पवित्र बाइबिल : Pavitr Bible ( The Holy Bible )

पुराना विधान : Purana Vidhan ( Old Testament )

समूएल का दूसरा ग्रन्थ ( II Samuel )

अध्याय 1

1) साऊल की मृत्यु के बाद दाऊद ने अमालेकियों को हरा कर सिकलग में दो दिन बिताये।
2) तीसरे दिन साऊल के षिविर से एक आदमी आया। उसके कपडे+ फटे हुए थे और वह सिर पर मिट्टी डाले हुए था। उसने दाऊद के पास पहॅुँचने पर मुॅंँह के बल गिर कर उसे दण्डवत् किया।
3) दाऊद ने उस से कहा, ÷÷कहॉॅंँ से आ रहे हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं इस्राएलियों के षिविर से भाग निकला हँूूॅॅ।'' दाऊद ने पूछा, ÷÷क्या हुआ?'' मुझे बताओ!''
4) उसने कहा, ÷÷सेना रणभूमि से भाग गयी और बहुत-से लोग मर गये। साऊल और उसके पुत्र योनातान की भी मृत्यु हो गयी है।''
5) दाऊद ने समाचार लाने वाले नवयुवक से पूछा, ÷÷तुम को यह कैसे मालूम हुआ कि साऊल और उनके पुत्र योनातान की मृत्यु हो गयी है?''
6) समाचार लाने वाले नवयुवक ने कहा, ÷÷संयोग से मैं गिलबोआ के पर्वत पर था। वहॉंँ मैंने साऊल को भाला टेके खड़ा देखा, रथ और रथी उन पर टूट पड़ रहे थे।
7) जब उन्होंने मुड़ कर मुझे देखा, तो उन्होंने मुझे बुलाया। मैंने कहा, ÷प्रस्तुत हॅूँ।
8) तब उन्होंने मुझ से पूछा, ÷तुम कौन हो?' मैंने उत्तर दिया, ÷÷मैं अमालेकी हॅूँ।
9) उन्होंने मुझे आज्ञा दी, ÷पास आ कर मेरा वध करो, क्योंकि मुझे बहुत अधिक कष्ट हो रहा है, यद्यपि मेरे प्राण अभी तक अटके हुए हैं।'
10) इसलिए पास जा कर मैंने उनका वध किया; क्योंकि मैं जानता था कि वह गिरने के बाद बच नहीं पायेंगे। अब मैं उनके सिर का मुकुट और उनका भुजबन्द यहाँ अपने स्वामी के लिये आया हूँ।''
11) दाऊद ने अपने कपड़े फाड़ डाले और उसके साथ के सब लोगों ने ऐसा ही किया।
12) वे विलाप करने और रोने लगे; क्योंकि साऊल, उसका पुत्र योनातान और ईश्वर की प्रजा, इस्राएल का घराना, ये सब तलवार के घाट उतार दिये गये थे और उन्होंने शाम तक उपवास किया।
13) दाऊद ने समाचार लाने वाले युवक से पूछा, ÷÷तुम कहाँ के निवासी हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं एक प्रवासी का पुत्र, अमालेकी हूँ।''
14) तब दाऊद ने उसे फटकारा, ÷÷प्रभु के अभिषिक्त व्यक्ति को मारने के लिये अपना हाथ उठाते हुये तुम्हें डर नहीं लगा?''
15) तब दाऊद ने एक नवयुवक को बुला कर आज्ञा दी,÷÷आओ, इसका वध करो!'' और उसने उसे मार डाला।
16) दाऊद ने उस से कहा, ÷÷तुम्हारा खून तुम्हारे सिर पड़े! तुमने अपने मुँह से स्वयं कहा है कि मैंने प्रभु के अभिषिक्त का वध किया है।''
17) इसके बाद दाऊद ने साऊल और उसके पुत्र योनातान पर यह शोक-गीत गाया।
18) (उसने कहा कि इसे यूदा के पुत्रों को भी सिखा दिया जाये। यह ÷सद्धर्मियों के ग्रन्थ' में उल्लिखित है।)
19) साऊल और योनातान, इस्राएल के गौरव, पर्वत पर मारे गये! वीर योद्धा कैसे मारे गये?
20) गत में इसकी घोषणा मत करो, अशकलोन की सड़कों पर इसकी सूचना मत दो; नहीं तो फ़िलिस्तियों की पुत्रियाँ प्रसन्न होंगी, बेख़तना लोगों की पुत्रियाँ हर्षविभोर हो उठेंगी।
21) गिलबोआ के पर्वतों! तुम पर न तो ओस गिरे, न जल बरसे और न खेत उपजाऊ हों, क्योंकि वहाँ वीरों की ढाल दूषित हो गयी है।
22) साऊल की ढाल! जो तेल से नहीं, बल्कि आहतों के रक्त और वीरों की वसा से सिंचित थी। योनातान का धनुष! जो कभी पीठ नहीं दिखाता। साऊल की तलवार जो कभी व्यर्थ नहीं लौटती थी।
23) साउल और योनातान, सौम्य और परम प्रिय, जीवन में और मरण में भी अलग नहीं हुए! वे गरूड़ों से भी अधिक द्रुतगामी थे, सिंहों से भी अधिक शक्तिशाली!
24) इस्राएल की पुत्रियों। साऊल पर विलाप करो! वह तुम्हें सुन्दर किरमिजी और छालटी पहनाते थे, वह तुम्हारे वस्त्र पर स्वर्ण आभूषण सजाते थे।
25) वीर योद्धा युद्ध में कैसे मारे गये? योनातान! तुम युद्व में खेत आये और पर्वत पर निर्जीव पड़े हुए हो!
26) भाई यानातान! तुम्हारे कारण मेरा हृदय भारी है। मैं तुम को बहुत अधिक प्यार करता था। स्त्रियों के प्रेम की अपेक्षा तुम्हारा प्रेम मेरे लिए अधिक मूल्यवान् था।
27) वीर योद्धा कैसे मारे गये? युद्ध के अस्त्र-शस्त्र कैसे नष्ट हुए?

अध्याय 2

1) इसके बाद दाऊद ने प्रभु से पूछा, ÷÷मैं यूदा के किसी नगर में जाऊँ या नहीं?'' प्रभु ने उस से कहा, ÷÷जाओ।'' फिर दाऊद ने पूछा, ÷÷मैं कहाँ जाऊँ?'' उसे उत्तर मिला, ÷÷हेब्रोन।''
2) इसलिये दाऊद अपनी दो पत्नियों, यिज्र+एल की अहीनोअम और करमेल के नाबाल की विधवा अबीगैल के साथ वहाँ गया।
3) दाऊद अपने साथियों को भी अपने-अपने परिवार के साथ ले गया। वे हेब्रोन के गाँवों में बस गये।
4) इसके बाद यूदा के लोगों ने वहीं दाऊद का यूदा के घराने के राजा के रूप में अभिषेक किया। दाऊद को यह समाचार मिला कि गिलआद के याबेश के निवासियों ने साऊल का दफ़न किया है।
5) इस पर दाऊद ने दूतों द्वारा गिलआद के याबेश के निवासियों को यह सन्देश भेजा, ÷÷प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे; क्योंकि साऊल का दफ़न कर तुम लोगों ने अपने स्वामी साऊल के प्रति स्वामी भक्ति का परिचय दिया है।
6) प्रभु अब तुम लोगों के साथ दया और सद्भावपूर्ण व्यवहार करे। मैं भी तुम्हारे इस काम के लिये तुम पर कृपा-दृष्टि बनाये रखूँगा।
7) अब दृढ़ और वीर बने रहो। तुम्हारे स्वामी साऊल की मृत्यु हो गयी और यूदा के घराने ने अब मेरा अपने राजा के रूप में अभिषेक किया है।''
8) साऊल का सेनापति नेर का पुत्र अबनेर, साऊल के पुत्र इशबोशेत को महनयीम ले गया
9) और उसे गिलआद, अशूरियों, यिज+्रएल, एफ्र+ईम, बेनयामीन और सारे इस्राएल का राजा बना दिया था।
10) साऊल का पुत्र इशबोशेत चालीस वर्ष का था, जब वह इस्राएल का राजा बना और उसने दो वर्ष तक शासन किया। केवल यूदा के घराने ने दाऊद का पक्ष लिया।
11) दाऊद साढ़े सात वर्ष तक हेब्रोन में यूदा कुल का राजा बना रहा।
12) नेर का पुत्र अबनेर साऊल के पुत्र इशबोशेत के आदमियों को ले कर महनयीम से गिबओन चला।
13) सरूया का पुत्र योआब दाऊद के आदमियों को ले कर निकला। गिबओन के तालाब पर एक दूसरे की भेंट हो गयी। एक दल वाले तालाब के एक ओर पड़े थे और दूसरे दल वाले तालाब के दूसरी ओर।
14) अबनेर ने योआब को ललकारा, ÷÷कुछ युवक योद्धा आ कर हमारे सामने द्वन्द्वयुद्ध करें।'' योआब ने उत्तर दिया,÷÷ठीक है। वे उठ कर खड़े हो जायें।''
15) साऊल के पुत्र इशबोशेत की ओर से, बेनयामीन से, बारह आदमी निकले और दाऊद के आदमियों में से भी बारह आदमी निकले।
16) प्रत्येक ने अपने विपक्षी का सिर पकड़ कर उसकी बग़ल में कटार भोंक दी और वे सब एक साथ ढेर हो गये। इसलिए उस स्थान का नाम हेलकत-हस्सुरीम पड़ा। यह गिबओन के पास है।
17) उस दिन घमासान युद्ध हुआ। अबनेर और इस्राएली दाऊद के आदमियों से पराजित हो गये।
18) सरूया के तीनों पुत्र योआब, अबीशय और असाएल भी वहाँ थे। असाएल जंगली हिरण की तरह तेज+ था।
19) वह दाहिनी या बायीं ओर मुड़े बिना अबनेर का पीछा कर रहा था।
20) अबनेर ने मुड़ कर उस से पूछा, ÷÷क्या तुम्हीं असाएल हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ, मैं ही हूँ।''
21) अबनेर ने उससे कहा, ÷÷दाहिनी या बायीं ओर मुड़ कर किसी जवान सैनिक पर आक्रमण कर उसके अस्त्र-शस्त्र छीन लो।'' लेकिन असाएल ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
22) फिर अबनेर ने असाएल से कहा, मेरा पीछा छोड़ो, नहीं तो मैं तुम्हें मार गिराऊँगा। लेकिन तब मैं तुम्हारे भाई योआब को क्या मुँह दिखाऊँगा?''
23) जब असाएल ने उसका पीछा छोड़ना अस्वीकार किया, तब अबनेर ने भाले का कुन्दा उसके पेट में ऐसा मारा कि भाला उसकी पीठ से निकल गया। वह वहीं गिर कर मर गया। सब उस स्थान पर आकर खड़े हो गये, जहांँ असाएल मरा था।
24) अबᅠयोआब और अबीशयᅠने अबनेर का पीछा किया। सूर्यास्त के समय वे अम्मा की पहाड़ी पर आये, जो गीअह के सामने गिबओन के उजाड़खण्ड के मार्ग पर है।
25) वहाँं बेनयामीनवंशी अबनेर के पास इकट्ठे हुए और व्यूह बनाकर पहाड़ी की चोटी पर खड़े हो गये।
26) अबनेर नेᅠयोआब से कहा, ÷÷क्या तलवार बराबर ख्ूान पीती रहेगी? क्या तुम समझते नहीं कि इसका कितना कटु परिणाम होगा? तुम कब अपने आदमियों को अपने भाइयों का पीछा करने सेᅠरूकने की आज्ञा दोगे?''
27) योआब ने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु की शपथ!ᅠ यदि तुम ऐसा न बोलते, तो मेरे आदमी सबेरे तक अपने भाइयों का पीछा करना नहीं छोड़ते।''
28) तबᅠयोआब ने नरसिंगा बजवाया और सब आदमीᅠरूक गये। उन्होंने इस्राएलियों का पीछा करना छोड़ दिया औरᅠयुद्ध समाप्त हुआ।
29) अबनेर पूरी रात चलते हुए अपने आदमियों के साथ अराबा पार करता रहा। उन्होंनेᅠयर्दन पार किया और फिर दोपहर तक चलकर महनयीम पहुँचे।
30) अबनेर का पीछा छोड़ने के बादᅠयोआब ने अपने सभी लोगों को एकत्रित किया। दाऊद के लोगों में असाएल के अलावा उन्नीस आदमी लापता थे।
31) दाऊद के आदमियों ने अबनेर के अधीनस्थ बेनयामीन के पुरुषों में तीन सौ साठ को मारा था।
32) वे असाएल को साथ ले गये और उन्होंने उसे अपने पिता के समाधिस्थान पर बेथलेहेम में दफ़ना दिया। योआब अपने आदमियों के साथ सारी रात चलता रहा। दिन निकलते ही वे हेब्रोन पहुँच गये।

अध्याय 3

1) साऊल केᅠघराने से दाऊद केᅠघराने का बहुत दिनों तकᅠयुद्ध चलता रहा। दाऊद काᅠघराना अधिकाधिक शक्तिशाली होता गया और साऊल काᅠघराना शक्तिहीन।
2) हेब्रोन में दाऊद के कई पुत्र हुए।
3) उसका पहलौठा पुत्र था अमनोन, जो यिज+्रएल की अहीनोअब से उत्पन्न हुआ। उसका दूसरा पुत्र किलआब था, जो दूसरी पत्नी करमेल के नाबाल की विधवा अबीगैल से उत्पन्न हुआ। तीसरा अबसालोम था। वह गशूर के राजा तलमय की पुत्री माका का पुत्र था।
4) चौथा हग्गीत का पुत्र अदोनीया था, पांँचवांँ अबीटाल का पुत्र शफ़टच्या और
5) छठा यित्रआम, जो दाऊद की पत्नी एगला से उत्पन्न हुआ। हेब्रोन में दाऊद केᅠये पुत्र उत्पन्न हुए।
6) जब तक साऊल केᅠघराने और दाऊद केᅠघराने के बीचᅠयुद्ध चलता रहा, तब तक साऊल केᅠघराने में अबनेर की शक्ति बढ़ती गयी।
7) साऊल की रिस्पा नामक एक उपपत्नी थी, जो अय्या की पुत्री थी। जब इशबोशेत ने अबनेर को फटकारा कि तुम मेरे पिता की उपपत्नी के पास क्यों गये,
8) तो अबने+र ने इशबोतेश की इन बातों पर बहुत क्रुद्ध होकर कहा, ÷÷मैं कोईᅠयूदा के कुत्तों का सरदार थोड़े ही हूंँ। आज तक मैं तुम्हारे पिता साऊल केᅠघराने के प्रति स्वामीभक्ति प्रदर्शित करता रहा हूंँ और उसके भाइयों और मित्रों से प्रेम करता रहा हूंँ। मैंने तुम को दाऊद के हाथों में ही नहीं पड़ने दिया और अब आज तुम एक स्त्री के लिये मुझे फटकारते हो!ᅠ
9) यदि मैं दाऊद के लिये वही न करूंँ, जिसका प्रभु ने उसे शपथपूर्वक वचन दिया है, तो ईश्वर इस अबनेर को कठोर- से-कठोर दण्ड दिलाये।
10) प्रभु ने वचन दिया कि वह साऊल केᅠघराने से राज्य छीन लेगा और दान से बएर-शेबा तक इस्राएल औरᅠयूदा के लिये दाऊद का राज्यशासन स्थापित करेगा।''
11) इशबोशेत अबनेर को कोई उत्तर न दे सका, क्योंकि वह उससे डरता था।
12) दाऊद जहांँ था, वहाँं अबनेर ने दूतोंᅠसेᅠयह कहला भेजा,ᅠ÷÷यह देश किसका है? मेरे साथ समझौता कर लीजिए, जिससे मेरे सहयोग से सब इस्राएली आपका समर्थन करें।''
13) उसने उत्तर दिया, ÷÷अच्छा, मैं तुम्हारे साथ समझौता कर लूंँगा। लेकिन मेरी तुम से एक मांँग है। तुम मेरे पास तब तक नहीं आओं, जब तक तुम साऊल की पुत्री मीकल को मेरे पास न ले आओ। इसके बाद ही तुम मुझसे मिलने आओ।''
14) दाऊद ने साऊल के पुत्र इशबोशेत के पास दूतों को भेज कर यह कहलाया, ÷÷मुझे मेरी पत्नी मीकल दे दो, जिसे मैंने सौ फ़िलिस्तियों की खलड़ियों की कीमत पर पाया था।''
15) इशबोशेत ने लोगों को भेज कर उसे लइश के पुत्र पल्टीएल, उसके पति के पास से बुलवा लिया।
16) उसका पति रोते-रोते बहूरीम तक उसके पीछे-पीछे आया। वहाँं अबनेर ने उसेᅠघर लौट जाने को कहा और वहᅠघर लौट गया।
17) अबनेर ने इस्राएल के नेताओं के साथ परामर्श किया। वह उन से बोला, ÷÷कुछ समय से आप दाऊद को अपना राजा बनाने की माँंग कर रहे हैं।
18) अब उसे पूरी करें, क्योंकि प्रभु ने दाऊद कोᅠयह वचन दिया है कि अपने दास दाऊद के द्वारा मैं अपनी प्रजा इस्राएल को फ़िलिस्तियों और उनके अन्य सभी शत्रुओं के हाथ से मुक्त करूँंगा।''
19) अबनेर ने बेनयामीनवंशियों के साथ भी बात की। इसके बाद अबनेर ने हेब्रोन जा कर दाऊद को वह सब बताया, जो इस्राएल और सारे बेनयामीनवंशी करना चाहते थे।
20) अबनेर बीस आदमियों के साथ दाऊद के पास हेब्रोन आया। दाऊद ने अबनेर और उसके आदमियों को एक भोज दिया।
21) अबनेर ने दाऊद से कहा, ÷÷अब मैं जाकर सारे इस्राएल को अपने स्वामी राजा के पास ले जाऊँंगा। वे आपके साथ समझौता करेंगे और आप अपनी इच्छा के अनुसार सब के राजा बनेंगे।'' इसके बाद दाऊद ने अबनेर को विदा किया और वह सकुशल चला गया।
22) उस समय दाऊद के आदमीᅠयोआब के साथ छापा मार करᅠघर लौटे। वे अपने साथ लूट का बहुत-सा माल लाये थे। अबनेर दाऊद के पास हेब्रोन में नहीं था, क्योंकि वह उसे सकुशल विदा कर चुका था।
23) जबᅠयोआब अपने सारे दल के साथᅠघर लौटा, तो लोगों ने उससे कहा, ÷÷नेर का पुत्र अबनेर राजा के पास आया था। उसने उसे सकुशल विदा किया और वह सकुशल चला गया।''
24) इस परᅠयोआब ने राजा के पास जाकर कहा, ''आपनेᅠयह क्या किया है? जब अबनेर आपके पास आ गया, तो आपने उसे क्यों लौट जाने दिया?
25) आप को मालूम होना चाहिये कि नेर का पुत्र अबनेर केवल आप को धोखा देने और आपके आने-जाने और आप क्या करने वाले हैं, इसका पता लगाने आया था।''
26) योआब ने दाऊद केᅠघर से निकल कर अबनेर के पीछे दूत भेजे, जो उसे सिरा के कुण्ड से लौटा लाये। दाऊद इसके विषय में कुछ नहीं जानता था।
27) जब अबनेर हेब्रोन आया, तोᅠयोआब उसे फाटक के पास ले गया, मानो वह उस से कोई गुप्त बात कहने वाला हो। वहांँ उसने अपने भाई असाएल के खून का बदला लेने के लिए उसके पेट में छुरा मारा और उसकी मृत्यु हो गयी।
28) जब दाऊद नेᅠयह सुना, तो उसने कहा, मैं और मेरा राज्य प्रभु की दृष्टि में नेर के पुत्र अबनेर के रक्तपात के सम्बन्ध में सदा निर्दोष माना जायेगा।ᅠ
29) यहᅠयोआब और उसके पिता के सारे परिवार के सिर पड़े। ᅠयोआब केᅠघराने में सदा ऐसे लोग रहें, जो स्त्रावᅠया चर्मरोग से पीड़ित हों,ᅠया बैसाखी के सहारे चलते हों,ᅠया तलवार से मारे जायें,ᅠया रोटी की टुकड़ों के लालची हों।''
30) (योआब और उसके भाई अबीशय ने अबनेर को इसलिए मारा कि उसने उनके भाई असाएल को गिबओन की लड़ाई में मारा था।)
31) दाऊद नेᅠयोआब और उसके साथ के सब आदमियों से कहा, ÷÷अपने वस्त्र फाड़ों और टाट ओढ कर अबनेर के लिये शोक मनाओं।'' राजा दाऊद अर्थी के पीछे-पीछे गया।
32) जब अबनेर हेब्रोन में दफ़ना दिया गया, तो राजा अबनेर की क़ब्र के पास फूट-फूट कर रोने लगा और बाक़ी सब लोग भी रोने लगे।
33) राजा ने अबनेर के लिए शोक-गीत गाया : हाय अबनेर! तुम उपद्रवी की तरह क्यों मारे गये!
34) न तुम्हारे हाथों में हथकड़ियांँ थी और न तुम्हारें पैरों में बेड़ियांँ। जैसे कोई दुष्टों द्वारा मारा जाता है, उसी तरह तुम धराशायी हो गये हो! तब सब लोग फिर उसके लिये रोने लगे।
35) दिन कुछ शेष रह गया, तो लोग दाऊद को भोजन के लिये कहने आये। किन्तु दाऊद ने यह शपथ खायी, ÷÷यदि मैं सूर्यास्त तक रोटी या कुछ भी खाऊँ, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये।''
36) जिन-जिन लोगों ने यह बात सुनी, उन्हें यह बहुत अच्छी लगी। जो कुछ राजा करता था, सब लोगों को अच्छा लगता था।
37) उस दिन सब लोगों को और सब इस्राएल वालों को यह मालूम हो गया कि नेर के पुत्र अबनेर की हत्या के षड्यंत्र में राजा का हाथ नहीं था।
38) राजा ने अपने लोगों से कहा, ÷÷क्या तुम यह नहीं समझते कि आज इस्राएल के एक सामन्त और महापुरुष मारे गये हैं?
39) यद्यपि मैं अभिषिक्त राजा हूंँ, फिर भी आज मैं दुर्बल हूंँ। ये पुरुष, सरूया के ये पुत्र, मुझसे अधिक बलवान् हैं। प्रभु इस कुकर्मी को उसके कुकर्म के लिए दण्ड दे।''

