पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

राजाओं का दूसरा ग्रन्थ ( II Kings )

अध्याय 1

1) अहाब की मृत्यु के पष्चात् मोआब ने इस्राएल के विरुद्ध विद्रोह किया।
2) समारिया ने अहज्+या अपने ऊपरी कमरे के छज्जे से गिरा और उसे गहरी चोट लगी। उसने यह आदेश दे कर दूतों को भेजा, ÷÷जाओ और एक्रोन के बाल-ज+बूब देव से पूछो कि मैं इस बीमारी से स्वस्थ होऊँगा या नहीं''।
3) तब प्रभु के एक दूत ने तिषबी एलियाह से कहा, ÷÷जाओ और समारिया के राजा के दूतों से मिल कर उन से कहो, ÷क्या इस्राएल में ईष्वर नहीं है, जो तुम एक्रोन के बाल-ज+बूब के पास पूछने जा रहे हो?'
4) इसलिए प्रभु का यह कहना है : जिस पलंग पर तुम पड़े हो, उस से उठ नहीं पाओगे। तुम निश्चय ही मर जाओगे।'' एलियाह चल दिया ।
5) दूत राजा के पास लौटे, तो उसने पूछा, ÷÷तुम लोग क्यों लौट आये?''
6) उन्होंने उस से कहा, ÷÷हम से एक आदमी मिलने आया और उसने हमें आज्ञा दी कि जाओ और जिस राजा ने तुम्हें भेजा है, उसके यहाँ लौट कर कहो कि प्रभु का कहना है कि क्या इस्राएल में ईश्वर नहीं है, जो तुम एक्रोन के बाल-ज+बूब देव से पूछने दूत भेज रहे हो। इसलिए जिस पलंग पर तुम पड़े हो, उस से उठ नहीं पाओगे। तुम निश्चित ही मर जाओगे।''
7) तब फिर उसने उन से पूछा, ÷÷वह आदमी कैसा था, जो तुम से मिला और जिसने यह कहा?''
8) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ÷÷वह टाट का वस्त्र पहने था और उसकी कमर में चमडे+ का कमरबन्द कसा हुआ था''। इस पर उसने कहा, ÷÷वह तिशबी एलियाह था''।
9) तब उसने एक सेना-नायक को उसके पचास सैनिकों के साथ एलियाह के पास भेजा। सेना-नायक एलियाह के पास ऊपर आया, जो किसी पहाड़ी की चौटी पर बैठा था और उसने एलियाह से कहा, ÷÷ईश्वर-भक्त! राजा ने आप को नीचे उतरने का आदेश दिया है''।
10) एलियाह ने उन पचास सैनिकों के नायक को उत्तर दिया, ÷÷यदि मैं ईश्वर भक्त होऊँ, तो आकाश से आग गिरे और तुम्हें अपने पचास सैनिकों-सहित भस्म कर डाले''। तब आकाश से आग गिरी और उसने उसे तथा उसके पचास सैनिकों को भस्म कर डाला।
11) इसके बाद राजा ने एक दूसरे सेना-नायक को उसके पचासों सैनिकों-सहित उसके पास भेजा। उसने एलियाह से कहा ÷÷ईश्वर-भक्त! राजा ने आपको तुरन्त नीचे उतरने का आदेश दिया है''।
12) एलियाह ने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷यदि मैं ईश्वर-भक्त होऊँ, तो आकाश से आग गिरे और तुम्हें अपने पचासों सैनिकों-सहित भस्म कर डाले''। तब ईश्वर की आग आकाश से गिरी और उसने उसे तथा उसके पचासों सैनिकों को भस्म कर डाला।
13) अब राजा ने एक तीसरे सेना-नायक को उसके पचासों सैनिकों-सहित भेजा। वह तीसरा नायक ऊपर गया और उसने एलियाह के सामने घुटने टेक कर उस से यह निवेदन किया, ÷÷ईश्वर-भक्त! कृपया मेरे-और आप के भी- सेवकों, मेरे सैनिकों के प्राणों की रक्षा कीजिए।
14) देखिए, आकाश से आग गिरी और उसने पहले के दो नायकों को उनके सैनिकों के साथ भस्म कर दिया। अब, आप मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।''
15) इस पर प्रभु के दूत ने एलियाह से कहा, ÷÷उसके साथ नीचे उतर जाओ, उस से मत डरो''। तब वह उठा और राजा के पास नीचे
16) जा कर उस से बोला, ÷÷प्रभु का कहना है : तुमने एक्रोन के बाल-ज+बूब देव के पास पूछने के लिए दूतों को भेजा है- मानो इस्राएल में पूछने के लिए ईश्वर ही न हो; इसलिए तुम पलंग पर से नहीं उतर पाओगे, जिस पर तुम पड़े हो। निश्चय ही तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।''
17) एलियाह द्वारा कहे हुए प्रभु के वचन के अनुसार अहज्+या की मृत्यु हो गयी। उसके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए यूदा के राजा यहोशाफ़ाट के पुत्र यहोराम के दूसरे वर्ष अहज्+या का भाई यहोराम उसके स्थान में राजा बना।
18) अहज्+या का शेष इतिहास और उसके कार्यकलाप का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।

अध्याय 2

1) जब प्रभु एलियाह को एक बवण्डर द्वारा स्वर्गं में आरोहित करने वाला था, तो एलियाह एलीशा के साथ गिलगाल से चला गया।
2) एलियाह ने एलिशा से कहा, ÷÷यहीं रुक जाओ, क्योंकि प्रभु ने मुझे बेतेल भेजा है''। एलीशा ने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु की शपथ और आपकी शपथ! मैं आप को नहीं छोडूँगा''। तब वे बेतेल गये।
3) बेतेल में रहने वाले नबियों के शिष्य बाहर एलीशा के पास आये और उस से पूछने लगे, ÷÷क्या तुम जानते हो कि आज प्रभु तुम्हारे गुरू को तुम्हारे पास से उठा ले जाने वाला है?'' उसने उत्तर दिया ÷÷हाँ, मैं जानता हूँ; तुम लोग चुप रहो''।
4) एलियाह ने उस से कहा, ÷÷एलीशा, तुम यहीं रुको, प्रभु मुझे येरीख़ो भेज रहा है''। एलीशा ने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु की शपथ और आपकी शपथ! मैं आप को छोड़ नहीं सकता''।
5) अतः वे येरीख़ो आये। येरीख़ो में रहने वाले नबियों के शिष्य एलीशा के पास आ कर उस से पूछने लगे, ÷÷क्या तुम जानते हो कि आज प्रभु तुम्हारे गुरू को तुम्हारे पास से उठा ले जाने वाला है?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ मैं जानता हूँ ; तुम लोग चुप रहो''।
6) एलियाह ने एलीशा से कहा, ÷÷तुम यहाँ रहो, क्योंकि प्रभु मुझे यर्दन के तट पर भेज रहा है''। उसने उत्तर दिया, ÷÷जीवन्त प्रभु और आपकी शपथ! मैं आपका साथ नहीं छोडूँगा''। इसलिए दोनों आगे बढ़े।
7) पचास नबी उनके पीछे हो लिये और जब वे दोनों यर्दन के तट पर रुक गये, तो वे कुछ दूरी पर खड़े रहे।
8) तब एलियाह ने अपनी चादर ले ली और उसे लपेट पर पानी पर मारा। पानी विभाजित हो कर दोनों ओर हट गया और वे सूखी भूमि पर नदी के उस पार गये।
9) नदी पार करने के बाद एलियाह ने एलीशा से कहा, ÷÷मुझे बताओ कि तुम से अलग किये जाने से पहले मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ''। एलीशा ने उत्तर दिया, ÷÷मुझे आपकी आत्मिक शाक्ति का दोहरा भाग प्राप्त हो''।
10) एलियाह ने कहा, ÷÷तुमने जो मांँगा है, वह आसान नहीं है। यदि तुम मुझे उस समय देखोगे, जब मैं आरोहित कर लिया जाता हूँ, तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी होगी। परन्तु यदि तुम मुझे नहीं देखोगे, तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी नहीं होगी।''
11) वे बातें करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक अग्निमय अश्वों-सहित एक अग्निमय रथ ने आ कर दोनों को अलग कर दिया और एलियाह एक बवण्डर द्वारा स्वर्ग में आरोहित कर लिया गया।
12) एलीशा यह देख कर चिल्ला उठा, ÷÷मेरे पिता! मेरे पिता! इस्राएल के रथ और घुड़सवार!'' जब एलियाह उसकी आँखों से ओझल हो गया था, तो एलीशा ने अपने वस्त्र फाड़ डाले
13) और वह एलियाह की चादर को, जो उसकी शरीर से गिर गयी थी, उठा कर लौटा और यर्दन के तट पर खड़ा रहा।
14) उसने एलियाह की चादर से पानी पर चोट की, जो विभाजित नहंीं हुआ। वह बोला, ÷÷एलियाह का प्रभु-ईश्वर कहाँ है?'' उसने फिर चादर से पानी पर चोट की और पानी विभाजित हो कर दोनों ओर हट गया और एलीशा नदी पार कर गया।
15) येरीख़ो के नबियों के शिष्य, जो कुछ दूरी पर खड़े रह गये थे, उसे देख कर बोल उठे, ÷÷एलियाह की आत्मिक शाक्ति एलीशा को मिल गयी है''। वे उस से मिलने आये। उन्होंने उसे दण्डवत् प्रणाम कर
16) कहा, ÷÷देखिए, आपके दासों में हम पचास समर्थ लोग हैं। वे आपके गुरू को ढॅँूढ़ने जायें, क्योंकि सम्भव है कि प्रभु के आत्मा ने उन्हें उठा कर कहीं किसी पहाड़ या किसी घाटी में छोड़ दिया हो।'' किन्तु उसने इनकार करते हुए कहा, ÷÷उन्हें मत भेजो''।
17) किन्तु वे इतना आग्रह करते रहे कि एलीशा ने कहा, ÷÷उन्हें ढूँढ़ने भेजो''। उन्होंने पचासों व्यक्तियों को भेजा, जो उसे तीन दिन तक ढूँढ़ते रहे।
18) किन्तु उन्हें एलियाह नहीं मिला और वे एलीशा के पास लौट आये। उस समय वह येरीख़ो में ही था। वह उन से यह बोला, ÷÷मैंने तो तुम से कहा था कि ढूँढ़ने मत जाओ''।
19) नगर के निवासियों ने एलीशा से कहा, ÷÷जैसा कि हमारे स्वामी देख रहे हैं, इस नगर की स्थिति अच्छी है, लेकिन पानी दूषित है और देश गर्भपात से पीड़ित''।
20) उसने कहा, ÷÷मेरे पास एक नया पात्र ले आओ और उस में नमक डाल दो''। वे उसे उसके पास लाये।
21) उसने पानी के स्रोत के पास जा कर यह कहते हुए उस में नमक डाल दिया, ÷÷प्रभु का कहना है कि मैं यह पानी स्वच्छ कर देता हूँ। अतः भविष्य में यह न तो मृत्यु का कारण बनेगा और न गर्भपात का।''
22) एलीशा के कहने के अनुसार वह पानी स्वच्छ हो गया। वह आज तक स्वच्छ है।
23) वहाँ से वह बेतेल गया। वह रास्ते की चढ़ाई चढ़ रहा था। उसी समय नगर से कुछ लड़के निकले और उसे चिढ़ाते हुए कहने लगे, ÷÷अरे गंजे, ऊपर चढ़!् अरे गंजे, ऊपर चढ़!''
24) उसने उनकी ओर मुड़ कर उन्हें प्रभु के नाम पर अभिशाप दिया। तब वन से दो रीछनियाँ निकलीं और उन्होंने उन में बयालीस लड़कों को चीर डाला।
25) वहाँ से वह करमेल पर्वत गया और फिर वहांँ से समारिया लौट आया।

अध्याय 3

1) यूदा के राजा यहोशाफ़ाट के अठारहवें वर्ष अहाब का पुत्र यहोराम समारिया में इस्राएल का राजा बना।
2) उसने बारह वर्ष तक शासन किया। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि से बुरा है। लेकिन उसने वैसा नहीं किया, जैसा उसके माता-पिता ने किया था। उसने अपने पिता द्वारा प्रतिष्ठित बाल-देव का स्मारक-स्तम्भ गिरवा दिया।
3) उसने नबाट के पुत्र यरोबआम की तरह इस्राएल से पाप कराया और उस पाप से विमुख नहीं हुआ।
4) मोआब का राजा मेशा भेड़ों का पालन करता था। वह प्रति वर्ष इस्राएल के राजा को एक लाख मेमनों और एक लाख मेढ़ों का ऊन दिया करता था।
5) अहाब की मृत्यु के पश्चात् मोआब के शासक ने इस्राएल के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया।
6) इसलिए राजा यहोराम उसी समय समारिया से निकला और समस्त इस्राएलियों को एकत्रित करने लगा।
7) उसने यूदा के राजा यहोशाफ़ाट से भी कहलवाया, ÷÷मोआब का राजा मेरे प्रति विद्रोही हो गया है। क्या आप मेरे साथ मोआब से लड़ने को तैयार हैं?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं आपके साथ जाऊँगा। आपकी तरह मैं, आपकी प्रजा की तरह मेरी प्रजा और आपके घोड़ों की तरह मेरे घोड़े तैयार हैैं।''
8) फिर उसने पुछवाया, ÷÷हम उन पर किस ओर से आक्रमण करें?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷एदोम के उजाड़ खण्ड की ओर से''।
9) तब इस्राएल का राजा यूदा के राजा और एदोम के राजा के साथ युद्ध के लिए निकल पड़ा। चक्करदार मार्ग से सात दिन चलने के बाद उनकी सेना और उनके साथ के पशुओं के लिए पानी नहीं मिल रहा था।
10) इस्राएल के राजा ने कहा, ÷÷हाय! लगता है, प्रभु ने हम तीनों राजाओं को मोआबियों के हाथ दे देने यहांँ बुलाया है''।
11) यहोशाफ़ाट ने पूछा, ÷÷क्या यहँा प्रभु का कोई नबी नहीं है, जिसके द्वारा हम प्रभु से पूछ सकें?'' इस्राएल के राजा के एक सेवक ने उत्तर दिया, ÷÷शाफ़ाट के पुत्र एलीशा यहीं हैं, वह एलियाह के शिष्य रह चुके हैं''।
12) यहोशाफ़ाट ने कहा, ÷÷उनके मुख में प्रभु की वाणी निवास करती है''। इसलिए इस्राएल का राजा, यहोशाफ़ाट और एदोम का राजा उसके पास गये।
13) एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, ÷÷मुझ से आप को क्या? आप अपने पिता और अपनी माता के नबियों के पास जाइए।'' लेकिन इस्राएल के राजा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷नहीं, प्रभु ने तो हम तीनों राजाओं को मोआबियों के हाथ देने के लिए यहाँ बुलाया है''।
14) एलीशा ने कहा, ÷÷विश्वमण्डल के प्रभु की शपथ, जिसका मैं सेवक हँू! यदि यूदा के राजा यहोशाफ़ाट के प्रति मुझ में सद्भावना न होती, तो मैं न आपकी ओर देखता और न आप पर ध्यान देता।
15) मेरे पास कोई वीणवादक ले आइए।'' वादक वीणा बजाने लगा और प्रभु की प्रेरणा एलीशा को प्राप्त हुई।
16) तब वह कहने लगा, ÷÷ प्रभु कहता है- इस घाटी में बहुत-से नाले बनाओ।
17) ÷÷प्रभु कहता है -यद्यपि तुम न पवन देखोगे और न वर्षा, फिर भी यह घाटी पानी से भर जायेगी और तुम लोग, तुम्हारे ढोर और तुम्हारे अपने पशु पानी पी सकेंगे।
18) यह प्रभु के लिए साधारण-सी बात है। वह मोआबियों को भी तुम्हारे हाथ दे देगा।
19) तुम सभी क़िलाबन्द नगरों और बड़े नगरों का विनाश करोगे, सभी फलदायक वृक्षों को काट डालोगे, सभी जलस्+ा्रोतों को बन्द कर दोगे और सभी अच्छे खेतों को पत्थरों से पाट दोगे।''
20) सबेरे, जिस समय अन्न-बलि चढ़ायी जाती है, अचानक एदोम की ओर से पानी आया, जिसने देश को जलमग्न कर दिया।
21) सब मोआबियों ने सुना था कि राजा लोग उनके विरुद्ध युद्ध करने आ रहे हैं। उन्होंने क्या जवान क्या बूढ़े, हथियार बाँधने योग्य सभी पुरुषों को बुला कर उन्हें सीमा पर तैनात किया।
22) बड़े सबेरे जागने पर जब मोआबियों ने पानी के ऊपर सूर्य को चमकते देखा, तो उन्हें पानी रक्त के समान लाल दिखाई पड़ा।
23) उन्होंने कहा, ÷÷यह तो रक्त है। उन राजाओं ने निश्चिय ही आपस में लड़ कर एक-दूसरे को मार डाला होगा। मोआबियों, चलो लूटो!''
24) जैसे ही वे इस्राएलियो के पड़ाव के निकट आये, इस्राएली उठ कर मोआबियों से जूझ पड़े। उनके सामने से मोआबियों को भागना पड़ा। वे मोआबियों का पीछा कर उन्हें मारते रहे।
25) उन्होंने उनके नगरों को नष्ट कर दिया। प्रत्येक व्यक्ति ने उनके सब अच्छे खेतों में पत्थर फेंका, जिससे वे पत्थरों से पट गये। उन्होंने सब जलस्रोत बन्द कर दिये और सब फलदायक वृक्ष काट डाले। अन्त में केवल कीर-हरेशेत की चारदीवारी रह गयी। उसे गोफन चलाने वालों ने घेर कर अधिकार में कर लिया।
26) जब मोआब के राजा ने देखा कि वह हार रहा है, तो उसने सात सौ तलवारधारी सैनिकों के साथ घेरा तोड़ कर एदोम के राजा के पास पहँुचने का निश्चय किया। परन्तु वे इस में असफल रहे।
27) तब उसने प्राचीर पर अपने पहलौठे पुत्र की होम-बलि चढ़ायी, जो उसके राज्य का उत्तराधिकारी था। तब इस्राएलियों पर भारी प्रकोप पड़ा और वे हट कर अपने देश लौट गये।

