पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

नहेम्या का ग्रन्थ ( Nehemiah )

अध्याय 1

1) हकल्या के पुत्र नहेम्या का चरित। बीसवें वर्ष के किसलेब मास में मैं सूसा के क़िलाबन्द नगर में था।
2) तब मेरे भाइयों में एक, हनानी, कई अन्य व्यक्तियों के साथ यूदा से आया। जब मैंने निर्वासन से लौटे हुए यहूदियों और येरुसालेम के विषय में उन से पूछा,
3) तो उन्होंने मुझे बतायाः ''निर्वासन से लौटे हुए वहाँ उस प्रान्त में रहने वाले यहूदी बड़े कष्ट और शोचनीय दशा में जीवन बिताते हैं। येरुसालेम की चार-दीवारी गिरा दी गयी और उसके फाटक आग में जला दिये गये हैं।''
4) यह सुन कर मै बैठ कर रोने लगा और कई दिनों तक उदास पड़ा रहा। मैंने उपवास रखा और स्वर्ग के ईश्वर से
5) यह कहते हुए प्रार्थना कीः ''प्रभु! स्वर्ग के ईश्वर! महान् और भीषण ईश्वर! जो तुझ से प्रेम करते और तेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तू उनके लिए अपना विधान और अपनी सत्यप्रतिज्ञता बनाये रखता है।
6) कान खोल कर, आँखें उठा कर अपने इस दास की प्रार्थना पर ध्यान दे, जो मैं अब तेरे सामने दिन-रात तेरे इस्राएली दासों के लिए कर रहा हूँ। इसे सुन, क्योंकि मैं इस्राएलियों द्वारा तेरे प्रति किये पापों को स्वीकार करता हूँ। मैंने और मेरे पिता के घराने ने पाप किये हैं।
7) तेरे सेवक मूसा को दी गयी तेरी आज्ञाओं, नियमों और विधियों को भंग कर हमने तेरे साथ विश्वासघात किया है।
8) अपने सेवक मूसा से कहे हुए अपने ये शब्द याद कर, 'यदि तुम लोग विश्वासघात करोगे, तो मैं तुम्हें राष्ट्रों के बीच बिखेर दूँगा;
9) लेकिन यदि तुम मेरे पास लौट कर मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, तो मैं तुम बिखरे हुओं को, चाहे वे आकाश के कोने-कोने तक क्यों न बिखरे पड़े हों, फिर से उस स्थान पर एकत्र कर दूँगा, जिसे मैंने अपने नाम की प्रतिष्ठा के लिए निश्चित रखा है'।
10) ये तेरे वही सेवक हैं, यह तेरी वही प्रजा, जिसका तूने अपनी महान् शक्ति और अपने बाहुबल द्वारा उद्धार किया था।
11) प्रभु! कान लगा कर इस दास की प्रार्थना सुन और अपने उन दासों की पुकार पर ध्यान दें, जो सारे हृदय से तेरे नाम पर श्रद्धा रखते हैं। आज अपने दास को सफलता प्रदान कर, जिससे वह इस पुरुष-अर्थात् राजा-का कृपापात्र बन सके।'' उस समय मैं राजा की अंगूरी का प्रबन्धक था।

अध्याय 2

1) राजा अर्तजर्कसीस के राज्यकाल के बीसवें वर्ष के नीसान महीने में मैंने अंगूरी ले कर राजा के सामने रखी। मैं पहले कभी उदास हो कर राजा के सामने नहीं आया था।
2) राजा ने मुझ से कहा, ''तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ हैं? तुम बीमार नहीं हो, इसलिए तुम किसी कारण उदास हो।'' मैं बहुत घबरा गया
3) और राजा से बोला, ''महाराजा सदा जीते रहें। मेरा चेहरा क्यों न उतरा हो, जब कि वह नगर उजाड़ है, जहाँ मेरे पूर्वज दफ़नाये हुए हैं और उसके फाटक जल कर भस्म हो गये हैं?''
4) राजा ने मुझ से कहा, ''तुम क्या चाहते हो?'' मैंने स्वर्र्ग के ईश्वर से प्रार्थना की
5) और राजा को उत्तर दिया, ''यदि महाराजा को अच्छा लगे और मुझ पर आपकी कृपा दृष्टि हो, तो मुझे यूदा भेजिए, जिससे में उस नगर का पुनर्निर्माण करूँ, जहाँ मेरे पूर्वज दफ़नाये हुए हैं''।
6) रानी राजा के पास बैठी हुए हुई थी। राजा ने मुझ से पूछा, ''यात्रा में कितना समय लगेगा और तुम कब वापस आओगे?'' मैंने उसे एक निश्चित समय बताया और राजा ने मुुझे जाने की अनुमति दे दी।
7) तब मैंने राजा से कहा, ''यदि महाराजा को यह अच्छा लगे, तो मुझे नदी के उस पार के क्षत्रपों के नाम पत्र दिये जायें, जिससे, जब तक मैं यूदा न पहुँचूँ, वे मुझे अपने प्रान्त पार करने दें।
8) मुझे राजकीय वन अध्यक्ष आसाफ़ के नाम भी एक पत्र दिया जाये। उस में मुझे लकड़ी देने का आदेश लिखा हो, जिससे मैं मन्दिर के निकटवर्ती गढ़ के फाटक, नगर की चारदीवारी और अपने रहने का घर बनवा सकूँ।'' राजा ने मेरा निवेदन स्वीकार किया; क्योंकि मुझे अपने ईश्वर की कृपादृष्टि प्राप्त थी।
9) मैंने नदी के उस पार के प्रदेश के राज्यपालों के पास जा कर उन्हें राजा के पत्र दिये। राजा ने मेरे साथ सेनाध्यक्षों और कुछ घुडसवारों को भी भेजा।
10) जब होरोनी सनबल्लट और अम्मोनी सेवक टोबीयाह ने यह सुना कि इस्राएलियों का कोई शुभचिन्तक व्यक्ति आया है, तो उन्हें यह बड़ा बुरा लगा।
11) इस प्रकार मैं येरुसालेम आया और वहाँ तीन दिन तक रहने के बाद मैं रात में ही उठा।
12) मेरे पास कुछ लोग थे। अब तक मैंने किसी को यह नहीं बताया था कि ईश्वर ने येरुसालेम के बारे में मुझे क्या करने को कहा है। अपनी सवारी के सिवा मेरे पास कोई लद्दू जानवर नहीं था।
13) मैं घाटी के फाटक से रात में निकल पड़ा और श्रृगाल-कूप से गुजरता कूड़ा-फाटक पर पहुँचा। मैंने येरुसालेम की गिरायी हुुई दीवारों और अग्नि से जले हुए उसके फाटकों का निरीक्षण किया।
14) मैं निर्झर-फाटक और राज-कुण्ड की ओर आगे बढ़ा। वहाँ उस जानवर के लिए निकलने की जगह नहीं थी, जिस पर मैं सवार था,
15) इसलिए मैं रातोंरात घाटी के ऊपर की ओर चलते हुए दीवारों का निरीक्षण करता रहा। फिर वापस आ कर मैं घाटी के फाटक से हो कर अन्दर आ गया।
16) पदाधिकारियों को यह पता नहीं चल सका कि मैं कहाँ-कहाँ गया और उस में मेरा क्या उद्देश्य था। अब तक मैंने यहूदियों, याजकों, कुलीनों, पदाधिकारियों तथा निर्माण कराने वाले अन्य लोगों को इसके विषय में कुछ नहीं बताया था।
17) अब मैंने उस से कहा, 'तुम देख रहे हो कि हम कितने कष्ट में हैं। येरुसालेम उजाड़ा गया है और उसके फाटक जलाये गये हैं। चलो, हम येरुसालेम की दीवारें फिर से उठायें, जिससे हम आगे और अधिक अपमानित न हों।''
18) जब मैंने उन से कहा कि ईश्वर मेरे अनुकूल है और मैंने उन को राजा द्वारा अपने को कही गयी बातें बतायीं, तो उन्होंने कहा, ''चलिए, हम निर्माण-कार्य प्रारम्भ करें'' और उन्होंने उत्साह के साथ कार्य प्रारम्भ किया।
19) हीरोनी सनबल्लट, अम्मोनी दास टोबी-याह और अरबी गेशेम ने जब इस विषय में सुना, तो उन्होंने हमारा उपहास किया और हँसी उड़ाते हुए कहा, ''तुम लोग क्या कर रहे हो? क्या राजा के विरुद्ध विद्रोह करना चाहते हो?''
20) मैंने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷स्वर्ग का ईश्वर हमें सफलता प्रदान करेगा। हम, उसके सेवक पुनर्निर्माण का कार्य प्रारम्भ करेंगे; किन्तु येरुसालेम में न तो तुम्हारा कोई भाग होगा, न कोई अधिकार और न कोई स्मारक।''

