पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

पहला इतिहास ग्रन्थ ( 1 Chronicles )

अध्याय 1

1) आदम, सेत, एनोष,
2) केनान, महल-लएल, यारेद,
3) हेनोक, मतूषेलह, लेमेक,
4) नूह, सेम, हाम और याफ़ेत।
5) याफ़ेत के पुत्र : गोमेर, मागोग, मादय, यावान, तूबल, मेषेक और तीरास।
6) गोमेर के पुत्रः अषकनज+, रीफ़त, और तोगरमा।
7) यावान के पुत्रः एलीषा, तरषीष, कित्तीम और दोदानीम।
8) हाम के पुत्रः कूष, मिस्र, पूट और कनान।
9) कूष के पुत्रः सबा, हवीला, सबता, रअमा और सबतका। रअमा के पुत्रः षबा और ददान।
10) कूष निम्रोद का पिता था। निम्रोद पृथ्वी पर पहला वीर योद्धा था।
11) मिस्र लूदियों, अनामियों, लहाबियों, नफ्तुहियों,
12) पत्रोसियों, कसलुहियों-जिन के फ़िलिस्ती वंष निकला-और कफ्तोरियों का मूल पुरुष था।
13) कनाल का पहला पुत्र सीदोन और दूसरा हेत था।
14) वह यबूसी, अमोरी, गिरगाषी,
15) हिव्वी, अरकी, सीनी,
16) अरवादी, सेमारी और हमाती जातियों का मूल पुरुष था।
17) सेम के पुत्रः एलाम, अस्सूर, अरफ़क्षद, लूद, अराम, ऊस, हूल, गेतेर और मेषेक।
18) अरफ़क्षद षेलह का पिता था और षेलह एबेर का।
19) एबेर के दो पुत्र थेः एक का नाम पेलेग था- उसके दिनों में पृथ्वी के लोग विभाजित हो गये-और उसके भाई का नाम योकटान था।
20) योकटान से पैदा हुएः एल्मोदाद, षेलेफ़, हसिरमावेद, येरह,
21) हदोराम, ऊजाल, दिकला,
22) एबाल, अबीमाएल, शबा,
23) ओफ़िर, हवीला और योबाब। ये सब योकटान के पुत्र थे।
24) सेम,अरफ़क्षद, षेलह,
25) एबेर, पेलेग, रऊ,
26) सरूग, नाहोर, तेरह,
27) अब्राम अर्थात् इब्राहीम।
28) इब्राहीम के पुत्रः इसहाक और इसमाएल।
29) उनके वंषज ये थेः इसमाएल का पहलौठा पुत्र नबायोत था, फिर केदारा, अदबेएल, मिबसाम,
30) मिषमा, दूमा, मस्सा, हदद, तेमा,
31) यटूर, नाफ़ीष और केदमा। यही इसमाएल के पुत्र थे।
32) इब्राहीम की उपपत्नी कटूरा के पुत्र ये थेः जिम्रान, योकषान, मदान, मिदयान, यिषबाक और षूअह। योकषान के पुत्रः षबा और ददान।
33) मिदयान के पुत्रः एफ़ा, एफ़ेर, हनोक, अबीदा और एल्दाआ। ये सब कटूरा के पुत्र थे।
34) इब्राहीम इसहाक का पिता था। इसहाक के पुत्रः एसाव और इस्राएल।
35) एसाव के पुत्रः एलीफ़ज, रऊएल, यऊष, यालाम और कोरह।
36) एलीफ़ज के पुत्रः तेमान, ओमार, सफ़ी, गाताम, कनज, तिनमा और अमालेक।
37) रऊएल के पुत्रः नहत, जेरह, षम्मा और मिज्जा।
38) सेईर के पुत्रः लोटान, षोबाल, सिबओन, अना, दिषोन, एसेर और दीषान।
39) लोटान के पुत्रः होरी और होमाम। लोटान की बहन तिमना थी।
40) षोबाल के पुत्रः अलयान, मानहत, एबाल, षफ़ी और ओनाम। सिबओन के पुत्रः अय्या और अना।
41) अना का पुत्रः दिषोन। दिषोन के पुत्रः हमरान, एषबान, यित्रान और केरान।
42) एसेर के पुत्रः बिल्हान, जावान और याकान। दीषान के पुत्रः ऊस और अरान।
43) इस्राएल के राजाओं के षासन के पूर्व एदोम देष में यही राजा षासन करते थे। अबोर का पुत्र बेला। उसकी राजधानी का नाम दिनहाबा था।
44) जब बेला की मृत्यु हो गयी, तो बोस्रावासी सेरह का पुत्र योबाब उसका उत्तराधिकारी हुआ।
45) जब योबाब की मृत्यु हो गयी, तो उसके स्थान पर तेमानियों के देष का हुषाम राजा हुआ।
46) जब हुषाम की मृत्यु हो गयी, तो उसके स्थान पर मोआब के मैदान में मिदयानियों को पराजित करने वाले बदद का पुत्र हदद राजा हुआ। उसकी राजधानी का नाम अवीत था।
47) जब हदद की मृत्यु हो गयी, तो उसके स्थान पर मसरेकावासी समला राजा हुआ।
48) जब समला की मृत्यु हो गयी, तो उसके स्थान पर फ़रात नदी के किनारे अवस्थित रहोबोत का निवासी षौल राजा हुआ।
49) जब षौल की मृत्यु हो गयी, तो उसके स्थान पर अकबोर का पुत्र बाल-हानान राजा हुआ।
50) जब बाल-हानान की मृत्यु हो गयी, तो उसके स्थान पर हदद राजा हुआ। उसकी राजधानी का नाम पाइ था। उसकी पत्नी का नाम महेटबएल था। वह मेजाहाब की मट्रेट की बेटी थी।
51) जब हदद की मृत्यु हो गयी, तो एदोम के मुखिया ये थेः मुखिया तिमना, अल्या, यतेत,
52) ओहोलीबामा, एला, पीनोन,
53) कनज, तेमान, मिबसार,
54) मगदीएल और ईराम। एदोम के मुखिया यही थे।

अध्याय 2

1) इस्राएल के पुत्र ये थेः रूबेन, सिमओन लेवी और यूदा, इस्साकार और जबुलोन,
2) दान, युसुफ़ और बेनयामीन, नफ्ताली, गाद और आषेर।
3) यूदा के पुत्रः एर, ओनान और षेला। षूअह नामक एक कनानी स्त्री से उसके ये तीन पुत्र उत्पन्न हुएः यूदा का पहलौठा पुत्र एर प्रभु की दृष्टि में दुष्ट था, इसलिए उसने उसे मर जाने दिया।
4) उसकी बहू तामार से उसके पेरेस और जेरह उत्पन्न हुए। यूदा के कुल पाँच पुत्र थे।
5) पेरेस के पुत्रः हेस्रोन और हामूल।
6) जेरह के पुत्रः जिम्री, एतान, हेमान, कलकोल और दारा, कुल पाँच।
7) करमी का पुत्र आका था। प्रभु को अर्पित वस्तुएँ अपनाने के कारण वह इस्राएलियों की विपत्ति का कारण बना।
8) एतान का पुत्र अजर्या था।
9) ं हेस्रोन के पुत्र ये थेः यरहमएल, राम और कलूबाय।
10) राम अम्मीनादाब का पिता था। अम्मीनादाब यूदा के पुत्रों के मुखिया नहषोन का पिता था।
11) नहषोन सलमा का, सलमा बोअज का
12) बोअज ओबेद का और ओबेद यिषय का पिता था।
13) यिषय का पहला पुत्र एलीआब था, दूसरा अबीनादाब, तीसरा षिमआ,
14) चौथा नतनएल, पाँचवा रद्दय,
15) छठा ओसेम और सातवाँ दाऊद।
16) उनकी बहनें सरूया और अबीगैल थी। सरूया के तीन पुत्र थेः अबीषय, योआब और असाएल।
17) अबीगैल ने अमासा को जन्म दिया। अमासा का पिता इसमाएली येतेर था।
18) हेस्रोन के पुत्र कालेब के अपनी पत्नी अजूबा और यरीओत से पुत्र उत्पन्न हुए। अजूबा के पुत्र ये थे : येषेर, षोबाब और अरदोन।
19) अजूबा की मृत्यु हो गयी और कालेब ने एफ्राता से विवाह किया। उसने हूर को जन्म दिया।
20) हूर ऊरी का और ऊरी बसलएल का पिता था।
21) बाद में हेस्रोन का गिलआद के पिता माकीर की पुत्री से संसर्ग हुआ। जब उसने उसके साथ विवाह किया, तो वह साठ वर्ष का था; उसके उस से सगूब उत्पन्न हुआ।
22) सगूब सेईर का पिता था, जिसके गिलआद देष में तेईस नगर थे।
23) पर गषूर और आराम ने होव्वोत-याईर, कनात और उसके गाँव उन से छीन लिये-कुल साठ नगर। ये सब गिलआद के पिता माकीर के वंषज थे।
24) हेस्रोन की मृत्यु के बाद कालेब का अपने पिता की पत्नी एफ्राता से संसर्ग हुआ और उसके तकोआ के पिता अषहूर का जन्म हुआ।
25) हेस्रोन के पहलौठे बेटे यरहमएल के पुत्रः उसका पहला पुत्र राम, फिर बूना, ओरेन, ओसेम और अहीया।
26) यरहमएल की एक दूसरी पत्नी थी, जिसका नाम अटारा था। वह ओनाम की माँ थी।
27) यरहमएल के पहलौठे बेटे राम के पुत्रः मास, यामीन और एकेर।
28) ओनाम के पुत्रः षम्मय और यादा। षम्मय के पुत्रः नादाब और अबीषूर।
29) अबीषूर की पत्नी का नाम अबीहैल था। उस से अहबान और मोलीद का जन्म हुआ।
30) नादाब के पुत्र : सेलेद और अप्पयीम। सेलेद सन्तानहीन मरा।
31) अप्पयीम का पुत्र यिषई। यिषई का पुत्र : षेषान। षेषान का पुत्रः अहलय।
32) षम्मत के भाई यादा के पुत्रः येतेर और योनातान। येतेर सन्तानहीन मर गया।
33) योनातान के पुत्रः पेलेत और जाजा। यही यरहमएल के वंषज है।
34) षेषान के कोई पुत्र नहीं था, उसके केवल पुत्रियाँ थीं। षेषान के पास यरहा नाम का एक मिस्री सेवक था;
35) इसलिए षेषन ने अपने सेवक यरहा के साथ अपनी पुत्री का विवाह किया। उस से उसके यहाँ अत्तय उत्पन्न हुआ।
36) अत्तय नातान का पिता था और नातान, जाबाद का।
37) जाबाद एफ्लाल,का पिता था और एफ्लाल, ओबेद का।
38) ओबेद येहू का पिता था और येहू, अजर्या का।
39) अजर्या हेलेस का पिता था और हेलेस, एलआसा का।
40) एलआसा सिसमय का पिता था और सिसमय, षल्लूम का।
41) षल्लूम यकम्या का बेटा था ओर यकम्या, एलीषामा का।
42) यरहमएल के भाई कालेब के पुत्रः उसका पहलौठा पुत्र मारेषा, जो जीफ़ का पिता था। मारेषा का पुत्र हेब्रोन।
43) हेब्रोन के पुत्रः कोरह, तप्पुअह, रेकेम और षेमा।
44) षेमा योर्कआम के पिता रहम का पिता था, रेकेम षम्मय का पिता था।
45) षम्मय का पुत्र माओन था और माओन बेत-सूर का पिता था।
46) कालेब की उप-पत्नी एफ़ा ने हारान, मोसा और गाजेज को जन्म दिया। हारान गाजेज का पिता था।
47) यहदाय के पुत्रः रेगेम, योताम, गेषान, पेलेट, एफ़ा और षअफ़।
48) कालेब की उपपत्नी माका ने षेबेर और तिरहना को जन्म दिया।
49) उसने मदमन्ना के पिता षअफ़ को, मकबेना के पिता षवा को और गिबआ के पिता को जन्म दिया।
50) कालेब की पुत्री अक्सा थी। कालेब के वंषज यही थे। एफ्राता के पहलौठ हूर के पुत्र ये थे : किर्यत-यआरीम का पिता षोबाल,
51) बेथलेहेम का पिता सलमा और बेत-गदेर का पिता हरेफ़।
52) किर्यत-यआरीम के पिता षोबाल के वंषज ये थे : हरोए, मानहतियों का आधा वंष और
53) किर्यत-यआरीम के वंषज यित्री, पूती, षुमाती और मिश्राई। इन से सोरआई और एष्ताओली वंष उत्पन्न हुए।
54) सलमा के वंषजः बेेथलेहेम, नटोफ़ाती लोग, अट्रोल बेत-योआब, मानहतियों का आधा वंष, सोरई।
55) इन से याबेस में रहने वाले सोफ़ियों के वंष उत्पन्न हुए, फिर तिरआती, षिमआती, सूकाती। सूकाती वे केनी हैं, जो बेत-रेकाब के पिता हम्मत के वंषज है।

अध्याय 3

1) हेब्रोन में दाऊद के ये पुत्र हुएः पहलौठ अमनोन, जो यिज्रएल की अहीनोअम से उत्पन्न हुआ; दूसरा दानिएल, जो करमेल की अबीगैल से उत्पन्न हुआ;
2) तीसरा अबसालोम, जो गषूर के राजा तलमय की पुत्री माका का पुत्र था; चौथा हग्गीत का पुत्र अदोनीया;
3) पाँचवाँ अबीटाल का पुत्र षफ़टा और छठा यित्रआम, जो दाऊद की पत्नी एगला से उत्पन्न हुआ।
4) हेब्रोन में दाऊद के छह पुत्र उत्पन्न हुए। वहाँ उसने साढ़े सात वर्ष तक षासन किया और येरुसालेम में उसने तैंतीस वर्ष तक षासन किया।
5) येरुसालेम में उसके ये पुत्र उत्पन्न हुएः षिमआ, षोबाब, नातान और सुलेमान। ये चार पुत्र अम्मीएल की पुत्री बत-षूआ से उत्पन्न हुए।
6) फिर यिभार, एलीषामा, एलीफ़ेलेट,
7) नोगह, नेफ़ेग, याफ़ीआ,
8) एलीषामा, एल्यादा और एलीफ़ेलेट-यही नौ पुत्र।
9) उपपत्नियों के पुत्रों के अतिरिक्त ये सभी दाऊद के पुत्र थे। उनकी बहन तामार थी।
10) सुलेमान के वंषजः रहबआम; उसका पुत्र अबीया, उसका पुत्र आसा, उसका पुत्र यहोषाफ़ाट,
11) उसका पुत्र यहोराम, उसका पुत्र अहज्या, उसका पुत्र योआष,
12) उसका पुत्र अमस्या, उसका पुत्र अजर्या, उसका पुत्र योताम,
13) उसका पुत्र आहाज, उसका पुत्र हिजकीया, उसका पुत्र मनस्से,
14) उसका पुत्र आमोन, उसका पुत्र योषीया।
15) योषीया के पुत्रः पहला योहानान, दूसरा यहोयाकीम, तीसरा सिदकीया, चौथा षल्लूम।
16) यहोयाकीम के वंषजः उसका पुत्र यकोन्या, उसका पुत्र सिदकीया।
17) यकोन्या के वंषजः उसका पुत्र षअलतीएल,
18) फिर मलकीराम, पदाया, षेनअस्सर, यकम्या, होषामा, और नदब्या।
19) पदाया के पुत्रः जरुबबाबेल और षिमई। जरुब-बाबेल के पुत्रः मषुल्लाम और हनन्या और उनकी बहन षलोमीत;
20) फिर हषुबा, ओहेल, बेरेक्या, हसद्या और यूषब-हेसेद-पाँच।
21) हनन्या के वंषजः पलटा; उसका पुत्र यषाया, रफ़ाया के पुत्र अरनान के पुत्र, ओबद्या के पुत्र, षकन्या के पुत्र।
22) षकन्या के वंषज-षमाया और उसके पुत्रः हट्टूश, यिगआल, बारिअह, नअर्या और षाफ़ाट-छह।
23) नअर्या के पुत्रः एल्योएनय, हिजकीया और अज्रीकाम-तीन।
24) एल्योएनय के पुत्रः होदयवाहू, एल्याषीब, पलाया, अक्कूब, योहानान, दलाया और अनानी-सात।

अध्याय 4

1) यूदा के पुत्रः पेरेस, हेस्रोन, करमी, हूर और षोबाल।
2) षोबाल का पुत्र रआया यहत का पिता था, यहत अहूमय और लाहद का पिता था। सोरआतियों के वंषज यही हैं।
3) एटाम के पुत्रः यिज्रएल, यिषमा और यिदबाष। उनकी बहन का नाम हस्सलेलपोनी था।
4) पनूएल गदोर का और एजेर हूषा का पिता था। बेथलेहेम के पिता और एफ्राता के पहलौठे हूर के पुत्र यही थे।
5) तकोआ के पिता अषहूर की दो पत्नियाँ थीं: हेलआ और नारा।
6) उसके नारा से अहुज्जाम, हेफ़ेर, तेमनी और अहष्तारी उत्पन्न हुए। ये नारा के वंषज थे।
7) हेलआ के पुत्रः सेरेल, सीहर, एतनान
8) और कोष, जो अनूब और सोबेबाह का पिता था और हारूम के पुत्र अहरहेल के वंषों का मूल पुरुष था।
9) याबेस अपने भाइयों से अधिक सम्मानित था। उसकी माँ ने उसका नाम याबेस रखा था, क्योंकि वह कहती थी, ÷÷कष्ट सहते हुए मैंने इसे जन्म दिया''।
10) याबेस ने इस्राएल के ईष्वर से इस प्रकार प्रार्थना की, ÷÷कृपा कर मुझे आषीर्वाद दे, मेरा-क्षेत्र बढ़ा दे, मेरा साथ दे कर मुझे विपत्तियों से बचा, जिससे मुझे दुःख न हो''। ईष्वर ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की।
11) षूहा का भाई कलूब महीर का पिता था और वह, एष्तोन का।
12) एष्तोन बेत-राफ़ा, पासेअह और ईर-नाहाष के पिता तहिन्ना का पिता था। ये रेका के रहने वाले थे।
13) कनज के पुत्रः ओतनीएल और सराया। ओतनीएल के पुत्रः हतत और मओनोतय।
14) मओनोतय ओफ्रा का पिता था और सराया योआब का पिता था। योआब ÷गे हराषम' (कारीगरों की घाटी) का मूल पुरुष था, क्योंकि उनके वंषज कारीगर थे।
15) यफुत्रे के बेटे कालेब के पुत्रः ईरू, एला और नाअम। एला का पुत्र कनज।
16) यहल्ललेएल के पुत्रः जीफ़, जीफ़ा, तीर्या और असरएल।
17) (१७-१८) एज्रा के पुत्रः येतेर, मेरेद, एफ़ेर और यालोन। मेरेद ने फ़िराउन की पुत्री बित्या के साथ विवाह किया था। उसकी सन्तान ये हैं : उसने मिरयाम, षम्मय और एष्तमोआ के पिता यिषबह को जन्म दिया। उसकी यहूदी पत्नी ने गदोर के पिता येरेद, सोको के पिता हेवेर और जनोअह के पिता यकूतीएल को जन्म दिया।
19) नहम की बहन, होदीया की पत्नी के पुत्रः गरमी कईला का पिता और माकाती एष्तमोआ।
20) षीमोन के पुत्रः अम्नोन, रिन्ना, बेन-हानान और तीलोन। यिषई के पुत्रः जोहेत और बेन-जोहेत।
21) यूदा के बेटे षेला के पुत्रः लेका का पिता एर, मारेषा का पिता लादा। मारेषा बेत-अषबेआ के निवासी छालटी कपड़े बुनने वालों का मूल पुरुष था।
22) फिर योकीम, कोजेबा के निवासी, योआष और साराफ़, जो मोआब में षासन करने के बाद लेहेम लौट आये। (ये पुरानी बातें हैं।)
23) ये कुम्हार थे और नटाईम और गदेरा के निवासी थे। ये वहाँ राजा की सेवा करते रहते थे।
24) सिमओन के पुत्रः नमूएल, यामीन, यारीब, जेरह, षौल।
25) षल्लूम षौल का पुत्र था, मिबसाम षल्लूम का पुत्र था, मिषमा मिबसाम का पुत्र था।
26) मिषमा के वंषजः उसका पुत्र हम्मूएल, हम्मूएल का पुत्र जक्कूर और हम्मूएल का पुत्र षिमई।
27) षिमई के सोलह पुत्र और छः पुत्रियाँ थीं। न तो उसके भाइयों के पुत्रों की संख्या अधिक थी और न उनका सारा कुल यूदावंषियों की तरह बहुसंख्यक था।
28) वे बएर-षेबा, मोलादा, हसर-षूआल,
29) बिल्हा, एसेम और तोलाद,
30) बतूएल, होरमा, सिकलग,
31) बेत-मरकाबोत, हसर-सूसीम, बेत-बिरई और षआरईम में निवास करते थे। दाऊद के षासनकाल तक उनके निवासस्थान यही थे
32) और उनके गाँॅवः एताम, ऐन-रिम्मोन तोकेन और आषान-कुल मिला कर पॉँच नगर
33) और बाल तक उनके आसपास के सब गाँव। यही उनके निवास स्थान थे और उनके पास वंषावली भी थी।
34) मषोबाब, यमलेक, अमस्या का पुत्र योषा,
35) योएल, योषिब्या का पुत्र येहू, जो सराया का पोता और असीएल का परपोता था,
36) एलयोएनय, याकोबा, यषाहाया, असाया, अदीएल, यसीमिएल, बनाया
37) और षिफई का पुत्र जीजा जो अल्लोन का, अल्लोन जो यदाया का, यदाया जो षिम्री का और षिम्री जो षमाया का पुत्र था।
38) जिन व्यक्तियों के नाम ऊपर लिखे गये हैं, वे अपने-अपने कुलों के मुखिया थे और उनके परिवारों की संख्या बढ़ती गयी।
39) इसलिए वे घाटी के पूर्व गदोरा तक अपने झुण्डों के लिए चरागाह ढूँढने गये।
40) वहाँ उन्हें उपजाऊ और अच्छे चरागाह मिले। देष विस्तृत, षान्त और हरा-भरा था। हाम के वंषज वहाँ पहले निवास करते थे।
41) ऊपर जिनके नाम लिखे गये हैं, उन्होंने यूदा के राजा हिजकीया के राज्यकाल में वहाँ जा कर हामियों तथा वहाँ रहने वाले मऊनियों के तम्बुओं और घरों को गिराया और उनका पूरा संहार किया।(आज तक उनका यही हाल है) वे उनके स्थान पर वहीं बस गये, क्योंकि वहाँ उनके झुण्डों के लिए चरागाह थे।
42) उन सिमओनवंषियों में पॉँच सौ आदमी सेईर के पहाड़ी प्रदेष में घुस पड़े। यिषई के पुत्र पलटा, नअर्या, न अर्या, रफ़ाया और उज्जीएल उनके नेता थे।
43) वे षेष अमालेकियों को पराजित कर वहाँ बसने लगे। वे आज तक वहाँ बसे हुए हैं।