अध्याय 4

1) एक दिन नबियों के शिष्यों में एक की पत्नी ने एलीशा से प्रार्थना करते हुए कहा, ÷÷आपके दास, मेरे पति की मृत्यु हो गयी है और आप जानते हैं कि आपके दास प्रभु-भक्त थे। अब महाजन मेरे दोनों पुत्रों को दास बनाने के लिए आ रहा है।''
2) एलीशा ने उस से पूछा, ÷÷तो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? मुझे बताओ कि तुम्हारे घर में क्या-क्या है।'' उसने उत्तर दिया, ÷÷आपकी इस दासी के घर में तेल से भरी एक कुप्पी के सिवा और कुछ नहीं है''।
3) उसने उस से कहा, ÷÷जाओ और अपने सब पड़ोसियों से ख़ाली बरतन माँग लाओ। जितने अधिक ला सको, ले आओ।
4) तुम अपने पुत्रों के साथ घर जा कर भीतर से किवाड़ लगा दो। उन सब पात्रों में तेल डालो और जैसे-जैसे वे भरते जायें, उन्हें अलग रखती जाओ।''
5) वहाँ से घर आ कर उसने अपने पुत्रों के साथ भीतर जा कर किवाड़ लगा लिये। वे दोनों उसे बरतन देते जाते और वह उस में तेल डालती जाती।
6) जब सारे बरतन भर गये, तब उसने अपने बेटे से कहा, ÷÷और बरतन दो''। इस पर वह बोला, ÷÷और कोई ख़ाली बरतन नहीं है''। तब तेल बहना बन्द हो गया।
7) उसने जा कर यह सब हाल ईश्वर-भक्त को सुनाया। असने उस से कहा, ÷÷जाओ, तेल बेच कर अपना ऋण चुका दो और बचे हुए तेल का उपयोग अपने और पुत्रों के लिए करो।''
8) एलीशा किसी दिन शूनेम हो कर जा रहा था। वहाँ की एक धनी महिला ने उस से अनुरोध किया कि वह उसके यहाँ भोजन करे। इसके बाद, जब-जब उसे वहाँ हो कर जाना था, तो वह उसके यहाँ भोजन करता था।
9) उसने अपने पति से कहा, ÷÷मुझे विश्वास है कि जो हमारे यहाँ भोजन करने आया करते हैं, वह एक ईश्वर-भक्त सन्त हैं।
10) हम छत पर एक छोटा-सा कमरा बनवायें। हम उस में पलंग, मेज+, कुर्सी और दीपक रख दें। जब वह हमारे यहाँ आयेंगे, तो उस में विश्राम करेंगे।''
11) एलीशा किसी दिन आया और छ+त पर चढ़ कर वहाँ सो गया।
12) उसने अपने सेवक गेहज+ी को आज्ञा दी, ÷÷शूनेमी स्त्री को बुला लाओ''। उसने उसे बुलाया, तो वह स्त्री उसके पास आयी।
13) तब उसने सेवक को आज्ञा दी, ÷÷उस से कहो, ÷तुम हमारे लिए इतने कष्ट उठाती हो। बताओ, तुम्हारे लिए क्या किया जा सकता है। क्या तुम्हारे लिए राजा या सेनाध्यक्ष से कुछ निवेदन किया जाये'?'' स्त्री ने उत्तर दिया, ÷÷मैं अपने संबंधियों के साथ सुरक्षित हूँ''।
14) एलीशा ने कहा, ÷÷मैं उस महिला के लिए क्या कर सकता हूँ?'' उसके सेवक गेहज+ी ने उत्तर दिया, ÷÷उसके कोई पुत्र नहीं है और उसका पति बूढ़ा है''।
15) एलीशा ने कहा, ÷÷उसे बुलाओ''। उसने उसे बुलाया और वह द्वार पर खड़ी हो गयी।
16) तब एलीशा ने कहा, ÷÷अगले वर्ष, इसी समय तुम्हारी गोद में पुत्र होगा''। उसने उत्तर दिया, ÷÷नही ईश्वर-भक्त! अपनी दासी को झूठा आश्वासन नहीं दीजिए''।
17) वह स्त्री गर्भवती हुई और अगले वर्ष, उसी समय उसने पुत्र प्रसव किया, जैसा कि एलीशा ने उसे आश्वासन दिया था।
18) जब शूनेमी महिला का पुत्र बड़ा हो गया, तो वह किसी दिन अपने पिता से मिलने आया, जो फ़सल काटने वाले मज+-दूरों के पास था।
19) उसने अपने पिता से कहा, ÷÷हाय, मेरा सिर! मेरा सिर!'' पिता ने एक नौकर से कहा, ÷÷ उसे उठा कर उसकी माँ के पास ले जाओ''।
20) नौकर उसे उठा कर उसकी माँ के पास ले आया। वह दोपहर तक अपनी माता की गोद में बैठा रहा और मर गया।
21) उसने अपने पुत्र को ऊपर ले जा कर ईश्वर-भक्त के पलंग पर लिटा दिया और वह दरवाज+ा बन्द कर बाहर निकल आयी।
22) तब उसने अपने पति को बुला कर उस से कहा, ÷÷मेरे पास एक गधी के साथ किसी नौकर को भेज दीजिए। मैं जल्दी ही ईश्वर- भक्त के पास जाऊँगी।''
23) उसने उस से पूछा, ÷÷तुम आज उनके पास क्यों जाओगी? आज न प्रतिपदा है और न विश्राम-दिवस।'' उसने कहा, ÷÷चिन्ता मत कीजिए''।
24) उसने गधी कसवाने के बाद नौकर से यह कहा, ÷÷जल्दी-जल्दी हाँको और जब तक मैं न कहूँ, तब तक हाँकने में ढिलाई मत करो''।
25) इस प्रकार चल कर वह करमेल पर्वत पर ईश्वर-भक्त के पास पहुँची। उसे दूर से आते देख कर ईश्वर-भक्त ने अपने सेवक गेहज+ी से कहा, ÷÷देखो, शूनेमी आ रही है।
26) जल्दी जा कर उस से मिलो और उस से पूछो- तुम सकुशल तो हो? तुम्हारे पति सकुशल तो हैं? और लड़का अच्छी तरह तो है?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷सब ठीक है''।
27) उसने पर्वत पर ईश्वर-भक्त के यहाँ पहुँच कर उसके पाँव पकड़े। गेहज+ी उसे हटाने के लिए पास आया, लेकिन ईश्वर-भक्त ने उस से कहा, ÷÷इसे छोड़ दो, क्योंकि इसकी आत्मा दुःखी है और प्रभु ने मुझ से इसका कारण छिपा लिया और मुझे बताया तक नही''।
28) वह कहने लगी, ÷÷क्या मैंने श्रीमान् से एक पुत्र की याचना की थी? क्या मैंने उस समय नहीं कहा था कि मुझे झूठा आश्वासन मत दीजिए?''
29) एलीशा ने गेहज+ी को आज्ञा दी, ÷÷अपनी कमर बाँध लो और हाथ में मेरा डण्डा ले कर वहाँ चले जाओ। यदि तुम्हें रास्ते में कोई मिले, तो उसे प्रमाण नहीं करोगे और यदि कोई तुम्हें प्रणाम करे, तो उसे उत्तर नहीं दोगे। मेरा डण्डा उस लड़के के चेहरे पर रख दोगे।''
30) लड़के की माँ ने कहा, ÷÷प्रभु की और आपकी शपथ! मैं आपके बिना यहाँ से नहीं जाऊँगी''। तब वह उसके साथ चल दिया।
31) गेहज+ी आगे चला गया था और उसने उस डण्डे को लड़के के चेहरे पर रख दिया था, परन्तु उस बालक की दशा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और उस में जीवन का कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया। वह लौट आया और एलीशा से मिल कर उसने कहा, ÷÷बच्चा जीवित नहीं हुआ''।
32) एलीशा ने घर आ कर उस लड़के को अपने पलंग पर मरा हुआ पाया।
33) वह कमरे के अन्दर चला गया और दरवाज+ा बन्द कर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा।
34) तब वह अपना मुख उसके मुख पर, अपनी आँखें उसकी आँखों पर और अपने हाथ उसके हाथों पर रख कर उस लड़के पर लेट गया। वह इस प्रकार उस पर तब तक लेटा रहा, जब तक उसका शरीर गर्म न होने लगा।
35) इसके बाद एलीशा उठा और कमरे में इधर-उधर टहल कर फिर लड़के पर लेट गया। तब लड़के को सात बार छींक आयी और उसने अपनी आँखें खोल दीं।
36) इस पर एलीशा ने गेहज+ी को बुला कर कहा, ÷÷शूनेमी महिला को बुलाओ!'' वह उसके बुलाने पर आयी और एलीशा ने उस से कहा, ÷÷अपने पुत्र को ले जाओ''।
37) उसने उसके चरणों पर गिर कर उसे दण्डवत् किया और अपने पुत्र को उठा कर वह चली गयी।
38) एलीशा गिलगाल लौटा। उस समय देश में अकाल पड़ा। जब नबियों के शिष्य उसके सामने बैठे हुए थे, तो उसने अपने सेवक से कहा, ÷÷हण्डा चढ़ा कर नबियों के शिष्यों के लिए भोजन तैयार करो''।
39) तब उन में एक व्यक्ति तरकारी लेने खेत गया। उसने एक जंगली लता पायी और उस से वह गोद भर इन्द्रायण फल तोड़ कर ले आया। उसने उनके टुकड़े-टुकड़े काट कर हण्डे में डाल दिया; क्योंकि कोई नहीं जानता था कि वे फल क्या हैं।
40) जब लोगों को भोजन परोसा गया और उन्होंने खाना शुरू किया, तो वे चिल्ला उठे, ÷÷ईश्वर- भक्त! हण्डे में मौत है'' और वे उसे खा नहीं सके।
41) तब एलीशा ने आज्ञा दी, ÷÷थोड़ा आटा ले आओ'। उसने उसे उस हण्डे में डालते हुए कहा, ÷÷अब लोगों को परोस दो और वे खायें''। हण्डे में अब कोई हानिकारक चीज+ नहीं रह गयी थी।
42) एक मनुष्य बाल-शालिशा से आया और उसने ईश्वर -भक्त को प्रथम फल के रूप में जौ की बीस रोटियाँ और नये अनाज का बोरा दिया। तब एलीशा ने कहा ÷÷लोगों को खाने के लिए दे दो''
43) किन्तु उसके नौकर ने कहा, ÷÷मैं इतने को ही एक सौ लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷लोगों को खाने के लिए दो, क्योंकि प्रभु ने यह कहा है- वे खायेंगे और उस में से कुछ बच भी जायेगा''।
44) उसने लोगों को खिलाया। उन्होंने खा लिया और जैसा कि प्रभु ने कहा था, उस में से कुछ बच भी गया।

अध्याय 5

1) अराम के राजा के सेनाध्यक्ष नामान को अपने स्वामी का सम्मान तथा कृपादृष्टि प्राप्त थी, क्योंकि प्रभु ने नामान द्वारा अरामियों को विजय दिलायी थी। वह महान् योद्धा था, किन्तु वह कोढ़ी था।
2) अरामी छापामार किसी समय इस्राएल के देश से एक कन्या को उठा कर ले आये थे और वह नामान की पत्नी की दासी बन गयी थी।
3) उसने अपनी स्वामिनी से कहा, ÷÷ओह! यदि मेरे स्वामी समारिया में रहने वाले नबी से मिलने जाते, तो वह उन्हें कोढ़ से मुक्त कर देते''।
4) नामान ने अपने स्वामी को बताया कि इस्राएली कन्या ने क्या-क्या कहा है।
5) इस पर अराम का राजा बोला, ÷÷तुम वहाँ जाओ। मैं तुम्हें इस्राएल के राजा के नाम एक पत्र दूँगा।'' नामान चल पड़ा और वह चाँदी के दस तोड़े, सोने की छः हज+ार अशर्फियाँ और दस जोड़े कपड़े अपने साथ ले गया।
6) उसने इस्राएल के राजा को वह पत्र दिया। उस में यह लिखा था, ÷÷मैं इस पत्र के साथ अपने सेवक नामान को आपके पास भेजता हूँ, जिससे आप उसे कोढ़ से मुक्त कर दें''।
7) इस्राएल का राजा पत्र पढ़ते ही अपने वस्त्र फाड़ कर बोल उठा, ÷÷मैं तो ईश्वर नहीं हूँ, जो मार और जिला सकता है! तो, उसने किसी को कोढ़ से मुक्त करने के लिए मेरे पास क्यों भेजा है? वह निश्चय ही मुझे से लड़ने का बहाना ढूँढ़ रहा है।''
8) जब ईश्वर-भक्त एलीशा को यह पता चला कि इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्र फाड़ डाले हैं, तो उसने राजा के पास यह कहला भेजा, ÷÷आपने क्यों अपने वस्त्र फाड़ डाले हैं? वह मेरे पास आये, तो वह जान जायेगा कि इस्राएल में एक नबी विद्यमान है।''
9) इसलिए नामान अपने घोड़ों और रथों के साथ आ कर एलीशा के घर के द्वार पर खड़ा हो गया।
10) एलीशा ने उसे यह सन्देश कहला भेजा, ÷÷आप जा कर यर्दन नदी में सात बार स्नान कीजिए। आपका शरीर स्वच्छ हो जायेगा और आप शुद्ध हो जायेंगे।''
11) नामान क्रुद्ध हो उठा और यह कहते हुए चला गया, ÷÷मैं समझ रहा था कि वह स्वयं बाहर आ कर मुझ से मिलेंगे, अपने प्रभु-ईश्वर का नाम ले कर प्रार्थना करेंगे और कोढ़ के स्थान पर हाथ फेर कर उसे दूर कर देंगे।
12) क्या दमिश्क की अबाना और फ़रफर नामक नदियों का जल इस्राएल के सब जलाशयों से बढ़कर नहीं है? क्या मैं उन में स्नान कर शु+द्ध नहीं हो सकता था?'' इस पर वह मुड़ कर क्रोध के आवेश में चला गया।
13) उसके सेवक उसके पास आये और यह कह कर उसे समझाने लगे, ÷÷पिता! यदि नबी ने आप को कोई कठिन कार्य करने को कहा होता, तो आप उसे अवश्य करते जब उन्होंने इतना ही कहा- स्नान कीजिए और आप शुद्ध हो जायेंगे, तो आप को ऐसा अवश्य करना चाहिए।''
14) इसलिए जैसा कि एलीशा ने उस से कहा था, उसने जा कर यर्दन नदी में सात बार डुबकी लगायी और उसका शरीर फिर छोटे बालक के शरीर-जैसा स्वच्छ हो गया।
15) वह अपने सब परिजनों के साथ एलीशा के यहाँ लौटा। वह भीतर जा कर उसके सामने खड़ा हो गया और बोला, ÷÷अब मैं जान गया हूँ कि इस्राएल को छोड़ कर और कहीं पृथ्वी पर कोई देवता नहीं है। अब मेरा निवेदन है कि आप अपने सेवक से कोई उपहार स्वीकार करें।''
16) एलीशा ने उत्तर दिया, ÷÷उस प्रभु की शपथ, जिसकी मैं सेवा करता हूँ! मैं कुछ भी स्वीकार नहीं करूँगा''। नामान के अनुरोध करने पर भी उसने स्वीकार नहीं किया।
17) तब नामान ने कहा, ÷÷जैसी आपकी इच्छा। आज्ञा दीजिए कि मुझे दो खच्चरों का बोझ मिट्टी मिल जाये, क्योंकि मैं अब से प्रभु को छोड़ कर किसी और देवता को होम अथवा बलि नहीं चढ़ाऊँगा।
18) प्रभु आपके इस दास को केवल इस बात के लिए क्षमा करेंगे : यदि मेरा स्वामी मेरे हाथ का सहारा लिये रिम्मोन के मन्दिर में साष्टांग प्रणाम करने जायेगा और मुझे भी रिम्मोन के मन्दिर में उसके साथ-साथ साष्टांग प्रणाम करना पड़ेगा, तब इस बात के लिए प्रभु आपके इस दास को क्षमा कर देगा।''
19) एलीशा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷सकुशल चले जाइए।'' वह उसके पास से कुछ ही दूर गया था
20) कि ईश्वर-भक्त एलीशा के सेवक गेहज+ी ने सोचा, ÷देखो, मेरे स्वामी ने इस अरामी नामान को यों ही जाने दिया। उस से कुछ भेंट भी नहीं ली। प्रभु की शपथ! मैं उसके पीछे दौड़ जाऊँगा और उस से कुछ न-कुुछ ले लूँगा।''
21) गेहज+ी नामान के पीछे दौड़ता गया। नामान ने उसे अपने पीछे दौड़ता देखा और रथ से नीचे उतर कर उस से मिला और पूछा, ÷÷सब कुशल तो है?''
22) उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ, सब कुशल है। मेरे स्वामी ने आप को यह कहलवाया है कि अभी-अभी इफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेश से नबी के शिष्यों में दो युवक मेरे यहाँ आये हैं। उनके लिए एक मन चाँदी और दो जोड़े वस्त्र दे दीजिए।''
23) नामान ने उत्तर दिया, ÷कृपा कर दो मन ले जाओ''। उसने उन्हें ग्रहण करने के लिए उसे विवश किया। तब उसने दो मन चाँदी और दो जोड़े वस्त्र दो थैलियों में बाँध कर उन्हें अपने दो सेवकों पर लदवा दिया। वे उन्हें गेहज+ी के आगे-आगे ले गये।
24) जब वे ओफ़ेल के पास पहुँचे, तो गेहज+ी ने उन्हें उनके हाथों से ले लिया और घर में रख दिया। उसने उन सेवकों से लौट जाने के लिए कहा और वे चले गये।
25) तब वह भीतर अपने स्वामी के पास गया। एलीशा ने उस से पूछा, ÷÷गेहज+ी, तुम कहाँ से आ रहे हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷आपका दास कहीं नहीं गया था''।
26) पर उसने उस से कहा, ÷÷क्या मेरा आत्मा उस समय तुम्हारे साथ नहीं था, जब कोई अपने रथ से उतर कर तुम से मिलने आया? क्या वस्त्र, जैतून वृक्ष, दाखबारियाँ, भेड़-बकरियाँ, बैल-गायें, दास-दासियाँ मोल लेने के लिए चाँदी लेने का यही उपयुक्त अवसर था?
27) इसलिए नामान के कोढ़ की बीमारी सदा तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को लगी रहे।'' इस पर वह बर्फ़ की तरह सफे+द कोढ़ी हो गया और उसके सामने से बाहर निकल गया।

अध्याय 6

1) एक बार नबी के शिष्यों ने एलीशा से कहा, ÷÷यह घर, जिस में हम आपके साथ रहते हैं, हमारे लिए छोटा पड़ता है।
2) हम यर्दन तट पर जायें और वहाँ से हम में से प्रत्येक एक-एक बल्ली लाये और हम यहाँ रहने के लिए एक घर बनायें।'' उसने कहा, ÷÷जाओ।
3) उन में से एक ने कहा, ÷÷कृपया आप भी अपने इन दासों के साथ चलिए''। उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ, मैं भी साथ चलूँगा''
4) और वह उनके साथ गया। जब वे यर्दन के पास पहुँच कर लकड़ी काटने लगे,
5) तो लकड़ी काटते समय किसी की कुल्हाड़ी की फाल निकल कर पानी में जा गिरी। उसने चिल्ला कर कहा, ÷÷स्वामी! यह उधार माँगी कुल्हाड़ी थी''।
6) ईश्वर-भक्त ने पूछा, ÷÷वह कहाँ गिरी है?'' उसने वह स्थान बताया। एलीशा ने एक लकड़ी का टुकड़ा काट कर वहाँ फेंका और इस प्रकार उस फाल को पानी के ऊपर तैरा दिया।
7) तब उसने कहा, ÷÷उसे निकाल लो''। उसने अपना हाथ बढ़ा कर उसे निकाल लिया।
8) अराम का राजा इस्राएलियों से युद्ध कर रहा था। उसने अपने सेवकों के साथ परामर्श करने के बाद कहा, ÷÷अमुक स्थान पर अपना पड़ाव डालो''।
9) उधर ईश्वर-भक्त ने इस्राएल के राजा से यह कहला भेजा कि वह इस स्थान से हो कर न जाये, क्योंकि यहाँ अरामी लोग पड़ाव डालने वाले हैं।
10) इस्राएल के राजा ने उस स्थान पर, जिसके विषय में ईश्वर-भक्त ने बताया था, अपने चर भेजे। इस प्रकार वह राजा को कई बार सावधान करता था, जिससे राजा उन स्थानों से सावधान रहता था।
11) अराम के राजा ने इस बात से घबरा कर अपने सेवकों को इकट्ठा करवाया और उन से पूछा, ÷÷क्या तुम लोग मुझे बता सकते हो कि हम में कौन इस्राएल के राजा का समर्थक है?''
12) उसके सेवकों में से एक ने कहा, ÷÷महाराज! मेरे स्वामी! हम में से कोई नहीं। परन्तु इस्राएल का नबी एलीशा इस्राएल के राजा को आपकी वे बातें तक बता देता है, जो आप अपने शयनागार में कहते हैं।''
13) इस पर उसने आज्ञा दी, ÷÷जाओ और देखो कि वह कहाँ है, जिससे मैं उसे पकड़ने किसी को भेजूँ''। उसे बताया गया कि वह दोतान में है।
14) इसलिए उसने घोड़ों और रथों-सहित एक बड़ा सैनिक-दल वहाँ भेजा। वे वहाँ रात के समय पहुँचे और उन्होंने नगर को घेर लिया।
15) ईश्वर-भक्त का सेवक सबेरे उठ कर बाहर निकला, तो देखता क्या है कि घोड़ों और रथों-सहित एक सैनिक दल नगर को घेरे पड़ा है। सेवक ने कहा, ÷÷स्वामी! हम क्या करें?
16) लेकिन उसने कहा, ÷÷डरो मत। जो हमारे साथ हैं, वे उन से अधिक हैं, जो उनके साथ हैं।''
17) इसके बाद एलीशा ने प्रार्थना की, प्रभु! इस युवक को दृष्टि दे, जिससे वह देख सके''। अब प्रभु ने उस युवक की आँखें खोल दीं और उसने देखा कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ घोड़ों और अग्निमय रथों से भरा है।
18) अरामी उस पर आक्रमण कर ही रहे थे कि एलीशा ने प्रभु से प्रार्थना की, ÷÷इन लोगों को अन्धा बना दे'' और एलीशा ने जैसी प्रार्थना की थी, प्रभु ने उन्हें अन्धा बना दिया।
19) इस पर एलीशा ने उन से कहा, ÷÷यह वह रास्ता नहीं है, यह वह नगर नहीं है। तुम लोग मेरे पीछे आओ और मैं तुम्हें उस व्यक्ति के पास ले चलता हूँ, जिसे तुम ढूँढ रहे हो।'' इस प्रकार वह उन्हें समारिया ले चला।
20) समारिया में प्रवेश कर एलीशा ने कहा, ÷÷प्रभु, इनकी आँखें खोल दे, जिससे ये देख सकें''। प्रभु ने उनकी आँखें खोलीं, तो उन्होंने देखा कि वे समारिया में हैं।
21) जब इस्राएल के राजा ने उन्हें देखा, तो उसने एलीशा से पूछा, ÷÷मेरे पिता! क्या मैं इन्हें मार डालूँ?''
22) लेकिन उसने कहा, ÷÷नहीं। इन्हें नहीं मारिए। क्या आप उन्हें मारते हैं, जिन्हें आपने अपनी तलवार और धनुष से बन्दी बनाया है? इन्हें खाने-पीने की रोटी-पानी दीजिए, जिससे ये खा-पी कर अपने स्वामी के पास चले जायें।''
23) इस पर राजा ने एक भोज दिया और उनके खा-पी लेने के बाद उन्हें विदा किया और वे अपने स्वामी के पास लौट गये। इस घटना के बाद अरामियों ने इस्राएल पर छापा मारना छोड़ दिया।
24) इसके बाद अराम के राजा बेन-हदद ने अपनी सारी सेना एकत्रित कर समारिया पर आक्रमण किया और उसे घेर लिया।
25) शत्रुओं के द्वारा घिर जाने के कारण समारिया में इतना भीषण अकाल पड़ा कि एक गधे का सिर चाँदी के अस्सी शेकेल में और कबूतर की बीट का आधा सेर चाँदी के पाँच शेकेल में बिकने लगा।
26) इस्राएल का राजा दीवार के ऊपर चला रहा था कि एक स्त्री ने उस से चिल्ला कर कहा, ÷÷श्रीमान्, महाराज, मेरी सहायता कीजिए!''
27) उसने उत्तर दिया, ÷÷यदि प्रभु तुम्हारी सहायता नहीं करता, तो फिर मैं कहाँ से तुम्हारी सहायता करूँगा- क्या खलिहान से, क्या अंगूर के कोल्हू से?''
28) फिर राजा ने उस से पूछा, ÷÷तुम क्या चाहती हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷एक स्त्री ने मुझ से कहा कि तुम अपना पुत्र दो, जिससे हम आज उसे खायें और कल मेरे पुत्र को खायेंगी।
29) इसलिए हम दोनों ने मेरे पुत्र को पकाया और खाया। दूसरे दिन मैंने उस से कहा कि अब तुम अपना पुत्र दो, उसे हम खायें, तो उसने अपने पुत्र को छिपा लिया''।
30) स्त्री की इन बातों को सुन कर राजा ने अपने वस्त्र फाड़ लिये। वह उस समय दीवार पर चला जा रहा था और लोगों ने देखा कि वह अपने शरीर पर टाट लपेटे है।
31) उसने कहा, ÷÷यदि आज मैं शाफ़ाट के पुत्र एलीशा का सिर उसके धड़ से अलग न कर दूँ, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये''।
32) उस समय एलीशा अपने घर में था और उसके आसपास नेता बैठे हुए थे। राजा ने अपने आने के पहले एक आदमी भेजा। उस दूत के वहाँ पहुँचने के पहले ही एलीशा ने नेताओं से कहा, ÷÷देखो, मेरा सिर काटने के लिए वह हत्यारा किसी को भेज रहा है। सावधान रहो, उस दूत के आने पर दरवाज+ा बन्द कर दो और उस को किवाड़ों से बाहर ढकेल दो; क्योंकि मुझे उसके पीछे उसके स्वामी की आहट सुनाई दे रही है।''
33) वह उन से यह कह ही रहा था कि राजा उसके पास आ गया और कहने लगा, ÷÷यह विपत्ति प्रभु की ओर से आयी है। अब मैं प्रभु से किस बात की आशा करूँ?''

