1) यिरमियाह द्वारा घोषित अपनी वाणी पूरी करने के लिए प्रभु ने फ़ारस के राजा सीरुस को उसके शासनकाल के प्रथम वर्ष में प्रेरित किया कि वह अपने |
2) ''फारस के राजा सीरुस कहते हैं : प्रभु, स्वर्ग के ईश्वर ने मुझे पृथ्वी के सब राज्य प्रदान किये और उसने मुझे यहूदियों के येरुसालेम में एक मन्दिर |
3) ईश्वर उनके साथ रहे, जो तुम लोगों में उसकी प्रजा के सदस्य हैं! वे लोग येरुसालेम में रहने वाले ईश्वर, इस्राएल के ईश्वर, प्रभु का मन्दिर बनाने के लिए |
4) जहाँ कहीं कोई इस्राएली हो, उस को वहांँ के लोग चांँदी, सोना, सामान, पशुधन और येरुसालेम में रहने वाले ईश्वर के मन्दिर के लिए स्वेच्छित |
5) तब यूदा और बेनयामीन के परिवारों के अध्यक्ष, याजक और लेवी-वे सब लोग, जिन्हें ईश्वर से यह प्रेरणा मिली-येरुसालेम में रहने वाले प्रभु का मन्दिर |
6) उनके सभी पड़ोसी उन्हें चांँदी, सोना, सामान, पशुधन, बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुएंँ और स्वेच्छित उपहार दे कर उनकी हर प्रकार की सहायता करते थे। |
7) राजा सीरुस ने प्रभु के मन्दिर के वे पात्र निकलवा दिये, जिन्हें नबूकदनेजर ने येरुसालेम से छीन कर अपने देवों के मन्दिर में रख दिया था। |
8) फ़ारस के राजा सीरुस ने उन्हें कोषाध्यक्ष मित्रदात द्वारा निकलवाया, जिसने उन्हें गिन कर यूदा कुल के अध्यक्ष शेशबज्जार को दिया। |
9) उनकी संख्या इस प्रकार थी : सोने की तीस थालियांँ, चांँदी की एक हजार थालियाँं, उनतीस छुरियाँं, |
10) सोने के तीस पात्र, चांँदी के चार सौ दस पात्र और एक हजार अन्य वस्तुएँं। |
11) सोने-चाँंदी की सब प्रकार की वस्तुओं की संख्या कुल मिला कर पाँंच हजार चार सौ थी। शेशबज्जर उस समय यह सब अपने साथ ले गया, |
1) बाबुल का राजा नबूकदनेजर जिन लोगों को बन्दी बना कर बाबुल ले गया था, उन में देश के ये लोग निर्वासन से येरुसालेम और यूदा के अपने-अपने |
2) वे जरुबबाबेल, येशूआ, नहेम्या, सराया, रएलाया, मोरदकय, बिलशान, मिस्पार, बिगवय, रहूम और बाना के साथ लौट आये। इस्राएलियों की संख्या |
3) परओश के वंशजों में दो हजार एक सौ बहत्तर; |
4) शफ़टा के वंशजों में तीन सौ बहत्तर |
5) आरह के वंशजों में सात सौ पचहत्तर; |
6) पहत-मोआब, अर्थात् येशूआ और योआब के वंशजों में दो हजार आठ सौ बारह; |
7) एलाम के वंशजों में एक हजार दो सौ चौवन; |
8) जत्तू के वंशजों में नौ सौ पैंतालीस; |
9) जक्कय के वंशजों में नौ सात सौ आठ; |
10) बानी के वंशजों में छः सौ बयालीस; |
11) बेबय के वंशजों में छः सौ तेईस; |
12) अजगाद के वंशजों में एक हजार दो सौ बाईस; |
13) आदोनीकाम के वंशजों में छः सौ छियासठ; |
14) बिगवय के वंशजों दो हजार छप्पन; |
15) आदीन के वंशजों में चार सौ चौवन, |
16) हिजकीया से उत्पन्न आटेर के वंशजों में अट्ठानबे; |
17) बेसय के वंशजों में तीन सौ तेईस; |
18) योरा के वंशजों में एक सौ बारह; |
19) हाशुम के वंशजों में दो सौ तेईस; |
20) गिब्बार के वंशजों में पंचानबे; |
21) बेथलेहेम से एक सौ तेईस पुरुष; |
22) नटोफ़ा से छप्पन पुरुष; |
23) अनातोत से एक सौ अट्ठाईस पुरुष; |
24) बेत-असमावेत से बयालीस पुरुष; |
25) कियात-यआरीम, कफ़ीरा और बएरोत से सात सौ पैंतालीस पुरुष; |
26) रामा और गेबा से छः सौ इक्कीस पुरुष, |
27) मिकमास से एक सौ बाईस पुरुष; |
28) बेतेल और अय से दो सौ तेईस पुरुष; |
29) नेबो के वंशज बावन; |
30) मगबीश के वंशज एक सौ छप्पन; |
31) दूसरे एलाम के वंशज एक हजार दो सौ चौवन; |
32) हारिम के वंशज तीन सौ बीस; |
33) लोद, हादीद और आनो के पुरुष सात सौ पच्चीस; |
34) येरीख़ो से तीन सौ पैंतालीस पुरुष; |
35) सनाआ के वंशज तीन हजार छः सौ तीस। |
36) याजक : येशूआ के घराने के यदाया के वंशजों में नौ सौ तिहत्तर। |
37) इम्मेर के वंशजों में एक हजार बावन, |
38) पशहूर के वंशजों में एक हजार दो सौ सैंतालीस |
39) और हानिम के वंशजों में एक हजार सत्रह। |
40) लेवीः होदव्या के घराने के येशूआ और कदमीएल के वंशजों में चौहत्तर। |
41) गायकः आसाफ़ के वंशजों में एक सौ अट्ठाईस। |
42) द्वारपालः कुल एक सौ उनतालीस, जो शल्लूम, आटेर, टलमोन, अक्कूब, हटीटा और शोबाय के वंशजों में थे। |
43) मन्दिर के सेवकः सीहा के वंशज, हसूफ़ा के वंशज, टब्बाओत के वंशज, |
44) केरोस के वंशज, सीअहा के वंशज, पादोन के वंशज, |
