पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

राजाओं का पहला ग्रन्थ ( I Kings )

अध्याय 1

1) राजा दऊद बूढ़ा और बड़ी उम्र का हो गया था। कपड़े ओढ़ाये जाने पर भी वह गरमाता नहीं था।
2) इसलिए उसके सेवकों ने उस से कहा, ÷÷हमारे स्वामी और राजा के लिए एक ऐसी कन्या ढूँढ़ी जाये, जो राजा की सेवा-सुश्रूषा करे। यदि वह उनकी गोद में सोयेगी, तो हमारे राजा गरमायेंगे।''
3) इसलिए इस्राएल के सब प्रान्तों में एक सुन्दर कन्या की खोज की गयी। शूनेम में अबीशग मिली और वह राजा के पास लायी गयी।
4) वह कन्या बड़ी सुन्दर थी। उसने राजा की सेवा-सुश्रूषा की, परन्तु राजा का उस से संसर्ग नहीं हुआ।
5) हग्गीत के पुत्र अदोनीया ने सिर उठाया और कहा कि मैं ही राजा बनूँगा। उसने अपने लिए रथ और घोड़े तैयार करवाये और अपने सामने दौड़ने के लिए पचास आदमी।
6) (उसके पिता ने उसे कभी यह कहते हुए नहीं डाँटा कि तुम ऐसा क्यों करते हो। वह बहुत सुन्दर था और वह अबसालोम के बाद उत्पन्न हुआ था।)
7) उसने सरूया के पुत्र योआब और याजक एबयातर से बातचीत की थी और उन्होंने अदोनीया का समर्थन किया।
8) परन्तु याजक सादोक और यहोयादा के पुत्र बनाया, नबी नातान, शिमई, रेई और दाऊद के वीर योद्धाओं ने अदोनीया का साथ नहीं दिया।
9) एक दिन अदोनीया ने एन-रोगेल के झरने की बग़ल में, ज+ोहेलेथ के पत्थर के पास भेड़ों, बैलों और मोटे बछड़ों की बलि चढ़ायी। उसने अपने सब राजकुमार भाइयों और यूदा के सब राजकीय अधिकारियों को निमन्त्रित किया,
10) लेकिन नबी नातान, बनाया, वीर योद्धाओं और अपने भाई सुलेमान को निमन्त्रित नहीं किया।
11) तब नातान ने सुलेमान की माँ बत-शेबा से कहा, ÷÷आपने सुना नहीं कि हग्गीत का पुत्र अदोनीया राजा बन गया है और हमारे स्वामी दाऊद को इसका पता भी नहीं, है?
12) अब मैं आप को ऐसी सलाह दूँगा, जिससे आप अपने और अपने पुत्र सुलेमान के प्राण बचा सकें।
13) आप तुरन्त राजा दाऊद के पास जा कर उन से कहें, ÷मेरे स्वामी और राजा! क्या आपने अपनी दासी को यह शपथ नहीं दी कि तुम्हारा पुत्र सुलेमान मेरे बाद राजा बनेगा और मेरे सिंहासन पर बैठेगा? अब अदोनीया क्यों राजा बन बैठा है?'
14) और जब आप राजा से बात करती होंगी, तो मैं भीतर आ जाऊँगा और आपकी बातों का समर्थन करूँगा।
15) बत-शेबा राजा के पास उसके कमरे में गयी। (राजा अब बहुत बूढ़ा हो चुका था और शूनेम की अबीशग राजा की सेवा कर रही थी।)
16) बत-शेबा ने झुक कर राजा को प्रणाम किया। राजा ने पूछा, ÷÷तुम क्या चहती हो?''
17) उसने उस से कहा, ÷÷मेरे स्वामी! आपने पुभु, अपने ईश्वर के नाम पर अपनी इस दासी को शपथपूर्वक वचन दिया था कि तुम्हारा पुत्र सुलेमान मेरे बाद राजा बनेगा और मेरे सिंहासन पर बैठेगा;
18) लेकिन अब अदोनीया राजा बन बैठा है और मेरे स्वामी और राजा को इस बात का पता नहीं।
19) उसने बहुत-से बैलों, मोटे बछड़ों और भेड़ों की बलि चढ़ायी और सब राजकुमारों, याजक एबयातर और सेना पति योआब को भोज में निमन्त्रित किया है, परन्तु उसने आपके दास सुलेमान को निमन्त्रण नहीं दिया।
20) मेरे स्वामी, राजा! सब इस्राएलियों की आँखें आप पर टिकी हुई हैं। वे आप से जानना चाहते हैं कि मेरे स्वामी और राजा के सिंहासन पर उनके बाद कौन बैठेगा?
21) नहीं तो मेरे स्वामी और राजा के अपने पितरों के पास चले जाने के बाद मेरे और मेरे पुत्र सुलेमान के साथ अपराधियों-जैसा व्यवहार किया जायेगा।''
22) वह राजा से इस प्रकार बात कर ही रही थी कि नबी नातान आ गया।
23) राजा को यह सूचना दी गयी कि नबी नातान आया है। उसने राजा के सामने आ कर और पृथ्वी पर सिर नवा कर प्रणाम किया।
24) फिर नातान ने कहा, ÷÷मेरे स्वामी और राजा! क्या आपने यह घोषित किया है कि अपने बाद अदोनीया राजा बनेगा और आपके सिंहासन पर बैठेग़ा?
25) क्योंकि आज अदोनीया ने बहुत-से बैलों, मोटे बछड़ों और भेड़ों की बलि चढ़ायी और सब राजकुमारों, सेनाध्यक्षों और याजक एबयातर को निमन्त्रित किया है। अब वे उसके साथ खाते-पीते और कहते हैं- राजा अदोनीया की जय!
26) परन्तु उसने न तो मुझे, आपके इस दास को, न याजक सादोक को, न यहोयादा के पुत्र बनाया को निमन्त्रित किया और न आपके दास सुलेमान को।
27) यदि मेरे स्वामी और राजा ने ऐसा प्रबन्ध किया है, तो आपने अपने सेवकों को यह क्यों नहीं बताया कि मेरे स्वामी और राजा के बाद सिंहासन पर कौन बैठेगा?''
28) इसके उत्तर में राजा दाऊद ने यह आदेश दिया, ÷÷बत-शेबा को मेरे पास बुलाओ।'' वह राजा के पास आयी।
29) जब वह राजा के पास आयी, तब राजा ने शपथपूर्वक उस से कहा, ÷÷उस प्रभु की शपथ, जिसने मुझे सब प्रकार की विपत्तियों से बचाया है!
30) मैंने तुम्हारे लिए इस्राएल के ईश्वर की शपथ खायी थी कि मेरे बाद तुम्हारा पुत्र सुलेमान राजा बनेगा और मेरे सिंहासन पर बैठेगा। आज मैं इसे पूरा कर दूँगा।''
31) इस पर बत-शेबा ने प्थ्वी तक सिर झुका कर और राजा को नमन कर कहा, ÷÷मेरे स्वामी राजा दाऊद चिरायु हों।''
32) इसके बाद दाऊद ने यह आदेश दिया, ÷÷याजक सादोक, नबी नातान और यहोयादा के पुत्र बनाया को मेरे पास बुलाओ।'' वे राजा के सामने उपस्थित हुए।
33) राजा ने उन्हें आज्ञा दी, ÷÷अपने स्वामी के सेवकों को अपने साथ ले जा कर मेरे पुत्र सुलेमान को मेरे निजी खच्चर पर बिठाओ और उसे गिहोन कुएँ के पास ले जाओ।
34) वहाँ याजक सादोक और नबी नातान उसका इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक करें; फिर तुम सिंगा बजवाओ और घोषित करो- राजा सुलेमान की जय!
35) इसके बाद तुम उसके साथ आओ और वह मेरे सिंहासन पर बैठेगा और मेरे स्थान में राजा होगा; क्योंकि मैंने इसे इस्राएल और यूदा का शासक नियुक्त किया है।''
36) यहोयादा के पुत्र बनाया ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷ऐसा ही होगा। यह प्रभु, मेरे स्वामी और राजा के ईश्वर का कथन है।
37) जैसे प्रभु ने मेरे स्वामी और राजा का साथ दिया, वैसे ही वह सुलेमान का भी साथ दे और उनका सिंहासन मेरे स्वामी और राजा दाऊद के सिंहासन से भी अधिक महान् बनाये।''
38) इसलिए याजक सादोक, नबी नातान और यहोयादा का पुत्र बनाया करेतियों और पलेतियों के साथ नीचे उतरे और वे सुलेमान को राजा दाऊद के खच्चर पर बिठा कर गिहोन के पासे ले गये।
39) याजक सादोक ने तम्बू से तेल-भरा सींग निकाल कर सुलेमान का अभिषेक किया। इस पर सिंगा बजाया गया और सब लोगों ने ऊँचे स्वर से कहा, ÷÷राजा सुलेमान की जय!''
40) इसके बाद सब लोग उसके पीछे फिर ऊपर आ गये। बाँसुरियाँ बजने लगीं और लोगों ने इतना जयजयकार किया कि पृथ्वी गूँज उठी।
41) भोज समाप्त होने पर था, जब अदोनीया और उसके सब अतिथियों ने यह आवाज+ सुनी। सिंगे की ध्वनि सुन कर योआब ने पूछा, ÷÷नगर में यह कोलाहल क्यों?''
42) वह बोल ही रहा था कि याजक एबयातर का पुत्र योनातान आ पहुँचा। अदोनीया ने उस से कहा, ÷÷आओ, तुम सुयोग्य व्यक्ति हो और अवश्य ही अच्छा समाचार लाये हो''।
43) लेकिन योनातान ने अदोनीया को उत्तर दिया, ÷÷जी नहीं; हमारे स्वामी राजा दाऊद ने सुलेमान को राजा बनाया है।
44) राजा ने याजक सादोक, नबी नातान और यहोयादा के पुत्र बनाया तथा करेतियों और पलेतियों को उसके साथ भेजा।
45) उन्होंने उसे राजा के खच्चर पर बिठाया और जब याजक सादोक और नबी नातान ने उसका गिहोन के पास राजा के रूप में अभिषेक किया, तो इसके बाद वे वहाँ से आनन्द मनाते हुए ऊपर चढ़े। इसी से नगर में कोलाहल हो रहा है। यह वही आवाज+ थी, जो आपने सुनी।
46) सुलेमान राजसिंहासन पर विराजमान हैं।
47) राजा के सेवक हमारे स्वामी राजा दाऊद को बधाइयाँ देने और यह कहने भी आये थे कि आपका ईश्वर सुलेमान का नाम आपके नाम से भी अधिक प्रसिद्ध और उनका सिंहासन आपके सिंहासन से भी अधिक महान् बनाये।
48) राजा ने भी अपनी शय्या पर लेटे हुए प्रभु को दण्डवत् किया और कहा, ÷÷प्रभु, इस्राएल का ईश्वर धन्य है, जिसने आज मुझे ऐसा सौभाग्य प्रदान किया है कि मैं अपनी आँखों से अपने सिंहासन पर अपने उत्तराधिकारी को देख रहा हूँ।''
49) यह सुन अदोनीया के सभी अतिथि डर गये और उठ कर चले गये।
50) अदोनीया भी सुलेमान से डरता था; इसलिए उसने उठ कर और जा कर वेदी के कंगूरों को पकड़ लिया।
51) सुलेमान को यह सूचना दी गयी कि राजा सुलेमान के डर के कारण अदोनीया ने यह कहते हुए वेदी के कंगूरों को पकड़ लिया है, ÷÷राजा सुलेमान आज मुझे शपथपूर्वक यह वचन दे कि वह अपने दास को तलवार से नहीं मारेगा।''
52) सुलेमान ने कहा, ÷÷यदि वह एक योग्य व्यक्ति की तरह आचरण करेगा, तो उसका बाल भी बाँका नहीं होगा। परन्तु यदि उस में कोई बुराई पायी गयी, तो उसकी मृत्यु हो जायेगी।''
53) इसके बाद राजा सुलेमान ने उसे वेदी पर से बुलवा भेजा। जब राजा सुलेमान के पास आ कर उसने प्रणाम किया, तो सुलेमान ने उस से कहा, ÷÷अपने घर जाओ।''

अध्याय 2

1) जब दाऊद के मरने का समय निकट आया, तो उसने अपने पुत्र सुलेमान को ये अनुदेश दिये,
2) ÷÷मैं भी दूसरे मनुष्यों की तरह मिट्टी में मिलने जा रहा हूँ। धीरज धरो और अपने को पुरुष प्रमाणित करो।
3) तुम अपने प्रभु-ईश्वर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करो। उसके बताये हुए मार्ग पर चलो; उसकी विधियों, आदेशों, आज्ञाओं और नियमों का पालन करो, जेसा कि मूसा की संहिता में लिखा हुआ है। तब तुम अपने सब कार्यों और उद्योगों में सफलता प्राप्त करोगे और
4) मुझे दी गयी प्रभु की यह प्रतिज्ञा पूरी हो जायेगी : ÷यदि तुम्हारे पुत्र ईमानदार हो कर मेरे सामने सारे हृदय और सारी आत्मा से सन्मार्ग पर चलते रहेंगे, तो इस्राएल के सिंहासन पर सदा ही तुम्हारा कोई वंशज विराजमान होगा।'
5) ÷÷तुम जानते हो कि सरूया के पुत्र योआब ने मेरे साथ क्या किया। उसने इस्राएल के दोनों सेनाध्यक्ष नेर के पुत्र अबनेर और येतेर के पुत्र अमासा के साथ क्या किया। उसने उनका वध किया और इस प्रकार उसने युद्ध के समय बहाये रक्त का प्रतिशोध शान्ति के समय लिया और निर्दोष रक्त बहा कर उस से अपना कमरबन्द तथा अपने पैरों के जूते दूषित किये।
6) तुम अपने विवेक से उसके साथ व्यवहार करो, किन्तु उसे दण्ड दिये बिना अधोलोक नहीं जाने दो।
7) गिलआदी बरजि+ल्लय के पुत्रों पर दया करो। वे उन लोगों के साथ रहें, जो तुम्हारी मेज+ पर भोजन करेंगे; क्योंकि जब मुझे तुम्हारे भाई अबसालोम के सामने से भागना पड़ा था, तो उन्होंने मेरे प्रति स्वामी भक्ति दिखायी।
8) तुम्हारे यहाँ गेरा का पुत्र शिमई भी है, जो बेनयामीन कुल के बहूरीम का निवासी है। जब मै महनयीम जा रहा था, तब उसने मुझे अभिशाप दिया था; परन्तु जब वह यर्दन के पास मुझ से मिलने आया था, तब मैंने प्रभु की शपथ खा कर उसे यह वचन दिया था कि मैं उसे तलवार से नहीं मारूँगा।
9) अब तुम उसे निर्दोष मत समझो। तुम अपने विवेक के अनुसार उसके साथ व्यवहार करो। उसके पके बालों को उसके रक्त से रंजित कर उसे अधोलोक उतरवाओ।''
10) दाऊद ने अपने पूर्वजों के साथ विश्राम किया और वह दाऊदनगर में क़ब्र में रखा गया।
11) दाऊद ने इस्राएल पर चालीस वर्ष तक राज्य किया- हेब्रोन में सात वर्ष तक और येरुसालेम में तैंतीस वर्ष तक।
12) सुलेमान अपने पिता दाऊद के सिंहासन पर बैठा और उसका राज्य सुदृढ़ होता गया।
13) हग्गीत का पुत्र अदोनीया सुलेमान की माँ बत-शेबा के यहाँ गया। बत-शेबा ने उस से पूछा, ÷÷क्या तुम शान्ति के अभिप्राय से आये हो?'' तब उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ शान्ति के अभिप्राय से''।
14) फिर उसने कहा, ÷÷मेरा आप से एक निवेदन है''। वह बोली, ÷÷कहो''।
15) तब उसने कहा, ÷÷आप जानती हैं कि राज्य मुझे मिलना चाहिए था और सब इस्राएली समझ रहे थे कि मैं ही राजा बनूँगा, परन्तु परिस्थिति बदल गयी। मेरे भाई को राज्याधिकार इसलिए मिला कि प्रभु की यही इच्छा थी।
16) अब मेरी आप से एक प्रार्थना है, उसे अस्वीकार न कीजिएगा।'' वह बोली, ÷÷कहो।''
17) इस पर वह कहने लगा, ÷÷कृपया राजा सुलेमान ने निवेदन कीजिए कि वह शूनेम की अबीशग के साथ मेरा विवाह करवा दें। वह आपकी बात नहीं टालेंगे।''
18) बत-शेबा ने उत्तर दिया, ÷÷अच्छा, मैं तुम्हारे विषय से राजा से बातचीत करूँगी।''
19) इसके बाद जब बत-शेबा राजा सुलेमान के पास अदोनीया के विषय में बात करने आयी, तब राजा उठ कर उसे मिलने आगे बढ़ा और उसे नमन किया। फिर सिंहासन पर बैठ कर राजमाता के लिए भी एक आसन मँगवाया, जिससे वह उसके दाहिने बैठ सके।
20) वह कहने लगी, ÷÷मेरा तुम से एक छोटा-सा निवेदन है। उसे अस्वीकार न करना।'' राजा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷माँ, बताओ न क्या चाहती हो? मैं उसे अस्वीकार नहीं करूँगा''।
21) वह बोली, ÷÷शूनेम की अबीशग का विवाह अपने भाई अदोनीया से करवाओ''।
22) लेकिन राजा सुलेमान ने अपनी माता को उत्तर दिया, ÷÷तुम अदोनीया के लिए शूनेम की अबीशग को क्यों माँगती हो? तुम उसके लिए मेरा राज्य ही क्यों नहीं माँग लेती? वह तो मेरा बड़ा भाई है और याजक एबयातर और सरूया का पुत्र योआब उसके पक्ष में हैं।''
23) इस पर राजा सुलेमान ने प्रभु का नाम ले कर यह शपथ खायी, ÷÷यदि अदोनीया की इस माँग के लिए उसे प्राणदण्ड न दिया जाये, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये।''
24) जिस प्रभु ने मुझे अपने पिता दाऊद के सिंहासन पर बैठने को नियुक्त किया और जिसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे लिए एक राजवंश की स्थापना की है, मैं उस प्रभु की शपथ खा कर कहता हूँ कि आज ही अदोनीया को प्राणदण्ड मिलेगा।''
25) राजा सुलेमान ने यहोयादा के पुत्र बनाया को उसका वध करने का आदेश दिया और उसने उस पर प्रहार कर उसे मार डाला।
26) तब राजा ने याजक एबयातर से कहा, ÷÷तुम अनातोत के अपने खेत चले जाओ। तुम प्राणदण्ड के योग्य हो, किन्तु मैं तुम्हें इसलिए प्राणदण्ड नहीं दूँगा कि तुमने मेरे पिता दाऊद के सामने प्रभु-ईश्वर की मंजूषा उठायी थी और वे सब कष्ट भोगे थे, जो मेरे पिता ने सहे थे।''
27) इस प्रकार सुलेमान ने एबयातर को प्रभु के याजकीय पद से हटा दिया। प्रभु का वह कथन पूरा हुआ, जो उसने शिलो में एली के घराने के विषय में कहा था।
28) जब योआब को यह समाचार मिला (योआब ने भी अदोनीया का पक्ष लिया था, किन्तु उसने अबसालोम का पक्ष नहीं लिया था,) तो उसने भाग कर प्रभु के तम्बू की वेदी के कंगूरो का पकड़ लिया।
29) राजा सुलेमान को यह सूचना दी गयी कि योआब प्रभु के तम्बू में भाग कर वेदी के पास खड़ा है। इस पर सुलेमान ने यह कहते हुए यहोयादा के पुत्र बनाया को भेजा कि तुम वहाँ जा कर उस को प्राणदण्ड दो।
30) प्रभु के तम्बू में आ कर बनाया ने उस से कहा, ÷÷राजा उन्हें बाहर आने का आदेश देते हैं।'' परन्तु उसने उत्तर दिया, ÷÷नहीं, मैं यही मरना चाहता हूँ''। बनाया राजा के पास यह उत्तर लाया।
31) तब राजा ने उसे आज्ञ दी, ÷÷तो उसने जैसा कहा है, वेसा ही करो। उसे मार कर दफ़नाओ। इस प्रकार योआब ने जो रक्त अकारण बहाया, उसका दोष मुझ से और मेरे पिता के घराने से दूर करो।
32) उसने जो रक्त बहाया, प्रभु उस से इसका बदला चुकाता है। मेरे पिता दाऊद के अनजान में उसने दो ऐसे पुरुषों पर आक्रमण कर उन्हें तलवार के घाट उतारा, जो उस से कहीं अधिक धार्मिक और योग्य थे, अर्थात् इस्राएल के सेनापति नेर के पुत्र अवनेर को और यूदा के सेनापति येतेर के पुत्र अमासा को।
33) उनके रक्तपात का दोष योआब और उसके वंशजों के सिर पर सदा लगा रहे; लेकिन दाऊद, उनके वंशजोें, उनके घराने और उनके सिंहासन को सदा-सर्वदा प्रभु की शान्ति मिलती रहे।''
34) तब यहोयादा का पुत्र बनाया गया और उसने उस प्रहार कर उसका वध किया। उसे उजाड़खण्ड के अपने ही घर में दफ़ना दिया गया।
35) राजा ने योआब के स्थान पर यहोयादा के पुत्र बनाया को सेनापति नियुक्त किया और राजा ने एबयातर का याजक पद सादोक को दे दिया।
36) इसके बाद रजा ने शिमई को बुला कर उस से कहा, ÷÷येरुसालेम में अपने लिए एक घर बनवाओ। यहीं रहो और यहाँ से कहीं मत जाओ।
37) अगर तुमने बाहर जाकर केद्रोन नाला पार किया, तो तुम्हें अवश्य प्राणदण्ड मिलेगा। तब तुम्हारे रक्तपात का दोष तुुम्हारे ही सिर पड़ेगा।''
38) शिमई ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷आपका कहना ठीक है। मेरे स्वामी, राजा ने जैसी आज्ञा दी है, आपका दास वैसा ही करेगा।'' शिमई बहुत दिनों तक येरुसालेम में रहा।
39) तीन साल बाद शिमई के दो दास गत के राजा माका के पुत्र आकीश के यहाँ भाग गये। जैसे ही शिमई को ख़बर मिली कि उसके दास गत में हैं,
40) तो वह उठ कर और अपने गधे को कस कर अपने दासों को ढूँढ़ने के लिए आकीश के पास गत गया और वह अपने दासों को गत से वापस ले आया।
41) सुलेमान को यह ख़बर मिली कि शिमई येरुसालेम से गत गया था और वहाँ से लोट आया है।
42) इसलिए राजा ने शिमई को बुलवा कर उस से कहा, ÷÷क्या मैंने तुम को प्रभु के नाम यह शपथ नहीं खिलायी थी और क्या मैंने यह चेतावनी नहीं दी थी कि यदि तुम कहीं बाहर् जाओगे, तो तुम्हें अवश्य प्राणदण्ड मिलेगा? तुमने उत्तर दिया था कि आपका कहना ठीक है, मैं आपकी आज्ञा मानूँगा।
43) अब तुमने प्रभु से की हुई शपथ क्यों तोड़ी और मेरी आज्ञा क्यों भंग की?''
44) फिर राजा ने शिमई से कहा, ÷÷तुम जानते हो कि तुमने मेरे पिता दाऊद के साथ कितनी बुराई की है। अब प्रभु तुम से इस बुराई का बदला चुकायेगा।
45) किन्तु राजा सुलेमान को आशीर्वादा मिलेगा और दाऊद का सिंहासन प्रभु के सामने सदा सुदृढ़ बना रहेगा।''
46) इसके बाद राजा ने यहोयादा के पुत्र बनाया को आदेश दिया। वह गया और उसने उस पर प्रहार कर उसे मार डाला। इस प्रकार राजसत्ता सुलेमान के हाथ में सुदृढ़ हो गयी।