अध्याय 5

1) इस्राएल के पहलौठे रूबेन के पुत्र रूबेन पहलौठा तो था, किन्तु अपने पिता की षय्या को अपवित्र करने के कारण उसका पहलौठे का अधिकार इस्राएल के बेटे यूसुफ़ के पुत्रों को मिला। इसलिए वंषावली में रूबेन का नाम सब से पहले नहीं लिखा गया है।
2) यूदा अपने भाइयों से अधिक षक्तिषाली निकला और उसके वंष में एक षासक का उदय हुआ, किन्तु पहलौठे का अधिकारी यूसुफ़ को मिला।
3) इस्राएल के पहलौठे रूबेन के पुत्रः हनोक, पल्लू, हेस्रोन और करमी।
4) योएल के वंषजः उसका पुत्र षमाया, षमाया का पुत्र गोग, गोग का पुत्र षिमई,
5) षिमई का पुत्र मीका, मीका का पुत्र रआया, रआया का पुत्र बाल
6) और बाल का पुत्र बएरा, जिसे अस्सूर का राजा तिलगत-पिलनएसेर ने निर्वासित किया। वह रूबेनवंषियों का मुखिया था।
7) उसके भाई-बन्धु अपने-अपने कुलों के अनुसार वंषावली में नामांकित हैः मुखिया यईएल, फिर जकर्या
8) और आजाज का पुत्र बेला, जो षेमा का पौत्र और योएल का प्रपौत्र था। यह वंष अरोएर से ले कर नेबो और बाल-मओन तक बस गया।
9) वह पूर्व की ओर उस उजाड़खण्ड की सीमा तक रहता था, जो फ़रात नदी के इस पार है; क्योंकि गिलआद में उनके पषुओं की संख्या बहुत अधिक हो गयी थी।
10) उन्होंने साऊल के दिनों में हग्रियों से लड़ कर उन्हें पराजित किया। बाद में उन्होंने गिलआद के पूर्व के समस्त क्षेत्र में हग्रियों के निवासस्थान अपने अधिकार में कर लिये।
11) गाद के वंषज उनके पास बाषान देष में सलका तक बस गये।
12) योएल मुखिया था, षाफ़ाम दूसरा, फिर बाषान में यानय और षाफ़ाट।
13) उनके घरानों के अनुसार उनके भाई-बन्धु ये थेः मीकाएल, मषुल्लाम, षेबा, योरय, याकान, जीआ और एबेर-सात।
14) ये अबीहैल के पुत्र थे। वह स्वंय हूरी का पुत्र था, हूरी यारोअह का पुत्र था, यारोअह गिलआद का, गिलआद मीकाएल का, मीकाएल यषीषय का, यषीषय यहदो का और यहदो बूज का पुत्र था।
15) अबदीएल का पुत्र और गूनी का पौत्र अही उनके घराने का मुखिया था।
16) वे गिलआद, बाषान और उसके नगरों में तथा षारोन के सब चरागाहों के सीमान्तों तक रहते थे।
17) वे यूदा के राजा योताम और इस्राएल के राजा यरोबआम के षासनकाल की वंषावलियों में नामांकित हैं।
18) रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंषों में कुल मिला कर चवालीस हजार सात सौ साठ वीर, युद्धकुषल, ढाल, तलवार और धनुष धारण करने वाले सैनिक थे।
19) वे हग्रियों और यटूर, नाफ़ीज तथा नोदाब के लोगों से लड़ते थे।
20) युद्ध में उन्हें सहायता मिली। प्रभु ने हग्रियों और उनके सहायकों को उनके हाथ दिया; क्योंकि वे युद्ध के समय प्रभु को दुहाई देते थे। प्रभु ने उनकी प्रार्थना सुनी, क्योंकि वे उस पर भरोसा रखते थे।
21) वे उनके पशुओं को ले गये, अर्थात् पचास हजार ऊँट, ढाई लाख भेडें, दो हजार गधे। इनके अतिरिक्त उन्होंने एक लाख लोगों को बन्दी बनाया।
22) बहुत-से लोग मारे गये; क्योंकि वह लड़ाई ईष्वर की थी। इस युद्ध के बाद वे निर्वासनकाल तक यहाँ रहे।
23) मनस्से के आधे वंश के लोग बाशान से बाल-हेरमोन, सनीर और हेरमोन पर्वत तक बसते थे। उनकी जनसंख्या बहुत बड़ी थी।
24) उनके घरानों के मुखिया ये थेः यिशई, एलीएल, अज्रीएल, यिरमया, होदव्या और यहदीएल। ये वीर योद्धा, प्रसिद्ध पुरुष और अपने-अपने घरानों के मुखिया थे।
25) परन्तु अपने पूर्वजों के ईश्वर के साथ विश्वासघात कर वे उन देशवासियों के देवताओं के अनुगामी हो गये, जिन्हें ईश्वर ने उनके आ जाने पर भगा दिया था।
26) इसलिए इस्राएल के ईश्वर ने अस्सूर के राजा पूल (अर्थात् राजा तिलगत-पिलनएसेर) को प्रेरित किया और उसने रूबेन, गाद और आधे मनस्से के लोगों को निर्वासित किया। वह उन्हें हलह, हाबोर, हारा और गोजान नदी के तट के पास ले गया। वे आज तक वहीं हैं।
27) लेवी के पुत्रः गेरषोन, कहात और मरारी
28) कहात के पुत्रः अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल।
29) अम्राम के वंषजः हारून, मूसा और मिरयम। हारून के पुत्रः नादाब और अबीहू, एलआजार और ईतामार।
30) एलआजार पीनहास का पिता था; पीनहास अबीषूआ का,
31) अबीषूआ बुक्की का, बुक्की उज्जी का,
32) उज्जी जरहा का, जरहा मरायोत का,
33) मरायोत अमर्या का, अमर्या अहीटूब का,
34) अहीटूब सादोक का, सादोक अहीमअस का,
35) अहीमअस, अजर्या का, अजर्या योहानान का,
36) योहानान अजर्या का पिता था। उसने उस मन्दिर में याजकीय सेवा की, जिसे सुलेमान ने येरुसालेम में बनवाया था।
37) अजर्या अमर्या का पिता था, अमर्या अहीटूब का,
38) अहीटूब सादोक का, सादोक षल्लूम का,
39) षल्लूम हिलकीया का, हिलकीया अजर्या का,
40) अजर्या सराया का और सराया यहोसादाक का पिता था।
41) जब प्रभु ने नबूकदनेजर द्वारा यूदा और येरुसालेम के लोगों को निर्वासित किया था, तब यहोसादाक भी निर्वासित किया गया था।

अध्याय 6

1) लेवी का पुत्रः गेरषोम, कहात और मरारी।
2) गेरषोम के पुत्रों के नाम ये हैं: लिबनी और षिमई।
3) कहात के पुत्रः अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल।
4) मरारी के पुत्रः महली और मूषी। ये अपने-अपने मूल पुरुषों के अनुसार लेवियों के कुल हैं।
5) गेरषोम से उत्पन्न हुएः उसका पुत्र लिबनी, लिबनी का पुत्र यहत, यहत का पुत्र जिम्मा,
6) जिम्मा का पुत्र योआह, योआह का पुत्र इद्दो, इद्दो का पुत्र जेरह और जेरह का पुत्र यआत्रय।
7) कहात के पुत्रः उसका पुत्र अम्मीनादाब, अम्मीनादाब का पुत्र कोरह, कोरह का पुत्र अस्सीर,
8) अस्सीर का पुत्र एल्काना, एल्काना का पुत्र एब्यासाफ़, एब्यासाफ़ का पुत्र अस्सीर,
9) अस्सीर का पुत्र तहत, तहत का पुत्र ऊरीएल, ऊरीएल का पुत्र उज्जीया और उज्जीया का पुत्र षौल।
10) एल्काना के पुत्रः अमासय और अहीमोत।
11) अहीमोत का पुत्र एल्काना, एल्काना का पुत्र सोफ़य, सोफ़य का पुत्र नहत,
12) नहत का पुत्र एलीआब, एलीआब का पुत्र यरोहाम और यरोहाम का पुत्र एल्काना।
13) समूएल का पुत्रः उसका पहला पुत्रः योएल और दूसरा अबीया।
14) मरारी के पुत्रः महली, महली का पुत्र लिबनी, लिबनी का पुत्र षिमई, षिमई का पुत्र उज्जा,
15) उज्जा का पुत्र षिमआ, षिमआ का पुत्र हग्गीया और हग्गीया का पुत्र असाया।
16) जब मंजूषा प्रभु के मन्दिर में रखी गयी, तो दाऊद ने निम्नलिखित व्यक्तियों को वहाँ गायन के लिए नियुक्त किया।
17) जब तक सुलेमान ने येरुसालेम में प्रभु के मन्दिर का निर्माण नहीं किया था, तब तक वे निवास, दर्षन-कक्ष के सामने गायन-वादन किया करते थे। वे अपनी-अपनी पारी के अनुसार सेवा-कार्य किया करते थे।
18) सेवा करने वाले और उनके पुत्र ये थे। कहाती वंषजों में सेः गायक हेमान, जो योएल का पुत्र था और योएल समूएल का पुत्र था।
19) समूएल एल्काना का, एल्काना यरोहाम का, यरोहाम एलीएल का, एलीएल तोअह का,
20) तोअह सूफ़ का, सूफ़ एल्काना का, एल्काना महत का, महत अमासय का,
21) अमासय एल्काना का, एल्काना योएल का, योएल अजर्या का, अजर्या सफ़न्या का,
22) सफ़न्या तहत का, तहत अस्सीर का, अस्सीर एब्यासाफ़ का,
23) एब्यासाफ़ कोरह का, कोरह यिसहार का, यिसहार कहात का, कहात लेवी का और लेवी इस्राएल का पुत्र था।
24) उसकी दाहिनी ओर उसका भाई आसाफ़ था। आसाफ़ बेरेक्या का पुत्र था, बेरेक्या षिमआ का पुत्र था।
25) षिमआ मीकाएल का, मीकाएल बअसेया का, बअसेया मलकीया का,
26) मलकीया एतनी का, एतनी जेरह का, जेरह अदाया का,
27) अदाया एतान का, एतान जिम्मा का, जिम्मा षिमई का,
28) षिमई यहत का, यहत गेरषोम का और गेरषोम लेवी का पुत्र था।
29) बायीं ओर उनके भाई, मरारी के वंषज थे। कीषी का पुत्र एतान, कीषी अबदी का पुत्र था। अबदी मल्लूक का,
30) मल्लूक हषब्या का, हषब्या अमस्या का, अमस्या हिलकीया का
31) हिलकीया अमसी का, अमसी बानी का, बानी षेमेर का,
32) षेमेर महली का, महली मूषी का, मूषी मरारी का और मरारी लेवी का पुत्र था।
33) उनके लेवीवंषी भाई तम्बू, ईष्वर के निवास की अन्य सेवाओ के लिए नियुक्त थे।
34) हारून और उसके पुत्र होम-वेदी की धूप-वेदी पर बलियाँ चढ़ाया करते थे। वे परमपवित्र-स्थान के सब सेवा-कार्य करते और इस्राएलियों के लिए प्रायष्चित-विधि सम्पन्न करते थे, ठीक वैसे ही, जैसा ईष्वर के सेवक मूसा ने आदेष दिया था।
35) हारून के वंषज ये थे। उसका पुत्र एलआजार था और उसका पुत्र पीनहास था। पीनहास का पुत्र अबीषूआ,
36) अबीषूआ का बुक्की, बुक्की का उज्जी, उज्जी का जरह्,
37) जरह् का मरायोत, मरायोत का अमर्या, अमर्या का अहीटूब,
38) अहीटूब का सादोक और सादोक का पुत्र अहीमअस था।
39) (३९-४०) वे सब स्थान, जहाँ उनके अलग-अलग आवास थे, इस प्रकार हैं। हारूनवंषियों के कहाती कुलों को यूदा प्रदेष का हेब्रोन और उसके आसपास के चरागाह मिले (क्योंकि उनके नाम पहली चिट्ठी निकली थी)।
41) नगर के खेत और गाँॅव यफुन्ने के पुत्र कालेब को प्राप्त हुए,
42) किन्तु हारून के वंषजों को षरण-नगर मिले, अर्थात् हेब्रोन, लिबना और उसके चरागाह, यत्तीर एष्तमोआ और उसके चरागाह,
43) हीलेन और उसके चरागाह, दबीर और उसके चरागाह,
44) आषान और उसके चरागाह, बेत-षेमेष और उसके चरागाह;
45) फिर बेनयामीन वंष से गेबा और उसके चरागाह, अलेमेत और उसके चरागाह तथा अनातोत और उसके चरागाह। इस प्रकार कहाती कुलों को कुल मिला कर तेरह नगर मिले।
46) षेष कहातियों को, चिट्ठी डालने पर, मनस्से के आधे वंष के कुलों से दस नगर मिले।
47) गेरषोमियों को अपने-अपने कुलों के अनुसार इस्साकार, आषेर, नफ्ताली और बाषान प्रान्त में रहने वाले मनस्से के कुलों से तेरह नगर मिले।
48) मरारियों को अपने-अपने कुलों के अनुसार चिट्ठी द्वारा रूबेन, गाद और जबुलोन के वंषों से बारह नगर मिले।
49) इस प्रकार इस्राएलियों ने लेवियों को नगर और उनके साथ के चरागाह दिये।
50) उन को चिट्ठियों द्वारा यूदा, सिमओन और बेनयामीन के वंषों से उर्पयुक्त नगर मिले।
51) कहात वंष के कुछ कुलों को एफ्रईम वंश से नगर मिले।
52) उन को ये षरण-नगर दिये गयेः एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेष का सिखेम और उसके चरागाह, गेजेर और उसके चरागाह,
53) योकमआम और उसके चरागाह, बेत-होरोन और उसके चरागाह,
54) अय्यालोन और उसके चरागाह, गत-रिम्मोन और उसके चरागाह
55) और मनस्से के आधे वंष से आनेर और उसके चरागाह तथा बिलआम और उसके चरागाह। ये कहातियों के षेष कुलों के लिए थे।
56) गेरषोमियों को अपने-अपने कुलों के अनुसार यह मिला। मनस्से के आधे वंश सेः बाशान प्रान्त का गोलान और उसके चरागाह तथा अष्तारोत और उसके चरागाह;
57) इस्साकार के वंष सेः केदेष और उसके चरागाह, दाबरत और उसके चरागाह,
58) रामोत और उसके चरागाह तथा आनेम और उसके चरागाह;
59) अषेर के वंष सेः माषाल और उसके चरागाह, अबदोन और उसके चरागाह,
60) हुकोक और उसके चरागाह, रहोब और उसके चरागाह;
61) फिर नफ्ताली वंष सेः गलीलिया का केदेष और उसके चरागाह, हम्मोन और उसके चरागाह तथा किर्यातईम और उसके चरागाह।
62) षेष मरारियो को यह मिलाः जबुलोन वंष से रिम्मोन और उसके चरागाह, ताबोर और उसके चरागाह;
63) रूबेन के वंष से यर्दन के पार येरीख़ो के पास, यर्दन के पूर्वी तट पर, मरुभूमि का बेसेर और उसके चरागाह, यहसा और उसके चरागाह,
64) कदेमोत और उसके चरागाह तथा मेफ़ाअत और उसके चरागाह;
65) गाद वंष से गिलआद का रामोत और उसके चरागाह, महनयीम और उसके चरागाह,
66) हेषबोन और उसके चरागाह तथा याजेर और उसके चरागाह।