अध्याय 3

1) महायाजक एल्याशीब और उसके याजक भाई-बन्धुओं ने भेड़-फाटक को बनाया। उन्होंने उसका प्रतिष्ठान कर उस में किवाड़ लगाये। फिर उन्होंने हम्मेआबुर्ज और हननएल-बुर्ज तक पुनर्निर्माण का कार्य आगे बढ़ाया।
2) येरीखो के निवासियों ने दीवार का अगला भाग बनाया और इम्री के पुत्र जक्कूर ने इसके बाद का भाग।
3) हस्सनाआ के पुत्रों ने मत्स्य-द्वार बनाया। उन्होंने उस में कड़ियाँ, किवाड़, अर्गलाएँ और छड़ लगाये।
4) ऊरीया के पुत्र और हक्कोस के पौत्र मरेम्मोत ने अगला भाग बनाया। उनकी बग़ल में बेरेक्या के पुत्र और मशेजबएल के पौत्र मशुल्लाम ने मरम्मत का काम किया।
5) और उनकी बग़ल में तकोआ-निवासियों ने। परन्तु उनके कुलीन व्यक्तियों ने अपने अध्यक्षों के आदेशानुसार काम नहीं किया।
6) पासेआह के पुत्र योयादा और बसोद्या के पुत्र मशुल्लाम ने प्राचीन द्वार की मरम्मत की। उन्होंने उसकी कड़ियाँ, किवाड़ अर्गलाएँ और छड़ लगाये।
7) उनकी बग़ल में गिब-ओन-निवासी मलट््या और मरोनोती यादोन और गिबओन और मिस्पा के निवासियों ने उस भाग का पुनर्निर्माण किया, जो नदी के उस पार के प्रदेश के राज्यपाल के अधीन था।
8) उनकी बग़ल में हरदया के पुत्र सुनार उज्जीएल ने मरम्मत की। उसकी बग़ल में अत्तार हनन्या ने मरम्मत की। उन्होंने चौड़ी दीवार तक येरुसालेम का पुुनर्निर्माण किया।
9) उनकी बग़ल में हूर के पुत्र रफ़ाया ने पुनर्निर्माण किया, जो येरुसालेम के आधे भाग का शासक था।
10) उसकी बग़ल में हारूमफ़ के पुत्र यदाया ने अपने घर के सामने के भाग की मरम्मत की और उसकी बग़ल में हशबनया के पुत्र हट्टूश ने।
11) हारिम के पुत्र मलकीया और पहत-मोआब के पुत्र हशूब ने एक दूसरे भाग की मरम्मत की। उन्होंने भट्ठा-बुर्ज की भी मरम्मत की।
12) उनकी बग़ल में हल्लोहेश के पुत्र शल्लूम ने अपनी पुत्रियों के सहयोग से अगले भाग की मरम्मत की। वह येरुसालेम के दूसरे आधे भाग का शासक था।
13) हानून और जानोअह के निवासियों ने घाटी के फाटक की मरम्मत की। उन्होंने उसे उठा कर उस में किवाड़ अर्गलाएँ और छड़ लगाये। उन्होंने एक हजार हाथ तक, कूड़ा-फाटक तक, दीवार की भी मरम्मत की।
14) रेकाब के पुत्र मलकीया ने कूड़ा-फाटक की मरम्मत की। वह बेत-हक्केरेम जिले का शासक था। उसने उसे बना कर उस में किवाड़ अर्गलाएँ और छड़ लगाये।
15) कोल-होजे के पुत्र शल्लूम ने, जो मिस्पा जिले का शासक था, निर्झर-फाटक की मरम्मत की। उसने उसे उठा कर और उसके ऊपर एक छत बना कर उस में किवाड़, अर्गलाएँ और छड़ लगाये। उसने राजकीय उद्यान के पास की दीवार उन सीढ़ियों तक बनायी, जो दाऊदनगर से नीचे की ओर जाती हैं।
16) इसके बाद अजबूझ के पुत्र नहेम्या ने, जो बेत-सूर के आधे जिले का शासक था, उस स्थान तक मरम्मत की, जो दाऊद की क़ब्रों के सामने से हो कर खुदवाये हुए पोखर और वीर योद्धाओं के भवन तक जाता है।
17) इसके बाद लेवियों ने बानी के पुत्र रहूम के नेतृत्व में मरम्मत का काम किया। इसके बाद कईला के आधे जिले के शासक हशब्या ने अपने जिले की ओर से मरम्मत का काम करवाया।
18) इसके बाद उसके भाइयों ने हेनादाद के पुत्र बव्वय के नेतृृृृत्व में मरम्मत की। बव्वय कईला जिले के दूसरे भाग का शासक था।
19) उसकी बग़ल में येशूआ के पुत्र एजेर ने, जो मिस्पा का शासक था, उस भाग की मरम्मत की, जो मोड़ के पास से शस्त्रागार के चढ़ाव के सामने हैं
20) इसके बाद जब्बय के पुत्र बारूक ने, एक दूसरे स्थान पर, मोड़ से ले कर महायाजक एल्याशीब के घर में प्रवेश तक मरम्मत की।
21) इसके बाद ऊरीया के पुत्र और हक्कोश के पौत्र मरेमोत ने एक दूसरे भाग की मरम्मत की, अर्थात् एल्याशीब के घर के प्रवेश से ले कर उसके घर के अन्त तक।
22) इसके बाद देहात में रहने वाले याजकों ने मरम्मत की।
23) इनके बाद बेनयामीन और हशूब ने अपने घर के सामने की मरम्मत की। इनके बाद मासेया के पुत्र और अनन्या के पौत्र अजर्या ने अपने घर के पास वाले भाग की मरम्मत की।
24) इसके बाद हेनादाद के पुत्र बिन्नूई ने अजर्या के घर से ले कर मोड़ तक आगे के भाग की मरम्मत की।
25) ऊजय के पुत्र पालाल ने मोड़ के सामने के भाग की और पहरेदार की चौकी की मरम्मत की, जो राजभवन के ऊपर भाग से आगे निकली हुई थी। इसके बाद परओश के पुत्र अदाया ने मरम्मत की।
26) इसके बाद ओफ़ेल की पहाड़ी पर रहने वाले मन्दिर के कर्मचारियों ने पूर्वी जल-फाटक और निकले हुए बुर्ज तक दीवार की मरम्मत की।
27) इनके बाद तकोआ के लोगों ने निकले हुए बुर्ज से ओफ़ेल तक दीवार की मरम्मत की।
28) अश्व-फाटक के ऊपर याजकों ने अपने-अपने घरों के सामने के भागों की मरम्मत की।
29) इनके बाद इम्मेर के पुत्र सादोक ने अपने घर के सामने के भाग की मरम्मत की। इसके बाद शकन्या के पुत्र, पूर्व-द्वार के द्वारपाल शमाया ने मरम्मत की।
30) इसके बाद शेलेम्या के पुत्र हनन्या ने और सालाफ़ के छठे पुत्र हानून ने उसकी बग़ल में मरम्मत की। इनके बाद अपने घर के सामने ही बेरेक्या के पुत्र मशुल्लाम ने मरम्मत की।
31) इसके बाद सुनार मलकीया ने, निरीक्षण द्वार के सामने, मन्दिर के सेवकों और व्यापारियों के मकान तक और कोने के ऊपरी कमरे तक, मरम्मत का काम किया।
32) कोने के ऊपरी कमरे से भेड़-फाटक तक सुनारों और व्यापारियों ने चार-दीवारी की मरम्मत की।
33) जब सनबल्लट ने सुना कि हम चार-दीवारी की मरम्मत कर रहे हैं, तो वह क्रुद्ध हुआ और बड़े आवेश में आ गया।
34) उसने यहूदियों की हँसी उड़ायी और भाई-बन्धुओं तथा समारिया की सेना के सामने कहा, ''ये दुर्बल यहूदी लोग क्या कर रहे हैं? क्या ये चारदीवारी का पुनर्निर्माण करने में सफल होंगे? क्या ये बलिदान चढ़ायेंगे? क्या ये एक दिन में काम समाप्त करेंगे? क्या ये मलबे में पड़े और भस्म किये हुए पत्थरों को फिर से काम में ला सकेंगे?''
35) पास खडेे अम्मोनी टोबीयाह ने कहा, ''अरे, ये जो बना रहे हैं, उस पर यदि लोमड़ी भी चढ़ जाये, तो वह इनकी पत्थरों की यह दीवार ढाह देगी।''
36) हमारे ईश्वर! ध्यान दे, हमारा अपमान हो रहा है, उनका यह उपहास उनके ही सिर पड़े और तू उन्हें एक ऐसे देश के हाथ में डाल दे, जहाँ वे लूटे और बन्दी बनाये जायें।
37) उनके अपराधों को मत भुला और उनके पापों को अपनी दृष्टि से ओझल न होने दे, क्योंकि उन्होंने निर्माणकर्ताओं की निन्दा की है।
38) हमने दीवार का निर्माण-कार्य जारी रखा और आधी ऊँचाई तक काम पूरा कर लिया। लोग दृढ़तापूर्वक कार्य करते रहे।

अध्याय 4

1) जब सनबल्लट और टोबीयाह तथा अरबों, अम्मोनियों और अशदोद के निवासियों ने यह सुना कि येरुसालेम की चारदीवारी की मरम्मत ठीक चल रही है और उसकी दरार भरी जा रही है, तो उन्हें बड़ा क्रोध हुआ।
2) उन सबों ने येरुसालेम के विरुद्ध लड़ने और वहाँ उपद्रव करने के लिए षड्यंत्र रचा।
3) परन्तु हमने अपने ईश्वर से प्रार्थना की और काम को शत्रुओं से सुरक्षित रखने के लिए दिन-रात पहरेदारों को नियुक्त किया।
4) यूदावंशी कहते थेः ''बोझ ढोने वाले थक गये हैं। मलबा अधिक है। हम दीवार उठाने में असमर्थ होंगे।''
5) उधर हमारे विरोधियों ने सोचा कि ''जब तक हम उनके बीच न घुसें, तब तक उन्हें न तो इसका पता लगेगा और न वे हमें देख सकेंगे। इसके बाद हम उनका वध करेंगे और उनका काम रोकेंगे।''
6) उनके पास रहने वाले यहूदी आ कर हम से दसियों बार कर चुके थे, ''जहाँ-जहाँ से आप आये हुए हैं, वे वहाँ-वहाँ से आप पर आक्रमण करने आयेंगे''।
7) इसलिए मैंने नगर के निचले असुरक्षित भागों में, दीवार के भीतर लोगों को खड़ा किया। मैंने उन्हें घरानों के अनुसार तलवारें, भाले और धनुष लिये तैयार रखा ।
8) मैंने उठ कर चारों ओर दृष्टि डाली और कुलीनों, पदाधिकारियों तथा अन्य लोगों से कहा, ''आप उन से नहीं डरें। आप महान् और भीषण प्रभु को याद रखें और यह न भूलें कि आप अपने भाइयों, पुत्रों, पुत्रियों, पत्नियों और घरों के लिए युद्ध करते हैं''।
9) जब हमारे विरोधियों को यह पता चला कि हम उनका षड्यन्त्र जान गये हैं और ईश्वर ने उसे असफल कर दिया है, तो हम में से प्रत्येक व्यक्ति फिर दीवार पर जा कर अपने काम में लग गया।
10) उस दिन से मेरे आदमियों में से आधे लोग काम करते और आधे अपने नेताओं के साथ बरछे, ढाल और धनुष लिये तथा कवच पहने काम करने वाले यूदावंशियों के पीछे रक्षार्थ तैयार रहते थे।
11) चारदीवारी बनानेवाले और बोझा ढोने वाले एक हाथ से काम करते और दूसरे में शस्त्र लिये रहते।
12) काम करने वाले काम करते समय अपनी कमर में अपनी तलवार कसे रहते। सिंगा बजाने वाला मेरे साथ रहता।
13) मैंने कुलीनों, पदाधिकारियों और अन्य लोगों से कहा, ''यह काम भारी और लम्बा-चोड़ा है। हम दीवार पर इधर-उधर फैले हुए और एक दूसरे से दूर हैं।
14) आप जिस स्थान से सिंगे की ध्वनि सुनें, वहीं आ कर हमारे पास एकत्रित हो जायें। हमारा ईश्वर हमारे लिए लड़ेगा।''
15) इस प्रकार हम काम करते रहते और इस समय हम में से आधे लोग उषाकाल से तारे दिखाई देने तक भाले लिए तैयार रहते।
16) उस समय मैंने लोगों को यह आज्ञा दी कि प्रत्येक व्यक्ति अपने नौकरों के साथ येरुसालेम में ही रात बिताये। इस तरह वे रात को पहरेदारों का काम करें और दिन में कारीगरों का।
17) मैं, मेरे भाई-बन्धु, मेरे आदमी और मेरे साथ के पहरेदार-सब ने कपड़े तक नहीं उतारे। हर व्यक्ति अपने हाथ में हथियार लिये रहा।