अध्याय 3

1) सुलेमान मिस्र के राजा फ़िराऊन का दामाद बन गया। उसने फ़िराऊन की पुत्री से विवाह किया और जब तक उसने अपना महल, प्रभु का निवास और येरुसालेम की चारदीवारी नहीं बनवा ली, तब तक उसे दाऊदनगर में ही रखा।
2) लोग अब तक पहाड़ी पूजास्थानों पर उपासना किया करते थे, क्योंकि उस समय तक प्रभु के नाम पर कोई मन्दिर नहीं बनवाया गया था।
3) सुलेमान को प्रभु से प्रेम था और वह अपने पिता दाऊद के विधानों के अनुसार कार्य करता था; लेकिन वह पहाड़ी पूजास्थानों पर बलि चढ़ाता और धूप दिया करता था।
4) सुलेमान बलि चढ़ाने गिबओन गया, क्योंकि यह बलि चढ़ाने के मुख्य पहाड़ी थी। सुलेमान ने वहाँ की वेदी पर एक हज+ार होम बलियाँ चढ़ायीं।
5) गिबओन में प्रभु रात को सुलेमान को स्वप्न में दिखाई दिया। ईश्वर ने कहा, ÷÷बताओ, मैं तुम्हें क्या दे दूँ?''
6) सुलेमान ने यह उत्तर दिया, ÷÷तू मेरे पिता अपने सेवक दाऊद पर बड़ी कृपा करता रहा। वह सच्चाई, न्याय और निष्कपट हृदय से तेरे मार्ग पर चलते रहे, इसलिए तूने उन्हें एक पुत्र दिया, जो अब उनके सिंहासन पर बैठा है।
7) प्रभु! मेरे ईश्वर! तूने अपने इस सेवक को अपने पिता दाऊद के स्थान पर राजा बनाया, लेकिन मैं अभी छोटा हूँ। मैं यह नहीं जानता कि मुझे क्या करना चाहिए।
8) मैं यहाँ तेरी चुनी हुई प्रजा के बीच हूँ। यह राष्ट्र इतना महान् है कि इसके निवासियों की गिनती नहीं हो सकती।
9) अपने इस सेवक को विवेक देने की कृपा कर, जिससे वह न्यायपूर्वक तेरी प्रजा का शासन करे और भला तथा बुरा पहचान सके। नहीं तो, कौन तेरी इस असंख्य प्रजा का शासन कर सकता है?''
10) सुलेमान का यह निवेदन प्रभु को अच्छा लगा।
11) प्रभु ने उसे से कहा, ÷÷तुमने अपने लिए न तो लम्बी आयु माँगी, न धन-सम्पत्ति और न अपने शत्रुओं का विनाश।
12) तुमने न्याय करने का विवेक माँगा है। इसलिए मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा। मैं तुम को ऐसी बुद्धि और ऐसा विवेक प्रदान करता हूँ कि तुम्हारे समान न तो पहले कभी कोई था और न बाद में कभी कोई होगा।
13) और जो तुमने नहीं माँगा, मैं वह भी तुम्हें दे देता हूँ, अर्थात् ऐसी धन-सम्पत्ति तथा ऐसा ऐश्वर्य, जिससे कोई भी राजा तुम्हारी बराबरी नहीं कर पायेगा।
14) और यदि तुम अपने पिता दाऊद की तरह मेरे नियमों तथा आदेशों का पालन करते हुए मेरे मार्ग पर चलोगे, तो मैं तुम्हें लम्बी आयु प्रदान करूँगा।''
15) सुलेमान की नींद खुल गयी और उसने समझ लिया कि मैंने स्वप्न देखा है। येरुसालेम में लौट आने पर उसने प्रभु की मंजूषा के सामने होम बलियाँ और शान्ति-बलियाँ चढ़ायीं और अपने सब सेवकों को भोज दिया।
16) एक दिन दो वेश्याएँ राजा के सामने उपस्थित हुई।
17) पहली स्त्री ने कहा, ÷÷महाराज! हम - मैं और यह स्त्री- एक ही घर में रहती हैं। यह घर में ही थी, जब मुझे एक बच्चा हुआ।
18) मेरे प्रसव के तीन दिन बाद इस स्त्री को भी एक बच्चा हुआ। हम एक साथ थीं और हमारे साथ घर में कोई दूसरा नहीं था; केवल हम दोनों घर में थीं।
19) अब रात को इसका बच्चा मर गया, क्योंकि यह उस पर लेट गयी थी।
20) आधी रात को उठ कर वह मेरे बच्चे को मेर पास से उठा ले गयी, जब मैं, आपकी यह दासी सोयी हुई थी और उसे अपने गोद में रख लिया। फिर यह अपने मृत बच्चे को मेरी गोद में रख गयी।
21) जब मैं सबेरे अपने बच्चे को दूध पिलाने उठी, तो मैंने देखा वह मेरा पड़ा है। लेकिन जब अधिकं प्रकाश हो जाने पर मैंने उसकी ओर ठीक से देखा, तो मालुम हुआ कि यह बच्चा मेरा नहीं है।''
22) इस पर दूसरी स्त्री कहने लगी, ÷÷नहीं, मेरा बच्चा जीवित है। तुम्हारा बच्चा मरा है।'' पहली स्त्री ने कहा, ÷÷नहीं, तुम्हारा बच्चा मरा है। मेरा बच्चा जीवित है।'' इस प्रकार वे दोनों राजा के सामने झगड़ती रहीं।
23) इस पर राजा ने कहा, ÷÷यह कहती है कि मेरा बच्चा जीवित है और तेरा बच्चा मेरा है, और वह कहती है कि नहीं, तेरा बच्चा मरा है, और मेरा बच्चा जीवित है''।
24) तब राजा ने एक तलवार लाने की आज्ञा दी। तलवार राजा के पास लायी गयी।
25) तब राजा ने आदेश दिया, ÷÷इस जीवित बच्चे के दो टुकड़े कर दो और एक टुकड़ा इस को दे दो और दुसरा उस को''।
26) जिस स्त्री का बच्चा जीवित था, उसका हृदय वात्सल्य से भर गया और उसने राजा से कहा, ÷÷महाराज! जीवित बच्चे को उस को दे दीजिए, उसका वध मत कीजिए''। परन्तु दूसरी स्त्री ने कहा, ÷÷नहीं, वह न मेरा रहे, न तेरा। उसके दो टुकड़े कर दो।''
27) इस पर राजा ने यह निर्णय दिया, ÷÷जीवित बच्चा पहली स्त्री को दे दो, उसे मत मारो, क्योंकि वही उसकी माँ है''।
28) जब सारे इस्राएल ने राजा का निर्णय सुना, तब लोग आश्चर्यचकित हो उठे; क्योंकि उन्होंने देखा कि राजा में न्याय करने की ईश्वरीय प्रज्ञा है।

अध्याय 4

1) राजा सुलेमान सारे इस्राएल का शासक था।
2) उसके उच्च अधिकारी ये थे : सादोक का पौत्र अज+र्या याजक था।
3) शीशा के पुत्र एलीहोरेफ़ और अहीया सचिव थे। अहीलूद का पुत्र यहोशाफ़ाट अभिलेखी था।
4) यहोयादा का पुत्र बनाया सेनापति था। सादोक और एबयातेर याजक थे।
5) नातान का पुत्र अज+र्या प्रादेशिक शासकों का अध्यक्ष था। नातान का पुत्र ज+ाबूद याजक और राजा का मित्र था।
6) अहीशार महल का प्रबन्धक था। अबदा का पुत्र अदोनीराम बेगार करने वालों का निरीक्षक था।
7) समस्त इस्राएल में सुलेमान के बारह प्रादेशिक शासक थे, जो राजा और उसके घराने के लिए खाद्य-सामग्री जुटाते थे। साल में एक-एक महीने का प्रबन्ध एक-एक का करना पड़ता था।
8) उनके नाम ये थेः एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेश में बेन-हूर;
9) माकस, शअलबीम, बेत-शेमेश और एलोन बेत-हानान में बेन-देकर ;
10) अरूब्बोत में बेन-हेसेद (उसके क्षेत्र में सोको और हेफे+र का सारा प्रदेश भी था);
11) नाफ़त-दोर में बेन-अबीनादाव (सुलेमान की पुत्री टाफ़त उसकी पत्नी थी);
12) तानाक, मगिद्दो और सारे बेन-शान में, जो सारतान के पास और यिज+्रएल के नीचे है और बेत-शान से आबेत महोला तक, योकमआम के उस पार तक, अहीलूद का पुत्र बाना,
13) रामोत-गिलआद में बेन-गेबेर (उसके क्षेत्र में मनस्से के पुत्र याईर के गाँव भी थे, जो गिलआद में थे, तथा अरगोब प्रदेश, जो बाशान में है; कुल साठ परकोटे और काँसे की अरगलाओं वाले नगर);
14) महनयीम में इद्दो का पुत्र अहीनाबाद;
15) नफ़ताली में अहीमअस (सुलेमान की पुत्री बासमत उसकी पत्नी थी);
16) आशेर और बआलोम में हूशय का पुत्र बाना;
17) इस्साकार में पारूअह का पुत्र यहोशाफ़ाट ;
18) बेनयामीन में एला का पुत्र शिमई;
19) गिलगाद प्रदेश में (अमोरियों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग के देश में) ऊरी का पुत्र गेबेर; और यूदा प्रान्त का भी एक प्रादेशिक शासक था।
20) यूदा और इस्राएल के निवासी समुद्र-तट के रेतकणों की तरह असख्य थे। वे खाते-पीते और सुख-शान्ति में जीवन बिताते थे।

अध्याय 5

1) सुलेमान फ़रात नदी से ले कर फ़िलिस्तियों के देश और मिस्र की सीमा तक सब राज्यों पर शासन करता था। वे कर देते थे और सुलेमान के जीवन भर उसके अधीन रहे।
2) सुलेमान की एक दिन की खाद्य-सामग्री इस प्रकार थीः चार सौ मन मैदा, आठ सौ मन आटा,
3) दस मोटे बैल, चरागाहों में चरने वाले बीस पशु और सौ भेड़-बकरियों के सिवा हरिण, चिकारे, साँभर और मोटे हंस।
4) वह तिफ़सह से ले कर गाज+ा तक, फ़रात नदी के पश्चिम के सब देशों पर शासन करता था और चारों ओर के राज्यों के साथ शान्ति बनाये रखता था।
5) सुलेमान के जीवनकाल मे दान से बएर-शेबा तक समस्त यूदा और इस्राएल में सब लोग अपनी-अपनी दाखलता और अपने-अपने अंजीर के पेड़ के नीचे सुरक्षित जीवन जीते थे।
6) सुलेमान के पास रथों के घोड़ों के लिए चालीस हज+ार अस्तबल थे और बारह हज+ार घुड़सवार।
7) प्रादेशिक शासक अपने-अपने महीने में राजा सुलेमान और जो राजा के साथ भोजन करते थे, उन सब के लिए भोजन का प्रबन्ध किया करते थे। किसी भी चीज+ की कमी नहीं थी।
8) वे सामान्य घोड़ों और रथ के घोड़ों के लिए जौ और चारा उस स्थान पर लाया करते थे, जो प्रत्येक के लिए नियत था।
9) ईश्वर ने सुलेमान को प्रचुर मात्रा में प्रज्ञा और विवेक प्रदान किया तथा एक ऐसा हृदय जो समुद्रतट के बालू के सदृश विशाल था।
10) सुलेमान की प्रज्ञा सब पूर्वीय लोगों और मिस्र की समस्त प्रजा से भी श्रेष्ठ थी।
11) वह अन्य सब मनुष्यों से अधिक बुद्धिमान् था- एज्र+ाही एतान और माहोल के पुत्र हेमान, कलकोल और दरदा से भी अधिक बुद्धिमान। उसका नाम आसपास के सब राष्ट्रों में प्रसिद्ध था।
12) उसके द्वारा कही गयी सूक्तियों की संख्या तीन हज+ार थी और उसके गीतों की, एक हज+ार पाँच।
13) उसे लेबानोन में पाये जाने वाले देवदार से ले कर दीवारों पर उगने वाले जूफ़ा तक का ज्ञन था। उसे पशुओं, पक्षियों, कीड़ों और मछलियों तक का ज्ञान था।
14) सब राष्ट्रों से तथा पृथ्वी भर के राजाओं की ओर से, जिन्होंने सुलेमान की बुद्धि की चरचा सुनी थी, लोग उसकी प्रज्ञा सुनने आया करते थे।
15) जब तीरूस के राजा हीराम ने सुना कि सुलेमान का अपने पिता की जगह राजा के रूप में अभिषेक किया गया है, तो उसने अपने सेवकों को उसके पास भेजा; क्योंकि हीराम सदा दाऊद का मित्र रहा था।
16) सुलेमान ने हीराम के पास यह सन्देश भेजा :
17) ÷÷आप जानते हैं कि मेरे पिता दाऊद चारों ओर से आक्रमण करने वाले शत्रुओं से घिरे रहने के कारण अपने प्र्रभु ईश्वर के नाम पर तब तक कोई मन्दिर न बनवा सके थे, जब तक प्रभु ने उन्हें उनके अधीन न कर दिया था।
18) लेकिन अब प्रभु, मेरे ईश्वर ने मुझे सब ओर से शान्ति प्रदान की है- न कोई विरोधी है और यन किसी विपत्ति की आशंका।
19) जैसा कि प्रभु ने ने मेरे पिता दाऊद से कहा था कि तुम्हारा पुत्र, जिसे मैं तुम्हारे स्थान पर तुम्हारे सिंहासन पर बिठाऊँगा, मेरे नाम पर मन्दिर बनवायेगा; इसलिए मैं प्रभु, अपने ईश्वर के नाम पर एक मन्दिर बनवाना चाहता हूँ।
20) आप मेरे लिए लेबानोन में देवदार कटवाने का आदेश दें। मेरे सेवक आपके सेवकों के साथ-साथ काम करेंगे और मैं आपके सेवकों के लिए आपके द्वारा निश्चित वेतन आप को दे दूँगा। आप जानते हैं कि हमारे पास ऐसा कोई नहीं है, जो सीदोनियों की तरह लकड़ी काट सकता हो।''
21) जब हीराम ने सुलेमान का यह सन्देश सुना, तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई और उसने कहा, ÷÷आज प्रभु धन्य है, जिसने दाऊद को इस महान् राज्य पर शासन करने के लिए ऐसा बुद्धिमान पुत्र दिया है''।
22) इसके बाद हीराम ने सुलेमान को कहलवाया, ÷÷मुझे आपका भेजा हुआ सन्देश मिला और मैं आपकी इच्छा के अनुसार देवदार और सनोवर वृक्ष दे दूँगा।
23) मेरे सेवक उन्हें लेबानोन से समुद्र तक पहुँचा देंगे और मैं बेड़े बनवा कर समुद्री मार्ग से उस स्थान तक पहुँचवा दूँगा, जो आप निश्चित करेंगे और वहाँ उन्हें उतरवा दूँगा। आप वहाँ से उन्हें ले जायेंगे। मैं चाहता हूँ कि आप, अपनी ओर से मेरे घराने के लिए रसद भिजवायें।''
24) इसलिए हीराम ने सुलेमान को उसकी आवश्यकता के अनुसार देवदार और सनोवर वृक्ष पहुँचवाये
25) और सुलेमान ने हीराम को उसके घराने के रसद के लिए पौने तीन लाख मन गेहँू और पौने तीन सौ मन कुटे हुए जैतून का तेल दिया। सुलेमान हीराम को प्रति वर्ष यही दिया करता था।
26) प्रभु ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सुलेमान को बुद्धि दी थी। हीराम और सुलेमान में सद्भाव बना रहा और उन्होंने आपस में सन्धि कर ली।
27) राजा सुलेमान ने समस्त इस्राएल से तीस हज+ार लोगों को बेगार में लगाया।
28) उन में दस हज+ार को वह प्रति मास लेबानोन भेज दिया करता था। वे महीने भर लेबानोन मे काम करते, तो दो महीने घर रहते। अदोनीराम बेगार की देखरेख करता था।
29) इसके अतिरिक्त सुलेमान ने सत्तर हज+ार बोझा ढोने वालों और पहाड़ी प्रदेश में अस्सी हज+ार संगतराशों को काम पर लगाया था।
30) और सुलेमान के पास तीन हज+ार तीन सौ निरीक्षक थे, जो इन काम करने वाले मज+दूरों की देखरेख करते थे।
31) राजा की आज्ञा थी कि मन्दिर की नींव सुन्दर गढ़े हुए पत्थरों से बनायी जाये और बड़े-बड़े तथा बहुमूल्य पत्थर खोद निकाले जायें।
32) सुलेमान और हीराम के मिस्री तथा गबल के मज+दूर मन्दिर-निर्माण के लिए लकड़ी और पत्थर गढ़ते थे।

अध्याय 6

1) इस्राएलियों के मिस्र देश से निर्गमन के चार सौ अस्सीवें वर्ष, इस्राएल पर सुलेमान के शासनकाल के चौथे वर्ष, जिव मास में, अर्थात् दूसरे महीने में उसने प्रभु का मन्दिर बनवाना प्रारम्भ किया।
2) वह मन्दिर, जिसे राजा सुलेमान ने प्रभु के लिए बनवाया, साठ हाथ लम्बा, बीस हाथ चौड़ा और तीस हाथ ऊँचा था।
3) मन्दिर के मध्य भाग के सामने बीस हाथ लम्बा द्वार मण्डप था, जो मन्दिर की चौड़ाई के बराबर था और मन्दिर के सामने उसकी लम्बाई दस हाथ की थी।
4) उसने मन्दिर में जालीदार खिड़कियाँ भी लगवायीं।
5) फिर उसने मन्दिर की दीवारों के सहारे, बाहर, मन्दिर की चारों दीवारों के आसपास, मध्य भाग और भीतरी परमपवित्र-स्थान के आसपास एक उपभवन बनवाया, जिस में कई मंजि+लें और कमरे थे।
6) उपभवन की सब से निचली मंजि+ल पाँच हाथ चौड़ी थी, बीच वाली छः हाथ और तीसरी सात हाथ। मन्दिर की बाहरी दीवारों के पास कुर्सियाँ बनवायी गयीं, जिससे उपभवन का कोई भाग मन्दिर की दीवारों के अन्दर न किया जाये।
7) मन्दिर के निर्माण में ऐसे पत्थरों का उपयोग किया गया, जो खदानों पर ही गढ़े गये थे और मन्दिर बनते समय हथौड़ा, छेनी या और किसी प्रकार के लोहे के औज+ारों की आवाज+ सुनाई नहीं दी।
8) नीचे वाली मंजि+ल का द्वार मन्दिर के दक्षिण ओर था। एक घुमावदार सीढ़ी से दूसरी मंजिल तक और दूसरी मंजिल से तीसरी मंजि+ल तक जाया जा सकता था।
9) जब मन्दिर की दीवार खड़ी हो गयी, उसने मन्दिर के ऊपरी भाग को देवदार लकड़ी की कड़ियों और तख्तों से ढकवा दिया।
10) उसने मन्दिर के चारों ओर उपभवन बनवाये, जिनकी ऊँचाई पाँच हाथ थी। वे उपभवन देवदार की कड़ियों द्वारा मन्दिर से जुड़े हुए थे।
11) तब सुलेमान को प्रभु की यह वाणी सुनाई दी :
12) ÷÷इस मन्दिर के सम्बन्ध में जिसे तुम बनवा रहे हो, यह ध्यान रखोगे- यदि तुम मेरी विधियों और नियमों के अनुसार आचरण करोगे और मेरे सब आदेशों का पालन करते हुए उनके मार्ग पर चलते रहोगे, तो मैं तुम्हारे पिता दाऊद से तुम्हारे विषय में की हुई प्रतिज्ञा पूरी करूँगा।
13) मैं इस्राएलियों के बीच निवास करूँगा और अपनी प्रजा एस्राएल का परित्याग नहीं करूँगा।''
14) सुलेमान ने मन्दिर का निर्माण पूरा किया।
15) उसने मन्दिर के फ़र्श से छतगीरी तक, मन्दिर की भीतरी दीवारों पर देवदार के तख्ते मढ़वा दिये और मन्दिर के फ़र्श पर सनोवर के तख्ते लगवाये।
16) उसने मन्दिर के भीतरी पिछले भाग में, फ़र्श से छतगीरी तक देवदार के तख्तों से एक कक्ष बनवाया। वह कक्ष बीस हाथ लम्बा था। वह मन्दिर का अन्तर्गृह, परमपवित्र-स्थान था।
17) मन्दिर, अर्थात् भीतरी परमपवित्र-स्थान के सामने वाला मध्य भाग चालीस हाथ लम्बा था।
18) मन्दिर के भीतर के देवदार के तख्तों पर बौड़ियाँ और खिले हुए फूल काढ़े हुए थे। सब जगह देवदार दिखाई देता था और पत्थर कहीं भी नहीं।
19) उसने मन्दिर के भीतरी भाग में प्रभु के विधान की मंजूषा रखने के लिए परमपवित्र-स्थान बनवाया।
20) वह परमपवित्र-स्थान बीस हाथ लम्बा, बीस हाथ चौड़ा और बीस हाथ ऊँचा था। उसने उसे और देवदार की लकड़ी की वेदी को शुद्ध सोने से मढ़वाया।
21) सुलेमान ने समस्त मन्दिर को भीतर से शुद्ध सोने से मढ़वाया और भीतरी परम-पवित्र-स्थान के सामने सोने की साँकलें लगवायी और उसे शुद्ध सोने से मढ़वा दिया।
22) उसने समस्त मन्दिर को सोने से मढ़वा कर मन्दिर का निर्माण-कार्य पूरा किया और परमपवित्र-स्थान की वेदी को पूर्णतया सोने से मढ़वाया।
23) भीतरी परमपवित्र-स्थान के लिए उसने जैतून वृक्ष की लकड़ी के दो केरूब बनवाये। प्रत्येक दस हाथ ऊँचा था।
24) केरूबों के पंख पाँच हाथ के थे। एक पंख की नोक से दूसरे पंख की नोक तक की दूरी दस हाथ थी।
25) दोनों केरूबों की नाप और आकार एक था।
26) पहले केरूब की ऊँचाई दस हाथ थी और दूसरे केरूब की भी।
27) उसने उन केरूबों को मन्दिर के भीतरी भाग मे ंरखवाया। उन केरूबों के पंख इस प्रकार फैले हुए थे कि एक केरूब का पंख एक ओर की दीवार तक पहुँचता था और दूसरे केरूब का पंख दूसरी ओर की दीवार तक। दोनों के दूसरे पंख मन्दिर के मध्य में एक दूसरे का स्पर्श करते थे।
28) उसने केरूबों को सोने से मढ़वाया।
29) उसने मन्दिर के आसपास की सब दीवारों पर, भीतरी और बाहरी भागों में, केरूबों, खजूरों और खिले हुए फूलों की आकृतियों खुदवायीं।
30) उसने मन्दिर के भीतरी और बाहरी भागों के फ़र्शों को सोने से मढ़वाया।
31) उसने भीतरी परमपवित्र-स्थान के द्वार के लिए जैतून की लकड़ी के किवा+ड़ बनवाये। उनकी चौखटों में पाँच पहल थे।
32) उसने उन दोनों जैतून की लकड़ी के किवाड़ों पर केरूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाये और उन पर सोना मढ़वाया।
33) उसने मध्य भाग के प्रवेश-द्वार के लिए जैतून की लकड़ी की वर्गाकार चौखटें बनवायीं
34) और सनोवर की लकड़ी के दो किवाड़+, जिन में दो पल्ले थे, जो चूलों पर मुड़ते थे।
35) उसने उन पर केरूबों, खजूरों और खिले हुए फलों को खुदवाया और उस नक्+क़ाशी पर सोना मढ़वाया।
36) उसने भीतरी आँगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे और देवदार की एक परत लगा कर बनवाया।
37) चौथे वर्ष के जिव मास में प्रभु के मन्दिर की नींव डाली गयी थी
38) और ग्यारहवें वर्ष के बूल मास में, अर्थात आठवें महीने में मन्दिर नक्+शे के अनुसार पूर्णतया समाप्त हुआ। उसे बनाने में उसे सात वर्ष लगे।