अध्याय 7

1) एलीशा ने कहा, ÷÷प्रभु की वाणी सुनिए : प्रभु का कहना है कि कल इसी समय समारिया के फाटक पर आधा मन मैदा एक शेकल में और एक मन जौ एक शेकेल में बिकेगा''।
2) राजा जिस पदाधिकारी के हाथ का सहारा लिये था, उसने ईश्वर-भक्त को उत्तर दिया, ÷÷यदि प्रभु आकाश की खिड़कियाँ खोल भी दे, तो क्या यह बात सम्भव है?'' एलीशा ने उत्तर दिया, ÷÷तुम अपनी आँखों देखोगे, परन्तु वह अन्न नहीं खा पाओगे''।
3) नगर-द्वार के पास चार कोढ़ी बैठे हुए थे। वे आपस में कहने लगे, ÷÷हम यहाँ बैठे-बैठे क्यों मरें?
4) यदि हम नगर में प्रवेश करेंगे, तो हम वहाँ मर जायेंगे; क्योंकि वहाँ अकाल है और यदि हम यहाँ रहेंगे, तो यही मर जायेंगे। चलो, हम अरामियों के पड़ाव में चलें। यदि वे हमें जीवित छोड़ देंगे, तो हम जीवित रहेंगे और यदि वे हमें मार डालेंगे, तो हम मर जायेंगे।''
5) सन्ध्या होने पर वे अरामियों के पड़ाव की ओर चल पड़े। अरामी पड़ाव के पास पहुँचने पर उन्हें वहाँ कोई दिखाई न पड़ा;
6) क्योंकि प्रभु के विधान से अरामी सैनिकों को रथों और घोड़ों की आवाज+, एक बड़ी सेना का तुमुलनाद सुनाई दिया, जिससे वे आपस में कहने लगे, ÷÷इस्राएल के राजा ने हम पर आक्रमण करने हित्तिसों और मिस्र के राजाओं को धन दे कर बुलाया है।''
7) इसलिए वे सन्ध्या समय अपने तम्बुओं, घोड़ों, गधों और शिविर को ज्यों-का-त्यों छोड़ कर अपने प्राण बचाने के लिए भाग खड़े हुए।
8) वे कोढ़ी पड़ाव पर पहुँच कर एक तम्बू में घुस गये, खाने-पीने लगे तथा चाँदी, सोना और वस्त्र ले कर उन्हें छिपाने के लिए चल दिये। इसके बाद वापस आ कर वे एक दूसरे तम्बू में घुसे और वहाँ से भी सब कुछ ले कर उसे छिपा दिया।
9) तब उन्होंने आपस में कहा, ÷÷हम जो कर रहे हैं, वह अच्छा नहीं है। आज शुभ सन्देश का दिन है। यदि हम सबेरे तक चुप बैठे रहते हैं, तो हमें दण्ड मिलेगा। चलो, हम नगर जा कर राजमहल को इसकी सूचना दें।''
10) इसलिए उन्होंने जा कर नगर-द्वार के पहरेदारों का बुलाया और कहा, ÷÷हम अरामियों के शिविर गये थे, किन्तु वहाँ न तो कोई मनुष्य दिखाई दिय और न किसी की आवाज+ सुनाई दी। केवल बँधे हुए घोड़े और गधे थे और तम्बू ख़ाली थे।''
11) नगर-द्वार के पहरेदारों ने चिल्ला कर राजमहल में इसकी सूचना पहुँचायी।
12) राजा ने रात को ही उठ कर अपने सैनिकों से कहा, ÷÷मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियों ने हमारे विरुद्ध क्या किया है। वे जानते हैं कि हम भूखों मर रहे हैं, इस लिए उन्होंने अपना शिविर छोड़ कर अपने को खुले मैदान में छिपा रखा है। उनका विचार है कि जब वे नगर से बाहर निकलेंगे, तब हम उन्हें जीवित पकड़ लेंगे और खुद उनके नगर में घुस जायेंगे।''
13) इस पर उसके एक सेवक ने कहा, ÷÷कुछ लोग यहाँ के बचे हुए घोड़ों से पाँच घोड़े ले जायें। उनका हल वही होगा, जो यहाँ के समस्त इस्राएलियों का होगा, जिनकी जिनकी निश्चय ही मृत्यु हो जायेगी। हम उन्हें भेज दें और पता लगायें कि वहाँ क्या हो गया है।''
14) इस पर घोड़ों के साथ दो रथ लाये गये और राजा ने उन्हें यह कहते हुए अरामियों की सेना के पीछे भेजा, ÷÷जा कर पता लगाओ''।
15) वे यर्दन तक उनके पीछे गये। सारा मार्ग अस्त्रों और वस्त्रों से भरा पड़ा था, जिन्हें अरामियों ने भागते हुए फेंका था। दूतों ने वापस आ कर राजा को इसकी सूचना दी।
16) तब लोग अरामियों के शिविरों को लूटने के लिए निकल पड़े। अब जैसा कि प्रभु ने कहा था, आधा मन मैदा एक शेकेल में और एक मन जौ एक शेकेल में बिकने लगा।
17) राजा ने उस पदाधिकारी को नगर द्वार का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिसके हाथ का वह सहारा लिये था। किन्तु लोगों ने फाटक पर ही उसे रौंद दिया और उसकी मृत्यु हो गयी, जैसा कि ईश्वर-भक्त ने कहा था, जब राजा उसके घर आया था।
18) उस समय ईश्वर-भक्त ने राजा से कहा था, ÷÷कल इसी समय समारिया के फाटक पर आधा मन मैदा एक शेकेल में और एक मन जौ एक शेकेल में बिकेगा''
19) और उस अधिकारी ने ईश्वर-भक्त को उत्तर दिया था, ÷÷यदि प्रभु आकाश की खिड़कियाँ खोल भी दे, तो क्या यह बात सम्भव है?'' उस सयम ईश्वर-भक्त ने उत्तर दिया था, ÷÷तुम अपनी आँखों देखोगे, परन्तु वह अन्न नहीं खा पाओगे''।
20) उसके साथ वैसा ही हुआ। लोगों ने फाटक पर उसे रौंदा और उसकी मृत्यु हो गयी।

अध्याय 8

1) एलीशा ने उस स्त्री से, जिसके पुत्र को उसने जीवित कर दिया था, यह कहा था, ÷÷तुम परिवार-सहित कहीं जा कर प्रवासी के रूप में रहो; क्योंकि प्रभु के विधान से अकाल पड़ने वाला है, जो देश में सात वर्ष तक रहेगा''।
2) उस स्त्री ने ईश्वर-भक्त के परामर्श के अनुसार किया था और वह चली गयी थी। वह परिवार-सहित जा कर फ़िलिस्तयों के देश में प्रवासी के रूप में सात वर्ष रही थी।
3) सात वर्ष बीतने पर वह फ़िलिस्तयों के देश से लौटी और अपने घर तथा अपने खेत पुनः प्राप्त करने राजा के पास गयी।
4) उस समय राजा ईश्वर-भक्त के सेवक गेहज+ी से बातें कर रहा था और उसने उस से कहा, ÷÷मुझे एलीशा के सब महान् कार्यो के बारे में बताओ''।
5) जिस समय वह राजा को यह बात रहा था कि उसने किसी मृतक को जीवित कर दिया था, ठीक उसी समय वह स्त्री, जिसके पुत्र को उसने जीवित किया था, अपने घर और खेत पुनः प्राप्त करने, राजा के पास आ पहुँची। गेहज+ी ने कहा, ÷÷मेरे स्वामी और राजा! यह वही स्त्री है और यही है उसका पुत्र, जिसे एलीशा ने पुनः जीवित किया था''।
6) राजा के पूछने पर स्त्री ने सब हाल बताया। इसके बाद राजा ने यह कहते हुए एक अधिकारी को उसका काम करने की आज्ञा दी, ÷÷इसे उसका घर-द्वार, धन-सम्पत्ति सब वापस दिला दो और उसके चले जाने के बाद से उसके खेत की आज तक की उपज भी वापस दिलाओ''।
7) एक बार एलीशा दमिश्क आया। उस समय अराम का राजा बेन-हदद बीमार था। जैसे ही उसे यह समाचार मिला कि ईश्वर-भक्त यहाँ आया है,
8) राजा ने हज+ाएल को आज्ञा दी, ÷÷एक भेंट ले कर उस ईश्वर-भक्त से मिलने जाओ और उसके द्वारा प्रभु से पूछो कि क्या मैं इस बीमारी से अच्छा हो जाऊँगा।''
9) हज+ाएल चालीस ऊँटों पर दमिश्क की सर्वोत्तम चीजें+ लाद कर उन्हें भेंट स्वरूप एलीशा के पास ले गया। वह उसके पास आ कर बोला, ÷÷अराम के राजा, आपके पुत्र बेन-हदद आप से पूछते हैं कि क्या वह इस बीमारी से अच्छे हो जायेंगे।''
10) एलीशा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷जाओ और उस से कहो कि आप अच्छे तो अवश्य हो जायेंगे, परन्तु प्रभु ने मुझ पर प्रकट किया है कि उसकी मृत्यु हो जायेगी''।
11) इसके बाद ईश्वर-भक्त निर्विकार भाव से उसे देखता रहा और रोने लगा।
12) हज+ाएल ने पूछा, ÷÷मेरे स्वामी रो क्यों रहे हैं?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं जानता हूँ कि तुम इस्राएलियों के साथ कितना बुरा व्यवहार करोगे। तुम उनके गढ़ भस्म कर दोगे, उनके युवकों को तलवार के घाट उतारोगे, उनके बच्चों को ज+मीन पर पटक दोगे और गर्भवती स्त्रियों के पेट फाड़ डालोगे।''
13) हज+ाएल ने कहा, ÷÷आपका यह दास, यह कुत्ता, क्या है कि वह यह सब कर पायेगा?'' एलीशा ने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु ने मुझ पर प्रकट किया है कि तुम अराम के राजा बनोगे''।
14) इसके बाद वह एलीशा के यहाँ से अपने स्वामी के पास लौटा। उसने उस से पूछा, ÷÷एलीशा ने तुम से क्या कहा है?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷उसने कहा कि आप अवश्य अच्छे हो जायेंगे''।
15) पर दूसरे दिन उसने चादर ली और उसे पानी में डुबा कर उसके सिर पर रखा। इसी से उसकी मृत्यु हो गयी। उसकी जगह स्वयं हज+ाएल राजा बन गया।
16) इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के पाँचवें वर्ष यहोशाफ़ाट का पुत्र यहोराम यूदा का राजा बना।
17) जब वह शाासन करने लगा, उस समय उसकी अवस्था बत्तीस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में आठ वर्ष तक राज्य किया।
18) वह अहाब के घराने की तरह इस्राएल के राजाओं के मार्ग पर चलने लगा, क्योंकि अहाब की एक पुत्री उसकी पत्नी थी। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
19) प्रभु ने अपने सेवक दाऊद के कारण यूदा को नष्ट नहीं किया; क्योंकि उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह दाऊद और उसके वंशजों के लिए सदा एक दीपक जलाये रखेगा।
20) उसके शासनकाल में एदोम ने यूदा के विरुद्ध विद्रोह कर अपने लिए एक अलग राजा नियुक्त किया।
21) इसलिए यहोराम अपने सब रथों के साथ साईर गया। उसने और उसकी रथ-सेना के अध्यक्षों ने रात को उठ कर उन एदोमियों पर धावा बोल दिया, जो उन्हें घेरे हुए थे; परन्तु यहोराम के सैनिक अपने घर भाग निकले।
22) इस प्रकार एदोम यूदा से पृथक हो गया और यही स्थिति आज तक चली आ रही है। उसी समय लिबना ने भी विद्रोह किया।
23) यहोराम का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
24) यहोराम अपने पितरों से जा मिला और अपने पितरों के पास दाऊदनगर में दफ़नाया गया। उसका पुत्र अहज्+या उसकी जगह राजा बना।
25) इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के बारहवें वर्ष यहोराम का पुत्र अहज्+या यूदा का राजा बना।
26) जब अहज्+या शासन करने लगा, उस सयम उसकी अवस्था बाईस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में एक वर्ष शासन किया। उसकी माता का नाम अतल्या था। वह इस्राएल के राजा ओम्री की पौत्री थी।
27) अहज्+या की अहाब के घराने के मार्ग पर चलता था, क्योंकि अहाब के घराने से उसका वैवाहिक सम्बन्ध था। उसने अहाब के घराने की तरह वही किया, जो ईश्वर की दृष्टि में बुरा है।
28) अहज्+या अहाब के पुत्र यहोराम के साथ अराम के राजा हज+ाएल से लड़ने गिलआद के रामोत गया। वहाँ अरामियों ने यहोराम को घायल कर दिया।
29) अराम के राजा हज+ाएल से लड़ते समय अरामियों ने उसे रामोत में घालय कर दिया और राजा यहोराम घावों का उपचार कराने यिज+एल लौट गया। यूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्+या अहाब के पुत्र यहोराम को देखने यिज्र+ाएल गया, क्योंकि वह घायल था।

अध्याय 9

1) नबी एलीशा ने नबी शिष्यों में एक को बुला कर यह आज्ञा दी, ÷÷अपनी कमर बाँध लो और तेल की शीशी हाथ में ले कर गिलआद के रामोत जाओ।
2) वहाँ पहुँहने पर तुम यहोशाफ़ाट के पुत्र और निमशी के पौत्र येहू को ढूँढ़ो और उसके साथियों से उसे अलग भीतरी कमरे में ले जाओ।
3) फिर तेल की शीशी से उसके सिर पर तेल उँडे+लते हुए यह कहो, ÷प्रभु का कहना हैः मैं इस्राएल के राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक करता हूँ'। इसके बाद दरवाज+ा खोल कर तुरन्त भाग जाना।''
4) वह नवयुवक, नबी का वह शिष्य, गिलआद के रामोत गया।
5) जब वह वहाँ पहुँचा, तो सेनापति सभा में बैठे विचार कर रहे थे। उसने कहा, ÷÷सेनापति! मैं आपके लिए एक सन्देश लाया हूँ''। येहू ने पूछा, ÷÷वह हम में से किसके लिए है?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷सेनापति! वह आपके लिए है''।
6) तब वह उठ कर घर के अन्दर गया। वहाँ उस नवयुवक ने उसके सिर पर तेल डालते हुए कहा, ÷÷इस्राएल के ईश्वर प्रभु का कहना है : मैं ईश्वर की प्रजा, इस्राएल के राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक करता हूँ।
7) तुम अपने स्वामी अहाब के घराने का विनाश करोगे और मैं ईजे+बेल द्वारा बहाये अपने भक्त नबियों के रक्त और सब प्रभु-भक्तों के रक्त का प्रतिशोध लूँगा।
8) अहाब का सारा घराना नष्ट हो जायेगा। मैं इस्राएल में अहाब के घराने के सब पुरुषों का विनाश करूँगा, चाहे वे स्वतन्त्र हों या दास।
9) मैं अहाब के घराने के साथ वही करूँगा, जो मैंने नबाट के पुत्र यरोबआम के घराने और अहीया के पुत्र बाशा के घराने के साथ किया।
10) यिज्रि+एल के खेत में कुत्ते ईजे+बेल को फाड़ खायेंगे। उसे कोई नहीं दफ़नायेगा।'' इसके बाह वह दरवाज+ा खोल कर भाग निकाला।
11) जब येहू अपने स्वामी के सेवकों के पास लौटा, तो उन्होंने उस से पूछा, ÷÷सब ठीक है न? वह पागल तुम्हारे पास क्यों आया था?'' उसने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷तुम लोग तो उस आदमी और उसकी बकवास से परिचित हो''।
12) उन्होने कहा, ÷÷तुम झूठ बोलते हो। हमें सब बताओ।'' तब उसने कहा, ÷÷उसने मुझ से यह कहा, ÷प्रभु का कहना है : मैं इस्राएल के राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक करता हूँ'।''
13) तब उन्होंने अपने-अपने वस्त्र उसके पाँवों के नीचे की सीढ़ियों पर बिछा दिये और सिंगा बजा कर चिल्लाने लगे, ÷÷येहू राजा है!''
14) यहोशाफ़ाट के पुत्र और निमशी के पौत्र येहू ने यहोराम के विरुद्ध षड्यन्त्र रचा। यहोराम ने सब इस्राएलियों के साथ गिल-आद के रामोत में अराम के राजा हज+ाएल का सामना किया था।
15) इसके बाद राजा यहोराम उन घावों का उपचार कराने यिज्र+एल लौट आया था, जिन से वह अराम के राजा हज+ाएल से युद्ध करते समय अरामियों द्वारा घायल हुआ था। येहू ने कहा, ÷÷यदि तुम लोगों का यही विचार है, तो नगर से किसी को सन्देश देने यिज्र+एल मत जाने दो''।
16) तब येहू स्वयं अपने रथ पर सवार हो कर यिज्र+यल गया; क्योंकि यहोराम वहाँ बीमार था और यूदा का राजा अहज्+या भी वहाँ उसे देखने गया था।
17) जो पहरेदार यिज्र+एल के बुर्ज पर खड़ा था, उसने येहू का दल आते देखा और चिल्ला कर सूचित किया, ÷÷मैं एक सैनिक दल आते देख रहा हूँ''। यहोराम ने आज्ञा दी, ÷÷एक घुड़सवार उन से मिलने और यह पूछने भेजो - क्या तुम शान्ति के अभिप्राय से आये हो?''
18) घुड़सवार उनसे मिलने गया और उनसे पूछा, ÷÷राजा यह पूछते हैं - क्या तुम शान्ति के अभिप्राय से आये हो?'' येहू ने उत्तर दिया, ÷÷शान्ति से तुम को क्या? मेरे पीछे चले आओ।'' इधर पहरेदार ने बतलाया, ÷÷दूत उन से मिला है, किन्तु वह नहीं लौट रहा है''।
19) इसके बाद एक दूसरा घुड़सवार भेजा गया। उसने उनके पास पहुँचने पर कहा, ÷÷राजा यह पूछते हैं-क्या तुम शान्ति के अभिप्राय से आये हो?'' येहू ने उत्तर दिया, ÷÷शान्ति से तुम को क्या? मेरे पीछे चले आओ।''
20) पहरेदार ने फिर यह बतलाया, ÷÷वह भी उन से मिला है, किन्तु वह भी नहीं लौट रहा है। चाल से मालूम पड़ता है कि वह निमशी का पौत्र येहू है, क्योंकि वह बड़ी तेज+ी से रथ हाँक रहा है।''
21) अब यहोराम ने रथ तैयार करने को कहा। इस्राएल का राजा यहोराम और यूदा का राजा अहज्+या रथ तैयार करा कर येहू से मिलने निकले। प्रत्येक अपने-अपने रथ पर सवार था। वे उस से यिज्र+एली नाबोत के खेत के पास मिले।
22) यहोराम ने येहू को देख कर उस से पूछा, ÷÷येहू! क्या तुम शान्ति के अभिप्राय से आये हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷जब तक तुम्हारी माता ईज+ेबेल की मूर्तिपूजा और जादू-टोना चारों ओर चल रहा है, तब तक शान्ति कहाँ?''
23) यहोराम ने लगाम फेर कर भागना चाहा और इसी बीच उसने अहज्+या से कहा, ÷÷अहज्+या, यह तो राजद्रोह है!''
24) येहू ने अपना घनुष पूरी ताक़त के साथ खींच कर यहोराम पर बाण चलाया। बाण उसके कन्धों के बीच लग कर उसके हृदय में घुस गया। वह अपने रथ में गिर पड़ा।
25) तब येहू ने अपने अंगरक्षक बिदकर से कहा, ÷÷इसे ले जा कर यिज्र+एली नाबोत के खेत में फेंक दो। याद करो कि जब हम दोनों, मैं और तुम, उसके पिता अहाब के पीछे घोड़ों पर चल रहे थे, तो प्रभु ने इसके विषय में यह भविष्यवाणी की,
26) ÷प्रभु का कहना है : मैंने कल नाबोत और उसके पुत्रों का रक्त देखा। मैं निश्चिय ही उस खेत में तुम से इसका बदल चुकाऊँगा।' अब तुम प्रभु की वाणी के अनुसार यहोराम को उठा कर उस खेत में फेंक दो।''
27) यूदा के राजा अहज्+या ने जब यह देखा, तो उसने भी बेत-हग्गान की ओर भागना चाहा। येहू ने उसका पीछा कर कहा, ÷÷उस पर वार करो''। उन्होंने यिबलआम के पास, गूर की चढ़ाई पर उसे उसके रथ पर घायल किया, किन्तु वह मगिद्दो तक भागता चला गया और वहाँ उसकी मृत्यु हो गयी।
28) उसके सेवक उसे रथ में येरुसालेम ले गये और उसे दाऊदनगर में, अपने पितरों के पास, उसकी क़ब्र में दफ़ना दिया।
29) अहज्+या अहाब के पुत्र यहोराम के ग्यारहवें वर्ष यूदा का राजा बना था।
30) जैसे ही येहू यिज्र+एल आया और ईज+ेबेल को इसका पता चला, उसने अपनी आँखों में सुरमा लगाया और अपने बाल सँवार कर वह खिड़की से झाँकने लगी।
31) जैसे ही येहू ने नगर-द्वार में प्रवेश किया, वह बोली, ÷÷अपने स्वामी के हत्यारे जि+म्री! क्या तुम शान्ति के अभिप्राय से आये हो?''
32) येहू ने अपनी आँखें खिड़की की ओर उठा कर कहा, ÷÷मेरे पक्ष में कौन है? कौन है?'' दो-तीन ख़ोजो ने उसे ऊपर से देखा।
33) येहू ने उन्हें ईजे+बेल को नीचे गिराने की आज्ञा दी। उन्होंने उसे नीचे गिरा दिया और उसके रक्त के छींटे दीवार और घोड़ों पर पड़े और घोड़ों ने ईजे+बेल को कुचल दिया।
34) येहू भीतर गया और उसने खा-पी लेने के बाद आज्ञा दी, ÷÷उस अभिशप्त स्त्री को देखने जाओ और उसे दफ़ना दो, क्योंकि वह एक राजा की पुत्री है''।
35) वे उसे दफ़नाने आये और उन्हें उसकी खोपड़ी, हाथों और पैरों के सिवा कुछ नहीं मिला।
36) जब वे येहू को सूचना देने लौटे, तो उसने कहा, ÷÷तिशबी एलियाह के मुख से कही गयी प्रभु की यह वाणी पूरी हो गयी है- यिज्र+एल के खेत में कुत्ते ईजे+बेल को फाड़ खायेंगे
37) और ईज+ेबेल की लाश खाद की तरह यिज्र+एल के खेत में पड़ी रहेगी, जिससे कोई यह न कह सके कि ईजे+ेबेल यही है।''