अध्याय 5

1) उस समय लोग और उनकी पत्नियाँ अपने यहूदी भाई-बन्धुओं के विरुद्ध बड़ी-बड़ी शिकायतें करने लगे।
2) कुछ लोग कहते थे, ''हमारे अनेक पुत्र और पुत्रियाँ हैं। हमें अन्न दिया जाये, जिसे खा कर हम जीवित रह सकें।''
3) अन्य लोग कहते थे, ''इस अकाल में अन्न के लिए हमें अपने खेतों, दाखबारियों और घरों को गिरवी रखना पड़ रहा है''।
4) और कुछ लोग कहते थे, ''अपने खेतों और दाखबारियों का कर राजा को देने के लिए हमें ऋण लेना पड़ रहा है।
5) हम अपने भाइयों के रक्त-सम्बन्धी हैं, हमारे पुत्र उनके पुत्रों जैसे हैं। फिर भी हमें अपने पुत्र-पुत्रियों को उनके यहाँ दास-दासियों के रूप में रखना पड़ता है। हमारी कई पुत्रियाँ उनकी दासियाँ बन चुकी हैं। हम लाचार हैं; क्योंकि हमारे खेत और दाखबारियाँ दूसरों के हाथ में हैं।''
6) उनकी इस तरह की बातें सुन कर मुझे बड़ा क्रोध हुआ।
7) मैंने अपने मन में विचार करने के बाद कुलीनों और पदाधिकारियों को दोष देते हुए उन से कहा, ''आप अपने देश-भाइयों से सूद लेते हैं''। तब मैंने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा एकत्रित कर
8) उन से कहा, ''हम से जितना बन पाया, हमने द्रव्य दे कर अपने उन यहूदी भाइयों का उद्धार किया, जो अन्य जातियों के हाथ में बिक चुके थे और अब आप अपने भाइयों को बेच रहे हैं और हमें द्रव्य दे कर उनका फिर उद्धार करना पड़ता है।''
9) वे चुप रहे और कुछ उत्तर न दे सके। मैंने फिर कहा, ''आप लोग जो कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है। आप को हमारे ईश्वर पर श्रद्धा रखनी चाहिए, जिससे हमारे गैर-यहूदी शत्रु हमारा अपमान नहीं करें।
10) मैं, मेरे भाई-बन्धु और मेरे सेवक उन्हें पैसा और अन्न उधार देते हैं। अब हम सब उनका ऋण माफ़ करें।
11) आज ही उन्हें उनके खेत, दाखबारियाँ, जैतून-कुंज और घर लौटा दें और जो पैसा, अन्न, अंगूरी और तेल उधार दे चुके हैं, उसका सूद माफ़ करें।''
12) इस पर उन्होंने कहा, ''हम उन्हें वापस दे देंगे और इसके बाद उन से कुछ नहीं माँगेंगे। आपकी जैसी आज्ञा है, हम वैसा ही करेंगे।'' अब मैंने याजकों को बुलवा कर उन से यह प्रतिज्ञा पूरी करने की शपथ ली।
13) इसके बाद मैंने अपने वस्त्र की धूल झाड़ कर कहा, ''यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा पूरी न करे, तो ईश्वर इसी तरह उस मनुष्य को उसके घर और उसकी सम्पत्ति से अलग कर दे। वह इसी तरह झाड़ दिया जाये और उसके हाथ ख़ाली कर दिये जायें।'' इस पर सारी सभा ने कहाः ''आमेन!'' और इसके बाद उन्होंने प्रभु का स्तुतिगान किया। लोगों ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
14) मैं जिस दिन से यूदा प्रान्त का राज्यपाल नियुक्त हुआ, उस दिन से राजा अर्तजर्कसीस के बीसवें वर्ष से बत्तीसवें वर्ष तक अर्थात् बारह वर्ष तक-मैंने और मेरे भाई-बन्धुओं ने राज्यपाल का भत्ता स्वीकार नहीं किया।
15) मेरे पहले के राज्यपालों ने लोगों का बोझ भारी बना दिया था। वे रोटी और अंगूरी के अतिरिक्त उन से चाँदी के चालीस शेकेल भी लिया करते थे और उनके अनुचर भी लोगों पर अत्याचार करते थे। मैं ईश्वर पर श्रद्धा रखता था, इसलिए मैंने ऐसा नहीं किया।
16) मैंने इस दीवार के निर्माण में भी हाथ बँटाया और किसी का खेत नहीं लिया और मेरे अनुचरों ने भी वहाँ काम में सहायता पहुँचायी।
17) आसपास से आये हुए लोगों के अतिरिक्त ड़ेढ़ सौ यहूदी पदाधिकारी मेरी मेज पर भोजन करते थे।
18) जो कुछ प्रतिदिन तैयार किया जाता, अर्थात् एक बछड़ा, छः चुनी हुई भेड़ें और मुर्गियाँ, इन सब का व्यय मैं ही उठाता। इसके अतिरिक्त हर दसवें दिन जितनी भी अंगूरी की आवश्यकता होती थी, उसका मैं प्रबन्ध करता था। इन सब के बावजूद मैंने राज्यपाल का भत्ता नहीं माँगा, क्योंकि लोगों पर काम का बोझ बहुत भारी था।
19) मेरे ईश्वर! जो कुछ मैंने इन लोगों के लिये किया है, तू उसे मेरे कल्याण के लिए याद रख।

अध्याय 6

1) जब सनबल्लट, टोबीयाह, अरबी गेशेम और हमारे अन्य विरोधियों को यह मालूम हुआ कि मैंने दीवार फिर से उठवा दी है और अब उस में दरार नहीं रह गयी है (यद्यपि मैंने अब तक फाटकों के किवाड़ नहीं लगाये थे),
2) तो सनबल्लट और गेशेम, दोनों ने मेरे पास यह कहला भेजा, ''आइए, हम ओनो के मैदान के फ़िरीम गाँव में मिलें''। लेकिन वे मेरा बुरा करने के लिए षड़यन्त्र रच रहे थे;
3) इसलिए मैंने दूतों से उन्हें यह कहला भेजा, ''मैं एक बड़ी योजना में व्यस्त हूँ। मैं नहीं आ सकता। यदि मैं काम छोड़ कर आपके पास आऊँ, तो वह बन्द हो जायेगा।''
4) उन्होंने इस तरह मुझ से चार बार कहलवाया। परन्तु मैंने हर बार एक ही उत्तर दिया।
5) अब सनबल्लट ने पाँचवीं बार उसी सन्देश के साथ मेरे पास अपना एक दूत भेजा। उसके हाथ में एक खुली चिट्ठी थी।
6) उस में लिखा थाः ''लोगो में यह अफ़वाह है और गेशेम का भी कहना है कि आप और यहूदी लोग राजद्रोह करने की सोच रहे हैं और इसीलिए आप दीवार उठा रहे हैं। इस अफ़वाह के अनुसार आप उनके राजा भी होना चाहते हैं।
7) और यह भी कहा जाता है कि आप येरुसालेम में अपने को ही यूदा का राजा घोषित करवाने के लिए नबी नियुक्त कर चुके हैं। ये बातें राजा को निश्चय ही मालूम हो जायेंगी। इसलिए आप आइए, जिससे हम आपस में विचार कर लें।''
8) परन्तु मैंने उस से कहलवाया, ''आप जो बातें कहते हैं, वे निराधार हैं। वे आपके ही दिमाग की उपज हैं।''
9) वे सब हमें डराना चाहते थे और कहते थे, ''काम करते-करते उनके हाथ शिथिल पड़ जायेंगे और यह काम पूरा नहीं होगा।'' परन्तु मैंने प्रार्थना की, ''ईश्वर! तू मेरे हाथ सुदृढ़ कर''।
10) मैं किसी दिन महेटबएल के पौत्र, दलाया के पुत्र शमाया के घर गया। वह उस समय अपने घर में बन्द पड़ा था। उसने मुझ से कहा, ''हम ईश्वर के मन्दिर के भीतरी भाग में मिलें और मन्दिर के दरवाजे भीतर से बन्दर कर लें, क्योंकि वे आपका वध करने आयेंगे। वे रात में ही आपका वध करने आयेंगे।''
11) लेकिन मैंने कहा, ''क्या मुझ जैसे आदमी के लिए भागना उचित है और मुझ-जैसे आदमी को अपने प्राण बचाने के लिए मन्दिर के भीतर जाना चाहिए? मैं भीतर नहीं जाऊँगा।''
12) मुझे मालूम था कि उसे ईश्वर ने नहीं भेजा है। वह मुझ से ऐसा इसलिए कह रहा था कि टोबीयाह और सनबल्लट ने उसे ख़रीद लिया था।
13) वह इसलिए ख़रीदा गया था कि वह मुझे डराये और मन्दिर में प्रवेश कर पाप करूँ। इसके बाद वे इसकी चरचा करते हुए मुझे बदनाम करना चाहते थे।
14) मेरे ईश्वर! टोबीयाह और सनबल्लट को उनके कुकर्मों के कारण याद कर और नबिया नोअद्या और अन्य नबियों को भी, जो मुझे डराना चाहते थे।
15) एलूल मास के पच्चीसवें दिन, अर्थात् बावन दिन में, दीवार बन कर तैयार हो गयी।
16) जैसे ही हमारे सब विरोधियों ने यह सुना, हमारे आसपास के सभी लोग भयभीत हो उठे और अपने आप को छोटा समझने लगे। वे यह जान गये कि हमारे ईश्वर की सहायता से ही यह कार्य सम्पन्न हुआ है।
17) इन्हीं दिनों यूदा के कुलीन लोगों ने टोबीयाह के पास कई चिट्ठियाँ भेजीं और टोबीयाह के भी पत्र उन्हें मिले।
18) कारण यह था कि यूदा के बहुत-से लोगों ने शपथ खा कर टोबीयाह की सहायता करने की प्रतिज्ञा की थी; क्योंकि वह आरह के पुत्र शकन्या का दामाद था और उसके पुत्र योहानान ने बेरेक्या के पुत्र मशुल्लाम की पुत्री से विवाह किया था।
19) वे मेरे सामने उसके गुणों का उल्लेख करते और बाद में उस को बताते थे कि मैंने क्या-क्या कहा है। टोबीयाह मुझे डराने के लिए पत्र लिखता था।