अध्याय 7

1) अपने निजी भवन के निर्माण में सुलेमान को तेरह वर्ष लगे।
2) उसने लेबानोन का वन-भवन इस प्रकार बनवाया- वह सौ हाथ लम्बा, पचास हाथ चौड़ा और तीस हाथ ऊँचा था। उस में देवदार के खम्भों चार पंक्तियाँ थी और उन खम्भों पर देवदार की धरने रखी गयीं।
3) खम्भों पर पैंतालीस धरने रखी गयीं- हर वीथी पर पन्द्रह धरने -और उनके ऊपर देवदार की छत लगायी गयी।
4) भवन में खिड़कियों की तीन पंक्तियाँ थीं; तीन-तीन खिड़कियाँ आमने-सामने थीं।
5) सब द्वारों में वर्गाकार चौखटें थीं और तीन-तीन खिड़कियाँ आमने-सामने थीं।
6) उसने पचास हाथ लम्बा और तीस हाथ चौड़ा स्तम्भ वाला कक्ष बनवाया। उसके सामने खम्भों का छतदार मण्डप था।
7) फिर उसने सिंहासन-कक्ष और न्यायालय बनवाया, जिस में वह न्याय करने वाला था।
8) उसने उस में फ़र्श से छतगीरी तक देवदार लकड़ी के तख्ते लगवाये। उसका अपना निवास-भवन इसके पीछे था। वह भी इसी प्रकार का था। सुलेमान ने फ़िराउन की पुत्री के लिए, जिसके साथ उसने विवाह किया था, इस कक्ष के समान एक महल बनवाया।
9) ये सब इमारतें, प्रवेश से बड़े आँगन तक और नींव से छत तक, बढ़िया पत्थरों से बनाये गये, जो माप के अनुसार कट कर पीछे और सामने से आरे से छाँटे गये थे।
10) नींव में बड़े-बड़े गढ़े हुए पत्थर रखे गये, जो आठ-आठ और दस-दस हाथ के थे।
11) उनके ऊपर बढ़िया गढ़े हुए पत्थर और देवदार की धरनें रखी गयीं।
12) बड़े आँगन के चारों ओर एक दीवार थी, जिस पर तीन रद्दे गढ़े पत्थर और देवदार की एक परत थी। प्रभु के मन्दिर के भीतरी आँगन और उसके मण्डप के चारों ओर इसी प्रकार की दीवार थी।
13) राजा सुलेमान ने तीरूस से हीराम को बुलवाया।
14) वह नफ़ताली कुल की एक विधवा का पुत्र था। उसका पिता तीरूस-निवासी ठठेरा था। वह काँसे के सब प्रकार के कामों का कुशल और अनुभवी शिल्पकार था। उसने राजा सुलेमान के पास आ कर उसका सब काम किया।
15) उसने काँसे के दो खम्भे ढाले। हर खम्भे की ऊँचाई अठारह हाथ थी और उसकी परिधि बारह हाथ।
16) उसने खम्भों के सिरों पर बिठाने के लिए काँसे के ढाले हुए दो स्तम्भशीर्ष बनाये। हर स्तम्भशीर्ष की ऊँचाई पाँच हाथ थी।
17) स्तम्भशीर्षों के लिए उसने सात चौखानेदार जालियाँ और साँकलदार झालरें बनायीं।
18) उसने दोनों स्तम्भशीर्षों की जालियों के चारों ओर अनारों की दो लड़ियाँ लगायीं।
19) मण्डप के स्तम्भशीर्ष सोसन-पुष्प के आकार के थे और चार हाथ ऊँचे थे।
20) स्तम्भों के उभरे हुए गोलाकार भाग के ऊपर, जालियों के पास, स्तम्भशीर्षों के चारों ओर दो सौ पंक्ति-बद्ध अनार सुशोभित थे।
21) उसने उन खम्भों को मन्दिर के प्रवेश-मण्डप के सामने रखा। उसने एक खम्भे को दाहिनी ओर रखा और उसे ÷याकीन' नाम दिया; दूसरे खम्भे को बायीं ओर रखा और उसका नाम ÷बोअज+' रखा।
22) खम्भों के सिरे सोसन-पुष्प के आकार के थे। खम्भों का कार्य इसी रूप में समाप्त हुआ।
23) अब उसने काँसे का एक बड़ा वृत्ताकार हौज+ ढाला। वह एक किनारे से दूसरे किनारे तक दस हाथ का था। वह पाँच हाथ ऊँचा था और उसकी परिधि तीस हाथ की थी।
24) उसके किनारों के नीचे, हौज+ के चारों तरफ बौंड़ियाँ बनी थीं। एक एक हाथ की लम्बाई में दस बौंड़ियाँ। बौंड़ियाँ दो पंक्तियों में थीं और हौज+ के साथ ढाली गयी थीं।
25) हौज+ बारह बैलों पर अवधारित था। बैलों में तीन के मुँह उत्तर की ओर थे, तीन के पश्चिम की ओर, तीन के दक्षिण की ओर और तीन के पूर्व की ओर। उनके पिछले भाग भीतर की ओर थे। हौज+ के धातु की मोटाई चार अंगुल थी।
26) उसका किनारा प्याले के किनारे के समान, सोसन-पुष्प के आकार का था। इस में करीब नब्बे हज+ार लिटर समाता था।
27) उसने काँसे के दस ठेले बनाये। हर एक ठेला चार हाथ लम्बा था, चार हाथ चौड़ा और तीन हाथ ऊँचा।
28) उनका निर्माण इस प्रकार हुआ था। उनके दोनों ओर के पटरे चौखटों में लगाये जाते थे।
29) चौखटों पर और चौखटों में लगे पटरों पर सिंह, बछड़े और केरूब चित्रित थे। सिंहों और बछड़ों के ऊपर और उनके नीचे झालरें बनी थीं।
30) प्रत्येक्ष ठेले में काँसे के चार पहिये थे और काँसे की धुरियाँ और चिलमची रखने के लिए चारों कोनों से लगे आधार थे, जो ढाल कर बनाये गये थे और उनके पार्श्व में झालरें बनी थी।
31) प्रत्येक ठेले में एक चिलमची थी, जो एक हाथ बाहर निकली थी। वह गोलाकार और डेढ़ हाथ गहरी थी। उस पर फूलों की खुदाई थी। ठेले के पटरे गोल नहीं, बल्कि चौकोर थे।
32) इन पटरों के नीचे चार पहिये थे। पहियों की धुरियाँ ठेलों से जुड़ी थीं।
33) प्रत्येक पहिया डेढ़ हाथ ऊँचा था। वे रथ के पहियों के समान थे। उनकी धुरियाँ, नेमियाँ, आरे और नाभियाँ - सब ढली हुई थीं।
34) प्रत्येक ठेले के चारों कोनों पर चार-चार हत्थे थे, जो ठेले से निकले हुए थे।
35) ठेले के सिरे पर चारों ओर आधे हाथ की गोलाई थी, उसके ऊपरी भाग में हत्थे थे और उनके नीचे पटरे।
36) हत्थों और पटरों पर, जहाँ-जहाँ जगह थी, वहाँ-वहाँ उसने केरूबों, सिंहों और खजूरों की आकृतियाँ और झालरें बनायीं।
37) इस प्रकार उसने दस ठेले बनाये। वे सब एक प्रकार, एक ही नाप और एक ही आकार में ढाले गये थे।
38) फिर उसने काँसे की दस चिलमचियाँ बनायीं। उन में एक हज+ार आठ सौ साठ लिटर समाता था। प्रत्येक चिलमची चार हाथ की थी और दसों ठेलों के लिए एक चिलमची थी।
39) उसने मन्दिर के दक्षिण की ओर पाँच ठेले रखे और मन्दिर के उत्तर की ओर पाँच ठेले और उसने हौज+ को मन्दिर के दक्षिण-पूर्व कोने में रखा।
40) अन्त में हीराम ने पात्र, फावड़ियाँ और कटोरे बनाये। इस प्रकार हीराम ने वे सब कार्य पूरे किया, जिनकी आज्ञा राजा सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए उसे दी थीः
41) दो खम्भे, खम्भों के ऊपर दो गोलाकार स्तम्भशीर्ष और खम्भों के सिरों पर के दोनों गोलाकार स्तम्भशीर्षों को सजाने के लिए दो जालियाँ,
42) दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार- खम्भों के दोनों गोलाकार स्तम्भशीर्षों को सजाने के लिए प्रत्येक जाली की दो-दो पंक्तियों में अनार लटके थे -
43) दस ठेले और उन ठेलों पर इस चिलमचियाँ,
44) हौज+ और हौज+ के नीचे बारह बैल,
45) पात्र, फावड़ियों और कटोरे। ये सब सामान झिलमिलाते काँसे के थे, जो हीराम ने प्रभु के मन्दिर के लिए राजा सुलेमान की आज्ञा से बनाये।
46) उन्हें राजा ने सुक्कोत और सारतान के बीच, चिकनी मिट्टी वाली भूमि में, यर्दन के मैदान में ढलवाया।
47) उन सामानों की संख्या इतनी अधिक थी कि सुलेमान ने उनकी तौल नहीं करायी। इसलिए काँसे का वज+न मालूम नहीं हो सका।
48) सुलेमान ने प्रभु के भवन के लिए निम्नलिखित सब सामान बनवाये : सोने की वेदी; सोने की मेज+, जिस पर भेंट की रोटियाँ रखी जाती हैं;
49) शुद्ध सोने के दीपाधार- परमपवित्र-स्थान के सामने दाहिनी ओर के लिए पाँच और बायी ओर के लिए पाँच; सोने की बौड़ियाँ, दीपक और चिमटे;
50) शुद्ध सोने के पात्र, कैंचियाँ, बरतन, कलछियाँ और लोबान के पात्र; मन्दिर के भीतरी भाग, अर्थात् भीतरी परमपवित्र-स्थान के और मन्दिर के मध्य भाग के द्वारों की सोने की चूलें।
51) जब सब काम, जिसे राजा सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए करवाया, पूरा हो गया, तब सुलेमान ने अपने पिता दाऊद द्वारा समर्पित समस्त सामग्री, अर्थात् चाँदी, सोना और अन्य सामान ला कर प्रभु के मन्दिर के भण्डारों में रखवा दिया।

अध्याय 8

1) उस समय सुलेमान ने प्रभु के विधान की मंजूशा को दाऊदनगर, अर्थात् सियोन से ले आने के लिए इस्राएल के नेताओं को येरुसालेम बुलाया।
2) इसलिए एतानीम नामक महीने के पर्व के अवसर पर सब इस्राएली सुलेमान के पास एकत्र हो गये।
3) (३-४) याजक और लेवी मंजूषा, दर्शन-कक्ष और शिविर की सब पुण्य सामग्रियाँ उठा कर ले आये।
5) राजा सुलेमान और इस्राएल के समस्त समुदाय ने मंजूषा के सामने असंख्य भेड़ों और साँड़ों की बलि चढ़ायी।
6) याजकों ने प्रभु के विधान की मंजूषा को उसके स्थान पर, परमपावन मन्दिर गर्भ में, केरूबीम के पंखो के नीचे रख दिया।
7) केरूबीम के पंख मंजूषा के स्थान के ऊपर फैले हुए थे और इस प्रकार मंजूषा तथा उसके डण्डों को आच्छादित करते थे।
8) डण्डे इतने लम्बे थे कि उनके सिरे मन्दिरगर्भ के सामने के पवित्र-स्थान से दिखाई देते थे। वे बाहर से नहीं दिखाई देते थे। वे आज तक वहाँ मौजूद हैं।
9) मंजूषा में केवल उस विधान की दो पाटियाँ थीं, जिसे प्रभु ने इस्राएलियों के लिए निर्धारित किया था, जब वे मिस्र देश से निकल रहे थे। मूसा ने होरेब में उन दोनों पाटियों को मंजूषा में रखा था।
10) जब याजक मन्दिरगर्भ से बाहर निकले, तो प्रभु का मन्दिर एक बादल से भर गया
11) और याजक मन्दिर में अपना सेवा-कार्य पूरा करने में असमर्थ थे- प्रभु का मन्दिर प्रभु की महिमा से भर गया था।
12) तब सुुलेमान ने कहा, ÷÷प्रभु ने अन्धकारमय बादल में रहने का निश्चय किया है।
13) मैंने तेरे लिए एक भव्य निवास का निर्माण किया है- एक ऐसा मन्दिर, जहाँ तू सदा के लिए निवास करेगा।''
14) इसके बाद राजा ने मुड़ कर समस्त इस्राएली समुदाय को आशीर्वाद दिया। उस समय इस्राएल का समस्त समुदाय खड़ा था।
15) उसने कहा, ÷÷धन्य हैे प्रभु, इस्राएल का ईश्वर, क्योंकि उसने आज मेरे पिता दाऊद से की हुई यह प्रतिज्ञा पूरी की-
16) ÷जब से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया हूँ, तब से मैंने इस्राएल के किसी वंश के किसी नगर को नहीं चुना था, जिससे वहाँ मन्दिर बनवाया जाये और मेरा नाम प्रतिष्ठित हो। मैंने दाऊद को चुना है, जिससे वह मेरी प्रजा इस्राएल का शासन करे।'
17) मेरे पिता दाऊद की इच्छा प्रभु, इस्राएल के ईश्वर के नाम के लिए एक मन्दिर बनवाने की थी;
18) लेकिन प्रभु ने मेरे पिता दाऊद से कहा था, ÷तुम मेरे नाम पर एक मन्दिर बनवाना चाहते हो, यह एक अच्छी बात है।
19) परन्तु तुम यह मन्दिर नहीं बनवाओगे, बल्कि तुम्हारा पुत्र, जो तुम से उत्पन्न होगा, मेरे नाम पर एक मन्दिर बनवायेगा।
20) अब प्रभु ने अपने दिये हुए वचन को पूरा किया है। अब मैंने अपने पिता दाऊद का स्थान ग्रहण किया है और मैं प्रभु के वचन के अनुसार इस्राएल के सिंहासन पर विराजमान हूँ। मैंने प्रभु, इस्राएल के ईश्वर के नाम पर मन्दिर बनवा दिया है
21) और वहीं उस मंजूषा के लिए एक स्थान बनवाया है, जिस में प्रभु का वह विधान रखा हुआ है, जिसे उसने मिस्र से निर्गमन के समय हमारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किया था।''
22) इसके बाद सुलेमान इस्राएल के समस्त समुदाय के सम्मुख ईश्वर की वेदी के सामने खड़ा हो गया और आकाश की ओर हाथ उठा कर
23) बोला, ÷÷प्रभु! इस्राएल के ईश्वर! न तो ऊपर स्वर्ग में और न नीचे पृथ्वी पर तेरे सदृश कोई ईश्वर है। तू विधान बनाये रखता और अपने सेवकों पर दया दृष्टि करता है, जो निष्कपट हृदय से तेरे मार्ग पर चलते हैं।
24) तूने अपने सेवक दाऊद, मेरे पिता से की हुर्ई प्रतिज्ञा पूरी की है। तेरे मुख से जो बात निकली थी, वह आज पूरी हो चुकी है।
25) अब प्रभु, इस्राएल के ईश्वर! अपने सेवक दाऊद और मेरे पिता से की हुई यह प्रतिज्ञा पूरी कर- ÷यदि तुम्हारे पुत्र सावधान रहेंगे और मेरे मार्गों पर तुम्हारी तरह चलते रहेंगे, तो तुुम्हारे वंशजों में से कोई-न-कोई सदा मेरे सामने इस्राएल के सिंहासन पर अवश्य बैठता रहेगा।'
26) अब इस्राएल के ईश्वर! दाऊद- तेरे सेवक और मेरे पिता - से की हुई प्रतिज्ञा पूरी हो ।
27) क्या यह सम्भव है कि ईश्वर सचमुच पृथ्वी पर मनुष्यों के साथ निवास करे? आकाश तथा समस्त ब्रह्माण्ड में भी तू नहीं समा सकता, तो इस मन्दिर की क्या, जिसे मैंने तेरे लिए बनवाया है!
28) प्रभु, मेरे ईश्वर! अपने सेवक की प्रार्थना तथा अनुनय पर ध्यान दे। आज अपने सेवक की पुकार तथा विनती सुनने की कृपा कर।
29) तेरी कृपादृष्टि दिन-रात इस मन्दिर पर बनी रहे- इस स्थान पर, जिसके विषय में तूने कहा कि मेरा नाम यहाँ विद्यमान रहेगा। तेरा सेवक यहाँ जो प्रार्थना करेगा, उसे सुनने की कृपा कर।
30) जब इस स्थान पर तेरा सेवक और इस्राएल की समस्त प्रजा प्रार्थना करेगी, तो उनका निवेदन स्वीकार करने की कृपा कर। तू अपने स्वर्गिक निवासस्थान से उनकी प्रार्थना सुन और उन्हें क्षमा प्रदान कर।
31) ÷÷जब कोई अपने पड़ोसी के विरुद्ध अपराध करे और उस से शपथ खिला ली जाये और जब वह इस मन्दिर की वेदी के सामने शपथ खा ले,
32) तो तू उसे स्वर्ग में सुन कर अपने सेवकों का न्याय कर। तू अपराधी को दण्ड दे और उस से अपराध का बदला चुका। तू निर्दोष को निर्दोष ठहरा कर उसकी धार्मिकता के अनुसार उसके साथ व्यवहार कर।
33) ÷÷यदि तेरी प्रजा इस्राएल शत्रुओं से इसलिए पराजित हो जाये कि उसने तेरे विरुद्ध अपराध किया है, तो यदि वह फिर से तेरी ओर अभिमुख हो कर और तेरा नाम ले कर इस मन्दिर में तेरी प्रार्थना और पुकार करे,
34) तो तु स्वर्ग में उसकी प्रर्थना सुन, अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा कर और उसे फिर उसी देश ले जा, जिसे तूने उसके पूर्वजों को दिया है।
35) यदि आकाश से मेघ इसलिए पानी नहीं बरसाता कि लोगों ने तेरे विरुद्ध पाप किया है और यदि वे इस स्थान पर प्राथना करें, तेरा नाम लें और इसलिए अपने पाप छोड़ दें कि तूने उन्हें कष्ट दिया है,
36) तो तू स्वर्ग में उनकी प्रार्थना स्वीकार कर अपने सेवकों, अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा कर। उसे वह सन्मार्ग बतला, जिस पर उसे चलना चाहिए और अपने इस देश में वर्षा कर, जिसे तूने अपनी प्रजा को दायभाग के रूप में दिया है।
37) ÷÷यदि देश में अकाल पड़े, महामारी फैले, फ़सल में गेरूआ कीड़ा लग जाये या पाला पड़े, टिड्डियाँ या अन्य कीड़े-मकोड़े पैदा हो जायें; यदि उसका शत्रु उसके नगरों पर आक्रमण करे; यदि किसी प्रकार की विपत्ति आये या बीमारी फैल जाये,
38) उस समय यदि कोई भी इस्राएली, किसी विपत्ति के कारण दुःखी हो कर इस मन्दिर की ओर हाथ पसार कर प्रार्थना करे और तुझे पुकारे,
39) तो तू स्वर्ग से उसकी प्रार्थना सुन, उसे क्षमा प्रदान कर और उसकी सहायता कर। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी करनी के अनुसार फल दे। तू उन में प्रत्येक का हृदय जानता है (क्योंकि तू वही है, जो सब मनुष्यों के हृदय जानता है)।
40) इस प्रकार जब तक वे इस देश में रहेंगे, जिसे तूने हमारे पुरखों को दिया है, तब तक वे तुझ पर श्रद्धा रखेंगे।
41) ÷÷यदि कोई परदेशी, जो तेरी प्रजा का सदस्य नहीं है, तेरे नाम के कारण दूर देश से आये-
42) क्योंकि लोग तेरे महान् नाम, तेर शक्तिशाली हाथ तथा समर्थ बाहुबल की चरचा करेंगे- यदि वह इस मन्दिर मे ंविनती करने आये,
43) तो तू अपने निवास स्थान स्वर्ग में उसकी प्रार्थना सुन और जो कुछ परदेशी माँगे, उसे दे दे। इस प्रकार पृ्थ्वी के सभी राष्ट्र, तेरी प्रजा इस्राएल की तरह , तेरा नाम जान जायेंगे, तुझ पर श्रद्धा रखेंगे और यह समझ जायेंगे कि यह मन्दिर, जिसे मैंने बनवाया है, तेरे नाम को समर्पित है।
44) ÷÷जब तेरी प्रजा, तेरे आदेश के अनुसार, शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने जाये और जब वह तेरे द्वारा चुने हुए नगर की ओर और इस मन्दिर की ओर, जसे मैंने तेरे नाम के लिए बनवाया है, अभिमुख हो कर प्रभु से प्रार्थना करे,
45) तो तू स्वर्ग से उसकी प्रार्थना और पुकार सुन और उसका पक्ष ले।
46) ÷÷जब इस्राएली तेरे विरुद्ध पाप करेंगे-क्योंकि ऐसा कोई नहीं है, जो पाप न करे- और तू उन पर क्रोध कर उन को विरोधियों के हाथ दे दे और उनके शत्रु उन्हें बन्दी बना कर अपने दूर या निकट देश ले जायें,
47) तो यदि वे अपने को बन्दी बनाने वाले देश में पश्चात्ताप करें और अपने शत्रुओं के देश में यह कहते हुए तुझ से दया की याचना करें, ÷हमने पाप किया है, हमने अपराध किया है, हमने अधर्म किया है',
48) तो यदि वे सारे हृदय से और सारी आत्मा से अपने शत्रुओं के देश में, जो उन को बन्दी बना कर ले गये हों, इस देश की ओर, जिसे तूने उनके पूर्वजों को दिया है, इस नगर की ओर, जिसे तून चुन लिया है और इस मन्दिर की ओर, जिसे मैंने तेरे नाम पर निर्मित किया है, अभिमुख हो कर तुझ से प्रार्थना करें,
49) तो तू स्वर्ग में, अपने निवास में उनकी प्रार्थना और पुकार सुन कर उनका पक्ष ले।
50) तू अपनी प्रजा को क्षमा प्रदान कर, जिसने तेरे विरुद्ध पाप किया है, अपने विरुद्ध किये गये सब अपराध क्षमा कर। ऐसा कर कि उनके शत्रु उनके प्रति दयापूर्ण व्यवहार करें, क्योंकि वे तेरी प्रजा ही हैं, तेरा दायभाग;
51) तूने उन्हें मिस्र से- लोहा गलाने वाली धधकती भट्ठी के भीतर से - निकाला है।
52) ÷÷अपने दास की प्रार्थना और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना सुनने के लिए तू सदा प्रस्तुत रह। जब-जब वे तुझे पुकारें, तब तब तू उनकी सुनः
53) क्योंकि तूने उन्हें पृथ्वी के सब राष्ट्रों में से चुन कर उन को अपना दायभाग बना लिया है, जैसा कि तूने अपने सेवक मूसा द्वारा उस समय कहा था, जब तू, सर्वशक्तिमान प्रभु! पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया था।
54) जब सुलेमान ये सब प्रार्थनाएँ और निवेदन पूरे कर चुका, तो वह प्रभु की वेदी के सामने उठ खड़ा हो गया, जहाँ वह आकाश की ओर हाथ पसारे घुटनों के बल प्रार्थना कर रहा था
55) और वह इस्राएल के समस्त समुदाय को आशीर्वाद देते हुए ऊँचे स्वर से बोला,
56) ÷÷प्रभु धन्य है! उसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को शान्ति प्रदान की है। उसने अपने सेवक मूसा द्वारा जो प्रतिज्ञाएँ की थीं, उन में एक भी अपूर्ण नहीं रही।
57) हमारा प्रभु-ईश्वर जिस तरह हमारे पूर्वजों का साथ देता रहा, उसी तरह हमारा साथ देता रहे। वह हम से कभी दूर नहीं हो, वह हमें कभी नहीं त्यागे।
58) वह हमारे हृदयों को अपनी ओर अभिमुख करे, जिससे हम उसके सब मार्गों पर चलते रहें और उन आज्ञाओं, नियमों तथा आदेशों का पालन करते रहें, जो उसने हमारे पूर्वजों को दिये हैं।
59) जिन शब्दों से मैंने प्रभु से यह प्रार्थना की है, वे शब्द दिन-रात हमारे प्रभु-ईश्वर के सामने विद्यमान रहें, जिससे वह प्रतिदिन की आवश्यकताओं के अनुसार अपने सेवक तथा अपनी प्रजा इस्राएल को न्याय दिलाता रहे।
60) इस प्रकार संसार के सभी राष्ट्र यह जान जायेंगे कि प्रभु ही ईश्वर है और दूसरा कोई नहीं।
61) तुम लोगों का हृदय आज की तरह हमारे प्रभु-ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से ईमानदार रहे और तुम उसके नियम तथा आज्ञाओं का पालन करते रहो।''
62) इसके बाद राजा और उसके साथ सब इस्राएलियों ने प्रभु को बलिदान चढ़ाये।
63) सुलेमान ने प्रभु को शान्ति-बलि के रूप में यह चढ़ाया : बाईस हज+ार बैल और एक लाख बीस हज+ार भेड़ें। इस प्रकार राजा ने सब इस्राएलियों के साथ प्रभु के मन्दिर का प्रतिष्ठान किया।
64) उस दिन राजा ने प्रभु के मन्दिर के सामने वाले आँगन को पवित्र किया और उसने वहाँ होम एवं अन्न-बलियाँ और शान्ति-बलियों की चरबी चढ़ायी; क्योंकि प्रभु के सामने की काँसे की वेदी पर होम-बलियाँ, अन्न-बलियाँ और शान्ति-बलियों की चरबी रखना सम्भव नहीं था।
65) इस प्रकार सुलेमान ने सब एस्राएलियों के साथ सात दिन तक उत्सव मनाया। इस में एक विशाल जनसमूह उपस्थित हुआ, जो लेबा-हमात से मिस्र के नाले के क्षेत्र से आया था।
66) आठवें दिन सुलेमान ने लोगों को विदा किया। वे लोग राजा को प्रणाम कर अपने-अपने घर चले गये। वे आनन्दित और प्रसन्नचित थे; क्योंकि प्रभु ने अपने सेवक दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल का इतना बड़ा उपकार किया था।