अध्याय 7

1) इस्साकार के पुत्रः तोला, पूआ, याषूब और षिम्रोन-चार।
2) तोला के पुत्रः उज्जी, रफ़ाया यरीएल, यहमय, यिबसाम और षमूएल, जो तोला के घरानों के मुखिया थे और अपनी-अपनी पीढ़ी के वीर योद्धा थे। दाऊद के समय इनकी संख्या बाईस हजार छः सौ थी।
3) उज्जी का पुत्रः यिज्रह। यिज्रह के पुत्रः मीकाएल, ओबद्या, योएल और यिष्षीया-पाँच। ये सब मुखिया थे।
4) अपनी वंषावली के अनुसार इनके सषस्त्र योद्धाओं की संख्या छत्तीस हजार थी, क्योंकि इनके बहुत-सी पत्नियाँ और बच्चे थे।
5) इस्साकार के सब कुलों में, जनगणना के अनुसार, इनके सम्बन्धियों में कुल मिला कर सतासी हजार योद्धा थे।
6) बेनयामीन के तीन पुत्रः बेला, बेकेर और यहीअएल।
7) बेला के पुत्रः एसबोन, उज्जी, उज्जीएल, यरीमोत और ईरी-पाँच। वे अपने-अपने घरानों के मुखिया और वीर योद्धा थे। वे जनगणना के अनुसार बाईस हजार चौंतीस थे।
8) बेकेर के पुत्रः जमीरा योआष, एलीएजर, एल्योएनय, ओम्री, यरेमोत, अबीया, अनातोत और आलेमेत।
9) ये सब बेकेर के पुत्र थे। सब अपने-अपने घरानों के मुखिया थे। अपनी वंषावली के अनुसार इनके योद्धाओं की संख्या बीस हजार दो सौ थी।
10) यदीअएल का पुत्रः बिलहान। बिलहान के पुत्रः यऊष, बेनयामीन, एहूद, कनाना, जेतान, तरषीष और अहीषाहर।
11) ये सब यहीअएल के पुत्र थे। ये अपने-अपने घरानों के मुखिया थे। अपनी वंषावली के अनुसार ये कुल मिला कर सत्रह हजार दो सौ सषस्त्र वीर योद्धा थे।
12) ईर के पुत्रः षुप्पीम और हुप्पीम। अहेर का पुत्रः हुषीम।
13) नफ्ताली के पुत्रः यहसीएल, गूनी, येसेर और षल्लूम। ये बिल्हा के पुत्र थे।
14) मनस्से के वंषज। अस्रीएल, जो उसकी अरामी उपपत्नी से उत्पन्न हुआ था। इसी उपपत्नी से गिलआद का पिता माकीर भी उत्पन्न हुआ था।
15) माकीर ने हुप्पीम और षुप्पीम के वंषजों में से एक-एक पत्नी चुनी। उसकी बहन का नाम माका था। दूसरे पुत्र का नाम सलोफ़हाद था। सलोफ़हाद के केवल पुत्रियाँ थीं।
16) माकीर की पत्नी माका से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने उसका नाम पेरेष रखा। उसके भाई का नाम षेरेष था और उसके पुत्र ऊलाम और रेकेम थे।
17) ऊलाम का पुत्रः बदान। ये मनस्से के पौत्र और माकीर के पुत्र गिलआद के बेटे थे।
18) उसकी बहन मोलेकेत थी, जो ईषहोद, अबीएजेर और महला की माँ थी।
19) षमीदा के पुत्रः अहयान, षेकेम, लिकही और अनीआम।
20) एफ्रईम का पुत्रः षूतेलह। षूतेलह का पुत्र बेरेद, बेरेद का पुत्र तहत, तहत का पुत्र एलआदा, एलआदा का पुत्र तहत,
21) तहत का पुत्र जाबाद, जाबाद का पुत्र षूतेलह, षूतेलह के पुत्र एजेर और एलआदा। गत के निवासियों ने एजेर और एलआदा को मार डाला था, जब वे उनके पषुओं को चुराने गये थे।
22) उनका पिता एफ्रईम बहुत दिन तक इसपर षोक मनाता रहा और उसके भाई उस का सान्त्वना देने आये।
23) फिर एफ्रईम का अपनी पत्नी से संसर्ग हुआ। वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने उसका नाम बेरीया रखा; क्योंकि उसके घर पर विपत्ति पड़ी थी।
24) उसकी पुत्री का नाम षेएरा था। उसने निचला और ऊपरी बेत-होरोन एवं उज्जैन-षेएरा बनवाया।
25) उसका पुत्र रेफ़ह था। रेफ़ह का पुत्र रेषेफ़ था, रेषेफ़ का पुत्र तेलह, तेलह का पुत्र तहन,
26) तहन का पुत्र लादान था, लादान का पुत्र, अम्मीहूद, अम्मीहूद, का पुत्र एलीषामा,
27) एलीषामा का पुत्र नून और नून का पुत्र योषुआ था।
28) उसकी सम्पत्ति और निवासस्थान बेतेल और उसके गाँव थे; फिर पूर्व की ओर नारान तथा पष्चिम की ओर गेजेर और उसके गाँॅव, सिखेम और उसके गाँव तथा अय्या और उसके गाँव।
29) बेत-षान और उसके गाँव, तानाक और उसके गाँव, मिगद्दी और उसके गाँव तथा दोर और उसके गाँव मनस्सेवंषियों के हाथ में थे। इस्राएल के पुत्र यूसुफ़ के वंषज वहीं रहते थे।
30) आषेर के पुत्रः यिमना, यिष्वा, यिष्वी और बेरीआ।
31) उनकी बहन सेरह थी। बेरीआ के पुत्रः हेबेर और बिरजैत का पिता मलकीएल।
32) हेबेर यफ्लेट, षेमेर और होताम का पिता था। उनकी बहन षूआ थी।
33) यफ्लेट के पुत्रः पासाक, बिमहाल और अष्वात। यही यफ्लेट के पुत्र थे।
34) उसके भाई षेमेर के पुत्रः रोहगा, हुब्बा और अराम।
35) उसके भाई हेलेम के पुत्रः सोफ़ाह, यिमना, षेलेष और आमाल।
36) सोफ़ाह के पुत्रः सूअह, हरनेफ़ेर, षूआल, बेरी, यिम्रा,
37) बेसेर, होद, षम्मा, षिलषा, यित्रान और बएरा।
38) येतेर के पुत्रः यफुन्ने, पिस्सा और अरा।
39) उल्ला के पुत्रः आरह, हन्नीएल और रिस्या।
40) ये सब आषेर के वंषज थे, अपने-अपने घरानों के मुखिया, वीर योद्धा और प्रतिष्ठित नेता। इनके वंषजों की जनगणना के अनुसार इनके युद्ध-योग्य सैनिकों की संख्या छब्बीस हजार थी।

अध्याय 8

1) बेनयामीन का पहला पुत्र बेला था, दूसरा अषबेल, तीसरा अहरह,
2) चौथा नोहा और पाँचवाँ राफ़ा।
3) बेला के पुत्रः अद्दार, गेरा, अबीहूद,
4) अबीषूआ, नामान, अहोअह,
5) गेरा, षफूफ़ान और हूराम।
6) एहूद के पुत्र, जो गेबावासियों के घरानों के मुखिया थे और बन्दी बनाकर मानहत ले जाये गये थेः
7) नामान, अहीया और गेरा। गेरा उन को ले गया और वह उज्जा और अहीहूद का पिता था।
8) अपनी पत्नी हुषीम और बारा का परित्याग करने के बाद षहरईम के मोआब देश में पुत्र उत्पन्न हुएः
9) उसकी पत्नी होदेष से उसके ये पुत्र उत्पन्न हुएः योबाब, सिब्या, मेषा, मलकम,
10) यऊस, सक्या और मिर्गा। ये उसके पुत्र थे, जो घरानों के मुखिया थे।
11) हुषीम से उसे ये पुत्र उत्पन्न हुएः अबीटूब और एल्पाआल।
12) एल्पाआल के पुत्रः एबेर, मिषआम और षेमेद। षेमेद ने ओनो और उसके गाँवों-सहित लोद बसाया।
13) फिर बेरीआ और षेमा। ये अय्या-लोनवासियों के घरानों के मुखिया थे
14) और इन्होंने गतवासियों को भगाया। फिर उसके भाई षाषक और यरुमोत।
15) जबद्या, अराद, एदेर,
16) मीकाएल, यिषपा और योहा बरीआ के पुत्र थे।
17) जबद्या, मषुल्लाम, हिजकी, हेबेर,
18) यिषमरय, यिजलिया और योबाब एल्पाआल के पुत्र थे।
19) याकीम, जिक्री, जब्दी,
20) एलीएनय, सिल्लतय, एलीएल,
21) अदाया, बराया और शिम्रात शिमई,
22) के पुत्र थे। यिषपान, एबेर, एलीएल,
23) अबदोन, जिक्री हानान,
24) हनन्या, एलाम, अन्तोतीया,
25) यिफ्दया और पनूएल षाषक के पुत्र थे।
26) षमषरय, षहरया, अतल्या,
27) यारेष्या, एलीया और जिक्री यरोहाम के पुत्र थे।
28) यही अपनी-अपनी वंषावलियों के अनुसार अपने-अपने घरानों के मुखिया और येरुसालेम के रहने वाले थे।
29) गिबओन का पिता यईएल गिबओन में रहता था। उसकी पत्नी का नाम माका था।
30) उसका पहला पुत्र अबदोन था, फिर सूर, कीष, बाल नादाब,
31) गदौर, अहयो, जेकेर
32) और मिकलोत, जो षिमआ का पिता था। ये भी अपने भाई-बन्धुओं के निकट येरुसालेम के रहने वाले थे।
33) नेर कीष का पिता था और कीष साऊल का पिता था। साऊल योनातान, मलकीषूआ, अबीनादाब और एषबाल का पिता था।
34) योनातान का पुत्रः मरीब-बाल। मरीब-बाल मीका का पिता था।
35) मीका के पुत्रः पीतोन, मेलेक, तारेआ और अहाज।
36) आहाज यहोअद्दा का पिता था। यहोअद्दा आलमेत, अजमावेत और जिम्री का पिता था। जिम्री मोसा का पिता था।
37) मोसा बिनआ का पिता था। उसका पुत्र राफ़ा था। राफ़ा का पुत्र एलआसा और एलआसा का पुत्र आसेल था।
38) आसेल के छः पुत्र थे। उनके नाम हैः अज्रीकाम, बोक्रू, इसमाएल, षअर्या, ओबद्या और हानान। ये सब आसेल के पुत्र थे।
39) उसके भाई एषेक के पुत्रः उसका पहला पुत्र ऊलाम, दूसरा यऊष और तीसरा एलीफ़ेलेट।
40) ऊलाम के पुत्र वीर योद्धा थे, जो धनुष चलाने में निपुण थे। उनके बहुत-से पुत्र-पौत्र थे कुल डेढ़ सौ। ये सब बेनयामीन के वंषज थे।

अध्याय 9

1) सब इस्राएलियों की जनगणना की गयी और उनके नाम इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिपिबद्ध हैं। यूदा के निवासी अपने विष्वासघात के कारण बाबुल में निर्वासित किये गये।
2) जो लोग पहले ही अपने-अपने भूमिगत और अपने-अपने नगरों में फिर से बसने लगे, वे इस्राएली याजक, लेवी और लेवियों के सेवक थे।
3) यूदा, बेनयामीन, एफ्रईम और मनस्सेवंषी, जो येरुसालेम के रहने वाले थे, ये हैं-
4) ऊतय, जो अम्मीहूद का पुत्र था। अम्मीहूद ओम्री का पुत्र था, ओम्री इम्री का और इम्री बानी का पुत्र था। बानी यूदा के पुत्र पेरेस का वंषज था।
5) षिलोनियों में पहलौठा असाया था और उसके पुत्र।
6) जेरह के पुत्रों में यऊएल और उनके भाई-बन्धु थे-कुल छः सौ नब्बे।
7) बेनयामीन के वंषजों में सल्लू था, जो मषूल्लाम का पुत्र, होदव्या का पौत्र और हस्सनुआ का प्रपौत्र था।
8) यरोहाम का पुत्र यिबनाया, उज्जी का पुत्र एला, मिक्री का पौत्र मषुल्लाम, जो षफ़टा का पुत्र, रऊएल का पौत्र और यिबनाया का प्रपौत्र था।
9) ये अपनी वंषावलियों के अनुसार कुल मिला कर नौ सौ छप्पन थे। ये सब अपने-अपने घरानों के मुखिया थे।
10) याजकों में यदाया, यहोयारीब, याकीन
11) और ईष्वर के मन्दिर का मुखिया अजर्या थे। अजर्या हिलकीया का पुत्र था, हिलकीया मषुल्लाम का, मषुल्लाम सादोक का, सादोक मरायोत का और मरायोत अहीटूब का पुत्र था।
12) फिर यरोहाम का पुत्र अदायाह। यरोहाम पषहूर का पुत्र और पशहूर मलकियाह का पुत्र था। मलकियाह मासय का पुत्र और मासय अदीएल का पुत्र था। अदीएल यहजेरा का, यहजेरा मषुल्लाम का, मषुल्लाम मषिल्लेमीत का और मषिल्लेमीत इम्मेर का पुत्र था।
13) वे अपने भाइयो के साथ, जो अपने-अपने घरानों के मुखिया थे, कुल मिला कर एक हजार सात सौ साठ थे। वे सुयोग्य और ईष्वर के मन्दिर की सेवा के उत्तरदायी थे।
14) लेवियों मे षमाया था। षमाया हषूब का पुत्र था, हषूब अज्रीकाम का अज्रीकाम हशब्बा का; हषब्या मरारी के वंषजों में से था।
15) फिर बकबक्कर, हेरेष, गालाल और मत्तन्या थे। मत्तन्या मीका का पुत्र, जिक्री का पौत्र और आसाफ़ का प्रपौत्र था।
16) फिर ओबद्या, जो षमाया का पुत्र, गालाल का पौत्र और यदूतून का प्रपौत्र था। फिर आसा का पुत्र और एल्काना का पौत्र बेरेक्या, जो नटोफ़ातियों के भूमिभाग का रहने वाला था।
17) ये द्वारपाल थेः षल्लूम, अक्कूब, टलमोन, अहीमान और उनके भाई-बन्धु। षल्लूम उनका मुखिया था।
18) आज तक वे पूर्वी राजद्वार की रक्षा करते हैं। लेवियों के पड़ाव के द्वारपाल ये थेः
19) कोरे का पुत्र, एबयासाफ़ का पौत्र और कोरह का प्रपौत्र षल्लूम और उनके कोरही भाई-बन्धु षिविर के द्वारों पर द्वारपाल का काम करते थे, जैसे उनके पुरखे प्रभु के षिविर में किया करते थे।
20) एलआजार का पुत्र पीनहास-प्रभु उसके साथ था-पहले उनका मुखिया था।
21) मषेलेम्या के पुत्र जकार्या दर्षन-कक्ष के द्वार का द्वारपाल था।
22) द्वारों के चुने हुए द्वारपाल कुल दो सौ बारह थे। उनके नाम अपने-अपने गाँवों की वंषावालियो में लिखे थे। दाऊद और द्रष्टा समूएल ने उन्हें स्थायी रूप से नियुक्त किया था।
23) वे और उनके पुत्र प्रभु के मन्दिर (तम्बू के मन्दिर) के द्वारों पर पहरा दिया करते थे।
24) द्वारपाल चारों दिषाओं में पूर्व, पष्चिम, उत्तर और दक्षिण की ओर खड़े रहा करते थे।
25) उनके भाइयों को, जो अपने-अपने गाँवों में रहते थे, सात-सात दिनों की पारी के लिए सेवा करने आना पड़ता था।
26) चार प्रधान द्वारपाल लेवीवंषी थे। वे उपभवनों और ईष्वर के मन्दिर के कोषों पर नियुक्त थे।
27) वे रात भर ईष्वर के मन्दिर के चारों ओर रहा करते थे; क्योंकि उनका कर्तव्य था- मन्दिर का पहरा देना और प्रातःकाल उसका द्वार खोलना।
28) उन में से कुछ लोग उपासना में प्रयुक्त सामानों की देखरेख करते थे। जब वे सामान ले जाये और वापस लाये जाते थे, तो वे उनकी गिनती करते थे।
29) उन में से कुछ लोग पात्रों, विषेष रूप से पवित्र पात्रों, मैदे, अंगूरी, तेल, लोबान और सुगन्ध-द्रव्यों की देखरेख करते थे।
30) याजकों के पुत्र सुगन्ध-द्रव्यों का मिश्रण किया करते थे।
31) मत्तिया, जो लेवियों में से एक था और कोरही षल्लूम का पहलौठा पुत्र था, पूरियाँ तैयार करता था।
32) उनके कुछ कहाती भाई-बन्धु प्रत्येक विश्राम-दिवस के लिए भेंट की रोटियाँ तैयार करते थे।
33) गवैये लेवियों के घरानों के मुखिया थे। वे सेवा के अन्य कार्यों से मुक्त थे और मन्दिर के उपभवनों में रहते थे; क्योंकि वे दिन-रात सेवा के लिए प्रस्तुत रहते थे।
34) ये अपनी-अपनी वंषवलियों के अनुसार लेवियों के घरानों के मुखिया थे और येरुसालेम में रहते थे।
35) गिबओन का पिता ईएल गिबओन में रहता था। उसकी पत्नी का नाम माका था।
36) उसका पहलौठा पुत्र अबदोन था, फिर सूर, कीष, बाल, नेर, नादाब,
37) गदोर, अहयो, जकार्या और मिकलोत।
38) मिकलोत षिमआम का पिता था। वे भी अपने भाई-बन्धुओं के पास येरुसालेम में रहते थे।
39) नेर कीष का पिता था, कीष साऊल का, साऊल योनातान, मलकीषूआ, अबीनादाब और एषबाल का पिता था।
40) योनातान का पुत्र मरीब-बाल था। मरीब-बाल मीका का पिता था।
41) मीका के पुत्रः पीतोन, मेलेक, तहरेआ और आहाज।
42) आहाज यारा का पिता था। यारा आलेमेत, अजमावेत और जिम्री का पिता था। जिम्री मोसा का पिता था।
43) मोसा बिनआ का पिता था। उसका पुत्र रफ़ाया था। रफ़ाया का पुत्र एलआसा था और एलआसा का पुत्र आसेल था।
44) आसेल के छह पुत्र थे। उनके नाम हैः अजीकाम, बीक्रू, इसमाएल, षअर्या, आबेद्या और हनान। ये आसेल के पुत्र थे।

अध्याय 10

1) फ़िलिस्ती इस्राएल के विरुद्ध लड़ रहे थे। इस्राएली फ़िलिस्तियों के सामने से भाग खड़े हुए और उन में से बहुत लोग गिलबोआ के पर्वत पर मरे हुए पड़े थे।
2) फ़िलिस्तियों ने साऊल और उसके पुत्रों का पीछा कर साऊल के पुत्र योनातन, अबीनादाब और मलकीषूआ को मार डाला।
3) तब साऊल के निकट घमासान युद्ध हुआ। तीरन्दाज उसकी ओर बढ़े। साऊल तीरन्दाजों को देख कर थरथरा कर काँपने लगा।
4) साऊल ने अपने षस्त्रवाहक से कहा, ÷÷अपनी तलवार खींच लो और मुझे मार डालो। ऐसा न हो कि वे बेख़तना लोग आ कर मेरा अपमान करें।'' लेकिन उसके षस्त्रवाहक ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वह बहुत डर रहा था। इस पर साऊल ने अपनी तलवार खींचकर अपने को उस पर गिरा दिया।
5) जब उसके षस्त्रवाहक ने देखा कि साऊल की मृत्यु हो गयी, तो उसने भी अपने को अपनी तलवार पर गिरा दिया और वह उसके साथ मर गया।
6) इस प्रकार साऊल और उसके तीन पुत्र मर गये। उसका सारा घराना एक साथ मर गया।
7) जब इस्राएलियों ने देख कि इस्राएली सैनिक भाग गये हैं तब साऊल और उसके पुत्रों की मृत्यु हो गयी है, तो वे अपने-अपने नगर छोड़ कर भाग निकले। इस पर फ़िलिस्ती आ कर उन में बस गये।
8) दूसरे दिन मरे हुए लोगों को लूटने के लिए फ़िलिस्ती लोग आ पहुँचे। उन्होंने साऊल और उसके पुत्रों को देखा, जो गिलबोआ के पर्वत पर मारे गये थे।
9) उन्होंने उसके वस्त्र, उसका सिर और उसका कवच ले लिया और अपने देवताओं तथा लोगों को विजय की सूचना देने फ़िलिस्तियों के देष भर में दूत भेजे।
10) उन्होंने उसके अस्त्र-षस्त्र अपने देवता के मन्दिर में रख दिये और उसका सिर दागोन के मन्दिर में लटका दिया।
11) फ़िलिस्तियों ने साऊल के साथ जो किया था, जब गिलआद के याबेष के सब निवासियों ने वह सुना,
12) तब सब युद्ध-योग्य पुरुष प्रस्थान कर साऊल और उसके पुत्रों के षव याबेष ले आये। फिर उनकी अस्थियाँ याबेष के झाऊ वृक्ष के नीचे दफ़ना दीं और सात दिन तक उपवास किया।
13) (१३-१४) इस प्रकार साऊल प्रभु के साथ अपने विष्वासघात के कारण मरा; क्योंकि उसने प्रभु की आज्ञा नहीं मानी थी और वह प्रभु से नहीं, बल्कि प्रेत साधनेवाली स्त्री से परामर्ष लेने गया था। इसलिए प्रभु ने उसे मारा और राज्य यिषय के पुत्र दाऊद को दे दिया।