अध्याय 4

1) जब साऊल के पुत्र इशबोशेत को यह पता चला कि अबनेर हेब्रोन में मारा गया है, तो उसका साहस टूट गया और दूसरे इस्राएली भी घबरा उठे।
2) साऊल के पुत्र के पास दो आदमी थे, जो छापामारी दलों के नेता थे। एक का नाम बाना था और दूसरे का, रेकाब। वे बेनयामीनवंशी बएरोत के निवासी रिम्मोन के पुत्र थे; क्योंकि बएरोत की गणना बेनयामीन में की जाती है।
3) बएरोत के निवासी गिताईम भाग गये थे और वे आज तक वहाँं प्रवासी होकर रहते हैं।
4) साऊल के पुत्र योनातान का एक पुत्र था, जो दोनों पांँव से लंँगड़ा था। जब साऊल और योनातान के विषय में यिज्र+एल से समाचार आया, तो वह पांँच वर्ष का था। उसकी दाई उसे ले कर भाग गयी। भागने की जल्दी में वह गिर गया था और लंँगड़ा हो गया। उसका नाम मफ़ीबोशेत था।
5) बएरोतवासी रिम्मोन के पुत्र रेकाब और बाना इशबोशेत के घर की ओर चले और वहांँ कड़ी धूप में पहँुंचे। उस समय इशबोशेत दोपहर का विश्राम कर रहा था।
6) वे गेहँूं के पूले लिये घर में घुसे और उन्होंने उसके पेट में छुरा भोंक दिया। इसके बाद रेकाब और उसका भाई बाना भाग गये।
7) वे घर घुस गये थे, जब वह अपने शयनागार में पलंग पर सो रहा था। उन्होंने छुरा मारकर उसका वध किया और उसका सिर काट लिया। वे उसका सिर ले कर अराबा के मार्ग पर सारी रात चलते रहे।
8) फिर उन्होंने इशबोशेत का सिर हेब्रोन में दाऊद के पास ले जा कर राजा से कहा, ÷÷अपने शत्रु, साऊल के पुत्र इशबोशेत का सिर देखिए। यह आपके प्राणों का गाहक था। लेकिन आज प्रभु ने मेरे स्वामी, राजा के लिए साऊल और उसके वंशजों से बदला चुका लिया है।''
9) दाऊद ने बएरोतवासी रिम्मोन के पुत्र रेकाब और उसके भाई बाना को उत्तर दिया, ÷÷सब प्रकार के संकटों से मेरी रक्षा करने वाले प्रभु की शपथ!
10) मैंने उस मनुष्य को, जो यह समाचार लाया था कि साऊल की मृत्यु हो गयी है और जिसने यह सोचा था कि यह अच्छा समाचार है, सिकलग में, पकड़वा कर मरवा डाला था। मैंने उसे उसके समाचार के लिए वही पुरस्कार दिया।
11) अब यदि दुष्टों ने एक भले आदमी को, उसके अपने घर में, उसके पलंग पर मार डाला हो, तो क्या मैं तुम से उसके रक्त का प्रतिशोध न लूँ और तुम्हें पृथ्वी पर से न मिटा दूँ?''
12) इस पर दाऊद ने नवयुवकों को आदेश दिया और उन्होंने उनका वध किया। उन्होंने उनके हाथ-पाँव काट कर उन्हें हेब्रोन के कुण्ड के पास लटका दिया। उन्होंने इशबोशेत का सिर ले कर हेब्रोन में अबनेर की क़ब्र में दफ़ना दिया।

अध्याय 5

1) इस्राएल के सभी वंशों ने हेब्रोन में दाऊद के पास आकर कहा, ÷÷देखिए, हम आपके रक्त-सम्बन्धी हैं।
2) जब साऊल हम पर राज्य करते थे, तब पहले भी आप ही इस्राएलियों को युद्ध के लिए ले जाते और वापस लाते थे। प्रभु ने आप से कहा है, ÷तुम ही मेरी प्रजा इस्राएल के चरवाहा, इस्राएल के शासक बन जाओगे।''
3) इस्राएल के सभी नेता हेब्रोन में राजा के पास आये और दाऊद ने हेब्रोन में प्रभु के सामने उनके साथ समझौता कर लिया। उन्होंने दाऊद का इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक किया।
4) जब दाऊद राजा बना, तो उसकी उम्र तीस वर्ष की थी और वह चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा।
5) उसने हेब्रोन में साढ़े सात वर्ष तक यूदा पर राज्य किया और येरुसालेम में तैंतीस वर्ष तक समस्त इस्राएल और यूदा पर राज्य किया।
6) राजा ने अपने सैनिकों के साथ येरुसालेम जा कर यूबसियों पर, जो वहांँ के निवासी थे, आक्रमण किया। उन्होंने दाऊद से कहा, ÷÷तुम यहांँ प्रवेश नहीं करोगे। अन्धे और लंँगड़े तुम को भगा देंगे।'' कहने का अभिप्राय यह था कि दाऊद यहांँ कभी प्रवेश नहीं कर सकेगा।
7) किन्तु दाऊद ने सियोन के क़िले पर अधिकार कर लिया और उसका नाम दाऊदनगर रखा।
8) उस दिन दाऊद ने कहा, ÷÷जो यबूसियों को पराजित करना चाहता है, उसे पानी की सुरंग से प्रवेश करना होगा। दाऊद उन लंँगड़ों और अन्धों से घृणा करता है।'' इसीलिए लोग कहते हैं - अन्धे और लंँगड़े मन्दिर में नहीं आ सकते।
9) दाऊद उस गढ़ में रहने लगा और उसने उसका नाम दाऊदनगर रखा। दाऊद ने मिल्लों से ले कर गढ़ के चारों ओर नगर बनवाया।
10) दाऊद की शक्ति निरन्तर बढ़ती गयी, क्योंकि प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर उसका साथ देता रहा।
11) तीरूस के राजा हीराम ने देवदार की लकड़ी, बढ़इयों और शिल्पकारों के साथ दाऊद के पास दूत भेजे और उन्होंने दाऊद के लिए महल बनाया।
12) अब दाऊद जान गया कि प्रभु ने उसे इस्राएल का राजा बना दिया है और अपनी प्रजा इस्राएल के कारण उसका राज्य महान् बना दिया।
13) हेब्रोन से आने के बाद दाऊद ने येरुसालेम में अन्य उपपत्नियांँ-पत्नियाँं रख लीं और उसके और पुत्र-पुत्रियांँ उत्पन्न हुए।
14) येरुसालेम में उत्पन्न उसके पुत्रों के नाम ये हैं : शम्मूआ, शोबाब, नातान, सुलेमान,
15) यिभार, एलीशूआ, नेफ़ेग, याफ़ीआ,
16) एलीशामा, एलयादा और एलीफ़ेलेट।
17) जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि दाऊद का इस्राएलियों के राजा के रूप में अभिषेक हुआ है, तो वे सभी दाऊद की खोज में निकले। यह सुनकर दाऊद ने किले में आश्रय लिया।
18) फ़िलिस्ती आये और रफ़ाईम के मैदान में फैल गये।
19) तब दाऊद ने प्रभु से पूछा, ÷÷क्या मैं फ़िलिस्तियों पर आक्रमण करूँ? क्या तू उन्हें मेरे हाथ दे देगा?'' प्रभु ने दाऊद को उत्तर दिया, ÷÷हाँ, आक्रमण करो। मैं फ़िलिस्तियों को अवश्य तुम्हारे हाथ दे दूंँगा।''
20) दाऊद ने उन्हें बाल-परासीम जा कर पराजित किया। उस समय उसने कहा, ÷÷प्रभु ने मेरे सामने मेरे शत्रुओं की पंक्ति इस प्रकार तोड़ डाली है, जैसे पानी बांँध को तोड़ डालता है।'' इसलिए उस स्थान का नाम बाल-परासीम पड़ गया।
21) फ़िलिस्तियों ने वहाँं अपनी देवमूर्तियांँ छोड़ दी; दाऊद और उसके आदमी उन्हें वहांँ से ले गये।
22) फ़िलिस्ती फिर आये और रफ़ाईम के मैदान में फैल गये।
23) दाऊद को प्रभु से पूछने पर उत्तर मिला, ''उन पर सीधे आक्रमण मत करो, बल्कि चक्कर काट कर उनके पीछे पहुंँचो और मोखा वृक्षों की ओर से चढ़ाई करो।
24) जैसे तुम मोखा वृक्षों के शिखरों में चलने की आवाज+ सुनोगे, तो आक्रमण करोगे; क्योंकि तब फ़िलिस्तियों की सेना को पराजित करने के लिए प्रभु तुम्हारे आगे-आगे जा रहा होगा।''
25) दाऊद ने प्रभु की आज्ञा का पालन किया और फ़िलिस्तियों को गेबा से ले कर गेजे+र तक मार भगाया।

अध्याय 6

1) दाऊद ने इस्राएल के तीस हज+ार चुने हुए पुरुषों को एकत्रित किया।
2) इसके बाद वह अपने सब लोगों के साथ यूदा प्रदेश बाला गया, जिससे वह वहांँ से ईश्वर की मंजूषा ले आये। वह केरूबों पर विराजमान, विश्वमण्डल के प्रभु के नाम से पुकारी जाती है।
3) ईश्वर की मंजूषा एक नयी गाड़ी पर रखी गयी और टीले पर स्थित अबीनादाब के घर से ले जायी गयी। अबीनादाब के पुत्र उज्+जा और अहयों उस नयी गाड़ी को हांँक रहे थे।
4) वे टीले पर स्थित अबीनादाब के घर से ईश्वर की मंजूषा ले जा रहे थे। अहयो मंजूषा के आगे-आगे चल रहा था।
5) दाऊद और सभी इस्राएली प्रभु के सामने नृत्य करते, गाते और सारंगी, डफ, डमरू, झांँझ आदि बजाते हुए चल रहे थे।
6) जब वे नाकोन के खलिहान के पास आये, तब उज्+जा ने हाथ उठाकर ईश्वर की मंजूषा को संँभाला, क्योंकि बैलों को ठोकर लग गयी थी।
7) प्रभु का कोप उज्+जा पर भड़क उठा और उसने वहीं उज्जा की इस भूल के कारण उसे मारा। ईश्वर की मंजूषा के पास ही उसकी मृत्यु हो गयी।
8) दाऊद बहुत घबरा गया, क्योंकि प्रभु का क्रोध उज्+जा पर भड़क उठा। उस स्थान का नाम पेरेस-उज्+जा पड़ गया, जो आज तक प्रचलित है।
9) उस दिन यह सोच कर दाऊद प्रभु से डर गया कि प्रभु की मंजूषा मेरे पास कैसे आ सकती है।
10) इसीलिए दाऊद प्रभु की मंजूषा अपने यहांँ दाऊदनगर नहीं लाया, बल्कि दाऊद उसे गतवासी ओबेद-एदोम के यहाँं ले गया।
11) प्रभु की मंजूषा तीन महीने तक गत के ओबेद-एदोम के यहांँ रही। प्रभु ने ओबेद-एदोम और उसके सारे परिवार को आशीर्वाद दिया।
12) राजा दाऊद को ख़बर मिली की प्रभु ने ईश्वर की मंजूषा के कारण ओबेद-एदोम के घर वालों और उसकी सम्पत्ति को आशीर्वाद दिया है; इसलिए दाऊद गया और ईश्वर की मंजूषा ओबेद-एदोम के घर से बड़े आनन्द के साथ दाऊदनगर ले आया।
13) जब ईश्वर की मंजूषा ढोने वाले छः क़दम आगे बढ़े थे, तो दाऊद ने एक बैल और एक मोटे बछड़े की बलि चढ़ायी।
14) वह छालटी का अधोवस्त्र पहने प्रभु के सामने उल्लास के साथ नाच रहा था।
15) इस प्रकार दाऊद और सब इस्राएली जयकार करते और तुरही बजाते हुए प्रभु की मंजूषा ले आये।
16) जब प्रभु की मंजूषा दाऊदनगर में प्रवेश कर रही थी, तो साऊल की पुत्री मीकल ने खिड़की से देखा। उसने राजा दाऊद को प्रभु के सामने नाचते-कूदते देखकर मन-ही-मन दाऊद का तिरस्कार किया।
17) उन्होंने मंजूषा को ला कर उस तम्बू के मध्य में रख दिया, जिसे दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था। इसके बाद दाऊद ने प्रभु को होम और शान्ति के बलिदान चढ़ाये।
18) होम और शान्ति के बलिदान चढ़ाने के बाद दाऊद ने विश्वमण्डल के प्रभु के नाम पर लोगों को आशीर्वाद दिया।
19) अन्त में उसने समस्त प्रजा, सभी एकत्र इस्राएली पुरुषों और स्त्रियों को एक-एक रोटी, भुने हुए मांस का एक-एक टुकड़ा और किशमिश की एक-एक टिकिया दी। इसके बाद सब लोग अपने-अपने घर गये।
20) जब दाऊद अपने परिवार को आशीर्वाद देने अपने घर आया, तो साऊल की पुत्री मीकल दाऊद से मिलने आयी और बोली ÷÷आज इसा्रएल के राजा ने कितना यश कमाया कि अपने सेवकों की दासियों के सामने निकम्मों की तरह नंगेबदन नाचते रहे।''
21) दाऊद ने मीकल से कहा, ÷÷प्रभु ने तुम्हारे पिता और तुम्हारे सारे घराने की अपेक्षा मुझे चुना है और मुझे प्रभु की प्रजा, इस्राएल का शासक बनाया है। मैं उसी प्रभु के सामने नाचता रहा और नाचूंँगा।
22) मैं इस से अधिक अशोभनीय आचरण करूँंगा और अपनी दृष्टि में अपने को और नीचा दिखाऊँगा, किन्तु जिन दासियों की तुम चरचा करती हो, वे मेरा सम्मान करेंगी।''
23) साऊल की पुत्री मीकल मृत्यु तक बांँझ रही।

अध्याय 7

1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,
2) तो राजा ने नबीनातान से कहा, ÷÷देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूंँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।''
3) नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, ÷÷आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।''
4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
5) ÷÷मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है : क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?
6) जिस दिन मैं इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया, उस दिन से आज तक मैंने किसी भवन में निवास नहीं किया।
7) मैं तम्बू में रहकर उनके साथ भ्रमण करता रहा। जब तक मैं इस्राएलियों के साथ भ्रमण करता रहा, मैंने कभी किसी से यह नहीं कहा, ÷तुम मेरे लिए देवदार का मन्दिर क्यों नहीं बनाते हो?' मैंने किसी न्यायकर्ता से, जिसे मैंने अपनी प्रजा चराने के लिए नियुक्त किया, ऐसा निवेदन नहीं किया।
8) इसलिए मेरे सेवक दाऊद से यह कहो - विश्वमण्डल का प्रभु कहता है : तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।
9) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाष कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।
10) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,
11) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंष सुरक्षित रखेगा।
12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।
13) वही मेरे आदर में एक मन्दिर बनवायेगा और मैं उसका सिंहासन सदा के लिए सुदृढ़ बना दूँगा।
14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा। यदि वह बुराई करेगा, तो मैं उसे दूसरे लोगों की तरह बेंत और कोड़ों से दण्डित करूँगा।
15) किन्तु मैं उस पर से अपनी कृपा नहीं हटाऊँगा, जैसा कि मैंने साऊल के साथ किया, जिसे मैंने तुम्हारे लिए ठुकराया।
16) इस तरह तुम्हारा वंष और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।''
17) नातान ने दाऊद को ये सब बातें और यह सारा दृष्य बताया।
18) इसके बाद दाऊद प्रभु के तम्बू में जा कर बैठ गया और उसने कहा, ÷÷प्रभु-ईश्वर! मैं क्या हूँ और मेरा वंश क्या है, जो तू मुझे यहाँ तक ले आया है?
19) प्रभु-ईष्वर! यह तेरी दृष्टि में पर्याप्त नहीं हुआ। तू अपने सेवक के वंष के सुदूर भविष्य की प्रतिज्ञा करता है। प्रभु- ईष्वर! क्या यह निरे मनुष्य का भाग्य है?
20) दाऊद तुझ से और क्या कहे? प्रभु-ईष्वर! तू अपने दास को जानता ही है।
21) अपनी प्रतिज्ञा और अपनी दया के अनुसार तूने यह महान् कार्य सम्पन्न किया है और अपने दास पर यह प्रकट किया है।
22) प्रभु-ईष्वर! तू कितना महान् है! तेरे समान कोई नहीं और तेरे सिवा कोई ईष्वर नहीं, जैसा कि हमने अपने कानों से सुना है।
23) क्या तेरी प्रजा इस्राएल के समान पृथ्वी पर कोई राष्ट्र है? ईष्वर स्वयं उसे छुड़ाने गया, जिससे वह उसे अपनी प्रजा बनाये और गौरवान्वित करे। तूने अपनी प्रजा को मिस्र से छुड़ाया और महान् एवं विस्मयकारी चमत्कार दिखा कर अपनी प्रजा के सामने से राष्ट्रों और उनके देवताओं को भगा दिया।
24) तूने अपनी प्रजा इस्राएल को चुना, जिससे वह सदा के लिए तेरी प्रजा हो और तू, प्रभु, उसका अपना ईष्वर।
25) प्रभु-ईष्वर! तूने अपने सेवक और उसके वंष के विषय में जो वचन दिया है, उसे सदा के लिए बनाये रख और अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर।
26) तब तेरा नाम सदा के लिए महान् होगा। तब लोग यह कहेंगे : विष्वमण्डल का प्रभु-ईष्वर इस्राएल का ईष्वर है' और तेरे सेवक दाऊद का वंष तेरे सामने सुदृढ़ रहेगा।
27) विष्वमण्डल के प्रभु-ईष्वर! इस्राएल के ईष्वर! तूने अपने सेवक से कहा, ÷मैं तेरा वंष बनाये रखूँगा।' इसलिए तेरे सेवक को तुझ से यह प्रार्थना करने का साहस हुआ।
28) प्रभु-ईष्वर! तू ईष्वर है और तेरे शब्द विश्वसनीय हैं। तूने अपने सेवक से कल्याण की यह प्रतिज्ञा की है।
29) अब अपने सेवक के वंष को आषीर्वाद प्रदान कर, जिससे वह सदा तेरे सामने बना रहे। प्रभु-ईष्वर! तूने यह प्रतिज्ञा की है। तेरे आषीर्वाद के फलस्वरूप तेरे सेवक का वंष सदा ही फलता-फूलता रहेगा।''

