पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

टोबीत का ग्रन्थ ( Tobit )

अध्याय 1

1) टोबीत, का जीवन-चरित : टोबीत टोबीएल का पुत्र था। टोबीएल अनानीएल का, अनानीएल अदुएल का और अदुएल गबाएल का पुत्र था, जो असाएल के कुटुम्ब और नफ्+ताली के वंश का था।
2) वह अस्सूरी राजा शलमन-एसेर के राज्यकाल में बन्दी बना कर तिसबे से निर्वासित किया गया। तिसबे ऊपरी गलीलिया के कादेश-नफ्+ताली के दक्षिण में, आशेर के ऊपरी भाग में तथा फ़ोगोर के पश्चिम में अवस्थित है
3) मैं, टोबीत, जीवन भर सन्मार्ग पर चलता रहा और धर्माचरण करता रहा। मैंने अपने उन भाई-बन्धुओं को बहुत-से भिक्षादान दिये, जो मेरे साथ अस्सूरियों के देश के नीनवे नगर में निर्वासित किये गये थे।
4) जब मैं छोटा था और स्वेदश इस्राएल में रहता था, तो मेरे पूर्वज, नफ्+ताली का पूरा वंश दाऊद के घराने और येरुसालेम से अलग हो गया था, यद्यपि येरुसालेम नगर इस्राएल के सब वंशों में से चुना गया था और वहाँ मन्दिर, ईश्वर के निवास का निर्माण और प्रतिष्ठान किया गया था, जिससे इस्राएल के वंश वहाँ युग-युगों तक यज्ञ चढ़ायें।
5) मेरे सब भाई-बंधु और मेरे पिता नफ्+ताली के सब वंशज गलीलिया के सब पहाड़ों पर उस बछड़े को यज्ञ चढ़ाते थे, जिसे इ्रसाएल के राजा यरोबआम ने दान में बनवाया था।
6) परन्तु मैं अकेला बार-बार पर्वों के अवसर पर येरुसालेम जाया करता था, जैसा कि इस्राएल के लिए सदा बना रहने वाला आदेश है। मैं प्रथम फल, पहलौठे बच्चे, पशुओं का दशमांश और भेड़ों का पहला कटा हुआ ऊन ले जाया करता
7) और वेदी पर पर ये चीजें+ हारूनवंशी याजकों को दिया करता। मैं गेंहूँ, अंगूरी, तेल, अनार और अन्य फलों का दशमांश येरुसालेम में सेवा करने वाले लेवियों को दिया करता, दूसरा दशमांश बेच कर प्रति वर्ष येरुसालेम में ख़र्च करता।
8) तीसरा दशमांश मैं अनाथों, विधवाओं और इस्राएलियों के यहाँ रहने वाले नवदीक्षित परदेशियों को दिया करता। मैं उसे ला कर प्रत्येक तीन वर्ष बाद उन्हें देता था और हम मूसा की संहिता के आदेश के अनुसार उसे खाते थे। मेरी दादी दबोरा ने मुझे ऐसा करने का आदेश दिया था; क्योंकि मेरे पिता मुझे अनाथ छोड़ गये थे।
9) जब मैं बड़ा हुआ, तो मेरा विवाह अपने कुटुम्ब की अन्ना नाम की कन्या से हुआ। उस से मुझे टोबीयाह नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।
10) जब मैं बन्दी बना कर अस्सूरों के देश लाया गया, तो मैं नीनवे आया। मेरे सभी भाई-बन्धु और मेरे सब कुटुम्बी विजातियों का भोजन खाते थे;
11) परन्तु मैं ऐसा नहीं करता था,
12) क्योंकि मैं अपनी सारी आत्मा से अपने ईश्वर को याद करता था।
13) इसलिए सर्वोच्च ईश्वर ने मुझे शलमन-एसेर का कृपापात्र बनाया और मैं उसके लिए सब सामान ख़रीदता था।
14) मैं मेदिया देश में यात्रा करते हुए उसकी मृत्यु के समय तक उसके लिए सामान ख़रीदता था। एक बार मैंने मेदिया के रागै में गब्रिया के भाई बगाएल के यहाँ थैलियों में दस मन चाँदी रखी।
15) शलमन-एसेर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सनहेरीब उसकी जगह राजा बना। उस समय राजमार्ग अरक्षित थे; इसलिए मैं फिर मेदिया नहीं जा सका।
16) शलमन-एसेर के शासनकाल में मैंने अपनी जाति के भाई-बन्धुओं का बड़ा उपकार किया।
17) मैं भूखों को भोजन दिया करता और नंगों को वस्त्र। जब मेरी जाति का कोई व्यक्ति मर जाता और मैं देखता कि वह नीनवे की चारदीवारी के बाहर फें+क दिया गया है, तो मैं उसे दफ़नाता।
18) जब राजा सनहेरीब को यहूदिया से भागना पड़ा, क्योंकि स्वर्ग के ईश्वर ने उसे उसकी ईशनिन्दा के कारण दण्डित किया था, तो वह क्रुद्ध हो कर बहुत-से इस्राएलियों को मरवा डालता था और मैं उनके शव छिपा कर दफ़ना देता। जब राजा उनके शव ढुँढ़वाता, तो वे उसे नहीं मिलते।
19) नीनवे-निवासियों में से किसी ने जा कर राजा को बताया कि मैं उन को दफ्+नाता हूँ, इसलिए मैं छिप गया। जब मुझे मालूम हुआ कि मुझे मारने के लिए ढूँढा जा रहा है, तो मैं डर के मारे भाग खड़ा हुआ।
20) अपनी पत्नी अन्ना और अपने पुत्र टोबीयाह के सिवा अब मेरे पास कुछ न रहा।
21) चालीस दिन भी नहीं बीते थे कि राजा के दो पुत्रों ने उसका वध किया और वे अराराट पर्वतश्रेणी में भाग गये। उसके स्थान पर उसका पुत्र एसरहद्दोन राजा बना। उसने मेरे भाई अनाएल के पुत्र अहीकार को अपने समस्त कोष का प्रबन्धक बनाया, जिससे वह सारे क्षेत्र का प्रशासक बना।
22) अहीकार ने मेरी सिफ़ारिश की और मुझे फिर से नीनवे आने की अनुमति मिल गयी। अहीकार अस्सूरी राजा सनहेरीब का भोज-प्रबन्धक, दीवान और ख़जांची रह चुका था और एसरहद्दोन ने उसे फिर नियुक्त किया था। वह मेरा सम्बन्धी था।

अध्याय 2

1) एसरहद्दोन के राज्यकाल में मैं फिर अपने घर वापस आया और मुझे फिर अपनी पत्नी अन्ना और अपना पुत्र टोबीयाह मिले। जब पेन्तोकोस्त, अर्थात् सप्ताहों के पर्व के दिन मेरे लिए उत्तम भोजन तैयार किया गया, तो मैं खाने बैठा।
2) मैंने बहुत-से खाद्य-पदार्थ देख कर अपने पुत्र से कहा, ''जाओ और नीनवे में निर्वासित अपने प्रभु-भक्त भाइयों में जो मिलें, उन्हें ले आओ, जिससे वे मेरे साथ भोजन करें। मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।''
3) वह गया और लौट कर बोला कि एक इस्राएली की गला घोंट कर हत्या कर दी गयी है और वह बाज+ार में पड़ा हुआ है।
4) मैं तुरन्त उठ कर खड़ा हुआ और अपना भोजन छोड़ कर शव के पास पहुँचा। मैंने उसे उठा लिया और सूर्यास्त के बाद दफ़नाने के लिए छिपे-छिपे अपने घर ले गया।
5) शव को छिपाने के बाद मैंने उदास हो कर भोजन किया।
6) मुझे नबी अमोस की यह वाणी याद आयी, जो उन्होंने बेतेल में कही थी, ''तुम्हारे पर्व के दिन दुःख में और तुम्हारे गीत विलाप में परिणत हो जायेंगे''
7) और मैं रोने लगा। सूर्यास्त के बाद मैं उस शव को दफ़नाने गया।
8) मेरे सभी पड़ोसी यह कहते हुए मेरा उपहास करते थे, ''यह व्यक्ति अब भी नहीं डरता। इस काम के लिए इसे मरवा डालने के लिए ढूँढा गया है और इसे भागना पड़ा। देखो, यह फिर मुरदों को दफ़नाता है।''
9) उस रात मैं उसे दफ़नाने के बाद लौट कर नहाया और आँगन की दीवार के पास लेट कर सो गया। गरमी के कारण मेरा चेहरा ढका नहीं था।
10) मुझे मालूम नहीं था कि दीवार पर गौरैयाँ रहती थीं। उनकी गरम बीट मेरी आँखों पर ंिगर पड़ी, जिससे मेरी आँखों में मोतियाबिन्द हो गया। मैं इलाज के लिए वैद्यों के पास गया, किन्तु उन्होंने मेरी आँखों पर जितना अधिक मरहम लगाया, मैं उतना ही कम देखने लगा और अन्त में मैं अन्धा हो गया। मैं चार वर्ष तक अन्धा रहा और मेरे सभी भाई मेरे कारण दुःखी थे। जब तक अहीकार एलिमई नहीं गया, तब तक वह मेरी जीविका का प्रबन्ध करता रहा।
11) उस समय मेरी पत्नी अन्ना सिलाई-बुनाई का काम करती थी।
12) मालिक उसे पूरी मज+दूरी देते थे। ग्यारहवें महीने के सातवें दिन वह सिलाई का काम पूरा कर उसे मालिकों को देने गयी और उन्होंने मज+दूरी के सिवा बकरी का बच्चा दिया।
13) जब बच्चा घर आया और मिमियाने लगा, तो मैंने पत्नी से पूछा, ''यह बच्चा कहाँ से आया? कहीं चोरी का तो नहीं है? इसे इसके मालिक को लौटा दो। हम चोरी की चीज+ नहीं खा सकते।''
14) उसने उत्तर दिया, ''यह मुझे मज+दूरी के साथ बख़शीश में मिला है''। परन्तु मैंने उसका विश्वास नहीं किया और उसे उसके मालिक को लौटा देने को कहा। मुझे उसके इस काम से लज्जा हुई। किन्तु उसने मुझे यह उत्तर दिया, ''कहाँ हैं तुम्हारे भिक्षादान? कहाँ है तुम्हारा धर्माचरण? अब पता चला कि तुम कितने पानी में हो!