अध्याय 11

1) इसके बाद सब इस्राएली हेब्रोन में दाऊद के पास आ कर यह कहने लगे, ÷÷देखिये, हम रक्त-सम्बन्धी हैं।
2) जब साऊल राजा थे, तब पहले भी आप ही इस्राएलियों को युद्ध के लिए ले जाते और वापस ले आते थे। प्रभु, आपके ईष्वर ने आप से कहा है, ÷तुम ही मेरी प्रजा इस्राएल के चरवाहा, मेरी प्रजा इस्राएल के षासक बन जाओगे÷।''
3) इस्राएल के सभी नेता हेब्रोन में राजा के पास आये और दाऊद ने हेब्रोन में प्रभु के समाने उनके साथ समझौता किया। जैसा कि प्रभु ने समूएल द्वारा कहा था, उन्होंने दाऊद का इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक किया।
4) दाऊद ने सब इस्राएलियों को साथ ले कर येरुसालेम अर्थात् यबूस पर आक्रमण किया। वहाँ उस प्रदेष के मूल निवासी यबूसी रहते थे।
5) यबूस के निवासियों ने दाऊद से कहा, ÷÷तुम यहाँ प्रवेष नहीं करोगे''। परन्तु दाऊद ने सियोन के क़िले (अर्थात् दाऊदनगर) पर अधिकार कर लिया।
6) उस समय दाऊद ने कहा था, ÷÷जो यबूसियों को पहले पराजित करेगा, वही प्रधान सेनापति बनेगा''। सरूया का पुत्र योआब सब से पहले ऊपर चढ़ा और वही प्रधान बन गया।
7) दाऊद उसी गढ़ में रहने लगा और उसने उसका नाम दाऊदनगर रखा।
8) दाऊद ने मिल्लो से ले कर गढ़ के चारों ओर नगर बनवाया और योआब ने नगर के षेष पुल का पुनर्निर्माण किया।
9) दाऊद की षक्ति निरन्तर बढ़ती गयी; क्योंकि प्रभु, विष्वमण्डल का प्रभु उसका साथ देता था।
10) दाऊद के वीर योद्धाओ के उन मुखियाओं की सूची, जिन्होंने राजपद के सम्बन्ध में सब इस्राएलियों के साथ उसका पक्ष लिया और प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार सारे देष पर उसका अधिकार स्थापित किया।
11) दाऊद के वीर योद्धाओं की यह सूची इस प्रकार हैः हकमोन का याषोबआम, जो तीन प्रमुख योद्धाओं का प्रधान था। उसने एक साथ तीन सौ आदमियों पर अपना भाला चलाया और उन को एक ही भिड़न्त में मार गिराया।
12) उसके बाद अहोही दोदो का पुत्र एलआजार तीन प्रमुख योद्धाओं में एक था।
13) वह उस समय दाऊद के साथ पसदम्मीम में था, जब फ़िलिस्ती वहाँ युद्ध के लिए एकत्रित थे। वहाँ जौ का एक खेत था।
14) जब लोग फ़िलिस्तियों के सामने से भाग खड़े हुए तब वे खेत के बीच खड़े हो कर उसकी रक्षा करते और फ़िलिस्तियों को मारते रहे। उस दिन प्रभु ने महान् विजय दिलायी।
15) एक बार उन तीस योद्धाओं में से तीन अदुल्लाम की गुफा में दाऊद के पास आये, जहाँ दाऊद ने आश्रय लिया था। फ़िलिस्तियों का एक दल रफ़ाईम के मैदान मे पड़ाव डाले पड़ा था।
16) उस समय दाऊद अपने क़िले में था और फ़िलिस्तियों की एक टोली बेथलेहेम में पड़ी थी
17) तब दाऊद ने यह इच्छा प्रकट की, ÷÷कौन बेथलेहेम के फाटक वाले कुएँ से मेरे लिए पानी लायेगा?''
18) इस पर वे तीनों फ़िलिस्तियों के पड़ाव को पार कर और बेथलेहेम के फाटक वाले कुएँ पानी भर कर दाऊद के पास लाये। परन्तु दाऊद ने उसे पीने से इनकार कर प्रभु के सामने
19) यह कहते हुए उँढ़ेल दिया, ÷÷ईष्वर न करे कि मैं ऐसा करूँ। क्या मैं इन आदमियों का रक्त पिऊँ, जो अपने प्राण हथेली पर रख कर वहाँ गये?'' उसने उसे पीना अस्वीकार किया क्योंकि वे अपने प्राण हथेली पर रख कर उसे लाये। ये इन तीन वीरों के कार्य थे।
20) योआब का भाई अबीषय तीस प्रमुख योद्धाओं का प्रधान था। उसने एक साथ तीन सौ आदमियों पर अपना भाला चलाया और उन्हें मार गिराया, किन्तु वह तीनों में सम्मिलित नहीं किया गया।
21) वह तीस प्रमुख योद्धाओं से अधिक सम्मानित था और उनका नेता बन गया, लेकिन वह तीनों में सम्मिलित नहीं किया गया।
22) यहोयादा का पुत्र बनाया वीर योद्धा का पुत्र था। वह कबसएल का निवासी था और बड़े कारनामे करता था। उसने मोआब के दो वीर योद्धाओं को मारा। किसी दिन, जब बर्फ़ पड़ रही थी, उसने एक गड्ढे में उतर कर एक सिंह को मारा।
23) उसने पाँच हाथ लम्बे मिस्री को भी मारा। मिस्री के हाथ में करघे के डण्डे के समान एक भाला था, परन्तु वह हाथ में लाठी लिये ही उसके पास गया और मिस्त्री के हाथ से भाला छीन कर उसे उसके ही भाले से मार डाला।
24) ये यहोयादा के पुत्र बनाया के कारनामे हैं। वह तीस प्रमुख वीरों में सुप्रसिद्ध था।
25) वह तीस वीरों में सब से अधिक सम्मानित था, किन्तु वह तीन प्रमुख वीरों में सम्मिलित नहीं किया गया। दाऊद ने उसे अपने अंगरक्षकों का प्रधान बनाया।
26) वीर योद्धा ये थेः योआब का भाई असाएल, बेथलेहेमवासी दोदो का पुत्र एल्हानान,
27) हरोद का षम्मोत, पलोनी हेलेस,
28) तकोआवासी इक्केष का पुत्र ईरा, अनातोत का अबयेजेर,
29) हुषाती सिब्बकय, अहोही ईलय,
30) नटोफ़ा का महरय, नटोफ़ा के बाना का पुत्र हेलेद,
31) बेनयामीनवंषी गिबआवासी रीबय का पुत्र इत्तय, पिरआतोन का बनाया,
32) नहले-गाष का हूरय, अरबाती अबीएल,
33) बहूरीम का असमावेत, षअलबोन का हल्यहबा,
34) गिजोनी हाषेम के पुत्र, हरारी षागे का पुत्र,
35) हरारी साकार का पुत्र अहीआम, ऊर का पुत्र एलीफ़ाल,
36) मकेरा का हेफ़ेर, पलोनी अहीया,
37) करमेल का हेस्रो, एजबय का पुत्र नअरय,
38) नातान का भाई योएल, हगरी का पुत्र मिबहार,
39) अम्मोनी सेलेक, बएरोत का नहरय, जो सरूया के पुत्र योआब का षस्त्रवाहक था,
40) यित्री ईरा, यित्री गारेब,
41) हित्ती ऊरीया, अहलय का पुत्र जाबाद,
42) रूबेनवंषी और रूबेनवंषियों का मुखिया षीजा का पुत्र अदीना, जिसके अधीन तीस लोग थे,
43) माका का पुत्र हानान, मित्नी योषाफ़ाट,
44) अष्तरोती उज्जीया, अरोएरी होताम के पुत्र षामा और येईएल,
45) षिम्री का पुत्र यदीअएल और उसका भाई तीसी योहा,
46) महवी एलीएल, एलनआम के पुत्र यरीबय और योषव्या, मोआबी यितमा,
47) एलीएल, ओबेद और मसबायी यासीएल।

अध्याय 12

1) जब दाऊद कीष के पुत्र साऊल के दरबार से निर्वासित किया गया था,
2) तो ये वीर योद्धा दाऊद के पास सिकलग आये और युद्ध में उसकी सहायता किया करते। वे धनुर्धारी थे और दायें-बायें, दोनों हाथों से तीर चला और गोफन के पत्थर फेंक सकते थे। बेनयामीनवंषी, साऊल के भाइयों में ये थेः
3) उनका मुखिया अहीयेजर और योआस-दोनों गिबआवासी षमाआ के पुत्र; अजमावेत के पुत्र यजिएल और पेलेट, बराका, अनातोतवासी येहू,
4) गिबओन का यिषमाया, तीस प्रमुख वीरों में एक और उनका प्रधान;
5) यिरमया, यहजीएल, योहानान और गेदरा का योजाबाद,
6) एलऊजय यरीमोत, बअल्या, षमर्या, हरूफ़ का षफटा,
7) एल्काना, यिष्षीया, अजरएल, योएजेर और याषोबआम, जो कोरह के वंषज थे
8) तथा गदोरवासी यरोहाम के पुत्र योएला और जबद्या।
9) गादवंषियों में यही दाऊद के पास उजाड़खण्ड के बीहड़ों में आये। ये वीर और अनुभवी योद्धा थे-ढाल और भाले से सज्जित, सिंह-जैसे निर्भीक और पहाड़ी चिकारे-जैसे तेज।
10) पहला एजेर, जो मुखिया था, दूसरा ओबद्या, तीसरा एलीबआब,
11) चौथा मिषमन्ना, पाँचवाँ यिरमया,
12) छठा अत्तय, सातवाँ एलीएल,
13) आँठवाँ योहानान, नौवाँ एल्जाबाद,
14) दसवाँ यिरमया और ग्यारहवाँ मकबन्नय।
15) यही गादवंषी थे, जो सेना में अध्यक्ष थे। इन में जो सब से छोटा था, वह सौ के बराबर था और इन में जो बड़ा था, वह हजार के बराबर था।
16) उन्होंने वर्षा के पहले महीने में तब यर्दन पार किया था, जब उस में बाढ़ आयी थी और उन्होंने पूर्वी और पष्चिमी मैदान के सभी निवासियों को भगा दिया था।
17) बेनयामीन और यूदा के वंष से कुछ लोग उजाड़खण्ड के बीहड़ों में दाऊद के पास आये।
18) दाऊद उन से मिलने बाहर आया और बोला, ÷÷यदि तुम सद्भाव से मेरी सहायता करने आये हो, तो मैं सारे हृदय से तुम्हारा स्वागत करने को तैयार हूँ; किन्तु यदि तुम विष्वासघात से मुझ निर्दोष को मेरे षत्रुओं के हाथ सौंपना चाहते हो, तो हमारे पूर्वजों का ईष्वर यह देख ले और तुम्हें दण्डित करे''।
19) तब तीसों का प्रधान अमासय आत्मा की प्रेरणा से बोल उठाः ''दाऊद! हम तुम्हारे हैं, यिषय के पुत्र! हम तुम्हारे साथ हैं! षान्ति! तुम्हें षान्ति! तुम्हारे सहायकों को षान्ति! क्योंकि तुम्हारा ईष्वर तुम्हारी सहायता करता है।'' तब दाऊद ने उन्हें स्वीकार कर अपने दल के नेता बना दिया।
20) जब दाऊद साऊल के विरुद्ध फ़िलिस्तियों के साथ लड़ने लगा, तब मनस्सेवंषियों में कुछ लोग उसके पास आये। वह फ़िलिस्तियों की कुछ भी सहायता नहीं कर पाया, क्योंकि फ़िलिस्तियों के षासकों ने आपस में सलाह कर यह कहते हुए उसे लौटा दिया था, ÷÷सम्भव है, वह अपने स्वामी का पक्ष ले और हमारे सिर पर विपत्ति आ पड़े''।
21) जब दाऊद सिकलग गया, तब मनस्सेवंषियों में ये लोग उसके पास आयेः अदनाह, योजाबाद, यदीआएल, मीकाएल, ऐजाबाद, एलीहू और सिल्लतय, जो मनस्से के सहस्रपति थे।
22) उन्होंने दाऊद और उसके दल की सहायता की, क्योंकि वे सब वीर योद्धा थे और सेना के अध्यक्ष बने।
23) प्रतिदिन दाऊद की सहायता करने लोग उसके पास आये, जिससे उसकी सेना बहुत बड़ी हो गयी।
24) विभिन्न दलों के सषस्त्र सैनिकों की संख्या यह है, जो-जैसा कि प्रभु ने कहा था-हेब्रोन में दाऊद के पास आये, जिससे वे साऊल का राज्य दाऊद को सौंपेः
25) यूदा के छः हजार आठ सौ ढाल और भालाधारी सषस्त्र सैनिक;
26) सिमओन के सात हजार एक सौ सषस्त्र वीर योद्धा;
27) लेवी के चार हजार छः सौ
28) और हारून के कुटुम्ब के मुखिया यहोयादा के साथ तीन हजार सात सौ सैनिक,
29) वीर युवक सादोक और उसके घराने के बाईस मुखिया;
30) बेनयामीन के तीन हजार लोग; वे साऊल के सम्बन्धी और अधिकांश अब तक साऊल के घराने के नौकर थे;
31) एफ्रईम के बीस हजार आठ सौ वीर योद्धा, जो अपने-अपने कुलों में प्रसिद्ध थे;
32) मनस्से के आधे कुल के अठारह हजार पुरुष, जो दाऊद को राजा बनाने के लिए भेजे गये थे;
33) इस्साकार के दो सौ मुखिया और उनके अधीन के सब सम्बन्धी, जो समय पहचानते थे और यह जानते थे कि इस्राएलियों को अब क्या करना चाहिए;
34) जबुलोन के पचास हजार अनुभवी सैनिक, जो हर प्रकार के षस्त्र से सुसज्जित थे और सारे हृदय से दाऊद की सहायता करने को तैयार थे;
35) नफ्ताली के एक हजार मुखिया और सैंतीस हजार ढाल और भालाधारी सैनिक;
36) दान के अट्ठाईस हजार छः सौ युद्ध-योग्य सैनिक;
37) आषेर के चालीस हजार सषस्त्र सैनिक;
38) यर्दन के उस पार रूबेन, गाद और आधे मनस्से वंष के, हर प्रकार के षस्त्रों से सुसज्जित, एक लाख बीस हजार सैनिक।
39) ये सब सैनिक, जो युद्ध के लिए तत्पर थे, केवल इस उद्देष्य से हेब्रोन आये थे कि वे दाऊद को समस्त इस्राएलियों का राजा बनायें। अन्य सभी इस्राएली भी एकमत हो कर दाऊद को राजा बनाना चाहते थे।
40) वे दाऊद के यहाँ तीन दिन तक खाते-पीते रहे; क्योंकि उनके भाई-बन्धुओं ने उनके भोजन का प्रबन्ध कर रखा था।
41) आसपास रहने वालों में इस्साकार, जबुलोन और नफ्ताली तक के लोग भी गधों, ऊटों, खच्चरों और बैलों पर लाद कर प्रचुर मात्रा में खाद्य-सामग्री लाये थेः आटा, अंजीर की रोटिया, किषमिष, अंगूरी, तेल, बैल और बहुत-सी भेडें, इस्राएल में खुषी की एक लहर-सी दौड़ गयी थी।

अध्याय 13

1) दाऊद ने सहस्त्रपतियों और षतपतियों-सब नेताओं से सलाह ली।
2) दाऊद ने इस्राएल के सारे समुदाय से कहा, ÷÷यदि आप लोग ठीक समझें और प्रभु, हमारे ईष्वर को यह बात स्वीकार्य हो, तो हम अपने सारे अन्य बन्धुओं को, जो इस्राएल के देष भर में रह गये हैं और उनके साथ अपने नगरों और चरागाहों में रहने वाले याजकों तथा लेवियों को यह कहला भेजें कि वे हम में सम्मिलित हों।
3) हम अपने ईष्वर की मंजूषा अपने पास ले आयें, क्योंकि हमने साऊल के षासनकाल में उसका ध्यान नहीं रखा।''
4) सारे समुदाय ने इसे स्वीकार किया। यह प्रस्ताव सब लोगों को अच्छा लगा।
5) दाऊद ने मिस्र के षीहोर से ले कर हमात के मार्ग तक के सब इस्राएलियों के किर्यत-यआरीम से प्रभु की मंजूषा ले आने के लिए एकत्रित किया।
6) दाऊद सब इस्राएलियों के साथ यूदा प्रान्त के बाला, अर्थात् किर्यत-यआरीम गया, जिससे वह वहाँ से ईष्वर की मंजूषा ले आये, जो केरूबों पर आसीन प्रभु के नाम से प्रसिद्ध है।
7) ईष्वर की मंजूषा एक नई गाड़ी पर रखी गयी और अबीनादाब के घर से ले जायी गयी। उज्जा और अहयो वह गाड़ी हाँक रहे थे।
8) दाऊद और इस्राएल के सब लोग ईष्वर के सामने सारे हृदय से खुषियाँ मना रह थे और गीत गाते, सितार, सारंगी, डफ, डमरू और तुरहियाँ बजाते हुए चल रहे थे।
9) जब वे कीदोन के खलिहान के पास आये, तब उज्जा ने हाथ उठा कर मंजूषा को सँभाला, क्योंकि बैलों को ठोकर लग गयी थी।
10) प्रभु का कोप उज्जा पर भड़क उठा, क्योंकि उसने मंजूषा को हाथ उठाकर छू लिया था। वहीं ईष्वर के सामने उसकी मृत्यु हो गयी।
11) दाऊद बहुत घबरा गया, क्योंकि प्रभु का क्रोध उज्जा पर भड़क उठा। उस स्थान का नाम पेरेस-उज्जा पड़ गया, जो आज तक प्रचलित है।
12) उस दिन यह सोच कर दाऊद ईष्वर से डर गया कि मैं ईष्वर की मंजूषा अपने पास कैसे ला सकता हूँ।
13) इसलिए दाऊद मंजूषा अपने यहाँ दाऊदनगर में नहीं लाया, बल्कि उसे गतवासी ओबेद-एदोम के यहाँ ले गया।
14) ईष्वर की मंजूषा तीन महीने तक ओबेद-एदोम के यहाँ रही। प्रभु ने ओबेद-एदोम के घर और परिवार और उसके यहाँ जो कुछ था, उसे आषीर्वाद दिया।