अध्याय 8

1) दाऊद ने फ़िलिस्तियों को पराजित कर उन्हें अपने अधीन कर लिया और उसने फ़िलिस्तियों का आधिपत्य समाप्त किया।
2) उसने मोआब को भी पराजित किया और उसके बन्दियों को ज+मीन पर लिटा कर एक डोरी की लम्बाई से नापा। दो लम्बाइयों तक के बन्दियों को मारा गया और तीसरी लम्बाई के बन्दियों को जीवित छोड़ दिया गया। इस प्रकार मोआबी दाऊद के अधीन हो गये और उन्हें उसे कर देना पड़ा।
3) दाऊद ने सोबा के राजा रहोब के पुत्र हददएज+ेर को पराजित किया, जब वह फ़रात नदीे के पास अपना अधिकार दृढ़ करने गया था।
4) दाऊद ने उस से एक हज+ार सात सौ घुड़सवार ले लिये और बीस हज+ार पैदल सैनिकों को बन्दी बना लिया। दाऊद ने एक सौ को छोड़ कर रथ के सारे घोड़ो को लँगड़ा बना दिया।
5) दमिष्क के अरामी सोबा के राजा हददएज+ेर की सहायता करने आये। दाऊद ने उन अरामियों के बाईस हज+ार आदमियों को मार डाला।
6) इसके बाद दाऊद ने दमिष्क के अराम में रक्षक-सेना रखी। इस प्रकार अरामी दाऊद के अधीन हो गये और उसे कर देने लगे। दाऊद जहाँ भी जाता, प्रभु उसे वहाँ विजय दिलाता था।
7) दाऊद हददएजे+र के सेवकों की सोने की ढालें उठा कर येरुसालेम ले गया।
8) राजा दाऊद ने हददएजे+र के नगर बेटह और बेरोतय से बहुत-सा काँसा भी छीन लिया।
9) जब हमात के राजा तोई ने सुना कि दाऊद ने हददएजे+र की सारी सेना को पराजित कर दिया है,
10) तो तोई ने अपने पुत्र योराम को राजा दाऊद के यहाँ उसे प्रणाम करने और उसे बधाई देने के लिए भेजा कि उसने हददएज+ेर को युद्व में पराजित किया है; क्योंकि हददएजे+र से तोई का भी बैर था। योराम चाँदी, सोने और काँसे के सामान भी ले आया।
11) राजा दाऊद ने उन्हें और उस चाँदी और सोने को भी प्रभु को अर्पित किया, जिसे उसने सब पराजित राष्ट्रों से,
12) अर्थात्, एदोम, मोआब, अम्मोनियों, फ़िलिस्तियों, अमालेकियों से छीन लिया था। उसने सोबा के राजा रहोब के पुत्र हददएजे+र की लूट के साथ भी वही किया।
13) दाऊद ने लवण-घाटी में अठारह हज+ार एदोमियों को मारा। इस कारण उसका यष फैल गया।
14) उसने समस्त एदोम में रक्षक सेना रखी और सभी एदोमी दाऊद के अधीन हो गये। प्रभु दाऊद को उसके सारे कामों में विजयी बनाता गया।
15) दाऊद सारे इस्राएल पर शासन करता और अपनी सारी प्रजा के साथ निष्पक्ष और उचित व्यवहार करता था।
16) सरूया का पुत्र योआब सेनापति था। अहीलूद का पुत्र यहोषाफ़ाट अभिलेखी था।
17) अहीटूब का पुत्र सादोक और एबयातर का पुत्र अहीमेलेक याजक थे। सराया सचिव था।
18) यहोयादा का पुत्र बनाया करेतियों और पलेतियों का सेनाध्यक्ष था और दाऊद के पुत्र याजक थे।

अध्याय 9

1) दाऊद ने पूछा, ÷÷क्या साऊल के परिवार का कोई जीवित है? योनातान के कारण मैं उसके साथ दयापूर्ण व्यवहार करना चाहता हूँ।''
2) साऊल के घर में सीबा नाम का एक नौकर था। उसे दाऊद के पास ले आया गया और राजा ने उस से पूछा, ÷÷तुम सीबा हो?'' उसने उत्तर दिया, ÷÷हाँ, मैं आपका दास सीबा हूँ।''
3) राजा ने पूछा, ÷÷साऊल के परिवार का कोई जीवित है? मैं उसके साथ ईष्वर की-सी दया का व्यवहार करना चाहता हूंँ।'' सीबा ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷योनातान का एक पुत्र जीवित है, जो दोनों पांँव का लंँगड़ा है।''
4) राजा ने उस से पूछा, ÷÷वह कहांँ है?'' सीबा ने राजा से कहा, ÷÷वह लो-दबार में अम्मीएल के पुत्र माकीर के घर में है।''
5) राजा दाऊद ने उसे लो-दबार के अम्मीएल के पुत्र माकीर के घर से बुलवा भेजा।
6) इस पर साऊल का पौत्र, योनातान का पुत्र मफ़ीबोशेत दाऊद के पास आया और उसने झुक कर दाऊद को प्रणाम किया। दाऊद ने कहा, ÷÷मफ़ीबोशेत!'' उसने उत्तर दिया, हाँं, मैं आपका दास मफ़ीबोशेत हूंँ।''
7) दाऊद ने उससे कहा, ÷÷डरो मत। मैं तुम्हारे पिता योनातान के कारण तुम्हारे साथ दयापूर्ण व्यवहार करना चाहता हूंँ। मैं तुम्हें अपने पितामह साऊल की सारी भू-सम्पत्ति लौटा दूंँगा और तुम सदा मेरी ही मेज+ पर भोजन करोगे।''
8) उसने सिर झुका कर कहा, ÷÷आपका यह दास क्या है, जो आप मुझ मरे कुत्ते-जैसे व्यक्ति का ध्यान रखते हैं?''
9) इस पर राजा ने साऊल के नौकर सीबा को बुलाकर उससे कहा, ÷÷मैं वह सब तुम्हारे स्वामी के पुत्र को देता हूंँ, जो साऊल और उसके सारे परिवार का था।
10) तुम अपने पुत्रों और नौकरों के साथ उसका खेत जोतना और उसकी फ़सल काटना, जिससे तुम्हारे स्वामी के पुत्र का जीवन-निर्वाह हो। तुम्हारे स्वामी का पुत्र मफ़ीबोशेत सदा मेरी मेज+ पर भोजन करेगा।'' सीबा के पन्द्रह पुत्र और बीस नौकर थे।
11) सीबा ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷मेरे स्वामी और राजा अपने दास को जैसी आज्ञा देते हैं, वह ठीक वैसा ही करेगा।'' इसलिए मफ़ीबोशेत राजा के पुत्रों के समान दाऊद की मेज+ पर भोजन करता था।
12) मफ़ीबोशेत का मीका नामक एक छोटा पुत्र था। वे सब, जो सीबा के घर में रहते थे, मफ़ीबोशेत की सेवा करते थे।
13) मफ़ीबोशेत स्वयं येरुसालेम में रहता था, क्योंकि वह प्रतिदिन राजा की मेज+ पर भोजन करता था। वह दोनों पांँव का लंँगड़ा था।

अध्याय 10

1) कुछ समय बाद अम्मोनियों के राजा की मृत्यु हो गयी और उसके स्थान पर उसका पुत्र हानून राजा बना।
2) दाऊद ने सोचा, ÷÷मैं नाहाश के पुत्र हानून के साथ इस तरह मित्रता का व्यवहार करूँगा, जिस तरह उसका पिता मेरे साथ मित्रता का व्यवहार करता था।'' इसलिए दाऊद ने अपने सेवकों को भेज कर उसके पिता की मृत्यु के लिए संवेदना प्रकट की।
3) जब दाऊद के दूत अम्मोनियों के देश पहुँचे, तो अम्मोनियों के सीमन्तों ने अपने स्वामी हानून से कहा, ÷÷क्या आप सोचते हैं कि दाऊद ने अपने सेवकों को इसलिए संवेदना प्रकट करने आपके पास भेजा है कि उस में आपके पिता के प्रति सचमुच आदर-भाव है? नहीं, दाउद ने अपने सेवकों को आपके यहांँ नगर की टोह लेने, उसका भेद जानने और उसका सर्वनाश करने भेजा है।''
4) इसलिए हानून ने दाऊद के सेवकों को पकड़वाया, उनकी आधी दाढ़ी कटवा डाली और जांँघ तक आधा वस्त्र कटवा डाला। इसके बाद उसने उन्हें वापस भेजा।
5) जब दाऊद को इसका समाचार मिला, तो उसने उन से मिलने दूत भेजे, क्योंकि वे अत्यन्त लज्जित थे। राजा ने उन से कहलवाया, ÷÷जब तक तुम्हारी दाढ़ी फिर से पूरी न बढ़े, तब तक येरीख़ो में ही रूके रहो। इसके बाद घर लौटो।''
6) जब अम्मोनियों को पता चला कि दाऊद को उन से घृणा हो गयी है, तो वे दूत भेज कर बेत-रहोब के अरोमियों और सोबा के अरोमियों से बीस हज+ार पैदल सैनिक, माका के राजा से एक हज+ार सैनिक और टोब के निवासियों से बारह हज+ार सैनिक अपने यहांँ किराये पर ले आये।
7) यह सुनकर दाऊद ने योआब को वीर योद्धाओं की सारी सेना के साथ भेजा।
8) अम्मोनी निकल कर फाटक के सामने पंक्तियों में खड़े हो गये। सोबा और रहोब के अरामियों एवं टोब और माका के सैनिकों ने खुले मैदान में अलग पड़ाव डाला था।
9) जब योआब ने देखा कि सामने और पीछे की ओर से आक्रमण का भय है, तो उसने इस्राएल के कुछ सर्वोत्तम सैनिकों को चुना और उन्हें अरोमियों का सामना करने भेजा।
10) उसने अपनी शेष सेना को अपने भाई अबीशय के नेतृत्व में अम्मोनियों का सामना करने भेजा।
11) उसने कहा, ÷÷यदि अरामी मुझ से अधिक प्रबल होंगे, तो तुम्हें मेरी सहायता करनी पड़ेगी और यदि अम्मोनी तुम से अधिक प्रबल होंगे, तो मैं तुम्हारी सहायता करूँंगा।
12) ढारस रखों। हम अपने लोगों और अपने ईश्वर के नगरों के लिए लड़े। प्रभु वही करे, जो उसे उचित प्रतीत हो।''
13) जब योआब अपने लोगों के साथ अरामियों पर आक्रमण करने आगे बढ़ा, तब वे उसके सामने से भाग खड़े हुए।
14) ज्यों ही अम्मोनियों ने देखा कि अरामी भाग रहे हैं, वे भी अबीशय के सामने से भाग निकले और उन्होंने नगर में शरण ली। इसके बाद योआब ने अम्मोनियों को छोड़ दिया और येरुसालेम लौट गया।
15) जब अरामियों ने देखा कि वे इस्राएलियों से हार गये हैं, तो वे फिर से एकत्रित हुए।
16) हददएज+र ने फ़रात नदी के उस पार रहने वाले अरामियों को बुलवाया। वे हेलाम गये। हददएज+ेर का सेनापति शोबक उनका नेतृत्व करता था।
17) जब दाऊद को यह समाचार मिला, तो वह सब इस्राएलियों को एकत्रित कर और यर्दन पार कर हेलाम आया। अरामी दाऊद का सामना करने के लिए व्यूहरचना कर उसके विरुद्ध लड़ने लगे।
18) परन्तु अरामियों को इस्राएलियों के सामने से भागना पड़ा। दाऊद ने अरामियों के सात सौ रथियों और चालीस हज+ार घुड़सवारों को मार गिराया। उनका सेनापति शोबक इतना घायल हो गया कि वहीं उसकी मृत्यु हो गयी।
19) जब हददएजे+र के अधीन सब राजाओं ने देखा कि वे इस्राएलियों द्वारा पराजित हो गये हैं, तो उन्होंने उनके साथ सन्धि कर ली। वे उनके अधीन हो गये। इसके बाद अरामी अम्मोनियों को सहायता देने से डरने लगे।

अध्याय 11

1) वसन्त के समय, जब राजा लोग युद्ध के लिए प्रस्थान किया करते हैं, दाऊद ने अपने अंगरक्षकों और समस्त इस्राएली सेना के साथ योआब को भेजा। उन्होंने अम्मोनियों को तलवार के घाट-उतारा और रब्बा नामक नगर को घेर लिया। दाऊद येरुसालेम में रह गया।
2) दाऊद सन्या समय अपनी शय्या से उठ कर महल की छत पर टहल ही रहा था कि उसने छत पर एक स्त्री को स्नान करते देखा। वह स्त्री अत्यन्त रूपवती थी।
3) दाऊद ने उस स्त्री के विषय में पूछताछ की और लोगों ने उस से कहा, ÷÷यह तो एलीआम की पुत्री और हित्ती ऊरीया की पत्नी बतशेबा है।''
4) तब दाऊद ने उस स्त्री को ले आने के लिए दूतों को भेजा। वह उसके पास आयी और दाऊद ने उसके साथ रमण किया। (वह अपनी अशुद्धता से मुक्त हो गयी थी।) इसके बाद वह अपने घर लौट गयी।
5) उस स्त्री को गर्भ रह गया और उसके दाऊद को कहला भेजा कि ÷÷मैं गर्भवती हूँ।''
6) तब दाऊद ने योआब को यह आदेश दिया, ÷÷हित्ती ऊरीया को मेरे पास भेज दो।
7) जब ऊरीया उसके पास आया, तो दाऊद ने उससे योआब, सेना और युद्ध का समाचार पूछा।
8) इसके बाद उसने ऊरीया से कहा, अपने घर जा कर स्नान करो।'' ऊरीया महल से चला गया और राजा ने उसके पास उपहार भेजा।
9) किन्तु ऊरीया ने अपने स्वामी के सेवकों के पास महल के द्वारमण्डप में रात बितायी और वह अपने घर नहीं गया।
10) लोगों ने दाऊद से कहा कि ऊरीया अपने घर नहीं गया। इसलिए दाऊद ने अरीया से पूछा, ÷÷तुम तो दूर से लौटे हो, अब घर क्यों नहीं जाते?''
11) ऊरीया ने दाऊद से कहा, ÷÷विधान की मंजूषा, इस्राएल और यूदा के सब लोग तम्बुओं में रहते हैं। मेरे सेनापति योआब और मेरे स्वामी के सेवक खुले मैदान में रहते हैं और मैं खाने-पीने और अपनी पत्नी के साथ सोने घर जाऊँ? आपके और अपने प्राणों की शपथ! मैं ऐसा नहीं कर सकता।''
12) दाऊद ने ऊरीया से कहा, ÷÷तो आज भर यही ठहरों, मैं तुम्हें कल चला जाने दूंँगा।'' ऊरीया उस दिन और दूसरे दिन भी येरुसालेम में रह गया।
13) तब दाऊद से उसे अपने साथ खाने और पीने का निमन्त्रण दिया और इतना पिलाया कि वह मतवाला हो गया। किन्तु ऊरीया फिर अपने प्रभु के सेवकों के पास अपने पलंग पर सोया और वह अपने घर नहीं गया।
14) दूसरे दिन प्रातः दाऊद ने योआब के नाम पत्र लिखकर ऊरीया के हाथ भेजा।
15) उसने पत्र में यह लिखा, ÷÷जहांँ घमासान युद्ध हो रहा है, वहीं ऊरीया को सब से आगे रखना और तब उसके पीछे से हट जाना, जिससे वह मारा जाये और खेत रहे।''
16) इसलिए योआब ने नगर के घेराव में ऊरीया को एक ऐसे स्थान पर रखा, जिसके विषय में वह जानता था कि वहांँ शूरवीर योद्धा तैनात थे।
17) नगर के निवासी योआब पर आक्रमण करने निकले। सेना और दाऊद के अंगरक्षकों में से कुछ लोग मारे गये और हित्ती ऊरीया भी मारा गया।
18) योआब ने दाऊद को युद्ध के सब समाचार देने के लिए एक आदमी भेजा।
19) उसने उस दूत को आज्ञा दी, ÷÷जब तुम राजा को युद्ध का समाचार सुना चुके हो, तो हो सकता है
20) कि राजा का क्रोध भड़क उठे और वह तुमसे पूछें, ÷तुम लोग लड़ते हुए नगर के इतने निकट कयों चले गये? क्या तुम्हे मालूम नहीं था कि लोग दीवार के ऊपर निशाना लगाते हैं?
21) यरूबबेशत के पुत्र अबीमेलेक को किसने मारा था? क्या किसी स्त्री ने दीवार पर से चक्की का ऊपरी पाट नीचे नहीं फेंका था, जिससे वह तेबेस में मर गया? तुम दीवार के इतने नज+दीक क्यों गये?' तब तुम उन से यह कहना कि आपका सेवक, हित्ती ऊरीया भी मर गया।''
22) उस दूत ने आ कर दाऊद को योआब का पूरा समाचार बता दिया।
23) दूत ने दाऊद से कहा, ÷÷शत्रु हम से अधिक प्रबल थे। उन्होंने खुले मैदान तक हम पर आक्रमण किया, परन्तु हमने उन्हें नगर के फाटक तक भगा दिया।
24) लेकिन दीवार पर से तीरन्दाजों ने आपके लोगों पर बाण छोड़ दिये। इस से राजा के कई सेवक मारे गये और आपका सेवक, हित्ती ऊरीया भी मर गया।''
25) दाऊद ने दूत से कहा, ÷÷योआब से कहना कि इस बात की कोई चिन्ता न करो, क्योंकि तलवार कभी इस को खाती है, तो कभी उस को। शक्ति बटोर कर उस नगर पर फिर आक्रमण करो और उसका विनाश कर डालो। ऐसा कह कर उसको ढारस बंँधाओ।''
26) जब ऊरीया की पत्नी ने यह सुना कि उसका पति ऊरीया मर गया है, तो उसने अपने पति के लिए विलाप किया।
27) जब वह शोक मना चुकी, तब दाऊद ने उसे अपने घर में रख लिया। वह उसकी पत्नी बन गयी और उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। लेकिन दाऊद ने जो किया, वह प्रभु को अच्छा नहीं लगा।