अध्याय 9

1) जब सुलेमान प्रभु के मन्दिर, राजभवन और अपने मनोनुकूल अन्य सारी योजनाएँ पूरी कर चुका,
2) तब प्रभु ने सुलेमान को दूसरी बार दर्शन दिये, जैसा कि उसने पहले गिबओन में उसे दर्शन दिये थे।
3) प्रभु ने उस से कहा, ÷÷तुमने मुझ से जो प्रार्थना और निवेदन किया है, मैंने उसे सुना है। तुमने जिस मन्दिर का निर्माण किया है, मैंने वहाँ सदा के लिए अपना नाम स्थापित कर उसे पवित्र किया है। मेरी आँखे और मेरा हृदय उस में सदा विराजमान रहेंगे।
4) यदि तुम अपने पिता दाऊद की तरह निष्कपट हृदय और धार्मिकता से मेरे सामने आचरण करोगे; यदि तुम मेरे आदेशों, नियमों और विधियों का पालन करोगे,
5) तो जैसा कि मैंने तुम्हारे पिता से यह कहते हुए प्रतिज्ञा की- ÷इस्र्राएल के सिंहासन पर सदा ही तुम्हारा कोई वंशज विराजमान होगा', मैं तुम्हारा राज्यसिंहासन इस्राएल में सदा के लिए स्थापित करूँगा।
6) किन्तु यदि तुम लोग-तुम और तुम्हारे पुत्र- मुझ से विमुख होगे और मेरे द्वारा अपने को दी गयी आज्ञाओं और विधियों का पालन नहीं करोगे; यदि तुम जा कर उन्य देवताओं की सेवा-पूजा करोगे,
7) तो मैं इस्राएलियों को इस देश से निकाल दूँगा, जिसे मैंने उन्हें दिया है और इस मन्दिर को त्याग दूँगा, जिसका मैंने अपने नाम के लिए प्रतिष्ठान किया है। सब राष्ट्र इस्राएल की निन्दा और उपहास करेंगे।
8) यह भव्य मन्दिर खँडहर बन जायेगा। प्रत्येक व्यक्ति, जो इसके पास से गुज+रेगा, चकित रह जायेगा और यह कहते हुए इस से घृणा करेगा, ÷÷प्रभु ने इस देश और इस मन्दिर के साथ ऐसा क्यों किया?''
9) और उसे उत्तर मिलेगा, ÷उन्होंने प्रभु, अपने ईश्वर का परित्याग किया, जो उनके पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया था और उन्होंने अन्य देवताओं को अपना कर उनकी आराधना और सेवा की है- इसलिए प्रभु ने उन पर ये सब विपत्तियाँ ढाहीं'।''
10) सुलेमान ने बीस वर्ष में दो भवनों का, अर्थात् प्रभु के मन्दिर और राजभवन का, निर्माण पूर्ण किया।
11) तीरूस के राजा हीराम ने सुलेमान को आवश्यकता के अनुसार देवदार, सनोवर और सोना दिया था, इसलिए राजा सुलेमान ने हीराम को गलीलिया प्रान्त के बीस नगर दिये।
12) जब तीरूस से हीराम सुलमान से प्राप्त नगर देखने आया, तो वह उन से सन्तुष्ट नहीं हुआ।
13) उसने कहा, ÷÷भाई क्या यही वे नगर हैं, जिन्हें तुमने मुझे दिया है?'' इसलिए आज तक उन नगरों का प्रदेश ÷काबूल' कहलाता है।
14) हीराम ने राजा को एक सौ बीस मन सोना भेजा था।
15) राजा सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर, अपने भवन, मिल्लो, येरुसालेम की चारदीवारी, हासोर, मगिद्दो और गेजे+र
16) (मिस्र के राजा फ़िराउन ने आक्रमण किया, गेज+ेर को अपने अधिकार में कर लिया और उसे जला दिया था। उसने उस में रहने वाले कनानियों को मार डाला था और दहेज में गेजे+र अपनी पुत्री, सुलेमान की पत्नी को दिया था।
17) तब सुलेमान ने गेजे+र का पुनर्निमाण किया था), निचला बेत-होरोन,
18) बालात और यूदा के उजाड़खण्ड के तामार,
19) अपने भण्डार-नगरों, रथों तथा घोड़ों के रक्षा नगरों के निर्माण के लिए और येरुसालेम, लेबानोन और अपने राज्य भर की अन्य सब योजनाओं के लिए जिन लोगों को बेगार मे लगाया, उसका विवरण इस प्रकार है :
20) गैर-इस्राएली अमोरियों, हित्तियों, परिज्+जि+यों, हिव्वियों और यबूसियों में से जो शेष रह गये थे-
21) उसने वंशज जो अब तक देश में रह रहे हैं और जिनका विनाश इस्राएली नहीं कर पाये थे- उन से सुलेमान बेगार लेता था और आज भी ली जाती है।
22) इस्राएलियों में सुलेमान ने किसी से बेगार नहीं ली। वे उसके सैनिक, उसके पदाधिकारी, उसके सेनापति, उसके रथों और घुड़सवारों के अध्यक्ष थे।
23) सुलेमान के निर्माण-कार्यों के निरीक्षक साढ़े पाँच सौ उच्चाधिकारी थे, जो काम करने वाले लोगों पर निगरानी रखते थे।
24) जब फ़िराउन की पुत्री दाऊदनगर छोड़ कर उस महल में रहने लगी, जो उसके लिए निर्मित हुआ, तब सुलेमान ने मिल्लों का निर्माण किया।
25) सुलेमान प्रति वर्ष तीन बार उसे वेदी पर होम-बलियाँ और शान्ति-बलियाँ चढ़ाता था, जिसे उसने प्रभु के लिए बनवाया था। वह प्रभु के सामने धूप भी चढ़ाता था। इस प्रकार वह मन्दिर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करता था।
26) एस्योन-गेबेर में, जो लाल समुद्र के किनारे एदोम देश के एलत के पास है, राजा सुलेमान ने जहाज+ भी बनवाये।
27) हीराम ने अपने जहाज+ों के साथ निपुण नाविकों को भेजा, जो सुलेमान के सेवकों के साथ जहाज+ी बेड़े पर काम करते थे।
28) वे ओफ़िर जा कर वहाँ से राजा सुलेमान के लिए चार सौ बीस मन सोना लाये।

अध्याय 10

1) शेबा की रानी ने सुलेमान की कीर्ति के विषय में सुना था और वह पहेलियों द्वारा उसकी परीक्षा लेने आयी।
2) वह ऊँटों की लम्बी कतार के साथ येरुसालेम पहुँची, जिन पर सुगन्धित द्रव्य, बहुत-सा सोना और बहुमूल्य रत्न लदे हुुए थे। वह सुलेमान के यहाँ अन्दर आयी और उसके मन में जो कुछ था, उसने वह सब सुलेमान को बताया।
3) सुलेमान ने उसके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया- उन में एक भी ऐसा नहीं निकला, जिसका सुलेमान सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सका।
4) जब शेबा की रानी ने सुलेमान की समस्त प्रज्ञा, उसके द्वारा निर्मित भवन,
5) उसकी मेज+ के भोजन, उसके साथ खाने वाले दरबारियों, उसके सेवकों की परिचर्या और परिधान, उसके मदिरा पिलाने वालों और प्रभु के मन्दिर में उसके द्वारा चढ़ायी हुई होम-बलियों को देखा, तो उसके होश उड़ गये
6) और उसने राजा से यह कहा, ÷÷मैने अपने देश में आपके और आपकी प्रज्ञा के विषय में जो चरचा सुनी थी, वह सच है।
7) जब तक मैंने आ कर अपनी आँखों से नहीं देखा, तब तक मुझे उस पर विश्वास नहीं था। सच पूछिए, तो मुझे आधा भी नहीं बताया गया था। मैंने जो चरचा सुनी थी, उसकी अपेक्षा आपकी प्रज्ञा और आपका वैभव कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
8) धन्य है आपकी प्रजा और धन्य हैं आपके सेवक, जो आपके सामने उपस्थित रह कर आपकी विवेकपूर्ण बातें सुनते रहते हैं!
9) धन्य है प्रभु, आपका ईश्वर, जिसने आप पर प्रसन्न होकर आप को इस्राएल के सिंहासन पर बैठाया! इस्राएल के प्रति उसका प्रेम चिरस्थायी है, इसलिए उसने न्याय और धार्मिकता बनाये रखने के लिए आप को राजा के रूप में नियुक्त किया है।''
10) उसने राजा को एक सौ बीस मन सोना, बहुत अधिक सुगन्धित द्रव्य और बहुमूल्य रत्न प्रदान किये। शेबा की रानी ने जितना सुगन्धित द्रव्य सुलेमान को दिया, उतना फिर कभी नहीं लाया गया।
11) ओफ़िर से सोना लाने वाले हीराम के जहाज+ ओफ़िर से बहुत-सा चन्दन और मणियाँ भी लाते थे।
12) राजा ने चन्दन से प्रभु के मन्दिर और राजमहन के लिए छोटे-छोटे खम्भे और गायकों के लिए सितार और सारंगियाँ बनवायीं। उस समय जितना चन्दन लाया गया था, उतना न कभी पहले लाया गया और न कभी बाद में।
13) राजा सुलेमान ने शेबा की रानी को वह सब कुछ दिया, जो वह चाहती थी और जिसके लिए उसने इच्छा प्रकट की। उसने इसके अतिरिक्त अपनी ओर से उसे ेउदारता-पूर्वक और बहुत कुछ दे दिया। इसके बाद वह चली गयी और अपने दलबल के साथ अपने देश लौट गयी।
14) उस सोने का वजन, जो प्रति वर्ष सुलेमान के यहाँ लाया जाता था, छः सौ छियासठ मन था।
15) उस में वह सोना सम्मिलित नहीं है, जो यात्रियों, व्यापारियों के यातायात, पश्चिम के सब राजाओं और देश के राज्यपालों से मिलता था।
16) राजा सुलेमान ने सोने की दो सौ ढालें बनवायीं। प्रैत्येक ढाल में छः सौ शेकेल सोना लगा।
17) इसके अतिरिक्त उसने सोने की तीन सौ छोटी ढालें भी बनवायीं; प्रत्येक में डेढ़ सेर सोना लगा। उसने उन्हें लेबानोन के वन भवन में रखवाया।
18) राजा ने हाथीदाँत का एक बड़ा सिंहासन बनवाया और उसे शुद्ध सोने से मढ़वाया।
19) उस सिंहासन में छः सोपान थे और उसकी पीठ का सिरा अर्धचन्द्राकार था। सिंहासन के दोनों और हाथ रखने की पटरियाँ थीं और उनके दोनों ओर एक-एक सिंह।
20) छः सोपानों पर बारह सिंह थे- एक-एक सोपान के दोनों ओर एक-एक सिंह। ऐसा सिंहासन कभी किसी राज्य में नहीं बना था।
21) राजा सुलेमान के पीने के सभी प्याले सोने के थे। लेबानोन के वन-भवन के सब पात्र शुद्ध सोने के थे, चाँदी का एक भी पात्र नहीं था; क्योंकि सुलेमान के समय चाँदी का कोई विशेष मूल्य नहीं था।
22) राजा के तरशीश जाने वाले जहाज+ हीराम के जहाज+ों के साथ समुद्र पर चलते थे। वे प्रति तीन वर्ष लौटते और सोना, चाँदी, हाथीदाँत, बन्दर और मोर लाते थे।
23) इस प्रकार राजा सुलेमान धन-सम्पत्ति और विवेक में पृथ्वी के सभी राजाओं में श्रेष्ठ था।
24) ईश्वर द्वारा प्रदत्त सुलेमान की प्रज्ञा सुनने के लिए सारे संसार के लोग उसके पास आया करते थे।
25) उन में प्रत्येक व्यक्ति प्रति वर्ष भेंट लाता था- चाँदी और सोने के पात्र, वस्त्र, अस्त्र-शस्त्र, गन्धरस, घोड़े और खच्चर।
26) सुलेमान के बहुत से रथ और घुड़सवार थे- एक हज+ार चार सौ रथ और बारह हज+ार घुड़सवार। वह उन्हें रक्षक-नगरों और अपने पास येरुसालेम में रखता था।
27) राजा ने येरुसालेम में चाँदी को पत्थर-जैसा सस्ता बना दिया और देवदार को निचले प्रदेश में पाये जाने वाले गूलर-जैसा प्रचुर।
28) सुलेमान के लिए मिस्र और कुए के घोड़े लाये जाते थे। राजा के व्यापारी दाम दे कर उन्हें कुए से ख़रीद लाते थे।
29) मिस्र से लाये जोने वाले रथ का मूल्य छः सौ शेकेल था और धोड़े का चाँदी के डेढ़ सौ शेकेल। सभी हित्ती और अरामी राजा भी सुलेमान के व्यापारियों द्वारा वहाँ से रथ और घोड़े ख़रीदते थे।

अध्याय 11

1) राजा सुलेमान कई विदेशी स्त्रियों को प्यार करता था- फ़िराउन की बेटी को तथा मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, सीदोनी और हित्ती स्त्रियों को,
2) जो उन राष्ट्रों की थी, जिनके विषय में प्रभु ने इस्राएलियों को आदेश दिया था कि तुम न तो उन से विवाह करोगे और न अपनी पुत्री उनके पुत्र को दोगे; क्योंकि वे अवश्य तुम से अपने देवताओं की पूजा करवायेंगी। फिर भी सुलेमान ऐसी स्त्रियों को प्यार करता था।
3) उसके यहाँ सात सौ राज-परिवार की पत्नियाँ और तीन साँ उपपत्नियाँ थीं। इसकी उन पत्नियों ने उस को बहकाया।
4) जब सुलेमान बूढ़ा हो गया, तो उसकी पत्नियों ने उस से अन्य देवताओं की उपासना करवायी। वह अपने पिता दाऊद की तरह प्रभु के प्रति पूर्ण रूप से ईमानदार नहीं रहा ।
5) वह सीदोनियों की देवी अश्तारता और अम्मोनियों के घृणित देवता मिलकोम की उपासना करता था।
6) उसने वह काम किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और वह अपने पिता की तरह प्रभु के प्रति ईमादार नहीं रहा।
7) उस समय सुलेमान ने येरुसालेम के पूर्व की पहाड़ी पर मोआबियों के घृणित देवता कमोश के लिए और अम्मनियों के घृणित देवता मोलेक के लिए एक-एक मन्दिर बनवाया।
8) उसने अपनी दूसरी पत्नियों के लिए भी वही किया और वे अपने-अपने देवताओं को धूप और बलि दान चढ़ाया करती थीं।
9) इसलिए प्रभु सुलेमान पर क्रुद्ध हुआ, क्योंकि वह इस्राएल के प्रभु-ईश्वर के प्रति ईमानदार नहीं रहा। ईश्वर सुलेमान को दो बार दिखाई दिया।
10) और उसने उस अवसर पर उसे अन्य देवताओं की उपासना करने से मना किया था; किन्तु उसने उस आदेश का पालन नहीं किया था।
11) प्रभु ने सुलेमान से कहा, ÷÷तुमने यह काम किया- तुमने मेरे विधान और मेरे दिये आदेशों का पालन नहीं किया, इसलिए मैं तुम से राज्य छीन कर तुम्हारे सेवक को दे दूँगा।
12) किन्तु तुम्हारे पिता दाऊद के कारण मैं तुम्हारे जीवनकाल में ऐसा नहीं करूँगा। मैं उसे तुम्हारे पुत्र के हाथ से छीन लूँगा।
13) मैं सारा राज्य भी नहीं लूँगा। मैं अपने सेवक दाऊद और अपने चुने हुए नगर येरुसालेम के कारण तुम्हारे पुत्र को एक ही वंश प्रदान करूँगा।
14) प्रभु ने सुलेमान का एक विद्राही उत्पन्न किया। वह एदोम के राजवंश का एदोमी हदद था।
15) जब दाऊद ने एदोमियों को पराजित किया था और सेनापति योआब मारे हुए लोगों का दफ़न करने गया, तो उसने एदोम के सब पुरुषों को मार डाला था।
16) (वहाँ योआब सभी इस्राएलियों के साथ छः महीने रहा, जब तक उसने एदोम के सब पुरुषों का वध नहीं कर दिया।)
17) हदद अपने पिता के कुछ एदोमी अनुचरों के साथ मिस्र भाग निकला। उस समय हदद लड़का था।
18) वे मिदयान से आगे जा कर पारान पहूँचे। वे पारान से अपने साथ कुछ लोगों को ले कर मिस्र के राजा फ़िराउन के यहाँ मिस्र आये। उसने उसे आवास दिया, उसके भोजन का प्रबन्ध किया और उसे भूमि दी।
19) हदद फ़िराउन का इतना कृपापात्र हो गया कि उसने अपनी पत्नी की बहन के साथ, रानी तहपनेस की बहन के साथ, उसका विवाह कर दिया।
20) तहपनेस की बहन से उसके गनुबत नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका तहपनेस ने फ़िराउन के भवन में पालन-पोषण किया। गनुबत राजा फ़िराउन के बच्चों के साथ रहने लगा।
21) हदद को मिस्र में पता चला कि दाऊद अपने पितरों से जा मिला और सेनापति योआब की भी मृत्यु हो गयी है, तो हदद ने फ़िराउन से निवेदन किया कि मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिए।
22) राजा फ़िराउन ने उस से पूछा, ÷÷मेरे यहाँ तुम्हें किस बात की कमी है, जो तुम अपने देश वापस जाना चाहते हो?'' लेकिन उसने उत्तर दिया, ÷÷कोई कमी नहीं, फिर भी मुझे जाने की आज्ञा दीजिए।
23) ईश्वर ने सुुलेमान का एक दूसरा विद्रोही भी उत्पन्न किया, अर्थात् एल्यादा के पुत्र रज+ोन को, जो सोबा के राजा हददएजे+र के यहाँ से भाग गया था।
24) उसने अपने पास लोगों को एकत्रित किया और एक विद्रोही दल का नेता बन गया। जब दाऊद ने उसके कुछ लोगों को मार डाला, तो वे दमिश्क गये, वहीं बस गये और शासन करने लगे।
25) रज+ोन सुलेमान के जीवन भर हदद के समान उपद्रव और इस्राएल का विरोध करता रहा। वह अराम पर राज्य करता और इस्राएल से घृणा करता था।
26) इफ्र+ईमी नबाट का पुत्र यरोबआम सरेदा नगर का निवासी था। उसकी विधवा माँ का नाम सरूआ था। वह राजा सुलेमान का सेवक था
27) और उसके विद्रोह का विवरण इस प्रकार है। सुलेमान मिल्लो बन+वा रहा था और अपने पिता दाऊद के नगर की चारदीवारी की दरार भरवा रहा था।
28) यरोबआम सुयोग्य और वीर था। जब सुलेमान ने देखा कि वह एक कार्यकुशल युवक है, तो उसने यरोबआम को यूसुफ़ (अर्थात् मनस्से और एफ्र+ईम ) वंश में होने वाले समस्त निर्माण कार्य का निरीक्षक नियुक्त किया।
29) यरोबआम किसी दिन येरूसालेम से निकल कर कहीं जा रहा था कि रास्तें में उसे शिलो का नबी अहीया मिला। वे दोनों मैदान में अकेले थे।
30) अहीया एक नयी चादर पहने हुए था। उसने अपनी चादर के बारह टुकड़े किये
31) और यरोबआम से कहा, ÷÷दस टुकड़े ले लो; क्योंकि इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं सुलेमान के राज्य के दस वंश उसके हाथ से छीन कर तुम्हें देता हूँ।
32) मेरे सेवक दाऊद और उस येरुसालेम के कारण जिसे मैंने इस्राएल के सब वंशों में से चुना था, वह एक ही वंश रख सकता है।
33) यह इसलिए कि वह मुझ से विमुख हो कर सीदोनियों की अश्तारता-देवी, मोआबियों के कामोश देवता और अम्मोनियों के मिलकोम देवता की पूजा करने लगा है। उसने मेरे मार्गों पर न चल कर, मेरी इच्छा के अनुसार मेरी विधियों और आदेशों का पालन नहीं किया है, जैसे कि उसके पिता दाऊद ने किया था।
34) मैं उसके हाथ से सम्पूर्ण राज्य नहीं छीनूँगा, बल्कि अपने सेवक दाऊद के कारण, जिसे मैंने चुना था और जिसने मेरे आदेशों और मेरी विधियों का पालन किया था, उसे उसके जीवन भर शासक रहने दूँगा।
35) मैं राज्य को उसके पुत्र के हाथ से छीन लूँगा और तुम्हें दस वंश दे दूँगा।
36) मैं उसके पुत्र के लिए एक वंश छोड़ रखूँगा, जिससे अपने सेवक दाऊद के नाम पर मेरे सामने येरुसालेम में सदा एक दीपक जलता रहे, उस नगर में, जिसे मैंने अपने नाम की प्रतिष्ठा के लिए चुना था।
37) मैं तुम्हें चुन लूँगा और तुम अपनी इच्छा के अनुसार शासन करोगे और इस्राएल के राजा बनोगे।
38) यदि तुम मेरे द्वारा अपने को दी गयी आज्ञाओं का पालन करोगे, मेरे मार्गों पर चलोगे, मेरी विधियों और आदेशों का पालन करते ही वही करोगे, जो मेरी दृष्टि में उचित है, जैसा कि मेरे सेवक दाऊद ने किया, तो मैं तुम्हारा साथ दूँगा और तुम्हारे लिए एक सुदृढ़ वंश स्थापित करूँगा, जैसा कि मैंने दाऊद के लिए किया था और मैं तुम्हें इस्राएल दे दूँगा।
39) इस प्रकार मैं कुछ समय तक दाऊद के वंशजों को नीचा दिखाऊँगा।
40) सुलेमान ने यरोबआम को मार डालना चाहा, परन्तु वह मिस्र के राजा शीशक के यहाँ भाग गया और सुलेमान की मृत्यु तक मिस्र में ही निवास करता रहा।
41) सुलेमान का शेष इतिहास- उसका कार्यकलाप और उसकी प्रज्ञा का वर्णन- सुलेमान के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
42) सुलेमान ने येरुसालेम में सारे इस्राएल पर चालीस वर्ष तक राज्य किया।
43) इसके बाद सुलेमान अपने पितरों से जा मिला। उसे अपने पिता दाऊद के नगर में दफ़ना दिया गया। उसके स्थान पर उसका पुत्र रहबआम राजा बना।