अध्याय 3

1) मैं बड़ा दुःखी हो कर कराहते और आँसू बहाते हुए इस प्रकार प्रार्थना करने लगा,
2) ''प्रभु! तू न्यायी है और तेरे समस्त कार्य न्यायपूर्ण हैं। तेरे सभी मार्ग दया और सच्चाई के हैं। तू संसार का न्याय करता है।
3) प्रभु! अब मुझे याद कर। मुझे मेरे पापों का दण्ड न दे। मेरे और मेरे पूर्वजों के अपराध भुला।
4) हम लोगों ने तेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, इसलिए हम लूट, निर्वासन एवं मृत्यु के शिकार बने हुए हैं और तूने हमें जिन राष्ट्रों में बिखेरा, वहाँ हम अपमानित हुए हैं।
5) प्रभु! तेरा दण्ड सही है; क्योंकि हमने तेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया और हम तेरे प्रति ईमानदार नहीं रहे।
6) इसलिए, प्रभु! जैसी तेरी इच्छा हो, मेरे साथ वैसा ही व्यवहार कर। मुझे उठा लेने की कृपा कर, क्योंकि मेरे लिए जीवन की अपेक्षा मरण अच्छा है। मैं झूठी निन्दा सुनते-सुनते तंग आ गया हूँ। मैं बड़ा दुःखी हूँ। प्रभु! मुझ से यह कष्ट दूर कर। मुझे अपने शाश्वत निवास में प्रवेश करने दे। प्रभु! मुझ से अपना मुख न छिपा। जीवन भर इस प्रकार का कष्ट सहते और निन्दा सुनते रहने की अपेक्षा मेरे लिए मरण अच्छा है।''
7) उसी दिन, मेदिया के एकबतना नामक नगर में, रागुएल की पुत्री सारा को भी अपने पिता की एक नौकरानी की फटकार सुननी पड़ी।
8) सारा का विवाह सात बार हुआ था और सारा के पति का संसर्ग होने के पहले ही अस्मादेव नामक पिशाच ने क्रमशः सातों को उसके पास आते ही मार डाला था। नौकरानी ने सारा से कहा, ''पतियों की हत्यारिन! तुम को सात पति मिल चुके हैं और तुम किसी की नहीं बन सकी।
9) अपने मरे हुए पतियों के कारण हम को क्यों डाँटती हो? उनके पास चली जाओ। अच्छा हो कि हम तुम्हारे पुत्र या तुम्हारी पुत्री को कभी नहीं देखें।''
10) उस दिन सारा को बड़ा दुःख हुआ। वह रोते हुए पिता के घर की छत पर जा कर अपने को फाँसी लगाना चाहती थी। फिर वह सोचने लगी-कहीं ऐसा न हो कि लोग यह कहते हुए मेरे पिता का अपमान करें : ''तुम्हारी एक ही प्यारी पुत्री थी और उसने अपने दुःख के कारण फाँसी लगा ली'' और इस तरह मैं अपने बूढ़े पिता की मृत्यु का कारण बनूँगी। मेरे लिए अच्छा यह है कि मैं अपने को फाँसी न लगाऊँ, बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करूँ कि मैं मर जाऊँ, जिससे मुझे अपने जीवन में और अपमान नहीं सुनना पड़े।
11) इसके बाद वह खिड़की के पास हाथ पसारे इस प्रकार प्रार्थना करने लगीः ''दयालु प्रभु-ईश्वर! तू धन्य है। तेरा पवित्र और सम्मान्य नाम सदा-सर्वदा धन्य है। तेरे सभी कार्य सदा-सर्वदा तुझे धन्य कहें।
12) प्रभु! अब मैं तेरी ओर अभिमुख हो कर तुझ पर अपनी आँखें लगाती हूँ।
13) मुझे इस पृथ्वी पर से उठाने की कृपा कर, जिससे मुझे अपनी निन्दा और न सुननी पड़े।
14) प्रभु! तू जानता है कि मैंने किसी पुरुष के अपवित्र संसर्ग द्वारा कभी पाप नहीं किया।
15) मैंने अपने निर्वासन के देश में न अपना और न अपने पिता का नाम कलंकित किया है। मैं अपने पिता की एक मात्र सन्तान हूँ। उसके कोई पुत्र नहीं है, जो उत्तराधिकारी बने। उसका कोई सम्बन्धी नहीं है और न सम्बन्धी का कोई ऐसा पुत्र, जिसके साथ मैं विवाह कर सकूँ। मेरे सातों पतियों की मृत्यु हो चुकी है। मैं क्यों जीवित रहूँ? प्रभु! यदि तू मुझे उठाना नहीं चाहता, तो ऐसा कर कि लोग मेरा आदर करें और मुझे अपनी निन्दा और न सुननी पड़े।''
16) प्रभु-ईश्वर ने उन दोनों की प्रार्थनाएँ सुनीं।
17) स्वर्गदूत रफ़ाएल उनके पास भेजा गया, जिससे वह उन दोनों को स्वस्थ करे-वह टोबीत का मोतियाबिन्द दूर करे और रागुएल की बेटी सारा का विवाह टोबीत के पुत्र टोबीयाह से कराये। साथ ही अस्मादेव पिशाच को बन्दी बना ले; क्योंकि सारा टोबीयाह की होने जा रही थी। इधर टोबीत घर लौटा और उधर रागुएल की पुत्री सारा छत से नीचे उतरी।