अध्याय 10

1) समारिया में अहाब के सत्तर पुत्र थे। येहू ने पत्र लिख कर उन्हें समारिया के इस्राएली पदाधिकारियों, नेताओं और अहाब के पुत्रों के अभिभावकों, के पास भेजा। उस में यह लिखा हुआ था,
2) ÷÷तुम्हारे यहाँ तुम्हारे स्वामी के पुत्र हैं, रथ और घोड़े, क़िलाबन्द नगर और शस्त्र हैं। ज्यों ही यह पत्र अपने पास पहुँचे,
3) तुम अपने स्वामी के पुत्रों में सब से योग्य और ईमानदार को चुनो और उसे उसके पिता के सिंहासन पर बिठा कर अपने स्वामी के घराने के लिए लड़ो।''
4) इस से वे भयभीत हो गये और सोचने लगे, ÷÷देखो, जब दो राजा मिल कर भी उसके सामने नहीं टिके, तो हम कैसे उसका सामना कर सकेंगे?''
5) महल के प्रबन्धक, नगर-प्रशासक, नेताओं और अभिभावकों ने येहू को यह सन्देश भेज दिया, ÷÷हम आपके सेवक हैं और हम आपकी आज्ञा के अनुसार सब कुछ करेंगे। हम किसी को राजा नियुक्त नहीं करेंगे। आप वही कीजिए, जो आप उचित समझें।
6) येहू ने उन्हें दूसरा पत्र भेज दिया, जिस में लिखा था, ÷÷यदि तुम सचमुच मेरे पक्ष में हो और मेरे आदेशों का पालन करने के लिए तैयार हो, तो अपने स्वामी के पुत्रों के सिर ले कर कल इसी समय मेरे पास यिज्र+एल आ जाओ''। उस समय राजा के सत्तर पुत्र नगर के उन प्रतिष्ठित नागरिकों के यहाँ थे, जो उनका पालन-पोषण करते थे।
7) चिट्ठी मिलने के बाद उन्होंने राजा के उन सत्तर पुत्रों को मार डाला और उनके सिर टोकरियों में डाल कर येहू के पास यिज्र+एल भेज दिये।
8) जब दूत ने आ कर येहू से कहा, ÷÷वे राजपुत्रों के सिर ले आये हैं'', तो उसने यह आदेश दिया, ÷÷कल सबेरे तक फाटक के पास उनके दो ढेर बनाओ''।
9) सबेरे बाहर निकल कर उसने सब लोगों से कहा, ÷÷तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मैंने स्वयं अपने स्वामी से विद्रोह किया और उसकी हत्या की, किन्तु किसने इन सब की हत्या की?
10) इस लिए यह जान लो कि प्रभु ने अहाब के घराने के विषय में जो कुछ कहा था, उसका एक भी शब्द व्यर्थ नहीं होगा। उसने अपने सेवक एलियाह द्वारा जैसा कहा था, प्रभु ने वैसा ही किया है।''
11) इसके बाद येहू ने अहाब के घराने के जो लोग यिज्र+एल में बच गये थे- उनके सब बड़े अधिकारियों, उसके घनिष्ठ मित्रों और उसके याजकों को- सब को मरवा डाला। उसने एक को भी जीवित नहीं छोड़ा।
12) इसके बाद वह समारिया चला गया। रास्ते में चरवाहों के बेत-एकेद नामक स्थान के पास,
13) येहू की भेंट यूदा के राजा अहज्+या के भाई-बन्धुओं से हुई। उसने उन से पूछा, ÷÷तुम लोग कौन हो?'' उन्होंने उत्तर दिया, ÷÷हम अहज्+या के भाई-बन्धु हैं। हम राजा के पुत्रों और राजमाता के पुत्रों से मिलने आये हैं।''
14) येहू ने कहा, ÷÷इन्हें जीवित पकड़ लो''। उन्होंने उन्हें जीवित पकड़ लिया और बेत-एकेद के कुएँ के पास उन चालीस आदमियों का वध किया। उसने उन में एक को भी जीवित नहीं छोड़ा।
15) वह वहाँ से आगे बढ़ा और उसकी भेंट रेकाब के पुत्र यहोनादाब से हुई, जो उस से मिलने आया था। येहू ने उसे नमस्कार किया और पूछा, ÷÷क्या तुम्हारा हृदय मेरे हृदय के प्रति उस तरह ईमानदार है, जिस तरह मेरा हृदय तुम्हारे हृदय के प्रति ईमानदार है?'' यहोनादाब ने कहा, ÷÷जी हाँ''। इस पर येहू ने कहा, ÷÷यदि है, तो मुझ से हाथ मिलाओ''। उसने उस से हाथ मिलाया और येहू ने उसे अपने रथ पर बिठा कर
16) कहा, ÷÷मेरे साथ आओ और प्रभु के लिए मेरा उत्साह देखो''। दोनों येहू के रथ पर आगे बढ़े।
17) समारिया पहुँच कर येहू ने नगर में रहने वाले अहाब के शेष सम्बन्धियों की हत्या की। जैसा प्रभु ने एलियाह से कहा था, उसने उन सबों को विनाश किया।
18) इसके बाद येहू ने सब लोगों को बुला कर उन से कहा, ÷÷अहाब ने तो बाल-देव की कम पूजा की, येहू उसकी अधिक पूजा करेगा।
19) तुम बाल-देव के सब नबियों, उसके सब सेवकों और पुजारियों को मेरे पास बुला लाओ। कोई भी छूटने न पाये, क्योंकि मैं बाल-देव को एक महायज्ञ चढ़ाना चाहता हूँ। जो उपस्थित नहीं होगा, वह जीवित नहीं छोड़ा जायेगा।'' येहू छल से बाल-देव के पुजारियों का विनाश करना चाहता था।
20) येहू ने बाल-देव के आदर में एक धार्मिक सभा का आयोजन करने का आदेश दिया। येहू ने समस्त इस्राएल में इसकी घोषणा करवायी।
21) सभी बाल-पुजारी आ गये, एक भी अनुपस्थित नहीं रहा। बाल का मन्दिर एक छोर से दूसरे छोर तक भर गया।
22) इसके बाद येहू ने वस्त्र-भण्डार के अध्यक्ष को आज्ञा दी, ÷÷प्रत्येक बाल-पुजारी के लिए एक-एक वस्त्र लाओ।'' वह उनके लिए वस्त्र लाया।
23) तब येहू ने रेकाब के पुत्र यहोनादाब के साथ बाल के देवालय में जा कर बाल के पुजारियों से कहा, ÷÷अच्छी तरह देख लो कहीं तुम्हारे बीच काई प्रभु भक्त तो नहीं। तुम में केवल बाल-पुजारी हों।''
24) इसके बाद येहू और यहोनादाब यज्ञ और होम-बलियाँ चढ़ाने मन्दिर के भीतर गये। येहू ने अस्सी आदमियों को बाहर खड़ा कर उन्हें चेतावली दी थी, ÷÷यदि तुम में से कोई व्यक्ति इन मनुष्यों में, जिन्हें मैं आज तुम्हारे हाथ देता हूँ, किसी को भी बच कर निकल जाने देगा, तो उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।''
25) होम-बलि चढ़ाने के बाद येहू ने अंगरक्षकों और नायकों को आदेश दिया, ÷÷अन्दर जा कर उन्हें मार डालो, एक भी बच कर निकलने न पाये''। अंगरक्षकों और नायकों ने उन्हें तलवार के घाट उतार दिया और उनकी लाशों को बाहर फेंक दिया।
26) तब उन्होंने बाल के देवालय के अन्दर जा कर बाल के देवालाय का सामान बाहर निकाल कर उसे जला डाला।
27) फिर उन्होंने बाल की मूर्ति नष्ट कर दी, बाल का देवालय गिरा दिया और उसे शौचालय बना डाला। आज तक वह वही है।
28) इस प्रकार येहू ने इस्राएल से बाल की पूजा समाप्त की।
29) किन्तु नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएल से जो पाप करवाये, उन से येहू विमुख नहीं हुआ- उसने बेतेल और दान में सोने के बछड़ों की पूजा समाप्त नहीं की।
30) प्रभु ने येहू से कहा, ÷÷तुमने वही किया, जो मेरी दृष्टि में उचित है और तुमने मेरी इच्छा के अनुसार अहाब के घराने के साथ व्यवहार किया, इसलिए तुम्हारे वंशज चौथी पीढ़ी तक इस्राएल के सिंहासन पर बैठेंगे''।
31) परन्तु येहू ने प्रभु, इस्राएल के ईश्वर की संहिता का सारे हृदय से पालन करने का ध्यान नहीं रखा। यरोबआम ने इस्राएल से जो पाप करवाये थे, येहू उन से विमुख नहीं हुआ।
32) उन्हीं दिनों प्रभु ने इस्राएल देश को छिन्न-भिन्न करना प्रारम्भ किया। हज+ाएल ने इस्राएलियों को यर्दन के पूर्व के सब प्रान्तों में पराजित किया,
33) अर्थात् अरनोन घाटी के पास अरोएर से ले कर बाशान तक : गिलआद, गाद, रूबेन और मनस्से तक।
34) येहू का शेष इतिहास, उसके कार्यकलाप और ÷उसकी विजयों' का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
35) येहू अपने पितरों से जा मिला और उसे समारिया में दफ़ना दिया गया। उसका पुत्र यहोआहाज+ उसकी जगह राजा बना।
36) येहू ने समारिया में इस्राएल पर अट्ठाईस वर्ष तक शासन किया।

अध्याय 11

1) जब अहज्+या की माता अतल्या ने देखा कि उसका पुत्र मर गया है, तो वह समस्त राजकुल का विनाष करने लगी।
2) परन्तु राजा यहोराम की पुत्री और अहज्+या की बहन यहोषेबा ने अहज्+या के पुत्र योआष को चुपके से उन राजकुमारों से अलग कर दिया, जिनकी हत्या हो रही थी ओर उसे उसकी धाय के साथ शयनकक्ष में रखा। इस प्रकार वह अतल्या से छिपा रहा और बच गया।
3) वह छः वर्ष तक गुप्त रूप से प्रभु के मन्दिर में उसके साथ रहा। उस समय अतल्या समस्त देश का शासन करती थी।
4) सातवें वर्ष यहोयादा ने कारियों के शतपतियों और अंगरक्षकों को बुला भेजा। उसने उन्हें प्रभु के मन्दिर के अन्दर ले जा कर उनके साथ समझौता कर लिया और शपथ दिला कर उन्हें राजकुमार को दिखाया।
5) तब उसने उन्हें आदेष दिया, ÷÷तुम्हें यह करना होगा। तुम में से जो लोग विश्राम-दिवस पर काम पर आते हैं, उन में एक तिहाई राज-भवन की रक्षा करते हैं,
6) एक तिहाई सरू नामक फाटक पर तैनात हैं और एक तिहाई अंगरक्षकों के पीछे फाटक पर तैनात हैं। तुम मन्दिर के प्रवेष पर पहरा दोगे।
7) तुम्हारे दो दल, जो विश्राम-दिवस पर कार्यमुक्त होंगे, प्रभु के मन्दिर में राजा के पास रहेंगे।
8) तुम शस्त्रसज्जित हो कर राजा के चारों ओर उनकी रक्षा करोगे। जो व्यक्ति तुम्हारा घेरा पार करना चाहेगा, उसे मार दिया जायेगा। राजा जहाँ-कहीं जायेंगे, वहाँ तुम भी उनके निकट रहोगे।''
9) शतपतियों ने याजक यहोयादा के आदेश का पूरा-पूरा पालन किया। प्रत्येक व्यक्ति अपने आदमियों को-जो विश्राम-दिवस पर पहरे से छूट गये और जो विश्राम-दिवस पर पहरे पर आये थे, दोनों को ले कर याजक यहोयादा के पास आया।
10) याजक ने शतपतियों को प्रभु के मन्दिर में सुरक्षित राजा दाऊद के भाले और ढ़ालें दे दीं।
11) अंगरक्षक मन्दिर के दक्षिण कोने से उत्तरी कोने तक, वेदी और मन्दिर के सामने, हाथ में अस्त्र लिये खड़े हो गये।
12) तब यहोयादा ने राजकुमार को बाहर ला कर उसे मुकुट और राज्यचिन्ह पहनाये और राजा के रूप में उसका अभिषेक किया। सब तालियाँ बजा कर चिल्ला उठे- राजा की जय !
13) अतल्या लोगों का जयकार सुन कर प्रभु में मन्दिर में लोगों के पास आयी।
14) उसने देखा कि राजा, प्रथा के अनुसार, सेनापतियों ओर तुरही बजाने वालों के साथ मंच पर खड़ा है, देष भर के लोग आनन्द मना रहे हैं और तुरहियाँ बज रही हैं। इस पर अतल्या अपने वस्त्र फाड़ कर चिल्ला उठी,÷÷यह राजद्रोह है ! राजद्रोह है !''
15) याजक यहोयादा ने सेना के शतपतियों से कहा, ÷÷उसे बाहर ले जाओ। जो उसके साथ जाये, उसे तलवार के घाट उतार दो।'' क्योंकि याजक ने कहा था कि प्रभु के मन्दिर में उसका वध नहीं किया जा सकता है,
16) वे उसे पकड़ कर अष्व-फाटक से हो कर राजमहल ले गये। वहाँ उसका वध कर दिया गया।
17) तब यहोयादा ने प्रभु, राजा और जनता के बीच एक ऐसा विधान निर्धारित किया, जिससे जनता फिर प्रभु की प्रजा बन जाये। इसके बाद देष भर के लोगों ने बाल के मन्दिर जा कर उसे नष्ट कर दिया।
18) उन्होंने वेदियों और मूतिर्ंयों के टुकडे+-टुकडे+ कर दिये और बाल के पुरोहित मत्तान को वेदियों के सामने मार डाला। याजक ने प्रभु के मन्दिर पर पहरा बिठा दिया।
19) इसके बाद उसने शतपतियों, कारियों, अंगरक्षकों और देष के सब लोगों को बुलाया और वे राजा को, प्रभु के मन्दिर से नीचे ले जा कर, अंगरक्षकों के द्वार से होते हुए राजमहल ले गये। वहाँ राजा राजकीय सिंहासन पर विराजमान हुआ।
20) देष भर के लोग आनन्दित थे और नगर फिर शान्त हो गया। अतल्या को राजमहल में तलवार के घाट उतारा गया था।

अध्याय 12

1) जब योआष राजा बना, तो वह सात वर्ष का था।
2) वह येहू के सातवें वर्ष राजा बना। उसने येरुसालेम में चालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम सिब्या था। वह बएर-षेबा नगर की थी।
3) जब तक याजक यहोयादा उसे षिक्षा देता रहा, तब तक योआष ने ऐसे कार्य किये, जो प्रभु की दृष्टि में उचित हैं।
4) किन्तु पहाड़ी पूजास्थान नहीं हटाये गये। लोग वहाँ बलिदान चढ़ाते ओर धूप देते रहे।
5) योआष ने याजकों को यह आदेष दिया, ÷÷जो द्रव्य प्रभु के मन्दिर में चढ़ावे के रूप में लाया जाता है, जो द्रव्य प्रत्येक व्यक्ति से कर के रूप में लिया जाता है और जो द्रव्य प्रत्येक व्यक्ति स्वेच्छा से चढ़ाता है,
6) याजक वह सब अपने परिचितों से ले लें और उस से आवष्यकता के अनुसार मन्दिर की मरम्मत करायें''।
7) जब याजकों ने राजा योआष के तेईसवें वर्ष तक मन्दिर की मरम्मत नहीं करायी थी,
8) तो राजा योआष ने याजक यहोयादा ओर अन्य याजकों को बुला कर उन से कहा, ÷÷आप लोग मन्दिर की मरम्मत क्यों नहीं करवाते? अब से आप अपने परिचितों से द्रव्य नहीं लेंगे। मन्दिर की मरम्मत के लिए ही आप को उसे लेना चाहिए था।''
9) याजक इस बात पर सह मत हुए कि वे आगे चल कर जनता से रुपया नहीं लेंगे ओर स्वयं मन्दिर की मरम्मत के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।
10) अब याजक यहोयादा ने एक सन्दूक ले कर, उसके ढक्कन में छेद बना कर उसे वेदी के पास, प्रभु के मन्दिर के प्रवेष-द्वार की दाहिनी ओर रखा। मन्दिर के फाटक पर पहरा देने वाले याजक उस में वह सब द्रव्य डालते थे, जो प्रभु के मन्दिर में चढ़ाया जाता था।
11) जब-जब वे देखते थे कि सन्दूक में अधिक द्रव्य इकट्ठा हो गया है, तब-तब महायाजक राजा के सचिव के साथ आता और वे प्रभु के मन्दिर में एकत्रित द्रव्य को थैली में रख कर तौलते ।
12) तौला हुआ वह द्रव्य उन कर्मचारियों को दिया जाता, जो प्रभु के मन्दिर के भवन की मरम्मत कराते थे। वे उस से प्रभु के मन्दिर के भवन में काम करने वाले बढ़इयों, कारीगरों
13) मिस्त्रियों और संगतराषों को वेतन देते और उस से मन्दिर की मरम्मत के लिए लकड़ी और गढ़े हुए पत्थर ख़रीदते, अर्थात् वे उसे उन सब कामों के लिए ख़र्च करते थे, जो मन्दिर के भवन की मरम्मत के लिए आवश्यक थे।
14) किन्तु प्रभु के मन्दिर में चढ़ाये हुए द्रव्य से न तो चाँदी के कटोरे, कैंचियाँ, बरतन और तुरहियाँ बनवायी जातीं और न प्रभु के मन्दिर के लिए कोई अन्य सोन या चाँदी का सामान।
15) सब द्रव्य उन कारीगरों को दिया जाता था, जो प्रभु के मन्दिर की मरम्मत करते थे।
16) उन आदमियों से कोई हिसाब नहीं लिया जाता था, जिन्हें कारीगरों के लिए द्रव्य दिया जाता था; क्योंकि वे ईमानदारी से काम करते थे।
17) क्षतिपूर्ति और प्रायश्चित-बलियों का द्रव्य प्रभु के मन्दिर में नहीं लाया जाता था; उस पर याजकों का अधिकार था।
18) उस समय अराम के राजा हज+ाएल ने गत पर आक्रमण किया और उसे अपने अधिकार में किया। इसके बाद हज+ाएल ने येरुसालेम पर आक्रमण करने का निश्चय किया,
19) किन्तु यूदा के राजा योआश ने अपने पूर्वजों, अर्थात् यूदा के राजा यहोशाफ़ाट, यहोराम और अहज्+या द्वारा चढ़ायी हुई सब भेंटें, अपनी चढ़ायी हुई भेंटें तथा मन्दिर और राजमहल के कोषों का सारा सोना ले कर अराम के राजा हज+ाएल के पास भेजा, जिसने येरुसालेम पर आक्रमण करने का विचार छोड़ दिया।
20) योआश का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-गन्थ में लिखा है।
21) उसके सेवक उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए और उन्होंने षड्यन्त्र रच कर योआश को मिल्लो-भवन मंें मार डाला, जो सिल्ला के मार्ग पर है।
22) उसकी हत्या उसके सेवकों ने, शिमआत के पुत्र योज+ाकार और शेमेर के पुत्र यहोज+ाबाद ने की। वह अपने पूर्वजों के पास दाऊदनगर में दफ़ना दिया गया। उसका पुत्र अमस्या उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 13