अध्याय 12

1) प्रभु ने नातान को दाऊद के पास भेजा। नातान ने उसके पास आकर कहा, ÷÷एक नगर में दो व्यक्ति रहते थे। एक धनी था और दूसरा दरिद्र।
2) धनी के पास बहुत-सी भेड़-बकरियांँ और गाय-बैल थे।
3) दरिद्र के पास केवल एक छोटी-सी भेड़ थी, जिसे उसने ख़रीदा था। वह उसका पालन-पोषण करता था। वह भेड़ उसके यहाँं उसके बच्चों के साथ बड़ी होती जा रही थी। वह उसकी रोटी खाती, उसके प्याले में पीती और उसकी गोद में सोती थी। वह उसके लिए बेटी के समान थी।
4) ÷÷किसी दिन धनी के यहांँ एक अतिथि पहुंँचा। धनी ने अपने यहांँ आये हुए यात्री को खिलाने के लिए अपने पशुओं में से किसी को भी लेना नहीं चाहा, बल्कि उसने दरिद्र की भेड़ छीन ली और उसे पका कर अपने अतिथि के लिए भोजन का प्रबन्ध किया।''
5) दाऊद का क्रोध उस मनुष्य पर भड़क उठा और उसने नातान से कहा, ÷÷जीवन्त प्रभु की शपथ! जिस व्यक्ति ने ऐसा किया, वह प्राणदण्ड के योग्य है।
6) वह भेड़ का चौगुना दाम चुकायेगा, क्योंकि उसने ऐसा निर्दय काम किया है।''
7) नातान ने दाऊद से कहा, "आप ही वह धनी व्यक्ति हैं। प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है - मैंने तुम्हारा अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में किया।
8) मैंने तुम को साऊल के हाथ से बचाया। मैंने तुम्हें अपने स्वामी का घर और उसकी पत्नियाँ दे दीं। मैंने इस्राएल तथा यूदा का घराना भी दिया और यदि वह पर्याप्त नहीं, तो मैं तुम को और भी देने के लिए तैयार हूँ।
9) तो, क्यों तुमने प्रभु का तिरस्कार किया और ऐसा कार्य कर डाला, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है? तुमने ऊरीया हित्ती को तलवार से मरवा डाला और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है। तुमने उसे अम्मोनियों की तलवार से मारा है।
10) इसलिए अब से तलवार तुम्हारे घर से कभी दूर नहीं होगी; क्योंकि तुमने मेरा तिरस्कार किया और ऊरीया हित्ती की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया।
11) प्रभु यह कहता है : मैं तुम्हारे अपने घर से तुम्हारे लिए विपत्ति उत्पन्न करूँगा। मैं तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों को ले जा कर तुम्हारे पड़ोसी को दे दूँगा, जो खुले आम उनके साथ रमण करेगा।
12) तुमने गुप्त रूप से यह काम किया, मैं समस्त इस्राएल के सामने प्रकट रूप से यह करूँगा।''
13) दाऊद ने नातान से कहा, "मैनें प्रभु के विरुद्ध पाप किया है।'' इस पर नातान ने दाउद से कहा, "प्रभु ने आपका यह पाप क्षमा कर दिया है। आप नहीं मरेंगे।
14) किन्तु आपने इस काम के द्वारा प्रभु का तिरस्कार किया, इसलिए आप को जो पुत्र उत्पन्न होगा, वह अवश्य मर जायेगा।''
15) इसके बाद नातान अपने घर गया। प्रभु ने उस बच्चे को मारा, जिसे ऊरीया की पत्नी ने दाऊद के लिए उत्पन्न किया था और वह बहुत ही बीमार पड़ा।
16) दाऊद ने बच्चे के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। उसने कुछ भी नहीं खाया और वह अपने शयनकक्ष जा कर रात में भी भूमि पर सोता रहा।
17) दरबार के वयोवृद्धों ने उससे अनुरोध किया कि वह भूमि पर सोना छोड़ दे, किन्तु उसने उनकी बात नहीं मानी और उनके साथ भोजन करना अस्वीकार किया।
18) सातवें दिन वह बच्चा मर गया। दाऊद के सेवक उसे यह बताते हुए डर रहे थे कि वह बच्चा मर गया है। वे सोचते थे कि जब वह बच्चा जीवित था, तब यदि हम उसे समझाते थे, तो वह हमारी बात नहीं मानता था, तो अब हम कैसे कहें कि वह बच्चा मर गया है। यह सुनकर वह अपनी क्षति करेगा।
19) दाऊद ने देखा कि उसके सेवक आपस में कानाफूसी कर रहे हैं। इससे दाऊद को आभास मिला कि बच्चा मर गया है। तब दाऊद ने अपने सेवकों से पूछा, ''क्या बच्चा मर गया?'' उन्होंने उत्तर दिया, ÷÷हाँं, वह जाता रहा।''
20) तब दाऊद पृथ्वी पर से उठ बैठा, उसने स्नान किया, तेल लगाया और कपड़े बदल कर आराधना करने प्रभु के निवास गया। फिर घर लौट कर उसने भोजन मांँगा। सेवकों ने खाना परोसा और दाऊद ने भोजन किया।
21) उसके सेवकों ने उससे पूछा, ÷÷आप यह कैसा व्यवहार कर रहे हैं? जब बच्चा जीवित था, तब तो आपने उसके कारण उपवास किया और रोते रहे और अब जब वह बच्चा मर गया है, तब आप उठ कर भोजन कर रहे हैं।''
22) उसने उत्तर दिया, ÷÷जब तक वह बच्चा जीवित रहा, मैंने यह सोच कर उसके कारण उपवास रखा और रोता रहा कि कौन जाने, प्रभु मुझ पर दया करे और बच्चे को जीवित रहने दे।
23) परन्तु अब वह मर गया। अब मैं किस लिए उपवास रखूंँ? क्या मैं उसको वापस बुला सकता हूंँ? मैं उसके पास जा सकता हूंँ, किन्तु वह फिर मेरे पास नहीं आयेगा।''
24) दाऊद ने अपनी पत्नी बतशेबा को सान्तवना दी। फिर उसके पास जाकर उसका उसके साथ संसर्ग हुआ। उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उसने उसका नाम सुलेमान रखा। प्रभु उसको प्यार करता था
25) और उसने यह बात नबी नातान द्वारा प्रकट की, जिसने प्रभु के कारण उसका नाम यदीद्या (प्रभु-प्रिय) रखा।
26) योआब ने अम्मोनियों के नगर रब्बा पर आक्रमण कर राजकीय क़िले पर अधिकार कर लिया।
27) योआब ने दूतों द्वारा दाऊद को यह कहला भेजा, ÷÷मैंने रब्बा पर आक्रमण किया और उसकी जल-आपूर्ति के स्थान पर अधिकार कर लिया।
28) अब आप शेष सैनिकों को एकत्रित करें और नगर को घेर कर अपने अधिकार में ले लें, जिससे मैं स्वंय नगर पर अधिकार न करूंँ और वह मेरे नाम से न पुकारा जाये।
29) इसलिए दाऊद ने सारी सेना एकत्रित कर और रब्बा जा कर उस पर आक्रमण किया और उसे अपने अधिकार में कर लिया।
30) उसने राजा के सिर का मुकुट ले लिया। उसका वज+न एक मन सोना था और वह बहुमूल्य रत्नों से जटित था। वह दाऊद के सिर पर पहनाया गया। दाऊद ने उस नगर से लूट का बहुत-सा माल प्राप्त किया।
31) वह नगर के निवासियों को ले गया और उन से आरों, लोहे की गेतियों और कुल्हाड़ियों से काम कराया तथा उन्हें ईंट के भट्ठों की बेगार में लगा दिया। उसने अम्मोनियों के अन्य सभी नगरों के साथ यही किया। इसके बाद दाऊद अपनी सारी सेना के साथ येरुसालेम लौट आया।

अध्याय 13

1) दाऊद के पुत्र अबसालोम की तामार नाम की एक सुन्दर बहन थी। दाऊद का पुत्र अमनोन उससे प्रेम करने लगा।
2) अपनी उस बहन तामर के लिए अमनोन इतना विकल हो उठा कि वह बीमार रहने लगा। यह कुमारी थी, इसलिए उसके साथ अनुचित व्यवहार करना अमनोन को असम्भव-सा लगा।
3) अमनोन का योनादाब नाम का मित्र था। वह दाऊद के भाई शिमआ का पुत्र था। योनादाब बड़ा चतुर था।
4) उसने उससे पूछा, ÷÷राजकुमार, तुम दिनोंदिन इतने दुबले क्यों होते जा रहे हो? क्या तुम मुझे इसका कारण नहीं बताओगे?'' अमनोन ने उससे कहा, ÷÷मैं अपने भाई अबसालोम की बहन तामार से प्रेम करता हँूं।''
5) इस पर योनादाब ने उससे कहा, ÷÷तुम पलंग पर लेटकर बीमार होने का बहाना करो। जब तुम्हारे पिता तुम्हें देखने आये, तो उनसे कहना, ÷मेरी बहन तामार आ कर मुझे रोटी खिलाये। वह मेरे सामने, मेरी आंँखों के ही सामने भोजन तैयार करे और मुझे अपने हाथों से खिलाये'।''
6) अमनोन लेट गया और उसने बीमार होने का बहाना किया। जब राजा उसे देखने आये, तब अमनोन ने राजा से कहा, ÷÷कृपा कर मेरी बहन तामर को मेरे पास भेजिए, जिससे वह मेरे सामने ही कुछ रोटियाँं बनाये और मैं उसके हाथ से ही खाऊँ।''
7) दाऊद ने तामार के यहाँ यह कहला भेजा, ÷÷अपने भाई अमनोन के यहांँ जा कर उसके लिए भोजन तैयार करो।''
8) तामार अपने भाई अमनोन के घर गयी। वह पलंग पर लेटा हुआ था। उसने आटा गूंँधा और उसके सामने ही रोटियांँ बनायीं।
9) फिर उसने थाली उठा कर उसे परोस दिया, किन्तु उसने खाने से इनकार कर दिया। फ़िर अमनोन ने सब लोगों को बाहर जाने की आज्ञा दी।
10) जब सब लोग उसके पास से चले गये, तब अमनोन ने तामर से कहा, ÷÷भोजन भीतर के कमरे में ले चलो, जिससे मैं तुम्हारे ही हाथ से उसे खा सकँूं।'' तामार अपनी बनायी रोटियांँ अपने भाई अमनोन के पास भीतर के कमरे में ले गयी
11) और जब वह उन्हें उस को परोसने लगी, अमनोन ने उसे पकड़ लिया और उससे कहा, ÷÷बहन, मेरे साथ सोओ।''
12) परन्तु उसने उसे उत्तर दिया, ÷÷भाई, मेरे साथ बलात्कार मत करो। इस्राएल में ऐसा नहीं होता। ऐसा कुत्सित कार्य मत करो।
13) नहीं तो मैं किसको मुंँह दिखाने योग्य रहँूंगी? और तुम इस्राएल में घृणित समझे जाओगे। राजा से बात करो। वह मुझे तुमको देना अस्वीकार नहीं करेंगे।''
14) परन्तु उसने उसकी एक न सुनी और उसके साथ बलात्कार कर बैठा।
15) इसके बाद अमनोन को उस से बड़ी घृणा हो गयी। वह घृणा उसके पहले के प्रेम से कहीं अधिक तीव्र थी। अमनोन ने उससे कहा, ÷÷उठो और वहाँं से चली जाओ!''
16) परन्तु उसने उस से कहा, ÷÷नहीं! क्योंकि मुझे निकालने का अपराध उस से बदतर होगा, जो तुमने अभी मेरे साथ किया है।'' परन्तु उसने उसकी एक भी नहीं सुनी।
17) उसने अपने निजी सेवक को बुलाया और उससे कहा, ÷÷मेरे सामने से इस स्त्री को हटा कर बाहर कर दो और दरवाज+ा बन्द कर दो।''
18) वह लम्बी बांँहों वाला एक लम्बा कुरता पहने थी, क्योंकि राजा की कुंँवारी लड़कियांँ ऐसा वस्त्र पहना करती थीं। उस सेवक ने उसको बाहर निकाल कर दरवाजा बन्द कर दिया।
19) तामार ने अपने सिर पर राख डाल ली, पहना हुआ बांँहों वाला लम्बा कुरता फाड़ डाला और सिर पर हाथ रखे फूट-फूट कर रोती हुई चली गयी।
20) तब उसके भाई अबसालोम ने उससे पूछा, ÷÷क्या तुम्हारा भाई अमनोन तुम्हारे पास आया था? अच्छा बहन, अब चुप हो जाओ। वह तुम्हारा भाई ही तो है। चिन्ता मत करो।'' इसलिए तामार अपने भाई अबसालोम के यहांँ परित्यक्ता की तरह रहने लगी।
21) जब राजा दाऊद को यह सब मालूम हुआ, तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ।
22) अबसालोम ने अमनोन के साथ बात करना छोड़ दिया, क्योंकि अबसालोम अमनोन से इसलिए घृणा करने लगा कि उसने उसकी बहन का शील भंग किया था।
23) पूरे दो साल बाद अबसालोम ने एफ्र+ईम के पास के बाल-हासोर में भेड़ों का ऊन कटवाया। इसलिए अबसालोम ने सब राजकुमारों को वहांँ आने का निमन्त्रण दिया।
24) अबसालोम ने राजा के पास जाकर कहा, ÷÷आपका दास भेड़ों का ऊन कटवा रहा है। अपने सेवकों के साथ राजा भी अपने दास के यहाँं आयें।''
25) राजा ने अबसालोम को उत्तर दिया, ÷÷नहीं बेटा, हम सब को नहीं जाना चाहिये। तुम को असुविधा होगी।'' अबसालोम के आग्रह करने पर भी दाऊद ने जाने से इनकार कर दिया और उसे आशीर्वाद दिया।
26) अबसालोम ने कहा, ÷÷यदि यह नहीं हो सकता, तो कम-से-कम मेरा भाई अमनोन ही मेरे साथ चले।'' राजा ने उत्तर दिया, ÷÷वह क्यों तुम्हारे साथ जाये?''
27) जब अबसालोम ने हठ किया, तब उसने अमनोन और अन्य सब राजकुमारों को उसके साथ जाने दिया।
28) अब अबसोलोम ने अपने नौकरों को आज्ञा दी, ÷÷सुनो, यदि अमनोन अंगूरी पी कर उन्मत्त हो जाये और मैं तुम से कहँूं कि अमनोन को मारो, तो तुम लोग उसका वध करो। मत डरो। मैंने ही तुम्हें आज्ञा दी है। ढारस रखो और शूरवीर-जैसा आचरण करो।''
29) अबसालोम के नौकरों ने अबसालोम की आज्ञा के अनुसार अमनोन का वध किया। इस पर सब राजकुमार उठे और अपने खच्चरों पर सवार हो कर भाग निकले।
30) वे रास्ते में ही थे कि दाऊद को यह समाचार मिला कि अबसालोम ने सब राजकुमारों को मार डाला है और उन में एक भी जीवित नहीं बचा।
31) राजा ने उठकर अपने वस्त्र फाड़ लिये और ज+मीन पर लेट गया। उसके पास के सब सेवकों ने भी अपने वस्त्र फाड़ डाले।
32) लेकिन दाऊद के भाई शिमआ के पुत्र योनादाब ने कहा, ÷÷मेरे स्वामी यह न सोचें कि सब राजकुमार मारे गये हैं, अकेले अमनोन ही मारा गया है; क्योंकि उसने जिस दिन अपनी बहन तामार का शील भंग किया था, उसी दिन से अबसालोम ने उसका वध करने का निश्चय किया था।
33) मेरे स्वामी और राजा अपने मन में यह न सोचें कि सब राजकुमार मारे गये हैं। केवल अमनोन की मृत्यु हो गयी है।''
34) अबसालोम भाग गया। युवक पहेरेदार ने अपनी आँंखें उठायीं, तो देखा कि पीछे की ओर पहाड़ के उतार से होते हुए बहुत-से लोग चले आ रहे हैं।
35) तब योनादाब ने राजा से कहा, ÷÷देखिए, राजकुमार तो चले आ रहे हैं। आपके दास ने जैसा कहा है, वैसा ही है।''
36) वह अपना कहना पूरा भी न कर पाया था कि राजकुमार आ पहँुंचे। वे ज+ोर-ज+ोर से रोने लगे। राजा और उसके साथ के सब लोग भी फूट-फूट कर रोने लगे।
37) उधर अबसालोम भाग कर गशूर के राजा अम्मीहूद के पुत्र तलमय के पास चला गया था। दाऊद अपने पुत्र के लिए शोक मनाता रहा।
38) अबसालोम गशूर भाग जाने के बाद तीन साल वहीं रहा।
39) अब अबसालोम के प्रति राजा का क्रोध शान्त हो गया; क्योंकि अमनोन की मृत्यु के कारण उसका दुःख अब दूर हो गया था।

अध्याय 14

1) जब सरूया के पुत्र योआब ने देख कि राजा का हृदय अबसालोम के दर्शनों के लिए तरसता है, तो
2) योआब ने तकोआह से एक बुद्धिमती महिला को बुलवाया और उससे कहा, ÷÷विलाप करने का स्वांँग भरो। शोक-वस्त्र पहन कर और तेल आदि न लगा कर ऐसा शोक प्रदर्शित करो, जैसे कोई महिला बहुत दिनों से किसी मृतक के लिए शोक मना रही हो।
3) इसके बाद राजा के पास जाकर यह कहो÷÷ और योआब ने उसे सब बातें समझा दीं।
4) तकोआह की उस महिला ने राजा के पास जा कर भूमि तक माथा नवा कर प्रणाम किया और कहा, ÷÷राजा! मेरी सहायता कीजिए।''
5) जब राजा ने उससे पूछा, ÷÷क्या बात है?'' तब उसने उत्तर दिया, ÷÷मैं एक विधवा हूंँ। मेरे पति मर गये हैं।
6) आपकी इस दासी के दो पुत्र थे। वे दोनों आपस में खेत में लड़ने लगे और चूंँकि उनको अलग करने वाला कोई नहीं था, इसलिए एक ने दूसरे को इस तरह मारा कि वह मर गया
7) और अब सभी कुटुम्बी आपकी इस दासी के विरुद्ध लड़ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जिसने अपने भाई को मारा है, उसे हमारे सुपुर्द करो, जिससे अपने भाई के प्राणों के प्रतिशोध में हम उसे मार डालें। इस प्रकार वे वारिस को भी मिटा देना चाहते हैं। वे मेरी एक मात्र जलती चिनगारी को भी बुझा देना चाहते हैं और पृथ्वी पर मेरे पति का न नाम रहने देना चाहते हैं, न वंशज।''
8) तब राजा ने उस स्त्री से कहा, ÷÷तुम घर जाओ, मैं स्वयं तुम्हारा मामला निपटाऊँगा।''
9) तकोआह-निवासिनी स्त्री ने राजा से कहा,÷÷श्रीमान! राजा, मेरे प्रभु! यह दोष तो मुझे ही लगेगा और मेरे पिता के घराने को भी। राजा और उनके राजसिंहासन का कोई दोष नहीं होगा।''
10) राजा ने उत्तर दिया, ÷÷अगर तुम्हारे विरुद्ध कोई कुछ कहे, तो उसे मेरे पास ले आना। वह फिर तुमको तंग करने नहीं आयेगा।''
11) वह बोली, ÷÷राजा प्रभु अपने ईश्वर के नाम पर मुझे आश्वासन दिलायें कि रक्त-प्रतिशोधी और रक्त न बहाये, जिससे मेरा पुत्र पृथ्वी पर से नहीं मिटा दिया जाये।'' उसने उत्तर दिया, ÷÷प्रभु की शपथ! तुम्हारे पुत्र का बाल भी बांँका नहीं होगा।''
12) उस स्त्री ने कहा, ÷÷क्या आपकी दासी श्रीमान् और राजा से एक और बात कह सकती है?'' उसने कहा, ''हाँ बोलो।''
13) तब उस स्त्री ने कहा, ÷÷आप ईश्वर की प्रजा के विरुद्ध ऐसा क्यों कर रहे हैं? ऐसा निर्णय देने से राजा अपने ही को दोषी प्रमाणित करते हैं, क्योंकि वह अपने निर्वासित पुत्र को वापस नहीं बुला रहे हैं।
14) हम सब को मरना है। हम ज+मीन पर फेंक दिये गये पानी की तरह हैं, जो फिर एकत्र नहीं किया जा सकता। किन्तु ईश्वर में दुर्भाव नहीं होता। वह इसका ध्यान रखता है कि निर्वासित व्यक्ति उस से अलग नहीं रहे।
15) मैं श्रीमान् के सामने यह मामला रखने आयी, क्योंकि लोगों ने मुझे भयभीत किया है। आपकी इस दासी ने यह सोचा कि इस विषय में मैं राजा से बात करूँंगी।
16) हो सकता है कि राजा मेरी प्रार्थना पर ध्यान दें और अपनी दासी को उन लोगों के हाथ से बचा लें, जो मुझे और मेरे पुत्र को भी ईश्वर की दी हुई विरासत से वंचित करना चाहते हैं।
17) आपकी यह दासी यह सोचती रही कि श्रीमान् राजा की बात से मुझे शान्ति मिलेगी; क्योंकि श्रीमान् राजा स्वर्गदूत की तरह हैं, जो भले-बुरे का भेद जानता है। प्रभु, आपका ईश्वर आपके साथ हो।''
18) इस पर राजा ने स्त्री से कहा, ÷÷मैं तुम से जो कुछ पूछ रहा हँूं, मुझ से तुम कुछ मत छिपाना।'' स्त्री ने कहा, ÷÷श्रीमान् राजा बोलें।
19) राजा ने पूछा, ÷÷क्या इन सब बातों में योआब का भी हाथ हैं? उस स्त्री ने उत्तर दिया, ÷÷श्रीमान् राजा! मैं आपकी शपथ खाकर कहती हूंँ। श्रीमान् राजा ने जो कुछ कहा है, वह ठीक है। राजा जो कुछ कहते हैं, उसे किसी भी तरह टाला नहीं जा सकता। आपके दास योआब ने मुझे ऐसा करने का आदेश दिया है और आपकी दासी को ये सारी बातें समझायी हैं।
20) आपके दास योआब ने यह इसलिए किया, जिससे वर्तमान परिस्थिति बदल जाये; किन्तु मेरे स्वामी तो स्वर्गदूत-जैसे बुद्धिमान हैं। देश भर में जो हो रहा है, वह सब जानते ही हैं।''
21) इस पर राजा ने योआब से कहा, ÷÷मैं तुम्हारी मांँग पूरी करने जा रहा हूंँ। जाओ और युवक अबसालोम को वापस ले आओ।''
22) योआब ने मुंँह के बल गिर कर राजा को प्रणाम किया और धन्यवाद देते हुए कहा, ÷÷आज आपके दास को यह मालूम हुआ कि मैं अपने स्वामी और राजा का कृपापात्र हूंँ, क्योंकि राजा ने अपने दास की बात मान ली हैं।
23) इसके बाद योआब गशूर जाकर अबसालोम को येरुसालेम वापस ले आया।
24) राजा ने आज्ञा दी, ÷÷वह अपने घर जाये और मुझे अपना मुंँह न दिखाये।'' इसलिए अबसालोम अपने घर रहा, परन्तु वह राजा के सामने नहीं आया।
25) इस्राएल भर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो अबसालोम की तरह अपने सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध हो। एड़ी से चोटी तक अबसालोम में कोई दोष नहीं था।
26) वह अपने बाल हर साल के अन्त में कटवाया करता था, जब वे उसके सिर पर बोझ बन जाते थे। उनका वज+न दौ सौ राजकीय शेकेल हुआ करता था।
27) अबसालोम के तीन पुत्र और तामार नामक पुत्री पैदा हुई। वह सुन्दर थी।
28) राजा के सामने आये बिना अबसालोम पूरे दो साल येरुसालेम में रहा।
29) इसके बाद अबसालोम ने योआब को बुलवाया, जिससे वह उसे राजा के पास भेजे। लेकिन उसने उसके यहाँ आना स्वीकार नहीं किया। दूसरी बार बुलाने पर भी उसने आने से इनकार कर दिया।
30) तब उसने अपने नौकरों से कहा, ÷÷तुम जानते हो कि मेरे खेत के पास ही योआब का एक खेत है, जिसमें उसने जौ बोया है। जाकर उसे जला दो।'' इस पर अबसालोम के नौकरों ने उसे जला डाला।
31) तब योआब ने अबसालोम के घर जा कर उस से पूछा, ÷÷तुम्हारे नौकरों ने मेरा खेत क्यों जलाया?''
32) अबसालोम योआब से कहने लगा, ÷÷देखो, मैंने तुम्हें यहांँ बुलवाया था, जिससे मैं तुम्हें भेज कर राजा से पूछवाऊँ कि मैं गशूर से यहांँ क्यों लाया गया। यदि मैं अब भी वहाँ होता, तो मेरे लिए अच्छा रहता। मैं राजा के दर्शन करना चाहता हँू। यदि मेरा कोई अपराध हो, तो वह मेरा वध करें।
33) इस पर योआब ने राजा के पास जाकर यह सब बता दिया। तब उसने अबसालोम को बुलवाया। जब वह राजा के पास आया, तो उसने राजा को साष्टांग प्रणाम किया और राजा ने अबसालोम को चुम्बन दिया।