अध्याय 12

1) रहबआम सिखेम गया, क्योंकि सभी इस्राएली उसे राजा बनाने के लिए सिखेम में एकत्रित हो रहे थे।
2) नबाट के पुत्र यरोबआम को भी इसकी सूचना मिली। अब तक वह मिस्र में रह रहा था, जहाँ वह राजा सुलेमान से भाग कर गया था।
3) लोगों ने उसे वहाँ से बुलवाया। यरोबआम और इस्राएल का सारा समुदाय रहबआम से बोला,
4) ÷÷आपके पिता ने हमारे कन्धे पर भारी जुआ रख दिया था। आप अपने पिता की कठोर बेगार और हमारे कन्धे पर रखे उसके भारी जुए को हलका करें और हम आपकी सेवा करेंगे।''
5) उसने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷जाओ और तीन दिन के बाद मुझ से फिर मिलो''। तब लोग चले गये।
6) अब राजा रहबआम ने उन बड़े-बूढ़ों से परामर्श लिया, जो उसके पिता सुलेमान के राज्यकाल में उसके यहाँ सेवा करते थे। उसने पूछा, ÷÷तुम लोगों की राय क्या है? मैं इन लोगों को क्या उत्तर दूँ?''
7) उन्होंने उस से कहा, ÷÷यदि आप अब जनता के सेवक बनेंगे, यदि आप इन लोगों की सेवा करेंगे और इन्हें अनुकल उत्तर देंगे, तो ये सदा आपके सेवक बने रहेंगे''।
8) लेकिन उसने उन बड़े-बूढ़ों की राय पर ध्यान नहीं दिया और उस युवकों से सलाह ली, जो उसके समवयस्क और उसके सेवक थे।
9) उसने उन से पूछा, ÷÷तुम लोगों की राय क्या है? मैं इन लोगों का क्या उत्तर दूँ, जो मुझ से कहते हैं- ÷आपके पिता ने हम पर जो जुआ रखा, उसे हल्का करें'?''
10) उन युवकों ने, जो उसके समवस्यक थे, उसे यह उत्तर दिया, ÷÷जो लोग आप से कहते हैं- ÷आपके पिता ने हम पर भारी जुआ रखा; आप हमारा जुआ हलका कर दें,' आप उन लोगों को यह उत्तर दें- ÷मेरी छोटी उँगली मेरे पिता की कमर से भी अधिक मोटी है।
11) ''मेरे पिता ने तुम पर भारी जुआ रखा, मैं तुम्हारा जुआ और भारी करूँगा। मेरे पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाते थे, मैं तुम्हें कील लगे कोड़ों से पिटवाउँगा'।''
12) राजा ने आज्ञा दी थी कि तीसरे दिन फिर से मेरे पास आ जाना, इसलिए यरोबआम और सब लोग तीसरे दिन रहबआम के पास लौटे।
13) तब राजा ने उन्हें कठोर उत्तर दिया। राजा रहबआम ने नेताओं की राय की अवहेलना कर
14) युवकों की राय के अनुसार उन को उत्तर देते हुए कहा, ÷÷मेरे पिता ने तुम लोगों पर भारी जुआ रख दिया, मैं उसे और अधिक भारी करूँगा। मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से पिटवाया, मैं तुम्हें कील लगे कोड़ों से पिटवाऊँगा।''
15) इस प्रकार राजा ने लोगों की माँग पर कुछ ध्यान नहीं दिया; क्योंकि यह प्रभु की लीला थी, जिससे शिलो के अहीया के माध्यम से नबाट के पुत्र यरोबआम के प्रति प्रभु की वाणी पूरी हो जाये।
16) जब सब इस्राएलियों ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तो उन्होंने राजा को उत्तर दिया, ÷÷दाऊद से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं। यिशय के पुत्र के साथ हमारा कुछ लेना-देना नहीं। इस्राएलियों् तुम घर लौट जाओ। दाऊद् तुम अपना घर सँभालों!'' इस पर इस्राएली अपने -अपने घर चले गये।
17) रहबआम केवल उन इस्राएलियों का राजा रह गया, जो यूदा के नगरों में रहते थे।
18) जब राजा रहबआम ने बेगार के अध्यक्ष अदोराम को भेजा, तो सब इस्राएली उसे तब तक पत्थर मारते रहे, जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो गयी। राजा रहबआम शीघ्र ही अपने रथ पर सवार हो कर येरूसोलेम भाग निकला।
19) इस प्रकार इस्राएल दाऊद के घराने से अलग हो गया और आज तक ऐसा ही है।
20) सब इस्राएलियों को मालूम था कि यरोबआम लौट आया है; इसलिए उन्होंने उसे अपनी सभा में बुलवाया और इसे इस्राएल का राजा बनाया। यूदा वंश के अतिरिक्त और किसी वंश ने दाऊद के घराने का पक्ष नहीं लिया।
21) जब रहबआम येरुसालेम आया, जब उसने युदा और बेनयामीन वंश के एक लाख अस्सी हज+ार चुने हुए योद्धाओं को एकत्रित किया, जिससे वे इस्राएल के घरानों से लड़ कर सुलेमान के पुत्र रहबआम के लिए राज्य फिर प्राप्त करें।
22) लेकिन ईश्वर भक्त शमाया को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
23) ÷÷सुलेमान के पुत्र, यूदा के राजा रहबआम तथा यूदा और बेनयामीन के सब इस्राएलियों से कहो-
24) प्रभु का कहना है कि तुम अपने भाई-बन्धु इस्राएलियों से लड़ने मत जाओ। प्रत्येक व्यक्ति अपने घर वापस चला जाये; क्योंकि राज्य के विभाजन में मेरा हाथ है।'' उन्होंने प्रभु की वाणी पर ध्यान दिया और प्रभु की आज्ञा के अनुसार वे घर लौट गये।
25) यरोबआम ने एफ्र+ईम के पहाड़ी प्रदेश में स्थित सिखेम को क़िलाबन्द कर दिया और वह वहाँ रहने लगा। इसके बाद उसने पनूएल को क़िलाबन्द बनाया।
26) यूरोबआम ने अपने मन में यह कहा, ÷÷मेरा राज्य फिर दाऊद के घराने के अधिकार में आ जायेगा।
27) यदि वह प्रजा प्रभु के मन्दिर में बलि चढ़ाने के लिए येरुसालेम जाती रहेगी, तो उसका हृदय उसके स्वामी, यूदा के राजा रहबआम की ओर आकर्षित हो जायेगा। ये लोग मेरी हत्या करेंगे और यूदा के राजा रहबआम के पास लौटेंगे।''
28) इस बात पर विचार करने के बाद राजा ने सोने के दो बछड़े बनवाये और लोगों से कहा, ÷÷तुम लोग बहुत समय तक येरुसालेम जाते रहे। इस्राएलियों! ये ही वे देवता हैं, जो तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाये।''
29) उसने एक मूर्ति बेतेल में स्थापित की और दूसरी मूर्ति दान में।
30) यह लोगों के लिए पाप का कारण बना; क्योंकि वे उन मूर्तियों की उपासना करने के लिए बेतेल और दान जाया करते थे।
31) राजा ने पहाड़ियों पर भी पूजास्थान बनवाये और उनके लिए जनसाधारण में ऐसे लोगों को पुरोहित के रूप में नियुक्त किया, जो लेवीवंशी नहीं थे।
32) यरोबआम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन एक पर्व का भी प्रवर्तन किया, जो यूदा में होने वाले पर्व के सदृश था। उस अवसर पर उसने अपने द्वारा बेतेल में स्थापति वेदी पर उन बछड़ों की बलि चढ़ायी, जिन्हें उसने बनवाया था। उसने पहाड़ियों पर बनवाये पूजास्थानों के पुरोहितों को बेतेल में नियुक्त किया।
33) वह आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन, जिस दिन को उसने स्वयं निर्धारित किया था, बेतेल की वेदी की ओर चढ़ा। उसने इस्राएलियों के लिए इस पर्व का प्रर्वतन किया। वह धूप चढ़ाने के लिए वेदी की ओर बढ़ा।

अध्याय 13

1) जब यरोबआम वेदी के निकट खड़ा हो कर धूप चढ़ा रहा था, तो प्रभु का भेजा हुआ एक ईश्वर-भक्त यूदा से बेतेल आया।
2) उसने प्रभु की आज्ञा से वेदी के विरोध में ऊँचे स्वर से कहा, ÷÷वेदी! वेदी! प्रभु यह कहता हे- देख, दाऊद के घराने में योशीया नाम का एक पुत्र पैदा होगा। वह तुझ पर पहाड़ी पूजास्थानों के उन याजकों की बलि चढ़ायेगा, जो तुझ पर धूप चढ़ाते हैं। तुझ पर मनुष्यों की हड्डियाँ जलायी जायेंगी।''
3) ईश्वर-भक्त ने उसी दिन यह कहते हुए एक चिन्ह दिया, ÷÷प्रभु का बताया हुआ चिन्ह यह है- देखो, वेदी फूट जायेगी, उस पर रखी हुई चरबी फैल जायेगी''।
4) जब राजा ने ये शब्द सुने, तो उस ईश्वर भक्त ने बेतेल की वेदी के विरुद्ध कहे थे, तो यरोबआम ने वेदी के निकट से हाथ उठा कर संकेत करते हुए आज्ञा दी, ÷÷उसे पकड़ लो!'' लेकिन वह हाथ अकड़ गया, जिसे उनसे उसके विरुद्ध बढ़ाया था और वह उसे अपनी और नहीं मोड़ सका
5) वेदी फट गयी और वेदी पर रखी हुई चरबी फैल गयी, जेसा प्रभु की आज्ञा से प्रेरित ईश्वर-भक्त ने संकेत दिया था।
6) अब राजा ईश्वर-भक्त से निवेदन करने लगा, ÷÷प्रभु, अपने ईश्वर को शान्त करो। मेरे लिए प्रार्थना करो, जिससे मेरा हाथ फिर पहले-जैसा हो जाये।'' इस पर ईश्वर-भक्त ने प्रभु से प्रार्थना की और राजा का हाथ अच्छ+ा हो गया। अब वह फिर पहले-जैसा हो गया।
7) अब राजा ने ईश्वर-भक्त से कहा, ÷÷मेरे साथ घर आ कर भोजन करो। मैं तुम्हें उपहार दूँगा।''
8) लेकिन ईश्वर-भक्त ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷यदि आप मुझे अपना आधा महल भी दे दें, तो भी मैं आपके साथ नहीं जाऊँगा और न वहाँ खाऊँगा-पिऊँगा;
9) क्योंकि प्रभु की वाणी द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है कि तुम न तो खाओगे, न पियोगे और न उस मार्ग से लौटोगे, जिस पर से तुम चल कर आये हो''।
10) इसके बाद वह दूसरे मार्ग से चला गया। वह जिस मार्ग से बेतेल आया था, उस से नहीं लौटा।
11) बेतेल में एक बूूढ़ा नबी रहता था। उसके बेटों ने घर लौट कर उसे वह सब बताया, जो ईश्वर-भक्त ने उस दिन बेतेल में किया और राजा से कहा था। जब उन्होंने अपने पिता को इस प्रकार बताया,
12) तब उनके पिता ने उन से पूछा, ÷÷वह किस रास्ते से गया है?'' पुत्रों ने उसे यूदा से आये ईश्वर-भक्त के जाने का मार्ग बताया।
13) इस पर उसने अपने पुत्रों का आज्ञा दी, ÷÷मेरे लिए गधा कसो''। गधे के कसे जाने पर वह उस पर सवार हुआ
14) और ईश्वर-भक्त के पीछे चल पड़ा। उसने उसे बलूत वृक्ष के नीचे बैठा पाया। वह उस से पूछने लगा, ÷÷क्या यूदा से आये ईश्वर-भक्त तुम्हीं हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ, मैं ही हूँ।''
15) तब वह उससे बोला, ÷÷भोजन करने मेरे साथ मेरे घर चलो''।
16) किन्तु उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं न तो लौट सकता और न तुम्हारे साथ चल सकता। मैं तुम्हारे साथ वहाँ न तो भोजन करूँगा और न पानी पिऊँगा;
17) क्योंकि प्रभु की वाणी द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है कि तुम न वहाँ खाना, न पीना और न उस मार्ग से लौटना, जिस पर से चल कर तुम वहाँ गये हो।''
18) उसने उत्तर दिया, ÷÷तुम्हारी तरह मैं भी एक नबी हूँ। प्रभु की आज्ञा से एक दूत ने मुझ से कहा है कि उसे अपने यहाँ ले जाओ, जिससे वह कुछ खा-पी सके।'' वह उस से इस प्रकार झूठ बोला।
19) तब वह उसके साथ गया और उसके यहाँ खाया-पिया।
20) वे भोजन करने बैठ ही रहे थे कि प्रभु की वाणी उस नबी को सुनाई पड़ी, जिसे वह ले आया था।
21) उसने यूदा से आये ईश्वर-भक्त ने कहा, ÷÷प्रभु का कहना है- तुमने प्रभु की वाणी की अवहेलना की और उस आज्ञा का पालन नहीं किया, जो प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें दी थी,
22) बल्कि लौट पर तुमने उसी स्थान पर खाया-पिया, जहाँ मैंने तुम्हें खाने-पीने को मना किया था; इसलिए तुम्हारा शव तुम्हारे पूर्वजों के समाधिस्थान में नहीं दफ़नाया जायेगा।''
23) ईश्वर-भक्त के खाने-पीने के बाद वृद्ध नबी ने उस नबी का गधा कसवाया, जिसे वह लौटा कर लाया था।
24) फिर वह चला गया। रास्ते में उसे एक सिंह मिला, जिसने उसे मार डाला। उसकी लाश रास्ते में पड़ी रही। गधा पास ही खड़ा रहा। वह सिंह लाश के पास खड़ा रहा।
25) पास से निकलने वाले लोगों ने जब मृतक को मार्ग पर पड़ा हुआ और लाश के पास सिंह को खडा देखा, तो उन्होंने जा कर नगर में रहने वाले बूढ़े नबी को इसकी सूचना दी।
26) उसे नबी ने, जिसने उसे लौटाया था, यह सुन कर कहा, ÷÷वह वही ईश्वर-भक्त है, जिसने प्रभु की वाणी की अवहेलना की है; इसलिए प्रभु ने उस सिंह को उस पर छोड़ दिया और उसने उस पर टूट कर उसे मार डाला - ठीक वैसे ही, जैसे प्रभु ने उस से कहा था''।
27) इस पर उसने अपने पुत्रों को अपने लिए गधा कसने के आज्ञा दी।
28) उन्होंने गधा कस दिया। तब उसने वहाँ जा कर मृतक को मार्ग पर पड़ा हुआ तथा गधे और सिंह को लाश के पास खड़ा पाया। सिंह ने न तो शव खाया था और न गधे को फाड़ कर मारा था।
29) ईश्वर-भक्त का शव उठा कर और उसे गधे पर रख कर वह नबी उसे नगर में ले आया, जिससे वह शोक मनाये और उसे दफ़ना दे।
30) उसने मृतक को अपनी ही क़ब्र में दफ़नाया और उस पर शोक मनाते हुए कहा, ÷÷हाय! मेरे भाई!''
31) उसे दफ़नाने के बाद उसने अपने पुत्रों से कहा, ÷÷मेरे मरने पर तुम मुझे भी इसी क़ब्र में रखोगे, जिस में ईश्वर-भक्त दफ़नाया गया है। तुम उसकी हड्डियों के पास ही मेरी भी हड्डियाँ रखोगे,
32) क्योंकि उसने प्रभु की आज्ञा से जो सन्देश बेतेल की वेदी और समारिया के नगरों के पहाड़ी पूजास्थानों पर बने सब मन्दिरों के विरुद्ध दिया था, वह अवश्य पूर्ण होगा।''
33) फिर भी यरोबआम ने अपना पापाचरण नहीं छोड़ा। वह पहाड़ी पूजास्थानों के लिए जनसाधारण में से पुरोहितों को नियुक्त करता जाता था। जो भी चाहता था, यरोबआम उसका किसी पहाड़ी पूजास्थान के पुरोहित के रूप में अभिषेक करता था।
34) यही यरोबआम के घराने के लिए पाप का अवसर बना और यही कारण है कि आगे चल कर उसके राज्य का पतन हुआ और पृथ्वी पर से उसका अस्तित्व मिला दिया गया है।