अध्याय 4

1) उसी दिन टोबीत को उस धन की याद आयी, जो उसने मेदिया के रागै निवासी गबाएल के पास रखा था।
2) वह मन-ही-मन सोचने लगा कि मैंने मृत्यु के लिए प्रार्थना की है। अब मैं क्यों न अपने पुत्र टोबीयाह को बुला कर अपनी मृत्यु से पहले उसे उस धन के विषय में बता दूँ?
3) उसने उसे बुलाया और उस से कहा, ''बेटा! मैं मर जाऊँ, तो मुझे उचित रीति से दफ़ना दोगे। अपनी माँ का आदर करोगे। उसे जीवन भर नहीं छोड़ोगे। वही करते रहोगे, जो उसे प्रिय हो और उसे कभी दुःख नहीं दोगे।
4) बेटा! यह याद रखोगे कि उसे तुम्हारे जन्म से पहले तुम्हारे कारण कितने संकट झेलने पड़े। तुम उसे मृत्यु के बाद मेरी ही क़ब्र में दफ़ना दोगे।
5) बेटा! प्रभु को जीवन भर याद रखोगे। तुम न तो पाप करोगे और न उसकी आज्ञाएँ भंग करोगे। जीवन भर धर्माचरण करोगे और कुमार्ग पर नहीं चलोगे;
6) क्योंकि जो सन्मार्ग पर चलते हैं, वे अपने सब कामों में सफ़ल होते हैं।
7) बेटा! अपनी सम्पत्ति में से भिक्षादान दोगे और किसी कंगाल की उपेक्षा नहीं करोगे, जिससे ईश्वर भी तुम्हारी उपेक्षा नहीं करे।
8) अपनी सम्पत्ति के अनुसार दान दोगे। यदि तुम्हारे पास बहुत हो, तो अधिक दोगे; यदि तुम्हारे पास कम हो, तो कम देने में नहीं हिचकोगे।
9) तुम्हारा यह दान विपत्ति के दिन तुम्हारे लिए एक अच्छी निधि प्रमाणित होगा;
10) क्योंकि भिक्षादान मृत्यु से बचाता और अन्धकार में प्रवेश करने से रोकता है।
11) हर भिक्षा-दान सर्वोच्च प्रभु की दृष्टि में सर्वोत्तम चढ़ावा है।
12) ''बेटा! हर प्रकार के व्यभिचार से दूर रहोगे। पहली बात यह है कि अपने पूर्वजों के कुल में ही विवाह करोगे। किसी भी विजातीय कन्या से, जो तुम्हारे पितृकुल की नहीं है, विवाह नहीं करोगे; क्योंकि हम नबियों की सन्तान हैं। बेटा! याद रखोगे कि हमारे पूर्वज नूह, इब्राहीम, इसहाक और याकूब ने प्राचीन काल में अपने ही कुल में विवाह किया था। उन्हें आशीर्वादस्वरूप पुत्र प्राप्त हुए और उनके वंशज पृथ्वी के अधिकारी बने।
13) बेटा! अपने भाइयों को प्यार करोगे, अपने मन में अपनी जाति के भाइयों और उनके पुत्र-पु+त्रियों से घृणा नहीं करोगे, बल्कि उनकी कन्याओं के साथ विवाह करने में नहीं हिचकोगे; क्योंकि घमण्ड पतन और अशान्ति की जड़ है। अकर्मण्यता से हानि होती है और बड़े-बड़े अभाव पैदा होते हैं। अकर्मण्यता भुखमरी की जननी है।
14) अपने यहाँ काम करने वाले की मज+दूरी रात भर के लिए भी नहीं रखोगे, बल्कि तुरन्त दोगे। इस से तुम्हारी कोई हानि नहीं होगी। यदि तुम ईश्वर की सच्ची सेवा करोगे, तो तुम्हें इसका प्रतिफल मिलेगा। बेटा! तुम अपने सभी काम सावधानी से करोगे और अपनी सभी बातों में समझदारी का परिचय दोगे।
15) तुम्हें जो बात अप्रिय है, उसे किसी दूसरे के साथ नहीं करोगे। इतनी अंगूरी नहीं पिओगे कि नशा आ जाये। तुम मद्यप नहीं बनोगे।
16) तुम अपनी रोटी में भूखों को खिलाओगे और अपने कपड़ों में से नंगों को पहनाओगे। तुम्हारे पास जो ज+रूरत से अधिक हो, उसे प्रसन्नता से दान दोगे।
17) धर्मी के दफन के समय उदारतापूर्वक रोटी और अंगूरी बाँटोगे, किन्तु उसे पापियों को नहीं दोगे।
18) ''जो समझदार है, उस से सलाह लोगे और किसी भी सत्परामर्श की उपेक्षा नहीं करोगे।
19) हर समय प्रभु को धन्य कहोगे और उस से प्रार्थना करोगे, जिससे वह तुम्हें सन्मार्ग पर ले चले और तुम्हें सद्बुद्धि आये; क्योंकि तुम्हें प्रभु के सिवा और कोई सत्परामर्श नहीं देगा प्रभु जिसे चाहता है, उसे ऊपर उठाता और जिसे नहीं चाहता है, उसे अधलोक तक नीचे गिरा देता है। बेटा! अब मेरी शिक्षा याद रखो और उसे अपने हृदय से नहीं मिटने दो।
20) ''अब मैं तुम्हें उस दस मन चाँदी के विषय में बताता हूँ, जो मैंने मेदिया के रागै-निवासी गबिया के भाई गबाएल के पास रखी है।
21) बेटा! इस से मत घबराओ कि हम ग़रीब हो गये। यदि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे, हर प्रकार के पाप से दूर रहोगे और वही करोगे, जो प्रभु, अपने ईश्वर की दृष्टि में उचित है, तो यह समझ लो कि तुम बड़े धनी हो।''

अध्याय 5

1) इस पर टोबीयाह ने उत्तर देते हुए उस से कहा, ''पिताजी! आपने मुझे जो कुछ कहा, मैं वह सब करूँंगा।
2) परन्तु मैं वह धन कैसे प्राप्त करूँ, जब न तो मैं उस व्यक्ति को जानता हूँ और न वह मुझे। मैं उसे क्या प्रमाण दूँ, जिससे वह मुझे पहचाने, मुझ पर विश्वास करे और वह धन मुझे लौटायें? इसके सिवा मैं मेदिया जाने का रास्ता भी नहीं जानता।''
3) टोबीत ने उत्तर देते हुए अपने पुत्र टोबीयाह से कहा, ''हम दोनों ने एक परचे पर हस्ताक्षर किये, मैंने उसके दो टुकड़े कर दिये और हम दोनों ने एक-एक टुकड़ा ले लिया। इसके बाद मैंने चाँदी उसके पास रखी। अब तो बीस वर्ष हो गये हैं कि मैंने वह धन उसके पास रखा। बेटा! अब तुम एक ईमानदार व्यक्ति का पता लगाओ, जो तुम्हारे साथ जाये और लौटने पर हम उसे वेतन देंगे। तुम जाओ और मृत्यु के पहले उस व्यक्ति से वह धन प्राप्त करो।''
4) तब टोबीयाह एक ऐसे व्यक्ति की खोज में निकला, जो उसके साथ मेदिया जाने को तैयार हो और वहाँ का मार्ग जानता हो। उसे स्वर्गदूत रफ़ाएल मिला, किन्तु उसे मालूम नहीं था कि वह स्वर्गदूत है।
5) वह उस से बोला, ''युवक! तुम कहाँ के हो?'' उसने उत्तर दिया, ''मैं इस्राएली, तुम्हारा भाई हूँ। यहाँ काम की खोज में आया हूँ''। टोबीयाह ने पूछा, ''क्या तुम मेदिया का मार्ग जानते हो?''
6) उसने कहा, ''मैं वहाँ कई बार गया था। मैं वहाँ के सब मार्ग जानता हूँ। मैं कई बार मेदिया जा चुका हूँ और हमारे भाई गबाएल के यहाँ रहा, जो मेदिया के रागै का निवासी है। एकबतना से रागै दो दिन का रास्ता है, क्योंकि रागै पर्वत पर है, जब कि एकबतना मैदान में।''
7) इस पर टोबीयाह उस से यह बोला, ''युवक! मेरी प्रतीक्षा करो। मैं घर जा कर अपने पिता को इसकी सूचना दूँगा। वहाँ जाने के लिए मुझे तुम्हारे साथ की ज+रूरत है। इसके लिए मैं तुम को वेतन दूँगा।''
8) युवक ने कहा, ''मैं तुम्हारा इन्तज+ार करूँगा, किन्तु देर मत करना''।
9) टोबीयाह ने घर जा कर अपने पिता टोबीत से कहा, ''मुझे अपने इस्राएली भाइयों में से एक व्यक्ति मिल गया है, जो मेरे साथ जायेगा''। पिता ने उत्तर दिया, ''बेटा! उसे अन्दर बुलाओ। मैं ज+रा पता कर लूँ कि वह किस कुल और वंश का है और यह देख लूँ कि वह ईमानदार और तुम्हारे साथ जाने योग्य है।''
10) टोबीयाह ने बाहर जा कर उसे बुलाया और कहा, ''युवक! पिताजी तुम से मिलना चाहते हैं''। वह अन्दर गया और टोबीत ने पहले उसे प्रणाम किया। उसने टोबीत से कहा, ''आप को आनन्द मिले!' टोबीत ने उत्तर में कहा, ''मुझे आनन्द कहाँ से मिलेगा? अन्धा होने के कारण मैं आकाश की ज्योति नहीं देख सकता और अन्धकार मैं बैठने के कारण मैं मृतकों की फिर कभी प्रकाश नहीं देख पाऊँगा। मैं जीवित होते हुए भी मृतकों-जैसा हूँ। मैं मनुष्यों की आवाज+ सुनते हुए भी उन्हें नहीं देखता।'' उसने उत्तर दिया, ''ढारस रखिए। निकट भविष्य में ईश्वर आप को स्वस्थ करेगा। ढारस रखिए।'' टोबीत ने उसे से कहा, ÷÷भाई! मेरा पुत्र टोबीयाह मेदिया जाना चाहता है। क्या तुम उसके साथ जा कर उसे मार्ग दिखा सकते हो? मैं तुमको वेतन दूँगा।'' उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं उसके साथ जा सकता हूँ। मैं सब मार्ग जानता हूँ और कई बार मेदिया जा चुका हूँ। मैं वहांँ के सब मैदानों और पर्वतों का भ्रमण कर चुका हूँ और सब मार्ग जानता हूँ।''
11) टोबीत ने उस से कहा, ''भाई! मुझे बताओ, तुम कहाँ के और किस वंश के हो।''
12) उसने उत्तर दिया, ''आप वंश क्यों जानना चाहते हैं?'' टोबीत ने कहा, ÷मैं सही-सही यह जानना चाहता हूँ कि तुम किसके पुत्र हो और तुम्हारा नाम क्या है।''
13) उसने उत्तर दिया, ''मैं आपके सम्बन्धी बड़े हनन्या का पुत्र अजर्+या हूँ''।
14) टोबीत ने कहा, ''भाई! स्वागत हो! इस बात पर बुरा न मानना कि मैं तुम्हारे परिवार का सही परिचय चाहता था। अब पता चला कि तुम मेरे भाई और अच्छे परिवार के सदस्य हो। मैं बड़े समाया के दोनों पुत्र हनन्या और नातान को जानता था। वे आराधना करने मेरे साथ येरुसालेम जाया करते थे। वे अपने धर्म से विमुख नहीं हुए। तुम्हारे भाई कुलीन हैं और तुम्हारा वंश उत्तम है। तुम्हारा स्वागत हो।''
15) उसने फिर कहा, ''मैं तुम को एक दीनार का रोज+ाना और तुम्हें एवं अपने पुत्र को वह दूँगा, जो आवश्यक है। उसके साथ जाओ
16) और मैं वेतन के अतिरिक्त तुम्हें और कुछ दूँगा।''
17) उसने कहा, ''आप निश्चिन्त रहें, मैं उसके साथ जाऊँगा। हम सकुशल जायेंगे और सकुशल लौटेंगे। मार्ग सुरक्षित हैं।'' टोबीत ने उस से कहा, ''भाई! ईश्वर तुम्हारा भला करे! उसने अपने पुत्र को बुला कर कहा, ''यात्रा के लिए तैयारी करो और अपने भाई के साथ जाओ। स्वर्ग में विराजमान ईश्वर वहाँ तुम्हारी रक्षा करे और तुम दोनों को मेरे पास सकुशल पहुँचा दे। पुत्र! ईश्वर का दूत तुम्हारे साथ रहे और तुम्हारी रक्षा करे।'' टोबीयाह ने यात्रा के लिए तैयार हो कर अपने माता-पिता का चुम्बन किया। टोबीत ने कहा, ''तुम्हारी यात्रा सफल हो!
18) उसकी माता रोने लगी और टोबीत से बोली, ''आपने मेरे पुत्र को बाहर क्यों भेजा? वह हमारे पास रहने पर हमारे हाथों की छड़ी है।
19) धन बढ़ने से हमें क्या लाभ? हमारे पुत्र के मुक़ाबले में धन कुछ नहीं।
20) ईश्वर ने हमारी जीविका के लिए जो दिया है, वह हमारे लिए बहुत है।''
21) इस पर टोबीत ने उस से कहा, ''चिन्ता मत करो। हमारा पुत्र सकुशल जायेगा और सकुशल लौटेगा। जिस दिन वह सकुशल लौटेगा, तुम्हारी आँखें उसे फिर देखेंगी।
22) बहन! चिन्ता मत करो और नहीं डरो। अच्छा स्वर्गदूत उसके साथ जायेगा और मार्ग में उसकी रक्षा करेगा।
23) वह सकुशल लौटेगा।''