45) लबाना के वंशज, हगाबा के वंशज, अक्कूब के वंशज, |
46) हागाब के वंशज, शमलय के वंशज, हानान के वंशज, |
47) गिद्देल के वंशज, गहर के वंशज, रआया के वंशज, |
48) रसीन के वंशज, नकोदा के वंशज, गज्जाम के वंशज, |
49) उज्जा क़े वंशज, पसेअह के वंशज, बेसय के वंशज, |
50) असना के वंशज, मऊनियों के वंशज, नफ़ीसियों के वंशज, |
51) बकबूक के वंशज, हकफ़ा के वंशज, हरहूर के वंशज, |
52) बसलूत के वंशज, महीदा के वंशज, हर्शा के वंशज, |
53) बरकोस के वंशज, सीसरा के वंशज, तेमह के वंशज, |
54) नसीअह के वंशज और हटीफ़ा के वंशज। |
55) सुलेमान के सेवकों के वंशजः सोटय के वंशज, सोफ़ेरत के वंशज, परूदा के वंशज, |
56) याला के वंशज, दरकोन के वंशज, गिद्देल के वंशज, |
57) शफ़टा के वंशज, हट्टील के वंशज, पोकेरेत-हस्सबायीम के वंशज और आमी के वंशज। |
58) मन्दिर के सेवकों और सुलेमान के सेवकों के वंशजों की कुल संख्या तीन सौ बानबे थी। |
59) निम्नांकित लोग, जो तेल-मेलह, तेल-हर्शा, करूब, उद्दान और इम्मेर के थे, यह नहीं बता सकते थे कि उनका घराना या उनका वंश इस्राएल का था |
60) दलाया के, टोबीयाह के और नकोदा के वंशजों में कुल छः सौ बावन। फिर याजक |
61) हबाया के वंशज, हक्कोस के वंशज और बरजिल्लय के वंशज (उसने गिलआद के निवासी बरजिल्लय की एक कन्या के साथ विवाह किया था और |
62) वे वंशावलियों में अपने-अपने नाम की खोज करते थे और उन्हें न पाने के कारण याजकपद के लिए अयोग्य क़रार कर दिये गये थे। |
63) राज्यपाल ने उन से कहा कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम के द्वारा जाँचने वाला कोई याजक न मिले, तब तक तुम परमपवित्र भोजन नहीं खा सकोगे। |
64) सारे समुदाय की सम्मिलित संख्या बयालीस हजार तीन सौ साठ थी। |
65) इसके अतिरिक्त उनके दास-दासियाँ भी थे, जिनकी संख्या सात हजार तीन सौ सैंतीस थी। उनके साथ दो सौ गायक-गायिकाएँ भी थे |
66) और सात सौ छत्तीस घोडे, दो सौ पैंतालीस खच्चर, |
67) चार सौ पैंतीस ऊँट और छः हजार सात सौ बीस गधे। |
68) येरुसालेम में प्रभु के मन्दिर के पास पहँुच कर घरानों के कुछ मुखिया प्रभु के मन्दिर के पुनर्निर्माण के लिए स्वेच्छित चढ़ावे अर्पित करते थे। |
69) अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार उन्होंने निर्माण-कोष के लिए इकसठ हजार सोने की अशर्फियाँ, पाँच हजार चाँदी के सिक्के और एक सौ |
70) याजक, लेवी और अन्य कूछ लोग येरुसालेम में बस गये। गयाक, द्वारपाल, मन्दिर के सेवक और अन्य सब इस्राएली अपने-अपने नगर लौट गये। |
1) जब सातवांँ महीना आया और इस्राएली अपने-अपने नगरों में बस गये, तो लोग येरुसालेम में इकट्ठे हुए। |
2) योसादाक का पुत्र येशूआ और उसके भाई-बन्धु याजक तथा शअलतीएल के पुत्र जरुबबाबेल और उसके भाई-बन्धु ईश्वर की वेदी बनाने लगे, जिससे वे |
3) उन्होंने वेदी उसी स्थान पर बनायी, जहाँं वह पहले थी, यद्यपि वे आसपास के लोगों से डरते थे। उन्होंने उस पर प्रभु को प्रातः और सन्ध्या की |
4) उन्होंने संहिता के अनुसार शिविर-पर्व मनाया और प्रतिदिन निर्धारित होम-बलियाँं चढ़ायीं। |
5) इसके बाद उन्होंने नियमित होम-बलियांँ, अमावस और प्रभु के सब निर्धारित पर्वों के लिए बलियांँ चढ़ायीं और प्रभु को स्वेच्छित चढ़ावे अर्पित किये। |
6) उन्होंने सातवें महीने के पहले दिन प्रभु को होम-बलियांँ चढ़ाना आरम्भ किया, यद्यपि अभी तक प्रभु के मन्दिर की नींव नहीं डाली गयी थी। |
7) तब शिल्पकारों और बढ़इयों को पैसा दिया गया और सीदोन एवं तीरुस के लोगों को खाने-पीने की सामग्री और तेल दिया गया, जिससे वे देवदार की |
8) येरुसालेम में ईश्वर के मन्दिर के पास पहुंँचने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने में, शअलतीएल के पुत्र जरुबबाबेल और योसादाक के पुत्र येशूआ और उसके |
9) येशूआ, उसके पुत्र और भाई-बन्धु तथा कदमीएल और उसके पुत्र, जो यूदावंशी थे, मिल कर ईश्वर के मन्दिर के कारीगरों के कार्यों की देखरेख करते थे। |
10) जब कारीगरों ने प्रभु के मन्दिर की नींव डाली, तो वहांँ याजक अपने याजकीय वस्त्र पहने और तुरहियाँं लिये तथा लेवी आसाफ़ के वंशज मंजीरे लिये |
11) वे एक दूसरे को उत्तर-प्रत्युत्तर देते हुए प्रभु की स्तुति और धन्यवाद का गीत गाते थेः ''क्योंकि वह भला है; क्योंकि इस्राएल के लिए उसकी |