अध्याय 14

1) तीरूस के राजा हीराम ने देवनगर की लकड़ी, षिल्पकारों और बढ़इयों के साथ दाऊद के पास दूत भेजे, जिससे वे उसके लिए महल बना दें।
2) अब दाऊद जान गया कि प्रभु ने उसे इस्राएल का राजा बना दिया है और अपनी प्रजा इस्राएल के कारण उसका राज्य महान् बना दिया।
3) दाऊद ने येरुसालेम में अन्य पत्नियों से विवाह किया और उसके और पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न हुए।
4) येरुसालेम में उत्पन्न उसके पुत्रों के नाम ये हैं: शम्मूआ, षोबाब, नातान, सुलेमान,
5) यिभार, एलीषूआ, एल्पलेट,
6) नोगह, नेफ़ेग, याफ़ीआ,
7) एलीषामा, बएलयादा और एलीफ़े।
8) जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि दाऊद का सभी इस्राएलियों के राजा के रूप में अभिषेक हुआ है, तो वे सब दाऊद की खोज में निकले। यह सुन कर दाऊद उनका सामना करने निकला।
9) फ़िलिस्तिनी आये और रफ़ाईम के मैदान में फैल गये।
10) तब दाऊद ने ईष्वर से पूछा, ÷÷क्या मैं फ़िलिस्तियों पर आक्रमण करूँ? क्या तू उन्हें मेरे हाथ दे देगा?'' प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ÷÷हाँ, आक्रमण करो; मैं उन्हें तुम्हारे हाथ दे दूँगा''।
11) दाऊद ने उन्हें बाल-परासीम जा कर पराजित किया। उस समय दाऊद ने कहा, ÷÷ईष्वर ने मेरे द्वारा मेरे षत्रुओं की पंक्ति इस प्रकार तोड़ डाली है, जैसे पानी बाँध का तोड़ डालता है''। इसलिए उस स्थान का नाम बाल-परसीम पड़ गया।
12) फ़िलिस्ती वहाँ अपनी देवमूर्तियाँ छोड़ कर चले गये और वे दाऊद की आज्ञा से आग में जला दी गयीं।
13) फ़िलिस्ती फिर आ कर उस मैदान में फैल गये।
14) ईष्वर से पूछने पर दाऊद को उत्तर मिला, ÷÷उन पर सीधे आक्रमण मत करो, बल्कि चक्कर काट कर उनके पीछे पहुँचो और मोखा वृक्षों की ओर से चढ़ाई करो।
15) तब यदि तुम मोखा वृक्षों के षिखरों में चलने की आवाज सुनोगे, तो आक्रमण करोगे; क्योंकि तब फ़िलिस्तियों की सेना पराजित करने के लिए ईष्वर तुम्हारे आगे-आगे जा रहा होगा।''
16) दाऊद ने ईष्वर की आज्ञा का पालन किया और गिबओन से ले कर गेजेर तक फ़िलिस्तियों को मार भगाया।
17) दाऊद की कीर्ति देष-देषान्तरों में फैल गयी और प्रभु ने उसका आतंक सब राष्ट्रों पर फैला दिया।

अध्याय 15

1) दाऊदनगर में अपने लिए भवन बनवाने के बाद दाऊद ने ईष्वर की मंजूषा के लिए एक स्थान निष्चित किया और उसके लिए एक तम्बू खड़ा कर दिया।
2) दाऊद ने आज्ञा दी कि ईष्वर की मंजूषा केवल लेवीवंषी ढोयें, क्योंकि प्रभु ने उन्हें प्रभु की मंजूषा ढोने और सदा उसकी सेवा करते रहने के लिए नियुक्त किया था।
3) ईष्वर की मंजूषा को उस स्थान पर ले आने के लिए, जिसे उसने उसके लिए तैयार करवाया था दाऊद ने सभी इस्राएलियों को एकत्र किया।
4) दाऊद ने हारून तथा लेवी के पुत्रों को बुला भेजाः
5) कहात के वंषजों में मुखिया ऊरीएल और उसके एक सौ बीस सम्बन्धी;
6) मरारी के वंषजों में मुखिया असाया और उसके दो सौ बीस सम्बन्धी;
7) गेरषोम के वंषजों में मुखिया योएल और उसके एक सौ तीस सम्बन्धी;
8) एलीसाफ़ान के वंषजों में मुखिया षमाया और उसके दो सौ सम्बन्धी;
9) हेब्रोन के वंषजों में मुखिया एलीएल और उसके अस्सी सम्बन्धी;
10) उज्जीएल के वंषजों में मुख़िया अम्मीनादाब और उसके एक सौ बारह सम्बन्धी।
11) दाऊद ने याजक सादोक और एबयातर तथा लेवीवंषी ऊरीएल, असाया, योएल, षमाया, एलीएल और अम्मीनादाब को बुला कर
12) उन से कहा, ÷÷तुम लेवीवंषी घरानों के मुखिया हो। तुम और तुम्हारे भाई-बन्धु अपने आप को पवित्र करो और इस्राएल के ईष्वर प्रभु की मंजूषा उस स्थान ले जाओ, जिसे मैंने उसके लिए तैयार करवाया है।
13) पहली बार तुम लोग मंजूषा को उठा कर नहीं ले आये, इसलिए प्रभु, हमारे ईष्वर का क्रोध हम पर भड़क उठा। हमने नियम के अनुसार उस से नहीं पूछा था।''
14) इसलिए प्रभु, इस्राएल के ईष्वर की मंजूषा ऊपर ले जाने के लिए याजकों और लेवियों ने अपने को पवित्र किया।
15) मूसा ने प्रभु के आदेषानुसार जैसा कहा था, लेवी वैसे ही डण्डों के सहारे ईष्वर की मंजूषा अपने कन्धों पर उठा कर ले गये।
16) तब दाऊद ने लेवियों के नेताओं को ओदष दिया कि वे अपने बन्धुओं को गायक के रूप में नियुक्त करें, जिससे वे सारंगी, सितार, झाँझ आदि वाद्यों को बजा कर आनन्द का संगीत सुनायें।
17) तब लेवियों ने योएल के पुत्र हेमान को और उसके भाई-बन्धुओं में बेरेक्या के पुत्र आसाफ़ को और मरारियों में कुशाया के पुत्र एतान को नियुक्त किया।
18) उनके साथ उन्होंने द्वितीय श्रेणी के उनके भाइयों, अर्थात् जकर्या, याजीएल, षमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, बनाया, मासेया, मत्तित्या, एलीफ़लेहू, मिकनेया और द्वारपाइ ओबेद-एदोम और योएल को भी नियुक्त किया।
19) उन्होंने गायकों में हेमान, आसाफ़ और एतान को नियुक्त किया, जिससे वे काँसे की झाँझें बजायें,
20) जकर्या, अजीएल, षमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, मासेया और बनाया को, जिससे वे ऊँचे स्वर में गाने वालों के लिए सारंगी बजाये;
21) और मत्तिया, एलीफ़लेहू, मिकनेया, ओबेद-एदोम, यईएल और अजज्या को, जिससे वे कम ऊँचे स्वर में गाने वालों के लिए वीणा बजायें।
22) लेवियों के प्रधान कनन्या को संगीत-निर्देष सौंपा गया, क्योंकि वह संगीत में निपुण था।
23) बेरेक्या और एल्काना मंजूषा के द्वारपाल के कार्य के लिए नियुक्त किये गये।
24) याजक षबन्या, योषाफ़ाट, नतनएल, अमासय, जकर्या, बनाया और एलीएजर ईष्वर की मंजूषा के सामने तुरही बजाते थे। ओबेद-एदोम और यहीया भी मंजूषा के द्वारपाल का कार्य करते थे।
25) दाऊद, इस्राएल के नेता और सहस्रपति, बडे आनन्द के साथ ओबेद-एदोम के घर से प्रभु की मंजूषा ले आने के लिए गये।
26) उन्होंने सात साँड़ों और सात मेढ़ों की बलि चढ़ायी, क्योंकि ईष्वर ने प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले लेवियों की सहायता की थी।
27) दाऊद, मंजूषा ढोने वाले सब लेवी, गवैये और संगीत -निर्देषक कनन्या, सभी छालटी के वस्त्र पहने थे। दाऊद छालटी का एफ़ोद भी पहने था।
28) इस प्रकार सभी इस्राएली जयकार करते हुए सिंगे, तुरहियाँ, झाँझें, सारंंिगयाँ और सितार बजाते हुए प्रभु के विधान की मंजूषा ऊपर ले जा रहे थे।
29) जब प्रभु की मंजूषा दाऊदनगर में प्रवेष कर रही थी, तो साऊल की पुत्री मीकल ने खिड़की से राजा दाऊद को नाचते-कूदते देख कर मन-ही-मन दाऊद का तिरस्कार किया।

अध्याय 16

1) वे ईष्वर की मंजूषा को ले आये और उसे उस तम्बू में रख दिया, जिसे दाऊद ने उसके लिए खड़ा कर दिया था। उन्होंने ईष्वर को होम तथा षान्ति के बलिदान चढ़ाये।
2) होम तथा षांन्ति के बलिदान चढाने के बाद दाऊद ने प्रभु के नाम पर लोगों को आषीर्वाद दिया।
3) उसने सभी इस्राएली पुरुषों और स्त्रियों को एक-एक रोटी, भूने हुए मांस का एक-एक टुकड़ा और किषमिष की एक-एक टिकिया दी।
4) दाऊद ने प्रभु की मंजूषा की सेवा के लिए कुछ लेवियों को नियुक्त किया, जिससे वे प्रभु, इस्राएल के ईष्वर का नाम लें, उसकी महिमा गायें और उसकी स्तुति करें।
5) आसाफ़ उनका प्रधान था; इसके बाद दूसरा जकर्या; फिर यईएल, षमीरामोत, यहीएल, मत्तित्या, एलीआब, बनाया, ओबेद-एदोम और यईएल। ये सारंगी और सितार बजाते थे, आसाफ़ झाँझें बजाता था
6) और याजक बनाया तथा यहजएल प्रभु के विधान की मंजूषा के सामने निरन्तर तुरहियाँ बजाते थे।
7) उस दिन दाऊद ने पहली बार आदेष दिया कि आसाफ़ और उसके भाई-बन्धु प्रभु की स्तुति करें:
8) प्रभु की स्तुति करो, उसका नाम धन्य कहो। राष्ट्रों में उसके महान् कार्यों का बखान करो।
9) उसके आदर में गीत गाओ और बाजा बजाओ। उसके सब चमत्कारों को घोषित करो।
10) उसके पवित्र नाम पर गौरव करो। प्रभु को खोजने वालों का हृदय आनन्दित हो।
11) प्रभु और उसके सामर्थ्य का मनन करो। उसके दर्षनों के लिए लालायित हो।
12) उसके चमत्कार, उसके अपूर्व कार्य और उसके निर्णय याद रखो।
13) प्रभु-भक्त इस्राएल की सन्तति! याकूब के पुत्रों! प्रभु की चुनी हुई प्रजा!
14) प्रभु ही हमारा ईष्वर है। उसके निर्णय समस्त पृथ्वी पर व्याप्त है।
15) उसका विधान सदा स्मरण रखो, हजारों पीढ़ियों के लिए उसकी प्रतिज्ञाएँ,
16) इब्राहीम के लिए निर्धारित विधान, इसहाक के सामने खायी हुई षपथ,
17) याकूब को प्रदत्त संहिता, इस्राएल के लिए चिरस्थायी विधान।
18) उसने कहा थाः ÷÷मैं तुम्हें कनान देष दूँगा, वह तुम्हारे लिए निष्चित की हुई विरासत है।''
19) उस समय तुम्हारी संख्या बहुत कम थी, तुम मुट्ठी-भर प्रवासी थे।
20) वे एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में, एक राज्य से दूसरे राज्य में भटकते-फिरते थे।
21) फिर भी प्रभु ने किसी को उन पर अत्याचार नहीं करने दिया। उसने उनके कारण राजाओं को डाँटाः
22) मेरे अभिषिक्तों पर हाथ नहीं लगाना, मेरे नबियों को कष्ट नहीं देना''।
23) समस्त पृथ्वी! प्रभु का भजन सुनाओ। दिन-प्रतिदिन उसका मुक्ति-विधान घोषित करो।
24) सभी राष्ट्रों में उसकी महिमा का बखान करो। सभी लोगों को उसके अपूर्व कार्यों का गीत सुनाओ;
25) क्योंकि प्रभु महान् और अत्यन्त प्रषंसनीय है। वह सब देवताओं में परमश्रद्धेय है।
26) अन्य राष्ट्रों के सब देवता निस्सार हैं, किन्तु प्रभु ने आकाष का निर्माण किया है।
27) वह महिमामय और ऐष्वर्यषाली है। उसका निवास वैभवपूर्ण और भव्य है।
28) पृथ्वी के सभी राष्ट्रो! प्रभु की महिमा और सामर्थ्य का बखान करो।
29) उसके नाम की महिमा का गीत सुनाओ। चढ़ावा ले कर उसके सामने आओ। पवित्र वस्त्र पहन कर प्रभु की आराधना करो।
30) समस्त पृथ्वी! उसके सामने काँप उठो। पृथ्वी सुदृढ़ है; वह हिलेगी नहीं।
31) स्वर्ग में आनन्द और पृथ्वी पर उल्लास हो। राष्ट्रों में घोषित करो कि प्रभु ही राजा है।
32) सागर की लहरें गर्जन करने लगें, खेतों के पौधे खिल जायें
33) और वन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें; क्योंकि प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है।
34) प्रभु की स्तुति करो; क्योंकि वह भला है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।
35) यह कहो-प्रभु! हमारे ईष्वर! हमारा उद्धार कर। राष्ट्रों में से हमें एकत्र कर, जिससे हम तेरा पवित्र नाम धन्य कहें और तेरी स्तुति करते हुए अपने को धन्य समझें।
36) प्रभु, इस्राएल का ईष्वर, सदा-सर्वदा धन्य है। इस पर सब लोगो ने कहा, ''आमेन'' और ÷÷प्रभु की स्तुति करो''।
37) दाऊद ने वहाँ प्रभु के विधान की मंजूषा के सामने आसाफ़ और उसके भाई-बन्धुओं को नियुक्त किया, जिससे वे प्रतिदिन के कार्यक्रम के अनुसार मंजूषा के, सामने निरन्तर सेवा करते रहें।
38) उसने ओबेद-एदोम तथा उसके अड़सठ भाई-बन्धुओं को भी सेवा में उनकी सहायता के लिए नियुक्त किया और यदूतून के पुत्र ओबेद-एदोम और होसा को द्वारपाल के रूप में।
39) उसने याजक सदोक और उसके याजक भाइयों को गिबओन की पहाड़ी पर प्रभु के निवास के समाने नियुक्त किया,
40) जिससे वे बलि की वेदी पर प्रातः और सन्ध्या समय प्रभु की होम-बलि ठीक उसी प्रकार चढ़ाया करें, जिस प्रकार इस्राएलियों को प्रदत्त प्रभु की संहिता में लिखा है।
41) उनके साथ हेमान, यदूतून और अन्य लोग थे, जो नाम लेकर चुने और नियुक्त किये गये, जिससे वे प्रभु की महिमा करें; क्योंकि उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।
42) हेमान और यदूतून के पास तुरहियाँ, झाँझें और प्रभु के संगीत के वाद्य थे। यदूतून के पुत्र द्वारपाल थे।
43) इसके बाद प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घर लौट गया और दाऊद भी अपने कुटुम्बियों को आषीर्वाद देने अपने घर गया।

अध्याय 17

1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा, तो उसने नबी नातान से कहा, ÷÷देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु प्रभु के विधान की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है''।
2) नातान ने दाऊद को यह उत्तर दिया, ÷÷आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।''
3) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ीः
4) ÷÷मेरे सेवक दाऊद के पास जा कर कहो-प्रभु यह कहता हैः तुम मेरे लिए मन्दिर नहीं बनवाओगे।
5) जिस दिन मैं इस्राएल को निकाल लाया, उस दिन से आज तक मैंने किसी भवन में निवास नहीं किया। मैं एक तम्बू से दूसरे तम्बू, एक निवास से दूसरे निवास जाता रहा।
6) जब तक मैं समस्त इस्राएल के साथ भ्रमण करता रहा, क्या मैंने इस्राएल के किसी न्यायकर्ता से, जिसे मैंने अपनी प्रजा को चराने के लिए नियुक्त किया, कभी यह कहा कि तुमने मेरे लिए देवदार का मन्दिर क्यों नहीं बनाया?
7) ÷÷इसलिए मेरे सेवक दाऊद से यह कहो-विष्वमण्डल का प्रभु कहता हैः तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का षासक बनाया।
8) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब षत्रुओं का सर्वनाष कर दिया। मैं तुम्हें संसार के महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।
9) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,
10) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का षासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं तुम्हारे सब षत्रुओं को तुम्हारे अधीन कर दूँगा। मैंने तुम पर प्रकट किया कि प्रभु तुम्हारे लिए एक घर बनवायेगा।
11) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों से जा मिलोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्रों में एक को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।
12) वही मेरे लिए मन्दिर बनवायेगा और मैं उसका सिंहासन सदा के लिए सुदृढ़ बना दूँगा।
13) मैं उसका पिता होऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। मैं उस पर से अपनी कृपा नहीं हटाऊँगा, जैसा कि मैंने तुम्हारे पूर्वाधिकारी के साथ किया।
14) मैं उसे अपने घर और अपने राज्य में सदा के लिए बनाये रखूँगा। उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।''
15) नातान ने दाऊद को ये सब बातें और यह सारा दृष्य बताया।
16) इसके बाद राजा दाऊद ने प्रभु के सामने बैठ कर कहाः ÷÷प्रभु-ईष्वर! मैं क्या हूँ और मेरा वंष क्या है, जो तू मुझे यहाँ तक लाया है?
17) ईष्वर! यह तेरी दृष्टि में पर्याप्त नहीं हुआ। तू अपने सेवक के वंष के सुदूर भविष्य की प्रतिज्ञा करता है प्रभु-ईष्वर! तूने मुझे महान् मनुष्य माना है।
18) अपने दास को इस प्रकार सम्मानित करने के बाद, दाऊद तुझ से और क्या कहे? तू अपने दास को जानता ही है।
19) प्रभु! अपने इस दास के लिए और अपनी इच्छा के अनुसार तूने यह महान् कार्य सम्पन्न किया और अपनी महिमा प्रकट की है।
20) प्रभु! तेरे समान कोई नहीं और तेरे सिवा कोई नहीं, जैसा कि हमने अपने कानों से सुना है।
21) क्या तेरी प्रजा इस्राएल के समान कोई राष्ट्र है? ईष्वर उसे छुडाने गया, जिससे वह उसे अपनी प्रजा बनाये। तूने अपना नाम गौरवान्वित करने के लिए अपनी प्रजा को मिस्र से छुड़ाया और उसके सामने राष्ट्रों को भगा दिया।
22) तूने अपनी प्रजा इस्राएल को चुन लिया, जिससे वह सदा के लिए तेरी प्रजा हो और तू, प्रभु! उसका अपना ईष्वर।
23) प्रभु! तूने अपने सेवक और उसके वंष के विषय में जो वचन दिया है, अब उसे सदा के लिए बनाये रख और अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर।
24) तब तेरा नाम सदा के लिए महान् होगा और लोग यह कहेंगेः विष्वमण्डल का प्रभु-ईष्वर इस्राएल का ईष्वर है; वह इस्राएल का ईष्वर है' और तेरे सेवक दाऊद का वंष तेरे सामने सुदृढ़ रहेगा।
25) मेरे ईष्वर! तूने अपने दास पर प्रकट किया कि तू मेरा वंष बनाये रखेगा; इसलिए तेरे सेवक को तुझ से यह प्रार्थना करने का साहस हुआ।
26) प्रभु! तू ही ईष्वर है। तूने अपने सेवक से कल्याण की यह प्रतिज्ञा की है।
27) प्रभु! अब अपने सेवक के वंष को आषीर्वाद प्रदान कर, जिससे वह सदा तेरे सामने बना रहे; क्योंकि तेरे आषीर्वाद के फलस्वरूप वह वंष सदा ही फलता-फूलता रहेगा।''