1) यूदा के राजा अहज्+या के पुत्र योआश के तेईसवें वर्ष येहू का पुत्र यहोआहाज+ समारिया में इस्राएल का राजा बना। उसने सत्रह वर्ष तक शासन किया।
2) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। जो पाप नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएल से करवाये थे, यहोआहाज+ उन से विमुख नहीं हुआ, बल्कि उन्हें करता रहा।
3) इसलिए प्रभु की कोपाग्नि इस्राएलियों के विरुद्ध प्रज्वलित हो गयी। प्रभु ने उन्हें बहुत समय तक अराम के राजा हज+ाएल और हज+ाएल के पुत्र बेन-हदद के अधिकार में छोड़ दिया।
4) यहोआहाज+ ने प्रभु से निवेदन किया और प्रभु ने उसकी बात सुन ली; क्योंकि उसने देखा कि अराम का राजा इस्राएल पर घोर अत्याचार करता था।
5) प्रभु ने इस्राएलियों को एक मुक्तिदाता दिया, जिससे वे अराम के पंजे से मुक्त हो कर पहले की तरह अपने-अपने तम्बुओं में रहने लगे।
6) परन्तु जो पाप यरोबआम ने इस्राएल से करवाये थे, वे उन से विमख नहीं हुए, बल्कि उन्हें करते रहे। अशेरा-देवी का स्तम्भ भी समारिया में खड़ा रह गया।
7) यहोआहाज+ के पास केवल पचास घुड़सवार, दस रथ और दस हज+ार पैदल सैनिक रह गये। अराम के राजा ने शेष का विनाश कर दिया था और उसे रौंद कर मिट्टी में मिला दिया था।
8) यहोआहाज+ का शेष इतिहास उसके कार्यकलाप और उसकी विजयों का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इति+हास-ग्रन्थ में लिखा है।
9) यहोआहाज+ अपने पितरों से जा मिला और वह समारिया में दफ़ना दिया गया। उसका पुत्र योआश उसकी जगह राजा बना।
10) यूदा के राजा योआश के सैंतीसवें वर्ष यहोआहाज+ का पुत्र योआश समारिया में इस्राएल का राजा बना। उसने सोलह वर्ष तक शासन किया। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
11) जो पाप नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएलियों से करवाये थे, योआश उन से विमुख नहीं हुआ, बल्कि उन्हें करता रहा।
12) योआश का शेष इतिहास, उसका कार्यकलाप, उसकी विजयों तथा यूदा के राजा अमस्या से उसके युद्धों का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
13) योआश अपने पितरों से जा मिला और उसकी जगह यरोबआम गद्दी पर बैठा। योआश इस्राएल के राजाओं के पास समारिया में दफ़ना दिया गया।
14) जब एलीशा असाध्य रोग का शिकार हो गया, तो इस्राएल के राजा योआश ने उसके पास आ कर उस पर विलाप किया और कहा, ÷÷मेरे पिता! मेरे पिता! इस्राएल के रथ और घुड़सवार!''
15) एलीशा ने उस से कहा, ÷÷एक धनुष और तीर ले आइए''। तब वह धनुष और तीर ले आया।
16) इसके बाद एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, धनुष चढ़ाइए''। उसने अपने हाथ से धनुष चढ़ाया और एलीशा ने अपने हाथ राजा के हाथ के ऊपर रखे।
17) इससे बाद एलीशा ने योआश को पूर्व की ओर की खिड़की खोलने की आज्ञा दी। उसने उसे खोल दिया और एलीशा ने उसे तीर चलाने के लिए कहा। तीर चल जाने पर एलीशा ने कहा, ÷÷यह प्रभु का विजय बाण है। यह अराम के विरुद्ध विजय बाण है। अफ़ेक के पास आप अरामियों का पूरा विनाश करेंगे।''
18) एलीशा ने फिर कहा, ÷÷तीर ले लीजिए'' और जब इस्राएल के राजा ने तीर उठा लिये, जब एलीशा ने उस से कहा, ÷÷उन्हें ज+मीन पर मारिए''। उसने उन्हें तीन बार मारा और फिर वह रुक गया।
19) इस पर ईश्वर-भक्त ने क्रुद्ध हो कर कहा, ÷÷आप को पाँच-छः बार मारना चाहिए था। तब आप अरामियों का पूरा विनाश करते, परन्तु अब आप अरामियों को केवल तीन बार पराजित करेंगे।''
20) एलीशा की मृत्यु हो गयी और उसे दफ़नाया गया। वसन्त ऋतु में मोआबी लुटेरों के दल देश पर छापा मारा करते थे।
21) किसी दिन लोग एक मृतक को दफ़नाने जा रहे थे। उसी समय उन्होंने लुटेरों के एक दल को आते देखा। तब वे उस मृतक को एलीशा की क़ब्र में ही डाल कर भाग गये। जैसे ही उस मृतक की देह से एलीशा की हड्डियों का स्पर्श हुआ, मृतक जीवित हो गया और उठ बैठा।
22) यहोआहाज+ के शासनकाल भर अराम का राजा हज+ाएल इस्राएलियों को तंग करता रहा।
23) परन्तु प्रभु ने इस्राएलियों पर दया की। उसे उन पर तरस आया। उसने इब्राहीम, इसहाक, याकूब के लिए ठहराये हुए विधान के कारण उनकी सुधि ली। उसने उस समय उनका विनाश करना और उन्हें अपने सामने से हटाना नहीं चाहा।
24) अराम के राजा हज+ाएल की मृत्यु के बाद जब उसकी जगह उसका पुत्र बेन-हदद राजा बना,
25) तो यहोआहाज+ के पुत्र योआश ने हज+ाएल के पुत्र बेन-हदद से सभी नगर छीन लिये, जो उसने युद्ध में उसके पिता यहोआहाज+ से छीने थे। योआश ने उसे तीन बार पराजित किया और इस्राएल के नगर फिर से प्राप्त किये।

अध्याय 14

1) इस्राएल के राजा यहोआहाज+ के पुत्र योआश के दूसरे वर्ष योआश का पुत्र अमस्या यूदा का राजा बना।
2) जब वह शासन करने लगा, तो वह पच्चीस वर्ष का था। उसने येरुसालेम में उनतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम यहोअद्दान था। वह येरुसालेम की थी।
3) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है। फिर भी उसने अपने पूर्वज दाऊद का पूरा अनुसरण नहीं किया। उसने भी वैसे ही कार्य किये, जैसे उसके पिता योआश ने किये थे,
4) किन्तु पहाड़ी पूजास्थाल नहीं हटाये गये। लोग वहाँ बलिदान चढ़ाते और धूप देते थे।
5) जब राजसत्ता अमस्या के हाथ में सुदृढ हो गयी, तो उसने उन सेवकों को प्राणदण्ड दिया, जिन्होंने उसके पिता राजा का वध किया था।
6) परन्तु उसने हत्यारों के पुत्रों का वध नहीं किया, जैसा कि मूसा की संहिता के ग्रन्थ में लिखा है, जहाँ प्रभु ने आदेश दिया- न तो पिता को अपने किसी बच्चे के पाप के लिए प्राणदण्ड दिया जाये और न बच्चे को अपने पिता के पाप के लिए। हर व्यक्ति को अपने दोष के लिए प्राणदण्ड दिया जायेगा।
7) अमस्या ने लवण-घाटी में दस हज+ार एदोमियों को पराजित किया और धावा बोल कर सेला पर अधिकार कर लिया। उसने उसका नाम योकतएल रखा। आज तक उसका वही नाम है।
8) उस समय अमस्या ने यहोआहाज+ के पुत्र और येहू के पौत्र, इस्राएल के राजा योआश के यहाँ दूत भेज कर उस से कहलवाया, ÷÷आइए, हम एक दूसरे का मुकाबला करें''।
9) इस पर इस्राएल के राजा योआश ने यूदा के राजा अमस्या को यह उत्तर भेजा, ÷÷लेबानोन के ऊँटकटारे ने लेबानोन के देवदार को यह सन्देश भेजा, ÷तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे बेटे से करो' ; किन्तु लेबानोन के एक जंगली पशु ने ऊँटकटारे को पैरों से रौंद डाला।
10) तुमने अवश्य एदोमियों को पराजित किया; इस कारण घमण्डी हो गये हो। तुम अपनी विजय पर गौरव करो, किन्तु अपने घर में ही बैठे रहो। तुम अपने लिए विपत्ति क्यों मोल ले रहे हो? इस से तो तुम्हारा और तुम्हारे साथ यूदा का भी पतन हो जायेगा।''
11) अमस्या ने एक न सुनी। तब इस्राएल का राजा योआश आक्रमण कर बैठा। उसका और यूदा के राजा अमस्या का यूदा के बेत-शेमेश के पास आमना-सामना हुआ।
12) यूदा इस्राएल द्वारा इस तरह पराजित किया गया कि यूदा के लोग अपने-अपने घर भाग निकले।
13) इस्राएल के राजा योआश ने बेत-शेमेश के पास अहज्+या के पौत्र और योआश के पुत्र यूदा के राजा अमस्या को बन्दी बना लिया। उसने येरुसालेम जा कर एफ्र+ईम के फाटक से ले कर कोण-फाटक तक येरुसालेम की चार सौ हाथ लम्बी चार-दीवारी गिरा दी।
14) वह प्रभु के मन्दिर तथा राजभवन के कोषागार का सब सोना, चाँदी और अन्य सब सामान उठा ले गया और बन्धक के रूप में व्यक्तियों को भी ले गया। इसके बाद वह समारिया लौट गया।
15) योआश का शेष इतिहास, उसके कार्य कलाप, उसकी विजयों और यूदा के राजा अमस्या से उसके युद्ध का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
16) योआश अपने पितरों से जा मिला और इस्राएल के राजाओं के पास समारिया में दफ़नाया गया। उसका पुत्र यरोबआम उसकी जगह राजा बना।
17) इस्राएल के राजा यहोआहाज+ के पुत्र योआश की मृत्यु के बाद योआश का पुत्र यूदा का राजा अमस्या पन्द्रह वर्ष और जीवित रहा।
18) अमस्या का शेष इतिहास यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
19) जब येरुसालेम में उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा गया, तब वह लाकीश भाग गया। लोगों ने लाकीश तक उसका पीछा किया और वहाँ उसका वध किया।
20) वह घोड़ों पर रख कर येरुसालेम लाया गया और अपने पुरखों के पास येरुसालेम के दाऊदनगर में दफ़नाया गया।
21) इसके बाद यूदा के सब लोगों ने अज+र्या को, जो उस समय सोलह वर्ष का था, उसके पिता अमस्या की जगह राजा बनाया।
22) अमस्या के मरने के बाद उसने एलत को बसाया, जिसे उसने यूदा के लिए पुनः प्राप्त किया था।
23) यूदा के राजा योआश के पुत्र अमस्या के पन्द्रहवें वर्ष योआश का पुत्र यरोबआम इस्राएल का राजा बना और समारिया में शासन करने लगा। उसने इकतालीस वर्ष तक शासन किया।
24) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएलियों से जो पाप करवाये थे, उसने उन में एक भी नहीं छोड़ा।
25) यरोबआम ने लेबो-हमात से ले कर अराबा के समुद्र तक इस्राएल के सीमान्त फिर अपने अधिकार में कर लिये, जैसा कि प्रभु इस्राएल के ईश्वर ने गत-हेफ़ेरवासी अमित्तय के पुत्र योनस द्वारा कहा था।
26) प्रभु इस्राएलियों की घोर विपत्ति देखी थी- चाहे वे स्वतन्त्र हों या दास। उनका कोई सहायक नहीं था।
27) प्रभु ने यह नहीं कहा था कि वह पृथ्वी पर से इस्राएल का नाम मिटा देगा, इसलिए उसने योआश के पुत्र यरोबआम द्वारा इसका उद्धार किया।
28) यरोबआम का शेष इतिहास, उसके कार्यकलाप, उसकी विजयों का वर्णन और किस प्रकार उसने दमिश्क और हमात इस्राएल में मिला लिये, जिन पर कभी यूदा का अधिकार था, यह इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
29) यरोबआम अपने पितरों, इस्राएल के राजाओं से जा मिला और उसका पुत्र ज+कर्या उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 15

1) इस्राएल के राजा यरोबआम के सत्तईसवें वर्ष अमस्या का पुत्र अज+र्या यूदा का राजा बना।
2) जब वह शासन करने लगा, तो वह सोलह वर्ष का था। उसने येरुसालेम में बावन वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम यकोल्या था। वह येरुसालेम की थी।
3) उसने अपने पिता अमस्या की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है,
4) किन्तु पहाड़ी पूजास्थान नहीं हटाये गये। लोग वहाँ बलिदान चढ़ाते और धूप देते रहे।
5) प्रभु ने अज+र्या को कोढ़ी बना दिया। वह जीवन भर कोढ़ी रहा और उसे एक अलग मकान में रहना पड़ा। इस समय राजा का पुत्र योताम राजभवन का प्रबन्ध करता और देश के लोगों पर शासन करता था।
6) अज+र्या का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास ग्रन्थ में लिखा है।
7) अज+र्या अपने पूर्वजों से जा मिला और उनके साथ दाऊदनगर में दफ़नाया गया। उसका पुत्र योताम उसकी जगह राजा बना।
8) यूदा के राजा अज+र्या के अड़तीसवें वर्ष यरोबआम का पुत्र ज+कर्या इस्राएल का राजा बना। उसने समारिया में छः महीने तक शासन किया।
9) उसने अपने पूर्वजों की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। नबाट के पुत्र यरोबअम ने इस्राएल से जो पाप करवाये थे, उन से ज+कर्या विमुख नहीं हुआ।
10) याबेश के पुत्र शल्लूम ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा। उसने लोगों के देखते-देखते उस पर आक्रमण कर उसका वध कर दिया और वह उसके स्थान पर स्वयं राजा बना।
11) ज+कर्या का शेष इतिहास इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
12) इस प्रकार येहू से कहा हुआ प्रभु का यह वचन पूरा हो गया। ÷÷तुम्हारे वंशज चौथी पीढ़ी तक इस्राएल पर शासन करेंगे''।
13) यूदा के राजा उज्+ज+ीया के उनतालीसवें वर्ष याबेश का पुत्र शल्लूम राजा बना। उसने समारिया में एक महीने तक शासन किया।
14) गादी का पुत्र मनहेम तिर्सा से समारिया आया और उसने याबेश के पुत्र शल्लूम को समारिया में मार डाला और वह उसके स्थान पर स्वयं राजा बना।
15) शल्लूम का शेष इतिहास और उसके षड्यन्त्र का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
16) उस समय मनहेम ने तप्पूअह, उसके सब निवासियों और तिर्सा से ले कर उसके सारे प्रदेश पर आक्रमण किया, क्योंकि लोगों ने उसके लिए नगर के फाटक नहीं खोले। उसने तप्पूअह को उजाड़ा और सभी गर्भवती स्त्रियों के पेट फाड़ डाले।
17) यूदा के राजा अज+र्या के उनतालीसवें वर्ष गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल का राजा बना। उसने समारिया में दस वर्ष तक शासन किया।
18) उसने वहीे किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएलियों से जो पाप करवाये थे, उन से मनहेम जीवन भर विमुख नहीं हुआ।
19) अस्सूर के राजा पूल ने देश पर आक्रमण किया। मनहेम ने पूल को एक हज+ार मन चाँदी दी, जिससे वह उसका समर्थन करे ओर राज्य पर उसका अधिकार सुदृढ़ बना दे।
20) मनहेम ने यह द्रव्य इस्राएलियों से बसूल किया। प्रत्येक धनी को अस्सूर के राजा के लिए पचास शेकेल देने पड़े। इसलिए अस्सूर का राजा इस्राएल छोड़ कर अपने देश लौट गया।
21) मनहेम का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
22) मनहेम अपने पूर्वजों से जा मिला और उसके स्थान पर उसका पुत्र पकह राजा बना।
23) यूदा के राजा अज+र्या के पचावें वर्ष मनहेम का पुत्र पकह समारिया में इस्राएल का राजा बना। उसने दो वर्ष तक शासन किया।
24) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएल से जो पाप करवाये थे, उन से पकह विमुख नहीं हुआ।
25) रमल्या के पुत्र सेना-नायक पेकह ने पकह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचा। उसने गिलआद के पचास आदमी अपने साथ ले कर समारिया के महल के क़िले में पकह का वध किया और उसकी जगह वह स्वयं राजा बना।
26) पकह का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप इस्राएल के राजाओं के इतिहास ग्रन्थ में लिखा है।
27) यूदा के राजा अज+र्या के बावनवें वर्ष रमल्या का पुत्र पेकह समारिया में इस्राएल का राजा बना। उसने बीस वर्ष तक शासन किया।
28) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। नबाट के पुत्र यरोबआम ने इस्राएल से जो पाप करवाये थे, उन से पेकह विमुख नहीं हुआ।
29) इस्राएल के राजा पेकह के शासनकाल में अस्सूर के राजा तिगलत-पिलएसेर ने आ कर इय्योन, आबेल-बेत-माका, यानोअह, केदेश, हासोर, गिलआद, गलीलिया-नफ्+ताली का पूरा प्रान्त-अपने अधिकार में कर लिया और उनके निवासियों को बन्दी बना कर अस्सूर ले गया।
30) जब एला के पुत्र होशेआ ने रमल्या के पुत्र पेकह के विरुद्ध षड्यन्त्र कर उसे मार डाला और उज्+ज+ीया के पुत्र योताम के तीसवें वर्ष वह उसके स्थान पर स्वयं राजा बना।
31) पेकह का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
32) इस्राएल के राजा रमल्या के पुत्र पेकह के दूसरे वर्ष यूदा के राजा उज्+ज+ीया का पुत्र योताम शासन करने लगा।
33) जब वह शासन करने लगा, तो उसकी अवस्था पच्चीस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में सोलह वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम यरूशा था, जो सादोक की पुत्री थी।
34) उसने अपने पिता उज्+ज+ीया की तरह वही किया जो प्रभु की दृष्टि में उचित है।
35) परन्तु पहाड़ी पूजास्थान नहीं हटाये गये। लोग वहाँ बलियाँ चढ़ाते और धूप देते रहे। उसने प्रभु के मन्दिर का ऊपरी फाटक बनवाया।
36) योताम का शेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
37) प्रभु उसके शासनकाल में अराम के राजा रसीन को और रमल्या के पुत्र पेकह को यूदा पर आक्रमण करने भेजने लगा।
38) योताम अपने पितरों से जा मिला और अपने पूर्वज दाऊद के नगर में अपने पूर्वजों के पास दफ़नाया गया। उसका पुत्र आहाज+ उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 16

1) रमल्या के पुत्र पेकह के सत्रहवें वर्ष योताम का पुत्र यूदा का राजा आहाज+ शासन करने लगा।
2) जब आहाज+ राजा बना, तो उसकी अवस्था बीस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में सोलह वर्ष तक शासन किया। उसने अपने पूर्वज दाऊद की तरह वैसा नहीं किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है,
3) बल्कि वह इस्रएल के राजाओं के मार्ग पर चला। प्रभु ने जो राष्ट्र इस्राएलियों के सामने से भगा दिये थे, उसने उनके घृणित कार्यों के अनुसार अपने पुत्र की होम-बलि चढ़यी।
4) वह पहाड़ी स्थानों में, टीलों पर और प्रत्येक छायादार वृक्ष के नीचे बलिदान चढ़ाता और धूप देता था।
5) अराम का राजा रसीन और रमल्या का पुत्र इस्राएल का राजा पेकह, दोनों येरुसालेम पर आक्रमण करने आये। उन्होंने आहाज+ को घेर लिया, लेकिन वे उसे पराजित नहीें कर सके।
6) उस समय अराम के राजा रसीन ने एलत से यूदा के लोगों को निर्वासित किया और एलत को फिर अराम में मिला लिया। एदोमी आ कर वहाँ बस गये और आज तक वहाँ निवास करते हैं।
7) आहाज+ ने दूतों द्वारा अस्सूर के राजा तिगलत-पिलएसेर को यह सन्देश भेजा, ''मैं आपका दास हूँ, आपका पुत्र हूँ। आइए और मुझ पर आक्रमण करने वाले अराम और इस्राएल के राजाओं के चंगुल से मुझे छुड़ाइए।''
8) आहाज+ ने प्रभु के मन्दिर और राजमहल के कोषागारों का चाँदी-सोना उपहारस्वरूप अस्सूर के राजा के पास भेजा।
9) अस्सूर के राजा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। अस्सूर का राजा दमिश्क पर आक्रमण करने चल पड़ा। उसने उस पर अधिकार कर लिया और उसके निवासियों को बन्दी बना कर कीर ले गया। उसने रसीन का वध किया।
10) जब राजा आहाज+ अस्सूर के राजा तिगलत-पिलएसेर से भेंट करने दमिष्क आया, तब उसने दमिष्क की वेदी देखी। राजा आहाज+ ने याजक ऊरीया के पास उस वेदी का प्रतिरूप और उसका सांगोपांग वर्णन भेजा।
11) दमिष्क से राजा आहाज+ के भेजे हुए सांगोपांग वर्णन के अनुसार याजक ऊरीया ने एक वेदी बनवायी। दमिष्क से राजा आहाज+ के लौटने से पहले ही से याजक ऊरीया ने उसे तैयार करवा लिया।
12) दमिष्क से लौट आने पर राजा वेदी को देखने गया। राजा ने उसके पास आ कर उस पर चढ़ावा अर्पित किया।
13) उसने उस पर होम-बलि और अन्न-बलि चढ़ायी, अर्घ अर्पित किया और षान्ति-बलि का रक्त वेदी पर छिड़का।
14) उसने कांँसे की वेदी को हटवाया, जो प्रभु के सामने नयी वेदी और प्रभु के मन्दिर के बीच में थी और उसे नयी वेदी के उत्तर में रखवाया।
15) राजा आहाज+ ने याजक ऊरीया को यह आदेष दिया, ÷÷आप प्रातःकाल की होम-बलि और सन्ध्या की अन्न-बलि, राजा की होम-बलि और अन्न-बलि, देश के सब लोगों की होम-बलि, अन्न-बलि और अर्घ बड़ी वेदी पर चढ़ायेंगे और उस पर होम-बलियों और चढ़ावों का रक्त छिड़केंगें। मैं काँंसे की वेदी के विषय में विचार करने के बाद आप को बताऊँंगा।''
16) याजक ऊरीया ने राजा आहाज+ के आदेष का पालन किया।
17) राजा आहाज+ ने ठेलों के पटरे और चिलमचियाँ हटवायीं। उसने काँसे के बैल हौज+ के नीचे से निकलवा कर हौज+ को पत्थर के चबतूरे पर रखवाया।
18) उसने अस्सूर के राजा के कारण मन्दिर के भीतर बनाया हुआ विश्राम-दिवस का चँदोवा और प्रभु के मन्दिर के बाहर का राजकीय प्रवेष-मार्ग हटवाया।
19) आहाज+ का षेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
20) आहाज+ अपने पूर्वजों से जा मिला और उनके पास दाऊदनगर में दफ़नाया गया। उसका पुत्र हिजकीया उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 17