12) परन्तु याजकों, लेवियों और घरानों के मुखियाओं में से बहुत-से लोग, जो बूढ़े हो चले थे और पुराना मन्दिर देख चुके थे, जब उनकी आंँखों के सामने |
13) इस प्रकार जयकार और रोने की आवाज में किसी को भेद नहीं जान पड़ सकता था, क्योंकि जनता ऊँंचे स्वर में जयकार करती थी और उसकी ध्वनि |
1) जब यूदा और बेनयामीन के विरोधियों ने यह सुना कि लोग निर्वासन से लौट कर प्रभु, इस्राएल के ईश्वर के नाम पर मन्दिर बना रहे हैं, |
2) तो उन्होंने जरूबबाबेल और घरानों के मुखियाओं के पास जा कर उन से यह कहा, ''आपके मन्दिर-निर्माण में हम लोग भी योग देना चाहते हैं; क्योंकि |
3) परन्तु जरूबबाबेल, येशूआ और शेष इस्राएली घरानों के मुखियाओं ने उन्हें उत्तर दिया, ''यह नहीं हो सकता कि हम तुम्हारे सहयोग से अपने ईश्वर का |
4) तब देश के निवासी यूदा के लोगों को निराश करने और निर्माण-कार्य आगे बढ़ाने से डराते थे। |
5) वे प्रतिष्ठित लोगों को घूस देते थे, जिससे वे उनका विरोध करें और उनके निर्माण-कार्य में बाधाएँ डालें। फ़ारस के राजा सीरूस के पूरे शासनकाल से ले |
6) जर्कसीस के शासनकाल में, उसके शासन के प्रारम्भ में ही, उन्होंने यूदा और येरुसालेम के निवासियों के विरुद्ध एक अभियोग-पत्र लिखा। |
7) अर्तजर्कसीस के शासनकाल में बिशलाम, मित्रदात, टाबएल और उसके अन्य साथी पदाधिकारियों ने फ़ारस के राजा अर्तजर्कसीस को पत्र लिखा, जो |
8) राज्यपाल रहूम और सचिव शिमशय ने येरुसालेम के विरुद्ध अर्तजर्कसीस को यह पत्र लिखाः |
9) ÷÷राज्यपाल रहूम, सचिव शिमशय और उनके साथी, जो दीन, अफ़रसथ, तरपेल, अफ़रस, एरेक, बाबुल, सूसा, देहा और एलाम में रहते हैं, |
10) तथा वे अन्य लोग, जिन्हें महान् और गौरवशाली ओसनप्पर ने निर्वासित किया और समारिया के नगरों में और नदी के उस पार के देशों में बसाया''- |
11) उन्होंने जो पत्र भेजा, इसकी प्रतिलिपि इस प्रकार है : ÷÷अर्तजर्कसीस राजा के नाम-नदी के उस पार के लोगों, आपके दासों का प्रणाम। |
12) राजा को विदित हो कि जो यहूदी आपके यहांँ से आये हैं, वे हमारे पास येरुसालेम में इस उद्देश्य से आये हैं, कि वे उस विद्रोही और दुष्ट नगर का |
13) अब राजा को यह मालूम हो कि यदि इस नगर का पुनर्निर्माण हुआ और इसकी चार-दीवारी फिर से उठायी गयी, तो वे लोग उपहार, कर या चुंगी नहीं |
14) हम, जो राजा का नमक खाते हैं, राजा का अपमान नहीं देख सकते। इसलिए हम राजा को इसकी सूचना दे रहे हैं। |
15) आपके पूर्वजों के इतिहास-ग्रन्थ में खोज करने पर आप को पता चलेगा कि यह नगर एक विद्रोही नगर रहा है, जिसने राजाओं और प्रान्तों को हानि |
16) हम राजा को यह सूचना दे रहे हैं कि यदि इस नगर का पुनर्निर्माण किया गया और उसकी चारदीवारी फिर से उठायी गयी, तो आपके हाथ में नदी के |
17) राजा ने उत्तर भेजा, ''राज्यपाल रहूम, सचिव शिमशय, समारिया और नदी के उस पार रहने वाले उनके अन्य साथी पदाधिकारियों को मेरा नमस्कार। |
18) आप लोगों ने हमारे पास जो पत्र भेजा है, वह मेरे सामने पढ़ कर सुनाया गया। |
19) मेरे आदेश पर जांँच करने से पता लगा कि यह नगर प्राचीन काल से ही राजाओं से विद्रोह करता आ रहा है और वहांँ विद्रोह और राजद्रोह पनपता |
20) बड़े-बड़े राजाओं ने येरुसालेम पर शासन किया और नदी के उस पार के सारे प्रदेश पर उनका अधिकार रहा और उन्हें उपहार, कर और चुंँगी प्राप्त |
21) अब आप लोग उन लोगों को काम बन्द करने का आदेश दें और जब तक मेरी आज्ञा न हो, तब तक नगर का पुनर्निर्माण न हो। |
22) आप इस मामले में असावधानी नहीं करें, जिससे राजा को हानि न हो।'' |
23) जैसे ही राजा अर्तजर्कसीस के पत्र की प्रतिलिपि रहूम, सचिव शिमशय और उनके साथियों को पढ़ कर सुनायी गयी, उन्होंने तुरन्त येरुसालेम के |
24) इस प्रकार ईश्वर के मन्दिर का निर्माण कार्य बन्द कर दिया गया और वह फ़ारस के राजा दारा के शासनकाल के दूसरे वर्ष तक बन्द पड़ा रहा। |
1) जब नबी हग्गय और इद्दो के पुत्र जकर्या ईश्वर की प्रेरणा से यूदा और येरुसालेम के यहूदियों को ईश्वर के नाम पर भविष्यवाणी सुनाने लगे, |
2) तो शअलतीएल का पुत्र जरूबबाबेल और योसादाक के पुत्र येशूआ ने येरुसालेम में ईश्वर के मन्दिर का पुनर्निर्माण करना प्रारम्भ किया। ईश्वर के नबी |
3) उस समय नदी के उस पार के प्रदेश का क्षत्रप तत्तनय, शतरबोजनय और उनके साथी उनके पास आये और उन से पूछने लगे, ''आप को इस मन्दिर |