अध्याय 7

1) दीवार का निर्माण हो चुका था और मैंने उस में फाटक भी लगवा दिये थे। द्वारपालों, गायकों और लेवियों की भी नियुक्ति कर दी गयी थी।
2) अब मैंने येरुसालेम का सारा कार्यभार अपने भाई हनानी और क़िले के अध्यक्ष हनन्या को सौंप दिया; क्योंकि हनन्या दूसरों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय और ईश्वर पर श्रद्धा रखने वाला था।
3) मैंने उन को यह आज्ञा दी कि येरुसालेम के फाटक तब खोले जायें, जब सूर्य तेजी से चमकने लगे और पहरेदारों की उपस्थिति में ही उन्हें बन्द किया जाये और उनकी अर्गलाएँ लगायी जायें, पहरेदारों, की नियुक्ति येरुसालेम के निवासियों में की जाये और प्रत्येक व्यक्ति अपने घर के सामने पहरा दे।
4) नगर बड़ा विस्तृत था, परन्तु उस में निवास करने वाले लोगों की संख्या कम थी और वे अभी तक घर नहीं बना पाये थे।
5) तब ईश्वर ने मेरे मन में यह विचार उत्पन्न किया, कि वंशावली लिखवाने के लिए मैं कुलीनों, पदाधिकारियों और लोगों को एकत्रित करूँ। मुझे उन लोगों की भी वंशावली मिल गयी, जो पहले आये थे। उस में यह लिखा थाः
6) यूदा के जिन लोगों को बाबुल के राजा नबूकदनेजर ने बन्दी बना कर निर्वासित किया और जो येरुसालेम और यूदा में अपने-अपने नगर वापस लौट आये थे, वे ये हैं।
7) वे जरूबबाबेल, येशूआ, नहेम्या, अजर्या, रअम्या, नहमानी, मोरदकय, बिलशान, मिसपेरेत, बिगवय, नहूम और बाना के साथ आये थे।
8) इस्राएलियों के पुरुषों की संख्या इस प्रकार थी :
9) परओश के दो हजार एक सौ बहत्तर वंशज, शफ़ट्या के तीन सौ बहत्तर वंशज,
10) आरह के छः सौ बावन वंशज,
11) पहत-मोआब अर्थात् येशूआ और योआब के दो हजार दो सौ चौवन वंशज,
12) एलाम के एक हजार दो सौ चौवन वंशज,
13) जत्तू के आठ सौ पैंतालीस वंशज,
14) जक्कय के सात सौ साठ वंशज,
15) बिन्नूई के छः सौ अड़तालीस वंशज,
16) बेबय के छः सौ अट्ठाईस वंशज,
17) अजगाद के दो हजार तीन सौ बाईस वंशज,
18) अदोनीकाम के छः सौ सड़सठ वंशज,
19) बिगवय के दो हजार सड़सठ वंशज,
20) आदीन के छः सौ पचपन वंशज,
21) हिजकीया से उत्पन्न आटेर के अट्ठानबे वंशज,
22) हाशुम के तीन सौ अट्ठाईस वंशज,
23) बेसय के तीन सौ चौबीस वंशज,
24) हारीफ़ के एक सौ बारह वंशज,
25) गिबओन के पंचानबे वंशज,
26) बेथलेहेम और नटोफ़ा से एक सौ अठासी पुरुष,
27) अनातोत के एक सौ अट्ठाईस पुरुष,
28) बेत-अजमावेत से बयालीस पुरुष,
29) किर्यत-यआरीम, कफ़ीरा और बएरोत से सात सौ तैंतालीस पुरुष,
30) रामा और गेबा से छः सौ इक्कीस पुरुष,
31) मिकमास से एक सौ बाईस पुरुष,
32) बेतेल और अय से एक सौ तेईस पुरुष,
33) दूसरे नेबो से बावन पुरुष,
34) किसी दूसरे एलाम के एक हजार दो सौ चौवन वंशज,
35) हारिम के तीन सौ बीस वंशज,
36) येरीख़ो से तीन सौ पैंतालीस पुरुष,
37) लोद, हादीद और ओनो के सात सौ इक्कीस पुरुष,
38) सनाआ के तीन हजार नौ सौ तीस वंशज।
39) याजकः येशूआ के घराने के यदाया के नौ सौ तिहत्तर वंशज,
40) इम्मेर के एक हजार बावन वंशज,
41) पशहूर के एक हजार दो सौ सैंतालीस वंशज,
42) और हारिम के एक हजार सत्रह वंशज।
43) लेवीः होदया के घराने के यशूआ और कदमीएल के चौहत्तर वंशज।
44) गायक : आसाफ़ के एक सौ अड़तालीस वंशज।
45) द्वारपाल : कुल एक सौ अड़तीस, जो शल्लूम, आटेर, टलमोन, अक्कूब, हटीटा और शोबाय के वंशज थे।
46) मन्दिर के सेवकः सीहा के वंशज, हसूफ़ा के वंशज, टब्बाओत के वंशज,
47) केरोस के वंशज, सीआ के वंशज, पादोन के वंशज,
48) लबाना के वंशज, हगाबा के वंशज, शलमय के वंशज,
49) हानान के वंशज, गिद्दोन के वंशज, गहर के वंशज,
50) रआया के वंशज, रसीन के वंशज, नकोदा के वंशज,
51) गज्जाम के वंशज, उज्जा के वंशज, पासेअह के वंशज,
52) बेसय के वंशज, मऊनियों के वंशज, नफ़ीसियों के वंशज,
53) बकबूक के वंशज, हकूफ़ा के वंशज, हरहुर के वंशज,
54) बसलोत के वंशज, महीदा के वंशज, हर्शा के वंशज,
55) बरकोस के वंशज, सीसरा के वंशज, तेमह के वंशज,
56) नसीअह के वंशज और हटीफ़ा के वंशज।
57) सुलेमान के सेवकों के वंशजः सोटय के वंशज, सोफ़ेरेत के वंशज, परीदा के वंशज,
58) याला के वंशज, दरकोन के वंशज, गिद्देल के वंशज,
59) शफ़ट्या के वंशज, हट्टील के वंशज, पोकेरेत-हस्सबायीम के वंशज और आमोन के वंशज।
60) मन्दिर के सेवकों और सुलेमान के सेवकों के वंशजों की कुल संख्या तीन सौ बानबे थी।
61) निम्नांकित लोग, जो तेल-मेलह, तेल-हर्शा, करूब, अद्दोन और इम्मेर के निवासी थे, यह नहीं बता सकते थे कि उनका घराना या उनका वंश इस्राएल का था या नहीं।
62) ये थे : दलाया के वंशज, टोबीया के वंशज, और नकोदा के वंशज, कुल छः सौ बयालीस।
63) फिर याजकों में : हबाया के वंशज, हक्कोस के वंशज और बरजिल्ल के वंशज (उसने गिलआद के निवासी बरजिल्लय की कन्या के साथ विवाह किया था और उसके पिता का नाम भी अपना लिया)।
64) वे वंशावलियों में अपने-अपने नामों की खोज करते थे और उन्हें न पाने के कारण याजकपद के लिए अयोग्य करार कर दिये गये थे।
65) राज्यपाल ने उन से कहा कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम के द्वारा जाँचने वाला कोर्र्ई याजक न मिले, तब तक तुम परमपवित्र भोजन नहीं खा सकोगे।
66) सारे समुदाय की सम्मिलित संख्या बयालीस हजार तीन सौ साठ थी।
67) इसके अतिरिक्त उनके दास-दासियाँ भी थे, जिनकी संख्या सात हजार तीन सौ सैंतीस थी। उनके साथ दो सौ पैंतालीस गायक-गायिकाएँ भी थे
68) और चार सौ पैंतीस ऊँट और छः हजार सात सौ बीस गधे थे।
69) कुछ घरानों के मुखिया निर्माण-कार्य के लिए भेंट देने लगे। राज्यपाल ने चन्दे में एक हजार सोने की अशर्फ़ियाँ, पचास पात्र और पाँच सौ तीस याजकी वस्त्र दिये।
70) घरानों के कुछ मुखियाओं ने निर्माण-कोष के लिए बीस हजार सोने की अशर्फ़ियाँ और दो हजार दो सौ चाँदी के सिक्के दिये।
71) अन्य लोगों ने बीस हजार सोने की अशर्फियाँ, दो हजार चाँदी के सिक्के और सड़सठ याजकीय वस्त्र दिये।
72) याजक, लेवी और अन्य कुछ लोग येरुसालेम में बस गये। गायक, द्वारपाल मन्दिर के सेवक और अन्य सब इस्राएली, अपने-अपने नगर लौट गये। सातवें महीने तक इस्राएली अपने-अपने नगर में बस गये।