1) यूदा के राजा आहाज+ के बारहवें वर्ष एला का पुत्र होषेआ समारिया में इस्राएल का षासन करने लगा। उसने नौ वर्ष तक षासन किया।
2) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। लेकिन उसने वैसा नहीं किया, जैसा इस्राएल के पूर्ववर्ती राजाओं ने किया था।
3) अस्सूर के राजा षलमन-एसेर ने उस पर आक्रमण किया। होषेआ उसके अधीन हो गया और उसे कर देने लगा।
4) अस्सूर के राजा को मालूम हुआ कि होषेआ राजद्रोह कर रहा है, क्योंकि उसने मिस्र के राजा सो के पास दूत भेजे थे और वह अस्सूर के राजा को अपना वार्षिक कर नहीं चुकाता था। इसलिए अस्सूर के राजा ने उसे पकड़ कर बन्दीगृह में डलवा दिया।
5) इसके बाद अस्सूर के राजा षलमन-एसेर ने सारे देष पर आक्रमण किया और समारिया तक पहुँच कर तीन वर्ष तक उसके चारों ओर घेरा डाला।
6) होषेआ के राज्यकाल के नौवें वर्ष अस्सूर के राजा ने समारिया को अपने अधिकार में किया। उसने इस्राएलियों को अस्सूर ले जा कर उन्हें हलह नामक नगर में, गोज+ान की नदी हाबोर के तट पर और मेदियांें के कुछ नगरों में बसाया।
7) यह इसलिए हुआ कि इस्राएलियों ने अपने प्रभु-ईष्वर के विरुद्ध पाप किया, जो उन्हें मिस्र के राजा फिराउन के हाथ से छुड़ा कर ले आया था।
8) उन्होंने पराये देवताओं की उपासना की थी और उन लोगों के रीति-रिवाजों को अपनाया था, जिन्हें प्रभु ने उनके सामने से भगा दिया था।
9) इस्रालियों ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। उन्होंने चौकियों और क़िलाबन्द नगरों में, अपने सब नगरों में ऊँचे पूजास्थानों का निर्माण किया।
10) उन्होंने सब पहाड़ियों पर और प्रत्येक छायादार वृक्ष के नीचे पूजा-स्तम्भ और अषेरा-देवी के खूँटे बनवाये।
11) उन्होंने सभी पहाड़ी पूजा-स्थानों में उन राष्ट्रों की तरह धूप दिया, जिन्हें प्रभु ने उनके सामने से भगाया था। उन्होंने इन कुकर्मों द्वारा प्रभु का क्रोध भड़काया।
12) उन्होंने देवमूर्तियों की पूजा की, यद्यपि प्रभु ने उन से कहा था- तुम यह नहीं करोगे।
13) प्रभु ने अपने नबियों और दृष्टाओं के मुख से इस्राएल और यूदा को चेतावनी दे कर कहा था, ÷÷अपना कुमार्ग छोड़ कर मेरे आदेषों और नियमों का पालन करो, जो उस संहिता में लिखे हुए हैं जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किया और नबियों, अपने सेवकों द्वारा उन्हें सुनाया था''।
14) किन्तु वे सुनना नही चाहते थे और अपने उन पूर्वजों की तरह हठी और विद्रोही थे, जिन्होंने अपने प्रभु-ईष्वर में विष्वास नहीं किया था।
15) उन्होंने प्रभु की आज्ञाओं, अपने पूर्वजों के लिए निर्धारित विधान और प्रभु की चेतावनियों का तिरस्कार किया। वे निकम्मी देवमूर्तियों के अनुयायी बनकर स्वयं निकम्मे बने। उन्होंने अपने आस-पास के राष्ट्रों का अनुकरण किया यद्यपि प्रभु ने कहा था- उनके समान आचरण नहीं करो।
16) उन्होंने प्रभु, अपने ईष्वर के सभी आदेषों का उल्लंघन किया। उन्होंने अपने लिए बछडे+ की दो मूर्तियाँ बनवायीं, पूजा-स्तम्भ स्थापित किया, नक्षत्रों को दण्डवत् किया और बाल की सेवा की।
17) उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों की होम-बलि चढ़ायी, षकुन विचारे जादू-टोना किया। उन्होंने प्रभु को अप्रसन्न किया और विष्वासघाती बन कर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
18) इसलिए प्रभु का क्रोध इस्राएल पर भड़क उठा और उसने इस्राएल को अपने सामने से दूर कर दिया। केवल यूदा का वंष बचा रह गया।
19) लेकिन यूदावंषियों ने भी प्रभु, अपने ईष्वर के आदेषों का पालन नहीं किया। वे इस्राएलियों द्वारा अपनाये हुए रीति-रिवाजों का अनुकरण करने लगे।
20) इसलिए प्रभु ने सभी इस्राएलियों का परित्याग कर दिया, उसने उन्हें पतित होने तथा लुटेरों के हाथों लुट जाने दिया और अन्त में उन्हें अपनी दृष्टि के सामने से दूर कर दिया।
21) जब प्रभु ने इस्राएल को दाऊद के घराने से अलग कर दिया था, तो उन्होंने नबाट के पुत्र यरोबआम को अपना राजा बनाया था। यरोबआम ने इस्राएल को प्रभु के मार्ग से भटकाया और उस से घोर पाप करवाया।
22) इस्राएली यरोबआम के सब पापों का अनुकरण करते रहे और उन से तब तक विमुख नहीं हुए,
23) जब तक प्रभु ने उन को अपने सामने से दूर नहीं कर दिया, जैसी उसने उन्हें नबियों, अपने सेवकों द्वारा चेतावनी दी थी। इसलिए इस्राएली अपने स्वदेष से दूर अस्सूर में निर्वासित किये गये और आज तक वहाँ है।
24) अस्सूर के राजा ने समारियों के नगरों में इस्राएलियों की जगह बाबूल, कूता, अव्वा, हमात और सफ़रवईम से लोगों को ले आकर बसाया। वे लोग समारिया पर अधिकार कर उसके नगरों में रहने लगे।
25) वहाँ आने के बाद वे प्रभु की उपासना नहीं करते थे। इसलिए प्रभु ने उनके पास सिंह भेजे और उन्होंने उन में से अनेकों को मार डाला।
26) अस्सूर के राजा को यह समाचार मिला, ÷÷आपने जिन लोगों को ले जा कर समारिया के नगरों में बसाया है, वे उस देष के ईष्वर की उपासना विधि से परिचित नहीं है। इसलिए उसने उनके पास सिंह भेजे हैं, जो उन्हें मार रहे हैं; क्योंकि वे लोग उस देष के ईष्वर की उपासना-विधि से परिचित नहीं हैं।''
27) इस पर अस्सूर के राजा ने आज्ञा दी, ÷÷उन याजकों में से एक को वहाँ वापस ले जाओ, जिन्हें तुम वहाँ से ले आये हो। वह वहाँ रहेगा और वही उन्हें उस देष के ईष्वर की उपासना-विधि की षिक्षा देगा।''
28) इसलिए उन याजकों में से एक को वहाँ भेजा गया, जो समारिया से ले आये गये थे। वह बेतेल में रहने लगा और उसने लोगों को यह सिखाया की प्रभु की उपासना कैसे करनी चाहिए।
29) फिर भी प्रत्येक जाति ने अपने-अपने देवताओं की मूर्तियाँ बनायीं और उन को उन पहाड़ी पूजास्थानों में प्रतिष्ठित किया, जिन्हें समारिया के लोगों ने बनवाया था।
30) बाबूल से आये लोगों ने सुक्कोत-बनोत, कूता से आये लोगों ने नेरगाल, हमात के लोगों ने अषीमा,
31) अव्वा वालों ने निबहज+ और तरताक को प्रतिष्ठित किया। सफ़रवईम से आये लोगों ने सफ़रवईम के देवता अद्रम्मेलक और अनम्मेलक को अपने बच्चों की होम-बलियाँ चढ़ायीं।
32) वे प्रभु की उपासना करते थे, किन्तु वे अपने लोगों में से भी पुजारियों को नियुक्त करते थे, जो पहाड़ी पूजास्थानों पर उनकी ओर से देवमूर्तियों की पूजा कर सकें।
33) इस प्रकार वे प्रभु की भी उपासना करते थे और उन राष्ट्रों के रीति-रिवाजों के अनुसार, जिन में से वे ले आये गये थे, अपने-अपने देवताओं की भी पूजा करते थे।
34) आज तक वे उन्हीं पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार चलते आ रहे हैं। वे न तो प्रभु पर श्रद्धा रखते और न उन आदेषों, विधि-निषेधों, नियमों और आज्ञाओं का पालन करते, जिन्हें प्रभु ने उस याकूब के पुत्रों को दिया था, जिसका नाम उसने इस्राएल रखा था।
35) प्रभु ने उनके लिए एक विधान निर्धारित किया था और उन्हें यह आज्ञा दी थी, ÷÷तुम अन्य देवताओं को सिर नहीं झुकाओगे, उनकी पूजा नहीं करोगे और न उन्हें बलिदान चढ़ाओगे।
36) तुम प्रभु पर श्रद्धा रखोगे, जो अपने सामर्थ्य तथा बाहुबल द्वारा तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाया। तुम उसी को सिर झुकाओगे, और उसी को बलिदान चढ़ाओगे।
37) तुम उन आदेषों, विधि-निषेधों, नियमों और आज्ञाओं का नित्य पालन करोगे, जिन्हें उसने तुम्हारे लिए लिपिबद्ध किया। तुम अन्य देवताओं पर श्रद्धा नहीं रखोगे।
38) जो विधान मैंने तुम्हारे लिए निर्धारित किया, उसे तुम कभी नहीं भुलाओगे।
39) तुम केवल प्रभु, अपने ईष्वर पर श्रद्धा रखोगे। वह तुम्हारे सब षत्रुओं के हाथों से तुम्हारी रक्षा करेगा।''
40) परन्तु उन्होंने उसकी एक नहीं मानी और वे अपने पहले के रीति-रिवाजों के ही अनुसार चलते रहे।
41) यद्यपि वे जातियाँ प्रभु की उपासना करती थीं, फिर भी वे अपनी देवमूर्तियों की पूजा करती रहीं। उनके पूर्वजों ने जैसा किया था, उनकी सन्तान भी आज तक वैसा करती आ रही है।

अध्याय 18

1) एला के पुत्र इस्राएल के राजा होषेआ के तीसरे वर्ष आहाज+ का पुत्र हिज+कीया यूदा का राजा बना।
2) जब वह षासन करने लगा, तो उसकी अवस्था पच्चीस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में उनतीस वर्ष तक षासन किया। उसकी माता का नाम अबी था। वह ज+कर्या की पुत्री थी।
3) अपने पुरखे दाऊद की तरह उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है।
4) उसने पहाड़ी पूजास्थान हटा दिये, पूजास्तम्भों को तोड़ा, अषेरा-देवी के खूँटे काट डाले और मूसा द्वारा बनवाया हुआ काँसे का साँप टुकडे+-टुकड़े कर डाला, क्योंकि इस्राएली उस समय तक उसके सामने धूप देते आ रहे थे। लोग उसे नहुष्तान कहते थे।
5) हिज+कीया को प्रभु, इस्राएल के ईष्वर पर भरोसा था। यूदा के सारे राजाओं, में कोई दूसरा उसके जैसा नहीं हुआ- न कभी पहले और न कभी बाद में।
6) वह प्रभु से संयुक्त रहा और कभी उससे विमुख नहीं हो गया। वह मूसा को दी हुई प्रभु की आज्ञाओं का पालन करता था।
7) प्रभु उसके साथ रहा। वह अपने सब कामों में सफल हुआ। उसने अस्सूर के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया और इसके बाद उसके अधीन नहीं रहा।
8) उसने गाज+ा और उसके आसपास के प्रदेष तक फ़िलिस्तियों के सब क़िले और क़िलाबन्द नगर अपने अधिकार में कर लिये।
9) हिज+कीया के षासन के चौथे वर्ष, अर्थात् एला के पुत्र इस्राएल के राजा होषेआ के सातवें वर्ष, अस्सूर के राजा षलमन-एसेर ने समारिया पर आक्रमण कर उसे घेर लिया।
10) उसने तीन वर्ष बाद उस पर अधिकार कर लिया। उसने हिज+कीया के छठे वर्ष, अर्थात् इस्राएल के राजा होषेआ के नौवें वर्ष, समारिया पर अधिकार कर लिया।
11) अस्सूर का राजा इस्राएलियों को बन्दी बना कर अस्सूर ले गया और उन्हें हलह में, गोज+ान की नदी हाबोर के तट पर और मेदियों के नगरों में बसा दिया।
12) यह इसलिए हुआ कि उन्होंने प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया और उसका विधान भंग किया था। उन्होंने प्रभु के सेवक मूसा की सब आज्ञाओं पर न तो ध्यान दिया और न उनका पालन ही किया।
13) राजा हिज+कीया के चौदहवें वर्ष अस्सूर के राजा सनहेरीब ने यूदा के सब क़िलाबन्द नगरों पर आक्रमण कर उन पर अधिकार कर लिया।
14) यूदा के राजा हिज+कीया ने अस्सूर के राजा के पास लाकीष में कहला भेजा, ÷÷मैंने अपराध किया है, लेकिन मुझे छोड़ दीजिए। आप जो कुछ मुझ से मांँगेंगे, मैं दे दूंगा।'' इस पर अस्सूरी राजा ने यूदा के राजा हिज+कीया से तीन सौ मन चाँदी और तीस मन सोना माँगा।
15) हिज+कीया को प्रभु के मन्दिर की और राजमहल के कोषागार की सारी चाँदी दे देनी पड़ी।
16) उस समय यूदा के राजा हिज+कीया ने प्रभु के मन्दिर के द्वारों और उनकी चौखटों से वह सोना निकलवाया, जिसे उसने उन पर मढ़वाया था और उसे अस्सूर के राजा को दे दिया।
17) अस्सूर के राजा ने अपने प्रधान सेनापति, प्रमुख कंचुकी और प्रधान रसद प्रबन्धक को एक बडे+ सैनिक दल के साथ लाकीष से राजा हिज+कीया के यहाँ येरुसालेम भेजा। येरुसालेम पहुँच कर वे ऊपरी जलकुण्ड की नहर के निकट, धोबियों के खेत की सड़क पर रूके और
18) उन्होंने राजा को बुलवाया। तब हिलकीया का पुत्र महल का प्रबन्धक एल्याकीम, सचिव षेबना और आसाफ़ का पुत्र अभिलेखी योआह उनके पास आये।
19) प्रधान रसद-प्रबन्धक ने उन से कहा, ÷÷तुम लोग हिज+कीया से कहोगे कि अस्स्ूार के राजाधिराज कहते हैं : ÷तुम किस बात पर भरोसा रखते हो?
20) तुमने कहा-षब्द मात्र से मुझे युद्ध के लिए परामर्ष और बल मिलेगा। तुमने मेरे विरुद्ध विद्रोह करने के लिए किस पर भरोसा रखा?
21) देखो, तुम्हें उस टूटे सरकण्डे का, उस मिस्र का भरोसा है। जो उस पर टिकेगा वह उसी के हाथ में चुभ जायेगा। मिस्र का राजा फ़िराउन अपने ऊपर भरोसा करने वाले सब लोगों के साथ ऐसा ही करता आ रहा है।
22) और यदि तुम मुझ से कहो कि हमें प्रभु, अपने ईष्वर का भरोसा है, तो विचार करो कि हिज+कीया ने उसके पहाड़ी पूजास्थानों और वेदियों को गिरा दिया है तथा युदा और येरुसालेमवासियों को आज्ञा दी है कि उन्हें केवल येरुसालेम की वेदी के सामने आराधना करनी चाहिए।
23) इसलिए आओ, अब मेरे स्वामी अस्सूर के राजा को चुनौती दो और मैं तुम्हें दो हज+ार घोड़े दे रहा हूँ, बषर्ते तुम उनके लिए सवार पा सको।
24) तुम मिस्र के रथ और रथियों का भरोसा करते हो। क्या तुम मेरे स्वामी के छोटे-से-छोटे कर्मचारी का सामना कर सकोगे?
25) इसके अतिरिक्त, क्या में प्रभु की आज्ञा के बिना यह स्थान उजाड़ने आया हूँ? प्रभु ने स्वयं ही मुझसे कहा था कि इस देष के उजाड़ने मे लिए इस पर आक्रमण करो' !
26) हिलकीया के पुत्र एल्याकीम, षेबना और योआह ने प्रधान रसद-÷प्रबन्धक से कहा, ÷÷कृपया अपने दासों से अरामी भाषा में बोलिए। उसे हम भी समझते हैं। इन लोगों के सामने जो दीवार पर बैठे हैं, हम से यहूदी भाषा में बातचीत मत कीजिए।''
27) प्रधान रसद-प्रबन्धक ने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷क्या मेरे स्वामी ने मुझे तुम्हारे स्वामी और तुमसे ही बातचीत करने के लिए भेजा है? नहीं, मुझे तो उन आदमियों से भी बातचीत करने लिए भेजा गया है, जो दीवार पर बैठे हैं। और जिन्हें तुम्हारी तरह ही अपना मल-मूत्र खाना-पीना पड़ेगा।''
28) इसके बाद प्रधान रसद-प्रबन्धक ने आगे बढ़ कर उच्च स्वर से यहूदी भाषा में कहा, ÷÷अस्सूर के राजाधिराज की बात सुनो!
29) राजा का कथन है कि तुम हिज+कीया के धोखे में न फँसना, क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा।
30) हिज+कीया यह कहते हुए तुम्हें प्रभु का झूठा भरोसा न दिला पाये कि प्रभु हमारी रक्षा अवष्य करेगा और यह नगर अस्सूर के राजा के हाथों नहीं पडे+गा।
31) हिज+कीया की बात पर ध्यान न देना। अस्सूर का राजा तुम्हारे सामने यह प्रस्ताव रखता है कि मेरे साथ सन्धि कर कर लो, मेरे पक्ष में आ जाओ। तब तुम में प्रत्येक अपनी दाखलता और अपने अंजीर-वृक्ष का फल खा सकेगा और अपने कुएँ से पानी पी सकेगा।
32) मै बाद में आऊँगा और तुम्हें ऐसे देष ले जाऊँगा, जो तुम्हारे ही देश की तरह है; एक ऐसे देश, जो अन्न और अंगूरी से भरा है; एक ऐसे देष, जो खाद्यान्नों और दाखबारियों से भरा है; एक ऐसा देश, जो तेल और मधु से भरा है। तब तुम भूखों नहीं मरोगे, बल्कि जीवित रहोगे। इसलिए हिज+कीया पर ध्यान नही देना, क्योंकि वह तुम्हें धोखा देते हुए कहता है कि प्रभु, हमारा ईष्वर हमारी रक्षा करेगा।
33) क्या राष्ट्रों के देवता अस्सूर के राजा से अपना देष बचा सके?
34) हमात और अर्पाद के देवता कहँा हैं? सफ़रवईम, हेना और इव्वा के देवता कहाँ हैं? क्या वे मेरे हाथ से समारिया की रक्षा कर पाये?
35) जब उन देषों के सभी देवताओं में से कोई भी मेरे हाथ से अपने देष की रक्षा नहीं कर पाया, तो क्या प्रभु मेरे हाथ से येरुसालेम की रक्षा कर पायेगा?''
36) लोग चुप रहे और उन्होंने उसे कोई उत्तर नहीं दिया , क्योंकि राजा की आज्ञा थी कि तुम उसे उत्तर नहीं दोगे।
37) इसके बाद हिलकीया का पुत्र महल का प्रबन्धक एल्याकीम, सचिव षेबना और आसाफ़ का पुत्र अभिलेखी योआह फाड़े हुए वस्त्र पहने हिज+कीया के पास गये और उसे प्रधान रसद-प्रबन्धक की बातें सुनायीं।