4) उन्होंने यह भी पूछा, ''इस भवन का निर्माण करने वाले व्यक्तियों के नाम क्या हैं?'' |
5) परन्तु यहूदियों के नेताओं पर प्रभु की कृपादृष्टि थी; इसलिए जब तक दारा की आज्ञा न मिले और क्षत्रप लिखित रूप में उन्हें कोई आज्ञा न दे, तब तक |
6) जो पत्र नदी के उस पार के क्षत्रप तत्तनय, शतर-बोजनय और उनके साथी पदाधिकारियों ने राजा दारा को लिखा था, इसकी प्रतिलिपि इस प्रकार है। |
7) उन्होंने राजा को यह प्रतिवेदन भेजाः ''राजा दारा को हार्दिक प्रणाम। |
8) राजा को विदित हो कि हम यूदा प्रान्त में महान् ईश्वर के मन्दिर गये। बड़े-बड़े पत्थरों से उसका निर्माण हो रहा है और उसकी दीवारें लकड़ी से मढ़ी जा |
9) हमने उनके नेताओं से यह कहते हुए पूछा, 'आप को यह मन्दिर बनाने और उसकी दीवारें उठाने की आज्ञा किसने दी है?' |
10) हमने उनके नाम भी पूछे, जिससे हम उनके नेताओं के नाम लिख कर आप को सूचित कर सकें। |
11) ''उन्होंने हमें यह उत्तर दिया कि हम स्वर्ग और पृथ्वी के ईश्वर के सेवक हैं। हम इस मन्दिर का पुनर्निर्माण कर रहे हैं, जो बहुत समय पहले बनाया गया |
12) लेकिन जब हमारे पूर्वजों ने स्वर्ग के ईश्वर का क्रोध भड़काया, तो उसने उन्हें बाबुल के राजा खल्दैयी नबूकदनेजर के हाथ कर दिया। उसने इस मन्दिर |
13) लेकिन बाबुल के राजा सीरुस ने, अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष, ईश्वर के इस मन्दिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया। |
14) इसके अतिरिक्त उन्होंने ईश्वर के मन्दिर की सोने और चांँदी की वस्तुएंँ, जिन्हें नबूकदनेजर ने येरुसालेम के मन्दिर से निकलवा कर बाबुल के |
15) यह कहते हुए दीं, 'ये वस्तुएँं ले जा कर येरुसालेम के मन्दिर में रखवाओ और ईश्वर का मन्दिर अपने पहले स्थान पर ही फिर से बनवाओ'। |
16) इसके बाद वही शेशबज्जर येरुसालेम में ईश्वर के मन्दिर की नींव डालने आया है। उस समय से आज तक यह निर्र्माण-कार्य हो रहा है, किन्तु अब |
17) इसीलिए यदि राजा ठीक समझें, तो बाबुल के राजकीय पुरालेखागार में इसकी खोज की जाये कि येरुसालेम में ईश्वर के इस मन्दिर के निर्माण की आज्ञा |
1) राजा दारा की आज्ञा के अनुसार बाबुल के ख़जाने के अभिलेखागार में खोज की गयी |
2) और मेदिया प्रान्त के एकबतना के गढ़ में एक लेख मिला, जिस में यह लिखा हुआ थाः |
3) ''स्मरण-पत्र : राजा सीरुस ने अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष येरुसालेम में ईश्वर के मन्दिर के सम्बन्ध में यह राजाज्ञा निकाली। वह मन्दिर उस स्थान |
4) गढ़े पत्थरों की तीन परतें हों और फिर नई लकड़ी की एक परत। इनका ख़र्च राजकीय कोष से दिया जाये। |
5) ईश्वर के मन्दिर की सोने-चांँदी की वे वस्तुएंँ वापस दी जायें, जिन्हें नबूकदनेजर येरुसालेम के मन्दिर से बाबुल ले आया था। वे येरुसालेम के मन्दिर |
6) ''इसलिए नदी के उस पार के क्षत्रप तत्तनय, शतर-बोजनय और उनके साथी पदाधिकारी-आप इस कार्य से दूर रहें। |
7) यहूदियों के राज्यपाल और उनके नेताओं को ईश्वर का वह मन्दिर बनाने दें। वे उसे उसके मूल स्थान पर फिर बनायें। |
8) ईश्वर के उस मन्दिर का निर्माण करने वाले यहूदी नेताओं के साथ आपके व्यवहार के विषय में मेरी राजाज्ञा इस प्रकार हैः राजकीय सम्पत्ति से-अर्थात् |
9) स्वर्ग के ईश्वर की होम-बलियों के लिए प्रतिदिन आवश्यक, बछड़े, मेढ़े और मेमने, फिर येरुसालेम के याजकों के निर्देश के अनुसार गेहँू, नमक, अंगूरी |
10) जिससे वे स्वर्ग के ईश्वर को सुगन्धित बलि चढ़ा सकें और राजा और उसके पुत्रों की जीवन-रक्षा के लिए प्रार्थना करें। |
11) मेरी आज्ञा यह भी है कि जो कोई इस राजाज्ञा का उल्लंघन करे, उसके घर से एक बल्ली ले कर खड़ा किया जाये और वह उस पर लटका दिया जाये |
12) यदि कोई राजा या प्रजा इस राजाज्ञा में परिवर्तन करे या येरुसालेम में इस मन्दिर का विनाश करे, तो वह ईश्वर, जिसने वहाँ अपना नाम प्रतिष्ठित |
13) तब नदी के उस पार के क्षत्रप तत्तनय, शतर-बोजनय और उनके साथी पदाधिकारियों ने राजा की लिखित आज्ञा का पूरा-पूरा पालन किया। |
14) नबी हग्गय और इद्दो के पुत्र नबी जकर्या की प्रेरणा से यहूदी नेता मन्दिर के निर्माण-कार्य को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाते रहे। उन्होंने वह कार्य पूरा |
15) राजा दारा के छठे वर्ष, अदार महीने के तीसरे दिन, मन्दिर का निर्माण-कार्य पूरा हो गया। |