अध्याय 14

1) उस समय यरोबआम का पुत्र अबीया बीमार पड़ा।
2) तब यरोबआम ने अपनी पत्नी से कहा, ÷÷वेश बदल लो, जिससे कोई यह न जान पाये कि तुम यरोबआम की पत्नी हो और शिलो चली जाओ। वहाँ नबी अहीया रहता है, जिसने पहले मुझ से कहा था कि तुम इन लोगों के राजा बनोगे।
3) दस रोटियाँ, कुछ पूरियाँ और एक कुुप्पी मधु साथ ले कर उसके पास जाओ। वह तुम्हें बतायेगा कि इस लड़के का क्या होगा।''
4) यरोबआम की पत्नी ने यही किया। वह चल कर शिलो में अहीया के घर पहुँची। अहीया नहीं देख सकता था, क्योंकि बुढ़ापे के कारण उसकी आँखों की ज्योति धुँधली पड़ गयी थी।
5) प्रभु ने अहीया से कहा, ÷÷देखो, यरोबआम की पत्नी अपने बीमार पुत्र के विषय में पूछने आ रही है। तुम उस से इस प्रकार कहना..। वह आ कर दूसरी स्त्री होने का स्वाँग रचेगी।''
6) जब वह द्वार पर पहुँची और अहीया ने उसके पैरों की आवाज+ सुनी, तो उसने उस से कहा, ÷÷यरोबआम की पत्नी, अन्दर आ जाओ! तुम दूसरी स्त्री होने का स्वाँंग क्यों रचती हो?
7) मुझे तुम को बुरा समाचार सुनाना है। तुम यरोबआम के पास जा कर यह कहोः ÷÷प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का कहना है कि मैंने तुम्हें लोगों में ऊँचा उठाया और तुम्हें अपनी प्रजा इस्राएल का शासक नियुक्त किया।
8) मैंने दाऊद के घराने से राज्य छीन कर उसे तुम को दिया, परन्तु तुम मेरे सेवक दाऊद के समान नहीं निकले, जिसने मेरी आज्ञाओं का पालन किया था और मुझे प्रिय लगने वाले कर्म करते हुए सम्पूर्ण हृदय से मेरा अनुसरण किया था।
9) तुमने अपने से पहले के सब लोगों से अधिक कुकर्म किये। तुमने अपने लिए अन्य देवता, ढली मूर्तियाँ बनवायीं। तुमने मुझे अप्रसन्न किया और मुझे त्याग दिया।
10) इसलिए मैं यरोबआम के घराने पर विपत्तियाँ ढाहूँगा और इस्राएल में सब पुरुषों को -चाहे वे स्वतन्त्र हों या दास नष्ट करूँगा। मैं यरोबआम के घराने को वैसे ही भस्म कर डालूँगा, जैसे कोई कण्डे को जला कर राख कर देता है।
11) यरोबआम के घराने का जो कोई नगर में मरेगा, उसे कुत्ते खा जायेंगे और जो खुले मैदान में मरेगा उसे आकाश के पक्षी नोच कर खायेंगे। यह प्रभु की वाणी है।
12) तुम अपने घर लौट जाओ। ज्यों ही तुम नगर मे पैर रखोगी, लड़का मर जायेगा।
13) समसत इस्राएल उसके लिए शोक मनायेगा और उसे दफ़नायेगा; क्योंकि यरोबआम के घराने में वही अकेला क़ब्र में दफ़नाया जायेगा। कारण यह है कि यरोबआम के घराने में केवल उस में ही कुछ ऐसा पाया गया है, जो प्रभु, इस्राएल के ईश्वर को अच्छा लगा है
14) और प्रभु इस्राएल पर एक ऐसा राजा नियुक्त करेगा, जो आज ही यरोबआम के घराने को नष्ट कर देगा।
15) प्रभु इस्राएल को इस तरह मारेगा कि वह पानी के नरकुल की तरह हिल उठेगा। वह इस्राएल को इस अच्छे देश से, जिसे उसने उसके पूर्वजों को दिया है, उखाड़ कर फ़रात नदी के उस पार फेंक देगा; क्योंकि उसने अपने लिए अशेरा-देवी के खूँटे बनवाये और प्रभु का क्रोध भड़काया।
16) वह यरोबआम द्वारा किये गये पापों के कारण और उन पापों के कारण, जो उसने इस्राएलियों से करवाये, इस्राएलियों को त्याग देगा।''
17) इसके बाद यरोबआम की पत्नी उठ कर चली गयी और तिर्सा पहुँची। वह घर की देहली पर पहुँची ही थी कि लड़का मर गया।
18) सब इस्राएलियों ने उसे दफ़ना दिया और उसके लिए शोक मनाया- जैसा कि प्रभु ने अपने सेवक नबी अहीया द्वारा कहा था।
19) यरोबआम का शेष इतिहास- इसके युद्ध और उसके शासन का वर्णन - इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
20) यरोबआम ने बाईस वर्ष राज्य किया। इसके बाद वह अपने पितरों से जा मिला। इसके स्थान पर उसका पुत्र नादाब राजा बना।
21) यूदा में सुलेमान का पुत्र रहबआम राज्य करने लगा। जब रहबआम राजा बना, तो उसकी अवस्था इकतालीस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में सत्रह वर्ष शासन किया- उस नगर में, जिसे प्रभु ने इस्राएल के सब वंशों में से अपने नाम की प्रतिष्ठा के लिए चुना था। उसकी माता का नाम नामा था। वह अम्मोनी जाति की थी।
22) यूदा वंशियों ने वही काम किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। उन्होंने अपने पापकर्मां से प्रभु का कोप अपने पूर्वजों से भी अधिक भड़काया।
23) उन्होंने टीलों पर पूजास्थान बनवाये और प्रत्येक ऊँची पहाड़ी पर एवं प्रत्येक घने पेड़ के नीचे पूजा-स्तम्भ और अशेरा-देवी के खूँटे प्रतिष्ठित किये।
24) ऐसे लोग भी देश में थे, जो पूजा की आड़ में पुरुषगमन करते थे। उन्होंने उन राष्ट्रों के सारे घृणित कर्मों का अनुसरण किया, जिन्हें प्रभु ने इस्राएलियों के सामने से भगा दिया था।
25) राजा रहबआम के पाँचवें वर्ष मिस्र के राजा शीशक ने येरुसालेम पर आक्रमण किया।
26) उसने प्रभु के मन्दिर और राजभवन के सारे ख़जाने लूट लिये। उसने सब कुछ छीन लिया- सोने की उन ढालों को भी, जिन्हें सुलेमान ने बनवाया था।
27) राजा रहबआम ने उनकी जगह काँसे की ढालें बनवायीं और उन्हें उन अंगरक्षकों के अध्यक्षों को सौंपा, जो राजभवन के द्वार पर पहरा देते थे।
28) जब-जब राजा प्रभु के मन्दिर में जाता था, अंगरक्षक उन्हें हाथ में लिये रहते और उसके बाद वे उन्हें रक्षकों के कमरे में ले जा कर रख देते।
29) रहबआम का शेष इतिहास और उसका सारा कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
30) रहबआम और यरोबआम में सदा युद्ध होता रहा।
31) रहबआम अपने पितरों से जा मिला और अपने पितरों के पास दाऊदनगर में दफ़ना दिया गया। उसकी माँ का नाम नामा था। वह अम्मोनी जाति की थी। उसका पुत्र अबीयाम उसकी जगह राजा बना।

अध्याय 15

1) नबाट के पुत्र राजा यरोबआम के शासन के अठारहवें वर्ष अबीयाम यूदा का राजा बना।
2) उसने येरुसालेम में तीन वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम माका था, जो अबसालोम की पुत्री थी।
3) अबीयाम ने वही कुकर्म किये, जो उसका पिता उसके पहले कर चुका था। उसका हृदय अपने पूर्वज दाऊद की तरह पुभु, अपने ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से ईमानदार नहीं रहा।
4) प्रभु, उसके ईश्वर ने केवल दाऊद के कारण येरुसालेम में उसके बाद उसके पुत्र के रूप में एक दीपक छोड़ रखा था और येरुसालेम को भी सुरक्षित रखा था;
5) क्योंकि दाऊद ने ऐसे कार्य किये थे, जो प्रभु को प्रिय थे। हित्ती ऊरीया के मामले के सिवा उसने जीवन भर कभी प्रभु की किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया था।
6) अबीयाम के जीवनकाल में रहबआम और यरोबआम में हमेशा युद्ध होता रहा।
7) अबीयाम का शेष इतिहास और उसका सारा कार्यकलाप यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है। अबीयाम और यरोबआम में भी युद्ध होता रहा।
8) अबीयाम अपने पितरों से जा मिला और दाऊदनगर में दफ़नाया गया। उसका पुत्र आसा उसकी जगह राजा बना।
9) इस्राएल के राजा यरोबआम के शासन के ÷बीसवें वर्ष आसा यूदा का राजा बना।
10) उसने येरुसालेम के इकतालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी दादी का नाम माका था, जो अबसालोम की पुत्री थी।
11) आसा ने अपने पुरखे दाऊद की तरह ऐस काम किये जो प्रभु की दृष्टि में अच्छे थे।
12) उसने देश से उन लोगों को निकाल दिया, जो पूजा की आ+ड़ में पुरुषगमन करते थे और वे सारी देवमूर्तियाँ भी हटा दीं, जिन्हें उसके पुरखों ने बनवाया था।
13) उसने अपनी दादी माका को राजमाता के पद से हटा दिया, क्योंकि उसने घृणित अशेरा-देवी का खँूट बनवाया था। आसा ने उसके द्वारा स्थापित घृणित मूर्ति तुड़वा दी और केद्रोन घाटी में जलवा दी।
14) केवल पहाड़ी पूजास्थान अभी तक नष्ट नहीं किये गये थे। आसा का हृदय जीवन भर प्रभु के प्रति ईमानदार रहा।
15) उसने अपने पिता के और अपने सभी च+ढ़ावे मन्दिर में रखवाये- चाँदी, सोना और पात्र।
16) आसा और इस्राएल के राजा बाशा में तब तक युद्ध होता रहा, जब तक दोनों जीवित रहे।
17) इस्राएल के राजा बाशा ने यूदा पर आक्रमण कर रामा को क़िलाबन्द बनाना चाहा, जिससे यूदा के राजा आसा की ओर से न तो कोई उसके यहाँ आ सके और न कोई इधर से जा सके।
18) तब आसा ने प्रभु के मन्दिर और अपने महल के कोषागारों में बची हुई सब चाँदी और सोना ले लिया और उसे अपने सेवकों द्वारा हेज+योन के पौत्र, टबरिम्मोन के पुत्र, दमिश्कवासी अराम के राजा बेनहदद के यहाँ यह कहते हुए भेजा,
19) ÷÷मुझ में और आप में, मेरे पिता और आपके पिता में सन्धि है। देखिए, मैं आप को उपहार के रूप में चाँदी और सोना भेज रहा हूँ। अब इस्राएल के राजा बाशा से अपनी सन्धि तोड़ डालिए, जिससे वह मुझ पर और आक्रमण नहीं करे।''
20) बेन-हदद ने राजा आसा की बात मन ली। उसने अपने सेनापतियों को इस्राएल के नगरों पर आक्रमण करने भेजा और इय्योन, दान, आबेल-बेत-माका, सारा किन्नेरोत और नफ्+ताली प्रान्त को अधिकार में कर लिया।
21) यह सुन कर बाशा ने रामा को क़िलाबन्द करने का काम रोक दिया और तिर्सा में रहने लगा।
22) अब राजा आसा ने सभी यूदावंशियों को बुलवाया और वे बाशा द्वारा रामा में एकत्रित सब पत्थर और लकड़ी ले गये। इन से राजा आसा ने बेनयामीन के गेबा और मिस्पा को क़िलाबन्द करवाया।
23) आसा का शेष इतिहास, उसकी सभी विजयों, उसके समस्त कार्यकलाप और उसके द्वारा बनवाये नगरों का वर्णन यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है। उसकी वृद्धावस्था में उसकें पाँवों में बीमारी हो गयी।
24) आसा अपने पितरों से जा मिला और वह पितरों के पास ही दाऊदनगर में दफ़नाया गया। उसका पुत्र यहोशाफाट उसकी जगह राजा बना।
25) यूदा के राजा आसा के शासन के दूसरे वर्ष यरोबआम का पुत्र नादाब इस्राएल का राजा बना।
26) उसने इस्राएल पर दो वर्ष तक राज्य किया। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। वह अपने पिता के मार्ग पर चला और उसने अपने पिता की तरह इस्राएल से पाप करवाया।
27) इस्साकारवंशी अहीया के पुत्र बाशा ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र किया और उसे फ़िलिस्तियों के नगर गिब्बतोन में उस समय मार गिराया, जब नादाब और सभी इस्राएली गिब्बतोन को घेरे हुए थे।
28) यूदा के राजा आसा के शासन के तीसरे वर्ष बाशा ने उसका वध किया और उसकी जगह स्वयं राज्य करने लगा।
29) राजा बनते ही उसने यरोबआम के घराने के सब लोगों को मार दिया। जैसा प्रभु ने अपने शिलोवासी सेवक अहीया द्वारा कहा था, ठीक वैसा ही उसने उसके घर में एक भी प्राणी जीवित नहीं छोड़ा।
30) यह यरोबआम द्वारा किये गये उन पापों के कारण हुआ, जिन्हें करने उसने इस्राएलियों को फुसलाया था और इसलिए भी कि उसने प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का क्रोध भड़काया था।
31) नादाब का शेष इतिहास और उसका सारा कार्यकलाप इस्राएलियों के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
32) आसा और इस्राएल के राजा बाशा के बीच तब तक युद्ध होता रहा, जब तक वे जीवित थे।
33) यूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष अहीया का पुत्र बाशा सारे इस्राएल का राजा बना। उसने तिर्सा में चौबीस वर्ष तक राज्य किया।
34) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। यह यरोबआम के मार्ग पर चला और उसने यरोबआम की तरह इस्राएल से पाप कराया।

अध्याय 16

1) इसलिए हनानी के पुत्र येहू को बाशा के विरुद्ध प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी :
2) ÷÷मैंने तुम्हें धूल से उठा कर अपनी प्रजा इस्राएल का नेता बनाया, परन्तु तुम यरोबआम के मार्ग पर चलते रहे और तुमने मेरी प्रजा इस्राएल को पाप करने को फुसलाया और इस प्रकार उनके पापों के कारण मेरा क्रोध प्रज्वलित किया।
3) इसलिए मैं बाशा और उसके घराने को मिटा दूँगा और तुम्हारे घराने के साथ वैसा ही करूँगा, जैसा मैंने नबाट के पुत्र यरोबआम के घराने के साथ किया।
4) बाशा के घराने का जो कोई नगर में मरेगा, उसे कुत्ते खा जायेंगे और जो खुले मैदान में मरेगा, उसे आकाश के पक्षी नोच कर खायेंगे।''
5) बाशा का शेष इतिहास, उसके कार्यकलाप और उसकी विजयों का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
6) बाशा अपने पितरों से जा मिला और वह तिर्सा में दफ़नाया गया। उसका पुत्र एला उसकी जगह राजा बना।
7) प्रभु ने हनानी के पुत्र नबी येहू द्वारा जो कहा था, वह बाशा और उसके घराने पर उन कुकर्मों के कारण घटित हुआ, जिन्हें उसने प्रभु की दृष्टि में किये थे। उसने यरोबआम के घराने की तरह अपने कर्मां के कारण प्रभु का क्रोध भड़काया और इस लिए भी उसने यरोबआम के घराने का सर्वनाथ किया।
8) यूदा के राजा आसा के छब्बीसवें वर्ष बाशा का पुत्र एला इस्राएल का राजा बना। उसने तिर्सा में दो वर्ष तक राज्य किया।
9) उसके सेवक जि+म्री ने, जो आधी रथ-सेना का अध्यक्ष था, उसके विरुद्ध षड़यन्त्र रचा। उस समय एला तिर्सा में था, जहाँ वह महल के प्रबन्धक अर्सा के घर में मदिरा पी कर नशे में चूर था।
10) जि+म्री ने वहाँ घुस कर यूदा के राजा आसा के राज्यकाल के सत्ताईसवें वर्ष एला को मार डाला और उसके स्थान पर वह स्वयं राजा बन बैठा।
11) जैसे ही वह राजा बना और उसे सिंहासन प्राप्त हुुआ, उसने बाशा के घराने के सब लोगों का वध किया। उसने उसके एक भी पुरुष को जीवित नहीं छोड़ा- चाहे वह सम्बन्धी हो या मित्र।
12) इस प्रकार, जैसा कि प्रभु ने नबी येहू द्वारा बाशा के विषय में कहा था, जि+म्री ने बाशा के सारे घराने का विनाश किया।
13) यह सब उन पापों के कारण हुआ, जो बाशा और उसके पुत्र एला ने किये थे और जिन्हें करने के लिए उन्होंने इस्राएलियों को फुसलाया था और इसलिए भी कि उन्होंने अपनी निस्सार देवमूर्तियों द्वारा प्रभु इस्राएल के ईश्वर का क्रोध भड़काया था।
14) एला का शेष इतिहास और उसका सारा कार्यकलाप इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
15) यूदा के राजा आसा के सत्ताईसवें वर्ष जि+म्री ने तिर्सा में सात दिन तक राज्य किया। उस समय सेना फ़िलिस्तियों के गिब्बतोन से युद्ध कर रही थी।
16) जब सैनिकों ने पड़ाव में सुना कि जि+म्री ने षड़यन्त्र रच कर राजा को मार डाला है, तो उन्होंने उसी दिन सेनापति ओम्री को पड़ाव में समस्त इस्राएल का राजा घोषित किया।
17) ओम्री ने इभी इस्राएलियों को साथ ले कर गिब्बतोन से प्रस्थान किया और तिर्सा को घेर लिया।
18) जब जि+म्री ने देखा कि ओम्री ने नगर अधिकार में कर लिया, तो वह राजमहल के मढ़ में घुसा और उसने महल में आग लगा दी और उसकी मृत्यु हो गयी।
19) यह उसके पापों के कारण हुआ। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। उसने यरोबआम के मार्ग पर चल कर पाप किया और इस्राएल से पाप कराया था।
20) जि+म्री का शेष इतिहास और उसके षड़यंत्र का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
21) इसके बाद इस्राएली लोग दो दलों में बँट गये। एक दल ने गीनत के पुत्र तिबनी को राजा बनाने के लिए उसका पक्ष लिया और दूसरे दल ने ओम्री का पक्ष लिया।
22) ओम्री के समर्थक गीनत के पुत्र तिबनी के समर्थकों से अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुए। तिबनी की मृत्यु हो गयी और ओम्री राजा बना।
23) यूदा के राजा आसा के इकतीसवें वर्ष ओम्री इस्राएल का राजा बना। उसने बारह वर्ष तक राज्य किया। उसने तिर्सा में छः वर्ष राज्य किया।
24) इसके बाद उसने दो मन चाँदी दे कर शेमेर से समारिया की पहाड़ी खरीदी। उसने उस पहाड़ी को क़िलाबन्द किया और पहाड़ी के मालिक के नाम पर अपने द्वारा बसाये नगर का नाम समारिया रखा।
25) ओम्री ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। उसने अपने पहले के सभी राजाओं से भी अधिक कुकर्म किये।
26) वह सब बातों से नबाट के पुत्र यरोबआम के मार्ग पर चलता था और उसने इस्राएल से पाप कराया, जिससे उन्होंने अपनी निस्सार देवमूर्तियों द्वारा प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का क्रोध भड़काया।
27) ओम्री का शेष इतिहास, उसके कार्य-कलाप और उसकी विजयों का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
28) ओम्री अपने पितरों से जा मिला और वह समारिया में दफ़नाया गया। उसका पुत्र अहाब उसकी जगह राजा बना।
29) यूदा के राजा आसा के अड़तीसवें वर्ष ओम्री का पुत्र अहाब एस्राएल का राजा बना। उसने समारिया में इस्राएल पर बाईस वर्ष तक राज्य किया।
30) ओम्री के पुत्र अहाब ने अपने पहले के सभी राजाओं से अधिक ऐसे कर्म किये, जो पुभु की दृष्टि में बुरे हैं।
31) नबाट के पुत्र यरोबआम के पापों का अनुकरण करना तो उसके लिए एक साधारण-सी बात थी। उसने सीदोनियों के राजा एतबाल की पुत्री ईजे+बेल से विवाह किया और बाल-देव का सेवक बन कर वह उसकी पूजा करता था।
32) उसने अपने द्वारा समारिया में निर्मित बाल-देव के मन्दिर में बाल-देव के लिए एक वेदी बनवायी।
33) अहाब ने अशेरा-देवी का खूँट बनवाया। अहाब ने अन्य ऐसे कर्म किये, जिन से उसने अपने पहले के सभी इस्राएली राजाओं से अधिक प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का कोप भड़काया।
34) बेतेल के हीएल ने उसके राज्यकाल में येरीख़ो का पुननिर्माण किया। उसने अपने पहलौठे पुत्र अबीराम की कीमत पर उसकी नींव डाली और अपने सब से छोटे पुत्र सबूब की क़ीमत पर फाटक लगवाये। यह नून के पुत्र योशुआ द्वारा प्रभु के कथन के अनुसार हुआ।

अध्याय 17

1) गिलआद के तिशबे-निवासी एलियाह ने अहाब से कहा, ÷÷इस्राएल के उस जीवन्त प्रभु-ईश्वर की शपथ, जिसका मैं सेवक हूँ! जब तक मैं नहीं कहूँगा, तब तक अगले वर्षों में न तो ओस गिरेगी और न पानी बरसेगा।''
2) इसके बाद एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई दी,
3) ÷÷यहाँ से पूर्व की ओर जाओ और यर्दन नदी के पूर्व करीत घाटी में छिपे रहो।
4) तुम नदी का पानी पिओगे। मैंने कौवों को आदेश दिया कि वे वहाँ तुम्हें भोजन दिया करें।''
5) प्रभु ने जैसा कहा, एलियाह ने वैसा ही किया। वह जा कर यर्दन के पूर्व करीत की घाटी में रहने लगा।
6) कौवे सुबह शाम उसे रोटी और मांस ला कर देते थे और वह नदी का पानी पीता था।
7) नदी में पानी सूख गया, क्योंकि पृथ्वी पर पानी नहीं बरसा था।
8) तब एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
9) ÷÷उठो। सीदोन के सरेप्ता जाओ और वहाँ रहो। मैंने वहाँ की एक विधवा को आदेश दिया कि वह तुम्हें भोजन दिया करे।''
10) एलियाह उठ कर सरेप्ता गया। शहर के फाटक पर पहुँच कर उसने वहाँ लकड़ी बटोरती हुई एक विधवा को देखा और उसे बुला कर कहा, ÷÷मुझे पीने के लिए घड़े में थोड़ा-सा पानी ला दो''।
11) वह पानी लाने जा ही रही थी कि उसने उसे पुकार कर कहा, ÷÷मुझे थोड़ी-सी रोटी भी ला दो''।
12) उसने उत्तर दिया, ÷÷आपका ईश्वर, जीवन्त प्रभु इस बात का साक्षी है कि मेरे पास रोटी नहीं रह गयी है। मेरे पास बरतन में केवल मुट्ठी भर आटा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है। मैं दो-एक लकड़ियाँ बटोरने आयी हूँ। अब घर जा कर उसे अपने लिए और अपने बेटे के लिए पकाती हूँ। हम उसे खायेंगे और उसके बाद हम मर जायेंगे।''
13) एलियाह ने उस से कहा, ÷÷मत डरो। जैसा तुमने कहा, वैसा ही करो। किन्तु पहले मेरे लिये एक छोटी-सी रोटी पका कर ले आओ। इसके बाद अपने लिए और अपने बेटे के लिए तैयार करना;
14) क्योंकि इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः जिस दिन तक प्रभु पृथ्वी पर पानी न बरसाये, उस दिन तक न तो बरतन में आटा समाप्त होगा और न तेल की कुप्पी खाली होगी ।''
15) एलियाह ने जैसा कहा था, स्त्री ने वैसा ही किया और बहुत दिनों तक उस स्त्री, उसके पुत्र और एलियाह को खाना मिलता रहा।
16) जैसा कि प्रभु ने एलियाह के मुख से कहा था, न तो बरतन में आटा समाप्त हुआ और न तेल की कुप्पी ख़ाली हुई।
17) बाद में गृहस्वामिनी का पुत्र बीमार पड़ा और उसकी हालत इतनी ख़राब हो गयी कि उसके प्राण निकल गये।
18) स्त्री ने एलियाह से कहा, ÷÷ईश्वर-भक्त! मुझ से आपका क्या? क्या आप मेरे पापों की याद दिलाने और मेरे पुत्र को मारने मेरे यहाँ आये?''
19) उसने उत्तर दिया, ÷÷अपना पुत्र मझ को दो''। एलियाह ने उसे उसकी गोद से ले लिया और ऊपर अपने रहने के कमरे में ले जा कर अपने पलंग पर लिटा दिया।
20) तब उसने यह कह कर प्रभु से प्रार्थना की, ''प्रभु! मेरे ईश्वर! जो विधवा मुझे अपने यहाँ ठहराती है, क्या तू उसके पुत्र को संसार से उठा कर उसे विपत्ति में डालना चाहता है?''
21) तब वह तीन बार बालक पर लेट गया और उसने यह कह कर प्रभु से प्रार्थना की, ''प्रभु! मेरे ईश्वर! ऐसा कर कि इस बालक के प्राण इस में लौट आयें''।
22) प्रभु ने एलियाह की प्रार्थना सुनी, उस बालक के प्राण उसमें लौटे और वह जीवित हो उठा।
23) एलियाह उसे उठा कर ऊपर वाले कमरे से नीचे, घर में ले गया और उसे उसकी माता को लौटाते हुए उसने कहा, ÷÷देखो, तुम्हारा पुत्र जीवित है''।
24) स्त्री ने उत्तर दिया, ÷÷अब मैं जान गयी हूँ कि आप ईश्वर-भक्त हैं और प्रभु की जो वाणी आपके मुख में है, वह सच्चाई है''।