अध्याय 19

1) यह सुनकर राजा हिज+किया ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और टाट ओढ़ कर प्रभु के मन्दिर गया।
2) इसके बाद उसने महल-प्रबन्धक एल्याकीम, सचिव षेबना और प्रमुख याज+कों को टाट ओढ़े आमोस के पुत्र नबी इसायाह के पास भेजा।
3) उन्होंने उस से कहा, ÷÷हिज+कीया का कहना है, आज का दिन संकट, प्रताड़ना और अपमान का दिन है; क्योंकि प्रसव का दिन आया है, लेकिन प्रसूता में प्रसव करने की षक्ति नहीं रह गयी है।
4) हो सकता है कि प्रभु, आपके ईष्वर ने प्रधान रसद-प्रबन्धक की, जिसे अस्सूर के राजा ने जीवन्त ईष्वर की निन्दा करने भेजा है, उन सब बातों को सुन लिया हो और उन सब बातों के लिए उसे दण्ड दे, जिन्हें प्रभु, आपके ईष्वर ने सुना होगा। अतः उन लोगों के लिए प्रार्थना कीजिए, जो षेष रह गये हैं।''
5) जब राजा हिज+कीय के सेवक इसायाह के पास आये,
6) तब इसायाह ने उन से कहा, ÷÷तुम अपने स्वामी से यह कहोगे कि प्रभु का कथन हैः तुम उन बातों से नहीं डरो, जिन्हें तुमने सुना है और जिनके द्वारा अस्सूर के राजा के सेवकों ने मेरी निन्दा की।
7) मैं उसके मन में ऐसी भावना पैदा करूँगा कि वह कोई अफ़वाह सुन कर अपने देष लौट जायेगा और वह अपने देष में ही तलवार से मार डाला जायेगा।''
8) जब प्रधान रसद-प्रबन्धक लौटा, तो उसने सुना कि अस्सूर का राजा लाकीष छोड़ कर चला गया और लिबना में युद्ध कर रहा है। इसलिए वह भी लिबना गया।
9) राजा को खबर मिली थी कि कूष का राजा तिरहाका उस से लडने आया है। यह सुन कर अस्सूर के राजा ने फिर से हिज+कीया के पास दूतों को भेजते हुए उस से कहा,
10) ÷÷यूदा के राजा हिज+कीया से यह कहोगेः तुम अपने ईष्वर का भरोसा करते हो, जो तुम्हें यह आष्वासन देता है कि येरुसालेम अस्सूर के राजा के हाथ नही पड़ेगा। इस प्रकार का धोखा मत खाओ।
11) तुमने सुना है कि अस्सूर के राजाओं ने सब देषों का सर्वनाष किया है, तो तुम कैसे बच सकते हो?
12) क्या उन राष्ट्रों के देवतओं ने उनकी रक्षा की, जिनका विनाष मेरे पूर्वजों ने किया है, अर्थात् गोज+ान, हारान, रेसेफ़ और तलस्सार में रहने वाले एदेन के लोगों की?
13) हमात, अर्पाद, सफ़रवईम, हेना या इव्वा के राजा कहाँ हैं?''
14) हिज+कीया ने दूतों के हाथ से पत्र ले कर पढ़ा। इसके बाद उसने मन्दिर जा कर उसे प्रभु के सामने खोल कर रख दिया।
15) तब हिज+कीया ने प्रभु से इस प्रकार प्रार्थना की : ÷÷प्रभु ! इस्राएल के ईष्वर ! तू केरूबीम पर विराजमान है। तू पृथ्वी भर के सब राज्यों का एकमात्र ईश्वर है। तुने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है।
16) प्रभु! तू कान लगा कर सुन! प्रभु! तू आँखें खोल कर देख! सनहेरीब के शब्द सुन, जिनके द्वारा उसने जीवन्त ईश्वर का अपमान किया है।
17) प्रभु! यह सच है कि अस्सूर के राजाओं ने राष्ट्रों का सर्वनाश किया और
18) उनके देवताओं को जलाया है। वे देवता नहीं, बल्कि मुनष्यों द्वारा निर्मित लकड़ी और पत्थर की मूर्तियाँ मात्र थे। इसलिए वे उन्हें नष्ट कर सके।
19) प्रभु! हमारे ईश्वर! हमें उसके पंजे से छुड़ा, जिससे पृथ्वी भर के राज्य यह जान जायें कि प्रभु! तू ही ईश्वर है।''
20) उस समय आमोस के पुत्र इसायाह ने हिज+कीया के पास यह कहला भेजा, ÷÷प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः मैंने अस्सूर के राजा सनहेरीब के विषय में तुम्हारी प्रार्थना सुनी है।
21) सनहेरीब के विरुद्ध प्रभु का कहना इस प्रकार है- सियोन की कुँवारी पुत्री तुम्हारा तिरस्कार ओर उपहास करती है। येरुसालेम की पुत्री तुम्हारी पीठ पीछे सिर हिलाती है।
22) तुमने किसकी निन्दा और अपमान किया है? तुमने किसके विरुद्ध आवाज+ उठायी है? तुमने किसकी ओर अहंकार से आंखे उठायी हैं? इस्राएल के परमपावन ईश्वर के विरुद्ध!
23) तुमने दूत भेज कर प्रभु की निन्दा की है। तुमने यह कहा है : मैं अपने रथों के साथ पर्वतों के शिखर पर चढ़ चुका हूँ, लेबानोन के सब से ऊँचे स्थानों पर! मैंने उसके सब से ऊँचे देवदार ओर उसके सब से सुन्दर सनोवर कटवा दिये। मैं उसके सबसे दुर्गम भागों में ओर उसके गहनतम वनखण्डों में पहुँच गया हूँ।
24) मैंने खोद कर विदेशों का पानी पिया और अपने पैरों के नीचे मिस्र की सब नहरे सुखायी हैं।
25) क्या तुम लोग यह नहीं जानते कि मैंने बहुत पहले यह योजना बनायी थी? अब मैं इसे पूरा करूँगा। मैं तुम्हारे क़िलाबन्द नगरों को पत्थरों का खण्डहर बना दूँगा।
26) उनके निवासी शक्तिहीन, भयभीत और निराश हैं। वे खेतों की घास जैसे हैं, मैदान की हरियाली की तरह, छत पर उगे पौधों जैसे, झुलसे गेहँू की तरह, जो बढ़ने से पहले सूख जाते हैं।
27) मैं तुम्हारा उठना-बैठना, आना-जाना जानता हूँ। जब तुम मुझ पर क्रुद्ध हो, तो मैं जानता हूँ।
28) तुमने मुझ पर क्रोध किया। तुम्हारी अहंकार-भरी बातें मेरे कानों तक पहुँच गयी हैं, इसलिए मैं तुम्हारी नाक में नकेल डालूँगा और तुम्हारे मुँह पर लगाम। तुम जिस रास्ते से आये, उस से तुम को लौटाऊँगा।
29) हिज+कीया! तुम्हारे लिए यह संकेत होगा- इस वर्ष तुम सिला खाओगे, दूसरे वर्ष अपने आप उगने वाला घास- पात, तीसरे वर्ष तुम बोओगे और लुनोग, दाखबारियाँ लगाओगे और उनका फल खाओगे।
30) यूदा के घराने का अवशेष जड़ पकड़ेगा और फल देगा।
31) येरुसालेम से एक अवशेष निकलेगा और सियोन पर्वत से बचे हुए लोगों का एक दल। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कर दिखायेगा।
32) इसलिए अस्सूर के राजा के विषय में प्रभु यह कहता हैः वह इस नगर में प्रवेश नहीं करेगा और इस पर एक बाण भी नहीं छोड़ेगा। वह ढाल ले कर उसके पास नहीं फटकेगा ओर उसकी मोरचाबन्दी नहीं करेगा
33) वह जिस रास्ते से आया, उसी से वापस जायेगा। वह इस नगर में प्रवेश नहीं करेगा। यह प्रभु की वाणी है।
34) मैं अपने नाम ओर अपने सेवक दाऊद के कारण यह नगर बचा कर सुरक्षित रखूँगा।''
35) उसी रात प्रभु के दूत ने आ कर अस्सूर के राजा के शिविर में एक लाख पचासी हज+ार लोगों को मारा। प्रातः काल वे सब मर कर पड़े हुए थे।
36) अस्सूर का राजा सनहेरीब शिविर उठा कर अपने देश लौटा और निनिवे में रहा।
37) एक दिन जब वह अपने देवता निस्त्रोक के मन्दिर में उपासना कर रहा था, तो उसके पुत्र अद्रम्मेलक और शरएसेर ने उसे तलवार से मार डाला और वे अराराट देश भाग गये। उसका पुत्र एसेर-हद्दोन उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 20

1) उन दिनों हिज+कीया इतना बीमार पड़ा कि वह मरने को हो गया। आमोस के पुत्र नबी इसायाह ने उसके यहाँ जा कर कहा, ÷÷प्रभु यह कहता है- अपने घरबार की समुचित व्यवस्था कीजिए, क्योंकि आपकी मृत्यु होने वाली है। आप अच्छे नहीं हो सकेंगे।''
2) हिज+कीया ने दीवार की ओर मुहँ कर प्रभु से यह प्रार्थना की,
3) ÷÷प्रभु! कृपया याद कर कि मैं ईमानदारी और सच्चे हृदय से तेरी सेवा करता रहा ओर जो तुझे प्रिय है, वही करता रहा'' और हिज+कीया फूट-फूट कर रोने लगा।
4) इसायाह मध्यवर्ती प्रांगण से निकला भी नहीं था कि प्रभु की वाणी यह कहते हुए उसे सुनाई पड़ी,
5) मेरी प्रजा के शासक हिज+कीया के पास लौट जाओ और उस से कहो, ÷तुम्हारे पूर्वज दाऊद का प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी और तुम्हारे आँसू देखे। देखो मैं तुम्हें अच्छा कर दूँगा और तुम तीसरे दिन ईश्वर के मन्दिर जाओगे।
6) मैं तुम्हारी आयु पन्द्रह पर्ष बढ़ा दूँगा। मैं अस्सूर के राजा से तुम्हारी और इस नगर की रक्षा करूँगा। मैं अपने तथा अपने सेवक दाऊद के कारण इस नगर की रक्षा करूँगा।''
7) इसायाह ने अंजीर की एक रोटी लाने को कहा। वह लायी गयी और उसके फोड़े पर रख दी गयी। उसके बाद वह अच्छा हो गया।
8) हिज+कीया ने इसायाह से पूछा, ÷÷प्रभु मुझे चंगा करेगा और मैं परसों प्रभु के मन्दिर जा सकूँगा; मैं किस चिन्ह से यह जान सकता हूँ?''
9) इसायाह ने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु अपना वचन पूरा करेगा, उसके प्रमाणस्वरूप प्रभु आप को यह चिन्ह देगा-बताइए, छाया दस सोपान आगे जाये, या दस सोपान पीछे?''
10) हिज+कीया ने उत्तर दिया, ÷÷छाया दस सोपान आगे जाये, यह तो सामान्य बात है। यह नहीं। वह दस सोपान पीछे जाये।''
11) अब नबी इसायाह ने प्रभु से प्रार्थना की और उसने आहाज+ की सीढ़ी पर छाया को दस सोपान पीछे लौटाया।
12) उस समय बलअदान के पुत्र, बाबुल के राजा मरोदक- बलअदान ने हिज+कीया के पास दूतों द्वारा भेंट और पत्र भेजा, क्योंकि उसने सुना था कि हिज+कीया बीमार है।
13) हिज+कीया ने दूतों का स्वागत कर अपने भण्डारों की समस्त चाँदी, सोना, मसाले और सुगन्धित तेल, अपना षास्त्रागार और अपनी सारी धन-सम्पत्ति दिखायी। उसके महल और उसके सारे राज्य में ऐसा कुछ न रहा, जिसे हिज+कीया ने उन्हें न दिखाया हो।
14) तब नबी इसायाह ने राजा हिज+कीया के पास आ कर उस से पूछा, ÷÷उन दूतों ने क्या कहा और वे आपके पास कहाँ से आये थे?'' हिज+कीया ने कहा, ÷÷वे दूर देष से, बाबुल से आये थे''।
15) फिर उसने पूछा, ÷÷उन्होंने आपके महल में क्या देखा?'' हिज+कीया ने कहा, ÷÷उन्होंने वह सब कुछ देखा, जो मेरे महल में है। मेरे भण्डारों में ऐसा कुछ नहीं, जिसे मैंने उन्हें न दिखाया हो।''
16) इस पर इसायाह ने हिज+कीया से कहा, ÷÷प्रभु का कहना सुनिएः
17) वह दिन आ रहा है जब वह सब कुछ, जो तुम्हारे महल में है और वह सब कुछ, जो तुम्हारे पूर्वजों ने आज तक एकत्रित किया है, बाबुल ले जाया जायेगा। कुछ भी षेष नहीं रहेगा। यह प्रभु का कथन है।
18) आपके अपने पुत्रों में से भी कईयों को ले जाया जायेगा और वे बाबुल के राजा के महल में कंचुकियों का काम करेंगे।''
19) इस पर हिज+कीया ने इसायाह से कहा, ÷÷प्रभु का यह कथन, जो आपने सुनाया है, अच्छा ही है''। उसने सोचा कि इसका अर्थ यह है कि मेरे जीवन काल मंें षन्ति और सुरक्षा रहेगी।
20) हिज+कीया का षेष इतिहास, उसकी विजयें, उसका कार्यकलाप और किस प्रकार वह कुण्ड और नहे बनवा कर नगर के अन्दर पानी ले गया, यह सब यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
21) हिज+कीया अपने पितरों से जा मिला और उसका पुत्र मनस्से उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 21

1) जब मनस्से राजा बना, तो वह बारह वर्ष का था। उसने येरुसालेम में पचपन वर्ष षासन किया। उसकी माता का नाम हेफ़सी-बाह था।
2) मनस्से ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। उसने उन राष्ट्रों के घृणित रीति-रिवाजों का अनुकरण किया, जिन्हें प्रभु ने इस्राएलियों के सामने से भगा दिया था।
3) उसने उन पहाड़ी पूजास्थानों को फिर से बनवाया, जिन्हें उसके पिता हिज+कीया ने तुड़वा दिया था। उसने इस्राएल के राजा अहाब की तरह बाल-देवता की वेदियाँ बनवायीं और अषेरा-देवी का खूँट खड़ा कर दिया। वह आकाष के नक्षत्रों को दण्डवत् करता और उनकी उपासना करता था।
4) उसने प्रभु के उसी मन्दिर में वेदियॉ बनवायीं, जिसके विषय में प्रभु ने कहा था, ÷÷मैं येरुसालेम में अपना नाम प्रतिष्ठित करूँगा''।
5) उसने प्रभु के मन्दिर के दोनों प्रांगणों में नक्षत्रों की वेदियाँ बनवायीं।
6) उसने अपने पुत्र की होम-बलि चढ़ायी। वह अभिचार और जादू-टोना करता और भूत-प्रेत साधने वालों तथा सगुन विचारने वालों से सम्बन्ध रखता था। वह वही करता था, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और उसने प्रभु का क्रोध भड़काया।
7) उसने अषेरा की मूर्ति बनवा कर उसे उस मन्दिर में रखवाया, जिसके विषय में प्रभु ने दाऊद और उसके पुत्र सुलेमान से कहा था, ÷÷इस मन्दिर और येरुसालेम में, जिसे मैंने इस्राएल के सभी वंषों में से चुन लिया है, मैं अपना नाम सदा के लिए प्रतिष्ठित करूँगा।
8) और यदि वे मेरी सब आज्ञाओं का पालन करते रहेंगे और मेरे सेवक मूसा द्वारा उन्हें दी गयी सम्पूर्ण संहिता पर चलेंगे, तो मैं इस्राएलियों को उस देष से निर्वासित नहीं करूँगा, जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया।''
9) परन्तु उन्होंने नहीं सुना। मनस्से ने उन्हें बहकाया, जिससे उन्होंने उन लोगों से भी अधिक कुकर्म किये, जिन्हें प्रभु ने उनके सामने से भगा दिया था।
10) प्रभु ने अपने सेवक नबियों द्वारा यह चेतावनी दी थी,
11) ÷÷चूंँकि यूदा के राजा मनस्से ने अत्यन्त घृणित कार्य किये, अपने पहले के सब अमोरियों से भी अधिक घृणित कार्य किये और अपनी देवमूर्तियों द्वारा भी यूदावंषियों से पाप करवाया,
12) इसलिए प्रभु इस्राएल का ईष्वर यह कहता हैः सुनो, मैं येरुसालेम और यूदा पर ऐसी-ऐसी विपत्तियाँ ढाहने वाला हँूॅ कि जो भी उनके विषय में सुनेगा, वह चकित रह जायेगा।
13) मै येरुसालेम के साथ वही करूँगा, जो मैंने समारिया और अहाब के घराने के साथ किया। मैं येरुसालेम को वैसे ही रगडूँगा, जैसे कोई एक थाली माँजता है और उसके बाद उसे उलट कर रख देता है।
14) मैं अपने दायभाग के षेष लोगों का परित्याग करूँगा और उन्हें उनके षत्रुओं के हाथ दूँगा। वे अपने षत्रुओं का षिकार बन कर लुट जायेंगे;
15) क्योंकि उन्होंने वहीं किया है, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और जिस दिन से उनके पूर्वज मिस्र से निकल कर आये थे, वे उस दिन से आज तक मेरा क्रोध भड़काते रहे हैं।''
16) मनस्से ने न केवल यूदा से पाप करवाया, जिससे वे वही करते रहे, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है, बल्कि उसने इतना निर्दोष रक्त बहाया कि उस से सारा येरुसालेम एक छोर से दूसरे छोर तक भर गया।
17) मनस्से का षेष इतिहास, उसके कार्य-कलाप और उसके सारे पापकर्मों का वर्णन यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
18) मनस्से अपने पितरों से जा मिला और अपने महल के बगीचे मे दफ़नाया गया। उसका पुत्र आमोन उसकी जगह राजा बना।
19) जब आमोन राजा बना, तो वह बाईस वर्ष का था। उसने येरुसालेम में दो वर्ष तक षासन किया। उसकी माता का नाम मषुल्लेमेत था। वह योटबावासी हारूस की पुत्री थी।
20) आमोन ने अपने पिता मनस्से की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
21) उसने अपने पिता के सब कर्मो का अनुसरण किया। वह उन देवमूर्तियों की पूजा और दण्डवत् करता था, जिनकी उपासना उसके पिता ने की थी।
22) उसने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईष्वर का परित्याग किया और वह प्रभु के मार्ग पर नहीं चलता था।
23) आमोन के सेवकों ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा और राजा को उसके महल में ही मार डाला।
24) फिर देष की जनता ने उन सब को मार डाला, जिन्होंने राजा आमोन के विरुद्ध षड्यन्त्र रचा था और उसके स्थान पर उसके पुत्र योषीया को राजा बनाया।
25) आमोन का षेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
26) वह उज्+ज+ा के बगीचे में अपनी क़ब्र में दफ़नाया गया। उसका पुत्र योषीया उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 22

1) जब योषीया राजा बना, तो उसकी उम्र आठ वर्ष थी। उसने येरुसालेम में इकतीस वर्ष तक षासन किया। उसकी माता का नाम यदीदा था। वह बोसकतवासी अदाया की पुत्री थी।
2) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है। वह अपने पूर्वज दाऊद के मार्ग पर चलता रहा और उस से रंचमात्र भी विचलित नहीं हुआ।
3) राजा योषीया के षासन के अठारहवें वर्ष राजा ने असल्या के पुत्र और मषुल्लाम के पौत्र, सचिव षाफ़ान को यह आज्ञा दे कर प्रभु के मन्दिर में भेजा,
4) ÷÷प्रधानयाजक हिलकीया के पास जाओ और कहो कि वह प्रभु के मन्दिर में लाये हुए और द्वारपालों द्वारा एकत्रित किये हुए द्रव्य का हिसाब कर ले।
5) वह प्रभु के मन्दिर में हो रहे काम का निरीक्षण करने वाले कर्मचारियों को दिया जाये, जिससे वे उससे प्रभु के मन्दिर की मरम्मत करने वाले मज+दूरों- ÷
6) बढ़इयों, कारीगरों, मिस्त्रियों-को वेतन चुकायें। वे उस से मन्दिर की मरम्मत के लिए लकड़ी और गढ़े पत्थर खरीद लें।
7) वह द्रव्य जिनके सुपुर्द किया गया है, उन लोगों से कोई हिसाब न लिया जाये; क्योंकि वे लोग अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं।''
8) प्रधानयाजक हिलकीया ने सचिव षाफ़ान से कहा, ÷÷मुझे प्रभु के मन्दिर में संहिता का ग्रन्थ मिला है''। हिलकीया ने षाफ़ान को वह ग्रन्थ दिया और इसने उसे पढ़ा।
9) इसके बाद सचिव षाफ़ान ने राजा के पास जा कर कहा ÷÷आपके सेवकों ने प्रभु के मन्दिर की चॉंँदी गला कर उसे उन कारीगरों को दिया जो प्रभु के मन्दिर में हो रहे काम का निरीक्षण करते हैं''।
10) सचिव षाफ़ान ने राजा से यह भी कहा कि याजक हिलकीया ने मुझे एक ग्रन्थ दिया है। शफ़ान ने उसे राजा को पढ़ कर सुनाया।
11) जब राजा ने सुना कि संहिता के ग्रन्थ में क्या लिखा है, तो उसने अपने वस्त्र फाड़ कर
12) याजक हिलकीया, षाफ़ान के पुत्र कहीक़ाम, मीकाया के पुत्र अकबोर, सचिव षाफ़ान और अपने दरबारी असाया को यह आदेष दिया,
13) ÷÷तुम लोग जाओ। जो ग्रन्थ हमें मिल गया है, उसके विषय में मेरी, जनता और समस्त यूदा की ओर से प्रभु से परामर्श करो। हमारे पुरखों ने उस ग्रन्थ की आज्ञाओं का पालन नहीं किया और उस में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार आचरण नहीं किया, इसलिए प्रभु का बड़ा क्रोध हम पर भड़क उठा।''
14) इसके बाद याजक हिलकीया, अहीकाम, अकबोर, षाफ़ान और असाया को साथ ले कर नबिया हुल्दा के पास गया। वह वस्त्रागार के प्रबन्धक षल्लू की पत्नी थी, जो तिकवा का पुत्र और हरहस का पौत्र था। उस समय वह येरुसालेम के नये मुहल्ले में रहती थी।
15) उसने उनके पूछने पर उन्हें यह उत्तर दिया, ÷÷प्रभु, इस्राएल के ईष्वर का कहना हैः तुम उस मनुष्य से, जिसने तुम्हें मेरे यहाँ भेजा है, कहो कि
16) प्रभु का यह कहना है- देखो, मैं इस स्थान पर और इसके निवासियों पर उस ग्रन्थ के उन सब वचनों के अनुसार, जिन्हें यूदा के राजा ने पढ़ा है, विपत्तियाँ ढाहूँगा;
17) क्योंकि उन लोगों ने मेरा परित्याग किया, अन्य देवताओं को धूप चढ़ायी और अपने हाथ की बनायी हुई देवमूर्तियों द्वारा मेरा क्रोध प्रज्वलित किया। मेरे क्रोध की अग्नि इन स्थान पर भड़क उठेगी और वह नहीं बुझेगी।
18) यूदा के राजा से, जिसने तुम्हें प्रभु से पूछने के लिए यहाँ भेजा है, यह कहोः प्रभु, इस्राएल के ईष्वर का कहना हैः तुमने जो बाते सुनी हैं, उनके विषय में वह कहता है-
19) जब तुमने सुना कि मैंने इस स्थान और इसके निवासियों के विरुद्ध यह कहा कि वे अभिषप्त हो जायेंगे और उनका सर्वनाष हो जायेगा, तो तुमने हृदय से पष्चत्ताप किया, तुम प्रभु के सामने दीन बने और अपने वस्त्र फाड़ कर मेरे सामने रोते रहे। इसलिए मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी
20) और मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों से मिलाऊँगा और तुम अपनी क़ब्र में षान्तिपूर्वक दफ़नाये जाओगे। तुम्हारी आँखें वे सब विपत्तियाँ नहीं देखेंगी, जिन्हें मैं इस स्थान पर ढाहने जा रहा हूँ।'' तब उन्होंने जा कर राजा को इसकी सूचना दी।