16) इस्राएलियों-याजकों, लेवियों तथा अन्य लौटे हुए निर्वासितों-ने आनन्द के साथ ईश्वर के मन्दिर का प्रतिष्ठान-पर्व मनाया। |
17) ईश्वर के इस मन्दिर के प्रतिष्ठान के समय उन्होंने एक सौ सांँड़ों, दो सौ मेढ़ों, चार सौ मेमनों और इस्राएल के वंशों की संख्या के अनुसार समस्त |
18) इसके बाद उन्होंने येरुसालेम में ईश्वर के मन्दिर के लिए याजकों और लेवियों को अपने दलों में विभाजित किया, जैसा कि मूसा के ग्रन्थ में लिखा हुआ |
19) लौटे हए निर्वासितों ने प्रथम महीने के चौदहवें दिन पास्का-पर्व मनाया। |
20) याजकों और लेवियों ने शुद्धीकरण की रीतियों को पूरा किया। वे सब-के-सब शुद्ध हो गये। लेवियों ने लौटे हुए निर्वासितों, अपने साथी याजकों और अपने |
21) निर्वासन से लौटे इस्राएलियों ने उन सब लोगों के साथ पास्का का मेमना खाया, जो देश के गैर-यहूदियों की अशुद्धता छोड़ कर प्रभु, इस्राएल के ईश्वर |
22) इसके बाद उन्होंने सात दिन तक उल्लास के साथ बेख़मीर रोटियों का पर्व मनाया; क्योंकि प्रभु ने उन्हें आनन्दित किया था और उनके विषय में |
1) इसके बाद, फ़ारस के राजा अर्तजर्कसीस के शासनकाल में, एज्रा आया। एज्रा सराया का पुत्र था, सराया अजर्या का, अजर्या हिलकीया का, |
2) हिलकीया शल्लूम का, शल्लूम सादोक का, सादोक अहीटूब का, |
3) अहीटूब अमर्या का, अमर्या अजर्या का, अजर्या मरायोत का, |
4) मरायोत जरह्या का, जरह्या उज्जी का, उज्जी बुक्की का। |
5) बुक्की अबीशूआ का, अबीशूआ पीनहास का, पीनहास एलआजर का और एलआजर महायाजक हारून का पुत्र था। |
6) वही एजा बाबुल से लौट कर आया। वह शास्त्री था। वह मूसा की संहिता का विशेषज्ञ था, जिसे प्रभु, इस्राएल के ईश्वर ने दिया था। प्रभु, उसका ईश्वर |
7) उस समय, राजा अर्तजर्कसीस के सातवें वर्ष, अनेक इस्राएली, याजक, लेवी, गायक, द्वारपाल और मन्दिर के सेवक येरुसालेम आये। |
8) एज्रा राजा के सातवें वर्ष के पांँचवें महीने येरुसालेम आया। |
9) वह पहले महीने के पहले दिन बाबुल से चला गया और पांँचवें महीने के पहले दिन येरुसालेम पहुँचा। उसके ईश्वर की कृपा उसकी सहायता करती थी; |
10) क्योंकि एज्रा ने प्रभु की संहिता के अध्ययन में, उसके पालन और इस्राएल की विधियों और रीति-रिवाजों की शिक्षा में मन लगाया था। |
11) जो पत्र राजा अर्तजर्कसीस ने याजक, शास्त्री और प्रभु की आज्ञाओं तथा इस्राएल की विधियों की पण्डित एज्रा को दिया था, उसकी प्रतिलिपि इस |
12) ''याजक और स्वर्ग के ईश्वर की संहिता के ज्ञाता एज्रा के नाम राजाधिराज अर्तजर्कसीस का पत्र। अभिवादन। |
13) मेरा आदेश है कि मेरे राज्य के इस्राएली लोगों, उनके याजकों और लेवियों में ऐसा प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारे साथ जा सकता है, जो येरुसालेम जाने को |
14) तुम राजा और उसके सात मन्त्रियों की ओर से इसलिए भेजे जा रहे हो कि तुम अपने ईश्वर की संहिता के पालन के विषय में यूदा और येरुसालेम में |
15) और राजा तथा उसके मन्त्री येरुसालेम में निवास करने वाले ईश्वर को जो सोना-चांँदी स्वेच्छा से चढ़ाते हैं |
16) और वह चांँदी, सोना, जो तुम्हें बाबुल के प्रान्त भर से मिलेगा तथा वे चढ़ावे, जो जनता और याजक येरुसालेम के अपने ईश्वर के मन्दिर में स्वेच्छा |
17) तुम उस द्रव्य से बछड़े, मेढ़े, मेमने और उनके साथ की अन्न-बलियाँं और अर्घ ख़रीदोगे और येरुसालेम में अपने ईश्वर के मन्दिर में चढ़ाओगे। |
18) तुम्हें और तुम्हारे भाई-बन्धुओं को जैसा उचित लगे, शेष चाँदी और सोने का उपयोग अपने ईश्वर की इच्छा के अनुसार कर सकते हो। |
19) जो वस्तुएंँ तुम्हें अपने ईश्वर के मन्दिर की सेवा के लिए दी जाएंँगी, उन्हें तुम येरुसालेम के ईश्वर के सामने रखोगे। |
20) तुम राजा के कोषागार से वह सब ख़र्च करोगे, जो तुम्हारे ईश्वर के मन्दिर के उपयोग के लिए तुम्हें आवश्यक लगे। |
21) ''मैं, राजा अर्तजर्कसीस, नदी के उस पार के ख़जांचियों को यह आज्ञा देता हूंँ कि याजक और स्वर्ग के ईश्वर की संहिता का शास्त्री एज्रा तुम |
22) अर्थात् एक सौ मन चाँंदी, पैंतालीस हजार लिटर गेहँूं, साढे चार हजार लिटर अंगूरी, साढ़े चार हजार लिटर तेल और बिना माप-तौल के |
23) स्वर्ग का ईश्वर स्वर्ग के ईश्वर के मन्दिर के लिए जो भी आज्ञा दे, उसक पालन तुरन्त किया जाये। कहीं ऐसा न हो कि राजा का शासन और उसके पुत्र |
