष्ट्रों को! सर्वशक्तिमान् प्रभु उन से बदला चुकायेगा, वह न्याय के दिन उन्हें दण्डित करेगा, वह उनके शरीर में आग और कीड़े भर देगा और वे अनन्त काल तक जलते और दुःख भोगते रहेंगे।
18) येरुसालेम पहुँच कर उन्होंने ईश्वर की आराधना की। लोगों ने अपने को शुद्ध किया और प्रभु को होम-बलियाँ, स्वेच्छित बलियाँ और चढ़ावे अर्पित किये।
19) यूदीत ने लोगों द्वारा अपने को दिये होलोफ़ेरनिस के सब पात्र चढ़ाये और उस मसहरी को प्रभु को पूर्णतः अर्पित किया, जिसे उसने होलोफ़ेरनिस के शयन-कक्ष से ले लिया था।
20) लोग येरुसालेम में, पवित्र स्थान पर, तीन महीने तक आनन्द मनाते रहे और यूदीत उनके साथ रही।
21) इसके बाद सब अपने-अपने दायभाग की भूमि पर लौट गये। यूदीत भी बेतूलिया लौटी और अपनी भूमि पर रहने लगी। वह जीवन भर पूरे संसार में प्रसिद्ध रही।
22) कई पुरुषों ने उस से विवाह करना चाहा, किन्तु जब से उसके पति मनस्से की मृत्यु हुई और वह अपने पूर्वजों से जा मिला, तब से उसका किसी पुरुष से संसर्ग नहीं हुआ।
23) उसकी प्रसिद्धि बढ़ती गयी और वह अपने पति मनस्से के घर में एक सौ पाँच वर्ष तक जीती रही। उसने अपनी दासी को मुक्त किया। बेतूलिया में उसका देहान्त हुआ और वह एक गुफा में दफ़नायी गयी।
24) इस्राएलियों ने सात दिन तक उसके लिए शोक मनाया। अपनी मृत्यु के पूर्व उसने अपने पति मनस्से के और अपने कुल के सम्बन्धियों के बीच अपनी सम्पत्ति बाँट दी।
25) यूदीत के जीवनकाल में और उसकी मृत्यु के बाद भी ऐसा कोई नहीं रहा, जिसने इस्राएलियों को संत्रस्त किया हो।