अध्याय 8

1) समस्त इस्राएली जलद्वार के सामने के चौक में एकत्र हुए और उन्होंने एज्रा से निवेदन किया कि वह प्रभु द्वारा इस्राएल को प्रदत्त मूसा की संहिता का ग्रन्थ ले आये।
2) पुरोहित एज्रा सभा में संहिता का ग्रन्थ ले आया। सभा में पुरुष, स्त्रियाँ और समझ सकने वाले बालक उपस्थित थे। यह सातवें मास का पहला दिन था।
3) उसने सबेरे से ले कर दोपहर तक जलद्वार के सामने के चौक में स्त्री-पुरुषों और समझ सकने वाले बालकों को ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया। सब लोग संहिता का ग्रन्थ ध्यान से सुनते रहे।
4) शास्त्री एजा विशेष रूप से तैयार किये हुए लकड़ी के मंच पर खड़ा था। उसकी दाहिनी और मत्तित्या, शेमा, अनाया, ऊरीया, हिलकीया और मासेया थे और उसकी बायीं ओर पदाया, मीशाएल, मलकीया, हाशुम, हशबद्दाना, जकर्या और मशुल्लाम थे।
5) एज्रा लोगों से ऊँची जगह पर था। उसने सबों के देखने में ग्रन्थ खोल दिया। जब ग्रन्थ खोला गया, तो सारी जनता उठ खड़ी हुई।
6) तब एज्रा ने प्रभु, महान् ईश्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ उठा कर उत्तर दिया, ''आमेन, आमेन!'' इसके बाद वे झुक गये और मुँह के बल गिर कर उन्होंने प्रभु को दण्डवत् किया।
7) इसके बाद येशूआ, बानी, शेरेब्या, यामीन, अक्कूब, शब्बतय, होदीया, मासेया, कलीटा, अजर्या, योजाबाद, हानान और पलाया, इन लेवियों ने लोगों को संहिता का अर्थ समझाया और वे खड़े हो कर सुनते रहे।
8) उन्होंने ईश्वर की संहिता का ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया, इसका अनुवाद किया और इसका अर्थ समझाया, जिससे लोग पाठ समझ सकें।
9) इसके बाद राज्यपाल, नहेम्या, याजक तथा शास्त्री एज्रा और लोगों को समझाने वाले लेवियों ने सारी जनता से कहा, ''यह दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के लिए पवित्र है। उदास हो कर मत रोओ''; क्योंकि सब लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे।
10) तब एज्रा ने उन से कहा, ''जा कर रसदार मांस खाओ, मीठी अंगूरी पी लो और जिसके लिए कुछ नहीं बन सका, उसके पास एक हिस्सा भेज दो; क्योंकि यह दिन हमारे प्रभु के लिए पवित्र है। उदास मत हो। प्रभु के आनन्द में तुम्हारा बल है।''
11) लेवियों ने यह कहते हुए लोगों को शान्त कर दिया, ''शान्त रहो, क्योंकि यह दिन पवित्र है। उदास मत हो।''
12) तब सब लोग खाने-पीने गये। उन्होंने दूसरों के पास हिस्से भेज दिये और उल्लास के साथ आनन्द मनाया; क्योंकि उन्होंने अपने को दी हुई शिक्षा को समझा था।
13) दूसरे दिन सब लोगों के घरानों के मुखिया, याजक और लेवी संहिता के अध्ययन के लिए शास्त्री एज्रा के पास एकत्रित हुए।
14) प्रभु द्वारा मूसा को दी गई संहिता में उन्होंने यह लिखा पाया कि सातवें मास के पर्व के अवसर पर इस्राएली पर्णशालाओं में रहा करें
15) और अपने सब नगरों और येरुसालेम में यह घोषणा करें, ''पर्वतों पर जाओ और जैतून वृक्षों, जंगली जैतून वृक्षों, मेंहदी, खजूर और पत्ते वाले वृक्षों की शाखाएँ ले आओ और संहिता के आदेश के अनुसार पर्णशालाएँ बनवाओ''।
16) इस पर लोग चल कर शाखाएँ ले आये और सब ने अपनी-अपनी छत पर, अपने-अपने आँगन में, ईश्वर के मन्दिर के आँगनों में, जलद्वार के सामने के मैदान में और एफ्रईम-द्वार के सामने के मैदान में अपनी-अपनी पर्णशालाएँ बनायीं।
17) निर्वासन से लौटे हुए सब लोगों ने अपने लिए पर्णशालाएँ बनायीं और वे शिविर-पर्व मनाने के लिए उन में रहने लगे। नून के पुत्र योशुआ के समय से आज तक इस्राएलियों ने इस प्रकार पर्व नहीं मनाया था। इसलिए उनके आनन्द की सीमा नहीं थी।
18) एज्रा ने प्रतिदिन, पहले दिन से ले कर अन्तिम दिन तक, ईश्वर की संहिता के ग्रन्थ का पाठ किया। इस प्रकार लोग सात दिन तक पर्व मनाते रहे। आठवें दिन उन्होंने नियम के अनुसार धर्मसभा का आयोजन किया।

अध्याय 9

1) इसी महीने चौबीसवें दिन, इस्राएली टाट ओढ़े और सिर पर राख डाले सामूहिक उपवास करने के लिए एकत्रित हुए।
2) इस्राएली सब परदेशियों से अलग हो गये। उन्होंने खड़ा हो कर प्रभु के सामने अपने और अपने पूर्वजों के अपराध स्वीकार किये।
3) उन्होंने एक पहर तक प्रभु, अपने ईश्वर की संहिता का पाठ किया। दिन के दूसरे पहर वे अपना अपराध स्वीकार करते और प्रभु, अपने ईश्वर की उपासना करते रहे।
4) येशूआ, बानी, कदमीएल, शबन्या, बन्नी, शेरेब्या, बानी और कनानी ने लेवियों के मंच पर खड़ा हो कर ऊँचे स्वर से प्रभु, अपने ईश्वर की दुहाई दी।
5) इसके बाद येशूआ, कदमीएल, बानी, हशबनया, शेरेव्या, होदीया, शबन्या और पतह लेवियों ने कहाः ''उठों! प्रभु, अपने ईश्वर की स्तुति करों, जो सदा-सर्वदा धन्य है। तेरा महिमामय नाम धन्य है। वह समस्त गुणानुवाद और स्तुति के परे हैं।''
6) (एज्रा ने कहाः) तू ही प्रभु है, कोई दूसरा नहीं! तूने आकाश, सर्वोच्च आकाश और तारागण बनाया है। पृथ्वी और उस पर जो कुछ है, समुद्र और उन में जो कुछ हैः तू सब को जीवन प्रदान करता है। विश्वमण्डल तेरी आराधना करता है।
7) तू वही प्रभु-ईश्वर है, जिसने अब्राम को चुना, उसे खल्दैयियों के नगर ऊर से ले चला और उसका नाम इब्राहीम रखा।
8) तूने उसका निष्ठापूर्ण हृदय देख कर उसके लिए यह विधान निर्धारित किया कि तू उसके वंशजों को कनानी, हित्ती, अमोरी, परिज्जी, यबूसी और गिरगाशी लोगों का देश देगा! तूने अपना वह वचन पूरा किया, क्योंकि तू सत्यप्रतिज्ञ है।
9) तूने मिस्र में हमारे पूर्वजों की दयनीय दशा देखी और लाल समुद्र के किनारे उनकी दुहाई सुनी।
10) तूने फ़िराउन, उसके सब सेवकों और उसके देश के निवासियों को चिन्ह और चमत्कार दिखाये; क्योंकि तू जानता था कि उन्होंने अपने घमण्ड में हमारे पूर्वजों पर अत्याचार किया था। उस से तेरा नाम सदा के लिए महान् हो गया।
11) तूने हमारे पूर्वजों के सामने समुद्र को दो भागों में विभाजित किया और उसे सूखे मार्ग से पार किया। जैसे कोई महासागर में पत्थर फेंक देता है, तूने उनका पीछा करने वाले को जलगर्त्त में डुबा दिया।
12) तू दिन में उन्हें रास्ता दिखाने के लिए बादल के खम्भे के रूप में और रात को उन्हें प्रकाश देने के लिए अग्निस्तम्भ के रूप में उनके आगे-आगे चलता था।
13) तू सीनई पर्वत पर उतरा और स्वर्ग में उन से बोला। तूने उन्हें उचित आज्ञाएँ, निश्चित विधियाँ, कल्याणकारी नियम और आदेश दिये।
14) तूने उन्हें अपने पवित्र विश्राम-दिवस से परिचित कराया और अपने सेवक मूसा के द्वारा उन्हें आदेश, नियम और संहिता दी।
15) तूने उनकी भूख मिटाने के लिए उन्हें स्वर्ग से रोटी खिलायी और उनकी प्यास बुझाने के लिए चट्टान से पानी पिलाया। तूने उन्हें उस देश पर अधिकार करने भेजा, जिसे तूने हाथ उठा कर उन्हें देने की शपथ खाई थी।
16) परन्तु हमारे पूर्वज अपने घमण्ड में हठी बने रहे और उन्होंने तेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया।
17) उन्होंने तेरी बातों की उपेक्षा की और उन चमत्कारों को भुला दिया, जिन्हें तूने उनके लिए दिखाया था। वे हठी बने रहे और उन्होंने विद्रोह किया। उन्होंने अपनी गुलामी के देश वापस जाने का निश्चय किया, परन्तु तू एक क्षमाशील, करुणामय और दयालु ईश्वर है। तू देर से क्रोध करता और सत्यप्रतिज्ञता का धनी है। तूने उनका त्याग नहीं किया,
18) यद्यपि उन्होंने अपने लिए बछड़े की मूर्ति ढलवायी और घोर ईशनिन्दा करते हुए कहा-यही तुम्हारा ईश्वर है, यही तुम को मिस्र से निकाल लाया!
19) तूने अपनी असीम दया के अनुरूप मरुभूमि में उनका परित्याग नहीं किया। न तो वह बादल का खम्भा उनके सामने से हटा, जो दिन में उन्हें रास्ता दिखाता था और न वह अग्निस्तम्भ, जो रात में उनका पथ आलोकित करता था।
20) तूने उन्हें अपना कल्याणकारी आत्मा प्रदान किया, जिससे उन में विवेक आ जाये। तूने उनके मुख में मन्ना देना अस्वीकार नहीं किया, तूने उन्हें प्यास बुझाने के लिए पानी दिया।
21) तू मरुभूमि में चालीस वर्ष तक उनका भरण-पोषण करता रहा। उन्हें किसी बात की कमी नहीं रही, उनके वस्त्र जर्जर नहीं हुए और उनके पाँव नहीं सूजे।
22) तूने राज्यों और जातियों को उनके हाथ दिया और उनके सीमान्तों में उन्हें बसाया। उन्होंने हेशबोन के राजा सीहोन का देश और बाशान के राजा ओग का देश और बाशान के राजा ओग का देश अपने अधिकार में कर लिया।
23) तूने आकाश के तारों की तरह उनके वंशजों को असंख्य बना दिया और तू उन्हें उस देश ले गया, जिसके विषय में तूने उनके पूर्वजों से कहा था कि उसे अपने अधिकार में करने वे उस में प्रेवश करेंगे।
24) इसलिए, उनके वंशजों ने देश में प्रवेश कर उसे अपने अधिकार में कर लिया। तूने देश के कनानी निवासियों को उनके अधीन कर दिया। तूने उनके राजाओं और देश की जनता को उनके हाथ दे दिया, जिससे वे उनके साथ अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करें।
25) उन्होंने क़िलाबन्द नगरों, उर्वरा भूमि, धन-धान्य से पूरे घरों, खुदे हुए कुओं, दाखबारियों, जैतून-कुंजों और असंख्य फल-दार वृक्षों को अपने अधिकार में कर लिया। वे खा-पी कर मोटे हो गये और तेरे उपकारों का उपभोग करते आमोद-प्रमोद का जीवन बिताने लगे।
26) इसके बावजूद वे हठीले बने रहे। उन्होंने तेरी संहिता का तिरस्कार किया और उन नबियों का वध किया, जो उन से तेरी ओर अभिमुख होने का अनुरोध करते थे। वे तेरे विरुद्ध घोर अपराध करते रहे।
27) तब तूने उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ दे दिया, जिन्होंने उन पर अत्याचार किया। उन्होंने अपनी दयनीय दशा में तेरी दुहाई दी और तूने उनकी प्रार्थना सुनी। तूने अपनी असीम दया के अनुरूप उनके पास ऐसे उद्धारक भेजे, जिन्होंने उन को अपने शत्रुओं के पंजे से छुड़ाया।
28) ज्यों ही उन्हें अपने शत्रुओं से शान्ति मिली, वे फिर वही करने लगे, जो तेरी दृष्टि में बुरा है और तू उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ देता, जो उन पर अत्याचार करते थे। वे फिर तेरी दुहाई देते और तू अपनी असीम दया के अनुरूप स्वर्ग से उनकी प्रार्थना सुनता और बारम्बार उनका उद्धार करता था।
29) तू उन्हें चेतावनी देता, जिससे वे फिर तेरी संहिता का पालन करें, किन्तु वे हठीले बने रहे और तेरे आदेशों की अवज्ञा करते रहे। वे तेरी उन आज्ञाओं के विरुद्ध पाप करते रहे। वे तेरी उन आज्ञाओं के विरुद्ध पाप करते, जिनका पालन करने से मनुष्य को जीवन प्राप्त होता है। वे हठधर्मी और विद्रोही बने रहे और उन्होंने सुनने से इन्कार किया।
30) तूने वर्षों से उन्हें सहन किया और तू अपने नबियों द्वारा उन्हें चेतावनी देता रहा। फिर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया। इसलिए तूने उन्हें विदेशी राजाओं के हाथ दे दिया।
31) परन्तु तूने अपनी असीम दया के अनुरूप न तो उनका सर्वनाश किया और न उन्हें त्यागा ; क्योंकि तू एक दयालु और करुणामय ईश्वर है।
32) हमारे ईश्वर! महान्, शक्तिशाली और भीषण ईश्वर! तू अपना विधान बनाये रखता है, तू सत्यप्रतिज्ञ है। अब! उन कष्टों को नगण्य न समझ, जिन्हें अस्सूर के राजाओं के समय से आज तक, हमारे राजाओं, नेताओं, याजकों, नबियों और तेरी समस्त प्रजा को झेलना पड़ा।
33) जो कुछ हम पर बीता है, उसके विषय में तेरा व्यवहार न्यायसंगत था; क्योंकि तू सत्यप्रतिज्ञ है और हमने अपराध किया।
34) हमारे राजाओं, शासकों, याजकों और पूर्वजों ने संहिता का पालन नहीं किया और अपने को बारम्बार दी हुई आज्ञाओं और चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया।
35) यद्यपि वे अपने राज्य में, उस विशाल और उपजाऊ देश में रहते हुए, जिसे तूने उन्हें प्रदान किया, उस धन-सम्पत्ति का उपभोग करते रहे, जिसे तूने उन्हें दे दिया था, उन्होंने तेरी सेवा नहीं की और अपना विधर्मी आचरण नहीं छोड़ा।
36) देख, आज हम दास के रूप में रहते हैं- हम उसी देश में दास हैं, जिसे तूने हमारे पूर्वजों को दिया था, जिससे वे उसके फल और फ़सलें खायें।
37) उसकी भरपूर उपज उन राजाओं को मिलती है, जिनके अधीन तूने हमारे पापों के कारण हमें कर दिया है। वे अपनी इच्छा के अनुसार हमारे शरीर और हमारे पशुओं पर अधिकार जताते हैं। हम बड़े कष्ट में जीवन बिताते हैं।