अध्याय 23

1) राजा ने यूदा और येरुसालेम के नेताओं को बुला भेजा और वे उसके पास एकत्र हो गये।
2) राजा प्रभु के मन्दिर गया। यूदा के सब पुरुष, येरुसालेम के सब निवासी, याजक और नबी, और छोटों से ले कर बड़ों तक, सभी लोग राजा के साथ थे। उसने विधान का ग्रन्थ, जो प्रभु के मन्दिर में पाया गया था, पूरा-पूरा पढ़ सुनाया।
3) राजा मंच पर खड़ा हो गया और उसने प्रभु के सामने यह प्रतिज्ञा की कि हम प्रभु के अनुयायी बनेंगे। हम सारे हृदय और सारी आत्मा से उसके आदेषों, नियमों और आज्ञाओं का पालन करेंगे और इस प्रकार इस ग्रन्थ में लिखित विधान की सब बातें पूरी करेंगे। सारी जनता ने विधान का आज्ञापालन करना स्वीकार किया।
4) इस पर राजा ने प्रधानयाजक हिलकीया, उपप्रधानयाजकों और फाटक पर पहरा देने वाले याजकों को आज्ञा दी कि वे प्रभु के मन्दिर से वह सब सामान हटा दें, जो बाल-देवता, अषेरा-देवी और आकाषमण्डल के नक्षत्रों के लिए बनाए गया था। उसने उन्हें येरुसालेम से बाहर,केद्रोन नाले के खेतों में जला दिया और उनकी राख बेतेल पहुँचवायी।
5) उसने उन मूर्तियों के पुजारियों को हटा दिया, जिन्हें यूदा के राजाओं ने नियुक्त किया था और जिन्होंने यूदा के नगरों तथा येरुसालेम के आसपास पहाड़ी पूजास्थानों में धूप चढ़ायी थी और उन को भी, जिन्होंने बाल-देवता, सूर्य, चन्द, नक्षत्रों और आकाषमण्डल के समस्त तारों को धूप दी थी।
6) उसने प्रभु के मन्दिर से अषेरा-देवी को हटवा दिया और उसे येरुसालेम से बाहर, केद्रोन नाले ले जा कर वहाँ जलवा दिया। उसे चूर-चूर कर उसकी राख जन-साधारण की कब्रों पर बिखेर दी।
7) उसने प्रभु के मन्दिर के पास वे निवास गिरवाये, जहाँ पूजा की आड में पुरुषगमन होता था और जिन में स्त्रियाँ अषेरा-देवी के लिए वस्त्र बुना करती थीं।
8) इसके बाद उसने यूदा के नगरों के सब याजकों को बुला भेजा और गेबा से ले कर बएर-षेबा तक के पूजास्थानों को भ्रष्ट किया, जहाँ याजकों ने धूप चढ़ायी थी। उसने फाटक के पास का वह पूजा स्थान तुड़वा दिया, जो नगर के अध्यक्ष योषुआ के फाटक के पास, नगर के फाटक के पष्चिम में था।
9) पहाड़ी पूजास्थानों के याजकों को येरुसालेम में प्रभु की वेदी की सेवा करने की अनुमति नहीं थी, फिर भी वे अपने सहयाजकों के साथ बेख़मीर रोटी खाते थे।
10) उसने बेन-हिन्नोम की घाटी के तोपेत (अग्निकुण्ड) को भ्रष्ट कर दिया, जिससे आगे कोई भी वहाँ मोलेक देवता के लिए अपने पुत्र या अपनी पुत्री की आहुति न दे।
11) उसने उन अष्वों को हटवा दिया, जिन्हें यूदा के राजाओं ने सूर्य की प्रतिष्ठा में प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में कंचुकी नेतान-मेलेक के प्रकोष्ठ के पास स्थापित किया था। उसने सूर्य के रथों को आग में जलवा दिया।
12) उसने वे वेदियाँ गिरवा दीं, जिन्हें यूदा के राजाओं ने आहाज+ के ऊपरी कमरे की छत पर बनवाया था और उन वेदियों को भी, जिन्हें मनस्से ने मन्दिर के दोनों प्रागणों में बनवाया था। उसने उन्हें वहाँ से हटवा दिया ओर उनका मलबा केद्रोन नाले में फिंकवा दिया।
13) राजा ने उन पहाड़ी पूजास्थानों को भी भ्रष्ट कर दिया, जो येरुसालेम के पूर्व में, मषहीत पर्वत के दक्षिण में थे और जिन्हें इस्राएल के राजा सुलेमान ने सीदोनियों की घृणित अष्तारता-देवी, मोआबियों के घृणित देवता कमोष और अम्मोनियों के घृणित देवता मिलकोम के लिए बनवाया था।
14) उसने पूजा-स्तम्भ तुड़वा दिये, अशेरा-देवी के खूँटों को कटवा डाला और उनके स्थानों पर मुनष्य की हड्डियों को बिखेर दिया।
15) उसने बेतेल की वेदी, वह पहाड़ी पूजास्थान तुड़वा दिया, जिसे नबाट के पुत्र यरोब-आम ने बनवाया और जिस से उसने इस्राएल से पाप करवाया था। उसने वह पहाड़ी पूजास्थान जलवा दिया, उसके पत्थर टुकडे-टुकडे कर दिये और अषेरा-देवी का खूँट भी जलवाया।
16) योषीया ने मुड़ कर वहाँ पर्वत पर अवस्थित क़ब्रें देखी और उनकी हड्डियाँ निकलवा कर उन्हें वेदी पर जलवाया और उसे भ्रष्ट कर दिया। इस प्रकार उसने प्रभु की वह वाणी पूरी की, जिसे भविष्यवक्ता ईष्वर-भक्त ने प्रकट किया था।
17) जब उसने पूछा कि यह समाधिस्थान, जिसे मैं यहाँ देख रहा हूँ, किसका है, तब नगर-निवासियों ने उसे उत्तर दिया,÷÷यह यूदा से आये हुए उस ईष्वर-भक्त की क़ब्र है, जिसने पहले से वह प्रकट किया, जो आप बेतेल की वेदी के साथ कर चुके हैं''।
18) इस पर उसने आज्ञा दी, ÷÷उसे रहने दो। कोई उसकी अस्थियों पर हाथ न लगाये।'' इसलिए उन्होंने उसकी और समारिया से आये नबी की अस्थियाँ सुरक्षित रहने दीं।
19) योषीया ने समारिया के नगरों के उन सब पूजास्थानों को गिरवाया और भ्रष्ट कर दिया, जिन्हें इस्राएल के राजाओं ने बनवाया था और जिनके कारण प्रभु का कोप प्रज्वलित हो उठा था। उसने बेतेल के साथ जो किया, वही इनके साथ भी किया।
20) उसने वहाँ के सब पहाड़ी पूजास्थानों के याजको को वेदियों पर मरवा डाला और उन पर मनुष्य की हड्डियाँ जलवायीं। इसके बाद वह येरुसालेम लौट गया।
21) अब राजा ने सब लोगो को आज्ञा दी, ÷÷प्रभु, अपने ईष्वर के आदर में पास्का-पर्व ठीक उस रीति से मनाओ, जैसा संहिता-ग्रन्थ में लिखा है''।
22) इस्राएल में न्याय करने वाले न्यायकर्ताओं के काल के बाद और इस्राएल एवं यूदा के राजाओं के षासनकाल में पास्का-पर्व इस प्रकार नहीं मनाया गया था।
23) राजा योषीया के अठारहवें वर्ष येरुसालेम में प्रभु के आदर में इस प्रकार पास्क-पर्व मनाया गया।
24) योषीया ने यूदा और येरुसालेम से भूत-पे्रत साधने वालों, सगुन विचारने वालों, गृहदेवताओं और धृणित देवमूर्तियों को निकाल दिया, जिससे संहिता के षब्द पूरे हो जायें, जो याजक हिलकीया द्वारा प्रभु के मन्दिर में पाये ग्रन्थ में लिखे हुए हैं।
25) न योषीया के पहले और न उसके बाद कभी कोई ऐसा राजा हुआ, जो उसकी तरह अपने सम्पूर्ण हृदय अपनी सम्पूर्ण आत्मा और अपनी सारी षक्ति से मूसा की संहिता के अनुसार प्रभु की ओर अभिमुख हुआ।
26) इतना होने पर भी प्रभु की कोपाग्नि षान्त नहीं हुई, जो मनस्से के अपराधों के कारण यूदा के विरुद्ध भड़क उठी थी।
27) इसलिए प्रभु ने कहा, ÷÷जैसे मैंने इस्राएल को अपने सामने से दूर किया, वैसे ही मैं यूदा को अपने सामने से दूर करूँगा और मैं येरुसालेम का परित्याग करूँगा, इस नगर को, जिसे मैंने चुना और इस मन्दिर को, जिसके विषय में मैंने कहा- मेरा नाम यहाँ विद्यमान रहेगा''।
28) योषीया का षेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
29) उसके षासनकाल में मिस्र का राजा फ़िराउन नको अस्सूर के राजा की सहायता करने फ़रात नदी की ओर बढ़ा। राजा योषीया उसका सामना करने निकला, लेकिन फ़िराउन नको ने उसे देखते ही मगिद्दो के पास उसे मार गिराया।
30) उसके सेवक उसके षव को रथ में रख कर मगिद्दो से येरुसालेम ले गये और उसकी क़ब्र में उसे दफ़ना दिया। देष की जनता ने योषीया के पुत्र यहोआहाज+ का अभिषेक किया और उस को अपने पिता के स्थान पर राजा बनाया।
31) जब यहोआहाज+ राजा बना, तो वह तेईस वर्ष का था। उसने येरुसालेम में तीन महीने तक षासन किया। उसकी माता का नाम हमूटल था। वह लिबनावासी यिरमया की पुत्री थी।
32) उसने अपने पूर्वजों की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
33) फ़िराउन नको ने हमात देष के रिबला में उसे बन्दी बना कर येरुसालेम के राजपद से उतार दिया और देष पर सौ मन चाँदी ओर एक मन सोने का कर लगाया।
34) तब फ़िराउन नको ने योषीया के पुत्र एलीयाकीम को उसके पिता योषीया के स्थान पर राजा बनाया और उसका नाम बदल कर यहोयाकीम कर दिया। वह यहोआहाज को मिस्र ले गया, जहाँॅं उसकी मृत्यु हो गयी।
35) यहोयाकीम ने फ़िराउन को उसके आदेष के अनुसार चाँदी और सोना दिया, लेकिन उसने देष पर कर लगा कर यह द्रव्य वसूल किया। उसने देष में हर एक से उसके सामर्थ्य के अनुसार चाँदी-सोना ले लिया और उसे फ़िराउन को दे दिया।
36) जब यहोयाकीम राजा बना, तो वह पच्चीस वर्ष का था। उसने येरुसालेम में ग्यारह वर्ष तक षासन किया। उसकी माता का नाम जबीदा था। वह रूमावासी यदाया की पुत्री थी।
37) उसने अपने पूर्वजों की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।

अध्याय 24

1) उसके षासनकाल में बाबुल का राजा नबूकदनेज+र ने यूदा पर आक्रमण किया। यहोयाकीम तीन वर्ष तक उसके अधीन रहा। इसके बाद उसने उसके विरुद्ध विद्रोह किया।
2) तब प्रभु ने उसके विरुद्ध खल्दैयी, अरामी, मोआबी और अम्मोनी लुटेरों के दल भेजे, जिन्होंने यूदा का विनाष करने के लिए उस पर आक्रमण किया। यह प्रभु के उस कथन के अनुसार हुआ, जिसे उसने अपने सेवकों, नबियों, द्वारा घोषित किया था।
3) यह निष्चय ही प्रभु के आदेष के अनुसार हुआ, जिससे यूदा उसके सामने से दूर किया जाये और मनस्से के पापाचरण
4) और उसके द्वारा बहाये निर्दोष रक्त के कारण भी; क्योंकि उसने येरुसालेम को निर्दोष रक्त से भर दिया। प्रभु यह अपराध क्षमा नहीं करना चाहता था।
5) यहोयाकीम का षेष इतिहास और उसका कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
6) यहोयाकीम अपने पूर्वजों से जा मिला और उसका पुत्र यहोयाकीन उसकी जगह राजा बना।
7) मिस्र का राजा युद्ध करने के लिए फिर अपने देष से नही निकला, क्योंकि बाबुल के राजा ने मिस्र के नाले से ले कर फ़रात नदी तक का सारा क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था, जो पहले मिस्र के राजा के अधीन था।
8) यहोयाकीन अट्ठारह वर्ष की उम्र में राजा बना और उसने येरुसालेम में तीन महीने तक षासन किया। उसकी माता का नाम नहुष्ता था और वह येरुसालेमवासी एल्नातान की पुत्री थी।
9) यहोयाकीन ने अपने पिता की तहर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
10) उस समय बाबुल के राजा नबूकदनेज+र के सेनापतियों ने येरुसालेम पर आक्रमण किया और उसे चारो आरे से घेर लिया।
11) जब उसके सेनापति येरुसालेम का घेरा डाल चुके थे, तो बाबुल का राजा नबूकदनेज+र स्वयं पहुँचा
12) और यहोयाकीन ने अपनी माता, अपने दरबारियों, पदाधिकारियों और खो+जों के साथ बाबुल के राजा के सामने आत्मसमर्पण किया। बाबुल के राजा ने उसे बन्दी बनाया। यह नबूकदनेज+र के राज्यकाल का आठवाँ वर्ष था।
13) वह प्रभु के मन्दिर और राजमहल की सब बहुमूल्य वस्तुएँ उठा कर ले गया, जैसा कि प्रभु ने पहले से कहा था। उसने सोने की वह सब सामग्री तोड़ डाली, जिसे इस्राएल के राजा सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए बनवाया था।
14) वह येरुसालेम के सब पदाधिकारियों और सैनिकों को-कुल मिला कर दस हज+ार लोगों को सब कारीगरों और लोहारों के साथ बन्दी बना कर ले गया। ÷देष में केवल दरिद्र जनता रह गयी।
15) वह यहोयाकीन को बाबुल ले गया। वह राजा की माता को, उसकी पत्नियों, ख़ोजो और देष के प्रतिष्ठित लोगों को भी येरुसालेम से बाबुल ले गया।
16) सात हज+ार सैनिक, एक हज+ार कारीगर और लोहार-जितने भी लोग युद्ध के योग्य थे- सब बाबुल के राजा द्वारा निर्वासित किये गये।
17) बाबुल के राजा ने यहोयाकीन के स्थान पर उसके चाचा मत्तन्या को राजा के रूप में नियुक्त किया और उसका नाम बदल कर सिदकीया रखा।
18) जब सिदकीया राजा बना, तो था इक्कीस वर्ष का था। उसने येरुसालेम में ग्यारह वर्ष तक षासन किया। उसकी माता का नाम हमूटल था। वह लिबनावासी यिरमया की पुत्री थी।
19) सिदकीया ने यहोयाकीन की तरह वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
20) येरुसालेम और यूदा पर प्रभु इतना क्रुद्ध था कि उसने उन्हें अपने सामने से दूर करने का निष्चत किया। उस समय सिदकीया ने बाबुल के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया।

अध्याय 25

1) सिदकीया के राज्यकाल के नौवें वर्ष, दसवें महीने के दसवें दिन, बाबुल का राजा नबूकदनेज+र अपनी समस्त सेना के साथ येरुसालेम पर आक्रमण करने आया। उसने नगर के सामने षिविर डाला और उसे चारों ओर से घेर लिया।
2) यह घेराबन्दी सिदकीया के राज्यकाल के दसवें वर्ष तक बनी रही।
3) (३-४) उस वर्ष के चौथे महीने के नौवें दिन नगर की चारदीवारी में दरार की गयी; क्योंकि नगर में अकाल पड़ा था और खाने के लिए लोगों के पास कुछ नहीं रह गया था। यद्यपि खल्दैयी नगर के चारों ओर पड़े हुए थे, फिर भी सब सैनिक राजकीय उद्यान के पास की दो दीवारों के बीच वाले फाटक से, रात को, नगर से बाहर निकले और अराबा की ओर भाग गये।
5) खल्दैयियो की सेना ने राजा का पीछा किया और उसे येरीख़ो के मैदान में घेर लिया। उस समय तक उसकी सारी सेना तितर-बितर हो गयी थी।
6) खल्दैयियों ने राजा को पकड़ कर रिबला में बाबुल के राज के सामने उपस्थित किया। वहाँ नबूकदनेज+र ने सिदकीया को दण्डाज्ञा दी।
7) और उसके पुत्रों को अपने सामने मरवा डाला। इसके बाद उसने सिदकीया की आँखें निकलीं और उसे काँसे की बेड़ियों से बाँध कर बाबुल भेज दिया।
8) बाबुल के राजा नबूकदनेज+र के राज्य-काल के उन्नीसवें वर्ष, पॉँचवें महीने के सातवें दिन, बाबुल के राजा के सेनापति और उसके अंगरक्षकों के नायक नबूज+र अदान ने येरुसालेम में प्रवेष किया।
9) उसने प्रभु का मन्दिर, राजा का महल और येरुसालेम के सब घर जला दिये। उसने येरुसालेम के सब बडे+ भवन भस्म कर दिये।
10) अंगरक्षकों के नायक के साथ जो खल्दैयी सेना आयी थी, उसने येरुसालेम की चारदीवारी गिरा दी।
11) नगर में जो निवासी रह गये थे, जो लोग बाबुल के राजा के समर्थक बन गये थे और जो भी कारीगर षेष रह गये थे, उन सबों को अंगरक्षकों के नायक नबूज+रअदान ने निर्वासित किया।
12) उसने दाखबारियों और खेतों में काम करने लिए जनसाधारण के कुछ ही लोगों को छोड़ दिया।
13) खल्दैयियों ने प्रभु के मन्दिर के कॉँसे के खम्भे, ठेले और काँँसे का हौज+ टुकडे-टुकडे+ कर दिये और उनका काँसा बाबुल ले गये।
14) वे पात्र, फावड़ियाँ, कैंचियाँ, कलछियाँ और काँसे के सब सामान ले गये, जो मन्दिर की सेवा के काम आते थे।
15) अंगरक्षकों का नायक लोबान के पात्र, कटोरे और वह सब कुछ, जो सोने और चाँदी का था, ले गया।
16) सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए जो दो खम्भे, हौज+ और ठेले बनवाये थे, उनके काँसे का वज+न इतना अधिक था कि वह तौला नहीं जा सकता था।
17) हर खम्भे की ऊँचाई अठारह हाथ थी और उसके ऊपर तीन हाथ ऊँचा काँसे का षीर्ष था। स्तम्भ-षीर्ष के चारों ओर काँसे की जाली और अनार थे।
18) अंगरक्षकों के नायक ने प्रधानयाजक सराया, दूसरे याजक सफ़न्या और तीन द्वारपालों को,
19) एक पदाधिकारी को, जो सैनिकों का प्रधान था और राजा के पाँच मं+त्रियों को भी, जो उस समय नगर में उपस्थित थे, बन्दी बनाया और इसके अतिरिक्त सेनापति के सचिव को, जिसने लोगों को सेना में भरती किया था और देष के साठ व्यक्तियों को, जो उस समय नगर में उपस्थित थे।
20) अंगरक्षकों के नायक नबूज+रअदान ने उन्हें बाबुल के राजा के पास रिबला भेजा दिया।
21) बाबुल के राजा ने उन्हें हमात प्रान्त के रिबला मे मरवा डाला। इस प्रकार यूदा के लोगों को अपने देष से निर्वासित किया गया।
22) बाबुल के राजा नबूकदनेज+र ने अहीराम के पुत्र और षाफ़ान के पौत्र गदल्या को उन लागों पर राज्यपाल नियुक्त किया, जिन्हें उसने यूदा में छोड़ दिया था।
23) जैसे ही सब सेनापतियों और सैनिकों ने सुना कि बाबुल के राजा ने गदल्या को राज्यपाल नियुक्त किया है, वैसे ही वे, अपने सैनिकों के साथ, गदल्या के पास मिस्पा आये। उनके ये नाम थे- नतन्या का पुत्र इसमाएल कारेअह का पुत्र योहानान, नटोफ़ावासी तनहुमेत का पुत्र सराया और माकावंषी का पुत्र याजन्या।
24) गदल्या ने उन्हें और उनके सैनिकों को षपथपूर्वक विष्वास दिलाया कि तुम खल्दैयी पदाधिकारियों से मत डरो। तुम बाबुल के राजा के अधीन हो कर इस देष में निवास करो। तभी तुम्हारा कल्याण होगा।
25) लेकिन सातवें महीने में नतन्या का पुत्र, एलीषामा का पौत्र एसमाएल, जो राजा के घराने का था, दस आदमियों का साथ ले कर आया और गदल्या तथा मिस्पा में उसके साथ के यहूदियों और खल्दैयियों पर आक्रमण कर उनका वध किया।
26) इसके बाद यूदा के सब छोटे-बडे+ लोग और सभी सेनाध्यक्ष भाग कर मिस्त्र चले गये, क्योंकि वे खल्दैयियों से डरते थे।
27) यूदा के राजा यहोयाकीन के निर्वासन के सैंतीसवें वर्ष, बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन, बाबुल के राजा एवील- मरोदाक ने अपने षासन के प्रथम वर्ष में यूदा के राजा यहोयाकीन को क्षमा कर दिया और उसे बन्दीगृह से मुक्त कर दिया।
28) उसने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया और बाबुल में उसके साथ रहने वाले राजाओं में उसे सवोच्च आसन दिया।
29) यहोयाकीन ने कै+दियों-जैसे अपने वस्त्र उतार दिये और वह जीवन भर राजा के यहॉंँ भोजन करता रहा।
30) वह जब तक जीता रहा, तब तक उसे राजा से प्रतिदिन दैनिक भत्ता मिलता रहा।