अध्याय 18

1) बहुत समय के बाद, सूखे के तीसरे वर्ष एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सनाई पड़ी, ÷÷अहाब से मिलने जाओ। मैं पृथ्वी पर फिर वर्षा करूँगा।''
2) एलियाह अहाब के यहाँ गया। समारिया में भयंकर अकाल था।
3) इसलिए अहाब ने अपने महल के प्रबन्धक ओबद्या को बुलाया। (वह प्रभु का सच्चा भक्त था।
4) जिस समय ईजे+बेल ने प्रभु के नबियों को मार डालना चाहा था, ओबद्या ने एक सौ नबियों को ले जा कर उन्हें पचास-पचास की संख्या में दो गुफाओं मेुं छिपाया था और उनके खान-पीने का प्रबन्ध किया था।)
5) अहाब ने ओबद्या को आज्ञा दी, ÷÷देश भर में भ्रमण करते हुए समस्त घाटियों में सब जलस्रोतों का पता लगाओ। हो सकता है कि हमें घोड़ों और खच्चरों को जीवित रखने के लिए कुछ घास मिल जाये और हमें अपनी पशुओं में किसी का वध नहीं करना पड़े।''
6) उन्होंने देश भर का भ्रमण करने के लिए उसे दो भागों में बाँट लिया। अहाब एक दिशा में चल दिया और ओबद्या दूसरी दिशा में।
7) ओबद्या जब दौरा कर रहा था, तो एकाएक उसकी भेंट एलियाह से हुई। ओबद्या ने उसे पहचान लिया और दण्डवत् प्रणाम कर उस से पूछा,
8) ÷÷मेरे स्वामी! आप एलियाह ही तो हैं?'' उसने कहा, ÷÷हाँ, मैं वही हूँ। तुम जाओ और अपने स्वामी से कहो कि एलियाह यहीं है।''
9) तब उसने पूछा, मैंने आपका क्या बिगाड़ा है, जो आप अपने दास को अहाब के हाथ सौप दे रहे हैं, जिससे वह मुझे मार डाले?
10) प्रभु आपके ईश्वर की शपथ! ऐसी कोई जाति और राष्ट्र नहीं है, जहाँ मेरे स्वामी ने आपकी खोज नहीं करायी हो और जब-जब आ कर उस से कहा गया कि वह हमारे यहाँ नहीं है, तो उसे विश्वास नहीं हुआ और उसने उस राष्ट्र और जाति के लोगों से यह शपथ खिलवायी कि उन्होंने उसे नहीं देखा है।
11) अब आप आदेश देते हैं कि जाओ और अपने स्वामी से कहो कि एलियाह यहीं है।
12) मैं नही जानता कि मेरे जाने के बाद प्रभु का आत्मा आप को कहाँ ले जायेगा। यदि मैं जा कर अहाब से कहता कि आप यहीं हैं और वह (आ कर) आप को नहीं पाता, तो वह मेरा वध करता। मैं, आपका दास, युवावस्था से ही प्रभु की उपासना करता रहा हूँ।
13) क्या मेरे स्वामी को यह नहीं बताया गया है कि जब ईजे+बेल प्रभु के नबियों का बध करने जा रही थी, तो मैंने क्या किया? उस समय मैंने एक सौ नबियों को ले जा कर उन्हें पचास-पचास की संख्या में दो गुफाओं में छिपाया था और उनके खाने-पीने का प्रबन्ध किया था।
14) अब आप यह आदेश दे रहे हैं कि तुम जाओ और अपने स्वामी से कहो कि एलियाह यहीं है। वह तो मेरा वध करेगा।''
15) लेकिन एलियाह ने कहा, ÷÷विश्वमण्डल के उस प्रभु की शपथ, जिसका मैं सेवक हूँ! आज मैं अपने को उसके सामने प्रस्तुत कर दूँगा''।
16) ओबद्या अहाब से मिलने गया और उस को इस बात की सूचना दी और अहाब एलियाह से मिलने आया।
17) एलियाह को देखते ही अहाब ने उस से कहा, ÷÷क्या तुम वही हो, जो इस्राएल को विपत्ति का शिकार बनाते हो?''
18) उसने उत्तर दिया, ÷÷ इस्राएल को विपत्ति का शिकार बनाने वाला मैं नहीं, बल्कि आप और आपके कुटुम्ब हैं; क्योंकि आप प्रभु की आज्ञाओं को भंग कर बालदेवों के अनुगामी बन गये हैं।
19) अब सब इस्राएलियों को बुलवा कर उन्हें करमेल पर्वत पर मेरे सामने एकत्रित कीजिए और बाल-देवों के उन साढ़े चार सौ पुजारियों और चार सौ अशेरा के पुजारियों को भी, जिनके खाने-पीने का प्रबन्ध ईजे+बेल कर रही है।''
20) अहाब ने सब इस्राएलियों को बुला भेजा और नबियों को करमेल पर्वत पर एकत्र किया।
21) तब एलियाह ने जनता के सामने आ कर कहा, ÷÷तुम लोग कब तक आगा-पीछा करते रहोगे? यदि प्रभु ही ईश्वर है, तो उसी के अनुयायी बनो और यदि बाल ईश्वर है, तो उसी के अनुयायी बनो।'' किन्तु लोगों ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।
22) तब एलियाह ने जनता से कहा, ÷÷मैं प्रभु का अकेला नबी रह गया हूँ। बाल के नबियों की संख्या साढ़े चार सौ है।
23) हमें दो साँ+ड़ दो। वे उन दोनों में से एक को अपने लिए चुन लें, उसके टुकड़े-टुकड़े करें और लकड़ी पर रख दें, किन्तु वे उस में आग नहीं लगायें। मैं दूसरा साँड़ तैयार कर उसे लकड़ी पर रखूँगा और उस में आग नहीं लगाऊँगा।
24) तुम अपने देवता का नाम ले कर प्रार्थना करो और मैं अपने प्रभु का नाम ले कर प्रार्थना करूँगा- जो देवता आग भेज कर उत्तर देगा, वही ईश्वर है।'' सारी जनता ने यह कहते हुए उत्तर दिया, ÷÷हमें स्वीकार है''।
25) तब एलियाह ने बाल के नबियों से कहा, ÷÷तुम्हारी संख्या अधिक है, इसलिए तुम अपने लिए एक साँड़ चुन लो और उसे तैयार करो। अपने देवता का नाम ले कर प्रार्थना करो, किन्तु आग नहीं लगाओ।''
26) उन्होंने अपने को दिया हुआ साँड़ ले कर तैयार दिया। तब वे सुबह से दोपहर तक यह कहते हुए बाल से प्राथना करते रहे, ÷÷बाल! हमारी सून।'' किन्तु कोई वाणी नहीं सुनाई पड़ी, कोई उत्तर नहीं मिला, यद्यपि वे अपनी बनायी हुई वेदी के चारों ओर घुटने झुकाते हुए नाचते रहे। दोपहर के लगभग एलियाह यह कहते हुए
27) उनका उपहास करने लगा, ÷÷तुम लोग और जोर से पुकारो। वह तो देवता है न? वह किसी सोच-विचार में पड़ा हुआ होगा या किसी काम में लगा हुआ होगा या यात्रा पर होगा। हो कसता है- वह सोया हुआ हो, तो उसे जगाना पड़े।''
28) वे और जोर से पुकारने और अपने रिवाज के अनुसार अपने को तलवारों और भालों से काट मारने लगे, यहाँ तक कि वे रक्त से लथपथ हो गये।
29) वे दोपहर के बाद भी सान्ध्योपासना के समय तक ऐसा करते रहे, किन्तु न तो कोई वाणी सुनाई पड़ी और न कोई उत्तर मिला। उनकी प्रार्थना पर ध्यान ही नहीं दिया गया।
30) तब एलियाह ने जनता से कहा, ÷÷मेरे पास आओ''। अब लोग उसके पास आये और एलियाह ने प्रभु की वेदी फिर बनायी, जो गिरा दी गयी थी।
31) प्रभु ने याकूब से कहा था कि तुम्हारा नाम इस्राएल होगा। उसी याकूब के पुत्रों के वंशों की संख्या के अनुसार एलियाह ने बारह पत्थर लिये और उन से प्रभु के लिए एक वेदी बनायी।
32) उसने उसके चारों ओर एक नाला खोदा, जिस में अनाज के दो पैमाने समा सकते थे।
33) तब उसने लकड़ियाँ वेदी पर सजायीं, साँड़ के टूकड़े-टुकड़े कर दिये और उसे लकड़ी पर रखा।
34) तब उसने कहा, ÷÷चार घड़े पानी से भर कर होम-बलि और लकड़ी पर उँढ़ेल दो''। उसके बाद उसने कहा, ÷÷एक बार और यही करो''। जब उन्होंने ऐसा किया, तो उसने कहा, ÷÷तीसरी बार यही करो''।
35) जब उन्होंने तीसरी बार ऐसा किया, तो पानी वेदी पर से चारों और बहने लगा और नाला पानी से भर गया।
36) सान्ध्योपासना के समय नबी एलियाह ने आगे बढ़ कर कहा, ÷÷इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के ईश्वर! आज यह दिखाने की कृपा कर कि तू इस्राएल का ईश्वर है और यह कि मैं - तेरे सेवक- ने यह सब तेरे आदेश के अनुसार किया है।
37) मेरी सुन! प्रभु! मेरी सुन! जिससे यह प्रजा स्वीकार करे कि तू, प्रभु सच्चा ईश्वर है। इस प्रकार तू इसका हृदय फिर अपनी ओर उन्मुख कर देगा।''
38) इस पर प्रभु की आग बरस पड़ी। उसने होम-बलि, लकड़ी, पत्थर और मिट्टी- सब कुछ भस्म कर दिया और नाले का पानी भी सुखा दिया।
39) लोग यह देख मुँह के बल गिर पड़े और बोल उठे, ÷÷प्रभु ही ईश्वर है! प्रभु ही ईश्वर है!''
40) एलियाह ने उन से कहा, ÷÷बाल के पुजारियों को पकड़ो, उन में से एक भी न भागने पाये''। वे पकड़ लिये गये। एलियाह के कहने पर लोग उन्हें कीशोन नाले तक घसीट कर ले गये और उन्होंने वहाँ उनका वध किया।
41) एलियाह ने अहाब से कहा, ÷÷आप खाने-पीने जाइए, क्योंकि भारी वर्षा की आवाज+ आ रही है''।
42) अहाब खाने पीने गया और एलियाह करमेल पर्वत की चोटी पर चढ़ा। वहाँ वह भूमि पर झुक गया और घुटनों के बीच सिर गड़ाये बैठा रहा।
43) उसने अपने नौकर से कहा, ÷÷जा कर समुद्र की ओर देखो''। उसने जा कर देखा और कहा, ÷÷कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा है''। एलियाह ने उसे सात बार देखने भेजा।
44) सातवीं बार नौकर ने कहा, ÷÷मनुष्य की हथेली के बराबर एक छोटा-सा बादल समुद्र पर से उठ रहा है''। एलियाह ने कहा, ÷÷अहाब के पास जा कर कहो कि वह रथ तैयार कर चला जाये, नहीं तो वर्षा उसे रोक रखेगी''।
45) इस बीच आकाश बादलों से काला हो गया, आँधी चलने लगी और भारी वर्षा हुई। अहाब रथ पर चढ़ कर यिज्र+एल चला गया।
46) प्रभु की प्रेरणा से एलियाह कमर कस कर यिज्र+एल तक अहाब के आगे-आगे दौड़ता रहा।

अध्याय 19

1) अहाब ने ईजे+बेल को वह सब बताया, जो एलियाह ने किया था और यह भी कि उसने किस प्रकार सब पुजारियों को तलवार के घाट उतरवा दिया।
2) उस पर ईज+ेबेल ने एक दूत भेज कर एलियाह से कहलवाया, ÷÷यदि मैंने कल इसी समय तक तुम्हारे साथ वही नहीं किया, जो तुमने उन लोगों के साथ किया, तो देवता मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलायें''।
3) इस से एलियाह भयभीत हो गया और अपने प्राण बचाने के लिय यूदा के बएर-शेबा भाग गया। वहाँ उसने अपने सेवक को छोड़ दिया
4) और वह मरुभूमि में एक दिन का रास्ता तय कर एक झाड़ी के नीचे बैठ गया और यह कह कर मौत के लिए प्रार्थना करने लगा, ÷÷प्रभु! बहुत हुआ। मुझे उठा ले, क्योंकि मैं अपने पुरखों से अच्छा नहीं हूँ।''
5) वह झाड़ी के नीचे लेट कर सो गया। किन्तु एक स्वर्गदूत ने उसे जगा कर कहा, ÷÷उठिए और खाइए''।
6) उसने देखा कि उसके सिरहाने पकायी हुई रोटी और पानी की सुराही रखी हुई है। उसने खाया-पिया और वह फिर लेट गया।
7) किन्तु प्रभु के दूत ने फिर आ उसका स्पर्श किया और कहा, ÷÷उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आपके लिए अधिक लम्बा हो जायेगा''।
8) उसने उठ कर खाया-पिया और वह उस भोजन के बल पर चालीस दिन और चालीस रात चल कर ईश्वर के पर्वत होरेब तक पहुँचा।
9) एलियाह होरेब पर्वत के पास पहुँचा और एक गुफा के अन्दर चल कर उसने वहाँ रात बितायी। उसे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, ÷÷एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?''
10) उसने उत्तर दिया, ÷÷विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर के लिए अपने उत्साह के कारण मैं यहाँ हूँ। इस्राएलियों ने तेरा विधान त्याग दिया तेरी वेदियों को नष्ट कर डाला और तेरे नबियों को तलवार के घाट उतारा। मैं ही बच गया हूँ और वे मुझे मार डालना चाहते हैं।''
11) प्रभु ने उस से कहा, ÷÷निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ''। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था।
12) भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी।
13) एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। तब उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, ''एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?''
14) उसने उत्तर दिया, ''विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर के लिए अपने उत्साह के कारण मैं यहाँ हूँ। इस्राएलियों ने तेरा विधान त्याग दिया, तेरी वेदियों को नष्ट कर डाला और तेरे नबियों को तलवार के घाट उतारा। मैं ही बच गया हूँ और वे मुझे भी मार डालना चाहते हैं।''
15) प्रभु ने उस से कहा, ''जाओ, जिस रास्ते से आये हो, उसी से दमिश्क की मरुभूमि लौट जाओ। वहाँ पहुँच कर हज+ाएत का अराम के राजा के रूप में
16) और निमशी के पुत्र येहू को इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक करो। इसके बाद आबेल-महोला के निवासी, शफ़ाट के पुत्र एलीशा का अभिषेक करो, जिससे वह तुम्हारे स्थान में नबी हो।
17) जो हज+ाएल की तलवार से बचेगा, उसे यहू मारेगा और जो येहू की तलवार से बचेगा, उसे एलीशा मार डालेगा।
18) मैं इस्राएल में केवल उन सात हज+ार व्यक्तियों को रहने दूँगा, जिन्होंने बाल-देव के सामने अपने घुटने नहीं टेके और उसे अपने होंठों से नहीं चूमा।''
19) एलियाह वहाँ से चला गया और उसने शाफ़ाट के पुत्र एलीशा के पास पहुँच कर उसे हल जोतते हुए पाया। उसने बारह जोड़ी बैल लगा रखे थे और वह स्वयं बारहवीं जोड़ी चला रहा था। एलियाह ने उसकी बग़ल से गुज+र कर उस पर अपनी चादर डाल दी।
20) एलीशा ने अपने बैल छोड़ कर एलियाह के पीछे दौड़ते हुए कहा, ÷÷मुझे पहले अपने माता-पिता का चुम्बन करने दीजिए। तब मैं आपके साथ चलूँगा।''
21) एलियाह ने उत्तर दिया, ''जाओ, लौटो। तुम जानते ही हो कि मैंने तुम्होरे साथ क्या किया है।''
22) इस पर एलीशा लौटा। उसने एक जोड़ी बैल मारा, हल की लकड़ी जला कर उनका मांस पकाया और मज+दूरों को खिलाया। मज+दूरों के खाने के बाद एलीशा उठ खड़ा हुआ और एलियाह का नौकर बन कर उसके पीछे हो लिया।

अध्याय 20

1) अराम के राजा बेन-हदद ने अपनी सारी सेना एकत्रित की। उसके साथ बत्तीस राजा, घोड़े और रथ थे। उसने आ कर समारिया को घेर लिया और उस पर आक्रमण कर बैठा।
2) उसने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूत भेज कर उस से कहलवाया,
3) ÷÷बेन-हदद का कहना है कि तुम्हारी चाँदी और तुम्हारा सोना मेरा है। तुम्हारी सब से सुन्दर पत्नियाँ और पुत्र मेरे हैं।''
4) इस्राएल के राजा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷मेरे स्वामी और राजा! जैसा आपका कहना है, मैं और मेरा सर्वस्व आपका ही है''।
5) वे दूत फिर आ कर कहने लगे, ÷÷बेनहदद का कहना है कि मैंने तुम से यह कहलवाया था कि तुम को अपनी चाँदी, अपना सोना, अपनी पत्नियाँ और अपने पुत्र मुझे देने होंगे।
6) कल इसी समय मैं अपने सेवकों को भेजूँगा, जिससे वे तुम्हारे महल और तुम्हारे सेवकों के मकानों की तलाशी लें और तुम्हारी दृष्टि में जो कुछ बहुमूल्य है, वे वह सब छीन कर ले जायेंगे।''
7) इस पर इस्राएल के राजा ने देश के सब नेताओं को एकत्रित कर उन से कहा, ÷÷तुम देखते हो कि यह मनुष्य मेरा अहित चाहता है। जब उसने मेरी पत्नियाँ, मेरे पुत्र, मेरी चाँदी और मेरा सोना माँगा, तो मैंने उसकी कोई माँग अस्वीकार नहीं की।''
8) इस पर नेताओं और अन्य सब लोगों ने उसे उत्तर दिया, ÷÷उसकी माँग पर कुछ ध्यान नहीं दीजिए और न उसे स्वीकार कीजिए''।
9) तब उसने बेनहदद के दूतों से कहा, ÷÷तुम मेरे स्वामी, राजा से इस प्रकार कहना, ÷आपने पहले अपने दास से जो कुछ माँगा वह मैं दे दूँूगा, परन्तु मैं आपकी दूसरी माँग पूरी नहीं कर सकूँगा।'' दूतों ने जा कर उसे यही सन्देश दिया।
10) बन-हदद ने उसे यह सन्देश भेजा, ÷÷यदि समारिया में इतनी धूल बचे कि उस से मेरे सब सैनिकों की मृट्ठी भर जाये, तो देवता मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये''।
11) इस्राएल के राजा ने उत्तर दिया, ÷÷उस से यह कहो : तलवार उठाने के पहले इस प्रकार का गर्व ठीक नहीं। तलवार के उपयोग के बाद ही कोई ऐसा कर सकता है।''
12) बेन-हदद को यह उत्तर उस समय मिला, जब वह खेमों में राजाओं के साथ मदिरा पी रहा था। उसने अपने सैनिकों से कहा, ÷÷आक्रमण की तैयारी करो'' और उन्होंने नगर पर आक्रमण के लिए व्यूहरचना की।
13) तब इस्राएल के राजा अहाब के पास आ कर एक नबी ने कहा, ÷÷प्रभु का कहना है : तुम जो विशाल सेना देख रहे हो, मैं उसे आज तुम्हारे हाथ दे दूँगा और तुम जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ''।
14) अहाब ने पूछा, ÷÷किसके द्वारा?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु का यह कहना है : प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीरों द्वारा''। फिर उसने पूछा, ÷÷कौन युद्ध आरम्भ करेगा?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷स्वयं तुम''।
15) इस पर अहाब ने प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीरों को बुलाया- वे दो सौ बत्तीस थे। इसके बाद उसने इस्राएलियों के शेष सैनिकों की गणना की। वे सात हज+ार थे।
16) दोपहर के समय उन्होंने धावा बोल दिया। उस समय बेद-हदद खेमों में अपने बत्तीस सहयोगी राजाओं के साथ मदिरा पी रहा था।
17) प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीर पहले निकले। बेनहदद द्वारा भेजे गये गुप्तचर ख़बर लाये कि समारिया से सैनिक चले आ रहे हैं।
18) इस पर उसने यह आदेश दिया, ÷÷यदि वे शान्ति के लिए आ रहे हों, तो उन्हें जीवित पकड़ लो और यदि वे युद्ध के लिये आ रहे हों, तो भी उन्हें जीवित ही पकड़ लो''।
19) प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीर नगर से बाहर निकले और उनके पीछे सेना भी।
20) उन में से प्रत्येक ने अपने विरोधियों को मार डाला। अरामी भाग निकले और इस्राएलियों ने उनका पीछा किया। अराम का राजा बेन-हदद घोड़े पर सवार हो कर अपने कई धुड़सवारों के साथ भाग निकला।
21) इसके बाद इस्राएल का राजा बाहर आया और घोड़ों और रथों पर आक्रमण कर अरामियों को बुरी तरह परास्त किया।
22) एक दिन एक नबी ने इस्राएल के राजा के पास आकर कहा, ÷÷अपने को तैयार रखिए और आप को क्या करना चाहिए, इस पर ठीक-ठीक विचार कीलिए,क्योंकि अगले वर्ष अराम का राजा फिर आप पर आक्रमण करने वाला है ''
23) उधर अराम के राजा से उसके सेवकों ने कहा, ÷÷इस्राएलियों के ईश्वर पहाड़ों के ईश्वर हैं; तभी तो वे हम से अधिक शक्तिशाली निकले। यदि हम उन से मैदान में लड़ें, तो हम अवश्य उन से अधिक शक्तिशाली सिद्ध होंगे।
24) इसलिए ऐसा ही कीजिएः राजाओं के स्थान पर सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दीजिए।
25) जो सेना पराजित हुई है, उसकी तरह एक नयी सेना एकत्र कीजिए। पहले की तरह घोड़े और रथ तैयार कराइए। इसके बाद हम उन से मैदान में लड़ेंगे और उन को पराजित कर अवश्य विजयी होंगे।'' उसने उनका परामर्श स्वीकार कर लिया और वैसा ही किया।
26) अगले वर्ष फिर बेनहदद ने अरामियों को तैयार कर इस्राएलियों से लड़ने अफ़ेक की ओर प्रस्थान किया।
27) इस्राएली सेना भी एकत्र कर ली गयी, उसके रसद का प्रबन्ध किया गया और वह उनका सामना करने निकली। इस्राएली बकरियों के दो छोटे रवड़ों की तरह उनके सामने पड़े हुए थे, जब कि अरामी लोग सारे देश में भरे पड़े थे।
28) तब उस ईश्वर-भक्त ने निकट आ कर इस्राएल के राजा से कहा, ÷÷ प्रभु का यह कहना हैः अरामियों का विचार है कि प्रभु पहाड़ों का ईश्वर है, मैदानों का ईश्वर नहीं। इसलिए मैं उनकी इस बड़ी सेना को तुम्हारे हाथ कर दूँगा, जिससे तुम जान जाओ कि मैं ही प्रभु हूँ।''
29) वे सात दिन तक आमने-सामने जमे रहे। सातवें दिन युद्ध आरम्भ हुआ और इस्राएलियों ने अरामियों के एक लाख पैदल सैनिकों को एक ही दिन में मार गिराया।
30) जो शेष रहे, वे अफ़ेक नगर भाग निकले, जहाँ नगर की चारदीवारी सत्ताईस हज+ार आदमियों पर गिर पड़ी। बेन-हदद भी भागते-भागते नगर पहुँचा और एक भीतरी कमरे में जा छिपा।
31) तब उसके सेवकों ने उस से कहा, ÷÷हमने सुना है कि इस्राएल के राजा दयालु होते हैं; इसलिए हम अपनी कमर में टाट बाँध लेंगे, सिर पर रस्सियाँ रखेंगे और इस्राएल के राजा के पास जायेंगे। हो सकता है कि वह आप को प्राणदान दे दे।''
32) इसलिए उन्होंने अपनी कमर में टाट बाँधा, अपने सिर पर रस्सियाँ रखीं और इस्राएल के राजा के पास जा कर कहा, ÷÷आपका दास बेन-हदद आप से प्राणों की भिक्षा माँगता है''। उसने पूछा, ÷÷क्या वह अब तक जीवित है? वह मेरा भाई है''।
33) इसे उन्होंने शुभ शकुन माना और तुरन्त उत्तर दिया, ÷÷हाँ, बेन-हदद आपके भाई ही है''। उसने उन्हें आज्ञा दी ÷÷जा कर उसे बुला लाओ''। जब बेन-हदद उसके पास आया, तो उसने उसे अपने रथ में बिठा लिया।
34) इस पर बेन-हदद ने उस से कहा, ÷÷मेरे पिता ने आपके पिता से जो नगर छीन लिये थे, मैं उन्हें लौटा दूँगा और दमिश्क में आप व्यापार केन्द्र स्थापित करेंगे, जैसा कि मेरे पिता ने समारिया में किया था''। अहाब ने उत्तर दिया, ÷÷मैं तुम्हें इन्हीं शर्तों पर मुक्त करता हूँ''। इसके बाद उसने उसके साथ सन्धि की और उसे मुक्त कर दिया।
35) ईश्वर की आज्ञा पा कर किसी नबी के शिष्य ने अपने साथी से कहा, ÷÷मुझ पर प्रहार करो!'' उसने उस पर प्रहार करने से इनकार किया;
36) तो उसने उस से कहा, ÷÷तुमने प्रभु की आज्ञा नहीं मानी, इसलिए तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद कोई सिंह तुम्हें मार डालेगा'' और उसके चले जाने के बाद उस पर एक सिंह टूट पड़ा और उसे मार डाला।
37) तब उसने एक दूसरे व्यक्ति के पास जा कर कहा, ÷÷मुझ पर प्रहार करो!'' उसने उस पर प्रहार कर उसे घायल कर दिया।
38) इसके बाद वह नबी जा कर राजा की प्रतीक्षा करते हुए मार्ग पर खड़ा रहा। उसने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर छद्य वेश धारण किया।
39) जब राजा उधर से निकला तो उसने उसे पुकार कर कहा, ÷÷आपका दास युद्ध में भाग लेने निकला। तब एक सैनिक ने यह कहते हुए एक बन्दी को मेरे सुपुर्द किया- ÷इस आदमी पर पहरा दो। यदि यह भाग निकलेगा, तो तुम्हें भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा, अथवा उसके बदले में तुम्हें एक मन चाँदी देनी पड़ेगी।'
40) जब आपका दास इधर-उधर व्यस्त था, तब वह भाग निकला।' इस्राएल के राजा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷तुमने स्वयं अपनी दण्डाज्ञा सुनायी''।
41) इस पर उसने तुरन्त अपनी आँखों की पट्टी खोल ली और इस्राएल के राजा ने देखा कि वह नबियों में से ही एक है।
42) तब उसने राजा से कहा, ÷÷प्रभु का यह कहना हैः तुमने एक आदमी को मुक्त किया, जिसका संहार किया जाना चाहिए था; इसलिए उसके प्राणों के बदले तुम को अपने प्राण देने होंगे और उसकी प्रजा के बदले अपनी प्रजा को''।
43) इस्राएल का राजा अप्रसन्न और क्रुद्ध हो कर समारिया में अपने महल चला गया।