अध्याय 10

1) इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने एक नयी प्रतिज्ञा लिपिबद्ध करने का निश्चय किया। हमारे नेता, हमारे लेवी और हमारे याजक उस पर अपनी मुहर लगायेंगे।
2) निम्नांकित लोगों ने उस पर अपनी-अपनी मुहर लगायीः हकल्या के पुत्र राज्यपाल ने नहेम्या ने, फिर सिदकीया,
3) सराया, अजर्या, यिरमया,
4) पशहूर, अमर्या, मलकीया,
5) हाट्टूश, शबन्या, मल्लूक,
6) हारिम, मरेमोत, ओबद्या,
7) दानिएल गिन्नतोन, बारूक,
8) मशुल्लाम अबीया, मिय्यामिन,
9) माज्या, बिलगाय और शमाया ने। ये याजक थे।
10) लेवियों में: अजन्या के पुत्र येशूआ ने; हेनादाद के वंशज बिन्नूई और कदमीएल ने ;
11) फिर उनके भाई-बन्धुओं, शबन्या, होदीया, कलीटा, पलाया, हानान,
12) मीका, रहोब, हशब्या,
13) जक्कूर, शेरेब्या, शबन्या,
14) होदीया, बानी और बनीनू ने।
15) जनता के नेताओं में: परओश ने, पहत-मोआब, एलाम, जत्तू, बानी,
16) बुन्नी, अजगाद, बेबय
17) अदोनीया, बिगवय, आदीन,
18) आटेर, हिजकीया, अज्जूर,
19) होदीया, हाशुम, बेसय,
20) हारीफ़, अनातोत, नेबय
21) मगपीआश, मशुल्लास, हेजीर,
22) मशेजबएल, सादोक, यद्दूआ,
23) पलट्या, हानान, अनाया,
24) होशेआ, हनन्या, हशूब,
25) हल्लोहेश, पिल्हा, शोबेक,
26) रहूम, हशबना, मासेया,
27) अहीया, हानान, आनान,
28) मल्लूक हारिम और बाना ने।
29) (२९-३०) अन्य लोगों ने अपने भाई-बन्धुओं और कुलीनों का अनुकरण किया, अर्थात् याजकों, लेवियों, द्वारपालों, गायकों, मन्दिर के सेवकों और उन सभी ने, जिन्होंने ईश्वर की संहिता का पालन करने के उद्देश्य से अपने आप को देश की अन्य जातियों से अलग रखा था और उनकी पत्नियों, पुत्र-पुत्रियों-सभी ने, जो समझ सकते थे। ''हम शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करते हैं कि हम ईश्वर के सेवक द्वारा दी हुई ईश्वर की संहिता के अनुसार चलेंगे और उस संहिता की सब आज्ञाओं, नियमों और आदेशों का सावधानी के साथ पालन करेंगे। हम से जो ऐसा न करे, वह अभिशप्त हो।
31) ''हम अपनी पुत्रियों का विवाह देश के विजातीय वर्गों में नहीं करेंगे और अपने पुत्रों के लिए उनकी कन्याएँ स्वीकार नहीं करेंगे।
32) यदि देश के लोग विश्राम-दिवस पर लेन-देन के लिए सामान और विभिन्न तरह के अनाज लायेंगे, तो हम वह उन से विश्रामदिवस या किसी पवित्र दिवस पर नहीं लेंगे। ''हम हर सातवें वर्ष खेती नहीं करेंगे और किसी प्रकार का ऋण चुकाने नहीं कहेंगे।
33) ''हम प्रति वर्ष अपने ईश्वर के मन्दिर की सेवा में एक तिहाई शेकेल देने की प्रतिज्ञा करते हैं
34) वह भेंट की रोटियों के लिए, दैनिक अन्न-बलियों और होम-बलियों के लिए, विश्राम-दिवसों, अमावस के दिनों, पर्व-दिवसों, चढ़ावों, इस्राएल की प्रायश्चित-बलियों के लिए और अपने ईश्वर के मन्दिर के सब कामों के लिए होगी।
35) हमने याजकों, लेवियों और जनता ने - चिट्ठी डालकर निश्चय किया कि हम में से प्रत्येक परिवार प्रति वर्ष किस समय अपने ईश्वर के मन्दिर के लिए लकड़ी लायेगा, जो प्रभु, अपने ईश्वर की वेदी पर जलायी जाये, जैसा कि संहिता में लिखा है।
36) ''हम प्रति वर्ष अपनी भूमि की पहली उपज और सब वृक्षों के प्रथम फल अपने प्रभु के मन्दिर को अर्पित करेंगे।
37) हम अपने पहलौठे पुत्र और सब पहलौठे बच्चे, बछड़े और भेड़ें ईश्वर के मन्दिर और उस में सेवा करने वाले याजकों को अर्पित करेंगे, जैसा कि संहिता में लिखा है।
38) हम अपने मैदे का, सब वृक्षों के फलों का, अंगूरी और तेल का प्रथम फल याजकों के लिए चन्दे के रूप में अपने ईश्वर के मन्दिर के भण्डारों में रखेंगे और लेवियों को अपनी फ़सलों का दशमांश देंगे। लेवी अपना वह दशमांश उन नगरों में लेंगे, जहाँ हम काम करते हैं।
39) जब लेवी अपना दशमांश लेंगे तो उन समय एक हारूनवंश्ी याजक उनके साथ रहेगा। लेवी अपने दशमांश का दसवाँ भाग हमारे ईश्वर के मन्दिर के लिए लेंगे और उसे ख़जाने में रखेंगे।
40) इस्राएली और लेवी अन्न, अंगूरी और तेल का चढ़ावा वहाँ दिया करेंगे, जहाँ पवित्र पात्र, सेवा करने वाले याजक, द्वारपाल और गायक रहते हैं। हम अपने ईश्वर के मन्दिर की उपेक्षा नहीं करेंगे।''