24) हम तुम्हें यह आदेश भी देते हैं कि किसी याजक, लेवी, गायक, द्वारपाल, मन्दिर के सेवक या ईश्वर के मन्दिर के किसी अन्य कर्मचारी से कर, उपहार |
25) ''और तुम, एज्रा! तुम अपनी ईश्वर-प्रदत्त बुद्धि के अनुसार न्यायाधीशों और पदाधिकारियों को नियुक्त करोगे, जो नदी के उस पार के सब निवासियों |
26) जो व्यक्ति तुम्हारे ईश्वर की संहिता और राजा की विधि का पूरा-पूरा पालन नहीं करे, उसे दण्ड दिया जाये-या तो प्राणदण्ड या निर्वासन या जुर्माना या |
27) प्रभु, हमारे पूर्वजों का ईश्वर धन्य है! जिसने राजा के मन में येरुसालेम में प्रभु के मन्दिर का सम्मान करने का विचार उत्पन्न किया है |
28) और मुझे राजा और उसके मन्त्रियों तथा राजा के सभी शक्तिशाली पदाधिकारियों का कृपापात्र बनाया है। प्रभु, मेरा ईश्वर मेरे साथ रहा। तभी तो मैं |
1) राजा अर्तजर्कसीस के शासनकाल में मेरे साथ-साथ बाबुल से प्रस्थान करने वाले लोगों और उनके घरानों के मुखियाओं की सूची इस प्रकार है। |
2) पीनहास के वंशजों में गेरशोम, ईतामार के वंशजों में दानिएल; दाऊद के वंशजों में हट्टूश, |
3) जो शकन्या के पुत्रों में था। परओश के वंशजों में जकर्या, जिसके साथ डेढ़ सौ नामांकित पुरुष थे, |
4) पहत-मोआब के वंशजों में जरह्या का पुत्र एल्योएनय और उसके साथ दो सौ पुरुष। |
5) जतू के वंशजों में यहजीएल का पुत्र शकन्या और उसके ेसाथ तीन सौ पुरुष। |
6) आदीन के वंशजों में योनातान का पुत्र एबेद और उसके साथ पचास पुरुष। |
7) एलाम के वंशजों में अतल्या का पुत्र यशाया और उसके साथ सत्तर पुरुष। |
8) शफ़ट के वंशजों में मीकाएल का पुत्र जबद्या और उसके साथ अस्सी पुरुष। |
9) योआब के वंशजों में यहीएल का पुत्र ओबद्या और उसके साथ दो सौ अठारह पुरुष। |
10) बानी के वंशजों में योसिफ्या का पुत्र शलोमीत और उसके साथ एक सौ साठ पुरुष। |
11) बेबाय के वंशजों में बेबाय का पुत्र जकार्या और उसके साथ अट्ठाईस पुरुष। |
12) अजगाद के वंशजों में हक्काटान का पुत्र योहानान और उसके साथ एक सौ दस पुरुष। |
13) अन्त में अदोनीकाम के वंशजों में: एलीफेट, येईएल, शमाया और उसके साथ साठ पुरुष। |
14) बिगवय के वंशजों में ऊतय और जब्बूद तथा उनके साथ सत्तर पुरुष। |
15) मैंने उन को उस नदी के तट पर एकत्रित किया, जो अहवा की ओर बहती है। वहांँ हम तीन दिन पड़े रहे। जब मैंने लोगों और याजकों का निरीक्षण |
16) इसलिए मैंने एलीएजर, अरीएल, शमाया, एल्नातान, यारीब, एल्नातान, नातान, जकर्या और मशुलाम को बुलाया, जो मुखिया थे और योयारीब एवं |
17) औन उन को कासिफ्या के इद्दो नामक अध्यक्ष के पास भेजा। मैंने इद्दो और उसके भाई-बन्धुओं तथा मन्दिर के सेवकों को, जो कासिफ्या में रहते |
18) कृपालु ईश्वर हमारे साथ था, इसलिए वे शेरेब्या और उसके पुत्रों और भाइयों को-कुल मिलाकर अठारह व्यक्तियों को हमारे पास ले आये। शेरेब्या बुद्धिमान |
19) फिर वे मरारी वंशज हशब्या एवं याशाया और उनके भाइयों और पुत्रों को-कुल मिलाकर बीस व्यक्तियों को ले आये। |
20) इनके अतिरिक्त दाऊद और उसके पदाधिकारियों द्वारा लेवियों की सहायता के लिए नियुक्त मन्दिर के सेवकों के वंशजों में से एक सौ बीस व्यक्तियों को; |
21) वहाँ अहवा नदी के पास मैंने एक उपवास की घोषणा की, जिससे हम अपने ईश्वर के सामने दीन बनें और उस से प्रार्थना करें कि हमारी और हमारे |
22) यात्रा में शत्रुओं से अपनी रक्षा के लिए राजा से आदमी और घुड़सवार माँगने में मुझे संकोच था; क्योंकि हमने राजा से कहा था कि हमारे ईश्वर का |
23) इसलिए यह वरदान मांँगने के लिए हमने उपवास घोषित किया और ईश्वर ने हमारी यह प्रार्थना स्वीकार भी कर ली। |
24) इसके बाद मैंने मुख्य याजकों में से बारह को, अर्थात् शेरेब्या, हशब्या और उनके साथ उनके भाइयों में दस अन्य को अलग कर लिया। |
25) मैंने उन्हें वह चांँदी, सेना और अन्य वस्तुएंँ सौंपी, जिन्हें राजा, उसके मन्त्रियों और पदाधिकारियों एवं वहांँ के रहने वाले इस्राएलियों ने ईश्वर के |
26) मैंने साढ़े छः सौ मन चाँदी, एक सौ मन चांँदी की वस्तुएंँ, फिर एक सौ मन सोना, |
27) सोने के बीस पात्र, जिनका मूल्य एक हजार अशर्फ़ियांँ था और सोने की तरह मूल्यवान्, सुन्दर चमकीले कांँसे की दो वस्तुएँं-यह सब तौल कर |
28) तब मैंने उन से कहा, ''तुम प्रभु की सेवा में समर्पित हो। ये वस्तुएँं पवित्र हैं। यह चाँंदी-सोना प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर को स्वेच्छा से चढ़ाया |