अध्याय 21

1) यिज+्रएली नाबोत की एक दाखबारी थी, जो समारिया के राजा अहाब के महल से लगी हुई थी।
2) अहाब ने किसी दिन नाबोत से कहा, ÷÷अपनी दाखबारी मुझे दे दो। मैं उसे सब्जी का बाग बनाना चाहता हूँ, क्योंकि वह मेरे महल से लगी हुई है। मैं उसके बदले तुम्हें उस से अच्छी दाखबारी दे दूँगा या यदि तुम चाहो, तो मैं तुम्हें उसका मूल्य चुका दूँगा।''
3) किन्तु नाबोत ने अहाब से कहा, ÷÷ईश्वर यह न होने दे कि मैं आप का अपने पुरखों की विरासत दे दूँ''।
4) अहाब उदास और क्रुद्ध हो कर अपने घर चला गया, क्योंकि यिज+्रएली नाबोत ने उसे कहा था, ÷÷मैं तुम्हें अपने पुरखों की विरासत नहीं दूँगा''। उसने अपने पलंग पर लेट कर मुँह फेर दिया और भोजन करने से इनकार कर दिया।
5) उसकी पत्नी ईज+ेबेल ने उसके पास आ कर पूछा, ÷÷आप क्यों उदास हैं और भोजन करना नहीं चाहते?''
6) उसने उत्तर दिया, ÷÷मैंने यिज्र+एली नाबोत से कहा, ÷रुपया ले कर मुझे अपनी दाखबारी दो या यदि तुम चाहो, तो मैं उसके बदले तुम को एक दूसरी दाखबारी दे दूँगा'। उसने उत्तर में कहा, ÷मैं आप को अपनी दाखबारी नहीं दूँगा'।''
7) इस पर उसकी पत्नी ईज+ेबेल ने कहा, ÷÷वाह! आप इस्राएल के कैसे राजा हैं? उठ कर भोजन करें और प्रसन्न हों। मैं आप को यिज्र+एली नाबोत की दाखबारी दिलाऊँगी।''
8) उसने अहाब के नाम से पत्र लिखे, उन पर उसकी मुहर लगायी और उन्हें नाबोत के नगर में रहने वाले नेताओं और प्रतिष्ठित लोगों के पास भेज दिया।
9) उसने पत्रों में यह लिखा, ÷÷उपवास घोषित करो और लोगों की सभा में नाबोत को प्रथम स्थान पर बैठाओ।
10) तब उसके सामने दो गुण्डों को बैठा दो, जो उस पर यह अभियोग लगायें कि उसने ईश्वर और राजा को अभिशाप दिया है। इसके बाद उसे नगर से बाहर ले जा कर पत्थरों से मरवा डालो।''
11) नाबोत ने नगर में रहने वाले नेताओं और प्रतिष्ठित लागों ने ईज+ेबेल के उस आदेश का पालन किया, जो उनके पास भेजे हुए ईज+ेबेल के पत्रों में लिखा हुआ था।
12) उन्होंने उपवास घोषित किया और लोगों की सभा में नाबोत को प्रथम स्थान पर बैठाया।
13) इसके बाद दो गुण्डे आये, नाबोत के सामने बैठ गये और यह कहते हुए लोगों की सभा में नाबोत के विरुद्ध साक्ष्य देने लगे, ÷÷नाबोत ने ईश्वर और राजा को अभिशाप दिया है''। लोगों ने नाबोत को नगर के बाहर ले जा कर पत्थरों से मारा और वह मर गया।
14) इसके बाद उन्होंने ईज+ेबेल के पास यह कहला भेजा, ÷÷नाबोत को पत्थरों से मारा गया और उसका देहान्त हो गया है''।
15) ईज+ेबेल ने ज्यों ही सूना कि नाबोत पत्थरों में मार डाला गया है, वह अहाब से बोली, ÷÷उठिए और यिज्र+एली नाबोत की दाखबारी को अपने अधिकार में कर लीजिए। जो नाबोत दाम ले कर आप को अपनी दाखबारी नहीं देना चाहता था, वह अब जीवित नहीं रहा; वह मर चुका है।''
16) यह सुन कर कि नाबोत मर चुका है, अहाब तुरन्त यिज्र+एली नाबोत की दाखबारी को अपने अधिकार में करने के लिए चल पड़ा।
17) इसके बाद तिशबी एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
18) ÷÷समारिया में रहने वाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने जाओ। वह नाबोत की दाखबारी में है। वह उसे अपने अधिकार में करने लिए वहाँ गया है।
19) उस से कहो, ÷प्रभु यह कहता हे : क्या तुम नाबोत की हत्या करने के बाद उसकी विरासत अपने अधिकार में करने आये हो? इसके बाद उस से कहो, प्रभु यह कहता है : जहाँ कुत्तों ने नाबोत का रक्त चाटा, वहाँ वे तुम्हारा भी रक्त चाटेंगे'।''
20) अहाब ने एलियाह से कहा, ÷÷मेरे शत्रु! क्या तुम फिर मेरे पास आ गये?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं फिर आया हूँ, क्योंकि जो काम प्रभु की दृष्टि में बुरा है, तुमने वही करने का निश्चय किया है।
21) इसलिए मैं तुम विपत्ति ढाऊँगा और तुम्हें मिटा दूँगा। अहाब के घराने में जितने पुरुष हैं, मैं इस्राएल में से उन सब का अस्तित्व समाप्त कर दूँगा- चाहे वे दास हों, चाहे स्वतन्त्र।
22) मैंने नबाट के पुत्र यरोबआम के घराने और अहीया के पुत्र बाशा के घराने के साथ जो किया है, वही तुम्हारे घराने के साथ करूँगा; क्योंकि तुमने मेरा क्रोध भड़काया और इस्राएल से पाप कराया है।
23) ईज+ेबेल के विषय में प्रभु यह कहता है : यिज्र+एल की चारदीवारी के पास कुत्ते ईजे+बेल को खायेंगे।
24) अहाब के घराने का जो व्यक्ति नगर में मरेगा, वह कुत्तों द्वारा खाया जायेगा और जो खेत में मरेगा, वह आकाश के पक्षियों द्वारा खाया जायेगा।''
25) अहाब की तरह कभी कोई नहीं हुआ, जिसने जो काम प्रभु की दृष्टि में बुरा है, उसे ही करने का निश्चय किया हो; क्योंकि उसकी पत्नी ईजे+बेल ने उसे बहकाया था।
26) प्रभु ने जिन अमोरियों को एस्राएलियों के सामने से भगा दिया, अहाब ने उन्हीं की तरह देवमूर्तियों का अनुयायी बन कर अत्यन्त घृणित कार्य किया।
27) अहाब ने ये शब्द सुन कर अपने वस्त्र फाड़ डाले और अपने शरीर पर टाट ओढ़ कर उपवास किया। वह टाट के कपड़े में सोता था और उदास हो कर इधर-उधर टहलता था।
28) तब प्रभु की वाणी तिशबी एलियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
29) ÷÷क्या तुमने देखा है कि अहाब ने किस तरह अपने को मेरे सामने दीन बना लिया है? चूँकि उसने अपने को मेरे सामने दीन बना लिया, इसलिए मैं उसके जीवनकाल में उसके घराने पर विपत्ति नहीं ढाऊँगा। मैं उसके पुत्र के राज्यकाल में उसके घराने पर विपत्ति ढाऊँगा।''

अध्याय 22

1) तीन वर्ष तक अराम और इस्राएल के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ।
2) जब तीसरे वर्ष यूदा का राजा यहोशाफाट इस्राएल के राजा के यहाँ आया, तो
3) इस्राएल के राजा ने अपने सेवकों से कहा, ÷÷तुम जानते हो कि गिलआद का रामोत हमारा है और हम उसे अराम के राजा के हाथ से छीनने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं''।
4) उसने यहोशाफाट से पूछा, ÷÷क्या आप गिलआद के रामोत से लड़ने मेरे साथ चलेंगे?'' यहोशाफाट ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया, ÷÷आपकी ही तरह मैं, आपकी प्रजा की ही तरह मेरी प्रजा और आपके घोड़ों की ही तरह मेरे घोड़े तेयार हैं''।
5) यहोशाफाट ने इस्राएल के राजा से कहा, ÷÷पहले प्रभु की आज्ञा ले लीजिए''।
6) इस पर इस्राएल के राजा ने नबियों को, जिनकी संख्या लगभग चार सौ थी, एकत्रित किया और उन से पूछा, ÷÷मैं गिलआद के रामोत से युद्ध करने जाऊँ या नहीं?'' उन्होंने उत्तर दिया, ÷÷जाइए, प्रभु उसे राजा के हाथ दे देगा''।
7) यहोशाफाट ने कहा, ÷÷क्या यहाँ प्रभु का और कोई नबी नहीं है, जिस से हम पूछ सकें?''
8) इस्राएल के राजा ने यहोशाफाट को उत्तर दिया, ÷÷एक और भी है, जिसके द्वारा हम प्रभु से पूछ सकते हैं; लेकिन मैं उस से घृणा करता हूँ, क्योंकि वह मेरे सम्बन्ध में कभी कोई अच्छी बात नहीं कहता, हमेशा अशुभ बातें कहता है। वह यिमला का पुत्र मीकायाह है।'' इस पर यहोशाफाट ने कहा, ÷÷राजा को ऐसा नहीं कहना चाहिए''।
9) तब इस्राएल के राजा ने किसी पदाधिकारी को यिमला के पुत्र मीकायाह को तुरन्त बुलाने का आदेश दिया।
10) जब इस्राएल का राजा और यूदा का राजा यहोशाफाट अपने-अपने राजकीय वस्त्र पहने अपने-अपने आसनों पर समारिया के फाटक के पास खलिहान में बैठे थे और सब नबी उनके सामने भविष्यवाणी कर रहे थे,
11) तब सिदकीया आया, जिसने अपने लिए लोहे के सींग बनवाये थे। उसने कहा, ÷÷प्रभु का कहना है कि ऐसे सींगों से ही आप अरामियों को तब तक मारते रहेंगे, जब तक वे नष्ट नहीं हो जायेंगे''।
12) इसी प्रकार अन्य सब नबियों ने भविष्यवाणी करते हुए कहा, ÷÷गिलआद के रामोत पर आक्रमण कीजिए ?; आप विजयी होंगे। प्रभु उसे राजा के हाथ दे देगा।''
13) उस दूत ने, जो मीकायाह को बुलाने गया था, उस से कहा, ÷÷देखिए, सभी नबी एक स्वर से राजा की विजय की भविष्य वाणी कर रहे हैं। आपकी भविष्यवाणी भी उनकी तरह शुभ हो।''
14) परन्तु मीकायाह ने कहा, ÷÷प्रभु की शपथ! मैं तो केवल वही कहूँगा, जो प्रभु मुझ से कहेगा''।
15) जैसे ही वह राजा के पास आया, राजा ने उस से पूछा, ÷÷मीकायाह! हम गिलआद के रामोत के विरुद्ध युद्ध लड़ले जायें या नहीं?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷जाइए! आप विजयी होंगे। प्रभु उसे राजा के हाथ दे देगा!''
16) राजा ने उस से कहा, ÷÷और कितनी बार मुझे आप से कहना पड़ेगा कि प्रभु के नाम पर आप सत्य के सिवा मुझ से और कुछ न कहें?''
17) तब उसने कहा, ÷÷मैंने सब इस्राएलियों को बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह पर्वत पर इधर-उधर बिखरते देखा; और प्रभु ने कहा, ÷इनका कोई स्वामी नहीं। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घर शान्तिपूर्वक चला जाये'।''
18) तब इस्राएल के राजा ने यहोशाफाट से कहा, ÷÷मैंने आप से कहा था न कि यह मेरे सम्बन्ध में कभी कोई अच्छी बात नहीं कहता, केवल अशुभ बातें बकता है''।
19) मीकायाह ने कहा, ÷÷अब प्रभु की यह वाणी सुनिए : मैंने प्रभु को उसके सिंहासन पर विराजमान देखा। स्वर्ग के समस्त गण उसके दाहिने ओर बायें खड़े थे।
20) तब प्रभु ने कहा, ÷अहाब को कौन बहकायेगा, जिससे वह गिलआद के रामोत तक जाये और वहाँ मार डाला जाये?' किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ।
21) तब प्रभु के सामने एक आत्मा आया और बोला कि मैं ही उसे बहकाऊँगा। प्रभु ने उस से पूछा, ÷कैसे?'
22) उसने उत्तर दिया, ÷मैं जा कर उसके सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वालो आत्मा बनूँगा'। प्रभु ने कहा, ÷तुम उसे बहका पाओगे, तुम्हें सफलता प्राप्त होगी। जा कर ऐसा ही करो।'
23) प्रभु ने आपके इन सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाला आत्मा बिठा दिया है, क्योंकि प्रभु ने आपके विषय में अशुभ परिणाम निश्चित कर दिया है।''
24) इस पर कनाना के पुत्र सिदकीया ने पास आकर मीकायाह को यह कहते हुए थप्पड़ मारा, ÷÷क्या? क्या प्रभु के आत्मा ने तुम से झूठ बोलने के लिए मुझे छोड़ दिया है?''
25) मीकायाह ने उत्तर दिया, ÷÷तुम्हें उस दिन पता चलेगा, जिस दिन तुम स्वयं भीतरी कमरे में छिपने के लिए भाग जाओगे''।
26) इस पर इस्राएल के राजा ने आदेश दिया, ÷÷मीकायाह को पकड़ कर नगर के प्रशासक आमोन और राजकुमार योआश के पास ले जाओ
27) और कहो कि राजा का आदेश है कि उसे बन्दीगृह में डाल दिया जाये और जब तक मैं सकुशल न लौट आऊँ, तब तक इसे जीने भर के लिए रोटी-पानी दिया जाये''।
28) लेकिन मीकायाह ने कहा, ÷÷यदि आप सकुशल लौट आये, तो समझ लीजिएगा कि मेरे द्वारा प्रभु नहीं बोला है'' और उसने यह भी कहा, ÷÷तुम सब लोग मेरी यह बात सुन लो!''
29) इसके बाद इस्राएल का राजा और यूदा का राजा यहोशाफाट गिलआद के रामोत गये।
30) वहाँ इस्राएल के राजा ने यहोशाफाट से कहा, ÷÷मैं वेश बदल कर युद्ध में जा रहा हूँ, लेकिन आप अपने वस्त्र धारण किये रहिए''। इसलिए इस्राएल का राजा वेश बदल कर युद्ध में चला गया।
31) अराम के राजा ने अपनी रथ-सेना के बत्तीस अध्यक्षों को यह आदेश दिया था : ÷÷इस्राएल के राजा के सिवा किसी दूसरे छोटे या बड़े योद्धा पर आक्रमण मत करो''।
32) जब रथ-सेना के अध्यक्षों ने यहोशाफाट को देखा, तो उन्होंने उसे ही इस्राएल का राजा समझ लिया और वे उस पर टूट पड़े।
33) जब यहोशाफाट चिल्लाने लगा, तो रथ-सेना के अध्यक्षों को पता चला कि वह इस्राएल का राजा नहीं है और उन्होंने उसका पीछा करना छोड़ दिया।
34) एक सैनिक ने अपना धनुष उठा कर यों ही तीर चलाया और वह इस्राएल के राजाके कवच और कमरबन्द के बीच लग गया। राजा ने अपने सारथी को आदेश दिया, ÷÷रथ मोड़ कर मुझे युद्धक्षेत्र से बाहर ले चलो। मैं घायल हो गया हूँ।''
35) उस दिन घमासान युद्ध होता रहा। लोगों ने राजा को अरामियों के सामने रथ पर खड़ा सँभाला। शाम होते-होते उसकी मृत्यु हो गयी। उसके घाव का रक्त रथ के फर्श पर टपकता रहा।
36) सूर्यास्त के समय शिविर में यह आवाज+ सुनाई पड़ी : ÷÷प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने नगर, प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने प्रान्त लौट जाये''।
37) राजा समारिया लाया गया और वहीं दफनाया गया।
38) जब समारिया के कुण्ड में रथ धोया जा रहा था, तो कुत्ते उसका रक्त चाट रहे थे, ठीक वैसे ही, जेसा प्रभु ने कहा था और उस में वेश्याओं ने स्नान किया।
39) अहाब का शेष इतिहास, उसके कार्य-कलाप, उसके बनवाये हुए हाथीदाँत-लगे महल और उसके बसाये हुए सब नगरों का वर्णन इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
40) अहाब अपने पितरों से जा मिला और उसका पुत्र अहज्+या उसकी जगह राजा बना।
41) इस्राएल के राजा अहाब के चौथे वर्ष आसा का पुत्र यहोशाफाट यूदा का राजा बना।
42) जब यहोशाफाट राजा बना, तो उस समय उसकी उम्र पैतींस वर्ष थी। उसने येरुसालेम में पच्चीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम अजूबा था, जो शिलही की पुत्री थी।
43) वह अपने पिता आसा के मार्ग पर चलता था; वह कभी उस से विमुख नहीं हुआ। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है,
44) किन्तु उसने पहाड़ी पूजा-स्थलों को नहीं हटवाया। जब तक लोग पहाड़ी पूजास्थलों पर बलिदान चढ़ाते और घूप देते थे।
45) यहोशाफाट का इस्राएली राजा से मेल रहा।
46) यहोशाफाट का शेष इतिहास, उसकी वीरता और उसके युद्धों का वर्णन यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।
47) उसने पूजा की आड़ में पुरुषगमन करने वाले उन लोगों को देश से निकाल दिया था, जो उसके पिता आसा के दिनों के बाद शेष रह गये थे।
48) एदोम में कोई राजा नहीं था।
49) यहोशाफाट ने ओफिर से सोना लाने के लिए व्यापारी जहाज बनवाये; परन्तु वे वहाँ नहीं पहुँच सके, क्योंकि वे एस्योन-गेबेर के पास नष्ट हो गये।
50) तब अहाब के पुत्र अहज्+या ने यहोशाफाट से कहा, ÷÷मेरे नाविक आपके नाविकों के साथ जहाजों पर यात्रा करें'', लेकिन यहोशाफाट ने इसे पसन्द नहीं किया।
51) यहोशाफाट अपने पितरों से जा मिला और अपने पितरों के पास अपने पुरखे दाऊद के नगर में दफनाया गया। उसका पुत्र यहोराम उसकी जगह राजा बना।
52) यूदा के राजा यहोशाफाट के सत्रहवें वर्ष अहाब का पुत्र अहज्+या समारिया में इस्राएल का राजा बना। उसने इस्राएल पर दो वर्ष तक शासन किया।
53) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और वह अपने पिता के मार्ग पर, अपनी माँ के मार्ग पर और नबाट के पुत्र यरोबआम के मार्ग पर, जिसने इस्राएलियों से पाप कराया, चलता रहा।
54) बाल-देव की पूजा द्वारा उसने प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का क्रोध उसी प्रकार भड़काया, जिस प्रकार उसके पिता ने भड़काया था।