अध्याय 6

1) यह सुनने पर पर उसने रोना बन्द कर दिया।
2) पुत्र स्वर्गदूत के साथ चला गया; कुत्ता उसके साथ निकल कर दोनों के पीछे हो लिया। चलते-चलते शाम हो गयी और उन्होंने पहली रात दज+ला नदी के तट पर बितायी।
3) जब टोबीयाह स्नान करने नदी गया, तो नदी से एक बड़ी मछली निकली और उसने लपक कर उसका पैर निगलना चाहा।
4) स्वर्गदूत ने उस से कहा, ''मछली पकड़ लो''। युवक ने वह मछली पकड़ कर उसे सूखी भूमि पर पटक दिया।
5) स्वर्गदूत ने उस से कहा, ''मछली को काट कर उसका दिल, कलेजा और पित्तकोष सुरक्षित रख लो। उसकी अँतड़ियाँ फेंक दो। दिल, कलेजा और पित्तकोष दवा के काम आते हैं।''
6) युवक ने मछली काट कर दिल, कलेजा और पित्तकोष अलग रखा। उसने मछली का कुछ अंश भून कर खाया और कुछ अंश पर नमक छिड़क कर रख लिया। इसके बाद वे आगे बढ़ते रहे। मेदिया के पास पहुँच कर
7) युवक ने स्वर्गदूत से यह प्रश्न किया, ''भाई अज+र्या! मछली के दिल, कलेजे और पित्त किस रोग की दवा है?''
8) उसने उत्तर दिया, ''जो पुरुष या स्त्री शैतान या दुष्ट आत्मा से सताया जाता है, उसके सामने मछली का दिल और कलेजा ज+ला दो और वह उसे छोड़ कर फिर कभी उसके पास नहीं फटकेगा।
9) पित्त ऐसे मनुष्य की आँखों पर लगाया जाये, जिस को मोतियाबिन्द हो गया हो और वह अच्छा हो जाता है।''
10) मेदिया में प्रवेश करने के बाद और एकबतना के पास पहुँच कर
11) रफ़ाएल ने युवक से कहा, ''भाई टोबीयाह! ''उसने उत्तर दिया, ''मैं प्रस्तुत हूँ''। उसने कहा, ''हमें यह रात रागुएल के यहाँ बितानी है। वह तुम्हारा सम्बन्धी है और उसके सारा नामक एक पुत्री है।
12) उसके कोई पुत्र नहीं है और सारा के सिवा उसके कोई पुत्री भी नहीं। तुम उसके सब से निकट सम्बन्धी हो। तुम को उसके साथ विवाह करने और उसके पिता की सम्पत्ति का पहला अधिकार है। क़न्या समझदार, स्वस्थ और बहुत भली है। उसका पिता उसे बहुत प्यार करता है।''
13) उसने फिर कहा, ''उचित है कि तुम उसे स्वीकार करो। भाई! मेरी बात सुनो। मैं इस रात उस कन्या के विषय में बातचीत करूँगा, जिससे उसके साथ तुम्हारा विवाह निश्चित हो जाये। हम रागै से लौट कर उस से तुम्हारा विवाह करेंगे। मैं जानता हूँ कि वह उसे तुम को देना अस्वीकार नहीं करेगा। वह जानता है कि यदि वह उसे अन्य पुरुष को देगा, तो वह मूसा की संहिता के अनुसार मृत्युदण्ड का भागी होगा; क्योंकि यह उचित है कि किसी भी अन्य मनुष्य की अपेक्षा तुम्हें उसकी विरासत और उसकी पुत्री प्राप्त हो। भाई! अब मेरी बात मानो। हम इस रात उस कन्या के विषय में बात करें और उसकी मँगनी तुम से करायें। रागै से लौट कर उसका विवाह संस्कार सम्पन्न करें और उसे अपने साथ तुम्हारे घर ले चलें।''
14) इस पर टोबीयाह ने रफ़ाएल से कहा, ''भाई अज+र्या! मैंने सुना है कि उस कन्या का विवाह क्रमशः सात पुरुषों से हो चुका है और कमरे में रात को सभी की मृत्यु हो गयी है। उसके पास अन्दर आते ही सब की मृत्यु हो गयी है। मैंने कुछ लोगों को यह कहते सुना कि एक पिशाच ने उनका वध किया।
15) मुझे डर लगता है। पिशाच उस को प्यार करता और उसे नहीं सताता है, किन्तु जो उसके पास जाना चाहता, उसका वध कर देता है। मैं अपने पिता का एकमात्र पुत्र हूँ। कहीं ऐसा न हो कि अपनी मृत्यु के शोक के कारण मैं अपने माता-पिता की मृत्यु का कारण बनूँ। उनके कोई और पुत्र नहीं, जो उन्हें दफ़नाये।''
16) स्वर्गदूत ने उस से कहा, ''क्या तुम को अपने पिता का आदेश याद नहीं है? उन्होंने तुम से कहा कि अपने पिता के कुटुम्ब की किसी कन्या से विवाह करोगे। भाई! अब मेरी बात सुनो। उस पिशाच की चिन्ता मत करो और सारा से विवाह कर लो। मैं जानता हूँ कि वह इस रात तुम्हारी पत्नी हो जायेगी।
17) तुम उस मछली के दिल और कलेजे का कुछ अंश लोबान के साथ जलते धूपदान पर रख कर कमरे में प्रवेश करो। पिशाच उसकी गन्ध सूँघ कर भाग जायेगा और उसके निकट फिर कभी नहीं आयेगा।
18) उस से प्रसंग होने से पूर्व ही तुम दोनों पहले उठो और प्रार्थना करो, जिससे स्वर्ग का प्रभु तुम दोनों पर दया करे और तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करे। डरो मत। यह अनन्त काल से निश्चित किया गया है कि वह तुम्हारी हो कर रहेगी। तुम उसे स्वस्थ करोगे और वह तुम्हारे साथ जायेगी। मुझे विश्वास है कि तुम्हें उस से पुत्र उत्पन्न होंगे, जो तुम्हारे भाइयों का अभाव पूरा करेंगे। तुम चिन्ता मत करो।''
19) जब टोबीयाह रफ़ाएल की बातों से जान गया कि वह उसकी बहन और उसके पिता के कुटुम्ब की है, तो वह उस को बहुत प्यार करने लगा और उसका हृदय उसके प्रति आकर्षित हुआ।