अध्याय 18

1) इसके बाद दाऊद ने फ़िलिस्तियों को पराजित कर अपने अधीन कर लिया। उसने फ़िलिस्तियों के हाथों से गत और उनके पास के गाँव छीन लिये।
2) उसने मोआब को पराजित किया। मोआबी दाऊद के अधीन हो गये और उन्हें उस को कर देना पडा।
3) दाऊद ने सोबा के राजा हददएजेर को हमात के पास पराजित किया, जब वह फ़रात नदी के पास अपना अधिकार दृढ़ करने गया।
4) दाऊद ने उस से एक हजार रथ ले लिये और एक हजार घुड़सवारों तथा बीस हजार पैदल सैनिकों को बन्दी बना लिया। दाऊद ने एक सौ को छोड़ कर रथ के सारे घोड़ों को लँगड़ा बना दिया।
5) दमिष्क के अरामी सोबा के राजा हददएजेर की सहायता करने आये। दाऊद ने उन अरामियों के बाईस हजार सैनिकों को मार डाला।
6) इसके बाद दाऊद ने दमिष्क के अराम में रक्षक-सेना रखी। इस प्रकार अरामी दाऊद के अधीन हो गये और उन्हें कर देना पड़ा। दाऊद जहाँ भी जाता था, प्रभु उसे वहाँ विजय दिलाता था।
7) दाऊद हददएजेर के सेवकों की सोने की ढ़ालें उठा कर येरुसालेम ले गया।
8) दाऊद ने हददएजेर के नगर टिबहत और कून से बहुत-सा काँसा भी छीन लिया। उस से सुलेमान ने काँसे का होज, स्तम्भ और काँसे के पात्र बनवाये।
9) जब हमात के राजा तोई ने सुना कि दाऊद ने सोवा के राजा हददएजेर की सारी सेना को पराजित कर दिया,
10) तो तोई ने अपने पुत्र हदोराम को राजा दाऊद के यहाँ प्रणाम करने और बधाई देने के लिए भेजा कि उसने हददएजेर को युद्ध में पराजित किया है; क्योंकि हददएजेर से तोई का भी बैर था। हदोराम चाँदी, सोने और काँसे के सब प्रकार के सामान भी ले आया।
11) राजा दाऊद ने उन्हें और उस चाँदी और सोने को भी प्रभु को अर्पित किया, जिसे उसने सब पराजित राष्ट्रों से, अर्थात् एदोम, मोआब, अम्मोनियों, फ़िलिस्तियों और अमालेकियों से छीन लिया था।
12) सरूया के पुत्र अबीशय ने लवण-घाटी में अठारह हजार एदोमियों को मारा।
13) उसने एदोम में रक्षक-सेना रखी। इस प्रकार सब एदोमी दाऊद के अधीन हो गये। दाऊद जहाँ भी जाता था, प्रभु उसे वहाँ विजय दिलाता था।
14) दाऊद सारे इस्राएल पर षासन करता था और अपनी सारी प्रजा के साथ निष्पक्ष और उचित व्यवहार करता था।
15) सरूया का पुत्र योआब सेनापति था। अहीलूद का पुत्र यहोषाफ़ाट अभिलेखी था।
16) अहीटूब का पुत्र सादोक और एबयातर का पुत्र अहीमेलेक याजक थे। षौषा सचिव था।
17) यहोयादा का पुत्र बनाया करेतियों और पलेतियों का सेनाध्यक्ष था और दाऊद के पुत्र राजा के पास प्रधान पदों पर नियुक्त थे।

अध्याय 19

1) कुछ समय बाद अम्मोनियों के राजा नाहाष की मृत्यु हो गयी और उसके स्थान पर उसका पुत्र राजा बना।
2) दाऊद ने सोचा, ÷मैं नाहाष के पुत्र हानून के साथ मित्रता का व्यवहार करूँगा, क्योंकि उसका पिता मेरे साथ मित्रता का व्यवहार करता था''। इसलिए दाऊद ने दूत भेज कर उसके पिता की मृत्यु के लिए संवेदना प्रकट की। जब दाऊद के सेवक अम्मोनियों के देष में हानून के पास संवेदना प्रकट करने पहुँचे,
3) तब अम्मोनियों के सामन्तों ने हानून से कहा, ÷÷क्या आप सोचते हैं कि दाऊद ने अपने सेवकों को संवेदना प्रकट करने इसलिए आपके पास भेजा है कि उस में आपके पिता के प्रति सचमुच आदर-भाव है? नहीं, उसके सेवक टोह लेने, देष का भेद जानने और उसका सर्वनाष करने आये हैं।'
4) इसलिए हानून ने दाऊद के सेवकों को पकड़वाया, उनके बाल मुड़वाये, जाँघ तक आधा वस्त्र कटवा डाला और उन्हें वापस भेज दिया।
5) जब दाऊद को इसका समाचार मिला, तो उसने उन से मिलने दूत भेजे, क्योंकि वे अत्यन्त लज्जित थे। राजा ने उन से कहलवाया, ÷÷जब तक तुम लोगों की दाढ़ी फिर से पूरी न बढ़े, तब तक येरीख़ो में ही रूके रहो। इसके बाद घर लौटो।''
6) जब अम्मोनियों को पता चला कि दाऊद को उन से घृणा हो गयी है, तो हानून और अम्मोनी एक हजार मन चाँदी भेज कर मेसोपोतामिया, माका और सोबा के अरामियों से रथ और घुड़सवार ले आये।
7) उन्होंने बत्तीस हजार रथों के सिवा माका और उनकी सेना को किराये पर बुलाया। उन्होंने आ कर मेदेबा के पास पड़ाव डाला। अम्मोनी भी अपने-अपने नगरों से निकल कर युद्ध करने आगे बढ़े।
8) यह सुन कर दाऊद ने योआब को सारी सेना के साथ भेजा।
9) अम्मोनी निकल कर नगर के फाटक के सामने पंक्तियों में खडे हुए, जब कि आये हुए राजागण खुले मैदान में अलग पड़ाव डाले थे।
10) जब योआब ने देखा कि सामने और पीछे की ओर से आक्रमण होने का भय है, तो उसने इस्राएल के कुछ सर्वोत्तम सेैनिकों को चुना और उन्हें अरामियों का सामना करने भेजा।
11) उसने अपनी षेष सेना को अपने भाई अबीषय के नेतृत्व में अम्मोनियों का सामना करने भेजा।
12) उसने कहा, ÷÷यदि अरामी मुझ से अधिक प्रबल होंगे, तो तुम्हें मेरी सहायता करनी पड़ेगी और यदि अम्मोनी तुम से अधिक प्रबल होंगे, तो मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।
13) ढारस रखो। हम अपने लोगों और अपने ईष्वर के नगरों के लिए लडें।'' प्रभु वही करे, जो उसे उचित प्रतीत हो।''
14) जब योआब अपने लोगों के साथ अरामियों पर आक्रमण करने आगे बढ़ा, तब वे उसके सामने से भाग खड़े हुए।
15) ज्यों ही अम्मोनियों ने देखा कि अरामी भाग रहे हैं, तो वे भी योआब के भाई अबीषय के सामने से भाग निकले और उन्होंने नगर में सभा ली। योआब येरुसालेम लौट गया।
16) जब अरामियों ने देखा कि वे इस्राएलियों से हार गये हैं, तो उन्होंने दूतों द्वारा फ़रात नदी के उस पार रहने वाले अरामियों को बुलवाया। हददएजेर का सेनापति षोबक उनका नेतृत्व करता था।
17) जब दाऊद को इसका समाचार मिला, तो वह सब इस्राएलियों को एकत्रित कर और यर्दन पार कर उनकी ओर आगे बढ़ा और उसने उनका सामना करने के लिए व्यूहरचना की। जब दाऊद ने अरामियों का सामना करने के लिए व्यूहरचना की, तो अरामियों ने उस पर आक्रमण किया।
18) परन्तु अरामियों को इस्राएलियों के सामने से भागना पड़ा। दाऊद ने अरामियों के सात हजार रथियों और चालीस हजार पैदल सैनिकों को मार गिराया। उसने सेनापति षोबक का भी वध किया।
19) जब हददएजेर के सेवकों ने देखा कि वे इस्राएलियों द्वारा पराजित हो गये हैं, तो वे दाऊद के साथ सन्धि कर उसके अधीन हो गये। इसके बाद अरामी फिर कभी अम्मोनियों की सहायता करने के लिए तैयार नहीं हुए।

अध्याय 20

1) वसन्त के समय, जब राजा लोग युद्ध के लिए प्रस्थान किया करते हैं, योआब ने सेना ले कर अम्मोनियों का देष उजाड़ा। इसके बाद उसने रब्बा को घेर लिया। दाऊद येरुसालेस में रह गया। योआब ने रब्बा पर अधिकार कर लिया और उसका विनाष किया।
2) दाऊद ने अम्मोनियों के देवता मिल्कोम के सिर का मुकुट ले लिया। उसका वजन एक मन सोना था और उस में एक बहुमूल्य रत्न जड़ा था। वह दाऊद के सिर पर पहनाया गया। दाऊद ने उस नगर से लूट का बहुत-सा माल प्राप्त किया।
3) वह नगर के निवासियों को ले गया और उन से आरे, गैंती और कुल्हाड़ी से काम करवाया। उसने अम्मोनियों के अन्य सब नगरों के साथ यही किया। इसके बाद दाऊद अपनी सारी सेना के साथ येरुसालेम लौट आया।
4) इसके बाद गेजेर के निकट फ़िलिस्तियों से युद्ध छिड़ गया। हुषाती सिब्बकय ने सिप्पय को मार डाला, जो रफ़ाईम का वंषज था। फ़िलिस्ती अधीन हो गये।
5) जब फिर से फ़िलिस्तियों से युद्ध छिड़ गया, तो याईर के पुत्र एल्हानान ने गतवासी गोलयत के भाई लहमी को मार डाला। उसके भाले का दण्ड करघे के डण्डे-जैसा था।
6) जब गत के पास फिर से लड़ाई छिड़ी, तो एक दैत्याकार आदमी सामने आया। उसके हाथों में छः-छः अँगुलियाँ थीं और पाँवों में छः-छः अँगुलियाँ, इस तरह कुल चौबीस अँगुलियाँ थीं। वह भी रफ़ाईम का वंषज था।
7) जब उसने इस्राएलियों का ललकारा, तब दाऊद के भाई षिमआ के पुत्र योनातान ने उसका वध कर दिया।
8) ये लोग गत के रफ़ाईम के वंषज थे और ये दाऊद तथा उसके सेवकों के हाथों मारे गये।

अध्याय 21

1) षैतान इस्राएलियों के विरुद्ध खड़ा हुआ और उसने दाऊद को उभाड़ा कि वह इस्राएलियों की जनगणना करे।
2) इसलिए दाऊद ने योआब और सेना के अध्यक्षों से कहा, ÷÷तुम जा कर बएर-षेबा से दान तक के इस्राएलियों की जनगणना करो और मुझे इसका विवरण दो, जिससे मैं लोगों की संख्या जान सकूँ।''
3) ÷इस पर योआब ने कहा, ÷÷प्रभु अपने लोगों की सौ गुनी वृद्धि करे! मेरे स्वामी राजा! क्या ये सभी मेरे स्वामी के सेवक नहीं हैं? मेरे स्वामी ऐसा कार्य क्यां करना चाहते हैं? हम इस्राएल को दोष का भागी क्यों बनायें?''
4) किन्तु योआब को राजाज्ञा माननी पड़ी। योआब गया और समस्त इस्राएल का परिभ्रमण कर येरुसालेम लौट आया।
5) योआब ने दाऊद को जनगणना का परिणाम बताया। सारे इस्राएल में तलवार चलाने योग्य ग्यारह लाख योद्धा थे और यूदा में चार लाख सत्तर हजार।
6) योआब ने लेवी और बेनयामीन की जनगणना नहीं की, क्योंकि राजा की आज्ञा योआब की दृष्टि में घृणित थी।
7) यह आज्ञा ईष्वर की दृष्टि में भी बुरी थी और उसने इस्राएल को दण्ड दिया।
8) दाऊद ने ईष्वर से कहा, ÷÷मैंने जनगणना करा कर घोर पाप किया है। अब मेरी प्रार्थना सुन और अपने दास का अपराध क्षमा कर; क्योंकि मैंने बड़ी मूर्खता का काम किया है।''
9) प्रभु ने दाऊद के दृष्टा गाद से यह कहा,
10) ÷÷दाऊद के पास जा कर यह कहो-प्रभु यह कहता हैः मैं तीन बातें तुम्हारे सामने रखता हूॅँ। उन में एक को चुनो; मैं उसी के द्वारा तुम को दण्डित करूँगा।''
11) गाद ने दाऊद के पास आकर उसे से कहा, ÷÷प्रभु कहता है : तुम चुनो-
12) या तो तीन वर्ष तक अकाल, या अपने विरोधियों की तलवार का प्रहार सहते हुए तीन महीनों तक अपने षत्रुओं से पराजय अथवा तीन दिनों तक प्रभु की तलवार और देष में महामारी का प्रकोप, अर्थात् प्रभु के दूत द्वारा इस्राएल के सब प्रान्तों का उजाड़। अच्छी तरह विचार कर बताओ कि मैं उस को क्या उत्तर दूँ, जिसने मुझे भेजा है।''
13) दाऊद ने गाद को उत्तर दिया, ÷÷मैं बड़े असमंजस में हूॅँ। मैं प्रभु के हाथों पड़ जाऊँ; क्योंकि उसकी दया बहुत बड़ी है, किन्तु मैं मनुष्यों के हाथों न पडूँ।''
14) इसलिए प्रभु ने इस्राएल में महामारी भेजी। इस्राएल के सत्तर हजार लोग मारे गये।
15) ईष्वर ने येरुसालेम के विनाष के लिए एक दूत भेजा। जब वह उसे नष्ट कर रहा था, तो प्रभु को विपत्ति देख कर दुःख हुआ और उसने लोगों का संहार करने वाले दूत से कहा, ÷÷बहुत हुआ। अपना हाथ रोको।'' प्रभु का दूत उस समय यबूसी ओरनाम के खलिहान के पास आ गया था।
16) दाऊद ने अपनी आँखें उस आकाष और पृथ्वी के बीच प्रभु के दूत को खड़ा देखा। उसे हाथ में एक नंगी तलवार थी, जो येरुसालेम के ऊपर उठी हुई थी। दाऊद और नेता, टाट पहने मुँह के बल गिर पडे।
17) दाऊद ने ईष्वर से कहा, ÷÷क्या मैंने ही जनगणना का आदेष नहीं दिया? मैंने ही पाप किया है। मैंने ही अपराध किया। इन भेड़ों ने क्या किया है? मेरे प्रभु-ईष्वर! तेरा हाथ मुझे और मेरे परिवार को दण्डित करे, परन्तु वह महामारी तेरी प्रजा का विनाष नहीं करे।''
18) तब प्रभु के दूत ने गाद को आदेष दिया कि वह दाऊद के पास जा कर उस से कहे, ÷÷पहाड़ी पर चढ़ कर यबूसी ओरनान के खलिहान में प्रभु के लिए एक वेदी बनवाओ''।
19) गाद की यह आज्ञा पा कर, जो उसने प्रभु के नाम पर दी थी, दाऊद वहाँ गया।
20) ओरनान गेहूँ की दँवनी कर रहा था। उसने मुड़ कर दूत को देखा और वह अपने चारों पुत्रों के साथ छिप गया।
21) दाऊद ओरनान के पास गया। जब ओरनान ने आँखें उठायीं और दाऊद को आते देखा, तो उसने खलिहान के बाहर आ कर भूमि तक सिर झुका कर दाऊद को प्रणाम किया।
22) दाऊद ने ओरनान से कहा, ÷÷इस खलिहान की जमीन मुझे दे दो, जिससे मैं यहाँ प्रभु के लिए वेदी बनवाऊँ। इसका पूरा दाम ले कर इसे मुझे दे दो, जिससे महामारी प्रजा से टल जाये।''
23) ओरनान ने दाऊद से कहा, ÷÷ले लीजिए। मेरे स्वामी और राजा जो ठीक समझें, करें। मैं होम-बलियों के लिए बैल, ईन्धन के लिए दँवरी का सामान और चढ़ावे के लिए गेहूँ देता हूँ। मैं सब कुछ देता हूँ।''
24) लेकिन राजा दाऊद ने ओरनान से कहा, ÷÷नहीं, मैं तो पूरा-पूरा रूपया दे कर ही इसे तुम से मोल लूँगा। मैं बिना दाम दिये तुम से कुछ नहीं लूँगा। मैं मुफ्त में प्राप्त होम-बलि प्रभु को नहीं चढ़ाना चाहता।''
25) तब दाऊद ने उस स्थान के लिए ओरनान को सोने के छः सौ शेकेल दिये।
26) दाऊद ने वहाँ प्रभु के लिए वेदी बनवायी और होम बलियाँ और शान्ति-बलियाँ चढ़ायीं। उसने प्रभु से प्रार्थना की और प्रभु ने होम-बलि की वेदी पर आग भेज कर उत्तर दिया।
27) इसके बाद प्रभु ने दूत को आज्ञा दी और उसने अपनी तलवार म्यान में रख ली।
28) दाऊद ने उस समय देखा कि प्रभु ने यबूसी ओरनान के खलिहान में उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली है; इसलिए उसने वहाँ बलियाँ चढ़ायीं।
29) प्रभु का निवास, जो मूसा ने उजाड़खण्ड में तैयार करवाया था और होम-बलि की वेदी, दोनों उस समय गिबओन की पहाड़ी पर थे,
30) परन्तु ईष्वर से पूछने दाऊद वहाँ नहीं जा सकता था; क्योंकि वह प्रभु के दूत की तलवार से डर गया था।

अध्याय 22

1) इसलिए दाऊद ने कहा, ÷÷प्रभु-ईष्वर का मन्दिर यहाँ है और इस्राएल के लिए होम-बलि की वेदी भी।''
2) दाऊद ने इस्राएल में रहने वाले विदेषियों को एकत्रित करने का आदेष दिया और उन में से संगतराषों को नियुक्त किया, जिससे वे ईष्वर के मन्दिर के लिए पत्थर गढें।
3) फिर दाऊद ने किवाड़ों के लिए कीले और अँकुडे बनवाने के लिए बहुत-सा लोहा, इकट्ठा किया; साथ-साथ इतना काँसा कि वह तौला नहीं जा सकता था।
4) और देवदार की असंख्य कड़ियाँ, क्योंकि सीदोन और तीरूस के निवासी दाऊद के पास देवदार की बहुत-सी लकड़ी ले आये थे।
5) दाऊद का कहना था कि मेरा पुत्र सुलेमान अभी छोटा है, अनुभवी नहीं हैं, परन्तु वह मन्दिर, जो प्रभु के लिए बनाया जायेगा, इतना विषाल और भव्य होना चाहिए कि सभी देषों में उसकी चरचा हो। इसलिए मैं स्वयं उसकी तैयारियाँ करूँग़ा। दाऊद ने मृत्यु के पूर्व बहुत-सी सामग्री इकट्ठी की।
6) इसके बाद उसने अपने पुत्र सुलेमान को बुला कर उसे इस्राएल के ईष्वर, प्रभु का मन्दिर बनवाने का आदेष दिया।
7) दाऊद ने सुलेमान से कहा, ÷÷मेरे पुत्र! मेरी इच्छा थी कि मैं स्वयं प्रभु, अपने ईष्वर के नाम पर एक मन्दिर बनवाऊँ,
8) किन्तु मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः ÷तुमने बहुत खून बहाया और बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी। तुम को मेरे नाम पर मन्दिर नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि तुमने मेरे देखते पृथ्वी पर बहुत खून बहाया है।
9) देखो, तुम्हें एक पुत्र उत्पन्न होगा। वह शान्ति प्रिय होगा। मैं उसके चारों ओर के शत्रुओं से उसकी रक्षा कर उसे शान्ति दूँगा। उसका नाम सुलेमान होगा। उसके शासनकाल तक मैं इस्राएल को शान्ति और सुरक्षा प्रदान करूँगा।
10) वही मेरे नाम पर एक मन्दिर बनवायेगा। वह मेरा पुत्र होगा और मैं उसका पिता होऊँगा। मैं इस्राएल में उसका राजसिंहासन सदा सुदृढ़ बनाये रखूँगा।'
11) अब, मेरे पुत्र! प्रभु तुम्हारे साथ हो, जिससे जैसा उसने तुम्हारे विषय में कहा था, तुम को प्रभु, अपने ईष्वर का मन्दिर बनवाने में सफलता मिले।
12) प्रभु तुम्हें विवेक और बुद्धि प्रदान करे। जब वह तुम्हें इस्राएल पर शासक नियुक्त करे, तो तुम प्रभु, अपने ईष्वर की संहिता का पालन करो।
13) यदि तुम उन आदेषों और विधियों के पालन का ध्यान रखोगे, जिन्हें प्रभु ने मूसा द्वारा इस्राएलियों को दिया है, तो तुम को सफलता मिलेगी। दृढ़ बने रहो और ढारस रखो। न डरो, न निराष होओ।
14) देखो, मैंने बड़े परिश्रम से प्रभु के मन्दिर के लिए एक लाख मन सोना, दस लाख मन चाँदी, इतना काँसा और लोहा कि वह तौला नहीं जा सकता तथा लकड़ी और पत्थर एकत्र किये हैं। तुम यह सामान और बढ़ा सकते हो।
15) तुम्हारे पास न जाने कितने कारीगर हैं- संगतराष, राजमिस्त्री, बढ़ई और हर प्रकार के कुषल षिल्पकार।
16) सोना, चाँदी, काँसा और लोहा बेहिसाब है। अब तुम कार्य प्रारम्भ करो। प्रभु तुम्हारे साथ हो।''
17) इसके बाद दाऊद ने इस्राएल के सभी नेताओं को सुलेमान की सहायता करने का आदेष दिया।
18) उसने कहा, ÷÷प्रभु तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे साथ है। उसी ने तुम्हें तुम्हारे चारों ओर शान्ति प्रदान की है। उसी ने देष भर के लोगों को मेरे हाथ दिया है और देष प्रभु और उसकी प्रजा के अधीन है।
19) अब अपने सारे हृदय और सारी आत्मा से प्रभु, अपने ईष्वर की खोज में लगे रहो। प्रभु-ईष्वर के मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ करो, जिससे तुम प्रभु के विधान की मंजूषा और प्रभु की पवित्र सामग्री उस मन्दिर में ले जा सको, जो प्रभु के नाम पर बनाया जा रहा है।''