अध्याय 15

1) इसके बाद अबसालोम ने एक रथ और घोड़े तैयार करवाये और अपने सामने दौड़ने के लिए पचास आदमी।
2) प्रातः काल अबसालोम फाटक के रास्ते पर खड़ा हो जाया करता था और जब कोई किसी मामले का निपटारा कराने राजा के पास जाता, तो अबसालोम उसे अपने पास बुलाकर यह पूछता, ÷÷तुम किस नगर के हो?'' जब वह उत्तर देता कि आपका दास इस्राएल के कुल का है,
3) तो अबसालोम उससे कहता, ÷÷तुम्हारा मामला उचित और न्यायसंगत मालूम पड़ता है; लेकिन तुम्हारी बात सुनने के लिए राजा का कोई प्रतिनिधि नहीं है।''
4) अबसालोम यह भी कहता, ÷÷यदि मैं देश का न्यायाधीश होता, तो जिसकी भी कोई शिकायत या मामला होता, वह मेरे पास आ सकता और मैं उसे न्याय दिलाता।''
5) यदि कोई उसे प्रणाम करने पास आता, तो वह अपना हाथ बढ़ाकर उसका आलिंगन कर लेता और उसे चूम लेता।
6) अबसालोम उन सब इस्राएलियों के साथ ऐसा किया करता, जो राजा के पास अपने मामले लाते थे। ऐसा करने से अबसालोम इस्राएलियों के हृदय अपनी और आकर्षित करता था।
7) चार वर्ष बाद अबसालोम ने राजा से कहा, ÷÷मैं हेब्रोन जा कर प्रभु के लिए अपनी मन्नत पूरी करूँंगा।
8) जब आपका दास आराम के गशूर में रहता था, तो उसने यह मन्नत की थी कि यदि प्रभु मुझे येरुसालेम लौटने देगा, तो मैं प्रभु को एक बलि चढ़ाऊंँगा।''
9) राजा ने उसे उत्तर दिया, ÷÷कुशलपूर्वक जाओ।'' वह चल कर हेब्रोन पहुंँचा।
10) अबसालोम ने इस्राएल के सब वंशों के पास यह कह कर गुप्तचर भेजे, ÷÷तुम लोग जैसे ही तुरहियों की ध्वनि सुनोगे, तो यह कहोगे- अबसालोम हेब्रोन में राजा हैं।''
11) येरुसालेम से अबसालोम के साथ दो सौ आमन्त्रित व्यक्ति भी गये थे। वे यों ही चले गये थे। उन्हें इस सम्बन्ध में कुछ भी मालूम नहीं था।
12) अबसालोम ने दाऊद के मन्त्री गिलोवासी अहीतोफ़ेल को भी, उसके नगर गिलों से, बलि-उत्सव में सम्मिलित होने के लिए बुलावाया था। इस प्रकार षड्यंत्र को बल मिला और अबसालोम के अनुयायियों की संख्या बढ़ती गयी।
13) एक दूत दाऊद को यह सूचना देने आया कि इस्राएलियों ने अबसालोम का पक्ष लिया है।
14) इस पर दाऊद ने येरुसालेम में रहने वाले अपने सब सेवकों से कहा, ÷÷चलो! हम भाग चलें, नहीं तो हम अबसालोम के हाथ से नहीं बच सकेंगे। हम शीघ्र ही चले जायें। कहीं ऐसा न हो कि वह अचानक पहुंँच कर हमारा सर्वनाश करे और शहर के निवासियों को तलवार के घाट उतार दे।''
15) राजा के पदाधिकारियों ने उसे उत्तर दिया, ÷÷श्रीमान् हमारे राजा की जैसी आज्ञा है, हम, आपके दास वैसे ही करने को तैयार हैं।''
16) इसलिए राजा घर से निकल पड़ा और घर के सब लोग उसके पीछे हो लिये। राजा ने महल की देखरेख के लिए दस उपपत्नियांँ छोड़ दीं।
17) राजा घर से निकल गया और सब लोग उसके पीछे-पीछे चले गये। अन्तिम घर के पास वे रूक गये।
18) तब उसके सब सेवक, सब करेती, पलेती, गितयी और गत से आये हुए छः सौ आदमी राजा के सामने से हो कर आगे बढ़े।
19) राजा ने गत के इत्तय से कहा, ÷÷तुम हमारे साथ क्यों चलते हो? लौट जाओ और नये राजा के यहांँ रहो। तुम स्वयं परदेशी हो और स्वदेश से निर्वासित भी हो।
20) अभी-अभी ही तो तुम आये हो और अब तुम को हमारे साथ इधर-उधर भटकना पड़ेगा, जब कि मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मुझे कहांँ जाना है। तुम लौट जाओ और अपने भाइयों को भी साथ लेते जाओ। प्रभु की कृपा और निष्ठा तुम्हारे साथ रहे।''
21) लेकिन इत्तय ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷प्रभु की शपथ! अपने स्वामी और राजा की शपथ! जहाँ मेरे स्वामी और राजा होंगे, वहीं आपका दास भी होगा - चाहे उसे मृत्यु मिले या जीवन।''
22) दाऊद ने इत्तय को उत्तर दिया, ÷÷अच्छा, तो आगे बढ़ो।'' इस पर गतवासी इत्तय अपने सब आदमियों और बाल-बच्चों को साथ ले कर उसके सामने से आगे निकला।
23) जब सारी प्रजा आगे बढ़ रही थी, तो सब लोग फूट-फूट कर रोने लगे। राजा ने केद्रोन नाला पार कर सब आदमियों के साथ उजाड़खण्ड की ओर प्रस्थान किया।
24) सादोक भी उन सब लेवियों के साथ वहाँं आया, जो ईश्वर के विधान की मंजूषा ले जाते थे। उन्होंने ईश्वर की मंजूषा नीचे रखी और जब तक नगर के सब आदमी निकल नहीं आये, तब तक एबयातर बलि चढ़ाता रहा।
25) इसके बाद राजा ने सादोक से कहा, ÷÷ईश्वर की मंजूषा नगर में वापस ले जाओ। यदि मैं प्रभु का कृपापात्र होऊँगा, तो वह मुझे वापस ले आयेगा और मुझे अपने को और अपने निवासस्थान को पुनः देखने देगा
26) और यदि वह कहेगा कि मैं तुम से प्रसन्न नहीं हँूं, तो मैं इसके लिए भी तैयार हूंँ। वह मेरे साथ वैसा ही करे, जैसा ठीक समझे।''
27) फिर राजा ने याजक सादोक से कहा, ÷÷देखो, तुम और एबयातर अपने-अपने पुत्र अहीमअस और योनातान के साथ कुशलपूर्वक नगर लौट जाओ।
28) देखो, जब तक मुझे तुम से कोई समाचार नहीं मिले, तब तक मैं उजाड़खण्ड की ओर जाने वाले मार्ग के घाटों में ठहरा रहूंँगा।''
29) इसके बाद सादोक और एबयातर ईश्वर की मंजूषा येरुसालेम वापस ले गये और वहीं रह गये।
30) दाऊद रोते हुए जैतुन पहाड़ पर चढ़ा। उसका सिर ढका हुआ था और उसके पैर नंगे थे। जितने लोग उसके साथ थे, उनके सिर ढके हुए थे और वे रोते हुए पहाड़ पर चढ़े।
31) दाऊद को यह समाचार मिला कि अहीतोफ़ेल भी अबसालोम के साथ षड़यंत्रकारियों में सम्मिलित है। दाऊद ने कहा, ÷÷प्रभु! अहीतोफ़ेलव की योजनाएंँ व्यर्थ कर।''
32) दाऊद पहाड़ी की चोटी पर पहुंँचा, जहांँ ईश्वर की आराधना की जाती है। वहाँ उसकी हूशय उस से मिलने आया। उसके वस्त्र फटे थे और उसके सिर पर धूल पड़ी थी।
33) दाऊद ने उससे कहा, ÷÷यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो तुम मेरे लिए भार-जैसे बन जाओगे;
34) लेकिन यदि तुम नगर लौट जाओगे और अबसालोम से कहोगे, -÷राजा! मैं आपका दास होना चाहता हँूं। जैसा मैं पहले आपके पिता का दास था, ठीक वैसे ही अब मैं आपका दास होना चाहता हँ'ू -तब इस प्रकार तुम मेरी ओर से अहीतोफे+ल की योजनाएंँ व्यर्थ कर दोगे।
35) वहांँ याजक सादोक और एबयातर भी तुम्हारे पास होंगे। तुम राजा के महल में जो कुछ सुनोगे, वह याजक सादोक और एबयातर को बता दोगे।
36) उनके साथ उनका एक-एक पुत्र भी है : सादोक का पुत्र अहीमअस और एबयातर का पुत्र योनातान। तुम वहांँ जो कुछ सुनोगे, वह सब इनके द्वारा मेरे पास पहुंँचा दोगे।''
37) इसलिए दाऊद का मित्र हूशय नगर में ठीक उसी समय घुसा, जब अबसालोम उधर से येरुसालेम में प्रवेश कर रहा था।

अध्याय 16

1) दाऊद पहाड़ की चोटी प+ार कर आगे बढ़ा ही था कि मफ़ीबोशेत का सेवक सीबा उस से मिलने आया। उसके पास कसे हुए कई गधे थे, जिन पर दो सौ रोटियांँ, किशमिश के सौ गुच्छे, एक सौ ग्रीष्मकालीन फल और एक कुप्पा अंगूरी थी।
2) राजा ने सीबा से पूछा, ÷÷इन्हें क्यों लाये हो?'' सीबा ने उत्तर दिया, ÷÷ये गधे राजा के परिवार के लोगों की सवारी के लिए हैं, रोटियांँ और ग्रीष्म के फल युवकों के खाने के लिए हैं और अंगूरी उजाड़खण्ड में थके मांँदे लोगों की प्यास बुझाने के लिए है।''
3) जब राजा ने पूछा कि ÷÷तुम्हारे स्वामी का पुत्र कहांँ है?'', तब सीबा ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷वह येरुसालेम में रह गया है। उसका कहना था कि आज इस्राएल के वंशज मुझे अपने पिता का राज्य लौटा देंगे।''
4) राजा ने सीबा से कहा, ÷÷देखो, अब मफ़ीबोशेत की सारी सम्पत्ति तुम्हारी हो गयी है।'' सीबा ने उत्तर दिया, ÷÷मैं आपके पांँव पड़ता हँूं। मेरे स्वामी, राजा! मैं हमेशा के लिए आपकी दृष्टि में आपका कृपापात्र बना रहँूं।''
5) जब दाऊद बहूरीम पहुंँचा, तो साऊल के वंश का एक व्यक्ति दौड़ता हुआ उसके पास आया। वह गेरा का शिमई नामक पुत्र था। वह कोसते हुए नगर से निकला
6) और दाऊद और उसके सेवकों पर पत्थर फेंकता जा रहा था, यद्यपि दाऊद के दायें और बायें सैनिक और अंगरक्षक चलते थे।
7) शिमई कोसते हुए चिल्लाता था, ÷÷दूर हो, रे हत्यारे! दूर हो, रे नीच!
8) तूने साऊल का राज्य छीन लिया, इसलिए प्रभु ने साऊल के घराने के सारे रक्त का बदला तुझे चुकाया है और तेरे पुत्र अबसालोम के हाथ में राज्य दिया है। रे हत्यारे! तू अपनी करनी का फल भोग रहा है।''
9) सरूया के पुत्र अबीशय ने राजा से कहा, ÷÷यह मुर्दा कुत्ता मेरे राजा और स्वामी को क्यों कोस रहा है? कृपया मुझे आज्ञा दें कि मैं जा कर उसका सिर उड़ा दँूं।''
10) राजा ने उत्तर दिया, ÷÷सरूया के पुत्रों! इससे तुमको क्या? यदि वह इसलिए दाऊद को कोसता है कि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है, तो कौन पूछ सकता है कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?''
11) इसके बाद दाऊद ने अबीशय और अपने सेवकों से यह कहा, ÷÷मैंने जिस पुत्र को जन्म दिया, वही मुझे मारना चाहता है, तो यह बेनयामीनवंशी ऐसा क्यों न करे? उसे कोसने दो, क्योंकि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है।
12) हो सकता है कि प्रभु मेरी दुर्गति देखकर आज के अभिशाप के बदले मुझे फिर सुख-शान्ति प्रदान करे।''
13) इसलिए दाऊद और उसके अनुयायी आगे बढ़ते जाते थे। उधर शिमई अभिशाप देता, पत्थर फेंकता और धूल उड़ाता हुआ उसके दूसरी ओर की पहाड़ी की ढलान पर जा रहा था।
14) राजा अपने साथ के सब लोगों के साथ थका-मांँदा यर्दन के पास पहुंँचा और उन्होंने वहांँ विश्राम किया।
15) इस बीच अबसालोम सब इस्राएलियों के साथ येरुसालेम पहुंँच गया। उसके साथ अहीतोफ़ेल भी था।
16) दाऊद का मित्र अरकी हूशय अबसालोम के पास आया। हूशय ने अबसालोम से कहा, ÷÷राजा चिरायु हों! राजा चिरायु हों!''
17) अबसालोम ने हूशय से पूछा, ÷÷क्या अपने मित्र के प्रति यही तुम्हारी निष्ठा हैं?'' तुम अपने मित्र के साथ क्यों नहीं गये?''
18) हूशय ने अबसालोम से कहा, ÷÷नहीं; जिसे प्रभु ने, इन लोगों ने और इस्राएल के सब मनुष्यों ने चुन लिया है, मैं उसी का हूंँ और उसी के साथ रहँूंगा।
19) फिर, मैं किसकी सेवा कर रहा हूँ। क्या मैं उसके पुत्र की सेवा न करूँ? जैसे मैंने आपके पिता की सेवा की है, वैसे ही मैं आपकी भी करूँंगा।''
20) अबसालोम ने अहीतोफ़ेल से कहा, ÷÷मुझे परामर्श दो, हमें क्या करना चाहिए?''
21) अहीतोफ़ेल ने अबसालोम को उत्तर दिया, ÷÷जिन उपपत्नियों को आपके पिता ने महल की देखरेख करने छोड़ रखा है, उनके पास जाइए। तब, यदि सब इस्राएली सुनेंगे कि आप अपने पिता की दृष्टि में घृणित हो गये हैं, तो उन सबको ढारस मिलेगा, जिन्होंने आपका पक्ष लिया है।''
22) इसलिए छत पर अबसालोम के लिए एक तम्बू तान दिया गया और अबसालोम सब इस्राएलियों के जानते ही अपने पिता की उपपत्नियों के पास गया।
23) उस समय अहीतोफ़ेल का परामर्श ईश्वर की वाणी-सदृश समझा जाता था। दाऊद और अबसालोम, दोनों ही अहीतोफे+ल के सब परामर्श मूल्यवान् समझते थे।