29) जब तक तुम इन्हें येरुसालेम में ईश्वर के मन्दिर के कोषागार में याजकों के प्रधानों, लेवियों और इस्राएली घरानों के मुखियाओं के सामने तौल कर नहीं |
30) इस पर याजकों और लेवियों ने चांँदी, सोना और अन्य तौली हुई वस्तुओं को येरुसालेम के ईश्वर के मन्दिर ले जाने के लिए ले लिया। |
31) हमने पहले महीने के बारहवें दिन अहवा नदी से येरुसालेम के लिए प्रस्थान किया। हमारा ईश्वर हमारे साथ था। उसने शत्रुओं और रास्ते में घात में बैठे |
32) हमने येरुसालेम पहुंँच कर वहांँ तीन दिन तक विश्राम किया और |
33) चौथे दिन हमारे ईश्वर के मन्दिर में चांँदी, सोना और अन्य वस्तुओं को तौल कर ऊरीया के पुत्र याजक मरेमोत के हाथ में दिया। उसके पास पीनहास |
34) संख्या और तौल के अनुसार सब कुछ सुपुर्द कर दिया गया। उस समय उन सब का वजन भी लिखा गया। |
35) उस समय निर्वासन से लौटे हुए लोगों ने, समस्त इस्राएल के कल्याण के लिए, इस्राएल के ईश्वर को ये होम-बलियाँ चढ़ायीं : बारह बछड़े, छियानबे |
36) उन्होंने क्षत्रपों और नदी के उस पार के राज्यपालों को राजा के आदेश सुनाये और उन्होंने लोगों की और ईश्वर के मन्दिर की भी सहायता की। |
1) इसके बाद नेताओं ने मेरे पास आ कर मुझ से कहा, ''इस्राएली, याजक और लेवी देश के शेष लोगों से, अर्थात् कनानी, हित्ती, परिज्जी, यबूसी, |
2) उन्होंने उनकी पुत्रियों के साथ अपना तथा अपने पुत्रों का विवाह किया, जिससे पवित्र जाति का इस देश के लोगों से मिश्रण हो गया है। इस विश्वासघात |
3) यह सुन कर मैंने अपने वस्त्र और अपनी चादर फाड़ डाली, अपने सिर और दाढ़ी के बाल नोच डाले और अवाक् हो कर बैठ गया। |
4) इसके बाद वे सब, जो निर्वासितों के विश्वासघात के कारण ईश्वर के कोप से डरते थे, मेरे पास आये और मैं सन्ध्याकाल से यज्ञ तक अवाक् बैठा था। |
5) सन्ध्याकालीन यज्ञ के समय मैं अपने विषाद की अवस्था से जागा। मेरा कुरता और मेरी चादर फटी हुई थी। मैं घुटनों के बल गिर कर और अपने |
6) इस प्रकार प्रार्थना करने लगाः ''मेरे ईश्वर! मैं इतना लज्जित हूँ कि तेरी ओर दृष्टि लगाने का साहस नहीं हो रहा है, क्योंकि हम अपने पापों में डूब गये हैं |
7) अपने पूर्वजों के समय से आज तक हम भारी अपराध करते आ रहे हैं। अपने पापों के कारण हम, हमारे राजा और हमारे याजक विदेशी राजाओं के हाथ, |
8) अब हमारे प्रभु-ईश्वर ने हम पर थोड़े समय के लिए दया प्रदर्शित की। उसने कुछ लोगों को निर्वासन से वापस बुलाया और हमें अपने पवित्र स्थान में |
9) क्योंकि हम दास ही हैं, किन्तु हमारे ईश्वर ने हमें हमारी दासता में नहीं त्यागा और हमें फ़ारस के राजाओं का कृपापात्र बनाया है। उन्होंने हमें हमारे ईश्वर |
10) ''हमारे ईश्वर! इसके बाद हम अब क्या कहें? हमने तेरी उन आज्ञाओं का तिरस्कार किया, |
11) जिन्हें तूने अपने सेवकों, नबियों द्वारा हमें दिया था, 'वह देश एक दूषित देश है, जिस पर तुम अधिकार करने जा रहे हो। उस देश के निवासियों ने उसे |
12) इसलिए तुम न तो अपनी पुत्रियों का विवाह उनके पुत्रों के साथ करोगे और न अपने पुत्रों का उनकी पुत्रियों के साथ। तुम न तो कभी उनके साथ |
13) ''हमारे ईश्वर! इन सब विपत्तियों के बाद, जो हमारे कुकमोर्ं और बड़े-बड़े अपराधों के कारण हम पर बीती हैं, हम अपने अपराधों को देखते हुए |
14) अब क्या हम फिर तेरी आज्ञाएँ भंग करें और उन लोगों से विवाह करें, जो ऐसे घृणित कार्य करते हैं? और यदि हम ऐसा करेंगे, तो क्या तेरा क्रोध हम |
15) प्रभु! इस्राएल के ईश्वर! तू दयामय है, इसीलिए आज भी हम में कुछ लोग जीवित रह गये हैं। हम अपराधी हो कर तेरे सामने उपस्थित हैं, हालांँकि |
1) जब एज्रा ईश्वर के मन्दिर के सामने दण्डवत् पड़ा हुआ था और पाप स्वीकार करते और रोते हुए प्रार्थना कर रहा था, तो इस्राएली पुरुष, स्त्रियाँ और | ||
2) एलामवंशी यहीएल के पुत्र शकन्या ने एज्रा से कहा, ''इस देश के लोगों की विजातीय कन्याओं से विवाह कर हमने अपने ईश्वर के साथ विश्वासघात | ||
3) हम अपने ईश्वर के सामने यह प्रतिज्ञा करें कि हम आप पर और हमारे-ईश्वर की आज्ञा पर श्रद्धा रखने वाले व्यक्तियों के परामर्श के अनुसार इन सब | ||
4) उठिए, यह मामला आपके हाथ में है। हम आपके साथ हैं। आप दृढ़तापूर्वक यह काम पूरा कीजिए।'' | ||