अध्याय 11

1) जनता के नेता येरुसालेम में बस गये। अन्य लोगों ने चिट्ठी डाल कर निश्चित किया कि प्रत्येक दसवाँ व्यक्ति पवित्र नगर येरुसालेम में बसेगा और शेष नौ अपने-अपने नगरों में।
2) लोगों ने उन सब को आशीर्वाद दिया, जिन्हें स्वेच्छापूर्वक येरुसालेम में बसना स्वीकार था।
3) प्रान्त के मुखिया, जो येरुसालेम में बस गये, ये हैं। (कुछ इस्राएली, याजक, लेवी और सुलेमान के सेवकों के वंशज अपने-अपने नगरों में, अपनी-अपनी भूमि पर निवास करते थे।)
4) यूदा और बेनयामीन के अन्य लोग येरुसालेम में निवास करते थे।) यूदावंशियों में : अताया था, जो उज्जीया का पुत्र था। यह उज्जीया जकार्या का पुत्र था। जकर्या अमर्या का, अमर्या शफ़ट्या का और शफ़ट्या महललएल का, जो पेरेस के वंशज थे।
5) फिर मासेया, जो बारूक का पुत्र था। वह बारूक कोलहोजे का, होलहोजे हजाया का, हजाया अदाया का, अदाया योयारीब का और योयारीब जकर्या का पुत्र था, जो शेला का वंशज था।
6) येरुसालेम में रहने वाले पेरेस के वंशजों की कुल संख्या चार सौ अड़सठ योद्धा थी।
7) बेनयामीन के वंशजों में ये थेः मशुल्लाम का पुत्र सल्लू। यह मशुल्लाम योएद का पुत्र था। योएद पदाया का, पदाया कोलाया का, कोलाया मासेया का, मासेया इत्तीएल का और इत्तीएल यशाया का पुत्र था।
8) फिर गब्बय और सल्लयसब मिला कर नौ सौ अट्ठाईस।
9) जिक्री का पुत्र योएल उनका अध्यक्ष था और हस्सनुआ का पुत्र यूदा नगर की देखरेख करने वालों में उनका सहायक था।
10) याजकों में ये थेः योयारीब का पुत्र यदाया, फिर याकीन
11) और ईश्वर के भवन का अध्यक्ष और हिलकीया का पुत्र सराया। यह मशुल्लाम का पुत्र था, मशुल्लाम सादोक का, सादोक मरायोत का और मरायोत अहीटूब का पुत्र था।
12) उनके साथ मन्दिर में सेवा करने वाले उनके भाई-बन्धु भी थे। इस प्रकार कुल आठ सौ बाईस पुरुष थे। फिर यदाया, जो यरोहाम का पुत्र था। यह यरोहाम पलल्या का पुत्र था, पलल्या असमी का, असमी जकर्या का, जकर्या पशहूर का
13) और पशहूर मलकीया का तथा उसके भाई-बन्धु-ये कुल दो सौ बयालीस घरानों के मुखिया थे। फिर अमशसय, जो अजरएल का पुत्र था। यह अजरएल अहजय का, अहजय मशिल्लेमोत का, मशिल्लेमोत इम्मेर का।
14) और उनके भाई-बन्धु, जो एक सौ अट्ठाईस वीर योद्धा थे। उनका निरीक्षक हग्गदोलीम का पुत्र जब्दीएल था।
15) लेवियों में ये थेः शमाया, जो हशूब का पुत्र था। यह हशूब अज्रीकाम का पुत्र था, अज्रीकाम हशब्या का और हशब्या बुन्नी का।
16) फिर शब्बतय और योजाबाद, जो उन लेवियों के मुखियाओं में थे, जो ईश्वर के मन्दिर के कायोर्ं का निरीक्षण करते थे।
17) फिर मीका का पुत्र, जब्दी का पौत्र और आसफ़ का प्रपौत्र मत्तन्या था, जो प्रार्थना में अगुआ था। बकबुक्या का स्थान अपने भाई-बन्धुओं में दूसरा था। उसके साथ शम्मूआ का पुत्र अबदा था। शम्मूआ यदूतून का और यदूतून गालाल का पुत्र था।
18) पवित्र नगर में कुल दो सौ चौरासी लेवी थे।
19) ये द्वारपाल थे : अक्कूब, टलमोन और इनके भाई-बन्धु, जो द्वारों पर पहरा देते थे-कुल एक सौ बहत्तर।
20) अन्य इस्राएली याजक और लेवी यूदा के सभी नगरों में अपने-अपने दायभाग की भूमि पर बसे थे।
21) मन्दिर के सेवक ओफ़ेल पर रहा करते थे। मन्दिर के सेवकों के अध्यक्ष सीहा और गिशपा थे।
22) बानी का पुत्र उज्जीया येरुसालेम में रहने वाले लेवियों का निरीक्षक था। बानी हशब्ब का पुत्र था। हशब्या मत्तन्या का और मत्तन्या मीका का पुत्र था। वह आसाफ़ के वंशजों में एक था, जो ईश्वर के मन्दिर में गायकों का काम करते थे।
23) उनके विषय में एक राजाज्ञा मिली, जिस में निर्धारित किया गया था कि उन्हें प्रतिदिन क्या गाना चाहिए।
24) यूदा के पुत्र सेरह के वंशज, मशेजबएल का पुुत्र पतह्या राजा की सेवा में नियुक्त जनता का प्रतिनिधि था।
25) कुछ यूदावंशी किर्यत-अरबा और उसके गाँवों में कुछ दीबोन और उसके गाँवों में, कुछ यकबसएल और उसके गँावों में,
26) कुछ येशूआ, मोलादा, बेत-पेलेट,
27) हसर-शुआल, बएर-शेबा और उसके गँावों में,
28) कुछ सिकलग, मकोना और उसके गाँवों में,
29) एनरिम्मोन, सोरआ, यरमूल,
30) जानोअह, अदुल्लाम और उसके गँावों में, लाकीश और उसके खेतों में, कुछ अजेका और उसके गांँवों में बस गये। वे बएर-शेबा से ले कर हिन्नोम घाटी तक फैले थे।
31) कुछ बेनयामीनवंशी गेबा में, मिकमास, अय्या, बेतेल और उसके गाँवों में,
32) अनातोत, नोब, अनन्या,
33) हासोर, रामा, गित्ताईम,
34) हादीद, सबोईम, नबल्लाट,
35) लोद, ओनो और कारीगरों की घाटी में रहते थे।
36) यूदावंशी लेवियों के कुछ दल बेनयामीन में बस गये थे।

अध्याय 12

1) ये वे याजक और लेवी हैं, जो अशलतीएल के पुत्र जरुबबाबेल और येशूआ के साथ लौट आये थे : सराया, यिरमया, एज्रा,
2) अमर्या, मल्लूक, हट्टूश,
3) शकन्या, रहूम, मरेमोत,
4) इद्दो, गिन्नतोई, अबीया,
5) मिय्यामिन, माद्या, बिलगा,
6) शमाया, योयारीब, यादाया,
7) सल्लू, आमोक, हिलकीया, मदाया। येशूआ के समय में यही याजकों और अपने भाई-बन्धुओं के नेता थे।
8) ये लेवी थेः येशूआ, बिन्नूई, कदमीएल, शेरेब्या, यूदा, मत्तन्या, जो अपने भाइयों के साथ स्तुतिगान का निर्देश करते थे
9) और उस समय बकबुक्या, उन्नी और उनके भाई उनके सामने खड़े रहा करते थे।
10) येशूआ योयाकीम का पिता था, योयाकीम एल्याशीब का पिता था, एल्याशीब योयादा का पिता था,
11) योयादा योनातान का पिता था और योनातान यद्दूआ का पिता था।
12) योयाकीम के समय याजकीय घरानों के मुखिया ये थे : सराया घराने का मराया, यिरमया का हनन्या,
13) एज्रा का मशुल्लाम, अमर्या का यहोयानान,
14) मल्लूक का योनातान, शबन्या का यूसुफ़,
15) हारिम का अदना, मरायोत का हेलकाय,
16) इद्दो का जकर्या, गिन्नतोन का मशुल्लाम,
17) अबीया का जिक्री, मिय्यानि का. . ., माद्या का पिलटाय,
18) बिलगा का शम्मूआ, शमाया का यहोनातान,
19) फिर योयारीब के घराने का मत्तनय, यदाया का उज्जी,
20) सल्लय का कल्लय, आमोक का एबेर,
21) हिलकीया का हशब्या, यदाया का नतनएल।
22) एल्याशीब, योयादा, योहानान और यद्दूआ के दिनों में लेवियों और याजकों के घरानों के मुखियाओं के नाम फ़ारस के राजा दारा के शासनकाल तक लिपिबद्ध किये गये।
23) एल्याशीब के पौत्र योहानान के समय तक लेवीवंशी घरानों के मुखियाओं के नाम इतिहास-ग्रन्थ में लिपिबद्ध किये गये।
24) ये लेवियों के मुखिया थे : हशब्या, शेरेब्या, येशूआ, बिन्नूई, कदमीएल और उनके भाई-बन्धु। वे ईश्वर-भक्त दाऊद द्वारा निर्धारित दलों में बँाट कर और आमने-सामने खड़ा हो कर स्तुति और धन्यवाद के भजन गाते थे।
25) मत्तन्या, बकबुक्या, ओबद्या, मशुल्लाम, टलमोन और अक्कूब द्वारपाल थे, जो दरवाजों के पास के भण्डारों पर पहरा देते थे।
26) ये येशूआ के पुत्र योसादाक के पौत्र योयाकीम के समय, राज्यपाल नहेम्या के समय और याजक तथा शास्त्री एज्रा के समय सेवा करते थे।
27) जब येरुसालेम की चारदीवारी के प्रतिष्ठान का समय आ गया, तो उस समय लेवियों को उनके सब स्थानों से ढूँढ़-ढूँढ़ कर येरुसालेम ले आया गया, जिससे मंजीरा सारंगी एवं सितार बजाते हुए और धन्यवाद के गीत गाते हुए आनन्द के साथ समारोह मनाया जाये।
28) येरुसालेम के आसपास के क्षेत्र से, नटोफ़ातियों के गाँवों से,
29) बेतगिलगाल, गेबा और अजमावेत के गाँवों से भी गायकों को एकत्र किया गया; क्योंकि गायक येरुसालेम में बस गये थे।
30) याजक और लेवियों ने अपने को पवित्र किया और इसके बाद उन्होंने लोगों, फाटकों और चारदीवारी की भी शुद्धि की।
31) इसके बाद मैंने यूदा के मुखियाओं को चारदीवारी के ऊपर भेजा और उनके साथ गायकों के दो विशाल दलों को। एक दल दीवार के ऊपर दाहिनी ओर, कूड़ा-फाटक तक गया।
32) होशाया यूदा के आधे मुखियाओं के साथ उसके पीछे चलता था।
33) अजर्या, एज्रा, मशुल्लाम, यूदा,
34) बेनयामीन, शमाया, यिरमया
35) और कुछ अन्य याजक तुरहियाँ बजा रहे थे। जकर्या (जिसके पूर्वज योनातान, शमाया, मत्तन्या, मीकाया, जक्कूर और आसाफ़ थे
36) और उसके भाई-बन्धु शमाया, अजरएल, मिललय, गिललय, मअय, नतनएल, यूदा और हनानी वे वाद्य बजा रहे थे, जिन्हें ईश्वर-भक्त दाऊद ने बनवा रखा था। शास्त्री एज्रा उनके आगे-आगे चल रहा था।
37) निर्झर-फाटक पर पहँुंच कर वे दाऊदनगर की सीढ़ियों से, जहाँ दीवार की चढ़ाई थी, सीधे चढ़े और दाऊद के महल के ऊपर से हो कर पूर्व में अवस्थित जल-फाटक पहुँचे।
38) दूसरा दल बायीं ओर गया। मैं आधे लोगों के साथ दीवार के ऊपर उसके पीछे-पीछे चलता था। यह दल भट्ठा-बुर्ज के सामने से हो कर चौड़ी दीवार तक पहुँचा।
39) वह एफ्रईम-फाटक, यशाना-फाटक, मत्स्यफाटक, हननएल-बुर्ज और हम्मेआ-बुर्ज से निकलते हुए भेड़- फाटक तक आया और निरीक्षण-द्वार पर जा कर रूका।
40) अब स्तुतिगान करने वाले दोनों दल ईश्वर के मन्दिर में अपने स्थान पर खड़े हो गये। मैं, मेरे साथ के आधे कुलीन लोग और
41) ये याजक अपनी तुरहियाँ लिये वहाँ थे : एल्याकीम, मासेया, मिनयामीन, मीकाया, एलयोएनय, जकर्या और हनन्या।
42) इनके अतिरिक्त मासेया, शमाया, एलआजार, उज्जी, यहोहानान, मलकीया, एलाम और एजेर वहाँ थे। दोनों दल यिजह के निर्देश पर गाते थे।
43) उन्होंने उस दिन उल्लसित हो कर महान् यज्ञ चढ़ाये; क्योंकि ईश्वर ने उन्हें बड़ा आनन्द प्रदान किया था। स्त्रियाँ और बच्चे भी आनन्द मनाते थे। येरुसालेम के आमोद-प्रमोद की ध्वनि दूर-दूर तक फैल गयी।
44) उस अवसर पर उन भण्डारों के निरीक्षकों की नियुक्ति की गयी, जिन में चढ़ावे, प्रथम फल, दशमांश और नगरों के आसपास की उपज से संहिता द्वारा निर्धारित याजकों और लेवियों के भाग रखे जाने वाले थे; क्योंकि यूदा के लोग मन्दिर में नियुक्त याजकों और लेवियों से प्रसन्न थे,
45) जो अपने ईश्वर की सेवा और शुद्धीकरण-विधि सम्पन्न करते थे। गायक और द्वारपाल भी दाऊद और सुलेमान के आदेश के अनुसार अपना-अपना निर्धारित कार्य करते थे ;
46) क्योंकि प्राचीन काल से, दाऊद और आसाफ़ के दिनों से, गायकों के अध्यक्ष नियुक्त किये गये थे और ईश्वर के आदर में स्तुति और धन्यवाद के गीत गाये जाते थे।
47) जरुबबाबेल और नेहम्या के समय सभी इस्राएली प्रतिदिन गायकों और द्वारपालों को उनका भाग देते थे और पवित्र चढ़ावों में से लेवियों का निर्धारित भाग अलग करते थे ; लेवी उन में से हारूनवंशी याजकों का भाग अलग करते थे।