अध्याय 17

1) फिर अहीतोफ़ेल ने अबसालोम को यह परामर्श दिया, ÷÷मुझे बारह हज+ार आदमियों को लेकर इसी रात दाऊद का पीछा करने प्रस्थान करने दीजिए।
2) जब वह थका-मांँदा और निराश हो गया होगा, तब मैं उस पर टूट पडूंँगा। उसे आतंकित कर दँूंगा। उसके साथ के सारे लोग भाग जायेंगे और मैं राजा को अकेला पाकर उसका वध करूंँगा
3) और सब लोगों को आपके पास वापस ले आऊँंगा। जिसको आप ढूंँढ़ते हैं, उसके वध के कारण सब लोग वापस आयेंगे। सब लोगों को शान्ति मिल जायेगी।''
4) यह विचार अबसालोम और इस्राएल के सब नेताओं को अच्छा लगा।
5) तब अबसालोम ने कहा, ÷÷अरकी हूशय को भी बुलाओ। हम उसका भी परामर्श सुन लें।''
6) जब हूशय अबसालोम के पास आया, तब अबसालोम ने उससे कहा, ÷÷अहीतोफे+ल ने यह परामर्श दिया है। क्या हम उसके परामर्श के अनुसार काम करें? नहीं तो तुम्हीं कुछ बताओ।''
7) हूशय ने अबसालोम को उत्तर दिया, ÷÷अहीतोफ़ेल ने इस बार जो परामर्श दिया है, वह अच्छा नहीं है।''
8) हूशय ने कहा, ÷÷आप अपने पिता और उनके योद्धओं को जानते हैं। वे वीर हैं, वे उस जंगली रीछनी के समान कुपित हैं, जिसके बच्चे छीन लिये गये हैं और आपके पिता युद्धकला में निपुण हैं। वह सैनिकों के साथ रात नहीं बितायेंगे।
9) अभी वह अवश्य किसी गुफा या किसी अन्य स्थान में छिपे होंगे। अब यदि शुरू में ही हमारे कुछ लोग मारे गये, तो सुनने वाले यही कहेंगे कि अबसालोम के पक्ष वाले पराजित हो गये।
10) तब शेरदिल योद्धा भी हिम्मत हार जायेंगे; क्योंकि सब इस्राएली जानते हैं कि आपके पिता अच्छे योद्धा हैं और उनके सैनिक भी शूरवीर हैं।
11) इसलिए मैं तो यह सलाह दूंँगा : सभी इस्राएली दान से बएर-शेबा तक आपके लिए एकत्रित किये जायें - वे समुद्रतट के रेतकणों के समान असंख्य हों - और आप स्वंय उनके साथ-साथ युद्ध करने जायें।
12) वह जहांँ भी मिलें, हम उन पर ऐसे टूट पड़ेंगे, जैसे ओस पृथ्वी पर गिरती है और न वह बचेंगे और न उनके साथ के सभी लोगों में कोई।
13) परन्तु यदि वह किसी नगर में शरण ले लें, तो सब इस्राएली उस नगर पर रस्से लगा देंगे और हम उसे घाटी में खींच लेंगे, यहांँ तक कि उसका एक भी पत्थर शेष नहीं रहेगा।''
14) इस पर अबसालोम और सब इस्राएलियों ने कहा, ÷÷अरकी हूशय का परामर्श अहीतोफे+ल के परामर्श से अच्छा है''; क्योंकि प्रभु के विधान से अहीतोफ़ेल का अच्छा परामर्श व्यर्थ रहा, जिससे अबसालोम पर विपत्ति पड़े।
15) इसके बाद हूशय ने याजक सादोक और एबयातर से कहा, ÷÷अहीतोफ़ेल ने अबसालोम और इस्राएली नेताओं को अमुक सलाह दी और मैंने अमुक सलाह दी हैं।
16) अब जल्दी संदेश भेजकर दाऊद को बताइए कि वह इस रात को उजाड़खण्ड जाने वाले मार्ग के घाटों में नहीं ठहरें, बल्कि नदी पार करें। नहीं तो राजा और उनके साथ रहने वाले लोगों का वध किया जायेगा।''
17) योनातान और अहीमअस एन-रोगेल में थे। एक दासी को उन्हें वह सन्देश देना था, जिससे वे उसे दाऊद को बता दे; क्योंकि वे किसी के देखते नगर में नहीं जा सकते थे।
18) किन्तु किसी लड़के ने उन्हें देख लिया और अबसालोम को सूचित कर दिया था। अब दोनों ने जल्दी से भाग कर बहूरीम के किसी आदमी के घर में शरण ली। उसके आंँगन में एक कुआँ था। वे उसके अन्दर छिप गये।
19) स्त्री ने एक चादर लेकर कुएँ पर फैला दी और उस पर दाने डाल दिया, जिससे किसी को उनका पता न चले।
20) अबसालोम के आदमियों ने उस स्त्री के घर में घुसकर पूछा कि अहीमअस और योनातान कहांँ हैं। तब स्त्री ने उन्हें उत्तर दिया, ÷÷वे जलाशय की ओर गये हैं।'' ढूंँढ़ने पर भी उन्हें कोई नहीं मिला और वे येरुसालेम लौट गये।
21) उनके चले जाने पर वे कुएंँ से बाहर निकले और उन्होंने दौड़कर राजा दाऊद को सन्देश दिया। उन्होंने दाऊद से कहा, ÷÷जल्दी उठिए, नदी पार कीजिए, क्योंकि अहीतोफे+ल ने आपके विषय में अमुक सलाह दी है।''
22) दाऊद और उसके साथ के लोगों ने तुरन्त उठ कर यर्दन पार किया। पौ फटने तक ऐसा कोई नहीं रहा, जिसने यर्दन पार न किया हो।
23) जब अहीतोफ़ेल ने देखा कि उन्होंने मेरी सलाह के अनुसार काम नहीं किया है, तब वह अपना गधा कस कर अपने नगर लौट गया। उसने अपने घर की व्यवस्था की और फांँसी लगा ली। उसकी मृत्यु के बाद उसे अपने पिता के समाधिस्थान में दफ़ना दि+या गया।
24) अबसालोम और उसके साथ के इस्राएलियों के यर्दन पार करते-करते दाऊद महनयीम तक पहुंँच गया।
25) अबसालोम ने योआब के स्थान पर अमासा को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया था। अमासा इसमाएली यित्रा का पुत्र था। उसने अबीगैल से विवाह किया था, जो नाहाश की पुत्री, सरूया की बहन और योआब की मांँ थी।
26) इस्राएलियों ने अबसालोम के साथ गिलआद देश में पड़ाव डाला।
27) जैसे ही दाऊद महनयीम आया, अम्मोनियों की राजधानी रब्बा के नाहाश का पुत्र शोबी, लो-दबार के अम्मीएल का पुत्र माकीर और रोगलीम का गिलआदी बरजि+ल्लय
28) (२८-२९) बछौने, पात्र और मिट्टी के बरतन ले आये। वे दाऊद और उसके आदमियों को खिलाने के लिए गेहँूं, जौ, आटा, भुना हुआ अनाज, सेम, मसूर, मधु, मक्खन, भेड़ें, पनीर और बछड़े के टुकड़े ले आये। उनका विचार था कि उजाड़खण्ड में भूखे-प्यासे थके-मांँदे रहे होंगे।

अध्याय 18

1) अब दाऊद ने अपने साथ के आदमियों को तैयार किया और उन पर सहस्त्रपति और शतपति नियुक्त किये।
2) दाऊद ने सेना की एक तिहाई योआब की अध्यक्षता में, एक तिहाई सरूया के पुत्र और योआब के भाई अबीशय की अध्यक्षता में और एक तिहाई गत के इत्तय की अध्यक्षता में कर दी। राजा ने लोगों से कहा, ÷÷मैं भी तुम लोगों के साथ युद्ध में चलूंँगा।''
3) लेकिन लोगों ने उत्तर दिया, ÷÷आप को हमारे साथ नहीं चलना चाहिए, क्योंकि यदि हम भाग जायेंगे, तो कोई हानि नहीं होगी। यदि सेना के आधे लोग भी खेत में रह जायेंगे, तो कोई विशेष हानि नहीं होगी। किन्तु आप हमारे जैसे दस हज+ार के बराबर हैं। आज अच्छा यही होगा कि आप नगर से ही हमारी सहायता करें।''
4) राजा ने उत्तर दिया ÷÷अच्छा, तुम लोग जो उचित समझोगे, मैं वहीं करूंँगा।'' इस पर राजा फाटक के पास खड़ा हो गया और सब सैनिक सौ-सौ और हज+ार-हज+ार की टोलियों में निकलने लगे।
5) राजा ने योआब, अबीशय और इत्तय को यह आज्ञा दी, ÷÷मेरे कारण युवक अबसालोम के साथ दयापूर्ण व्यवहार करो।'' सब लोगों ने अबसालोम के विषय में राजा का यह आदेश सुना।
6) इसके बाद सैनिक इस्राएल के विरुद्ध युद्ध करने लगे। एफ्र+ईम के वन में लड़ाई हुई।
7) इस्राएली दाऊद के सैनिकों द्वारा पराजित कर दिये गये। उस दिन भीषण जनसंहार हुआ- बीस हजार मारे गये।
8) युद्ध देश भर में फैल गया। उस दिन तलवार से मारे जाने वाले लोगों की अपेक्षा वन में मरे हुओं की संख्या कहीं अधिक थी।
9) दाऊद के कुछ सेवकों ने संयोग से अबसालोम को देखा। जिस खच्चर पर अबसालोम सवार था, वह एक बड़े बलूत की डालियों के नीचे से निकला और अबसालोम का सिर बलूत में अटक गया। खच्चर आगे बढ़ गया और अबसालोम आकाश और पृथ्वी के बीच लटकता रहा।
10) एक व्यक्ति ने उसे देखा और यह कहते हुए योआब को इसकी सूचना दी, ÷÷मैंने अबसालोम को एक बलूत से लटकता हुआ देखा।''
11) योआब ने यह समाचार लाने वाले आदमी से कहा, ÷÷अरे, यदि तुमने उसे वहांँ देखा, तो फिर उसे वहीं क्यों नहीं मार डाला? तब मैं तुम्हें चांँदी के दस शेकेल और एक कमर बन्द देता।''
12) उस आदमी ने योआब को उत्तर दिया, ÷÷यदि चाँदी के एक हज+ार शेकेल मेरे हाथ में दिये जाते, तो भी मैं राजा के पुत्र पर अपना हाथ न उठाता। हमने तो अपने ही कानों से सुना है कि राजा ने तुम्हें, अबीशय और इत्तय को आज्ञा दी थी कि मेरे कारण युवक अबसालोम की रक्षा करना।
13) यदि मैं उसके विरुद्ध हाथ उठाता, तो यह बात राजा से छिपी न रहती और तब तुम भी मुझ से कन्नी काटते।''
14) योआब ने उत्तर दिया, ÷÷अब मैं तुम्हारे साथ समय नहीं गँवाऊँंगा।'' उसने हाथ में तीन भाले ले लिये और उन्हें अबसालोम के कलेजे में भोंक दिया, जो अब तक जीवित ही बलूत से लटक रहा था।
15) योआब के दस जवान शस्त्रवाहकों ने अबसालोम को घेर लिया और उसका वध किया।
16) तब योआब ने सिंगा बजाया और लोग इस्राएलियों का पीछा छोड़ कर लौट आये, क्योंकि योआब ने उन को रोक लिया।
17) उन्होंने अबसालोम को ले जा कर वन के एक गहरे गड्ढ़े मे डाल दिया और उस पर पत्थरों का भारी ढे+र लगा दिया। सब इस्राएली अपने-अपने घर भागे।
18) अबसालोम ने अपने जीवनकाल में राजघाटी में अपने लिए एक स्मृति-स्तम्भ बनवा लिया था। उसने सोचा था कि मेरा नाम चलाने को मेरा कोई पुत्र नहीं है। इसलिए उसने उस स्तम्भ का नाम अपने नाम पर रखा। वह आज तक अबसालोम का स्तम्भ कहलाता है।
19) सादोक के पुत्र अहीमअस ने कहा, ÷÷मैं जल्दी जा कर राजा को समाचार दँू कि प्रभु ने उनको उनके शत्रुओं से बचा लिया है।''
20) लेकिन योआब ने उससे कहा, ÷÷तुम आज यह सन्देश नहीं दे सकते। किसी दूसरे दिन यह सन्देश देना, परन्तु आज तुम ऐसा नहीं कर सकते; क्योंकि राजा का पुत्र मर गया है।''
21) तब योआब ने किसी कूशी को आज्ञा दी, ÷÷जाओ और तुमने जो कुछ देखा है, राजा को सुनाओ।'' वह कूशी योआब को प्रणाम कर दौड़ते हुए चला गया।
22) सादोक के पुत्र अहीमअस ने फिर याओब से कहा, ÷÷जो कुछ भी हो, मैं भी उस कूशी के पीछे जाऊँगा।'' योआब ने कहा, ÷÷बेटे, तुम किसलिए जाना चाहते हो? तुम्हारे पास कोई ऐसा समाचार नहीं है, जिसके लिए तुम्हें पुरस्कार मिलेगा।''
23) परन्तु उसने उत्तर दिया, ÷÷जो कुछ भी हो, मैं जाऊँगा।'' तब योआब ने कहा, ÷÷तो दौड़ो।'' अहीमअस यर्दन के मार्ग से दौड़ता हुआ उस कूशी से भी आगे निकल गया।
24) दाऊद शहर के दो फाटकों के बीच बैठा हुआ था। एक पहरेदार दीवार के पास के द्वारमण्डप की छत पर चढ़ा और उसने दृष्टि दौड़ा कर देखा कि एक व्यक्ति अकेला दौड़ता हुआ आ रहा है। पहरेदार ने राजा को इसकी सूचना दी।
25) राजा ने कहा, ÷÷यदि वह अकेला है, तो उसके पास शुभ समाचार है।'' जब वह और अधिक पास आया,
26) तब पहरेदार ने एक दूसरे आदमी को भी दौड़ कर आते देखा। तब पहरेदार ने द्वार की ओर मँुंह कर कहा, ÷÷मैं एक दूसरे आदमी को भी अकेला ही भागता आ रहा देखता हूंँ।'' राजा ने कहा, ÷÷वह भी शुभ समाचार ला रहा है।''
27) इस पर पहरेदार ने कहा, ÷÷मुझे लगता है कि पहले वाले की दौड़ सादोक के पुत्र अहीमअस-जैसी है।'' इस पर राजा ने कहा, ÷÷वह अच्छा आदमी है। वह एक अच्छा सन्देश लायेगा।''
28) अहीमअस ने आते ही राजा से कहा, ÷÷सब ठीक है।'' फिर राजा के सामने माथ टेक कर बोला, ÷÷प्रभु, आपका ईश्वर धन्य है। उसी ने उन आदमियों को पराजित किया है, जो मेरे स्वामी और राजा के विरुद्ध थे।''
29) जब राजा ने पूछा, ÷÷युवक अबसालोम सकुशल है न?'' तो अहीमअस ने उत्तर दिया, ÷÷जब योआब ने मुझ राजा के दास को, इस आपके दास को भेजा, उस समय तो मैंने कुछ हलचल-सी देखी थी; लेकिन मैं ठीक-ठीक मालूम न कर सका कि बात क्या थी।''
30) राजा ने कहा, ÷÷उधर जाकर खड़े रहो'' और अहीमअस ने वही किया।
31) तब कूशी ने पास आकर कहा, ÷÷मैं अपने स्वामी और राजा के लिए अच्छा समाचार ला रहा हँूं। प्रभु ने आज आपको न्याय दिलाया है और आप को उन सब के हाथ से छुड़ा दिया, जिन्होंने आपके विरुद्ध विद्रोह किया था।''
32) राजा ने कूशी से पूछा, ÷÷क्या नवयुवक अबसालोम सकुशल है?'' और कूशी ने उत्तर दिया, ÷÷उस नवयुवक की जो दुर्गति हो गयी है, वही मेरे स्वामी और राजा के सब शत्रुओं को प्राप्त हो और उन सबको भी, जो आपके विरुद्ध षड़यंत्र रचते हैं।''