5) तब एज्रा ने उठ कर याजकों के नेताओं, लेवियों और सब इस्राएलियों से शपथ खिलवायी कि वे ऐसा ही करेंगे। उन्होंने इसकी शपथ खायी। | ||
6) इसके बाद एज्रा ईश्वर के मन्दिर के सामने से उठ कर एल्याशीब के पुत्र योहानान के कमरे में गया। उसने वहाँ बिना खाये-पिये रात बितायी, | ||
7) अब निर्वासन से लौटे हुए यूदा और येरुसालेम भर में सब रहने वालों को सूचित किया गया कि वे येरुसालेम में एकत्रित हों। | ||
8) जो व्यक्ति तीन दिन के अन्दर मुखियाओं और नेताओं की आज्ञा के अनुसार उपस्थित नहीं होगा, उसकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली जायेगी और उसे | ||
9) इसलिए तीन दिन बाद यूदा और बेनयामीन के सब पुरुष येरुसालेम में एकत्रित हुए। नौवें महीने के बीसवें दिन सब लोग ईश्वर के मन्दिर के सामने | ||
10) याजक एज्रा ने उठ कर उन से कहा, ''तुमने ईश्वर के साथ विश्वासघात किया और विजातीय स्त्रियों से विवाह कर तुमने इस्राएल के दोष को और भी | ||
11) अब प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लो और उसकी इच्छा पूरी करो। देश के दूसरे लोगों से मेल-जोल मत रखो और | ||
12) सारी सभा ने ऊँचे स्वर से उत्तर दिया, ''ठीक है। जैसा आपने कहा है, हमें वैसा ही करना होगा। | ||
13) किन्तु ऐसे लोगों की संख्या बहुत है और अब वर्षा ऋतु है। हम यहाँ चौक में खड़ा नहीं रह सकते। यह मामला तो दो-एक दिन में हल होने का नहीं; | ||
14) हमारे नेता समस्त सभा के नाम कार्य करें और वे सब लोग, जिन्होंने हमारे नगरों में विजातीय स्त्रियों के साथ विवाह किया है, एक निश्चित समय | ||
15) केवल असाएल के पुत्र योनातन और तिकवा के पुत्र यहजया ने इसका विरोध किया और मशुल्लाम एवं लेवी शब्बतय ने उनका समर्थन किया। | ||
16) निर्वासन से लौटे लोगों ने ऐसा ही किया। एज्रा ने प्रत्येक घराने से मुखियाओं का चुनाव किया और प्रत्येक को नाम ले कर नियुक्त किया। उन | ||
17) और पहले महीने के पहले दिन तक उन्होंने उन सब पुरुषों के मामले तय कर दिये, जिन्होंने विजातीय स्त्रियों से विवाह किया था। | ||
18) याजकों में निम्नलिखित व्यक्तियों ने विजातीय स्त्रियों से विवाह किया थाः योसादाक के पुत्र येशूआ के पुत्रों और उसके भाइयों में मासेया, एलीएजर, | ||
19) उन्होंने हाथ-पर-हाथ रख कर अपनी पत्नियों को त्याग देने की प्रतिज्ञा की। उन में प्रत्येक ने प्रायश्चित-बलि के लिए एक मेढ़ा दिया। | ||
20) इम्मेरे के पुत्रों में हनानी और जबद्या | ||
21) हारिम के पुत्रों में मासेया, एलीया, शमाया, यहीएल और उज्जीया। | ||
22) पशहूर के पुत्रों में एल्योएनय, मासेया, इसमाएल, नतनएल, योजाबाद और एलआसा। | ||
23) लेवियों में: योजाबाद, शिमई, केलाया (अर्थात् कलीटा), पतह्या, यूदा और एलीएजर। | ||
24) गायकों में: एल्याशीब। द्वारपालों में: शल्लूम, टेलेम और ऊरी। | ||
25) इस्राएलियों में: परओश के वंशजों में ये थेः रम्या, यिज्जीया, मलकीया, मिय्यामिन, एलआजार, मलकीया और बनाया। | ||
26) एलाम के वंशजों में: मत्तन्या, जकर्या, यहीएल, अबदी, यरेमोत और एलीया। | ||
27) जत्तू के वंशजों में: एल्योएनय, एल्याशीब, मत्तन्या, यरेमोत, जाबाद और अजीजा। | ||
28) बेबय के वंशजों में: यहोहानान, हनन्या, जब्बय और अतलय। | ||
29) बानी के वंशजों में: मशुल्लाम, मल्लूक, अदाया, यशूब, अशाल और यरेमोत। | ||
30) पहत-मोआब के वंशजों में: अदना, कलाल, बनाया, मासेया, मत्तन्या, बसलएल, बिन्नूई और मनस्से। | ||
31) हारमि के वंशजों में: एलीएजर, यिश्शीया, मलकीया, शमाया, सिमओम, | ||
32) बेनयामीन्, मल्लूक और शमर्या। | ||
33) हाशुम के वंशजों में: मत्तनय, मत्तता, जाबाद, एलिफ़ेलेट, यरेमय, मनस्से और शिमई। | ||
34) बानी के वंशजों में: मादय, आम्राम, ऊएल, | ||
35) बनाया, बेद्या, कलूहु, | ||
36) वन्या, मरेमोत, एल्याशीब, | ||
37) मत्तन्या, मत्तनय और यासाव। | ||
38) बिन्नूई के वंशजों में: शिमई, | ||
39) शेलेम्या, नातान, अदाया, | ||
40) मकनदबय, शाशय, शारय, | ||
41) अजरएल, शेलेम्या, शमर्या, | ||
42) शल्लम, अमर्या और यूसुफ़। | ||
43) नेबों के वंशजों में: यईएल, मत्तित्या, जाबाद, जबीना, यद्दय, योएल और बनाया। | ||
44) इन सब ने विजातीय स्त्रियों से विवाह किया और इन में कुछ व्यक्तियों को उन पत्नियों से पुत्र भी उत्पन्न हुए। | ||
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