अध्याय 13

1) उन्हीं दिनों लोगों को मूसा का ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया गया। उस में लिखा था कि अम्मोनी या मोआबी ईश्वर के समुदाय में सम्मिलित नहीं हो सकते;
2) क्योंकि उन्होंने इस्राएलियों को खाने-पीने के लिए कुछ नहीं दिया था, बल्कि मोआब ने उन्हें अभिशाप देने के लिए बिलआम को पैसा दिया था। किन्तु हमारे ईश्वर ने वह अभिशाप आशीर्वाद में बदल दिया।
3) जब लोगों ने यह आदेश सुना, तो उन्होंने सारे विजातीय लोगों को इस्राएल में से अलग कर दिया।
4) इसके पहले याजक एल्याशीब हमारे ईश्वर के मन्दिर के भण्डारों का प्रबन्धक नियुक्त किया गया था। वह टोबीयाह का निकट सम्बन्धी था
5) और उसने टोबीयाह के लिए एक बड़ा कमरा तैयार करवाया था। पहले इस में अन्न-बलि, लोबान, पात्र और लेवियों, गायकों और द्वारपालों के लिए निर्धारित किया गया अन्न, अंगूरी और तेल का दशमांश तथा याजकों के लिए सब चढ़ावे रखे जाते थे।
6) जब यह सब हुआ था, मैं येरुसालेम में नहीं था; क्योंकि बाबुल के राजा अर्तजर्कसीस के बत्तीसवें वर्ष में राजा के पास गया था। कुछ दिनों बाद मैंने राजा के यहाँ से जाने की आज्ञा माँगी।
7) मैं येरुसालेम लौटा। वहाँ मुझे एल्याशीब के कुकर्म का पता चलाः उसने ईश्वर के भवन में टोबीयाह के लिए एक कमरे का प्रबन्ध किया था।
8) मुझे यह बात बड़ी अप्रिय लगी। मैंने टोबीयाह का सामान उस कमरे के बाहर निकलवाया।
9) इसके बाद मैंने कमरों की शुद्धि करवायी और वहाँ फिर से ईश्वर के मन्दिर के पात्र, अन्न-बलियाँ और लोबान रखवाया।
10) मैंने यह भी सुना कि लेवियों को यथोचित भाग नहीं दिया गया था, इसलिए सेवा करने वाले लेवियों और गायकों में कई लोग अपने-अपने घर लौट गये थे।
11) मैंने पदाधिकारियों को इसके लिए डाँटा और उन से कहा, ''ईश्वर के मन्दिर की उपेक्षा क्यों की गयी?'' इसके बाद मैंने लेवियों को एकत्रित कर उनके पहले के स्थानों पर फिर से नियुक्त किया।
12) तब से यूदावासी अन्न, अंगूरी और तेल का दशमांश भण्डारों में देने लगे
13) और मैंने भण्डारों की देखरेख के लिए याजक शेलेम्या, सचिव सादोक और लेवी पदाया को नियुक्त किया और जक्कूर के पुत्र और मत्तन्या के पौत्र हानान को उनका सहायक बनाया। वे विश्वसनीय समझे जाते थे और उनका कर्तव्य यह था कि वे साथी भाई-बन्धुओं में सब कुछ बाँटें।
14) मेरे ईश्वर! मेरी इस बात पर ध्यान दे और वे सत्कार्य मत भुला, जिन्हें मैंने अपने ईश्वर के मन्दिर और उसकी सेवा के लिए किया।
15) उन दिनों मैंने यूदा में ऐसे लोग देखे, जो विश्राम-दिवस पर कोल्हू में अंगूर पेरते थे, अनाज के पूले खेत से लाते थे, अंगूरी, अंगूर, अंजीर और सब प्रकार के बोझ गधों पर लादते और विश्राम-दिवस पर येरुसालेम ले जाते थे। जब वे अपना सामान विश्राम-दिवस पर बेचते थे, तो मैंने उन्हें चेतावनी दी।
16) देश में रहने वाले तीरुस-निवासी मछली और अन्य सब प्रकार का सामान ला कर उन्हें विश्राम-दिवसों पर यूदावासियों को और येरुसालेम में बेचा करते।
17) मैंने यूदा के कुलीन लोगों को यह कहते हुए फटकारा, ''क्या आप लोग यह नहीं समझते हैं कि इस प्रकार विश्राम-दिवस को अपवित्र करते हुए आप कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं?
18) क्या आपके पूर्वजों ने भी ऐसा ही नहीं किया था और इसीलिए हमारे ईश्वर ने हम पर और इस नगर पर विपत्तियाँ ढाही थीं? क्या आप विश्राम-दिवस अपवित्र करने से फिर इस्राएल पर क्रोध भड़काना चाहते हैं?''
19) मैंने आज्ञा दी कि ज्यों ही विश्राम-दिवस के पूर्व अँधेरा होना शुरू हो, फाटक बन्द कर दिये जायें और केवल विश्राम-दिवस के बाद ही फिर खोले जायें। मैंने अपने लोगों में कुछ को फाटकों पर लगा दिया, जिससे विश्राम-दिवस पर कोई बोझ अन्दर न आ सके।
20) अब व्यापारियों और सब प्रकार का माल बेचने वालों ने एक-दो बार येरुसालेम के बाहर रात बितायी।
21) उन को चेतावनी देते हुए मैंने कहा, ''तुम लोग क्यों दीवार के बाहर रात बिताते हो? यदि तुम फिर ऐसा करोगे, तो मैं तुम्हें पकड़वाउँगा।'' इसके बाद में वे फिर विश्राम दिवस पर नहीं आये।
22) मैंने लेवियों को आज्ञा दी कि वे अपने को पवित्र करें और विश्राम-दिवस को पवित्र रखने के लिए फाटकों पर देखदेख करने आ जायें। मेरे ईश्वर! मेरे इस कार्य को न भुला और अपनी महान् सत्यप्रतिज्ञता के अनुरूप मुझ पर दया कर।
23) उन्हीं दिनों मैंने यह भी देखा कि यहूदियों ने अशदोदी, अम्मोनी और मोआबी स्त्रियों के साथ विवाह किया था।
24) उनकी सन्तानों में आधे अशदोदी या किसी अन्य जाति की भाषा बोलते थे। वे यहूदी भाषा नहीं बोल पाते।
25) मैंने उन को फटकारा और शापित किया, उन में कुछ को मारा-पीटा और उनके बाल नोच डाले। फिर मैंने उन से ईश्वर के नाम पर यह शपथ दिलायी कि तुम अपनी पुत्रियों का विवाह उन लोगों के पुत्रों से नहीं करोगे और न उनकी पुत्रियों का विवाह अपने या अपने पुत्रों के साथ करोगे।
26) क्या इस्राएल के राजा सुलेमान ने विदेशी स्त्रियों के कारण पाप नहीं किया? उस समय के बहुसंख्यक राष्ट्रों में कोई भी राजा उसके-जैसा नहीं था। वह अपने ईश्वर को प्रिय था और ईश्वर ने उसे सारे इस्राएल का राजा बनाया था। फिर भी विजातीय स्त्रियों ने उसे पाप करने के लिए बहकाया।
27) क्या अब हम तुम्हारे बारे में भी यही सुनेंगे कि तुम विजातीय स्त्रियों से विवाह कर इतने बड़े पाप करते हो और अपने ईश्वर के प्रति विश्वासघात करते हो?
28) महायाजक एल्याशीब के पुत्र योयादा के पुत्रों में एक होरोनी सनबल्लट का दामाद था। इसलिए मैंने उसे निर्वासित किया।
29) मेरे ईश्वर! ध्यान रखना कि उन लोगों ने याजकपद को दूषित किया और याजकों एवं लेवियों के कर्तव्यों का पालन नहीं किया।
30) इस प्रकार मैंने उन्हें हर प्रकार के विदेशी सम्पर्क से शुद्ध कराया और याजकों एवं लेवियों को अपने दलों के अनुसार उनके कर्तव्य पर नियुक्त किया।
31) मैंने निश्चित समय पर लकड़ियाँ पहुँचाने और प्रथम फल अर्पित करने का भी प्रबन्ध किया। मेरे ईश्वर! मेरे इस कार्य को न भुलो और मुझ पर दया कर।