अध्याय 19

1) राजा बहुत व्याकुल हो उठा और द्वारमण्डल के ऊपरी कमरे में जाकर रोने लगा। वह यह कहते हुए इधर-उधर टहलता रहा, ÷÷हाय ! मेरे पुत्र अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र अबसालोम! अच्छा होता कि तुम्हारे बदले मैं ही मर गया होता! अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र!''
2) योआब को यह सूचना दी गयी, ÷÷राजा रोते और अबसालोम के लिए शोक मनाते हैं।''
3) जब लोगों ने यह सुना कि राजा अपने पुत्र के कारण दुःखी है, तो उस दिन समस्त प्रजा के लिए विजयोल्लास शोक में बदल गया।
4) उस दिन सैनिक आंँख चुराकर नगर में आये। वे उस सेना के सदृश थे, जो युद्ध से भाग कर लज्जित है।
5) राजा अपना मुंँह ढक कर यह कहते हुए ऊँचे स्वर से विलाप करता रहा, ÷÷अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र!''
6) अब योआब भीतर राजा के पास गया और बोला, ÷÷आज आपने अपने उन सब लोगों को नीचा दिखाया है, जिन्होंने आज आपके पुत्र-पुत्रियों और आपकी पत्नी-उपपत्नियों के प्राण बचाये हैं।
7) आप उनको प्यार करते हैं, जो आपसे बैर करते हैं और उनसे बैर करते हैं, जो आपको प्यार करते हैं। आज अपने यह स्पष्ट कर दिया है कि आपके लिए सेनापतियों और सैनिकों का कोई महत्व नहीं है। आज मैं यह जान गया हँूं कि यदि अबसालोम जीवित होता और हम सब मर गये होते, तो यह शायद आपको अच्छा लगता।
8) अब उठिए और बाहर जाकर अपने सैनिकों के साथ प्रेम से बातचीत कीजिए; क्योंकि मैं प्रभु की शपथ खाकर कहता हँूं, यदि आप बाहर नहीं निकलेंगे, तो इस रात आपके साथ कोई नहीं रहेगा और यह विपत्ति उन सब विपत्तियों से अधिक भयंकर होगी, जो आप पर बचपन से आज तक पड़ती आयी हैं।''
9) इसके बाद राजा उठा और फाटक पर बैठा। सब लोगों से कहा गया कि राजा फाटक पर बैठै हैं, तो सब लोग राजा के पास आये। सभी इस्राएली अपने-अपने घर भाग गये थे।
10) इस्राएल के सब वंश आपस में परामर्श करते हुए कहते थे, ÷÷राजा ने हमें हमारे शत्रुओं से बचाया, उसने हमें फ़िलिस्तियों के हाथों से बचाया, फिर भी उसे अबसालोम के सामने से देश छोड़ कर भागना पड़ा।
11) अब अबसालोम युद्ध में मारा गया, जिसका हमने अपने राजा के रूप में अभिषेक किया था। अब राजा को वापस बुलाने में क्या देर है?''
12) इसके बाद राजा दाऊद ने याजक सादोक और एबयातर को यह सन्देश भेजा, ÷÷यूदा के नेताओं से यह कहो-तुम राजा को अपने महल में वापस लाने में सबसे पीछे क्यों हो? राजा को मालूम हो गया है कि इस्राएली क्या करना चाहते हैं।
13) तुम तो मेरे भाई-बन्धु हो, मेरे रक्त-सम्बन्धी हो, फिर तुम राजा को वापस बुलाने में सब से पीछे क्यों हो?
14) तुम अमासा से यह कहो-क्या तुम मेरे रक्त-सम्बन्धी नहीं हो? यदि तुम अब से योआब के स्थान पर मेरे सेनापति नहीं होगे, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये।''
15) इस प्रकार दाऊद ने यूदा के सभी लोगों को अपने पक्ष में कर लिया। उन्होंने राजा से कहलवाया, ÷÷अपने सब लोगों के साथ वापस आ जाइए।''
16) इसलिए राजा यर्दन के पास आया। यूदा के लोग राजा से मिलने और उसे यर्दन पार कराने गिलगाल आये।
17) बहूरीम का बेनयामीनवंशी गेरा का पुत्र शिमई भी यूदा के लोगों के साथ राजा दाऊद से मिलने शीघ्र ही आया। उसके साथ एक हज+ार बेनयामीनवंशी थे।
18) साऊल के घराने का सेवक सीबा भी अपने पंद्रह पुत्रों और बीस नौकरों के साथ राजा के पहले ही यर्दन के पास पहुंँच गया था।
19) उन्होंने राजा के घराने को पार कराने और उसकी हर प्रकार की सेवा करने घाट पार किया। जब राजा यर्दन पार करने लगा, गेरा का पुत्र शिमई राजा के पैरों पर गिर पड़ा
20) और उसने राजा से निवेदन किया, ÷÷स्वामी, मुझे दोषी न मानें। उस अपराध का स्मरण भी न करें, जो आपके इस दास ने उस दिन किया था, जब मेरे स्वामी और राजा येरुसालेम से भागे थे। राजा अब इस बात पर ध्यान न दें।
21) यह दास जानता है कि उसने अपराध किया है। देखिए, आज मैं यूसुफ़ के घराने का सब से पहला व्यक्ति हँूं, जो अपने स्वामी और राजा से मिलने आया हूंँ।''
22) सरूया के पुत्र अबीशय ने कहा; ÷÷शिमई ने प्रभु के अभिषिक्त को अभिशाप दिया, इसलिए उस को मृत्युदण्ड अवश्य मिलना चाहिए।'' लेकिन दाऊद ने कहा, सरूया के पुत्रों! मुझे तुम लोगों से क्या? तुम आज मेरे विरोधी क्यों बन रहे हो? क्या आज इस्राएल में किसी को मृत्युदण्ड देना उचित है?
23) क्या मैं आज यह निश्चित रूप से नहीं जानता कि मैं इस्राएल का राजा हूँ?''
24) राजा ने शिमई से कहा,÷÷तुम्हें मृत्युदण्ड नहीं मिलेगा'' और राजा ने शपथ खा कर उस से यह प्रतिज्ञा की।
25) साऊल का पौत्र मफ़ीबोशेत भी राजा से मिलने आया। राजा के जाने के दिन से उसके सकुशल लौटने के दिन तक उसने अपने पैर नहीं धोये थे। उसने न अपनी दाढ़ी संँवारी थी और न अपने वस्त्र धुलवाये थे।
26) जब वह येरुसालेम से राजा से मिलने आया, तब राजा ने उससे पूछा, ÷÷मफ़ीबोशेत, तुम मेरे साथ क्यों नहीं गये थे?''
27) उसने उत्तर दिया, ÷÷मेरे स्वामी और राजा! मेरे नौकर ने मुझे धोखा दिया था। आपके इस दास ने उस से कहा था कि मेरे लिए एक गधी कस दो, जिससे मैं सवार हो कर राजा के साथ जा सकूंँ, क्योंकि आपका दास लंँगड़ा है
28) और उसने आपके इस दास की चुग़ली मेरे स्वामी और राजा के यहांँ की। लेकिन मेरे राजा और स्वामी स्वर्गदूत-तुल्य हैं, इसलिए जो उचित समझें, वही करें।
29) मेरे स्वामी और राजा की दृष्टि में मेरे दादा के सभी वंशज मृत्युदण्ड के योग्य थे, फिर भी आप अपने इस दास को बुला कर अपनी मेज+ पर ही भोजन करने देते थे। तब राजा से और अधिक मांँगने का मुझे अधिकार ही क्या है?''
30) राजा ने उसे उत्तर दिया; ÷÷और कुछ कहने की क्या जरूरत है? मैं यह आज्ञा देता हूंँ कि तुम और सीबा अपनी भू-सम्पत्ति आपस में बांँट लो।''
31) मफ़ीबोशेत ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷मेरे स्वामी और राजा सकुशल लौट आये हैं, इसलिए वह सब कुछ ले लें।''
32) गिलआदवासी बरजि+ल्लय भी रोगलीम से आया और वह राजा को यर्दन के उस पार पहँुंचाने उसके साथ यर्दन तक गया था।
33) बरजि+ल्लस बहुत वृद्ध था। वह अस्सी वर्ष का हो चुका था। जब तक राजा महनयीम में रहा, वह उसके लिए भोजन का प्रबन्ध करता था; क्योंकि वह बड़ा धनी था।
34) अब राजा ने बरजि+ल्लय से कहा, ÷÷मेरे साथ उस पार चलो। मैं येरुसालेम में अपने यहांँ तुम्हारे रहने का प्रबन्ध करूँंगा।''
35) लेकिन बरजि+ल्लय ने राजा को उत्तर दिया, ÷÷मेरे जीवन के कितने वर्ष रह गये, जो अब मैं राजा के साथ येरुसालेम जाऊँ?
36) अब मैं अस्सी वर्ष का हो चुका हँू, अब मेरे लिए अच्छे बुरे का भेद नहीं रहा। आपका दास जो खाता और पीता है, उस में कोई रस नहीं लेता और वह गायक-गायिकाओं का संगीत भी नहीं सुनता। आपका दास अपने स्वामी और राजा के लिए भार क्यों बने?
37) आपका दास यर्दन पार कर बस थोड़ी दूर तक राजा के साथ जाना चाहता है। राजा मुझे इतना पुरस्कृत क्यों करना चाहते हैं?
38) अपने दास को लौट जाने दीजिए, जिससे अपने पिता और अपनी माता की क़ब्र के पास, अपने ही नगर में उसकी मृत्यु हो। लेकिन यह आपका दास किमहाम है। यही मेरे स्वामी राजा के साथ जायेगा। आप जो उचित समझें, उसके लिए वही करें।''
39) राजा ने उत्तर दिया, ÷÷अच्छा, तो किमहाम ही मेरे साथ चले। मैं उसके लिए वहीं करूँंगा, जो तुम चाहते हो। तुम मुझ से जो कुछ मांँगोगे, मैं तुम्हारे लिए वही करूंँगा।''
40) जब सब लोग यर्दन पार कर चुके और राजा भी पार कर चुका, तब राजा ने बरजि+ल्लय को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया। इसके बाद वह अपने देश लौट गया।
41) राजा आगे बढ़ कर गिलगाल आया और किमहाम उसके साथ गया। यूदा के सब लोग और इस्राएल के आधे लोग भी राजा के साथ थे।
42) इसके बाद सब इस्राएली राजा के पास आकर पूछने लगे, ÷÷यूदा के लोग, हमारे भाई आप को ज+बरदस्ती क्यों ले गये? वे राजा को, उनके सारे परिवार तथा दाऊद के सब साथियों के साथ, यर्दन पार क्यों ले गये?''
43) सब यूदा वालों ने इस्राएलियों को उत्तर दिया, ÷÷राजा तो हमारे निकट-सम्बन्धी हैं। तुम इसके लिए क्रुद्ध क्यों हो? क्या हमने राजा के रसद से कुछ खाया-पिया, या उन्होंने हमें कुछ दिया है?''
44) इस पर इस्राएलियों ने यूदा वालों को उत्तर दिया, ÷÷राजा में हमारे दस भाग हैं और दाऊद में भी हमारा हिस्सा तुम्हारे हिस्से से अधिक है। तुम लोग हमें तुच्छ क्यों समझते हो? क्या हमने ही अपने राजा को वापस बुलाने की इच्छा सबसे पहले नहीं प्रकट की थी?'' यूदा वालों का उत्तर इस्राएलियों के प्रश्न से भी अधिक तीखा था।

अध्याय 20

1) शेबा नामक एक अयोग्य व्यक्ति था। वह बेनयामीनवंशी बिक्री का पुत्र था। वह सिंगा बजाकर कहने लगा, ÷÷दाऊद से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं। यिशय के पुत्र के साथ हमारा कुछ लेना-देना नहीं। इस्राएलियों! तुम अपने घर लौट जाओ!''
2) इस पर सभी इस्राएली दाऊद से अलग होकर बिक्री के पुत्र शेबा के अनुगामी हो गये। लेकिन यूदा वाले अपने राजा के साथ ही रहे और उसे यर्दन से येरुसालेम ले गये।
3) जब दाऊद ने येरुसालेम में अपने महल में प्रवेश किया, तो उसने उन दस उपपत्नियों को एक सुरक्षित घर में रख दिया, जिन्हें वह महल की देखरेख करने छोड़ गया था। उसने उनके खाने-पहनने का प्रबन्ध कर दिया, परन्तु वह उनके पास नहीं गया। वे अपनी मृत्यु तक विधवा का जीवन बिताते हुए अपने घर में कै+द रहीं।
4) इसके बाद राजा ने अमासा को आज्ञा दी कि तुम तीन दिन के अन्दर यूदा वालों को यहांँ बुलाओं और तुम भी उपस्थित हो।
5) अमासा यूदा वालों को बुलाने गया। किन्तु जब वह निश्चित समय से अधिक देर तक वहाँं रहा,
6) तब दाऊद ने अबीशय से कहा, ÷÷अब बिक्री का पुत्र शेबा हमें अबसालोम से भी अधिक हानि पहुंँचायेगा। तुम अपने स्वामी के आदमियों को ले कर उसका पीछा करो। नहीं तो वह क़िलाबन्द नगरों में छिप जायेगा और हमारी पकड़ से निकल भागेगा।''
7) इस पर अबीशय के साथ योआब, करेती, पलेती और सब वीर योद्धा बिक्री के पुत्र शेबा का पीछा करने येरुसालेम से चल दिये।
8) वे गिबओन के बड़े पत्थर के पास पहुँचे ही थे कि अमासा उधर से उनके पास आया। योआब अपने सैनिक वस्त्र पहने था। उसकी कमर में म्यान-सहित तलवार लटक रही थी। जब वह आगे झुका, तो तलवार म्यान से गिर गयी।
9) योआब ने अमासा से पूछा, ÷÷मेरे भाई, सकुशल तो हो?'' और उसे चुम्बन देने के लिए योआब ने अपने दाहिने-हाथ से अमासा की दाढ़ी पकड़ी।
10) अमासा का ध्यान योआब के हाथ की तलवार पर नहीं गया। इसलिए योआब ने उसे उसके पेट में भोंक दिया और उसकी अँंतड़ियांँ बाहर ज+मीन पर गिर गयीं। उस पर दूसरा वार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उसकी मृत्यु तत्काल हो गयी। इसके बाद योआब ने अपने भाई अबीशय के साथ बिक्री के पुत्र शेबा का पीछा किया।
11) योआब के आदमियों में एक ने अमासा के पास खड़े हो कर पुकारा, ÷÷जो योआब के साथ है और जो दाऊद के पक्ष में है, वह योआब के पीछे आये''।
12) अमासा खून से लथपथ होकर लोटते-लोटते मार्ग पर पड़ा था। जब उस आदमी ने देखा कि सब लोग अमासा को देख कर रूक जाते हैं, तो उसने अमासा को मार्ग से हटा कर खेत में घसीटा और उस को एक वस्त्र से ढक दिया।
13) उसे मार्ग से हटाने के बाद सब कोई बिक्री के पुत्र शेबा का पीछा करने के लिए योआब के पीछे-पीछे चल दिये।
14) शेबा इस्राएल के सब वंशों को पार कर बेत-माका के आबेल आ गया। बिक्री के सभी पक्षधर एकत्रित हो कर उसे पीछे हो लिये।
15) योआब के सब लोगों ने आ कर उसे बेत-माका के आबेल में घेर लिया। उन्होंने नगर के विरुद्ध मोरचाबन्दी की, जो क़िले की दीवार तक थी और दीवार को गिराने का प्रयत्न किया।
16) तब एक बुद्धिमती स्त्री ने नगर से पुकारा, ÷÷सुनो, सुनो! योआब को इधर आने के लिए कहो। मैं उस से बातचीत करना चाहती हूंँ।''
17) वह उस स्त्री के पास गया, तो वह पूछने लगी, ÷÷क्या तुम्हीं योआब हो?'' उसने उत्तर दिया, ''हाँ, मैं ही हूँ''। तब वह बोली, ÷÷अपनी इस दासी की बात पर ध्यान दो।'' उसने कहा, ÷÷मैं सुन रहा हूंँ।''
18) वह बोली, ÷÷प्राचीन काल में यह कहावत थी कि सलाह लेना हो, तो आबेल जाओ, और लोग इस प्रकार अपनी समस्याओं का समाधान करते थे।
19) हम तो शान्तिप्रिय और ईमानदार इस्राएली हैं। तुम एक ऐसे नगर का विनाश करना चाहते हो, जो इस्राएल का एक महानगर है। तुम प्रभु के दायभाग का अपहरण क्यों करना चाहते हो?''
20) योआब ने उत्तर दिया, ÷÷अपहरण और विनाश मुझसे कोसों दूर हैं।
21) बात ऐसी नहीं है। एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेश के बिक्री के पुत्र शेबा ने राजा दाऊद के विरुद्ध विद्रोह किया है। केवल उसे हमारे हवाले कर दो और मैं नगर से चला जाऊँगा।'' स्त्री ने उत्तर दिया, ÷÷उसका सिर दीवार के ऊपर से तुम्हारे पास फेंक दिया जायेगा।''
22) इसके बाद उस स्त्री ने अपनी विवेकपूर्ण बातों से सब लोगों को समझाया और उन्होंने बिक्री के पुत्र शेबा का सिर काट कर योआब के पास फेंक दिया। इस पर योआब ने तुरही बजवायी और सब लोग नगर छोड़ कर अपने-अपने घर लौटे। योआब राजा के पास येरुसालेम लौट आया।
23) योआब इस्राएल की समस्त सेना का अध्यक्ष था। यहोयादा का पुत्र बनाया करेतियों और पलेतियों का सेनाध्यक्ष था।
24) अदोराम बेगारियों का अध्यक्ष था। अहीलूद का पुत्र यहोशाफ़ाट अभिलेखी था।
25) शया सचिव था। सादोक और एबयातेर याजक थे।
26) याईरी ईरा दाऊद का याजक था।

अध्याय 21

1) दाऊद के राज्यकाल में लगातार तीन साल तक अकाल पड़ा। दाऊद ने प्रभु से परामर्श किया। प्रभु ने कहा, ÷÷साऊल और उसके रक्तपिपासी कुटुम्ब के कारण यह अकाल पड़ा, क्योंकि उसने गिबओनवासियों का वध किया है।''
2) राजा ने गिबओनवासियों को बुलवा कर इसके विषय में बात की। (गिबओनवासी इस्राएलियों में नहीं गिने जाते। वे अमोरियों के अवशिष्ट वंशज है। इस्राएलियों ने शपथ खा कर उन्हें बचाने की प्रतिज्ञा की थी, किन्तु साऊल ने इस्राएल और यूदा की प्रजा के प्रति अपने धार्मिक उत्साह के कारण उनका सर्वनाश करने का प्रयत्न किया था।)
3) दाऊद ने गिबओनवासियों से पूछा, ÷÷मैं तुम लोगों के लिए क्या कर सकता हूंँ और किस तरह प्रायश्चित्त करा सकता हूँ, जिससे तुम प्रभु की विरासत को आशीर्वाद दो?''
4) गिबओनवासियों ने उससे कहा, ÷÷हम साऊल और उसके कुटुम्ब से सोने-चाँदी की माँग नहीं करते और न हमें इस्राएलियों में किसी के वध का अधिकार है''। तब उसने पूछा, ÷÷तो तुम मुझसे क्या चाहते हो? मैं वही तुम्हारे लिए करूंँगा।''
5) उन्होंने राजा को उत्तर दिया, ÷÷जो आदमी हमारा सर्वनाश करना चाहता था और जो हमारा इस प्रकार संहार कर देना चाहता था कि इस्राएल की भूमि पर हमारे लिए कहीं कोई स्थान न रह जाये,
6) हमें उस आदमी के वंशजों में सात व्यक्ति दिये जायें, जिससे हम उन्हें साऊल के गिबआ में, प्रभु की पहाड़ी पर, प्रभु के सामने बल्ला गाड़ कर लटका सकें''। राजा ने उत्तर दिया, ÷÷मैं उन्हें तुमको दूंँगा।''
7) लेकिन प्रभु के सामने की गयी उस शपथ के कारण, जो उनके बीच, दाऊद और साऊल के पुत्र योनातान के बीच हुई थी, राजा ने योनातान के पुत्र, साऊल के पौत्र मफ़ीबोशेत की रक्षा की।
8) इसलिए राजा ने उन दो पुत्रों को, जो अय्या की पुत्री रिस्पा से साऊल के यहाँं उत्पन्न हुए थे, अर्थात् अरमोनी और मफ़ीबोशेत को तथा उन पाँंच पुत्रों को, जो साऊल की पुत्री मेरब से महोलावासी बरजि+ल्लय के पुत्र अद्रीएल के यहांँ उत्पन्न हुए थे,
9) गिबओनवासियों को दे दिया और उन्होंने प्रभु के सामने पहाड़ी पर उन्हें बल्ले पर लटका दिया। इस प्रकार वे सातों एक साथ मर गये। फ़सल के प्रारम्भिक दिनों में, जब जौ की फ़सल प्रारंभ हुई थी, वे मार डाले गये।
10) अय्या की पुत्री रिस्पा ने चट्टान पर टाट फैलाया और वह वहांँ फ़सल के प्रारम्भ से उस दिन तक रही, जब तक आकाश से लाशों पर वर्षा नहीं हुई। वह दिन में आकाश के पक्षियों और रात को जंगली जानवरों को उनके पास आने से रोकती थी।
11) जब दाऊद को सूचना मिली कि अय्या की पुत्री और साऊल की उपपत्नी रिस्पा क्या कर रही है,
12) तब दाऊद ने साऊल की और उसके पुत्र योनातान की हड्डियाँ गिलआद के आबेशवासियों से मँगवायीं। वे उन्हें बेत-शान के चौक से चोरी-छिपे उठा ले गये थे, जहांँ फ़िलिस्तियों ने गिलबोआ पर्वत पर साऊल पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्हें लटकाया था।
13) उसने साऊल और उसके पुत्र योनातान की हड्डियाँ वहांँ से मंगवायी। इसके बाद लटकाये हुए लोगों की हड्डियाँ एकत्रित कर
14) उन्हें साऊल और उसके पुत्र योनातान की हड्डियों की हड्डियों साथ, बेनयामीन के सेला में, उसके पिता कीश के समाधि स्थान में दफ़ना दिया। जब राजा की आज्ञा के अनुसार यह सब हो चुका, तब ईश्वर ने फिर देश पर दयादृष्टि की।
15) फ़िलिस्तियों और इस्राएलियों में युद्ध फिर छिड़ा और दाऊद अपने आदमियों को साथ लेकर फ़िलिस्तियों से लड़ने गया। इससे दाऊद थक गया।
16) यिशबी-बनोब, जो रफ़ाईम का वंशज था, दाऊद को मार डालना चाहता था। उसका भाला तीन सौ शेकेल कांँसे का था और वह एक नयी तलवार बाँंधे हुए था।
17) लेकिन सरूया के पुत्र अबीशेय ने दाऊद की सहायता की और उस फ़िलिस्ती पर आक्रमण कर उसे मार डाला। उस समय दाऊद के सैनिकों ने दाऊद को यह शपथ दिलवायी कि वह फिर कभी उनके साथ युद्ध करने नहीं निकलेगा। कहीं ऐसा न हो कि वह इस्राएल का दीप बुझा दे।
18) कुछ समय बाद गोब के निकट फ़िलिस्तियों से लड़ाई छिड़ गयी, हुशाती सिब्बकय ने सफ़ को मार डाला, जो रफ़ाईम का वंशज था।
19) जब गोब के पास फ़िलिस्तियों से फिर से लड़ाई छिड़ गयी, तब बेथलेहेमवासी यारे-ओरगीम के पुत्र एल्हानान ने गतवासी गोलयत को मार दिया। उसके भाले का दण्ड करघे के डण्डे-जैसा था।
20) जब गत के पास फिर से लड़ाई छिड़ी, तब एक दैत्याकार आदमी सामने आया। उसके हाथों में छः-छः अँगुलियांँ थीं और पांँवों में भी छः-छः अँगुलियाँ, इस तरह कुल चौबीस अँगुलियाँ थीं। वह भी रफ़ाईम का वंशज था।
21) जब उसने इस्राएलियों को ललकारा, तब दाऊद के भाई शिमआ के पुत्र योनातान ने उसका वध कर दिया।
22) ये चार गत के रफ़ाईम के वंशज थे और वे दाऊद तथा उसके सेवकों के हाथों मारे गये।