अध्याय 7

1) एकबतना पहुँच कर उसने कहा, ''भाई अज+र्या! मुझे सीधे हमारे भाई रागुएल के पास ले जाओ''। वह उसे रागुएल के घर ले गया। वह अपने आँगन के द्वार पर बैठा हुआ था। उन्होंने उसे पहले प्रणाम किया। उसने उन से कहा, ÷÷भाइयो! भले-चंगे रहो। तुम्हारा स्वागत है।'' वह उन्हें घर के अन्दर ले गया
2) और उसने अपनी पत्नी एदना से कहा, ''यह युवक मेरे टोबीत-जैसा दिखता है''।
3) एदना ने उन से पूछा, ''भाइयो! तुम कहाँ के हो?'' उन्होंने उत्तर दिया, ''हम नीनवे में निर्वासित नफ्+तालीवंशी हैं''।
4) उसने कहा, ''तुम हमारे भाई टोबीत को जानते हो?'' जब उन्होंने उत्तर दिया, ''हम उन्हें जानते हैं'', तो उसने पूछा, ''वह सकुशल तो हैं?''
5) उन्होंने कहा, वह जीवित और सकुशल हैं'' टोबीयाह ने कहा, ÷÷वह मेरे पिताजी हैं''
6) यह सुनते ही रागुएल ने लपक कर उसका चुम्बन किया और रोते हुए
7) कहा, ''बेटा, तुम धन्य हो! तुम एक अत्युत्तम पिता के पुत्र हो। यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि इतना धार्मिक और परोकारी मनुष्य अन्धा हो गया है'' और वह अपने भाई के पुत्र टोबीयाह की छाती पर रोता रहा।
8) उसकी पत्नी और उनकी पुत्री सारा भी रोने लगी।
9) रागुएल ने अपनी भेड़ों में से एक का वध किया और उनका सहर्ष स्वागत किया। उन्होंने नहाया और अपने को पवित्र किया और जब वे भोजन करने बैठे, तो टोबीयाह ने रफ़ाएल से कहा, ''भाई अज+र्या! रागुएल से कहो कि वह मुझे मेरी बहन सारा को दे दें''।
10) रागुएल ने यह सुन कर युवक से कहा, ''भाई! इस रात आनन्द मनाते हुए खाओ-पिओ तुम्हारे सिवा कोई मनुष्य मेरी पुत्री सारा से विवाह करने योग्य नहीं है। तुम को छोड़ कर उसे दूसरे पुरुष को देने का मुझे अधिकार भी नहीं है, क्योंकि तुम सब से निकट सम्बन्धी हो। पुत्र! मैं तुमसे सच्ची बात नहीं छिपाऊँगा।
11) मैं उसे अपने भाइयों में से सात पुरुषों को दे चुका हूँ और जिस रात वे उसके पास गये, उसी रात सब की मृत्यु हो गयी। पुत्र! अब खाओ-पियो! प्रभु तुम दोनों का भला करे।'' टोबीयाह ने उत्तर दिया, ''जब तब आप मुझे अपनी पुत्री सारा को देने की प्रतिज्ञा नहीं करेंगे, तब तक मैं कुछ नहीं खाऊँगा-पिऊँगा''। रागुएल ने उस से कहा, ''प्रतिज्ञा करता हूँ। मूसा की संहिता के निर्णय के अनुसार वह तुम्हारी है। उसके साथ तुम्हारा विवाह स्वर्ग में निश्चित किया गया है। अपनी बहन को अपनाओ। अब से तुम उसके भाई हो और वह तुम्हारी बहन है। आज वह सदा के लिए तुम्हें दी जाती है। पुत्र! स्वर्ग का ईश्वर तुम दोनों का कल्याण करे और इस रात तुम पर दया करे और शान्ति प्रदान करे।''
12) रागुएल ने अपनी पुत्री सारा को बुलाया और वह उसके पास आयी। उसने उसका हाथ पकड़ कर यह कहते हुए उसे टोबीयाह को दिया, ''मूसा के ग्रन्थ में निर्धारित विवाह-विधि के अनुसार इसे अपनाओ। यह तुम्हारी पत्नी है। इसे सकुशल अपने पिता के घर ले जाओ। स्वर्ग का ईश्वर तुम लोगों को सुरक्षित यात्रा और शान्ति प्रदान करे।''
13) उसने उसकी माता को बुला कर काग़ज+ मँगवाया, जिससे वह विवाह के अनुबन्ध-पत्र पर यह लिखे कि उसने मूसा की संहिता के अनुसार उसे टोबीयाह को पत्नी के रूप में दिया है। माता काग़ज लायी और उसने अनुबन्ध-पत्र लिख कर उस पर हस्ताक्षर किये।
14) इसके बाद वे खाने-पीने लगे।
15) रागुएल ने अपनी पत्नी एदना को बुला कर उस से कहा, ''बहन! दूसरा कमरा तैयार करो और सारा को वहाँ ले जाओ''।
16) उसने जा कर उसके कहने के अनुसार पलंग तैयार किया और अपनी पुत्री को कमरे में ले जा कर उसके लिए रोने लगी। तब उसने आँसू पोंछ कर उस से कहा, ''बेटी! ढारस रखो। स्वर्ग का ईश्वर तुम को दुःख के बदले आनन्द प्रदान करे। ढारस रखो।'' इसके बाद वह चली गयी।

अध्याय 8

1) वे भोजन के बाद विश्राम करना चाहते थे। उन्होंने युवक को ले जा कर सारा के कमरे में पहँुंचा दिया।
2) टोबीयाह को रफ़ाएल का कहना याद आया और उसने अपने बस्ते में मछली का दिल और कलेजा निकाल कर जलते धूपदान पर रख दिया।
3) पिशाच मछली की गन्ध सूँघते ही मिस्र के ऊपरी प्रदेश में भाग गया। एफ़ाएल ने वहाँ जा कर उसे बाँध दिया और तुरन्त वापस आया।
4) माता-पिता ने कमरे से बाहर आ कर उसका दरवाज+ा बन्द कर दिया। टोबीयाह ने पलंग से उठ कर सारा से कहा, ''बहन! उठो। हम प्रार्थना करें और अपने प्रभु से निवेदन करें कि वह हम पर दया करें और हमें सुरक्षित रखे''।
5) वह उठी और दोनों प्रार्थना करने लगे। उन्होंने प्रभु से निवेदन किया कि वह उन्हें सुरक्षित रखे। वे कहने लगे, ''हमारे पूर्वजों के प्रभु! तू धन्य है! तेरा नाम युग-युग तक धन्य है। आकाश और सारी सृष्टि तुझे अनन्त काल तक धन्य कहे।
6) तूने आदम की सृृष्टि की और उसे स्थायी सहयोगिनी के रूप में हेवा को प्रदान किया। उन दोनों से मानवजाति की उत्पत्ति हुई है। तूने कहा कि अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं। इसलिए हम उसके लिए सदृश एक सहयोगिनी बनायें।
7) अब मैं काम-वासना से प्रेरित हो कर नहीं, बल्कि धर्म के अनुसार अपनी इस बहन को पत्नी के रूप में ग्रहण करता हूँ। इस पर और मुझ पर दया कर और ऐसा कर कि हम दोनों बुढ़ापे तक सकुशल साथ रहें।''
8) दोनों ने कहा, ''आमेन! आमेन!
9) और वे रात बिताने के लिए पलंग पर लेट गये।
10) रागुएल ने उठ कर अपने नौकरों को बुलाया। वे उसके साथ क़ब्र खोदने गये; क्योंकि वह सोचता था, ''कहीं ऐसा न हो कि टोबीयाह की मृत्यु हो गयी हो और लोग हमारा उपहास और अपमान करें''।
11) रागुएल क़ब्र खोदने के बाद लौटा और अपनी पत्नी को बुला कर
12) उस से बोला, ''एक नौकरानी को भेजो। वह अन्दर जा कर पता लगाये कि वह जीवित है या नहीं। यदि उसकी मृृत्यु हो गयी है, तो हम उसे सब के अनजाने दफ़नायें।''
13) उन्होंने दीपक जला कर नौकरानी को भेजा। दरवाज+ा खोला गया और नौकरानी ने अन्दर जा कर देखा कि दोनों गहरी नींद में सो रहे हैं।
14) उसने लौट कर समाचार दिया कि वह जीवित और सकुशल है।
15) उन्होंने स्वर्ग के ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, ''ईश्वर! तू धन्य है! तू हर प्र्रकार की पावन स्तुति के योग्य है। तेरे सभी भक्त और तेरी सारी सृष्टि तुझे धन्य कहे। तेरे सभी स्वर्गदूत और कृपापात्र तुझे युग-युग धन्य कहेें।
16) तू धन्य हैं, क्योंकि तूने मुझे आनन्द प्रदान किया। जिस बात की मुझे आशंका थी, वह घटित नहीं हुई। तूने अपनी महती दया के अनुसार हमारे साथ व्यवहार किया है।
17) तू धन्य है, क्योंकि तूने हमारी दो एकमात्र सन्तानों पर दया की है। प्रभु! उन्हें कृपा और सुरक्षा प्रदान कर। वे आनन्द में जीवन बितायें और अन्त तक तेरे कृपापात्र बने रहे।''
18) इसके बाद उसके अपने नौकरों को भोर से पहले क़ब्र भरने का आदेश दिया।
19) उसने अपनी पत्नी को बहुत-सी रोटियाँ सेंकने को कहा। वह अपने पशुओं में से दो गायें और चार मेढ़ें चुनने गया और उन्हें ले आ कर उसने उनका वध करने का आदेश दिया। इसके बाद नौकर विवाहोत्सव की तैयारी करने लगे।
20) उसने टोबीयाह को बुलाया और शपथ खाते हुए कहा, ''तुम चौदह दिन तक यहाँं से नहीं जाओगे। तुम यहाँ रह कर मेरे साथ खाओगे-पिओगे और तुम यहाँ रह कर मेरे साथ खाओगे-पिओगे और मेरी बेटी का जी बहलाओगे; क्योंकि उसे बहुत दुःख सहना पड़ा।
21) मेरी आधी सम्पत्ति स्वीकार करो और अपने पिता के पास सकुशल लौटो। शेष सम्पत्ति तुम्हें मेरी और मेरी पत्नी की मृत्यु के बाद मिलेगी। पुत्र! ढारस रखो। मैं तुम्हारा पिता हूँ और एदना तुम्हारी माता है। हम अब से और सदा के लिए तुम्हारे और तुम्हारी बहन के अपने हैं। पुत्र! तुम ढारस रखो।''