अध्याय 23

1) जब दाऊद बूढ़ा हो गया और उसकी आयु लगभग पूरी हो चुकी थी, तो उसने अपने पुत्र सुलेमान को इस्राएल का राजा बनाया।
2) फिर उसने इस्राएल के सब नेताओं, याजकों और लेवियों को एकत्रित किया।
3) उन लेवियों की गणना की गयी, जिनकी अवस्था तीस वर्ष या उस से अधिक थी। उनकी कुल संख्या अड़तीस हजार थी।
4) उन में चौबीस हजार प्रभु के मन्दिर के निर्माण कार्य के निरीक्षक नियुक्त किये गये, छः हजार सचिव और न्यायकर्ता,
5) चार हजार द्वारपाल और चार हजार इसलिए नियुक्त किये गये कि वे उन वाद्यों के द्वारा प्रभु के सामने स्तुतिगान करें, जिन्हें दाऊद ने बनवाया था।
6) दाऊद ने लेवी के पुत्र गेरषोन, कहात और मरारी के अनुसार उन को तीन दलों में विभाजित किया।
7) (७-८) गेरषोनियों में लादान और षिमई थे। लादान के पुत्र : उसका पहलौठा पुत्र यहीएल, फिर जेताम और योएल-तीन।
9) षिमई के पुत्रः शलोमोत, हजीएल और हारान-तीन। ये लादान के घरानों के मुखिया थे।
10) षिमई के पुत्रः यहत, जीजा, यऊष और बरीआ। ये चारों, षिमई के पुत्र थे।
11) इन में पहला यहत था और दूसरा जीजा। यऊष और बरीआ के अधिक पुत्र नहीं थे। इसलिए सेवा के लिए इन दोनों को एक ही घराना समझा गया।
12) कहात के पुत्र : आम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल- चार।
13) आम्राम के पुत्र : हारून और मूसा। हारून और उसके पुत्र चुने गये, जिससे वे सदा परम-पवित्र वस्तुओं की देखरेख किया करें, प्रभु के सामने धूप चढ़ायें, उसकी सेवा करें और सदा उसके नाम पर आषीर्वाद दिया करें।
14) ईष्वर-भक्त मूसा के पुत्र लेवी कुल में सम्मिलित किये गये।
15) मूसा के पुत्र : गेरषोम और एलीएजर।
16) गेरषोम के पुत्रों में शबूएल पहला था।
17) एलीएजर का पहला पुत्र रहब्या था। एलीएजर का और कोई पुत्र नहीं था। रहब्या के पुत्रों की संख्या बहुत बड़ी थी।
18) यिसहार के पुत्रों में शलोमीत पहला था।
19) हेब्रोन के पुत्र : पहला यरीया, दूसरा अमर्या, तीसरा यहजीएल और चौथा यकमआम।
20) उज्जीएल के पुत्र : पहला मीका और दूसरा यिष्षीया।
21) मरारी के पुत्र : महली और मूषी। महली के पुत्रः एलआजार और कीष।
22) एलआजार पुत्रहीन मरा। उसके केवल पुत्रियाँ थीं। उनके चचेरे भाइयों, कीष के पुत्रों ने उनके साथ विवाह किया।
23) मूषी के पुत्र : महली, एदेर और यरेमोत-तीन।
24) ये अपने-अपने घरानों के अनुसार लेवी के वंषज और अपने-अपने घरानों के मुखिया थे; एक-एक का नाम पंजीकृत था। ये बीस वर्ष की उमर से प्रभु के मन्दिर में सेवा-कार्य करते थे।
25) दाऊद ने कहा था, ÷÷प्रभु, इस्राएल के ईष्वर ने अपनी प्रजा को शान्ति प्रदान की है और वह सदा येरुसालेम में निवास करता है।
26) अब लेवियों को तम्बू और उसकी सेवा के सब समान को इधर-उधर ढो कर ले जाने की आवष्यकता नहीं थी।''
27) यह दाऊद के अन्तिम आदेष के अनुसार बीस वर्ष और उस से अधिक के लेवियों की गणना थी।
28) उनका काम यह था : प्रभु के मन्दिर की सेवा, आँगनों और उपभवनों की देखरेख, समस्त पवित्र सामग्री का शुद्धीकरण और ईष्वर के मन्दिर के सेवाकायोर्ं में हारून के वंषजों की सहायता।
29) भेंट की रोटियों, अन्न-बलि के मैदे और बेख़मीर चपातियों की देखरेख; उन्हें पकाना और उनमें तेल मिलाना, सामान मापना और तौलना-यह सब उनका काम था।
30) (३०-३१) उन्हें प्रतिदिन सबेरे और सन्ध्या समय प्रभु को धन्यवाद देने और उनका स्तुतिगान करने उपस्थित होना था। विश्राम-दिवसों, अमावस और अन्य पर्वों के अवसर पर, जब प्रभु को होम-बलियाँ चढ़ायी जाती थीं, तो उन्हें निर्धारित संख्या के अनुसार प्रभु के सामने सदा प्रस्तुत रहना था।
32) इस प्रकार उनका काम यह होगा कि वे दर्षन-कक्ष और पवित्र-स्थान की देखरेख करें और प्रभु के मन्दिर में सेवा करने वाले अपने भाइयों, हारून के वंषजों की सहायता करें।

अध्याय 24

1) हारूनवंषियों के ये दल थे। हारून के पुत्र : नादाब, अबीहू, एलआजार और ईतामार।
2) नादाब और अबीहू अपने पिता की मृत्यु के पहले ही मर गये और उनके कोई पुत्र नहीं था। इसलिए एलआजार और ईतामार ही याजक हुए।
3) दाऊद ने एलआजार के वंषज सादोक और ईतामार के वंषज अहीमेलेक की सहायता से उन्हें सेवा क्रम की दृष्टि से दलों में विभाजित किया।
4) ईतामार के वंषजों से एलआजार के वंषजों में अधिक नेता थे इस कारण उनका विभाजन इस प्रकार किया गया : एलआजार के वंषजों में सोलह घरानों के मुखिया और ईतामार के वंषजों में केवल आठ घरानों के मुखिया।
5) उन्हें निष्पक्षता से चिट्ठी द्वारा दलों में विभाजित किया गया, क्योंकि एलआजार और ईतामार, दोनों के वंषजों में पवित्र-स्थान और ईष्वर के कृपापात्र नेता थे।
6) नतनएल के पुत्र लेवीवंषी सचिव शमाया ने उन्हें राजा, राजकुमारों, याजक सादोक, एबयातर के पुत्र अहीमेलेक और याजकों तथा लेवियों के घरानों के मुखियाओं की उपस्थिति में नामांकित किया। बारी-बारी से एलआजार के घराने के लिए दो चिट्ठियाँ और ईतामार के घराने के लिए एक चिट्ठी निकाली गयी।
7) पहली चिट्ठी यहोयारीब के नाम निकली, दूसरी यदाया के,
8) तीसरी हारिम के, चौथी सओरीम के,
9) पाँचवीं मलकीया के, छठी मिय्यामिन के,
10) सातवीं हक्कीस के, आठवीं अबीया के,
11) नौवीं येषुआ के, दसवीं षकन्या के,
12) ग्यारहवीं एल्याषीब के, बारहवीं याकीम के,
13) तेरहवीं हुप्पा के, चौदहवीं येषेबआब के,
14) पन्द्रहवीं बिलगा के, सोलहवीं इम्मेर के,
15) सत्रहवीं हेजीर के, अठारहवीं हप्पिस्सेस के,
16) उन्नीसवीं पतह के, बीसवीं यहेजेकिएल के,
17) इक्कीसवीं याकीन के, बाईसवीं गामूल के,
18) तेईसवीं दलाया के और चौबीसवीं माज्या के।
19) यही उनके सेवा-कार्य का क्रम था और इसके अनुसार उन्हें उन नियमों का पालन करते हुए मन्दिर में उपस्थित होना था, जिन्हें उनके पूर्वज हारून ने प्रभु के आदेष के अनुसार उन्हें दिया था।
20) लेवी के षेष वंषजः अम्राम के वंषजों में षूबाएल और षूबाएल के वंषजों में येहदया।
21) रहब्या के वंषजों में यिष्षीया पहला था।
22) यिसहार के वंषजों में षलोमोत और षलोमोत के वंषजों में यहत।
23) हेब्रोन के पुत्र : पहला यरीया, फिर दूसरा अमर्या, तीसरा यहजीएल और चौथा यकमआम।
24) उज्जीएल के पुत्रों में मीका, मीका के पुत्रों में षमीर।
25) मीका का भाई यिष्षीया। यिष्षीया के पुत्रों में जकर्या।
26) मरारी के पुत्र : महली और मूषी। याजीया के पुत्रों में बनो।
27) मरारी के पुत्र याजीया से बनो, षोहम, जक्कूर और इब्री उत्पन्न हुए।
28) महली से : एलआजार, जिसका कोई पुत्र नहीं था।
29) कीष से : कीष के पुत्रों में यरहमएल।
30) मूषी के पुत्र : महली, एदेर और यरीमोत। यही अपने-अपने घरानों के अनुसार लेवियों के वंषज थे।
31) इन्होंने भी अपने भाइयों, हारून के पुत्रों की तरह राजा दाऊद, सादोक, अहीमेलेक और याजकीय तथा लेवीवंषी घरानों के मुखियाओं की उपस्थिति में चिट्ठियाँ डालीं। इस प्रकार ज्येष्ठ ओर कनिष्ठ पुत्रों के घरानों में कोई अन्तर नहीं माना गया।

अध्याय 25

1) दाऊद ने अपनी सेना के अध्यक्षों के साथ आसाफ़, हेमान और यदूतून के वंषजों में कुछ लोगों को सेवा-कार्य के लिए चुना, जिससे वे सितार, सारंगी और मंजीरा बजाते हुए भविष्यवाणी करें। इस सेवाकार्य के लिए चुने हुए लोगों की सूची इस प्रकार हैं :
2) आसाफ़ के पुत्रों में : जक्कूर, यूसुफ़ नतन्या, अषरएला। आसाफ़ के पुत्र अपने पिता के निर्देषन में वाद्य बजाते थे। जब वह दाऊद के निर्देषन में भविष्यवाणी करता था।
3) यदूतून से : यदूतून के पुत्र गदल्या, सरी, यषाया, षिमई, हषब्या और मित्तया-कुल छः। ये अपने पिता यदूतून के निर्देषन में वाद्य बजाते थे, जब वह सितार बजाते हुए प्रभु का धन्यवाद और स्तुतिगान करता था।
4) हेमान से : हेमान के पुत्र बक्कीया, मत्तन्या, उज्जीएल, षबूएल, यहरीमोत, हनन्या, हनानी, एलीआता, गिद्दल्ती, रोममती-ऐजर, योषबकाषा, मल्लोती, होतीर और महजीओत थे।
5) ये सब राजा के दृष्टा हेमान के पुत्र थे। ईष्वर ने उस से प्रतिज्ञा की थी कि वह उसे महान् बनायेगा और इसलिए उसने हेमान को चौदह पुत्र और तीन पुत्रियाँ दी थीं।
6) ये सब राजा, आसाफ़, यदूतून और हेमान की आज्ञा के अनुसार, अपने पिता के निर्देषन में, प्रभु के मन्दिर में मंजीरा, सारंगी और वीणा बजाते और गाते हुए ईष्वर के मन्दिर का सेवा-कार्य सम्पन्न करते थे।
7) उनकी और उनके भाइयों की संख्या दो सौ अठासी थी। वे सब प्रभु के स्तुतिगान में प्रषिक्षित थे।
8) छोटे, बडे, गुरू, षिष्य-सब ने अपनी-अपनी पारी के लिए चिट्ठी डाली।
9) पहली चिट्ठी आसाफ़वंषियों के यूसुफ़ के नाम निकली। दूसरी गदल्या, उसके भाइयों और उसके पुत्रों के नाम निकली-बारह।
10) तीसरी जक्कूर, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
11) चौथी इस्त्री, उनके पुत्रों और भाईयों के नाम-बारह।
12) पाँॅचवीं नतन्या, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
13) छठी बुक्कीया, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
14) सातवीं यषरएला, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
15) आठवीं यषाया, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
16) नौवीं मत्तन्या, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
17) दसवीं षिमई, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह
18) ग्यारहवीं अजरएल, उनके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह
19) बारहवीं हषब्या, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
20) तेरहवीं षूबाएल, उनके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
21) चौदहवीं मत्तित्या, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
22) पन्द्रहवीं यरेमोत, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
23) सौलहवीं हनन्या, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
24) सत्रहवीं योषबकाषा, उनके पुत्रों और भाइयांें के नाम-बारह।
25) अठारहवीं हनानी, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
26) उन्नीसवीं मल्लोती, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
27) बीसवीं एलीआता, उसके, पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
28) इक्कीसवीं होतीर, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
29) बाईसवीं में गिद्दल्ती, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
30) तेईसवीं महजीओत, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।
31) चौबीसवीं रोममती-एजेर, उसके पुत्रों और भाइयों के नाम-बारह।

अध्याय 26

1) द्वारपालों के दल ये थे : कोरहियों में आसाफ़ का वंषज, कोरे का पुत्र मषेलेम्या।
2) मषेलेम्या के पुत्र : पहला जकर्या, दूसरा यदूआएल, तीसरा जबद्या, चौथा यतनीएल,
3) पाँचवाँ एलाम, छठा यहोहानान, सातवाँ एल्यहोएनय।
4) ओबेद-एदोम के पुत्र : पहला षमाया, दूसरा यहोजाबाद, तीसरा याआह, चौथा साकार, पाँचवाँ नतनएल,
5) छठा अम्मीएल, सातवाँ इस्साकार, आठवाँ पउल्लतय। ईष्वर ने ओबेद-एदोम को वास्तव में आषीर्वाद दिया था।
6) उसके पुत्र षमाया के भी पुत्र हुए, जो अपने-अपने घरानों के मुखिया हुए; क्योंकि वे प्रतिभाषाली थे।
7) षमाया के पुत्र : ओतनी, रफ़ाएल, ओबेद, एल्जाबाद और उसके प्रतिभाषाली भाई एलीहू और समक्या।
8) ये और इनके पुत्र और भाई प्रतिभाषाली थे और उत्साह से अपना सेवा-कार्य करते थे। ये ओबेद-एदोम के वंषज थे। इनकी संख्या कुल मिलाकर बासठ थी।
9) मषेलेम्या के अठारह प्रतिभाषाली पुत्र और भाई थे।
10) मरारी के वंषज होसा के पुत्र : पहला षिम्री (यद्यपि वह पहलौठा पुत्र नहीं था, तथापि उसके पिता ने उसे ही मुखिया बनाया था),
11) दूसरा हिलकीया, तीसरा टबल्या और चौथा जकार्या। होसा के पुत्रों और भाइयों की संख्या कुल मिला कर तेरह थी।
12) द्वारपालों के ये दल अपने मुखियाओं के निर्देषन में अपने भाइयों की तरह प्रभु के मन्दिर में सेवा-कार्य करते थे।
13) क्या छोटे, क्या बडे-सब ने अपने-अपने घरानों के अनुसार प्रत्येक द्वार के लिए चिट्ठियाँ डालीं।
14) पूर्वी द्वार की चिट्ठी षेलेक्या के नाम निकली। उत्तरी द्वार की चिट्ठी उसके पुत्र जकर्या के नाम निकली, जो बुद्धिमान् परामर्षदाता था।
15) दक्षिणी द्वार की चिट्ठी आबेद-एदोम के नाम निकली। भण्डारों की चिट्ठी उसके पुत्रों के नाम निकली।
16) पष्चिमी द्वार और उत्तरी मार्ग के शल्लेकेत नामक द्वार की चिट्ठी शुप्पीम और होसा के नाम निकली। पहरेदार एक दूसरे के आमने-सामने खड़े थे :
17) पूर्व की ओर प्रति दिन छः लेवी, उत्तर की ओर चार, दक्षिण की ओर चार और भण्डारों के पास दो।
18) पष्चिम की ओर, पर्बार नामक भवन के पास, ऊपरी मार्ग पर चार और भवन के पास दो खडे थे।
19) यही कोरहियों ओर मरारी वंषियों के द्वारपालों के दल थे।
20) इनके ये लेवीवंषी भाई-बन्धु ईष्वर के मन्दिर के कोषों और चढ़ाई हुई भेंटों के कोषों की देखरेख करते थे :
21) लादान के वंषज, अर्थात् गेरषोन के घराने वाले, जिनका पुरखा लादान था। गेरषोनी लादान के घरानों का मुखिया यहीएल था।
22) यहीएल के वंषज जेताम और उसका भाई योएल प्रभु के मन्दिर के कोषों की देखरेख करते थे।
23) अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल के वंशजों में
24) गेरषोम का पुत्र और मूसा का पौत्र शबुएल कोषों का प्रधान अधिकारी था।
25) उसके बन्धुओं का विवरण इस प्रकार है : एलीएजर का पुत्र रहब्या, रहब्या का पुत्र यशाया, यशाया का पुत्र योराम, योराम का पुत्र जिक्री और जिक्री का पुत्र शलोमोत।
26) शलोमोत और उसके भाई-बन्धु राजा दाऊद, घरानों के मुखियाओं, सहस्त्रपतियों, शतपतियों और सेनाध्यक्षों द्वारा चढ़ायी जाने वाली भेंटों की देखरेख करते थे।
27) उन्होंने प्रभु के मन्दिर की समृद्धि के लिए लड़ाइयों की लूटों में से ये भेंट चढ़ायी थीं।
28) शलोमोत और उसके भाई-बन्धु दृष्टा समूएल, कीष के पुत्र साऊल, नेर के पुत्र अबनेर और सरूया के पुत्र योआब द्वारा चढ़ायी सारी भेंटों की तथा दूसरों द्वारा चढ़ायी भेंटों की भी देखरेख करते थे।
29) यिसहारियों में कनन्या और उसके पुत्रों को मन्दिर के बाहर इस्राएल के पदाधिकारियों और न्यायकर्ताओं के रूप में नियुक्त किया गया।
30) हेब्रोनियों में हषब्या और उसके भाई-बन्धु, एक हजार सात सौ प्रतिष्ठित व्यक्ति, यर्दन के पष्चिम में इस्राएल का निरीक्षण करते थे। उनके दायित्व में प्रभु और राजा सम्बंधी सभी सेवा-कार्य सम्मिलित थे।
31) हेबोनियों में यरीया मुखिया था। दाऊद के शासनकाल के चालीसवें वर्ष उन घरानों की वंषावलियों का निरीक्षण किया गया और उन में गिलआद के यजेर में प्रतिष्ठित व्यक्ति मिले।
32) वह और उसके भाई, घरानों के मुखिया, कुल मिला कर दो हजार सात सौ प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। राजा दाऊद ने उन्हें रूबेन, गाद और मनस्से के आधे वंष पर ईष्वर और राजा-सम्बन्धी सेवा-कार्यों के लिए नियुक्त किया।