अध्याय 22

1) जिस समय प्रभु ने दाऊद को उसके सब शत्रुओं और साऊल के हाथ से बचा लिया था, उस समय उसने प्रभु के लिए इन शब्दों में भजन गाया था।
2) उसने कहा : प्रभु मेरी चट्टान है, मेरा गढ़ और मेरा उद्धारक।
3) मेरा ईश्वर मेरी चट्टान है, जहांँ मुझे शरण मिलती है। वह मेरी ढाल है, मेरा शक्तिशाली उद्धारक, मेरा गढ़, मेरा आश्रय और मेरा मुक्तिदाता। तू हिंसा करने वालों से मेरी रक्षा करता है।
4) प्रभु धन्य है। मैंने उसकी दुहाई दी और मैं अपने शत्रुओं पर विजयी हुआ।
5) मैं मृत्यु के पाश में पड़ गया था, विनाश की प्रचण्ड धारा में बह रहा था,
6) अधोलोक के जाल में फँंस गया था, मृत्यु का फन्दा मेरे लिए बिछाया गया था।
7) मैंने अपने संकट में प्रभु को पुकारा, मैंने अपने ईश्वर की दुहाई दी। उसने अपने मन्दिर में मेरी वाणी सुन ली; मेरी दुहाई उसके कान तक पहुँची।
8) तब पृथ्वी विचलित हो कर डोलने लगी, आकाश की नींव हिलने लगी। उसका क्रोध भड़क उठा और वे कांँपने लगे।
9) उसके नथुनों से धुआंँ उठा, भस्मकारी अग्नि और दहकते अंगारे उसके मुख से निकल पड़े।
10) वह आकाश खोल कर उतरा; उसके चरणों तल काले बादल थे।
11) वह केरूबों पर सवार होकर उड़ गया, वह पवन के पंखों पर दिखाई पड़ा।
12) वह अन्धकार ओढ़े था। वह काले घने बादलों से घिरा था।
13) उसके मुखमण्डल के तेज से धधकते अंगारे झरने लगे।
14) प्रभु आकाश में गरज उठा, सर्वोच्च ईश्वर की वाणी सुनाई पड़ी।
15) उसने बाण चलाकर शत्रुओं को तितर-बितर कर दिया, बिजली चमका कर उन्हें भगा दिया।
16) प्रभु की धमकी के गर्जन से, उसके नथुनों की फुंकार से महासागर का तल दिखाई पड़ा, पृथ्वी की नींव प्रकट हो गयी।
17) वह ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे संँभालता और महासागर से मुझे निकाल लेता है।
18) वह मुझे मेरे शक्तिशाली शत्रु से छुड़ाता है, उन विरोधियों से, जो मुझ से प्रबल हैं।
19) वे संकट के समय मुझ पर आक्रमण करते थे, परन्तु प्रभु मेरा सहायक बना।
20) वह मुझे संकट में से निकाल लाया, उसने मुझे छुड़ाया; क्योंकि वह मुझे प्यार करता है।
21) प्रभु मेरी धार्मिकता के अनुरूप मेरे साथ व्यवहार करता है, मेरे हाथों की निर्दोषता के अनुरूप;
22) क्योंकि मैं प्रभु के मार्ग पर चलता रहा, मैंने अपने ईश्वर के साथ विश्वासघात नहीं किया।
23) मैंने उसके सब नियमों को अपने सामने रखा। मैंने उसकी आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं किया।
24) मैं उसकी दृष्टि में धर्माचरण करता रहा; मैंने किसी प्रकार का अपराध नहीं किया।
25) प्रभु ने मेरी धार्मिकता के अनुसार मेरे साथ व्यवहार किया, मेरी निर्दोषता के अनुसार, जिसे उसने अपनी आंँखों से देखा था।
26) तू निष्ठावान् के लिए निष्ठावान् है और अनिन्द्य के लिए अनिन्द्य।
27) तू शुद्ध के लिए शुद्ध है और टेढ़े के लिए टेढ़ा।
28) तू अपमानित प्रजा को विजय दिलाता और घमण्डियों को नीचा दिखाता है।
29) प्रभु! तू ही मेरा दीपक है। प्रभु मेरे अन्धकार को आलोकित करता है।
30) मैं तेरे बल पर शत्रुओं के दल में कूद पड़ता हँूं। मैं अपने ईश्वर के बल पर चारदीवारी लांँघ जाता हँूं।
31) ईश्वर का मार्ग निर्दोष है, प्रभु की वाणी विश्वसनीय है। वह उन सब की ढाल है, जो उसकी शरण जाते हैं।
32) प्रभु के सिवा और कौन ईश्वर है? हमारे ईश्वर के सिवा और कौन चट्टान है?
33) वही ईश्वर मुझे शक्ति प्रदान करता और मेरा मार्ग प्रशस्त करता है।
34) वह मेरे पैरों को हिरनी की गति देता है और पर्वतों पर मुझे बनाये रखता है।
35) वह मेरे हाथों को युद्ध का प्रषिक्षण देता और मेरी बांँहे कांँसे का धनुष चढ़ाती हैं।
36) तू मुझे अपनी विजयी ढाल देता है। तेरी सहायता मुझे महान् बनाती है।
37) तू मेरा मार्ग प्रशस्त करता है; इसलिए मेरे पैर नहीं फिसलते।
38) मैं अपने शत्रुओं का पीछा कर उन्हें पराजित करता हूंँ और उनका संँहार किये बिना नहीं लौटता।
39) मैने उन्हें समाप्त कर दिया; वे फिर नहीं उठते। वे गिर कर पैरों तले पड़े रहते हैं।
40) तू युद्ध के लिए मुझे शक्तिसम्पन्न बनाता और मेरे विरोधियों को मेरे सामने झुकाता है।
41) तू मेरे शत्रुओं को भागने के लिए विवश करता है। मैंने अपने विरोधियों का विनाश किया।
42) वे पुकारते तो हैं, किन्तु कोई नहीं सुनता। वे प्रभु की दुहाई देते हैं, किन्तु वह मौन रहता है।
43) मैं उन्हें मिट्टी की धूल की तरह चूर-चूर करता और सड़कों के कीचड़ की तरह रौंद देता हँूं।
44) तूने मुझे अपनी प्रजा के विद्रोह से मुक्त किया है। तू मुझे राष्ट्रों का अधिपति बनाता है। जिन को मैं नहीं जानता था, वे मेरे अधीन हो जाते हैं।
45) विदेशी मेरे दरबारी बनते हैं। वे मेरा आदेश सुनते ही उसका पालन करते हैं।
46) विदेशी योद्धओं का साहस टूट जाता है। वे कांँपते हुए अपने क़िलों से निकलते हैं।
47) प्रभु की जय! मेरी चट्टान धन्य है। ईश्वर मेरे विजय की चट्टान की जय!
48) वही ईश्वर मुझे प्रतिशोध लेने देता और राष्ट्रों को मेरे अधीन करता है।
49) तू मुझे मेरे शत्रुओं से मुक्त करता, मुझे विरोधियों पर विजय दिलाता और हिंसा करने वालों से मुझे छुड़ाता है।
50) प्रभु! मैं राष्ट्रों के बीच तुझे धन्यवाद देता हँूं। मैं तेरे नाम का स्तुतिगान करता हँूं।
51) वह अपने राजा को महान् विजय दिलाता है। उसकी सत्यप्रतिज्ञा उसके अभिषिक्त के लिए दाऊद और उसके वंश के लिए सदा-सर्वदा बनी रहती है।

अध्याय 23

1) ये दाऊद के अन्तिम शब्द है : यह यिशय के पुत्र दाऊद की वाणी है; अति प्रतिष्ठित व्यक्ति की, याकूब के ईश्वर के अभिषिक्त की, इस्राएल के मधुर गायक की वाणी है।
2) ईश्वर का आत्मा मेरे द्वारा बोलता है, उसकी वाणी मेरी जिह्वा पर विराजती है।
3) इस्राएल का ईश्वर बोला, इस्राएल की चट्टान ने मुझ से कहा : जो मनुष्यों का न्यायपूर्वक शासन करता है, जो ईश्वर पर श्रद्धा रखते हुए शासन करता है,
4) वह सूर्योदय के समय, मेघविहीन प्रभात में, प्रातःकालीन प्रकाश-जैसा है। वह उदीयमान सूर्य-जैसा है, जो वर्षा के पश्चात् भूमि से घास उगाता है।
5) मेरे वंश को निश्चय ही ईश्वर की कृपादृष्टि प्राप्त है। उसने मेरे लिए एक चिरस्थायी सुव्यवस्थित विधान निर्धारित किया, जिसका निष्ठापूर्वक पालन किया जाता है। वह मुझे सुख-शान्ति देता और मेरे सब मनोरथ पूरा करता है।
6) सभी दुष्ट काँंटों की तरह फेंके जाते हैं। कोई उन्हें खुले हाथ से नहीं बटोरता।
7) वे लोहे के हथियार से या भाले के डण्डे से बटोरे जाते और आग में जल कर भस्म हो जाते हैं।
8) दाऊद के वीर योद्धओं के नाम इस प्रकार है :
9) तहकमोन का योशेबबशेबेत, जो कवचधारी सैनिकों का नेता था। उसने एक साथ आठ सौ आदमियों पर अपना भाला चलाया और उन को एक ही भिड़न्त में मार गिराया। उसके बाद अहोही का पौत्र, दोदो का पुत्र एलआज+ार था। वह उन तीन प्रमुख योद्धाओं में एक था, जो दाऊद के साथ थे और युद्ध के लिए एकत्रित फ़िलिस्तियों को ललकारते थे। इस्राएली पीछे हट रहे थे,
10) किन्तु वह डट कर फ़िलिस्तियों को इस प्रकार मारता रहा कि उसका हाथ थक गया और ऐंठ कर तलवार से चिपक गया। उस दिन प्रभु ने महान् विजय दिलायी। लोग उसके पास वापस तो आये, किन्तु केवल मृत व्यक्तियों को लूटने के लिए।
11) इसके बाद हरारवासी आगे का पुत्र शम्मा था। फ़िलिस्ती किसी समय लही में एकत्रित हुए। वहांँ मसूर का एक खेत था। इस्राएली फ़िलिस्तियों के सामने से भागने लगे,
12) लेकिन वह खेत के बीच में खड़ा होकर उसकी रक्षा करता रहा और उसने फ़िलिस्तियों को पराजित किया। प्रभु ने उसे महान् विजय दिलायी।
13) एक बार फ़लस के समय तीस प्रमुख योद्धाओं में तीन अदुल्लाम की गुफा में दाऊद के पास आये। फ़िलिस्तियों का एक दल रफ़ाईम के मैदान में पड़ाव डाले पड़ा था।
14) उस समय दाऊद अपने क़िले में था और फ़िलिस्तियों की एक टोली बेथलेहेम में पड़ी थी।
15) तब दाऊद ने यह इच्छा प्रकट की, ÷÷बेथलेहेम के फाटक वाले कुएँ से कौन मेरे लिए पानी लायेगा?''
16) इस पर ये तीनों वीर योद्धा फ़िलिस्तियों के पड़ाव को पार कर बेथलेहेम के फाटक वाले कुएँ से पानी भर कर दाऊद के पास लाये। परन्तु उसने उसे पीना अस्वीकार कर प्रभु के सामने यह कहते हुए उंँढ़ेल दिया,
17) ÷÷प्रभु न करे कि मैं ऐसा करूँं। क्या मैं इन आदमियों का रक्त पिऊँं, जो अपने प्राण हथेली पर रखकर वहाँं गये?'' उसने उसे पीना अस्वीकार किया। ये इन तीनों वीरों के कार्य हैं।
18) सरूया का पुत्र, योआब का भाई अबीशय कवचधारी सैनिकों का नेता था। उसने एक साथ तीन सौ आदमियों पर अपना भाला चलाया और उन्हें मार गिराया। इस प्रकार उसने तीन प्रमुख वीरों की तरह नाम कमाया।
19) वह तीनों से अधिक सम्मानित था और उनका नेता बन गया, परन्तु उन तीनों में सम्मिलित नहीं किया गया।
20) यहोयादा का पुत्र बनाया भी वीर योद्धा था। वह कबसएल का निवासी था और बड़े कारनामे करता था। उसने मोआब के दो वीर योद्धओं को मारा। किसी दिन, जब बर्फ़ पड़ रही थी, उसने एक गड्ढ़े में उतर कर एक सिंह को मारा।
21) उसने एक दैत्याकार मिस्री को मारा था। मिस्री हाथ में एक भाला लिये था, किन्तु बनाया हाथ में गदा लिये उसके पास गया। उसने मिस्री के हाथ से भाला छीन कर उसके ही भाले से उसे मार डाला।
22) ये यहोयादा के पुत्र बनाया के कारनामे हैं। वह भी तीन प्रमुख वीरों की तरह प्रसिद्ध था।
23) वह तीस प्रमुख वीरों में सब से सम्मानित था, किन्तु वह तीन प्रमुख वीरों में सम्मिलित नहीं किया गया। दाऊद ने उसे अपने अंगरक्षकों का प्रधान बनाया।
24) योआब का भाई असाएल भी उन तीसों में एक था। फिर बेथलेहेमवासी दोदो का पुत्र एल्हानान,
25) हरोदा का शम्मा, हरोद का एलीका,
26) पल्टीवंशीय हेलेस, तकोआ-निवासी इक्केश का पुत्र ईरा,
27) अनातोत का अबीएजे+र, हुशाती मबुन्नय,
28) अहोही सलमोन, नटोफ़ा का महरय,
29) नटोफ़ा के बाना का पुत्र हेलेब, बेनयामीन के गिबआ- निवासी रीबय का पुत्र इत्तय,
30) पिरआतोन का बनाया, नहले-गाश का हिद्दय,
31) अरबाती अबी-अल्बोन, बहूरीम का असमावेत,
32) शअलबोन का एलयहबा, याशेन के पुत्र, योनातान,
33) हरारी शम्मा, हरारी शारार का पुत्र अहीआम,
34) माकावंषी अहसबय का पुत्र एलीफ़ेलेट, गिलो के अहीतोफ़ेल का पुत्र एलीआम,
35) करमेल का हेसत्रों, अरब पारय,
36) सोबा के नातान का पुत्र यिगआल, गदी बानी,
37) अम्मोनी सेलेक, बएरोत का नहरय, जो सरूया के पुत्र योआब का शस्त्रवाहक था,
38) यित्री ईरा, यित्री गारेब और
39) हित्ती ऊरीय- कुल सैंतीस।

अध्याय 24

1) प्रभु का क्रोध इस्राएल पर फिर प्रज्वलित हुआ। उसने दाऊद को इस्राएलियों के विरुद्ध भड़काया और उस से यह कहा, ÷÷इस्राएल और यूदा की जनगणना कराओ।''
2) इसलिए राजा दाऊद ने अपने सेनाध्यक्ष योआब से यह कहा, ÷÷तुम दान से बएर-शेबा तक सब इस्राएली वंशों में घूम-घूम कर जनगणना करो। मैं लोगों की संख्या जानना चाहता हूंँ।''
3) योआब ने राजा से कहा, ÷÷मेरे स्वामी और राजा अपनी आंँखों से देखें कि प्रभु, आपका ईश्वर लोगों की सौ गुनी वृद्धि कर रहा है। तो मेरे स्वामी और राजा ऐसा कार्य क्यों कराना चाहते हैं?''
4) किन्तु योआब और सेनापतियों को राजाज्ञा माननी पड़ी। इसलिए इस्राएली लोगों की गणना करने के लिए योआब अपने सेनाध्यक्षों के साथ राजा के पास से चला गया।
5) उन्होंने यर्दन पार कर घाटी के नगर के दक्षिण में, अरोएर के पास पड़ाव डाला। फिर वे गद और यज+ेर की ओर आगे बढ़ें।
6) इसके बाद वे गिलआद और हित्तियों के प्रान्त के कादेश आये। आगे चल कर वे दान आये और दान से सीदोन की ओर आगे बढ़े।
7) वे तीरूस के गढ़ आये तथा हिव्वियों और कनानियों के सब नगरों में। इसके बाद वे यूदा के नेगेब को पार कर बएर-शेबा पहँुंचे।
8) इसी तरह वे सारे देश का भ्रमण कर नौ महीने बीस दिन बाद येरुसालेम लौट आये।
9) योआब ने राजा को जनगणना का परिणाम बताया : इस्राएल में तलवार चलाने योग्य आठ लाख योद्धा थे और यूदा में पांँच लाख।
10) जनगणना के बाद दाऊद को पश्चाताप हुआ और उसने प्रभु से कहा, ÷÷मैंने जनगणना करा कर घोर पाप किया है। प्रभु! अपने सेवक का पाप क्षमा कर। मैंने बड़ी मूर्खता का काम किया है।''
11) जब दाऊद दूसरे दिन प्रातः उठा, तो दाऊद के दृष्टा, नबी गाद को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
12) ÷÷दाऊद के पास जाकर कहो : प्रभु यह कहता है- मैं तीन बातें तुम्हारे सामने रख रहा हूंँ। उनमें एक को चुन लो। मैं उसी के द्वारा तुम को दण्डित करूँंगा।''
13) गाद ने दाऊद के पास आकर यह सूचना दी और पूछा, ÷÷क्या तुम चाहते हो - तुम्हारे राज्य में सात वर्ष तक अकाल पड़े? अथवा तुम तीन महीनों तक पीछा करते हुए शत्रु के सामने भागते रहो अथवा तुम्हारे देश में तीन दिनों तक महामारी का प्रकोप बना रहे? अच्छी तरह विचार कर बताओ कि मैं उसको, जिसने मुझे भेजा है, क्या उत्तर दूंँ।''
14) दाऊद ने गाद से कहा, ÷÷मैं बड़े असमंजस में हूंँ। हम प्रभु के हाथों पड़ जायें- क्योंकि उसकी दया बड़ी है- किन्तु मैं मनुष्यों के हाथों न पडूँ।''
15) इसलिए प्रभु ने सबेरे से निर्धारित समय तक इस्राएल में महामारी भेजी और दान से बएर-शेबा तक सत्तर हज+ार लोग मर गये।
16) जब प्रभु के दूत ने येरुसालेम का विनाश करने के लिए अपना हाथ उठाया, तो प्रभु को विपत्ति देख कर दुःख हुआ और उसने लोगों का संहार करने वाले दूत से कहा, ÷÷बहुत हुआ। अब अपना हाथ रोक लो।'' प्रभु का दूत यबूसी ओरनान के खलिहान के पास खड़ा था।
17) जब दाऊद ने लोगों को संहार करने वाले दूत को देखा, तो उसने प्रभु से यह कहा, ÷÷मैंने ही पाप किया है, मैंने ही अपराध किया है। इन भेड़ों ने क्या किया है? तेरा हाथ मुझे और मेरे परिवार को दण्डित करे।''
18) उसी दिन गाद ने दाऊद के पास आकर कहा, ÷÷पहाड़ी पर चढ़ कर यबूसी ओरनान के खलिहान में प्रभु के लिए एक वेदी बनवाओ।''
19) दाऊद ऊपर चढ़ा, जैसा कि प्रभु ने गाद के माध्यम से आदेश दिया था।
20) उधर ओरनान ने जब राजा और उसके साथियों को अपनी ओर आते देखा, तो वह उस से मिलने आगे बढ़ा और भूमि तक सिर नवा कर राजा को प्रणाम किया।
21) ओरनान ने पूछा, ÷÷मेरे स्वामी, राजा अपने दास के पास क्यों आये हैं?'' दाऊद ने उत्तर दिया, ÷÷मैं तुम्हारा खलिहान ख़रीदने आया हँूं, जिससे मैं वहांँ प्रभु के लिए एक वेदी बनवाऊँ और इस प्रकार अपनी प्रजा के बीच से महामारी दूर करूँं।''
22) ओरनान ने दाऊद से कहा, ÷÷मेरे स्वामी, राजा जो चाहें, ले लें और बलि चढ़ाये। देखिए, होम-बलि के लिए बैल तैयार हैं और दँवरी करने का सामान तथा बैलों का जुआ ईंधन के काम आयेगा।
23) राजा! ओरनान ये सब चीज+ें राजा को देता है।'' फिर ओरनान ने राजा कहा, ÷÷प्रभु, आपका ईश्वर आपका मनोरथ पूरा करे।''
24) राजा ने ओरनान को उत्तर दिया, ÷÷नहीं, मैं तो रूपया दे कर ये वस्तुएँ तुम से मोल लूंँगा। मैं प्रभु, अपने ईश्वर को मुफ्+त में प्राप्त होम-बलियाँ नहीं चढ़ाना चाहता।'' तब दाऊद ने चांँदी के पचास शेकेल में खलिहान और बैलों को मोल लिया।
25) वहाँ दाऊद ने प्रभु के लिए वेदी बनवायी और होम-बलियाँ तथा शान्ति-बलियाँ चढ़ायीं। प्रभु ने देश पर पुनः दयादृष्टि की और इस्राएल से महामारी जाती रही।