अध्याय 9

1) टोबीयाह ने रफ़ाएल को बुला कर उस से कहा,
2) ''भाई अज+र्या! यहाँ के चार सेवक और दो ऊँट ले कर रागै के लिए प्रस्थान करो। गबाएल के यहाँ जाओ और उसे परचा दो। अपने साथ धन ले कर विवाहोत्सव में पधारों।
3) मैं जानता हूँ कि मेरे पिताजी दिन गिन रहे हैं और यदि मैं लौटने में एक दिन की भी देर करूँगा, तो उन्हें बहुत दुःख होगा।
4) तुमने रागुएल की शपथ सुनी है, मैं उसका तिरस्कार नहीं कर सकता।''
5) इस पर एफ़ाएल ने चार सेवकों और दो ऊँटों के साथ मोदिया के रागै के लिए प्रस्थान किया, जहाँ वे गबाएल के यहाँ ठहरे। रफ़ाएल ने उसे उसका परचा दिया और बताया कि टोबीत के पुत्र टोबीयाह ने रागुएल की पुत्री से विवाह किया और उसे विवाहोत्सव में निमन्त्रित करता है। गबाएल ने उठ कर मुहर-लगी थैलियाँ निकालीं और रूपया गिन कर ऊँटों पर रखवाया।
6) उन्होंने बहुत सबेरे उठ कर विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए प्रस्थान किया। जब वे रागुएल के यहाँ पहुँचे, तो टोबीयाह लेट रहा था। उसने उठ कर गबाएल को नमस्कार किया गबाएल रो पड़ा और उसने यह कहते हुए टोबीयाह को आशीर्वाद दिया, ''प्रभु धन्य है! उसने तुम्हें शान्ति प्रदान की, क्योंकि तुम एक अत्युत्तम, धार्मिक और परोपकारी मनुष्य के पुत्र हो। स्वर्ग का ईश्वर तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को, तुम्हारे माता-पिता और तुम्हारे सास-ससुर को आशीर्वाद प्रदान करे। ईश्वर धन्य है, क्योंकि मैंने अपने भतीजे टोबीयाह को देखा, जो अपने पिता का सदृश है।''

अध्याय 10

1) जब से टोबीयाह चला गया, उसका पिता टोबीत उसके लौटने के दिन गिन रहा था। जब दिन पूरे हुए और पुत्र नहीं लौटा,
2) तो उसने कहा, ''क्या उसे वहाँं रोका गया है क्या गबाएल की मृत्यु हो गयी है और कोई उसे रूपया नहीं देता?''
3) और वह दुःखी हो गया।
4) उसकी पत्नी अन्ना ने कहा, ''मेरा बेटा मर गया है। वह जीवितों में नही रहा। वह क्यों देर कर रहा है?'' वह रोने और यह कहते हुए विलाप करने लगी,
5) ''बेटा! धिक्कार मुझे, क्योंकि मैंने तुम को, अपनी आँखों की ज्योति को जाने दिया!
6) टोबीत उस से कहता था, ''बहन! चुप रहो! चिन्ता मत करो! हमारा बेटा सकुशल है। वहाँ उन दोनों को देर हो गयी होगी। जो व्यक्ति उसके साथ गया, वह ईमानदार है और हमारे भाइयों में से एक है। बहन! उसकी चिन्ता मत करो। वह आ रहा है''
7) वह उस से बोली, ''चुप रहो। मुझे धोखा न दो। मेरा बेटा मर गया है।'' वह प्रतिदिन बाहर जा कर वह मार्ग देखने जाती, जिस से उसका पुत्र गया था और दिन भर कुछ नहीं खाती। वह सूर्य डूबने के बाद घर आती, रात भर रोते हुए विलाप करती और नहीं सोती। रागुएल ने चौदह दिन तक अपनी पुुत्री का विवाहोत्सव मनाने की शपथ खायी थी। उतने दिनों के पूरे हो जाने पर टोबीयाह ने उसके पास जा कर कहा, ''मुझे जाने की आज्ञा दीजिए। मैं जानता हूँ कि मेरे माता-पिता को विश्वास नहीं है कि वे मुझे फिर देखेंगे। पिता! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे विदा करें, जिससे मैं अपने पिता के पास जाऊँ। मैं आप को बता चुका हूँ कि मैंने उन्हें किस हालत में छोड़ा था''
8) इस पर रागुएल ने टोबीयाह से कहा, ''बेटा! ठहरो, मेरे पास रहो। मैं तुम्हारे पिता टोबीत के पास दूत भेजूँगा, जो उन्हें तुम्हारे विषय में समाचार देंगे।''
9) उसने उत्तर दिया, ''नहीं, मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे यहाँ से विदा कर पिता के पास जाने दें''।
10) रागुएल ने उठ कर टोबीयाह को उसकी पत्नी और आधी सम्पत्ति के अतिरिक्त दास-दासियाँ, भेडें+ और बैल, गधे और ऊँट, कपड़े, रूपया और पात्र दिये।
11) उसने उन्हें विदा कर जाने दिया और टोबीयाह से यह कहा, ''बेटा! स्वस्थ रहो, सकुशल जाओ। स्वर्ग का ईश्वर तुम्हारा पथ प्रदर्शन करे। आशा है, मुझे मरने से पहले तुम दोनों के पुत्र देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा।''
12) उसने अपनी पुत्री सारा का चुम्बन किया और उस से कहा, ''बेटी! अपने सास-ससुर का आदर करना; क्योंकि वे अब से उसी तरह तुम्हारे माता-पिता हैं, जैसे हम हैं, जिन्होंने तुम को उत्पन्न किया है। बेटी! शान्ति में जाओ। मैं तुम्हारे विषय में जीवन भर अच्छी बातें सुनता रहूँ।'' उसने उसका चुम्बन किया और दोनों को विदा किया। एदना ने टोबीयाह से कहा, ''पुत्र और प्रिय भाई! स्वर्ग का ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे, जिससे मैं मरने से पहले तुम्हारे और अपनी पुत्री सारा के पुत्र देख सकूँ और प्रभु के सामने आनन्द मनाऊँ। मैं तुम को अपनी बेटी सौंपती हूँ। उसे जीवन भर कभी कष्ट नहीं देना। बेटा! शांति में जाओ। अब से मैं तुम्हारी माता हूँ और सारा तुम्हारी बहन है। हम सब का जीवन भर कुशल-क्षेम हो।'' उसने दोनों का चुम्बन किया और उन्हें सकुशल विदा किया।
13) तब टोबीयाह ने आनन्दित हो कर प्रस्थान किया और स्वर्ग तथा पृृृथ्वी के सर्वेश्वर प्रभु का धन्यवाद किया, जिसने उसका पथ प्रदर्शन किया। उसने रागुएल और एदना के प्रति यह कहते हुए शुभकामना प्रकट की, ''मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हो कि जब तक आप जीते रहें, मैं आपका आदर माता-पिता की तरह करता रहूँ''।

अध्याय 11

1) वे वहाँ से चल कर नीनवे के पास कासरीन आये।
2) तब रफ़ाएल ने कहा, ''तुम जानते हो कि हम तुम्हारे पिता को किस हालत में छोड़ गये हैं।
3) हम दोनों तुम्हारी पत्नी के पहले चलें और घर में इन लोगों के पहुँचने की तैयारी करें।''
4) दोनों साथ आगे बढे+। रफ़ाएल ने कहा, ''अपने साथ पित्त ले आओं''। कुत्ता रफ़ाएल और टोबीयाह के पीछे दौड़ता आया।
5) इस बीच अन्ना बाहर बैठी हुई अपने पुत्र की राह देख रही थी।
6) उसने उसे आते देखा और उसके पिता से कहा, ''देखो, तुम्हारा पुत्र और वह व्यक्ति, जो उसके साथ गया था, आ रहे हैं''।
7) पिता के पास पहुँचने से पहले रफ़ाएल ने टोबीयाह से कहा, ''मैं जानता हँू कि उनकी आँखें अच्छी हो जायेंगी।
8) उन की आँखों पर मछली का पित्त लगाओ। इस से मातियाबिन्द की झिल्ली उनकी आँखों पर से निकल जायेगी और तुम्हारे पिता फिर प्रकाश देख सकेंगे।''
9) अन्ना दौड़ते हुए अपने पुत्र से मिली और यह कहते हुए उसे गले लगाया, ''बेटा! मैंने तुम को फिर देखा; अब मरने को तैयार हँू'' और वह रोने लगी।
10) टोबीत उठ कर लड़खड़ाता हुआ अपने आँगन के द्वार से निकला।
11) टोबीयाह हाथ में मछली का पित्त लिये उसके पास आया और उसे संँभालते हुए उसकी आँखों पर फँूक मारी और बोला, ''पिताजी! ढारस रखिए!'' इसके बाद उसने उन पर दवा लगायी
12) और अपने दोनों हाथों से अपने पिता की आँखों के कोरों से मोतियाबिन्द की झिल्ली निकाली।
13) टोबीत ने अपने पुत्र को देख कर उसे गले लगाया
14) और रोते हुए उस से कहा, ''बेटा! मैं तुम को, अपनी आँखों की ज्योति को देखता हूँ'' उसने फिर कहा, ''धन्य है ईश्वर, धन्य है उसका महान् नाम और उसके सब स्वर्गदूत युग-युग धन्य है;
15) क्योंकि उसने मुझे मारा और अब वह मुझे अपने पुत्र टोबीयाह के दर्शन कराता है''। टोबीत और उसकी पत्नी अन्ना आनन्दित को कर घर के अन्दर आये और उन्होंने ऊँचे स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए सबों को बताया कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। टोबीयाह ने अपने पिता को बताया कि उसकी यात्रा प्रभु-ईश्वर की कृपा से सफ़ल रही, वह रूपया ले आया, उसने रागुएल की पुत्री से विवाह किया और यह कि वह आने वाली हैं, क्योंकि यह नीनवे के फाटक पर पहुँच रही है। यह सुन कर टोबीत और अन्ना को बड़ा आनन्द हुआ।
16) और वे अपनी बहू की अगवानी करने नीनवे के फाटक गये। जब नीनवे के निवासियों ने देखा कि टोबीत पूर्ण स्वस्थ हो कर चलता-फिरता है और कोई उसका हाथ पकड़ कर उसे नहीं ले चलता, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।
17) उनके सामने ऊँचे स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए टोबीत यह बताता था कि ईश्वर ने उस पर कैसे दया की और उसकी आँखों को अच्छा किया। टोबीत ने अपने पुत्र टोबीयाह की पत्नी सारा के पास आ कर उसे यह कहते हुए आशीर्वाद दिया, ÷÷ पुत्री ! सकुशल पधारो। पुत्री! धन्य है तुम्हारा पिता और धन्य है मेरा पुत्र टोबीयाह और धन्य हो तुम! पुत्री! तुम को आशीर्वाद और शान्ति! सकुशल अपने घर में प्रवेश करो। पुत्री! तुम्हारा स्वागत है।'' उस दिन नीनवे में रहने वाले यहूदियों ने बड़ा आनन्द मनाया।
18) टोबीयाह के भाइयों में अहीकार और नादाब आनन्दित हो कर उसके पास आये। सात दिन तक विवाहोत्सव मनाया गया और टोबीयाह को बहुत-से उपहार मिले।