अध्याय 27

1) यह उन इस्राएलियों की सूची है, जो घरानों के मुखिया, सहस्रपति और शतपति थे, जो वर्ष में एक महीने तक, अपने-अपने पदाधिकारियों के साथ, अपने-अपने विभागों का संचालन करते हुए, राजा की सेवा करते थे। प्रत्येक विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
2) पहले महीने के पहले विभाग का अध्यक्ष जब्दीएल का पुत्र याषोबआम था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
3) वह पेरेस का वंषज था और पहले महीने में सब सेनाध्यक्षों का प्रधान था।
4) दूसरे महीने के विभाग का अध्यक्ष अहोही दोहय था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे। इस विभाग में शासक मिकलोत निरीक्षक था।
5) तीसरे महीने में तीसरे विभाग का अध्यक्ष याजक यहोयादा का पुत्र बनाया था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
6) यह वही बनाया है, जो तीस प्रमुख वीरों में एक था। वह उनका अध्यक्ष था। उसके विभाग में उसका पुत्र अम्मीजाबाद सम्मिलित था।
7) चौथे महीने का चौथा अध्यक्ष योआब का भाई असाएल था। उसके बाद उसका पुत्र जबघा अध्यक्ष हुआ। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
8) पाँचवें महीने का पाँचवाँ अध्यक्ष यिज्राई शमहूत था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
9) छठे महीने का छठा अध्यक्ष तकोआवासी इक्केष का पुत्र ईरा था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
10) सातवें महीने का सातवाँ अध्यक्ष एफ्रईम वालों का पलोनी हेलेस था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
11) आठवें महीने का आठवाँ अध्यक्ष जेरहियों का हुषाती सिब्बकय था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
12) नौवें महीने का नौवाँ अध्यक्ष बेनयामीन-वंषी अनातोती अबीएजेर था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
13) दसवें महीने का दसवाँ अध्यक्ष जेरहवंषी नटोफ़ावासी महरय था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
14) ग्यारहवें महीने का ग्यारहवाँ अध्यक्ष एफ्रईमवंषी पिरआतोनवासी बनाया था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
15) बारहवें महीने का बारहवाँ अध्यक्ष ओतनीएलवंषी नटोफ़ाती हेलदय था। उसके विभाग में चौबीस हजार व्यक्ति थे।
16) इस्राएली वंषों में जिक्री का पुत्र एलीएजर रूबेन का अध्यक्ष था; माका का पुत्र शफ़टा सिमओन का;
17) कमूएल का पुत्र हषब्या लेवी का; सीदोक हारून का;
18) एलीहू, जो दाऊद के भाइयों में एक था, यूदा का; मीकाएल का पुत्र ओम्री इस्साकार का;
19) ओबद्या का पुत्र यिषमाया जबुलोन का; अज्रीएल का पुत्र यरीमोत नफ्ताली का;
20) अजज्या का पुत्र होषेआ एफ्रईम का; पदाया का पुत्र योएल मनस्से के आधे वंष का;
21) जकर्या का पुत्र यिद्दो गिलआदवासी मनस्से के आधे वंष का; अबनेर का पुत्र यासीएल बेनयामीन का;
22) यहोराम का पुत्र अजरएल दान का। इस्राएली वंषों के अध्यक्ष ये थे।
23) दाऊद ने उनकी गणना नहीं की, जो बीस वर्ष से कम के थे; क्योंकि प्रभु की प्रतिज्ञा थी कि वह इस्राएलियों को आकाष के तारों की तरह असंख्य बनायेगा।
24) सरूया के पुत्र योआब ने जनगणना प्रारम्भ की थी, परन्तु वह इसे पूरी नहीं कर पाया था - यह इसलिए कि इस्राएलियों को कोप का भागी बनना पड़ा था। इसके कारण राजा दाऊद के इतिहास-ग्रन्थ में उनकी संख्या का उल्लेख नहीं किया गया।
25) अदीएल का पुत्र असमावेत राजकीय कोषों का अधिकारी था। उज्जीया का पुत्र योनातान देहातों, नगरों, गाँवों और गढ़ों के भण्डारों का अधिकारी था।
26) कलूब का पुत्र एज्री खेतों में काम करने वाले मजदूरों का अधिकारी था।
27) रामावासी षिमई दाखबारियों का और शफ़ामवासी जब्दी अंगूरी का संचय करने वालों का अधिकारी था।
28) गेदेरवासी बाल-हानान निचले प्रदेष में पाये जाने वाले जैतून और गूलर वृक्षों का अधिकारी था और योआष तेल भण्डारों का।
29) शरोनी षिट्रय शारोन के मैदान में चरने वाले ढोरों का और अदलय का पुत्र शाफ़ाट घाटियों के ढोरों का अधिकारी था।
30) इसमाएली ओबीस ऊँटों का और मेरोनोती येहदया गधियों का
31) और हगरी याजीज भेड़-बकरियों का अधिकारी था। ये सब राजा दाऊद की धन-सम्पत्ति के कर्मचारी थे।
32) दाऊद का चाचा योनातान, जो मन्त्री था, विवेकी और शास्त्र का विद्वान था। हकमानी का पुत्र यहीएल राजपुत्रों का षिक्षक था। अहीतोफ़ेल राजा का मन्त्री था।
33) अरकी हूषय राजा का मित्र था।
34) अहीतोफ़ेल के बाद बनाया का पुत्र यहोयादा और एबयातर मन्त्री थे। योआब राजकीय सेना का अध्यक्ष था।

अध्याय 28

1) दाऊद ने इस्राएलियों के सब नेताओं, वंषों के अध्यक्षों, राजा की सेवा में नियुक्त विभागों के अधिकारियों, सहस्रपतियों, शतपतियों, सारी राजकीय सम्पत्ति और ढोरों के झुण्डों के अधिकारियों, अपने पुत्रों, राजमहल के पदाधिकारियों, योद्धाओं और वीर सैनिकों-सब को येरुसालेम मे एकत्रित किया।
2) राजा दाऊद ने खड़ा हो कर कहा, ÷÷मेरे भाईयों और मेरी प्रजा! मेरी बात पर ध्यान दो। मैं बहुत चाहता था कि प्रभु के विधान की मंजूषा के लिए एक भवन बनवाऊँ, जो हमारे ईष्वर का पाँवदान हो और मैंने निर्माण के लिए तैयारियाँ भी की थी।
3) परन्तु ईष्वर ने मुझ से कहा कि तुम मेरे नाम पर मन्दिर नहीं बना सकोगे, क्योंकि तुम योद्धा हो और तुमने खून बहाया है।
4) प्रभु, इस्राएल के ईष्वर ने मेरे सारे कुटुम्ब में मुझे इसलिए चुना कि मैं सदा के लिए इस्राएल का राजा बनूँ। उसने यूदा को नेता चुना और यूदा के घराने में से मेरा परिवार चुना और मेरे पिता के पुत्रों में उसने मुझे सारे इस्राएल का राजा बनाने की कृपा की है।
5) फिर उसने मेरे सब पुत्रों में - प्रभु ने मुझे बहुत-से पुत्र दिये हैं - मेरे पुत्र सुलेमान को चुना है कि वह प्रभु के राज्य के सिंहासन पर बैठ कर इस्राएल पर शासन करे।
6) उसने मुझे यह वचन दिया था कि तुम्हारा पुत्र सुलेमान मेरा मन्दिर और मेरे प्रांगण बनवायेगा, क्योंकि मैंने उसे अपना पुत्र बनाना और उसका पिता होना स्वीकार किया है।
7) यदि वह आज की तरह निष्ठापूर्वक मेरी आज्ञाओं और आदेषों का पालन करता रहेगा, तो मैं उसका राज्य सदा के लिए बनाये रखूँगा।
8) इसलिए अब सब इस्राएलियों के सामने, प्रभु के समुदाय के सामने और हमारे ईष्वर के सुनने में, मैं तुम लोगों से कहता हूँ : प्रभु के समुदाय के सामने और हमारे ईष्वर की सब आज्ञाओं का पालन करने का ध्यान रखो, जिससे इस सुन्दर देष पर तुम्हारा अधिकार बना रहे और तुम इसे अपने वंषजों को उत्तराधिकारस्वरूप सदा देते जाओ।
9) ÷÷और मेरे पुत्र सुलेमान! तुम अपने पिता के ईष्वर पर श्रद्धा रखो, सारे हृदय और सारे मन से उसकी सेवा करो; क्योंकि प्रभु सबों के हृदय की थाह लेता और सबों के अन्तरतम विचार पहचानता है। यदि तुम उसे ढूँढ़ोगे, तो वह तुम्हें मिलेगा और यदि तुम उसे छोड़ दोगे, तो वह भी तुम्हें सदा के लिए त्याग देगा।
10) ध्यान रखो, ईष्वर ने तुम्हें इसलिए चुना है कि तुम उसके मन्दिर के रूप में एक भवन बनवाओं। दृढ़ बने रहो और कार्य प्रारम्भ करो।''
11) इसके बाद दाऊद ने अपने पुत्र सुलेमान को मन्दिर के द्वारमण्डप, उसके भवनों, उसके भण्डारों, ऊपरी और भीतरी कमरों तथा प्रायष्चित-फलक के स्थान का नक्षा दिया।
12) फिर दाऊद ने प्रभु के मन्दिर के प्रांगणों, उसके चारों ओर के उपभवनों, ईष्वर के मन्दिर के कोषों और पवित्र वस्तुओं के कोषों के विषय में अपने मन में जो योजना बनायी थी, उसका नक्षा सुलेमान को दिया।
13) उसने याजकों और लेवियों के दलों, प्रभु के मन्दिर में उनके सेवा-कार्यों की योजना की व्यवस्था तथा प्रभु के मन्दिर की सेवा के सब पात्रों के सम्बन्ध में सुलेमान को समझाया।
14) उसने सेवा में प्रयुक्त होने वाले सोने के सब पात्रों के लिए आवष्यक सोना उसके सुपुर्द किया और सेवा में प्रयुक्त होने वाले चाँदी के सब पात्रों के लिए आवष्यक चाँदी;
15) फिर सोने के दीपवृक्ष और उनके साथ की दीवटों की तौल के अनुसार सोना और इसी प्रकार चाँदी के दीपवृक्षों और उनके साथ सेवा में उपयोग में आने वाली प्रत्येक दीवट की तौल के अनुसार चाँदी।
16) फिर उसने भेंट की रोटियों की दोनों मेजों के लिए सोना दिया और चाँदी की मेजों के लिए चाँदी;
17) काँटों, कटोरों और प्यालों के लिए शुद्ध सोना दिया और उनकी तौल के अनुसार सोने के पात्रों के लिए सोना तथा चाँदी के पात्रों के लिए उनकी तौल के अनुसार चाँदी;
18) फिर उसने धूप-वेदी के लिए उसकी तौल के अनुसार शुद्ध सोना दिया। उसने रथ, अर्थात् प्रभु के विधान की मंजूषा के ऊपर अपने पंख फैलाये हुए सोने के केरूबों का नमूना भी दिया।
19) दाऊद ने कहा, ÷÷यह सब प्रभु के हाथ के लेख में निरूपित है। उसने मुझे कार्य का पूरा नक्षा समझाया है।''
20) दाऊद ने अपने पुत्र सुलेमान से फिर कहा, ''दृढ़ बने रहो, साहसपूर्वक यह कार्य प्रारम्भ करो। मत डरो और निराष न हो; क्योंकि प्रभु-ईष्वर, मेरा ईष्वर तुम्हारे साथ है। जब तक प्रभु के मन्दिर के सारे सेवा-कार्य समाप्त न हो जायें, तब तक वह न तुम्हें छोड़ेगा और न तुम्हारा परित्याग करेगा।
21) देखो, प्रभु के मन्दिर के सब सेवा-कार्यों के लिए याजकों और लेवियों के दल तैयार हैं। हर प्रकार के कार्य में निपुर्ण कारीगर स्वेच्छा से समस्त निर्माण करने में तुम्हारी सहायता करेंगे। नेता और सब लोग इस कार्य के लिए तुम्हारे आदेषों का पालन करेंगे।''

अध्याय 29

1) इसके बाद राजा दाऊद ने सारी सभा से कहा, ÷÷ईष्वर ने मेरे पुत्र सुलेमान को ही चुना। वह अभी छोटा और अनुभवहीन है और यह काम बड़ा है। यह भवन किसी मनुष्य के लिए नहीं, बल्कि प्रभु-ईष्वर के लिए है।
2) इसलिए मैंने यथाषक्ति अपने ईश्वर के मन्दिर की स्वर्ण वस्तुओं के लिए स्वर्ण, चाँदी की वस्तुओं के लिए चाँदी, काँसे की वस्तुओं के लिए काँसा, लोहे की वस्तुओं के लिए लोहा और लकड़ी की वस्तुओं के लिए लकड़ी इकट्ठी की है। मैंने सुलेमानी मणियाँ और खाँचे में बिठायी जाने वाली मणियाँ, विभिन्न प्रकार के नग, प्रत्येक प्रकार के बहुमूल्य पत्थर और बहुत-सा संगमरमर एकत्रित किया।
3) मैंने पवित्र मन्दिर के लिए जो कुछ एकत्र किया था, इसके अतिरिक्त मैं अपने ईष्वर के मन्दिर के प्रेम से प्रेरित हो कर उसके लिए अपना निजी सोना और चाँदी देता हँूः
4) तीन हजार मन सोना, अर्थात् ओफ़िर का सोना, सात हजार मन शुद्ध चाँदी, जिससे मन्दिर की दीवारें मढ़ी जायें,
5) और कारीगरों द्वारा बनायी जाने वाली सोने की वस्तुओं के लिए सोना और चाँदी की वस्तुओं के लिए चाँदी।
6) आज प्रभु को भेंट चढ़ाने के लिए और कौन तैयार है?''
7) तब घरानों के मुखिया, इस्राएली वंषों के अध्यक्ष, सहस्रपति, शतपति और राजकीय सेवा के पदाधिकारी आगे बढ़े और उन्होंने स्वेच्छित दान चढ़ाये। उन्होंने प्रभु के मन्दिर के निर्माण के लिए पाँच हजार मन सोना, दस हजार स्वर्ण मुद्रएँ, दस हजार मन चाँदी, अठारह हजार मन काँसा और एक लाख मन लोहा दिया।
8) जिन-जिन लोगों के पास मणियाँ थीं, उन्होंने प्रभु के मंदिर के कोष के लिए उन्हें गेरषोनी यहीएल को दे दिया।
9) जनता उनकी उदारता से बड़ी प्रसन्न हुई, क्योंकि उन लोगों ने सारे हृदय से प्रभु को दान दिये। राजा दाऊद को भी प्रसन्नता हुई।
10) तब दाऊद ने सारी सभा के सामने प्रभु को इन शब्दों में धन्यवाद दिया : हमारे पिता इस्राएल के प्रभु-ईष्वर! तू सदा-सर्वदा धन्य है।
11) प्रभु! तुझे प्रताप, सामर्थ्य, महिमा, विजय और स्तुति! क्योंकि जो कुछ स्वर्ग में और पृथ्वी पर है, वह तेरा है। प्रभु! राज्याधिकार तेरा है। तू सब शासकों में महान् है।
12) धन और सम्मान तुझ से मिलता है। तू समस्त सृष्टि का शासन करता है। तेरे हाथ में सामर्थ्य और बल है। तू लोगों को महान् और शक्तिषाली बनाता है।
13) हमारे ईष्वर! इसलिए हम तुझे धन्वाद देते हैं और तेरे महिमामय नाम की स्तुति करते हैं।
14) ÷÷मैं कौन हूँ, मेरी प्रजा क्या है, जो हम में इतनी भेंटों चढ़ाने का सामर्थ्य रहा हो? सब तुझ से ही मिला है और जो तुझ से पाया है, हमने तुझे चढ़ा दिया है।
15) अपने सब पूर्वजों की तरह हम भी तेरे सामने विदेषी और प्रवासी हैं। इस धरती पर हमारा जीवन छाया मात्र है; यहाँ हमारा रहना अनिष्चित है।
16) प्रभु! हमारे ईष्वर! यह सब सामग्री, जो हमने तेरे पवित्र नाम पर मन्दिर बनाने के लिए एकत्रित की है - यह सब तुझ से ही प्राप्त है, सब तेरा ही है।
17) मेरे ईष्वर! मैं यह जानता हूँ कि तू हृदयों की थाह लेता है और हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है। मैंने सच्चे हृदय से ये सब स्वेच्छित दान अर्पित किये और अब में आनन्दित हो कर देख रहा हूँ कि यहाँ पर एकत्रित तेरी प्रजा भी स्वेच्छा से तुझे भेंट चढ़ा रही है।
18) प्रभु! हमारे पूर्वज इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के ईष्वर! तू सदा-सर्वदा अपनी प्रजा के हृदय मैं ऐसा मनोभाव बनाये रख और उसका हृदय अपनी ओर अभिमुख कर।
19) मेरे पुत्र सुलेमान को एक ऐसा हृदय प्रदान कर, जिससे वह ईमानदारी से तेरी आज्ञाओं, नियमों और विधियों का पालन करते हुए, उनके अनुसार आचरण करे और इस भवन का निर्माण करे, जिसकी योजना मैंने बनायी है।''
20) इसके बाद दाऊद ने सारी सभा से कहा, ÷÷प्रभु, अपने ईष्वर को धन्य कहो!' तब सारी सभा ने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईष्वर को धन्य कहा। उसने नतमस्तक हो कर प्रभु की आराधना की और राजा को प्रणाम किया।
21) उसने प्रभु के लिए बलि चढ़ायी। दूसरे दिन उसने प्रभु के लिए अर्घ के साथ होम बलियाँ चढ़ायीं : एक हजार बछड़े, एक हजार मेढ़े, एक हजार मेमने और इसके अतिरिक्त सब इस्राएलियों के लिए बहुत-सी अन्य बलियाँ चढ़ायीं।
22) उन्होंने उस दिन बड़े आनन्द से प्रभु के सामने खाया- पिया और दूसरी बार दाऊद के पुत्र सुलेमान को राजा घोषित किया। उन्होंने प्रभु के सामने उसका राजा के रूप में और सादोक का याजक के रूप में अभिषेक किया।
23) तब सुलेमान अपने पिता दाऊद की जगह राजा बना और प्रभु के सिंहासन पर बैठा। वह राजा के रूप में सफल रहा और सारे इस्राएली उसके आदेषों का पालन करते थे।
24) सब नेता, वीर योद्धा और राजा दाऊद के सब पुत्र भी राजा सुलेमान के अधीन थे।
25) प्रभु ने सुलेमान को सारे इस्राएलियों की दृष्टि में महान् बनाया और उसे ऐसा राजकीय वैभव प्रदान किया, जैसा उसके पहले इस्राएल में कभी किसी राजा को प्राप्त नहीं हुआ था।
26) यिषय के पुत्र दाऊद ने सारे इस्राएल पर राज्य किया।
27) वह चालीस वर्ष इस्राएलियों का राजा रहा। उसने हेब्रोन में सात वर्ष और येरुसालेम में तैंतीस वर्ष शासन किया।
28) लम्बा जीवन, वैभव ओर महिमा भोगने के बाद परिपक्व उमर में दाऊद की मृत्यु हो गयी और उसका पुत्र सुलेमान उसकी जगह राजा बना।
29) द्रष्टा समूएल, नबी नातान और द्रष्टा गाद के ग्रन्थों में राजा दाऊद का आदि से अन्त तक का इतिहास लिखा है।
30) उन में उसके राज्य की सब घटनाओं, उसकी शक्ति और उन सब विपत्तियों का वर्णन है, जो उस पर, इस्राएल पर और पृथ्वी के अन्य राज्यों पर पड़ी थीं।