अध्याय 12

1) टोबीत ने विवाहोत्सव के बाद अपने पुत्र टोबीयाह को बुला कर उस से कहा, ''हमें उस व्यक्ति को, जो तुम्हारे साथ गया, वेतन के सिवा कुछ और देना चाहिए''।
2) उसने कहा, ''पिताजी! मैं उसे कितना वेतन दूँ? मैं जो धन अपने साथ लाया, यदि मैं उसे उसका आधा भाग देता, तो भी मुझे कोई कमी नहीं होती।
3) उसने मुझे सुरक्षित वापस पहुँचाया, मेरी पत्नी को स्वस्थ किया, मेरे साथ रूपया ले आया और आप को स्वस्थ किया। मैं उसे कितना दे दूँ?''
4) टोबीत ने उस से कहा, ''बेटा! यह उचित है कि तुम जो धन लाये हो, उसका आधा भाग उसे दिया जाये''।
5) टोबीयाह ने उसे बुलाया और कहा, ''जो कुछ तुम अपने साथ ले आये, उसका आधा भाग वेतन के रूप में स्वीकार करो और सकुशल विदा लो''।
6) इस पर रफ़ाएल ने दोनों को एकान्त में बुला कर उन से कहा, ''ईश्वर का धन्यवाद कीजिए और सब प्राणियों के सामने यह घोषित कीजिए कि उसने हमारा कितना उपकार किया है। उसके नाम के आदर में धन्यवाद और स्तुतिगान कीजिए। ईश्वर के सत्कार्य प्रकट करने में संकोच मत कीजिए।
7) राजा का रहस्य अवश्य गुप्त रखना चाहिए, किन्तु ईश्वर के कार्य घोषित करना और योग्य रीति से उसकी स्तुति करना उचित है। भलाई कीजिए और बुराई आपके पास नहीं फटकेगी।
8) प्रार्थना तथा उपवास और भिक्षादान तथा धार्मिकता उत्तम हैं। दुष्टता से संचित धन-सम्पदा की अपेक्षा धार्मिकता से कमाया हुआ थोड़ा धन भी अच्छा है। भिक्षादान स्वर्ण-संचय से श्रेष्ठ है।
9) भिक्षादान मृत्यु से बचाता और हर प्रकार का पाप हरता है। जो भिक्षादान करता है, उसे पूर्ण जीवन प्राप्त होगा।
10) जो पाप और अन्याय किया करते हैं, वे अपने को हानि पहुँचाते हैं।
11) मैं आपके लिए पूरा सत्य प्रकट करूँगा और आप लोगों से कुछ भी नहीं छिपाऊँगा। मैं आप से कह चुका हूँ कि राजा का रहस्य अवश्य गुप्त रखना चाहिए, किन्तु ईश्वर के कार्य घोषित करना उचित है।
12) जब आप और सारा प्रार्थना कर रहे थे, तो मैं अपनी प्रार्थना ईश्वर की महिमा के सामने प्रस्तुत कर रहा था। जब आप मुरदों को दफ़नाते थे, तो मैं यही करता था।
13) जब आप आगा-पीछा किये बिना अपना भोजन छोड़ कर मुरदा दफ़नाने गये, तो मुझे आपकी परीक्षा करने भेजा गया।
14) ईश्वर ने मुझे फिर भेजा, जिससे मैं आप को और आपकी बहू को स्वस्थ करूँ।
15) मैं स्वर्गदूत रफ़ाएल हूँ। मैं उन सात स्वर्गदूतों में से एक हूँ, जो प्रभु की महिमा के सामने उपस्थित रहते हैं।''
16) यह सुन कर दोनों घबरा कर मुँह के बल गिर पड़े और भयभीत हो गये।
17) उसने उन से कहा, ''मत डरिए। आप को शान्ति मिले! सदा-सर्वदा ईश्वर की स्तुति कीजिए।
18) जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, मैं अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि ईश्वर की इच्छा से आपके साथ रहा। आप दिन-प्रतिदिन उसका स्तुतिगान कीजिए।
19) जब आपने मुझे खाते देखा, तो वह खाने का दिखावा मात्र था।
20) अब पृथ्वी पर प्रभु का धन्यवाद कीजिए और ईश्वर के महान् कार्यो का बखान कीजिए। मैं अब उसके पास जा रहा हूँ, जिसने मुझे भेजा है। आपके साथ जा कुछ घटित हुआ, वह सब लिख लीजिए''। स्वर्गदूत ऊपर चल पड़ा।
21) जब वे उठे, तो वह अन्तर्धान हो गया।
22) उन्होंने ईश्वर को गाते हुए धन्यवाद दिया। वे ईश्वर के महान् कार्यो का बखान करते रहे; क्योंकि उन्हें ईश्वर का दूत दिखाई दिया था।

अध्याय 13

1) टोबीत ने आनन्दविभोर हो कर यह प्रार्थना लिखी। उसने कहाः
2) जीवन्त ईश्वर सदा-सर्वदा धन्य है! उसका राज्य धन्य है। वह दण्ड देता और दया करता है। वह अधोलोक में उतारता और फिर महागर्त्त से निकलता है। उसके हाथ से कोई नहीं बचता।
3) इस्राएल के पुत्रो! राष्ट्रों में उसका स्तुतिगान करो, क्योंकि उसने तुम लोगों को उन में निर्वासित किया है।
4) उसने वहांँ अपनी महत्ता दिखलायी है। समस्त प्राणियों के सामने उसकी स्तुति करो; क्योंकि वह हमारा प्रभु है, हमारा ईश्वर और हमारा पिता। वह सदा-सर्वदा ईश्वर हैं।
5) वह तुम्हारे अधर्म के कारण तुम को दण्ड देता है, किन्तु वह तुम सब पर दया करेगा और तुम को उन सब राष्ट्रों से निकालेगा, जिन में तुम निर्वासित किये गये हो।
6) यदि तुम सारे हृदय और सारी आत्मा से उसके पास लौट आओगे और उसके सामने सत्य के मार्ग पर चलोगे, तो वह तुम्हारे पास लौटेगा और फिर तुम से अपना मुख नहीं छिपायेगा। देखो, उसने तुम्हारे लिए क्या किया और ऊँचे स्वर में उसकी स्तुुति करो। न्याय के प्रभु को धन्य कहो और युग-युगों के राजा का स्तुतिगान करो। जिस देश में निर्वासित हूँ, वहाँ मैं उसकी स्तुति करता हूँ। मैं एक पापी राष्ट्र के सामने उसका सामर्थ्य और उसकी महिमा प्रकट करता हूँ । पापियों! प्रभु के पास लौटो और उसके सामने धर्माचरण करो। क्या जाने, वह तुम पर प्रसन्न हो जाये और तुम पर दया करे।
7) मैं स्वर्ग के राजा का स्तुतिगान करता हूँू और उसके कारण जीवन भर आनन्द मनाता हूँ।
8) प्रभु के सब कृपापात्रो! प्रभु को धन्य कहो और उसकी महिमा का बखान करो। आनन्द मनाते हुए उसका स्तुतिगान करो।
9) पवित्र नगर येरुसालेम! उसने तेरे पापों के कारण तुझे दण्ड दिया।
10) प्रभु की दयालुता की स्तुति करो और युग-युगों के अधीश्वर को धन्य कहो, जिससे तुझ में उसके मन्दिर का पुनर्निर्माण हो, वह तेरे निर्वासितों को लौटा कर तुझे आनन्दित करे और जो दुःखी थे, उन सब को युग-युग तक प्यार करे।
11) एक उज्जवल ज्योति पृथ्वी के सीमान्तों तक चमकेगी, दूर-दूर के राष्ट्र तेरे पास आयेंगे। प्रभु के पवित्र नाम के कारण वे पृथ्वी के सीमान्तों से आयेंगे और हाथ में उपहार लिये स्वर्ग के ईश्वर को अर्पित करेंगे। सब पीढ़ियाँ तुझ में आनन्द मनायेंगी और तुझे युग-युग तक प्रभु की कृपापात्र कहेंगी।
12) वे सभी शापित हों, जो तेरी निन्दा करेंगे! वे सभी शापित हों, जो तेरा विनाश करते और तेरी चारदीवारी तोड़ते हैं, जो तेरी मीनारें गिराते और तेर घर जलाते हैं! धन्य हैं वे सभी, जो तुझ पर सदा श्रद्धा रखते हैं!
13) तू धर्मियों के पुत्रों के कारण आनन्द मनायेगा, क्योंकि तुझ में सभी एकत्र होंगे और शाश्वत ईश्वर को धन्य कहेंगे।
14) धन्य हैं, जो तुझे प्यार करते हैं! धन्य हैं वे, जो तेरी शान्ति के कारण आनन्द मनाते हैं! वे सब मनुष्य धन्य हैं, जो तेरी विपत्ति के कारण शोक मनाते हैं; क्योंकि वे तेरी सुख-शान्ति देख कर सदा के लिए आनन्द मनाते रहेंगे।
15) मेरी आत्मा! राजधिराज प्रभु को धन्य कहो;
16) क्योंकि येरुसालेम नगर में सदा के लिए उसके मन्दिर का निर्माण किया जायेगा। यदि मेरे वंशज भविष्य में तेरी महिमा देखेंगे और स्वर्ग के राजा का स्तुतिगान करेंगे, तो मैं अपने को सौभाग्यशाली मानूँगा। येरुसालेम! तेरा फाटक नीलम और मरकत से और तेरी सब दीवारें बहुमूल्य माणियों से सुशोभित होंगी। येरुसालेम की मीनारें स्वर्र्ण से और उसके प्राचीर शुद्ध सोने से निर्मित किये जायेंगे।
17) येरुसालेम के चौकों में मणिक और ओफ़िर की मणियाँ जड़ी जायेंगी।
18) येरुसालेम के फाटक आनन्द के गीत गायेंगे और उसके सभी निवासी बोल उठेंगे, ''अल्लेलूया! धन्य है इस्राएल का ईश्वर! और धन्य हैं वे, जो उसके परमपावन नाम की स्तुति करते हैं, अभी और अनन्तकाल तक! यहाँ तक टोबीत का स्तुतिगान।

अध्याय 14

1) टोबीत की मृत्यु एक सौ बारह वर्ष की अवस्था में शान्तिपूर्वक हूई और वह नीनवे में सम्मानपूर्वक दफ़नाया गया।
2) जब वह अन्धा बना, तो उसकी अवस्था बासठ वर्ष थी। दृष्टि मिलने के बाद उसने समृद्धि में जीवन बिताया। वह भिक्षादान किया करता और ईश्वर का स्तुतिगान तथा उसकी महिमा का बखान करता था।
3) मरते समय उसने अपने पुत्र टोबीयाह को बुला कर उसे यह आदेश दिया, ''बेटा! अपने पुत्रों के साथ
4) मेदिया वापस जाओ; क्योंकि मैं ईश्वर की उस वाणी पर विश्वास करता हूँ, जिसे नहूम ने नीनवे में प्रकट किया है-ईश्वर द्वारा भेजे हुए इस्र्राएल के नबियों ने अस्सूर और नीनवे के विषय में जो कुछ कहा है, वह सब उन पर बीतेगा। सब घाटित होगा! उन पर बातों में ऐसा कुछ नहीं, जो पूरा नहीं होगा। सब कुछ अपने समय में घटित होगा। अस्सूर और बाबुल की अपेक्षा मोदिया में अधिक सुरक्षा होगी! क्योंकि मैं जानता हूँ और विश्वास करता हूँ कि ईश्वर ने जो कुछ कहा, वह पूरा होगा। उन बातों में एक शब्द भी नहीं, जो पूरा नहीं होगा। इस्राएल में रहने वाले हमारे सभी भाई तितर-बितर कर दिये जायेंगे और बन्दी बना कर अपनी उत्तम भूमि से निर्वासित किये जायेंगे। समस्त इस्राएल देश, समारिया और येरुसालेम उजड़ जायेंगे। ईश्वर का मन्दिर जलाया जायेगा और कुछ समय तक उजाड़ पड़ा रहेगा।
5) ईश्वर फिर उन पर दया करेगा और उन्हें इस्राएल वापस ले जायेगा। वे मन्दिर का पुनर्निर्माण करेंगे! वह पहले मन्दिर-जैसा नहीं होगा और समय पूरा हो जाने तक बना रहेगा। जब वे सब अपने निर्वासन से लौटेंगे, तो वे उसकी पूर्व भव्यता के अनुसार येरुसालेम का निर्माण करेंगे और उस में ईश्वर का मन्दिर बनाया जायेगा, जैसा कि उसके सम्बन्ध में इस्राएल के सभी नबियों ने कहा है।
6) समस्त पृथ्वी के राष्ट्र ईश्वर की ओर अभिमुख होंगे, उस पर सच्ची श्रद्धा रखेंगे और अपनी सभी देव-मूर्तियाँ छोड़ देंगे, जो उन्हें कपटपूर्वक भटकाती थीं।
7) वे धर्माचरण करते हुए शाश्वत ईश्वर का स्तुतिगान करेंगे। जो इस्राएली उन दिनों निर्वासन से मुक्त हो जायेंगे, वे येरुसालेम में एकत्र होंगे। उन्हें इब्राहीम की भूमि दी जायेगी और वे उस में सुरक्षित हो कर उस में सदा के लिए निवास करेंगे। जो लोग सच्चाई से ईश्वर को प्यार करते हैं, वे आनन्दित होंगे; किन्तु जो अधर्म और पाप करते हैं, वे सब देशों से लुप्त हो जायेंगे।
8) ''पुत्रो! मैं तुम्हें यह आदेश देता हूँ: सच्चाई से ईश्वर की सेवा करो और उसके सामने वह करो, जो उसे प्रिय है। अपने पुत्रों को यह आदेश दो कि वे धर्माचरण और भिक्षादान करें, ईश्वर का स्मरण करें और सच्चाई और सारी शक्ति से हर समय उसका नाम धन्य कहें।
9) बेटा! तुम नीनवे से बाहर चले जाओगे, यहाँ नहीं रहोगे।
10) जिस दिन तुम मेरे पास अपनी माता का दफ़न करोगे, उस दिन यह नगर छोड़ दोगे; क्योंकि मैं देखता हूँ कि लोग यहाँ निर्लज्ज हो कर हर एक प्रकार का पाप और अधर्म करते है। बेटा! इस पर विचार करो कि नादाब ने अपने पालक पिता अहीकार के साथ कैसा व्यवहार किया और उसे कालकोठरी में डाल दिया। किन्तु ईश्वर ने उस से विश्वासघात का बदला चुकाया और अहीकार को मुक्त किया, जब कि नादाब सदा के लिए कालकोठरी चला गया था; क्योंकि वह अहीकार का वध करना चाहता था। अहीकार भिक्षादान किया करता था, इसलिए वह मृत्यु के उस फन्दे से बच गया, जिसे नादाब ने उसके लिए बिछाया था; किन्तु नादाब उस फन्दे में फँस गया और उसकी मृत्यु हो गयी।
11) बेटा! इस प्रकार तुम देखते हो कि भिक्षादान और अधर्म का परिणाम क्या है। अधर्म विनाश की ओर ले जाता है। अब मेरे प्राण निकल रहे हैं।'' उन्होंने उसे पलंग पर लिटाया, उसकी मृत्यु हो गयी और वह सम्मानपूर्वक दफ़नाया गया।
12) जब टोबीयाह की माता मरी, तो उसने उसे अपने पति के पास दफ़नाया और वह अपनी पत्नी के साथ मेदिया चला गया, जहाँ वह अपने ससुर रागुएल के यहाँ रहा।
13) उसके अपने बूढ़े सास-ससुर का आदर करते हुए उनकी सेवा की और मेदिया के एकबतना में उस को दफ़नाया। उसे रागुएल और अपने पिता टोबीत की सम्पत्ति विरासत के रूप में मिली।
14) उसकी मृत्यु एक प्रतिष्ठित नागरिक के रूप में एक सौ सतरह वर्ष की अवस्था में हुई।
15) उसने मरने से पूर्व नीनवे के पतन के विषय में सुना और मेदिया में नीनवे के निर्वासितों को देखा, जिन्हें मेदिया का राजा असुवेरूस बंदी बना कर वहाँ ले आया। ईश्वर ने नीनवे और अस्सूर के साथ जो किया था, उसके लिए उसे धन्यवाद दिया। वह अपनी मृत्यु से पहले नीनवे के कारण आनन्दित हुआ और सदा-सर्वदा प्रभु-ईश्वर को धन्य कहता रहा।